"मिस्टर.कक्कर,मैं नही चाहता कि मेरे गुज़रे हुए बेटे को कोई धोखेबाज़ के रूप मे याद करे.",उन्होने अपना विज़िटिंग कार्ड कोट की जेब से निकाला & उसपे कुच्छ लिखा,"ये मेरा कार्ड है & इस्पे मेरे घर के फोन नंबर्स. भी मैने लिख दिए हैं.आप मुझे अकाउंट नंबर. दीजिए,कल ही उसमे 4 लाख रुपये जमा हो जाएँगे."
"ओके,मिस्टर.साक्शेणा.",कक्कर ने कार्ड लिया & हसरत भरी निगाह रीमा पे डाली.
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शाम ढले पंचमहल की उस पॉश कॉलोनी जिसका नाम सिविल लाइन्स था,मे 1 कार दाखिल हुई 1 पुराने मगर शानदार बंगल के सामने आकर रुक गयी.कार मे से विरेन्द्र साक्शेणा & रीमा उतरे तो अंदर से गेट खोल 1 बुज़ुर्ग सा आदमी बाहर आया.रीमा समझ गयी कि यही दर्शन है यानी दद्दा.
"ये सुमित्रा की नयी नर्स रीमा हैं,दर्शन.इन्हे इनका कमरा दिखा दो."
"आइए.",दर्शन जैसे उसे देख खुश नही हुआ था.
कमरे मे समान रख दर्शन बाहर जाने लगा तो रीमा ने उसे आवाज़ दी,"दद्दा!"
दर्शन चौंक कर घुमा,"तुम्हे कैसे पता कि मुझ से छ्होटे मुझे दद्दा बुलाते हैं?तुम तो अभी-2 आई हो."
रीमा सकपकाई पर उसने संभालते हुए पास के शेल्फ पे रखी 1 तस्वीर की ओर इशारा किया,"वाहा लिखा है ना.",तस्वीर मे दर्शन दो बच्चों के साथ खड़ा था & 1 बच्चे की लिखावट मे ही फोटो के नीचे स्केच पेन से तीनो के नाम लिखे थे.वो दोनो बच्चे शेखर & रवि थे.
"ओह्ह..",दर्शन के होटो पे मुस्कान आ गयी.
"मैं आपको दद्दा बुला सकती हू ना?"
"हां,नर्स जी."
"नर्स जी नही मेरा नाम रीमा है."
"अच्छा,रीमा जी."
"रीमा जी नही सिर्फ़ रीमा."
"अच्छा,रीमा.",दर्शन हंसता हुआ बाहर चला गया.
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थोड़ी देर बाद सुमित्रा जी के डॉक्टर डॉक्टर.वेर्मा आ गये.,"तो यही हैं नयी नर्स.हेलो,नर्स."
"हेलो,डॉक्टर."
"आओ,मैं आपको पेशेंट के बारे मे बता देता हू."
"चलिए,डॉक्टर."
"...तो रीमा,चूँकि ये खुद नही मूव कर सकती तो हमे इन्हे मूव करना पड़ता है नही तो बेड्सोरे होने का डर है.दिन मे हर 2 घंटे मे इनकी पोज़िशन बदल देना.हा रात मे सोते वक़्त इसकी ज़रूरत नही ..",डॉक्टर रीमा को समझा रहे थे,"ये है सारी दवाएँ & उनकी डोसेज.ओके.और कुच्छ पूच्छना है?"
"नही,डॉक्टर."
"वेरी गुड.मेरा नंबर.विरेन्द्र जी के पास है.कोई प्राब्लम हो तो कॉल मी.अब मैं चलता हू."
"बाइ,डॉक्टर."
-------------------------------------------------------------------------------सफ़र से थॅकी रीमा जब बिस्तर पे लेटी तो वो सोचने लगी कि तक़दीर भी उसके साथ क्या खेल खले रही है.जब तक पति ज़िंदा था तब तक वो ससुराल नही आई & अब पति की मौत के बाद वो यहा रह रही है.अपनी किस्मत पे 1 फीकी हँसी हंस वो करवट बदल नींद मे डूब गयी.
