ससुराल सिमर का—9
गतान्क से आगे……………
उधर दीदी और शन्नो जी भी अब उठ बैठी थीं हम मर्दों के खेल जब चल रहे थे तब उन्होंने मन भर के एक दूसरे की बुर चूस ली थी
शन्नो जी बोलीं "अमित ठीक से जान पहचान हुई या नहीं तेरे जीजाजी और जेठजी के साथ? मेरा ध्यान नहीं था, तेरी ये दीदी इतनी मीठी है कि इसीको चखने में लगी थी"
दीदी मुस्करा कर बोली "बहुत जान पहचान हो गयी है अम्माजी, खाना पीना भी हो गया है, देखो सब कैसे बिलौटे जैसे मुस्करा रहे हैं"
"चलो अब सो जाओ, रात बहुत हो गयी है, अमित बेटा, आराम करो, तुझे सुबह सुबह जाना है अब जल्द से जल्द अपनी माँ को लेकर यहाँ आ जाओ हम तब तक उनकी खातिर करने की तैयारी करते हैं"
मैं सो गया मन में एक पूरी तृप्ति और आनंद था यही सोच रहा था कि जब माँ के साथ वापस आऊन्गा तो क्या धमाल होगी
मैं घर पहूचा तब रात हो चुकी थी, ट्रेन लेट हो गयी थी बेल दो बार बजानी पडी तब माँ आई पहले पीपहोल में से झाँक कर देखा कि कौन है और फिर दरवाजा खोला वह बस जल्दी जल्दी में एक साड़ी लपेट कर आई थी उसकी साँस भी चल रही थी मुझे देख कर खुश हो गयी "आ गया बेटे, मैं कब से इंतजार कर रही थी! सिमर को साथ नहीं लाया?"
मैं सीधा बेडरूम में चला गया वहाँ टेबल पर मोटा छिला केला पड़ा था "माँ, तू भी अच्छी चुदैल है! दो दिन बेटे से बिना चुदवाये नहीं रह सकती केले से मुठ्ठ मार रही थी ना?"
"अरे बेटे, तू क्या जाने माँ के दिल का हाल, अपने बेटे से दूर रहने में मेरा क्या हाल होता है तू नहीं समझेगा" माँ ने साड़ी खोलते हुए कहा उसके नंगे बदन को देख कर मेरा भी खड़ा हो गया "तू अब ज़रा धीरज रख, मैं नहा कर आता हू" उसे चूम कर मैं नहाने चला गया
वापस आया तो माँ नंगी पलंग पर पडी थी और केले को चूत में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रही थी सिसक कर बोली "अब आ जा बेटे, रहा नहीं जाता पूरे चार दिन हो गये चुदवाये हुए"
मैंने केला खींच कर निकाला और टेबल पर रख दिया फिर माँ पर चढ कर चोदने लगा माँ ने सुख की साँस ली "हाय बेटे, कितना अच्छा लग रहा है अब बता, सिमर कैसी है"
माँ के चूम्मे लेते हुए मैंने कहा "एकदम मस्त है, यहाँ तो उसे प्यार करने वाली एक माँ और एक भाई थे, वहाँ उसे पति का प्यार तो मिलता ही है, सास और जेठ का भी प्यार मिलता है दो दो लौडे और एक चूत वह तो ऐसी खुश है कि क्या बताऊ"
"अरे तुझे कैसे पता लगा? उसने बताया? उनके घर में भी ऐसा होता है?" माँ ने खुश होकर पूछा
"अरे माँ, वो तो हम से भी सवाई हैं इस मामले में खुद देख कर आ रहा हू और सिर्फ़ देखा ही नहीं, किया भी, सिमर दीदी को चोदा जीजाजी के सामने, फिर सब के सामने, इतना ही नहीं, सिमर दीदी की सासूमा को भी चोद डाला" फिर मैंने माँ को विस्तार से सब बताया बताते बताते माँ को चोदना मैंने जारी रखा
वो ऐसे गरमाई की चूतड उछालने लगी मैंने पिछले दिनों में इतनी चुदाई की थी कि लंड झडने को बेताब नहीं था आराम से बिना झडे माँ को चोदता रहा उसे दो बार झड़ाया, फिर झडा
कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का compleet
Re: कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का
माँ आख़िर लस्त होकर सुख से रोने लगी "चलो, मेरी बेटी खुश तो है! मैं ही जानती हू कि ये चूत की खुजली क्या जानलेवा होती है और सिमर तो मुझसे भी बढ़ कर है चलो मेरा नाम रोशन कर रही है ससुराल में"
मैंने केला उठा लिया और खाने लगा माँ की चूत के रस से लिबलिबा केला खाने में मुझे बचपन से मज़ा आता था जब छोटा था तब माँ कई बार जान बुझ कर मुझे खिलाती थी, बिना बताए कि उस केले से उसने किया क्या है अपने छोटे से बेटे को अपनी चूत का रस चखा कर मन ही मन खुश होती थी बाद में जब मैं जवान हुआ और माँ और दीदी को चोदने लगा, तब मेरे और दीदी के सामने ही केले से मुठ्ठ मारती थी और हम दोनों को खिलती थी
केला खाते हुए मैंने कहा "असली बात तो तुमने सुनी ही नहीं समधनजी ने हम दोनों को बुलाया है, दो हफ्ते के लिए उनके साथ रहने को कहा है"
माँ चकरा कर बोली "मैं क्या करूँगी उधर बेटा? सब के सामने अपनी बिटिया से कुछ कर भी नहीं पाऊन्गि तू यहीं ले आता तो अच्छा होता"
"अरे माँ, तू कितनी भोली है उन्होंने बुलाया है हमें अपनी रास लीला में शामिल करने को तेरे बारे में सुनकर तो वे सब लोग मेरे पीछे ही लग गये कि जाओ, माँ को ले आओ"
"अरे उन्हें पता चल गया हमारे बारे में? कुछ गडबड ना हो जाए बेटा" माँ चिंतित होकर बोली
"खुद दीदी ने सब को बताया है कि उसकी माँ कितनी सुंदर और रसीली है मेरे बारे में भी बताया तो सब ने मेरे हुनर तो देख लिए अब सब को तुझसे मिलना है, ख़ास कर शन्नो जी को, तेरी समधन को बड़ी मतवाली हैं वे माँ और जीजाजी और जेठजी भी आस लगाए बैठे हैं कि उनकी सास आएँ तो उनकी खातिरदारी करें"
माँ को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे मन में खुशी के लड्डू फूल रहे थे पर थोड़ी परेशान भी थी आज तक उसने बस अपने परिवार में, अपने बेटे और बेटी से संभोग किया था अब दूसरों के साथ करने में जहाँ वह सकुचा रही थी वहीं गरमा भी रही थी मैंने समझाया कि यहाँ तो बस एक लंड मिलता है, वहाँ तो दो और नये लंड मिलेंगे फिर बेटी के अलावा एक और बुर भी मिलेगी मज़ा करने को
माँ जल्द ही मान गयी इतना ही नहीं, फिर गरम होकर मुझपर चढ बैठी जब वह मुझे उपर से चोद रही थी तो मैंने उसे बताया कि समधन ने क्या कहा था "माँ, अभी चोद ले, अब दो दिन उपवास करना उधर वे लोग भी करने वाले हैं अब दावत शुरू होगी जब हम वहाँ पहूचेंगे, और उपवास के बाद और ज़ायक़ा आएगा साथ साथ खाने का
दो दिन हमने आराम किया कठिन था पर माँ ने अपने आप पर काबू रखा जब सामान क्या ले जाना है इसकी तैयारी करने लगी तो मैने बताया "अम्मा, बस दो जोड़ी कपड़े ले चलेंगे वे भी नहीं लगेंगे वहाँ कौन हमे कपड़े पहनने देगा?" माँ शरमा गयी चहरा लाल हो गया इतने दिन बाद माँ को शरमाते हुए देख कर बहुत अच्छा लगा
