इंतकाम की आग--6
गतान्क से आगे………………………
राज इशारा समझ गया कि डॉली मान गयी है और उसने अपना हाथ हटा लिया. राज के लंड को देखते हुए अपना हाथ ज़ोर ज़ोर से उपेर नीचे कर रही थी.
थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ थकने लगा तो उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड पे रख दिया और दोनो हाथों से लंड को हिलाने लगी जैसे कोई खंबा घिस रही हो.
राज का एक हाथ वापिस उसकी गान्ड पे जा चुका था और नीचे सारी के उपेर से उसकी चूत को मसल रहा था. डॉली दोनो हाथों से लंड पे मेहनत कर रही थी और नीचे राज की उंगलियाँ उसकी चूत को जैसे कुरेद रही थी. डॉली ने हटने की कोई कोशिश नही की थी. चुपचाप बैठी हुई थी और चूत मसलवा रही थी.
उसका ब्लाउस पसीने से भीग चुका था और उसके दोनो निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे. राज ने दूसरा हाथ उठाके उसकी छाती पे रख दिया और उसकी बड़ी बड़ी छातीयों को रगड़ने लगा.
एक उंगली उसके क्लीवेज से होती दोनो चुचियो के बीच अंदर तक चली गयी. फिर उंगली बाहर आई और इस बार राज ने पूरा हाथ नीचे से उसके ब्लाउस में घुसकर उसकी नंगी छाती पे रख दिया. ठीक उसी पल उन्होने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों को डॉली की चूत पे ज़ोर दबाया.
डॉली को जिस्म में जैसे 100 वॉट का करंट दौड़ गया. वो ज़ोर से राज के हाथ पे बैठ गयी जैसे सारी फाड़ कर उंगलियों को अंदर लेने की कोशिश कर रही हो. उसके मुँह से एक लंबी आआआआआअहह निकल पड़ी और उसकी चूत से पानी बह चला.
अगले ही पल राज उठ बैठा, डॉली को कमर से पकड़ा और बिस्तर पे पटक दिया. इससे पहले के डॉली कुछ समझ पाती, लंड उसके हाथ से छूट गया और राज उसके उपेर चढ़ बैठा.
उसकी पहले से ही घुटनो के उपेर हो रखी सारी को खींचकर उसकी कमर के उपेर कर दिया. डॉली आने से पहले ही ब्रा और पैंटी उतारके आई थी इसलिए सारी उपेर होते ही उसकी चूत उसके पति के सामने खुल गयी.
वो अब तक राज के अपनी चूत पे दबी उंगलियों के मज़े से बाहर ही ना आ पाई थी. जब तक डॉली की कुछ समझ आया के क्या होने जा रहा है तब तक राज उसकी दोनो टांगे खोलके घुटनो से मोड़ चुका था.
उसके दो पावं के पंजे राज के पेट पे रखे हुए थे जिसकी वजह से उसकी चूत पूरी तरह से खुलके राज के सामने आ गयी थी. डॉली रोकने की कोशिश करने ही वाली थी के राज ने लंड उसकी चूत पे रखा और एक धक्का मारा.
उसका पूरा जिस्म अकड़ गया और उसने अपने दोनो पावं इतनी ज़ोर से झटके के राज की मज़बूत पकड़ में भी नही आए… तब तक राज उसके उपेर लेट चुका था. डॉली ने अपने दोनो नाख़ून राज की पीठ में गाड़ दिए.
उसके दाँत राज के कंधे में गढ़ते चले गये. इसका नतीजा ये हुआ के राज गुस्से में थोड़ा उपेर को हुआ और उसके ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़के खींचा. खत, खत, खत, ब्लाउस के सारे बटन खुलते चलये गये. ब्रा ना होने के कारण डॉली की दोनो छातियाँ आज़ाद हो गयी.
बड़ी बड़ी दोनो छातियाँ देखते ही राज उनपर टूट पड़ा. एक छाती को अपने हाथ में पकड़ा और दूसरी का निपल अपने मुँह में ले लिया. डॉली के जिस्म में अब चीटियाँ दौड़ रही थी.
