सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

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The Romantic
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 20:47

चौधराइन
भाग 10 - खूब चुसे आम चौधराइन के

मदन की समझ में आ गया की माया देवी क्या चाहती है।

“आपही ने तो कहा आपके पेड़ के आम खाने को अब मैं खाना चाह रहा हूँ तो”,
इतना कहते हुए, मदन आगे बढ़ अपना एक हाथ माया देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नशीली आंखो में झांक कर देखा।

“तो खा…ना…!!। मैं तो कब से…!!।”

चाहत और अनुरोध से भरी आंखो ने मदन को हिम्मत दी, और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों के ऊपर लगे आम के रस को चाट लिया।

इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण माया देवी की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी। ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर मदन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने रसीले होठों को अपने दांतो से दबाती हुई बोली,
“चा,,,,ट कर,,,,,,सा…फ करेगा…!!?।

मदन ने कोई जवाब नही दिया।

“आम तो चूस…ने(!!) मैं तो…चुस,,,,,,वाने ही आई थी…।"

माया देवी ने सीधी बात करने का फैसला कर लिया था।

“हाय तो चूसूँ चाची!!?”

चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमंत्रण ने लण्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी।

पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ कर अपनी छाती पर रखती हुई, माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।"

मदन ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से सिसकारी निकल गई,

“चूसने के लिये,,,बोला तो… ”

“दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”,
शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला।

“तो धीरे से दबा…जोर से दबा के… तो,,,सारा रस,,,,निकल,,,,,,”

मदन की चालाकी पर धीरे से हँस दी।

“सच में चूसूँ चाची…??????”,
मदन ने वासना से जलती आंखो में झांकते हुए पुछा।

“और कैसे…!!! बोलूँ क्या लिख के दूँ …?”,
उत्तेजना से कांपती, गुस्से से मुंह बिचकाती बोली।
मदन को अब भी विश्वास नही हो रहा था, की ये सब इतनी आसानी से हो रहा है। कहाँ, तो वो प्लान बना रहा था, की रात में साड़ी उठा कर अन्दर का माल देखेगा…यहां तो दसो उगँलियाँ घी में और पूरा सिर कढ़ाई में घुसने जा रहा था।

गरदन नीचे झुकाते हुए, मदन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। मगर मदन तो अब पागल हो चुका था। एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगा। माया देवी केलिए ये नया अनुभव था, सदानन्द एक अनुभवी मर्द की तरह उससे प्यार से पेश आता था धीरे धीरे आगे बढ़कर अपनी प्रचन्ड काम शक्ति और धैर्य के साथ उसे सन्तुष्ट करता था मगर आज एक जमाने के बाद जब उसकी चूचियों को एक नव जवान के हाथ और मुंह की नोच खसोट मिली तो उसे अपनी नवजवानी के दिन याद आ गये जब वो सदानन्द और दूसरे लड़कों के साथ ऐसी नोच्खसोट करती थी । मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , मदन के सिर को अपनी चूचियों पर भींच लिया।

गीले ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को चूसने का बड़ा अनुठा मजा था। गरम चूचियों को गीले ब्लाउज में लपेट कर, बारी-बारी से दोनो चूचियों को चूसते हुए, वो निप्पल को अपने होठों के बीच दबाते हुए चबाने लगा। निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब मदन ने चुसा तो माया देवी छटपटा गई।
मदन के सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी,
“इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,,,। धीरे…आराम से, आम चु…स…”

दोनो चूचियों की चोंच को बारी-बारी से चूसते हुए, जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउज के खुले बटन से चाटने लगा। फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए, उसकी गरदन को चाटते हुए अपने होठों को उसके कानो तक ले गया, और अपने दोनो हाथों में दोनो चूचियों को थाम, फुसफुसाते हुए बोला,
“बहुत मीठा है, तेरा आम…छिलका,,,, (!!?) उतार के खाउं…??।"
माया देवी भी उसकी गरदन में बांहे डाले, अपने से चिपकाये फुसफुसाती हुई बोली,
“हाय,,,,,, छिलका…उतार के…? ”

“हां,,,,, शरम आ रही है,,,, क्या ?"

“शरमाती तो,,,,, आम हाथ में पकड़ाती…?”

“तो उतार दुं,,,,, छिलका…?”

“उतार दे, हरामी,,,,, तू बक-बक बहुत करता है ??”
मदन ने जल्दी से गीले ब्लाउज के बटन चटकाते हुए खोल दिये, ब्लाउज के दोनो भागों को दो तरफ करते हुए, उसकी काले रंग की ब्रा को खोलने के लिये अपने दोनो हाथों को चौधराइन की पीठ के नीचे घुसाया, तो उसने अपने आप को अपने चूतड़ों और गरदन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। चौधराइन की दोनो चूचियाँ मदन की छाती में दब गई। चूचियों के कठोर निप्पल मदन की छाती में चुभने लगे तो मदन ने पीठ पर हाथों का दबाव बढ़ा कर, चौधराइन को और जोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोर चूचियों को अपनी छाती से पीसते हुए, धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिया। कसमसाती हुई चौधराइन ने उसे थोड़ा सा पीछे धकेला और गीले ब्लाउज से निजात पाई और तकिये पर लेट मदन की ओर देखने लगी। चौधराइन की आंखे नशे में डूबी लग रही थी। मदन ने कांपते हाथों से ब्रा उतारी तो उनके बड़े बड़े दूध से सफेद उरोज ऐसे फड़फड़ाये जैसे दो बड़े बड़े सफेद कबूतरों हों । मदन ने मदन ने दोनो हाथों में थाम उन कबूतरों को काबू में किया। मदन ने देखा कि उसके हाथों मे चौधराइन के स्तन इतनी देर दबाने मसलने से लाल हो दो बड़े बड़े कटीले लंग़ड़ा आम से लग रहे हैं उन्हें हल्के से दबाते हुए धीरे से बोला,
“बड़े…मस्त आम है !”
“तो खाले न” चौधराइन की आवाज आई।
ये सुनते ही मदन ने हलके भूरे रंग का निप्पल अपने मुँह मे दबा लिया और चूसने लगा । थोड़ी ही देर में मदन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और वो पहले तो उनके निप्पलो को बदल बदलकर होंठों में दबा चुभलाने चूसने लगा। फ़िर उनके गदराये जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगा। उसने चौधराइन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया। करीब पांच मिनट तक दोनो मुँह बोले चाची-भतीजे एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे। जब दोनो अलग हुए तो हांफ रहे थे ।

मदन का जोश और चूसने का तरीका चौधराइन को पागल बना रहा था। छिनाल औरतों की दी हुई ट्रेनिंग़ का पूरा फायदा उठाते हुए, मदन ने चौधराइन की चूचियों को फिर से दोनो हाथों में थाम लिया और उसके निप्पल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए, एक चूची के निप्पल से अपनी जीभ को लड़ाने लगा। चौधराइन भी अपने एक हाथ से चूची को पकड़ मदन के मुंह में ठेलने की कोशिश करते हुए, सिसयाते हुए चूसवा रही थी। बारी-बारी से दोनो चूचियों को मसलते चूसते हुए, उसने दोनो चूचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूचियों के निपल दांतों में दबा चूसते हुए बोला,
“चौधराइन चाची…आप,,,,ठीक कहती… थीं…तेरे पेड़ के…आम…उफफ्,,,,,पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी डालता ।”