हम शनिवार सुबह निकलकर दोपहर को वहाँ पहूचे हमारा स्वागत जोरदार हुआ जीजाजी और जेठजी ने माँ के पैर छुए, इतना ही नहीं, लेट कर उसके पाँव चूम भी लिए माँ सकुचा गयी, वैसे माँ के पैर बहुत सुंदर हैं, एकदमा गोरे और नाज़ुक, किसी का भी मन करे उन्हें प्यार करने को, मैं तो अक्सर खेलता रहता हू माँ के चरणों से
दीदी माँ से गले मिली शरमाई हुई माँ ने बस उसका गाल चूम कर उसे अलग कर दिया "अरे समधनजी, इतने दिन बाद मिली हो, ज़रा बेटी की बालाएँ लो, उसे प्यार करो" शन्नो जी ने मज़ाक में कहा जीजाजी बोले "अरे माँ, वे अपनी बेटी से अकेले में मिलना चाहेंगी"
शन्नो जी माँ को गले लगाकर बोलीं "अब तो सब के सामने ही मिलना पड़ेगा भाई हम भी तो देखें माँ बेटी का मिलन" फिर शन्नो जी ने माँ को चूम लिया पहले गालों पर और फिर होंठों पर कस कर उसे बाँहों में जकडकर वे माँ की पीठ को प्यार से सहलाने लगीं माँ शरम से पानी पानी हो रही थी
रजत बोले "अरे अम्मा, अभी से ना जुट जाओ, इन्हें आराम कर लेने दो सिमर, इनको अपने कमरे में ले जाओ आप लोग नहा धो कर आराम कर लो"
क्रमशः………………
मैंने केला उठा लिया और खाने लगा माँ की चूत के रस से लिबलिबा केला खाने में मुझे बचपन से मज़ा आता था जब छोटा था तब माँ कई बार जान बुझ कर मुझे खिलाती थी, बिना बताए कि उस केले से उसने किया क्या है अपने छोटे से बेटे को अपनी चूत का रस चखा कर मन ही मन खुश होती थी बाद में जब मैं जवान हुआ और माँ और दीदी को चोदने लगा, तब मेरे और दीदी के सामने ही केले से मुठ्ठ मारती थी और हम दोनों को खिलती थी
केला खाते हुए मैंने कहा "असली बात तो तुमने सुनी ही नहीं समधनजी ने हम दोनों को बुलाया है, दो हफ्ते के लिए उनके साथ रहने को कहा है"
माँ चकरा कर बोली "मैं क्या करूँगी उधर बेटा? सब के सामने अपनी बिटिया से कुछ कर भी नहीं पाऊन्गि तू यहीं ले आता तो अच्छा होता"
"अरे माँ, तू कितनी भोली है उन्होंने बुलाया है हमें अपनी रास लीला में शामिल करने को तेरे बारे में सुनकर तो वे सब लोग मेरे पीछे ही लग गये कि जाओ, माँ को ले आओ"
"अरे उन्हें पता चल गया हमारे बारे में? कुछ गडबड ना हो जाए बेटा" माँ चिंतित होकर बोली
"खुद दीदी ने सब को बताया है कि उसकी माँ कितनी सुंदर और रसीली है मेरे बारे में भी बताया तो सब ने मेरे हुनर तो देख लिए अब सब को तुझसे मिलना है, ख़ास कर शन्नो जी को, तेरी समधन को बड़ी मतवाली हैं वे माँ और जीजाजी और जेठजी भी आस लगाए बैठे हैं कि उनकी सास आएँ तो उनकी खातिरदारी करें"
माँ को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे मन में खुशी के लड्डू फूल रहे थे पर थोड़ी परेशान भी थी आज तक उसने बस अपने परिवार में, अपने बेटे और बेटी से संभोग किया था अब दूसरों के साथ करने में जहाँ वह सकुचा रही थी वहीं गरमा भी रही थी मैंने समझाया कि यहाँ तो बस एक लंड मिलता है, वहाँ तो दो और नये लंड मिलेंगे फिर बेटी के अलावा एक और बुर भी मिलेगी मज़ा करने को
माँ जल्द ही मान गयी इतना ही नहीं, फिर गरम होकर मुझपर चढ बैठी जब वह मुझे उपर से चोद रही थी तो मैंने उसे बताया कि समधन ने क्या कहा था "माँ, अभी चोद ले, अब दो दिन उपवास करना उधर वे लोग भी करने वाले हैं अब दावत शुरू होगी जब हम वहाँ पहूचेंगे, और उपवास के बाद और ज़ायक़ा आएगा साथ साथ खाने का
