अनु की मस्ती मेरे साथ compleet

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The Romantic
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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:29


हम घर पर पहुँच गये थे. दोनो बारिश मे पूरी तरह भीग चुके
थे. हमारे बदन और कपड़ों से पानी टपक रहा था. मैने ताला खोल
कर लाइट जलाई. उसकी तरफ घूमते ही मैं अवाक रह गया था. क्या
खूबसूरत महिला थी. रंग गेहुआ था लेकिन नाक नक्श तो बस कयामत
थे. बदन ऐसा कसा हुआ की उफफफ्फ़ .मेरी तो साँस ही रुक गयी. पूरा
बदन किसी होनहार कारीगर द्वारा गढ़ा हुआ लगता था. बदन पर सिर्फ़
मेरी बनियान और शर्ट थी जिसका होना या ना होना बराबर था. उसके
बदन का एक एक रेशा सॉफ नज़र आ रहा था. मैं एक तक उसके बदन को
निहारता रह गया. काफ़ी सालों बाद किसी महिला को इस अवस्था मे देख
रहा था. मेरी बीवी रजनी गोरी तो थी लेकिन काफ़ी दुबली थी. इसका
बदन भरा हुआ था. चूचिया बड़ी बड़ी थी 38 के आसपास की साइज़
होगी. निपल्स के चारों ओर काले काले घेर काफ़ी फैले हुए थे.
निपल्स भी काफ़ी लंबे थे. उसके बदन मे कई जगह कीचड़ लगा हुया
था लेकिन उस हालत मे भी वो किसी कीचड़ मे खिले फूल की तरह लग
रही थी.

उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली और मुझे अपने बदन को इतनी गहरी
नज़रों से घूरता पाकर वो शर्मा गयी.

"अंदर चलें" उसने मुझे मेरी अवस्था से बाहर लाते हुए कहा.

"हाँï हाँï अंदर आओ." मैं बोखला गया. मेरी चोरी पकड़ी गयी थी. मैं
अपनी हड़बड़ाहट छिपाते हुए बोला, " देखो छ्होटा सा मकान है.
पुरखों ने बनवाया था. दो कमरे हैं. यहाँ मैं अकेला ही रहता हूँ
इसलिए समान इधर उधर फैला हुआ है."

"क्यों शादी नही की?"

"की थी लेकिन मुझसे ज़्यादा वो भगवान को प्यारी थी इसलिए उसे जल्दी
वापस बुला लिया"

"सॉरी! मैने आपको कष्ट दिया."

"नही नही ऐसा कुच्छ नही." मैने कहा " ऐसा करो तुम जल्दी से नहा
लो. इस तरह रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी."

"हाँ अपने सही कहा. बातरूम किधर है?" उसने झट से मेरी बात का
समर्थन किया. शायद वो खुद एक गैर मर्द के सामने से अपना नग्न
बदन छिपाना चाहती थी.

मैने उसे बाथरूम दिखा दिया. वो अंदर चली गयी. मैने उसे रुकने
को कहा. मैं स्टोव पर पानी गर्म करके ले आया. इसे बाल्टी के पानी मे
मिक्स कर लो. गुनगुने पानी मे शरीर को राहत पहुँचेगी. कपड़े वहीं
छ्चोड़ देना. मैं धुले कपड़े ला देता हूँ.

उसके लिए प्रॉपर कपड़े तलाश करने मे दिक्कत हुई. अब मेरे घर मे
मर्दों के कपड़े ही थे. मैने उनमे से ही एक शर्ट और एक लूँगी
निकाला. शर्ट थोड़े हल्के कलर का था इसलिए अपनी एक अच्छि
बनियान भी निकाल कर उसे दी. मैं उसके लिए चाइ बनाने लगा. कुच्छ
देर बाद बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. मैं अपने काम मे
बिज़ी रहा. बीच बीच मे उसकी चूड़ियों की ख़ान खानाहट बता रही
थी कि वो कुच्छ कर रही है. शायद बॉल संवार रही होगी. मैं अपने
धुन मे मस्त किचन मे ही बिज़ी रहा. अचानक पीछे से आवाज़ आई,

" अब कैसी लग रही हूँ मैं?"

The Romantic
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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:29


"एम्म्म" मैं उसके चारों ओर एक चक्कर लगा कर बोला, "काजल लगा लो
कहीं मेरी ही नज़र ना लग जाए."

"धात" वो एक दम नयी नवेली दुल्हन की तरह शर्मा गयी.

"लो चाइ पियो. इसे पीने से तुम्हारे बदन मे स्फूर्ति आ जाएगी." मैने
उसकी तरफ चाइ का प्याला बढ़ाते हुए कहा. वो मेरे हाथ से कप ले
कर सोफे पर बैठ गयी. उसके मुँह से ना चाहते हुए भी एक कराह
निकल गयी.

`क्या हुआ?'

` कुच्छ नही. ज़ख़्मों से टीस उठ रही थी.' उसने अपने निचले होंठ
को दाँतों मे दबाकर दर्द को पीने की कोशिश की.

` अरे मैं तो भूल ही गया था. बहुत बेदर्दी से उनलोगों ने संभोग
किया है तुमहरे साथ. कई जगह से तो खून भी निकल रहा था.'

उसके चेहरे पर एक दर्दीली मुस्कान उभर आई. हम चुपचाप चाइ ख़त्म
करने लगे.

`अभी आया' कहकर मैं उठा और बेडरूम मे जाकर रॅक से एक सेव्लान की
शीशी और रुई ले आया.

