गर्ल्स स्कूल--12
निशा ने अपनी मम्मी के जाते ही अपनी कमीज़ का एक और बटन खोल दिया और फिर से उसी सवाल पर आ गयी...," बताइए ना भैया! क्या गौरी मुझसे भी सुंदर है..."
संजय ने कोशिश की पर उसकी और मुँह ना घुमा पाया," निशा! तुम इश्स टॉपिक को बंद कर दो... और जाकर पढ़ लो!
" भैया! मैं अपनी किताबें यहीं ले आऊँ क्या? मैं यहीं पढ़ लूँगी..."
लाख चाह कर भी संजय उसको मना नही कर पाया," ठीक है... लेकिन पढ़ना है..."
निशा अपना बॅग उठा लाई और आते आते मम्मी को भी बता आई की मैं भैया के पास ही पढ़ूंगी... देर रात तक!
निशा संजय के बराबर में आकर बैठ गयी और अपनी किताब खोल ली. संजय के दिमाग़ में एक बार और अपनी छ्होटी बेहन की 'उन्न सुंदर और सुडौल चूचों को देखने का भूत सॉवॅर होता ही गया...
संजय ने अपनी नज़र को तिरच्छा करके निशा की और देखा पर शायद वो उम्मीद छ्चोड़ कर सच में ही पढ़ाई करने लगी थी.. अब वो अपनी मस्तियों को छल्कने की बजाय अपने कमीज़ से उनको ढकने हुए थी... पर कमीज़ के उपर से ही वो संजय की आँखों को अपने से हटने ही नही दे रही थी... आ! मैने पहले कभी इन्न पार ध्यान क्यूँ नही दिया. वो उस्स पल के लिए गौरी को भूल कर अपनी बेहन की मस्तियों का दीवाना हो गया... और उन्हे कमीज़ के उपर से ही बार बार घूरता रहा... कैसे इनको अपने हाथों में थाम कर सहलाऊ? पर वा तो इसका सगा भाई था... सीधा अटॅक कैसे करता...
ऐसा नही था की निशा को अपनी चूचियों पर चुभाती संजय की नज़रें महसूस ना हो रही हों... पर उसका हाल भी संजय जैसा ही था... सीधा अटॅक कैसे करती?
निशा को एक प्लान सूझा... वह उल्टी होकर लेट गयी, अपनी कोहानिया बेड पर टीका कर... इश्स पोज़िशन में उसकी चूचियाँ बाहर से इतनी ज़्यादा दिखाई दे रही थी थोडा सा नीचे झुक कर संजय उसके निप्पल्स के चारों और की लाली भी देख सकता था... संजय ने वैसा ही किया... उसने थोड़ा सा उपर होकर अपनी कोहनी बेड पर टीका दी और टेढ़ा होकर लेट सा गया. संजय की आँखें जैसे चमक गयी... उसको ना केवल चूचियों के अन्त्छोर पर दमकती हुई लाली परंतु उस्स लाली का कारण उनकी चूचियों के केन्द्रा में दो टॅना टन गुलाबी निप्पल भी सॉफ दिखाई दे रहे थे... संजय सब मरुअदाओ को ताक पर रखता चला गया," निशा! आज यहीं सोना है क्या?" उसकी आवाज़ में वासना का असर सॉफ सुनाई दे रहा था... वह जैसे वासना से भरे गहरे कुए से बोल रहा हो!
निशा उसकी चूचियों को देख पागल हो चुके संजय को देखकर मुस्कुराइ. उसका भाई अब ज़रूर उसके योवन की ताक़त को पहचान लेगा..," नही भैया! अपने कमरे में ही सो उगी. अभी चली जाऊं क्या? उसकी आवाज़ में व्यंग्य था... संजय की बेचैनी पर व्यंग्य...
संजय हकलाने लगा... उसको समझ में नही आ रहा था, उस्स को अपने पास से जाने से रोके कैसे," हाआँ.. म्म..मेरा मतलब है.. नही.. तुम यहीं पढ़ना चाहो तो पढ़ लो... और बल्कि यहीं पढ़ लो... अकेले मुझे भी नींद आ जाएगी... बेशक यहीं पर सो जाओ! ये बेड तो काफ़ी चौड़ा है... इश्स पर तो तीन भी सो सकते हैं... जब हम सोते थे तो इकट्ठे ही तो सोते थे.." निशा को अपने साथ ही सुलाने के लिए वो अपने इतिहास तक की दुहाई देने लगा..
निशा भी तो यही चाहती थी," ठीक है भैया!" और फिर से किताब का पन्ना पलट कर पढ़ने की आक्टिंग करने लगी......
संजय को अब भी चैन नही था... उसको ये जान-ना था की निशा ने 'ठीक है' यहाँ पढ़ने के लिए बोला है या यहाँ सोने के लिए! वो पक्का कर लेना चाहता था की उम्मीदें कहाँ तक लगाए..... देखने भर की या छूने तक की भी. उसने निशा से पूचछा," तुम्हारी चदडार निकल दूँ क्या ओढ़ने के लिए...." निशा ने जैसे ही उसकी आँखों में झाँका उसने अपनी बात घुमा दी,"........ अगर यहाँ सोना हो तो"
निशा के लिए भी यहाँ सोना आसान हो गया... नही तो वह भी यही सोच रही थी की यहाँ पढ़ते पढ़ते लटका लेकर सोने की आक्टिंग करनी पड़ेगी...," हां! भैया... निकाल दो.. मैं यहीं सो जाती हून... सोना ही तो है..."
दोनो की आँखों में चमक बराबर थी... दोनो की आँखों में रिस्ते की पवित्रता पर वासना हावी होती जा रही थी.... पर दोनो में से किसी में शुरुआत करने का दूं नही था.
सोच विचार कर निशा ने वहीं से बात शुरू कर दी.. जहाँ उसके भाई ने बंद करवा दी थी... संजय की आँखों को अपनी छतियो की और लपकती देखकर निशा को यकीन था की अब की बार वो इश्स बात को बंद नही करवाएगा," भैया! एक बात बता दो ना... प्लीज़... दोबारा नही पूछून्गि!"
संजय को भी पता था वो क्या पूछेगि. उसने अपनी किताब बंद कर दी और उसकी चूचियों में कुच्छ ढ़हूंढता हुआ सा बोला," बोल निशा! तुझे जो पूच्छना है पूच्छ ले... मैं बता दूँगा... जितनी चाहे बात पूच्छ. आख़िर तेरा भाई हूँ... मैं नही बतावँगा तो कौन बताएगे तुझे!"
निशा ऐसे ही लेटी रही.. अपनी चूचियों को लटकाए... लटकी हुई भी वो इतनी सख़्त हो चुकी थी की निप्पल मुँह उठाने लगे थे... बाहर निकालने के लिए," आपको कौन ज़्यादा सुंदर लगती है; मैं या गौरी!!!"
संजय ने उसकी गोल मटोल चूचियों में अपनी नज़रें गड़ाए हुए कहा," निशा! मैने तुम्हे कभी उस्स नज़र से देखा ही नही."
"किस नज़र से" निशा ने अंजान बनते हुए अपनी जवानियों को उसकी और जैसे उच्छल ही दिया... लेट लेते ही एक मादक अंगड़ाई...
संजय के मुँह में कुत्ते की तरह बार बार लार आ रही थी... भ्ूखे कुत्ते की तरह...," उस्स नज़र से; जिस नज़र से अपनी प्रेमिका और बीवी को देखते हैं..."
"अपने भाई के मुँह से प्रेमिका और पत्नी शब्दों को सुनकर वो ललचा सी गयी; एक बार उसकी प्रेमिका बन-ने के लिए... पर लाख चाहने पर भी वो अपनी इच्च्छा जाहिर ना कर पाई," पर क्या सुंदरता का पैमाना प्रेमिका और पत्नी के लिए ही होता है...?"
संजय मॅन ही मॅन सोच रहा था,' होता तो नही... सुंदरता तो हर रूप में हो सकती है..' पर वा तो उसको अपनी प्रेमिका ही बना लेना चाहता था... और उसके छलक्ते कुंवारे प्यालों को देखकर तो आज रात ही... वासना हावी होने पर कुच्छ भी सही या ग़लत नही होता... बस मज़ा देना और मज़ा लेना ही सही है... और उससे वंचित रखना ग़लत," जिस सुंदरता की तुम बात कर रही हो; वो तो आदमी प्रेमिका में ही देख सकता है... भला बेहन में मैं कैसे वो सुंदरता देख सकता हूँ."
