मेरी सांसो की स्पीड भी सातवे आसमान पर पहुँच गयी. मेरी योनि में अजीब सी हलचल होने लगी…अचानक मेरे मूह से निकल गया ह बस……रुक जाओ और मेरी योनि ने पानी की नादिया बहा दी.
वो ज़ोर से बोला, बस एक मिनूट आआहह……..हह , और एक झटके में मेरी योनि में ढेर सारा पानी गीरा दिया.
फिर उसने धीरे से अपना लिंग निकाल लिया और बोला, मज़ा आ गया.
मैं बेहोस हो कर वही ज़मीन पर गिर गयी.
अशोक ने मुझे गोदी मे उठाया और मुझे बेड पर लेटा दिया.
वो बोला, क्या हुवा तू ठीक तो है ना ?
मेरी आँखो से अपने आप आँसू टपक रहे थे.
वो बोला, क्या तुझे पता है मेरे साथ क्या हुवा है ?
उसके बाद ग़रीबी और लाचारी ने मुझे घेर लिया. मेरी बेटी की मौत टीबी से हो गयी. मैं उसका इल्लाज भी ठीक से नही करा सका. करता भी क्या मेरी नौकरी तो तूने छीन ली थी.
मैने कहा, तुमने ही मेरा रेप करने की कोशिस की थी.
वो बोला, मुझे रेप जैसे शब्द से भी नफ़रत है. आख़िर मेरी भी एक लड़की थी.
मैने पूछा, तो तुम उस दिन मेरा पीछा क्यो कर रहे थे.
वो बोला, मैं तो बस माफी माँगना चाहता था. मैने तेरे कॉलेज की एक से एक सुंदर लड़की के साथ किया था, ये तू भी जानती होगी, मैं सिड्यूस करने में विस्वास करता हू, रेप में नही, रेप सिर्फ़ नपुंसक लोग करते है.
मैने पूछा, तो ये अब क्या था ?
वो बोला, तू खुद यहा आई थी, मैने तुझे मजबूर नही किया था.
मैने कहा, अछा वो तुम ब्लॅकमेल करने मेरे घर नही आए थे.
वो बोला, तू खुद अपने पति से सब छुपाना चाहती थी. मैने कोई ब्लॅकमेल नही किया, याद है ना तूने खुद कहा था कि मैं कुछ भी करूँगी यहा से चले जाओ.
मैं सोच रही थी की बात तो उसकी सही है. अगर मैं अपने पति को सब बता देती, तो आज यहा नही होती. पर ऐसा करना किसी भी पत्नी के लिए मुस्किल है, वो भी तब जबकि उसका पति उसे बहुत प्यार करता हो.
मेरी इसी मजबूरी का फायडा तो उसने उठाया था.
मैने सामने दीवार पर तंगी घड़ी में देखा तो 2:30 बज चुके थे.
उसने मुझे घड़ी देखते हुवे देख लिया और बोला, जाना है ना तुझे ?
मैने गुस्से में कहा, हा.
वो बोला, तेरा पति घर आने वाला होगा ना. चल तू जा अब, बाद में बात करेंगे और बेशर्मी से हँसने लगा.
मैने लड़खड़ाते हुवे कपड़े पहने. मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था.
वो बोला, बिल्लू तुझे छोड़ देगा.
मैने कहा कोई ज़रूरत नही है, मैं चली जाउन्गि.
वो बोला, तुझे यहा से बाहर का रास्ता नही मिलेगा, मेरी बात मान बिल्लू तुझे जल्दी घर छोड़ देगा.
मैं मन ही मन में उसे और बिल्लू को ढेर सारी गलिया दे रही थी.
अशोक ने दरवाजा खोल दिया और बिल्लू को आवाज़ लगाई.
वो झट से वाहा आ गया.
बिल्लू मेरी तरफ बड़ी बेशर्मी से देखते हुवे बोला, लगता है इस कमरे में तूफान आया है.