चौधराइन कभी उसके सिर के बालो को सहलाती, कभी उसकी पीठ को, कभी उसके चूतड़ों तक हाथ फेरती बोली,
“अभी…चूसने को मिला न …खूब चूस…भतीजे…।”

तभी मदन ने अपने दांतो को उसकी चूचियों पर गड़ाते हुए निप्पल को खींचा, तो दर्द से कराहती बोली,
“बदमाश…चूसने वाला…आम है,,,,,,,,,न कि खाने वाला …उन रण्डियों…का होगा,,,,,,, जिनको…उफफफ्…। धीरे से चूस…चूस कर…उफफफ्,,,.. बेटा,,,…निप्पल को…होठों के बीच दबा…के…धीरे से…नही तो छोड़…दे…”

इस बात पर मदन ने हँसते हुए चौधराइन की चूचियों पर से मुंह हटा, उसके होठों को चुम धीरे से कान में बोला,
“इतने जबरदस्त,,,,,,,आम पहले नही चखाये, उसी की सजा…”

चौधराइन भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“कमीना…गन्दा लड़का।”

“गन्दी औरत …गन्दी चाची का गन्दा भतीजा…”,
बोलते बोलते मदन रुक गया।
गन्दी औरत बोलता है,,,,? चौधराइन ने दाँत पीसते दोनो हाथों में मदन के चेहरे को भरती हुई, उसके होठों और गालो को बेतहाशा चुमती हुई, उसके होठों पर अपने दांत गड़ा दिये. मदन सिसया कर कराह उठा। हँसती हुई बोली, “अब बोल कैसा लगा,,,,? खुद, वैसे भी तू मेरा भान्जा हुआ वो भी मुँह बोला, क्योंकि चौधरी साहब को को तेरी माँ भाई कहती है ।" मदन ने भी अपन गाल छुडा कर, उनके गुदाज संगमरमरी कंधे पर दांत गड़ा दिये और बोला, -“मैं तो शुरू से चाची ही कहता हूँ”
चल मामी कम चाची सही अपनी चाची के साथ गन्दा काम…? चौधराइन की मुस्कान और चौड़ी हो गई।
“तू भी तो अपने भान्जे कम भतीजे के साथ…।" मदन ने जवाब दिया।

दोनो अब बेशरम हो चुके थे। मदन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया। चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही चौधराइन ने अपनी जांघो को भींचा, तो मदन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोला,
“अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!”

पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई चौधराइन, फुसफुसाती हुई बोली,
“तू,,,,, आम…चूस…मेरा बिल …देखेगा तो तेरा मन करेगा फ़िर……चाची कम मामीचोद…बन…”

मदन समझ गया की गन्दी बाते करने में चौधराइन चाची को मजा आ रहा है।
“अगर डण्डा डालूँगा,,,,,!!। तभी,,,,,,, चाची कम मामीचोद कहलाऊँगा… मैंने तो खाली दिखानेको बोला है… तू क्या चुदवाना चाहती है!।”,
कहते हुए, चूत को पेटिकोट के ऊपर से और जोर से मसलते, उसकी पुत्तियों को चुटकी में पकड़ जोर से मसला।

“हाय…हरामी, क्या बोलता है मेरे…बिल… में डंडा…घुसायेगा ??।”

चौधराइन ने जोश में आ उसके गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती लुंगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की। हाथ नहीं घुसा, मगर मदन के दोनो अंडकोश उसकी हथेली में आ गये। जोर से उसी को दबा दिया, मदन दर्द से कराह उठा। कराहते हुए बोला,
“उखाड़ लेगी,,,,,क्या,,,???… क्या चाहिये,,,!!? ”

चौधराइन ने जल्दी से अंडकोश पर पकड़ ढीली की,
“हथियार,,,(!),,, दिखा.....?”

“थोड़ा ऊपर नही पकड़ सकती थी…? पेड़ पर तो सब देख लिया था…?”

“तुझे, पता…था ?तो तू जान-बुझ के दिखा रहा था, वैसे पेड़ पर… तो तूने भी… देखा था…”

“तो तू भी…जान-बुझ कर दिखा रही थी ! …”,
कहते हुए चौधराइन का हाथ पकड़ अपनी लुंगी के भीतर डाल दिया दिया।

खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही चौधराइन का बदन सिहर गया। गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो। मुँह से निकला –हय साल्ला! सदानन्द की औलाद का लौड़ा मारूँ!”
ये सुन मदन चुका –“ क्या मतलब चाची!”
चौधराइन –“ कहाँ की चाची किसका भाई मेरे बचपन का यार है तेरा बाप पहले भी चुदवाती थी अब भी लगभग रोज दोपहर को……?
मदन –“ तेरी माँ की आँख चाची! वाह चाची मैं तो आप को सीधा समझ रहा था”
मदन के लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली,
“तो क्या सारी दुनियाँ में तू ही एक चुदक्कड़ है हम भी कुछ कम नहीं ऐसा ही वो(सदानन्द) भी है जैसा बाप वैसा बेटा । जैसे गधे का…उखाड़ कर लगा लिया हो ?”

“है, तो…तेरे भतीजे काही…मगर…गधे के…जैसा !!!”,
बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के ऊपर से उँगली चलाते हुए बोला,
“पानी…फेंक रही है…”

“चाचीकम मामीचोद बने,,,,गा,,,,,,,,क्या,,,?”

“तू,,,,भतीजे कम भांजे की … रखैल बनेगी?....”

“जल्दी कर! अब रहा नही जा रहा…”

“पर पूरी नंगी करूँगा…????”

“जो चाहे कर हां! पर जल्दी,,,,,”
क्रमश:…………………………

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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 20:50

