ज़ोर का झटका धीरे से
मैं जब कॉलेज मे पढ़ती थी, तो हमारा सात लड़कियों का ग्रूप था. लेकिन उन सब मे पल्लवी मेरी खास सहेली थी. वो एक छ्होटे गाओं से आई थी. इस शहर मे पेयिंग गेस्ट बन के रहती थी. ऊम्र के हिसाब से हमको भी रोमॅन्स और सेक्स की बातें अच्च्ची लगती थी. हम लड़कों को देखते थे थे और उनके बारे मे बात किया करते थे. दिन मस्ती से गुज़र रहे थे. लेकिन हमेशा समय एक सा नही रहता.
जब हमारा कॉलेज का पहला साल पूरा हो रहा था, तो पल्लवी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया. वैसे भी वो लोग ग़रीब थे. अब तो कॉलेज की पढ़ाई करना तो दूर रहा, घर चलना मुश्किल हो गया. उसके छ्होटे भाई बहन भी थे. मैं भी सहेली होने के नाते चिंतित थी, पर उसे पैसों की मदद करनेकी स्थिति हमारी ही नही थी. मुझे लगा, हमारा साथ च्छुत जाएगा. वो पढ़ नही पाएगी. लेकिन भाग्या को कुछ और मंज़ूर था. उसकी परिस्थिति से वाकिफ़ किसी दलाल ने उसे संपर्क किया और वो कॉल गर्ल बन गयी. उसकी मा को पता था. पर वो भी क्या करती ?
वो दिन मे कॉलेज अटेंड करती और रात को अपना काम करती. फिर तो वो अपने तरह तरह के अनुभव हमे सुनती थी. शुरू मे उसके दिल मे ग़लत काम का डंख रहता था, पर बाद मे वो सब निकल गया. उल्टा उसे मज़ा आने लगा. वो इतने रोचक ढंग से अपने अनुभव मुझे सुनती की मुझे भी उसकी तरह कॉल गर्ल बनने का जी कर जाता था. पर मैं ऐसा ना कर पाई. मुझे लगता था मैं जीवन की उन खुशियों को मिस कर रही हूँ, जिसे पल्लवी पा रही है. इसी तरह हमने पढ़ाई पूरी कर दी. सब बिखर गये. पल्लवी मुंबई चली गयी. वहाँ ज़्यादा स्कोप था उसके लिए.
मेरी मँगनी हो गयी. वो दूसरे गाओं से थे. तो मँगनी के बाद मुलाकात कम हुई. हां, हम लव लेटर और मैल से संपर्क मे थे.
शादी तय हो जाती है तो लड़कियों को सहेलियाँ ज़्यादा याद आती है. मुझे भी पल्लवी याद आई. अब कॉलेज को ही एक अरसा हो गया था. मैने मुंबई आने का फ़ैसला किया और पिताजी से रज़ा ले कर निकल पड़ी.
लंबे समय के बाद मैं आज उसे मिल रही थी. दोनो ने बहोट बाते की. दिनभर हम बात करते थे. रात होते वो अपने धंधे पर चली जाती थी. उसके चार एजेंट थे, जो उसके लिए बुकिंग किया करते थे. अब तो वो अलग अपना फ्लॅट ले कर रहती थी.
एक शाम हम बातें कर रहे थे की एक फोन आया. फोन पर बात कर के वो चिंतित हो गयी.
मैने पुचछा ; “क्या हुआ ? कोई समस्या ?”
उसके चेहरे पर उलज़ान नज़र आई. फिर उसने कहा ; “हां, समस्या तो है. लेकिन तू कुछ नही कर सकती.”
मैने कहा ; “फिर भी, बता तो सही.”
वो बोली ; “मेरा आज रात का होटेल गौरव का बुकिंग था. उसका 5000 नक्की हुआ है. लेकिन अभी जो फोन आया, वो दूसरे एजेंट का था. वो फुल नाइट, तीन आदमी का ऑफर लाया है.”
मैने कहा ; “तू अगर तीन आदमी पूरी रात नही सह सकती तो ना कर दे उसे. इस मे क्या उलज़ान है ?”