अशोक ने कहा, चुप कर और इसे घर छोड़ आ, इसका पति आने वाला है ?
मैं बड़ी लाचारी की फीलिंग लिए सब सुन रही थी.
मैं बिल्लू के साथ कमरे से बाहर निकली ही थी कि मैने देखा वही लड़का जो कूरीएर ले कर घर आया था वाहा खड़ा था.
मेरा सर घूम गया.
मुझे अब सब कुछ सॉफ हो गया था कि कितनी प्लानिंग से इन कामीनो ने मुझे फँसाया था.
मुझे देखते ही वो लड़का बड़ी बेशर्मी से, अपनी पॅंट के उपर से ही, अपने लिंग को मसल्ने लगा.
मैने गिल्ट और शरम से अपनी नज़रे झुका ली.
बिल्लू ये सब देख कर हंसते हुवे बोला, राजू डरा मत बेचारी को.
मैं चुपचाप आगे बढ़ गयी, और बाहर आ कर रिक्से में बैठ गयी.
मैं हैरान और परेशान थी कि आख़िर मेरे साथ ही ये सब क्यो हो रहा है. पर मेरे पास कोई जवाब नही था.
पर इतना ज़रूर था कि अब मुझे अपनी खिड़की से झाँकना बहुत भारी पड़ रहा था.
कोई ये सब सुनेगा तो यही समझेगा कि ये सब सच नही हो सकता और सच पूछो तो मुझे खुद भी अभी तक सब सपना सा लगता है.
पर काश ये मेरा कोई भयानक सपना ही होता तो अछा होता.
बिल्लू ने रिक्सा तेज़ी से उस स्लम एरिया से बाहर निकाल लिया.
मुझे रह, रह कर एक बात परेशान कर रही थी.
मैं ये बिल्कुल विस्वास नही कर पा रही थी कि बिल्लू का बापू कोई और नही, बल्कि वही अशोक था, जिसने मेरे साथ कॉलेज में घिनोनी हरकत की थी, और आज उसने ये सब……………
मैं हैरान थी की इतनी बड़ी साजिस आख़िर कामयाब कैसे हो गयी.
मुझ से रहा नही गया और मैने बिल्लू से गुस्से में पूछ ही लिया, तो आख़िर ये सब तुम लोगो की साजिस थी ?
वो हंसते हुवे बोला, इसे तू साजिस नही कह सकती, तू हर वक्त इसमे सामिल थी, हा तू ये ज़रूर कह सकती है कि तुझे बड़े प्यार से पटाया गया है, क्या तुझे नही लगता की तूने हर मोड़ पर हमारा साथ दिया है ?
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
मैने कहा, मैने तुम लोगो का कोई साथ नही दिया.
वो बोला, अछा, वो खिड़की से झाँक कर मेरा लंड कौन देखता था.
मैं चुप हो गयी, आख़िर वही तो मेरी छोटी सी भूल थी, जिसके कारण मैं इस मुसीबत में फँसी थी.
वो बोला, और उस दिन बारिश में अपनी गांद कौन मसलवा रहा था ?
मैने गिड़गिदते हुवे कहा प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही था.
वो बोला, और उष दिन दोपहर को कों कह रहा था की डाल दो, मार लो, तू ही थी ना ?
मई कुछ नही कह पाई.
वो बोला, और उस दिन खूब मज़े से गांद कौन मरवा रहा था ?
मैने गुस्से में कहा, बस करो अब.
वो बोला, मैं तो बस ये बता रहा था कि अगर ये साजिश थी तो तू हर पल इस में सामिल थी, और ये सब लेटर और डाइयरी का नाटक इसलिए करना पड़ा क्योंकि तूने खिड़की बंद कर दी थी और अब मिलने को तैयार भी नही थी, वरना तो हमारा प्लान था कि एक दिन अशोक हम दोनो को तेरे घर के पीछे पकड़ लेगा और फिर वो तेरी उन्ही झाड़ियो में लेगा.