चौधराइन
भाग 11 – चौधराइन के प्लान की सफ़लता


झट से बैठते हुए, अपनी लुंगी खोल एक तरफ फेंकी, तो कमरे की रोशनी में उसका दस इंच का तमतमाता हुआ लण्ड देख चौधराइन को झुरझुरी आ गई। उठ कर बैठते हुए, हाथ बढ़ा उसके लण्ड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलु जैसे लाल सुपाड़े को देखती बोली,
“हाय,,,,,,,बेला ठीक बोलती थी…तु बहुत बड़ा,,,,,, हो गया है…तेरा…केला तो…। मेरी…तो फ़ाड़ ही देगा.........”
पेटिकोट के नाड़े को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला,
“भगवान बेला का भला करे जिसने मेरी इतनी तारीफ़ की कि तू ललचा गई
कहती हुई चौधराइन अपने भारी भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़ उठा, पेटिकोट को चूतड़ों से सरका और शानदार रेशमी मांसल जांघों से नीचे से ठेल निकाल दिया। इस काम में मदन ने भी उसकी मदद की और सरसराते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया। कमरे की ट्यूबलाइट की रोशनी में चौधराइन के भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़, शानदार चमचमाती रेशमी मांसल जांघो को देख मदन की आंखें एक बार तो चौंधियागयी फ़िर फ़टी की फ़टी रह गईं।
चौधराइन लेट गई, और अपनी दोनो टांगो को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया। दोनो मुँहबोले चाची-भतीजे अब जबर्दस्त उत्तेजना में थे. दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था। मदन ने चौधराइन की चमचमाती जांघो को अपने हाथ से पकड़, थोड़ा और फैलाया और उनके ऊपर हपक के मुँह मारकर चुमते हुए, फ़िर उसकी झाँटदार चूत के ऊपर एक जोरदार चुम्मा लिया, और बित्ते भर की चूत की दरार में जीभ चलाते हुए, बुर की टीट को झाँटों सहित मुंह में भर कर खींचा, तो चौधराइन लहरा गई। चूत की दोनो पुत्तियों ने दुप-दुपाते हुए अपने मुंह खोल दिये। सिसयाती हुई बोली,
“इसस्स्,,,,,,,!!! क्या कर रहा है…???”

दरार में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर लण्ड, बुर में लेने की जल्दी थी। जल्दी से मदन के सिर को पीछे धकेलती बोली,
“…। क्या…करता…है ??…जल्दी कर…।”

पनियायी चूत की दरार पर उँगली चला उसका पानी लेकर, लण्ड की चमड़ी खींच, सुपाड़े की मुन्डी पर लगा कर चमचमाते सुपाड़े को चौधराइन को दिखाता बोला, “चाची,,,,,,देख मेरा…डण्डा…तेरे छेद…पर…”

“हां…जल्दी से…। मेरे छेद में…।“

लण्ड के सुपाड़े को चूत के छेद पर लगा, पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक चला, बुर के होठों पर लण्ड रगड़ते हुए बोला,
“हाय,,,,, पेल दुं,,,,पूरा…???”

“हां,,,,,,!! चाची…चोद बन जा…”

“फ़ड़वाये,,,गी…?????”हाय,,,,,,फ़ाड़ दूँ…”
“बकचोदी छोड़,,,,, फ़ड़वाने के,,,,,लिये तो,,,,,खोल के,,,,नीचे लेटी हूँ…!! जल्दी कर…”, वासना के अतिरेक से कांपती झुंझुलाहट से भरी आवाज में चौधराइन बोली।

लण्ड के लाल सुपाड़े को चूत के गुलाबी झांठदार छेद पर लगा, मदन ने धक्का मारा। सुपाड़ा सहित चार इंच लण्ड चूत के कसमसाते छेद की दिवारों को कुचलता हुआ घुस गया। हाथ आगे बढ़ा, मदन के सिर के बालो में हाथ फेरती हुई, उसको अपने से चिपका, भराई आवाज में बोली,
“हाय,,,, पूरा…डाल दे…“हाय,,,,, ,,,!!!…फ़ाड़…! मेरी मदन बेटा…शाबाश।"

मदन ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए, फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाल धक्का मारा। इस बार का धक्का जोरदार था। चौधराइन की चूतड़ों फट गई। पिछले दो दिनों से सदानन्द नहीं आया था सो उसने चुदवाया नही था जिससे उसकी चूत सिकुड़ी हुई थी। चूत के अन्दर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लम्बा लण्ड, जड़ तक घुसने की कोशिश कर रहा था, तो चूत में छिलकन हुई और दर्द की हल्की सी लहर ने उसको कंपा दिया।

“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,,,,,,चौधराइन चाची की आह…।”,
करते हुए, अपने हाथों के नाखून मदन की पीठ में गड़ा दिये।
“बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…”

चूत के पानी में फिसलता हुआ, पूरा लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया।

“बहुत बड़ा…है,,,,तेरा,,,,केला…उफफफ्…। मेरे,,,,,, आम चूसते हुए,,,,,चोद शाबाश”

मदन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक-चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाता पुछा,
“पेलवाती,,,, नही… थी…???”

“नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?”

“क्यों,,,,?…चौधरी चाचा…!!!।”

“उसका मूड…बहुत कम… कभी कभी ही बनता है।”

“दूसरा…कोई…”

“हरामी,,,,, कहे तो तेरे बाप से चुदवा लूँ ,,,,,,तुझे अच्छा…लगेगा…??।”, ताव में से चूतड़ पर मुक्का मारती हुई बोली।
“बात तो सुन लिया कर पूरी,,,,, सीधा गाली…देने…”,
झल्लाते हुए, मदन चार-पांच तगडे धक्के लगाता हुआ बोला।

तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं। मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई। थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी, और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हुआ था। अपने पैरों को मदन की कमर से लपेट उसको भींचती सिसयाती हुई,
“उफफफ्,,,,,,,, सीईई,,,,हरामी,,,,, दुखा…दिया…आरम,,,से,,,,भी बोल शकता…था…”

मदन कुछ नही बोला. लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये वो अपनी चौधराइन चाची कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्के लगा रहा था। चौधराइन को भी अब पूरा मजा आ रहा था. लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था। धीरे धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली,
“बोलना,,,,,तो, जो बोल…रहा…”

“मैं तो…बोल रहा था,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरे टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद…”

“हाय…हरामी…तुझे,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी…”

“मैं तो…बस एक,,,,बात बोल रहा…था की…
“चुप कर…कमीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…तेरी मेरी घरेलू बात घर की बात…”

तब तो…मेरे बाप से चुदवाने का आइडिया बुरा नहीं, घरेलू मामला घर की बात घर में जैसे मैं चाची चोद वो बहन चोद”

“वैसे ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मजा आ रहा,,,,,अब तुझे खूब मजे… दस इंच के हथियार वाला भतीजा किस दिन…काम आयेगा…”

“हाय…बहुत मजा…आ…चोदे जा…मेरा जवान भतीजा…। गांव भर की हरामजादिया मजे लुटे, और मैं…”
“हाय,,,, अब…गांववालीयों को छोड़…अब तो बस तेरी…ही…सीईईइ उफफ्…बहुत मजेदार छेद है…”,
गपा-गप लण्ड पेलता हुआ, मदन सिसयाते हुए बोला।

लण्ड बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूतके मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी। मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी गुदाज चूत होने का यही फायदा था। हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी। ऊपर के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए मदन तेजी से अपनी चूतड़ों उछाल कर चौधराइन के ऊपर कुद रहा था।

“हाय,,, तेरा केला भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा…डण्डा…सीसीसीईईईईईईई…हाय डालता रह…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम से…। हाय…। अब फ़ाड़ दे…डाल…। सीईईईई…पूरा डाल…कर…। हाय मादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी …चु…।”