तभी उसे महसूस हुआ के राज अपना लंड बाहर खींच रहा हैं पर अगले ही पल दूसरा धक्का पड़ा और इस बार डॉली की आँखों के आगे तारे नाच गये. चूत पूरी फेल गयी और उसे लगा जैसे उसके अंदर उसके पेट तक कुछ घुस गया हो.
राज के अंडे उसकी गान्ड से आ लगे और उसे एहसास हुआ के पहले सिर्फ़ आधा लंड गया था इस बार पूरा घुसा है. उसकी मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी.
"आआआआहह राज " डॉली ने कसकर दोनो हाथों से राज को पकड़ लिया और उससे लिपट सी गयी जैसे दर्द भगाने की कोशिश कर रही हो. उसका पूरा बदन अकड़ चुका था.
लग रहा था जैसे आज पहली बार चुद रही हो. बल्कि इतना दर्द तो तब भी ना हुआ था जब राज ने उसे पहली बार चोदा था. उस रात राज ने उसे आराम से धीरे धीरे चोदा था और लेकिन आज की रात उसे क्या होगया था उसे भी नही मालूम जानवरों जैसा बिहेव कर रहा था… तो राज ने तो बिना उसकी मर्ज़ी की परवाह के लंड जड़ तक अंदर घुसा दिया था..
राज कुछ देर यूँही रुका रहा. दर्द की एक ल़हेर उसकी छाती से उठी तो डॉली को एहसास हुआ के दूसरा धक्का मारते हुए उसके पति ने उसकी एक छाती पे दाँत गढ़ा दिया था. राज ने अब धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए थे. लंड आधा बाहर निकलता और अगले ही पल पूरा अंदर घुसा देता.
डॉली के दर्द का दौर अब भी ख़तम नही हुआ था. लंड बाहर को जाता तो उसे लगता जैसे उसके अंदर से सब कुछ लंड के साथ साथ बाहर खींच जाएगा और अगले पल जब लंड अंदर तक घुसता तो जैसे उनकी आँखें बाहर निकलने को हो जाती. उसकी पलकों से पानी की दो बूँदें निकालके उसके गाल पे आ चुकी थी.
उसकी घुटि घुटि आवाज़ में अब भी दर्द था जिससे बेख़बर राज उसे लगातार छोड़े जा रहे था. लंड वैसे ही उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था बल्कि अब और तेज़ी के साथ हो रहा था.
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
राज के हाथ अब डॉली की मोटी गान्ड पे था जिसे उन्होने हाथ से थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे अब भी लगा हुआ था और बारी बारी दोनो चूस रहा था.
डॉली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रहे थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती.
कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.डॉली की गान्ड पे राज के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी.
राज के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. आच्चनक एक ज़ोर का धक्का डॉली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुछ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के राज झाड़ चुका हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी कि काम ख़तम हो गया.
राज अब उसके उपेर गिर गया था. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी डॉली के गान्ड पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहा था. डॉली ने एक लंबी साँस छोड़ी और गुस्से से राज को परे धकेल दिया. राज तब अपनी तंद्रा से जगा और उससे माफी माँग ने लगा.
वो बोला की सौरी जान मुझे आज क्या हुआ मुझे ही पता नही चल रहा था. प्लीज़ बुरा मत मान ना. डॉली कुछ नही बोली और चुप चाप पड़ी रही. राज को भी लगा अब इससे बात करना ठीक नही है कल सुबह देख लेंगे और वो भी चुप चाप पड़ा रहा कब उसे नींद आ गयी पता ही नही चला.
लेकिन उसके बगल मे पड़ी डॉली सूबक रही थी… वो सोच रही थी ना जाने आज राज को क्या हुआ था… इस चुदाई से वो भी थक चुकी थी इसलिए उसे भी कब नींद आ गयी पता ही नही चला.
