सीता --एक गाँव की लड़की--31
हम सब पूरे मेले में पहले तो सिर्फ चक्कर ही काटते रहे...कभी कभी किसी मेले में लगी दुकान पर खड़ी टाइम पास करती...पूजा कुछ अपने लिए सामान भी खरीदी तो मैं भी कुछ-2 ले ली...
फिर हम सब मनोरंजन क्षेत्र की तरफ घुसी जहाँ तरह-2 के मनोरंजन के साधन थे...हम चारों फिर इनमें खूब सारी मस्ती की...बड़ी वाली झूला पर जब चढ़ी तो मैं तो डर से पानी-2 हो गई थी और सन्नी से चिपक गई थी...
बस सन्नी को पूरा मौका मिल गया...जैसे ही झूला ऊपर की तरफ बढ़ती वो मेरे होंठों को अपने दांतों से दबा लेता और मेरी साड़ी के अंदर हाथ डाल चुची मसलने लगता...बिना ब्रॉ में ब्लॉउज पर से महसूस होती कि सन्नी मेरी नंगी चुची मसल रहा है...
फिर जब नीचे की तरफ आती तो छोड़ देता क्योंकि इस तरफ से देखने वाले और झूला पर चढ़ने वाले की काफी भीड़ थी...मैं इस तरह की चुसाई में भी गर्म हो गई और फिर सन्नी का साथ भी देनी लगी...
जब झूले कई चक्कर लगाने के बाद रूकी तो मैं सन्नी से अलग हुई...उफ्फ्फ..मेरी साड़ी सीने से सरक कर हम दोनों के बीच फंसी थी...और सामने ढ़ेर सारे मर्द की निगाहें मेरी खड़ी निप्पल को घूर रही थी जो ब्रॉ की अनुपस्थिति में ब्लॉउज से साफ झलक रही थी...
और ऊपर से तेज लाइट में मेरी चुची भी कुछ-2 दिख रही थी...मैं तेजी से साड़ी खींची और बदन पर रख ली...पर इस दौरान ना जाने कितने लोग अपनी आँखें सेंक चुके थे...
मैं उठी और तेजी से सन्नी के पीछे हो ली...तभी पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रख दी...पलटकर देखी तो पूजा थी जिसे देख मेरी हँसी निकल पड़ी...
"अपने लिपिस्टिक साफ कर लो, ओंठ से बहकर नीचे पूरी फैली हुई है...ही..ही..ही..."मैं पूजा धीमे से हँसती हुई बोली जिसे सुन पूजा बंटी से हैंकी मांगी और चारों तरफ नजर दौड़ाती लिपिस्टिक साफ करने लगी...
पर कुछ लोग तो गुलाबी पूजा की चोरी पकड़ ही ली थी और देख कर मंद-2 मुस्कुरा रहे थे...तब तक हम बाहर निकल गए...तभी मेरी नजर सामने पड़ी..ओह गॉड..मर गई...
झूले पर चढ़ने वाले की लाइन में रूम मालिक भी अपने फैमिली के साथ लगे थे...क्या मुसीबत थी..आज सुबह ही वो मुझे दोस्त माने थे और अभी मुझे किस हालत में देख लिए...
बीवी के डर से तो इस वक्त टोकेंगे नहीं पर जब अगले दिन मुलाकात होगी तो क्या जवाब दूँगी...सोचने से ही मेरी फट रही थी...और ऊपर से उनकी बड़ी होती आँखें...मैं सबको चलने बोल तेजी से खिसक ली...
अब तो मैं ज्यादा देर तक रूकना नहीं चाहती थी...पूजा से फोन ली जो कि वो पर्स में डाल रखी थी और श्याम को फोन करने लगी...ऐसे परेशान देख वो तीनों आश्चर्य से मेरी तरफ देखे जा रहे थे आखिर हुआ क्या...
"हाँ हैल्लो, कहाँ हैं अभी...पूरी रात घूमना ही है क्या...घर नहीं जाना.."श्याम के फोन उठाते ही मैं बोल पड़ी...
"हाँ बस आ ही रहा हूँ...बस 10 मिनट और..तुम लोग को हो गया क्या..?"उधर से श्याम की आवाज आई..
"हाँ.."मैं एक ही शब्दों में अपनी बात कह दी और असलियत बात दबा दी..
"अच्छा ठीक है, तुम लोग स्टैंड के पास रूको, मैं वहीं पहुँच रहा हूँ...और हाँ अपने दोस्त को मेरे आने तक जाने मत देना...तुम दोनों अकेली मत रहना..ठीक है.."श्याम ने पूरी बात एक ही सुर में कह दिए...जिसे सुन मैं ओके कह फोन काट दी...
कुछ ही पलों में हम सब स्टैंड के पास थे...यहां रूकते ही पूजा पूछ बैठी,"क्या हुआ जो ऐसे अचानक चली आई.."
मैं पूजा की तरफ मुस्कुराती हुई बोली,"हुआ कुछ नहीं,..बस अब घूमने की इच्छा नहीं हो रही है इसलिए चली आई...तुम्हे और घुमनी थी क्या..?"
पूजा: "नहीं पर ये बात नहीं है...जरूर कोई बात है जो हमसे छिपा रही हो...नहीं बतानी हो तो कह दो, मैं नहीं पूछती..."
मैं पूजा की नाराजगी उसकी आवाजों में साफ सुन ली थी..सो मैं बोली,"वो वहाँ झूले से उतरते रूममालिक देख लिए थे..और हम दोनों को ऐसी हालत में देख लिए तो शायद कहीं उन्हें बुरा लगे और गुस्से में हो हल्ला करेंगे तो अच्छा नहीं ना होगा...वैसे भी काफी मस्ती कर ही ली तो सोची अब घर ही चली जाए..."
मेरी बात सुन पूजा कुछ बोल नहीं पाई..शायद वो भी स्थिति को समझ गई थी...तभी सामने से श्याम और सुमन एक दूसरे का हाथ थामे हंसते हुए चले आ रहे थे...उन्हें देख पूजा और मैं नजरों में ही मुस्कुरा पड़ी...
"तुम दोनों अभी घूमोगे या चलोगे..?" मैं बंटी और श्याम से एक ही साथ पूछी...
"अब यहाँ रह के घंटा बजाएंगे क्या...मैं भी बाइक निकाल रहा हूँ.." कहते हुए दोनों बाइक लेने चले गए...तब तक श्याम और सुमन भी आ गए और मुस्कुराते हुए बाइक लेने चले गए...
हम तीनों अपने-2 यार का इंतजार करने लगी...कुछ ही पलों में तीनों अपनी-2 बाइक हम तीनों के पास खड़ी कर दिए...तभी श्याम बंटी और श्याम से बोले,"बात ऐसा है कि सुमन की दोस्त मिली थी तो हमारे साथ देख बोली कि आप सुमन को घर तक ड्रॉप कर देना और वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ चली गई...तो अगर आप दोनों अगर फ्री हो तो इन दोनों को ले कर चलिए और सुमन को पहले छोड़ देंगे फिर इन्हें ले जाएंगे..."
"कैसी बात करते हैं आप, इतनी रात को भला क्या काम रहेगा..चलिए...साथ ही चलेंगे और इनको ड्रॉप करने के बाद ही हम निकलेंगे..."बंटी बोला जिसके साथ सन्नी भी हाँ में हाँ मिला दिया...
और फिर इतना सुनते ही मैं सन्नी की बाइक पर बैठ गई...और पूजा बंटी के साथ जबकि सुमन श्याम के साथ बैठ के चिपक कर बैठ गई...और फिर हम सब एक साथ निकल पड़े..
करीब आधे रास्ते चलने के बाद श्याम एक जगह रूके जहाँ से एक सड़क दूसरी तरफ निकल रही थी..पीछे से बंटी और सन्नी भी बाइक को श्याम के बगल में रोक दिए...
"इधर ही जाना है क्या..?"सन्नी उस दूसरी तरफ निकली सड़क की ओर इशारा करते हुए बोले...
"हाँ और आप लोग को किधर जाना है..."श्याम सन्नी की बात का जवाब देते हुए बोले...
"हम दोनों का घर आपके इलाके से 3-4 किमी और आगे है पर हमारी छोड़िए, पर अब ये कहिए यहाँ रूक कर आपका वेट करूँ या आहिस्ते-2 आगे बढूं.."बंटी बीच में अपनी बात रखते हुए बोला...
"फिर तो अच्छा ही है...आप लोग इन दोनों को लेकर निकलिए...मैं सुमन को ड्रॉप कर के आता हूँ..ठीक है..?" श्याम गंभीरता से मुस्कुराते हुए बोले...
"ओके, ठीक है...मैं इन्हें घर तक ड्रॉप कर निकल जाऊंगा..."सन्नी कहते हुए अपनी बाइक स्टॉर्ट कर दी...श्याम भी ओके कह निकल गए सुमन को छोड़ने...और इधर हम दोनों की बाइक भी चल पड़ी...
फिर मैं और पूजा अपनी-2 बाइक सवार से कस के चिपक गई...साड़ी पहनी थी तो उतनी ढ़ंग से नहीं चिपक पा रही थी पर ऊपर से दोनों चुची उनकी पीठ में तो धाँस ही चुकी थी...
तभी मैं अपने हाथ सरकाते हुए लंड के समीप ले गई और हल्के-2 दबाने लगी...सन्नी अपने लंड पर हाथ महसूस करते ही कराह पड़ा...सन्नी को भी बड़ा मजा आ रह था ऐसे बाइक चलाते....
उधर पूजा की तरफ नजर की तो वो भी बंटी के लंड को जिप से बाहर करने में लगी थी...पर निकल नहीं रही थी जींस से...मैं भी उसकी देखा-देखी सन्नी की जिप खोल दी और हाथ अंदर कर लंड को अंडर वियर से बाहर करने लगी...
तभी बंटी अपनी बाइक काफी स्लो कर ली...मैं और सन्नी एक साथ उसकी तरफ नजर की तो बंटी लंड निकालने के लिए बाइक स्लो की थी और अगले ही पल उसका लंड पूजा के हाथों में थी...
