घनश्यामलंड Ghanshyam Land
घनश्यामलंड Ghanshyam Land
सुषमा एक ३५ साल की शादी शुदा महिला है जिसका पति, विनोद कुमार, है। सुषमा एक सुन्दर औरत है जो दिखने में एक २०-२२ साल की लड़की की तरह दिखती है। ५’ २” ऊंचा कद, छोटे स्तन, गठीला सुडौल शरीर, रसीले होंट, काले लम्बे बाल ओर मोहक मुस्कान।
विनोद कुमार एक सेक्सी आदमी था जो की पत्नी को सिर्फ एक सेक्स का खिलौना समझता था। उसकी आवाज़ में कर्कशता और व्यवहार में रूखापन था। वोह रोज़ ऑफिस से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। उसको सेक्स और ब्लू फिल्म का शौक था जो उसे अपने पड़ोस में ही मुफ्त मिल जाते थे।
रोज़ वोह ब्लू फिल्म लगा कर देखता। फिर खाना खा कर अपनी पत्नी से सम्भोग करता। यह उसकी रोज़ की दिन चर्या थी।
बेचारी सुषमा का काम सिर्फ सीधे या उल्टे लेट जाना होता था। विनोद कुमार बिना किसी भूमिका के उसके साथ सम्भोग करता जो कई बार सुषमा को बलात्कार जैसा लगता था। उसकी कोई इच्छा पूर्ति नहीं होती थी ना ही उस से कुछ पूछा जाता था। वह अपने पति से बहुत तंग आ चुकी थी पर एक भारतीय नारी की तरह अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। उसका पति उसका बिलकुल ध्यान नहीं रखता था। सम्भोग भी क्रूरता के साथ करता था। न कोई प्यारी बातें ना ही कोई प्यार का इज़हार। बस सीधा अपना लंड सुषमा की चूत में घुसा देना। सुषमा की चूत ज्यादातर सूखी ही होती थी और उसे इस तरह के सम्भोग से बहुत दर्द होता था। पर कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि पति घर में और भी बड़ा थानेदार होता था। इस पताड़ना से सुषमा को महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती थी जब मासिक धर्म के कारण विनोद कुमार कुछ नहीं कर पाता था। विनोद कुमार की एक बात अच्छी थी की वो निरीक्षक होने के बावजूद भी पराई औरत या वेश्या के पास नहीं जाता था।
सुषमा एक कंपनी में सेक्रेटरी का काम करती थी। वह एक मेहनती और ईमानदार लड़की थी जिसके काम से उसका बॉस बहुत खुश था। उसका बॉस एक ५० साल का सेवा-निवृत्त फौजी अफसर था। वह भी शादीशुदा था और एक दयालु किस्म का आदमी था। कई दिनों से वह नोटिस कर रहा था कि सुषमा गुमसुम सी रहती थी। फौज में उसने औरतों का सम्मान करना सीखा था। उसे यह तो मालूम था कि उसका बेटा नहीं रहा पर फिर भी उसका मासूम दुखी चेहरा उसको ठेस पहुंचाता था। वह उसके लिए कुछ करना चाहता था पर क्या और कैसे करे समझ नहीं पा रहा था। वह उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। उधर सुषमा अपने बॉस का बहुत सम्मान करती थी क्योंकि उसे अपने बॉस का अपने स्टाफ के प्रति व्यवहार बहुत अच्छा लगता था। बॉस होने के बावजूद वह सबसे इज्ज़त के साथ बात करता था और उनकी छोटी बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखता था। सिर्फ सुषमा ही नहीं, बाकी सारा स्टाफ भी बॉस को बहुत चाहता था।
एक दिन, जब सबको महीने की तनख्वाह दी जा रही थी, बॉस ने सबको जल्दी छुट्टी दे दी। सब पैसे ले कर घर चले गये, बस सुषमा हिसाब के कागजात पूरे करने के लिए रह गई थी। जब यह काम ख़त्म हो गया तो वह बॉस की केबिन में उसके हस्ताक्षर लेने गई। बॉस, जिसका नाम ललित है, उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने उसे बैठने को कहा और उसका वेतन उसे देते हुए उसके काम की सराहना की। सुषमा ने झुकी आँखों से धन्यवाद किया और जाने के लिए उठने लगी।
ललित ने उसे बैठने के लिए कहा और उठ कर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसने प्यार से उस से पूछा कि वह इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या ऑफिस में कोई उसे तंग करता है या कोई और समस्या है?
