एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:21

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अब आगे....

सुबह हुई, नहा धो के फ्रेश हो के बैठ गया| बड़के दादा और पिताजी ठाकुर से बात करने जाने वाले थे|

मैं: पिताजी आप और दादा कहाँ जा रहे हो?

पिताजी: ठाकुर से बात करने|

मैं: तो आप क्यों जा रहे हो, उन्हें यहाँ बुलवा लो|

पिताजी: नहीं बेटा हमें ही जाके बात करनी चाहिए|

पिताजी और बड़के दादा चले गए, और मैं उत्सुकता से आँगन में टहल रहा था की पता नहीं वहां क्या होगा? अगर माहुरी फिर से ड्रामे करने लगी तो? इधर घर की सभी औरतें मंदिर जा चुकीं थी ... घर में बस मैं और नेहा ही थे| नेहा बैट और बॉल ले आई, और मैं और वो उससे खेलने लगे| तभी पिताजी और बड़के दादा वापस आ गए|

मैं: क्या हुआ? आप इतनी जल्दी मना कर के आ गए?

बड़के दादा: नहीं मुन्ना, ठाकुर साहब घर पे नहीं थे कहीं बहार गए हैं, कल लौटेंगे|

इतना बोल के वे भी खेत चले गए| अब तो मैं ऊब ने लगा था... घर अकेला छोड़ के जा भी नहीं सकता था| करीब बारह बज रहे थे; घडी में भी और मेरे भी! सुबह से सिर्फ चाय ही पी थी वो भी ठंडी! मैंने नेहा को दस रूपए दिए और उसे चिप्स लाने भेज दिया, भूख जो लग रही थी| दस मिनट में नेहा चिप्स ले आई और हम दोनों बैठ के चिप्स खाने लगे, तभी भौजी और सभी औरतें लौट आईं|

बड़की अम्मा: मुन्ना चिप्स काहे खा रहे हो?

मैं: जी भूख लगी थी, घर पे कोई नहीं था तो नेहा को भेज के चिप्स ही मँगवा लिए|

माँ: हाँ भई शहर में होते तो अब तक खाने का आर्डर दे दिया होता|

भौजी हंसने लगी !!!

मैं: आप क्यों हंस रहे हो?

भौजी: क्यों मैं हंस भी नहीं सकती|

भौजी ने नाश्ते में पोहा बनाया था, तब जाके कुछ बूख शांत हुई! नाश्ते के बाद मैं खेत की ओर चल दिया, इतने दिनों से घर पे जो बैठ था| सोचा चलो आज थोड़ी म्हणत मजदूरी ही कर लूँ? पर हंसिए से फसल काटना आये तब तो कुछ करूँ, मुझे तो हंसिया पकड़ना ही नहीं आता था| अब कलम पकड़ने वाला क्या जाने हंसिया कैसे पकड़ते हैं? फिर भी एक कोशिश तो करनी ही थी, मैंने पिताजी से हंसिया लिया ओर फसल काटने के लिए बैठ गया, अब हंसिया तो ठीक-ठाक पकड़ लिया पर काटते कैसे हैं ये नहीं आत था| इधर-उधर हंसिया घुमाने के बाद मैंने हार मान ली|

पिताजी: बस! थक गए? बेटा तुम्हारा काम पेन चलना है हंसिया नहीं| जाओ घर जाओ और औरतों को कंपनी दो|

अब तो बात इज्जत पे आ गई थी| मैंने आव देखा न ताव फसल को जड़ से पकड़ के खींच निकला| अब तो मैं जोश से भर चूका था, इसलिए एक बार में जितनी फसल हाथ में आती उसे पकड़ के खींच निकालता| ये जोश देख के पिताजी हंस रहे थे... अजय भैया और चन्दर भैया जो कुछ दूरी पर फसल काट रहे थे वो भी ये तमाशा देखने आ गए|

बड़के दादा: अरे मुन्ना रहने दो| तुम शहर से यहाँ यही काम करने आये हो?

पिताजी अब भी हंस रहे थे और मैं रुकने का नाम नहीं ले रहा था| तो बड़के दादा ने उन्हें भी डाँट के चुप करा दिया|

बड़के दादा: तुम हंसना बंद करो, हमारा मुन्ना खेत में मजदूरी करने नहीं आया है|

मैं: दादा .. आखिर मैं हूँ तो एक किसान का ही पोता| ये सब तो खून में होना चाहिए| अब ये तो शहर में रहने से इस काम की आदत नहीं पड़ी, ये भी तजुर्बा कर लेने दो| काम से काम स्कूल जाके अपने दोस्तों से कह तो सकूंगा की मैंने भी एक दिन खेत में काम किया है|

मेरे जोश को देखते हुए उन्होंने मुझे हंसिया ठीक से चलाना सिखाया, मैं उनकी तरह माहिर तो नहीं हुआ पर फिर भी धीमी रफ़्तार से फसल काट रहा था| समय बीता और दोपहर के दो बज गए थे और नेहा हमें भोजन के लिए बुलाने आ गई|भोजन करते समय बड़के दादा मेरे खेत में किये काम के लिए शाबाशी देते नहीं थक रहे थे| खेर भोजन के उपरान्त, सब खेत की ओर चल दिए जब मैं जाने के लिए निकलने लगा तो भौजी ने मुझे रोकना चाहा|

भौजी: कहाँ जा रहे हो "आप"?