निशा को पता था वो कब से उसकी वही 'सुंदरता' ही तो देख रहा है," तो क्या तुम एक पल के लिए मुझे प्रेमिका मान कर नही बता सकते की तुम्हारी ये प्रेमिका सुंदर है या वो?
"ठीक है तुम दरवाजा बंद कर दो! मैं कोशिश करूँगा देख कर बताने की" संजय को लगा अगर अब भी उसने कुच्छ नही किया तो मर्द होने पर ही धिक्कार है.. हवस पूरी तरह से उसके दिलोड़िमाग़ पर च्छाई हुई थी...
निशा की खुशी का ठिकाना ही ना रहा. उसने झट से दरवाजे की कुण्डी लगा दी.. और वापस बेड पर आकर सीधी बैठ गयी. अब उसको चूचियाँ दिखाने की ज़रूरत नही थी. उन्होने तो अपना जादू चला दिया था... उसके सगे भाई पर....
संजय कुच्छ देर तक यूँही कपड़ों के उपर से देखता रहा.... वो कहीं से भी उसको गौरी से कम नही लग रही थी... कम से कम उस्स पल के लिए," देखो निशा! मेरी किसी बात का बुरा मत मानना... मैं जो कुच्छ भी करूँगा या करने को कहूँगा; वो यही जानने के लिए करूँगा की तुम सुंदर हो या वो; गौरी.... और वो भी तुम्हारे कहने पर... ओ.के.?
निशा: हां!....ओ.के.
वह बेताबी से मरी जा रही थी की जाने क्या होगा आगे!
संजय: उस्स कोने में जाकर खड़ी हो जाओ! ये सुंदरता मापने का पहला चरण है... जैसा मैं कहूँ; करती जाना... अगर तुम्हे लगे की तुम नही कर पाओगी तो बता देना.... मैं बीच में ही छ्चोड़ दूँगा... पर मैं तुम्हे ये पूरा काम हो गया तो ही बातौँगा की सुंदर कौन है! ठीक है...
निशा को यकीन था की उसकी उम्मीद से भी ज़्यादा होने वाला है... वा शरमाती हुई सी जाकर कोने में खड़ी हो गयी.... आज रात हो सकने वाली सभी बातों को छ्चोड़ कर... उसके चेहरे पर अभी से हया की लाली दिखने लगी थी....
संजय ने निशा को अपने हाथ अपने सिर से उपर उठाने को कहा... निशा ने वही किया... पर जैसे जैसे उसके हाथ उपर उठते गये... उसकी गड्राई हुई चुचिया भी साथ साथ मुँह उठाती चली गयी... और नज़रें अपने भाई की और तनी हुई उसकी मस्तियों को देखकर उसी स्पीड से नीचे होती गयी... शरम से...
अपने से करीब 6 फीट की दूरी पर खड़ी अपनी बेहन की चूचियों को इश्स कदर तने हुए देखकर संजय की पॅंट में उभर आने लगा... निशा के उत्तेजित होते जाने की वजह से उसकी चूचियों के दाने रस से भरकर उसके कमीज़ से बाहर झाँकने की कोशिश कर रहे थे.. संजय उनकी चौन्च को सॉफ सॉफ अपने दिल में चुभते हुए महसूस कर रहा था. वा सोच ही रहा था की अब क्या करूँ.. तभी निशा बोल पड़ी," भैया! हाथ दुखने लगे हैं... नीचे कर लूँ क्या.". वा नज़रें नही मिला रही थी...
संजय तो भूल ही गया था की उसकी बेहन को सुंदरता की पहली परीक्षा देते हुए 5 मिनिट से भी ज़्यादा हो गये हैं...," घूम जाओ.. और हाथ नीचे कर लो!"
निशा कहे अनुसार घूम गयी... अब नज़रें मिलने की संभावना ना होने की वजह से दोनों को ही आगे बढ़ते हुए शरम कम आ रही थी...
संजय ने उसके चूतदों को जी भर कर देखा... पर कमीज़ गांद तक होने की वजह से वो गांद की मस्त मोटाई का तो अंदाज़ा लगा पा रहा था. पर गांद की दोनो फांकों का आकर प्रकार जान- ने में उसको दिक्कत हो रही थी... पर वो अपना कमीज़ हटाने की कहते हुए हिचकिचा रहा था... काफ़ी देर सोचने के बाद उसने निशा से कहा,"निशा! अजीब लगे तो मत करना... अगर निकल सको तो अपना कमीज़ निकाल दो...!"
यह बात सुनते ही निशा के पैर काँपने लगे... उसने तो नीचे समीज़ तक नही पहना हुआ था," पर मई नीचे...." आगे वो कुच्छ ना बोली पर संजय समझ गया...," मैने पहले ही कह दिया था... मर्ज़ी हो तो करो वरना आ जाओ! पर में फिर बता नही पवँगा सच सच...."
निकलना कौन नही चाहता था... वो तो बस पहले ही सॉफ सॉफ बता रही थी की कमीज़ निकालने के बाद वो.... आ.... नंगी हो जाएगी... उऊपर से... अपने सगे भाई के सामने...
निशा के हाथो ने कमीज़ का निचला सिरा पकड़ा और उसके शरीर का रोम रोम नंगा करते चले गये... उपर से... उसके भाई....
संजय उसकी पतली कमर, उसकी कमर से नीचे के उठान और कमर का मछली जैसा आकर देखते ही पागला सा गया... आज तक उसने किसी लड़की को इश्स हद तक बेपर्दा नही देखा था... वा बेड पर बैठ गया... और पिछे से ही उसकी नंगी छतियो की कल्पना करने लगा...
निशा का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा तहा... वो सोच रही थी की सिर्फ़ सुंदरता देखने के लिए तो ये सब हो नही सकता... आख़िर संजय ने गौरी को कब ऐसे देखा था... पर उसको आम खाने से मतलब था... पेड़ गिन-ने से नही... और आम वो छक छक कर खा रही थी... तड़प तड़प कर.... जी भर कर... उसको पता नही था की इश्स सौंदर्या परीक्षा का अगला कदम कौनसा होगा... पर वो ए भली भती जान चुकी तही की फाइनल एग्ज़ॅम में वो आज चुद कर रहेगी........
और गजब हो गया... संजय ने उसको आँखें बंद करके घूम जाने को कहा.... आँखें तो वो वैसे भी नही खोल सकती थी.. नंगी अपने भाई से नज़रें मिलना बहुत दूर की बात थी... घहुमते हुए ही उसका सारा बदन वासना की ज्वाला में तप कर काँप रहा था... उसका सारा बदन जैसे एक सुडौल ढाँचे में ढाला हुया सा संजय की और घूम गया... उसका लंबा पतला और नाज़ुक पेट और उसके उपर तने खड़े दो संतरे के आकर की रसभरी चूचियाँ; सब कुच्छ जैसे ठोस हो गया हो... अब उसकी छतियो का रहा सहा लचीलापन भी जाता रहा... उस्क्कि चूचियों के चूचक भी अब तक बिल्कुल अकड़ गये थे... संजय ने इतना भव्या शरीर कभी ब्लू फिल्मों में भी नंगा नही देखा था... उसका हाथ अपने आप ही अपने तब तक तन चुके लंड को काबू में करने की चेस्टा करने लगा... पर अब लंड कहाँ शांत होने वाला था... वो भीतर से ही बार बार फुफ्कार कर अपनी नाराज़गी का इज़हार कर रहा था मानो कह रहा हो," अभी तक में बाहर क्यूँ हूँ; तेरी बेहन की चूत से...."
निशा के लिए हर पल मुश्किल हो रहा था... अब तक उसका शरीर मर्द के हाथों का स्पर्श माँगने लगा था... तड़प दोनो ही रहे थे... पर झिझक भी दूर होने का नाम नही ले रही थी... दोनो की... अगर वो भाई बेहन ना होते तो कब का एक दूसरे के अंदर होते.... पूरी तरह...