नीचे से चूतड़ों उछालती, मदन के चूतड़ को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी, चौधराइन। कमरे में बारिश की आवाज के साथ चौधराइन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी। इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चौधराइन चाची-भतीजे जवानी का मजा लूट रहे थे। कहाँ मदन अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफसोस मना रहा था, वहीं अभी खुशी से चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी चौधराइन चाची की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रहा था। उधर चौधराइन जो सोच रही थी की मदन बिगड़ गया है, अब नंगी अपने भतीजे के नीचे लेट कर, उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए अपने भतीजे के बिगड़ने की खुशियां मना रही थी। आखिर हो भी क्यों ना, जिस लण्ड के पीछे गांव भर की औरतो की नजर थी अब उसके कब्जे में था, अपने खलिहान या घर के अन्दर, जितनी मरजी उतना चुदवा सकती थी।
“हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरे आम…तेरा छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय, चौधराइन चाची,,,, मजा आ रहा है, इस भतीजे का डण्डा बिल में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता…। तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देता …सीईईईई ले भतीजे का…। लण्ड…। हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना…तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जायेगा……सीईईईईई… तेरी … चु…त में,,,,???।,
सिसयाते हुए मदन बोला।

नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, चौधराइन भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी। चूतड़ों को उछालती हुई, अपनी टांगो को मदन की कमर पर कसते हुए चिल्लाई…,
”मार,,,,,मार ना,,,, भोसड़ीवाले… छोटे पण्डित हाय…सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे…।लण्ड से,,,…मार… चौधराइन…की चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,,…। बेटा,, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दे… चाची…की चूत…। पेल देएएए…। चौधराइन चाची के लण्ड …। चोद्द्द्द्……मेरी चूऊत में…।”
यही सब बकते हुए उसने मदन को अपनी बाहों में कस लिया।

उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था। मदन के लण्ड से भी तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था। मदन के होंठ चौधराइन के होठों से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था। दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब मदन के लण्ड का पानी चौधराइन की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो। तपते रेगीस्तान पर मदन का लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी चौधराइन चाची को चोद ही दिया। करीब आधे घन्टे तक दोनो एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे. मदन अब उसके बगल में लेटा हुआ था। चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, ।

आधे घन्टे बाद जब माया देवी को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ाकर उठ गई। बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में मदन भी नंगा लेटा हुआ था। उसका लटका हुआ लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया। मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे छोटे पंडित को भी निबटा दिया , देख बारिश भी छोटे पंडित और बड़ी चौधराइन की चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के दोनो पण्डित मेरी चूत से बंधे रहो।
मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचते, मुस्कुराते उन्होंने आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और मदन की लुंगी उसके ऊपर डाल, जैसे ही फिर से लेटने को हुई की मदन की आंखे खुल गई। अपने ऊपर रखी लुंगी का अहसास उसे हुआ, तो मुस्कुराते हुए लुंगी को ठीक से पहन ली। थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर, फिर मदन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गया, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा। फिर धीरे से बोला,
“कैसी हो चौधराइन चाची,,,,,, ,,,,?”

चौधराइन –“ एक एक जोड़ दुख रहा है।”
मदन फिर बोला,
“इधर देखो ना…।”

माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। मदन उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगा। नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते मदन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर उनकी फ़ूली चूत जो अभी अभी चुदने से और भी फ़ूल गई थी हाथ फ़ेर दिया, तो गुदगुदी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली,
“क्या करता है,,,,,? हाथ हटा…”

मदन ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दिया और थोड़ा और आगे सरक कर उनकी आंखो में झांकते हुए बोला,
“,,,,,,मजा आया…!!!???”

झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया. उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली,-“,,,,,,,चुप…गधा कहीं का…!!!!”
मदन -“मुझे तो बहुत मजा,,,,,,,आया…बता ना, तुझे कैसा लगा…?”

“हाय, नही छोड़…तू पहले हाथ हटा…”

“क्यों,,,,अभी तो…बताओ ना,,,,,, चाची,,,?”

“धत,,,,,छोड़,,,वैसे, आज कोई आम चुराने वाली नही आई ?”,
माया देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा।

“तूने इतनी मोटी-मोटी गालियां दी…थी, वो सब…”

“चल,,,,,,मेरी गालियों का,,,,,असर…उनपे कहाँ से…होने वाला…?”

“क्यों,,,!!,,,? इतनी मोटी गालियां सुन कर, कोई भी भाग जायेगा,,,,,,मैंने तो तुझे पहले कभी ऐसी गालियां देते नही सुना”

“वो तो,,,,,,,,वो तो तेरी झिझक दूर करने के लिए …बस,,,,…वरना रात बेकार जाती…”

“अच्छा, तो आप पहले से प्लान बनाये थी मैं तो अपने को बड़ा अकलमन्द समझ रहा था…? वैसे, बड़ी…मजेदार गालियां दे रही थी,,,,,,,,मुझे तो पता ही नही था…”

“…! चल हट, बेशरम…”

“…!! उन बेचारियों को तो तूने…।”
“अच्छा,,,,,,वो सब बेचारी हो गई,,,!!! सच-सच बता,,,, लाजो थी, ना…?”
आंखे नचाते हुए चौधराइन ने पुछा।

हँसते हुए मदन बोला,
“तुझे कैसे पता…? तूने तो उसका बेन्ड बजा…”,
कहते हुए, उनके होठों को हल्के से चुम लिया।

माया देवी, उसको पीछे धकेलते हुए बोली,
“हट,,,,,। बदमाश,,,, बजाई तो तूने है सबकी, सच सच बता अब तक गांव में कितनों की बजाई…???”

मदन एक पल खामोश रहा, फिर बोला,
“क्या,,,,,चौधराइन चाची,,,?…कोई नही.....”

“चल झूठे,,,,,,,,मुझे सब पता…है. सच सच बता....”.
कहते हुए. फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया।

मदन ने फिर से हाथ को पेट पर रख. उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा.
“सच्ची-सच्ची बताउं......?”

“हां, सच्ची…कितनो के साथ…?”,
कहती हुई, उसकी छाती पर हाथ फेरा।

मदन, उसको और अपनी तरफ खींचा तो चौधराइन उस्की तरफ़ घूम गईं, मदन अपनी कमर को उसकी कमर से सटा, धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला,
“याद नही, पर....करीब बारह-तेरह …।"

“बाप रे,,,,!!!…इतनी सारी ???…कैसे करता था, मुए,,??,,,,मुझे तो केवल लाजो और बसन्ती का पता था…”,
कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी।

“वो तो तुझे तेरी जासुस बेला ने बताया होगा इसीलिए कल मैंने बेला को भी इसी बिस्तर पे पटक के चोद दिया… बाकियों को तो मैंने इधर-उधर कहीं खेत में, कभी पास वाले जंगल में, कभी नदी किनारे निपटा दिया था…।”

“कमीना कहीं का,,,,,तुझे शरम नही आती…बेशरम…”,
उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली।

