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मैं: आखिर क्यों तुम अपनी जान देने पे तुली हो?
माधुरी: सब से पहले मुझे माफ़ कर दो... मैं दो दिन स्कूल आके आपका इन्तेजार नहीं कर पाई| दरअसल तबियत अचानक इतनी जल्दी ख़राब हो जाएगी मुझे इसका एहसास नहीं था| आप भी सोच रहे होगे की कैसी लड़की है जो ....
मैं: (उसकी बात काटते हुए) प्लीज !!! ऐसा मत करो !!! क्यों मुझे पाप का भागी बना रही हो| ये कैसी जिद्द है... तुम्हें लगता है की मैं इस सब से पिघल जाऊंगा|
माधुरी: मेरी तो बस एक छोटी से जिद्द है... जिसे आप बड़ी आसानी से पूरा कर सकते हो पर करना नहीं चाहते|
मैं: वो छोटी सी जिद्द मेरी जिंदगी तबाह कर देगी... मैं जानता हूँ की तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, तुम उस जिद्द के जरिये मुझे पूरे गाँव में बदनाम कर दोगी|
माधुरी: (मुझे एक पर्ची देते हुए) ये लो इसे पढ़ लो!
मैंने वो पर्ची खोल के देखि तो उसमें जो लिखा था वो इस प्रकार है:
"आप मुझगे गलत मत समझिए, मेरा इरादा आपको बदनाम करने का बिलकुल नहीं है| मैं सिर्फ आपको आपने कौमार्य भेंट करना चाहती हूँ.... इसके आलावा मेरा कोई और उद्देश्य नहीं है| अगर उस दौरान मैं गर्भवती भी हो गई तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं होगी| अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी!!! "
माधुरी: मैं ये लिखित में आपको इसलिए दे रही हूँ ताकि आपको तसल्ली रहे की मैं आपको आगे चल के ब्लैकमेल नहीं करुँगी| इससे ज्यादा मैं आपको और संतुष्ट नहीं कर सकती| प्लीज मैं अब और इस तरह जिन्दा नहीं रह सकती| अगर अब भी आपका फैसला नहीं बदला तो आप मुझे थोड़ा सा ज़हर ला दो| उसे खा के मैं आत्मा हत्या कर लुंगी| आप पर कोई नाम नहीं आएगा... कम से कम आप इतना तो कर ही सकते हो|
मैं: तुम पागल हो गई हो... अपने होश खो दिए हैं तुमने| मैं उस लड़की से धोका कैसे कर सकता हूँ?
माधुरी: धोका कैसे ? आपको रीतिका को ये बात बताने की क्या जर्रूरत है?
मैं: तो मैं अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब दूँ? प्लीज मुझे ऐसी हालत में मत डालो की ना तो मैं जी सकूँ और ना मर सकूँ|
माधुरी: फैसला आपका है.... या तो मेरी इच्छा पूरी करो या मुझे मरने दो?
मैं: अच्छा मुझे कुछ सोचने का समय तो दो?
माधुरी: समय ही तो नहीं है मेरे पास देने के लिए| रेत की तरह समय आपकी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है|
मेरे पास अब कोई चारा नहीं था, सिवाए इसके की मैं उसकी इस इच्छा को पूरा करूँ|
मैं: ठीक है.... पर मेरी कुछ शर्तें हैं| ससे पहली शर्त; तुम्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ होना होगा| क्योंकि अभी तुम्हारी हालत ठीक नहीं है, तुमने पिछले तीन दिनों से कुछ खाया नहीं है और तुम काफी कमजोर भी लग रही हो|
माधुरी: मंजूर है|
मैं: दूसरी शर्त, मैं ये सब सिर्फ मजबूरी में कर रहा हूँ! ये सिर्फ एक बार के लिए है और तुम दुबारा मेरे पीछे इस सब के लिए नहीं पड़ोगी?
माधुरी: मंजूर है|
मैं: और आखरी शर्त, जगह और दिन मैं चुनुँगा?
माधुरी: मंजूर है|
मैं: और हाँ मुझसे प्यार की उम्मीद मत करना... मैं तुम्हें प्यार नहीं करता और ना कभी करूँगा| ये सब इसीलिए है की तुमने जो आत्महत्या की तलवार मेरे सर पे लटका राखी है उससे मैं अपनी गर्दन बचा सकूँ| बाकी रसिका भाभी को तुम क्या बोलोगी, की हम क्या बात कर रहे थे?
माधुरी: आप उन्हें अंदर बुला दो|
मैंने बहार झाँका तो रसिका भाभी आँगन में चारपाई पे सर लटका के बैठी थीं| मैंने दरवाजे से ही भाभी को आवाज मारी.... भाभी घर के अंदर आईं;
रसिका भाभी: हाँ बोलो ....क्या हुआ? मेरा मतलब की क्या बात हुई तुम दोनों के बीच?
माधुरी: मैं बस इन्हें अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी|
मैं: और मैं माधुरी को समझा रहा था की वो इस तरह से खुद को और अपने परिवार को परेशान करना बंद कर दे| वैसे भी इसकी शादी जल्द ही होने वाली है तो ये सब करने का क्या फायदा|
बात को खत्म करते हुए मैं बहार चल दिया| उसके बाद दोनों में क्या बात हुई मुझे नहीं पटा.. पर असल में अब मेरा दिमाग घूम रहा था... मैं भौजी को क्या कहूँ? और अगर मैं उन्हें ये ना बताऊँ तो ये उनके साथ विश्वासघात होगा!!!!
शकल पे बारह बजे थे... गर्मी ज्यादा थी ... पसीने से तरबतर मैं घर पहुंचा| मैं लड़खड़ाते हुए क़दमों से छप्पर की ओर बढ़ा और अचानक से चक्कर खा के गिर गया! भौजी ने मुझे गिरते हुए देखा तो भागती हुई मेरे पास आईं ... उसके बाद जब मेरी आँख खुली तो मेरा सर भौजी की गोद में था और वो पंखे से मुझे हवा कर रहीं थी|
मुझे बेहोश हुए करीब आधा घंटा ही हुआ था... मैं आँखें मींचते हुए उठा;
भौजी: क्या हुआ था आपको?
मैं: कुछ नहीं... चक्कर आ गया था|
भौजी: आप ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! डॉक्टर के जाना है?
मैं: नहीं... मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूँ|
दोपहर से ले के रात तक मैं गुम-सुम रहा... किसी से कोई बोल-चाल नहीं, यहाँ तक की नेहा से भी बात नहीं कर रहा था| रात्रि भोज के बाद मैं अपने बिस्तर पे लेटा तभी नेहा मेरे पास आ गई| वो मेरी बगल में लेती और कहने लगी; "चाचू कहानी सुनाओ ना|" अब मैं उसकी बात कैसे टालता ... उसे कहानी सुनाने लगा| धीरे-धीरे वो सो गई| मेरी नींद अब भी गायब थी.... रह-रह के मन में माधुरी की इच्छा पूरी करने की बात घूम रही थी| मैंने दुरी ओर करवट लेनी चाही पर नेहा ने मुझे जकड़ रखा था अगर मैं करवट लेता तो वो जग जाती| इसलिए मैं सीधा ही लेटा रहा.. कुछ समय बाद भौजी मेरे पास आके बैठ गईं ओर मेरी उदासी का कारन पूछने लगी;
भौजी: आपको हुआ क्या है? क्यों आप मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो? जर्रूर आपके और माधुरी के बीच कुछ हुआ है?
मैं: कुछ ख़ास नहीं ... वाही उसका जिद्द करना|
भौजी: वो फिर उसी बात के लिए जिद्द कर रही है ना?
मैं: हाँ ...
भौजी: तो आपने क्या कहा?
मैं: मन अब भी ना ही कहता है| (मैंने बात को घुमा के कहा.. परन्तु सच कहा|)
खेर छोडो इन बातों को... आप बहुत खुश दिख रहे हो आज कल?
भौजी: (अपने पेट पे हाथ रखते हुए) वो मुझे....
मैं: रहने दो.. (मैंने उनके पेट को स्पर्श किारते हुए कहा) मैं समझ गया क्या बात है| अच्छा बताओ की अगर लड़का हुआ तो?
भौजी: (मुस्कुराते हुए) तो मैं खुश होंगी!
मैं: और अगर लड़की हुई तो ?
भौजी: मैं ज्यादा खुश होंगी? क्योंकि मैं लड़की ही चाहती हूँ....
मैं: (बात बीच में काटते हुए) और अगर जुड़वाँ हुए तो?
भौजी: हाय राम!!! मैं ख़ुशी से मर जाऊँगी!!!
मैं: (गुस्सा दिखाते हुए) आपने फिर मरने मारने की बात की?
भौजी: (कान पकड़ते हुए) ओह सॉरी जी!
मैं: एक बात बताओ आपने अभी तक नेहा को स्कूल में दाखिल क्यों नहीं कराया?
भौजी: सच कहूँ तो मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं ... मेरा ध्यान तो केवल आप पे ही था| अगर आप नहीं होते तो मैं कब की आत्महत्या कर चुकी होती| आपके प्यार ने ही तो मुझे जीने का सहारा दिया है|
मैं: मैं समझ सकता हूँ... मैं कल ही बड़के दादा से बात करता हूँ और कल ही नेहा को स्कूल में दाखिल करा देंगे|
भौजी: जैसे आप ठीक समझो... आखिर आपकी लाड़ली जो है|
अभी हमारी गप्पें चल रहीं थी की पीछे से पिताजी की आवाज आई;
पिताजी: क्यों भई सोना नहीं है तुम दोनों ने? सारी रात गप्पें लदानी है क्या ?
भौजी ने जैसे ही पिताजी की बात सुनी उन्होंने तुरंत घूँघट ओढ़ लिया और उठ के खड़ी हो गईं| मैं खुश था की काम से काम पिताजी ने मुझसे बात तो की वरना जबसे मैंने रसिका भाभी से बहस बाजी की थी तब से तो वो मुझसे बोल ही नहीं रहे थे|
मैं: पिताजी आप अगर जाग ही रहे हो तो मुझे आपसे एक बात करनी थी|
पिताजी: हाँ बोलो
मैं उठ के पिताजी की चारपाई पे बैठ गया.. मेरे साथ-साथ भौजी भी पिताजी के चारपाई के सिराहने घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं|
मैं: पिताजी, मैं भौजी से पूछ रहा था की उन्होंने नेहा को अब तक स्कूल में दाखिल नहीं करवाया? चन्दर भैया का तो ध्यान ही नहीं है इस बात पे, तो क्या आप बड़के दादा से इस बारे में बात करेंगे? शिक्षा कितनी जर्रुरी होती है ये मैंने आप से ही सीखा है तो फिर हमारे ही खानदान में लड़कियां क्यों वंचित रहे?