निशा से ना रहा गया," भैया! यहाँ तक में कैसी लग रही हूँ" मतलब सॉफ थी... परीक्षा तो वो पूरी ही देना चाहती थी... पर अब तक का हिसाब किताब पूच्छ रही थी...
संजय कुच्छ ना बोला... बोला ही नही गया... उसने कहना तो चाहा था," अब बस कंट्रोल नही होता... आ जा" पर वो कुच्छ ना बोला...
निशा ने लरजते हुए होंटो से अपनी सारी सकती समेत-ते हुए कह ही दिया...," भैया! सलवार उतार दूं क्या? गीली होने वाली है...."
'नेकी और पूच्छ पूच्छ' संजय को अगले 'बेयूटी टेस्ट' के लिए कहना ही नही पड़ा. और ना ही निशा ने अपने भैया से इजाज़त लेने की ज़रूरत समझी... उसने सलवार उतार दी... अपनी पनटी को साथ ही पकड़ कर... संजय तो बस अपनी बेहन के अंगों की सुंदरता देखकर हक्का बक्का रह गया... काश उसको पता होता... उसकी बेहन ऐसा माल है.. तो वा कभी उसको बेहन मानता ही नही... उसकी चूत टप्प टप्प कर चू रही थी... उसकी चूत का रस उसकी केले के तने जैसी चिकनी और मुलायम जांघों पर बह कर चमक रहा था... और महक भी रहा था... संजय से रहा ना गया," ये रस कैसा है? " उसने अपनी आँखे बंद किए आनद के मारे काँप रही अपनी प्यारी और सुंदर बेहन से पूचछा...
" ये इसस्में से निकल रहा है" निशा ने कोई इशारा ना किया... बस 'इसमें से' कह दिया...
"किस्में से?" संजय ने अंजान बन-ने की आक्टिंग करते हुए पूचछा.
निशा का एक हाथ अपनी छतियो से टकरा कर नीचे आया और उसकी चूत के दाने के उपर टिक गया," इसमें से!" उसकी छतिया लंबी लंबी साँसों की वजह से लगातार उपर नीचे हो रही थी..
संजय थोड़ा सा खुल कर बोला," नाम क्या है जान इसका?" उसकी बेहन उसकी जान बन गयी थी... उसकी प्रेमिका!
निशा शरम से दोहरी हो गयी... पर खुलना वो भी चाहती थी....,"... च..... चूऊ...?"
"पूरा नाम ले दो ना!... प्लीज़ जान... बस एक बार"
"...चूत!" और वो घूम गयी दीवार की तरफ... उसकी शरम ने भी हद कर दी थी.. कोई और होती तो इसके बाद कहने सुनने के लिए कुच्छ बचा ही ना था... बस करने के लिए बचा था... बहुत कुच्छ!"
संजय ने उसकी गांद को ध्यान से देखा... उसके दोनो चूतड़ उसकी चूचियों की भाँति सख़्त दिखाई दे रही थे...गांद के नीचे से उसकी उभर आई चूत की मोटाई झलक रही थी... और अब भी उसकी चूत टपक रही थी...
संजय उसके पिछे गया और उसके कान में बोला... जान तुमसे ज़्यादा सुंदर कोई हो ही नही सकता...
गर्ल'स स्कूल compleet
Re: गर्ल'स स्कूल
निशा उसके भाई की परीक्षा में प्रथम आई थी. अब सहना उसके वश में नही था... आख़िर उसको भी तो फर्स्ट आने का इनाम मिलना चाहिए.. वो घूमी और अपने भाई... सॉरी..! प्रेमी बन चुके भाई से लिपट कर अपनी तड़प रही चूचियों को शांत करने के कोशिश की...! संजय को उसकी चूचियाँ पनी छति में चुभती हुई सी महसूस हो रही थी... वा वही बैठ गया और अपनी प्रेमिका बेहन की तरसती चूत पर अपने होन्ट टीका दिए....
"प्लीज़.. बेड पर ले चलो!" निशा ने अपनी सुंदरता का इनाम माँगा...
संजय ने उसको दुल्हन की भाँति उठा लिया... और ले जाकर बेड पर बिच्छा कर उसको इनाम देने की कोशिश करने लगा.... उसके मुँह में...
"उफफफफफ्फ़ ! सहन नही होता... जल्दी नीचे डाल दो!" निशा बौखलाई हुई अपनी चूत की फांकों के बीच उंगली घुसने की कोशिश कर रही थी..
संजय ने मौके की नज़ाकत को समझा... वा नीचे लेट गया और निशा को अपने उपर चढ़ा लिया... दोनो और पैर करके...
निशा को अब और कुच्छ बताने की ज़रूरत नही थी.. वो अपनी चूत को उसके लंड पर रखकर घिसने लगी... लगातार तेज़ी से... और संजय हार गया... संजय के लंड ने पिचकारी छ्चोड़ दी... उसकी चूत की गर्मी पाते ही... और लंड का अमूल्या रस उसकी चूत की फांकों में से बह निकला... संजय ने बुरी तरह से निशा को अपनी च्चती पर दबा लिया और आइ लव यू निशा कहने लगा.. बार बार... जितनी बार उसके लंड ने रस छ्चोड़ा... वा यही कहता गया... निशा तो तड़प कर रह गयी... वा लगातार उसके यार के लंड को अपनी चूत में देना चाहती पर लगातार छ्होटे हो रहे लंड ने साथ ना दिया... वा बदहवास सी होकर संजय की छति पर मुक्के मारने लगी... जैसे संजय ने उसको बहुत बड़ा धोखा दे दिया हो...
पर संजय को पता था उसको क्या करना है... उसने निशा को नी चे गिराया और अपना रसभरा लंड उसके मुँह में ठूस दिया... वासना से सनी निशा ने तुरंत उसको ' 'मुँह में ही सही' सोचकर निगल लिया... और उसके रस को सॉफ करने लगी.. जल्दी जल्दी...
लंड भी उतनी ही जल्दी अपना संपुराण आकर प्राप्त करने लगा... ज्यों ज्यों वा बढ़ा निशा का मुँह खुला गया और लंड उसके मुँह से निकलता गया... आख़िर में जब संजय के लंड का सिर्फ़ सूपड़ा उसके मुँह में रह गया तो निशा ने उसको मुँह से निकलते ही बड़ी बेशर्मी से संजय से कहा," म्म्मेरी चूत में डाल दे इसको... मैं मार जवँगी नही तो...
संजय ने देर नही लगाई.. वा निशा के नीचे आया और उसकी टांगे उठा कर उन्हे दूर दूर कर दिया... निशा की चूत गीली थी और जैसे ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी... संजय ने अपना लंड उसकी चूत के च्छेद पर रख दिया... निशा को पता था मुकाबला बराबर का नही है... उसने अपने आप ही अपना मुँह बंद कर लिया..
संजय ने दबाव बढ़ाना शुरू किया तो निशा की आँखें बाहर को आने लगी दर्द के मारे... पर उसने अपना मुँह दबाए रखा... और 'फ़च्च्छ' की आवाज़ के साथ लंड का सूपदे ने उसकी चूत को च्छेद दिया.. दर्द के मारे निशा बिलबिला उठी... वह अपनी गर्दन को 'मत करो के इशारे में इधर उधर पटकने लगी.... संजय ने कुच्छ देर उसको आराम देने के इरादे से अपने 'ड्रिलर' को वहीं रोक दिया... और उसकी छतियोन पर झुक कर उसके तने हुए दाने को होंटो के बीच दबा लिया... निशा क्या दर्द क्या शरम सब भूल गयी... उसका हाथ अपने मुँह से हटकर संजय के बालों में चला गया... अब संजय उसके होंटो को चूस रहा था... पहले से ही लाल होन्ट और रसीले होते गये... और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह में कबड्डी खेलने लगी... कामदेव और रति दोनो चरम पर थे... प्रेमिका ने अपने चूतदों को उठाकर लंड को पूरा खा सकने की समर्त्या का अहसास संजय को करा दिया... संजय उसके होंटो को अपने होंटो से दबाए ज़ोर लगाता चला गया... बाकी काम तो लंड को ही करना था... वह अपनी मंज़िल पर जाकर ही रुका...संजय ने लंड आधा बाहर खींचा और फिर से अंदर भेज दिया... अपनी प्रेमिका बेहन की चूत में... निशा सिसक सिसक कर अपनी पहली चुदाई का भरपूर आनंद ले रही थी.... एक बार झड़ने पर भी उसके आनंद में कोई कमी ना आई... हां मज़ा उल्टा दुगना हो गया... चिकनी होने पर लंड चूत में सत्तसट जा रहा था... नीचे से निशा धक्के लगाती रही और उपर से संजय... दौर जम गया और काफ़ी लंबा चलता रहा... दोनो धक्के लगाते लगाते एक दूसरे को चूम रहे थे; चाट रहे थे... और आइ लव यू बोल रहे थे... अचानक निशा ने एक 'अया' के साथ फिर से रस छ्चोड़ दिया... उसके रस की गर्मी से संजय को लगा अब वह भी ज़्यादा चल नही पाएगा.... संजय को चरम का अहसास होते ही अपना लंड एक दम से निकाल कर निशा के पतले कमर से चिपके पेट पर रख दिया... और निशा आँखें बंद किए हुए ही संजय के लंड से निकलने वाली बौच्चरों को गिन-ने लगी... आखरी बूँद टपकते ही संजय उसके ऊपर गिर पड़ा....