सुषमा ने सिर हिला कर मना किया पर बोली कुछ नहीं। ललित को लगा कि ज़रूर कोई ऑफिस की ही बात है और वह बताने से शरमा या घबरा रही है। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा कि उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है और वह बेधड़क उसे सच सच बता सकती है। सुषमा कुछ नहीं बोली और सिर झुकाए बैठी रही। ललित उसके सामने आ गया और उसकी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाई तो देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे।
ललित ने उसके गालों से आँसू पौंछे और उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। इस समय सुषमा कुर्सी पर बैठी हुई थी और ललित उसके सामने खड़ा था। इसलिए सुषमा का सिर ललित के पेट से लगा था और ललित के हाथ उसकी पीठ और सिर को सहला रहे थे। सुषमा अब एक बच्चे की तरह रोने लग गई थी और ललित उसे रोने दे रहा था जिस से उसका मन हल्का हो जाये। थोड़ी देर बाद वह शांत हो गई और अपने आप को ललित से अलग कर लिया। ललित उसके सामने कुर्सी लेकर बैठ गया। पास के जग से एक ग्लास पानी सुषमा को दिया। पानी पीने के बाद सुषमा उठकर जाने लगी तो ललित ने उसे बैठे रहने को कहा और बोला कि अपनी कहानी उसे सुनाये। क्या बात है ? क्यों रोई ? उसे क्या तकलीफ है ?
विनोद कुमार एक सेक्सी आदमी था जो की पत्नी को सिर्फ एक सेक्स का खिलौना समझता था। उसकी आवाज़ में कर्कशता और व्यवहार में रूखापन था। वोह रोज़ ऑफिस से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। उसको सेक्स और ब्लू फिल्म का शौक था जो उसे अपने पड़ोस में ही मुफ्त मिल जाते थे।
रोज़ वोह ब्लू फिल्म लगा कर देखता। फिर खाना खा कर अपनी पत्नी से सम्भोग करता। यह उसकी रोज़ की दिन चर्या थी।
बेचारी सुषमा का काम सिर्फ सीधे या उल्टे लेट जाना होता था। विनोद कुमार बिना किसी भूमिका के उसके साथ सम्भोग करता जो कई बार सुषमा को बलात्कार जैसा लगता था। उसकी कोई इच्छा पूर्ति नहीं होती थी ना ही उस से कुछ पूछा जाता था। वह अपने पति से बहुत तंग आ चुकी थी पर एक भारतीय नारी की तरह अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। उसका पति उसका बिलकुल ध्यान नहीं रखता था। सम्भोग भी क्रूरता के साथ करता था। न कोई प्यारी बातें ना ही कोई प्यार का इज़हार। बस सीधा अपना लंड सुषमा की चूत में घुसा देना। सुषमा की चूत ज्यादातर सूखी ही होती थी और उसे इस तरह के सम्भोग से बहुत दर्द होता था। पर कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि पति घर में और भी बड़ा थानेदार होता था। इस पताड़ना से सुषमा को महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती थी जब मासिक धर्म के कारण विनोद कुमार कुछ नहीं कर पाता था। विनोद कुमार की एक बात अच्छी थी की वो निरीक्षक होने के बावजूद भी पराई औरत या वेश्या के पास नहीं जाता था।
सुषमा एक कंपनी में सेक्रेटरी का काम करती थी। वह एक मेहनती और ईमानदार लड़की थी जिसके काम से उसका बॉस बहुत खुश था। उसका बॉस एक ५० साल का सेवा-निवृत्त फौजी अफसर था। वह भी शादीशुदा था और एक दयालु किस्म का आदमी था। कई दिनों से वह नोटिस कर रहा था कि सुषमा गुमसुम सी रहती थी। फौज में उसने औरतों का सम्मान करना सीखा था। उसे यह तो मालूम था कि उसका बेटा नहीं रहा पर फिर भी उसका मासूम दुखी चेहरा उसको ठेस पहुंचाता था। वह उसके लिए कुछ करना चाहता था पर क्या और कैसे करे समझ नहीं पा रहा था। वह उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। उधर सुषमा अपने बॉस का बहुत सम्मान करती थी क्योंकि उसे अपने बॉस का अपने स्टाफ के प्रति व्यवहार बहुत अच्छा लगता था। बॉस होने के बावजूद वह सबसे इज्ज़त के साथ बात करता था और उनकी छोटी बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखता था। सिर्फ सुषमा ही नहीं, बाकी सारा स्टाफ भी बॉस को बहुत चाहता था।