सन्नी भी तेजी से बाइक स्लो किया और झटपट में अपना लंड मेरे हाथों में भर दिया और फिर दोनों लंड मसलवाते बाइक चलाने लगा...अभी 5 मिनट ही हुए थे कि बंटी ने अपनी बाइक अचानक से एक सिंगल सड़क में घुमा दी और कुछ दूर आगे चल कर एक बड़ी सी बिल्डिंग के पास रूक गया...
दिखने से ये कोई कॉलेज लग रही थी...सन्नी तब तक कुछ आगे बढ़ गया था...शायद सन्नी आगे बढ़ना चाहता था और बंटी भी रूकने के लिए बोला नहीं था...आगे से मुड़ कर जब पूजा के पास आई तो ये क्या...दोनों शुरू हो गए थे यहीं सड़क पर...
आसपास नजर दौड़ाई तो कहीं कोई नहीं था...वैसे भी कॉलेज में कौन रात को रहता...
गेट के पास स्ट्रीट लाइट जल रही थी पर उसकी रोशनी पूरी तरह हमारे निकट नहीं पहुँच रही थी ..बस परछाई लग रहे थे हम सब..
पूजा तेजी से बंटी के लंड को मुँह में भर आगे पीछे कर रही थी, जबकि बंटी बाइक पर दोनों पैर एक तरफ किए खड़ा मस्ती से आहें भर रहा था...सन्नी अगले ही पल मेरी कलाई पकड़ अपनी तरफ खींचा और मेरी गर्दन पर हाथ रख हल्के दबाव दे डाला नीचे झुकाने के लिए...
इतने देर से लंड की गर्मी पा कर गर्म तो हो ही गई थी...तो बिना कोई विरोध किए अपने होंठ सन्नी के लंड से छुआते मुंह में भर ली...मेरे होठों की गरमी पाते ही सन्नी की आह निकल गई और वो सिससकारी लेने लगा...
मैं उसे और मजे देने की सोच तेज-2 चुप्पे लगाने लगी और उसके अण्डो को निचोरने लगी...सच में काफी एक्साइटेड हो रही थी मैं...खुली सड़को पर बेफिक्र हो कर लंड चूस रही थी....
करीब 5 मिनट की ननस्टॉप चुसाई में ही सन्नी बदहवाश हो गया और तेजी से मुझे अपने लंड से जुदा कर दिया...अलग होते ही मेरी नजर पूजा की तरफ गई तो वो भी हाँफ रही थी और बंटी अपना जींस खोल रहा था...
बंटी को नंगा होते देख सन्नी भी अपना जींस खोलने गया...मतलब चुदाई होने वाली थी हम दोनों की...पर किसी के आ जाने की डर मेरे अंदर जग गई...
"सन्नी, कोई आ जाएगा...यहाँ सड़क पर ठीक नहीं होगा..."मैं अपनी डर को बाहर करती बोल पड़ी...जिसे सुन बंटी और सन्नी एक साथ मेरी तरफ देखने लगे...
"...मतलब लंड अभी खड़ा है और चूत चोदेंगे कल..." बंटी सेक्स की आग में जलता खिसियाते हुए बोल पड़ा और अपना जींस बाइक की हैंडल में फंसा दिया...
"नहीं, मैं वो नहीं कह रही..आज ही करना पर यहाँ खुले में ठीक नहीं...." मैं अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाई कि बीच में बंटी बोल पड़ा,"चुपचाप रह समझी...आज तो हम दोनों ही चोद रहे अगर ज्यादा चपड़-2 की तो 10 लौंडे को बुलवा लूंगा अभी और बीच सड़क पर चोदूँगा दोनों को..शुक्र मना कि साइड में चोद रहा हूँ..."
कहते हुए बंटी अपनी बाइक को बड़ी स्टैंड पर खड़ी करने लगा...मैं बंटी के इस स्वभाव से थोड़ी डर गई और चुप रहने में ही भलाई समझी...तभी सन्नी अपना जींस बाइक पर रखने आगे बढ़ा और मेरी तरफ देखते हुए बोला,"कुछ नहीं होगा..रात के 12:30 बज रहे हैं और उधर मेन रोड छोड़कर कोई इधर सुनसान कॉलेज गली में नहीं आएगा...इधर किसी का घर भी नहीं है...बस कॉलेज है.."
पूजा: "यस दीदी, कॉलेज बंद हो तो दिन में इधर कोई नहीं फटकता..अभी तो रात है...लेट्स इंज्वाय...वैसे भी जीजू सुमन जी की लिए बिना तो आएंगे नहीं..." पूजा के कहने से थोड़ी राहत हुई डर से...पर अंदर ही अंदर एक अलग रोमांच भर गई तन बदन में शहर के बीच सड़कों पर चुदने की सोच से...
फिर सन्नी ने भी अपनी बाइक बड़ी स्टैंड पर कर बंटी के बाइक से बिल्कुल सटा के खड़ा कर दिया...फिर दोनों बाइक के दोनों तरफ खड़ा हो हम दोनों को एक साथ आने का इशारा किया...
"आजा रण्डियों, आज खुले सड़क पर कुतिया की तरह चोदता हूँ...तेरा भड़वा दूसरी औरत को चोदता फिरता है तो तू भी दूसरे लंड को लेती रहा कर..." हम दोनों बंटी और सन्नी की गाली को मजे से सुनती उनकी तरफ बढ़ने लगी...
जैसे ही हम दोनों उसके निकट पहुँचे हम दोनों की साड़ी पलक झपकते ही जमीन पर थी...इतनी तेजी से उसने साड़ी पकड़ के हमें नचा दिया कि पूरी की पूरी साड़ी खुल गई...अब हम दोनों केवल ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी...
उन दोनों के जंगलीपन हम दोनों को और मस्ती की गहराई में डुबो रही थी...मैं और पूजा के बीच दो बाइक की दूरी थी जहां हम दोनों की एक साथ अलग-2 मर्दो की प्यास बुझाने खड़ी थी...तभी सन्नी आगे हाथ बढ़ा मेरी ब्लॉउज पकड़ अपनी तरफ खींचा...
कपड़े तो मजबूत थे पर ब्लॉउज के हुक इस हमले को नहीं सह सकी और पट-2 करती टूट गई...यही आवाज पूजा की तरफ से आई और आज की पिंक पूजा बीच सड़क पर नंगी हो गई...
और अब मैं सन्नी के कैद में जकड़ी हुई थी जहाँ उसका अंडरवियर से बाहर निकल चुका लंड सीधा पेटीकोट को धँसाती मेरी बुर में घुसने को आतुर थी...तभी सन्नी ने पेटीकोट के नाड़े खींच दिए और हल्के लंड को पीछे खींच लिया...जिससे पेटीकोट सरकती हुई नीचे चली गई...
तभी दूसरी तरफ बंटी पूजा को लिए दोनों सट के लगी बाइक की सीट पर पीठ के बल लिटा दिया...जिससे पूजा की चूतड़ बंटी की बाइक पर थी जबकि चेहरा सन्नी की बाइक पर पड़ गई...
"आज दिखाता हूँ कि असली चुदाई क्या होती है शाली.."कहते हुए सन्नी मेरी छाती पर हाथ रख पीछे की तरफ ढ़केल दिया..जिससे मैं पूजा के ठीक बगल में पीछे की तरफ गिर गई और गिरने से हल्की दर्द में आह निकल पड़ी...
अब हम दोनों बाइक पर लेटे हुए थे बस बूर से नीचे का हिस्सा जमीन पर था...अपना चेहरा पूजा की तरफ की तो उसकी बूर पर बंटी लंड रगड़ रहा था...और तभी सन्नी का लंड भी मेरी बुर पर महसूस हुई जिसे पूजा आसानी से देख रही थी...
तभी सन्नी और बंटी ने आगे झुक हम दोनों की चुची को कस के पकड़ा और वन-टू-थ्री कहता पावर गियर में जड़ तक लंड पेल दिया...हम दोनों की चीख इस वीरान सड़कों पर गूँज उठी जो कॉलेज की दीवारों से टकरा के देर तक सुनाई देती रही....
पर इस चीख से उन दोनों को कोई असर नहीं हुआ और बेफिक्र हो लगा दनादन पेलने...हम दोनों की चुदी चुदाई बुर रहने के बावजूद उसने चीख निकलवा दी, सोचनीय थी...वो ऐसे चोदता रहा मानों कि कोई मशीन अपनी गति से चल रही हो..सटासट-सटासट-सटासट....
कुछ देर तक दर्द से बिलबिलाने के बाद जब कुछ शांत हुई तो मेरी चीख सिसकारी में बदल गई..."ईसससस...आहह..आहहहह...ओहहहह..यससस..सन्न्न्न्नी...और जोर सेऐऐऐऐऐ....आउच्च्च्च्च...यससस..."
साथ में पूजा भी सेक्स की आग में तड़पती गंदी गंदी गालियां भी बकने लगी,"हाँ ऐसे ही कमीने...जोर से पेल आहहहहह नाआआआआ बहनचोददददद....आउउउउउउउ..साले मैं तेरी बहन नहीं जो आराम से चोद रहाआआआआआआआआआ...."
पूजा की आवाज अचानक आआआआ में बदल गई...बंटी गाली सुनते ही उसकी चुची इतनी जोर से उमेठ जो दिया था और वैसे ही उमेठे तेज धक्के लगाता हुआ बोला,"मादरचोद, बहनचोद बोलती है रण्डी...कुतिया ना बनाया तुझे अपना तो बंटी मेरा नाम नहीं...ले राण्ड की पैदाइश...तेरी तो पूरी खानदान चोदूँगा...बुला ला अपने गाँव से सबको...आहहहह...याहह..याहह..."
फिर इस कड़क चुदाई से मेरे मन में भी जिज्ञासा जग कि मैं भी और दर्दनाक चुदाई करवाऊँ...बस ये सोची और पटापट 10 रंग बिरंगी गालियाँ बक दी...फिर क्या..सन्नी भी गुस्से में मेरी चुची को इतनी जोर से उमेठा कि मेरी आँखों से अश्रु बह निकली और आवाज गुम...
पर वो दोनों तो पूरे दरिंदे बन गए थे...बिना किसी परवाह के तड़ातड़ पेलने लगा...काफी देर तक यूँ ही पेलता रहा दो जानवर हम दोनों को...ऐसा लगता था कि पावर कैप्सूल खा कर आया हो...