वो मुझ पर बिगड़ी ; “अर्रे तू कुछ समज़ाती नही है. पैसे मिलते हो तो मैं तीन क्या पाँच को भी ज़ेल लूँ. और यहाँ तो 25000 मिल रहे है.”
अब मुझे उलझन हुई, मैने कहा ; “तो स्वीकार कर ले.”
वो मूह नाचते मेरी नकल करते बोली ; “वा वा, स्वीकार कर ले, अच्च्ची सलाह दी. फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?”
अब मैं बात समझी. इनके धंधे मे हां करनेके बाद ना नही कर सकते. नही तो वो एजेंट साथ छ्चोड़ देगा. पल्लवी को यह 25000 चाहिए थे, लेकिन 5000 वाला काम ले कर फाँसी थी.
पर उसके आखरी सवाल - “फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?” – से मैं चौंकी ? उसने तो गुस्से मे ही कह दिया था. मगर मुझे कॉलेज के वो दिन याद आ गये जब उसके रोचक अनुभव सुन के मेरा भी कॉल गर्ल बनाने का जी करता था. आज मौका पाते ही वो पुरानी इच्च्छा प्रबल हो उठी, और मैने कह दिया ; “ हां, मैं जौंगी वहाँ, बस?”
वो आश्चर्या से मेरी और देखती ही रह गयी. उसकी नज़र मे सवाल था. बिना कुछ कहे वो मेरी और प्रश्ना भारी निगाह से देखती रही. मैं क्या जवाब दूं ? खुद मैं भी हैरान थी. वो पुरानी इच्च्छा का बीज इस तरह बड़ा हो के मेरे सामने आएगा, मैने कभी सोचा भी ना था. लेकिन वो भी मेरी अंतरंग सहेली थी. मेरी राग राग से वाकिफ़ थी. मेरे चेहरे पर बदलते रंगो को देख कर बोली ; “ ठीक है, पर बाद मे पचहताएगी तो नही ?” मैने नकार मे सिर हिलाया.
फिर तो उसने मुझे सारी सलाह दी. समय होते उसने एजेंट से कन्फर्मेशन भिजवा दिया की हू समय से पहुँच रही है. मुझे पल्लवी बनकर ही जाना था. ग्राहक नया था, तो वो उसे पहचानता नही था. पल्लवी मुझे होटेल पर छ्चोड़ गयी.
मैं लिफ्ट से रूम पर पहुँची. गाभहारते हुए लॉबी पसार की. रूम खोजा और डोर बेल बजाने जा रही थी की देखा की दरवाज़ा खुला है. मैं हल्के से अंदर दाखिल हुई और दरवाज़ा बाँध कर लिया. अंदर गयी, तो कोई नज़र नही आया… फिर ख़याल आया, बातरूम से आवाज़ आ रहा है, कोई नहा रहा है. मैं सोफा पर बैठी, इंतेज़ार करने के लिए. समय पसार करने के लिए कोई मॅगज़ीन धहोँढने के लिए नज़र दौड़ाई तो सेंटर टेबल पर पड़ी चित्ति पर ध्यान गया, लिखा था , “पल्लवी, ई गॉट कन्फर्मेशन फ्रॉम एजेंट तट योउ अरे रीचिंग इन टाइम. अनड्रेस युवरसेल्फ आंड जाय्न मे इन बात. “ मैं स्तब्ध हो गयी. मैं पल्लवी की जगह आ तो गयी, लेकिन वास्तविकता अब मेरे सामने थी. ये जनाब तो अंदर मेरा इंतेज़ार कर रहे है. मैने हिम्मत बटोरी, और अपने सारे कपड़े निकल दिए. पूरी नंगी हो कर धीरे से मैं ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