एक दिन, जब सबको महीने की तनख्वाह दी जा रही थी, बॉस ने सबको जल्दी छुट्टी दे दी। सब पैसे ले कर घर चले गये, बस सुषमा हिसाब के कागजात पूरे करने के लिए रह गई थी। जब यह काम ख़त्म हो गया तो वह बॉस की केबिन में उसके हस्ताक्षर लेने गई। बॉस, जिसका नाम ललित है, उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने उसे बैठने को कहा और उसका वेतन उसे देते हुए उसके काम की सराहना की। सुषमा ने झुकी आँखों से धन्यवाद किया और जाने के लिए उठने लगी।
ललित ने उसे बैठने के लिए कहा और उठ कर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसने प्यार से उस से पूछा कि वह इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या ऑफिस में कोई उसे तंग करता है या कोई और समस्या है?
सुषमा ने सिर हिला कर मना किया पर बोली कुछ नहीं। ललित को लगा कि ज़रूर कोई ऑफिस की ही बात है और वह बताने से शरमा या घबरा रही है। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा कि उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है और वह बेधड़क उसे सच सच बता सकती है। सुषमा कुछ नहीं बोली और सिर झुकाए बैठी रही। ललित उसके सामने आ गया और उसकी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाई तो देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे।
ललित ने उसके गालों से आँसू पौंछे और उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। इस समय सुषमा कुर्सी पर बैठी हुई थी और ललित उसके सामने खड़ा था। इसलिए सुषमा का सिर ललित के पेट से लगा था और ललित के हाथ उसकी पीठ और सिर को सहला रहे थे। सुषमा अब एक बच्चे की तरह रोने लग गई थी और ललित उसे रोने दे रहा था जिस से उसका मन हल्का हो जाये। थोड़ी देर बाद वह शांत हो गई और अपने आप को ललित से अलग कर लिया। ललित उसके सामने कुर्सी लेकर बैठ गया। पास के जग से एक ग्लास पानी सुषमा को दिया। पानी पीने के बाद सुषमा उठकर जाने लगी तो ललित ने उसे बैठे रहने को कहा और बोला कि अपनी कहानी उसे सुनाये। क्या बात है ? क्यों रोई ? उसे क्या तकलीफ है ?
Re: घनश्यामलंड Ghanshyam Land
सुषमा ने थोड़ी देर इधर उधर देखा और फिर एक लम्बी सांस लेकर अपनी कहानी सुनानी शुरू की। उसने बताया किस तरह उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ समाज के औसत आदमी के साथ करा दी थी जो उम्र में उस से 6 साल बड़ा था। उसके घरवालों ने सोचा था कि पुलिस वाले के साथ उसका जीवन आराम से बीतेगा और वह सुरक्षित भी रहेगी। उन्होंने यह नहीं सोचा कि अगर वह ख़राब निकला तो उसका क्या होगा? सुषमा ने थोड़ी हिचकिचाहट के बाद अपने दाम्पत्य जीवन की कड़वाहट भी बता डाली। किस तरह उसका पति उसके शरीर को सिर्फ अपने सुख के लिए इस्तेमाल करता है और उसके बारे मैं कुछ नहीं सोचता। किस तरह उसके साथ बिना किसी प्यार के उसकी सूखी चूत का उपभोग करता है, किस तरह उसका वैवाहिक जीवन नर्क बन गया है किस तरह उसका पति उसके साथ ज़बरदस्ती सम्भोग करता था और अपने दोस्तों के सामने उसकी खिल्ली उड़ाता था।