पिताजी: तू फ़िक्र ना कर... मैं कल भैया को मना भी लूंगा और तू खुद जाके मास्टर साहब से बात करके कल ही दाखिला भी करवा दिओ| दाखिले के लिए तू अपनी भाभी को साथ ले जाना ठीक है?
मैं: जी... अब आप सो जाइये शुभ रात्रि!!!
पिताजी: शुभ रात्रि तुम भी जाके सो जाओ सुबह जल्दी उठना है ना?
मैं और भौजी ख़ुशी-ख़ुशी वापस मेरी हारपाई पे आ गए;
मैं: अब तो आप खुश हो ना?
भौजी: हाँ... अभी आप सो जाओ मैं आपको बाद में उठाती हूँ?
मैं: नहीं... आज नहीं सुबह जल्दी भी तो उठना है|
भौजी: तो मेरा क्या? मुझे नींद कैसे आएगी? आपके बिना मुझे नींद नहीं आती|
मैं: अव्व्व् कल नेहा का एडमिशन हो जाए फिर आप जो कहोगे वो करूँगा पर अभी तो आप मेरी बात मान लो|
भौजी: ठीक है पर अब आप कोई चिंता मत करना और आराम से सो जाना|
भौजी उठ के चलीं गईं पर मुझे नींद कहाँ आने वाली थी... मुझे तो सबसे ज्यादा चिंता माधुरी की थी| उसे पूरी तरह स्वस्थ होने में अधिक से अधिक दो दिन लगते ... और मुझे इसी बात की चिंता थी| मैं उसका सामना कैसे करूँ? और सबसे बड़ी बात मैं भौजी को धोका नहीं देना चाहता था.... कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था अगर मैं भाग भी जाता तो भी समस्या हल होती हुई नहीं नजर आ रही थी| क्या करूँ? ... क्या करूँ? ..... मैंने एक बार अपनी जेब में रखी पर्ची फिर से निकाली और उसे पड़ा ...सिवाय उसकी बात मैंने के मेरे पास कोई और चारा नहीं था| ठीक है तो अब सबसे पहले मुझे जगह का जुगाड़ करना है... हमारे अड़े घर के पीछे ही एक घर था| मैंने गौर किया की वो घर हमेशा बंद ही रहता था... अब इस घर के बारे में जानकारी निकालना जर्रुरी था| दुरी बात ये की मुझे समय तय करना था? दिन के समय बहुत खतरा था... और रात्रि में मैं तो घर से निकल जाता पर माधुरी कैसे आती?
जब किसी काम को करने की आपके दिल की इच्छा ना हो तो दिमाग भी काम करना बंद कर देता है| यही कारन था की मुझे ज्यादा आईडिया नहीं सूझ रहे थे|
अगले दिन सुबह मैं जल्दी उठा... या ये कहूँ की रात में सोया ही नहीं| फ्रेश हो के तैयार हो गया| हमेशा की तरह चन्दर भैया और अजय भैया खेत जा चुके थे| घर पे केवल माँ-पिताजी, रसिका भाभी, भौजी रो बड़के दादा और अब्द्की अम्मा ही थे| मैं जब चाय पीने पहुंचा तो बड़की अम्मा मेरी तारीफ करने लगी की इस घर में केवल मैं ही हूँ जिसे भौजी की इतनी चिंता है| पता नहीं क्यों पर मेरे कान लाल हो रहे थे| खेर इस बात पे सब राजी थे की नेहा का दाखिल स्कूल में करा देना चाहिए तो अब बारी मेरी थी की मैं नेहा को स्कूल ले जाऊँ| मैंने भौजी को जल्दी से तैयार हो जाने के लिए कहा और मैं और नेहा चारपाई पे बैठ के खेलने लगे|
करीब आधे घंटे बाद भौजी तैयार हो के आईं... हाय क्या लग रहीं थी वो! पीली साडी .... माँग में सिन्दूर.... होठों पे लाली... उँगलियों में लाल नेल पोलिश... पायल की छम-छम आवाज...और सर पे पल्लू.... हाय आज तो भौजी ने क़त्ल कर दिया था मेरा!!!! सच में इतनी सुन्दर लग रहीं थी वो| वो मेरे पास आके खड़ी हो गईं;
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो आप?
मैं: कुछ नहीं.... बस ऐसे ही आपकी सुंदरता को निहार रहा था| कसम से आज आप कहर ढा रहे हो|
भौजी: आप भी ना... चलो जल्दी चलो आके मुझे वापस चुलाह-चौक सम्भालना है| आपकी रसिका भाभी तो सुबह से ही कहीं गयब हैं|
रास्ते भर मेरे पेट में तितलियाँ उड़ती रहीं| ऊपर से भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ा हुआ था| हम स्कूल पहुंचे, वो स्कूल कुछ बड़ा नहीं था बस प्राइमरी स्कूल जैसा था... तीन कमरे और कुछ नहीं... ना ही छात्रों के बैठने के लिए बेन्चें ना कुर्सी ... ना टेबल... पंखे तो भूल ही जाओ| केवल एक ही कुर्सी थी जिस पे मास्टर साहब बैठ के पढ़ा रहे थे| मैं पहली कक्षा में घुसा और हेडमास्टर साहब के लिए पूछा तो मास्टर जी ने कहा की वो आखरी वाले कमरे में हैं| हम उस कमरे की ओर बढ़ लिए... नेहा मेरी गोद में थी ओर भौजी ठीक मेरे बराबर में चल रहीं थी| कमरे के बहार पहुँच के मैंने खट-खटया.. मास्टर जी ने हमें अंदर बुलाया| अंदर एक मेज था जो मजबूत नहीं लग रहा था, और बेंत की तीन कुर्सियां|
हम उन्हीं कुर्सियों पे बैठ गए और बातों का सिल-सिला शुरू हुआ;
मैं: HELLO SIR !
हेडमास्टर साहब: हेलो ... देखिये मैं आपको पहले ही बता दूँ की मेरी बदली हुए कुछ ही दिन हुए हैं और मैं हिंदी माध्यम से पढ़ा हूँ तो कृपया आप मुझसे हिंदी में ही बात करें|
मैं: जी बेहतर!
हेडमास्टर साहब: तो बताइये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ? (नेहा की ओर देखते हुए) ओह क्षमा कीजिये.. मैं समझ गया आप अपनी बेटी के दाखिले हेतु आय हैं| ये लीजिये फॉर्म भर दीजिये|
मैं: जी पर पहले मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ? इस स्कूल में केवल दो ही कमरे हैं जिन में अध्यापक पढ़ा रहे हैं? यह स्कूल कितनी कक्षा तक है और क्या ये स्कूल किसी सरकारी स्कूल या कॉलेज से मान्यता प्राप्त है? मतलब जैसे दिल्ली में स्कूल CBSE से मान्यता प्राप्त होते हैं ऐसा कुछ?
हेडमास्टर साहब: जी हमें उत्तर प्रदेश हाई स्कूल बोर्ड से मान्यता प्राप्त है| हमारे स्कूल में केवल दूसरी कक्षा तक ही पढ़ाया जाता है... हमें कुछ फंड्स केंद्रीय सरकार से मिलने वाले हैं जिसकी मदद से इस स्कूल का निर्माण कार्य जल्द ही शुरू होगा और फिर ये स्कूल दसवीं कक्षा तक हो जायेगा|
मैं: जी ठीक है पर आप के पास कुछ कागज वगैरह होंगे... ताकि मुझ तसल्ली हो जाये| देखिये बुरा मत मानियेगा परन्तु मैं नहीं चाहता की बच्ची का साल बर्बाद हो.. फिर उसे तीसरी कक्षा के लिए हमें दूसरा स्कूल खोजना पड़े|
हेडमास्टर साहब: जी जर्रूर मुझे कोई आपत्ति नहीं|
और फिर हेडमास्टर साहब ने मुझे कुछ सरकारी दस्तावेज दिखाए| उन्हें देख के कुछ तसल्ली तो हुई.. फिर मैंने फॉर्म भरा और फीस की बात वगैरह की| हेडमास्टर साहब फॉर्म पढ़ने लगे...
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
बदलाव के बीज--34
हेडमास्टर साहब: तो मिस्टर चन्दर जी...
मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है| (भौजी की ओर इशारा करते हुए) चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|
हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजिये मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?
मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में हूँ ओर अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|
हेडमास्टर साहब: वाह! वैसे इस गाँव में लोग बेटियों के पढ़ने पर बहुत काम ध्यान देते हैं| मुझे जानेक ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना सोचते हैं| खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा... यदि आप कभी फ्री हों तो आइयेगा हम बैठ के कुछ बातें करेंगे|
मैं: जी अवश्य... वैसे मैं पूछना भूल गया, ये स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है|
हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|
मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?
हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
मेरा मकसद समय पूछने के पीछे कुछ और ही था| खेर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| सब खुश थे और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी!!! पर नाजाने क्यों भौजी का मुंह बना हुआ था| मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था... इसलिए सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार था.. कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई, मेरे पास आके पूछने लगी;
रसिका भाभी: मानु... तुमने माधुरी से कल ऐसा क्या कह दिया की उस में इतना बदलाव आ गया? कल से उसने खाना-पीना फिर से शुरू कर दिया!!!
मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा... बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे| और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|
बस इतना कह के मैं पलट के चल दिया... असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था| समय फिसलता जा रहा था.... समय... और बहाना... जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था|
इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था| ऊपर से भौजी का उदास मुंह देख के मन और दुःखी था... मैं शाम का इन्तेजार करने लगा... जब शाम को भौजी अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| अंदर भौजी चारपाई पे बैठी सर नीचे झुकाये सुबक रहीं थी|
मैं: क्या हुआ अब? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?
भौजी: नहीं... (सुबकते हुए) ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं...
मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|
भौजी: इसी बात का तो दुःख है.. काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
मैं: AWW मेरा बच्चा| (गले लगते हुए) !!! मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ| पर आप ही नहीं माने ...