में सहम गयी कि कितनी गहरी चाल थी इन लोगो की. उस से तो में बच गयी पर आज फँस गयी, और मुझे याद आ गया कि कैसे अशोक उस कमरे में मेरे साथ………….वो सब कुछ कर रहा था.
मैं कुछ भी नही कह पाई, आख़िर कहने को बचा भी क्या था.
वो बोला, हमने बस एक जाल फेंका था, तू खुद उस में आकर फँस गयी, अगर तुम हमारा साथ नही देती तो हम कभी कामयाब नही होते.
मैं गहरी चिंता में डूब गयी. वो सच ही तो कह रहा था, अगर में होश से काम लेती तो ऐसा कभी नही होता.
वो फिर बोला, क्या ये सच नही है कि तूने भी अपनी जवानी का पूरा, पूरा मज़ा लिया है ?
मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और चिल्ला कर बोली, प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही है.
वो चुपचाप रिक्सा चलाने लगा.
थोड़ी देर बाद मैने पूछा, अछा तो उस दिन पाँव में खून भी नाटक था क्या ?
वो हंसते हुवे बोला, अछा वो, वो तो मैने चिकन का ब्लड लगा रखा था, वो तो बस तुझे तेरे घर के पीछे बुलाने के लिए था, और तू आ गयी, तुझे क्या लगता है ? क्या मैं दर्द में तेरी गांद मारने का मज़ा ले पाता ?
मैने गुस्से में कहा बस चुप करो, जैसा बाप वैसा बेटा.
वो चुप हो गया और थोड़ी देर बाद बोला, अशोक मेरा बाप नही है, मेरा बाप तो गुजर चुका है.
मैने पूछा, तो फिर तुम मुझे उस कामीने के पास क्यो ले गये ? तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है.
वो बोला, अशोक कुछ भी सही पर मेरे लिए अछा है. उसने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत हिम्मत दी है. ये रिक्सा जो में चला रहा हू उसी का है.
मैने कहा उस से मुझे क्या मतलब, तुम्हे पता नही उसने मेरे साथ क्या किया था.
वो बोला, मुझे सब पता है. उसने मुझे सब बताया है. तेरे कारण उसकी नौकरी चली गयी, उसकी बेटी बिना इलाज के मर गयी. तेरे साथ, साथ तेरा बाप भी दोषी है.
मैने कहा, मेरे पापा को इसमे मत घसीतो, उनकी कोई ग़लती नही है.
वो हँसने लगा और बोला, ये तो वक्त ही बताएगा कि किसकी ग़लती है.
मैने पूछा, तुम लोग ग़लत काम भी करते हो और उसे सही भी बताते हो, आख़िर तुम कैसे इंसान हो.
वो पीछे मूड कोर बोला, तेरे जैसी मस्त आइटम को पटाने के लिए अगर मरना भी पड़े तो कम है, जो हमने किया वो तो कुछ भी नही था, तुझे पता नही तू कितनी सुंदर है, जो मज़ा तेरे साथ आया है आज तक कभी नही मिला था.
मैं ना चाहते हुवे भी एक पल को शर्मा गयी, और अपनी नज़रे झुका ली.
मैने पूछा, पर तुम्हे ये सब नाटक करने की क्या ज़रूरत थी, मैने तुम्हे अपना सब कुछ दे दिया और तुमने मुझे बर्बाद कर दिया.
वो ज़ोर से हँसने लगा और बोला, अभी तू कुछ नही समझेगी, वक्त आने दे तुझे सब पता चल जाएगा.
मैं सोच में पड़ गयी की आख़िर ये किस वक्त का इंतेज़ार कर रहा है.
वो बोला, अछा, वो खिड़की से झाँक कर मेरा लंड कौन देखता था.