मदन(ताल ठोंक के) -“अब जब गाँव की चौधराइन चाची की ही निपटा दी तो…॥”,
कहते हुए, उसने चौधराइन को कमर से पकड़ कस कर भींचा। उसका खड़ा हो चुका लण्ड, सीधा चौधराइन की जांघो के बीच दस्तक देने लगा।
चौधराइन उसकी बाहों से छुटने का असफल प्रायास करती, मुंह फुलाते हुए बोली,
“छोड़,,,,बेशरम,,,,,बदमाश… तू तो कितना सीधा था, कहाँ सीखी इतनी बदमाशी?”
मदन –“अगर एक बार और करने दो तो बताऊँ।”
चौधराइन गरम तो थी हीं उसका लण्ड अपनी दोनों माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा के मसलते हुए बोलीं –“अगर सच सच बतायेगा तो… वरना नहीं।”
मदन –“मंजूर। तो फ़िर सुनिये”

ये कह मदन ने चौधराइन के ब्लाउज में हाथ डाल उनकी विशाल छाती थाम ली और सहलाते हुए अपनी आप बीती सुनानी शुरू की।
यहाँ चौधराइन का प्रथम सोपान समाप्त हुआ।

The Romantic
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 20:52


चौधराइन

भाग 12 - भोलु मदन की मुश्किलें


ये तो पता ही हैं अब से २ साल पहले तक सचमुच में अपने मदन बाबू उर्फ मदन बाबू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे। जब १५ साल के हुए और अंगो में आये परिवर्तन को समझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे। लण्ड बिना बात के खड़ा हो जाता था। पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुछ खयाल आ जाये तब भी। करे तो क्या करे। स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरविअर पहनना शुरु कर दिया था। मगर अपने भोलु राम के पास तो केवल पैन्ट थी। कभी अंडरविअर पहना ही नही था। लण्ड भी मदन बाबू का उम्र की औकात से कुछ ज्यादा ही बड़ा था, फुल-पैन्ट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था। जो की ऊपर दिखता था और हाफ पैन्ट में तो और मुसिबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जांघो के पास के ढीली मोहरी से अन्दर का नजारा दिख जाता था। बेचारे किसी को कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरविअर ला दो क्योंकि रहते थे मामा-मामी के पास, वहां मामा या मामी से कुछ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी। गांव काफी दिनों से गये नही थे। बेचारे बड़े परेशान थे।
सौभाग्य से मदन बाबू की मामी हँसमुख स्वभाव की थी और अपने मदन बाबू से थोड़ा बहुत हँसीं-मजाक भी कर लेती थी। उसने कई बार ये नोटिस किया था की मदन बाबू से अपना लण्ड सम्भाले नही सम्भल रहा है। सुबह-सुबह तो लगभग हर रोज उसको मदन के खड़े लण्ड के दर्शन हो जाते थे। जब मदन को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरुम की ओर भागता था। मदन की ये मुसिबत देख कर मामी को बड़ा मजा आता था। एक बार जब मदन अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने पलंग पर बैठ गई। मदन ने उस दिन संयोग से खूब ढीला-ढाला हाफ पैन्ट पहन रखा था। मदन पालथी मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था। सामने मामी भी एक मैगउन खोल कर देख रही थी। पढ़ते पढ़ते मदन ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया। इस स्थिति में उसके जांघो के पास की हाफ-पैन्ट की मोहरी नीचे लटक गई और सामने से जब मामीजी की नजर पड़ी तो वो दंग रह गई। मदन का मुस्टंडा लण्ड जो की अभी सोयी हुई हालत में भी करीब तीन-चार इंच लंबा दिख रहा था उसका लाल सुपाड़ा मामीजी की ओर ताक रहा था।

इस नजारे को ललचाई नजरों से एकटक देखे जा रही थी। उसकी आंखे वहां से हटाये नहीं हट रही थी। वो सोचने लगी की जब इस छोकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है तो जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता होगा। उसके पति यानी की मदन के मामा का तो बामुश्किल साढे पांच इंच का था। अब तक उसने मदन के मामा के अलावा और किसी का लण्ड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही की मोटे और लंबे लण्ड कितना मजा देते होंगे। कुछ देर में जब बर्दास्त के बाहर हो गया तो उर्मिला देवी वहां से उठ कर चली गई।

उस दिन की घटना के बाद से उर्मिला देवी जब मदन से बाते करतीं तो थोड़ा नजरे चुरा कर करतीं थीं क्योंकि बाते करते वख्त उनका ध्यान उसके पजामे में हिलते-डुलते लण्ड अथवा हाफ पैन्ट से झांकते हुए लण्ड की तरफ़ चला जाता। मदन भी सोच में डुबा रहता था की मामी उससे नजरें चुरा कर क्यों बात करतीं हैं और अक्सर नीचे की तरफ़ उसके पायजामे या निकर) की तरफ़ क्यों देखती रहती हैं । क्या मुझसे कुछ गड़बड़ हो गई है बड़ा परेशान था बेचारा। उधर लगातार मदन बाबू के लण्ड के बारे में सोचते सोचते मामी के दिमाग मे ख्याल आया कि अगर मैं किसी तरह मदन के इस मस्ताने हथियार का मजा चख लूँ तो न तो किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा न ही किसी को पता ही चलेगा? बस वो इसी फिराक में लग गई कि क्या ऐसा हो सकता है की मैं मदन के इस मस्ताने हथियार का मजा चख सकुं? कैसे क्या करें ये उनकी समझ में नही आ रहा था। फिर उन्होंने एक रास्ता खोज ही लिया।

अब उर्मिला देवी ने नजरे चुराने की जगह मदन से आंखे मिलाने का फैसला कर लिया था। वो अब मदन की आंखो में अपने रुप की मस्ती घोलना चाहती थी। देखने में तो वो माशा-अल्लाह खूबसुरत थीं ही। मदन के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी। जैसेकि जब भी वो मदन के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक ऊपर उठा कर बैठती, साड़ी का आंचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढुलक जाता था (जबकी पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउज के ऊपर के दोनो बटन खुले ही रह जाते थे और उनमे से दो आधे आधे चाँद(उनके मस्ताने स्तन) झाँकते रहते थे। बाथरुम से कई बार केवल पेटीकोट और ब्लाउज या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरुम में सामान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती। नहाने के बाद बाथरुम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल आती थी। बेचारा मदन बीच ड्राइंग रुम में बैठा ये सारा नजारा देखता रहता था। लड़कियों को देख कर उसका लण्ड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लण्ड खड़ा होगा। लण्ड तो लण्ड ही ठहरा, उसे कहाँ कुछ पता है कि ये मामी हैं । उसको अगर खूबसुरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही। मदन को उसी दौरान मस्तराम की एक किताब हाथ लग गई। किताब पढ़ कर जब लण्ड खड़ा हुआ और सहलाते रगड़ते जब उसका झड़ गया उसकी कुछ कुछ समझ में आया कि चुदाई क्या होती है और उसमें कितना मजा आ सकता होगा। मस्तराम की किताबों में तो रिश्तों में चुदाई की कहानियां भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उलटी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिये कितनी भी कोशिश करे। वही हाल अपने मदन बाबा का भी था। वो चाह रहे थे की अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के रेशमी बदन को देखता तो ऐसा हो जाता था। मामी भी यही चाह रही थी। खूब थिरक थिरक के अपना बदन झलका दिखा रही थीं।