दो दिन हमने आराम किया कठिन था पर माँ ने अपने आप पर काबू रखा जब सामान क्या ले जाना है इसकी तैयारी करने लगी तो मैने बताया "अम्मा, बस दो जोड़ी कपड़े ले चलेंगे वे भी नहीं लगेंगे वहाँ कौन हमे कपड़े पहनने देगा?" माँ शरमा गयी चहरा लाल हो गया इतने दिन बाद माँ को शरमाते हुए देख कर बहुत अच्छा लगा
हम शनिवार सुबह निकलकर दोपहर को वहाँ पहूचे हमारा स्वागत जोरदार हुआ जीजाजी और जेठजी ने माँ के पैर छुए, इतना ही नहीं, लेट कर उसके पाँव चूम भी लिए माँ सकुचा गयी, वैसे माँ के पैर बहुत सुंदर हैं, एकदमा गोरे और नाज़ुक, किसी का भी मन करे उन्हें प्यार करने को, मैं तो अक्सर खेलता रहता हू माँ के चरणों से
दीदी माँ से गले मिली शरमाई हुई माँ ने बस उसका गाल चूम कर उसे अलग कर दिया "अरे समधनजी, इतने दिन बाद मिली हो, ज़रा बेटी की बालाएँ लो, उसे प्यार करो" शन्नो जी ने मज़ाक में कहा जीजाजी बोले "अरे माँ, वे अपनी बेटी से अकेले में मिलना चाहेंगी"
शन्नो जी माँ को गले लगाकर बोलीं "अब तो सब के सामने ही मिलना पड़ेगा भाई हम भी तो देखें माँ बेटी का मिलन" फिर शन्नो जी ने माँ को चूम लिया पहले गालों पर और फिर होंठों पर कस कर उसे बाँहों में जकडकर वे माँ की पीठ को प्यार से सहलाने लगीं माँ शरम से पानी पानी हो रही थी
रजत बोले "अरे अम्मा, अभी से ना जुट जाओ, इन्हें आराम कर लेने दो सिमर, इनको अपने कमरे में ले जाओ आप लोग नहा धो कर आराम कर लो"
क्रमशः………………
Re: कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का
ससुराल सिमर का—10
गतान्क से आगे……………
हम लोग सिमर के कमरे में गये वहाँ का बड़ा पलंग देख कर माँ भोंचक्की हो गयी "इतना बड़ा पलंग बेटी?"
"माँ, सब साथ सोते हैं इसपर, अब तो तुम दोनों भी आ गये हो" सिमर ने माँ की चुची दबाते हुए कहा फिर कस कर माँ को चूम लिया माँ भी उस से लिपट गयी और दोनों आपस में बुरी तरह चुम्मा चाटी करने लगीं माँ बार बार कह रही थी "मेरी बच्ची, मेरी बेटी, मैं तो तरस गयी तेरे साथ को" मैंने मज़ाक किया "उसके साथ को या उसकी बुर को?"
सिमर दीदी ने किसी तरह उसे अलग किया "रुक जा माँ, मन तो होता है कि अभी तेरी बुर में घुस जाऊ पर ये लोग मुझे मार ही डालेंगे दो दिन से सब तेरा इंतजार कर रहे हैं सबकी चूते गरम हैं और लंड फनफना रहे हैं आज रात तक रुक जाओ " कहकर सिमर चली गयी अपनी माँ बहन की चुम्मा चाटी देख कर मेरा भी खड़ा हो गया था पर मैंने किसी तरह सब्र किया
हम नहाए और सो गये देर शाम को उठे सिमर चाय ले आई उसने खूब सिंगार किया था और बड़ी मस्त साड़ी और चोली पहने थी उसने माँ को भी कहा कि ठीक से तैयार हो "अम्मा, मैं ये शिफान की साड़ी लाई हू, पहन लेना और तेरी नाप की ये काली ब्रा और पैंटी है, वो भी पहन ले तू तो अपने पुराने कपड़े साथ लाई होगी"