मैं चुप हो गयी, आख़िर वही तो मेरी छोटी सी भूल थी, जिसके कारण मैं इस मुसीबत में फँसी थी.
वो बोला, और उस दिन बारिश में अपनी गांद कौन मसलवा रहा था ?
मैने गिड़गिदते हुवे कहा प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही था.
वो बोला, और उष दिन दोपहर को कों कह रहा था की डाल दो, मार लो, तू ही थी ना ?
मई कुछ नही कह पाई.
वो बोला, और उस दिन खूब मज़े से गांद कौन मरवा रहा था ?
मैने गुस्से में कहा, बस करो अब.
वो बोला, मैं तो बस ये बता रहा था कि अगर ये साजिश थी तो तू हर पल इस में सामिल थी, और ये सब लेटर और डाइयरी का नाटक इसलिए करना पड़ा क्योंकि तूने खिड़की बंद कर दी थी और अब मिलने को तैयार भी नही थी, वरना तो हमारा प्लान था कि एक दिन अशोक हम दोनो को तेरे घर के पीछे पकड़ लेगा और फिर वो तेरी उन्ही झाड़ियो में लेगा.
में सहम गयी कि कितनी गहरी चाल थी इन लोगो की. उस से तो में बच गयी पर आज फँस गयी, और मुझे याद आ गया कि कैसे अशोक उस कमरे में मेरे साथ………….वो सब कुछ कर रहा था.
मैं कुछ भी नही कह पाई, आख़िर कहने को बचा भी क्या था.
वो बोला, हमने बस एक जाल फेंका था, तू खुद उस में आकर फँस गयी, अगर तुम हमारा साथ नही देती तो हम कभी कामयाब नही होते.
मैं गहरी चिंता में डूब गयी. वो सच ही तो कह रहा था, अगर में होश से काम लेती तो ऐसा कभी नही होता.
वो फिर बोला, क्या ये सच नही है कि तूने भी अपनी जवानी का पूरा, पूरा मज़ा लिया है ?
मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और चिल्ला कर बोली, प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही है.
वो चुपचाप रिक्सा चलाने लगा.
थोड़ी देर बाद मैने पूछा, अछा तो उस दिन पाँव में खून भी नाटक था क्या ?
वो हंसते हुवे बोला, अछा वो, वो तो मैने चिकन का ब्लड लगा रखा था, वो तो बस तुझे तेरे घर के पीछे बुलाने के लिए था, और तू आ गयी, तुझे क्या लगता है ? क्या मैं दर्द में तेरी गांद मारने का मज़ा ले पाता ?
मैने गुस्से में कहा बस चुप करो, जैसा बाप वैसा बेटा.
वो चुप हो गया और थोड़ी देर बाद बोला, अशोक मेरा बाप नही है, मेरा बाप तो गुजर चुका है.
मैने पूछा, तो फिर तुम मुझे उस कामीने के पास क्यो ले गये ? तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है.
वो बोला, अशोक कुछ भी सही पर मेरे लिए अछा है. उसने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत हिम्मत दी है. ये रिक्सा जो में चला रहा हू उसी का है.
मैने कहा उस से मुझे क्या मतलब, तुम्हे पता नही उसने मेरे साथ क्या किया था.
वो बोला, मुझे सब पता है. उसने मुझे सब बताया है. तेरे कारण उसकी नौकरी चली गयी, उसकी बेटी बिना इलाज के मर गयी. तेरे साथ, साथ तेरा बाप भी दोषी है.
मैने कहा, मेरे पापा को इसमे मत घसीतो, उनकी कोई ग़लती नही है.
वो हँसने लगा और बोला, ये तो वक्त ही बताएगा कि किसकी ग़लती है.
मैने पूछा, तुम लोग ग़लत काम भी करते हो और उसे सही भी बताते हो, आख़िर तुम कैसे इंसान हो.