वो नहा रहा था. शवर बाँध था, पर वो उसके नीचे खड़ा था. उसकी पीठ मेरी और थी. पूरे बदन पर साबुन लगा चक्का था. मूह पर भी साबुन था. वो मुझे देख नही पा रहा था. मैने राहत की साँस ली. मैं नज़दीक गयी और उसको पिच्चे से ही लिपट गयी. मेरे बूब्स उसकी पीठ पर टच हुए. दोनो को मानो करेंट लगा. मैने अपने हाथ उसकी च्चती पर फिराए, और उसकी पीठ पर अपने गाल घिसने लगी. (किस करने जैसी तो बिना साबुन की कोई जगह ही नही बची थी) उसने भी अपने हाथ पिच्चे फैलाए और मेरी जाँघो पर फिरने लगा. कोई कुछ बोल नही रहा था. मान-वुमन मॅजिक अपना कम कर रहा था. च्चती पार्स मैने हाथ नीचे सरकए. इन सारे वक्त मेरे बूब्स तो उसकी पीठ पर ही चिपके हुए थे. मेरे हाथ नीचे सरकते उसके कॉक तक पहुँच गये. मैं पहली बार, किसी मर्द के इस भाग को छ्छू रही थी. कॉक कड़क होने लगा. मैं उसे सहलाती रही, दबाती रही. वो “श, श” करने लगा. मैं अब तक जो पीठ पर बूब्स चिपका के गाल घिस रही थी, धीरे से नीचे की और सर्की. मैं बूब्स उसकी पीठ पर घिसते हुए नीचे जा रही थी. उसके हिप्स को अपने बूब्स से दबाती हुई मैं और नीचे उतार गयी. उसके हिप्स पर गाल घिसे. फिर मैं वहाँ से आयेज की और आई और उसका लंड मूह मे लिया. उसके हाथ मेरे सिर पर आ गये थे. मैं ने उसे पानी से साफ करके चूसना और चारों औरसे किस करना शुरू किया. साथ मे मैं उसके बॉल्स से भी खेल रही थी. दोनो के बादन मे आग लग चुकी थी. जब जी भरा तो मैं उपर उठी. अपने बूब्स उसके आयेज के बदन पर घिसती हुई मैं उपर उठी. मैने उसके होठ पर किस करना चाहा. पर वहाँ भी साबुन था. तो मैने शवर चालू किया. फुल फोर्स मे पानी बहना शुरू हुआ. मूह साफ हो गया, उसने आँखे खोली और हम दोनो चौंके……….दोनो के मूह से एक साथ एक ही शब्द निकला, “ तुम ???????? ” वो मेरा मंगेतर था !!!!!!!!!!!!!
दोनो के चेहरे पर एक साथ तरह तरह के भाव ज़लाक रहे थे ; शॉक, डिसबिलीफ, अंगेर, रिपेंटेन्स…..आंड वॉट नोट ?
Hindi Sex Stories By raj sharma
Re: Hindi Sex Stories By raj sharma
एक हसीन ग़लती--1
दोस्तो मैं निशा अपनी कहानी आप को बताने जा रही हू दोस्तो मुझे आशा है कि आपको मेरी कहानी मेरी मजबूरी पसंद आएगी . मेरी शादी मनीष के साथ 2 साल पहले हुई थी . और मैं मनीष के साथ बहुत खुशी से अपना जीवन गुज़ार रही थी
एक दिन मनीष के गाँव से मेरी सासू का फोन आया कि मनीष के चचेरे भाई विकास की शादी है . मैं और मनीष शादी से 8 दिन पहले ही गाँव आ गये . शादी से एक दिन पहले की बात है पूरा घर रिश्तेदारो से भरा पड़ा था . मुझे बहुत तेज पेशाब लगा था लेकिन कोई भी बाथरूम खाली नही था . मैने छत पर जाकर पेशाब करने की सोची . जब मैं छत पर गई तो वान्हा मुझे स्टोर रूम दिखाई दिया . मैने एक डिब्बा लिया और उसे लेकर स्टोर रूम मे आ गई . स्टोर रूम के दरवाजे मे कुण्डी नही थी मैने उसे ऐसे ही भिड़ा दिया और डब्बे को नीचे रख कर उसमे पेशाब करने लगी . मुझे पेशाब करते हुए ये अहसास तक नही हुआ कि कोई दरवाजे को खोल कर अंदर आ चुका है और मुझे पेशाब करते हुए देख रहा है . अचानक मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठी . मैं पेशाब अभी पूरी तरह नही कर पाई थी . जिसकी वजह से मेरे पेट मे दर्द हो रहा था .
