संघर्ष--34
गतान्क से आयेज..........
नशे की हालत मे भी तेजू तुरंत ढीली हो चुकी सलवार को खींच कर बाहर निकाल दिया. सावित्री सिर्फ़ चड्धि मे थी जिसे दूसरे पल तेजू ने कस के सरकाते हुए निकाल दिया. अब सावित्री की झांतों से भरी काली बुर तेजू के ठीक सामने थी. जिसे देख कर अगले पल तेजू ने सावित्री के दोनो टाँगों को चौड़ा करने लगा तो सावित्री ने लाज़ के मारे अपनी बुर को एक हाथ से छिपाने की कोशिस करने लगी. जिसे देख कर बगल मे खड़ी धन्नो ने तेजू को लल्कार्ते हुए बोली.."पेल इसे" धन्नो के इस सब्द को सुनते ही तेजू काफ़ी जोश मे आ गया और सावित्री के उपर चढ़ गया. सावित्री के मुँह मे अपना मुँह जैसे ही लगाया की शराब की गंध तेजू के मुँह से सावित्री के नाक मे घुसने लगी. जीवन मे पहली बार सावित्री को शराब की गंध का आभास हुआ था. लेकिन अगले पल ही तेजू ने सावित्री के जबड़े को एक हाथ से कस कर पकड़ते हुए अपने शराब के गंध से भरे मुँह को सावित्री के मुँह मे लगा दिया और उसके दोनो होंठो को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा. सावित्री का बदन एकदम से झंझणा उठा. तेजू का लंड खड़ा था और सावित्री के कमर के निचले हिस्से से रगड़ खा रहा था. इतना देख कर धन्नो ने ज़मीन पर बैठते हुए तेजू के लंड को एक हाथ से पकड़ कर सावित्री के बुर के मुँह पर रगड़ने लगी. सावित्री तेजू के लंड की गर्मी अपनी बुर के मुँह पर पाते ही सिसकार उठी और अपनी मुँह खोल दिया. तेजू मौका पा कर ढेर सारा थूक सावित्री के मुँह मे धकेल दिया. सावित्री तेजू के मुँह से निकले थूक को निगल गयी. उसे ऐसा लगा मानो उसके थूक मे कोई अजीब सा नशा हो. उसका शरीर मस्ती से भरने लगी. तभी तेजू ने धीरे से कहा "जीभ निकाल.." सावित्री की बुर पर धन्नो ने तेजू के लंड को तेज़ी से रगड़ना सुरू कर दिया था. इस वजह से सावित्री की मदहोशी बढ़ती जा रही थी. फिर तेजू सावित्री की चुचिओ को मीज़ते हुए फिर से उसके मुँह पर अपना मुँह भिड़ा दिया और फिर थूक सावित्री के मुँह मे धकेल दिया सावित्री ने थूक को निगल गयी और दूसरे पल अपने जीभ को थोडा सा बाहर की जिसे तेजू अपने मुँह मे ले लेकर तेज़ी से चूसने लगा.
सावित्री अब सातवें आसमान पर उड़ रही थी. धन्नो ने सावित्री के बुर के दरार मे तेजू का खड़ा लंड रगड़ते हुए हल्की सी हँसी लेते हुए फुसफुससाई "अरे जल्दी से चोद ले देर मत कर तेजू....घर भी जाना है...कहीं देर हो गया तो इसकी मा इसके उपर शक करेगी...जल्दी चोद..." और इतना कहते हुए धन्नो ने तेजू के लंड को बुर के ठीक बीचोबीच लगा दी. तेजू मौका देख कर कस कर लंड पेल दिया. लंड सावित्री की बुर मे घुस गया. सावित्री सीत्कार उठी. फिर अगले पल तेजू अपने शरीर को दोनो घुटनो पर ठीक करते हुए सावित्री को चोदना सुरू कर दिया. इतना देख कर धन्नो उठाकर खड़ी हो गयी और बोली "थोड़ा हूमच हूमच कर चोद इसे .....ताकि इसकी नानी याद आ जाए..."