ललित आराम से उसकी बातें सुनता रहा और बीच बीच में उसका सिर या पीठ सहलाता रहा। एक दो बार उसको पानी भी पिलाया जिस से सुषमा का रोना कम हुआ और उसकी हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उसने सारी बातें बता डालीं जो एक स्त्री किसी गैर मर्द के सामने नहीं बताती। सुषमा को एक आजादी सी महसूस हो रही थी और उसका बरसों से भरा हुआ मन हल्का हो रहा था। कहानी ख़त्म होते होते सुषमा यकायक खड़ी हो गई और ललित के सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी मानो उसे यह सब बताने की ग्लानि हो रही थी।
ललित ने उसे सीने से लगाये रखा और पीठ सहलाते हुए उसको सांत्वना देने लगा। सुषमा को एक प्यार से बात करने वाले मर्द का स्पर्श अच्छा लग रहा था और वह ललित को जोर से पकड़ कर लिपट गई। ललित को भी अपने से 18 साल छोटी लड़की-सी औरत का आलंडन अच्छा लग रहा था। वैसे उसके मन कोई खोट नहीं थी और ना ही वह सुषमा की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता था। फिर भी वह चाह रहा था कि सुषमा उससे लिपटी रहे।
थोड़ी देर बाद सुषमा ने थोड़ी ढील दी और बिना किसी हिचकिचाहट के अपने होंट ललित के होंटों पर रख दिए और उसे प्यार से चूमने लगी। शायद यह उसके धन्यवाद करने का तरीका था कि ललित ने उसके साथ इतनी सुहानुभूति बरती थी। ललित थोड़ा अचंभित था। वह सोच ही रहा था कि क्या करे !
जब सुषमा ने अपनी जीभ ललित के मुँह में डालने की कोशिश की और सफल भी हो गई। अब तो ललित भी उत्तेजित हो गया और उसने सुषमा को कस कर पकड़ लिया और जोर से चूमने लगा। उसने भी अपनी जीभ सुषमा के मुँह में डाल दी और दोनों जीभों में द्वंद होने लगा। अब ललित की कामुकता जाग रही थी और उसका लंड अंगडाई ले रहा था। एक शादीशुदा लड़की को यह भांपने में देर नहीं लगती। सो सुषमा ने अपना शरीर और पास में करते हुए ललित के लंड के साथ सटा दिया। इस तरह उसने ललित को अगला कदम उठाने के लिए आमंत्रित लिया। ललित ने सुषमा की आँख में आँख डाल कर कहा कि उसने पहले कभी किसी पराई स्त्री के साथ ऐसा नहीं किया और वह उसका नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहता।
अब तो सुषमा को ललित पर और भी प्यार आ गया। उसने कहा- आप थोड़े ही मेरा फायदा उठा रहे हो। मैं ही आपको अपना प्यार देना चाहती हूँ। आप एक अच्छे इंसान हो वरना कोई और तो ख़ुशी ख़ुशी मेरी इज्ज़त लूट लेता। ललित ने पूछा कि वह क्या चाहती है, तो उसने कहा पहले आपके गेस्ट रूम में चलते हैं, वहां बात करेंगे।
ऑफिस का एक कमरा बतौर गेस्ट-रूम इस्तेमाल होता था जिसमें बाहर से आने वाले कंपनी अधिकारी रहा करते थे। उधर रहने की सब सुविधाएँ उपलब्ध थीं। सुषमा , ललित का हाथ पकड़ कर, उसे गेस्ट-रूम की तरफ ले जानी लगी। कमरे में पहुँचते ही उसने अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया और ललित के साथ लिपट गई।
उसकी जीभ ललित के मुँह को टटोलने लगी। सुषमा को जैसे कोई चंडी चढ़ गई थी। उसे तेज़ उन्माद चढ़ा हुआ था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारने शुरू किए और थोड़ी ही देर में नंगी हो गई। नंगी होने के बाद उसने ललित के पांव छुए और खड़ी हो कर ललित के कपड़े उतारने लगी। ललित हक्काबक्का सा रह गया था। सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