खिलोना compleet
Re: खिलोना
खिलोना पार्ट--4
वीरेन्द्रा साक्शेणा का बुंगला 2 मंज़िल था जिसकी उपर की मंज़िल खाली पड़ी हुई थी.नीचे की मंज़िल मे कदम रखते ही 1 बड़ा सा ड्रॉयिंग कम डाइनिंग हॉल था,डाइनिंग टेबल के पीछे लगे शीशे के दरवाज़े से घर के पीछे बना लॉन नज़र आता था.हॉल से बाए मूड 1 छ्होटा गलियारा था जिसके शुरू मे ही किचन था.गलियारा पार करने पे विरेन्द्र जी का कमरा था & उसके साथ वाला कमरा गेस्ट रूम रीमा को दिया गया था.हॉल से दाहिने मुड़ने पे उसी तरह का गलियारा था जिसके अंत मे 3 कमरे थे जिसमे से 1 शेखर का था.
विरेन्द्र जी के कमरे को कमरा ना कह के हॉल कहे तो बेहतर होगा.उस हॉल के 1 कोने मे सुमित्रा जी का बेड लगा था & उसके पास 1 मेज़ & 2 चेर्स रखी थी.1 पर्दे से हॉल को 2 हिस्से मे बाँटा गया था.सुमित्रा जी वाला हिस्सा कमरे की 1 चौथाई जगह मे था,बाकी हिस्से मे बीचो बीच 1 किंग साइज़ बेड था जिसके बगल मे 1 आराम कुर्सी लगी थी.उस बेड की दूसरी ओर 1 वॉल कॅबिनेट था जिसमे 1 टीवी,द्वड प्लेयर,म्यूज़िक सिस्टम & कुच्छ सजावट की चीज़े रखी थी.
रीमा को यहा आए 15 दिन हो गये थे & दर्शन से उसकी अच्छी बनने लगी थी,"बेटी,वो पिच्छली नर्स थी ना,या तो फोन पे लगी रहती थी या फिल्मी किताबें पढ़ती रहती थी,मालकिन की देख-भाल तो जैसे बस नाम के लिए करती थी,इसीलिए जब तुम आई तो मैने सोचा कि तुम भी उसी के जैसी होगी.पर मैं कितना ग़लत था."
रीमा किचन मे दर्शन के साथ लगी कुच्छ बना रही थी.सुमित्रा जी को डॉक्टर ने 1 डाइयेट चार्ट दिया था जिसे आज तक सब लोग आँख मुंडे फॉलो करते चले आ रहे थे.इधर वो बहुत कम खाने लगी थी & रीमा समझ गयी थी कि उन्हे रोज़ वही खाना खा के उकताहट हो गयी है सो उसने आज उनके लिए कुच्छ अलग बनाने की सोची.
बॅंगलुर से आने के बाद जब रीमा का पहली बार अपनी सास से सामना हुआ तो उनकी आँखो से आँसू झरने लगे थे पर ज़ुबान वैसे ही खामोश रही.रीमा की भी आँखे भर आई थी.जब पास जा के उनके सर पे हाथ फेरते हुए वो उनके गले लगी तब जा के उन्हे थोडा सुकून मिला.
"ये तो तैय्यार हो गया,दद्दा.मैं मा जी को खिलाके आती हू,फिर हम दोनो साथ मे खाएँगे."
"ठीक है,बिटिया."
दोपहर के 2:30 बज रहे थे.विरेंड्रा जी रोज़ 2 बजे दफ़्तर से घर लंच के लिए आते थे.रीमा जानबूझ कर इस वक़्त अपनी सास के कामो मे लगी रहती ताकि अपने ससुर से उसका सामना ना हो.वो उस के साथ ऐसे पेश आते थे जैसे की वो है ही नही.शायद ही कभी वो उस से बात करते थे,अगर ज़रूरत पड़ती तो दर्शन के ज़रिए कहलवाते.
सास को खिलाते हुए रीमा के कानो मे डाइनिंग एरिया मे हो रही बातचीत की आवाज़ आ रही थी.
"वाह,दर्शन आज तो सब्ज़ी बड़ी अच्छी बनाई है."
"ये दाद रीमा बेटी को दीजिए,मालिक.उसी ने बनाई है."
उस के बाद खामोशी छा गयी.
थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी कमरे मे दाखिल हुए,"आज तुमने भी खाना बनाया था?"
