तभी राधा खाने पर बुलाये आयी. हमने खाना खाया. राधा परोस रही थी. परोसते परोसते बार बार उसका आंचल गिर जाता. उसकी चोली में से उसके मचलते हुए छोटे छोटे पर सख्त मम्मे और उनकी घुंडियां दिख रही थीं. मुझे देख कर हंस देती और कभी अपनी जीभ अपने होंठों पर फ़ेरने लगती. लीना ने भी देखा पर बस मेरी ओर देखकर आंख मार दी कि लो, माल तैयार है तुम्हारे लिये.
खाने के बाद में राधा साफ़ सफ़ायी करके वहीं गुटियाती रही. शायद जाना नहीं चाहती थी.
"राधा तू अब जा. कल आना. और वो रघू और रज्जू को बोल दे कि आज कोई काम नहीं है, आराम करें. कल बहुत काम है. बोल देना कि मालकिन ने कहा है, समझी ना? कहना सो जायें जल्दी आज रात को, तू भी आराम कर लेना, कल जरूरत पड़ेगी. समझ रही है ना मैं क्या कह रही हूं?" मौसी ने डांट कर पूछा.
राधा थोड़ी निराश दिखी. वह शायद रहना चाहती थी. फ़िर मौसी ने उसके कान में धीरे से कुछ कहा तो उसका चेहरा खिल उठा. काम खतम कर के वह चल दी.
कुछ देर हम गपशप करते रहे, फ़िर दस बजे हम सब सोने चले गये. मौसी ने ही कहा कि गांव में सब जल्दी सोते हैं. हमारा कमरा मौसी के कमरे से लगा था. बीच में दरवाजा भी था, गांव के घरों जैसा.
मेरा लंड कस के खड़ा था, कमरे में घुसते ही मैं लीना पर चढ़ गया. पर उसने चोदने नहीं दिया, बोली "अरे रुको ना, जरा सबर रखो. क्या इसी लिये मुझे यहां लाये हो अकेले चोदने को? फ़िर बंबई और यहां क्या फरक हुआ?"
"अरे धीरे बोलो रानी, वहां मौसी सुन लेगी" मैंने कहा.
"इसीलिये तो बोल रही हूं. मौसाजी मौसी वहां और हम यहां, कुछ जमता नहीं अनिल" लीना शोखी से आवाज चढ़ा कर बोली, फ़िर मुझे आंख मार कर चुप हो गयी.
मौसी और मौसाजी के बात करने की आवाज आ रही थी.
"क्योंजी, खेत के घर पे मजा कर के आये हो लगता है तभी सोने की फिराक में हो. और यहां मेरी आग कौन बुझायेगा?" मौसी बोलीं.
"अरे आभा रानी, तेरी आग कभी बुझी है जो अब बुझ जायेगी? चल आजा, टांगें खोल के लेट जा, चूस देता हूं. तेरा रस चखने को तो मैं हमेशा तैयार रहता हूं, मेरे को तो तू बचपन से चखाती आयी है" मौसाजी बोले. एक दो मिनिट बस चूमा चाटी की आवाज आ रही थी. फ़िर मौसी तुनक कर बोलीं "अरे ठीक से चूसो ना मेरे सैंया ..... तुम तो बस राधा की चूसते हो ठीक से, वो जवान लड़की है, मैं तो अब बुढ्ढी हो गयी हूं ना .... पहले तो भाभी करके कैसे पीछे पड़े रहते थे ... स्कूल से आते ही मुंह लगा देते थे ... हाय .... आह ... हां ये हुई ना बात ...और थोड़ा मुंह में लो ...हां अब ठीक है"
"अरे नहीं मेरी रानी, बूढ़ी होगी तेरी सास, तेरी चूत तो एकदम जवान है, बहुत मजेदार है मां कसम, और ये मोटे मोटे चूतड़ तेरे, हाय मजा आ जाता है." मौसाजी की आवाज आयी. "चल, तेरी गांड मार दूं? मस्त मारूंगा"
"अरे तुम तो बस गांड के पीछे लगे रहते हो, मेरी बुर का तो खयाल ही नहीं रहता तुमको." मौसी हुमक कर बोली.