मैं: खेत में

भौजी: "आपको" काम करने की क्या जर्रूरत है? "आप" घर पर ही रहो.. मेरे पास! आप शहर से यहाँ काम करने नहीं आये हो| मेरे पास बैठो कुछ बातें करते हैं|

मैं: मेरा भी मन आपके पास बैठने को है पर आज आपका व्रत है| और अगर मैं आपके पास बैठा तो मेरा मन आपको छूने का करेगा| इसलिए अपने आपको व्यस्त रख रहा हूँ|

भौजी थोड़ा नाराज हुई, पर मैं वहां रुका नहीं और खेत की ओर चल दिया|

घर से खेत करीब पंद्रह मिनट की दूरी पे था.... जब मैं आखिर में खेत पहुंचा तो पिताजी, बड़के दादा समेत सभी मुझे वापस भेजना चाहते थे, पर वापस जा के मैं क्या करता इसलिए जबरदस्ती कटाई में लग गया| अजय भैया के पास शादी का निमंत्रण आया था तो उन्हें चार बजे निकलना था और चन्दर भैया भी उनके साथ जाने वाले थे|अभी साढ़े तीन ही बजे थे की दोनों भाई तैयार होने के लिए घर की ओर चल दिए| वे मुझे भी साथ ले जाने का आग्रह कर रहे थे परन्तु मैं नहीं माना|शाम के पाँच बजे थे, मौसम का मिज़ाज बदलने लगा था| काले बदल आसमान में छा चुके थे... बरसात होने की पूरी सम्भावना थी| इधर खेत में बहुत सा भूसा पड़ा था, अगर बरसात होगी तो सारा भूसा नष्ट हो जायेगा| दोनों भैया तो पहले ही जा चुके थे, अब इस भूसे को कौन घर तक ले जाए? खेत में केवल मैं. पिताजी और बड़के दादा थे| मैंने स्वयं बड़के दादा से कहा; "दादा आप बोरों में भूसा भरो मैं इसे घर पहुँचता हूँ|" बड़के दादा मना करने लगे पर पिताजी के जोर देने पे वो मान गए| मैंने आज से पहले कभी इस तरह सामान नहीं ढोया था|पिताजी भी इस काम जुट गए, मैं एक-एक कर बोरों को लाद के घर ला रहा था... पसीने से बुरा हाल था| मैंने गोल गले की लाल टी-शर्ट पहनी थी, जो पसीने के कारण मेरे शरीर से चिपक गई थी| अब मेरी बॉडी सलमान जैसी तो थी नहीं पर भौजी के अनुसार मैं "सेक्सी" लग रहा था| जब मैं बोरियां उठा के ला रहा था तो बाजुओं की मसल अकड़ जातीं और टी-शर्ट में से मसल साफ़ दिखती|

मेरा इन बातों पे ध्यान नहीं था... अब केवल तीन बोरियां शेष रह गई थीं| जब मैं पहली बोरी लेके आरहा था तभी माधुरी मेरे सामने आके खड़ी हो गई| मैंने उसकी ओर देखा फिर नज़र फेर ली और बोरी रखने चला गया| जब बोरी लेके लौटा तब माधुरी बोली: "तो अब आप मुझसे बात भी नहीं करोगे?" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और दूसरी बोरी उठाने चला गया, जब तक मैं लौटता माधुरी हाथ बांधे प्यार भरी नजरों से मुझे देख रही थी|

माधुरी: मेरी बात तो सुन लो?

मैं: हाँ बोलो| (मैंने बड़े उखड़े हुए अंदाज में जवाब दिया|)

माधुरी: कल मैं आपसे I LOVE YOU कहने आई थी| पर भाभी ने मेरी बात सुने बिना ही झाड़ दिया|

मैं: मैंने कल भी तुम से कहा था, मैं तुमसे प्यार नहीं करता| तुम क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने में तुली हो !!!

मेरी आवाज में कठोरता झलक रही थी, और आवाज भी ऊँची थी जिसे सुन के भौजी भी भागी-भागी आईं| मैंने उन्हें हाथ के इशारे से वहीँ रोक दिया... मैं नहीं चाहता था की खामा-खा वो इस पचड़े में पड़े| तभी पीछे से पिताजी भी आखरी बोरी ले के आ गए और उनके पीछे ही बड़के दादा भी आ गए|

पिताजी: क्या हुआ पुत्तर यहाँ क्यों खड़े हो? अरे माधुरी बेटा.. तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

माधुरी: जी मैं....

मैं: ये फिर से कल का राग अलाप रही है|

इतना कह के मैं वहां से चला गया| पिताजी और बड़के दादा उसे समझाने में लगे हुए थे... मैं वापस आया और चारपाई पे बैठ के दम लेने लगा|भौजी मेरे लिए पानी लाईं और माधुरी के बारे में पूछने लगी:

भौजी: क्यों आई थी ये?

मैं: कल वाली बात दोहरा रही थी|

भौजी: "आपने" कुछ कहा नहीं उसे?

मैं: नहीं, जो कहना है कल पिताजी और बड़के दादा कह देंगे| छोडो इन बातों को.... आप तो पूजा के लिए जा रहे होगे? मौसम ख़राब है... छाता ले जाना|

मैं थोड़ी देर लेट के आराम करने लगा... तभी पिताजी और बड़के दादा भी मेरे पास आके बैठ गए|

मैं: आपने उसे कुछ कहा तो नहीं?