निशा ने उसके माथे को चूम लिया और उसकी आँखों में देखकर कहने लगी," मैं तुझे किसी के पास नही जाने दूँगी जान... तू सिर्फ़ मेरा है... मेरा यार... मेरा प्यार....
संजय गौर से दुनिया की सबसे सुंदर लगने वाली अपनी बेहन को देखने लगा.... पर अब उसको गौरी याद आ रही थी.............
उधर राज को मानो बिन माँगे ही मोती मिल गया... गौरी जैसी हॅसीन लड़की से इश्स तरह 'ब्लॅकमेल' कौन नही होना चाहेगा. वो खुद उसके और अंजलि के सामने बैठह्कर उन्न दोनो की लाईव सेक्स पर्फॉर्मेन्स देखना चाहती थी... राज को पूरा विस्वास था की इतनी सेक्सी लड़की उसके मोटे लंड को देखते ही अपने आप ही अपनी चूत को उसके आगे परोस देगी; भोगने के लिए...अंजलि तो इश्स बात को लेकर बहुत ही ज़्यादा विचलित थी... और राज भी उसके आगे मजबूरी होने का नाटक कर रहा था... पर अंदर ही अंदर वा इतना खुश था की वा रात होने का इंतज़ार ही नही कर पा रहा था... बार बार उत्तेजित होकर गौरी की और देखता और चुपके से अपने लंड को मसल देता... गौरी दोनो के चेहरों को देखकर मॅन ही मॅन बहुत खुश थी. वो नये नये तरीके जिनसे वो उन्न दोनो का भरपूर मज़ा ले सके; सोच रही थी...
2 घंटे का इंतज़ार गौरी और राज दोनों को ही बहुत लूंबा लग रहा था... उनको अहसास नही था की उनका ये इंतज़ार और लंबा होने जा रहा है...
दरवाजे पर बेल बाजी. गौरी ने दरवाजा खोला," पापा आप....!!!!!"
ओमप्रकाश अंदर घुसते हुए बोला," मेरे जल्दी आने से खुश नही हुई मेरी बेटी...! है ना!"
अंजलि को पहली बार उसको आए देख इतनी खुशी हुई," आ गये आप!" वो चहक्ती हुई सी बोली... लाईव गेम से जो बच गयी... कम से कम आज तो बच ही गयी थी.."
" अरे भाई क्या बात है...! कहीं खुशी कहीं गम" ओमपारकश ने राज से हाथ मिलते हुए कहा," और मास्टर जी, का हाल हैं..."
राज ने भी उखड़े मॅन से जवाब दिया," बस ठीक है श्रीमंन!"
ओमपारकश ने अपना बॅग बेड के साथ रखा और बेड पर पसर गया," लाओ भाई! कुच्छ चाय वाय नही पूछोगे क्या?" बड़ा थका हारा आया हूँ!" खा पीकर सो जाऊं!"
गौरी ने अंजलि के पास जाकर कान में कहा," दीदी! में आपको ऐसे नही बचने दूँगी... मेरी शर्त उधार रही" और राज की और देखकर मुश्कुरा दी......
राज अपने बिस्तेर पर पड़ा पड़ा सोच रहा था," अंजलि चुदाई करवाते हुए उसकी जगह शमशेर का नाम ले रही थी... तो क्या शमशेर ने....."
उसने अपना फ़ोन निकालकर शमशेर को डाइयल किया
शमशेर बाथरूम में था; फोन पर लड़की की मादक मधुर आवाज़ थी.
राज . जी नमस्कार दिशा भाभी जी
" दिशा भाभी जी नही, दिशा भाभी जी की बेहन बोल रही हूँ. कौन हैं आप?" वाणी समझदार होती जा रही थी...
"नमस्ते साली साहिबा! आप की आवाज़ बड़ी प्यारी है..."
वाणी: आपकी साली बोल रही हूँ... आप अपनी तारीफ तो सुनाइए..."
तभी दिशा ने फोन ले लिया," जी कौन?"
राज उसकी आवाज़ पर ही मोहित हो गया... पर वो शमशेर की बीवी होने का मतलब जानता था," मैं राज बोल रहा हूँ..."
दिशा शर्मा गयी... अगर वो शमशेर की पत्नी ना होती तो राज उसके सर होते," नमस्ते सर! ये वाणी थी... ये कुच्छ भी बोल देती है... वो नहा रहे हैं... निकलते ही बात करा दूँगी..."
राज: ठीक है
राज ने फोने रखते ही आह की... शमशेर कितना खुशकिस्मत है... तभी उसके फोन की घंटी बाज उठी... शमशेर का फोने था...," हां राज कैसे हो?"
राज: मैं तो जैसा हूँ ठीक हूँ, पर आपकी साली बहुत तीखी है भाई साहब!
शमशेर ने ज़ोर का ठहाका लगाया और पास ही खड़ी वाणी के सिर पर हाथ फेरने लगा...," कहो क्या हाल चाल हैं मेरी ससुराल के?
शमशेर ने दिशा की और आँख मारते हुए कहा... दिशा ने जैसे उसका मुँह नोच लिया प्यार से.... उसको पता था वो ससुराल का नही... ससुराल वालियों का हाल पूच्छ रहा है.... शमशेर ने उसको पकड़ कर अपनी बाजू के नीचे दबोच लिया... वाणी अपने जीजा की मस्ती देखकर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी....
राज: भाई! ससुराल में तो हर और हर्याली है... एक फसल को काट-ता हूँ तो नयी लहराने लगती है... वैसे 'पोध' भी तैयार हो रही है... तेरी ससुराल की तो बात ही कुच्छ और है...
शमशेर हँसने लगा... दिशा से उसको बहुत डर लगता था... वो उसको प्यार जो इतना करती थी..
राज: एक बात पूच्छू?
शमशेर टहलते हुए कमरे से बाहर निकल आया," बोल"
राज: ये प्रिन्सिपल के साथ तेरा कुच्छ सीन था क्या?
शमशेर: हां यार! वहीं से तो कहानी शुरू हुई थी... पर तुझे किसने बताया?
राज: अब मेरा सीन है उसके साथ.... नीचे लेते हुए तेरा नाम बड़बड़ा रही थी...
शमशेर को आसचर्या हुआ," यार! वो ऐसी तो नही थी.."
राज: वक़्त सब कुच्छ बदल देता है दोस्त... तेरे साथ होने के बाद... वो बूढ़ा उसको कहाँ खुश कर पाता... वैसे बड़ी मस्त चीज़ है साली...
शमशेर सीरीयस हो गया... अंजलि ने उसको शादी के लिए प्रपोज़ किया था... उसको अंजलि के बारे में ये सब सुन-ना अच्च्छा नही लगा...," चल छोड़... और सुना कुच्छ..."
राज: कब आ रहे हो?
शमशेर: दिशा वाणी के पेपर्स ख़तम होने के बाद! एक महीने के लिए आएँगे...
राज: पेपर्स में तो अभी महीना बाकी है...
शमशेर: हां, वो तो है...
राज चल ठीक है... हम तो स्कूल की कन्याओं के साथ निकल रहे हैं... मस्ती के टूर पर...
