मौसी का गुलाम compleet

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raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 28 Oct 2014 08:45

ललिता के सिसकने और तडपने से मेरे आनंद में और चार चाँद लग गये साली ने बहुत देर मुझे तडपाया था अब मैं अपना बदला ले रहा था मौसी ने अब उसका मुँह छोड़ दिया था और ललिता अब रो रो कर गुहार कर रही थी "राजा बेटा, दया कर मुझ पे, बहुत दुखता है रे, आईईईईईईईईईईईईईईईईई फट्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त जाएगी रीईईईईईईईईईईईईईईईईईई, मत गान्ड माररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर मेरी, ऊीीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई म्माआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह पर अब शायद उसे थोड़ा मज़ा भी आ रहा था क्योंकि रोने चिल्लाने के साथ उसका हाथ अपनी जांघों के बीच पहुँचकर अपने क्लिट को खुद ही रगड रहा था

मेरे जोरदार धक्कों से उसका शरीर लगातार हिल रहा था मैंने ललिता की गान्ड मारते हुए अपने हाथ से उसकी चुनमूनियाँ टटोली तो उसमें से छिपचिपा सफेद रस निकाला साली बुरी तरह पानी फेक रही थी मौसी भी अब अपनी नौकरानी की गान्ड की ठुकाई देखते हुए जमा के हस्तमैथुन करा रही थी और मुझे और ज़ोर से मारने को कह रही थी "मार ज़ोर से राज बेटे, मार मादरचोद की गान्ड, बहुत बनती है साली, बिलबिलाने दे इसे, तू बस गान्ड मारता रह इसकी फाड़ डाल तो और इनाम दूँगी तुझे"

फिर अपना एक हाथ उसने ललिता की चुनमूनियाँ में लगाकर देखा और अपनी उंगली पर लगे रस को चाटा मुझे बोली "राज, यह चुदैल फालतू नखरा कर रही है, इसकी चूत तो पानी फेक रही है और पानी भी मस्त स्वाद वाला है साली रंडी को मज़ा आ रहा है, तू मारता जा इसकी गान्ड और देख इसके मम्मे भी मत छोड़ , मसल डाल, यही मौका है"

मैंने हाथों में ललिता के उरोज पकड़े और जितनी ज़ोर से हो सकता था उतनी ज़ोर से कुचलने और मसलने शुरू कर दिए ललिता फिर दर्द से कराह उठी और मुझे मज़ा आ गया मौसी ने भी ललिता को ऐसा तडपाने के लिए मुझे शाबासी दी "बहुत अच्छे राजा, देख कैसे बिलबिलाई चूची दबाते हीअब उसके निपल खींच तो और हुनकेगी"


raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 28 Oct 2014 08:46

मैंने चुन्टी में निपल पकडकर खींचे और मसले भरसक हचक हचक कर ललिता की गान्ड मारी और आख़िर कसमसा कर ललिता की आँतों में बड़ी गहराई में अपना वीर्य उगलता हुआ झड गया मेरे झडते ही मौसी भी झडी और फिर उठ कर मेरे सामने खिसककर आ गयी और अपनी चुनमूनियाँ मुझे चूसने को दे दी

जब मैंने अपना झडा लंड ललिता की गुदा में से खींच कर निकाला तो मैं इतना तृप्त था जितना काफ़ी दिनों में नहीं हुआ था ललिता को मैंने पूरे दम से चाहे जैसा भोगा था और सब मेरी मौसी की सहायता से इसलिए मैंने बड़े प्यार और पूजा के भाव से उसके पैर लिए

ललिता का गान्ड का छेद चुद कर खुल गया था और लाल लाल कुचले फूल जैसा लग रहा था उसपर एक भी कतरा वीर्य नहीं नज़र आया क्योंकि मैंने बहुत गहराई में उसे स्खलित किया था ललिता धीरे से उठाकर कपड़े पहनने लगी उसके मम्मे भी मसले जाने से लाल हो गये थे निपल लंबे हो गये थे वह कराहती हुई बोली "हाय दीदी, इसने तो मुझे किसी काम का नहीं छोड़ा अभी पूरा घर का काम बाकी है कैसे करूंगी?"

उसने कपड़े पहने और मेरे पास आकर मुझे लिया "इतना हचक हचक कर छोड़ना तूने कहाँ से सीखा मुन्ना? ज़रूर दीदी ने सिखाया होगा" चलते चलते वह टाँगें फैला कर चल रही थी जैसे गान्ड में दर्द हो रहा हो इतनी बेरहमी से गान्ड मारी जाने के बावजूद वह काफ़ी खुश लग रही थी वह काम करने लगी और मैं और मौसी आकर बेडरूम में सो गये मौसी ने ललिता से कहा कि वह जाते समय दरवाजा बंद कर दे

ललिता को अपनी गान्ड पर हुए अत्याचार के बावजूद इस मैथुन में बड़ा मज़ा आया था इसलिए अब वह रोज सारी दोपहर हमारे साथ बिताने लगी एक दो घरों का काम भी इसलिए उसने छोड़ दिया मौसी ने भी उसकी तनखा बढ़ा दी

हाँ पहले उसने सॉफ कह दिया कि हफ्ते में दो तीन बार से ज़्यादा वह गान्ड नहीं मरवाएगी, और वह भी मक्खन से चिकना करने के बाद ही मैं चोदून्गा ऐसा वादा जब मैंने किया, तभी वह तैयार हुई चाहता तो मैं था कि उसकी टाइट गान्ड रोज मारूं पर सच उसे इतना दर्द होता था कि मैं उसकी शर्त मान गया