तभी उसने हम दोनों की चुचियाँ छोड़ दिया...चुची के आजाद होते ही हम दोनों की आवाजें भी आजाद हो गई और लगी गर्मी से परेशान कुतिया की तरह किकियाने...पर इसमें हम दोनों की संतुष्टि साफ सुनाई पड़ रही थी...सच में,आज की चुदाई जिंदगी भर नहीं भूलूँगी...
तभी सन्नी मेरे एक पांव जमीन से उठा अपने सीने तक कर लिया, जिससे मैं पूजा की बूर की तरफ आधी करवट में आ गई...पूजा तो पहले ही आधी करवट में थी...अब हालत ये थी कि पूजा के बूर ठीक मेरी नाक के सामने थी...और नीचे पूजा की नाक मेरी बूर के सामने...जिसमें लंड जड़ तक धँसे थे...
बूर-लंड की मिली जुली पानी की खुशबू अब हम दोनों के अंदर तक जा रही थी..फर्क थी तो बस ये कि ना बूर मेरी थी और ना मुझे पेलने वाला लंड...दोनों अलग...और इसकी रोमांच तो आग में घी डालने का काम कर रही थी...
तभी एक जोर की ठोकरें बूर में पड़ी जिससे मैं अपनी आहह निकालती मस्ती में डूबने लगी...और यही ठोकर पूजा की भी पड़ी...हम दोनों सेक्सी आवाजें करती आँखों के सामने एक दूसरे की बुर चुदते देख रही थी...
धक्के की तेज गति से मेरे हाथ पूजा की चूतड़ से पीछे की तरफ जा उसके जमीं पर वाले पांव की जांघ थाम ली और पूजा मेरी...अब तो हम दोनों के नाक से कभी-2 लंड टकरा जाता...और फिर लंड की खुशबू से खुद को ज्यादा देर तक नहीं रोक पाई...अपनी जीभ निकाल पूजा की बुर में घुसता निकलता बंटी के लंड पर रख दी...
नीचे पूजा भी सन्नी के लंड पर अपनी जुबान लगा दी और लंड का स्वाद चखने लगी जो कि मेरी बुर की पानी से सनी थी..इधर मैं भी अपनी लपलपाती जीभ बंटी के लंड पर रख पानी सोख रही थी जो पूजा अपनी बूर से निकाले जा रही थी...
हम दोनों की चुचियाँ आपस में दब रही थी...इस अनोखे ढ़ंग हो रही चुदाई से मजे और दुगने बढ़ गए थे...अंदर से एक आवाज निकल रही थी और...और...और...साथ हीमैं भी मना रही थी कि काश ये रात खत्म ना हो...
सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--32
"आहहह...शाबास मेरी रण्डियों....इसी तरह आहहह...काफी मजा आ रहा है...हम दोनों की ये सदियों की तमन्ना आज तुम दोनों ने पूरी कर दी...आहहहहह.." बंटी मेरे सर पर हाथ रख सहलाता हुआ बोला...
मैं बिना कुछ सुने बस अपने काम में लगी रही...कुछ देर तक इसी तरह चुदती रही...तब अचानक ही मेरे मुंह और बुर दोनों जगह से लंड गायब हो गई...मैं थोड़ी तड़पी पर सामने रस बहाती पूजा की बूर ने इस कमी को खलने नहीं दी...मेरे और पूजा के मुँह एक दूसरे की बूर में घुस गई...
तभी बंटी और सन्नी ने इसी अवस्था में हम दोनों को एक तरफ पलट दिया...जिससे मैं नीचे और पूजा ऊपर आ गई...पर हम दोनों के मुख अब भी नहीं हटी...बस चुदाई की जलन में बूर खाती रही...
फिर सन्नी ने मेरे दोनों पैर उठी के अपने कमर से ऊपर खुद से लपेट लिया...और आगे चेहरे के पास बंटी का लंड दिखा जो ठीक मेरे माथे के ऊपर था और उससे लार टपक के मेरे चेहरे पर पड़ रही थी...
नीचे सन्नी के हाथ एक बार मेरी बूर पर पड़ी और वही हाथ सरक के मेरी गांड़ के छेद पर रेंगने लगी...ओह...गांड़ मारने के लिए छेद गीली कर रहा है...बंटी ने तो ढ़ेर सारा थूक पूजा की गांड़ पर उड़ेल दिया जिसका कुछ अंश बह के मेरे चेहरे पर भी पड़ी...
गांड़ मरवाने की सोच मैं खुद को तैयार कर ली थी और पूजा भी...फिर दोनों के लंड हम दोनों के गांड़ पर रगड़ खाने लगी और कुछ ही देर की रगड़ के बाद एक तड़के से सीधा रांग गली में प्रवेश करा दिया...
एक काँटें की माफिक तेज दर्द हुई जिसका असर सीधा हम दोनों की बूर पर हुआ...जोरों से बूर को मुह से जकड़ती दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...और वो दोनों इस दर्द से बेखबर दनादन शॉट मारने लगे...
10-12 शॉट में गांड़ एडजस्ट हो गई...पूजा मेरे शरीर पर लदी थी पर फूल की भांति लग रही थी..कहते हैं ना औरत चुदाई के वक्त अपने से चार गुना ज्यादा वजन सह लेती है...पहले ये बात नहीं मानती थी पर आज देख भी ली और मान ली भी ..
फिर काफी देर तक मुझे नीचे कर गांड़ का चिथड़ा उड़ाया दोनों ने, फिर पूजा को नीचे कर गरदा मचाया सुनसान सड़कों पर...अब हम दोनों थकने लगी थी तभी तो बूर चूसाई बंद हो गई हमारी...
कुछ देर तक इसी तरह बजाने के बाद दोनों की चीख हल्की-2 आने लगी...मतलब अब ये भी चरम सीमा को पहुँच रहे थे...जबकि हम दोनों तो इतनी देर में ना जाने कितनी दफा चरम सुख प्राप्त की....
तभी दोनों ने तेजी से अपना लंड बाहर किए और हम दोनों को पहले की भांति अलग कर दिया...हम थक तो गए ही थे तो तुरंत ही अलग हो गई...और फिर दोनों सटाक से अपना-2 लंड दोनों बुर में घुसेड़ दिया...
पर इस बार कोई दर्द नहीं हुई..बस मस्ती में आह निकल गई...चार-पाँच तेज शॉट दोनों ने चीखते हुए मारे और फिर अपना लंड खींचते हुए दोनों हम दोनों के चेहरे पर लंड रख दिया...
और तभी बंटी के लंड से तेज पानी की धार निकली और मेरे चेहरे को भिगोने लगी...और दूसरी तरफ सन्नी मेरी बूर से अपना लंड निकाल पूजा के गुलाबी होंठों को लंड के पानी से सिंचने लगा..
हम दोनों लंड के गरम वीर्य से तृप्त हो रही थी...फर्क थी तो चोदा एक लंड ने जबकि पानी दूसरा लंड दे रहा था...झड़ने के बाद वो दोनों ने उसी मुंह में लंड साफ करने घुसेड़ दिया,जिस पर पानी गिराया था...
कुछ ही देर में मैं बंटी के लंड को साफ कर दी और पूजा ने सन्नी की...साफ होने के बाद दोनों हट गए हँसते हुए., जबकि हम दोनों अभी भी धमाके की हुई चुदाई में पस्त पड़ी थी...
करीब पाँच मिनट बाद दोनों ने अपने कपड़े पहन हाथों में मेरे कपड़े लिए हम दोनों के पास खड़े हो गए और बांह पकड़ उठा दिया...हम दोनों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बाइक से हट जमीन पर खड़ी होती...
फिर दोनों सहारे दे जमीन पर खड़ा कर दिए...फिर सन्नी ने मुझे आगे बढ़ा दूसरी तरफ खड़े बंटी व पूजा के पास ले गए और बोले,"बंटी, इसे भी पकड़ो मैं गाड़ी निकाल कर अलग करता हूँ..."
मैं और पूजा नंगी बेहोशी की हालत में बंटी के बांहों में पड़ी थी...तब तक सन्नी बाइक को मेन रोड की तरफ कर अलग कर दिया...फिर हम दोनों को किसी तरह बाइक पर नंगी ही बिठाया और मेरी साड़ी ले अपने पीठ से बाँध लिया...
हम दोनों उसके पीठ पर लद गए...
सन्नी: "यार ऐसे बेहोश में इसे घर कैसे ले जाएंगे...चलो अपने ही रूम पर लिए चलते हैं..सुबह पहुंचा देंगे..."
सन्नी की बात सुन बंटी हंसता हुआ बोला,"अरे कुछ नहीं हुआ इसे. .बस गरमी से बेहोश हो गई...बाइक पर हवा लगेगी तो दोनों होश में आ जाएगी..."
फिर दोनों चल पड़े...जब मेन रोड से चल बाइक मेरी गली की तरफ मुड़ी तो सच में मुझे होश आ गई...जबकि पूजा भी आँखें खोली थी पर अभी भी बंटी पर लदी थी...
रात की वजह से मैं नंगी होने के बावजूद तनिक भी शर्म नहीं आ रही थी...कुछ ही पलों में हम अपने घर के गेट के पास थी...बाइक से उतर हम दोनों वहीं पर बैठ गई...बंटी ने बाइक के डिक्की से पूजा की पर्स निकाला और गेट की चाभी सन्नी को थमा दिया..
सन्नी गेट खोला और बंटी बस हम दोनों को कंधे का सहारा दे रखा था जिससे हम दोनों चल कर अपने फ्लैट तक गए...और फिर हम दोनों धम्म से बेड पर पड़ गए...शुक्र है कि श्याम अभी तक नहीं आए थे...और फिर वो दोनों बॉय कह निकल गए........
सुबह ४ बजे मेरी नींद अचानक खुल गई..रात में इतनी थकान के बावजूद कैसे जग गई, मालूम नहीं...एक बात तो थी कि रात की दमदार चुदाई से एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी...
बगल में श्याम पूजा से लिपटे सो रहे थे...पूजा भी सांप की तरह श्याम से लिपटी थी...अभी अगर कोई देख ले तो वो इन दोनों को मियां-बीवी कहेंगे और मुझे बहन...रात में श्याम कब आए,मुझे नहीं पता...