वो पीछे मूड कोर बोला, तेरे जैसी मस्त आइटम को पटाने के लिए अगर मरना भी पड़े तो कम है, जो हमने किया वो तो कुछ भी नही था, तुझे पता नही तू कितनी सुंदर है, जो मज़ा तेरे साथ आया है आज तक कभी नही मिला था.
मैं ना चाहते हुवे भी एक पल को शर्मा गयी, और अपनी नज़रे झुका ली.
मैने पूछा, पर तुम्हे ये सब नाटक करने की क्या ज़रूरत थी, मैने तुम्हे अपना सब कुछ दे दिया और तुमने मुझे बर्बाद कर दिया.
वो ज़ोर से हँसने लगा और बोला, अभी तू कुछ नही समझेगी, वक्त आने दे तुझे सब पता चल जाएगा.
मैं सोच में पड़ गयी की आख़िर ये किस वक्त का इंतेज़ार कर रहा है.
Re: छोटी सी भूल
हम एक दूसरे से बहस कर रहे थे कि अचानक मुझे सामने से साइकल पर वही घिनोनी सूरत वाला आदमी आता दिखाई दिया जो कि उस दिन रिक्से में मुझे परेसान कर रहा था.
मैने झट से सर घुमा लिया, कि कही वो कमीना फिर से परेशान करने ना आ जाए.
पर जिस बात का डर था वही हुवा, उसने मुझे और बिल्लू को पहचान लिया और अपनी साइकल मोड़ कर हमारे रिक्से के पीछे लगा दी.
मैं मन ही मन सोचने लगी कि बस इसी की कमी रह गयी थी.
मेरा दिल ज़ोर, ज़ोर से धड़कने लगा.
मुझे लग रहा था कि शायद ये आदमी भी इन्ही लोगो के साथ है.
वो तेज़ी से रिक्से के बिल्कुल पास आ गया और साथ, साथ चलने लगा.
मैं और ज़्यादा सहम गयी, मैने मन ही मन कहा, ओह नो, नोट अगेन.
वो बोला, अरे वह लगता है तुम दोनो का गरमा, गरम चक्कर चल रहा है.
मैं मन ही मन पिश कर रह गयी.
उसने बिल्लू से पूछा, क्यो बे, ली की नही इस परी की ?
बिल्लू ने उसे डाँटते हुवे कहा, आबे चल आगे बढ़, अपना काम कर.
वो बोला, अपना काम ही तो कर रहा हू.
उसने मेरी और देखा और बोला, क्या बात है मेरी जान आज तो कमाल लग रही हो.
मैने उसकी और गुस्से से देखा, वो बड़ी बेशर्मी से मेरी और मुस्कुरा रहा था.
उसे देखते ही मेरा मन उल्टी करने का हो गया, बहुत बदसूरत जो था वो.
वो बोला, आजा मेरी जान आज मुझे भी दे दे.
बिल्लू ने रिक्सा रोक दिया, और रिक्से से नीचे उतर गया, वो आदमी चुपचाप पीछे देखते हुवे आगे बढ़ गया.
मैने चैन की साँस ली.
मैने पूछा, इस सब नाटक के पीछे तुम लोगो का क्या मकसद है ? इस आदमी से तुम लोग मुझे जॅलील क्यो करवा रहे हो, मुझे बर्बाद तो कर ही चुके हो अब इश्कि क्या ज़रूरत है तुम लोगो को ?
बिल्लू बोला, मैं उसे नही जानता, और ये कोई नाटक नही था, अगर वो हमारे साथ होता तो उसे घर ही ना बुला लेते तुझे जॅलील करने को.
मैं चुप हो गयी.
बिल्लू बोला, और हमने तुझे बर्बाद नही किया है, तुझे तेरी जवानी के मज़े दिए है.
मैने कहा, बंद करो ये बकवास और मुझे जल्दी घर छोड़ दो मैं लेट हो रही हू.
फिर हमारे बीच कोई बात नही हुई.