"अरे तेरी बुर के दीवाने भी तो हैं, वो रज्जू और रघू तो पुजारी हैं इसके. इसीलिये तो रखा है उनको. और वो राधा भी तो मरती है तेरे पे, उससे चुसवाती हो वो अलग"
"तो जैसे तुमको तो कुछ लेना देना ही नहीं है रघू और रज्जू से. आज शाम को क्या कर आये, मैं भी तो सुनूं जरा. वैसे आज तुमको नहीं डांटूंगी. आज शाम को तो मेरे को भी मजा आ गया. लीना बिटिया ने क्या चूसी थी मेरी .... इतना पानी निकाला था ...."
"अच्छा, शुरू हो गया तुम्हारा? चलो अच्छा हुआ. मैं वोही सोच रहा था, बड़ी सुंदर कन्या है. और वो अनिल भी कम नहीं है" मौसाजी बोले. "तेरे तो वारे न्यारे हैं अब"
"और तुम्हारे नहीं हैं? मुझसे नहीं छुपा सकते तुम. वैसे बाजू वाले कमरे में ही हैं दोनों. अब तक तो दो बार चोद चुके होंगे, आखिर जवान हैं" मौसी जोर से बोलीं जैसे जानबूझकर हमें सुनाना चाहती हों.
लीना सुन रही थी. मेरी ओर देख कर हंसी और जोर से बोली बोली "अनिल .... अभी मत चोदो राजा .... रुक जाओ ... ऐसे ही चूसते रहो ..... मौसी की याद आ रही है ... मौसी की बहुत प्यारी चूत है .... सच ..... तुम देखो तो दीवाने हो जाओगे"
kramashah.................
मैं और मौसा मौसी compleet
Re: मैं और मौसा मौसी
मैं और मौसा मौसी--3 gataank se aage........................
मैंने जोर से कहा "मौसाजी का लंड भी जोरदार होगा रानी .... तभी मौसी इतनी खुश लगती हैं"
"अरे ... ऐसा मत कहो अनिल .... मेरी चूत कुलबुलाने लगती है ... वो चोद रहे होंगे मौसी को ....अकेले अकेले .... अरे मौसी को थोड़ा तो खयाल ... करना था अपनी बहू का ... यहां अकेले में वो कैसे तड़प रही होगी ...." लीना शैतानी से और जोर की आवाज में बोली.
दो मिनिट की चुप्पी के बाद मौसी अपने कमरे से चिल्लाई "अनिल ओ अनिल ... लीना बेटी ... वहां क्या कर रहे हो अकेले, आ जाओ इधर अपने मौसाजी मौसी के पास"
लीना तो राह ही देख रही थी. मेरा हाथ पकड़ा और मौसी के कमरे में घुस गयी "लो मौसी, मैं यही सोच रही थी कि आपने अब तक बुलाया क्यों नहीं"
मौसी नंगी होकर टांगें फ़ैलाकर बिस्तर पर सिरहाने से टिक कर बैठी थीं और मौसाजी उनके सामने झुक कर उनकी बुर चाट रहे थे. अच्छी गोरी मोटी मोटी टांगें थीं मौसी की और मस्त पिलपिली लटकती हुई चूंचियां.
मौसी बोलीं "अरी तुझे बुलाने की क्या जरूरत है, तू खुद चली आती. वैसे मेरे को इस अनिल के बारे में पता नहीं था, सोच रही थी कि ये क्या सोचेगा कि मौसी इतनी चालू निकली"
"अरे मौसी, ये तो कब से आप पे आस लगाये बैठा है. आने के बाद मुझे बोल रहा था कि मौसी के मम्मे तो देखो, लगता है पपीते हैं पपीते, रस भरे. शाम को मैंने बताया कि मैंने कैसे आपकी सेवा की तो नाराज होकर बोला कि अकेले अकेले मौसी का माल चख लिया, मुझे भी चखा देतीं"
मौसी मेरी ओर देख कर बोलीं "तो अब आ जा बेटे, बहुत सारा माल है तेरी मौसी के पास. तुझे नहीं दूंगी तो किसे दूंगी! सुनो जी, तुम हटो अब और अनिल को चखने दो"
"हां मौसाजी, आप तो रोज पाते हो ये प्रसाद. आज मेरी और अनिल की बारी है" लीना पलंग पर चढ़ गयी और मौसी के मम्मे दबाते हुई उनके चुम्मे लेने लगी. मौसाजी हट गये और बोले "आओ अनिल, तुम भी पा लो मौसी का प्रसाद. मैं तो कब से पा रहा हूं" वे अब लीना के नंगे गदराये बदन को देख रहे थे. "वैसे तेरी बहू भी मस्त है अनिल, एकदम अप्सरा है अप्सरा. मैं तो देख कर ही खलास हो गया था, कि क्या सुंदर बहू पायी है अनिल ने. तेरे पिछले जनम के पुण्य होंगे बेटे, जैसे मेरे हैं, मुझे भी तो अपनी भाभी मिल गयी थी बचपन से"
"अरे तो ऐसे दूर से क्या देख रहे हो? पास आओ और स्वाद लो, बहू मना थोड़े करेगी. क्यों लीना बेटी?" मौसी लीना के मम्मे दबाते हुए बोलीं.