गेट सब तो सिर्फ सटी हुई थी क्योंकि हम दोनों तो आते ही पसर गई थी...श्याम आए तो लगाएं होंगे...खैर मैं उन दोनों को बिना डिस्टर्ब किए बेड से उतर गई और बाथरूम में चली गई...
फिर बाहर निकल सड़क पर नजर दौड़ाई तो अभी अंधेरा ही था...पर सड़कों पर लगी लाइट से काफी हद तक अँधेरापन जा रहा था...
मैं वहीं बालकनी में खड़ी हो ताकने लगी सड़कों पर और रूममालिक का इंतजार करने लगी...सच ही बोले थे कि नींद खुद-ब-खुद खुल जाएगी...
फिर मेले की बात जेहन में आते ही मैं सिहर गई...क्या जवाब दूंगी...एक बारगी तो मन हुई कि वापस जा कर सो जाऊँ..पर कब तक भागती..आज नहीं तो कल, उनके सामने तो पड़नी ही थी...
तभी दूर अँधेरे में कोई आती हुआ दिखाई दिया..मैं गौर से देखने लगी कि कौन हैं...अंदर ही अंदर रूम मालिक के डर से कांप भी रही थी...पर जैसे ही लाइट उन पर पड़ी तो स्पष्ट दिख गए...
कुछ ही देर में वे मेन गेट के पास रूक गए और मेरे फ्लैट की ओर निगाहें कर दिए...उनसे नजर मिलते ही मैं वेट करने बोल अंदर चली आई...
जल्दी से एक कॉटन टीशर्ट और कैप्री पहनी...फिर गेट खोल बाहर की तरफ निकल गई...गेट खुलते ही मेरी नजर उनके नजरें से जा टकराई...हम्म्म्म...नाराजगी साफ झलक रही थी...
मैं बाहर निकल गेट को सिर्फ सटा दी..मैंने गेट जैसे ही लगाई वो चल दिए बिना कुछ कहे..मैं तेजी से गेट को छोड़ी और उनके बगल में जाकर चलने लगी...
कुछ देर तक तो यूँ ही चुपचाप बस बढ़ती गई..उस ऑटो वाले केतन के मोहल्ले से गुजरती मेरी नजर उसके घर को ढूँढ़ने लगी.. पर इतनी सुबह कितने लोग जगते हैं समझ ही सकती हूँ...
अपनी इस नादानी हरकत पर हल्की मुस्कुरा कर रह गई...कुछ ही देर में हम इस मोहल्ले को क्रॉस कर दूसरे मोहल्ले में पहुँच गई थी...हम्म्म्म..दिखने से ही काफी रईस लगता था ये मोहल्ला...कोई भी बिल्डिंग की ऊपरी छत तो बिना सर ऊपर किए तो देख नहीं सकते थे...
खैर, अब काफी देर हो गई थी...ना मैं कुछ बोल रही थी और ना वो..बस चली जा रही थी..मैंने ही बातचीत की पहल शुरू करने की हिम्मत जुटाई और बोली,"सॉरी...." और उनकी तरफ देखने लगी ...
वो मेरे मुख से आवाज सुनते ही एकदम रूखे नजरों से मेरी तरफ घूरे...उन्हें अपनी तरफ देख मैं अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान लाती हुई एक बार फिर सॉरी बोली पर इस बार आवाज नहीं, सिर्फ मुँह की पटपटाहट थी...
"क्यों....?" वो अपने सख्त लब्जों को अपने चेहरे पर हैरानी दिखाते हुए बोले...
मैं अब क्या जवाब दूँ इस क्यों का..उधेड़बुन में पड़ गई कि आगे की बात कहाँ से शुरू करूँ...आपत्तिजनक हालत में मैं पकड़ी गई थी तो हर बात को स्पष्ट करना काफी मुश्किल हो रही थी..किसी तरह आधी-अधूरी बात शुरू की,"वो...कल रात मेले में..."
"हाँ तो क्या मेले में...तुम्हें पसंद है वो सब करना तो करो...मुझे क्या..नेक्सट मंथ वैसे भी घर खाली करना है तुमलोगों को...आज शाम तक आपके पति को इन्फॉर्म कर दूँगा..."उसने एक ही लब्ज में अपने अंदर का गुस्सा बाहर कर दिया...तभी वे एक दूसरी सड़क की तरफ मुड़ गए..
मैं किसी गहरे चोट से आहत दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...अपनी खोई इज्जत को पाने के बाद दुबारा खो दी...वैसे एक बात तो थी ये अलग किस्म के इंसान थे...
एक दम नेकदिल और खुले विचारों से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले...ना कोई डर ना कोई झिझक...और सबसे बड़ी बात उनका आदर्श...अगर कोई और रूम मालिक होता तो अब तक वो मुझे अपने लंड के नीचे सुलाए रहता...
खैर गलती मेरी थी तो क्या कह सकती थी...इतने अच्छे लोगों के साथ कितना गलत कर दी...इनके विश्वास को जख्मी कर दी...खुद को कोसने लगी...अब इस बात को ना छेड़ने की सोच ली थी...
तभी सामने एक पार्क दिखाई दी...पार्क उतनी बड़ी नहीं थी, पर काफी सुंदर और साफ सुथरी थी...हम दोनों अंदर घुसे और हरी भरी घासों पर तेज कदम,छोटे कदम की भांति टहलने लगे...
"तुम्हारे पति के साथ कौन थी...?" अचानक से वे मेरी तरफ मुड़े बिना पूछे..जिससे मैं हल्की चौंकती हुई उनकी तरफ देखने लगी..पर वो सीधी नजरें किए बस बढ़े जा रहे थे...
"..वो दोस्त थी उनकी...मेले में ही मिल गई थी..फिर हमारे दोस्त भी मिल गए तो हम सब साथ हो ली..."मैं अब सच्चाई से पेश आना चाहती थी...
"..फिर अलग-2 घूमने का आइडिया किसका था..." वो अबकी बार मेरी तरफ घूरे पर नजरें काफी भयानक थी मेरे प्रति...मैं डर से अपनी नजरें आगे की और बोली,"..उनका ही था...क्योंकि वो उनकी सिर्फ दोस्त ही नहीं, गर्लफ्रेंड भी थी..."
"...और तुम्हारी. .?"उन्होने जवाब खत्म होते ही एक और सवाल दाग दिया...मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि हाँ कहूँ या नहीं...कुछ निष्कर्ष नहीं निकाल पा रही थी...पर वो मेरे जवाब का इंतजार कर रहे थे...
कई चक्कर लगाने के बाद वे पार्क के अंतिम छोर पर पहुँचते ही वहाँ लगी बेंच पर बैठ गए और सुस्ताने लगे...थक गए थे शायद...उनसे ज्यादा तो मैं हांफ रही थी...मैं भी आगे बढ़ उनके बगल में बैठ गई....
"आहहह...शाबास मेरी रण्डियों....इसी तरह आहहह...काफी मजा आ रहा है...हम दोनों की ये सदियों की तमन्ना आज तुम दोनों ने पूरी कर दी...आहहहहह.." बंटी मेरे सर पर हाथ रख सहलाता हुआ बोला...
मैं बिना कुछ सुने बस अपने काम में लगी रही...कुछ देर तक इसी तरह चुदती रही...तब अचानक ही मेरे मुंह और बुर दोनों जगह से लंड गायब हो गई...मैं थोड़ी तड़पी पर सामने रस बहाती पूजा की बूर ने इस कमी को खलने नहीं दी...मेरे और पूजा के मुँह एक दूसरे की बूर में घुस गई...
तभी बंटी और सन्नी ने इसी अवस्था में हम दोनों को एक तरफ पलट दिया...जिससे मैं नीचे और पूजा ऊपर आ गई...पर हम दोनों के मुख अब भी नहीं हटी...बस चुदाई की जलन में बूर खाती रही...
फिर सन्नी ने मेरे दोनों पैर उठी के अपने कमर से ऊपर खुद से लपेट लिया...और आगे चेहरे के पास बंटी का लंड दिखा जो ठीक मेरे माथे के ऊपर था और उससे लार टपक के मेरे चेहरे पर पड़ रही थी...
नीचे सन्नी के हाथ एक बार मेरी बूर पर पड़ी और वही हाथ सरक के मेरी गांड़ के छेद पर रेंगने लगी...ओह...गांड़ मारने के लिए छेद गीली कर रहा है...बंटी ने तो ढ़ेर सारा थूक पूजा की गांड़ पर उड़ेल दिया जिसका कुछ अंश बह के मेरे चेहरे पर भी पड़ी...
गांड़ मरवाने की सोच मैं खुद को तैयार कर ली थी और पूजा भी...फिर दोनों के लंड हम दोनों के गांड़ पर रगड़ खाने लगी और कुछ ही देर की रगड़ के बाद एक तड़के से सीधा रांग गली में प्रवेश करा दिया...
एक काँटें की माफिक तेज दर्द हुई जिसका असर सीधा हम दोनों की बूर पर हुआ...जोरों से बूर को मुह से जकड़ती दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...और वो दोनों इस दर्द से बेखबर दनादन शॉट मारने लगे...
10-12 शॉट में गांड़ एडजस्ट हो गई...पूजा मेरे शरीर पर लदी थी पर फूल की भांति लग रही थी..कहते हैं ना औरत चुदाई के वक्त अपने से चार गुना ज्यादा वजन सह लेती है...पहले ये बात नहीं मानती थी पर आज देख भी ली और मान ली भी ..
फिर काफी देर तक मुझे नीचे कर गांड़ का चिथड़ा उड़ाया दोनों ने, फिर पूजा को नीचे कर गरदा मचाया सुनसान सड़कों पर...अब हम दोनों थकने लगी थी तभी तो बूर चूसाई बंद हो गई हमारी...
कुछ देर तक इसी तरह बजाने के बाद दोनों की चीख हल्की-2 आने लगी...मतलब अब ये भी चरम सीमा को पहुँच रहे थे...जबकि हम दोनों तो इतनी देर में ना जाने कितनी दफा चरम सुख प्राप्त की....
तभी दोनों ने तेजी से अपना लंड बाहर किए और हम दोनों को पहले की भांति अलग कर दिया...हम थक तो गए ही थे तो तुरंत ही अलग हो गई...और फिर दोनों सटाक से अपना-2 लंड दोनों बुर में घुसेड़ दिया...