भौजी थोड़ा मुस्कुराई .. और मुझसे लिपटी रहीं... मैं उनकी पीठ सहलाता रहा| मन कर रहा था की उन्हें सबकुछ बता दूँ पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|
भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?
मैं: नहीं तो
भौजी: आपकी दिल की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही हैं|
मैं: अम्म ... हाँ एक बात है|
भौजी: क्या बात है बोलो...
मैंने आँखें बंद करते हुए, एक सांस में भौजी को सारी बात बता दी| मेरी बात सुन के भौजी स्तब्ध थी...
भौजी: तो आप उसकी बात मान रहे हो?
मैं: मेरे पास कोई और चारा नहीं.. अगर उसे कुछ हो गया तो मैं कभी भी इस इल्जाम के साथ जी नहीं पाउँगा| (मैंने भौजी की कोख पे हाथ रखा) मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खता हूँ मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं!
भौजी कुछ नहीं बोली और चुप-चाप बाहर चली गईं और मैं उन्हें नहीं रोक पाया| मैं भी बाहर आ गया...
मुझे रसिका भाभी नजर आईं, मैं ऊके पास आया और उनसे हमारे बड़े घर के पीछे बने घर के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की वो घर पिताजी के मित्र चूॉबेय जी का है| वो अपने परिवार सहित अम्बाला में रहते हैं| सर्दियों में यहाँ आते हैं... बातों बातों में मैंने पता लगाया की उनके घर की चाबी हमारे पास है| क्योंकि उनके आने से पहले घरवाले घर की सफाई करवा देते हैं| मैंने रसिका भाभी से कहा की मेरा वो घर देखने की इच्छा है... किसी तरह से उन्हें मना के उन्हें साथ ले गया| घर का ताला खोला तो वो तो मकड़ी के जालों का घर निकला| तभी वहां से एक छिपकली निकल के भागी, जिसे देख रसिका भाभी एक दम से दर गईं और मुझसे चिपक गईं|
मैं: भाभी गई छिपकली|
रसिका भाभी: हाय राम इसीलिए मैं यहाँ आने से मना कर रही थी|
मैंने गौर से घर का जायजा लिया| स्कूल से मुझे ये जगह अच्छी लग रही थी| घर की दीवारें कुछ दस-बारह फुट ऊंचीं थी... आँगन में एक चारपाई थी जिसपे बहुत धुल-मिटटी जमी हुई थी| मैं बाहर आया और घर को चारों ओर से देखने लगा| दरअसल मुझे EXIT PLAN की भी तैयारी करनी थी| आपात्कालीन स्थिति में मुझे भागने का भी इन्तेजाम करना था| अब मैं कोई कूदने मैं एक्सपर्ट तो नहीं था पर फिर भी मजबूरी में कुछ भी कर सकता था| जगह का जायजा लने के बाद आप ये तो पक्का था की ये ही सबसे अच्छी जगह है ... स्कूल में फिर भी खतरा था क्योंकि वो सड़क के किनारे था ओर तीन बजे के बाद वहाँ ताला लगा होता| अब बात थी की चाबी कैसे चुराऊँ? इसके लिए मुझे देखना था की चाबी कहाँ रखी जाती है, ताकि मैं वहाँ से समय आने पे चाबी उठा सकूँ| चाबी रसिका बभभी के कमरे में रखी जाती थी.. तो मेरा काम कुछ तो आसान था| मैंने वो जगह देख ली जहाँ चाबी टांगी जाती थी| अब सबसे जर्रुरी था माधुरी से दिन तय करना... मैं चाहता था की ये काम जल्द से जल्द खत्म हो! पर मैं अपना ये उतावलापन माधुरी को नहीं दिखाना चाहता था ... वरना वो सोचती की मैं उससे प्यार करता हूँ|
उससे बात करने के लिए मुझे ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा क्योंकि मुझसे ज्यादा उसे जल्दी थी| वो शाम को छः बजे मुझे स्कूल के पास दिखाई दी| मैं चुप-चाप स्कूल की ओर चल दिया|
माधुरी: मैंने आपकी पहली शर्त पूरी कर दी.. मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गई हूँ| आप खुद ही देख लो... तो आप कब कर रहे हो मेरी इच्छा पूरी?
मैं सच में बड़ा क़तरा रहा था कुछ भी कहने से .. इसलिए मैंने सोचा की एक आखरी बार कोशिश करने में क्या जाता है|
मैं: देखो... मैंने बहुत सोचा पर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, मुझे माफ़ कर दो!!!
माधुरी: मुझे पता था की आप कुछ ऐसा ही कहेंगे इसलिए मैं अपने साथ ये लाई हूँ| (उसने मुझे एक चाक़ू दिखाया) मैं आपके सामने अभी आत्महत्या कर लुंगी|
अब मेरी फ़ट गई... इस वक्त सिर्फ मैं ही इसके पास हूँ अगर इसे कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा|
मैं: रुको.. रुको.. रुको... मैं मजाक कर रहा था|
माधुरी: नहीं ... मैं जानती हूँ आप मजाक नहीं कर रहे थे| (माधुरी ने अब चाक़ू अपनी पेट की तरफ मोड़ रखा था) आप मुझे धोका देने वाले हो....
मैं: ठीक है.... कल... कल करेंगे ... अब प्लीज इसे फेंक दो|
माधुरी: (चाक़ू फेंकते हुए) कल कब?
मैं: शाम को चार बजे, तुम मुझे बड़े घर के पीछे मिलना|
माधुरी: थैंक यू !!!
मैं: (मैंने एक लम्बी सांस ली और उसके हाथ से चाक़ू छीन लिया और उसे दूर फेंक दिया) दुबारा कभी भी ऐसी हरकत मत करना !
माधुरी: सॉरी आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी|
मैं वहां से चल दिया ... घर लौटने के बाद भौजी से मेरी कोई बात नहीं हुई| वो तो जैसे मेरे आस-पास भी नहीं भटक रहीं थी... बस एक नेहा थी जिससे मेरा मन कुछ शांत था|
ऐसा इंसान जिसे आप दिलों जान से चाहते हो, वो आपसे बात करना बंद कर दे तो क्या गुजरती है ये मुझे उस दिन पता चला| पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था... दोषी तो मैं था! रात जैसे-तैसे कटी... सुबह हुई.. वही दिनचर्या... मैं चाहता था की ये समय रुक जाए और घडी में कभी चार बजे ही ना| आज तो मौसम भी जैसे मुझ पे गुस्सा निकालने को तैयार हो... सुबह से काले बदल छाये हुए थे आसमान में भी और शायद मेरे और भौजी के रिश्ते पर भी|
हाँ आज तो नेहा का पहला दिन था तो मैं ही उसे पहले दिन स्कूल छोड़ने गया .. वो थोड़ा सा रोइ जैसा की हर बच्चा पहलीबार स्कूल जाने पर रोता है पर फिर उसे बहला-फुसला के स्कूल छोड़ ही दिया| दोपहर को उसे स्कूल लेने गया तो वो मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे सालों बाद मुझे देखा हो| उसे गोद में लिए मैं घर आया, भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया|
घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक... करते करते तीन बजे गए| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर निकला| किस्मत से वो सो रहीं थीं.. वैसे भी वो इस समय सोती ही थीं| मैंने चुप-चाप चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीँ टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद घर वालों को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला की "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा ओर मैं चुप चाप वहां से निकल लिया ओर सीधा बड़े घर के पीछे पहुँच गया| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे... पर ये क्या वहां तो माधुरी पहले से ही खड़ी थी!
मैं: तुम? तुम यहाँ क्या कर रही हो? अभी तो सिर्फ साढ़े तीन हुए हैं?
माधुरी: क्या करूँ जी... सब्र नहीं होता| अब जल्दी से बताओ की कहाँ जाना है?
मैंने इधर-उधर देखा क्योंकि मुझे शक था की कोई हमें एक साथ देख ना ले| फिर मैंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया.... मैंने ताला खोला और अंदर घुस गए, फटाक से मैंने दरवाजा बंद किया ताकि कहीं कोई हमें अंदर घुसते हुए ना देख ले| दिल की धड़कनें तेज थीं... पर मन अब भी नहीं मान रहा था| हाँ दिमाग में एक अजीब से कुलबुली जर्रूर थी क्योंकि आज मैं पहली बार एक कुँवारी लड़की की सील तोड़ने जा रहा था! अंदर अपहुंच के तो जैसे मेरा शरीर सुन्न हो गया... दिमाग और दिल के बीच का कनेक्शन टूट गया| दिमाग और शरीर का तालमेल खत्म हो गया...
माधुरी: आप क्या सोच रहे हो?
मैं: कुछ... कुछ नहीं|
माधुरी: प्लीज अब आप और मत तड़पाओ!
मैं: (झिड़कते हुए) यार... थोड़ा तो सब्र करो|
माधुरी: जबसे आपको बिना टी-शर्ट के देखा है तब से मन बड़ा बेताब है आपको फिर से उसी हालत में देखने को?
मैं: तुमने मुझे बिना कपड़ों के कब देख लिया?
माधुरी: उस दिन जब आप खेतों में काम करके लौटे थे और नहाने गए थे| दरवाजा बंद करना भूल गए थे या जानबूझ के खुला छोड़ा था?
मैंने अपने माथे पे हाथ रख लिया.... शुक्र है की इसने मुझे नंगा नहीं देख लिया|
माधुरी: आज तो मैं आपको पूरा.... (इतना कहके वो हंसने लगी)
मुझे चिंता हुई... कहीं ये भौजी के "Love Bites" ना देख ले! इसलिए मैं अब भी दरवाजे के पास खड़ा था .. मन बेचैन हो रहा था| माधुरी मेरी ओर बढ़ी और मुझे चूमने के लिए अपने पंजों के बल ऊपर उठ के खड़ी हुई पर मैं उसे रोकना चाहता था तो उसके कन्धों पे मेरा हाथ था| उसे तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा और उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए| मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैंने कोई प्रतिक्रिया ना करूँ... और हुआ भी ऐसा ही| वो अपनी भरपूर कोशिश कर रही थी की मेरा मुख अपनी जीभ के "जैक" से खोल पाये पर मैं अपने आपको शांत रखने की कोशिश कर रहा था| जब उसे लगा की मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही तो वो स्वयं ही रूक गई| वो वापस अपने पैरों पे खड़ी हो गई ओर मेरी ओर एक तक-तक़ी लगाए देखती रही| मेर चेहरे पे कोई भाव नहीं थे... आखिर वो मुझसे दूर हुई और मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए हाथ आगे बढ़ाये|
हेडमास्टर साहब: तो मिस्टर चन्दर जी...
मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है| (भौजी की ओर इशारा करते हुए) चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|
हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजिये मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?
मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में हूँ ओर अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|
हेडमास्टर साहब: वाह! वैसे इस गाँव में लोग बेटियों के पढ़ने पर बहुत काम ध्यान देते हैं| मुझे जानेक ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना सोचते हैं| खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा... यदि आप कभी फ्री हों तो आइयेगा हम बैठ के कुछ बातें करेंगे|
मैं: जी अवश्य... वैसे मैं पूछना भूल गया, ये स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है|
हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|
मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?
हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
मेरा मकसद समय पूछने के पीछे कुछ और ही था| खेर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| सब खुश थे और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी!!! पर नाजाने क्यों भौजी का मुंह बना हुआ था| मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था... इसलिए सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार था.. कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई, मेरे पास आके पूछने लगी;
रसिका भाभी: मानु... तुमने माधुरी से कल ऐसा क्या कह दिया की उस में इतना बदलाव आ गया? कल से उसने खाना-पीना फिर से शुरू कर दिया!!!
मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा... बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे| और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|
बस इतना कह के मैं पलट के चल दिया... असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था| समय फिसलता जा रहा था.... समय... और बहाना... जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था|
इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था| ऊपर से भौजी का उदास मुंह देख के मन और दुःखी था... मैं शाम का इन्तेजार करने लगा... जब शाम को भौजी अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| अंदर भौजी चारपाई पे बैठी सर नीचे झुकाये सुबक रहीं थी|
मैं: क्या हुआ अब? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?
भौजी: नहीं... (सुबकते हुए) ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं...
मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|
भौजी: इसी बात का तो दुःख है.. काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
मैं: AWW मेरा बच्चा| (गले लगते हुए) !!! मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ| पर आप ही नहीं माने ...
भौजी थोड़ा मुस्कुराई .. और मुझसे लिपटी रहीं... मैं उनकी पीठ सहलाता रहा| मन कर रहा था की उन्हें सबकुछ बता दूँ पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|
भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?
मैं: नहीं तो
भौजी: आपकी दिल की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही हैं|
मैं: अम्म ... हाँ एक बात है|
भौजी: क्या बात है बोलो...
मैंने आँखें बंद करते हुए, एक सांस में भौजी को सारी बात बता दी| मेरी बात सुन के भौजी स्तब्ध थी...
भौजी: तो आप उसकी बात मान रहे हो?
मैं: मेरे पास कोई और चारा नहीं.. अगर उसे कुछ हो गया तो मैं कभी भी इस इल्जाम के साथ जी नहीं पाउँगा| (मैंने भौजी की कोख पे हाथ रखा) मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खता हूँ मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं!
भौजी कुछ नहीं बोली और चुप-चाप बाहर चली गईं और मैं उन्हें नहीं रोक पाया| मैं भी बाहर आ गया...
मुझे रसिका भाभी नजर आईं, मैं ऊके पास आया और उनसे हमारे बड़े घर के पीछे बने घर के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की वो घर पिताजी के मित्र चूॉबेय जी का है| वो अपने परिवार सहित अम्बाला में रहते हैं| सर्दियों में यहाँ आते हैं... बातों बातों में मैंने पता लगाया की उनके घर की चाबी हमारे पास है| क्योंकि उनके आने से पहले घरवाले घर की सफाई करवा देते हैं| मैंने रसिका भाभी से कहा की मेरा वो घर देखने की इच्छा है... किसी तरह से उन्हें मना के उन्हें साथ ले गया| घर का ताला खोला तो वो तो मकड़ी के जालों का घर निकला| तभी वहां से एक छिपकली निकल के भागी, जिसे देख रसिका भाभी एक दम से दर गईं और मुझसे चिपक गईं|
मैं: भाभी गई छिपकली|
रसिका भाभी: हाय राम इसीलिए मैं यहाँ आने से मना कर रही थी|
मैंने गौर से घर का जायजा लिया| स्कूल से मुझे ये जगह अच्छी लग रही थी| घर की दीवारें कुछ दस-बारह फुट ऊंचीं थी... आँगन में एक चारपाई थी जिसपे बहुत धुल-मिटटी जमी हुई थी| मैं बाहर आया और घर को चारों ओर से देखने लगा| दरअसल मुझे EXIT PLAN की भी तैयारी करनी थी| आपात्कालीन स्थिति में मुझे भागने का भी इन्तेजाम करना था| अब मैं कोई कूदने मैं एक्सपर्ट तो नहीं था पर फिर भी मजबूरी में कुछ भी कर सकता था| जगह का जायजा लने के बाद आप ये तो पक्का था की ये ही सबसे अच्छी जगह है ... स्कूल में फिर भी खतरा था क्योंकि वो सड़क के किनारे था ओर तीन बजे के बाद वहाँ ताला लगा होता| अब बात थी की चाबी कैसे चुराऊँ? इसके लिए मुझे देखना था की चाबी कहाँ रखी जाती है, ताकि मैं वहाँ से समय आने पे चाबी उठा सकूँ| चाबी रसिका बभभी के कमरे में रखी जाती थी.. तो मेरा काम कुछ तो आसान था| मैंने वो जगह देख ली जहाँ चाबी टांगी जाती थी| अब सबसे जर्रुरी था माधुरी से दिन तय करना... मैं चाहता था की ये काम जल्द से जल्द खत्म हो! पर मैं अपना ये उतावलापन माधुरी को नहीं दिखाना चाहता था ... वरना वो सोचती की मैं उससे प्यार करता हूँ|
उससे बात करने के लिए मुझे ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा क्योंकि मुझसे ज्यादा उसे जल्दी थी| वो शाम को छः बजे मुझे स्कूल के पास दिखाई दी| मैं चुप-चाप स्कूल की ओर चल दिया|
माधुरी: मैंने आपकी पहली शर्त पूरी कर दी.. मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गई हूँ| आप खुद ही देख लो... तो आप कब कर रहे हो मेरी इच्छा पूरी?
मैं सच में बड़ा क़तरा रहा था कुछ भी कहने से .. इसलिए मैंने सोचा की एक आखरी बार कोशिश करने में क्या जाता है|
मैं: देखो... मैंने बहुत सोचा पर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, मुझे माफ़ कर दो!!!
माधुरी: मुझे पता था की आप कुछ ऐसा ही कहेंगे इसलिए मैं अपने साथ ये लाई हूँ| (उसने मुझे एक चाक़ू दिखाया) मैं आपके सामने अभी आत्महत्या कर लुंगी|
अब मेरी फ़ट गई... इस वक्त सिर्फ मैं ही इसके पास हूँ अगर इसे कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा|
मैं: रुको.. रुको.. रुको... मैं मजाक कर रहा था|
माधुरी: नहीं ... मैं जानती हूँ आप मजाक नहीं कर रहे थे| (माधुरी ने अब चाक़ू अपनी पेट की तरफ मोड़ रखा था) आप मुझे धोका देने वाले हो....
मैं: ठीक है.... कल... कल करेंगे ... अब प्लीज इसे फेंक दो|
माधुरी: (चाक़ू फेंकते हुए) कल कब?
मैं: शाम को चार बजे, तुम मुझे बड़े घर के पीछे मिलना|
माधुरी: थैंक यू !!!
मैं: (मैंने एक लम्बी सांस ली और उसके हाथ से चाक़ू छीन लिया और उसे दूर फेंक दिया) दुबारा कभी भी ऐसी हरकत मत करना !
माधुरी: सॉरी आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी|
मैं वहां से चल दिया ... घर लौटने के बाद भौजी से मेरी कोई बात नहीं हुई| वो तो जैसे मेरे आस-पास भी नहीं भटक रहीं थी... बस एक नेहा थी जिससे मेरा मन कुछ शांत था|
ऐसा इंसान जिसे आप दिलों जान से चाहते हो, वो आपसे बात करना बंद कर दे तो क्या गुजरती है ये मुझे उस दिन पता चला| पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था... दोषी तो मैं था! रात जैसे-तैसे कटी... सुबह हुई.. वही दिनचर्या... मैं चाहता था की ये समय रुक जाए और घडी में कभी चार बजे ही ना| आज तो मौसम भी जैसे मुझ पे गुस्सा निकालने को तैयार हो... सुबह से काले बदल छाये हुए थे आसमान में भी और शायद मेरे और भौजी के रिश्ते पर भी|
हाँ आज तो नेहा का पहला दिन था तो मैं ही उसे पहले दिन स्कूल छोड़ने गया .. वो थोड़ा सा रोइ जैसा की हर बच्चा पहलीबार स्कूल जाने पर रोता है पर फिर उसे बहला-फुसला के स्कूल छोड़ ही दिया| दोपहर को उसे स्कूल लेने गया तो वो मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे सालों बाद मुझे देखा हो| उसे गोद में लिए मैं घर आया, भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया|
घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक... करते करते तीन बजे गए| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर निकला| किस्मत से वो सो रहीं थीं.. वैसे भी वो इस समय सोती ही थीं| मैंने चुप-चाप चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीँ टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद घर वालों को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला की "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा ओर मैं चुप चाप वहां से निकल लिया ओर सीधा बड़े घर के पीछे पहुँच गया| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे... पर ये क्या वहां तो माधुरी पहले से ही खड़ी थी!
मैं: तुम? तुम यहाँ क्या कर रही हो? अभी तो सिर्फ साढ़े तीन हुए हैं?
माधुरी: क्या करूँ जी... सब्र नहीं होता| अब जल्दी से बताओ की कहाँ जाना है?
मैंने इधर-उधर देखा क्योंकि मुझे शक था की कोई हमें एक साथ देख ना ले| फिर मैंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया.... मैंने ताला खोला और अंदर घुस गए, फटाक से मैंने दरवाजा बंद किया ताकि कहीं कोई हमें अंदर घुसते हुए ना देख ले| दिल की धड़कनें तेज थीं... पर मन अब भी नहीं मान रहा था| हाँ दिमाग में एक अजीब से कुलबुली जर्रूर थी क्योंकि आज मैं पहली बार एक कुँवारी लड़की की सील तोड़ने जा रहा था! अंदर अपहुंच के तो जैसे मेरा शरीर सुन्न हो गया... दिमाग और दिल के बीच का कनेक्शन टूट गया| दिमाग और शरीर का तालमेल खत्म हो गया...