पिताजी: नहीं, बस कह दिया की कल हम आके बात करेंगे|

बड़के दादा: मुन्ना तुम चिंता मत करो, कल ये मामला निपटा देंगे|अब तुम जाके नाहा धोलो... तरो-ताज़ा महसूस करोगे|

घर की सभी औरतें पूजा के लिए चली गई थी| मैं कुछ देर बैठा रहा... पसीना सूख गया तब मैं स्नान करने बड़े घर की ओर चल दिया| मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था, जो की शायद मेरी गलती थी! मैंने अपने नए कपडे निकाले, हैंडपंप से पानी भरा और पसीने वाले कपडे निकाले और नहाने लगा| शाम का समय था इसलिए पानी बहुत ठंडा था, ऊपर से मौसम भी ठंडा था| नहाने के बाद मैं काँप रहा था इसलिए मैंने जल्दी से कपडे बदले| मैं कमरे में खड़ा अपने बाल ही बना रहा था की, तभी भौजी अंदर आ गई तब मुझे याद आया की मैं दरवाजा बंद करना तो भूल गया| भौजी की हाथ में पूजा की थाली जिसे उन्होंने चारपाई पे रखा और मेरे पास आईं| इससे पहले की मैं कुछ बोलता उन्होंने आगे बढ़ के मेरे पाँव छुए, मैं सन्न था की भला वो मेरे पाँव क्यों छू रही हैं? आम तोर पे मैं अगर कोई मेरे पैर छूता है तो मैं छिटक के दूर हो जाता हूँ, क्यों की मुझे किसी से भी अपने पाँव छूना पसंद नहीं| परन्तु आजकी बात कुछ और ही थी, मैं नाजाने क्यों नहीं हिला| मैंने भौजी को कंधे से पकड़ के उठाया;

मैं: ये क्या कर रहे थे आप? आपको पता है न मुझे ये सब पसंद नहीं|

भौजी: पूजा के बाद पंडित जी ने कहा था की सभी स्त्रियों को अपने पति के पैर छूने चाहिए| मैंने "आपको" ही अपना पति माना है इसलिए आपके पैर छुए| उनकी बात सुनके मेरे कान सुर्ख लाल हो गए!! मैं उन्हें आशीर्वाद तो नहीं दे सकता था, इसलिए मैंने उन्हें गले लगा लिया| ऐसा लग रहा था मनो ये समां थम सा गया हो! मन नहीं कर रहा था उन्हें खुद से दूर करने का!!!

भौजी: अच्छा अब मुझ छोडो, मुझे भोजन भी तो पकाना है|

मैं: मन नहीं कर रहा आपको छोड़ने का|

भौजी: अच्छा जी... कोई आ रहा है!!!

मैंने एक दम से भौजी को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया| भौजी दूर जा के हंसने लगी, क्योंकि कोई नहीं आ रहा था| मैं भी अपने सर पे हाथ फेरते हुए हंसने लगा| उनकी इस दिल्लगी पे मुझे बहुत प्यार आ रहा था|

मैं: बहुत शैतान हो गए हो आप.... भोजन के बाद मेरे पास बैठना कुछ पूछना है|

भौजी: क्या? बताओ?

मैं: अभी नहीं, देर हो रही होगी आपको|

हम दोनों साथ-साथ बहार आये, और मैंने बड़े घर में ताला लगाया और हम रसोई की ओर चल दिए| वहां पहुँच के देखा की, माँ पिताजी के पाँव छू रही है ओर बड़की अम्मा बड़के दादा के पाँव छू रही हैं| पिताजी और बड़के दादा उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे| ये दृश्य मेरे लिए आँखा था!!!

भौजी हाथ-मुंह धो के रसोई पकाने के लिए चली गईं और मैं बड़के दादा और पिताजी के पास लेट गया| नेहा मेरे पास आके गोद में बैठ गई और मैं उसके साथ खेलने लगा| मेरा वहां बैठने का कारन यही था की उन्हें मेरा बर्ताव सामान्य लगे| क्योंकि जब से मैं आया था मैं सिर्फ भौजी के आस-पास मंडराता रहता था, ख़ास तोर पे जब वो बीमार पड़ी तब तो मैंने उन्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा था|

भोजन के पश्चात पिताजी और बड़के दादा तो अपनी चारपाई पे लेट चुके थे और मेरी चारपाई हमेशा की तरह सबसे दूर भौजी के घर के पास लगी थी| जब माँ और बड़की अम्मा अपने बिस्तर में लेट गईं तब भौजी मेरे पास आके बैठ गईं;

भौजी: तो अब बताओ की "आपने" क्या बात करनी थी?

मैं: मैंने एक चीज़ गौर की है, आपने मेरे लिए एक-दो दिनों से "आप, आपने, आपको, इन्हें" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है?

भौजी: "आपने" भी तो मुझे "भौजी" कहना बंद कर दिया?

मैं: वो इसलिए क्योंकि अब हमारे बीच में "देवर-भाभी" वाला प्यार नहीं रहा| आप मुझे अपना पति मान चुके हो और मैं आपको अपनी पत्नी तो मेरा आपको भौजी कहना मुझे उचित नहीं लगा|

भौजी: मुझे आगे बोलने की कोई जरुरत है?

मैं: नहीं... मैं समझ गया!

भौजी: आज आप बहुत "सेक्सी" लग रहे थे!!!

मैं: अच्छा जी???

भौजी: पसीना के कारन आपकी लाल टी-शर्ट आपके बदन से चिपकी हुई थी, मेरा तो मन कर रहा था की आके आपसे लिपट जाऊँ! पर घर पर सभी थे.. इसलिए नहीं आई!!! ना जाने क्यों मेरा कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया|
आपके पास और ऐसी टी-शर्ट हैं जो आपके बदन से चिपकी रहे?

मैं: नहीं... मुझे ढीले-ढाले कपडे पहनना अच्छा लगता है|

भौजी: तो मतलब मुझे फिर से आपको ऐसे देखने का मौका कभी नहीं मिलेगा?

मैं: अगर आप बाजार चलो मेरे साथ तो खरीद भी लेता.. मुझे तो यहाँ का ज्यादा पता भी नहीं|

भौजी: ठीक है मैं चलूंगी... पर घर में क्या बोल के निकलेंगे?

मैं: मुझे क्या पता? आप सोचो?