पर इस बार कोई दर्द नहीं हुई..बस मस्ती में आह निकल गई...चार-पाँच तेज शॉट दोनों ने चीखते हुए मारे और फिर अपना लंड खींचते हुए दोनों हम दोनों के चेहरे पर लंड रख दिया...
और तभी बंटी के लंड से तेज पानी की धार निकली और मेरे चेहरे को भिगोने लगी...और दूसरी तरफ सन्नी मेरी बूर से अपना लंड निकाल पूजा के गुलाबी होंठों को लंड के पानी से सिंचने लगा..
हम दोनों लंड के गरम वीर्य से तृप्त हो रही थी...फर्क थी तो चोदा एक लंड ने जबकि पानी दूसरा लंड दे रहा था...झड़ने के बाद वो दोनों ने उसी मुंह में लंड साफ करने घुसेड़ दिया,जिस पर पानी गिराया था...
कुछ ही देर में मैं बंटी के लंड को साफ कर दी और पूजा ने सन्नी की...साफ होने के बाद दोनों हट गए हँसते हुए., जबकि हम दोनों अभी भी धमाके की हुई चुदाई में पस्त पड़ी थी...
करीब पाँच मिनट बाद दोनों ने अपने कपड़े पहन हाथों में मेरे कपड़े लिए हम दोनों के पास खड़े हो गए और बांह पकड़ उठा दिया...हम दोनों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बाइक से हट जमीन पर खड़ी होती...
फिर दोनों सहारे दे जमीन पर खड़ा कर दिए...फिर सन्नी ने मुझे आगे बढ़ा दूसरी तरफ खड़े बंटी व पूजा के पास ले गए और बोले,"बंटी, इसे भी पकड़ो मैं गाड़ी निकाल कर अलग करता हूँ..."
मैं और पूजा नंगी बेहोशी की हालत में बंटी के बांहों में पड़ी थी...तब तक सन्नी बाइक को मेन रोड की तरफ कर अलग कर दिया...फिर हम दोनों को किसी तरह बाइक पर नंगी ही बिठाया और मेरी साड़ी ले अपने पीठ से बाँध लिया...
हम दोनों उसके पीठ पर लद गए...
सन्नी: "यार ऐसे बेहोश में इसे घर कैसे ले जाएंगे...चलो अपने ही रूम पर लिए चलते हैं..सुबह पहुंचा देंगे..."
सन्नी की बात सुन बंटी हंसता हुआ बोला,"अरे कुछ नहीं हुआ इसे. .बस गरमी से बेहोश हो गई...बाइक पर हवा लगेगी तो दोनों होश में आ जाएगी..."
फिर दोनों चल पड़े...जब मेन रोड से चल बाइक मेरी गली की तरफ मुड़ी तो सच में मुझे होश आ गई...जबकि पूजा भी आँखें खोली थी पर अभी भी बंटी पर लदी थी...
रात की वजह से मैं नंगी होने के बावजूद तनिक भी शर्म नहीं आ रही थी...कुछ ही पलों में हम अपने घर के गेट के पास थी...बाइक से उतर हम दोनों वहीं पर बैठ गई...बंटी ने बाइक के डिक्की से पूजा की पर्स निकाला और गेट की चाभी सन्नी को थमा दिया..
सन्नी गेट खोला और बंटी बस हम दोनों को कंधे का सहारा दे रखा था जिससे हम दोनों चल कर अपने फ्लैट तक गए...और फिर हम दोनों धम्म से बेड पर पड़ गए...शुक्र है कि श्याम अभी तक नहीं आए थे...और फिर वो दोनों बॉय कह निकल गए........
सुबह ४ बजे मेरी नींद अचानक खुल गई..रात में इतनी थकान के बावजूद कैसे जग गई, मालूम नहीं...एक बात तो थी कि रात की दमदार चुदाई से एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी...
बगल में श्याम पूजा से लिपटे सो रहे थे...पूजा भी सांप की तरह श्याम से लिपटी थी...अभी अगर कोई देख ले तो वो इन दोनों को मियां-बीवी कहेंगे और मुझे बहन...रात में श्याम कब आए,मुझे नहीं पता...
गेट सब तो सिर्फ सटी हुई थी क्योंकि हम दोनों तो आते ही पसर गई थी...श्याम आए तो लगाएं होंगे...खैर मैं उन दोनों को बिना डिस्टर्ब किए बेड से उतर गई और बाथरूम में चली गई...
फिर बाहर निकल सड़क पर नजर दौड़ाई तो अभी अंधेरा ही था...पर सड़कों पर लगी लाइट से काफी हद तक अँधेरापन जा रहा था...
मैं वहीं बालकनी में खड़ी हो ताकने लगी सड़कों पर और रूममालिक का इंतजार करने लगी...सच ही बोले थे कि नींद खुद-ब-खुद खुल जाएगी...
फिर मेले की बात जेहन में आते ही मैं सिहर गई...क्या जवाब दूंगी...एक बारगी तो मन हुई कि वापस जा कर सो जाऊँ..पर कब तक भागती..आज नहीं तो कल, उनके सामने तो पड़नी ही थी...
तभी दूर अँधेरे में कोई आती हुआ दिखाई दिया..मैं गौर से देखने लगी कि कौन हैं...अंदर ही अंदर रूम मालिक के डर से कांप भी रही थी...पर जैसे ही लाइट उन पर पड़ी तो स्पष्ट दिख गए...
कुछ ही देर में वे मेन गेट के पास रूक गए और मेरे फ्लैट की ओर निगाहें कर दिए...उनसे नजर मिलते ही मैं वेट करने बोल अंदर चली आई...
जल्दी से एक कॉटन टीशर्ट और कैप्री पहनी...फिर गेट खोल बाहर की तरफ निकल गई...गेट खुलते ही मेरी नजर उनके नजरें से जा टकराई...हम्म्म्म...नाराजगी साफ झलक रही थी...
मैं बाहर निकल गेट को सिर्फ सटा दी..मैंने गेट जैसे ही लगाई वो चल दिए बिना कुछ कहे..मैं तेजी से गेट को छोड़ी और उनके बगल में जाकर चलने लगी...
कुछ देर तक तो यूँ ही चुपचाप बस बढ़ती गई..उस ऑटो वाले केतन के मोहल्ले से गुजरती मेरी नजर उसके घर को ढूँढ़ने लगी.. पर इतनी सुबह कितने लोग जगते हैं समझ ही सकती हूँ...
अपनी इस नादानी हरकत पर हल्की मुस्कुरा कर रह गई...कुछ ही देर में हम इस मोहल्ले को क्रॉस कर दूसरे मोहल्ले में पहुँच गई थी...हम्म्म्म..दिखने से ही काफी रईस लगता था ये मोहल्ला...कोई भी बिल्डिंग की ऊपरी छत तो बिना सर ऊपर किए तो देख नहीं सकते थे...
खैर, अब काफी देर हो गई थी...ना मैं कुछ बोल रही थी और ना वो..बस चली जा रही थी..मैंने ही बातचीत की पहल शुरू करने की हिम्मत जुटाई और बोली,"सॉरी...." और उनकी तरफ देखने लगी ...
वो मेरे मुख से आवाज सुनते ही एकदम रूखे नजरों से मेरी तरफ घूरे...उन्हें अपनी तरफ देख मैं अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान लाती हुई एक बार फिर सॉरी बोली पर इस बार आवाज नहीं, सिर्फ मुँह की पटपटाहट थी...
"क्यों....?" वो अपने सख्त लब्जों को अपने चेहरे पर हैरानी दिखाते हुए बोले...
मैं अब क्या जवाब दूँ इस क्यों का..उधेड़बुन में पड़ गई कि आगे की बात कहाँ से शुरू करूँ...आपत्तिजनक हालत में मैं पकड़ी गई थी तो हर बात को स्पष्ट करना काफी मुश्किल हो रही थी..किसी तरह आधी-अधूरी बात शुरू की,"वो...कल रात मेले में..."
"हाँ तो क्या मेले में...तुम्हें पसंद है वो सब करना तो करो...मुझे क्या..नेक्सट मंथ वैसे भी घर खाली करना है तुमलोगों को...आज शाम तक आपके पति को इन्फॉर्म कर दूँगा..."उसने एक ही लब्ज में अपने अंदर का गुस्सा बाहर कर दिया...तभी वे एक दूसरी सड़क की तरफ मुड़ गए..
मैं किसी गहरे चोट से आहत दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...अपनी खोई इज्जत को पाने के बाद दुबारा खो दी...वैसे एक बात तो थी ये अलग किस्म के इंसान थे...
एक दम नेकदिल और खुले विचारों से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले...ना कोई डर ना कोई झिझक...और सबसे बड़ी बात उनका आदर्श...अगर कोई और रूम मालिक होता तो अब तक वो मुझे अपने लंड के नीचे सुलाए रहता...
खैर गलती मेरी थी तो क्या कह सकती थी...इतने अच्छे लोगों के साथ कितना गलत कर दी...इनके विश्वास को जख्मी कर दी...खुद को कोसने लगी...अब इस बात को ना छेड़ने की सोच ली थी...
तभी सामने एक पार्क दिखाई दी...पार्क उतनी बड़ी नहीं थी, पर काफी सुंदर और साफ सुथरी थी...हम दोनों अंदर घुसे और हरी भरी घासों पर तेज कदम,छोटे कदम की भांति टहलने लगे...
"तुम्हारे पति के साथ कौन थी...?" अचानक से वे मेरी तरफ मुड़े बिना पूछे..जिससे मैं हल्की चौंकती हुई उनकी तरफ देखने लगी..पर वो सीधी नजरें किए बस बढ़े जा रहे थे...
"..वो दोस्त थी उनकी...मेले में ही मिल गई थी..फिर हमारे दोस्त भी मिल गए तो हम सब साथ हो ली..."मैं अब सच्चाई से पेश आना चाहती थी...
"..फिर अलग-2 घूमने का आइडिया किसका था..." वो अबकी बार मेरी तरफ घूरे पर नजरें काफी भयानक थी मेरे प्रति...मैं डर से अपनी नजरें आगे की और बोली,"..उनका ही था...क्योंकि वो उनकी सिर्फ दोस्त ही नहीं, गर्लफ्रेंड भी थी..."
