एक खड़े लण्ड की करतूत

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sexy
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Re: एक खड़े लण्ड की करतूत

Unread post by sexy » 25 Jul 2015 11:10

मामी की तो बिलकुल काली-काली थी। पता नहीं मामा उन काली-काली फांकों को कैसे चूसते हैं। मैंने कनिका की चूत पर हाथ फिराना चालू कर दिया। वो तो मस्त हुई मेरे लण्ड को बिना रुके चूसे जा रही थी। मुझे लगा अगर जल्दी ही मैंने उसे मना नहीं किया तो मेरा पानी उसके मुँह में ही निकल जाएगा और मैं आज की रात बिना चूत मारे ही रह जाऊँगा। मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहता था।

मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली जोर से डाल दी। वो थोड़ी सी चिहुंकी और मेरे लण्ड को छोड़कर एक और लुढ़क गई। वो चित्त लेट गई थी। अब मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूमने लगा। एक हाथ से उसके उरोज मसलने चालू कर दिए और एक हाथ से उसकी चूत की फांकों को मसलने लगा।

उसने भी मेरे लण्ड को मसलना चालू कर दिया।

अब लोहा पूरी तरह गर्म हो चुका था और हथोड़ा मारने का समय आ गया था। मैंने अपने उफनते हुए लण्ड को उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके गाल चूमने लगा। एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली। इतने में मेरे लण्ड ने एक ठुमका लगाया और वो फिसल कर ऊपर खिसक गया।

कनिका की हँसी निकल गई।

मैंने दुबारा अपने लण्ड को उसकी चूत पर सेट किया और उसके कमर पकड़कर एक जोर का धक्का लगा दिया। मेरा लण्ड उसके थूक से पूरा गीला हो चुका था और पिछले आधे घंटे से उसकी चूत ने भी बेतहाशा कामरज बहाया था। मेरा आधा लण्ड उसकी कुंवारी चूत की सील को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया।

इसके साथ ही कनिका की एक चीख हवा में गूंज गई।

मैंने झट से उसका मुँह दबा दिया नहीं तो उसकी चीख नीचे तक चली जाती। कोई 2-3 मिनट तक हम बिना कोई हरकत किये ऐसे ही पड़े रहे। वो नीचे पड़ी कुनमुना रही थी। अपने हाथ पैर पटक रही थी पर मैंने उसकी कमर पकड़ रखी थी इसलिए मेरा लण्ड बाहर निकलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। मुझे भी अपने लण्ड के सुपाड़े के नीचे जहां धागा होता है जलन सी महसूस हुई। ये तो मुझे बाद में पता चला कि उसकी चूत की सील के साथ मेरे लण्ड की भी सील (धागा) टूट गई है।

चलो अच्छा है अब आगे का रास्ता दोनों के लिए ही साफ हो गया है। हम दोनों को ही दर्द हो रहा था। पर इस नए स्वाद के आगे ये दर्द भला क्या माने रखता था।

“ओह… भाई मैं तो मर गई रे…” कनिका के मुँह से निकला- “ओह… बाहर निकालो मैं मर जाऊँगी…”

“अरे मेरी बहना रानी। बस अब जो होना था हो गया है। अब दर्द नहीं बस मजा ही मजा आएगा। तुम डरो नहीं ये दर्द तो बस 2-3 मिनट का और है उसके बाद तो बस जन्नत का ही मजा है…”

“ओह… नहीं प्लीज बाहर निकालो… ओह। याआ… उन्ह…”

मैं जानता था उसका दर्द अब कम होने लगा है और उसे भी मजा आने लगा है। मैंने हौले से एक धक्का लगाया तो उसने भी अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ा। मेरा लण्ड तो निहाल ही हो गया जैसे। अब तो हालत यह थी कि कनिका नीचे से धक्के लगा रही थी।

