हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है
Re: हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है
वह उसके खुले और मजाकिया अंदाजपर मनही मन मुस्कुरा रही थी. उसने उसके बारेमेंभी इंटरनेटपर सर्च कर जानकारी इकट्ठा की यह जानकर उसके खयालमें आगया था की वह भी उसके बारेमें उतनाही सिरीयस है.
” तूमने तुम्हारी उम्र नही बताई ?…” उसने सवाल किया.
” मैने मेरे मेल ऍड्रेसकी जानकारीमें … मेरी असली उम्र डाली हूई है …” उसका उधरसे मेसेज आया.
उसके इस जवाबसे उसे अहसास हूवा की वाकई वह बाकी लोगोसे कुछ हटके है.
विवेक कॉम्प्यूटरके सामने बैठकर कुछ पढ रहा था. तभी उसका दोस्त धीरेसे, कोई आवाज ना हो इसका ध्यान रखते हूए, उसके पिछे आकर खडा हो गया. काफी समय तक जॉनी विवेकका क्या चल रहा है यह समझनेकी कोशीश करते रहा.
” क्या गुरु… कहां तक पहूंच गई है तुम्हारी प्रेम कहानी ? ” जॉनीने एकदमसे उसके कंधे झंझोरते हूए सवाल पुछा.
विवेक तो एकदम चौंक गया और हडबडाहटमें मॉनीटरपर दिख रही विंडोज मिनीमाईझ करने लगा.
जोरसे ठहाका लगाते हूए जॉनीने कहा , ” छुपाकर कोई फायदा नही … मै सबकुछ पढ चूका हूं ”.
विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छिपानेका प्रयास करते हूए फिरसे मॉनिटरपर सारी विंडोज मॅक्सीमाईज करते हूए बोला, ” देख तो .. उसने मेलके साथ क्या अटॅचमेंट भेजी है ”
” मतलब आग बराबर दोनो तरफ लगी हूई है …. वैसे उस चिडीयाका कुछ नाम तो होगा… जिसने हमारे विवेक का दिल उडाया है” जॉनीने पुछा.
” अंजली” विवेकका चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था.
” देख देख कितना शर्मा रहा है ” जॉनी उसे छेडते हूए बोला.
” देखूतो … क्या भेजा है उसने ?…” जॉनीने उसे आगे पुछा.
जॉनी बगलमें रखे स्टूलपर बैठकर पढने लगा तो विवेक उसे अंजलीने अटॅच कर भेजे उस सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅमके बारेमें जानकारी देने लगा –
” यह एक जॅपनीज सॉफ्टवेअर इंजीनिअरने लिखा हुवा सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅम है … इस प्रोग्रॅमके लिए रिफ्लेक्शन टेक्नॉलॉजीजका इस्तेमाल किया गया है. जब हम कॉम्प्यूटरके मॉनिटरके सामने बैठे होते है तब जो रोशनी अपने चेहरेपर पडती है वह अलग अलग रंगोमें विभाजीत होकर मॉनिटरपर परावर्तीत होती है. इस सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅमद्वारा परावर्तीत हूए रोशनीकी तिव्रता एकत्रीत कर उसे इस टेक्नॉलॉजीद्वारा फोटोग्राफमें परिवर्तीत किया जा सकता है. मतलब अगर आप इस प्रोग्रॅमको रन करोगे तो मॉनिटरपर पडे परिवर्तनके तिव्रताको एकत्रित कर यह प्रोग्रॅम आपका फोटो बना सकता है. लेकिन फोटो निकालते वक्त इतना ध्यान रखना पडता है की आप मॉनिटरके एकदम सामने, समांतर और समानांतर बैठे हूए है. मॉनीटर और आपके चेहरेमें अगर कोई तिरछा कोण होगा तो फोटो ठिकसे नही आएगा.”
” मतलब यह सॉफ्टवेअर फोटो निकालता है ?” जॉनीने पुछा.
” हां … यह देखो अभी अभी थोडी देर पहले मैने मेरा फोटो निकाला हूवा है ” विवेकने कॉम्प्यूटरपर उसका अपना फोटो खोलकर दिखाया.
” अरे वा… एकदम बढीया … अगर ऐसा है तो हमे कॅमेरा खरीदनेकी जरुरतही नही पडेगी. ” जॉनीने खुशीके मारे कहा.
” वही तो ..”
” रुको … मुझे जरा देखने दो … मै मेरा फोटो निकालता हूं ..” जॉनी मॉनीटरके सामनेसे विवेकको उठाते हूए खुद उस स्टूलपर बैठते हूए बोला.
जॉनीने स्टूलपर बैठकर माऊस कर्सर मॉनीटरपर इधर उधर घुमाते हूए पुछा, ” हां अब क्या करना है. ?”
” कुछ नही … सिर्फ वह स्नॅपका बटन दबावो … लेकिन रुको .. पहले सिधे ठिकसे बैठो…” विवेकने कहा.
जॉनी सिधा बैठकर माऊसका कर्सर ‘स्नॅप’ बटनके पास ले जाकर बटन दबाने लगा.
” स्माईल प्लीज ” विवेकने उसे टोका.
जॉनीने अपने चेहरेपर जितनी हो सकती है उतनी हंसी लानेकी कोशीश की.