माधुरी: आप क्या सोच रहे हो?
मैं: कुछ... कुछ नहीं|
माधुरी: प्लीज अब आप और मत तड़पाओ!
मैं: (झिड़कते हुए) यार... थोड़ा तो सब्र करो|
माधुरी: जबसे आपको बिना टी-शर्ट के देखा है तब से मन बड़ा बेताब है आपको फिर से उसी हालत में देखने को?
मैं: तुमने मुझे बिना कपड़ों के कब देख लिया?
माधुरी: उस दिन जब आप खेतों में काम करके लौटे थे और नहाने गए थे| दरवाजा बंद करना भूल गए थे या जानबूझ के खुला छोड़ा था?
मैंने अपने माथे पे हाथ रख लिया.... शुक्र है की इसने मुझे नंगा नहीं देख लिया|
माधुरी: आज तो मैं आपको पूरा.... (इतना कहके वो हंसने लगी)
मुझे चिंता हुई... कहीं ये भौजी के "Love Bites" ना देख ले! इसलिए मैं अब भी दरवाजे के पास खड़ा था .. मन बेचैन हो रहा था| माधुरी मेरी ओर बढ़ी और मुझे चूमने के लिए अपने पंजों के बल ऊपर उठ के खड़ी हुई पर मैं उसे रोकना चाहता था तो उसके कन्धों पे मेरा हाथ था| उसे तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा और उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए| मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैंने कोई प्रतिक्रिया ना करूँ... और हुआ भी ऐसा ही| वो अपनी भरपूर कोशिश कर रही थी की मेरा मुख अपनी जीभ के "जैक" से खोल पाये पर मैं अपने आपको शांत रखने की कोशिश कर रहा था| जब उसे लगा की मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही तो वो स्वयं ही रूक गई| वो वापस अपने पैरों पे खड़ी हो गई ओर मेरी ओर एक तक-तक़ी लगाए देखती रही| मेर चेहरे पे कोई भाव नहीं थे... आखिर वो मुझसे दूर हुई और मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए हाथ आगे बढ़ाये|
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Re: एक अनोखा बंधन
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मैं: प्लीज .... मत करो!!!
माधुरी: पर क्यों... मैं कब से आपको बिना टी-शर्ट के देखना चाहती हूँ| पहले ही आप मुझसे दूर भाग रहे हैं और अब आप तो मुझे छूने भी नहीं दे रहे?
मैं: देखो मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ... प्लीज ये मत करो| मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर ही रहा हूँ ना ...
माधुरी: आप मेरी इच्छा बड़े रूखे-सूखे तरीके से पूरी कर रहे हैं|
मैं: मेरी शर्त याद है ना? मैंने तुम्हें प्यार नहीं कर सकता... ये सब मैं सिर्फ ओर सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए कर रहा हूँ और तुम्हें जरा भी अंदाजा नहीं है की मुझे पे क्या बीत रही है|
माधुरी: ठीक है मैं आप के साथ जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकती| (एक लम्बी सांस लेते हुए) ठीक है कम से कम आप मेरी सलवार-कमीज तो उतार दीजिये|
इतना कहके वो दूसरी ओर मुड़ गई और अब मुझे उसकी कमीज उतारनी थी| मैंने कांपते हुए हाथों से उसकी कमीज को पकड़ के सर के ऊपर से उतार दिया| अब उसकी नंगी पीठ मेरी ओर थी.... उसने अपने स्तन अपने हाथों से ढके हुए थे| वो इसी तरह मेरी ओर मुड़ी... मैंने देखा की उसके गाल बिलकुल लाल हो चुके हैं ओर वो नजरें झुकाये खड़ी है| उसने धीरे-धीरे से अपने हाथ अपने स्तन पर से हटाये.... मेरी सांसें तेज हो चुकी थीं| अगर इस समय माधुरी की जगह भौजी होती तो मैं कब का उनसे लिपट जाता पर ....
धीरे-धीरे उसने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया ... हाय! ऐसा लग रहा था जैसे तोतापरी आम| बस मैं उनका रसपान नहीं कर सकता था! उसने धीरे-धीरे अपनी नजरें उठाएं और शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे स्पर्श करूँगा पर अब तक मैंने खुद को जैसी-तैसे कर के रोका हुआ था| उसने मेरे हाथों को छुआ और अपने स्तनों पर ले गई| इससे पहले की मेरे हाथों का उसके स्तनों से स्पर्श होता मैंने उसे रोक दिया|
माधुरी बोली; "आप मेरी जान ले के रहोगे| आपने अभी तक मुझे स्पर्श भी नहीं किया तो ना जाने आगे आप कैसी घास काटोगे|" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आँखें फेर ली| अब ना जाने उसे क्या सूझी वो नीचे बैठ गई और मेरा पाजामा नीचे खींच दिया और उसके बाद मेरा कच्छा भी खींच के बिलकुल नीचे कर दिया| बिना कुछ सोचे-समझे उसने गप्प से लंड को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी| एक बात तो थी उसे लंड चूसना बिलकुल नहीं आता था... वो बिलकुल नौसिखियों की तरह पेश आ रही थी! यहाँ तक की भौजी ने भी पहली बार में ऐसी चुसाई की थी की लग रहा था की वो मेरी आत्मा को मेरे लंड के अंदर से सुड़क जाएंगी| और इधर माधुरी तो जैसे तैसे लंड को बस मुंह में भर रही थी... मैंने उसे रोका और कंधे से पकड़ के उठाया| मैंने आँगन में बिछी चारपाई की ओर इशारा किया और हम चारपाई के पास पहुँच के रूक गए|
इधर बहार बिलकुल अँधेरा छा गया था ... तकरीबन शाम के पोन चार या चार बजे होंगे और ऐसा लग रहा था जैसे रात हो गई| शायद आसमान भी मुझसे नाराज था! मैंने चारपाई पे उसे लेटने को कहा और वो पीठ के बल लेट गई ... उसने अब भी सलवार पहनी हुई थी, इसलिए मैंने पहले उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खींचते हुए नीचे उतार दिया| उसने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी... उसकी चूत (क्षमा कीजिये मित्रों मैं आज पहली बार मैं "चूत" शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ| दरअसल माधुरी के साथ मेरे सम्भोग को मैं अब भी एक बुरा हादसा मानता हूँ पर आप सब की रूचि देखते हुए मैं इसका इतना डिटेल में वर्णन कर रहा हूँ|)
उसकी चूत बिलकुल साफ़ थी... एक दम गोरी-गोरी थी एक दम मुलायम लग रही थी| देख के ही लगता था की उसने आज तक कभी भी सम्भोग नहीं किया| मैंने अपना पजामा और कच्छा उतारा और उसके ऊपर आ गया|मैं: देखो पहली बार बहुत दर्द होगा|
माधुरी कुछ सहम सी गई और हाँ में अपनी अनुमति दी| मैंने अपने लंड पे थोड़ा और थूक लगाया और उसकी चूत के मुहाने पे रखा| मैं नहीं चाहता था की उसे ज्यादा दर्द हो इसलिए मैंने धीरे से अपने लें को उसकी चूत पे दबाना शुरू किया| जैसे-जैसे मेरा लंड का दबाव उसकी चूत पर पद रहा था वो अपने शरीर को कमान की तरह ऐंठ रही थी| उसने अपने होठों को दाँतों तले दबा लिया पर फिर भी उसकी सिस्कारियां फुट निकली; "स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्हह्ह माँ ...ह्म्म्म्म्म"
उसकी सिसकारी सुन मैं वहीँ रूक गया... अभी तक लंड का सुपाड़ा भी पूरी तरह से अंदर नहीं गया था और उसका ये हाल था| धीरे-धीरे उसका शरीर कुछ सामान्य हुआ और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैंने उससे पूछा; "अभी तो मैं अंदर भी नहीं गया और तुम्हारा दर्द से बुरा हाल है| मेरी बायत मानो तो मत करो वरना पूरा अंदर जाने पे तुम दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाओगी?" तो उसका जवाब ये था; "आप मेरी दर्द की फ़िक्र मत करिये, आप बस एक झटके में इसे अंदर कर दीजिये|" उसकी उत्सुकता तो हदें पार कर रही थी ... मैंने फिर भी उसे आगाह करने के लिए चेतावनी दी; "देखो अगर मैंने ऐसा किया तो तुम्हारी चूत फैट जाएगी... बहुत खून निकलेगा और ..." इससे पहले की मैं कुछ कह पाटा उसने बात काटते हुए कहा; "अब कुछ मत सोचिये.. मैं सब सह लुंगी प्लीज मुझे और मत तड़पाइये|"
अब मैं इसके आगे क्या कहता... मन तो कर रहा था की एक ही झटके में आर-पार कर दूँ और इसे इसी हालत में रोता-बिलखता छोड़ दूँ| पर पता नहीं क्यों मन में कहीं न कहीं अच्छाई मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| मैंने लंड को बहार खींचा और एक हल्का सा झटका मारा.. उसकी चूत अंदर से पनिया गई थी और लंड चीरता हुआ आधा घुस गया| उसकी दर्द के मारे आँखें एक दम से खुल गई.. ऐसा लगा मानो बाहर आ जाएँगी| वो एक दम से मुझसे लिपट गई और कराहने लगी; "हाय .... अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआअर अह्ह्ह्हह्ह अन्न्न्न्न" वो मुझसे इतना जोर से लिपटी की मुझे उसके दिल की धड़कनें महसूस होने लगीं थी| माथे पे आया पसीना बाह के मेरी टी-शर्ट पे गिरा| वो जोर-जोर से हांफने लगी थी और इधर मेरा लंड उसकी चूत में सांस लेने की कोशिश कर रहा था| मैं चाह रहा था की जल्द स्व जल्द ये काम खत्म हो पर उसकी दर्द भरी कराहों ने मेरी गति रोक दी थी|