शमशेर: कब?
राज: कुच्छ कन्फर्म नही है अभी... चलना है क्या?
शमशेर: नही यार, अब मेरे वो दिन नही रहे! चल एंजाय कर... ओ.के.
राज: बाइ डियर...
राज के हाथों से आज एक हसीन मौका निकल गया.... गौरी आते आते उसके हाथों से फिसल गयी.... उसको गौरी का ध्यान आया... वो उठ कर दरवाजे के के होल में से झाँकने लगा........
राज को लगता था की गौरी से डाइरेक्ट ही डील कर ली जाए... पर उसने देखा... गौरी तो सो चुकी है... वा मान मसोस कर वापस अंदर आकर सो गया....
अगली सुबह; प्रेयर के बाद अंजलि ने टूर की अनौंसेमेंट कर दी. तौर 3 दिन का होगा मनाली में... टूर पर जाने की इच्छुक लड़की को अपना नाम राज सर के पास लिखवाना था... वही इश्स टूर का इंचारगे था... लड़कियाँ खुश हो गयी... पर मेडम्स में से किसी ने रूचि नही दिखाई.... दोपहर आधी छुट्टी के बाद राज के पास 44 नाम लिखे जा चुके थे... इतनी सारी लड़कियों को मॅनेज करना अकेले राज और अंजलि के लिए मुश्किल हो जाता.... अंजलि ने राज को ऑफीस में बुलाकर कहा," राज! टूर तो कॅन्सल करना पड़ेगा!
राज ने अचरज से सवाल किया... उसकी तो सारी उम्मीदें टूर पर ही टिकी थी...," क्यूँ मॅ'म?
"कोई मेडम चलने को तैयार नही... इतनी सारी लड़कियों को मैं कैसे संभालूंगी?"
राज ने शरारती अंदाज में कहा," अरे इससे दौगुनी लड़कियाँ भी होती तो मैं अकेला ही संभाल लेता... आप जानती नही हैं
मुझे..."
अंजलि उसकी बात को समझ कर मुस्कुरा पड़ी," वो बात नही है राज! पर लड़कियों की कुच्छ पर्सनल प्राब्लम भी होती हैं... और वो एक औरत ही मॅनेज कर सकती है...क्या शिवानी नही आ सकती?
राज अपना मज़ा किरकिरा नही करना चाहता" वो आ सकती तो भी मैं उसको ले जाना नही चाहूँगा!"
तभी टफ ने ऑफीस में एंट्री मारी... उसने आते ही मेडम को नमस्कार किया और राज के कंधे पर ज़ोर से घूसा मारा...," क्या प्लानिंग चल रही है भैईई?"
"आओ इनस्पेक्टर साहिब! मुझे पता चला की तुम काई बार गाँव आए हो... और चुपके चुपके वापस हो लिए... बिना मिले... ये भी कोई बात हुई!" राज ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा..
टफ ने मजबूरी बयान कर दी," अरे यार ड्यूटी में इतना टाइम ही नही मिलता... और तुझसे मिलने आ जाता तो तू जल्दी तहोड़े ही भागने देता... अब जाकर एक हफ्ते की छुट्टिया मिली हैं." खैर और सूनाओ कैसे हो"
राज ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा," यार ये गाँव की मेडम भी ना... अभी हमारा टूर का प्रोग्राम बना था... कोई मेडम चलने को तैयार ही नही है... लड़कियों को 'संभालने' के लिए..." उसने संभालने पर कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर दिया...
"तुम्हारी ये प्राब्लम तो में सॉल्व कर सकता हूँ" टफ ने कहा.
राज की आँखें चमक गयी...," करो ना...."
Re: गर्ल'स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--13
टफ ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," भाई साहब! पोलीस वाले बिना लिए कभी किसी की प्राब्लम दूर नही करते... तू तो जानता है"
राज ने अंजलि के आगे ही ऐसी बात कही की अंजलि भी बग्लें झाँकने लगी," बोल किसकी लेनी है.."
टफ ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," अगर मुझे भी साथ ले चलो तो मेडम का इंतज़ाम में कर सकता हूँ...."
राज ने अंजलि से इजाज़त लेने की ज़रूरत ही ना समझी, नेकी और पूच्छ पूच्छ... पर मेडम कहाँ से पैदा करोगे!"
"इसी गाँव से...प्यारी मेडम!" टफ के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी...
प्यारी का नाम सुन-ते ही अंजलि को घिन सी हो गयी... सारा माहौल खर्राब कर देगी... पर वो राज के साथ इश्स हसीन सफ़र को गवाना नही चाहती थी.. टूर कॅन्सल हो सकता था... इसीलिए वा चुप रही.
राज: ये प्याई कौन है भाई
टफ: तू अभी तक प्यारी को नही जान-ता... इश्स गाँव में क्या झक मार रहा है?
अंजलि ने सुस्पेंस ख़तम किया," प्यारी पहले इसी स्कूल में मेडम थी... पर उसको तो स्कूल में जाना पड़ता है...
टफ: आप वो मुझ पर छ्चोड़ दीजिए... शमशेर सेट्टिंग करा देगा...
अंजलि: ओ.के. तो तुम बात कर लो... अगर वो चल पड़ें तो..
टफ: चल पड़े तो नही मेडम; चल पड़ी... उसने प्यारी को फोने लगाया," मेडम जी नमस्कार!"
प्यारी: रे नमस्कार छ्होरे! गाम में कद (कब) आवगा तू?
अंजलि के सामने टफ खुल कर बात नही कर पा रहा था... वो ऑफीस से बाहर निकल आया... राज भी उसके साथ ही आ गया," आंटी जी ! एक अच्च्छा मौका है... तुझे टूर पर घुमा कर लाउन्गा... देख लो!"
प्यारी: तू पागल है क्या? घर पर क्या कहूँगी... और फिर स्कूल भी...
टफ ने उसको बीच में ही टोक दिया," तू सुन लो ले पहले... गाँव के स्कूल से टूर जा रहा है... लड़कियों का... और तुम उसमें जा सकती हो! रही स्कूल की बात तो शमशेर अपने आप ही जुगाड़ करवा कर तुम्हे ऑन ड्यूटी करा देगा... अब बोलो!"
प्यारी: हाए! मज़ा आ जाएगा तेरे साथ... मैं आज ही अपनी चूत को शेव कर लूँगी... पर देख तू मुझे छ्चोड़ कर दूसरी लड़कियों पर ध्यान मत धर लेना... मैं तो जीते जी ही मार जवँगी... आइ लव यू!
टफ हँसने लगा," तो फिर तुम्हारा नाम फाइनल करवा दूं ना...
प्यारी: बिल्कुल करा दे; पर तेरे साथ वाली सीट रेजर्व करवा लियो!
टफ: तेरी सरिता को भी लेकर चल रही होगी साथ में...?
प्यारी: देख तू है ना... मैं कह देती हूँ... अपने सिवाय किसी की और झहहांकने भी नही दूँगी...
टफ: देखने में क्या हर्ज़ है आंटिजी.... अच्च्छा ओके! बाद में बात करते हैं बाइ!!!
और प्रोग्राम तय हो गया.... तौर में टफ और राज 2 मर्द तो थे ही... उसके अलावा जो बस बुक की गयी... उसका ड्राइवर और ड्राइवर का हेलपर भी रंगीन मिज़ाज के आदमी थे. 25 से 30 साल की उमर के दोनो ही हटते कत्ते और लंबे तगड़े शरीर के मालिक थे... राज ने जाने अंजाने अपनी चुदाई करवाने जा रही लड़कियों की लिस्ट पर गौर किया... सबसे पहले अंजलि और प्यारी मेडम का नाम था... लड़कियों में हमारी जान पहचान की सारी लड़कियाँ थी... गौरी, निशा, दिव्या, नेहा, कविता, सरिता और अभी तक भी अपनी चूत का रस शायद मर्द के हाथो ना निकलवा सकने वाली 38 और खूबसूरत बालायें थी.... उपर लिखे हुए नामों वाली लड़कियों का तो टूर पर जाने का एक ही मकसद था... जी भर कर अपनी चुदाई करवाना... बाकियों में से भी कुच्छ राज सर के साथ सेक्स का प्रॅक्टिकल करने को बेताब थी... हद तो तब हो गयी जब प्यारी अपने साथ... अपनी पता नही किस बाप की औलाद 'राकेश' को भी ले आई," ये भी साथ चल पड़ेगा... इसका खर्चा अलग लगा लेना...