फिर तेजू नशे की हालत मे सावित्री को कस कस कर पेलने लगा. सावित्री हर धक्के के साथ मस्ती से सिहर उठती और अपनी मुँह को खोल कर सिसकार रही थी. फिर धन्नो खंडहर के अंदर इधेर उधेर नज़र दौड़ाई मानो यह जायजा ले रही हो की कहीं कोई है तो नही. फिर मानो उसका मन संतुष्ट हो गया की कहीं कोई नही है. फिर धन्नो की नज़रें तेजू के मोटे काले लंड पर जा टिकी जो सावित्री के बुर के अंदर बाहर हो रहा था. खंडहर मे चुदाई की आवाज़ होना सुरू हो गया. सावित्री के मुँह से सिसकारने और कहरने की आवाज़ भी काफ़ी मादक थी. तेजू काफ़ी जोश मे बुर को चोद रहा था. धन्नो की भी बुर मे सनसनी उठने लगी. जिस वजह से धन्नो ने अपने एक हाथ से अपनी बुर को सारी के उपर से ही भींच ली और अपनी नज़रें सावित्री के बुर पे टिकाई रही जिसमे तेजू का लंड किसी पिस्टन की तरह काफ़ी तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था. तेजू अब हुंकार मारते हुए चोद रहा था. मानो सावित्री की बुर को फाड़ देगा. तेजू को देखने से ऐसा लग ही नही रहा था की थोड़ी देर पहले नशे मे था की सीधा चल ही नही पा रहा था. क्योंकि जिस अंदाज मे सावित्री की बुर को चोद रहा था उससे तेजू के नशे की हालत का कोई आता पता नही चल रहा था. शराब नही बल्कि कोई ताक़त की दवा ले रखी हो. तेजू के लंड का चौड़ा सूपड़ा सावित्री के बुर का रेशा रेशा इतना रगड़ रहा था की सिसक रही सावित्री को महसूस हो गया की इस चुदाई के सामने पंडित जी की चुदाई कुच्छ नही थी. उसे भी यकीन नही हो रहा था की थोड़ी देर पहले शराब के नशे मे चूर तेजू उसकी बुर को इतनी तेज़ी और बेरहमी से चोदेगा. धन्नो भी सावित्री की बुर की धुनाई अपनी आँखों से देख कर मस्त हो रही थी. फिर धन्नो ने चुद रही सावित्री को लल्कार्ते हुए बोली "छिनाल .....कुच्छ बोलेगी की बस चुपचाप लंड खाएगी..बस सिसकने से काम नही चलेगा...कुच्छ बोल..." चुद रही सावित्री बस धन्नो की ओर देखी लेकिन कुच्छ बोली नही. वैसे मुँह खुला हुआ था जिसमे से सिसकी और कराहने की आवाज़ हल्की हल्की आ रही थी. इतना देख कर धन्नो ने तेज़ी से चोद रहे तेजू को ललकर्ते हुए धीमी आवाज़ मे दाँत पीसते हुए बोली "अरे और ज़ोर से चोद इस रंडी को......फाड़....बुर को इसकी बुर मे लंड जाए पूरे गाओं का." फिर धन्नो ने गाओं की गर्म या चुदैल किस्म के औरतों की तरह चोद्ते समय मर्द को जोश दिलाने वाली चोदगीत को कुच्छ सिस्कार्ते हुए गाने लगी "..इसकी बुरिया को.......पूरा गाओं चोदे..रे पूरा गाओं चोदे.....लड़के चोदे...रे ...बुढ्ढे चोदे....पूरा गाओं चोदे रे पूरा गाओं चोदे....." इतना सुनकर तेजू समझ गया की धन्नो एक चुदैल किस्म की औरत होने के वजह से चोद्ते समय चोदगीत गा कर मज़े ले रही है. फिर तेजू और ज़ोर से चोदने लगा फिर धन्नो ने दाँत पीसते हुए उत्तेजना मे आगे सावित्री को कुच्छ चिढ़ाने की अंदाज़ मे गुनगुनाने लगी "
"पूरा गाओं चोदे....रे....पूरा गाओं चोदे .....इसकी बुरिया को पूरा गाओं चोदे... अंधेरिया मे चोदे....अजोरिया मे चोदे...चोदे खड़ी दोपहरिया मे चोदे...पूरा गाओं चोदे....रे....पूरा गाओं चोदे ......अँगनवा मे चोदे ....दुवारवा पे चोदे...चोदे बीच बज़ारिया मे चोदे......खेतवा मे चोदे....खलिहनवा मे चोदे ......चोदे छिनरि के बीच अरहरिया मे चोदे....ये हरजइया के पूरा गाओं चोदे......" फिर धन्नो चोदगीत को आगे सुनाती हुई बोली "साधु चोदे...रे...कसाई चोदे..मलाई लगा के हलवाई चोदे...पूरा गाओं चोदे ..रे... पूरा गाओं चोदे....खटिया पे चोदे रे चौकी पे चोदे...नंगा लेटा के ज़मीन पे चोदे...तेल लगा के चोदे रे थूक लगा के चोदे....तोरी बुरिया के फैला फैला के चोदे...पूरा गाओं चोदे रे पूरा गाओं चोदे...." सावित्री के कान मे पहली बार कोई चोदगीत के अश्लील शब्द पड़ते जी उसकी चुद रही बुर् मे आग लग गयी और उसके खुले मुँह से सिसकारी के साथ हल्की से चिल्लाहट निकल गयी.."