एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:40

45

अब आगे...

मैं: आप बड़े शैतान हो... तो प्रॉमिस Me, अब से आप और मैं अंग्रेजी में ही बात करेंगे?

भौजी: नहीं.... अगर किसी को पता चल गया तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा| प्लीज !!!

मैं: ठीक है बाबा... वैसे भी आप कौन सी मेरी हर बात मानते हो|

भौजी: नहीं आपके लिए तो जान हाजिर है| पर ....

मैं: ठीक है बाबा आपको सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं…… मैं समझ सकता हूँ|

भौजी: आप मेरी हर बात बिना कहे ही समझ जाते हो|

जब भौजी ने मेरे सामने अंग्रेजी में वो शब्द बोले तो मैं हैरान था पर बाद में उनकी पूरी बात सुनके मैं यही समझ पाया की उनका इस बात को राज रखने का कारन बहुत ही साफ़ था| घर वालों को वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ता बस यदि किसी बात में अगर भौजी अपनी राय देती तो सब यही कहते की ये जयादा पढ़ी लिखी है और अपनी धोंस दिखा रही है| जो की भौजी का आचरण बिलकुल भी नहीं था| और दूसरी बात उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में बात करने से इसलिए मन कर दिया की घर वाले सोचंेगे की ये दोनों अंग्रेजी में बातें कर के जर्रूर कोई खिचड़ी पका रहे हैं| मैं और भौजी दोनों किसी की Unwanted Attention नहीं चाहते थे|

भौजी: अच्छा आप को मुझसे कुछ बात करनी थी?

मैं: हाँ वो.... (कुछ सोचते हुए)

भौजी: बोलो ना?

मैं: अभी नहीं... कल बात करेंगे, अभी सो जाओ|

भौजी: तो आप जा रहे हो? (उनका चेहरा फीका पढ़ने लगा था|)

मैं: अरे नहीं बाबा.... मैं अपनी जानेमन को छोड़ के कहाँ जाऊँगा|

मैं जानता था की अगर मैं जाने की बात की तो उनका मन ख़राब हो जायेगा इसलिए उनकी ख़ुशी के लिए मैं उनके साथ चिपका सोने लगा| पर नींद उड़ चुकी थी.... मैं तो बस इन्तेजार कर रहा था की कब उनकी आँख लगे और मैं चुप-चाप सरक के बहार आ जाऊँ| क्योंकि अगर मैं वहीँ सो जाता तो सुबह तूफ़ान आना तय था| करीब आधे घंटे में भौजी मुझसे लिपटी हुई सो गईं और मुझे ये पूरा यकीन हो गया की वो सो चुकी हैं| मैंने धीरे से अपना दायें हाथ को उनके सर के नीचे से खींच लिया| और अपने कपडे पहन लिए... पर भौजी अब भी निर्वस्त्र थीं| मैंने उनकी साडी उठाई और उनके ऊपर दाल दी और ऊपर से एक चादर डाल दी| मैं चुप-चाप बहार निकला और दरवाजा वापस बंद कर दिया|

बहार आके मैं अपनी चारपाई पे नेहा के बगल में लेट गया| नेहा ने करवट बदली और अपने हाथ मेरी छाती पे रख दिया| मैंने उसकी ओर करवट ली ओर उसके सर पे हाथ फेरने लगा| और अपने जीवन में आये इतने परिवर्तनों के बारे में सोचने लगा|

एक औरत जिसे पहले मैं अपना दोस्त मानता था आज वो मुझे अपना पति मानती है और मैं उसे अपनी पत्नी मानता हूँ! एक छोटी सी बच्ची जिसने आज मुझे "पापा" कहके सम्बोधित किया और मेरे मन में जैसे भावनाओं का सागर उमड़ आया! और मैं भी उसे अपनी बेटी मानने लगा| इतनी सी उम्र में मुझे इतना प्यार कैसे मिल गया? जो पैसे मुझे जेब खर्ची के लिए मिलते थे और मैं उन्हें जोड़ रहा था की मैं एक नया मोबाइल लूंगा उन्हें बिना कुछ सोचे मैं भौजी और नेहा पे खर्च कर दिया!!! मैं इतना बड़ा हो गया की एक शादी-शुदा औरत को भगाने की बात कर रहा हूँ? और उसकी और उसकी बेटी जिनसे मेरे दिल का अटूट रिश्ता बन चूका है उनकी जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हूँ! आखिर मुझ हो क्या गया है? ये कैसा जादू है जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव किया और मुझे इतना जिम्मेदार बना दिया| ये सब सोचते-सोचते मैं सारी रात जागता रहा| वो रात जैसे मेरे विचारों के अनुसार पहर बदल रही थी! सुबह मेरी आँखें खुली हुईं थी और मैं इन्तेजार कर रहा था की कब घर के सब लोग उठें और मैं भी उठ के बैठूं| मेरा हाथ अब भी नेहा को थप-थापा रहा था और आँखें खुलीं थी... जैसे मैं खुली आँखों से अब तक जो हुआ वो सब देख रहा हूँ| करीब पांच बजे भौजी आईं, नेहा को जगाने और मुझे जागता हुआ देख के थोड़ा परेशान हुईं;

भौजी: आप सोये नहीं रात भर?

मैं: नहीं.... नींद ही नहीं आई|

भौजी: क्या सोच रहे थे?

मैं: कुछ नहीं

भौजी: अभी आप थोड़ा सो लो मैं आपको आठ बजे उठाऊंगी फिर बात करेंगे| इस तरह सोओगे नहीं तो बीमार हो जाओगे|

मैं: नहीं... नींद नहीं आएगी| अब सब उठ गए हैं तो मैं भी उठ के नह धो लेता हूँ| दिन में सो लूंगा!

भौजी: (शिकायत भरे लहजे में कहा) हाँ भई अब हमारी कौन सुनता है|

बस इतना कहके वो नेहा को गोद में ले के चलीं गई और मैं भी उठ के नह धो के तैयार हो गया| भौजी ने नेहा को तैयार कर सात बजे तक स्कूल भेज दिया| मैं प्रमुख आँगन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था जब भौजी मेरे पास आईं और बोलीं;

भौजी: मैं आपसे नाराज हूँ.....