बाथरुम का दरवाजा खुला छोड़ साड़ी पेटीकोट अपने भारी बड़े बड़े चूतड़ों के ऊपर तक समेटकर पेशाब करने बैठ जाती, पेशाब करने के बाद बिना साड़ी पेटीकोट नीचे किये खड़ी हो जातीं और वैसे ही बाहर निकल आती और मदन को अनदेखा कर साड़ी पेटीकोट को वैसे ही उठाये हुए अपने कमरे में जाती और फिर चौंकने की एक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साड़ी को नीचे गिरा देती थी। मदन भी अब हर रोज इन्तजार करता था की कब मामी झाड़ू लगायेगी और अपने बड़े बड़े कटीले लंगड़ा आमों (स्तनों) के दर्शन करायेगी या फिर कब वो अपनी साड़ी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जांघो के दर्शन करायेगी। मस्तराम की किताबें तो अब वो हर रोज पढ़ता था। ज्ञान बढ़ने के साथ अब उसका दिमाग हर रोज नई नई कल्पना करने लगा कि कैसे मामी को पटाऊँगा। जब पट जायेगी तो कैसे साड़ी उठा के उनकी चूत में अपने हलव्वी लण्ड डाल के चोद के मजा लूँगा ।
इसी बीच बिल्ली के भाग से छींका टूटा चुदास की आग में जल रही मामी ने ही एक तरकीब खोज ली,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक दिन मामीजी बाथरुम से तौलिया लपेटे हुए निकली, हर रोज की तरह मदन बाबू उनको एक टक घूर घूर कर देखे जा रहे थे। तभी मामी ने मदन को आवाज दी,
" मदन जरा बाथरुम में कुछ कपड़े है, मैंने धो दिये है जरा बाल्कनी में सुखने के लिये डाल दे। "

मदन जो की एक टक मामीजी की गोरी चिकनी जांघो को देख के आनन्द लूट रहा था को झटका सा लगा, हडबड़ा के नजरे उठाई और देखा तो सामने मामी अपनी छातियों पर अपने तौलिये को कस के पकड़े हुए थी।

मामी ने हँसते हुए कहा, "जा बेटा जल्दी से सुखने के लिये डाल दे नहीं तो कपड़े खराब हो जायेंगे. "

मदन उठा और जल्दी से बाथरुम में घुस गया। मामी को उसका खड़ा लण्ड पजामे में नजर आ गया। वो हँसते हुए चुप चाप अपने कमरे में चली गई। मदन ने कपड़ों की बाल्टी उठाई और फिर बाल्कनी में जा कर एक एक करके सुखाने के लिये डालने लगा। मामी की कच्छी और ब्रा को सुखाने के लिये डालने से पहले एक बार अच्छी तरह से छु कर देखता रहा फिर अपने होठों तक ले गया और सुंघने लगा। तभी मामी कमरे से निकली तो ये देख कर जल्दी से उसने वो कपड़े सुखने के लिये डाल दिये।

शाम में जब सुखे हुए कपड़ों को उठाते समय मदन भी मामी की मदद करने लगा। मदन ने अपने मामा का सुखा हुआ अंडरवियर अपने हाथ में लिया और धीरे से मामी के पास गया। मामी ने उसकी ओर देखते हुए पुछा,
"क्या है, कोई बात बोलनी है ?"

मदन थोड़ा सा हकलाते हुए बोला, " माआम्म्मी,,,,,,एक बात बोलनी थी. "

"हा तो बोल ना. "

"मामी मेरे सारे दोस्त अब बबबबबब्,,,,"

" अब क्या,,,,,,,,? " , उर्मिला देवी ने अपनी तीखी नजरे उसके चेहरे पर गड़ा रखी थी।

" मामी मेरे सारे दोस्त अब अं,,,,,,,,,अंडर,,,,,,,,, अंडरवियर पहनते है. "

मामी को हँसी आ गई, मगर अपनी हँसी रोकते हुए पुछी, "हाँ तो इसमे क्या है सभी लड़के पहेनते है. "

" पर पर मामी मेरे पास अंडरवियर नही है. "

मामी एक पल के लिये ठिठक गई और उसका चेहरा देखने लगी। मदन को लग रहा था इस पल में वो शरम से मर जायेगा उसने अपनी गरदन नीचे झुका ली।

उर्मिला देवी ने उसकी ओर देखते हुए कहा, " तुझे भी अंडरवियर चाहिये क्या ? "

" हा मामी मुझे भी अंडरवियर दिलवा दो ना !!"

" हम तो सोचते थे की तु अभी बच्चा है, मगर, ", कह कर वो हँसने लगी।

मदन ने इस पर बुरा सा मुंह बनाया और रोआंसा होते हुए बोला, " मेरे सारे दोस्त काफी दिनों से अंडरवियर पहन रहे है, मुझे बहुत बुरा लगता है बिना अंडरवियर के पैन्ट पहनना। "

उर्मिला देवी ने अब अपनी नजरे सीधे पैन्ट के ऊपर टिका दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली, " कोई बात नही, कल बाजार चलेंगे साथ में। "

मदन खुश होता हुआ बोला, " ठीक है मामी।"

फिर सारे कपड़े समेट दोनो अपने अपने कमरों में चले गये।
वैसे तो मदन कई बार मामी के साथ बाजार जा चुका था। मगर आज कुछ नई बात लग रही थी। दोनो खूब बन संवर के निकले थे। उर्मिला देवी ने आज बहुत दिनो के बाद काले रंग की सलवार कमीज पहन रखी थी और मदन को टाईट जीन्स पहनवा दिया था। हांलाकि मदन अपनी ढीली पैन्ट ही पहेनना चाहता था मगर मामी के जोर देने पर बेचार क्या करता। कार मामी खुद ड्राईव कर रही थी। काली सलवार कमीज में बहुत सुंदर लग रही थी। हाई हील की सेंडल पहन रखी थी। टाईट जीन्स में मदन का लण्ड नीचे की तरफ हो कर उसकी जांघो से चिपका हुआ एक केले की तरह से साफ पता चल रहा था। उसने अपनी टी-शर्ट को बाहार निकाल लिया पर जब वो कार में मामी की बगल में बैठा तो फिर वही ढाक के तीन पात, सब कुछ दिख रहा था। मामी अपनी तिरछी नजरो से उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी। मदन बड़ी परेशानी महसूस कर रहा था। खैर मामी ने कार एक दुकान पर रोक ली। वो एक बहुत ही बड़ी दुकान थी। दुकान में सारे सेल्स-रिप्रेसेन्टिव लड़कियाँ थी।

एक सेल्स-गर्ल के पास पहुंच कर मामी ने मुस्कुराते हुए उस से कहा,
" जरा इनके साईज का अंडरवियर दिखाइये।"

