डॉली ने कहा कि “क्या हुआ आँटी ??” तो मैं अपने सपनों से बाहर आ गयी और उससे कहा कि “नहीं कोई खास बात नहीं.... मैं तुम्हारी मम्मी और डैडी के बारे में सोच रही थी.... तुम बहुत शरारती हो... अपने मम्मी-डैडी की चुदाई देखती हो.... और तुम्हें कैसे पता ये चुदाई है?” वो बोली, “आँटी, मैं बच्ची नहीं हूँ.... सब समझती हूँ।“ ये कहकर वो हँस पड़ी। “तो और क्या-क्या करती हो तुम छुप कर...” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा। वो थोड़ा शर्मा गयी और बोली, “आँटी आप भी ना...!” मैंने फिर उसे उकसाया तो उसने बताया कि उसने अपने पेरेंट्स की ब्लू फिल्मों की सी-डियाँ कई बार छुप कर देखी हैं और शराब भी पी है। मैं उसकी बातें सुनकर गरम हो गयी थी। मैं अपनी टाँगें फ़ोल्ड करके उसकी दोनों टाँगों के बीच में बैठी थी और मैंने उसकी दोनों टाँगों को फैला करके तेल दोनों जाँघों पे डाल दिया और धीरे-धीरे पहले तो तेल फैलाया और फिर मालिश करने लगी। उसकी दोनों टाँगों को अपनी मुड़ी हुई जाँघों पे रख लिया और डॉली को थोड़ा सा अपनी तरफ़ खींच लिया जिससे वो थोड़ा सा सामने खिसक आयी और उसकी चूत के दोनों लिप्स खुल गये। मैंने देखा कि उसकी चूत अंदर से बहुत पिंक है और छोटी सी क्लीटोरिस चूत के ऊपर टोपी कि तरह है और चिकनी चूत मस्त लग रही थी। मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उसकी मक्खन जैसी चूत को सहलाऊँ, मसाज करूँ और उसकी चूत को चूम लूँ पर ऐसा करने से अपने आपको रोक लिया। मैं बस उसकी जाँघों की ही मालिश कर रही थी।
मैंने डॉली से पूछा कि “कैसा लग रहा है तो उसने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है आँटी, थोड़ा सा और ऊपर तक दर्द हो रहा है” और उसने अपनी चूत के करीब हाथ रख कर बताया कि करीब यहाँ तक दर्द हो रहा है तो मैं और ज़्यादा ऊपर तक मालिश करने लगी। उसकी जाँघें बहुत ही हसीन थी क्योंकि वो डाँस सीख रही थी और डाँस क्लास अटेंड करती थी। मालिश करते वक्त मेरी चूचियाँ आगे पीछे हो रही थीं तो डॉली उनको गौर से देख रही थी। मेरी नज़र डॉली पे पड़ी कि वो मेरी चूचियाँ देख रही है तो मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या देख रही हो डॉली?” तो वो शर्मा गयी और बोली कि “ये मुझे अच्छे लग रहे हैं, पता नहीं मेरे कब इतने बड़े होंगे।“ मैंने कहा, “फिक्र ना करो.... जल्दी ही बड़े हो जायेंगे.... दो या तीन साल में ही बड़े हो जायेंगे।“ उसने पूछा कि “और क्या क्या होगा मेरे जिस्म में”, तो मैंने उसकी मोसंबी जैसी चूचियों को पकड़ के कहा कि “ये बड़े हो जायेंगे.... इतने बड़े कि पूरे हाथ में समा जायें।” मेरे हाथ उसकी चूचियों पे लगते ही उसके मुँह से एक “आआहह” निकल गयी तो मैंने पूछा, “क्या हुआ डॉली.... क्या दर्द हो रहा है?” तो उसने कहा “नहीं आँटी, आप के यहाँ हाथ रखने से बहुत अच्छा लगा और मुझे बहुत मज़ा आया” तो मैं हँस पड़ी और उसकी चूचियों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर दबा दिया। उसने फिर से सिसकरी ली तो मैं समझ गयी कि ये लड़की बेहद गरम है और जवानी में तो कयामत बन जायेगी।