मैं: (उनकी बात काटते हुए) ये अच्छा है मुझसे तो वादा ले लिया की की मैं कभी आपसे नाराज नहीं हो सकता और आप मुझसे नाराज हो जाओ?

भौजी: (मुस्कुरा दीं) आप मुझे रात में अकेला क्यों छोड़ आये?

मैं: अब मैं.....

मेरे कुछ कहने से पहले भौजी ने अपने मुंह पे हाथ रखा जैसे उन्हें उबकाई आ रही हो| वो तुरंत अपने घर की ओर भागीं| उन्हें इस तरह देख के मेरे प्राण सुख गए और मैं भी उनके पीछे भगा| अंदर जा के देखा तो भौजी स्नान घर में खड़ी हैं और उलटी कर रही हैं| मैं तुरंत भाग के रसोई की ओर भागा और चीखते हुए बड़की अम्मा को पुकारा| बड़की अम्मा रसोई से निकलीं और मेरी परेशानी का कारन पूछा| मैंने उन्हें बताया; "अम्मा भौजी उलटी कर रहीं हैं.. आप प्लीज देखिये ने उन्हें क्या हुआ है|" मेरी चिंता मेरे चेहरे पे झलक रही थी और अम्मा भौजी के पास दौड़ीं और मैं दौड़ के माँ को बुलाने बड़े घर पहुँचा| माँ कपडे तह लगा के रख रहीं थीं जब मैंने उन्हें भौजी के बारे में सब बताया| माँ बड़बड़ाते हुए निकलीं; "कल जर्रूर तूने कुछ अटपटा खिला दिया होगा इसलिए बहु को उलटी हो रही है|" अब मैं डर गया की कहीं उन्हें फ़ूड पोइज़निंग तो नहीं हो गई? अगर ऐसा होता तो उस दुकानवाले की खेर नहीं थी! इधर रसियक भाभी को देखा तो वो तो घोड़े बेच के सो रहीं थी| मैं जल्दी से अपने ख्यालों से बहार आया और भौजी के घर की ओर भाग| मैं अंदर जाना चाहता था परन्तु नहीं गया ... अब तक घर में हड़कम्प मच चूका था और ये कहना गलत नहीं होगा की वो हड़कम्प मैंने ही मचाया था|

करीब पांच मिनट बाद अम्मा भार निकलीं और उनके मुख पे ख़ुशी झलक रही थी| बहार का सीन कुछ इस तरह था;

भौजी के घर के दरव्वाजे के ठीक सामने मैं खड़ा था| भूसा रखने वाले कमरे के बहार पिताजी और बड़के दादा चारपाई डाल के बैठ थे और कुछ बात कर रहे थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों और कुऐं के पास खड़े बात कर रहे थे| अब सब से पहले बड़की अम्मा को मैं दिखा तो वो मेरा परेशान चेहरा देख के बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे मुन्ना परेशान मत हो, तुम चाचा बनने वाले हो!!!

ये सुन के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मन किया की अंदर जाके भौजी को गले लगा लूँ, पर मैं रूक गया और देखना चाहता था की चन्दर भैया की क्या प्रतिक्रिया है? अमा ख़ुशी-ख़ुशी चन्दर भैया के पास गईं और उन्हें खुश खबरी सुनाई पर उनके चेहरे पे कोई भाव ही नहीं थे| वो सर झुकाये सोच में पद गए और फिर खेतों की ओर निकल गए| पर अजय भैया बहुत खुश थे अब चूँकि मैं समझ चूका था की आज तो बवाल होना तय है इसलिए मैं भौजी को बधाई देने के लिए भागा| अंदर भौजी ओर माँ चारपाई पे बैठे थे ओर सबसे ज्यादा भौजी खुश दिख रहीं थी| और हों भी क्यों ना आखिर वो माँ बनने वालीं थीं... वो भी मेरे बच्चे के माँ!!!!
मैं जब अंदर पहुँचा तो भौजी मुझे गले लगाना चाहती थीं पर फिर उन्हें एहसास हुआ की माँ भी बैठी हैं| इसलिए वो मन मार के बैठीं रहीं| मैं उनके हाव भाव देख के समझ गया की वो क्या चाहती हैं| इसलिए मैं पहले अंदर गया और फिर 4 - ५ कदम दूर जाके खड़ा हो गया, और बड़े जोश से बोला;
"आप माँ बनने वाले हो!!!" और इतना कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उन्हें दिखाया की मैं उन्हें गले लगाना चाहता हूँ| अब भौजी को खुद को रोक पाना मुश्किल था इसलिए वो तेजी से मेरी ओर बढ़ीं और मुझे गले लगा लिया|

भौजी ने मुझे कस के जकड लिया और मेरे कान में खुसफुसाइन; "आप बाप बनने वाले हो!" और मैंने जवाब में उन्हिएँ; "थैंक यू" कहा| ये सब माँ के सामने हो रहा था और माँ सोच रहीं थी की ये देवर-भाभी का प्यार है| हम अलग हुए और भौजी वापस अपनी चारपाई पे माँ के बगल में बैठ गईं और माँ ने उनके सर पे हाथ फेरा| इतने में बड़की अम्मा अंदर आ गईं और उनके हाथ में मिठाई थी| वो बोलीं;

बड़की अम्मा: चलो भई अबकी मेरा अपने पोते को गोद में खिलाने का सपना पूरा जर्रूर होगा|

अब ये सुनके मेरा दिमाग ख़राब होगया| बड़की अम्मा एक औरत होक ऐसी दाखियानूसी बातें कैसे कर सकती हैं इसलिए मैं उन्हें अपना विरोध जताया;

मैं: क्यों अम्मा अगर लड़की हुई तो?