करीब दस मिनट लगे उसे वापस सामान्य होने में.. और जैसे ही मैंने अपने लंड को हिलाने की कोशिश की तो उसने मेरी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ के मुझे रोक दिया और अपने ऊपर खींच लिया| मैंने सीधा उसके होंठों पे पड़ा और उसने अपने पैरों को मेरी कमर पे रख के लॉक कर दिया| अब उसने मेरे होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और मैं भी अपने आप को रोक पाने में विफल हो रहा था| अँधेरा छा रहा था और कुछ ही समय में अँधेरा कूप हो गया| ऐसा लगा जैसे आसमान मुझसे नाराज है और अब कुछ ही देर में बरसेगा| मन ही मन मैं आसमान की तुलना भौजी से करने लगा और मुझे माधुरी पर और भी गुस्सा आने लगा| आखिर उसी की वजह से भौजी की आँखों में आंसू आये थे! मैंने धीरे-धीरे लंड को बहार खींचा और अबकी बार जोर से अंदर पेल दिया! उसकी चींखें निकली; "आआअक़आ अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह" अब मैं बस उसपे अपनी खुंदक निकालना चाहता था और मैंने जोर-जोर से शॉट लगाना शुरू कर दिया| इस ताकतवर हमले से तो वो लघ-भग बेसुध होने लगी| पर दर्द के कारन वो अब भी होश में लग रही थी उसकी टांगों का लॉक जो मेरी कमर के इर्द-गिर्द था वो खुल गया था|
दस मिनट बाद उसकी चूत ने भी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| अब वो भी नीचे से रह-रह के झटके दे रही थी| तभी अचानक वो एक बार मुझसे फिर लिपट गई और फिर से अपनी टांगों के LOCK से मुझे जकड लिया और जल्दी बाजी में उसने मेरी टी-शर्ट उतार फेंकी| अब उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से एक दम से चिपका हुआ था| मुझे उसके तोतापरी स्तन अपनी छाती पे चुभते हुए महसूस हो रहे थे ... उसके निप्पल बिलकुल सख्त हो चुके थे! वो मेरे कान को अपने मुंह में ले के चूसने लगी| वो शुक्र था की अँधेरा हो गया जिसके कारन उसे मेरी छाती बने LOVE BITES नहीं दिखे! वो झड़ चुकी थी !!! अंदर से उसकी चूत बिलकुल गीली थी.... और अब आसानी से मेरा लंड अंदर और बहार आ जा सकता था| शॉट तेज होते गए और अब मैं भी झड़ने को था| अब भी मुझे अपने ऊपर काबू था और मैंने खुद को उसके चुंगल से छुड़ाया और लंड बहार निकाल के उसके स्तनों पे वीर्य की धार छोड़ दी| गहरी सांस लेते हुए मैं झट से खड़ा हुआ क्योंकि मैं और समय नहीं बर्बाद करना चाहता था| घडी में देखा तो करीब छः बज रहे थे| इतनी जल्दी समय कैसे बीता समझ नहीं आया| तभी अचानक से झड़-झड़ करके पानी बरसने लगा| मानो ये सब देख के किसी के आंसूं गिरने लगे, और मुझे ग्लानि महसूस होने लगी|
माधुरी भी उठ के बैठ गई और बारिश इ बूंदों से अपने को साफ़ करने लगी| अँधेरा बढ़ने लगा था और अब हमें वहां से निकलना था| मैंने माधुरी से कहा;
"जल्दी से कपडे पहनो हमें निकलना होगा|"
माधुरी: जी ....
इसके आगे वो कुछ नहीं बोली, शायद बोलने की हालत में भी नहीं थी| हमने कपडे पहने और बहार निकल गए| मैंने माधुरी से और कोई बात नहीं की और चुप-चाप ताला लगा के निकल आया ... मैंने पीछे मुड़ के भी नहीं देखा| मैं जानबूझ के लम्बा चक्कर लगा के स्कूल की तरफ से घर आया... बारिश होने के कारन मैं पूरा भीग चूका था| घर पहुंचा तो अजय भैया छाता ले के दौड़े आये;
अजय भैया: अरे मानु भैया आप कहाँ गए थे?
मैं: यहीं टहलते-टहलते आगे निकल गया वापस आते-आते बारिश शुरू हो गई तो स्कूल के पास रूक गया| पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, मुझे लगा आप लोग परेशान ना हो तो ऐसे ही भीगता चला आया|
अजय भैया: चलो जल्दी से कपडे बदल लो नहीं तो बुखार हो जायेगा|
अजय भैया ने मुझे बड़े घर तक छाते के नीचे लिफ्ट दी| घर पहुँच के मैंने कपडे बदले ... पर अब भी मुझे अपने जिस्म से माधुरी के जिस्म की महक आ रही थी| मैं नहाना चाहता था.. इसलिए मैं स्नानघर गया और वहीँ नहाना चालु कर दिया| स्नानघर ऊपर से खुला था मतलब एक तरह से मैं बारिश के पानी से ही नह रहा था| साबुन रगड़-रगड़ के नहाया ... मैंने सोचा की साबुन की खुशबु से माधुरी के देह (शरीर) की खुशबु निकल ही जाएगी|जैसे ही नहाना समाप्त हुआ मैंने तुरंत कपडे बदले पर अब तक देर हो चुकी थी... सर्दी छाती में बैठ चुकी थी क्योंकि मुझे छींकें आना शुरू हो गई थीं| कंप-काँपि शुरू हो गई और मैं एक कमरे में बिस्तर पे लेट गया| पास ही कम्बल टांगा हुआ था उसे ले के उसकी गर्मी में मैं सो गया| करीब एक घंट बाद अजय भैया मुझे ढूंढते हुए आये और मुझे जगाया ... बारिश थम चुकी थी और मैं उनके साथ रसोई घर के पास छप्पर के नीचे आके बैठ गया| दरअसल भोजन तैयार था... और मुझे लगा जैसे भौजी जानती हों की मैं कहाँ था और किस के साथ था| शायद यही कारन था की वो मुझसे बात नहीं कर रही थी और अब तो नेहा को भी मेरे पास नहीं आने दे रहीं थी|
मन ख़राब हो गया और मैं वहां से वापस बड़े घर की ओर चल पड़ा| पीछे से पिताजी ने मुझे भोजन के लिए पुकारा पर मैंने झूठ बोल दिया की पेट ख़राब है| मैं वापस आके अपने कमरे (जिसमें हमारा सामान पड़ा था) में कम्बल ओढ़ के सो गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था.... जब सुबह आँख खुली तो माँ मुझे जगाने आई थी ओर परेशान लग रही थी|
बड़ी मुश्किल से मेरी आँख खुली;
मैं: क्या हुआ?
माँ: तेरा बदन बुखार से टप रहा है ओर तू पूछ रह है की क्या हुआ? कल तू बारिश में भीग गया था इसीलिए ये हुआ... ओर तेरी आवाज इतनी भारी-भारी हो गई है| हे राम!!! .. रुक मैं अभी तेरे पिताजी को बताती हूँ|
मैं वापस सो गया, उसके बाद जब मैं उठा तो पिताजी मेरे पास बैठे थे;
पिताजी: तो लाड-साहब ले लिए पहली बारिश का मजा ? पड़ गए ना बीमार? चलो डॉक्टर के|
मैं: नहीं पिताजी बस थोड़ा सा बुखार ही है... क्रोसिन लूंगा ठीक हो जाऊँगा|
पिताजी: पर क्रोसिन तो ख़त्म हो गई... मैं अभी बाजार से ले के आता हूँ| तू तब तक आराम कर!
पिताजी चले गए ओर मैं वापस कम्बल सर तक ओढ़ के सो गया|
जब नींद खुली तो लगा जैसे कोई सुबक रहा हो... मैंने कम्बल हटाया तो देखा सामने भौजी बैठी हैं| मैं उठ के बैठना चाहा तो वो चुप-चाप उठ के चलीं गई| एक तो कल से मैंने कुछ खाया नहीं था ओर ऊपर से मजदूरी भी करनी पड़ी (माधुरी के साथ)| खेर मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता था इसलिए मैं चुप-चाप लेट गया| भौजी का इस तरह से मुंह फेर के चले जाना अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था| मैं उनसे एक आखरी बार बात करना चाहता था .... मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता था बस उनसे माफ़ी माँगना चाहता था| मैं जैसे-तैसे हिम्मत बटोर के उठ के बैठा ... कल से खाना नहीं खाया था और ऊपर से बुखार ने मुझे कमजोर कर दिया था| तभी भौजी फिर से मेरे सामने आ गईं और इस बार उनके हाथ में दूध का गिलास था| उन्होंने वो गिलास टेबल पे रख दिया और पीछे होके खड़ी हो गईं.... क्योंकि टेबल चारपाई से कोई दो कदम की दूरी पे था तो मैं उठ के खड़ा हुआ और टेबल की ओर बढ़ा| मुझे अपने सामने खड़ा देख उनकी आँखों में आंसूं छलक आये ओर वो मुड़ के जाने लगीं| मैंने उनके कंधे पे हाथ रख के उन्हें रोलना चाहा तो उन्होंने बिना मूड ही मुझे जवाब दिया; "मुझे मत छुओ !!!" उनके मुंह से ये शब्द सुन के मैं टूट गया ओर वापस चारपाई पे जाके दूसरी ओर मुंह करके लेट गया|
करीब एक घंटे बाद भौजी दुबारा आईं...
भौजी: आपने दूध नहीं पिया?
मैं: नहीं
भौजी: क्यों?
मैं: वो इंसान जिससे मैं इतना प्यार करता हूँ वो मेरी बात ही ना सुन्ना चाहता हो तो मैं "जी" के क्या करूँ?
भौजी: ठीक है... मैं आपकी बात सुनने को तैयार हूँ पर उसके बाद आपको दूध पीना होगा|
मैं उठ के दिवार का सहारा लेटे हुए बैठ गया और अब भी अपने आप को कम्बल में छुपाये हुए था|
मैं: मैं जानता हूँ की जो मैंने किया वो गलत था... पर मैं मजबूर था! जिस हालत में मैंने माधुरी को देखा था उस हालत में आप देखती तो शायद आप मुझसे इतना नाराज नहीं होतीं| मानता हूँ जो मैंने किया वो बहुत गलत है ... उसकी कोई माफ़ी नहीं है पर मैं अपने सर पे किसी की मौत का कारन बनने का इल्जाम नहीं सह सकता| और आपकी कसम कल जो भी कुछ हुआ मैंने उसे रत्ती भर भी पसंद नहीं किया... सब मजबूरी में और हर दम आपका ही ख़याल आ रहा था मन में| मैंने कुछ भी दिल से नहीं किया... सच! प्लीज मेरी बात का यकीन करो और मुझे माफ़ कर दो!!!