जाँघों पे मालिश करते-करते मेरे अंगूठे उसकी चूत के मोटे-मोटे लिप्स तक आ रहे थे और जब भी अंगूठा उसकी चूत से टकराता तो वो अपने चूतड़ उछाल देती और सिसकरी लेती। मैंने पूछा, “क्या हो रहा है?” तो वो बोली कि “बहुत मज़ा आ रहा है आँटी, अब जाँघों को छोड़ कर यहीं पे करो ना मालिश।“ मुझे भी अपने स्कूल के टाईम का अपनी क्लासमेट ताहिरा के साथ चूतों से खेलना और सिक्स्टी-नाईन पोज़िशन में एक दूसरे की चूतों को चाटना याद गया तो मैं सब कुछ भूल कर डॉली की चूत का मसाज करने लगी और अपनी अँगुलियों से उसकी क्लिटोरिस को मसलने लगी। उसके मुँह से बस सिसकारियाँ ही निकल रही थीं। मैंने डॉली की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा और अपनी तरफ़ खींचा तो उसकी टाँगें और खुल गयीं और चूत थोड़ा ऊपर उठ गयी और कुछ और करीब आ गयी। मैं झुक कर उसकी चूत को किस करने लगी। मेरे लिप्स उसकी चूत पे लगते ही उसके मुँह से एक चींख सी निकल गयी और उसने मेरे सिर पर हाथ रख लिया और अपने चूतड़ उछाल के मेरे मुँह पे चूत को रगड़ने लगी। मैंने अपने दोनों हाथ उसके चूतड़ों के नीचे रख कर उसकी चूत को और उठाया और उसकी चिकनी चूत के अंदर ज़ुबान डाल कर उसकी मक्खन जैसी चिकनी चूत को चाटने लगी। उस वक्त मैं अपने आप को वही ग्यारहवीं-बारहवीं में पढ़ने वाली लड़की समझ रही थी और डॉली को अपनी क्लासमेट ताहिरा समझ रही थी और ये बिल्कुल भूल गयी थी कि मैं एक शादी शुदा औरत हूँ और डॉली से काफी बड़ी हूँ। पर उस वक्त मुझे याद था तो बस ताहिरा का मेरे बेड में रहना और हमारा एक दूसरे की चूतों को चाटना। अपने आप को छोटी ग्यारहवीं-बारहवीं की किरन समझते हुए और नीचे लेटी हुई डॉली को ताहिरा समझते हुए मैं पलट गयी और अपनी चूत को डॉली के मुँह पे रख दिया और उसकी गाँड के नीचे हाथ रख कर उसकी चूत को थोड़ा ऊपर उठा लिया और उसकी छोटी सी मक्खन जैसी चूत को चूसने लगी। उसने मेरी चूत में अपनी ज़ुबान डाल दी और मेरी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मेरे जिस्म में मस्ती छायी हुई थी और मैं जितनी तेज़ी से अपनी चूत उसके मुँह से रगड़ रही थी, उतनी ही तेज़ी से उसकी चूत को भी चूस रही थी और अपनी ज़ुबान उसकी चूत में डाल कर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर और पूरी चूत को मुँह में लेकर काटने लगी। उसने अपने चूतड़ उछाल कर मेरे मुँह में चूत को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ना शुरू कर दिया और वो जोश में मेरी चूत ज़ोर-ज़ोर से चाटने और चूसने लगी और मेरे जिस्म में एक बिजली सी दौड़ने लगी। मैं काँपने लगी और मुझे महसूस हुआ कि अब मेरा जूस निकलने वाला है और मेरा जिस्म हिलने लगा और मेरी चूत में से जूस निकलने लगा, जिसे डॉली मज़े ले लेकर पीने लगी और एक ही सैकेंड में डॉली काँपने लगी और उसकी चूत में से भी जूस निकल पड़ा। उसकी चूत भी बहुत ही नमकीन हो गयी और उसकी आँखें बंद हो गयी थी उसकी चूत से बहुत ज़्यादा जूस निकला। मैं उसके ऊपर ऐसे ही लेटी रही। थोड़ी देर में फिर जब मुझे होश आया तो पलट के उसके बगल में सीधी लेट गयी और बोली कि “सॉरी डॉली, पता नहीं मुझे क्या हो गया था.... मुझे तुम्हारे साथ ये सब नहीं करना चहिये था” तो उसने कहा “नहीं आँटी, आप ऐसा कुछ मत सोचिये.... ये तो मैं अपनी फ्रैंड के साथ कईं दफ़ा कर चुकी हूँ और मुझे इसमें बहुत मज़ा भी आता है।