"जी.",रीमा ने 1 चम्मच अपनी सास के मुँह मे दिया.
"तुम सुमित्रा की नर्स हो & वही रहो तो अच्छा है,उसकी बहू बनाने की कोशिश नही करो."
गुस्से से रीमा का चेहरा तमतमा गया पर जब तक वो कुच्छ जवाब देती उसके ससुर बाहर चले गये थे.
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उसी रात शेखर आया.आते ही उसने दर्शन के पैर छुए,"जीते रहो,भाय्या.अगर इस बार भी 2 दीनो के लिए आए हो तो किसी होटेल मे चले जाओ."
"नही दद्दा,इस बार तो 20 दीनो के लिए आया हू,पर बीच-2 मे शहर से बाहर जाना पड़ेगा.",शेखर हंसा.
"फिर ठीक है.",दर्शन भी हंसता हुआ उसका समान उठाने लगा.
उसी वक़्त रीमा अपने कमरे से निकल हॉल मे पहुँची तो शेखर को देख ठिठक गयी,"नमस्ते.'
"आओ बेटी,यही शेखर भाय्या हैं,मालिक के बड़े लड़के...और ये रीमा बेटी है,भाय्या.मालकिन की नयी नर्स.",दर्शन समान लेकर उसके कमरे को चला गया.शेखर ने सवालिया निगाहो से रीमा को देखा.
"कैसी हो,रीमा?"
"ठीक हू."
"ह्म्म.पिताजी कमरे मे हैं?"
"जी."
वीरेन्द्रा साक्शेणा का बुंगला 2 मंज़िल था जिसकी उपर की मंज़िल खाली पड़ी हुई थी.नीचे की मंज़िल मे कदम रखते ही 1 बड़ा सा ड्रॉयिंग कम डाइनिंग हॉल था,डाइनिंग टेबल के पीछे लगे शीशे के दरवाज़े से घर के पीछे बना लॉन नज़र आता था.हॉल से बाए मूड 1 छ्होटा गलियारा था जिसके शुरू मे ही किचन था.गलियारा पार करने पे विरेन्द्र जी का कमरा था & उसके साथ वाला कमरा गेस्ट रूम रीमा को दिया गया था.हॉल से दाहिने मुड़ने पे उसी तरह का गलियारा था जिसके अंत मे 3 कमरे थे जिसमे से 1 शेखर का था.
विरेन्द्र जी के कमरे को कमरा ना कह के हॉल कहे तो बेहतर होगा.उस हॉल के 1 कोने मे सुमित्रा जी का बेड लगा था & उसके पास 1 मेज़ & 2 चेर्स रखी थी.1 पर्दे से हॉल को 2 हिस्से मे बाँटा गया था.सुमित्रा जी वाला हिस्सा कमरे की 1 चौथाई जगह मे था,बाकी हिस्से मे बीचो बीच 1 किंग साइज़ बेड था जिसके बगल मे 1 आराम कुर्सी लगी थी.उस बेड की दूसरी ओर 1 वॉल कॅबिनेट था जिसमे 1 टीवी,द्वड प्लेयर,म्यूज़िक सिस्टम & कुच्छ सजावट की चीज़े रखी थी.
रीमा को यहा आए 15 दिन हो गये थे & दर्शन से उसकी अच्छी बनने लगी थी,"बेटी,वो पिच्छली नर्स थी ना,या तो फोन पे लगी रहती थी या फिल्मी किताबें पढ़ती रहती थी,मालकिन की देख-भाल तो जैसे बस नाम के लिए करती थी,इसीलिए जब तुम आई तो मैने सोचा कि तुम भी उसी के जैसी होगी.पर मैं कितना ग़लत था."
रीमा किचन मे दर्शन के साथ लगी कुच्छ बना रही थी.सुमित्रा जी को डॉक्टर ने 1 डाइयेट चार्ट दिया था जिसे आज तक सब लोग आँख मुंडे फॉलो करते चले आ रहे थे.इधर वो बहुत कम खाने लगी थी & रीमा समझ गयी थी कि उन्हे रोज़ वही खाना खा के उकताहट हो गयी है सो उसने आज उनके लिए कुच्छ अलग बनाने की सोची.