बड़की अम्मा: नहीं... मैं जानती हूँ की लड़का ही होगा! तुम ये मिठाई खाओ| (ये कहते हुए उन्होंने मेरे आगे मिठाई का डिब्बा सरका दिया|)

मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हो की लड़का ही होगा? और मुझे तो आश्चर्य इस बात का है की आप एक औरत हो के इस तरह कह रहे हो|

बड़की अम्मा: मुन्ना वंश चालने के लिए लड़का तो होना चाहिए ना?

मैं: तो लड़का है नहीं क्या? लड़का या लड़की भगवान की मर्जी होती है इसमें माँ क्या कर सकती है?

बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हारे बड़के दादा को पोता ही चाहिए?

मैं: ओह तो ये बात है! मैं उनसे इस बारे में बात अवश्य करूँगा|

भौजी ने मुझे रोकना चाहा पर मैंने उनकी अनसुनी कर ई और बड़के दादा से बहस का इरादा लिए उनके सामने खड़ा हो गया| ऐसा नहीं था की मुझे हीरो बनने का बहुत शौक था या ये मेरा बच्चा है और बड़े बुजुर्ग इसमें भौजी को दोष दे रहे हैं, परन्तु मेरी अंतर आत्मा ने कहा की मुझे इसका विरोध करना चाहिए| मैंने बड़ी उखड़ी हुए अंदाज में उनसे बात की;

बड़के दादा: आओ-आओ बेटा बैठो! ये लो मिटहाउि खाओ, तुम चाचा बनने वाले हो!

मैं: दादा मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

बड़के दादा: हाँ कहो?

मैं: आपको पोती चाहिए या पोता?

बड़के दादा: (बड़े गर्व से) पोता!!!!

मैं: अगर पोती हुई तो?

बड़के दादा: अरे शुभ-शुभ कहो बेटा?

मैं: मैंने कौन सी मनहूसियत की बात कह दी? मैं तो आपसे एक सीधा सा सवाल पूछ रहा हूँ|

बड़के दादा: अरे पोता ही होगा|

मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हैं?

बड़के दादा: अरे मुन्ना (मेरे पताजी से) देख तो तेरा लड़का बड़े सवाल पूछ रहा है?

पिताजी: क्यों रे? बड़ों का लिहाज नहीं है तुझे?

मैं: पिताजी मैंने तो बस एक सीधा सा सवाल पूछा बस?

पिताजी: तो उन्होंने कह तो दिया की पोता होगा?

मैं: मैं यही तो जानना चाहता हूँ की दादा इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?

पिताजी: तू....

मैं: (बीच में बात काटते हुए) क्षमा करें पिताजी मैं आपकी बात काट रहा हूँ परन्तु मुझे बड़के दादा का यूँ पोते के प्रति पक्षपात ठीक नहीं लगा| पहले भी जब नेहा पैदा हुई तो भी यही बखेड़ा खड़ा हुआ था और नतीजा आप देख सकते हो की चन्दर भैया और भौजी की नहीं बनती| और अब फिर ये सवाल की पोता ही होगा? अगर मेरी जगह आपके घर लड़की पैदा होती तो क्या आप उसे उतना प्यार नहीं देते जितना आप मुझे देते हैं? क्या आप उसे वही शिक्षा नहीं देते जो आपने मुझे दी? क्या आप उसे बड़ों का आदर करना और छोटों से प्यार करना नहीं सिखाते? आपने तो कभी कोई भेद-भाव नहीं किया तो बड़के दादा क्यों करते हैं?

पिताजी और बड़के दादा के पास कोई जवाब नहीं था और ना ही मैं किसी जवाब की अपेक्षा रखता था| इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से उठ आया, मैं जानता था की मेरे इस ज्ञान का उन सब पे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा| इसलिए मैं वापस अंदर आ गया ...


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:41

बदलाव के बीज--46

अब आगे...

मैं: अम्मा मैंने जो कहना था वो बड़के दादा से कह दिया| मैं जानता हूँ की इसका कोई असर नहीं पड़ेगा पर हाँ कम से कम मेरी अंतर-आत्मा तो मुझे नहीं कचोटेगी| खेर यहाँ कोई लेडी डॉक्टर है... मेरा मतलब महिला डॉक्टर जो भौजी का एक बार चेक-अप कर ले?

बड़की अम्मा: हाँ है शर्मीला जी|

मैं: ठीक है आप तैयारी करो मैं पिताजी से कह के बैल गाडी मँगवाता हूँ|

मैं वापस बहार आया और देखा तो बड़के दादा नहीं थे .. वो खेत जा चुके थे सिर्फ पिताजी थे जो चारपाई पे लेते सोच रहे थे;

मैं: पिताजी मैं बैलगाड़ी वाले को बोल आता हूँ| भौजी का चेक-अप होना जर्रुरी है|

पिताजी: एक बात बता, मैं तुझे डाँट नहीं रहा बस कुछ पूछना चाहता हूँ| तुझमें इतनी हिम्मत कैसे आ गई? कुछ दीं पहले तू कभी किसी बात का विरोध नहीं करता था... जो कह दो चुप-चाप करता था| पर पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ तू ने जवाब देना शुरू कर दिया है| सही-गलत माइन अंतर करना सीख लिया है... ये अच्छी बात है पर मुझे इनकी आदत नहीं है| तूने अभी जो भी कहा वो बिलकुल ठीक कहा पर अभी भी बहुत सी बातें हैं जो तू नहीं जानता क्योंकि तू छोटा है| खेर मैं बड़े भैया को समझा लूंगा पर उनका बर्ताव मैं नहीं सुधार सकता|

मैं: पिताजी आपने मुझे शिक्षा ही ऐसी दी है की मैं कुछ भी गलत होता नहीं देख सकता| उस दिन जब माधुरी ने शादी की बात कही तो पहली बार मैंने आपका विरोध किया परन्तु विरोध के पीछे जो कारन था वो आपको समझा अवश्य दिया| आज भी जो हुआ वो मैं सह नहीं पाया और अंदर का आक्रोश इस तरह बहार आ गया| खेर मैं बड़के दादा से अपने इस रोह व्यवहार के लिए माफ़ी अवश्य मांग लूंगा पर मैंने कोई गलत बात नहीं की और उसके लिए मैं माफ़ी नहीं माँगूँगा|