"हां मौसाजी, आइये ना, आप का तो हक है, आखिर आप की बहू हूं. ये लीजिये" कहकर लीना ने टांगें पसार दीं. मौसाजी टूट पड़े और उसकी बुर में मुंह डाल कर चाटने लगे. मैं मौसी की टांगों में घुस गया और उनकी बुर का स्वाद लेने लगा.
मौसाजी लपालप लीना की बुर चाट रहे थे. फ़िर उंगली से उसकी चूत खोलकर जीभ अंदर डाल दी. लीना बोली "मौसाजी शौकीन लगते हैं मौसी, देखो कैसे मेरी बुर में अंदर तक जीभ से टटोल रहे हैं"
"अरे तेरे जोबन को पूरा चखना चाहते हैं. ऐसा जोबन सबके नसीब में नहीं होता. और तेरा ये अनिल भी कम नहीं है, ये तो पूरा मुंह अंदर डालने की कोशिश कर रहा है." मौसी मेरे सिर को पकड़कर अपनी चूत में दबाकर बोलीं.
"ठीक ही तो कर रहा है मौसी, इतना गाढ़ा जायकेदार बुर का रस सब को थोड़े मिलता है" लीना बोली फ़िर सिर झुकाकर मौसी की चूंची चूसने लगी.
मैंने और मौसाजी ने खूब देर तक दोनों औरतों का रस निकाला. आखिर मौसी ने मुझे पकड़कर अपने ऊपर खींचा और बोलीं "बस कर अनिल बेटे, कितना चूसेगा! अब जरा चोद, कब से मरी जा रही हूं तेरा ये मस्त लंड लेने को. देख कैसा तन कर खड़ा है. लीना, तेरे को तो बहुत मजा देता होगा अनिल का ये लंड, देख कितना जानदार है"
"हां मौसी, जम के चोदता है मुझे, मैंने भी डांट डपट कर रखा है इसे, मुझे तसल्ली दिये बिना झड़ जाये ये बिसात नहीं इसकी"
मैंने मौसी की बुर में लंड डाल दिया और चोदने लगा. चूत ढीली थी पर एकदम तपती हुई मखमली म्यान थी. उधर मौसाजी लीना की बुर चूसते हुए उसकी गांड में उंगली करने की कोशिश रहे थे.
लीना उनका हाथ झटक कर बोली "ये क्या करते हो मौसाजी, चोदना हो तो ऐसे आओ ऊपर, गांड के पीछे क्यों पड़े हो"
"लीना रानी, क्या गांड है तेरी ... एकदम फ़र्स्ट क्लास ... मारने दे ना" मौसाजी मचल कर बोले.
"गांड तो नहीं मरवाऊंगी मैं मौसाजी, हां चोद लो ना, देखो कैसा मस्त खड़ा है आपका लंड. वैसे मेरे खयाल से और जोर से खड़ा होता होगा, इतना मस्त है, बहुत दमखम वाला लगता है पर आज लगता है थोड़ा दम कम है उसमें" लीना बोली.
मैंने जोर से कहा "मौसाजी का लंड भी जोरदार होगा रानी .... तभी मौसी इतनी खुश लगती हैं"
"अरे ... ऐसा मत कहो अनिल .... मेरी चूत कुलबुलाने लगती है ... वो चोद रहे होंगे मौसी को ....अकेले अकेले .... अरे मौसी को थोड़ा तो खयाल ... करना था अपनी बहू का ... यहां अकेले में वो कैसे तड़प रही होगी ...." लीना शैतानी से और जोर की आवाज में बोली.