बॅंगलुर से आने के बाद जब रीमा का पहली बार अपनी सास से सामना हुआ तो उनकी आँखो से आँसू झरने लगे थे पर ज़ुबान वैसे ही खामोश रही.रीमा की भी आँखे भर आई थी.जब पास जा के उनके सर पे हाथ फेरते हुए वो उनके गले लगी तब जा के उन्हे थोडा सुकून मिला.
"ये तो तैय्यार हो गया,दद्दा.मैं मा जी को खिलाके आती हू,फिर हम दोनो साथ मे खाएँगे."
"ठीक है,बिटिया."
दोपहर के 2:30 बज रहे थे.विरेंड्रा जी रोज़ 2 बजे दफ़्तर से घर लंच के लिए आते थे.रीमा जानबूझ कर इस वक़्त अपनी सास के कामो मे लगी रहती ताकि अपने ससुर से उसका सामना ना हो.वो उस के साथ ऐसे पेश आते थे जैसे की वो है ही नही.शायद ही कभी वो उस से बात करते थे,अगर ज़रूरत पड़ती तो दर्शन के ज़रिए कहलवाते.
सास को खिलाते हुए रीमा के कानो मे डाइनिंग एरिया मे हो रही बातचीत की आवाज़ आ रही थी.
"वाह,दर्शन आज तो सब्ज़ी बड़ी अच्छी बनाई है."
"ये दाद रीमा बेटी को दीजिए,मालिक.उसी ने बनाई है."
उस के बाद खामोशी छा गयी.
थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी कमरे मे दाखिल हुए,"आज तुमने भी खाना बनाया था?"
"जी.",रीमा ने 1 चम्मच अपनी सास के मुँह मे दिया.
"तुम सुमित्रा की नर्स हो & वही रहो तो अच्छा है,उसकी बहू बनाने की कोशिश नही करो."
गुस्से से रीमा का चेहरा तमतमा गया पर जब तक वो कुच्छ जवाब देती उसके ससुर बाहर चले गये थे.
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उसी रात शेखर आया.आते ही उसने दर्शन के पैर छुए,"जीते रहो,भाय्या.अगर इस बार भी 2 दीनो के लिए आए हो तो किसी होटेल मे चले जाओ."
"नही दद्दा,इस बार तो 20 दीनो के लिए आया हू,पर बीच-2 मे शहर से बाहर जाना पड़ेगा.",शेखर हंसा.
"फिर ठीक है.",दर्शन भी हंसता हुआ उसका समान उठाने लगा.
उसी वक़्त रीमा अपने कमरे से निकल हॉल मे पहुँची तो शेखर को देख ठिठक गयी,"नमस्ते.'
"आओ बेटी,यही शेखर भाय्या हैं,मालिक के बड़े लड़के...और ये रीमा बेटी है,भाय्या.मालकिन की नयी नर्स.",दर्शन समान लेकर उसके कमरे को चला गया.शेखर ने सवालिया निगाहो से रीमा को देखा.
"कैसी हो,रीमा?"
"ठीक हू."
"ह्म्म.पिताजी कमरे मे हैं?"
"जी."
Re: खिलोना
शेखर उनसे मिलने उनके कमरे की ओर चल दिया.थोड़ी देर बाद रीमा सुमित्रा जी की दवा ले उनके कमरे मे जा रही थी कि दरवाज़े के बाहर बाप-बेटे की बातचीत सुन उसके कदम वही के वही रुक गये.दोनो उसके बारे मे बात कर रहे थे.
"..तो वो यह बस 1 नर्स की हैसियत से है & मैं चाहता हू कि तुम भी उसे वही समझो...",विरेन्द्र जी की भारी,गंभीर आवाज़ सुनाई दी.
"आप & आपकी बातें च्छुपाने की आदत!",उसकी हँसी मे अपने पिता के लिए अपमान था.
"शेखर!"
"मुझे तो लगता है कि बेचारा रवि भी आपकी किसी च्छुपाई हुई बात का ही तो शिकार नही हो गया."
"क्या बकवास कर रहे हो?!होश मे रहो."
"होश ही मे हू.आप चिंता ना करें,मैं आपका कोई भी राज़ कही नही खोलूँगा."
रीमा तेज़ी से घूम अपने कमरे मे चली गयी.शेखर भी अपने पिता के कमरे से निकल अपने कमरे मे चला गया.