वो कोई और नही मुकेश था . दोस्तो मुकेश एक 48-50 साल का आदमी था जो मनीष का दूर के रिश्ते से अंकल लगता था . जब मैं गाँव आई थी तब मैने उसे पहली बार देखा था . जब मेरी सासू ने उसके पैर छूने के लिए कहा तब मैं उसके पैर छूने के लिए झुकी तो उसने मुझे उठाया और कहा अरे नही बहू तुम्हारी जगह यहाँ नही है . वो मुझे बड़े अश्लील ढंग से घूर रहा था उसकी नज़र मेरी छाती पर गढ़ी हुई थी . उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया था लेकिन शरम के मारे चुप रह गई थी . तब से वो मुझे जहाँ भी देखता उसकी नज़र हमेशा मेरी छाती पर ही होती . मुझे उसकी आँखो मे हमेशा वासना ही नज़र आती थी . आज शायद उसे लगा कि मैं छत परअकेली हूँ और वो मौके का फ़ायदा उठाने के लिए मेरे सामने खड़ा वो मुझे बड़ी बेशरामी से घूर रहा था . उसके होंठो पर कुटिल मुस्कान फैली हुई थी . अब वो मेरी चुचियो को एक टक घूर रहा था .
मुझे बहुत गुस्सा आया और मैने उसे गुस्से से कहा तुम्हे शरम नही आती . तुम यहाँ क्या कर रहे हो . क्या तुम्हे अपनी उमर का ख्याल नही है . मुकेश बड़ी बेशर्मी से बोला जानेमन मैं तो तुम्हारी चूत देखने के लिए यहाँ आया था . क्या कातिल जवानी है तुम्हारी कसम से एक बार अगर तुम मुझे अपनी दे दोगि तो मैं धन्य हो जाउन्गा .
मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैने उसके गाल पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया . और कहा आइन्दा मेरे पास भी फटके तो मुझसे बुरा कोई नही होगा .
एक पल को तो मुकेश की आँखो के आगे सितारे घूम गये. फिर कुछ संभाल कर वो बोला, “जितनी ज़ोर से तूने ये तमाचा मारा है ना, उतनी ही ज़ोर से तेरी गांद ना मारी तो मेरा नाम मुकेश नही.”
मैं उसे कुछ बोलने ही वाली थी कि मुझे स्टोर के बाहर कुछ लोगो की आवाज़ सुनाई दी. मेरी तो साँस ही अटक गयी. हे भगवान अब क्या होगा. लोगो ने मुझे इस सुवर के साथ देख लिया तो मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. ना जाने लोग क्या क्या समझेंगे.
“लगता है कुछ लोग टहलने के लिए उपर आ गये हैं.” मुकेश ने कहा.
“श्ह्ह चुप रहो तुम कोई सुन लेगा.” मैने धीरे से कहा.
“कितना अच्छा मोका दिया है भगवान ने हमें. हमें इस मोके को गँवाना नही चाहिए.” मुकेश ने धीरे से कहा.
“क्या मतलब है तुम्हारा.”
“देखो ना स्टोर रूम में हम अकेले हैं. दरवाजा बंद है. कुछ भी हो सकता है.” मुकेश ने नशीली आवाज़ में कहा. उसकी बातों में हवस सॉफ दीखाई दे रही थी.
“तुम्हे बिल्कुल शरम नही आती मेरे साथ ऐसी बेहूदा बाते करते हुवे. क्या तुम्हे नही पता कि मैं शरीफ घर की बहू हूँ. ऐसी बाते शोभा नही देती तुम्हे.”
“नाटक मत कर मुझे सब पता है तेरे बारे में.” मुकेश ने कहा.
“तुम्हे कुछ नही पता. चुपचाप खड़े रहो नही तो लोग सुन लेंगे.” मैने आँखे दिखाते हुवे कहा.
“तो सुन लेने दो मेरा क्या जाता है. जो बिगड़ेगा तेरा ही बिगड़ेगा.”
