गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग - 3
लेखिका: तृष्णा
अगले दिन मीना भाभी की एक और चिट्ठी आयी. रोज़ की तरह मैं चिट्ठी और एक मोटे से बैंगन को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. आजकल नीतु को शक होने लगा था कि अखिर मीना भाभी मुझे रोज़ चिट्ठी क्यों भेजती है. इसलिये मुझे सारी चिट्ठीयां छुपाकर रखनी पड़ती थी. अगर उसने पढ़ ली तो शायद उसका दिमाग ही खराब जायेगा!
खैर, अपने एकमात्र साथी, महाशय बैंगन को लेकर मैं भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.
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मेरी प्यारी ननद रानी,
तुम्हारा ख़त मिला. औरत-औरत के संभोग मे बहुत रस होता है. तुम होती तो मैं ज़रूर तुम्हारे साथ समलैंगिक संभोग करती. पर एक सुझाव देती हूँ - ठीक लगे तो आज़माना. तुम्हारी छोटी बहन नीतु अब काफ़ी बड़ी हो गयी है. उस उम्र के किशोरी लड़कियों को मर्द और औरत दोनो बहुत चाव से भोगते हैं. देखो अगर तुम उसे पटा सको. कम से कम तुम्हे जवानी का मज़ा लेने के लिये एक साथी तो मिल जयेगा!
मुझे पता है कि तुम मेरी कहानी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो. यहाँ रोज़ इतना कुछ होता है, सोचती हूँ तुम्हे रोज़ एक ख़त लिखूं. आज के ख़त मे मैं तुम्हे अपने तीसरे दिन के कारनामों के बारे मे बताती हूँ.
हमारा पूरा दिन घर के काम मे गुज़र गया. तुम्हारे बलराम भैया का पाँव अब ठीक हो रहा है, पर डाक्टर ने उन्हे बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी है. खाना पीना उन्हे सब बिस्तर पर ही दिया जाता है. बाथरूम जाने के अलावा वह बिस्तर से नही उठते हैं और कभी अपने कमरे के बाहर नही आते हैं.
दोपहर के खाने के बाद तुम्हारी मामीजी बोली, "बहु, तु अभी जाकर किशन को पटाने की कोशिश कर. वह अपने कमरे मे होगा."
मैने खुश होकर कहा, "ठीक है माँ! अभी जाती हूँ!"
"और हाँ, दरवाज़ा पूरा बंद नही करना. हम बाहर से देखेंगे. तेरे ससुरजी को देखने का बहुत मन है."
"जी, माँ." मैने जवाब दिया.
तुम्हारे मामाजी बोले, "जैसे बस मुझे ही मन है! तुम्हे जैसे बहु को चुदते देखकर मज़ा नही आयेगा?"
"मैने कब कहा मुझे मज़ा नही आयेगा?" सासुमाँ बोली, "मै भी देखूंगी अपने लाडले बेटे को अपनी भाभी की चूत मारते हुए."
"और यह सब देखते हुए तुम अपनी भी चूत मराओगी." ससुरजी बोले.
"हाय, यह क्या कह रहे हो तुम?" सासुमाँ बोली.
"कौशल्या, जब बहु और किशन अन्दर चुदाई कर रहे होंगे, मैं तुम्हे पीछे से कुतिया बना के चोदुंगा. बहुत मज़ा आयेगा." ससुरजी बोले.
"पागल हो गये हो तुम?" सासुमाँ बोली, "घर पर इतने लोग हैं! किसी ने देख लिया तो?"
ससुरजी बोले, "मैं गुलाबी को कोई काम देकर हाज़िपुर बाज़ार भेजता हूँ. उसे आने मे दो घंटे तो लगेंगे. बलराम तो खाने के बाद सो जायेगा. वैसे भी वह अपने कमरे से बाहर नही निकलता है. और घर मे है ही कौन? देखना खुले आम नंगे होकर चुदाने मे बहुत मज़ा आयेगा तुम्हे."
सासुमाँ बोली, "ठीक है पर मैं सारे कपड़े नही उतारूंगी. मेरी साड़ी उठाकर तुम पीछे से चोद लेना."
ससुरजी हारकर बोले, "ठीक है, भाग्यवान! जैसा तुम ठीक समझो."
गुलाबी के बाज़ार जाने के बाद तुम्हारे मामा, मामी, और मैं किशन के कमरे के पास गये. उसका दरवाज़ा बंद था, पर दरवाज़े के फांको से साफ़ दिख रहा था कि वह फिर कोई अश्लील कहानियों की किताब पड़ रहा है. मैने दरवाज़ा खटकाया तो उसने किताब छुपा दी और आकर दरवाज़ा खोला. सासुमाँ और ससुरजी बाहर रुक गये और मैं किशन के कमरे के अन्दर आ गयी. मैने दरवाज़ा ठेल कर बंद कर दिया पर कुंडी नही लगाई ताकि बाहर से अन्दर का दृश्य बिना असुविधा के देखा जा सके.
मुझे देखकर किशन की आंखें चमक उठी और पजामे मे उसके लौड़ा ताव खाने लगा. मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और उसके तकिये के नीचे से छुपाई हुई किताब निकाली.
"देवरजी, फिर तुम गंदी किताबें पढ़ रहे हो?" मैने पन्नों को उलट-पुलटकर पूछा. इस किताब के बीच मे कुछ तसवीरें थी जिसमे नंगे आदमी-औरत चुदाई कर रहे थे. "अब जब तुमने अपनी भाभी के जलवे देख लिये हैं, तुम्हे यह सब देखने की क्या ज़रूरत है?"
"भाभी, वह तो ऐसे ही..." किशन बोला.
"अच्छा बताओ, मैं देखने मे अच्छी हूँ या यह विलायती छिनाल?" मैने एक चुदाई की तस्वीर दिखाकर कहा.