” रेडी … नाऊ प्रेस द बटन” विवेक
जॉनीने ‘स्नॅप’ बटनपर माऊस क्लीक किया. मॉनीटरवर एक-दो पलके लिए निला ‘प्रोसेसींग’ बार आगे बढता हूवा दिखाई दिया और फिर मॉनीटरपर फोटो दिखाई देने लगा. जैसेही मॉनीटरवर फोटो आगया विवेक जोर जोरसे हंसने लगा और जॉनीका चेहरा तो देखने लायक हो गया था. मॉनीटरपर एक हंसते हूए बंदरका फोटो आ गया था.
दिनबदीन अंजली और विवेकका चॅटींग, मेल करना बढताही जा रहा था. मेलकी लंबाई चौडाई बढ रही थी. एकदुसरेको फोटो भेजना, जोक्स भेजना, पझल्स भेजना … मेल भेजनेके न जाने कितने बहाने उनके पास थे. धीरे धीरे अंजली को अहसास होने लगा था की वह उससे प्यार करने लगी है. लेकिन प्यार का इजहार उसने विवेक के पास या विवेक ने अंजलीके पास कभी नही किया था. उनके हर मेलके साथ… मेल मे लिखे हर वाक्य के साथ… उनके हर फोटो के साथ… उनके व्यक्तीत्व का एक एक पहेलू उन्हे पता चल रहा था. और उतनी ही वह उसमें डूबती जा रही थी. अंजलीने भी अपने आपको कभी रोका नही. या यू कहीए खुद को रोकने से खुदको उसके प्यारमें पुरी तरह डूबनेमें ही उसे आनंद मिल रहा हो. लेकिन प्यारके इजहार के बारे में वह बहूत फूंक फूंककर अपने कदम आगे बढा रही थी. उसके पास बहाना था की उसने अब तक उसे आमने सामने देखा नही था. वैसे उसके प्रेम का अहसास उसे नही था ऐसे नही. लेकिन विवेक भी प्यारके इजहारके बारेमें शायद उतनाही खबरदारी बरत रहा था. शायद उसने भी उसे अबतक आमने सामने न देखनेके कारण. वह मिलनेके बाद मुकर तो नही जाएगा? इसके बारेमें वह एकदम बेफिक्र थी. क्यो की विश्वामित्रको भी ललचाए ऐसा उसका सौंदर्य था.
” तूमने तुम्हारी उम्र नही बताई ?…” उसने सवाल किया.
” मैने मेरे मेल ऍड्रेसकी जानकारीमें … मेरी असली उम्र डाली हूई है …” उसका उधरसे मेसेज आया.
उसके इस जवाबसे उसे अहसास हूवा की वाकई वह बाकी लोगोसे कुछ हटके है.
विवेक कॉम्प्यूटरके सामने बैठकर कुछ पढ रहा था. तभी उसका दोस्त धीरेसे, कोई आवाज ना हो इसका ध्यान रखते हूए, उसके पिछे आकर खडा हो गया. काफी समय तक जॉनी विवेकका क्या चल रहा है यह समझनेकी कोशीश करते रहा.
” क्या गुरु… कहां तक पहूंच गई है तुम्हारी प्रेम कहानी ? ” जॉनीने एकदमसे उसके कंधे झंझोरते हूए सवाल पुछा.
विवेक तो एकदम चौंक गया और हडबडाहटमें मॉनीटरपर दिख रही विंडोज मिनीमाईझ करने लगा.
जोरसे ठहाका लगाते हूए जॉनीने कहा , ” छुपाकर कोई फायदा नही … मै सबकुछ पढ चूका हूं ”.
विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छिपानेका प्रयास करते हूए फिरसे मॉनिटरपर सारी विंडोज मॅक्सीमाईज करते हूए बोला, ” देख तो .. उसने मेलके साथ क्या अटॅचमेंट भेजी है ”
” मतलब आग बराबर दोनो तरफ लगी हूई है …. वैसे उस चिडीयाका कुछ नाम तो होगा… जिसने हमारे विवेक का दिल उडाया है” जॉनीने पुछा.
” अंजली” विवेकका चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था.
” देख देख कितना शर्मा रहा है ” जॉनी उसे छेडते हूए बोला.
” देखूतो … क्या भेजा है उसने ?…” जॉनीने उसे आगे पुछा.
जॉनी बगलमें रखे स्टूलपर बैठकर पढने लगा तो विवेक उसे अंजलीने अटॅच कर भेजे उस सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅमके बारेमें जानकारी देने लगा –
” यह एक जॅपनीज सॉफ्टवेअर इंजीनिअरने लिखा हुवा सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅम है … इस प्रोग्रॅमके लिए रिफ्लेक्शन टेक्नॉलॉजीजका इस्तेमाल किया गया है. जब हम कॉम्प्यूटरके मॉनिटरके सामने बैठे होते है तब जो रोशनी अपने चेहरेपर पडती है वह अलग अलग रंगोमें विभाजीत होकर मॉनिटरपर परावर्तीत होती है. इस सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅमद्वारा परावर्तीत हूए रोशनीकी तिव्रता एकत्रीत कर उसे इस टेक्नॉलॉजीद्वारा फोटोग्राफमें परिवर्तीत किया जा सकता है. मतलब अगर आप इस प्रोग्रॅमको रन करोगे तो मॉनिटरपर पडे परिवर्तनके तिव्रताको एकत्रित कर यह प्रोग्रॅम आपका फोटो बना सकता है. लेकिन फोटो निकालते वक्त इतना ध्यान रखना पडता है की आप मॉनिटरके एकदम सामने, समांतर और समानांतर बैठे हूए है. मॉनीटर और आपके चेहरेमें अगर कोई तिरछा कोण होगा तो फोटो ठिकसे नही आएगा.”