भौजी: तुम्हारे पास ही सारे आईडिया होते हैं.. तुम्हीं रास्ता निकाल सकते हो|

मैं: सोचता हूँ|

भौजी: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं आपसे एक बात पूछूं?

मैं: हाँ

भौजी: आपने ये सब कहाँ से सीखा?

मैं: क्या मतलब सब सीखा?

भौजी: मेरा मतलब, हमने जब भी सम्भोग किया तो आपको सब पता था| आपको पता है की स्त्री के कौन से अंग को कैसे सहलाया जाता है? कैसे उसे खुश किया जाता है...
(इतना कहते हुए वो झेंप गईं!!!)

मैं: (अब शर्म तो मुझे भी आ रही थी पर कहूँ कैसे?) दरअसल मैंने ये PORN MOVIE में देखा था|

भौजी: ये PORN MOVIE क्या होता है?

मैंने उन्हें बताया की स्कूल में मेरे एक दोस्त के घर पर मैंने वो मूवी देखि थी| उस दिन उसके पिताजी शहर से बहार थे और उसकी माँ पड़ोस में किसी के घर गईं थी| मेरे दोस्त ने मुझे अपने घर पढ़ने के बहाने से बुलाया और हम उसके DVD प्लेयर पर वो मूवी देखने लगे| ये पहली बार था जब मैं PORN मूवी देखि थी| वो मूवी मेरे दिमाग में छप गई थी, पर मैंने उस मूवी में देखे एक भी सीने को भौजी के साथ नहीं किया था और ना ही करे का कोई इरादा था| भौजी की रूचि उस मूवी की कहनी सुनने में थी, सो मैं उन्हें पूरी कहानी सुनाने लगा| एक-एक दृश्य उन्हें ऐसे बता रहा था जैसे मैं उनके साथ वो दृश्य कर रहा हूँ| भौजी बड़े गौर से मेरी बातें दूँ रही थी... अंततः कहानी पूरी हुई और मैंने भौजी को सोने जाने को बोला|नेहा तो पहले से ही चुकी थी, और इस कहानी सुनाने के दौरान मैं उत्तेजित हो चूका था| सो मेरा मन भौजी के बदन को स्पर्श करने को कर रहा था| पर चूँकि आज सारा दिन व्रत के कारन भौजी ने कुछ खाया-पिया नहीं था| इसलिए मेरा कुछ करना मुझे उचित नहीं लगा ... थकावट इतनी थी की लेटते ही सो गया|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:22

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अब आगे...

सुबह उठने में काफी देर हो गई... सूरज सर पे चढ़ चूका था| बड़के दादा, बड़की अम्मा और पिताजी खेत जा चुके थे| घर में केवल मैं, माँ, नेहा और माँ ही रह गए थे| मैं एक दम से उठ के बैठा, आँखें मलते हुए भौजी को ढूंढने लगा| भौजी मुझे मटकी में दूध ले के आती हुई दिखाई दीं|

मैं: आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?

भौजी: कल आप बहुत थक गए थे इसलिए पिताजी का कहना था की आपको सोने दिया जाए| और वैसे भी उठ के आपने कहाँ जाना था?

मैं: खेत...

भौजी: आपको मेरी कसम है आप खेत नहीं जाओगे... कल की बात और थी| कल व्रत के कारन आप मुझसे दूर थे पर आज तो कोई व्रत नहीं है| चलो जल्दी से नहा धो लो, मैं चाय बनाती हूँ|

मैं: अच्छा एक बात बताओ, पिताजी और बड़के दादा गए थे बात करने?

भौजी: आप नहा धो के आओ, फिर बताती हूँ|


मैं नहा धो के जल्दी से वापस आया, तब माँ भी वहीँ बैठी थी| उन्होंने भौजी से कहा; "बहु बेटा, मानु के लिए चाय ले आना|" और भौजी जल्दी से चाय ले आईं| चाय पेट हुए माँ ने बताया की पिताजी और बड़के दादा गए थे ठाकुर से बात करने| पर माधुरी अब भी अपनी जिद्द पे अड़ी है, कहती है की वो अपनी जान दे देगी अगर तुम ने हाँ नहीं बोला| हमारे पास और कोई चारा नहीं है, सिवाए पंचायत में जाने के| बदकिस्मती से तुम्हें भी पंचायत में अाना होगा| मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी की मुझे उस लड़की वजह से पंचायत तक में अपनी बत्ती लगवानी होगी| मैं बहुत परेशान था.... खून खोल रहा था| उस लड़की पे मुझे इतना गुस्सा आ रहा था की .... मैं हिंसक प्रवत्ति का नहीं था इसीलिए चुप था! मैं उठा और अभी कुछ ही दूर गया था की माँ की आवाजे आई: "बेटा, उस लड़की से दूर रहना! वरना वो तुम्हारे ऊपर कोई गलत इलज़ाम ना लगा दे|" ये मेरे लिए एक चेतावनी थी!!!

मैं वहीँ ठिठक के रह गया और वापस मुदा और आँगन में कुऐं की मुंडेर पे बैठ गया| सर नीचे झुकाये सोचने लगा... की कैसे मैं अपना पक्ष पांचों के सामने रखूँगा| चार घंटे कैसे बीते मुझे पता ही नहीं... भौजी मेरे पास आईं मुझे भोजन के लिए बुलाने के लिए|

भौजी: चलिए भोजन कर लीजिये...

मैं: आप जाओ .. मेरा मूड ठीक नहीं है|

भौजी: तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|

मैं: ठीक है, एक बार ये मसला निपट जाए दोनों साथ भोजन करेंगे|

भौजी: पर मुझे भूख लगी है...

मैं: तो आप खा लो|

भौजी: बिना आपके खाए मेरे गले से निवाला नहीं उतरेगा|

मैं: प्लीज... आप मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दो| और आप जाके भोजन कर लो!!!