“ मुझे फिर अपनी फ्रैंड ताहिरा का खयाल आया और मैं सोचने लगी कि शायद ये सब स्कूल की लड़कियों के लिये नॉर्मल सी बात है और शायद सभी स्कूल की लड़कियाँ जो एक दूसरे की बेस्ट फ्रैंड्स हैं, छिपछिपा कर ऐसे ही करती हैं।
किरन की कहानी लेखिका: किरन अहमद hindi long sex erotic
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दिन और रात ऐसे ही गुज़रते रहे और मैं कभी एस-के, कभी अशफाक, कभी सलमा आँटी तो कभी डॉली के बीच झूलने लगी पर किसी को भी ऐसे शक नहीं होने दिया कि मैं किसी और के साथ भी हूँ। सब यही समझते थे कि मैं सिर्फ़ उसके ही साथ हूँ। कईं दफ़ा लंच से पहले एस-के के साथ उसके ऑफिस में या अपने घर पे उसके लंड से चुदवा कर मज़े करती, दोपहर में सलमा आँटी और फिर शाम को डॉली के साथ लेस्बियन चुदाई का मज़ा लेती। रात को अशफ़ाक के होने या ना होने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।
दिन ऐसे ही गुज़रते चले गये। अब मैं कभी-कभी ऑफिस भी जाने लगी थी। जो काम घर बैठ कर किया उसकी सी-डी बना कर और पेपर लेकर ऑफिस जाती और वहाँ से दूसरे इनवोयस एंट्री के लिये लेकर आ जाती। कभी-कभी तो एस-के अपने ऑफिस में ही मुझे चोद देता और ऑफिस में व्हिस्की के एक-दो पैग भी पिला देता। मुझे भी व्हिस्की की हल्की से मदहोशी में चुदाई का दुगना-तिगुना मज़ा आता। मैंने ऑफिस जाने के टाईम पे हमेशा अच्छे से तैयार होती पर मैंने ब्रेज़ियर और पैंटी पहनना छोड़ दिया था क्योंकि एस-के कभी बिज़ी होता तो फटाफट जल्दबाज़ी की चुदाई के लिये मैं बगैर ब्रा और पैंटी के रेडी रहती। मुझे बगैर ब्रा और पैंटी के कपड़े पहनना अब बहुत अच्छा लगने लगा क्योंकि कमीज़ जब निप्पल से डायरेक्ट टच करती तो चलने के टाईम पे बहुत मज़ा आता और निप्पल खड़े हो जाते और सलवार की चूत के पास की सीवन (सिलाई) जब चूत के दोनों लिप्स ले बीच में घुस जाती तो क्लीटोरिस से रगड़ते- रगड़ते मज़ा आता और कभी-कभी तो जब सलवार चूत में घुस जाती तो मैं ऐसे ही झड़ भी जाती। कभी ऐसे होता कि एस-के अपनी चेयर पे बैठा होता और मैं अपने सलवार नीचे कर के उसकी दोनों जाँघों के दोनों तरफ़ अपनी टाँगें रख के उसके रॉकेट लंड पे बैठ जाती और वो मेरी कमी उठा कर मेरी चूचियाँ चूसने लगता और मैं उसके ऊपर उछल-उछल कर लंड अंदर-बाहर करती। मेरी चूचियाँ एस-के के मुँह के सामने डाँस करती और एस-के उनको पकड़ के मसल देता और चूसने लगता तो मज़ा आ जाता। ऐसी पोज़िशन में मुझे बेहद मज़ा आता और लगता जैसे मूसल जैसा लौड़ा चूत फाड़ के पेट में घुस गया हो। कभी तो वो मुझे अपनी टेबल पे ही झुका देता और पीछे से डॉगी स्टाईल में चोद देता। ऐसे में हाई-हील सैंडल पहने होने का बहुत फायदा होता क्योंकि एक तो मेरी चूत एस-के लंड ले लेवल में आ जाती और एस-के का कहना था कि मेरी लंबी सुडौल टाँगें, हाई-हील सैंडलों में और भी सैक्सी लगती हैं। दिन ऐसे ही गुज़रते रहे और मस्त चुदाई चल रही थी और ज़िंदगी ऐसे ही खुशग़वार गुज़र रही थी।