भौजी: ठीक है.. मैंने आपकी बात सुन ली अब आप दूध पी लो|
(इतना कह के भौजी उठ के दूध का गिलास उठाने लगीं)
मैं: पहले आप जवाब तो दो?
भौजी: मुझे सोचना होगा...
मैं: फिर जवाब रहने दो... मेरी सब बात सुनने के बाद भी अगर आपको सोच के जवाब देना है तो जवाब मैं जानता हूँ|
(इतना कह के मैं फिर से लेट गया| पर भौजी नहीं मानी... और गिलास ले के मुझे उठाने के लिए उन्होंने सर से कम्बल खींच लिया|)
भौजी: आपको क्या लगता है की इस तरह अनशन करने से मैं आपको माफ़ कर दूंगी? आपमें और आपके भैया में सिर्फ इतना फर्क है की उन्होंने मेरी पीठ पे छुरा मार तो आपने सामने से बता के! अब चलो और ये दूध पियो|
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठाने की कोशिश की| तभी उनको पता चला की बुखार और भी बढ़ चूका है|
मैं: प्लीज .... मत करो!!!
माधुरी: पर क्यों... मैं कब से आपको बिना टी-शर्ट के देखना चाहती हूँ| पहले ही आप मुझसे दूर भाग रहे हैं और अब आप तो मुझे छूने भी नहीं दे रहे?
मैं: देखो मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ... प्लीज ये मत करो| मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर ही रहा हूँ ना ...
माधुरी: आप मेरी इच्छा बड़े रूखे-सूखे तरीके से पूरी कर रहे हैं|
मैं: मेरी शर्त याद है ना? मैंने तुम्हें प्यार नहीं कर सकता... ये सब मैं सिर्फ ओर सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए कर रहा हूँ और तुम्हें जरा भी अंदाजा नहीं है की मुझे पे क्या बीत रही है|
माधुरी: ठीक है मैं आप के साथ जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकती| (एक लम्बी सांस लेते हुए) ठीक है कम से कम आप मेरी सलवार-कमीज तो उतार दीजिये|
इतना कहके वो दूसरी ओर मुड़ गई और अब मुझे उसकी कमीज उतारनी थी| मैंने कांपते हुए हाथों से उसकी कमीज को पकड़ के सर के ऊपर से उतार दिया| अब उसकी नंगी पीठ मेरी ओर थी.... उसने अपने स्तन अपने हाथों से ढके हुए थे| वो इसी तरह मेरी ओर मुड़ी... मैंने देखा की उसके गाल बिलकुल लाल हो चुके हैं ओर वो नजरें झुकाये खड़ी है| उसने धीरे-धीरे से अपने हाथ अपने स्तन पर से हटाये.... मेरी सांसें तेज हो चुकी थीं| अगर इस समय माधुरी की जगह भौजी होती तो मैं कब का उनसे लिपट जाता पर ....
धीरे-धीरे उसने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया ... हाय! ऐसा लग रहा था जैसे तोतापरी आम| बस मैं उनका रसपान नहीं कर सकता था! उसने धीरे-धीरे अपनी नजरें उठाएं और शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे स्पर्श करूँगा पर अब तक मैंने खुद को जैसी-तैसे कर के रोका हुआ था| उसने मेरे हाथों को छुआ और अपने स्तनों पर ले गई| इससे पहले की मेरे हाथों का उसके स्तनों से स्पर्श होता मैंने उसे रोक दिया|
माधुरी बोली; "आप मेरी जान ले के रहोगे| आपने अभी तक मुझे स्पर्श भी नहीं किया तो ना जाने आगे आप कैसी घास काटोगे|" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आँखें फेर ली| अब ना जाने उसे क्या सूझी वो नीचे बैठ गई और मेरा पाजामा नीचे खींच दिया और उसके बाद मेरा कच्छा भी खींच के बिलकुल नीचे कर दिया| बिना कुछ सोचे-समझे उसने गप्प से लंड को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी| एक बात तो थी उसे लंड चूसना बिलकुल नहीं आता था... वो बिलकुल नौसिखियों की तरह पेश आ रही थी! यहाँ तक की भौजी ने भी पहली बार में ऐसी चुसाई की थी की लग रहा था की वो मेरी आत्मा को मेरे लंड के अंदर से सुड़क जाएंगी| और इधर माधुरी तो जैसे तैसे लंड को बस मुंह में भर रही थी... मैंने उसे रोका और कंधे से पकड़ के उठाया| मैंने आँगन में बिछी चारपाई की ओर इशारा किया और हम चारपाई के पास पहुँच के रूक गए|
इधर बहार बिलकुल अँधेरा छा गया था ... तकरीबन शाम के पोन चार या चार बजे होंगे और ऐसा लग रहा था जैसे रात हो गई| शायद आसमान भी मुझसे नाराज था! मैंने चारपाई पे उसे लेटने को कहा और वो पीठ के बल लेट गई ... उसने अब भी सलवार पहनी हुई थी, इसलिए मैंने पहले उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खींचते हुए नीचे उतार दिया| उसने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी... उसकी चूत (क्षमा कीजिये मित्रों मैं आज पहली बार मैं "चूत" शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ| दरअसल माधुरी के साथ मेरे सम्भोग को मैं अब भी एक बुरा हादसा मानता हूँ पर आप सब की रूचि देखते हुए मैं इसका इतना डिटेल में वर्णन कर रहा हूँ|)
उसकी चूत बिलकुल साफ़ थी... एक दम गोरी-गोरी थी एक दम मुलायम लग रही थी| देख के ही लगता था की उसने आज तक कभी भी सम्भोग नहीं किया| मैंने अपना पजामा और कच्छा उतारा और उसके ऊपर आ गया|मैं: देखो पहली बार बहुत दर्द होगा|
माधुरी कुछ सहम सी गई और हाँ में अपनी अनुमति दी| मैंने अपने लंड पे थोड़ा और थूक लगाया और उसकी चूत के मुहाने पे रखा| मैं नहीं चाहता था की उसे ज्यादा दर्द हो इसलिए मैंने धीरे से अपने लें को उसकी चूत पे दबाना शुरू किया| जैसे-जैसे मेरा लंड का दबाव उसकी चूत पर पद रहा था वो अपने शरीर को कमान की तरह ऐंठ रही थी| उसने अपने होठों को दाँतों तले दबा लिया पर फिर भी उसकी सिस्कारियां फुट निकली; "स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्हह्ह माँ ...ह्म्म्म्म्म"
उसकी सिसकारी सुन मैं वहीँ रूक गया... अभी तक लंड का सुपाड़ा भी पूरी तरह से अंदर नहीं गया था और उसका ये हाल था| धीरे-धीरे उसका शरीर कुछ सामान्य हुआ और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैंने उससे पूछा; "अभी तो मैं अंदर भी नहीं गया और तुम्हारा दर्द से बुरा हाल है| मेरी बायत मानो तो मत करो वरना पूरा अंदर जाने पे तुम दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाओगी?" तो उसका जवाब ये था; "आप मेरी दर्द की फ़िक्र मत करिये, आप बस एक झटके में इसे अंदर कर दीजिये|" उसकी उत्सुकता तो हदें पार कर रही थी ... मैंने फिर भी उसे आगाह करने के लिए चेतावनी दी; "देखो अगर मैंने ऐसा किया तो तुम्हारी चूत फैट जाएगी... बहुत खून निकलेगा और ..." इससे पहले की मैं कुछ कह पाटा उसने बात काटते हुए कहा; "अब कुछ मत सोचिये.. मैं सब सह लुंगी प्लीज मुझे और मत तड़पाइये|"
अब मैं इसके आगे क्या कहता... मन तो कर रहा था की एक ही झटके में आर-पार कर दूँ और इसे इसी हालत में रोता-बिलखता छोड़ दूँ| पर पता नहीं क्यों मन में कहीं न कहीं अच्छाई मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| मैंने लंड को बहार खींचा और एक हल्का सा झटका मारा.. उसकी चूत अंदर से पनिया गई थी और लंड चीरता हुआ आधा घुस गया| उसकी दर्द के मारे आँखें एक दम से खुल गई.. ऐसा लगा मानो बाहर आ जाएँगी| वो एक दम से मुझसे लिपट गई और कराहने लगी; "हाय .... अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआअर अह्ह्ह्हह्ह अन्न्न्न्न" वो मुझसे इतना जोर से लिपटी की मुझे उसके दिल की धड़कनें महसूस होने लगीं थी| माथे पे आया पसीना बाह के मेरी टी-शर्ट पे गिरा| वो जोर-जोर से हांफने लगी थी और इधर मेरा लंड उसकी चूत में सांस लेने की कोशिश कर रहा था| मैं चाह रहा था की जल्द स्व जल्द ये काम खत्म हो पर उसकी दर्द भरी कराहों ने मेरी गति रोक दी थी|
करीब दस मिनट लगे उसे वापस सामान्य होने में.. और जैसे ही मैंने अपने लंड को हिलाने की कोशिश की तो उसने मेरी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ के मुझे रोक दिया और अपने ऊपर खींच लिया| मैंने सीधा उसके होंठों पे पड़ा और उसने अपने पैरों को मेरी कमर पे रख के लॉक कर दिया| अब उसने मेरे होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और मैं भी अपने आप को रोक पाने में विफल हो रहा था| अँधेरा छा रहा था और कुछ ही समय में अँधेरा कूप हो गया| ऐसा लगा जैसे आसमान मुझसे नाराज है और अब कुछ ही देर में बरसेगा| मन ही मन मैं आसमान की तुलना भौजी से करने लगा और मुझे माधुरी पर और भी गुस्सा आने लगा| आखिर उसी की वजह से भौजी की आँखों में आंसू आये थे! मैंने धीरे-धीरे लंड को बहार खींचा और अबकी बार जोर से अंदर पेल दिया! उसकी चींखें निकली; "आआअक़आ अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह" अब मैं बस उसपे अपनी खुंदक निकालना चाहता था और मैंने जोर-जोर से शॉट लगाना शुरू कर दिया| इस ताकतवर हमले से तो वो लघ-भग बेसुध होने लगी| पर दर्द के कारन वो अब भी होश में लग रही थी उसकी टांगों का लॉक जो मेरी कमर के इर्द-गिर्द था वो खुल गया था|
दस मिनट बाद उसकी चूत ने भी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| अब वो भी नीचे से रह-रह के झटके दे रही थी| तभी अचानक वो एक बार मुझसे फिर लिपट गई और फिर से अपनी टांगों के LOCK से मुझे जकड लिया और जल्दी बाजी में उसने मेरी टी-शर्ट उतार फेंकी| अब उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से एक दम से चिपका हुआ था| मुझे उसके तोतापरी स्तन अपनी छाती पे चुभते हुए महसूस हो रहे थे ... उसके निप्पल बिलकुल सख्त हो चुके थे! वो मेरे कान को अपने मुंह में ले के चूसने लगी| वो शुक्र था की अँधेरा हो गया जिसके कारन उसे मेरी छाती बने LOVE BITES नहीं दिखे! वो झड़ चुकी थी !!! अंदर से उसकी चूत बिलकुल गीली थी.... और अब आसानी से मेरा लंड अंदर और बहार आ जा सकता था| शॉट तेज होते गए और अब मैं भी झड़ने को था| अब भी मुझे अपने ऊपर काबू था और मैंने खुद को उसके चुंगल से छुड़ाया और लंड बहार निकाल के उसके स्तनों पे वीर्य की धार छोड़ दी| गहरी सांस लेते हुए मैं झट से खड़ा हुआ क्योंकि मैं और समय नहीं बर्बाद करना चाहता था| घडी में देखा तो करीब छः बज रहे थे| इतनी जल्दी समय कैसे बीता समझ नहीं आया| तभी अचानक से झड़-झड़ करके पानी बरसने लगा| मानो ये सब देख के किसी के आंसूं गिरने लगे, और मुझे ग्लानि महसूस होने लगी|
माधुरी भी उठ के बैठ गई और बारिश इ बूंदों से अपने को साफ़ करने लगी| अँधेरा बढ़ने लगा था और अब हमें वहां से निकलना था| मैंने माधुरी से कहा;
"जल्दी से कपडे पहनो हमें निकलना होगा|"
माधुरी: जी ....