"...और तुम्हारी. .?"उन्होने जवाब खत्म होते ही एक और सवाल दाग दिया...मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि हाँ कहूँ या नहीं...कुछ निष्कर्ष नहीं निकाल पा रही थी...पर वो मेरे जवाब का इंतजार कर रहे थे...
कई चक्कर लगाने के बाद वे पार्क के अंतिम छोर पर पहुँचते ही वहाँ लगी बेंच पर बैठ गए और सुस्ताने लगे...थक गए थे शायद...उनसे ज्यादा तो मैं हांफ रही थी...मैं भी आगे बढ़ उनके बगल में बैठ गई....
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--33
"सबकी नजरों में तो बॉय फ्रेंड पर मेरी नजरों में नहीं.."मैं लम्बी साँसों को छोड़ती हुई बोली.. जिसे सुन वे मेरी तरफ देखते निगाहों से ही पूछ बैठे कि वो क्यों?
मैं कुछ रूक गई और फिर उनकी नजरों से नजरें मिलाती हुई बोली,"मैं प्यार सिर्फ अपने पति से करती हूँ..वे मेरी जिंदगी के पहले और आखिरी प्यार हैं..."
वो मेरे इस जवाब को सुन चेहरे पर सिकन लाते हुए बोले,"तो फिर ये सब..." मैं उन्हें भी एक दोस्त...नहीं, अच्छे दोस्त की तरह सारी बात कहने लगी...
"बस शरीर की भूख की वजह से...खुद को रोक नहीं पा रही...ऐसा नहीं है कि मेरे पति सेक्स में कमजोर हैं...पर मेरे अंदर पता नहीं क्या है..हर वक्त नए व्यक्ति,नई जगह,नई तरीके खोजती रहती..." मैं एकदम साफ लहजों में ये सब कह डाली...
जिसे सुन वे थोड़े चौंके और मुझे हैरानी भरी निगाहों से देखते हुए नेक्सट सवाल कर दिए,"..तो तुम्हारे पति को कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम्हारी इस बेहूदा शौक से..."
"जिन्हें खुद लत लगी हो उन्हें भला क्या प्रॉब्लम..."मैं हंसती हुई एक ही वाक्य में पति के बारे में भी कह डाली...जिसे सुन वे अपने सर पर हाथ रख सोचने लग गए...
रूम मालिक: "राम मिलाए जोड़ी,एक काना एक कोढ़ी...धन्य हो साहिबा....एक शेर सुनिएगा...पानी से प्यास न बुझी, तो मैखाने की तरफ चल निकला,
सोचा शिकायत करूँ तेरी खुदा से, पर खुदा भी तेरा आशिक़ निकला।.... तो अब कुछ कहने से क्या फायदा..." वो कुछ देर बाद अपने चेहरे पर हल्की खुशी और आश्चर्य लाते हुए बोले...जिससे मैं हंस दी...
"अच्छा आपको कभी जरूरत नहीं पड़ती कि कुछ नई होनी चाहिए..नए पार्टनर होने चाहिए..आई मीन..." मैं उनके चेहरे पर हल्की हंसी देख कुछ और मूड बदलने उनसे पूछी..
वो मेरे सवाल से मेरी तरफ घूरने लगे, फिर मेरी तरफ खिसकते हुए बिल्कुल सट गए और बोले,"होती है..और करता भी हूँ पर जितना मजा तुमलोग लेते हो वो तो मेरी किस्मत में नहीं..काश मेरी बीवी भी तुम्हारी तरह होती..."
"..तो बना दो उन्हें भी मेरी तरह..."मैं थोड़ी मजाकिया बनती हुई हंसते हुए बोल दी जिसे सुन वे अपनी हंसी नहीं रोक पाए..क्योंकि उन्हें पता था ये बात इस जनम में तो संभव नहीं है...
"चलो जाने दो उसे...रात में काफी मस्ती की तो पार्टी बनती है..."वो अब थोड़े रिलेक्स होते हुए बोले जिसे सुन मैं काफी खुश हो गई..
"हम्म्म...गुस्सा शांत हो गया...?"मैं रिस्क लेती हुई पूछी कि देखूं इनका क्या कहते हैं..तब से तो घर से बाहर निकालने की कह रहे थे...वो मेरी सवाल सुन चुप हो गए और एकटक निहारने लगे मुझे...
मैं भी बिना पलक झपकाए उनसे नजरें मिलाए जवाब का इंतजार कर रही थी...अब हम दोनों की साँसे थम चुकी थी जो वाक् के दरम्यान उखड़ गई थी...नजदीक होने के कारण सांसे सीधे एक दूसरे के सीने से टकरा रही थी...
तभी उसने अपना हाथ आगे बढ़ा सीधे मेरी गर्दन पर रख दवाब बना दिए, जिससे मैं अगले ही पल औंधें मुँह उनके गोद में गिर पड़ी..जहाँ पहले से तैनात सिपाही से मैं टकरा गई...
मैं चूं भी नहीं कर पाई..शायद करना भी नहीं चाहती थी...क्यों करती जब एक और लंड मेरी खातिरदारी को मिल रही थी...तभी उनके हाथ मेरे बाल को कस के पकड़ लिए और मुझे सीधी करने एक तरफ खींचने लगे...
बालों खिंचे जाने से हल्की दर्द हुई जिससे मेरी आहहह निकल गई...और मैं अनमने ढ़ंग से किसी तरह उनके गोद में उनकी तरफ मुँह किए पड़ी थी...दर्द भरी नजरों से उनके आँखों में झाँकी तो वहाँ वासना की लाल डोरे साफ नजर आई जिससे मैं दर्द में भी मुस्कुरा पड़ी...
तभी वो नीचे झुके और अपने होंठ मेरी खामोश लबों पर रख दिए...और लगे चूसने...मैं पल भर भी नहीं रूक पाई और बिना किस तोड़े खुद को ठीक से बेंच पर व्यवस्थित करती आराम से लेट गई...
तभी उन्होंने अपना एक हाथ सीधे मेरी चुची पर रख दिए...मैं उनके हाथ को टी-शर्ट पर से ही चुची पर महसूस कर सिहर गई...तभी उन्होंने मसलना शुरू कर दिया...
मेरी हल्की चीख अंदर ही अंदर घुट कर रह गई...कुछ ही पलों में मैं मस्ती में सरोबार हो गई और किसी भूखी कुतिया की तरह उनके होंठो पर वार करने लगी...
पार्क में चिड़ियां जोरों से चहचहा रही थी...कोयल अपनी सुरें वातावरण में फैलाए जा रही थी...रंग बिरंगे फूल अपनी सुगंधे फैलाए जा रही थी..मैं इन प्राकृत्क वातावरण में किस करने में मग्न थी...
उन्होंने किस करते हुए मेरे दोनों अपने गर्दन पर रख दिए..मैं तुरंत ही उनके गर्दन को अपने बांहों से जकड़ ली...फिर वो हल्के ऊपर उठ गए...पर मैं किस टूटने की डर से कस के जकड़ ली तो मैं भी उनके साथ ऊपर उठ गई...
कुछ देर बाद वो फिर वापस नीचे हो गए जिससे मैं उनके गोद में फिर से सर रख ली...पर अब मुझे कुछ भीनी-2 सी सुगंध आने लगी...पर इस सुगंध से अच्छी तरह वाकिफ थी...
मैं इस सुगंध से किस पर पकड़ थोड़ी कम कर दी और उस सुगंध का आनंद लेती किस कर रही थी...तभी उन्होंने अपने होंठ को ऊपर की तरफ हटाने लगे और वे सफल भी हो गए...
वे ऊपर हटने के साथ ही अपने हाथ से मेरे चेहरे को उस सुगंध की तरफ मोड़ दिए...मैं भी चुंबक की माफिक मुड़ती चली गई और मेरे मुँह स्वतः खुल गए...अगले ही पल मेरे मुंह में उनका मोटा और नाटा लंड गप्प से समा गया...
मेरी आँखें बंद हो गई मदहोशी में और चभर-2 चूसने लग गई...वे एक मीठी आहहह भरते हुए उत्तेजना में सर को कभी पीछे तो कभी नीचे करते और अपने हाथ से मेरू टीशर्ट ऊपर कर नंगी चुची को मसलने लगे...
जैसे-2 सुबह की लाली छंटती जाती मैं और जोर से चूसती जाती...और वो मेरी नंगी को लाल किए जा रहे थे...साथ ही अपना दूसरा हाथ नीचे कर मेरी केप्री में घुसा दिए...
उनके हाथ तुरंत ही अपनी मंजिल हासिल कर ली..जैसे ही उनकी उंगलिया मेरी बूर पर पहुँची, मैं तड़प उठी और पूरे लंड को जड़ तक मुंह में घुसेड़ ली...वो सीत्कार मारते हुए बिलबिला उठे और मेरी बूर में दो अंगुली घुसा कस के जकड़ लिए...
अब हम दोनों कंट्रोल से बाहर हुए जा रहे थे...मैं चुदने के लिए तड़पने लगी और अपने एक हाथ नीचे कर उनके हाथ को और अंदर बूर में धकेलने लगी...उनके लिए बस इतनी ही काफी थी...
वो मेरे बालों को पकड़ झटके दे अपने लंड को आजाद किए और मुझे उठाते हुए खुद निकल गए..उनके निकलते ही मैंने बेंच पर ठीक से एडजस्ट हुई और अपनी कैप्री नीचे सरका दी...
कैप्री हटते ही मेरी पनियाई बूर उनके नजरों के सामने आ गई...वे मेरी रसीली पर नजर गड़ाए नीचे की तरफ गए और मेरी एक टांग पकड़ नीचे जमीन पर कर दिए जिससे मेरी बुर खुल के सामने आ गई और उन्हें मुझे बजाने सी जगह भी....
मेरे हाथ खुद की चुची पर हरकत करने लगी और नशीली नजरें उनके लंड पर...कब ये नाटा पहलवान मेरी बूर में दस्तक देगा...कद में छोटा था पर हेल्दी में नॉर्मल लंड की दुगूनी...
