मेरा भाई भी उनके साथ बैठा था. साथ में बड़ी ननद के Husband मेरे ननदोई भी….. उनकी बात सुनके मैं दरवाजे पे ही एक मिनट के लिये ठिठक के रुक गई और उनकी बात सुनने लगी. मेरे भाई को उन्होंने सटा के, Almost अपने गोद में (खींच के गोस में ही बैठा लिया). सामने ननदोई जी एक बोतल (दारू की) खोल रहे थे. मेरे भाई के गालों पे हाथ लगा के बोले, “यार तेरा साला तो बड़ा मुलायम है..”
“और क्या एकदम मक्खन मलाई….” दूसरे गाल को प्यार से सहलाते ‘ये’ बोले.
“गाल ऐसा है तो फिर गाण्ड तो…… क्यों साले कभी मरवाई है क्या..??” बोतल से सीधे घुट लगाते मेरे ननदोई बोले और फिर बोतल ‘उनकी’ ओर बढ़ा दी.
मेरा भाई मचल गया और मुँह फूला के अपने जीजा से बोला, “देखिये जीजाजी, अगर ये ऐसी बात करेंगे तो….”
उन्होंने बोतल से दो बड़ी घुट ली और बोतल ननदोई को लौटा के बोले, “जीजा, ऐसे थोड़े ही पूछते है.!! अभी कच्चा है, मैं पूछता हूँ…”
फिर मेरे भाई के गाल पे प्यार से एक चपत मार के बोले, “अरे ये तेरे जीजा के भी जीजा है, मजाक तो करेंगे ही…. क्या बुरा मानना..?? फिर होली का मौका है. तू लेकिन साफ-साफ बता, तू इत्ता गोरा चिकना है लौंडियों से भी ज्यादा नमकीन, तो मैं ये मान ही नहीं सकता कि तेरे पीछे लड़के ना पड़े हो.!!! तेरे शहर में तो लोग कहते है कि अभी तक इसलिए बड़ी लाइन नहीं बनी कि लोग छोटी लाइन के शौक़ीन है.” और उन्होंने बोतल ननदोई को दे दी.
ना नुकुर कर के उसने बताया कि कई लड़के उसके पीछे पड़े तो थे और कुछ ही दिन पहले वो साईकिल से जब घर आ रहा था तो कुछ लडको ने उसे रोक लिया और जबरन स्कुल के सामने एक बांध है, उसके नीचे गन्ने के खेत में ले गए. उन लोगों ने तो उसकी पेन्ट भी सरका के उसे झुका दिया था. लेकिन बगल से एक टीचर की आवाज सुने पड़ी तो वो लोग भागे.
“तो तेरी कोरी है अभी..??? चल हम लोगों की किस्मत… कोरी मारने के मज़ा ही और है.” ननदोई बोले और अबकी बोतल उसके मुँह से लगा दिया. वो लगा छटपटाने….
उन्होंने उसके मुँह से बोतल हटाते हुए कहा, “अरे जीजा अभी से क्यों इसको पीला रहे है..???” (लेकिन मुझको लग गया था कि बोतल हटाने के पहले जिस तरह से उन्होंने झटका दिया था, दो-चार घूंट तो उसके मुँह में चला ही गया.) और खुद पिने लगे.
“कोई बात नहीं…कल जब इसे पेलेंगे तो पिलायेंगे….” संतोष कर ननदोई बोले.
“अरे डरता क्यों है.??” दो घुट ले उसके गाल पे हाथ फेरते वो बोले, “तेरी बहना की भी तो कोरी थी, एकदम कसी… लेकिन मैंने छोड़ी क्या.?? पहले उँगली से जगह बनाई, फिर क्रीम लगा के, प्यार से सहला के, धीरे-धीरे और एक बार जब सुपाडा घुस गया, वो चीखी, चिल्लाई लेकिन…. अब हर हफ्ते उसकी पीछे वाली दो-तीन बार तो कम से कम…..” और उन्होंने उसको फिर से खींच के अपनी गोद में सेट करके बैठाया.
दरवाजे की फाँक से साफ़ दिख रहा था. उनका पजामे जिस तरह से तना था मैं समझ गई कि उन्होंने Center करके सीधे वहीँ लगा के बैठा लिया उसको. वो थोड़ा कुनमुनाया, पर उनकी पकड़ कितनी तगड़ी थी, ये मुझसे बेहतर और कौन जान सकता था.? उन्होंने बोतल अब ननदोई को बढ़ा दी…
“यार तेरी बीवी यानी कि मेरी सलहज के चूतड़ इतने मस्त है कि देख के खड़ा हो जाता है… और ऊपर से गदराई उभरी-उभरी चुचियाँ….हाय….. बड़ा मज़ा आता होगा तुझे उसकी चूची पकड़ के गाण्ड मारने में..है ना.???”