किसी ने कुच्छ नही कहा..... और बस आ गयी...!
बस में दो दो सीटो की दो रोस थी. अंजलि अपने साथ राज को रिज़र्व रखना चाहती थी... पर प्यारी देवी ने उसको एक तरफ होने को कहा तो मजबूरन अंजलि को सीट प्यारी को देनी पड़ी. राज अभी बाहर ही खड़ा था. सरिता आकर अपनी मम्मी के पीछे वाली सीट पर बैठ गयी. टफ ने बस में चढ़ते ही प्यारी को देखा... उसके साथ तो बैठने का चान्स था ही नही... सो वो उसके पिछे वाली सीट पर सरिता के साथ जम गया.. अंजलि के साथ वाली सीट पर निशा और गौरी बैठे थे... राज आकर टफ के साथ वाली सीट पर गौरी के पिछे बैठ गया. नेहा की क्लास की ही एक लड़की मुस्कान राज के साथ वाली सीट पर जा बैठी... जबकि दिव्या और उसकी क्लास की लड़की भावना टफ और सरिता के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी...नेहा राज और मुस्कान के पीछे एक और लड़की अदिति के साथ बैठ गयी. लगभग सभी लड़कियाँ बस में चढ़ चुकी थी... तभी राकेश बस में चढ़ा और गौरी को घूर्ने लगा.... वो उसके पास ही जमना चाहता था पर कोई चान्स ना देखकर उसके सामने आगे जाकर ड्राइवर के बरबेर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया... कंडक्टर भी वहीं बैठा था... बस भर गयी... राज ने बस चलाने को कहा तो तभी कविता भागती हुई आई," रूको! रूको! मैं रह गयी... वो हमेशा ही लेट लतीफ थी.. बस में चढ़कर वो अंजलि से बोली..." मेडम मैं अकेली सबसे पीछे वाली सीट पर नही बैठूँगी... मुझे आगे ही जगह दिलवा दो ना कहीं!"
राकेश ने मौका ताड़ कर अंजलि मेडम को कहा," मेडम! यहाँ मेरे पास जगह है.. कहकर वो खिड़की वाली साइड में सरक गया...
अंजलि: देखो कविता! ऐसे तो अब किसी को उठाया नही जा सकता... या तो किसी से पूच्छ लो कोई पीछे अकेला जाकर बैठ सके... या फिर ये आगे वाली सीट ही खाली है बस... !
कविता भी चालू लड़की थी... कम से कम लड़के के साथ बैठने को तो मिलेगा... पर किस्मत ने उसको दो लड़कों के बीच में बिठा दिया... कंडक्टर और राकेश के बीच में... पर वा खुश थी.. एक से भले दो... कोई तो कुच्छ करेगा!
बस चल पड़ी. कोई भी अपनी सीट पाकर खुश नही था... टफ प्यारी के साथ बैठना चाहता था... अंजलि राज के साथ बैठना चाहती थी...राज गौरी के साथ बैठना चाहता था और गौरी अंजलि और राज के साथ... वो टूर पर ही लाईव मॅच देखने का प्लान बना रही थी... राकेश गौरी के साथ बैठना चाहता था... पर उसको भागते चोर की लंगोटी... कविता ही पकड़नी पड़ी... निशा सोच रही थी... काश उसका भाई संजय साथ होता... कुल मिलकर सबको अपने सपने टूट-ते दिखाई दे रहे थे.. टूर पर सुरूर पूरा करने के सपने... हां बाकी लड़कियाँ जो अभी फ्रेम में नही आई हैं.. वो भी सोच रही थी की कस्स राज के पास बैठने को मिल जाता....
ड्राइवर ने भी आँखों आँखों में कंडक्टर को इस्शरा किया," सारे मज़े तुझे नही लेने दूँगा लड़की के... आधे रास्ते तू बस चलना... और मैं वहाँ बैठूँगा... कविता के पास....
बस अपने गंतव्या के लिए रवाना हो चुकी थी... पर जैसे सबका चेहरा उतरा हुआ था... रास्ते भर मज़े लेते जाने का सपना जो टूट गया था... राकेश तो सामने से ही गौरी को ऐसे घूर रहा था जैसे उसको तो उसकी गोद में ही बैठना चाहिए था.. उसके लंड के उपर... निशा ने बार बार राकेश को गौरी की और देखता पाकर धीरे से गौरी के कान में कहा," यही है ना वो लड़का... जिसके बारे में तुम बता रही थी.... तेरे पीcछे पड़ा रहता है.."
गौरी ने भी उसी की टोने में उत्तर दिया," हां! पर मेरा अब इसमें कोई इंटेरेस्ट नही है... मैं तुम्हारे भाई से दोस्ती करने को तैयार हूँ!"
निशा ने मॅन ही मॅन सोचा...," उसका भाई अब उसका अपना हो चुका है... और वो अपने रहते उसको कहीं जाने नही देगी....
अचानक प्यारी देवी की ज़ोर से चीख निकली," ऊईीईई माआआं!" उसने झट से पलट कर पिछे देखा.... टफ ने उसके चूतदों पर ज़ोर से चुटकी काट ली थी... प्यारी ने समझते ही बात पलट दी...," लगता है बस में भी ख़टमल पैदा हो गये हैं.."
सरिता ने टफ को हाथ पीछे करते देख लिया था... पर उसको सिर्फ़ शक था... यकीन नही... बस कंडक्टर रह रह कर कविता की बगल में अपनी कोहनी घिसा देती.. पर जैसा कविता भी यही चाहती हो... उसने कंडक्टर को रोकने की कोशिश नही की...
गौरी को राकेश का एकटक उसकी और देखना सहन नही हो रहा था... उसने अपनी टांगे घुमा कर प्यारी मेडम की और कर ली और साथ ही उसका चेहरा घूम गया... इश्स स्थिति में उसकी जाँघ राज के घुटनो से टकरा रही थी... पर गौरी को इश्स बात से कोई दिक्कत नही थी...
नेहा ने उठ कर मुस्कान के कान के पास होन्ट ले जाकर फुसफुसा कर कहा," ंस्कान! सर के साथ प्रॅक्टिकल करने का मौका है... कर ले..!" मुस्कान ने उँची आवाज़ में ही कह दिया... " मेरी ऐसी किस्मत कहाँ है.. तू ही कर ले प्रॅक्टिकल"
राज सब समझ गया," उसने खुद ही तो ह्यूमन सेक्स ऑर्गन्स पढ़ते हुए लड़कियों को कहा था की जो प्रॅक्टिकल करना चाहती हो... कर सकती है... ज़रूर नेहा उसी प्रॅक्टिकल की बात कर रही होगी... मतलब मुस्कान प्रॅक्टिकल के लिए तैयार है..! उसने अपना हाथ धीरे से अपनी जाँघ से उठा कर उसकी जाँघ पर रख दिया...
कंडक्टर अपनी कोहनी को लगातार मोड्टा जा रहा था... अब उसकी कोहनी के दबाव से कविता की बाई चूची उपर उठी हुई थी... कविता ने शाल निकल कर औध ली ताकि अंदर की बात बाहर ना दिखाई दे सकें... वो इश्स टचिंग का पूरा मज़ा ले रही थी... उधर राकेश भी गौरी द्वारा रास्पोन्से ना दिए जाने से आहिस्ता आहिस्ता कविता की तरफ ही सरक रहा था.. अब दोनों की जांघें एक दूसरे की जांघों से चिपकी हुई थी....
टफ कहाँ मान-ने वाला था.... वो तो था ही ख़तरों का खिलाड़ी. उसका हाथ फिर से प्यारी की जांघों पर रंगे रहा था.. हौले हौले.... उसकी बराबर में बैठा राज मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था; टफ को इतनी जल्दबाज़ी दिखाते देखकर... राज की नज़र सरिता पर गयी... वो रह रहकर टफ के हाथ को देख रही थी... पर उसको ये नही दिखाई दे पा रहा था की आख़िर आगे जाकर हाथ कर क्या रहा है... उसकी मम्मी तो नॉर्मल ही बैठी थी.. अगर टफ उसकी मम्मी के साथ कुच्छ हरकत कर रहा होता तो वो बोलती नही क्या...