माँ ने मेरी ओर देखा "इसी ने कहा था कि कपड़े मत ले चल" मैंने दीदी को कारण बताया तो दीदी मुस्काराकर बोली "बात ठीक है, आज के बाद अम्मा इस कमरे के बाहर कम ही निकलेगी और यहाँ पूरी नंगी रहेगी इनके कमरे के बाहर कतार होगी इनका प्रसाद पाने वाले लोगों की पर आज सब के सामने मैं अपनी ससुराल में दिखाना चाहती हू कि अम्मा कितनी सुंदर है"
तैयार होकर हम नीचे खाने आए सभी सज धज कर बैठे थे मैंने रजत ने और जीजाजी ने तो बस सिल्क के कुर्ते पाजामे पहने थे शन्नो ज़ीने सलवार कमीज़ पहनी थी उनके मोटे बदन पर भी वह फॅब रही थी क्योंकि शायद कस के ब्रा बाँधी थी इसलिए उनकी उस तंग कमीज़ में से उनके विशाल चुचियाँ तो पहाड़ों जैसी तन कर खडी थीं तंग सलवार में से उनके मोटे चूतड उभर कर दिख रहे थे
दीदी साड़ी ब्लओज़ में बहुत खूबसूरत लग रही थी स्लीवलेस ब्लओज़ के कारण उसकी गोरी चिकनी बाहें निखर आई थीं माँ तो आज ऐसी लग रही थी कि मेरी भी नज़र नहीं हटती थी, लगता था कि क्या यही मेरी माँ है? बात यह थी कि अब माँ को कपड़ों में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी उसे तो एक बात अच्छी लगती थी कि अपने बेटे और बेटी से चिपट कर कैसे बेडरूम में टाइम बिताया जाए इसलिए वह कपड़ों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी आज बहुत दिन बाद वह ठीक से सजी थी
माँ ने जूडा बाँध लिया था और उसमें वेणी गूँध ली थी दीदी के ज़िद करने पर हल्का लिपस्टिक लगा लिया था जिससे उसके होंठ गुलाब की कली जैसे मोहक लग रहे थे लो कट ब्लओज़ में से उसकी काली ब्रा उसके गोरे रंग पर मस्त जच रही थी माँ का बदन अब भी काफ़ी छरहरा था, उसकी चुचियाँ छरहरे बदन के कारण और उठ कर दिखती थीं
"आहा, हमारी समधनजी तो परी हैं एकदम सिमर, ये तेरी माँ नहीं बड़ी बहन लगती हैं अरे इनकी तो भी शादी करा दो ऐसा रूप है इनका" शन्नो जी ने चुटकी ली वे भूखी मदभरी आँखों से माँ के रूप को घूर रही थीं
"आज रात शादी भी हो जाएगी माँ, सब के साथ, और फिर सुहाग रात भी मना लेंगे"रजत ने कहा
माँ शरमाती रही पर मन में बहुत खुश थी उसका हाथ बार बार अपनी कमर के नीचे साड़ी ठीक करने पहूच जाता मैं समझ गया, चूत कुलबुला रही थी और ना रह कर माँ उसे बार बार हाथ लगा रही थी खाना खाने तक ऐसा ही हँसी मज़ाक चलता रहा खाने के बाद सब दीदी के कमरे में इकठ्ठ हुए
शन्नो जी ने अपने बेटों को कुछ इशारा किया वे दोनों जाकर दीदी के कपड़े उतारने लगे खुद शन्नो जी मेरे पास आईं और मेरे कपड़े उतार दिए फिर हम दोनों को कुर्सी में नंगा बिठा कर शन्नो जी की चार पाँच बड़ी साइज़ की ब्रेसियरों से बाँध दिया गया
गतान्क से आगे……………
हम लोग सिमर के कमरे में गये वहाँ का बड़ा पलंग देख कर माँ भोंचक्की हो गयी "इतना बड़ा पलंग बेटी?"
"माँ, सब साथ सोते हैं इसपर, अब तो तुम दोनों भी आ गये हो" सिमर ने माँ की चुची दबाते हुए कहा फिर कस कर माँ को चूम लिया माँ भी उस से लिपट गयी और दोनों आपस में बुरी तरह चुम्मा चाटी करने लगीं माँ बार बार कह रही थी "मेरी बच्ची, मेरी बेटी, मैं तो तरस गयी तेरे साथ को" मैंने मज़ाक किया "उसके साथ को या उसकी बुर को?"