” मतलब यह सॉफ्टवेअर फोटो निकालता है ?” जॉनीने पुछा.
” हां … यह देखो अभी अभी थोडी देर पहले मैने मेरा फोटो निकाला हूवा है ” विवेकने कॉम्प्यूटरपर उसका अपना फोटो खोलकर दिखाया.
” अरे वा… एकदम बढीया … अगर ऐसा है तो हमे कॅमेरा खरीदनेकी जरुरतही नही पडेगी. ” जॉनीने खुशीके मारे कहा.
” वही तो ..”
” रुको … मुझे जरा देखने दो … मै मेरा फोटो निकालता हूं ..” जॉनी मॉनीटरके सामनेसे विवेकको उठाते हूए खुद उस स्टूलपर बैठते हूए बोला.
जॉनीने स्टूलपर बैठकर माऊस कर्सर मॉनीटरपर इधर उधर घुमाते हूए पुछा, ” हां अब क्या करना है. ?”
” कुछ नही … सिर्फ वह स्नॅपका बटन दबावो … लेकिन रुको .. पहले सिधे ठिकसे बैठो…” विवेकने कहा.
जॉनी सिधा बैठकर माऊसका कर्सर ‘स्नॅप’ बटनके पास ले जाकर बटन दबाने लगा.
” स्माईल प्लीज ” विवेकने उसे टोका.
जॉनीने अपने चेहरेपर जितनी हो सकती है उतनी हंसी लानेकी कोशीश की.
” रेडी … नाऊ प्रेस द बटन” विवेक
जॉनीने ‘स्नॅप’ बटनपर माऊस क्लीक किया. मॉनीटरवर एक-दो पलके लिए निला ‘प्रोसेसींग’ बार आगे बढता हूवा दिखाई दिया और फिर मॉनीटरपर फोटो दिखाई देने लगा. जैसेही मॉनीटरवर फोटो आगया विवेक जोर जोरसे हंसने लगा और जॉनीका चेहरा तो देखने लायक हो गया था. मॉनीटरपर एक हंसते हूए बंदरका फोटो आ गया था.
दिनबदीन अंजली और विवेकका चॅटींग, मेल करना बढताही जा रहा था. मेलकी लंबाई चौडाई बढ रही थी. एकदुसरेको फोटो भेजना, जोक्स भेजना, पझल्स भेजना … मेल भेजनेके न जाने कितने बहाने उनके पास थे. धीरे धीरे अंजली को अहसास होने लगा था की वह उससे प्यार करने लगी है. लेकिन प्यार का इजहार उसने विवेक के पास या विवेक ने अंजलीके पास कभी नही किया था. उनके हर मेलके साथ… मेल मे लिखे हर वाक्य के साथ… उनके हर फोटो के साथ… उनके व्यक्तीत्व का एक एक पहेलू उन्हे पता चल रहा था. और उतनी ही वह उसमें डूबती जा रही थी. अंजलीने भी अपने आपको कभी रोका नही. या यू कहीए खुद को रोकने से खुदको उसके प्यारमें पुरी तरह डूबनेमें ही उसे आनंद मिल रहा हो. लेकिन प्यारके इजहार के बारे में वह बहूत फूंक फूंककर अपने कदम आगे बढा रही थी. उसके पास बहाना था की उसने अब तक उसे आमने सामने देखा नही था. वैसे उसके प्रेम का अहसास उसे नही था ऐसे नही. लेकिन विवेक भी प्यारके इजहारके बारेमें शायद उतनाही खबरदारी बरत रहा था. शायद उसने भी उसे अबतक आमने सामने न देखनेके कारण. वह मिलनेके बाद मुकर तो नही जाएगा? इसके बारेमें वह एकदम बेफिक्र थी. क्यो की विश्वामित्रको भी ललचाए ऐसा उसका सौंदर्य था.
Re: हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है
अंजली अपने कॉम्प्यूटरपर चाटींग कर रही थी और उसके टेबलके सामने कुर्सीपर शरवरी बैठी हूई थी. कॉम्प्यूटरपर आई एक मेल पढते हूए अंजली बोली,
” शरवरी देख तो विवेकने मेलपर क्या भेजा है? ”
शरवरी कुर्सीसे उठकर अंजलीके पिछे जाकर खडी होगई और मॉनिटरकी तरफ ध्यान देकर देखने लगी. इन दिनो वैसे विवेक और अंजलीका कुछ ना कुछ आदान प्रदान चलता ही रहता था. और शरवरीको भी उनका प्रेमभरा आदान प्रदान देखने में या पढनेमें बडा मजा आता था. उसने मॉनीटरपर देखा की एक छोटा चायनीज बच्चा बडे मजेदार तरीकेसे डांस कर रहा था. डांस करते हूए वह बच्चा एकदमसे शूशू करने लगा तो दोनोही बडी जोरसे हंसने लगी.
” पता नही वह कहां कहांसे यह सब ढूंढता है .” अंजलीने कहा.
” सही है… मै तो इंटरनेटपर कितना सर्फ करती हूं लेकिन यह ऍनीनेशन अबतक मेरे देखनेमें कैसे नही आया. ” शरवरीने कहा.