मेरे घर से ऑफिस का पैदल रास्ता तकरीबन बीस-पच्चीस मिनट का होगा। मैं पैदल ही आती जाती थी ताकि कुछ चलना भी हो जाये और अगर घर के लिये कुछ सामान की ज़रूरत हो तो बज़ार से खरीद भी लेती थी। वैसे तो घर वापिस आते वक्त मैं हमेशा थोड़े-बहुत नशे में ही होती थी पर मुझे एहसास था कि इससे हाई-हील सैंडलों में मेरी चाल और भी हिरनी जैसी सैक्सी हो जाती थी। घर और ऑफिस के बीच में बहुत सारी अलग-अलग तरह के मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं और उन में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में एक लेडीज़ टेलर की दुकान भी है। दुकान के बिल्कुल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के बाहर के हिस्से में सड़क की तरफ है और उसके बोर्ड पे एक बहुत ही खूबसूरत लड़की की फिगर बनी हुई है जिसके बूब्स मस्त शेप में थे और बोर्ड पे इंगलिश में लिख था "एम एल लेडीज़ टेलर एंड बुटीक: आल काइंड ऑफ लेडीज़ नीड्स। दूसरी लाईन में लिखा था, "वी सेटिसफायी ऑल अवर कस्टमर्स और तीसरी लाईन में लिखा था सेटिसफाईड एंड कस्टमर प्लेज़र इज़ अवर ट्रेज़र" और सबसे आखिरी लाईन में लिखा था, "ट्राई अस टुडे" और उसके नीचे लिखा था, “प्रॉपराईटर एंड मास्टर टेलर अन्द फेशन डिज़ाईनर: अनिल कुमार, बी.कॉम।“
ये अनिल कुमार अच्छी शकल सूरत का लड़का था और बहुत यंग था। उसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में ब्यूटी पॉर्लर या ग्रोसरी की दुकान में आते-जाते उसकी दुकान के आगे से गुज़रते हुए कभी हम दोनों की नज़र मिल जाती तो दोनों ही एक दूसरे को कुछ पल तक नज़र गड़ा कर देखते रहते। कभी-कभी तो मैं उसकी दुकान से आगे जाने के बाद मुस्कुरा देती जिसका मतलब मुझे भी नहीं समझ में आता था। थोड़े ही दिनों में मुझे अनिल अच्छा लगने लगा और उससे बात करने को मेरा मन करने लगा। अच्छे कपड़े पहनता था। मीडियम हाईट, एथलेटिक बॉडी, रंग गोरा और स्मार्ट। काले बाल जिनको स्टाईल से सेट करता था और लाईट ब्राऊन बड़ी-बड़ी आँखें। देखने से ही लगाता था जैसे किसी अच्छे खानदान का है। मैंने सोच लिया कि किसी दिन अनिल से ज़रूर अपने कपड़े सिलवाऊँगी। उसकी दुकान पे लड़कियाँ बहुत आती जाती थीं। हमेशा कोई ना कोई लड़की खड़ी होती और कभी-कभी तो एक से ज़्यादा भी लड़कियाँ होतीं अपने कपड़े सिलवाने या खरीदने के लिये। ज़ाहिराना उसकी दुकान खूब चलती थी और ज्यादातर वक्त उसकी दुकान पे भीड़ ही रहती थी। काफ़ी बिज़ी टेलर था।
दिन ऐसे ही गुज़रते चले गये। अब मैं कभी-कभी ऑफिस भी जाने लगी थी। जो काम घर बैठ कर किया उसकी सी-डी बना कर और पेपर लेकर ऑफिस जाती और वहाँ से दूसरे इनवोयस एंट्री के लिये लेकर आ जाती। कभी-कभी तो एस-के अपने ऑफिस में ही मुझे चोद देता और ऑफिस में व्हिस्की के एक-दो पैग भी पिला देता। मुझे भी व्हिस्की की हल्की से मदहोशी में चुदाई का दुगना-तिगुना मज़ा आता। मैंने ऑफिस जाने के टाईम पे हमेशा अच्छे से तैयार होती पर मैंने ब्रेज़ियर और पैंटी पहनना छोड़ दिया था क्योंकि एस-के कभी बिज़ी होता