रीमा के मन मे हलचल मच गयी...क्या उसके ससुर का कोई राज़ था?क्या उसी की वजह से रवि की मौत हुई?आख़िर ऐसा क्यू कहा शेखर ने?...फिर विरेन्द्र जी ने रवि के गबन किए हुए 4 लाख रुपये इतनी आसानी से क्यू दे दिए?..उन्होने रवि की इस हरकत का कारण जानने की कोशिश क्यू नही की?...उसने सोचा था कि पैसे देने के बावजूद इस मामले की तहकीकात करेंगे पर बॅंगलुर से लौट के उन्होने इस बारे मे कुच्छ नही किया था.रीमा सोच मे पड़ गयी,उसे लग रहा था कि बस उठे & अपने ससुर & जेठ के सामने सवालो की झड़ी लगा दे.पर अगर वो जवाब देने को तैय्यार भी हो गये तो वो उस से सच बोलेंगे इस बात की क्या गॅरेंटी है...कोई दूसरा तरीका सोचना होगा उसे.उसका दिमाग़ इस के लिए तरकीब ढूँढने मे लग गया & वो दवा ले अपनी सास के पास चली गयी.
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"चलिए ना,दद्दा!मा जी का भी दिल बहल जाएगा.फिर इसी कॉलोनी के पार्क मे तो जाना है.",रीमा दर्शन से कह रही थी,"..फिर अभी 4 ही तो बजे हैं."
"हा...वैसे तो मालिक & भाय्या & के पहले घर नही आएँगे."
"इसीलिए तो कह रही हू.बस 1/2 घंटे मे आ जाएँगे."
"अच्छा चलो."
रीमा दर्शन को सुमित्रा जी को बगल के पार्क मे सैर कराने ले जाने के लिए कह रही थी.उसका मानना था कि बाहर खुले मे घूम उसकी सास को अच्छा लगेगा,उसने उनके डॉक्टर से फोन पे इस बारे मे भी पूच्छ लिया था.
दर्शन की मदद से उसने उन्हे व्हील्चैर मे बिठाया & तीनो घर मे ताला लगा पार्क मे चले गये.जब लौटे तो देखा कि विरेन्द्र जी के घर के बाहर खड़े हैं.दर्शन ने भागते हुए ताला खोला & सब अंदर दाखिल हुए.विरेन्द्र जी ने अभी तक 1 लफ्ज़ भी नही बोला था.
शाम को जब दर्शन बाज़ार गया तो विरेन्द्र जी ने हॉल मे रीमा से कहा,"मैने तुम्हे पहले भी कहा है कि नर्स ही रहो,बहू बनने की कोशिश ना करो.आख़िर किस हैसियत से तुम सुमित्रा को बाहर ले गयी थी?उसे कहीं कुच्छ हो जाता.मैं साफ-2 कहे देता हू,अपनी ऐकात मत भूलो.समझी!अपनी हद..-"
"बहुत हो गया!जब से आई हू तब से आपका रवैयय्या देख रही हू.मैं मा जी को डॉक्टर साहब की इजाज़त से बाहर ले गयी थी...आख़िर मेरी ग़लती क्या है?यही ना कि मैने आपके बेटे से प्यार किया था.तो कोई गुनाह किया क्या?",रीमा के सब्र का बाँध टूट गया.
"हा,किया तुमने गुनाह.तुम नही होती तो वो आज यहा होता ,ज़िंदा."
"आप ग़लत कह रहे हैं,मिस्टर.साक्शेणा.याद कीजिए आपका बेटा आपके पास आया था आपके साथ रहने के लिए.पर आपकी ज़िद के चलते उसे जाना पड़ा.अगर उसकी मौत का कोई ज़िम्मेदार है तो वो है आपकी ज़िद!मैं अनाथ हू,जितना मैं परिवार की अहमियत समझती हू,उतना कोई नही समझ सकता,मैने रवि को बार-2 आपसे सुलह करने को कहा था पर वो भी आपकी तरह ज़िद्दी था.",रीमा अपने दिल का पूरा गुबार निकाल देना चाहती थी,"..मैं यहा केवल मा जी के लिए आई थी.हा ये सच है कि आप नही आते तो मुझे रवि की ग़लती का खामियाज़ा भुगतना पड़ता..उसके लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करती हू.पर मुझे अब इस घर मे और ज़लील नही होना है.आप मा जी के लिए किसी दूसरी नर्स का इंतेज़ाम कर लीजिए...जब वो आ जाएगी तो मैं यहा से चली जाऊंगी & आपके दिल को भी चैन पड़ेगा.",रीमा का गला भर आया & आँखे छल्छला आईं तो वो भाग के अपने कमरे मे चली गयी & तकिये मे मुँह च्छूपा रोने लगी.