वह मंत्र-मुग्ध सा खड़ा रहा। उसके भी सारे कपड़े उतर गए थे और वह पूरा नंगा हो गया था। सुषमा घुटनों के बल बैठ गई और ललित के लंड को दोनों हाथों से प्रणाम किया। फिर बिना किसी चेतावनी के लंड को अपने मुँह में ले लिया। हालाँकि ललित की शादी को २० साल हो गए थे उसने कभी भी यह अनुभव नहीं किया था। उसके बहुत आग्रह करने के बावजूद भी उसकी पत्नी ने उसे यह सुख नहीं दिया था। उसकी पत्नी को यह गन्दा लगता था। अर्थात, यह ललित के लिए पहला अनुभव था और वह एकदम उत्तेजित हो गया। उसका लंड जल्दी ही विकाराल रूप धारण करने लगा।
ललित आराम से उसकी बातें सुनता रहा और बीच बीच में उसका सिर या पीठ सहलाता रहा। एक दो बार उसको पानी भी पिलाया जिस से सुषमा का रोना कम हुआ और उसकी हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उसने सारी बातें बता डालीं जो एक स्त्री किसी गैर मर्द के सामने नहीं बताती। सुषमा को एक आजादी सी महसूस हो रही थी और उसका बरसों से भरा हुआ मन हल्का हो रहा था। कहानी ख़त्म होते होते सुषमा यकायक खड़ी हो गई और ललित के सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी मानो उसे यह सब बताने की ग्लानि हो रही थी।
ललित ने उसे सीने से लगाये रखा और पीठ सहलाते हुए उसको सांत्वना देने लगा। सुषमा को एक प्यार से बात करने वाले मर्द का स्पर्श अच्छा लग रहा था और वह ललित को जोर से पकड़ कर लिपट गई। ललित को भी अपने से 18 साल छोटी लड़की-सी औरत का आलंडन अच्छा लग रहा था। वैसे उसके मन कोई खोट नहीं थी और ना ही वह सुषमा की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता था। फिर भी वह चाह रहा था कि सुषमा उससे लिपटी रहे।
थोड़ी देर बाद सुषमा ने थोड़ी ढील दी और बिना किसी हिचकिचाहट के अपने होंट ललित के होंटों पर रख दिए और उसे प्यार से चूमने लगी। शायद यह उसके धन्यवाद करने का तरीका था कि ललित ने उसके साथ इतनी सुहानुभूति बरती थी। ललित थोड़ा अचंभित था। वह सोच ही रहा था कि क्या करे !
जब सुषमा ने अपनी जीभ ललित के मुँह में डालने की कोशिश की और सफल भी हो गई। अब तो ललित भी उत्तेजित हो गया और उसने सुषमा को कस कर पकड़ लिया और जोर से चूमने लगा। उसने भी अपनी जीभ सुषमा के मुँह में डाल दी और दोनों जीभों में द्वंद होने लगा। अब ललित की कामुकता जाग रही थी और उसका लंड अंगडाई ले रहा था। एक शादीशुदा लड़की को यह भांपने में देर नहीं लगती। सो सुषमा ने अपना शरीर और पास में करते हुए ललित के लंड के साथ सटा दिया। इस तरह उसने ललित को अगला कदम उठाने के लिए आमंत्रित लिया। ललित ने सुषमा की आँख में आँख डाल कर कहा कि उसने पहले कभी किसी पराई स्त्री के साथ ऐसा नहीं किया और वह उसका नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहता।
अब तो सुषमा को ललित पर और भी प्यार आ गया। उसने कहा- आप थोड़े ही मेरा फायदा उठा रहे हो। मैं ही आपको अपना प्यार देना चाहती हूँ। आप एक अच्छे इंसान हो वरना कोई और तो ख़ुशी ख़ुशी मेरी इज्ज़त लूट लेता। ललित ने पूछा कि वह क्या चाहती है, तो उसने कहा पहले आपके गेस्ट रूम में चलते हैं, वहां बात करेंगे।
ऑफिस का एक कमरा बतौर गेस्ट-रूम इस्तेमाल होता था जिसमें बाहर से आने वाले कंपनी अधिकारी रहा करते थे। उधर रहने की सब सुविधाएँ उपलब्ध थीं। सुषमा , ललित का हाथ पकड़ कर, उसे गेस्ट-रूम की तरफ ले जानी लगी। कमरे में पहुँचते ही उसने अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया और ललित के साथ लिपट गई।