सिमर दीदी ने किसी तरह उसे अलग किया "रुक जा माँ, मन तो होता है कि अभी तेरी बुर में घुस जाऊ पर ये लोग मुझे मार ही डालेंगे दो दिन से सब तेरा इंतजार कर रहे हैं सबकी चूते गरम हैं और लंड फनफना रहे हैं आज रात तक रुक जाओ " कहकर सिमर चली गयी अपनी माँ बहन की चुम्मा चाटी देख कर मेरा भी खड़ा हो गया था पर मैंने किसी तरह सब्र किया
हम नहाए और सो गये देर शाम को उठे सिमर चाय ले आई उसने खूब सिंगार किया था और बड़ी मस्त साड़ी और चोली पहने थी उसने माँ को भी कहा कि ठीक से तैयार हो "अम्मा, मैं ये शिफान की साड़ी लाई हू, पहन लेना और तेरी नाप की ये काली ब्रा और पैंटी है, वो भी पहन ले तू तो अपने पुराने कपड़े साथ लाई होगी"
माँ ने मेरी ओर देखा "इसी ने कहा था कि कपड़े मत ले चल" मैंने दीदी को कारण बताया तो दीदी मुस्काराकर बोली "बात ठीक है, आज के बाद अम्मा इस कमरे के बाहर कम ही निकलेगी और यहाँ पूरी नंगी रहेगी इनके कमरे के बाहर कतार होगी इनका प्रसाद पाने वाले लोगों की पर आज सब के सामने मैं अपनी ससुराल में दिखाना चाहती हू कि अम्मा कितनी सुंदर है"
तैयार होकर हम नीचे खाने आए सभी सज धज कर बैठे थे मैंने रजत ने और जीजाजी ने तो बस सिल्क के कुर्ते पाजामे पहने थे शन्नो ज़ीने सलवार कमीज़ पहनी थी उनके मोटे बदन पर भी वह फॅब रही थी क्योंकि शायद कस के ब्रा बाँधी थी इसलिए उनकी उस तंग कमीज़ में से उनके विशाल चुचियाँ तो पहाड़ों जैसी तन कर खडी थीं तंग सलवार में से उनके मोटे चूतड उभर कर दिख रहे थे
दीदी साड़ी ब्लओज़ में बहुत खूबसूरत लग रही थी स्लीवलेस ब्लओज़ के कारण उसकी गोरी चिकनी बाहें निखर आई थीं माँ तो आज ऐसी लग रही थी कि मेरी भी नज़र नहीं हटती थी, लगता था कि क्या यही मेरी माँ है? बात यह थी कि अब माँ को कपड़ों में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी उसे तो एक बात अच्छी लगती थी कि अपने बेटे और बेटी से चिपट कर कैसे बेडरूम में टाइम बिताया जाए इसलिए वह कपड़ों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी आज बहुत दिन बाद वह ठीक से सजी थी
माँ ने जूडा बाँध लिया था और उसमें वेणी गूँध ली थी दीदी के ज़िद करने पर हल्का लिपस्टिक लगा लिया था जिससे उसके होंठ गुलाब की कली जैसे मोहक लग रहे थे लो कट ब्लओज़ में से उसकी काली ब्रा उसके गोरे रंग पर मस्त जच रही थी माँ का बदन अब भी काफ़ी छरहरा था, उसकी चुचियाँ छरहरे बदन के कारण और उठ कर दिखती थीं
"आहा, हमारी समधनजी तो परी हैं एकदम सिमर, ये तेरी माँ नहीं बड़ी बहन लगती हैं अरे इनकी तो भी शादी करा दो ऐसा रूप है इनका" शन्नो जी ने चुटकी ली वे भूखी मदभरी आँखों से माँ के रूप को घूर रही थीं
"आज रात शादी भी हो जाएगी माँ, सब के साथ, और फिर सुहाग रात भी मना लेंगे"रजत ने कहा
माँ शरमाती रही पर मन में बहुत खुश थी उसका हाथ बार बार अपनी कमर के नीचे साड़ी ठीक करने पहूच जाता मैं समझ गया, चूत कुलबुला रही थी और ना रह कर माँ उसे बार बार हाथ लगा रही थी खाना खाने तक ऐसा ही हँसी मज़ाक चलता रहा खाने के बाद सब दीदी के कमरे में इकठ्ठ हुए
शन्नो जी ने अपने बेटों को कुछ इशारा किया वे दोनों जाकर दीदी के कपड़े उतारने लगे खुद शन्नो जी मेरे पास आईं और मेरे कपड़े उतार दिए फिर हम दोनों को कुर्सी में नंगा बिठा कर शन्नो जी की चार पाँच बड़ी साइज़ की ब्रेसियरों से बाँध दिया गया