उस रात उसने खाना भी नही खाया,दर्शन पुच्छने आया तो उसने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया.दूसरे दिन सवेरे दरवाज़े पे दस्तक हुई तो उसकी आँख खुली,उसने दरवाज़ा खोल तो सामने विरेन्द्र जी को खड़ा पाया.
वो अंदर आ गये.थोड़ी देर तक 1 असहज सी खामोशी कमरे मे पसरी रही,फिर विरेन्द्र जी की वज़नदार आवाज़ ने उसे तोड़ा,"रीमा.."
पहली बार उसने अपने ससुर के मुँह से अपना नाम सुना.
"हमे..हमे माफ़ कर दो.कल तुमने जो भी कहा वो बिल्कुल सच था.अगर रवि की मौत का कोई ज़िम्मेदार है तो वो मैं हू.अगर मैं ज़िद ना करता तो शायद वो हुमारे बीच इस घर मे होता.इंसान का दिल बड़ी अजीब चीज़ है,रीमा.ग़लती मेरी थी पर उसे मानने के बजाय मेरे दिल ने तुम्हे गुनहगार बना दिया & तुमसे नफ़रत करने लगा."
"..तो वो यह बस 1 नर्स की हैसियत से है & मैं चाहता हू कि तुम भी उसे वही समझो...",विरेन्द्र जी की भारी,गंभीर आवाज़ सुनाई दी.
"आप & आपकी बातें च्छुपाने की आदत!",उसकी हँसी मे अपने पिता के लिए अपमान था.
"शेखर!"
"मुझे तो लगता है कि बेचारा रवि भी आपकी किसी च्छुपाई हुई बात का ही तो शिकार नही हो गया."
"क्या बकवास कर रहे हो?!होश मे रहो."
"होश ही मे हू.आप चिंता ना करें,मैं आपका कोई भी राज़ कही नही खोलूँगा."
रीमा तेज़ी से घूम अपने कमरे मे चली गयी.शेखर भी अपने पिता के कमरे से निकल अपने कमरे मे चला गया.
रीमा के मन मे हलचल मच गयी...क्या उसके ससुर का कोई राज़ था?क्या उसी की वजह से रवि की मौत हुई?आख़िर ऐसा क्यू कहा शेखर ने?...फिर विरेन्द्र जी ने रवि के गबन किए हुए 4 लाख रुपये इतनी आसानी से क्यू दे दिए?..उन्होने रवि की इस हरकत का कारण जानने की कोशिश क्यू नही की?...उसने सोचा था कि पैसे देने के बावजूद इस मामले की तहकीकात करेंगे पर बॅंगलुर से लौट के उन्होने इस बारे मे कुच्छ नही किया था.रीमा सोच मे पड़ गयी,उसे लग रहा था कि बस उठे & अपने ससुर & जेठ के सामने सवालो की झड़ी लगा दे.पर अगर वो जवाब देने को तैय्यार भी हो गये तो वो उस से सच बोलेंगे इस बात की क्या गॅरेंटी है...कोई दूसरा तरीका सोचना होगा उसे.उसका दिमाग़ इस के लिए तरकीब ढूँढने मे लग गया & वो दवा ले अपनी सास के पास चली गयी.
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"चलिए ना,दद्दा!मा जी का भी दिल बहल जाएगा.फिर इसी कॉलोनी के पार्क मे तो जाना है.",रीमा दर्शन से कह रही थी,"..फिर अभी 4 ही तो बजे हैं."
"हा...वैसे तो मालिक & भाय्या & के पहले घर नही आएँगे."
"इसीलिए तो कह रही हू.बस 1/2 घंटे मे आ जाएँगे."
"अच्छा चलो."