भौजी कुछ नहीं बोलीं और उठ के चलीं गई, दरअसल मुझे मानाने के लिए माँ ने ही उन्हें भेजा था|मैं अकेला कुऐं पर बैठा रहा... अजय भैया शादी से लौट आये थे, परन्तु चन्दर भैया शादी से सीधा मामा के घर चले गए थे| सब ने एक-एक कर मुझे मानाने की कोशिश की परन्तु मैं नहीं माना... घर के किसी व्यक्ति ने खाना नहीं खाया था| सब के सब गुस्से में बैठे थे| पांच बजे पंचायत बैठी... सभी पांच एक साथ दो चारपाइयों पे बैठे और दाहिने हाथ पे माधुरी और उसका परिवार बैठा था और बाएं हाथ पे मेरा परिवार बैठा था|

सबसे पहले पंचों ने माधुरी के घरवालों को बात कहने का मौका दिया और हमें चुप-चाप शान्ति से बात सुनने को कहा| उनके घर से बात करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, इसलिए माधुरी स्वयं कड़ी हो गई|

माधुरी: मैं इनसे (मेरी ओर ऊँगली करते हुए) बहुत प्यार करती हूँ ओर इनसे शादी करना चाहती हूँ| पर ये मुझसे शादी नहीं करना चाहते| मैं इनके बिना जिन्दा नहीं रह सकती ... मैं आत्महत्या कर लुंगी अगर इन्होने मुझसे शादी नहीं की तो!!!
(इतना कह के वो फुट-फुट के रोने लगी| ठाकुर साहब (माधुरी के पिता) ने उसे अपने पास बैठाया ओर उसके आंसूं पोछने लगे|)

ठाकुर साहब: पंचों आप बताएं की आखिर कमी क्या है हमारी लड़की में? सुन्दर है...सुशील है..पढ़ भी रही है... अच्छा खासा परिवार है मेरा, कोई गलत काम नहीं करते... सब से रसूख़ रखते है| सब हमारी इज्जत करते हैं.... ये जानते हुए भी की लड़का हमारी "ज़ात" का नहीं है हम शादी के लिए तैयार हैं| हम अच्छा खासा दहेज़ देने के लिए भी तैयार हैं, जो मांगें वो देंगे, तो आखिर इन्हें किस बात से ऐतराज है? क्यों मेरी बेटी की जिंदगी दांव पे लगा रहे हैं ये?

पंच: ठाकुर साहब आपने अपना पक्ष रख दिया है, अब हम लड़के वालों अ भी पक्ष सुनेंगे| ओर जब तक इनकी बात पूरी नहीं होती आप बीच में दखलंदाजी नहीं करेंगे|

अब बारी थी हमारे पक्ष से बात करने की ... पिताजी खड़े हुए पर मैंने उनसे विनती की कि मुझे बोलने दिया जाए| पिताजी मेरी बात मान गए ओर पुनः बैठ गए| मैं खड़ा हुआ ओर अपनी बात आगे रखी;

मैं: सादर प्रणाम पंचों! मुझे मेरे पिताजी ने सीख दी है कि "पंच परमेश्वर होते हैं" | हमें उनके आगे कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए इसलिए मैं आपसे सब सच-सच कहूँगा| पांच साल बाद मैं अपने गाँव अपने परिवार से मिलने आया हूँ ना कि शादी-व्याह के चक्करों में पड़ने| जिस दिन मैं आया था उस दिन सबसे पहले ठाकुर साहब ने अपनी बेटी का रिश्ता मुझसे करने कि बात मुझे से कि थी, और मैंने उस समय भी खुले शब्दों में कह दिया था कि मैं शादी नहीं कर सकता| मैं इस समय पढ़ रहा हूँ... आगे और पढ़ने का विचार है मेरा| मेरे परिवार वाले नहीं चाहते कि मैं अभी शादी करूँ| रही बात इस लड़की कि, तो मैं आपको बता दूँ कि मैं इससे प्यार नहीं करता| ना मैंने इसे कभी प्यार का वादा कभी किया... ये इसके दिमाग कि उपज है कि मैं इससे प्यार करता हूँ| इस जैसी जिद्दी लड़की से मैं कभी भी शादी नहीं करूँगा... जिस लड़की ने मेरे परिवार को पंचायत तक घनसीट दिया वो कल को मुझे अपने माता-पिता से भी अलग करने के लिए कोर्ट तक चली जाएगी| मैं इससे शादी किसी भी हालत में नहीं कर सकता|

पंच: शांत हो जाओ बेटा... और बैठ जाओ| माधुरी... बेटा तुम्हारा ये जिद्द पकड़ के बैठ जाना ठीक नहीं है|क्या मानु ने कभी तुम से कहा कि वो तुमसे प्यार करता है?

माधुरी: नहीं.... पर (मेरी और देखते हुए.. आँखों में आँसूं लिए) मुझे एक मौका तो दीजिये| मैं अपने आप को बदल दूंगी... सिर्फ आपके लिए! प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कीजिये...

मैं: तुम्हें अपने आपको बदलने कि कोई जर्रूरत नहीं... तुम मुझे भूल जाओ और प्लीज मेरा पीछा छोड़ दो| तुम्हें मुझसे भी अच्छे लड़के मिलेंगे... मैं तुम से प्यार नहीं करता!!!

पंच: बस बच्चों शांत हो जाओ!!! हमें फैसला सुनाने दो|

पंचों कि बात सुन हम दोनों चुप-चाप बैठ गए... मन में उथल-पुथल मची हुई थी| अगर पंचों का फैसला मेरे हक़ में नहीं हुआ तो ? ये तो तय था कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा!!!