तभी एक बुजुर्ग आदमी दरवाजेपर नॉक कर अंदर आया. वह आदमी आतेही अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान उस आदमीपर केंद्रीत किया. शरवरी वहांसे बाहर चली गई. वह बुजुर्ग आदमी टेबलके सामने कुर्सीपर बैठतेही अंजलीने कहा,
” बोलो आंनंदजी..”
” मॅडम … इंटेल कंपनीने अपने सारे कोलॅबरेटर्स के साथ एक मिटींग रखी है. अभी थोडीही देर पहले उनका फॅक्स आया है…. उन्होने मिटींगका दिन और व्हेन्यू हमें भेजा है … और साथही मिटींगका अजेंडाभी भेजा है. …” आनंदजीने जानकारी दी.
” कहां रखी है मिटींग ?” अंजलीने पुछा.
” मुंबई … 25 तारखको … यानीकी .. इस सोमवारको ” आनंदजीने कॅलेडरकी तरफ देखते हूए कहा.
अंजलीभी कॅलेंडरकी तरफ देखते हूए कुछ सोचते हूए बोली,
” ठिक है कन्फर्मेशन फॅक्स भेज दो … और मोनाको मेरे सारे फ्लाईट और होटल बुकींग डिटेल्स दे दो”
” ठिक है मॅडम” आनंदजी उठकर खडे होते हूए बोले.
जैसे आनंदजी वहांसे चले गए वैसे अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान कॉम्प्यूटरपर केंद्रीत कर दिया. उसके चेहरेपर खुशी समाए नही समा रही थी. झटसे उसने मेल प्रोग्रॅम खोला और जल्दी जल्दी वह मेल टाईप करने लगी –
” विवेक … ऐसा लगता है की जल्दीही अपने नसिबमें मिलना लिखा है …पुछो कैसे? लेकिन मै अभी नही बताऊंगी. क्योंकी कुछ तो क्लायमॅक्स रहना चाहिए ना ? अगले मेलमे सारे डिटेल्स भेजूंगी … बाय फॉर नाऊ… टेक केअर .. —अंजली…”
अंजलीने फटाफट कॉम्प्यूटरके दो चार बटन्स दबाकर आखिर ऐंन्टर दबाया. कॉम्प्यूटरके मॉनीटरपर मेसेज आ गया – ‘मेल सेन्ट’
विवेक सायबर कॅफेमें अपने कॉम्प्यूटरपर बैठा था. फटाफट हाथकी सफाई किए जैसे उसने गुगल मेल खोलतेही उसे अंजलीकी मेल आई हूई दिखाई दी. उसका चेहरा खुशीसे दमकने लगा. उसने एक पलभी ना गवांते हूए झटसे डबल क्लीक करते हूए वह मेल खोली और उसे पढने लगा –
” विवेक … 25 को सुबह बारा बजे मै एक मिटींगके सिलसिलेमें मुंबई आ रही हूं … 12.30 बजे तक हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी… और फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00 बजे मिटींग अटेंड करुंगी…. मिटींग 3 से 4 बजेतक खत्म हो जाएगी … तुम मुझे बराबर 5.00 बजे वर्सोवा बिचपर मिलना … बाय फॉर नॉऊ… टेक केअर”
विवेकने मेल पढी और खुशीके मारे खडा होकर ” यस्स…” करके चिल्लाया.
सायबर कॅफेमें बैठे बाकी लोग क्या होगया करके उसकी तरफ आश्चर्यसे देखने लगे. जब उसने होशमें आकर बाकी लोगोंको अपनी तरफ आश्चर्यसे ताकते पाया वह शर्माकर निचे बैठ गया.
वह फिरसे अपने रिसर्चके सिलसिलेमें गुगल सर्च ईंजीनपर जानकारी ढुंढने लगा. लेकिन उसका ध्यान किसी चिजमें नही लग रहा था. कब एक बार वह दिन आता है , कब अंजली मुंबइको आती है और कब उसे वह वर्सोवा बिचपर मिलता है ऐसा उसे हो गया था.
‘ वर्सोवा बिच’ दिमागमें आगया लेकिन उस बिचकी तस्वीर उसके जहनमें नही आ रही थी. वर्सोवा बिचका नाम उसने सुना था लेकिन वह कभी वहां नही गया था. वैसे वह मुंबईमें रहकर पिएचडी कर तो रहा था लेकिन वह जादातर कभी घुमता नही था. मुंबईमें वह वैसे पहले पहले काफी घुमा था. लेकिन वर्सोवा बिचपर कभी नही गया था. अब यहां सायबर कॅफेमें बैठे बैठे क्या करेंगे यह सोचकर उसने गुगल सर्च ओपन किया और उसपर ‘वर्सोवा बिच’ सर्च स्ट्रींग दिया. इंटरनेटपर काफी जानकारी फोटोज और जानेके रास्ते मॅप्स अवतरीत हूए . उसने वह जानकारी पढकर जानेका रास्ता तय किया. अब और क्या करना चाहिए ? उसका दिमाग सुन्न हो गया था. चलो उसने भेजी हूई पुरानी मेल्स पढते है और उसने भेजे हूए फोटोज देखते है ऐसा सोचकर वह एक एक कर उसकी पुरानी मेल्स खोलने लगा. मेल्सकी तारीखसे उसके खयालमें आ गया की उनका यह ‘सिलसिला’ वैसे जादा पुराना नही था. आज लगभग 1 महिना हो गया था जब वह पहली बार उसे चॅटींगपर मिल गई थी. लेकिन उसे उनकी पहचान कैसे कितनी पुरानी लग रही थी. उन्होने एकदुसरेको भेजे मेल्स और फोटोजसे वैसे उन्हे एक दुसरेको जाननेका मौका मिला था और एक दुसरेके जहनमें उन्होने एकदुसरेकी एक तस्वीर बना रखी थी. वैसे उन्होने एकदुसरेके स्वभावकाभी एक अंदाजा लगाकर अपने अपने मनमें बसाया था.