अयाया रे माई ....आ री...माई रे आ रे चाची...मोरे बुरिया ...मोर बू ....बुरिया...के....मोर बुरिया के चुदवा.....दा ...रे चाची......आ मोर बुरिया के....फदवा दा ....रे चाची...." सावित्री के मुँह से निकली इतनी बात तेजू के कान मे जैसे ही पड़ा की चोदगीत सुनकर मस्ती मे चोद रहे तेजू हुमच हुमच कर चोदने लगा. लेकिन धन्नो ने तुरंत मस्ती मे चुद रही सावित्री को सुनाते हुए जबाव देते हुए उत्तेजना मे दाँत पीसती हुई बोली ..".....तोर बुर फदवा देब ....रे... बुर फदवा देब....तोर लहसुन रगडवा देब... रे... लहसुन रगडवा देब....गाओं की रॅंडुवन से तोर झांट नोचवा देब...अपने मरदा से चोदवा देब रे भासुरा से चोदवा देब ......दर्वरा तो देवरा अपने ससुरा से चोदवा देब ......जावने बुरिया मे सींक ना घुसे ..वही बुरिया मे जोड़ा लंड घुस्वा देब.....माँग मे सेंदुर पदाले के पहीले ..तोर बुर चोदवा के भोसड़ा बनवा देब....ससुराल जाए के पहीले टोक रंडी के कोठा पे चोदवा देब...बुर फाडवा देब रे बुर फदवा देब...." चोदगीत सुन सुन कर चोद रहे तेजू अब झदाने के करीब आ गया और उसके कमर ने झटके लेना सुरू किया ही था की चुदैल धन्नो ने तुरंत सावित्री की हवा मे उठी दोनो टाँगों को पकड़ कर और चौड़ा करते हुए जैसे ही नीचे की ओर ज़ोर से दबाई की सावित्री की चुद रही बुर फैलते हुए और उपर की ओर उठ गयी जिसमे तेजू ने ज़ोर से धक्के मारते हुए झड़ने लगा. इतना देख कर धन्नो ने झटके से एक हाथ को सावित्री की बुर के पास ले गयी और चुद रही बुर के एक किनारे से लंड के ठीक बगल से अपनी एक उंगली काफ़ी ज़ोर लगा कर सावित्री की बुर मे धन्से हुए लंड के साथ साथ पेल दी और जैसे ही लंड के साथ धन्नो की उंगली भी सावित्री की बुर मे घुसा तो एक तीखी दर्द उसके बुर से उठी और जीवन मे पहली बार सील टूटने के बाद बुर के फटने का दर्द महसूस हुआ और दूसरी तरफ लंड से वीर्य निकल कर बुर मे गिर भी रहा था. फिर मौका देखते ही धन्नो भी अपनी उंगली सावित्री की बुर मे डाले हुए बुर को फैला रही थी. लंड के घुसे होने से और धन्नो की उंगली से लगने वाले ज़ोर से सावित्री को लगा की उसकी बुर एकदम से फट रही है और सीत्कार मार कर अपने बुर फ़टाई के दर्द के आनंद मे झाड़ते हुए चीखी ..."एयेए ह ह रे बाप बुर फाट गाईएल...फात गाईएल...रे बाप...".
संघर्ष
Re: संघर्ष
तेजू के लंड से वीर्य निकल कर सावित्री की बुर को भरने लगा. तेजू सावित्री को काफ़ी कस कर पकड़ कर लंड बुर मे चांपे हुए झाड़ता रहा. जब उसे आभास हो गया की अब लंड का सारा माल बुर के अंदर बह कर निकल चुका है तब हन्फते हुए सावित्री के उपर से उठा और बगल मे खंडहर के घास पर लेट ने लगा की तभी उसका लंड भी बुर से बाहर सरक कर निकल गया. धन्नो की नज़र सावित्री की बुर पर पड़ी तो चौंक गयी क्योंकि बुर के मुँह पर हल्की सी खून रिस रही थी. धन्नो समझ गयी उसने ज़ोर लगा के अपनी उंगली से बुर को काफ़ी चौड़ा कर दी थी और शायद इसी वजह से बुर थोड़ी सी फट गयी है. धन्नो एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोली "अरे अब उठेगी और घर चलेगी की अभी और चुदयेगि....जल्दी कर.." सावित्री बस अपने जांघों को आपस मे सटा कर बुर को ढँकने की कोशिस कर सकी थी और अब उसके पास ना तो हिम्मत थी ना ही ताक़त. उसे अपनी बुर मे हल्की सी दर्द महसूस हो रही थी जो शायद बुर के थोड़ी सी फट जाने की वजह से थी. लेकिन तेजू के सामने नंगी लेटना सावित्री को ठीक नही लग रहा था और जल्दी से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी तभी धन्नो ने तुरंत अपने पेटिकोट के नीचले हिस्से से सावित्री की बुर को पोंचछते हुए धीरे से बोली "देख तेरी बुर आज थोड़ी और फट गयी है...खून चू रहा है ...ला पोंच्छ दूं नही तो तेरी मा कहीं देख ली तो गड़बड़ हो जाएगा.." सावित्री भी चौंकते हुए अपनी बुर देखी जिसमे से रिस रहा खून धन्नो के पेटीकोत मे लग चुका था और अब खून का रिसना लगभग बंद हो रहा था. सावित्री डर सी गयी लेकिन धन्नो ने खंडहर के ज़मीन पर लगभग बेहोश स्थिति मे लेटे तेजू की ओर देखते हुए सावित्री से बोली "...