पंच: दोनों कि पक्षों कि बात सुनके पंचों ने ये फैसला लिया है कि ये एक तरफ़ा प्यार का मामला है, हम इसका फैसला माधुरी के हक़ में नहीं दे सकते क्योंकि मानु इस शादी के लिए तैयार नहीं है| जबरदस्ती से कि हुई शादी कभी सफल नहीं होती... इसलिए ये पंचायत मानु के हक़ में फैसला देती है| ठाकुर साहब, ये पंचायत आपको हिदायत देती है कि आप अपनी बेटी को समझाएं और उसकी शादी जल्दी से जल्दी कोई सुशील लड़का देख के कर दें| आप या आपका परिवार का कोई भी सदस्य मानु या उसके परिवार के किसी भी परिवार वाले पर शादी कि बात का दबाव नहीं डालेगा| ये सभा यहीं स्थगित कि जाती है!!!

पंच अपना फैसला सुना चुके थे...मुझे रह-रहके माधुरी पे दया आ रही थी| ऐसा नहीं था कि मेरे मन में उसके लिए प्यार कि भावना थी परन्तु मुझे उस पे तरस आ रहा था| मेरे परिवार वाले सब खुश थे... और मुझे आशीर्वाद दे रहे थे ... जैसे आज मैंने जंग जीत ली थी| ऐसी जंग जिसकी कीमत बेचारी माधुरी को चुकानी पड़ी थी| पंचायत खत्म होते ही ठाकुर माधुरी का हाथ पकड़ के उसे खींचता हुआ ले जा रहा था| माधुरी कि आँखों में आँसूं थे और उसी नजर अब भी मुझ पे टिकी थी| उसका वो रोता हुआ चेहरा मेरे दिमाग में बस गया था... पर मैं कुछ नहीं कर सकता था| अगर मैं उसे भाग के चुप कराता तो इसका अर्थ कुछ और ही निकाला जाता और बात बिगड़ जाती|

मेरे घर में आज सब खुश थे... भोजन बना हुआ था केवल उसे गर्म करना था| जल्दी से भोजन परोसा गया ... मैंने जल्दी से भोजन किया और आँगन में टहलने लगा| नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मैं उसे गोद में ले के कहानी सुनाने लगा| पर आज उसे सुलाने के लिए एक कहानी काफी नहीं थी... इसलिए मैं उसे भौजी के घर ले गया.. आँगन में एक चारपाई बिछाई और उसे लेटाया| पर उसने मेरा हाथ नहीं छोड़ा और विवश हो के मैं भी उसके पास लेट गया और एक नई कहानी सुनाई| कहानी सुनाते-सुनाते ना जाने कब मेरी आँख लग गई और मैं वहीँ सो गया| जब मेरी आँख खुली तो देखा भौजी नेहा को अपनी गोद में उठा के दूसरी चारपाई जो अंदर कमरे में बिछी थी उसपे लिटाने लगी| मैं जल्दी से उठा... और बहार जाने लगा; तब भौजी ने मुझे रोका\

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: बहार सोने

भौजी: बहार आपकी चारपाई नहीं बिछी.. दरअसल भोजन के पश्चात घर में सब आपको ढूंढ रहे थे| पर आप तो यहाँ अपनी लाड़ली के साथ सो रहे थे तो आपकी बड़की अम्मा ने कहा कि मानु को यहीं सोने दो| दिन भर वैसे ही बहुत परेशान थे आप!


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:23

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अब आगे...

मैं और कुछ नहीं बोला और वापस लेट गया... पाँच मिनट बाद भौजी भी मेरे बगल में लेट गई| मैं अब भी कुछ नहीं बोला परन्तु मेरी पीठ भौजी कि ओर थी| भौजी ने मेरी पीठ पे हाथ रखा ओर मुझे अपनी ओर करवट लेने को कहा| एक तकिये पे मैं ओर भौजी दोनों ... एक दूसरे कि आँखों में देख रहे थे| मुझे रह-रह के माधुरी का रोता हुआ चेहरा दिख रहा था| मैंने अपनी आँखें बंद कि... फिर कब भौजी का बाएं हाथ मेरी गर्दन के नीचे आया मुझे नहीं पता| मैं उनके नजदीक आया और उनके स्तन के बीचों बीच दरार में अपना मुंह छुपा के चुप-चाप पड़ा रहा| मुझे कब नींद आई.. कुछ नहीं पर हाँ मुझे उनके हाथ बारी-बारी से अपने सर को सहलाते हुए महसूस हो रहे थे| उसके बाद मेरी आँख सीधा सुबह के तीन बजे खुली... भौजी अपना हाथ मेरी गर्दन के नीचे से निकाल रहीं थी| सुआबह होने को थी और भौजी के घर का मुख्य दरवाजा बंद था| ऐसे में घर के लोगों को शक हो सकता था| इसलिए वो दरवाजा खोलने के लिए उठीं थी| मुझे जगा देख उन्होंने सर पे हाथ फेरा और मेरे होठों को चूमा!!! अब सुबह कि इससे अच्छी शुरुआत क्या हो सकती थी? मैं उठ के बैठ गया...

भौजी: कहाँ जा रहे हो?

मैं: बाहर

भौजी: पर अभी तो सब उठे भी नहीं तो बाहर अकेले में क्या करोगे?

मैं: कुछ नहीं....

भौजी मेरे पास आइन और अपने घुटनों के बल बैठ मेरे दोनों हाथों को अपने हाथ में ले के पूछने लगी:

भौजी: तुम मुझे अपनी पत्नी मानते हो ना? तो बताओ की क्या बात है जो तुम्हें आदर ही अंदर खाए जा रही है?