वे अपने बंदूक ताने ठीक मेरी बूर के सामने ला मुझ पर लेट से गए...मैं उनके वजन से एक बार दब सी गई पर तुरंत ही एडजस्ट हो गई...लेटने से उनका लंड मेरी बूर में घुसने के व्याकुल होने लगा पर घुसा नहीं...
उन्होने अपने हाथ से लंड को सही दिशा देते हुए टमाटर की भांति सुपाड़े को मेरी बूर में फंसा दिए...सुपाड़े के फंसते ही मैं चिहुंक उठी...और अगली वार की प्रतीक्षा करने लगी...
"पांडे नाम है मेरा...C.P. पांडे... मैं बूर चोदने का दिवाना हूँ, बूर का नहीं...तू सोचती होगी कि अपनी जवानी से मुझे अपने फैसले बदलने पर विवश कर देगी,ऐसा नहीं हूँ मैं...ऐसी सोच ले कर आने वाली हर औरत को मैं सिर्फ एक ही चीज देता हूँ...और वो है....लण्डडडडडड..." वे मेरे कानों में मेरे सवालों का जवाब देते हुए अपना लंड मेरी बूर में धकेल दिए....
मैं इतने मोटे लंड खाकर तड़प कर अपने सर को पीछे धकेल कर बचने की कोशिश की कि लंड कम घुसे और दर्द कम हो...पर नाकाम रही...उन्होने अपने शरीर का पूरा वजन रख दिया जिससे मैं गर्दन से नीचे हिल भी नहीं पाई...
"तू औरों से अलग है इसलिए पहली बार ही सब कुछ दिया..अब अगर तेरी मर्जी हुई मेरे से दोस्ती रखने की तो रखना वर्ना नहीं रखना पर मैं घर अवश्य खाली करवाऊंगा...तेरी गरम जवानी पत नहीं कहाँ-2 गुल खिलाएगी तो मैं ये किसी के मुँह से सुनना नहीं चाहता कि ये तो फलाने बाबू की रेन्टर है..."वो अपने लंड को पीछे कर एक और धक्का मारते हुए बोले...
मैं इस वक्त सिर्फ उनकी बात सुन रही थी और कुछ कहने के बजाय उनके मोटे लंड को एडजस्ट करने में जुटी थी...आउच्च्च्च्चऽ आहहहह...अचानक उन्होंने अपने नुकीले दांत मेरी चुची पर गड़ा दिए...
मैं दर्द से चीख पड़ी जो कि मेरी चीख पूरे पार्क में गूँजने लगी...पर वो इन सब से बेखबर लगातार धक्के मारने लगे...मैं हर धक्के पर हिचकोले खा रही थी...
अभी 10 धक्के ही खाई थी कि तभी मेरे कानों में किसी की हलचल गूँजी...मेरे कान खड़े हो गए और अपनी गर्दन उस आवाज की तरफ कर देखने की कोशिश करने लगी...
"डर मत, इस पार्क में सिर्फ दो ही तरह के लोग आते हैं..." मुझे ऐसे डर से उधर देखते वे बोले जिससे मैं आश्चर्य से मुड़ कर उनकी तरफ हिचकोले खाती देखने लगी...
"एक वो जिसे चूत मरवानी होती है और दूसरा इस कॉलोनी के बुड्ढे-बुढ़िया जो आधे पार्क से उधर ही रहते हैं...इस कॉलनी की हर घर में एक ना एक रंडी है...सब अपने यार संग मॉरनिंग वॉक के बहाने आती है और चुद के जाती है...मैं भी यहाँ से रोज कोई ना कोई बूर पेल के ही जाता हूँ...और खास बात ये कि ये बातें सिर्फ पार्क तक ही रहती है, बाहल सब अनजाने..."मेरी डर को दूर करने के लिए उन्होंने इस पार्क के अंदर की असलियत बता दी...
मैं सुन के दंग रह गई..अब तक मेरी बूर उनके लंड को पूरी तरह एडजस्ट कर ली थी और अब आराम में अंदर बाहर हो रही थी...पर मेरी आवाजें निकलनी नहीं बंद हो पाई थी...हर धक्के पर आहहह कर बैठती...
मैं यूँ ही धक्के खाती ऊपर की ओर देखी तो खुला आसमान पर पार्क के बाउंड्री समीप काफी ऊंचे और घने वृक्ष लगे थे...और यहाँ से मोहल्ले की एक भी इमारत नजर नहीं आ रही थी....
तभी से अचानक वो काफी तेज धक्के मारने लगे..वे चरमसीमा की ओर बढ़ने लगे..मैं भी अपनी आवाजें तेज करती हुई उन्हें सपोर्ट करने लगी...तभी मेरे कानों में हल्की सुरीली हंसी पड़ी...
मैं यूँ ही कस के जकड़ी नजर घुमाई तो मेरी ही उम्र की एक गोरी चिट्टी लेडिज एक अधेड़ मर्द के साथ बगल से क्रॉस करती हम दोनों को देख हंस रही थी...मैं उन दोनों को देख बिना किसी हिचक डर के वापस पांडे संग लग गई...
तभी वो चीखते हुए चिल्ला पड़े,"आई...एएएएम...कमिंईंईईंईंईंगगगगगग..."और अपना ढ़ेर सारा लावा मेरी बूर में बहा दिए...मैं भी इस गरमी को सह नहीं पाई और उसी पल मैं भी अपनी नदी बहा दी...
पूरा झड़ने के बाद वे धम्म से मुझ पर लद गए और झड़ने के पश्चात मैं भी सुकून से आँखें बंद कर उन्हें बाँहों मे, भर ली...
"सबकी नजरों में तो बॉय फ्रेंड पर मेरी नजरों में नहीं.."मैं लम्बी साँसों को छोड़ती हुई बोली.. जिसे सुन वे मेरी तरफ देखते निगाहों से ही पूछ बैठे कि वो क्यों?
मैं कुछ रूक गई और फिर उनकी नजरों से नजरें मिलाती हुई बोली,"मैं प्यार सिर्फ अपने पति से करती हूँ..वे मेरी जिंदगी के पहले और आखिरी प्यार हैं..."
वो मेरे इस जवाब को सुन चेहरे पर सिकन लाते हुए बोले,"तो फिर ये सब..." मैं उन्हें भी एक दोस्त...नहीं, अच्छे दोस्त की तरह सारी बात कहने लगी...
"बस शरीर की भूख की वजह से...खुद को रोक नहीं पा रही...ऐसा नहीं है कि मेरे पति सेक्स में कमजोर हैं...पर मेरे अंदर पता नहीं क्या है..हर वक्त नए व्यक्ति,नई जगह,नई तरीके खोजती रहती..." मैं एकदम साफ लहजों में ये सब कह डाली...
जिसे सुन वे थोड़े चौंके और मुझे हैरानी भरी निगाहों से देखते हुए नेक्सट सवाल कर दिए,"..तो तुम्हारे पति को कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम्हारी इस बेहूदा शौक से..."
"जिन्हें खुद लत लगी हो उन्हें भला क्या प्रॉब्लम..."मैं हंसती हुई एक ही वाक्य में पति के बारे में भी कह डाली...जिसे सुन वे अपने सर पर हाथ रख सोचने लग गए...
रूम मालिक: "राम मिलाए जोड़ी,एक काना एक कोढ़ी...धन्य हो साहिबा....एक शेर सुनिएगा...पानी से प्यास न बुझी, तो मैखाने की तरफ चल निकला,
सोचा शिकायत करूँ तेरी खुदा से, पर खुदा भी तेरा आशिक़ निकला।.... तो अब कुछ कहने से क्या फायदा..." वो कुछ देर बाद अपने चेहरे पर हल्की खुशी और आश्चर्य लाते हुए बोले...जिससे मैं हंस दी...
"अच्छा आपको कभी जरूरत नहीं पड़ती कि कुछ नई होनी चाहिए..नए पार्टनर होने चाहिए..आई मीन..." मैं उनके चेहरे पर हल्की हंसी देख कुछ और मूड बदलने उनसे पूछी..
वो मेरे सवाल से मेरी तरफ घूरने लगे, फिर मेरी तरफ खिसकते हुए बिल्कुल सट गए और बोले,"होती है..और करता भी हूँ पर जितना मजा तुमलोग लेते हो वो तो मेरी किस्मत में नहीं..काश मेरी बीवी भी तुम्हारी तरह होती..."
"..तो बना दो उन्हें भी मेरी तरह..."मैं थोड़ी मजाकिया बनती हुई हंसते हुए बोल दी जिसे सुन वे अपनी हंसी नहीं रोक पाए..क्योंकि उन्हें पता था ये बात इस जनम में तो संभव नहीं है...
"चलो जाने दो उसे...रात में काफी मस्ती की तो पार्टी बनती है..."वो अब थोड़े रिलेक्स होते हुए बोले जिसे सुन मैं काफी खुश हो गई..
"हम्म्म...गुस्सा शांत हो गया...?"मैं रिस्क लेती हुई पूछी कि देखूं इनका क्या कहते हैं..तब से तो घर से बाहर निकालने की कह रहे थे...वो मेरी सवाल सुन चुप हो गए और एकटक निहारने लगे मुझे...
मैं भी बिना पलक झपकाए उनसे नजरें मिलाए जवाब का इंतजार कर रही थी...अब हम दोनों की साँसे थम चुकी थी जो वाक् के दरम्यान उखड़ गई थी...नजदीक होने के कारण सांसे सीधे एक दूसरे के सीने से टकरा रही थी...
तभी उसने अपना हाथ आगे बढ़ा सीधे मेरी गर्दन पर रख दवाब बना दिए, जिससे मैं अगले ही पल औंधें मुँह उनके गोद में गिर पड़ी..जहाँ पहले से तैनात सिपाही से मैं टकरा गई...
मैं चूं भी नहीं कर पाई..शायद करना भी नहीं चाहती थी...क्यों करती जब एक और लंड मेरी खातिरदारी को मिल रही थी...तभी उनके हाथ मेरे बाल को कस के पकड़ लिए और मुझे सीधी करने एक तरफ खींचने लगे...