"भाभी, आप बहुत सुन्दर हैं! आप जैसी कोई नही है!" किशन बोला.
सुनकर मैं मुस्कुरा दी, और पिछले दिन की तरह मैने अपना आंचल सीने से गिरा दिया था. फिर मैने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. और फिर ब्रा भी उतारकर रख दी.
किशन मेरी चूचियों को आंखों से ही पीने लगा. पजामे मे उसका लौड़ा बिलकुल तना हुआ था. अपने गोलाइयों को अपने हाथों से मसलते हुए मैने कहा, "देवरजी, मेरी चूचियां इस विलायती चुदैल से अच्छी हैं?"
"हाँ...हाँ भाभी." किशन थूक गटक कर बोला, "आपके दूध बहुत सुन्दर है. कल हाथ लगाकर मुझे बहुत अच्छा लगा था."
"यह सब किताबें पढ़नी बंद कर दोगे तो अपनी भाभी का एक एक अंग जितना जी चाहे देख सकोगे." मैने कहा.
"भाभी, मैं यह सब किताबें और नही पढ़ुंगा." किशन बोला और उसने अपने दोनो हाथ मेरे दो चूचियों पर रख दिये.
मैं मज़े से सिहर उठी, पर उसके हाथ हटाकर मैने कहा, "देवरजी, याद है न कल क्या हुआ था? जोश जोश मे अपना पानी अपने पजामे मे ही गिरा दोगे, तो मेरी प्यास कैसे बुझाओगे?"
"भाभी, आज पानी नही निकलेगा." किशन बोला और फिर मेरे चूचियों पर हाथ रखने लगा.
"रुको, देवरजी." मैने उसके हाथ हटाकर कहा, "पहले, तुम्हारे जोश का कुछ इलाज किया जाये, फिर जितना चाहे मेरी चूचियों को मसल लेना. चलो, अपना पजामा उतारो."
किशन शरमाकर मेरे सामने खड़ा रहा, तो मैने मुस्कुराकर कहा, "देवरजी, मर्द होकर औरत से शरमा रहे हो? मेरी चूचियां तो देख ली, अब मुझे अपना लौड़ा दिखाओ."
मैने उसके पजामे का नाड़ा खींचकर खोल दिया और उसका पजामा ज़मीन पर गिर गया. उसका लन्ड उसके चड्डी को जैसे फाड़कर बाहर आ रहा था. मैने उसके चड्डी को खींचकर नीचे उतार दी तो उसका खड़ा लन्ड उछलकर हिलने लगा. किशन ने अपना पजामा और चड्डी अपने पाँव से अलग कर दिये. उसने पजामे के ऊपर सिर्फ़ एक बनियान पहना था. मैने उसके बनियान को सीने के ऊपर चढ़ा दिया. फिर उसके कमर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा. फिर उसके खड़े लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया.
किशन अपनी आंखें मींचे खड़ा रहा. उसका शरीर कांप रहा था. मुझे लगा वह अपना पानी छोड़ देगा, पर ऐसा नही हुआ.
मैने धीरे धीरे उसके किशोर लन्ड को चूसना शुरु किया. एक अलग ही महक और स्वाद था उसके लन्ड मे. मैं उसके लन्ड को पेलड़ तक अपने मुंह मे ले रही थी, फिर निकाल कर उसके सुपाड़े को जीभ से सहला रही थी, और कभी लन्ड को मुंह से निकाल कर चाट रही थी. अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से पेलड़ मे उसके टट्टों को सहला रही थी.
बीच बीच मे मैं कनखियों से दरवाज़े की तरफ़ भी देख रही थी. मुझे पता था कि मेरे ससुरजी और सासुमाँ मेरे कुकर्मों को देख रहे है और शायद बाहर खड़े होकर चुदाई कर रहे हैं. उन्हे दिखाने मे मुझे और ज़्यादा मज़ा आ रहा था.
"देवरजी," मैने किशन का लन्ड मुंह से निकालकर कहा, "अपने लौड़े के बालों को साफ़ रखा करो. औरतों को चूसने मे ज़्यादा मज़ा आता है."
किशन आंखें बंद करके अपने आप पर काबू रखने की कोशिश कर रहा था.
मैने कुछ देर और उसके लन्ड को चूसा और कहा, "देवरजी, अगर सम्भाला नही जा रहा है तो अपना पानी निकाल दो. मुझे भी ज़रा अपना गला तर करना है."
मेरा कहना था कि किशन ने दोनो हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगा. उसके लौड़े का सुपाड़ा जा जाकर मेरे गले से टकराने लगा. एक ही मिनट पेलकर, वह झड़ने लगा. मेरे सर को कस के दबाकर, अपना लौड़ा मेरे मुंह मे पूरा ठूंसकर, वह अपना पेलड़ खाली करने लगा.
पता नही कितना वीर्य था उसके पेलड़ मे, पर मुझे लगा वह रुकने का नाम ही नही लेगा. मेरा मुंह उसके वीर्य से पूरा भर गया और मेरे होठों से निकलकर मेरी नंगी चूचियों पर गिरने लगा.
मेरी सांस रुकने लगी तो मैने उसे धक्का देकर उसका लन्ड अपने मुंह से निकाल दिया. उसके लन्ड के निकलते ही ढेर सारा वीर्य मेरे मुंह से निकलकर मेरे चूचियों पर आ गिरा. बाकी का वीर्य निगलकर मैं हंसने लगी. "देवरजी, कितनी मलाई सम्भाल कर रखे थे अपनी भाभी के लिये? इतना तो मुझसे पिया ही नही गया."
झड़कर किशन को जैसे आराम मिल गया था. पर उसका लौड़ा अभी भी तना हुआ था.