मैं: आप प्लीज मुझे गलत मत समझना ... कल पंचायत के बाद जब ठाकुर साहब माधुरी को घर ले जा रहे थे, उसकी आँखें भीगी हुई थीं और वो मुझे टकटकी लगाए देख रही थी| जैसे कह रही हो "मेरी इच्छाएं..मेरी जिंदगी ख़त्म हो गई" मैं उससे प्यार नहीं करता.. पर मैं नहीं चाहता था की उसका दिल टूटे! उसने जो भी किया वो सब गलत था... मेरे प्रति उसके आकर्षण को वो प्यार समझ बैठी| पर...
(मैं आगे कुछ बोल पाटा इससे पहले भौजी ने मेरी बात काट दी|)

भौजी: पर इसमें आपकी कोई गलती नहीं.. आपने उसे नहीं कहा था की वो आपसे प्यार करे|

मैं: जब आपने मुझसे पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था तब अगर मैंने इंकार कर दिया होता तो आप पे क्या बीतती?

भौजी: मैं उसी छत से छलांग लगा देती!!!

मैं: और उस सब का दोषी मैं होता|

भौजी: नहीं.... बिलकुल नहीं!!! अगर तुम मुझे ये एहसास दिलाते की तुम मुझसे प्यार करते हो.. मेरा जिस्मानी रूप से फायदा उठाते और जब मैं अपने प्यार का इजहार करती तब तुम मुकर जाते तब तुम दोषी होते| तुमने उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया... तुम्हें बुरा इसलिए लग रहा है क्योंकि तुमने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया| आज जब माधुरी का दिल टुटा तब तुम उसे अपना दोष मान रहे हो|

इसके आगे उन्होंने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया और मुझे गले लगा लिया| मैं रूवांसा हो उठा...

"बस.. अब आप अपनी आँखें बंद करो?"

मैं: क्यों?

भौजी: मेरे पास एक ऐसा टोटका है जिससे आप सब भूल जाओगे|

मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| भौजी का चेहरा मेरे ठीक सामने था.. मुझे उनकी गर्म सांसें अपने चेहरे पे महसूस होने लगी थी| उन्होंने मेरे बाएं पे अपने होंठ रख दिए और अगले ही पल मेरे गाल पे अपने दांत गड़ा दिया| उन्होंने धीरे-धीरे मेरे गाल को चूसना शुरू कर दिया.. मेरे रोंगटे खड़े होने लगे| जब उनका बाएं गाल से अं भर गया तब उन्होंने मेरे दायें गाल को भी इसी तरह काटा और चूसा| शुक्र है की उनके दांत के निशाँ ज्यादा गाढ़े नहीं थे वरना सब को पता चल जाता!!!

भौजी: तो उस दिन आपने मुझसे अंग्रेजी में क्या पूछा था..अम्म्म्म .. हाँ याद आया; HAPPY ?

मैं: (मुस्कुराते हुए) YEAH !!! VERY HAPPY !!!

सच में ये टोटका काम कर गया था! और उनके मुँह से HAPPY सुन के दिल खुश हो गया| भौजी तो उठ के बाहर चलीं गई... मैं कुछ देर और लेटा रहा| करीब साढ़े पाँच उठा| बाहर सब मेरा हाल-चाल पूछने लगे... जैसे मैं बहुत दोनों से बीमार हूँ| नहा-धो के चाय पि.. और फिर नेहा मेरे पास कूदते हुए आ गई और खेलने की जिद्द करने लगी| कभी पकड़ा-पकड़ी, कभी आँख में चोली .. ऐसा लग रहा था जैसे भौजी ने उसे मुझे बिजी रखने के लिए मेरे पीछे लगा दिया हो| आखिर में नेहा बैट और बॉल ले आई| उसने मुझे बैट दिया और खुद बॉल फेकने लगी| मैं देख रहा था की भौजी मुझे सब्जी काटते हुए, बॉल उड़ाते हुए देख रही है| पाँच मिनट बाद वो भी आ गईं और नेहा से बॉल ले के फेंकने लगी| उनकी पहली ही बॉल पे मैंने इतना लम्बा शोट मार की बॉल खेतों के अंदर जा गिरी| नेहा उसे लेने के लिए भागी... और इधर भौजी मेरे पास आइन और खाने लगी; "आज रात तैयार रहना... आपके लिए बहुत बड़ा सरप्राइज है!!!" मैंने आँखें मटकते हुए उन्हें देखा और कहा; "अच्छा जी... देखते हैं क्या सरप्राइज है?" और हम क दूसरे को प्यासी नजरों से देखते रहे| मैं ये तो समझ ही चूका था की सरप्राइज क्या है पर फिर भी अनजान बनने में बड़ा मजा आरहा था| इधर नेहा को बॉल ढूंढने गए हुए पाँच मिनट होने आये थे| खेत बिलकुल खाली था.. अब तक बॉल तो मिल जानी चाहिए थी| मैं उत्सुकता वास नेहा के पीछे खेत में पहुँच गया.. वहां जाके देखा तो वो बॉल लिए दूसरी दिशा से आ रही है| भौजी और मेरे बीच में कुछ दूरी थी.. जिससे वो दख सकती थीं की मैं वहां खड़ा क्या कर रहा हूँ| तभी नेहा मेरे पास आई और बोली; "चाचू.. ये कागज़ उसने दिया है|" नेहा की ऊँगली दूर बानी एक ईमारत के पास कड़ी लड़की की ओर थी और मुझे ये समझते देर ना लगी की वो लड़की कोई और नहीं माधुरी ही है| सारा मूड फीका हो गया...