होली में फट गई चोली.....................
Re: होली में फट गई चोली.....................
.......................................
A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: होली में फट गई चोली.....................
बोतल फिर ननदोई जी ने वापस कर दी. एक घुट मुँह से लगा के ‘ये’ बोले, “एकदम सही कहते है आप… उसके दोनों मम्मे बड़े कड़क है… मज़ा भी बहोत आता है उसकी गाण्ड मारने में…..”
“अरे बड़े किस्मत वाले हो साले जी, बस एक बार मुझे मिल जाये ना गंगा कसम जीवन धन्य हो जाये…. समझ लो कि मज़ा आ जाये यार……” ननदोई जी ने बोतल उठा के कस के लंबी घुट लगाई… अपनी तारीफ सुन के मैं भी खुश हो गई थी… मेरी ‘गिलहरी’ भी अब फुदकने लगी थी.
“अरे तो इसमें क्या…??? कल होली भी है और रिश्ता भी…..” बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर ननदोई जी भी बहुत रसीले दिख रहे थे.
“तेरे तो मज़े है यार….कल यहाँ होली और परसों ससुराल में…. किस उम्र की है तेरी सालियाँ…..?” ननदोई जी अब पुरे रंग में थे.
‘इन्होने’ बोला कि “बड़ी वाली 18(**Edited**) की है और दूसरी थोड़ी छोटी है…(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) उसके बराबर होगी…”
“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है……” मज़े लेते हुए ननदोई जी बोले.
“अरे उससे भी 4-5 महीने छोटी है छुटकी…” मेरा भाई जल्दी से बोला.
अबतक ‘इन्होने’ और ननदोई ने मिल कर उसे 8-10 घुट पीला ही दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज छोड़ चुका था…
“अरे हां….साले साहब से ही पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा.????” ‘ये’ बोले.
“बोल साले, बड़ी वाली की चुचियाँ कितनी बड़ी है…???”
“वो…वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी…..उसकी अच्छी है….थोड़ी….. मेरा मतलब है… दीदी के जितनी तो नहीं….हां दीदी से थोड़ी छोटी….” हाथ के इशारे से उसने बताया….
मैं शर्मा गई….चुत पानी-पानी हो चुकी थी….लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है….
“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन (Boobs) दबा-दबा के रंग लगाने में….” ननदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा, “और छुटकी की….????”
“वो उसकी…. उसकी अभी…..” ननदोई बेताब हो रहे थे…. वो बोले, “अरे साफ-साफ बता, उसकी चुचियाँ अभी आयी है कि नहीं..???”
हे राम…. चुत में तो जैसे सैलाब उमड़ आया हो…… मुझसे रहा न गया, दो-तीन उंगलियां गचाक से चुत में पेल दी……
“आयीं तो है बस अभी….. लेकिन उभार रही है… छोटी है बहुत….” वो बेचारा बोला…
“अरे उसी में तो असली मज़ा है…. चुचियाँ उठान में हो तो मीजने में, पकड़ के पेलने में…. चूतड़ कैसे है..???”
“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी है…. बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे….. मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों सालियों की कच-कचा के गाण्ड ना मारी…….”
“तुम जब होली से लौट के आओ तो अपनी एक साली को साथ ले आना…उसी छुटकी को….फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमे जम के होली खेलेंगे साली के साथ…..”
आधी से ज्यादा बोतल खाली हो चुकी थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी….
“एकदम….जीजा, ये अच्छा Idea दिया आपने. बड़ी वाली का तो Board का इम्तिहान है लेकिन छुटकी तो अभी 9वीं में है. 10-15 दिन के लिये ले आयेंगे उसको…..”
“अभी वो छोटी है…..” वो फिर जैसे किसी Record की सुई अटक गई हो बोला.
“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है..??? उस कच्ची कली की फुद्दी को पूरा भोसड़ा बना के 15 दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चेहे तो तुम फ्रोक उठा के खुद देख लेना…” बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.
“और क्या..??? जो अभी शर्मा रही होगी ना, जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साली….” ननदोई बोले.
“अरे बड़े किस्मत वाले हो साले जी, बस एक बार मुझे मिल जाये ना गंगा कसम जीवन धन्य हो जाये…. समझ लो कि मज़ा आ जाये यार……” ननदोई जी ने बोतल उठा के कस के लंबी घुट लगाई… अपनी तारीफ सुन के मैं भी खुश हो गई थी… मेरी ‘गिलहरी’ भी अब फुदकने लगी थी.
“अरे तो इसमें क्या…??? कल होली भी है और रिश्ता भी…..” बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर ननदोई जी भी बहुत रसीले दिख रहे थे.
“तेरे तो मज़े है यार….कल यहाँ होली और परसों ससुराल में…. किस उम्र की है तेरी सालियाँ…..?” ननदोई जी अब पुरे रंग में थे.