बिल्लू ने ठीक 3 बजे रिक्सा घर के सामने लगा दिया. घर पर लॉक था, मतलब कि संजय अभी नही आए थे.
बिल्लू बोला, मैं फोन करूँगा.
मैने गुस्से में कहा ऐसी जुर्रत भी मत करना, अब तुम लोगो का कोई नाटक नही चलेगा, दफ़ा हो जाओ यहा से.
वो बोला, मैं तो तेरे लिए कह रहा था, तू तो शरमाती है, कभी खुद तो बुलाएगी नही.
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और आगे बढ़ गयी.
मैने देखा कि, घर के दरवाजे पर एक नोट लगा था.
उस पर लिखा था कि चिंटू मौसी के घर है.
क्योंकि मैं घर पर नही थी इश्लीए मौसी चिंटू को लेकर अपने घर चली गयी थी.
मैं ताला खोल कर जल्दी से अंदर आ गयी.
मैने फॉरन कपड़े चेंज किए और फटाफट किचन में खाना बना-ने लग गयी.
आज मैं फिर से संजय को बिना लंच किए घर से नही भेज सकती थी. मेरे साथ तो जो हो रहा था सो हो रहा था, मैं अपने पति को कोई दुख नही देना चाहती थी.
संजय 3:30 पर घर आ गये. मैं चिंटू को भी मौसी के यहा से ले आई. हम सब ने एक साथ लंच किया.
पर सच तो ये था की खाना मेरे गले से उतर ही नही रहा था, मुझे रह, रह कर, बिल्लू के घर मेरे साथ जो भी हुवा याद आ रहा था, और मैं गिल्ट से मरी जा रही थी.
संजय ने मुझ से पूछा, अरे ऋतु आजकल तुम्हे क्या हो गया है, किस सोच में डूबी रहती हो तुम, सब ठीक तो है ना ?
मैं हड़बड़ा गयी और मैने धीरे से कहा, हा सब ठीक है बस यू ही.
संजय बोले, अगर मोम, डॅड की याद आ रही है तो चली जाओ, जाकर मिल आओ.
मैने कहा, नही ऐसी कोई बात नही है.
संजय बोले, और हा तुम कह रही थी ना कि कोई काम तलाश करना, मेरे दोस्त ने एक कंपनी खोली है तुम इस वीक कभी भी, वाहा जाकर मिल आओ, मैने बात कर ली है, मॅनेजर लेवेल की पोस्ट मिल जाएगी, अछा लगे तो जोइन कर लेना.
मैने झट से सर घुमा लिया, कि कही वो कमीना फिर से परेशान करने ना आ जाए.
पर जिस बात का डर था वही हुवा, उसने मुझे और बिल्लू को पहचान लिया और अपनी साइकल मोड़ कर हमारे रिक्से के पीछे लगा दी.
मैं मन ही मन सोचने लगी कि बस इसी की कमी रह गयी थी.
मेरा दिल ज़ोर, ज़ोर से धड़कने लगा.
मुझे लग रहा था कि शायद ये आदमी भी इन्ही लोगो के साथ है.
वो तेज़ी से रिक्से के बिल्कुल पास आ गया और साथ, साथ चलने लगा.
मैं और ज़्यादा सहम गयी, मैने मन ही मन कहा, ओह नो, नोट अगेन.
वो बोला, अरे वह लगता है तुम दोनो का गरमा, गरम चक्कर चल रहा है.
मैं मन ही मन पिश कर रह गयी.
उसने बिल्लू से पूछा, क्यो बे, ली की नही इस परी की ?
बिल्लू ने उसे डाँटते हुवे कहा, आबे चल आगे बढ़, अपना काम कर.
वो बोला, अपना काम ही तो कर रहा हू.
उसने मेरी और देखा और बोला, क्या बात है मेरी जान आज तो कमाल लग रही हो.