देख कमीना कैसे तेरी बुर फाड़ कर सो रहा है..." सावित्री भी कपड़े पहनते हुए तेजू की ओर देखी तो सो रहे तेजू के लंड पर नज़र पड़ी जो अब कुच्छ ढीला हो रहा था जिसपर चुदाई का पानी और हल्का सा खून भी लगा था जो शायद बुर के फटने के वजह से था. सावित्री के मन मे यही सवाल उठा की बुर को तेजू के लंड ने नही फाडा बल्कि धन्नो खुद अपनी उंगली डाल कर काफ़ी ज़ोर लगा कर फाड़ दी थी. अभी यही बात मन मे चल रही थी की धन्नो ने सावित्री से कही "जब बुर खूब चौड़ी हो जाएगी तब तू किसी भी मर्द को पछाड़ देगी चुदाई के खेल मे...........और मर्द का कितना भी मोटा लंड हो उसे तू हंसते हुए बुर मे लील जाएगी और वो भी एक ही झटके मे....एक नंबर की चुदैल निकालूंगी तुझे...." इतना कह कर धन्नो ने तेजू की ओर देखी जिस पर अब शराब का नशा लगभग एकदम कम हो गया था और अब कुच्छ सुसताने के बाद धीरे से उठा और अपनी पॅंट ले कर धीरे धीरे पहनने लगा. फिर धन्नो ने तेजू से धीरे से बोली "....देख तेजू...ये गाओं की लड़की है... कोई बात नही उतनी चाहिए..गाओं मे...तुझे मैं बहुत दीनो से जानती हूँ इसी लिए इसे मैं खुद आज तेरे सामने इसका सब कुच्छ करवा दी हूँ...समझे..." तेजू को शायद ये बात पसंद नही आई "...धन्नो मैं एक शराबी और नशेड़ी ज़रूर हूँ लेकिन इसका ये मतलब नही की मैं बेवकूफ़ हूँ...मैं जिस थाली मे ख़ाता हूँ उसमे छेद नही करता ...मेरे पर भरोसा कर..." इतना कहते हुए तेजू अपनी पेंट पहन लिया. तेजू का यह जबाव सावित्री अपनी बुर मे मीठी दर्द लिए बड़े ही ध्यान से सुन रही थी. तेजू के इस जबाव से एक बात सॉफ थी की शराब का नशा अब ख़त्म होने के करीब था. तेजू का यह आश्वासन सावित्री को काफ़ी राहत देने वाला ज़रूर था लेकिन धन्नो अच्छि तरह जानती थी की हर मर्द चोदने के बाद यही राग अलपता है और कुच्छ ही दीनो मे दूसरे मर्दों तक बात पहुँच ही जाती है. लेकिन धन्नो बस यही चाहती थी की सावित्री के मन मे कोई बदनाम होने का डर कही तुरंत सताने ना लगे. क्योंकि सावित्री का खेल तो अभी सुरू ही हुआ था. धन्नो तेजू के इस जबाव का असर सावित्री के चेहरे पर पड़ता सॉफ देख रही थी. फिर धन्नो ने जबाव मे तेजू से बोली ".....भरोसा है ...खूब है तेजू...बस जब मैं इशारा किया करूँ तब तुम मेरी इस नई सहेली की धुनाई कर दिया करना .....इसे पूरा मज़ा देना है.....बेचारी को मज़ा ठीक से नही मिल पाया है...इसकी उमर की लड़कियाँ तो कभी का बुर फदवा कर घूम रहीं हैं ....और ये है अभी एक दम अनाड़ी......अच्छा अब हम दोनो घर चलते हैं और तू थोड़ी देर बाद खंडहर से बाहर निकलना...." इतना कह कर धन्नो सावित्री का एक हाथ पकड़ कर जल्दी से खंडहर से बाहर आने लगी. तेजू वहीं खंडहर के पुराने दीवार का सहारा लेता हुआ ज़मीन पर बैठा और धीरे से मन मे ही फुसफुसाया "गाओं की औरतें भी खूब हैं.....गांद नचा नचा के चुदवाती हैं ....और ....चुदने के बाद इज़्ज़त का दोहा रटती हैं.. मेरे गाओं की सभी चुदेले...और ये भी साली वही करती है.......हे हे ,....हे ."
इतना कह कर तेजू ज़मीन पर थूक दिया
इतना कह कर तेजू ज़मीन पर थूक दिया
Re: संघर्ष
रास्ते मे धन्नो आगे चल रही थी और उसके पीछे पीछे सावित्री. धन्नो ने सावित्री को समझाते हुए अंदाज मे बोली "...आज घर जा कर थोड़ा सा देसी घी गरम करके लगा लेना.....आज थोड़ी सी और फटी है...ठीक हो जाएगी. ...."
लेकिन पीछे पीछे चल रही सावित्री ने कोई जबाव नही दिया. फिर धन्नो ने पुचछा....
"....सुनी हो क्या कही मैं....वैसे नही लगओगि तो भी कोई बात नही... लेकिन ...घी तेल लगाने से औरतों का समान फिट रहता है और मर्द इसे पसंद भी करते हैं...." फिर सावित्री ने धीरे से कहा " ...वो..देसी घी तो नही होगी..मेरे घर मे.."