तो फटाफट जल्दबाज़ी की चुदाई के लिये मैं बगैर ब्रा और पैंटी के रेडी रहती। मुझे बगैर ब्रा और पैंटी के कपड़े पहनना अब बहुत अच्छा लगने लगा क्योंकि कमीज़ जब निप्पल से डायरेक्ट टच करती तो चलने के टाईम पे बहुत मज़ा आता और निप्पल खड़े हो जाते और सलवार की चूत के पास की सीवन (सिलाई) जब चूत के दोनों लिप्स ले बीच में घुस जाती तो क्लीटोरिस से रगड़ते- रगड़ते मज़ा आता और कभी-कभी तो जब सलवार चूत में घुस जाती तो मैं ऐसे ही झड़ भी जाती। कभी ऐसे होता कि एस-के अपनी चेयर पे बैठा होता और मैं अपने सलवार नीचे कर के उसकी दोनों जाँघों के दोनों तरफ़ अपनी टाँगें रख के उसके रॉकेट लंड पे बैठ जाती और वो मेरी कमी उठा कर मेरी चूचियाँ चूसने लगता और मैं उसके ऊपर उछल-उछल कर लंड अंदर-बाहर करती। मेरी चूचियाँ एस-के के मुँह के सामने डाँस करती और एस-के उनको पकड़ के मसल देता और चूसने लगता तो मज़ा आ जाता। ऐसी पोज़िशन में मुझे बेहद मज़ा आता और लगता जैसे मूसल जैसा लौड़ा चूत फाड़ के पेट में घुस गया हो। कभी तो वो मुझे अपनी टेबल पे ही झुका देता और पीछे से डॉगी स्टाईल में चोद देता। ऐसे में हाई-हील सैंडल पहने होने का बहुत फायदा होता क्योंकि एक तो मेरी चूत एस-के लंड ले लेवल में आ जाती और एस-के का कहना था कि मेरी लंबी सुडौल टाँगें, हाई-हील सैंडलों में और भी सैक्सी लगती हैं। दिन ऐसे ही गुज़रते रहे और मस्त चुदाई चल रही थी और ज़िंदगी ऐसे ही खुशग़वार गुज़र रही थी।
मेरे घर से ऑफिस का पैदल रास्ता तकरीबन बीस-पच्चीस मिनट का होगा। मैं पैदल ही आती जाती थी ताकि कुछ चलना भी हो जाये और अगर घर के लिये कुछ सामान की ज़रूरत हो तो बज़ार से खरीद भी लेती थी। वैसे तो घर वापिस आते वक्त मैं हमेशा थोड़े-बहुत नशे में ही होती थी पर मुझे एहसास था कि इससे हाई-हील सैंडलों में मेरी चाल और भी हिरनी जैसी सैक्सी हो जाती थी। घर और ऑफिस के बीच में बहुत सारी अलग-अलग तरह के मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं और उन में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में एक लेडीज़ टेलर की दुकान भी है। दुकान के बिल्कुल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के बाहर के हिस्से में सड़क की तरफ है और उसके बोर्ड पे एक बहुत ही खूबसूरत लड़की की फिगर बनी हुई है जिसके बूब्स मस्त शेप में थे और बोर्ड पे इंगलिश में लिख था "एम एल लेडीज़ टेलर एंड बुटीक: आल काइंड ऑफ लेडीज़ नीड्स। दूसरी लाईन में लिखा था, "वी सेटिसफायी ऑल अवर कस्टमर्स और तीसरी लाईन में लिखा था सेटिसफाईड एंड कस्टमर प्लेज़र इज़ अवर ट्रेज़र" और सबसे आखिरी लाईन में लिखा था, "ट्राई अस टुडे" और उसके नीचे लिखा था, “प्रॉपराईटर एंड मास्टर टेलर अन्द फेशन डिज़ाईनर: अनिल कुमार, बी.कॉम।“