गौरी को उल्तियाँ आ सकने का अहसास हुआ.. वो खुद खिड़की की और चली गयी और निशा को दूसरी तरफ भेज दिया... अब निशा की जाँघ राज के घुटनो के पास थी... वो तो चाहती भी यही थी...
मुस्कान को अपनी जाँघ पर रखे राज के हाथ की वजह से कुच्छ कुच्छ होने लगा था.. वो बार बार नेहा की और पीछे देखकर मुस्कुरा रही थी... पर राज को इससे कोई फराक नही पड़ा... निशा क जांघों का दबाव राज पर बढ़ता ही जा रहा था... और टफ के हाथ प्यारी की जांघों के बीचों बीच जाते जा रहे थे.... सारे- आम.
कविता ने अपनी चूची के उपर आ चुकी कोहनी को अपने हाथ से दबा लिया... अब कंडक्टर की कोहनी वहाँ पार्मेनेट सेट हो गयी... कंडक्टर को अहसास हो चुका था की ये लड़की कुच्छ नही बोलेगी...
बस भिवानी पहुच गयी... हँसी गेट के पास ड्राइवर ने बस रोकी और पेशाब करने के लिए उतर गया. अपनी बारी के अहसास से उसका लंड अकड़ता जा रहा था.. उसने देख लिया था कंडक्टर को मज़े लेते... करीब 7:30 बाज गये थे.. कुच्छ कुच्छ ठंड लगने लगी थी... सभी ने अपनी अपनी खिड़कियाँ बंद कर दी.. तीसरी सीट से पिच्चे की लड़कियाँ अपनी अपनी बातों में मस्त थी... उनके पास और टाइम पास करने को था ही क्या...?
टफ ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," भाई साहब! पोलीस वाले बिना लिए कभी किसी की प्राब्लम दूर नही करते... तू तो जानता है"
राज ने अंजलि के आगे ही ऐसी बात कही की अंजलि भी बग्लें झाँकने लगी," बोल किसकी लेनी है.."
टफ ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," अगर मुझे भी साथ ले चलो तो मेडम का इंतज़ाम में कर सकता हूँ...."
राज ने अंजलि से इजाज़त लेने की ज़रूरत ही ना समझी, नेकी और पूच्छ पूच्छ... पर मेडम कहाँ से पैदा करोगे!"
"इसी गाँव से...प्यारी मेडम!" टफ के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी...
प्यारी का नाम सुन-ते ही अंजलि को घिन सी हो गयी... सारा माहौल खर्राब कर देगी... पर वो राज के साथ इश्स हसीन सफ़र को गवाना नही चाहती थी.. टूर कॅन्सल हो सकता था... इसीलिए वा चुप रही.
राज: ये प्याई कौन है भाई
टफ: तू अभी तक प्यारी को नही जान-ता... इश्स गाँव में क्या झक मार रहा है?
अंजलि ने सुस्पेंस ख़तम किया," प्यारी पहले इसी स्कूल में मेडम थी... पर उसको तो स्कूल में जाना पड़ता है...
टफ: आप वो मुझ पर छ्चोड़ दीजिए... शमशेर सेट्टिंग करा देगा...
अंजलि: ओ.के. तो तुम बात कर लो... अगर वो चल पड़ें तो..
टफ: चल पड़े तो नही मेडम; चल पड़ी... उसने प्यारी को फोने लगाया," मेडम जी नमस्कार!"
प्यारी: रे नमस्कार छ्होरे! गाम में कद (कब) आवगा तू?
अंजलि के सामने टफ खुल कर बात नही कर पा रहा था... वो ऑफीस से बाहर निकल आया... राज भी उसके साथ ही आ गया," आंटी जी ! एक अच्च्छा मौका है... तुझे टूर पर घुमा कर लाउन्गा... देख लो!"
प्यारी: तू पागल है क्या? घर पर क्या कहूँगी... और फिर स्कूल भी...
टफ ने उसको बीच में ही टोक दिया," तू सुन लो ले पहले... गाँव के स्कूल से टूर जा रहा है... लड़कियों का... और तुम उसमें जा सकती हो! रही स्कूल की बात तो शमशेर अपने आप ही जुगाड़ करवा कर तुम्हे ऑन ड्यूटी करा देगा... अब बोलो!"
प्यारी: हाए! मज़ा आ जाएगा तेरे साथ... मैं आज ही अपनी चूत को शेव कर लूँगी... पर देख तू मुझे छ्चोड़ कर दूसरी लड़कियों पर ध्यान मत धर लेना... मैं तो जीते जी ही मार जवँगी... आइ लव यू!
टफ हँसने लगा," तो फिर तुम्हारा नाम फाइनल करवा दूं ना...
प्यारी: बिल्कुल करा दे; पर तेरे साथ वाली सीट रेजर्व करवा लियो!
टफ: तेरी सरिता को भी लेकर चल रही होगी साथ में...?
प्यारी: देख तू है ना... मैं कह देती हूँ... अपने सिवाय किसी की और झहहांकने भी नही दूँगी...
टफ: देखने में क्या हर्ज़ है आंटिजी.... अच्च्छा ओके! बाद में बात करते हैं बाइ!!!
और प्रोग्राम तय हो गया.... तौर में टफ और राज 2 मर्द तो थे ही... उसके अलावा जो बस बुक की गयी... उसका ड्राइवर और ड्राइवर का हेलपर भी रंगीन मिज़ाज के आदमी थे. 25 से 30 साल की उमर के दोनो ही हटते कत्ते और लंबे तगड़े शरीर के मालिक थे... राज ने जाने अंजाने अपनी चुदाई करवाने जा रही लड़कियों की लिस्ट पर गौर किया... सबसे पहले अंजलि और प्यारी मेडम का नाम था... लड़कियों में हमारी जान पहचान की सारी लड़कियाँ थी... गौरी, निशा, दिव्या, नेहा, कविता, सरिता और अभी तक भी अपनी चूत का रस शायद मर्द के हाथो ना निकलवा सकने वाली 38 और खूबसूरत बालायें थी.... उपर लिखे हुए नामों वाली लड़कियों का तो टूर पर जाने का एक ही मकसद था... जी भर कर अपनी चुदाई करवाना... बाकियों में से भी कुच्छ राज सर के साथ सेक्स का प्रॅक्टिकल करने को बेताब थी... हद तो तब हो गयी जब प्यारी अपने साथ... अपनी पता नही किस बाप की औलाद 'राकेश' को भी ले आई," ये भी साथ चल पड़ेगा... इसका खर्चा अलग लगा लेना...
किसी ने कुच्छ नही कहा..... और बस आ गयी...!
बस में दो दो सीटो की दो रोस थी. अंजलि अपने साथ राज को रिज़र्व रखना चाहती थी... पर प्यारी देवी ने उसको एक तरफ होने को कहा तो मजबूरन अंजलि को सीट प्यारी को देनी पड़ी. राज अभी बाहर ही खड़ा था. सरिता आकर अपनी मम्मी के पीछे वाली सीट पर बैठ गयी. टफ ने बस में चढ़ते ही प्यारी को देखा... उसके साथ तो बैठने का चान्स था ही नही... सो वो उसके पिछे वाली सीट पर सरिता के साथ जम गया.. अंजलि के साथ वाली सीट पर निशा और गौरी बैठे थे... राज आकर टफ के साथ वाली सीट पर गौरी के पिछे बैठ गया. नेहा की क्लास की ही एक लड़की मुस्कान राज के साथ वाली सीट पर जा बैठी... जबकि दिव्या और उसकी क्लास की लड़की भावना टफ और सरिता के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी...नेहा राज और मुस्कान के पीछे एक और लड़की अदिति के साथ बैठ गयी. लगभग सभी लड़कियाँ बस में चढ़ चुकी थी... तभी राकेश बस में चढ़ा और गौरी को घूर्ने लगा.... वो उसके पास ही जमना चाहता था पर कोई चान्स ना देखकर उसके सामने आगे जाकर ड्राइवर के बरबेर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया... कंडक्टर भी वहीं बैठा था... बस भर गयी... राज ने बस चलाने को कहा तो तभी कविता भागती हुई आई," रूको! रूको! मैं रह गयी... वो हमेशा ही लेट लतीफ थी.. बस में चढ़कर वो अंजलि से बोली..." मेडम मैं अकेली सबसे पीछे वाली सीट पर नही बैठूँगी... मुझे आगे ही जगह दिलवा दो ना कहीं!"