मैने उसकी और गुस्से से देखा, वो बड़ी बेशर्मी से मेरी और मुस्कुरा रहा था.
उसे देखते ही मेरा मन उल्टी करने का हो गया, बहुत बदसूरत जो था वो.
वो बोला, आजा मेरी जान आज मुझे भी दे दे.
बिल्लू ने रिक्सा रोक दिया, और रिक्से से नीचे उतर गया, वो आदमी चुपचाप पीछे देखते हुवे आगे बढ़ गया.
मैने चैन की साँस ली.
मैने पूछा, इस सब नाटक के पीछे तुम लोगो का क्या मकसद है ? इस आदमी से तुम लोग मुझे जॅलील क्यो करवा रहे हो, मुझे बर्बाद तो कर ही चुके हो अब इश्कि क्या ज़रूरत है तुम लोगो को ?
बिल्लू बोला, मैं उसे नही जानता, और ये कोई नाटक नही था, अगर वो हमारे साथ होता तो उसे घर ही ना बुला लेते तुझे जॅलील करने को.
मैं चुप हो गयी.
बिल्लू बोला, और हमने तुझे बर्बाद नही किया है, तुझे तेरी जवानी के मज़े दिए है.
मैने कहा, बंद करो ये बकवास और मुझे जल्दी घर छोड़ दो मैं लेट हो रही हू.
फिर हमारे बीच कोई बात नही हुई.
बिल्लू ने ठीक 3 बजे रिक्सा घर के सामने लगा दिया. घर पर लॉक था, मतलब कि संजय अभी नही आए थे.
बिल्लू बोला, मैं फोन करूँगा.
मैने गुस्से में कहा ऐसी जुर्रत भी मत करना, अब तुम लोगो का कोई नाटक नही चलेगा, दफ़ा हो जाओ यहा से.
वो बोला, मैं तो तेरे लिए कह रहा था, तू तो शरमाती है, कभी खुद तो बुलाएगी नही.
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और आगे बढ़ गयी.
मैने देखा कि, घर के दरवाजे पर एक नोट लगा था.
उस पर लिखा था कि चिंटू मौसी के घर है.
क्योंकि मैं घर पर नही थी इश्लीए मौसी चिंटू को लेकर अपने घर चली गयी थी.
मैं ताला खोल कर जल्दी से अंदर आ गयी.
मैने फॉरन कपड़े चेंज किए और फटाफट किचन में खाना बना-ने लग गयी.
आज मैं फिर से संजय को बिना लंच किए घर से नही भेज सकती थी. मेरे साथ तो जो हो रहा था सो हो रहा था, मैं अपने पति को कोई दुख नही देना चाहती थी.
संजय 3:30 पर घर आ गये. मैं चिंटू को भी मौसी के यहा से ले आई. हम सब ने एक साथ लंच किया.
पर सच तो ये था की खाना मेरे गले से उतर ही नही रहा था, मुझे रह, रह कर, बिल्लू के घर मेरे साथ जो भी हुवा याद आ रहा था, और मैं गिल्ट से मरी जा रही थी.
संजय ने मुझ से पूछा, अरे ऋतु आजकल तुम्हे क्या हो गया है, किस सोच में डूबी रहती हो तुम, सब ठीक तो है ना ?
मैं हड़बड़ा गयी और मैने धीरे से कहा, हा सब ठीक है बस यू ही.
संजय बोले, अगर मोम, डॅड की याद आ रही है तो चली जाओ, जाकर मिल आओ.
मैने कहा, नही ऐसी कोई बात नही है.
संजय बोले, और हा तुम कह रही थी ना कि कोई काम तलाश करना, मेरे दोस्त ने एक कंपनी खोली है तुम इस वीक कभी भी, वाहा जाकर मिल आओ, मैने बात कर ली है, मॅनेजर लेवेल की पोस्ट मिल जाएगी, अछा लगे तो जोइन कर लेना.