रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
“ तेरी जैसे कई रांड़ के कस बल निकाल चुक्का हूँ. कभी किसी ने अकड़ दिखाई तो उसको फिर किसी चाकले मे ही जगह मिलती है. शर्रीफ़ आदमी तो थूकना भी पसंद करते उन पर इतनी बुरी तरह बदनाम हो जाती हैं वो. अब सोच ले तुझे क्या करना है.” उसने मेरे स्तनो को मसल्ते हुए कहा.
“छ्चोड़ो….छ्चोड़ो मुझे…..मैं वैसी औरत नही हूँ जैसा आप समझ रहे हैं…….. मैं एक शरीफ शादी शुदा हूँ…..मेरी इज़्ज़त से मत खेलो….” मैं बेबसी से उसकी पकड़ से बचने के लिए च्चटपटा रही थी. मगर उसका बंधन बहुत सख़्त था. वो मेरी दोनो चुचियों को अपनी मुत्ठियों मे भर कर बुरी तरह मसल रहा था.
“ हराम जादे ने सही कहा था. बड़ी केटीली चीज़ है. उस्ताद एक बार देखोगे तो लंड बैठने का नाम ही नही लेगा.” उसने एक हाथ से तो मुझे गिरफ़्त मे ले रखा था और दूसरा हाथ मेरे पूरे बदन पर रेंग रहा था. मैं उसकी गोद से उठने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी मगर उसकी ताक़त के आगे मेरी एक नही चल रही थी.
“ आज तो सारी रात दावत होगी मेरी. क्या मम्मे है. साली के दोनो चून्चियो के बीच मे अपना लंड रागडूंगा तब शांत होगी मेरी गर्मी.” वो बदतमीज़ी से बड़बड़ा रहा था. मैने आख़िर मे अपने आप को बचाने के लिए उसकी कलाई पर अपने दाँत गढ़ा दिए. उसने दर्द से बिलबिलाते हुआ मुझे छ्चोड़ दिया.
मैं दरवाजे की ओर भागी. मगर इससे पहले की मैं दरवाजे की च्चितकनी को खोलती उसने झपट कर मेरे ब्लाउस को पीछे से पकड़ कर एक ज़ोर का झटका दिया. झटका इतना जोरदार था कि मैं लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी. मेरा ब्लाउस पीछे से फट कर दो टुकड़े हो चुक्का था.
वो गुस्से से तमतमा रहा था. उसने गुस्से मे अपने कमर की बेल्ट उतार ली.
“ साली दो टके की रांड़ तेरे जैसी पता नही कितनी जंगली हिर्नियों को मैने अपने लंड का स्वाद चखाया है. देख कैसे तेरे कस बल निकालता हूँ अभी” और फिर “सटाक…सटाक” करके बेल्ट की मार मेरे गोरे बदन को लाल करने लगी. मैं दर्द से च्चटपटा रही थी. मैं उसकेन मार से बचने की काफ़ी कोशिश कर रही थी मगर किसी भी तरह सफलता नही मिल रही थी. मेरे नाज़ुक बदन पर कई लाल नीले निशान पड़ते जा रहे थे. कोई बीस पचीस मार झेलने के बाद ही उसका हाथ रुका. मैं ज़मीन पर पसरी हुई रो रही थी. उसने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगा हो गया.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
फिर नंगी हालत मे उसने मुझे बालों से पकड़ा और घसीटता हुआ बिस्तर तक ले गया. मैं दर्द से सूबक रही थी. मैं उसके सामने अब तो बिल्कुल ही बेबस हो गयी थी.मेरे जिस्म मे अब किसी तरह के विरोध की हिम्मत नही बची थी. वो जैसा चाहता था मैं उसी तरह बिस्तर पर पसर गयी.