उसकी जीभ ललित के मुँह को टटोलने लगी। सुषमा को जैसे कोई चंडी चढ़ गई थी। उसे तेज़ उन्माद चढ़ा हुआ था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारने शुरू किए और थोड़ी ही देर में नंगी हो गई। नंगी होने के बाद उसने ललित के पांव छुए और खड़ी हो कर ललित के कपड़े उतारने लगी। ललित हक्काबक्का सा रह गया था। सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
वह मंत्र-मुग्ध सा खड़ा रहा। उसके भी सारे कपड़े उतर गए थे और वह पूरा नंगा हो गया था। सुषमा घुटनों के बल बैठ गई और ललित के लंड को दोनों हाथों से प्रणाम किया। फिर बिना किसी चेतावनी के लंड को अपने मुँह में ले लिया। हालाँकि ललित की शादी को २० साल हो गए थे उसने कभी भी यह अनुभव नहीं किया था। उसके बहुत आग्रह करने के बावजूद भी उसकी पत्नी ने उसे यह सुख नहीं दिया था। उसकी पत्नी को यह गन्दा लगता था। अर्थात, यह ललित के लिए पहला अनुभव था और वह एकदम उत्तेजित हो गया। उसका लंड जल्दी ही विकाराल रूप धारण करने लगा।
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सुषमा ने उसके लंड को प्यार से चूसना शुरू किया और जीभ से उसके सिरे को सहलाने लगी। अभी २ मिनट भी नहीं हुए होंगे कि ललित अपने पर काबू नहीं रख पाया और अपना लंड सुषमा के मुँह से बाहर खींच कर ज़ोरदार ढंग से स्खलित हो गया। उसका सारा काम-मधु सुषमा के स्तनों और पेट पर बरस गया। ललित अपनी जल्दबाजी से शर्मिंदा था और सुषमा को सॉरी कहते हुए बाथरूम चला गया।
सुषमा एक समझदार लड़की थी और आदमी की ताक़त और कमजोरी दोनों समझती थी। वह ललित के पीछे बाथरूम में गई और उसको हाथ पकड़ कर बाहर ले आई। ललित शर्मीला सा खड़ा था। सुषमा ने उसे बिस्तर पर बिठा कर धीरे से लिटा दिया। उसकी टांगें बिस्तर के किनारे से लटक रहीं थीं और लंड मुरझाया हुआ था। सुषमा उसकी टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गई और एक बार फिर से उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मुरझाये लंड को पूरी तरह मुँह में लेकर उसने जीभ से उसे मसलना शुरू किया।
ललित को बहुत मज़ा आ रहा था। सुषमा ने अपने मुँह से लंड अन्दर बाहर करना शुरू किया और बीच बीच में रुक कर अपने थूक से उसे अच्छी तरह गीला करने लगी। ललित ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। उसके हाथ सुषमा के बालों को सहला रहे थे। धीरे धीरे उसके लंड में फिर से जान आने लगी और वह बड़ा होने लगा। अब तक सुषमा ने पूरा लंड अपने मुँह में रखा हुआ था पर जब वह बड़ा होने लगा तो मुँह के बाहर आने लगा। वह उठकर बिस्तर पर बैठ गई और झुक कर लंड को चूसने लगी। उसके खुले बाल ललित के पेट और जांघों पर गिर रहे थे और उसे गुदगुदी कर रहे थे।
अब ललित का लंड बिलकुल तन गया था और उसकी चौड़ाई के कारण सुषमा के दांत उसके लंड के साथ रगड़ खा रहे थे। अब तो ललित की झेंप भी जाती रही और उसने सुषमा को एक मिनट रुकने को कहा और बिस्तर के पास खड़ा हो गया। उसने सुषमा को अपने सामने घुटने के बल बैठने को कहा और अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया। अब उसने सुषमा के साथ मुख-मैथुन करना शुरू किया। अपने लंड को उसके मुँह के अन्दर बाहर करने लगा। शुरू में तो आधा लंड ही अन्दर जा रहा था पर धीरे धीरे सुषमा अपने सिर का एंगल बदलते हुए उसका पूरा लंड अन्दर लेने लगी। कभी कभी सुषमा को ऐसा लगता मानो लंड उसके हलक से भी आगे जा रहा है।