पिताजी: ठीक है बीटा ये सब हम बाद में सोचेंगे की तू कहाँ गलत है और कहा सही, फिलहाल तू जाके बैलगाड़ी वाले को बोल आ| मैं बड़े भैया के पास जा रहा हूँ|

मैं तुरंत बैलगाड़ी के पास भाग और रास्ते में मैंने जो कहा उसके बारे में सोचने लगा| मुझे नहीं लगता की मैं कहीं गलत था पर ऐसी कुछ बातें जर्रूर थीं जिनके बारे मैं मैं नहीं जनता था| ये बातें मुझे सिर्फ भौजी से ही पता लग सकती थीं| पर ये सही समय नहीं था उनसे पूछने का| और सबसे बड़ी बात की पिताजी आज मुझसे इतने प्यार से क्यों बात कर रहे थे? उनका मेरे प्रति रवैया हमेशा से ही सख्त मिजाज रहा है! हो सकता है की मैं अब बड़ा हो चूका हूँ इसलिए वो अब मुझ पे उतना दबाव नहीं डालते जितना पहले डालते थे|

खेर मैं बैलगाड़ी वाले को बोल आया और वापस आके भौजी और माँ को बताया की बैलगाड़ी वाला 15 मिनट में आ रहा है|

भौजी: आप भी चलोगे ना?

माँ: (बीच में बात काटते हुए) बहु ये वहाँ क्या करेगा? तू यहीं रुक और अगर हमें देर हो गई तो नेहा का ध्यान रखिओ|

मैं: जी|

मैं जानता था की भौजी चाहती थीं की मैं उनके साथ आऊँ पर माँ और बड़की अम्मा तो जा ही रहे थे और ऐसे में मेरा जोर देना गलत बात पे ध्यान आकर्षित करता| मैं और माँ बहार आ गए और जैसे ही बैलगाड़ी वाला आया मैं भौजी को बुलाने अंदर गया| भौजी मेरे से लिपट गईं और रूवांसी हो गई| मैंने उन्हें प्यार से चुप कराया और डॉक्टर के भेजा| अब मैं अकेला घर पे था और कुछ ही देर में रसिका भाभी भी उठ के आ गईं|

रसिका भाभी: मानु जी, सब लोग कहाँ हैं? यहाँ तो कोई भी नहीं दिख रहा?

मैंने उन्हें सारी बात बताई और ये खुश खबरी सुन के वो कुछ ख़ास खुश नजर नहीं आईं| कारन क्या था ये मुझे बाद में पता चला| (ये बात उनके बेटे वरुण के बारे में थी|)
वाकई में भौजी, अम्मा और माँ को काफी देर लगी और अब तो नेहा के स्कूल से आने का समय हो गया था| इधर रसिका भाभी बेमन से खाना पका रहीं थीं और मैं नेहा को स्कूल लेने निकल पड़ा| घर आके नेहा ने अपनी मम्मी के बारे में पूछा;

नेहा: पापा मम्मी कहाँ है?

मैं: बेटा आपका छोटा भाई या बहन आने वाला है उसके लिए उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा|

नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और वो ख़ुशी से उछल पड़ी| खुश तो मैं भी था परन्तु एक दर सता रहा था| चन्दर भैया की प्रतिक्रिया मैंने देखि थी और वो अब तक शांत थे| जाहिर था की ये चुप्पी तूफ़ान से पहले का सन्नाटा है| मैं मन ही मन इस तूफ़ान को झेलने की ताकत बटोर रहा था और तैयारी कर चूका था की अगर मौका आया तो मैं सब के सामने ये कबूल कर लूंगा की ये बच्चा मेरा है! खेर मैंने नेहा के कपडे बदले और उसे खाना खिलाया और वो मेरी ही गोद में सो गई| करीब आधे घंटे बाद सब उसी बैलगाड़ी में लौट आये| भौजी सीधा अपने घर में घुस गईं, बैलगाड़ी वाले को पैसे मैं पहले ही दे चूका था तो अम्मा और माँ सीधा रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठ गए| मैंने उन्हें पानी पिलाया और फिर पूछने लगा की डॉक्टर शर्मीला ने क्या कहा, तो अम्मा ने बताया; "बेटा चिंता की कोई बात नहीं है, तुम्हारी भौजी माँ बनने वाली हैं| बस कुछ ख़ास बातों का ध्यान रखने को बोला है बस| ब्लड प्रेशर, खून वगैरह चेक कर रहे थे इसलिए इतना टाइम लगा| तुम जाके अपनी भौजी से मिल लो|" मैं भौजी से मिलने घर में पहुँचा तो भौजी को देख के जो ख़ुशी हुई उसे मैं बयान नहीं कर सकता| अब जाके हमें कुछ टाइम मिला था साथ बैठने का|

भौजी: आइये मेरे पास बैठिये, जब से ये खबर आपको पता चली है तबसे आपको मेरे पास बैठने का टाइम ही नहीं मिला! चलिए अब मुँह मीठा करिये|

भौजी ने एक बर्फी का टुकड़ा मुझे खिलाया और मैंने वही टुकड़ा उन्हें भी खिलाया|

मैं: मुझे पूछने की जर्रूरत तो नहीं क्योंकि आपके चेहरे से ख़ुशी साफ़ झलक रही है|

भौजी: हाँ आज मैं बहुत खुश हूँ!!!

मैं: तो डॉक्टर ने क्या कहा?

भौजी: बस कुछ सवाल पूछे, की आखरी बार सम्भोग कब किया था?

मैं: और आपने क्या बताया?

भौजी: करीब 15-20 दिन पहले| (जो बिलकुल सच था)

मैं: और आपको कुछ हिदायतें भी दी होंगी?