दो मिनिट की चुप्पी के बाद मौसी अपने कमरे से चिल्लाई "अनिल ओ अनिल ... लीना बेटी ... वहां क्या कर रहे हो अकेले, आ जाओ इधर अपने मौसाजी मौसी के पास"
लीना तो राह ही देख रही थी. मेरा हाथ पकड़ा और मौसी के कमरे में घुस गयी "लो मौसी, मैं यही सोच रही थी कि आपने अब तक बुलाया क्यों नहीं"
मौसी नंगी होकर टांगें फ़ैलाकर बिस्तर पर सिरहाने से टिक कर बैठी थीं और मौसाजी उनके सामने झुक कर उनकी बुर चाट रहे थे. अच्छी गोरी मोटी मोटी टांगें थीं मौसी की और मस्त पिलपिली लटकती हुई चूंचियां.
मौसी बोलीं "अरी तुझे बुलाने की क्या जरूरत है, तू खुद चली आती. वैसे मेरे को इस अनिल के बारे में पता नहीं था, सोच रही थी कि ये क्या सोचेगा कि मौसी इतनी चालू निकली"
"अरे मौसी, ये तो कब से आप पे आस लगाये बैठा है. आने के बाद मुझे बोल रहा था कि मौसी के मम्मे तो देखो, लगता है पपीते हैं पपीते, रस भरे. शाम को मैंने बताया कि मैंने कैसे आपकी सेवा की तो नाराज होकर बोला कि अकेले अकेले मौसी का माल चख लिया, मुझे भी चखा देतीं"
मौसी मेरी ओर देख कर बोलीं "तो अब आ जा बेटे, बहुत सारा माल है तेरी मौसी के पास. तुझे नहीं दूंगी तो किसे दूंगी! सुनो जी, तुम हटो अब और अनिल को चखने दो"
"हां मौसाजी, आप तो रोज पाते हो ये प्रसाद. आज मेरी और अनिल की बारी है" लीना पलंग पर चढ़ गयी और मौसी के मम्मे दबाते हुई उनके चुम्मे लेने लगी. मौसाजी हट गये और बोले "आओ अनिल, तुम भी पा लो मौसी का प्रसाद. मैं तो कब से पा रहा हूं" वे अब लीना के नंगे गदराये बदन को देख रहे थे. "वैसे तेरी बहू भी मस्त है अनिल, एकदम अप्सरा है अप्सरा. मैं तो देख कर ही खलास हो गया था, कि क्या सुंदर बहू पायी है अनिल ने. तेरे पिछले जनम के पुण्य होंगे बेटे, जैसे मेरे हैं, मुझे भी तो अपनी भाभी मिल गयी थी बचपन से"
"अरे तो ऐसे दूर से क्या देख रहे हो? पास आओ और स्वाद लो, बहू मना थोड़े करेगी. क्यों लीना बेटी?" मौसी लीना के मम्मे दबाते हुए बोलीं.
"हां मौसाजी, आइये ना, आप का तो हक है, आखिर आप की बहू हूं. ये लीजिये" कहकर लीना ने टांगें पसार दीं. मौसाजी टूट पड़े और उसकी बुर में मुंह डाल कर चाटने लगे. मैं मौसी की टांगों में घुस गया और उनकी बुर का स्वाद लेने लगा.
मौसाजी लपालप लीना की बुर चाट रहे थे. फ़िर उंगली से उसकी चूत खोलकर जीभ अंदर डाल दी. लीना बोली "मौसाजी शौकीन लगते हैं मौसी, देखो कैसे मेरी बुर में अंदर तक जीभ से टटोल रहे हैं"
"अरे तेरे जोबन को पूरा चखना चाहते हैं. ऐसा जोबन सबके नसीब में नहीं होता. और तेरा ये अनिल भी कम नहीं है, ये तो पूरा मुंह अंदर डालने की कोशिश कर रहा है." मौसी मेरे सिर को पकड़कर अपनी चूत में दबाकर बोलीं.
"ठीक ही तो कर रहा है मौसी, इतना गाढ़ा जायकेदार बुर का रस सब को थोड़े मिलता है" लीना बोली फ़िर सिर झुकाकर मौसी की चूंची चूसने लगी.