रीमा दर्शन को सुमित्रा जी को बगल के पार्क मे सैर कराने ले जाने के लिए कह रही थी.उसका मानना था कि बाहर खुले मे घूम उसकी सास को अच्छा लगेगा,उसने उनके डॉक्टर से फोन पे इस बारे मे भी पूच्छ लिया था.
दर्शन की मदद से उसने उन्हे व्हील्चैर मे बिठाया & तीनो घर मे ताला लगा पार्क मे चले गये.जब लौटे तो देखा कि विरेन्द्र जी के घर के बाहर खड़े हैं.दर्शन ने भागते हुए ताला खोला & सब अंदर दाखिल हुए.विरेन्द्र जी ने अभी तक 1 लफ्ज़ भी नही बोला था.
शाम को जब दर्शन बाज़ार गया तो विरेन्द्र जी ने हॉल मे रीमा से कहा,"मैने तुम्हे पहले भी कहा है कि नर्स ही रहो,बहू बनने की कोशिश ना करो.आख़िर किस हैसियत से तुम सुमित्रा को बाहर ले गयी थी?उसे कहीं कुच्छ हो जाता.मैं साफ-2 कहे देता हू,अपनी ऐकात मत भूलो.समझी!अपनी हद..-"
"बहुत हो गया!जब से आई हू तब से आपका रवैयय्या देख रही हू.मैं मा जी को डॉक्टर साहब की इजाज़त से बाहर ले गयी थी...आख़िर मेरी ग़लती क्या है?यही ना कि मैने आपके बेटे से प्यार किया था.तो कोई गुनाह किया क्या?",रीमा के सब्र का बाँध टूट गया.
"हा,किया तुमने गुनाह.तुम नही होती तो वो आज यहा होता ,ज़िंदा."
"आप ग़लत कह रहे हैं,मिस्टर.साक्शेणा.याद कीजिए आपका बेटा आपके पास आया था आपके साथ रहने के लिए.पर आपकी ज़िद के चलते उसे जाना पड़ा.अगर उसकी मौत का कोई ज़िम्मेदार है तो वो है आपकी ज़िद!मैं अनाथ हू,जितना मैं परिवार की अहमियत समझती हू,उतना कोई नही समझ सकता,मैने रवि को बार-2 आपसे सुलह करने को कहा था पर वो भी आपकी तरह ज़िद्दी था.",रीमा अपने दिल का पूरा गुबार निकाल देना चाहती थी,"..मैं यहा केवल मा जी के लिए आई थी.हा ये सच है कि आप नही आते तो मुझे रवि की ग़लती का खामियाज़ा भुगतना पड़ता..उसके लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करती हू.पर मुझे अब इस घर मे और ज़लील नही होना है.आप मा जी के लिए किसी दूसरी नर्स का इंतेज़ाम कर लीजिए...जब वो आ जाएगी तो मैं यहा से चली जाऊंगी & आपके दिल को भी चैन पड़ेगा.",रीमा का गला भर आया & आँखे छल्छला आईं तो वो भाग के अपने कमरे मे चली गयी & तकिये मे मुँह च्छूपा रोने लगी.
उस रात उसने खाना भी नही खाया,दर्शन पुच्छने आया तो उसने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया.दूसरे दिन सवेरे दरवाज़े पे दस्तक हुई तो उसकी आँख खुली,उसने दरवाज़ा खोल तो सामने विरेन्द्र जी को खड़ा पाया.
वो अंदर आ गये.थोड़ी देर तक 1 असहज सी खामोशी कमरे मे पसरी रही,फिर विरेन्द्र जी की वज़नदार आवाज़ ने उसे तोड़ा,"रीमा.."
पहली बार उसने अपने ससुर के मुँह से अपना नाम सुना.
"हमे..हमे माफ़ कर दो.कल तुमने जो भी कहा वो बिल्कुल सच था.अगर रवि की मौत का कोई ज़िम्मेदार है तो वो मैं हू.अगर मैं ज़िद ना करता तो शायद वो हुमारे बीच इस घर मे होता.इंसान का दिल बड़ी अजीब चीज़ है,रीमा.ग़लती मेरी थी पर उसे मानने के बजाय मेरे दिल ने तुम्हे गुनहगार बना दिया & तुमसे नफ़रत करने लगा."