इतना सुनकर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और सावित्री की ओर देखते हुए बोली "तेल तो होगा ...सरसो का तेल ही गरम कर के लगा लेना.....हाँ देसी घी से चमक आ जाती है.,..तुझ को कुच्छ पता ही नही है...वैसे भी मर्दों का मज़ा लोगि तो अपने शरीर और जवानी को ठीक ठाक रखना पड़ेगा......" फिर धन्नो रास्ते पर चलने लगी. सावित्री केवल सुन ही रही थी. फिर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और हल्की मुस्कुराहट के साथ सावित्री से पुछि "...मज़ा आया की नही ....उस शराबी के साथ..." सावित्री अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर ली और मुस्कुरा उठी. धन्नो को जबाव मिल चुका था और वो फिर रास्ते पर चलने लगी. पीछे पीछे सावित्री भी चल रही थी. फिर धन्नो बोली "मेरे साथ रहेगी तो बहुत मज़े करेगी....मर्दों की लाइन लगवा दूँगी तेरी जवानी के उपर...अब तू डरा मत कर....जब तक निडर नही बनेगी तबतक मज़े भी नही ले पाएगी....मर्दों का सामना करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है...जो तुझमे नही है....एकदम नही..." ये सब सावित्री सुन कर चुप चाप धन्नो के पीछे पीछे चल रही थी. फिर धन्नो आयेज बोली ".....कल के लिए तैयार रहना ...मुसम्मि की शादी के लिए लड़के वाले उसे देखने आएँगे...तो सगुण चाचा के घर चलना होगा...." इतना सुन कर सावित्री कुच्छ बोलने की सोच ही रही थी की धन्नो रुक कर सावित्री की ओर देखते हुए पुछि "....चलोगि ना....कि डर लग रहा है...अपनी मा से..." सावित्री देखी की धन्नो गंभीर हो कर पुच्छ रही है तो तपाक से बोली "...हाँ हां चलूंगी चाची...क कैसा डर...उससे नही डरती...अब..." धन्नो के लिए यह बहुत खुशी की बात थी. सावित्री के शब्दों मे 'उससे' के खिलाफ हिम्मत की बात सुनकर धन्नो गदगद हो गयी और बोली "शाबाश मेरी बेटी...यही तो मैं सुनना चाहती थी..." कह कर धन्नो फिर रास्ते पर चलने लगी. सावित्री के मन मे अपनी मा के खिलाफ विद्रोह की सोच पैदा कर के सावित्री को एक नयी दिशा देने लगी थी. धन्नो को इन जवान और कच्ची उम्र की लड़कियो को रंगीन बनाने का पुराना अनुभव था. भले ही सावित्री के लिए ये सब कुच्छ नया और अजीब लगने वाला था.
गाओं करीब आते ही धन्नो ने सावित्री से बोली "....अब तू जा अपने घर मैं थोड़ी देर मे आउन्गि...ठीक... "
फिर धन्नो गाओं के बाहर ही रुक गयी और सावित्री को जाते हुए देखने लगी. थोड़ी देर मे सावित्री गाओं के अंदर चलते हुए गाओं के कुच्छ बाहर बने अपने घर आ गयी. घर पर मा बर्तन धो रही थी. सावित्री को देखते ही सीता बोली "...इन बर्तनो को तुम धो देना ....अभी मुझे गाओं के दुकान से सब्जी और कुच्छ समान लाना है..." इतना कह कर सीता बर्तनो के पास से उठी और हाथ धो कर गाओं मे ही एक दुकान पर जाने लगी. शायद अब अंधेरा होने लगा था इसीलिए. सावित्री बुझे मन से घर के बाहर ही बिछे खाट पर अपनी ओढनी को रखी और बर्तन धोने की जगह बैठ गयी और बाकी बचे बर्तनो को धीरे धीरे धोने लगी और सीता गाओं के दुकान पर सब्जी और समान के लिए चल दी. सीता के हाथ मे मिट्टी के तेल का डिब्बा भी था. जो उसने एक झोले मे छिपा कर ले जा रही थी. तबतक धन्नो भी अपने घर आ चुकी थी. सीता को दुकान की ओर जाते देख धन्नो ने तुरंत एक छ्होटी सी कटोरी मे देसी घी ले कर सावित्री के पास आ गयी. सावित्री धन्नो को अपने घर के सामने कटोरी मे कुच्छ लिए देख कर हड़बड़ा गयी और बर्तन माजना छ्चोड़ कर खड़ी हो गयी "..क सीसी क्या है चाची..." धन्नो ने सीता के जाने वाले गाओं के रास्ते की ओर देखते हुए बोली "...घी है ...तेरी मा को गाओं मे जाते देख ..मैं झट से देसी घी लाई हूँ.... ले इसे घर मे रख दे और मौका देख कर थोड़ा गरम कर के लगा लेना...समझी ...अब तो चूल्हा भी जलाएगी तो मा के आने के पहले गरम करके लगा ही लेना. .." इतना कह कर धन्नो ने देसी घी की कटोरी सावित्री को थमाने लगी तो सावित्री ने जल्दी से अपना हाथ धो कर कटोरी को थाम ली और घर के अंदर जाने से पहले कटोरी मे नज़र डाली तो अनायास ही उसके मुँह से धीरे से निकल गया "..आ आ रे इतना घी क्या होगा चाची ..ये तो बहुत ज़्यादे है..."