ललित को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसने अपने धक्के तेज़ कर दिए और मानो भूल गया कि वह सुषमा के मुँह से मैथुन कर रहा है। सुषमा को लंड कि बड़ी साइज़ से थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकती थी खोल कर ललित के आनंद में आनंद लेने लगी। ललित अब दूसरी बार शिखर पर पहुँचने वाला हो रहा था। उसने सुषमा के सिर को पीछे से पकड़ लिया और जोर जोर से उसके मुँह को चोदने लगा। जब उसके लावे का उफान आने लगा उसने अपना लंड बाहर निकालने की कोशिश की पर सुषमा ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और दोनों हाथों से ललित के चूतड पकड़ कर उसका लंड अपने मुँह में जितना अन्दर कर सकती थी, कर लिया। ललित इसके लिए तैयार नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी लड़की के मुँह में अपने लावे का फव्वारा छोड़ पायेगा। इस ख़ुशी से मानो उसका लंड डेढ़ गुना और बड़ा हो गया और उसका क्लाइमेक्स एक भूकंप के बराबर आया। सुषमा का मुँह मक्खन से भर गया पर उसने बाहर नहीं आने दिया और पूरा पी गई।
ललित ने अपना लंड सुषमा के मुँह से बाहर निकाला और झुक कर उसे ऊपर उठाया। सुषमा को कस कर आलंडन में भर कर उसने उसका जोरदार चुम्बन लिया जिसमे कृतज्ञता भरी हुई थी। सुषमा के मुँह से उसके लावे की अजीब सी महक आ रही थी। दोनों ने देर तक एक दूसरे के मुँह में अपनी जीभ से गहराई से खोजबीन की और फिर थक कर लेट गए। ललित कई सालों से एक समय में दो बार स्खलित नहीं हुआ था। उसका लंड दोबारा खड़ा ही नहीं होता था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
दिन के डेढ़ बज रहे थे। दोनों को घर जाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि ऑफिस शाम ५ बजे तक का था और वैसे भी उन्हें ऑफिस में देर हो ही जाती थी। आमतौर पर वे ६-७ बजे ही निकल पाते थे। दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए और न जाने कब सो गए। करीब एक घंटा सोने के बाद ललित की आँख खुली तो उसने देखा सुषमा दोनों के टिफिन खोल कर खाना टेबल पर लगा रही थी। उसने अपने को तौलिये से ढक रखा था। ललित ने अपने ऑफिस की अलमारी से रम की बोतल और फ्रीज से कोक की बोतलें निकालीं और दोनों के लिए रम-कोक का ग्लास बनाया। सुषमा ने कभी शराब नहीं पी थी पर ललित के आग्रह पर उसने ले ली। पहला घूँट उसे कड़वा लगा पर फिर आदत हो गई। दोनों ने रम पी और घर से लाया खाना खाया। खाने के बाद दोनों फिर लेट गए।
सुषमा एक समझदार लड़की थी और आदमी की ताक़त और कमजोरी दोनों समझती थी। वह ललित के पीछे बाथरूम में गई और उसको हाथ पकड़ कर बाहर ले आई। ललित शर्मीला सा खड़ा था। सुषमा ने उसे बिस्तर पर बिठा कर धीरे से लिटा दिया। उसकी टांगें बिस्तर के किनारे से लटक रहीं थीं और लंड मुरझाया हुआ था। सुषमा उसकी टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गई और एक बार फिर से उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मुरझाये लंड को पूरी तरह मुँह में लेकर उसने जीभ से उसे मसलना शुरू किया।
ललित को बहुत मज़ा आ रहा था। सुषमा ने अपने मुँह से लंड अन्दर बाहर करना शुरू किया और बीच बीच में रुक कर अपने थूक से उसे अच्छी तरह गीला करने लगी। ललित ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। उसके हाथ सुषमा के बालों को सहला रहे थे। धीरे धीरे उसके लंड में फिर से जान आने लगी और वह बड़ा होने लगा। अब तक सुषमा ने पूरा लंड अपने मुँह में रखा हुआ था पर जब वह बड़ा होने लगा तो मुँह के बाहर आने लगा। वह उठकर बिस्तर पर बैठ गई और झुक कर लंड को चूसने लगी। उसके खुले बाल ललित के पेट और जांघों पर गिर रहे थे और उसे गुदगुदी कर रहे थे।