वो झपट कर बिस्तर पर चढ़ गया. और मेरे सारे कपड़े नोच कर अलग कर दिए. ब्रा का तो हूल ही तोड़ दिया. मैं नंगी हालत मे बिस्तर पर लेटी हुई सूबक रही थी. वो मेरे दोनो स्तनो को मसल्ने लगा. और उनको बारी बारी से चूमने लगा. उसने मेरे निपल्स पर अपने दाँत गढ़ा दिए. मैं दर्द से बिलख रही थी.
वो बिस्तर पर घुटनो के बल बैठा हुआ था. उसने मेरे बालों को मुट्ठी मे भर कर मेरे सिर को उठाया और अपने लंड पर मेरे मुँह को दबने लगा. मैं समझ गयी थी कि वो क्या चाहता है. मैं इस तरह के बलात्कार का पहले भी शिकार हो चुकी थी इसलिए मैने बिना कुच्छ सोचे अपना मुँह खोल दिया. उसने अपने लिंग को मेरे मुँह मे थेल दिया. उसके लंड से बुरी बदबू आ रही थी. मुझे एक ज़ोर की उबकाई आइ मगर गले तक उसका लंड फँसा होने की वजह से कुच्छ नही कर पाई.
मैने देखा कि उसके साथ जॉर्जाबरदस्ती मे मैं नही जीत सकती इसलिए चुपचाप उसे अपनी मर्ज़ी का कर लेने के लिए छ्छूट दे दिया जाए उसी मे गनीमत है. मैं उसके लिंग को खुद ही अपनी जीभ से चाटने लगी. अपने होंठों को उसके लिंग पर दबा कर उसे चूसने लगी. वो कुच्छ देर तक तो मेरे सिर को थामे रहा मगर जब उसने देखा कि मेरी ओर से विरोध समाप्त हो गया है और मैं खुद उसकी चाहत के अनुरूप चल रही हूँ तो उसने ज़ोर ज़बरदस्ती करना छ्चोड़ दिया.
मेरे मुँह से स्लूर्र्ररर्प….स्लूर्र्ररर्प.. जैसे आवाज़ें आ रही थी. मैं उसके लिंग को अपने हाथों से थाम कर उसको अपने मुँह से चूस्ति जा रही थी. उसके मुँह से उत्तेजना मे “आअहह….ऊओह” जैसी आवाज़ें निकाल रही थी. कुच्छ देर तक इसी तरह चूस्ते रहने के बाद उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग को बाहर खींच कर निकाला.
“ साली मुँह से ही मुझे झाड़ देने की इच्छा है क्या तेरी. मुझे तो तेरी चूत को फाड़ना है. चल अब छ्चोड़ इसे और टाँगें फैला कर लेट जा.” मैने वैसा ही किया जैसा उसने कहा था. उसने मेरी टाँगों को बिस्तर से उठा कर अपने कंधों पर रख ली.
उसने अपने लंड का टिप मेरी योनि की दोनो फांकों के बीच रख कर उस पर उपर नीचे फेरने लगा. अपनी उंगलियों से वो मेरी योनि की फांकों को सहलाने लगा. उसके मोटे और खुरदूरी उंगलिया मुझे उत्तेजना की जगह दर्द दे रही थी. जब कुच्छ देर तक मेरी योनि को सहलाने के बाद भी उसने देखा की मुझमे कोई उत्तेजना नही बढ़ी तो उसने मेरी क्लाइटॉरिस को छेड़ना शुरू किया. उसकी इस हाकत से मेरे बदन मे बिजलियाँ दौड़ने लगी. मैं अबतक अपने बदन को किसी बेजान लाश की तरह ढीला छ्चोड़ रखी थी मगर अब उसकी हरकतों से मेरे बदन मे चिंगारियाँ फूटने लगी. मैने उसके हाथ को वहाँ से हटाने की कोशिश की मगर उसने मेरे विरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया. मैं बेबस थी. बिल्कुल भी नही चाहती थी कि मेरा जिस्म उसके बहकावे मे आ जाए और उसे पता चल जाए कि मेरा जिस्म मेरे दिमाग़ से विद्रोह कर रहा है. बेबसी मे मेरी आँखों से आँसू बहने लगे.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -25
गतान्क से आगे...