धन्नो धीरे से बोली "अरे रख ले..कहीं घर मे चुरा के..और ..रोज-रोज लगाती रहना गरम करके ....कई दिन मालिश कर लेगी तो तेरी जवानी किसी भी मर्द का चोट झेलने लायक तैयार रहेगी....देसी गीयी है ...खाने और लगाने ...दोनो मे फ़ायदा करता है..." इतना कह कर धन्नो जाने के लिए मूडी ही थी की सावित्री धीरे से बोली "...ये .....क कटोरी ..चाची.." तभी धन्नो तपाक से डाँटते हुए बोली "...कटोरी की चिंता मत कर....बाद मे कभी दे देना...मैं चलती हूँ...कहीं तेरी मा आ गयी तो आग लग जाएगी..." इतना कहते हुए धन्नो थोड़ी ही दूर पर अपने घर चली गई. सावित्री ने तुरंत कटोरी को ले कर अपने घर के एक ही कोठरी मे जगह तलाशने लगी जहाँ वह उस कटोरी को च्छूपा सके. आख़िर कोठारी के कोने मे रखे एक पुराने लोहे के बॉक्स के नीचे कुच्छ जगह थी , उसी मे अंदर धीरे से देसी घी वाली कटोरी रख दी. और फिर तुरंत बाहर आ गयी. मा के आने मे कुच्छ समय लग सकता था. सावित्री को पेशाब भी लगी थी. इसलिए तुरंत घर के पीछे चली गयी और सलवार खोल कर चड्धि सर्काई और मुतने बैठ गयी. बैठते समय बुर मे कुच्छ दर्द महसूस हो रही थी. लेकिन ये दर्द काफ़ी कम था मानो कोई मीठा दर्द हो. अब अंधेरा होना सुरू हो गया था लेकिन फिर भी सावित्री अपनी बुर को सॉफ तरीके से देख पा रही थी और बुर की सूरत तेजू के चुदने के बाद कुच्छ बदल सी गयी थी. पेशाब करने के बाद खड़ी हुई और अनायास ही चड्धि पहनने से पहले झांतो से भरी बर को एक हाथ से सहलाई तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक अजीब सी मस्ती दौड़ गयी. मन मे मर्द के प्रति एक तेज आकर्षण पैदा होने लगा. ये सब मन की तरंगे सावित्री को एक आनंद मे सींच ही रही थी की उसे याद आया की बर्तन धोना रह गया है और मा थोड़ी ही देर मे गाओं के दुकान से वापस आती ही होगी. फिर तुरंत चड्धि को पहन सलवार को उपर कमर मे ला कर सलवार के नाडे को बाँध ली और ज़मीन पर थूकते हुए घर के आगे की ओर आ गयी और बर्तन माज्ने की जगह बैठ कर बर्तन धोने लगी. बर्तन धोते समय भी सावित्री के मन मे तेजू का चेहरा और चुदाई दोनो लगातार घूम रहा था. बार बार उसे तेजू की चुदाई और धन्नो चाची की उंगली का बुर मे घुसना और बुर को फाड़ने वाली यादें मन मे मस्ती भरी सिहरन पैदा कर दे रही थी. आज दिन मे जो कुच्छ भी हुआ वह कभी सपने मे भी नही सोची थी. मानो आज का दिन कोई एकदम अलग दिन था. यही सब सोच सोच कर बर्तनो को रख धो रही सावित्री ने देखा की अंधेरा गहराता जा रहा था और बर्तन भी सारे धूल चुके थे. और अभी तक मा वापस नही आई थी. सावित्री को अपनी मा का अंधेरा सुरू होते होते गाओं मे या कहीं जाना बहुत अजीब लग रहा था. क्योंकि गाओं मे तो दिन मे चलना मुस्किल होता था अवारों के डर से और अंधेरा के बाद तो औरतों का कहीं भी आना जाना ठीक नही होता था. यही सोच कर सावित्री अपने से सवाल कर रही थी की आख़िर मा को क्या ज़रूरत थी अंधेरा होने के बाद कहीं जाने की. फिर भी अपने रंगीन सोचों मे डूबी सावित्री को याद आया की अंधेरा होते होते यदि चिराग नही जला तो मा गुस्सा करेगी. मा हमेशा कहती है की अंधेरा होते यदि चिराग नही जलता तो घर मे शैतान का वास सुरू हो जाता है. यही सोच कर सावित्री ने तुरंत घर मे रखी एक छ्होटी सी दिया को जला दी. उसमे मिट्टी का तेल इतना ही था की रात दस बजे तक ही जलता. शायद घर मे मिट्टी का तेल भी ख़त्म हो गया था. तब उसे याद आया की मा जाते समय मिट्टी के तेल का डिब्बा भी ले जा रही थी. लेकिन मिट्टी का तेल तो गाओं के दूसरी छ्होर पर मिलता है और वो भी एकदम एकांत और सुनसान जगह. तो क्या मा वहाँ गयी होगी. तभी सावित्री की माँ ने जबाव दिया "नही मा ऐसा कैसे कर सकती है भला..." तभी उसे याद आया की चूल्हे मे आग जलाने का समय हो चुका था. और खाना बनाने वाला चूल्हा कोठरी से सटे एक छ्होटी सी छप्पर मे थी. उस चूल्हे पर लकड़ी और गोबर की उपली से खाना बनता. कोठारी के अलावा उठने बैठने के लिए यह छप्पर ही था..छप्पर मे काफ़ी कम जगह थी जहाँ चूल्हे के जगह को छोड़ कर बस एक ही खाट किसी तरह पड़ जाती थी.
क्रमशः...........
लेकिन पीछे पीछे चल रही सावित्री ने कोई जबाव नही दिया. फिर धन्नो ने पुचछा....
"....सुनी हो क्या कही मैं....वैसे नही लगओगि तो भी कोई बात नही... लेकिन ...घी तेल लगाने से औरतों का समान फिट रहता है और मर्द इसे पसंद भी करते हैं...." फिर सावित्री ने धीरे से कहा " ...वो..देसी घी तो नही होगी..मेरे घर मे.."