” शरवरी देख तो विवेकने मेलपर क्या भेजा है? ”
शरवरी कुर्सीसे उठकर अंजलीके पिछे जाकर खडी होगई और मॉनिटरकी तरफ ध्यान देकर देखने लगी. इन दिनो वैसे विवेक और अंजलीका कुछ ना कुछ आदान प्रदान चलता ही रहता था. और शरवरीको भी उनका प्रेमभरा आदान प्रदान देखने में या पढनेमें बडा मजा आता था. उसने मॉनीटरपर देखा की एक छोटा चायनीज बच्चा बडे मजेदार तरीकेसे डांस कर रहा था. डांस करते हूए वह बच्चा एकदमसे शूशू करने लगा तो दोनोही बडी जोरसे हंसने लगी.
” पता नही वह कहां कहांसे यह सब ढूंढता है .” अंजलीने कहा.
” सही है… मै तो इंटरनेटपर कितना सर्फ करती हूं लेकिन यह ऍनीनेशन अबतक मेरे देखनेमें कैसे नही आया. ” शरवरीने कहा.
तभी एक बुजुर्ग आदमी दरवाजेपर नॉक कर अंदर आया. वह आदमी आतेही अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान उस आदमीपर केंद्रीत किया. शरवरी वहांसे बाहर चली गई. वह बुजुर्ग आदमी टेबलके सामने कुर्सीपर बैठतेही अंजलीने कहा,
” बोलो आंनंदजी..”
” मॅडम … इंटेल कंपनीने अपने सारे कोलॅबरेटर्स के साथ एक मिटींग रखी है. अभी थोडीही देर पहले उनका फॅक्स आया है…. उन्होने मिटींगका दिन और व्हेन्यू हमें भेजा है … और साथही मिटींगका अजेंडाभी भेजा है. …” आनंदजीने जानकारी दी.
” कहां रखी है मिटींग ?” अंजलीने पुछा.
” मुंबई … 25 तारखको … यानीकी .. इस सोमवारको ” आनंदजीने कॅलेडरकी तरफ देखते हूए कहा.
अंजलीभी कॅलेंडरकी तरफ देखते हूए कुछ सोचते हूए बोली,
” ठिक है कन्फर्मेशन फॅक्स भेज दो … और मोनाको मेरे सारे फ्लाईट और होटल बुकींग डिटेल्स दे दो”
” ठिक है मॅडम” आनंदजी उठकर खडे होते हूए बोले.
जैसे आनंदजी वहांसे चले गए वैसे अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान कॉम्प्यूटरपर केंद्रीत कर दिया. उसके चेहरेपर खुशी समाए नही समा रही थी. झटसे उसने मेल प्रोग्रॅम खोला और जल्दी जल्दी वह मेल टाईप करने लगी –
” विवेक … ऐसा लगता है की जल्दीही अपने नसिबमें मिलना लिखा है …पुछो कैसे? लेकिन मै अभी नही बताऊंगी. क्योंकी कुछ तो क्लायमॅक्स रहना चाहिए ना ? अगले मेलमे सारे डिटेल्स भेजूंगी … बाय फॉर नाऊ… टेक केअर .. —अंजली…”
अंजलीने फटाफट कॉम्प्यूटरके दो चार बटन्स दबाकर आखिर ऐंन्टर दबाया. कॉम्प्यूटरके मॉनीटरपर मेसेज आ गया – ‘मेल सेन्ट’
विवेक सायबर कॅफेमें अपने कॉम्प्यूटरपर बैठा था. फटाफट हाथकी सफाई किए जैसे उसने गुगल मेल खोलतेही उसे अंजलीकी मेल आई हूई दिखाई दी. उसका चेहरा खुशीसे दमकने लगा. उसने एक पलभी ना गवांते हूए झटसे डबल क्लीक करते हूए वह मेल खोली और उसे पढने लगा –
” विवेक … 25 को सुबह बारा बजे मै एक मिटींगके सिलसिलेमें मुंबई आ रही हूं … 12.30 बजे तक हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी… और फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00 बजे मिटींग अटेंड करुंगी…. मिटींग 3 से 4 बजेतक खत्म हो जाएगी … तुम मुझे बराबर 5.00 बजे वर्सोवा बिचपर मिलना … बाय फॉर नॉऊ… टेक केअर”
विवेकने मेल पढी और खुशीके मारे खडा होकर ” यस्स…” करके चिल्लाया.
सायबर कॅफेमें बैठे बाकी लोग क्या होगया करके उसकी तरफ आश्चर्यसे देखने लगे. जब उसने होशमें आकर बाकी लोगोंको अपनी तरफ आश्चर्यसे ताकते पाया वह शर्माकर निचे बैठ गया.