उधर राज की काम क्रीड़ा चल रही थी लेकिन इधर एक शख्स बहुत डिस्टर्ब लग रहा था. नाम अशोक, ऊम्र 32 के आस पास, स्टाइलिस्ट,, अपने बेडरूम मे सोया था. वह रह रह कर बेचैनी से अपनी करवट बदल रहा था. इससे ऐसा लग रहा था की आज उसका दिमाग़ कुछ जगह पर नही था. क्यूँ ना हो जिसके दो दोस्तो का कत्ल इतने बेरेहमी किया गया हो. उसे डर क्यों ना हो और नींद भी क्यूँ आएगी.
थोड़ी देर करवट बदल कर सोने की कोशिश करने के बाद भी उसे नींद नही आ रही थी यह देख कर वह बेड से उठ कर बाहर आ गया, इधर उधर एक नज़र दौड़ाई और फिर से बेड पर जाकर बैठ गया.
उसने बेड के बगल मे रखा एक मॅगज़ीन उठाया और उसे खोल कर पढ़ते हुए फिर से बेड पर लेट गया. वह उसे मॅगज़ीन के पन्ने, जिस पर लड़कियों की नग्न तस्वीरे छपी थी, पलट ने लगा.
सेक्स ईज़ दा बेस्ट वे टू डाइवर्ट युवर माइंड…..
उसने सोचा. आच्चनक दूसरे कमरे से ‘धप्प’ ऐसा कुछ आवाज़ उसे सुनाई दिया. वह चौंक कर उठ बैठा, मॅगज़ीन बगल मे रख दिया और वैसे ही डरे सहमे हाल मे वह बेड से नीचे उतर गया.
यह कैसी आवाज़ थी…
पहले तो कभी नही आई थी ऐसी आवाज़…
लेकिन आवाज़ आने के बाद में इतना क्यों चौंक गया…
या हो सकता है आज अपनी मन की स्थिति पहले से ही अच्छी ना होने से ऐसा हुआ होगा….
धीरे धीरे इधर उधर देखते हुए वह बेडरूम के दरवाजे के पास गया. दरवाजे की कुण्डी खोली और धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोल कर अंदर झाँक कर देखा.
सारे घर मे ढूँढ ने के बाद अशोक ने हॉल मे प्रवेश किया. हॉल मे घना अंधेरा था. हॉल मे लाइट जला कर उसने डरते हुए ही चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई….
लेकिन कुछ भी तो नही…
सब कुछ वहीं का वही रखा हुआ था…
उसने फिर से लाइट बंद किया और किचन की तरफ निकल पड़ा.
किचन मे भी अंधेरा था. वहाँ का लाइट जला कर उसने चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. अब उसका डर काफ़ी कम हो चुका था….
कहीं कुछ तो नही…
इतना डर ने कुछ ज़रूरत नही थी…
वह पलट ने के लिए मुड़ने ही वाला था कि किचन मे सिंक मे रखी किसी चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया. उसकी आँखें आस्चर्य और डर की वजह से बड़ी हुई थी. एक पल मे इतनी ठंड मे भी उसे पसीना आया था. हाथ पैर कांप ने लगे थे. उसके सामने सिंक मे खून से सना एक माँस का टुकड़ा रखा हुआ था.
क्रमशः…………………..
डॉली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रहे थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती.
कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.डॉली की गान्ड पे राज के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी.
राज के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. आच्चनक एक ज़ोर का धक्का डॉली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुछ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के राज झाड़ चुका हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी कि काम ख़तम हो गया.
राज अब उसके उपेर गिर गया था. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी डॉली के गान्ड पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहा था. डॉली ने एक लंबी साँस छोड़ी और गुस्से से राज को परे धकेल दिया. राज तब अपनी तंद्रा से जगा और उससे माफी माँग ने लगा.
वो बोला की सौरी जान मुझे आज क्या हुआ मुझे ही पता नही चल रहा था. प्लीज़ बुरा मत मान ना. डॉली कुछ नही बोली और चुप चाप पड़ी रही. राज को भी लगा अब इससे बात करना ठीक नही है कल सुबह देख लेंगे और वो भी चुप चाप पड़ा रहा कब उसे नींद आ गयी पता ही नही चला.