उसने अब और सबर करना उचित नही समझा और अपने लिंग को मेरी योनि मे घुसेड़ने लगा. मेरी सूखी चूत की दीवारें उसके लंड को रोकने की कोशिश मे छिल्ति जा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी योनि की दीवारों को सांड पेपर से घिस रहा हो. मैं दर्द से च्चटपटाने लगी. मगर उसने मेरी कोई परवाह किए बगैर अपना पूरा लंड एक बार मे जड़ तक डाल दिया.
“आआहह….म्म्म्ममाआअ” मैं तड़प उठी. मगर किसे परवाह थी मेरी चीखों की मेरे दर्द की. वो किसी जानवर की तरह मुझे चोदने लगा. और तब तक चोद्ता रहा जब तक उसका वीर्य नही निकल गया. मैं बिना हीले दुले बेजान सी बिस्तर पर पड़ी रही. मेरे जिस्म मे किसी तरह की कोई उत्तेजना नही हुई. ऐसा लगा जैसे मैं कोई चुदाई की मशीन हूँ जिससे वो अपने उत्तेजना को शांत कर रहा हो.
वो झड़ने के बाद दो मिनिट तक मेरे जिस्म पर पड़ा हांफता रहा फिर वो उठा और बिना कुच्छ कहे सुने अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया. मेरी आँखें बेबसी और जलालत से बरसती रही. मैं बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई थी. मेरी आँखें छत पर पता नही क्या खोजती रही. अचानक मैं कमरे के दरवाजे को दोबारा बंद होने की आवाज़ सुन कर चौंक गयी.
मैने देखा दो संतरी अपने भद्दे काले काले दाँत दिखाते हुए मेरी ओर बढ़ रहे हैं. मैने बस एक गहरी साँस ली और आँखें बंद कर बदन को वापस ढीला छ्चोड़ दिया. मैं समझ गयी थी कि इतनी जल्दी मुझे च्छुतकारा नही मिलेगा. दोनो मुझ पर ऐसे टूट पड़े मानो बरसों के भूखे हों और सामने छप्पन व्यंजनो से भरी थाली रखी हो.
फिर शुरू हुआ मेरे जिस्म का मंथन. ये मंथन रात भर चलता रहा बस चेहरे और लोग बदलते रहे. पता नही कितनो ने कितनी बार चोदा. मैं तो अपनी किस्मेत को कोस रही थी और कोस रही थी बनाने वाले को की मुझे अगर बनाना ही था तो खूबसूरती क्यों दी. अगर खूबसूरत भी बनाया तो ग़रीबी क्यों दी.
रात बीत ते बीत ते मेरे जिस्म मे इतनी भी ताक़त नही बची थी कि मैं उठ कर अपने कपड़े पहनू. ब्लाउस और ब्रा चीथदों के रूप मे यहाँ वहाँ पड़े थे. पेटिकोट भी फटा कमरे के एक कोने मे पड़ा था. मैने किसी तरह बिस्तर के सिरहाने का सहारा लेकर उठने की कोशिश की मगर नाकामयाब रही.
कुच्छ देर बाद एक संतरी अंदर आया उसके हाथ मे एक चाइ की ग्लास थी. उसने मुझे सहारा देकर उठाया. मेरे बदन मे दर्द की टीस उठ रही थी. जांघों के जोड़ मे मानो आग लगी हुई थी. दोनो स्तनो पर अनगिनत दाँतों के दाग थे. बदन पर यहाँ वहाँ वीर्य की सफेद पपड़ी पड़ी थी. मैं उसके सहारे से उठ कर बैठ गयी. उसने मुझे अपनी गोद मे बिठा कर चाइ पिलाया बदले मे मुझे उसे अपनी योनि मे उंगली करने की इजाज़त देनी पड़ी और जब उसका लंड खड़ा हो गया तो उसे अपने मुँह मे लेकर खाली करना पड़ा. मेरे जबड़े दुख रहे थे.