सेल्स-गर्ल ने घूर कर उसकी ओर देखा जैसे वो अपनी आंखो से ही उसकी साईज का पता लगा लेगी। फिर मदन से पुछा, " आप बनियान कितने साईज का पहनते हो। "

मदन ने अपना साईज बता दिया और उसने उसी साईज का अंडरवियर ला कर उसे ट्रायल रुम में ले जा कर ट्राय करने को कहा। ट्रायल रुम में जब मदन ने अंडरवियर पहना तो उसे बहुत टाईट लगा। उसने बाहर आ कर नजरे झुकाये हुए ही कहा,
" ये तो बहुत टाईट है। "

इस पर मामी हँसने लगी और बोली, "हमारा भांजा मदन नीचे से कुछ ज्यादा ही बड़ा है, एक साईज बड़ा ला दो। "

उर्मिला देवी की ये बात सुन कर सेल्स-गर्ल का चेहरा भी लाल हो गया। वो हडबड़ा कर पीछे भागी और एक साईज बड़ा अंडरवियर ला कर दे दिया और बोली,

" पैक करा देती हूँ ये फिट आ जायेगी। "

मामी ने पुछा, " क्यों मदन एक बार और ट्राय करेगा या फिर पैक करवा ले। "

" नहीं पैक करवा लीजिये. '

" ठीक है, दो अंडरवियर पैक कर दो, और मेरे लिये कुछ दिखाओ। "

मामी के मुंह से ये बात सुन कर मदन चौंक गया। मामी क्या खरीदना चाहती है अपने लिये। यहां तो केवल कच्छी और ब्रा मिलेगी। सेल्स-गर्ल मुस्कुराते हुए पीछे घुमी और मामी के सामने गुलाबी, काले, सफेद, नीले रंगो के ब्रा और कच्छियों का ढेर लगा दिया। मामी हर ब्रा को एक एक कर के उठाती जाती और फैला फैला कर देखती फिर मदन की ओर घुम कर जैसे की उस से पूछ रही हो बोलती, " ये ठीक रहेगी क्या, मोटे कपड़े की है, सोफ्ट नहीं है. " य फिर " इसका कलर ठीक है क्या.. "

मदन हर बात पर केवल अपना सर हिला कर रह जाता था। उसका तो दिमाग घुम गया था। उर्मिला देवी कच्छियों को उठा उठा के फैला के देखती। उनकी इलास्टिक चेक करती फिर छोड़ देती। कुछ देर तक ऐसे ही देखने के बाद उन्होने तीन ब्रा और तीन कच्छियाँ खरीद ली। मदन को तीनो ब्रा और कच्छियाँ काफी छोटी लगी। मगर उसने कुछ नही कहा। सारा सामान पैक करवा कर कार की पिछली सीट पर डालने के बाद मामी ने पुछा,
" अब कहाँ चलना है ? "

मदन ने कहा, " घर चलिये, अब और कहाँ चलना है। "

इस पर मामी बोली, "अभी घर जा कर क्या करोगे चलो थोड़ा कहीं घुमते है। "

" ठीक है. "
कह कर मदन भी कार में बैठ गया।

फिर उसका टी-शर्ट थोड़ा सा उंचा हो गया पर इस बार मदन को कोई फिकर नही थी। मामी ने उसकी ओर देखा और देख कर हल्के से मुस्कुराई। मामी से नजरे मिलने पर मदन भी थोड़ा सा शरमाते हुए मुस्कुराया फिर खुद ही बोल पड़ा,
" वो मैं ट्रायल रुम में जा कर अंडरवियर पहन आया था। "

मामी इस पर हँसते हुए बोली, "वाह रे छोरे तू तो बड़ा होशियार निकला, मैंने तो अपना ट्राय भी नही किया और तुम पहन कर घुम भी रहे हो, अब कैसा लग रहा है ? "

" बहुत आराम लग रहा है, बड़ी परेशानी होती थी ! "

" मुझे कहाँ पता था कि इतना बड़ा हो गया है, नहीं तो कब का दिला देती. "
मामी की इस दुहरे अर्थ वाली बात को समझ कर मदन बेचारा चुपचाप झेंप कर रह गया। मामी कार ड्राईव करने लगी। घर पर मामा और चौधराइन की लड़की मोना दोनो नहीं थे। मामा अपनी बिजनेस टुर पर और मोना कालेज ट्रिप पर गये थे। सो दोनो मामी-भांजा शाम के सात बजे तक घुमते रहे। शाम में कार पार्किंग में लगा कर दोनो मोल में घुम रहे थे की बारिश शुरु हो गई। बड़ी देर तक तेज बारिश होती रही। जब ८ बजने को आया तो दोनो ने मोल से पार्किंग तक का सफर भाग कर तय करने की कोशिश की, और इस चक्कर में दोनो के दोनो पूरी तरह से भीग गये। जल्दी से कार का दरवाजा खोल झट से अन्दर घुस गये। मामी ने अपने गीले दुपट्टे से ही अपने चेहरे और बांहो को पोंछा और फिर उसको पिछली सीट पर फेंक दिया। मदन ने भी रुमाल से अपने चेहरे को पोंछ लिया।

मामी उसकी ओर देखते हुए बोली, " पूरे कपड़े गीले हो गये. "

" हां, मैं भी गीला हो गया हुं। "

बारिश से भीग जाने के कारण मामी का ब्लाउज उनके बदन से चिपक गई थी और उनकी सफेद ब्रा के स्ट्रेप नजर आ रहे थे। कमीज चुंकि स्लीवलेस थी इसलिये मामी की गोरी गोरी बांहे गजब की खूबसुरत लग रही थी। उन्होंने दाहिनी कलाई में एक पतला सा सोने का कड़ा पहन रखा था और दूसरे हाथ में पतले स्ट्रेप की घड़ी बांध रखी थी। उनकी उंगलियाँ पतली पतली थी और नाखून लंबे लंबे थे उन पर पिंक कलर की चमकीली नेईल पोलिश लगी हुई थी। स्टियरिंग को पकड़ने के कारण उनका हाथ थोड़ा उंचा हो गया था जिस के कारण उनकी चिकनी चिकनी कांखो के दर्शन भी मदन को आराम से हो रहे थे। बारिश के पानी से भीग कर मामी का बदन और भी सुनहरा हो गया था। बालों की एक लट उनके गालों पर अठखेलियां खेल रही थी। मामी के इस खूबसुरत रुप को निहार कर मदन का लण्ड खड़ा हो गया था।
घर पहुंच कर कार को पार्किंग में लगा कर लोन पार करते हुए दोनो घर के दरवाजे की ओर चल दिये। बारिश दोनो को भिगा रही थी। दोनो के कपड़े बदन से पूरी तरह से चिपक गये थे। मामी की कमीज उनके बदन से चिपक कर उनकी चूचियों को और भी ज्यादा उभार रही थी। चुस्त सलवार उनके बदन उनकी जांघो से चिपक कर उनकी मोटी जांघो का मदमस्त नजार दिखा रही थी। कमीज चिपक कर मामी के चूतड़ों की दरार में घुस गई थी। मदन पीछे पीछे चलते हुए अपने लण्ड को खड़ा कर रहा था। तभी लोन की घास पर मामी का पैर फिसला और वो पीछे की तरफ गिर पड़ी। उनका एक पैर लग भग मुड गया था और वो मदन के ऊपर गिर पड़ी जो ठीक उनके पीछे चल रहा था। मामी मदन के ऊपर गीरी हुई थी। मामी के मदमस्त चूतड़ मदन के लण्ड से सट गये। मामी को शायद मदन के खड़े लण्ड का एहसास हो गया था उसने अपने चूतड़ों को लण्ड पर थोड़ा और दबा दिया और फिर आराम से उठ गई। मदन भी उठ कर बैठ गया।