लेकिन उसके बगल मे पड़ी डॉली सूबक रही थी… वो सोच रही थी ना जाने आज राज को क्या हुआ था… इस चुदाई से वो भी थक चुकी थी इसलिए उसे भी कब नींद आ गयी पता ही नही चला.
उधर राज की काम क्रीड़ा चल रही थी लेकिन इधर एक शख्स बहुत डिस्टर्ब लग रहा था. नाम अशोक, ऊम्र 32 के आस पास, स्टाइलिस्ट,, अपने बेडरूम मे सोया था. वह रह रह कर बेचैनी से अपनी करवट बदल रहा था. इससे ऐसा लग रहा था की आज उसका दिमाग़ कुछ जगह पर नही था. क्यूँ ना हो जिसके दो दोस्तो का कत्ल इतने बेरेहमी किया गया हो. उसे डर क्यों ना हो और नींद भी क्यूँ आएगी.
थोड़ी देर करवट बदल कर सोने की कोशिश करने के बाद भी उसे नींद नही आ रही थी यह देख कर वह बेड से उठ कर बाहर आ गया, इधर उधर एक नज़र दौड़ाई और फिर से बेड पर जाकर बैठ गया.
उसने बेड के बगल मे रखा एक मॅगज़ीन उठाया और उसे खोल कर पढ़ते हुए फिर से बेड पर लेट गया. वह उसे मॅगज़ीन के पन्ने, जिस पर लड़कियों की नग्न तस्वीरे छपी थी, पलट ने लगा.
सेक्स ईज़ दा बेस्ट वे टू डाइवर्ट युवर माइंड…..
उसने सोचा. आच्चनक दूसरे कमरे से ‘धप्प’ ऐसा कुछ आवाज़ उसे सुनाई दिया. वह चौंक कर उठ बैठा, मॅगज़ीन बगल मे रख दिया और वैसे ही डरे सहमे हाल मे वह बेड से नीचे उतर गया.
यह कैसी आवाज़ थी…
पहले तो कभी नही आई थी ऐसी आवाज़…
लेकिन आवाज़ आने के बाद में इतना क्यों चौंक गया…
या हो सकता है आज अपनी मन की स्थिति पहले से ही अच्छी ना होने से ऐसा हुआ होगा….
धीरे धीरे इधर उधर देखते हुए वह बेडरूम के दरवाजे के पास गया. दरवाजे की कुण्डी खोली और धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोल कर अंदर झाँक कर देखा.
सारे घर मे ढूँढ ने के बाद अशोक ने हॉल मे प्रवेश किया. हॉल मे घना अंधेरा था. हॉल मे लाइट जला कर उसने डरते हुए ही चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई….
लेकिन कुछ भी तो नही…
सब कुछ वहीं का वही रखा हुआ था…
उसने फिर से लाइट बंद किया और किचन की तरफ निकल पड़ा.
किचन मे भी अंधेरा था. वहाँ का लाइट जला कर उसने चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. अब उसका डर काफ़ी कम हो चुका था….
कहीं कुछ तो नही…
इतना डर ने कुछ ज़रूरत नही थी…
वह पलट ने के लिए मुड़ने ही वाला था कि किचन मे सिंक मे रखी किसी चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया. उसकी आँखें आस्चर्य और डर की वजह से बड़ी हुई थी. एक पल मे इतनी ठंड मे भी उसे पसीना आया था. हाथ पैर कांप ने लगे थे. उसके सामने सिंक मे खून से सना एक माँस का टुकड़ा रखा हुआ था.
क्रमशः…………………..
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--7
गतान्क से आगे………………………
एक पल का भी समय ना गँवाते हुए वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ, क्या किया जाय उसे कुछ सूझ नही रहा था. गड़बड़ाये और घबराए हुए हाल मे वह सीधा बेडरूम मे भाग गया और उसने अंदर से कुण्डी बंद कर ली थी.