राकेश ने मौका ताड़ कर अंजलि मेडम को कहा," मेडम! यहाँ मेरे पास जगह है.. कहकर वो खिड़की वाली साइड में सरक गया...
अंजलि: देखो कविता! ऐसे तो अब किसी को उठाया नही जा सकता... या तो किसी से पूच्छ लो कोई पीछे अकेला जाकर बैठ सके... या फिर ये आगे वाली सीट ही खाली है बस... !
कविता भी चालू लड़की थी... कम से कम लड़के के साथ बैठने को तो मिलेगा... पर किस्मत ने उसको दो लड़कों के बीच में बिठा दिया... कंडक्टर और राकेश के बीच में... पर वा खुश थी.. एक से भले दो... कोई तो कुच्छ करेगा!
बस चल पड़ी. कोई भी अपनी सीट पाकर खुश नही था... टफ प्यारी के साथ बैठना चाहता था... अंजलि राज के साथ बैठना चाहती थी...राज गौरी के साथ बैठना चाहता था और गौरी अंजलि और राज के साथ... वो टूर पर ही लाईव मॅच देखने का प्लान बना रही थी... राकेश गौरी के साथ बैठना चाहता था... पर उसको भागते चोर की लंगोटी... कविता ही पकड़नी पड़ी... निशा सोच रही थी... काश उसका भाई संजय साथ होता... कुल मिलकर सबको अपने सपने टूट-ते दिखाई दे रहे थे.. टूर पर सुरूर पूरा करने के सपने... हां बाकी लड़कियाँ जो अभी फ्रेम में नही आई हैं.. वो भी सोच रही थी की कस्स राज के पास बैठने को मिल जाता....
ड्राइवर ने भी आँखों आँखों में कंडक्टर को इस्शरा किया," सारे मज़े तुझे नही लेने दूँगा लड़की के... आधे रास्ते तू बस चलना... और मैं वहाँ बैठूँगा... कविता के पास....
बस अपने गंतव्या के लिए रवाना हो चुकी थी... पर जैसे सबका चेहरा उतरा हुआ था... रास्ते भर मज़े लेते जाने का सपना जो टूट गया था... राकेश तो सामने से ही गौरी को ऐसे घूर रहा था जैसे उसको तो उसकी गोद में ही बैठना चाहिए था.. उसके लंड के उपर... निशा ने बार बार राकेश को गौरी की और देखता पाकर धीरे से गौरी के कान में कहा," यही है ना वो लड़का... जिसके बारे में तुम बता रही थी.... तेरे पीcछे पड़ा रहता है.."
गौरी ने भी उसी की टोने में उत्तर दिया," हां! पर मेरा अब इसमें कोई इंटेरेस्ट नही है... मैं तुम्हारे भाई से दोस्ती करने को तैयार हूँ!"
निशा ने मॅन ही मॅन सोचा...," उसका भाई अब उसका अपना हो चुका है... और वो अपने रहते उसको कहीं जाने नही देगी....
अचानक प्यारी देवी की ज़ोर से चीख निकली," ऊईीईई माआआं!" उसने झट से पलट कर पिछे देखा.... टफ ने उसके चूतदों पर ज़ोर से चुटकी काट ली थी... प्यारी ने समझते ही बात पलट दी...," लगता है बस में भी ख़टमल पैदा हो गये हैं.."
सरिता ने टफ को हाथ पीछे करते देख लिया था... पर उसको सिर्फ़ शक था... यकीन नही... बस कंडक्टर रह रह कर कविता की बगल में अपनी कोहनी घिसा देती.. पर जैसा कविता भी यही चाहती हो... उसने कंडक्टर को रोकने की कोशिश नही की...
गौरी को राकेश का एकटक उसकी और देखना सहन नही हो रहा था... उसने अपनी टांगे घुमा कर प्यारी मेडम की और कर ली और साथ ही उसका चेहरा घूम गया... इश्स स्थिति में उसकी जाँघ राज के घुटनो से टकरा रही थी... पर गौरी को इश्स बात से कोई दिक्कत नही थी...
नेहा ने उठ कर मुस्कान के कान के पास होन्ट ले जाकर फुसफुसा कर कहा," ंस्कान! सर के साथ प्रॅक्टिकल करने का मौका है... कर ले..!" मुस्कान ने उँची आवाज़ में ही कह दिया... " मेरी ऐसी किस्मत कहाँ है.. तू ही कर ले प्रॅक्टिकल"
राज सब समझ गया," उसने खुद ही तो ह्यूमन सेक्स ऑर्गन्स पढ़ते हुए लड़कियों को कहा था की जो प्रॅक्टिकल करना चाहती हो... कर सकती है... ज़रूर नेहा उसी प्रॅक्टिकल की बात कर रही होगी... मतलब मुस्कान प्रॅक्टिकल के लिए तैयार है..! उसने अपना हाथ धीरे से अपनी जाँघ से उठा कर उसकी जाँघ पर रख दिया...
कंडक्टर अपनी कोहनी को लगातार मोड्टा जा रहा था... अब उसकी कोहनी के दबाव से कविता की बाई चूची उपर उठी हुई थी... कविता ने शाल निकल कर औध ली ताकि अंदर की बात बाहर ना दिखाई दे सकें... वो इश्स टचिंग का पूरा मज़ा ले रही थी... उधर राकेश भी गौरी द्वारा रास्पोन्से ना दिए जाने से आहिस्ता आहिस्ता कविता की तरफ ही सरक रहा था.. अब दोनों की जांघें एक दूसरे की जांघों से चिपकी हुई थी....
टफ कहाँ मान-ने वाला था.... वो तो था ही ख़तरों का खिलाड़ी. उसका हाथ फिर से प्यारी की जांघों पर रंगे रहा था.. हौले हौले.... उसकी बराबर में बैठा राज मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था; टफ को इतनी जल्दबाज़ी दिखाते देखकर... राज की नज़र सरिता पर गयी... वो रह रहकर टफ के हाथ को देख रही थी... पर उसको ये नही दिखाई दे पा रहा था की आख़िर आगे जाकर हाथ कर क्या रहा है... उसकी मम्मी तो नॉर्मल ही बैठी थी.. अगर टफ उसकी मम्मी के साथ कुच्छ हरकत कर रहा होता तो वो बोलती नही क्या...
गौरी को उल्तियाँ आ सकने का अहसास हुआ.. वो खुद खिड़की की और चली गयी और निशा को दूसरी तरफ भेज दिया... अब निशा की जाँघ राज के घुटनो के पास थी... वो तो चाहती भी यही थी...
मुस्कान को अपनी जाँघ पर रखे राज के हाथ की वजह से कुच्छ कुच्छ होने लगा था.. वो बार बार नेहा की और पीछे देखकर मुस्कुरा रही थी... पर राज को इससे कोई फराक नही पड़ा... निशा क जांघों का दबाव राज पर बढ़ता ही जा रहा था... और टफ के हाथ प्यारी की जांघों के बीचों बीच जाते जा रहे थे.... सारे- आम.
कविता ने अपनी चूची के उपर आ चुकी कोहनी को अपने हाथ से दबा लिया... अब कंडक्टर की कोहनी वहाँ पार्मेनेट सेट हो गयी... कंडक्टर को अहसास हो चुका था की ये लड़की कुच्छ नही बोलेगी...
बस भिवानी पहुच गयी... हँसी गेट के पास ड्राइवर ने बस रोकी और पेशाब करने के लिए उतर गया. अपनी बारी के अहसास से उसका लंड अकड़ता जा रहा था.. उसने देख लिया था कंडक्टर को मज़े लेते... करीब 7:30 बाज गये थे.. कुच्छ कुच्छ ठंड लगने लगी थी... सभी ने अपनी अपनी खिड़कियाँ बंद कर दी.. तीसरी सीट से पिच्चे की लड़कियाँ अपनी अपनी बातों में मस्त थी... उनके पास और टाइम पास करने को था ही क्या...?