‘इन्होने’ बोला कि “बड़ी वाली 18(**Edited**) की है और दूसरी थोड़ी छोटी है…(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) उसके बराबर होगी…”
“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है……” मज़े लेते हुए ननदोई जी बोले.
“अरे उससे भी 4-5 महीने छोटी है छुटकी…” मेरा भाई जल्दी से बोला.
अबतक ‘इन्होने’ और ननदोई ने मिल कर उसे 8-10 घुट पीला ही दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज छोड़ चुका था…
“अरे हां….साले साहब से ही पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा.????” ‘ये’ बोले.
“बोल साले, बड़ी वाली की चुचियाँ कितनी बड़ी है…???”
“वो…वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी…..उसकी अच्छी है….थोड़ी….. मेरा मतलब है… दीदी के जितनी तो नहीं….हां दीदी से थोड़ी छोटी….” हाथ के इशारे से उसने बताया….
मैं शर्मा गई….चुत पानी-पानी हो चुकी थी….लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है….
“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन (Boobs) दबा-दबा के रंग लगाने में….” ननदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा, “और छुटकी की….????”
“वो उसकी…. उसकी अभी…..” ननदोई बेताब हो रहे थे…. वो बोले, “अरे साफ-साफ बता, उसकी चुचियाँ अभी आयी है कि नहीं..???”
हे राम…. चुत में तो जैसे सैलाब उमड़ आया हो…… मुझसे रहा न गया, दो-तीन उंगलियां गचाक से चुत में पेल दी……
“आयीं तो है बस अभी….. लेकिन उभार रही है… छोटी है बहुत….” वो बेचारा बोला…
“अरे उसी में तो असली मज़ा है…. चुचियाँ उठान में हो तो मीजने में, पकड़ के पेलने में…. चूतड़ कैसे है..???”
“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी है…. बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे….. मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों सालियों की कच-कचा के गाण्ड ना मारी…….”
“तुम जब होली से लौट के आओ तो अपनी एक साली को साथ ले आना…उसी छुटकी को….फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमे जम के होली खेलेंगे साली के साथ…..”
आधी से ज्यादा बोतल खाली हो चुकी थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी….
“एकदम….जीजा, ये अच्छा Idea दिया आपने. बड़ी वाली का तो Board का इम्तिहान है लेकिन छुटकी तो अभी 9वीं में है. 10-15 दिन के लिये ले आयेंगे उसको…..”
“अभी वो छोटी है…..” वो फिर जैसे किसी Record की सुई अटक गई हो बोला.
“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है..??? उस कच्ची कली की फुद्दी को पूरा भोसड़ा बना के 15 दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चेहे तो तुम फ्रोक उठा के खुद देख लेना…” बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.
“और क्या..??? जो अभी शर्मा रही होगी ना, जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साली….” ननदोई बोले.
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Re: होली में फट गई चोली.....................
मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, और फिर उन लोगों की बातें सुनकर मेरा भी मन मचल रहा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है..!!”
ननदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले, “अरे इतना मस्त भोजन तो हमारे पास ही है..”
वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ ननदों ने जम के मेरे भाई का मज़ाक उड़ाया और गालियां भी दी, खास कर के छोटी ननद ने. मैंने भी ननदोई-सा को नहीं बख्शा और खाना परोसने के साथ में जान-बुझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती.
Low Cut चोली में से मेरे जोबन को देख कर ननदोई की हालत खराब थी. जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे, मुझे पता थी उनकी हालत. जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली, “सदा सुहागन रहो, बुरा न मानो होली है.”
उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच में. मैं समझ गई कि उनका ‘खुटा’ भी उनके साले से कम नहीं है. मैं किसी तरह छूटते हुए बोली, “समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं हटूंगी.”
जब मैं रसोईघर में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालख निकल रही थी.
मैंने पूछा तो बोली, “आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी उसे बताइयेगा नहीं..!?! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”
इस पर हँस के मैं बोली, “एक दम नहीं, लेकिन अगर कही पलट के उसने डाल दिया तो….. ननद रानी बुरा मत मानना.!”
वो हँस के बोली, “अरे भाभी, साले की बात का क्या बुरा मानना..??? एक दम नहीं.. और फिर होली तो है ही डालने-डलवाने का त्यौहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”
उसने ‘चीज़’ पर कुछ ज्यादा ही ज़ोर लगाया था.
उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे…….
बची-कुची बोतल भी ‘इन्होने’ खाली कर दी थी. साड़ी उतारते-उतारते उन्होंने पलंग पर खींच लिया और चालू हो गए.