इंस्पेक्टर राज बॅडमिंटन खेल रहा था. रोजमर्रा के तनाव से मुक्ति के लिए यह एक अच्छा उपाय उसने ढूँढा था. इतने मे अचानक राज का मोबाइल बजा. राज ने डिसप्ले देखा, लेकिन फोन नंबर पहचान का नही लग रहा था. उसने एक बटन दबाकर फोन अटेंड किया, “एस…”
“इंस्पेक्टर धरम हियर….” उधर से आवाज़ आया.
“हाँ बोलो धरम….” राज दूसरे सर्विस की तैय्यारि करते हुए बोला.
“मेरे जानकारी के हिसाब से आप हाल ही मे चल रहे सीरियल किल्लर केस के इंचार्ज हो…. बराबर…?” उधर से धरम ने पूछा….
“जी हाँ…” राज ने सीरियल किल्लर का ज़िकरा होते ही अगला गेम खेलने का विचार त्याग दिया और वह आगे क्या बोलता है यह ध्यान से सुन ने लगा.
“अगर आपको कोई ऐतराज ना हो… मतलब अगर आज आप फ्री हो तो…. क्या आप इधर मेरे पोलीस स्टेशन मे आ सकते हो…? मेरे पास इस केस के बारे मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है… शायद आपके काम आएगी…”
“ठीक है… कोई बात नही…” राज ने कहा.
राज ने धरम से फोन पर मिलने का वक्त वाईगेरह सब तय किया.
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पोलीस स्टेशन मे इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठा हुआ था. इंस्पेक्टर धरम इस पोलीस स्टेशन का इंचार्ज था. इंस्पेक्टर धरम का फोन आने के पासचात बॅडमिंटन का अगला गेम खेलने की राज की इच्छा ही ख़तम हो चुकी थी. अपना सामान इकठ्ठा कर वह ताबड़तोड़ तैय्यारि कर अपने पोलीस स्टेशन मे जाने के बजाय इधर निकल आया था.
उनका ‘हाई हेलो’ – सब फरमॅलिटीस होने के बाद अब इंस्पेक्टर धरम के पास उसके केस के बारे मे क्या जानकारी है यह सुन ने के लिए वह उसके सामने बैठ गया. इंस्पेक्टर धरम ने सब जानकारी बताने के लिए पहले एक बड़ा पोज़ लिया. इंस्पेक्टर राज भले ही अपने चेहरे पर नही आने दे रहा था फिर भी सब जानकारी सुन ने के लिए वह बेताब हो चुका था और उसकी उत्सुकता भी सातवे आसमान पर पहुच चुकी थी.
इंस्पेक्टर धरम जानकारी देने लगा –
“कुछ दिन पहले मेरे पास एक केस आया था…..
… एक सुंदर शांत टाउन… टाउन मे हरी भरी घास और हारे भरे पेड चारों तरफ फैले हुए थे और उस हरियाली मे रात मे तारे जैसे आकाश मे समूह – समूह से चमकते है वैसे छोटे छोटे समूह मे इधर उधर फैले हुए थे. उसी हरियाली मे गाँव के बीचो बीच एक पुरानी कॉलेज की बिल्डिंग थी.
कॉलेज के गलियारे मे स्टूडेंट्स की भीड़ जमी हुई थी. शायद ब्रेक टाइम होगा. कुछ स्टूडेंट्स समूह मे गप्पे मार रहे थे तो कुछ इधर उधर घूम रहे थे. शरद लग भग 21-22 साल का, स्मार्ट हॅंडसम कॉलेज का स्टूडेंट और उसका दोस्त सुधीर दोनो साथ साथ बाकी स्टूडेंट्स के भीड़ से रास्ता निकलते हुए चल रहे थे.
“सुधीर चलो शमशेर के क्लास मे जाकर बैठते है… बहुत दिन हुए है हमने उसका क्लास अटेंड नही किया है…” शरद ने कहा.