उसकी बात में दम था. मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. उपर से मैं अभी थोड़ा ही पेसाब कर पाई थी और प्रेशर फिर से बढ़ने लगा था. अब तो और भी मुसीबत हो गयी थी. ना मैं बाहर जा सकती थी ना ही अंदर रह सकती थी. मगर मेरा प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था. आख़िर मुझे बोलना ही पड़ा, “तुम थोड़ा घुमोगे.”
“क्यों घूमू मैं.”
“घूम जाओ प्लीज़ मेरा पेट फटा जा रहा है.”
“पेट फटा जा रहा है पर क्यों, ज़्यादा खा लिया था क्या.”
“बाते मत बनाओ, एक तो एन वक्त पर आ कर मुझे टोक दिया अब बाते बना रहे हो, थोड़ा घूम जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा तुम्हारा.”
“मेरे सामने कर लेगी मूत तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा. वैसे भी तेरी गांद मैं देख ही चुका हूँ. कर ले ज़्यादा शर्मा मत.”
दोस्तो मैं निशा अपनी कहानी आप को बताने जा रही हू दोस्तो मुझे आशा है कि आपको मेरी कहानी मेरी मजबूरी पसंद आएगी . मेरी शादी मनीष के साथ 2 साल पहले हुई थी . और मैं मनीष के साथ बहुत खुशी से अपना जीवन गुज़ार रही थी
एक दिन मनीष के गाँव से मेरी सासू का फोन आया कि मनीष के चचेरे भाई विकास की शादी है . मैं और मनीष शादी से 8 दिन पहले ही गाँव आ गये . शादी से एक दिन पहले की बात है पूरा घर रिश्तेदारो से भरा पड़ा था . मुझे बहुत तेज पेशाब लगा था लेकिन कोई भी बाथरूम खाली नही था . मैने छत पर जाकर पेशाब करने की सोची . जब मैं छत पर गई तो वान्हा मुझे स्टोर रूम दिखाई दिया . मैने एक डिब्बा लिया और उसे लेकर स्टोर रूम मे आ गई . स्टोर रूम के दरवाजे मे कुण्डी नही थी मैने उसे ऐसे ही भिड़ा दिया और डब्बे को नीचे रख कर उसमे पेशाब करने लगी . मुझे पेशाब करते हुए ये अहसास तक नही हुआ कि कोई दरवाजे को खोल कर अंदर आ चुका है और मुझे पेशाब करते हुए देख रहा है . अचानक मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठी . मैं पेशाब अभी पूरी तरह नही कर पाई थी . जिसकी वजह से मेरे पेट मे दर्द हो रहा था .
वो कोई और नही मुकेश था . दोस्तो मुकेश एक 48-50 साल का आदमी था जो मनीष का दूर के रिश्ते से अंकल लगता था . जब मैं गाँव आई थी तब मैने उसे पहली बार देखा था . जब मेरी सासू ने उसके पैर छूने के लिए कहा तब मैं उसके पैर छूने के लिए झुकी तो उसने मुझे उठाया और कहा अरे नही बहू तुम्हारी जगह यहाँ नही है . वो मुझे बड़े अश्लील ढंग से घूर रहा था उसकी नज़र मेरी छाती पर गढ़ी हुई थी . उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया था लेकिन शरम के मारे चुप रह गई थी . तब से वो मुझे जहाँ भी देखता उसकी नज़र हमेशा मेरी छाती पर ही होती . मुझे उसकी आँखो मे हमेशा वासना ही नज़र आती थी . आज शायद उसे लगा कि मैं छत परअकेली हूँ और वो मौके का फ़ायदा उठाने के लिए मेरे सामने खड़ा वो मुझे बड़ी बेशरामी से घूर रहा था . उसके होंठो पर कुटिल मुस्कान फैली हुई थी . अब वो मेरी चुचियो को एक टक घूर रहा था .
मुझे बहुत गुस्सा आया और मैने उसे गुस्से से कहा तुम्हे शरम नही आती . तुम यहाँ क्या कर रहे हो . क्या तुम्हे अपनी उमर का ख्याल नही है . मुकेश बड़ी बेशर्मी से बोला जानेमन मैं तो तुम्हारी चूत देखने के लिए यहाँ आया था . क्या कातिल जवानी है तुम्हारी कसम से एक बार अगर तुम मुझे अपनी दे दोगि तो मैं धन्य हो जाउन्गा .
मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैने उसके गाल पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया . और कहा आइन्दा मेरे पास भी फटके तो मुझसे बुरा कोई नही होगा .
एक पल को तो मुकेश की आँखो के आगे सितारे घूम गये. फिर कुछ संभाल कर वो बोला, “जितनी ज़ोर से तूने ये तमाचा मारा है ना, उतनी ही ज़ोर से तेरी गांद ना मारी तो मेरा नाम मुकेश नही.”
मैं उसे कुछ बोलने ही वाली थी कि मुझे स्टोर के बाहर कुछ लोगो की आवाज़ सुनाई दी. मेरी तो साँस ही अटक गयी. हे भगवान अब क्या होगा. लोगो ने मुझे इस सुवर के साथ देख लिया तो मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. ना जाने लोग क्या क्या समझेंगे.
“लगता है कुछ लोग टहलने के लिए उपर आ गये हैं.” मुकेश ने कहा.
“श्ह्ह चुप रहो तुम कोई सुन लेगा.” मैने धीरे से कहा.
“कितना अच्छा मोका दिया है भगवान ने हमें. हमें इस मोके को गँवाना नही चाहिए.” मुकेश ने धीरे से कहा.
“क्या मतलब है तुम्हारा.”
“देखो ना स्टोर रूम में हम अकेले हैं. दरवाजा बंद है. कुछ भी हो सकता है.” मुकेश ने नशीली आवाज़ में कहा. उसकी बातों में हवस सॉफ दीखाई दे रही थी.
“तुम्हे बिल्कुल शरम नही आती मेरे साथ ऐसी बेहूदा बाते करते हुवे. क्या तुम्हे नही पता कि मैं शरीफ घर की बहू हूँ. ऐसी बाते शोभा नही देती तुम्हे.”
“नाटक मत कर मुझे सब पता है तेरे बारे में.” मुकेश ने कहा.
“तुम्हे कुछ नही पता. चुपचाप खड़े रहो नही तो लोग सुन लेंगे.” मैने आँखे दिखाते हुवे कहा.
“तो सुन लेने दो मेरा क्या जाता है. जो बिगड़ेगा तेरा ही बिगड़ेगा.”
उसकी बात में दम था. मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. उपर से मैं अभी थोड़ा ही पेसाब कर पाई थी और प्रेशर फिर से बढ़ने लगा था. अब तो और भी मुसीबत हो गयी थी. ना मैं बाहर जा सकती थी ना ही अंदर रह सकती थी. मगर मेरा प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था. आख़िर मुझे बोलना ही पड़ा, “तुम थोड़ा घुमोगे.”
“क्यों घूमू मैं.”
“घूम जाओ प्लीज़ मेरा पेट फटा जा रहा है.”
“पेट फटा जा रहा है पर क्यों, ज़्यादा खा लिया था क्या.”
“बाते मत बनाओ, एक तो एन वक्त पर आ कर मुझे टोक दिया अब बाते बना रहे हो, थोड़ा घूम जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा तुम्हारा.”
“मेरे सामने कर लेगी मूत तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा. वैसे भी तेरी गांद मैं देख ही चुका हूँ. कर ले ज़्यादा शर्मा मत.”
Re: Hindi Sex Stories By raj sharma
मैं शरम से पानी पानी हो गयी. “नरक में जाओगे तुम, तुम्हे शरम नही आती.” मैने नज़रे झुका कर कहा.
“मुझे तो नही आती पर तुम बहुत शर्मा रही हो.”
“घूम जाओ ना प्लीज़” मैने मक्खन लगाते हुवे कहा क्योंकि मेरा पेट फटा जा रहा था.
“ ठीक है मैं घूम जाता हूँ. कर ले आराम से.” वो घूम कर खड़ा हो गया.
“पीछे मत मुड़ना.” मैने डब्बे को सरकाते हुवे कहा. मैने आराम से तस्सली से किया पेसाब मगर मेरी नज़रे उसी पर टिकी थी. जब मेरे पेसाब की आहट बंद हो गयी तो वो तुरंत घूम गया. मैने बड़ी जल्दी की साडी नीचे करने की मगर फिर भी उसने मेरी गुलाबी योनि देख ही ली.”