सारी रात चोदा ‘इन्होने’ लेकिन मुझे झड़ने नही दिया. जब से मैं आई थी ये पहली रात थी जब मैं झड नहीं पाई, वरना हर रात कम से कम 5-6 बार. इतनी चुदासी कर दिया मुझे कि वो कस-कस के मेरी पनियाई चूत चुसते और जैसे ही मैं झड़ने के करीब होती, कच-कचा के मेरी चुचियाँ काट लेते. दर्द से मैं बिलबिला पड़ती, मेरी चीख निकल उठती. मेरे मन में आया भी कि बगल के कमरे में मेरा भाई लेटा है और वो मेरी हर चीख सुन रहा होगा. पर तब तक उन्होंने चूचकों को भी कस के काट लिया, नाख़ून से नोच लिया. उनकी ये नोच-खसोट और काटना मुझे और मस्त कर देता था. सब कुछ भूल के मैं फिर चीख पड़ी. मेरी चीखें उनको भी जोश से पागल बना देती थी. एक बार में ही उन्होंने बलिष्ठ, लम्बा, लोहे की रोड जैसा सख्त लंड मेरी चूत में जड़ तक पेल दिया.
जैसे ही वो मेरी बच्चेदानी से टकराया, मैं मस्ती से सीत्कार उठी, “हाँ राजा, हा चोद….चोद मुझे….ऐसे ही….कस-कस के पेल दे अपना मुसल मेरी चूत में.”
और ‘ये’ भी मेरी चुचियाँ मसलते हुए बोलने लगे, “ले ले रानी ले. बहुत प्यासी है तेरी चूत ना… घोंट मेरा लौड़ा..!!!”
ननदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले, “अरे इतना मस्त भोजन तो हमारे पास ही है..”
वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ ननदों ने जम के मेरे भाई का मज़ाक उड़ाया और गालियां भी दी, खास कर के छोटी ननद ने. मैंने भी ननदोई-सा को नहीं बख्शा और खाना परोसने के साथ में जान-बुझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती.
Low Cut चोली में से मेरे जोबन को देख कर ननदोई की हालत खराब थी. जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे, मुझे पता थी उनकी हालत. जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली, “सदा सुहागन रहो, बुरा न मानो होली है.”
उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच में. मैं समझ गई कि उनका ‘खुटा’ भी उनके साले से कम नहीं है. मैं किसी तरह छूटते हुए बोली, “समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं हटूंगी.”
जब मैं रसोईघर में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालख निकल रही थी.
मैंने पूछा तो बोली, “आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी उसे बताइयेगा नहीं..!?! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”
इस पर हँस के मैं बोली, “एक दम नहीं, लेकिन अगर कही पलट के उसने डाल दिया तो….. ननद रानी बुरा मत मानना.!”
वो हँस के बोली, “अरे भाभी, साले की बात का क्या बुरा मानना..??? एक दम नहीं.. और फिर होली तो है ही डालने-डलवाने का त्यौहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”
उसने ‘चीज़’ पर कुछ ज्यादा ही ज़ोर लगाया था.
उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे…….
बची-कुची बोतल भी ‘इन्होने’ खाली कर दी थी. साड़ी उतारते-उतारते उन्होंने पलंग पर खींच लिया और चालू हो गए.
सारी रात चोदा ‘इन्होने’ लेकिन मुझे झड़ने नही दिया. जब से मैं आई थी ये पहली रात थी जब मैं झड नहीं पाई, वरना हर रात कम से कम 5-6 बार. इतनी चुदासी कर दिया मुझे कि वो कस-कस के मेरी पनियाई चूत चुसते और जैसे ही मैं झड़ने के करीब होती, कच-कचा के मेरी चुचियाँ काट लेते. दर्द से मैं बिलबिला पड़ती, मेरी चीख निकल उठती. मेरे मन में आया भी कि बगल के कमरे में मेरा भाई लेटा है और वो मेरी हर चीख सुन रहा होगा. पर तब तक उन्होंने चूचकों को भी कस के काट लिया, नाख़ून से नोच लिया. उनकी ये नोच-खसोट और काटना मुझे और मस्त कर देता था. सब कुछ भूल के मैं फिर चीख पड़ी. मेरी चीखें उनको भी जोश से पागल बना देती थी. एक बार में ही उन्होंने बलिष्ठ, लम्बा, लोहे की रोड जैसा सख्त लंड मेरी चूत में जड़ तक पेल दिया.
जैसे ही वो मेरी बच्चेदानी से टकराया, मैं मस्ती से सीत्कार उठी, “हाँ राजा, हा चोद….चोद मुझे….ऐसे ही….कस-कस के पेल दे अपना मुसल मेरी चूत में.”
और ‘ये’ भी मेरी चुचियाँ मसलते हुए बोलने लगे, “ले ले रानी ले. बहुत प्यासी है तेरी चूत ना… घोंट मेरा लौड़ा..!!!”
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