“किस के …? शमशेर के क्लास मे..? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना…?” सुधीर ने आस्चर्य से पूछा.
“अरे नही… मतलब अब तक वह जमा हुआ है या छोड़ कर गया यह देख कर आते है…” शरद ने कहा.
दोनो एक दूसरे को ताली देते हुए, शायद पहले का कोई किस्सा याद कर ज़ोर से हंस ने लगे.
चलते हुए अचानक शरद ने सुधीर को अपनी कोहनी मारते हुए बगल से जा रहे एक लड़के की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया. सुधीर प्रश्नर्थक मुद्रा मे शरद की तरफ देखा.
शरद धीमे आवाज़ मे उसके कान के पास बड़बड़ाया, “यही वह लड़का… जो आज कल अपने हॉस्टिल मे चोरियाँ कर रहा है…”
तब तक वह लड़का उनको क्रॉस होकर आगे निकल गया था. सुधीर ने पीछे मुड़कर देखा. हॉस्टिल मे सुधीर की भी कुछ चीज़े भी गायब हो चुकी थी.
“तुम्हे कैसे पता…” सुधीर ने पूछा.
“उसके तरफ देख तो ज़रा… कैसा कैसा कसे हुए चोरों की ख़ानदान से लगता है साला…” शरद ने कहा.
“अरे सिर्फ़ लगने से क्या होगा… हमे कुछ सबूत भी तो चाहिए…” सुधीर ने कहा.
“मुझे संतोष भी कह रहा था… देर रात तक वह भूतों की तरह हॉस्टिल मे सिर्फ़ घूमता रहता है…”
“अच्छा ऐसी बात है… तो फिर चल… साले को सीधा करते है…”
“ऐसा सीधा करेंगे कि साला ज़िंदगी भर याद रखेगा…”
“सिर्फ़ याद ही नही… साले को बर्बाद भी करेंगे…”
गतान्क से आगे………………………
एक पल का भी समय ना गँवाते हुए वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ, क्या किया जाय उसे कुछ सूझ नही रहा था. गड़बड़ाये और घबराए हुए हाल मे वह सीधा बेडरूम मे भाग गया और उसने अंदर से कुण्डी बंद कर ली थी.
इंस्पेक्टर राज बॅडमिंटन खेल रहा था. रोजमर्रा के तनाव से मुक्ति के लिए यह एक अच्छा उपाय उसने ढूँढा था. इतने मे अचानक राज का मोबाइल बजा. राज ने डिसप्ले देखा, लेकिन फोन नंबर पहचान का नही लग रहा था. उसने एक बटन दबाकर फोन अटेंड किया, “एस…”
“इंस्पेक्टर धरम हियर….” उधर से आवाज़ आया.
“हाँ बोलो धरम….” राज दूसरे सर्विस की तैय्यारि करते हुए बोला.
“मेरे जानकारी के हिसाब से आप हाल ही मे चल रहे सीरियल किल्लर केस के इंचार्ज हो…. बराबर…?” उधर से धरम ने पूछा….
“जी हाँ…” राज ने सीरियल किल्लर का ज़िकरा होते ही अगला गेम खेलने का विचार त्याग दिया और वह आगे क्या बोलता है यह ध्यान से सुन ने लगा.
“अगर आपको कोई ऐतराज ना हो… मतलब अगर आज आप फ्री हो तो…. क्या आप इधर मेरे पोलीस स्टेशन मे आ सकते हो…? मेरे पास इस केस के बारे मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है… शायद आपके काम आएगी…”
“ठीक है… कोई बात नही…” राज ने कहा.
राज ने धरम से फोन पर मिलने का वक्त वाईगेरह सब तय किया.
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पोलीस स्टेशन मे इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठा हुआ था. इंस्पेक्टर धरम इस पोलीस स्टेशन का इंचार्ज था. इंस्पेक्टर धरम का फोन आने के पासचात बॅडमिंटन का अगला गेम खेलने की राज की इच्छा ही ख़तम हो चुकी थी. अपना सामान इकठ्ठा कर वह ताबड़तोड़ तैय्यारि कर अपने पोलीस स्टेशन मे जाने के बजाय इधर निकल आया था.