इसके आगे वो कुछ नहीं बोली, शायद बोलने की हालत में भी नहीं थी| हमने कपडे पहने और बहार निकल गए| मैंने माधुरी से और कोई बात नहीं की और चुप-चाप ताला लगा के निकल आया ... मैंने पीछे मुड़ के भी नहीं देखा| मैं जानबूझ के लम्बा चक्कर लगा के स्कूल की तरफ से घर आया... बारिश होने के कारन मैं पूरा भीग चूका था| घर पहुंचा तो अजय भैया छाता ले के दौड़े आये;
अजय भैया: अरे मानु भैया आप कहाँ गए थे?
मैं: यहीं टहलते-टहलते आगे निकल गया वापस आते-आते बारिश शुरू हो गई तो स्कूल के पास रूक गया| पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, मुझे लगा आप लोग परेशान ना हो तो ऐसे ही भीगता चला आया|
अजय भैया: चलो जल्दी से कपडे बदल लो नहीं तो बुखार हो जायेगा|
अजय भैया ने मुझे बड़े घर तक छाते के नीचे लिफ्ट दी| घर पहुँच के मैंने कपडे बदले ... पर अब भी मुझे अपने जिस्म से माधुरी के जिस्म की महक आ रही थी| मैं नहाना चाहता था.. इसलिए मैं स्नानघर गया और वहीँ नहाना चालु कर दिया| स्नानघर ऊपर से खुला था मतलब एक तरह से मैं बारिश के पानी से ही नह रहा था| साबुन रगड़-रगड़ के नहाया ... मैंने सोचा की साबुन की खुशबु से माधुरी के देह (शरीर) की खुशबु निकल ही जाएगी|जैसे ही नहाना समाप्त हुआ मैंने तुरंत कपडे बदले पर अब तक देर हो चुकी थी... सर्दी छाती में बैठ चुकी थी क्योंकि मुझे छींकें आना शुरू हो गई थीं| कंप-काँपि शुरू हो गई और मैं एक कमरे में बिस्तर पे लेट गया| पास ही कम्बल टांगा हुआ था उसे ले के उसकी गर्मी में मैं सो गया| करीब एक घंट बाद अजय भैया मुझे ढूंढते हुए आये और मुझे जगाया ... बारिश थम चुकी थी और मैं उनके साथ रसोई घर के पास छप्पर के नीचे आके बैठ गया| दरअसल भोजन तैयार था... और मुझे लगा जैसे भौजी जानती हों की मैं कहाँ था और किस के साथ था| शायद यही कारन था की वो मुझसे बात नहीं कर रही थी और अब तो नेहा को भी मेरे पास नहीं आने दे रहीं थी|
मन ख़राब हो गया और मैं वहां से वापस बड़े घर की ओर चल पड़ा| पीछे से पिताजी ने मुझे भोजन के लिए पुकारा पर मैंने झूठ बोल दिया की पेट ख़राब है| मैं वापस आके अपने कमरे (जिसमें हमारा सामान पड़ा था) में कम्बल ओढ़ के सो गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था.... जब सुबह आँख खुली तो माँ मुझे जगाने आई थी ओर परेशान लग रही थी|
बड़ी मुश्किल से मेरी आँख खुली;
मैं: क्या हुआ?
माँ: तेरा बदन बुखार से टप रहा है ओर तू पूछ रह है की क्या हुआ? कल तू बारिश में भीग गया था इसीलिए ये हुआ... ओर तेरी आवाज इतनी भारी-भारी हो गई है| हे राम!!! .. रुक मैं अभी तेरे पिताजी को बताती हूँ|
मैं वापस सो गया, उसके बाद जब मैं उठा तो पिताजी मेरे पास बैठे थे;
पिताजी: तो लाड-साहब ले लिए पहली बारिश का मजा ? पड़ गए ना बीमार? चलो डॉक्टर के|
मैं: नहीं पिताजी बस थोड़ा सा बुखार ही है... क्रोसिन लूंगा ठीक हो जाऊँगा|
पिताजी: पर क्रोसिन तो ख़त्म हो गई... मैं अभी बाजार से ले के आता हूँ| तू तब तक आराम कर!
पिताजी चले गए ओर मैं वापस कम्बल सर तक ओढ़ के सो गया|
जब नींद खुली तो लगा जैसे कोई सुबक रहा हो... मैंने कम्बल हटाया तो देखा सामने भौजी बैठी हैं| मैं उठ के बैठना चाहा तो वो चुप-चाप उठ के चलीं गई| एक तो कल से मैंने कुछ खाया नहीं था ओर ऊपर से मजदूरी भी करनी पड़ी (माधुरी के साथ)| खेर मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता था इसलिए मैं चुप-चाप लेट गया| भौजी का इस तरह से मुंह फेर के चले जाना अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था| मैं उनसे एक आखरी बार बात करना चाहता था .... मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता था बस उनसे माफ़ी माँगना चाहता था| मैं जैसे-तैसे हिम्मत बटोर के उठ के बैठा ... कल से खाना नहीं खाया था और ऊपर से बुखार ने मुझे कमजोर कर दिया था| तभी भौजी फिर से मेरे सामने आ गईं और इस बार उनके हाथ में दूध का गिलास था| उन्होंने वो गिलास टेबल पे रख दिया और पीछे होके खड़ी हो गईं.... क्योंकि टेबल चारपाई से कोई दो कदम की दूरी पे था तो मैं उठ के खड़ा हुआ और टेबल की ओर बढ़ा| मुझे अपने सामने खड़ा देख उनकी आँखों में आंसूं छलक आये ओर वो मुड़ के जाने लगीं| मैंने उनके कंधे पे हाथ रख के उन्हें रोलना चाहा तो उन्होंने बिना मूड ही मुझे जवाब दिया; "मुझे मत छुओ !!!" उनके मुंह से ये शब्द सुन के मैं टूट गया ओर वापस चारपाई पे जाके दूसरी ओर मुंह करके लेट गया|
करीब एक घंटे बाद भौजी दुबारा आईं...
भौजी: आपने दूध नहीं पिया?
मैं: नहीं
भौजी: क्यों?
मैं: वो इंसान जिससे मैं इतना प्यार करता हूँ वो मेरी बात ही ना सुन्ना चाहता हो तो मैं "जी" के क्या करूँ?
भौजी: ठीक है... मैं आपकी बात सुनने को तैयार हूँ पर उसके बाद आपको दूध पीना होगा|
मैं उठ के दिवार का सहारा लेटे हुए बैठ गया और अब भी अपने आप को कम्बल में छुपाये हुए था|
मैं: मैं जानता हूँ की जो मैंने किया वो गलत था... पर मैं मजबूर था! जिस हालत में मैंने माधुरी को देखा था उस हालत में आप देखती तो शायद आप मुझसे इतना नाराज नहीं होतीं| मानता हूँ जो मैंने किया वो बहुत गलत है ... उसकी कोई माफ़ी नहीं है पर मैं अपने सर पे किसी की मौत का कारन बनने का इल्जाम नहीं सह सकता| और आपकी कसम कल जो भी कुछ हुआ मैंने उसे रत्ती भर भी पसंद नहीं किया... सब मजबूरी में और हर दम आपका ही ख़याल आ रहा था मन में| मैंने कुछ भी दिल से नहीं किया... सच! प्लीज मेरी बात का यकीन करो और मुझे माफ़ कर दो!!!
भौजी: ठीक है.. मैंने आपकी बात सुन ली अब आप दूध पी लो|
(इतना कह के भौजी उठ के दूध का गिलास उठाने लगीं)
मैं: पहले आप जवाब तो दो?
भौजी: मुझे सोचना होगा...
मैं: फिर जवाब रहने दो... मेरी सब बात सुनने के बाद भी अगर आपको सोच के जवाब देना है तो जवाब मैं जानता हूँ|
(इतना कह के मैं फिर से लेट गया| पर भौजी नहीं मानी... और गिलास ले के मुझे उठाने के लिए उन्होंने सर से कम्बल खींच लिया|)
भौजी: आपको क्या लगता है की इस तरह अनशन करने से मैं आपको माफ़ कर दूंगी? आपमें और आपके भैया में सिर्फ इतना फर्क है की उन्होंने मेरी पीठ पे छुरा मार तो आपने सामने से बता के! अब चलो और ये दूध पियो|
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठाने की कोशिश की| तभी उनको पता चला की बुखार और भी बढ़ चूका है|