इतना सुनकर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और सावित्री की ओर देखते हुए बोली "तेल तो होगा ...सरसो का तेल ही गरम कर के लगा लेना.....हाँ देसी घी से चमक आ जाती है.,..तुझ को कुच्छ पता ही नही है...वैसे भी मर्दों का मज़ा लोगि तो अपने शरीर और जवानी को ठीक ठाक रखना पड़ेगा......" फिर धन्नो रास्ते पर चलने लगी. सावित्री केवल सुन ही रही थी. फिर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और हल्की मुस्कुराहट के साथ सावित्री से पुछि "...मज़ा आया की नही ....उस शराबी के साथ..." सावित्री अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर ली और मुस्कुरा उठी. धन्नो को जबाव मिल चुका था और वो फिर रास्ते पर चलने लगी. पीछे पीछे सावित्री भी चल रही थी. फिर धन्नो बोली "मेरे साथ रहेगी तो बहुत मज़े करेगी....मर्दों की लाइन लगवा दूँगी तेरी जवानी के उपर...अब तू डरा मत कर....जब तक निडर नही बनेगी तबतक मज़े भी नही ले पाएगी....मर्दों का सामना करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है...जो तुझमे नही है....एकदम नही..." ये सब सावित्री सुन कर चुप चाप धन्नो के पीछे पीछे चल रही थी. फिर धन्नो आयेज बोली ".....कल के लिए तैयार रहना ...मुसम्मि की शादी के लिए लड़के वाले उसे देखने आएँगे...तो सगुण चाचा के घर चलना होगा...." इतना सुन कर सावित्री कुच्छ बोलने की सोच ही रही थी की धन्नो रुक कर सावित्री की ओर देखते हुए पुछि "....चलोगि ना....कि डर लग रहा है...अपनी मा से..." सावित्री देखी की धन्नो गंभीर हो कर पुच्छ रही है तो तपाक से बोली "...हाँ हां चलूंगी चाची...क कैसा डर...उससे नही डरती...अब..." धन्नो के लिए यह बहुत खुशी की बात थी. सावित्री के शब्दों मे 'उससे' के खिलाफ हिम्मत की बात सुनकर धन्नो गदगद हो गयी और बोली "शाबाश मेरी बेटी...यही तो मैं सुनना चाहती थी..." कह कर धन्नो फिर रास्ते पर चलने लगी. सावित्री के मन मे अपनी मा के खिलाफ विद्रोह की सोच पैदा कर के सावित्री को एक नयी दिशा देने लगी थी. धन्नो को इन जवान और कच्ची उम्र की लड़कियो को रंगीन बनाने का पुराना अनुभव था. भले ही सावित्री के लिए ये सब कुच्छ नया और अजीब लगने वाला था.
गाओं करीब आते ही धन्नो ने सावित्री से बोली "....अब तू जा अपने घर मैं थोड़ी देर मे आउन्गि...ठीक... "
फिर धन्नो गाओं के बाहर ही रुक गयी और सावित्री को जाते हुए देखने लगी. थोड़ी देर मे सावित्री गाओं के अंदर चलते हुए गाओं के कुच्छ बाहर बने अपने घर आ गयी. घर पर मा बर्तन धो रही थी. सावित्री को देखते ही सीता बोली "...इन बर्तनो को तुम धो देना ....अभी मुझे गाओं के दुकान से सब्जी और कुच्छ समान लाना है..." इतना कह कर सीता बर्तनो के पास से उठी और हाथ धो कर गाओं मे ही एक दुकान पर जाने लगी. शायद अब अंधेरा होने लगा था इसीलिए. सावित्री बुझे मन से घर के बाहर ही बिछे खाट पर अपनी ओढनी को रखी और बर्तन धोने की जगह बैठ गयी और बाकी बचे बर्तनो को धीरे धीरे धोने लगी और सीता गाओं के दुकान पर सब्जी और समान के लिए चल दी. सीता के हाथ मे मिट्टी के तेल का डिब्बा भी था. जो उसने एक झोले मे छिपा कर ले जा रही थी. तबतक धन्नो भी अपने घर आ चुकी थी. सीता को दुकान की ओर जाते देख धन्नो ने तुरंत एक छ्होटी सी कटोरी मे देसी घी ले कर सावित्री के पास आ गयी. सावित्री धन्नो को अपने घर के सामने कटोरी मे कुच्छ लिए देख कर हड़बड़ा गयी और बर्तन माजना छ्चोड़ कर खड़ी हो गयी "..क सीसी क्या है चाची..." धन्नो ने सीता के जाने वाले गाओं के रास्ते की ओर देखते हुए बोली "...घी है ...तेरी मा को गाओं मे जाते देख ..मैं झट से देसी घी लाई हूँ.... ले इसे घर मे रख दे और मौका देख कर थोड़ा गरम कर के लगा लेना...समझी ...अब तो चूल्हा भी जलाएगी तो मा के आने के पहले गरम करके लगा ही लेना. .." इतना कह कर धन्नो ने देसी घी की कटोरी सावित्री को थमाने लगी तो सावित्री ने जल्दी से अपना हाथ धो कर कटोरी को थाम ली और घर के अंदर जाने से पहले कटोरी मे नज़र डाली तो अनायास ही उसके मुँह से धीरे से निकल गया "..आ आ रे इतना घी क्या होगा चाची ..ये तो बहुत ज़्यादे है..."