मैंने पर्ची खोल के पढ़ी तो उसमें ये लिखा था: "प्लीज मुझे एक आखरी बार मिल लो!!" मैंने पर्ची जेब में डाली, नेहा को बैट थमाया और कहा; "बेटा आप घर चलो, मैं अभी आया|" मैंने पलट के देखा तो भौजी की नजर मुझ पे टिकी थी... जिस ईमारत के पास वो कड़ी थी वो गाँव का स्कूल था| अंदर पाठशाला अभी भी लगी हुई थी क्योंकि मुझे अंदर से अध्यापक द्वारा पाठ पढ़ाये जाने की आवाजें आ रहीं थी| मैं उससे करीब छः फुट दूरी पर खड़ा हो गया और सरल शब्दों में उससे पूछा;

"बोलो क्यों बुलाया मुझे यहाँ?"

माधुरी: आपको जानके ख़ुशी होगी की मेरे पिताजी ने आननफानन में मेरी शादी तय कर दी है| लड़का कौन है ? कैसा दीखता है? क्या करता है? मुझे कुछ नही पता|

मैं: तो तुम इसका जिम्मेदार मुझे मानती हो?

माधुरी: नहीं... गलती मेरी थी! मैं आपकी ओर आकर्षित थी| जाने कब ये आकर्षण प्यार में बदल गया, मुझे पता ही नहीं चला| खेर मैं आपसे प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूँगी... दरअसल मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ|

मैं: पूछो

माधुरी: आप प्लीज मुझसे झूठ मत बोलना... मैं जानती हूँ की आपने शादी से इंकार क्यों किया? आप किसी और से प्यार करते होना?

मैं: क्या इस बात से अब कोई फर्क पड़ता है?

माधुरी: नहीं पर... मैं एक बार उसका नाम जानना चाहती हूँ?

मैं: नाम जानके क्या होगा?

माधुरी: कम से कम उस खुशनसीब को दुआ तो दे सकुंगी ... ख़ुदा से प्रार्थना करुँगी की वो आप दोनों को हमेशा खुश रखे|

ना जाने क्यों पर मुझे उसकी बात में सच्छाई राखी पर मैं भावुक होके उसे सब सच नहीं बताना चाहता था|
इसलिए मैं नाम की कल्पना करने लगा;

मैं: रीतिका

माधुरी: नाम बताने के लिए शुक्रिया!!! अगर मैं आपसे कुछ मांगू तो आप मुझे मना तो नहीं करेंगे?

मैं: मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं| पर फिर भी मांगो अगर बस में होगा तो मना नहीं करूँगा|

माधुरी: जब मैंने किशोरावस्था में पैर रखा तो स्कूल में मेरी कुछ लड़कियाँ दोस्त बनी| उसे आप अच्छी संगत कहो या बुरी.. मुझे उनसे "सेक्स" के बारे में पता चला| वो आये दिन खतों में इधर-उधर सेक्स करती थी, पर मैंने ये कभी नहीं किया| मेरी सहेलियां मुझपे हंसती थी की तू ये दौलत बचा के क्या करेगी?... पर मैं सोचा था की जब मुझे किसी से प्यार होगा तो उसी को मैं ये दौलत सौंपूंगी| सीधे शब्दों में कहूँ तो; मैं अभी तक कुँवारी हूँ और मैं ये चाहती हूँ की आप मेरे इस कुंवारेपन को तोड़ें|

मैं: क्या??? तुम पागल तो नहीं हो गई? तुमने मुझे समझ क्या रखा है? तुम जानती हो ना मैं किसी और से प्यार करता हूँ और फिर भी मैं तुम्हारे साथ... छी-छी तुम्हें जरा भी लाज़ नहीं आती ये सब कहते हुए? ओह!!! अब मुझे समझ आया...तुम चाहती हो की हम "सेक्स" करें और फिर तुम इस बात का ढिंढोरा पूरे गाँव में पीटो ताकि मुझे मजबूरन तुमसे शादी करनी पड़े? सॉरी मैडम!!! मैं वैसा लड़का बिलकुल भी नहीं हूँ!!!
(मैं घर की ओर मुड़ा ओर चल दिया| वो मेरे पीछे-पीछे चलती रही|)

माधुरी: मैं जानती हूँ आप ऐसे नहीं हो वरना कबका मेरा फायदा उठा लेते| और मेरा इरादा वो बिलकुल नहीं है जो आप सोच रहे हो| प्लीज ... मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ| कम से कम मेरी ये ख्वाइश तो पूरी कर दीजिये!!!
(इतना कह के वो सुबकने लगी और फुट-फुट के रोने लगी|)
(मैंने चलते हुए ही जवाब दिया|)

मैं: मेरा जवाब अब भी ना है|

माधुरी: अगर आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी दया है तो प्लीज !!!
(मैं नहीं रुका|)

"ठीक है...मैं तब भी आपका इसी स्कूल के पास इन्तेजार करुँगी... !!! रोज शाम छः बजे!!!!!! इसी जगह!!!"

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वापस घर की ओर चलता रहा| जब मैं घर के नजदीक पहुंचा तो भौजी अब भी उसी जगह कड़ी मेरी ओर देख रही थी| जब मैं उनके पास पहुँच तो उन्होंने पूछा;

"अब क्या लेने आई थी यहाँ? और आप उससे मिलने क्यों गए थे?"

मैं: अभी नहीं... दोपहर के भोजन के बाद बात करता हूँ|

भौजी: नहीं.. मुझे अभी जवाब चाहिए?

मैं: (गहरी सांस लेते हुए) उसने नेहा के हाथ पर्ची भेजी थी, उसमें लिखा था की वो मुझसे एक आखरी अबार मिलना चाहती है| बस इसलिए गया था ...

भौजी: अब क्या चाहिए उसे?

मैं: ये मैं आपको दोपहर भोजन के बाद बताऊँगा|

भौजी: ऐसा क्या कह दिया उसने?

मैं: प्लीज!!


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