अब तो मेरा लण्ड उसकी चूत में बिना किसी रुकावट अन्दर बाहर हो रहा था। उसके कामरज और सील टूटने से निकले खून से सना मेरा लण्ड तो लाल और गुलाबी सा हो गया था।
“उईई माँ… आह्ह… मजा आ रहा है भाई तेज करो ना। आह और तेज या…” कनिका मस्त हुई बड़बड़ा रही थी। अब उसने अपने पैर ऊपर उठाकर मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए थे।

मैंने भी उसका सिर अपने हाथों में पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। जैसे ही मैं ऊपर उठता तो वो भी मेरे साथ ही थोड़ी सी ऊपर हो जाती और जब हम दोनों नीचे आते तो पहले उसके नितम्ब गद्दे पर टिकते और फिर गच्च से मेरा लण्ड उसकी चूत की गहराई में समा जाता। वो तो मस्त हुई आह्ह… उईई माँ… ही करती जा रही थी।

एक बार उसका शरीर फिर अकड़ा और उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया। वो झड़ गई थी। आह… एक ठंडी सी आनंद की सीत्कार उसके मुँह से निकली तो लगा कि वो पूरी तरह मस्त और संतुष्ट हो गई है। मैंने अपने धक्के लगाने चालू रखे। हमारी इस चुदाई को कोई 20 मिनट तो जरूर हो ही गए थे। अब मुझे लगाने लगा कि मेरा लावा फूटने वाला है।

मैंने कनिका से कहा तो वो बोली- “कोई बात नहीं, अन्दर ही डाल दो अपना पानी। मैं भी आज इस अमृत को अपनी कुंवारी चूत में लेकर निहाल होना चाहती हूँ…”

मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर गर्म गाढ़े रस की ना जाने कितनी पिचकारियां निकलती चली गई और उसकी चूत को लबालब भरती चली गई। उसने मुझे कसकर पकड़ लिया। जैसे वो उस अमृत का एक भी कतरा इधर-उधर नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झड़ने के बाद भी उसके ऊपर ही लेटा रहा। मैंने कहीं पढ़ा था कि आदमी को झड़ने के बाद 3-4 मिनट अपना लण्ड चूत में ही डाले रखना चाहिए इससे उसके लण्ड को फिर से नई ताकत मिल जाती है। और चूत में भी दर्द और सूजन नहीं आती।

थोड़ी देर बाद हम उठकर बैठ गए। मैंने कनिका से पूछा- “कैसी लगी पहली चुदाई मेरी जान?”

“ओह बहुत ही मजेदार थी मेरे भैया…”

“अब भैया नहीं सैंया कहो मेरी जान…”

“हाँ हाँ मेरे सैंया, मेरे साजन मैं तो कब की इस अमृत की प्यासी थी। बस तुमने ही देर कर रखी थी…”

“क्या मतलब?”

“ओह्ह… तुम भी कितने लल्लू हो। तुम क्या सोचते हो मुझे कुछ नहीं पता?”

“क्या मतलब?”

“मुझे सब पता है तुम मुझे नहाते हुए और मूतते हुए चुपके-चुपके देखा करते हो और मेरा नाम ले-लेकर मुट्ठ भी मारते हो…”

“ओह… तुम भी ना… एक नंबर की चुदक्कड़ हो…”

“क्यों ना बनूँ आखिर खानदान का असर मुझ पर भी आएगा ही ना…” और उसने मेरी ओर आँख मार दी। और फिर आगे बोली- “पर तुम्हें क्या हुआ मेरे भैया?”

“चुप साली अब भी भैया बोलती है। अब तो मैं दिन में ही तुम्हारा भैया रहूँगा रात में तो मैं तुम्हारा सैंया और तुम मेरी सजनी बनोगी…” और फिर मैंने एक बार उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था।

बस यही कहानी है तरुण की। यह कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरूर बताएं।

आपका प्रेम गुरू.
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***** THE END समाप्त *****
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