ये अनिल कुमार अच्छी शकल सूरत का लड़का था और बहुत यंग था। उसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में ब्यूटी पॉर्लर या ग्रोसरी की दुकान में आते-जाते उसकी दुकान के आगे से गुज़रते हुए कभी हम दोनों की नज़र मिल जाती तो दोनों ही एक दूसरे को कुछ पल तक नज़र गड़ा कर देखते रहते। कभी-कभी तो मैं उसकी दुकान से आगे जाने के बाद मुस्कुरा देती जिसका मतलब मुझे भी नहीं समझ में आता था। थोड़े ही दिनों में मुझे अनिल अच्छा लगने लगा और उससे बात करने को मेरा मन करने लगा। अच्छे कपड़े पहनता था। मीडियम हाईट, एथलेटिक बॉडी, रंग गोरा और स्मार्ट। काले बाल जिनको स्टाईल से सेट करता था और लाईट ब्राऊन बड़ी-बड़ी आँखें। देखने से ही लगाता था जैसे किसी अच्छे खानदान का है। मैंने सोच लिया कि किसी दिन अनिल से ज़रूर अपने कपड़े सिलवाऊँगी। उसकी दुकान पे लड़कियाँ बहुत आती जाती थीं। हमेशा कोई ना कोई लड़की खड़ी होती और कभी-कभी तो एक से ज़्यादा भी लड़कियाँ होतीं अपने कपड़े सिलवाने या खरीदने के लिये। ज़ाहिराना उसकी दुकान खूब चलती थी और ज्यादातर वक्त उसकी दुकान पे भीड़ ही रहती थी। काफ़ी बिज़ी टेलर था।
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एक शाम जब मैं ऑफिस से वापस आ रही थी तो बारिश शुरू हो गयी और मैं उसकी दुकान के सामने आ कर खड़ी हो गयी। बारिश अचानक शुरू हुई थी तो मेरे कपड़े भीग चुके थे और जैसा मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि ऑफिस जाने के टाईम पे मैंने ब्रा और फैंटी पहनना छोड़ दिया था तो बारिश में भीगने से मेरे कपड़े मेरे जिस्म से चिपक गये थे और मेरा एक-एक अंग अच्छी तरह से नज़र आ रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं नंगी हो गयी हूँ। शरम भी थोड़ी आ रही थी पर अब क्या कर सकती थी। ऊपर से आज ऑफिस में एस-के के साथ व्हिस्की के दो तगड़े पैग पी लिये थे और थोड़े नशे में मुझे अपना सिर बहुत हल्का महसुस हो रहा था और ऐसे मौसम में जिस्म में जैसे मीठी सी मस्ती दौड़ रही थी। चूत में अभी भी एस-के की मलाई का गीलापन महसूस दे रहा था।
अनिल अकेला ही था दुकान में। उसने मुझे अंदर बुलाया और मैं उसकी दुकान के अंदर आ गयी। उसने एक गद्देदार स्टूल दिया मेरे बैठने के लिये। उसे शायद मेरी साँसों में व्हिस्की की महक़ आ गयी थी और मुझे ठंड से काँपते देख वो बोला कि “आपके लिये चाय मंगवाऊँ या शायद आप रम प्रेफर करेंगी... मेरे पास ओल्ड कास्क रम है इस वक्त।“ मैं मना नहीं कर सकी.... ठंड बहुत लग रही थी। थोड़ी देर पहले ही एस-के के ऑफिस में व्हिस्की पी थी तो अब चाय पीने से बेमेल हो सकता था। इसलिये मैंने कहा कि इस मौसम में रम ही ठीक रहेगी। मैं स्टूल पे बैठ गयी और उसने मुस्कुराते हुए अपनी दराज़ में से रम की बोतल निकाल कर एक ग्लास में थोड़ी सी डाल कर मुझे दी। मैंने दो घूँट में ही पी ली.... ठंड में रम बहुत अच्छी लग रही थी। मैंने ग्लास रखा तो इससे पहले मैं मना करती, उसने थोड़ी सी और मेरे ग्लास में डाल दी और इस बार दूसरे ग्लास में अपने लिये भी थोड़ी सी डाल दी। वो धीरे-धीरे सिप कर रहा रहा था और मुझे देख रहा था। हम दोनों कभी इधर उधर की बातें भी कर लेते। उसने मुझे बताया कि वो कॉमर्स का ग्रेजुयेट है और फैशन डिज़ाईनिंग का कोर्स भी कर रहा है। इसी लिये ट्रायल के तौर पे लेडीज़ टेलर की दुकान खोल ली है। उसका घर कहीं और था लेकिन दुकान हमारे इलाके में थी। वो डेली आता जाता था अपनी मोटर बाईक पर। उसने मेरे बारे में भी पूछा। उसने मेरे ड्रेसिंग सेंस की भी काफी तारीफ की। वो बोला, कि “मैंने आपको कईं बार यहाँ से गुज़रते देखा है और आप हमेशा ही लेटेस्ट फैशन के कपड़े बहुत ही एप्रोप्रियेटली पहनती हैं... और आपकी चाल तो बिल्कुल किसी मॉडल जैसी है।