करीब करीब रोज मेरी, मौसी की और ललिता नौकरानी की चुदाई दोपहर को होती थी छुट्टियाँ खतम होने के पहले मुझे ललिता की लड़की रश्मि को चोदने का भी मौका मिला यह मौसी की ही करामात थी

एक दिन मैं ललिता पर चढ कर उसे चोद रहा था मौसी की चुनमूनियाँ ललिता ने अभी अभी चुसी थी इसलिए झडी हुई मौसी सिर्फ़ पास में बैठकर अपनी तृप्त चुनमूनियाँ सहलाती हुई हमें देखकर मज़े ले रही थी मैंने अचानक तैश में आकर झुककर ललिता का एक मम्मा मुँह में ले लिया और चूसने लगा ललिता सिहर कर बोली "चूस बेटे चूस, बहुत अच्छा लगता है पर काश मैं तुझे अपनी चूची से दूध पिला सकती मेरी बेटी की तरह अगर मेरे थनो में दूध होता तो क्या मज़ा आता मुन्ना!"

फिर वह मौसी की तरफ मुड कर बोली "दीदी, आप को मालूम है ना, रश्मि अभी आठ महने पहले ही माँ बनी है, और इतना दूध निकलता है उसकी चूचियों से कि पूछो मत, मैं तो सोच रही हूँ कि निकाल कर बेचने लगूँ" और अपने इस मज़ाक पर वह ज़ोर से हँसने लगी

मौसी की आँखें चमकने लगीं उसने पूछा "बच्चे को दूध तो पिलाती होगी रश्मि, फिर दूध क्यों बचता है?" ललिता ने कहा कि बच्चा रश्मि की सास के पास है और इसलिए रश्मि का दूध बच जाता है

मौसी ने ललिता से कहा कि वह एक दिन रश्मि को साथ ले आए "राज को दूध पीला देगी, उस बेचारे का बहुत मन होता है चूची चूसने का मेरी चूची चूसता है तो मुझे भी लगता है कि काश, मेरे थनो मे दूध होता!" किसी जवान औरत के स्तन का दूध पीने की कल्पना ही मुझे इतनी मादक लगी कि मैं कस के ललिता को दूने जोश से चोदने लगा

क्रमशः……………………

raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 29 Oct 2014 10:00

मौसी का गुलाम---20

गतान्क से आगे………………………….

ललिता मेरी इस हरकत पर हँसती हुई बोली "देखो दीदी, कैसा मचल गया दूध का नाम सुनकर असल में सब मर्द मन ही मन ऐसा ही सोचेते हैं बड़ा होकर भी दूध पीने की इच्छा मन से नहीं जाती! कल ही रश्मि बेटी को ले आती हूँ, पर दीदी वह भी काम करती है एक जगह, उसे छुट्टी लेनी पडेगी, तनखा कट जाएगी बेचारी की"

मौसी ने कहा कि उसका काम छुडवा दे और रोज साथ ले आया कर मौसी उसकी तनखा अलग से देने को भी राज़ी हो गयी

ललिता मुस्करा पडी एक तीर से उसके दो निशान लग गये थे बेटी को भी हमारे कामकर्म में शामिल होने का मौका मिल गया और तनखा भी मिली उसे खुश देखकर मौसी ने पूछा "ललिता, अब खुश है ना? चल अब सच सच बता अगर बच्चा नहीं पीता तो आज कल उस दूध का क्या करती है? फेक देती है?"

ललिता बड़ी शैतानी से मुस्कराते हुए बोली "नहीं दीदी, फेकूँगी क्यों इतना बढ़िया माल? मैं पी जाती हूँ" यह उल्टी गंगा बहने की बात सुनकर, कि एक माँ अपनी बेटी का दूध पीती है, मैं ऐसा मचला कि एक जोरदार धक्का ललिता की चुनमूनियाँ में मारकर स्खलित हो गया

मौसी ने भी ललिता की रसती चुनमूनियाँ चूसकर उस मिश्रण को बड़े चाव से निगला और फिर ललिता से पूरी कहानी सुनाने को कहा आज वह भी मूड में थी इसलिए सब बताने को तैयार हो गयी

हम दोनों को ललिता की कहानी सुनते सुनते यह पता चला गया कि ललिता और उसकी बेटी रश्मि, दोनों लेस्बियन थीं और उनका आपस में चक्कर बहुत दिनों से चल रहा था इसी कारण रश्मि अपनी माँ के पास ही रहती थी और पति के घर नहीं वापस जाना चाहती थी

यह चक्कर तब से चल रहा था जब से रश्मि जवान हुई थी ललिता का पति शराबी था और कब का घर छोड़ कर भाग गया था चुदाई की प्यासी ललिता अपनी किशोर कमसिन बेटी की ओर आकर्षित हुई और उसे बड़ा आनंद हुआ जब रश्मि भी इस नाजायज़ संबंध के लिए आसानी से तैयार हो गयी उसे भी अपनी माँ बहुत अच्छी लगती थी दोनों का काम संबंध इतना पनपा की ललिता को फिर से शादी करने की इच्छा ही नहीं हुई उसकी बेटी उसकी हर ज़रूरत पूरी करती थी उधर रश्मि भी शादी नहीं करना चाहती थी

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