मैंने और मौसाजी ने खूब देर तक दोनों औरतों का रस निकाला. आखिर मौसी ने मुझे पकड़कर अपने ऊपर खींचा और बोलीं "बस कर अनिल बेटे, कितना चूसेगा! अब जरा चोद, कब से मरी जा रही हूं तेरा ये मस्त लंड लेने को. देख कैसा तन कर खड़ा है. लीना, तेरे को तो बहुत मजा देता होगा अनिल का ये लंड, देख कितना जानदार है"
"हां मौसी, जम के चोदता है मुझे, मैंने भी डांट डपट कर रखा है इसे, मुझे तसल्ली दिये बिना झड़ जाये ये बिसात नहीं इसकी"
मैंने मौसी की बुर में लंड डाल दिया और चोदने लगा. चूत ढीली थी पर एकदम तपती हुई मखमली म्यान थी. उधर मौसाजी लीना की बुर चूसते हुए उसकी गांड में उंगली करने की कोशिश रहे थे.
लीना उनका हाथ झटक कर बोली "ये क्या करते हो मौसाजी, चोदना हो तो ऐसे आओ ऊपर, गांड के पीछे क्यों पड़े हो"
"लीना रानी, क्या गांड है तेरी ... एकदम फ़र्स्ट क्लास ... मारने दे ना" मौसाजी मचल कर बोले.
"गांड तो नहीं मरवाऊंगी मैं मौसाजी, हां चोद लो ना, देखो कैसा मस्त खड़ा है आपका लंड. वैसे मेरे खयाल से और जोर से खड़ा होता होगा, इतना मस्त है, बहुत दमखम वाला लगता है पर आज लगता है थोड़ा दम कम है उसमें" लीना बोली.
Re: मैं और मौसा मौसी
"अरे बेटी, मैंने इनको कहा था कि जरा सबर रखो, बहू आने वाली है, उसके लिये अपनी मस्ती बचा कर रखो पर ये मेरा देवर ... वैसे अब मेरा आदमी है महा चोदू, सुनता थोड़े ही है, मस्ती करके आया होगा शाम को. कोई बात नहीं, तू कल देख लेना कैसा तन कर खड़ा होता है." मौसी बोलीं फ़िर मेरा चुम्मा लेने लगीं. मैं उनकी जीभ चूसने लगा.
मौसाजी लीना पर चढ़ गये और उसकी चूंचियां दबाने लगे. "वाह ... क्या मम्मे हैं तेरे लीना .... ठोस कड़ा माल है .... अनिल दबाता नहीं क्या .... मैं होता तो मसल मसल कर पिलपिला कर देता तेरी मौसी की कसम, उसके भी कच्चे आम जैसे थे, अब देखो कैसे पपीते बना दिये मैंने"
लीना को मस्ती चढ़ी थी, उसने खुद ही दीपक मौसाजी का लंड चूत में लगा दिया और बोली "अब डाल दो जल्दी मौसाजी, आप की बहू बहुत बेताब है आपका लाड़ प्यार पाने को" और कस के उनको बाहों में जकड़ कर चूमने लगी.
मौसाजी ने एक झटके में लंड गाड़ दिया और चोदने लगे. "बहुत मस्त चूत है तेरी लीना .... गांड भी मतवाली होगी ..... आज तो तूने नहीं मारने दी .... पर मारूंगा जरूर ... आह .... मेरी रानी .... मेरा लाड़ो ... क्या जवानी है तेरी"
लीना बोली "अनिल ....बहुत मस्त चोद रहे हैं मौसाजी ... धक्का मारते हैं तो अंदर पेट तक जाता है लंड ... तुम मौसी को ठीक से चोदो .... कल से प्यासी है उनकी बुर .... और उनके मुंह की चासनी बहुत चख ली .... जरा मम्मे को मुंह में लेकर देखो ... एकदम डबल रोटी है"
मैंने कहा "पर मौसाजी तो रोज चोदते होंगे मौसी को .... उनकी बुर को प्यासा नहीं रखते होंगे" फ़िर मैंने सिर झुकाकर मौसी का एक मोटा खजूर सा निपल मुंह में ले लिया"
"अरे तेरे मौसाजी तो गांड के पीछे ज्यादा रहते हैं ... गांड मारने को हमेशा तैयार रहता है ये बदमाश देवर मेरा, पर है बड़ा चोदू ... तभी तो शादी कर ली मैंने इससे .... चोदने को बोलो तो ना नुकुर करता है ... अरे अनिल बेटे ... ऐसे क्या जरा सा निपल मुंह में ले कर चूस रहे हो ... पूरा मम्मा मुंह में ले लो अपने ... तूने कभी ऐसा माल नहीं मुंह में लिया होगा" कहकर मौसी ने आधे से ज्यादा चूंची मेरे मुंह में ठूंस दी"
"झूट मत बोलो भाभी .... मेरा मतलब है आभा रानी ... तुम को रोज चोदता हूं मैं .... अब तुम्हारी गांड इतनी मोटी ताजी है तो मैं क्या करूं ... किसी का भी मन होगा मारने को और जब तुम्हारा देवर था मैं तब कितने प्यार से रिझाती थीं मेरे को गांड दिखा दिखा कर" मौसाजी हचक हचक कर लीना को चोदते हुए बोले.