भौजी: हाँ... की ठीक से खाना खाना है, अपना ज्यादा ध्यान रखना है और उसके लिए आप तो हो ही|

मैं: (मैं जानता था की मैं हमेशा यहाँ नहीं रहूँगा पर मैं ये कह के उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|) बस? मैंने तो फिल्मों में देखा है की डॉक्टर कहता है की आप को खुश रहना है, कोई मेहनत वाला काम नहीं करना, ज्यादा से ज्यादा आराम करना है, पौष्टिक खाना खाना है, कोई स्ट्रेस या टेंशन नहीं लेनी|

भौजी: हाँ यही सब कहा उन्होंने| पर आपको बड़ा इंट्रेस्ट है इन चीजों में|

मैं: अब भई पहली बार बाप बनने जा रहा हूँ तो अपनी पत्नी का ख्याल तो रखें ही होगा! और हाँ एक और बात डॉक्टर कहते हैं की इन दिनों पति-पत्नी को थोड़ा सैयाम बरतना होता है|

भौजी: ना बाबा ना ...ये मुझसे नहीं होगा| मैं आपको अपने से दूर नहीं रहने दूंगी और वैसे भी ये बात अभी लागू नहीं होती| ये तो तब के लिए है जब चार-पांच महीने हो जाते हैं| अभी के लिए कोई रोक टोकनहीं है|

मैं: पर प्रिकॉशन (Precaution) लेने में क्या हर्ज है?

भौजी: ना बाबा ना.... मैं आपके बिना नहीं रह सकती| और मुझे खुश रखना है तो ....

मैं: ठीक है बाबा समझ गया| पर हमें सब के सामने तो थोड़ी दूरी बनानी होगी| वरना सब को शक होगा!

भौजी: कैसा शक?

मैं: मैं आपको बताना तो नहीं चाहता था पर जब अम्मा ने ये खबर चन्दर भैया को दी तो उनके मुख पे कोई भाव नहीं थे| जैसे उन्हें कोई फरक ही नहीं पड़ा| पर अगले ही पल वो कुछ सोचने लगे और खेतों की ओर चले गए| मुझे पूरा यकीन है की वो आपसे सवाल पूछनेगे की ये बच्चा किस का है| और अगर उन्होंने आपसे कोई बदसलूकी की तो मैं सब सच कह दूंगा की ये बच्चा मेरा है!

भौजी: नहीं!!! आप ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे!!! आपकी जिंदगी तबाह हो जाएगी... आप पे उम्र भर का लांछन लग जायेगा| आप मुझपे भरोसा रखो, मैं सब संभाल लुंगी|

मैं: कैसे संभाल लोगे? सालों से भैया ने आपको नहीं छुआ और अब ये बच्चा ... वो आपसे पूछेंगे नहीं की ये कैसे हुआ?

आगे की बात पूरी होने से पहले ही चन्दर भैया आ गए और उबके चेहरे से साफ़ लग रहा था की वो बहुत गुस्से में हैं| मैंने फैसला किया की मैं यहीं रहूँगा क्योंकि मुझे अब भी चिंता थी की कहीं वो भौजी पे हाथ न उठा दें| हालाँकि उन्होंने अपनी माँ की कसम खाई थी की वो कभी भौजी पे हाथ नहीं उठाएंगे पर मैं उन पे भरोसा कैसे करता|

चन्दर भैया: (कड़क आवाज में) कुछ बात करनी है|

भौजी कुछ बोली नहीं बस मेरी ओर देखने लगीं... मैं समझ गया था पर फिर भी हिला नहीं|

चन्दर भैया: मानु भैया आप बहार जाओ मुझे आपकी भौजी से कुछ बात करनी है|

मैं हैरान था की आखिर वो मुझसे इतनी हलिमि से बात क्यों कर रहे हैं| मजबूरन मैं बहार चला गया और कुऐं की मुंडेर पे भौजी के घर के दरवाजे की ओर मुँह करके बैठ गया| घर से मुझे कुछ वाजें तो आ रहीं थीं पर ज्यादा ऊँची नहीं थी... इधर मेरा मन बेकाबू होने लगा और मैं आखिर उठ के दरवाजे की ओर चल पड़ा| मेरे अंदर घुसने से पहले ही चन्दर भैया बहार निकले ओर अब उनके मुख पे कुछ संतोष जनक भाव थे| मैं अंदर घुसा तो देखा भौजी चारपाई पर बैठीं है, जिज्ञासा वष मैंने उनसे पूछा;

मैं: आपकी तरकीब काम कर गई| पर क्या हुआ अभी? उन्होंने आप को छुआ तो नहीं?

भौजी: नहीं... आप चिंता ना करो मैंने उन्हें समझा दिया|

मैं: क्या समझा दिया और वो मान कैसे गए?

भौजी: मैंने उन्हें कह दिया की जिस दिन उन्होंने नशे मैं धुत्त होके हाथापाई की थी उसी दिन उन्होंने मेरे साथ वो सब जबरदस्ती किया| (ये कहते हुए भौजी बहुत गंभीर हो गईं जैसे वो मन ही मन अपने आप की इस जूठ के लिए कोस रहीं हों|)

मैं: मैं समझ सकता हूँ आप पे क्या बीत रही है|

बस मेरा इतना कहना था की भौजी टूट गईं और मुझसे लिपट के रोने लगीं| उन्हें अफ़सोस इस बात का था की वो मेरे बच्चे को चाह कर भी मेरा नाम नहीं दे सकती थीं| पर फिर भी मैं जानना चाहता था की आखिर दोनों में बात क्या हुई|

मैं: बस..बस... चुप हो जाओ| आप जानते हो ये मेरा बच्चा है... मैं जानता हूँ ये मेरा बच्चा है, बस हमें दुनिया में ढिंढोरा पीटने की कोई जर्रूरत नहीं है| बस अब आप चुप हो जाओ ... आपको मेरी कसम!

तब जाके भौजी का रोना बंद हुआ.... मैं उनके लिए भोजन लाया और उनके साथ बैठ के ही भोजन किया| उनका मन अब कुछ शांत था पर मेरे मन में जो कल से सवाल उठ रहे थे उनका निवारण जर्रुरी था|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:42

47

अब आगे...