“हाई राम क्या फांके हैं तेरी चूत की, खाने का मन कर रहा है.” उसने बेशर्मी से आँख मारते हुवे कहा.
मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी. मुझसे कुछ भी बोले नही बन रहा था. मेरी लाख कोशिसो के बावजूद उसने मेरी योनि देख ही ली थी और अब ऐसी बाते कर रहा था. साथ ही साथ वो बेशर्मी से अपनी पॅंट में तने हुवे तंबू को सहला रहा था. मेरा तो शरम से चेहरा लाल हो गया था. अगर बाहर लोग ना होते तो तुरंत वहाँ से चली जाती मैं.
“एक बार एक अँग्रेजन की ली थी मैने. उसकी चूत की फांके भी बिल्कुल तेरी चूत जैसी थी. बिल्कुल गोरी चित्ति. एक भी बॉल नही था उसकी चूत पर.”
मैं तो और भी शरम से लाल हो गयी. अंजाने में मेरे मूह से निकल गया, “अंग्रेज कहाँ मिली तुम्हे.”
“गाँव में आई थी वो अपने पति के साथ. उसका पति कोई क्या कहते हैं रिचर्च कर रहा था.”
“रेचर्च नही रिसर्च.”
“हां हां कुछ ऐसा ही. मैं अनपढ़ गँवार क्या जानू ये सब. जो भी हो बहुत मज़ा दिया था उसकी गुलाबी चूत ने. तेरी चूत ने उसकी याद दिला दी आज.”
मुझे यकीन नही हो रहा था कि कोई अँग्रेज़ लड़की इस सुवर के चक्कर में आ सकती है. खैर मुझे कोई मतलब नही था इन बातों से.
“यार मुझे भी पेसाब आया हुआ है. मैं क्या करूँ अब.”
“थोड़ी देर रुक जाओ. लोग जाते ही होंगे.”
“मुझे नही लगता कि कोई हिलेगा यहाँ से अभी. मेरा भी पेट फटा जा रहा है. मैं करने जा रहा हूँ इस डब्बे में.” कहते हुवे उसने अपनी ज़िप खोल ली. कही मुझे उसका औजार ना दिख जाए इसलिए मैं तुरंत घूम गयी. उसने आराम से बैठ कर डब्बे में पेसाब किया.
“अब हमारे पेसाब मिल गये आपस में. काश के तेरी चूत से मेरा लंड भी मिल जाए ऐसे ही हिहिहीही.”
मैं तो हैरान रह गयी उसकी बात पर. वो मूत कर खड़ा हो गया. मैं भी वापिस घूम गयी. मुझे लग रहा था कि कही वो अपना लिंग बाहर ही निकाले ना खड़ा हो. मगर सूकर है वो अंदर था. मगर उसने अंदर से ही तंबू बना रखा था उसकी पॅंट में. उसे देख कर यही लगता था कि पॅंट के पीछे कोई भारी भरकम चीज़ है.
“कहो तो निकाल लूँ बाहर.” उसने बेशर्मी से तंबू को सहलाते हुवे कहा.
मैने तुरंत शरम से अपनी नज़रे घुमा ली.
“लगता है तू देखना चाहती हैं मेरे लौदे को मगर कहने से शर्मा रही है. ले निकाल रहा हूँ तेरे लिए मैं इसे.” और उसने अपनी ज़िप खोलनी शुरू कर दी.
“नही नही ऐसा कुछ नही है. मैं तो ऐसे ही बस.”
“ऐसे ही बस क्या? बोलो नही तो निकाल लूँगा.”
“हैरान थी इतने बड़े तंबू को देख कर.” मुझे बोलना ही पड़ा.
“मुझे तो नही आती पर तुम बहुत शर्मा रही हो.”
“घूम जाओ ना प्लीज़” मैने मक्खन लगाते हुवे कहा क्योंकि मेरा पेट फटा जा रहा था.
“ ठीक है मैं घूम जाता हूँ. कर ले आराम से.” वो घूम कर खड़ा हो गया.