अब ललित का लंड बिलकुल तन गया था और उसकी चौड़ाई के कारण सुषमा के दांत उसके लंड के साथ रगड़ खा रहे थे। अब तो ललित की झेंप भी जाती रही और उसने सुषमा को एक मिनट रुकने को कहा और बिस्तर के पास खड़ा हो गया। उसने सुषमा को अपने सामने घुटने के बल बैठने को कहा और अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया। अब उसने सुषमा के साथ मुख-मैथुन करना शुरू किया। अपने लंड को उसके मुँह के अन्दर बाहर करने लगा। शुरू में तो आधा लंड ही अन्दर जा रहा था पर धीरे धीरे सुषमा अपने सिर का एंगल बदलते हुए उसका पूरा लंड अन्दर लेने लगी। कभी कभी सुषमा को ऐसा लगता मानो लंड उसके हलक से भी आगे जा रहा है।
ललित को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसने अपने धक्के तेज़ कर दिए और मानो भूल गया कि वह सुषमा के मुँह से मैथुन कर रहा है। सुषमा को लंड कि बड़ी साइज़ से थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकती थी खोल कर ललित के आनंद में आनंद लेने लगी। ललित अब दूसरी बार शिखर पर पहुँचने वाला हो रहा था। उसने सुषमा के सिर को पीछे से पकड़ लिया और जोर जोर से उसके मुँह को चोदने लगा। जब उसके लावे का उफान आने लगा उसने अपना लंड बाहर निकालने की कोशिश की पर सुषमा ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और दोनों हाथों से ललित के चूतड पकड़ कर उसका लंड अपने मुँह में जितना अन्दर कर सकती थी, कर लिया। ललित इसके लिए तैयार नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी लड़की के मुँह में अपने लावे का फव्वारा छोड़ पायेगा। इस ख़ुशी से मानो उसका लंड डेढ़ गुना और बड़ा हो गया और उसका क्लाइमेक्स एक भूकंप के बराबर आया। सुषमा का मुँह मक्खन से भर गया पर उसने बाहर नहीं आने दिया और पूरा पी गई।
ललित ने अपना लंड सुषमा के मुँह से बाहर निकाला और झुक कर उसे ऊपर उठाया। सुषमा को कस कर आलंडन में भर कर उसने उसका जोरदार चुम्बन लिया जिसमे कृतज्ञता भरी हुई थी। सुषमा के मुँह से उसके लावे की अजीब सी महक आ रही थी। दोनों ने देर तक एक दूसरे के मुँह में अपनी जीभ से गहराई से खोजबीन की और फिर थक कर लेट गए। ललित कई सालों से एक समय में दो बार स्खलित नहीं हुआ था। उसका लंड दोबारा खड़ा ही नहीं होता था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
दिन के डेढ़ बज रहे थे। दोनों को घर जाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि ऑफिस शाम ५ बजे तक का था और वैसे भी उन्हें ऑफिस में देर हो ही जाती थी। आमतौर पर वे ६-७ बजे ही निकल पाते थे। दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए और न जाने कब सो गए। करीब एक घंटा सोने के बाद ललित की आँख खुली तो उसने देखा सुषमा दोनों के टिफिन खोल कर खाना टेबल पर लगा रही थी। उसने अपने को तौलिये से ढक रखा था। ललित ने अपने ऑफिस की अलमारी से रम की बोतल और फ्रीज से कोक की बोतलें निकालीं और दोनों के लिए रम-कोक का ग्लास बनाया। सुषमा ने कभी शराब नहीं पी थी पर ललित के आग्रह पर उसने ले ली। पहला घूँट उसे कड़वा लगा पर फिर आदत हो गई। दोनों ने रम पी और घर से लाया खाना खाया। खाने के बाद दोनों फिर लेट गए।