धन्नो धीरे से बोली "अरे रख ले..कहीं घर मे चुरा के..और ..रोज-रोज लगाती रहना गरम करके ....कई दिन मालिश कर लेगी तो तेरी जवानी किसी भी मर्द का चोट झेलने लायक तैयार रहेगी....देसी गीयी है ...खाने और लगाने ...दोनो मे फ़ायदा करता है..." इतना कह कर धन्नो जाने के लिए मूडी ही थी की सावित्री धीरे से बोली "...ये .....क कटोरी ..चाची.." तभी धन्नो तपाक से डाँटते हुए बोली "...कटोरी की चिंता मत कर....बाद मे कभी दे देना...मैं चलती हूँ...कहीं तेरी मा आ गयी तो आग लग जाएगी..." इतना कहते हुए धन्नो थोड़ी ही दूर पर अपने घर चली गई. सावित्री ने तुरंत कटोरी को ले कर अपने घर के एक ही कोठरी मे जगह तलाशने लगी जहाँ वह उस कटोरी को च्छूपा सके. आख़िर कोठारी के कोने मे रखे एक पुराने लोहे के बॉक्स के नीचे कुच्छ जगह थी , उसी मे अंदर धीरे से देसी घी वाली कटोरी रख दी. और फिर तुरंत बाहर आ गयी. मा के आने मे कुच्छ समय लग सकता था. सावित्री को पेशाब भी लगी थी. इसलिए तुरंत घर के पीछे चली गयी और सलवार खोल कर चड्धि सर्काई और मुतने बैठ गयी. बैठते समय बुर मे कुच्छ दर्द महसूस हो रही थी. लेकिन ये दर्द काफ़ी कम था मानो कोई मीठा दर्द हो. अब अंधेरा होना सुरू हो गया था लेकिन फिर भी सावित्री अपनी बुर को सॉफ तरीके से देख पा रही थी और बुर की सूरत तेजू के चुदने के बाद कुच्छ बदल सी गयी थी. पेशाब करने के बाद खड़ी हुई और अनायास ही चड्धि पहनने से पहले झांतो से भरी बर को एक हाथ से सहलाई तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक अजीब सी मस्ती दौड़ गयी. मन मे मर्द के प्रति एक तेज आकर्षण पैदा होने लगा. ये सब मन की तरंगे सावित्री को एक आनंद मे सींच ही रही थी की उसे याद आया की बर्तन धोना रह गया है और मा थोड़ी ही देर मे गाओं के दुकान से वापस आती ही होगी. फिर तुरंत चड्धि को पहन सलवार को उपर कमर मे ला कर सलवार के नाडे को बाँध ली और ज़मीन पर थूकते हुए घर के आगे की ओर आ गयी और बर्तन माज्ने की जगह बैठ कर बर्तन धोने लगी. बर्तन धोते समय भी सावित्री के मन मे तेजू का चेहरा और चुदाई दोनो लगातार घूम रहा था. बार बार उसे तेजू की चुदाई और धन्नो चाची की उंगली का बुर मे घुसना और बुर को फाड़ने वाली यादें मन मे मस्ती भरी सिहरन पैदा कर दे रही थी. आज दिन मे जो कुच्छ भी हुआ वह कभी सपने मे भी नही सोची थी. मानो आज का दिन कोई एकदम अलग दिन था. यही सब सोच सोच कर बर्तनो को रख धो रही सावित्री ने देखा की अंधेरा गहराता जा रहा था और बर्तन भी सारे धूल चुके थे. और अभी तक मा वापस नही आई थी. सावित्री को अपनी मा का अंधेरा सुरू होते होते गाओं मे या कहीं जाना बहुत अजीब लग रहा था. क्योंकि गाओं मे तो दिन मे चलना मुस्किल होता था अवारों के डर से और अंधेरा के बाद तो औरतों का कहीं भी आना जाना ठीक नही होता था. यही सोच कर सावित्री अपने से सवाल कर रही थी की आख़िर मा को क्या ज़रूरत थी अंधेरा होने के बाद कहीं जाने की. फिर भी अपने रंगीन सोचों मे डूबी सावित्री को याद आया की अंधेरा होते होते यदि चिराग नही जला तो मा गुस्सा करेगी. मा हमेशा कहती है की अंधेरा होते यदि चिराग नही जलता तो घर मे शैतान का वास सुरू हो जाता है. यही सोच कर सावित्री ने तुरंत घर मे रखी एक छ्होटी सी दिया को जला दी. उसमे मिट्टी का तेल इतना ही था की रात दस बजे तक ही जलता. शायद घर मे मिट्टी का तेल भी ख़त्म हो गया था. तब उसे याद आया की मा जाते समय मिट्टी के तेल का डिब्बा भी ले जा रही थी. लेकिन मिट्टी का तेल तो गाओं के दूसरी छ्होर पर मिलता है और वो भी एकदम एकांत और सुनसान जगह. तो क्या मा वहाँ गयी होगी. तभी सावित्री की माँ ने जबाव दिया "नही मा ऐसा कैसे कर सकती है भला..." तभी उसे याद आया की चूल्हे मे आग जलाने का समय हो चुका था. और खाना बनाने वाला चूल्हा कोठरी से सटे एक छ्होटी सी छप्पर मे थी. उस चूल्हे पर लकड़ी और गोबर की उपली से खाना बनता. कोठारी के अलावा उठने बैठने के लिए यह छप्पर ही था..छप्पर मे काफ़ी कम जगह थी जहाँ चूल्हे के जगह को छोड़ कर बस एक ही खाट किसी तरह पड़ जाती थी.
क्रमशः...........