“पीछे मत मुड़ना.” मैने डब्बे को सरकाते हुवे कहा. मैने आराम से तस्सली से किया पेसाब मगर मेरी नज़रे उसी पर टिकी थी. जब मेरे पेसाब की आहट बंद हो गयी तो वो तुरंत घूम गया. मैने बड़ी जल्दी की साडी नीचे करने की मगर फिर भी उसने मेरी गुलाबी योनि देख ही ली.”
“हाई राम क्या फांके हैं तेरी चूत की, खाने का मन कर रहा है.” उसने बेशर्मी से आँख मारते हुवे कहा.
मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी. मुझसे कुछ भी बोले नही बन रहा था. मेरी लाख कोशिसो के बावजूद उसने मेरी योनि देख ही ली थी और अब ऐसी बाते कर रहा था. साथ ही साथ वो बेशर्मी से अपनी पॅंट में तने हुवे तंबू को सहला रहा था. मेरा तो शरम से चेहरा लाल हो गया था. अगर बाहर लोग ना होते तो तुरंत वहाँ से चली जाती मैं.
“एक बार एक अँग्रेजन की ली थी मैने. उसकी चूत की फांके भी बिल्कुल तेरी चूत जैसी थी. बिल्कुल गोरी चित्ति. एक भी बॉल नही था उसकी चूत पर.”
मैं तो और भी शरम से लाल हो गयी. अंजाने में मेरे मूह से निकल गया, “अंग्रेज कहाँ मिली तुम्हे.”
“गाँव में आई थी वो अपने पति के साथ. उसका पति कोई क्या कहते हैं रिचर्च कर रहा था.”
“रेचर्च नही रिसर्च.”
“हां हां कुछ ऐसा ही. मैं अनपढ़ गँवार क्या जानू ये सब. जो भी हो बहुत मज़ा दिया था उसकी गुलाबी चूत ने. तेरी चूत ने उसकी याद दिला दी आज.”
मुझे यकीन नही हो रहा था कि कोई अँग्रेज़ लड़की इस सुवर के चक्कर में आ सकती है. खैर मुझे कोई मतलब नही था इन बातों से.
“यार मुझे भी पेसाब आया हुआ है. मैं क्या करूँ अब.”
“थोड़ी देर रुक जाओ. लोग जाते ही होंगे.”
“मुझे नही लगता कि कोई हिलेगा यहाँ से अभी. मेरा भी पेट फटा जा रहा है. मैं करने जा रहा हूँ इस डब्बे में.” कहते हुवे उसने अपनी ज़िप खोल ली. कही मुझे उसका औजार ना दिख जाए इसलिए मैं तुरंत घूम गयी. उसने आराम से बैठ कर डब्बे में पेसाब किया.
“अब हमारे पेसाब मिल गये आपस में. काश के तेरी चूत से मेरा लंड भी मिल जाए ऐसे ही हिहिहीही.”
मैं तो हैरान रह गयी उसकी बात पर. वो मूत कर खड़ा हो गया. मैं भी वापिस घूम गयी. मुझे लग रहा था कि कही वो अपना लिंग बाहर ही निकाले ना खड़ा हो. मगर सूकर है वो अंदर था. मगर उसने अंदर से ही तंबू बना रखा था उसकी पॅंट में. उसे देख कर यही लगता था कि पॅंट के पीछे कोई भारी भरकम चीज़ है.
“कहो तो निकाल लूँ बाहर.” उसने बेशर्मी से तंबू को सहलाते हुवे कहा.
मैने तुरंत शरम से अपनी नज़रे घुमा ली.
“लगता है तू देखना चाहती हैं मेरे लौदे को मगर कहने से शर्मा रही है. ले निकाल रहा हूँ तेरे लिए मैं इसे.” और उसने अपनी ज़िप खोलनी शुरू कर दी.
“नही नही ऐसा कुछ नही है. मैं तो ऐसे ही बस.”
“ऐसे ही बस क्या? बोलो नही तो निकाल लूँगा.”
“हैरान थी इतने बड़े तंबू को देख कर.” मुझे बोलना ही पड़ा.