`चलो यहाँ आओ बेडरूम मे.' मैने उसे कहा. वो मेरी ओर शंकित
निगाहों से देखने लगी.

`अरे भाई तुम्हारे ज़ख़्मों की ड्रेसिंग करनी होगी. तुम्हे लेटना पड़ेगा.'

वो सिर झुकाए उठी और बिना कुच्छ कहे बेडरूम मे आकर खाट पर लेट
गयी.

` कहाँ कहाँ जख्म है मुझे दिखाओ'

`उसने एक उंगली से अपनी छातियो की ओर इशारा किया.' फिर वो अपनी
कनपटी उंगलियों से अपने शर्ट के बटन्स खोलने लगी. मैं ये देख कर
अवाक रह गया कि उसे एक बनियान देने के बाद भी उसने नीचे कुच्छ
नही पहन रखा था. उसने अपने शर्ट के दोनो पल्लों को अलग किया और
उसका साँचे मे तराशा हुआ बदन मेरे आँखों के सामने था. उसने अपनी
आँखों को सख्ती से बंद कर रखा था. मानो आँख के बंद करने से
उसका नग्न बदन दूसरों की आँखों के सामने से गायब हो गया हो.

मैने देखा कि उसके चूचियो पर और उसके निपल्स के आसपास अनगिनत
दाँतों के निशान थे. एक निपल के जड़ से खून निकल रहा था. दो
चार और घाव गहरे थे. मैने रूई लेकर उसे सेव्लान मे डुबो कर उसके
घावों के उपर फिराने लगा. वो दर्द से कराह रही
थी. "आअहह..... ऊऊहह" उसने कुच्छ देर मे अपनी आँखेने डरते डरते
खोल ली.

The Romantic
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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:30


कुकछ घाव जो गहरे ताजे उसमे नहाने के बाद भी मिट्टी पूरी तरह से
सॉफ नही हुई थी. मैने उसके घावों को अच्छि तरह से साफ किया.
इस दौरान कई बार उसकी चूचियो को दबाना उसके निपल्स को पकड़ कर
खींचना पड़ा. मेरा लिंग इस काम को करते करते जाने कब तन कर
खड़ा हो गया. जब मेरी आँखें उसके बदन से फिरती हुई उसकी आँखों
पर गयी तो मैने पाया उसकी आँखें मेरे तने हुए लिंग पर टिकी हुई
थी. उसके गाल शर्म से लाल हो रहे थे. अब उस कंडीशन मे मैं अपने
लिंग के उभार को उसकी नज़रों से छिपाने मे असमर्थ था.

मैने देखा वो एक बार अपने निचले होंठ को दांतो से काट कर हल्के से
मुस्कुरा उठी. फिर उसने अपनी आँखें बंद कर ली उसकी होंठों पर वो
हल्की सी मुस्कान अभी तक खिली हुई थी. शायद वो आँखों को बंद
करके मेरे लिंग की कल्पना कर रही थी.

मैने महसूस किया कि उसके ब्रेस्ट अब पहले जीतने नरम नही रहे. उन
मे हल्की सी सख्ती आ गयी थी. निपल्स भी तन कर खड़े हो गये
थे. मैने उसकी बंद आँख का सहारा पाकर अपने हाथ से अपने लिंग को
सेट इस तरह किया कि वो सामने वाले को ज़्यादा खराब नही लगे. मेरे
हाथ अब उसकी चूचियो पर हरकत करते हुए काँप रहे थे. कुच्छ
देर बाद चूचियो के सारे घाव ड्रेसिंग करके मैने कहा,

" लो अब अपने शर्ट के बटन्स बूँद कर लो ड्रेसिंग हो गयी. है." वो
कुच्छ देर तक वैसे ही पड़ी रही. मैने सोचा कि शायद वो सो गयी
हो लेकिन दरस्ल वो अपने ही ख़यालों मे खोई हुई थी इसलिए मेरी धीमी
आवाज़ को वो सुन नही पाई.
मैने उसे धीरे से हिला कर वापस अपनी बात दोहराई. वो शर्म से
तार्तार हो गयी.

"सॉरी" कह कर उसने अपने शर्ट के बटन लेते लेते ही बंद करने
शुरू किए.

" नीचे भी हैं क्या घाव." मैने अपने माथे पर उभर आए पसीने
को पोंचछते हुए उससे पुचछा. मेरे सवाल को सुन कर उसने आँखें खोली
और बिना कुच्छ कहे हां मे सिर हिलाया.

" अब इसे उतारो" मैने उसकी लूँगी की ओर इशारा किया.

"मुझे शर्म आती है."

"शर्म किस बात की अभी तो कुच्छ देर पहले मेरे सामने बिल्कुल नंगी
थी. मैने तो तुझे उस अवस्था मे देखा है जिस हालत मे सिर्फ़ तुझे
तेरा पति देखा होगा."

" नही रहने दो अब"

" देख घाव गहरे हैं सेपटिक हो गया तो फिर नासूर बन जाएगा. तू
आँखें बंद कर मैं तेरी लूँगी हटाता हूँ."

" नही पहले आप भी अपनी आँखें बंद करो. नही तो मुझे शर्म
आएगी."

" अरे पगली अगर मैने आँखें बंद कर ली तो तेरे घावों को सॉफ कौन
करेगा?"

मैने अपने हाथ उसकी लूँगी की गाँठ पर रख दिए. उसने तुरंत मेरे
हाथों को थाम लिया.

" ठहरो मैं खुद खोल देती हूँ. वैसे मुझे तुम्हारे सामने नग्न होते
कोई झिझक नही हो रही है"

"क्यों मैं तो एक अंजान पराया मर्द हूँ"

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