“ मैं उसकी बात सुन कर हँस दी। ऐसे ही हम बातें करते रहे। थोड़ी देर के बाद बारिश रुक गयी तो मैं उसको थैंक यू कह कर जाने लगी तो उसने कहा कि “इसमें थैंक यू की क्या बात है मैडम.... कभी हमें अपनी खिदमत का मौका दें तो हमें खुशी होगी।“ वॉव.... जब उसने मैडम कहा तो मुझे अनिल एक दम से बहुत ही अच्छा लगने लगा। उसकी ज़ुबान से अपने लिये मैडम सुन कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो गयी। फिर उसने पूछा कि “मैडम, आप ठीक हैं ना... आप कहें तो मैं आप के साथ घर तक चलूँ।“ उसका मतलब समझकर मैंने हंस कर कहा कि “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.... मैं ठीक से चल सकती हूँ.... मुझे अक्सर ड्रिंक्स लेने की आदत है... और फिर तुम्हारे दुकान छोड़कर मेरे साथ आने से कस्टमर्स को परेशानी होगी।“
फिर मैं धीरे-धीरे बड़े एहतियात से चल कर घर आ गयी क्योंकि एक तो सड़क पर काफी पानी भर गया था और मैंने महसूस किया कि मेरे कदम बीच-बीच में काफी लड़खड़ा जाते थे। किस्मत से मैं कहीं गिरी नहीं और महफूज़ घर पहुँच गयी। उस रात जब मैं सोने के लिये बेड पर लेटी तो मेरे ज़हन में अनिल ही घूमता रहा। उसका रम पिलाना और रम का ग्लास देते-देते मेरे हाथ से अपने हाथ टच करना, मुझे मीठी-मीठी नज़रों से देखना और फैशन मॉडल्स से मुझे तशबीह देना और खासकर के मुझे मैडम कहना और ये कहना कि हमें भी अपनी खिदमत का मौका दें तो हमें खुशी होगी....। मुझे ये सब याद आने लगा तो मैं खुद-ब-खुद मुस्कुराने लगी और सोचने लगी के कौनसी खिदमत का मौका देना है अनिल को और ये सोचते ही एक दम से मेरी चूत गीली हो गयी और मेरी उंगली अपने आप ही चूत के अंदर घुस गयी और मैं क्लीटोरिस का मसाज करने लगी। मैंने अपनी उंगली को चूत के सुराख में घुसेड़ कर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और सोचने लगी कि अनिल कैसा चोदता होगा? वैसे उससे चुदवाने का ऐसा मेरा कोई इरादा तो नहीं था पर ये खयाल आते ही मैं झड़ गयी और थोड़ी देर में गहरी नींद सो गयी। सुबह उठी तो सबसे पहले सोच लिया कि अनिल से अपने कुछ सलवार-कमीज़ सिलवाऊँगी।
अनिल अकेला ही था दुकान में। उसने मुझे अंदर बुलाया और मैं उसकी दुकान के अंदर आ गयी। उसने एक गद्देदार स्टूल दिया मेरे बैठने के लिये। उसे शायद मेरी साँसों में व्हिस्की की महक़ आ गयी थी और मुझे ठंड से काँपते देख वो बोला कि “आपके लिये चाय मंगवाऊँ या शायद आप रम प्रेफर करेंगी... मेरे पास ओल्ड कास्क रम है इस वक्त।