वह फिरसे अपने रिसर्चके सिलसिलेमें गुगल सर्च ईंजीनपर जानकारी ढुंढने लगा. लेकिन उसका ध्यान किसी चिजमें नही लग रहा था. कब एक बार वह दिन आता है , कब अंजली मुंबइको आती है और कब उसे वह वर्सोवा बिचपर मिलता है ऐसा उसे हो गया था.
‘ वर्सोवा बिच’ दिमागमें आगया लेकिन उस बिचकी तस्वीर उसके जहनमें नही आ रही थी. वर्सोवा बिचका नाम उसने सुना था लेकिन वह कभी वहां नही गया था. वैसे वह मुंबईमें रहकर पिएचडी कर तो रहा था लेकिन वह जादातर कभी घुमता नही था. मुंबईमें वह वैसे पहले पहले काफी घुमा था. लेकिन वर्सोवा बिचपर कभी नही गया था. अब यहां सायबर कॅफेमें बैठे बैठे क्या करेंगे यह सोचकर उसने गुगल सर्च ओपन किया और उसपर ‘वर्सोवा बिच’ सर्च स्ट्रींग दिया. इंटरनेटपर काफी जानकारी फोटोज और जानेके रास्ते मॅप्स अवतरीत हूए . उसने वह जानकारी पढकर जानेका रास्ता तय किया. अब और क्या करना चाहिए ? उसका दिमाग सुन्न हो गया था. चलो उसने भेजी हूई पुरानी मेल्स पढते है और उसने भेजे हूए फोटोज देखते है ऐसा सोचकर वह एक एक कर उसकी पुरानी मेल्स खोलने लगा. मेल्सकी तारीखसे उसके खयालमें आ गया की उनका यह ‘सिलसिला’ वैसे जादा पुराना नही था. आज लगभग 1 महिना हो गया था जब वह पहली बार उसे चॅटींगपर मिल गई थी. लेकिन उसे उनकी पहचान कैसे कितनी पुरानी लग रही थी. उन्होने एकदुसरेको भेजे मेल्स और फोटोजसे वैसे उन्हे एक दुसरेको जाननेका मौका मिला था और एक दुसरेके जहनमें उन्होने एकदुसरेकी एक तस्वीर बना रखी थी. वैसे उन्होने एकदुसरेके स्वभावकाभी एक अंदाजा लगाकर अपने अपने मनमें बसाया था.
Re: हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है
वह अपने कल्पनानूसारही होगी की नही ?’ उसके दिमागमें एक प्रश्न उपस्थित हुवा.
या मिलनेके बाद मैने सोचे इसके विपरीत कोई अनजान… कोई कभी ना सोची होगी ऐसी एक व्यक्ती अपने सामने खडी हो जाएगी…
‘ चलो आमने सामने मिलनेके बाद कमसे कम यह सब शंकाए मिट जाएगी ‘ उसने उसका फोटो अल्बम देखते हूए सोचा.
अचानक उसे उसके पिछे कोई खडा है ऐसा अहसास हो गया. उसने पलटकर देखा तो जॉनी एक नटखट मुस्कुराहट धारण करते हूए उसकी तरफ देख रहा था.
” साले बस बात यहीतक पहूंची है तो यह हाल है … तुझे आजुबाजुकाभी कुछ दिखता नही… शादी होनेके बाद पता नही क्या होगा?” जॉनीने उसे छेडते हूए कहा.
” अरे… तुम कब आए ?” विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छुपाते हूए बोला.
” कमसे कम पुरा आधा घंटा हो गया होगा… ऐसा लगता है शादी होनेके बाद तु हमें जरुर भुल जाएगा ” जॉनी फिरसे उसे छेडते हूए बोला.
” अरे नही यार… ऐसा कैसे होगा ?… कमसे कम तुम्हे मै कैसे भूल पाऊंगा ?” विवेक उसके सामने आए हूए तोंदमें मुक्का मारनेका अविर्भाव करते हूए बोला.
अंजली वर्सोवा बीचपर आकर विवेककी राह देखने लगी. उसने फिरसे एकबार अपनी घडीकी तरफ देखा. विवेकके आनेको अभी वक्त था. इसलिए उसने समुंदरके किनारे खडे होकर दुरतक अपनी नजरे दौडाई. नजर दौडाते हूए उसके विचार जा चक्र भूतकालमें चला गया. उसके दिलमें अब उसकी बचपनकी यादे आने लगी…
वर्सोवा बीच यह अंजलीका मुंबईमें स्थित पसंदीदा स्थान था. बचपनमें वह उसके मां बापके साथ यहां अक्सर आया करती थी. उसे उसके मां बाप की आज बहुत याद आ रही थी. भलेही आज वह समुंदर का किनारा इतना साफ सुधरा नही था लेकिन उसके बचपनमें वह बहुत साफ सुधरा रहा करता था. सामने समुंदरके लहरोंका आवाज उसके दिलमें एक अजीबसी कसक पैदा कर रहा था.
उसने अपने कलाईपर बंधे घडीकी तरफ फिरसे देखा. विवेकको उसने शामके पांचका वक्त दिया था.
पांच तो कबके बज चूके थे … फिर वह अबतक कैसे नही पहूंचा ?…
उसके जहनमें एक सवाल उठा …
कही ट्रॅफिकमें तो नही फंस गया? …
मुंबईकी ट्रॅफिक में कब कोई और कहां फंस जाएं कुछ कहा नही जा सकता….
उसने लंबी आह भरते हुए फिरसे चारों ओर अपनी नजरे दौडाई.