बालों खिंचे जाने से हल्की दर्द हुई जिससे मेरी आहहह निकल गई...और मैं अनमने ढ़ंग से किसी तरह उनके गोद में उनकी तरफ मुँह किए पड़ी थी...दर्द भरी नजरों से उनके आँखों में झाँकी तो वहाँ वासना की लाल डोरे साफ नजर आई जिससे मैं दर्द में भी मुस्कुरा पड़ी...
तभी वो नीचे झुके और अपने होंठ मेरी खामोश लबों पर रख दिए...और लगे चूसने...मैं पल भर भी नहीं रूक पाई और बिना किस तोड़े खुद को ठीक से बेंच पर व्यवस्थित करती आराम से लेट गई...
तभी उन्होंने अपना एक हाथ सीधे मेरी चुची पर रख दिए...मैं उनके हाथ को टी-शर्ट पर से ही चुची पर महसूस कर सिहर गई...तभी उन्होंने मसलना शुरू कर दिया...
मेरी हल्की चीख अंदर ही अंदर घुट कर रह गई...कुछ ही पलों में मैं मस्ती में सरोबार हो गई और किसी भूखी कुतिया की तरह उनके होंठो पर वार करने लगी...
पार्क में चिड़ियां जोरों से चहचहा रही थी...कोयल अपनी सुरें वातावरण में फैलाए जा रही थी...रंग बिरंगे फूल अपनी सुगंधे फैलाए जा रही थी..मैं इन प्राकृत्क वातावरण में किस करने में मग्न थी...
उन्होंने किस करते हुए मेरे दोनों अपने गर्दन पर रख दिए..मैं तुरंत ही उनके गर्दन को अपने बांहों से जकड़ ली...फिर वो हल्के ऊपर उठ गए...पर मैं किस टूटने की डर से कस के जकड़ ली तो मैं भी उनके साथ ऊपर उठ गई...
कुछ देर बाद वो फिर वापस नीचे हो गए जिससे मैं उनके गोद में फिर से सर रख ली...पर अब मुझे कुछ भीनी-2 सी सुगंध आने लगी...पर इस सुगंध से अच्छी तरह वाकिफ थी...
मैं इस सुगंध से किस पर पकड़ थोड़ी कम कर दी और उस सुगंध का आनंद लेती किस कर रही थी...तभी उन्होंने अपने होंठ को ऊपर की तरफ हटाने लगे और वे सफल भी हो गए...
वे ऊपर हटने के साथ ही अपने हाथ से मेरे चेहरे को उस सुगंध की तरफ मोड़ दिए...मैं भी चुंबक की माफिक मुड़ती चली गई और मेरे मुँह स्वतः खुल गए...अगले ही पल मेरे मुंह में उनका मोटा और नाटा लंड गप्प से समा गया...
मेरी आँखें बंद हो गई मदहोशी में और चभर-2 चूसने लग गई...वे एक मीठी आहहह भरते हुए उत्तेजना में सर को कभी पीछे तो कभी नीचे करते और अपने हाथ से मेरू टीशर्ट ऊपर कर नंगी चुची को मसलने लगे...
जैसे-2 सुबह की लाली छंटती जाती मैं और जोर से चूसती जाती...और वो मेरी नंगी को लाल किए जा रहे थे...साथ ही अपना दूसरा हाथ नीचे कर मेरी केप्री में घुसा दिए...
उनके हाथ तुरंत ही अपनी मंजिल हासिल कर ली..जैसे ही उनकी उंगलिया मेरी बूर पर पहुँची, मैं तड़प उठी और पूरे लंड को जड़ तक मुंह में घुसेड़ ली...वो सीत्कार मारते हुए बिलबिला उठे और मेरी बूर में दो अंगुली घुसा कस के जकड़ लिए...
अब हम दोनों कंट्रोल से बाहर हुए जा रहे थे...मैं चुदने के लिए तड़पने लगी और अपने एक हाथ नीचे कर उनके हाथ को और अंदर बूर में धकेलने लगी...उनके लिए बस इतनी ही काफी थी...
वो मेरे बालों को पकड़ झटके दे अपने लंड को आजाद किए और मुझे उठाते हुए खुद निकल गए..उनके निकलते ही मैंने बेंच पर ठीक से एडजस्ट हुई और अपनी कैप्री नीचे सरका दी...
कैप्री हटते ही मेरी पनियाई बूर उनके नजरों के सामने आ गई...वे मेरी रसीली पर नजर गड़ाए नीचे की तरफ गए और मेरी एक टांग पकड़ नीचे जमीन पर कर दिए जिससे मेरी बुर खुल के सामने आ गई और उन्हें मुझे बजाने सी जगह भी....
मेरे हाथ खुद की चुची पर हरकत करने लगी और नशीली नजरें उनके लंड पर...कब ये नाटा पहलवान मेरी बूर में दस्तक देगा...कद में छोटा था पर हेल्दी में नॉर्मल लंड की दुगूनी...
वे अपने बंदूक ताने ठीक मेरी बूर के सामने ला मुझ पर लेट से गए...मैं उनके वजन से एक बार दब सी गई पर तुरंत ही एडजस्ट हो गई...लेटने से उनका लंड मेरी बूर में घुसने के व्याकुल होने लगा पर घुसा नहीं...
उन्होने अपने हाथ से लंड को सही दिशा देते हुए टमाटर की भांति सुपाड़े को मेरी बूर में फंसा दिए...सुपाड़े के फंसते ही मैं चिहुंक उठी...और अगली वार की प्रतीक्षा करने लगी...
"पांडे नाम है मेरा...C.P. पांडे... मैं बूर चोदने का दिवाना हूँ, बूर का नहीं...तू सोचती होगी कि अपनी जवानी से मुझे अपने फैसले बदलने पर विवश कर देगी,ऐसा नहीं हूँ मैं...ऐसी सोच ले कर आने वाली हर औरत को मैं सिर्फ एक ही चीज देता हूँ...और वो है....लण्डडडडडड..." वे मेरे कानों में मेरे सवालों का जवाब देते हुए अपना लंड मेरी बूर में धकेल दिए....
मैं इतने मोटे लंड खाकर तड़प कर अपने सर को पीछे धकेल कर बचने की कोशिश की कि लंड कम घुसे और दर्द कम हो...पर नाकाम रही...उन्होने अपने शरीर का पूरा वजन रख दिया जिससे मैं गर्दन से नीचे हिल भी नहीं पाई...
"तू औरों से अलग है इसलिए पहली बार ही सब कुछ दिया..अब अगर तेरी मर्जी हुई मेरे से दोस्ती रखने की तो रखना वर्ना नहीं रखना पर मैं घर अवश्य खाली करवाऊंगा...तेरी गरम जवानी पत नहीं कहाँ-2 गुल खिलाएगी तो मैं ये किसी के मुँह से सुनना नहीं चाहता कि ये तो फलाने बाबू की रेन्टर है..."वो अपने लंड को पीछे कर एक और धक्का मारते हुए बोले...
मैं इस वक्त सिर्फ उनकी बात सुन रही थी और कुछ कहने के बजाय उनके मोटे लंड को एडजस्ट करने में जुटी थी...आउच्च्च्च्चऽ आहहहह...अचानक उन्होंने अपने नुकीले दांत मेरी चुची पर गड़ा दिए...
मैं दर्द से चीख पड़ी जो कि मेरी चीख पूरे पार्क में गूँजने लगी...पर वो इन सब से बेखबर लगातार धक्के मारने लगे...मैं हर धक्के पर हिचकोले खा रही थी...
अभी 10 धक्के ही खाई थी कि तभी मेरे कानों में किसी की हलचल गूँजी...मेरे कान खड़े हो गए और अपनी गर्दन उस आवाज की तरफ कर देखने की कोशिश करने लगी...
"डर मत, इस पार्क में सिर्फ दो ही तरह के लोग आते हैं..." मुझे ऐसे डर से उधर देखते वे बोले जिससे मैं आश्चर्य से मुड़ कर उनकी तरफ हिचकोले खाती देखने लगी...
"एक वो जिसे चूत मरवानी होती है और दूसरा इस कॉलोनी के बुड्ढे-बुढ़िया जो आधे पार्क से उधर ही रहते हैं...इस कॉलनी की हर घर में एक ना एक रंडी है...सब अपने यार संग मॉरनिंग वॉक के बहाने आती है और चुद के जाती है...मैं भी यहाँ से रोज कोई ना कोई बूर पेल के ही जाता हूँ...और खास बात ये कि ये बातें सिर्फ पार्क तक ही रहती है, बाहल सब अनजाने..."मेरी डर को दूर करने के लिए उन्होंने इस पार्क के अंदर की असलियत बता दी...
मैं सुन के दंग रह गई..अब तक मेरी बूर उनके लंड को पूरी तरह एडजस्ट कर ली थी और अब आराम में अंदर बाहर हो रही थी...पर मेरी आवाजें निकलनी नहीं बंद हो पाई थी...हर धक्के पर आहहह कर बैठती...
मैं यूँ ही धक्के खाती ऊपर की ओर देखी तो खुला आसमान पर पार्क के बाउंड्री समीप काफी ऊंचे और घने वृक्ष लगे थे...और यहाँ से मोहल्ले की एक भी इमारत नजर नहीं आ रही थी....
तभी से अचानक वो काफी तेज धक्के मारने लगे..वे चरमसीमा की ओर बढ़ने लगे..मैं भी अपनी आवाजें तेज करती हुई उन्हें सपोर्ट करने लगी...तभी मेरे कानों में हल्की सुरीली हंसी पड़ी...
मैं यूँ ही कस के जकड़ी नजर घुमाई तो मेरी ही उम्र की एक गोरी चिट्टी लेडिज एक अधेड़ मर्द के साथ बगल से क्रॉस करती हम दोनों को देख हंस रही थी...मैं उन दोनों को देख बिना किसी हिचक डर के वापस पांडे संग लग गई...
तभी वो चीखते हुए चिल्ला पड़े,"आई...एएएएम...कमिंईंईईंईंईंगगगगगग..."और अपना ढ़ेर सारा लावा मेरी बूर में बहा दिए...मैं भी इस गरमी को सह नहीं पाई और उसी पल मैं भी अपनी नदी बहा दी...
पूरा झड़ने के बाद वे धम्म से मुझ पर लद गए और झड़ने के पश्चात मैं भी सुकून से आँखें बंद कर उन्हें बाँहों मे, भर ली...