मामी ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली, " बारिश में गिरने का भी अपना अलग ही मजा है। "

" कपड़े तो पूरे खराब हो गये मामी. "

" हा, तेरे नये अंडरवियर का अच्छा उदघाटन हो गया. "

मदन हँसने लगा। घर के अन्दर पहुंच कर जल्दी से अपने अपने कमरो की ओर भागे। मदन ने फिर से हाफ पैन्ट और एक टी-शर्ट डाल ली और गन्दे कपड़ों को बाथरुम में डाल दिया। कुछ देर में मामी भी अपने कमरे से निकली। मामी ने अभी एक बड़ी खूबसुरत सी गुलाबी रंग की नाईटी पहन रखी थी। मैक्सी के जैसी स्लिवलेस नाईटी थी। नाईटी कमर से ऊपर तक तो ट्रान्सपरेन्ट लग रही थी मगर उसके नीचे शायद मामी ने नाईटी के अन्दर पेटीकोट पहन रखा था इसलिये वो ट्रान्सपरेन्ट नही दिख रही थी।
उर्मिला देवी किचन में घुस गई और मदन ड्राईंग रुम में मस्ती से बैठ कर टेलीवीजन देखने लगा। उसने दूसरा वाला अंडरवियर भी पहन रखा था अब उसे लण्ड के खड़ा होने पर पकड़े जाने की कोई चिन्ता नही थी। किचन में दिन की कुछ ।सब्जियाँ और दाल पड़ी हुई थी। चावल बना कर मामी उसके पास आई और बोली,
" चल कुछ खा ले। "

खाना खा कर सारे बर्तन सिन्क में डाल कर मामी ड्राईंग रुम में बैठ गई और मदन भी अपने लिये मेन्गो शेक ले कर आया और सामने के सोफे पर बैठ गया। मामी ने अपने पैर को उठा कर अपने सामने रखी एक छोटी टेबल पर रख दिये और नाईटी को घुटनो तक खींच लिया था। घुटनो तक के गोरे गोरे पैर दिख रहे थे। बड़े खूबसुरत पैर थे मामी के। तभी मदन का ध्यान उर्मिला देवी के पैरों से हट कर उनके हाथों पर गया। उसने देखा की मामी अपने हाथों से अपनी चूचियों को हल्के हल्के खुजला रही थी। फिर मामी ने अपने हाथों को पेट पर रख लिया। कुछ देर तक ऐसे ही रखने के बाद फिर उनका हाथ उनके दोनो जांघो के बीच पहुंच गया।

मदन बड़े ध्यान से उनकी ये हरकते देख रहा था। मामी के हाथ ठीक उनकी जांघो के बीच पहुंच गये और वो वहां खुजली करने लगे। जांघो के ठीक बीच में बुर के ऊपर हल्के हल्के खुजली करते-करते उनका ध्यान मदन की तरफ गया। मदन तो एक टक अपनी मामी को देखे जा रहा था। उर्मिला देवी की नजरे जैसे ही मदन से टकराई उनके मुंह से हंसी निकल गई। हँसते हुए वो बोली,
" नई कच्छी पहनी है ना इसलिये खुजली हो रही है। "

मदन ने अपनी चोरी पकड़े जाने पर शर्मिन्दा हो मुंह घुमा कर अपनी नजरे टी वी से चिपका लीं। तभी उर्मिला देवी ने अपने पैरो को और ज्यादा फैला दिया। ऐसा करने से उनकी नाईटी नीचे की तरफ लटक गई । मदन के लिये ये बड़ा बढ़िया मौका था, उसने अपने हाथों में पकड़ी रबर की गेंद जान बुझ के नीचे गिरा दिया। गेंद लुढकता हुआ ठीक उस छोटे से टेबल के नीचे चला गया जिस पर मामी ने पैर रखे हुए थे।
मदन, " ओह !! " कहता हुआ उठा और टेबल के पास जाकर गेंद लेने के बहाने से लटकी हुई नाईटी के अन्दर झांकने लगा। एक तो नाईटी और उसके अन्दर मामी ने पेटीकोट पहन रखा था, लाईट वहां तक पूरी तरह से नही पहुंच पा रही थी पर फिर भी मदन को मामी की मस्त जांघो के दर्शन हो ही गये। उर्मिला देवी भी मदन की इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो समझ गई की छोकरे के पैन्ट में भी हलचल हो रही है और उसी हलचल के चक्कर में उनकी कच्छी के अन्दर झांकने के चक्कर में पड़ा हुआ है।
मदन गेंद लेकर फिर से सोफे पर बैठ गया तो उर्मिला देवी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,
" अब इस रबर की गेंद से खेलने की तेरी उमर बीत गई है, अब दूसरे गेंद से खेला कर। "

मदन थोड़ा सा शरमाते हुए बोला," और कौन सी गेंद होती है मामी, खेलने वाली सारी गेंद तो रबर से ही बनी होती है. "

" हां, होती तो है मगर तेरे इस गेंद की तरह इधर उधर कम लुढकती है. ", कह कर फिर से मदन की आंखो के सामने ही अपनी बुर पर खुजली करके हँसते हुए बोली,
" बड़ी खुजली सी हो रही है पता नही क्यों, शायद नई कच्छी पहनी है इसलिये। "

मदन तो एक दम से गरम हो गया और एक टक जांघो के बीच देखते हुए बोला,
" पर मेरा अंडरवियर भी तो नया है वो तो नही काट रहा. "

" अच्छा, तब तो ठीक है, वैसे मैंने थोड़ी टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी ली है, हो सकता है इसलिये काट रही होगी. "

"वाह मामी, आप भी कमाल करती हो इतनी टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी खरीदने की क्या जरुरत थी आपको ? "

" टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी हमारे बहुत काम की होती है, ढीली कच्छी में परेशानी हो जाती है, वैसे तेरी परेशानी तो खतम हो गई ना. "

" हां, मामी, बिना अंडरवियर के बहुत परेशानी होती थी, सारे लड़के मेरा मजाक उड़ाते थे। "

" पर लड़कियों को तो अच्छा लगता होगा, क्यों ? "

" हाय, मामी, आप भी नाआआ,,,, "

" क्यों लड़कियाँ तुझे नही देखती क्या ? "

" लड़कियाँ मुझे क्यों देखेंगी ? "
क्रमश:………………………………

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