सामने किनारेपर एक लडका समुंदरके किनारे रेतके साथ खेल रहा था. वह देखकर उसके विचार फिरसे भूतकालमें चले गए और फिर एक बार उसकी बचपनकी यादोंमे डूब गए.
वह तब लगभग 12-13 सालकी होगी जब वह अपने मां और पिताके साथ इसी बीचपर आई थी. वह लडका जहां खेल रहा था, लगभग वही कही रेतका किला बना रहे थे. तभी उसके पिताने कहा था,
” देखो अंजली उधर तो देखो…”
समुंदर के किनारे एक लडका कुछ चिज समुंदरके अंदर दुरतक फेंकनेका जीतोड प्रयास कर रहा था. वह लेकिन समुंदरकी लहरे उस चिजको फिरसे किनारेपर वापस लाती थी. वह लडका बार बार उस चिजको समुंदरमें बहुत दुरतक फेकनेकेका प्रयास करता था और बार बार वह लहरें उस चिजको किनारेपर लाकर छोडती थी.
फिर उसके पिताजीने अंजलीसे कहा –
” देखो अंजली वह लडका देखो … वह चिज वह समुंदरमें फेकनेकी कोशीश कर रहा है और वह वस्तू बार बार किनारेपर वापस आ रही है… अपने जिवनमेंभी दु:ख और सुखका ऐसेही होता है… आदमी जैसे जैसे अपने जिवनमें आए दुखको दुर करनेका प्रयास करता है… उस वक्त के लिए लगता है की दुख चला गया है और वह फिरसे वापस कभी नही आएगा… लेकिन दुखका उस चिज जैसाही रहता है … जितना तुम उसे दुर धकेलनेकी कोशीश करो वह फिरसे उतनेही जोरसे वापस आता है… अब देखो वह लडका थोडी देर बाद अपने खेलनेमें व्यस्त हो जाएगा… और वह उस चिजको पुरी तरहसे भूल जाएगा… फिर जब उसे उस चिजकी याद आएगी… वह चिज किनारेपर ढूंढकरभी नही मिलेगी… वैसेही आदमीने अगर दुखको जादा महत्व ना देते हूए … सुख और दूखका एकही अंदाजसे सामना किया तो उसे दुखसे तकलिफ नही होगी… …देअर विल बी पेन बट टू सफर ऑर नॉट टू सफर वील बी अप टू यू!”
उसे याद आ रहा था की उसके पिता कैसे उसे छोटी छोटी बातोंसे बहुत कुछ सिखकी बाते कह जाते थे.
जब अंजली अपनी पुरानी यादोंसे बाहर आ गई, उसके सामने विवेक खडा था. उंचा, गठीला शरीर, चेहरेपर हमेशा मुस्कान और उसकी हर एक हरकतसे दिखता उसका उत्साह. उसने देखे उसके फोटोसे वह बहुत अलग और मोहक लग रहा था. वे एकदुसरेसे पहली बारही मिल रहे थे इसलिए दोनोंके चेहरे खुशीसे दमक उठे थे. दोनों एकदुसरे की तरफ सिर्फ एकटक देखने लगे.
अंजली और विवेक दोनो न जाने कितनी देर सिर्फ एक दुसरे की तरफ ताक रहे थे. भलेही वे एकदुसरे को एक महिने से जानते थे लेकिन वे एक दुसरे के सामने पहली बार आ रहे थे. वैसे वे एकदुसरे को सिर्फ जानते ही नही थे तो उन्होने एक दुसरेको अच्छी तरह से समझ लिया था. एकदुसरे के स्वभाव की खुबीया या खामीयां वे भली भांती जानते थे. फिरभी एक दुसरे के सामने आते ही उन्हे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था. वे इतने चूप थे की मानो दो-दो तिन-तिन पेजेस की मेल करनेवाले वे हमही है क्या? ऐसी उन्हे आशंका आए. आखिर विवेकने ही पहल करते हूए शुरवात की,
या मिलनेके बाद मैने सोचे इसके विपरीत कोई अनजान… कोई कभी ना सोची होगी ऐसी एक व्यक्ती अपने सामने खडी हो जाएगी…
‘ चलो आमने सामने मिलनेके बाद कमसे कम यह सब शंकाए मिट जाएगी ‘ उसने उसका फोटो अल्बम देखते हूए सोचा.
अचानक उसे उसके पिछे कोई खडा है ऐसा अहसास हो गया. उसने पलटकर देखा तो जॉनी एक नटखट मुस्कुराहट धारण करते हूए उसकी तरफ देख रहा था.
” साले बस बात यहीतक पहूंची है तो यह हाल है … तुझे आजुबाजुकाभी कुछ दिखता नही… शादी होनेके बाद पता नही क्या होगा?” जॉनीने उसे छेडते हूए कहा.
” अरे… तुम कब आए ?” विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छुपाते हूए बोला.
” कमसे कम पुरा आधा घंटा हो गया होगा… ऐसा लगता है शादी होनेके बाद तु हमें जरुर भुल जाएगा ” जॉनी फिरसे उसे छेडते हूए बोला.
” अरे नही यार… ऐसा कैसे होगा ?… कमसे कम तुम्हे मै कैसे भूल पाऊंगा ?” विवेक उसके सामने आए हूए तोंदमें मुक्का मारनेका अविर्भाव करते हूए बोला.