इसी तरह गप्पें लड़ाते हुए हमने दोनों चुदैलों को मन भर के चोदा. दोनों दो तीन बार झड़ीं. आखिर मैं और मौसाजी भी झड़ गये और वहीं मौसी और लीना के बदन पर पड़े पड़े सुस्ताने लगे.
पांच मिनिट के आराम के बाद मौसी बोलीं "मजा आ गया अनिल बेटे ... लीना ... तू चुदी या नहीं ठीक से? इनका कोई भरोसा नहीं, आज कल तेरे मौसाजी गांड ज्यादा मारते हैं, लगता है कहीं चोदने की कला भूल न जायें"
लीना बोली "हां मौसी ... बहुत प्यार से चोदा मौसाजी ने ....वैसे मेरा मन कभी नहीं भरता ... अनिल जानता है .... मैं तो यहां हूं तब तक दिन रात चुदवाऊंगी ... मौसाजी आप लंड को तैयार रखो अपने ... उसको कहना बहू की खातिर में कमी नहीं आनी चाहिये"
मौसाजी बोले "लीना बेटी ... तू फ़िकर मत कर ... यहां लंडों की कोई कमी नहीं है ... कल से देख ... तुझे खुश कर दूंगा ... इतना चुदेगी कि तेरी चूत एकदम ठंडी हो जायेगी"
"अब तुम दोनों हटो और मुझे और लीना को जरा प्यार मुहब्बत करने दो" मौसी मुझे अपने बदन से ढकेलते हुए बोलीं. उधर मौसाजी लीना पर से उतरे और उधर मौसी उससे लिपट गयीं. लीना पर उलटी ओर से चढ़ कर उन्होंने अपनी चूत लीना के मुंह में दे दी और खुद लीना की टांगें फ़ैलाकर उसकी बुर चाटने लगीं.
"मौसी ये क्या कर रही हैं? अभी मन नहीं भरा क्या अनिल से चूत चुसवाकर?" लीना बोली.
"बेटी, ये अलग स्वाद है, ले कर देख, चुदी बुर चाटने का मजा ही और होता है. तू भी जानती है, नाटक कर रही है" मौसी बोलीं.
"हां मौसी .... मैंने बहुत बार किया है .... मैं तो मजाक कर रही थी .... जाना पहचाना स्वाद लग गया है आप की बुर में .... मेरे अनिल डार्लिंग का" लीना चटखारे ले कर बोली.
मैं और मौसाजी बाजू में बैठकर दोनों औरतों के कारनामे देखने लगे. मौसी का मोटा शरीर लीना के जवान तन से लिपटा था, लीना की सुडौल कसी हुई जांघें मौसी के सिर को पकड़े थीं और मौसी की मोटी मोटी थुलथुली टांगें लीना के सिर को कस के जकड़े थीं. दोनों लपालप चाट रही थीं जैसी कब की भूखी हों.
मेरा लंड सिर उठाने लगा. मौसाजी मेरे लंड को देखने लगे "अनिल ... तुझमें तो काफ़ी जोश है लगता है ... इतनी जल्दी सिर उठाने लगा तेरा ये मूसल"
"मौसाजी, जब ऐसी चुदैल मतवाली औरतें आपस में ऐसे करम कर रही हों तो किसीका भी खड़ा हो जायेगा." कहकर मैं लंड हाथ में लेकर मुठियाने लगा.