इसलिए मैंने एक-एक कर उनसे सवाल पूछना शुरू किये;

मैं: अच्छा मैं आपसे कुछ बात करना चाहता था|

भौजी: हांजी बोलिए, कल रात से मैं भी बेचैन हूँ की आखिर आपको कौन सी बात करनी है?

मैं: कल शाम जब हम सिनेमा से लौटे थे और माधुरी आपको दिखी तो आप उस पे बरस पड़ीं| राशन-पानी लेके चढ़ गईं... मुझे इस बात का बुरा नहीं लगा पर लगा की आप मुझ पे हक़ जाता रहे हो और मुझे अच्छा लगा पर कभी-कभी आप ये भूल जाते हो की हमारे रिश्ते की कुछ सीमाएं हैं जो दुनिया वालों के लिए बंधी गईं हैं और आप गुस्से में उन्हें (सीमाओं को) भी लांघ जाते हो| नतीजन आपके आस-पास हैरान हो जाते हैं और ख़ास कर नेहा वो बेचारी तो सहम गई थी इतना सहम गई की मेरे पीछे छुप गई|

भौजी: जब भी मैं उसे देखती हूँ तो मेरे तन-बदन में आग लग जाती है| पता नहीां क्यों पर वो मुझे अपनी "सौत" लगती है!

मैं: क्या?

भौजी: हाँ ... उसे देख के मेरा खून खौल उठता है| और जब वो आप पे हक़ जताने की कोशिश करती है तो मन करता है उसका खून कर दूँ! आपको नहीं पता क्या-क्या गुल खिलाये हैं इस लड़की ने!

मैं: बताओ तो सही क्या गुल खिलाये इसने?

भौजी: आपको याद है नहा के हेड मास्टर साहब ने बताया था की उनकी हाल ही में बदली हुई है|

मैं: हाँ

भौजी: उनका लड़का शहर में पड़ता था और यहाँ अपने पिताजी के पास आया था मिलने| अब ये लड़की उसके पीछे भी पद गई... उसे अपनी मीठी-मीठी बातों से बरगला लिया और दोनों की इतनी हिम्मत बढ़ गई की दोनों घर से भाग निकले! और ये भी कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं है, यही कोई साल भर पहले की बात होगी| अब ना जाने उस लड़के ने इसके साथ क्या-क्या किया होगा, कोई तीन दिन बाद हेडमास्टर साहब दोनों को पकड़ के गाँव वापस लाये... और माधुरी के बाप ने सारी आत हेडमास्टर साहब के लड़के पर डाल दी, की वही उनकी लड़की को भगा ले गया| बेचारे इतना बदनाम हुए की गाँव छोड़के चले गए!

मैं: वैसे आप को इतनी विस्तार में जानकारी किसने दी?

भौजी: छोटी ने (रसिका भाभी)| उसके पेट में कोई बात नहीं पचती... उसका चेहरा देख के मैं सब समझ जाती हूँ|

मैं कहना तो चाहता था की माधुरी नीचे से बिलकुल कोरी थी ! और उसका उद्घाटन मैंने ही किया था पर फिर मैं चुप रहा वरना उनका मूड ख़राब हो जाता|

भौजी: पता नहीं उसे क्या हुआ जो इस तरह आपके पीछे पड़ गई और आपको इतना परेशान किया और आपका नाजायज फायदा उठाया| इसीलिए उसे देखते ही मुझे बहुत गुस्सा आता है और मैं ये भी भूल जाती हूँ की मैं कहाँ हूँ और किस्से बात कर रही हूँ| आसान शब्दों में कहूँ तो मैं आपको लेके बहुत POSSESSIVE हूँ!

मैं: अच्छा आज आप क्योंकि बहुत कुछ बताने के मूड में हो तो मैं एक और बात आपसे जानना चाहता हूँ|

भौजी: पूछिये

मैं: मैंने देखा है की घर में कोई भी रसिका भाभी पर ध्यान नहीं देता| वो देर तक सोती रहती हैं ... काम में हाथ नहीं बटाती... सुस्त हैं... और तो और उनका लड़का वरुण, उसे तो ननिहाल भेजे इतना समय हो गया| मैं जब आया था उसके अगले दिन वो ननिहाल चला गया था और उसी दिन गट्टू भी लुधियाना चला गया?

भौजी: गट्टू लुधियाना में पढता है ... ऐसा घरवाले सोचते हैं| असल में वो वहां एक फैक्ट्री में काम करता है|

मैं: तो उसेन ये बात घर में क्यों नहीं बताई?

भौजी: दरअसल आपको पढता देख बड़के दादा की इच्छा हुई की गट्टू भी पढ़े और आप की तरह बने पर उसके दिमाग में पढ़ाई घुसती ही नहीं|

मैं: आपको ये बात कैसे पता?

भौजी: ये बात आपके चन्दर भैया और अजय भैया को पता है और बड़के दादा के डर से कोई उन्हें नहीं बताता|

मैं: और ये रसिका भाभी का क्या पंगा है?

भौजी: दरअसल शादी के पाँच महीने में ही उसे लड़का हो गया था!

मैं: क्या? पर ये कैसे हो सकता है? क्या अजय भैया और रसिका भाभी पहले से एक साथ थे... मेरा मतलब क्या उनकी लव मैरिज थी?