“ मैं मना नहीं कर सकी.... ठंड बहुत लग रही थी। थोड़ी देर पहले ही एस-के के ऑफिस में व्हिस्की पी थी तो अब चाय पीने से बेमेल हो सकता था। इसलिये मैंने कहा कि इस मौसम में रम ही ठीक रहेगी। मैं स्टूल पे बैठ गयी और उसने मुस्कुराते हुए अपनी दराज़ में से रम की बोतल निकाल कर एक ग्लास में थोड़ी सी डाल कर मुझे दी। मैंने दो घूँट में ही पी ली.... ठंड में रम बहुत अच्छी लग रही थी। मैंने ग्लास रखा तो इससे पहले मैं मना करती, उसने थोड़ी सी और मेरे ग्लास में डाल दी और इस बार दूसरे ग्लास में अपने लिये भी थोड़ी सी डाल दी। वो धीरे-धीरे सिप कर रहा रहा था और मुझे देख रहा था। हम दोनों कभी इधर उधर की बातें भी कर लेते। उसने मुझे बताया कि वो कॉमर्स का ग्रेजुयेट है और फैशन डिज़ाईनिंग का कोर्स भी कर रहा है। इसी लिये ट्रायल के तौर पे लेडीज़ टेलर की दुकान खोल ली है। उसका घर कहीं और था लेकिन दुकान हमारे इलाके में थी। वो डेली आता जाता था अपनी मोटर बाईक पर। उसने मेरे बारे में भी पूछा। उसने मेरे ड्रेसिंग सेंस की भी काफी तारीफ की। वो बोला, कि “मैंने आपको कईं बार यहाँ से गुज़रते देखा है और आप हमेशा ही लेटेस्ट फैशन के कपड़े बहुत ही एप्रोप्रियेटली पहनती हैं... और आपकी चाल तो बिल्कुल किसी मॉडल जैसी है।“ मैं उसकी बात सुन कर हँस दी। ऐसे ही हम बातें करते रहे। थोड़ी देर के बाद बारिश रुक गयी तो मैं उसको थैंक यू कह कर जाने लगी तो उसने कहा कि “इसमें थैंक यू की क्या बात है मैडम.... कभी हमें अपनी खिदमत का मौका दें तो हमें खुशी होगी।“ वॉव.... जब उसने मैडम कहा तो मुझे अनिल एक दम से बहुत ही अच्छा लगने लगा। उसकी ज़ुबान से अपने लिये मैडम सुन कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो गयी। फिर उसने पूछा कि “मैडम, आप ठीक हैं ना... आप कहें तो मैं आप के साथ घर तक चलूँ।“ उसका मतलब समझकर मैंने हंस कर कहा कि “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.... मैं ठीक से चल सकती हूँ.... मुझे अक्सर ड्रिंक्स लेने की आदत है... और फिर तुम्हारे दुकान छोड़कर मेरे साथ आने से कस्टमर्स को परेशानी होगी।“
फिर मैं धीरे-धीरे बड़े एहतियात से चल कर घर आ गयी क्योंकि एक तो सड़क पर काफी पानी भर गया था और मैंने महसूस किया कि मेरे कदम बीच-बीच में काफी लड़खड़ा जाते थे। किस्मत से मैं कहीं गिरी नहीं और महफूज़ घर पहुँच गयी। उस रात जब मैं सोने के लिये बेड पर लेटी तो मेरे ज़हन में अनिल ही घूमता रहा। उसका रम पिलाना और रम का ग्लास देते-देते मेरे हाथ से अपने हाथ टच करना, मुझे मीठी-मीठी नज़रों से देखना और फैशन मॉडल्स से मुझे तशबीह देना और खासकर के मुझे मैडम कहना और ये कहना कि हमें भी अपनी खिदमत का मौका दें तो हमें खुशी होगी....। मुझे ये सब याद आने लगा तो मैं खुद-ब-खुद मुस्कुराने लगी और सोचने लगी के कौनसी खिदमत का मौका देना है अनिल को और ये सोचते ही एक दम से मेरी चूत गीली हो गयी और मेरी उंगली अपने आप ही चूत के अंदर घुस गयी और मैं क्लीटोरिस का मसाज करने लगी। मैंने अपनी उंगली को चूत के सुराख में घुसेड़ कर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और सोचने लगी कि अनिल कैसा चोदता होगा? वैसे उससे चुदवाने का ऐसा मेरा कोई इरादा तो नहीं था पर ये खयाल आते ही मैं झड़ गयी और थोड़ी देर में गहरी नींद सो गयी। सुबह उठी तो सबसे पहले सोच लिया कि अनिल से अपने कुछ सलवार-कमीज़ सिलवाऊँगी।
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