उनका ‘हाई हेलो’ – सब फरमॅलिटीस होने के बाद अब इंस्पेक्टर धरम के पास उसके केस के बारे मे क्या जानकारी है यह सुन ने के लिए वह उसके सामने बैठ गया. इंस्पेक्टर धरम ने सब जानकारी बताने के लिए पहले एक बड़ा पोज़ लिया. इंस्पेक्टर राज भले ही अपने चेहरे पर नही आने दे रहा था फिर भी सब जानकारी सुन ने के लिए वह बेताब हो चुका था और उसकी उत्सुकता भी सातवे आसमान पर पहुच चुकी थी.
इंस्पेक्टर धरम जानकारी देने लगा –
“कुछ दिन पहले मेरे पास एक केस आया था…..
… एक सुंदर शांत टाउन… टाउन मे हरी भरी घास और हारे भरे पेड चारों तरफ फैले हुए थे और उस हरियाली मे रात मे तारे जैसे आकाश मे समूह – समूह से चमकते है वैसे छोटे छोटे समूह मे इधर उधर फैले हुए थे. उसी हरियाली मे गाँव के बीचो बीच एक पुरानी कॉलेज की बिल्डिंग थी.
कॉलेज के गलियारे मे स्टूडेंट्स की भीड़ जमी हुई थी. शायद ब्रेक टाइम होगा. कुछ स्टूडेंट्स समूह मे गप्पे मार रहे थे तो कुछ इधर उधर घूम रहे थे. शरद लग भग 21-22 साल का, स्मार्ट हॅंडसम कॉलेज का स्टूडेंट और उसका दोस्त सुधीर दोनो साथ साथ बाकी स्टूडेंट्स के भीड़ से रास्ता निकलते हुए चल रहे थे.
“सुधीर चलो शमशेर के क्लास मे जाकर बैठते है… बहुत दिन हुए है हमने उसका क्लास अटेंड नही किया है…” शरद ने कहा.
“किस के …? शमशेर के क्लास मे..? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना…?” सुधीर ने आस्चर्य से पूछा.
“अरे नही… मतलब अब तक वह जमा हुआ है या छोड़ कर गया यह देख कर आते है…” शरद ने कहा.
दोनो एक दूसरे को ताली देते हुए, शायद पहले का कोई किस्सा याद कर ज़ोर से हंस ने लगे.
चलते हुए अचानक शरद ने सुधीर को अपनी कोहनी मारते हुए बगल से जा रहे एक लड़के की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया. सुधीर प्रश्नर्थक मुद्रा मे शरद की तरफ देखा.
शरद धीमे आवाज़ मे उसके कान के पास बड़बड़ाया, “यही वह लड़का… जो आज कल अपने हॉस्टिल मे चोरियाँ कर रहा है…”
तब तक वह लड़का उनको क्रॉस होकर आगे निकल गया था. सुधीर ने पीछे मुड़कर देखा. हॉस्टिल मे सुधीर की भी कुछ चीज़े भी गायब हो चुकी थी.
“तुम्हे कैसे पता…” सुधीर ने पूछा.
“उसके तरफ देख तो ज़रा… कैसा कैसा कसे हुए चोरों की ख़ानदान से लगता है साला…” शरद ने कहा.
“अरे सिर्फ़ लगने से क्या होगा… हमे कुछ सबूत भी तो चाहिए…” सुधीर ने कहा.
“मुझे संतोष भी कह रहा था… देर रात तक वह भूतों की तरह हॉस्टिल मे सिर्फ़ घूमता रहता है…”
“अच्छा ऐसी बात है… तो फिर चल… साले को सीधा करते है…”
“ऐसा सीधा करेंगे कि साला ज़िंदगी भर याद रखेगा…”
“सिर्फ़ याद ही नही… साले को बर्बाद भी करेंगे…”