भौजी: नहीं Arrange मैरिज थी... आपकी रसिका भाभी का शादी के पहले किसी के साथ चक्कर था! उनके परिवारवाले ये बात जानते थे इसलिए उन्होंने जल्दीबाजी में ये शादी कर दी| जब ये पेट से हुई तो ये बात खुली.. बड़ा हंगामा हुआ| पर क्योंकि लड़का हुआ था तो बात को धीरे-धीरे दबा दिया| पर आपके बड़के दादा ने वरुण को कभी अपना पोता नहीं माना| उसे बिचारे बच्चे को यहाँ उतना प्यार सिर्फ आप से ही मिला, उसकी अपनी माँ उसे दुत्कार देती थी| दूध तक नहीं पिलाती थी, तब मैं उसे बोतल का दूध पिलाया करती थी| अजय को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता और वो बार-बार उससे (रसियक भाभी से) लड़ता रहता है| अब चूँकि आप शहर से आय थे और इन बातों से अनजान थे इसलिए वरुण को ननिहाल भेज दिया ताकि आपको इस बात की जरा भी भनक ना लगे|

अब मेरी समझ में सारी बात आ गई| चूँकि बड़के दादा चन्दर भैया से ज्यादा प्यार करते हैं इसलिए उनसे एक पोते की उम्मीद रखते हैं| पर मैंने उन्हें कभी नेहा के साथ वो प्यार देते नहीं देखा जो वो अपने पोते को देना चाहते थे, जो की गलत बात थी|

भौजी: अब आप एक बात बताओ, आप क्यों बड़के दादा और बड़की अम्मा से लड़ पड़े?

मैं: मैंने कोई लड़ाई नहीं की, मैंने बस वो कहा जो मेरी अंतर-आत्मा ने मुझसे कहा| हाँ मैं मानता हूँ की मेरा बात करने का लहजा सही नहीं था और उसके लिए मैं उनसे माफ़ी मांग लूंगा पर मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा|

पता ही नहीं चला की हमें बातें करते-करते शाम हो गई| घडी देखि तो पाँच बज रहे थे|

मैं बहार आया तो देखा अम्मा और दादा कुऐं के पास चारपाई डाले बैठे थे और उन्हीं के पास बिछी चारपाई पर माँ और पिताजी बैठे थे| मैं चुप-चाप सर झुकाये उनके पास आया और हाथ बंधे खड़ा हो गया| पीछे-पीछे भौजी भी घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं|

मैं: दादा.. अम्मा ... मैंने जिस लहजे में आप दोनों से सुबह बात की उसके लिए मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ| मुझे इस लहजे में आपसे बात नही करनी चाहिए थी|

बड़के दादा: आओ मुन्ना बैठो यहाँ| देखो तुम शहर में रहे हो .. पढ़े लिखे हो ... वो भी अंग्रेजी में.... तुम्हारी सोच नए जमाने की है.... और हम ठहरे बुजुर्ग और पुरानी सोच वाले| तुम्हारी और हमारी सोच में जमीन आसमान का अंतर है| जो हमारे लिए सही है वो तुम्हारे लिए गलत पर खेर तुम्हारे पिताजी ने हमें बताया ई तुम अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगना चाहते हो पर जो तुमने कहा उसके लिए नहीं| ठीक है... तुम भी अपनी जगह सही हो और हम भी| तो इसमें अब कोई गिला-शिकवा नहीं बचा|

जवाब बहुत रुखा था और सब कुछ जानने के बाद मैं सीधे जवाब की उम्मीद भी नहीं कर रहा था| खेर मैं उठा और छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठ गया| भौजी भी मेरी बगल में बैठ गईं, इतने मैं वहां नेहा आ गई और मेरे पास आके बोली;

नेहा: पापा मेरा छोटे भाई-बहन कहाँ है?

मैं और भौजी उसकी बात सुनके ठहाका मार के हँस पड़े| हमारी हँसी सुन रसिका भाभी रसोई से निकली और हँसी का कारन पूछने लगी| जब उन्हें पता चला तो वो भी हँसी पर वो हँसी बनावटी लग रही थी|

मैं बहार आया तो देखा अम्मा और दादा कुऐं के पास चारपाई डाले बैठे थे और उन्हीं के पास बिछी चारपाई पर माँ और पिताजी बैठे थे| मैं चुप-चाप सर झुकाये उनके पास आया और हाथ बंधे खड़ा हो गया| पीछे-पीछे भौजी भी घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं|

मैं: दादा.. अम्मा ... मैंने जिस लहजे में आप दोनों से सुबह बात की उसके लिए मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ| मुझे इस लहजे में आपसे बात नही करनी चाहिए थी|

बड़के दादा: आओ मुन्ना बैठो यहाँ| देखो तुम शहर में रहे हो .. पढ़े लिखे हो ... वो भी अंग्रेजी में.... तुम्हारी सोच नए जमाने की है.... और हम ठहरे बुजुर्ग और पुरानी सोच वाले| तुम्हारी और हमारी सोच में जमीन आसमान का अंतर है| जो हमारे लिए सही है वो तुम्हारे लिए गलत पर खेर तुम्हारे पिताजी ने हमें बताया ई तुम अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगना चाहते हो पर जो तुमने कहा उसके लिए नहीं| ठीक है... तुम भी अपनी जगह सही हो और हम भी| तो इसमें अब कोई गिला-शिकवा नहीं बचा|

जवाब बहुत रुखा था और सब कुछ जानने के बाद मैं सीधे जवाब की उम्मीद भी नहीं कर रहा था| खेर मैं उठा और छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठ गया| भौजी भी मेरी बगल में बैठ गईं, इतने मैं वहां नेहा आ गई और मेरे पास आके बोली;

नेहा: पापा मेरा छोटे भाई-बहन कहाँ है?