अंजली वर्सोवा बीचपर आकर विवेककी राह देखने लगी. उसने फिरसे एकबार अपनी घडीकी तरफ देखा. विवेकके आनेको अभी वक्त था. इसलिए उसने समुंदरके किनारे खडे होकर दुरतक अपनी नजरे दौडाई. नजर दौडाते हूए उसके विचार जा चक्र भूतकालमें चला गया. उसके दिलमें अब उसकी बचपनकी यादे आने लगी…
वर्सोवा बीच यह अंजलीका मुंबईमें स्थित पसंदीदा स्थान था. बचपनमें वह उसके मां बापके साथ यहां अक्सर आया करती थी. उसे उसके मां बाप की आज बहुत याद आ रही थी. भलेही आज वह समुंदर का किनारा इतना साफ सुधरा नही था लेकिन उसके बचपनमें वह बहुत साफ सुधरा रहा करता था. सामने समुंदरके लहरोंका आवाज उसके दिलमें एक अजीबसी कसक पैदा कर रहा था.
उसने अपने कलाईपर बंधे घडीकी तरफ फिरसे देखा. विवेकको उसने शामके पांचका वक्त दिया था.
पांच तो कबके बज चूके थे … फिर वह अबतक कैसे नही पहूंचा ?…
उसके जहनमें एक सवाल उठा …
कही ट्रॅफिकमें तो नही फंस गया? …
मुंबईकी ट्रॅफिक में कब कोई और कहां फंस जाएं कुछ कहा नही जा सकता….
उसने लंबी आह भरते हुए फिरसे चारों ओर अपनी नजरे दौडाई.
सामने किनारेपर एक लडका समुंदरके किनारे रेतके साथ खेल रहा था. वह देखकर उसके विचार फिरसे भूतकालमें चले गए और फिर एक बार उसकी बचपनकी यादोंमे डूब गए.
वह तब लगभग 12-13 सालकी होगी जब वह अपने मां और पिताके साथ इसी बीचपर आई थी. वह लडका जहां खेल रहा था, लगभग वही कही रेतका किला बना रहे थे. तभी उसके पिताने कहा था,
” देखो अंजली उधर तो देखो…”
समुंदर के किनारे एक लडका कुछ चिज समुंदरके अंदर दुरतक फेंकनेका जीतोड प्रयास कर रहा था. वह लेकिन समुंदरकी लहरे उस चिजको फिरसे किनारेपर वापस लाती थी. वह लडका बार बार उस चिजको समुंदरमें बहुत दुरतक फेकनेकेका प्रयास करता था और बार बार वह लहरें उस चिजको किनारेपर लाकर छोडती थी.
फिर उसके पिताजीने अंजलीसे कहा –
” देखो अंजली वह लडका देखो … वह चिज वह समुंदरमें फेकनेकी कोशीश कर रहा है और वह वस्तू बार बार किनारेपर वापस आ रही है… अपने जिवनमेंभी दु:ख और सुखका ऐसेही होता है… आदमी जैसे जैसे अपने जिवनमें आए दुखको दुर करनेका प्रयास करता है… उस वक्त के लिए लगता है की दुख चला गया है और वह फिरसे वापस कभी नही आएगा… लेकिन दुखका उस चिज जैसाही रहता है … जितना तुम उसे दुर धकेलनेकी कोशीश करो वह फिरसे उतनेही जोरसे वापस आता है… अब देखो वह लडका थोडी देर बाद अपने खेलनेमें व्यस्त हो जाएगा… और वह उस चिजको पुरी तरहसे भूल जाएगा… फिर जब उसे उस चिजकी याद आएगी… वह चिज किनारेपर ढूंढकरभी नही मिलेगी… वैसेही आदमीने अगर दुखको जादा महत्व ना देते हूए … सुख और दूखका एकही अंदाजसे सामना किया तो उसे दुखसे तकलिफ नही होगी… …देअर विल बी पेन बट टू सफर ऑर नॉट टू सफर वील बी अप टू यू!”
उसे याद आ रहा था की उसके पिता कैसे उसे छोटी छोटी बातोंसे बहुत कुछ सिखकी बाते कह जाते थे.
जब अंजली अपनी पुरानी यादोंसे बाहर आ गई, उसके सामने विवेक खडा था. उंचा, गठीला शरीर, चेहरेपर हमेशा मुस्कान और उसकी हर एक हरकतसे दिखता उसका उत्साह. उसने देखे उसके फोटोसे वह बहुत अलग और मोहक लग रहा था. वे एकदुसरेसे पहली बारही मिल रहे थे इसलिए दोनोंके चेहरे खुशीसे दमक उठे थे. दोनों एकदुसरे की तरफ सिर्फ एकटक देखने लगे.
अंजली और विवेक दोनो न जाने कितनी देर सिर्फ एक दुसरे की तरफ ताक रहे थे. भलेही वे एकदुसरे को एक महिने से जानते थे लेकिन वे एक दुसरे के सामने पहली बार आ रहे थे. वैसे वे एकदुसरे को सिर्फ जानते ही नही थे तो उन्होने एक दुसरेको अच्छी तरह से समझ लिया था. एकदुसरे के स्वभाव की खुबीया या खामीयां वे भली भांती जानते थे. फिरभी एक दुसरे के सामने आते ही उन्हे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था. वे इतने चूप थे की मानो दो-दो तिन-तिन पेजेस की मेल करनेवाले वे हमही है क्या? ऐसी उन्हे आशंका आए. आखिर विवेकने ही पहल करते हूए शुरवात की,