मैं और भौजी उसकी बात सुनके ठहाका मार के हँस पड़े| हमारी हँसी सुन रसिका भाभी रसोई से निकली और हँसी का कारन पूछने लगी| जब उन्हें पता चला तो वो भी हँसी पर वो हँसी बनावटी लग रही थी|

बस तभी नेहा आ गई और हम अलग हो गए| वो रात बस ऐसी ही हँसी-मजाक करते हुए बीती और अगली सुबह एक नई समस्या को साथ ले आई| सुबह चाय पीने के बाद अम्मा ने मुझसे कहा की मैं उनके साथ चक्की तक चलूँ क्योंकि वहाँ से आटा लाना है| अब घर में कोई पुरुष नहीं था तो मैं उनके साथ ख़ुशी-ख़ुशी चल दिया| रास्ते में कल को हुआ उसके बारे में हमारी बात चल राय थी| अम्मा मेरी बातों से प्रभावित थीं पर संतुष्ट नहीं, क्योंकि उनके विचार अब भी बड़के दादा के जैसे थे| मैंने भी इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी और बात बदल दी| जब महम वापस घर पहुँचे तो वहाँ मुझे एक लड़का जो लगभग मेरी उम्र का था वो भौजी से बात करता हुआ दिखा| मैं उसे नहीं जानता था, मैं आटा रसोई में रख के वापस आया तो नेहा उछलती हुई मेरे पास आई| उसने अब भी स्कूल ड्रेस पहना हुआ था, यानी वो अभी-अभी स्कूल से आई थी| मैंने नेहा को गोद में ले लिया और भौजी की ओर देखा तो वो अपने घर में घुस गईं| अब मुझे समझ नहीं आया की ये बाँदा है कौन और इसने भौजी से ऐसा क्या कह दिया की वो अंदर चलीं गई| इतने में वो लड़का चन्दर भैया की ओर चल दिया जो कुऐं की मुंडेर पे बैठे थे| वो हाथ जोड़ के उनसे कुछ कहने लगा और तभी चन्दर भैया ने मेरी ओर इशारा करते हुए ऊँची आवाज में कहा; "भैया जो कहना है हमारे मानु भैया से कहो| वो सिर्फ इन्हीं की बात मानती हैं|" अब ये टोंट था या सच इसमें फर्क करना बहुत मुश्किल था| पर मैं फिर भी चुप रहा और वो लड़का मेरे पास अाया और बोला; "भाई साहब प्लीज जीजी को समझाइये की वो मेरे साथ चरण काका की बेटी की शादी में चलें|" अब उसके मुंह से "जीजी" शब्द सुनके ये साफ़ था की वो मेरा "साला" ही होगा| मैंने उससे कहा; आप यहीं रुको और नेहा को समभालो मैं बात करता हूँ"| पर नेहा थी की अपने मामा की गोद में जा ही नहीं रही थी| वो गोद से उत्तर गई और भागती हुई मेरे पिताजी के पास चली गई| खेर मैं भौजी को समझाने के मूड से घर में घुसा तो अंदर भौजी चारपाई पे बैठी थीं और उनका सर झुका हुआ था|

मेरे कुछ बोलने से पहले ही उन्होंने अपनी बात सामने रख दी;

भौजी: अगर आप मुझे शादी अटेंड करने के लिए कहने आय हो तो मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रही!!!

अब जवाब तो साफ़ था इसलिए मैं चुप-चाप दिवार का सहारा लेके खड़ा रहा| घर में एक दम सन्नाटा था! कुछ देर होने के बाद भौजी कु मुंह से बोल फूटे;

भौजी: I’m Sorry!

मैं: It’s okay. उस दिन रात को आपने बताया था की चरण काका की वजह से "ससुरजी" ने आपको दसवीं तक पढ़ने के लिए शहर भेजा और आज उनकी लड़की की शायद है और आपको स्पेशल बुलावा आया है और आप जाने से मना कर रहे हो?

भौजी: मैं आपके बिना नहीं रह सकती|

मैं: यार आप कौनसा हमेशा के लिए जा रहे हो? कल शादी है, परसों विदाई तरसों आप आजाना| सिर्फ तीन दिन की ही तो बात है|

भौजी: नहीं... आप मुझे छोड़के चले जाओगे?

मैं: नहीं जाऊँगा

भौजी: नहीं मैं आपके बिना एक दिन भी नहीं रह सकती!

मैं: अच्छा मेरे लिए चले जाओ ! प्लीज !!! and I Promise मैं कहीं नहीं जाऊँगा| और इसी बहाने आप "ससुरजी" को खुशखबरी दे देना की वो नाना बनने वाले हैं!!!
भौजी: ठीक है पर अगर मेरे आने पर आप मुझे यहाँ नहीं मिले तो आप मेरा मारा मुंह देखोगे!

मैं: उसकी नौबत ही नहीं आएगी| चलो अब ख़ुशी-ख़ुशी अपना सामान पैक करो मैं "साले साहब" को बुलाता हूँ|

मैंने बहार जाके अनिल (साले साहब) को आवाज दी और उसे अंदर आने को कहा| अंदर आके उसने भौजी को सामान पैक करते देखा तो खुश हो गया| इतने में कूदती हुई नेहा भी आ गई और मेरी गोद में बैठ गई;

मैं: बेटा तैयार हो जाओ आप नानू के घर जा रहे हो!

नेहा खुश हो गई और भौजी उसे कमरे में ले जाकर तैयार करने लगीं| तैयार होक नेहा मेरी गोद में फिर चढ़ गई और अब भी मामा के पास नहीं जा रही थी|

भौजी: अनिल तुमने "इनको" थैंक्स बोला?

अनिल: ओह सॉरी जीजी, थैंक यू भाई साहब!

भौजी: भाई साहब? ये तेरे भाई साहब थोड़े ही हैं.... (अब मैंने भोएं सिकोड़ के भौजी को देखा और उन्हें आगे बोलने से रोकने लगा, पर वो कहाँ सुनने वाली थीं तू अजय को क्या कहके बुलाता है?

अनिल: जीजा जी

भौजी: तो ये तेरे अजय भैया के भाई ही तो हैं, इस नाते ये तेरे क्या हुए?

अनिल: जीजा जी... ओह! थैंक यू जीजा जी|

अनिल के मुंह से जीजा जी सुन के मुझे कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा पर भौजी के मुख पे जो संतोष था वो देख मैं मन ही मन हँस पड़ा| ऐसा लगा जैसे उन्हें ये छोटी-छोटी खुशियां बहुत सुख देती हैं| शायद वो मन ही मन अपनी जीत पे बहुत अकड़ रही होंगी की उन्होंने आखिर अपने भाई से "जीजा जी" बुलवा ही लिया| मैं भी मुस्कुरा दिया!


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