xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग

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xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग

Unread post by sexy » 07 May 2017 00:55

गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग - 3


लेखिका: तृष्णा

अगले दिन मीना भाभी की एक और चिट्ठी आयी. रोज़ की तरह मैं चिट्ठी और एक मोटे से बैंगन को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. आजकल नीतु को शक होने लगा था कि अखिर मीना भाभी मुझे रोज़ चिट्ठी क्यों भेजती है. इसलिये मुझे सारी चिट्ठीयां छुपाकर रखनी पड़ती थी. अगर उसने पढ़ ली तो शायद उसका दिमाग ही खराब जायेगा!

खैर, अपने एकमात्र साथी, महाशय बैंगन को लेकर मैं भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी ननद रानी,

तुम्हारा ख़त मिला. औरत-औरत के संभोग मे बहुत रस होता है. तुम होती तो मैं ज़रूर तुम्हारे साथ समलैंगिक संभोग करती. पर एक सुझाव देती हूँ - ठीक लगे तो आज़माना. तुम्हारी छोटी बहन नीतु अब काफ़ी बड़ी हो गयी है. उस उम्र के किशोरी लड़कियों को मर्द और औरत दोनो बहुत चाव से भोगते हैं. देखो अगर तुम उसे पटा सको. कम से कम तुम्हे जवानी का मज़ा लेने के लिये एक साथी तो मिल जयेगा!

मुझे पता है कि तुम मेरी कहानी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो. यहाँ रोज़ इतना कुछ होता है, सोचती हूँ तुम्हे रोज़ एक ख़त लिखूं. आज के ख़त मे मैं तुम्हे अपने तीसरे दिन के कारनामों के बारे मे बताती हूँ.

हमारा पूरा दिन घर के काम मे गुज़र गया. तुम्हारे बलराम भैया का पाँव अब ठीक हो रहा है, पर डाक्टर ने उन्हे बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी है. खाना पीना उन्हे सब बिस्तर पर ही दिया जाता है. बाथरूम जाने के अलावा वह बिस्तर से नही उठते हैं और कभी अपने कमरे के बाहर नही आते हैं.

दोपहर के खाने के बाद तुम्हारी मामीजी बोली, "बहु, तु अभी जाकर किशन को पटाने की कोशिश कर. वह अपने कमरे मे होगा."
मैने खुश होकर कहा, "ठीक है माँ! अभी जाती हूँ!"
"और हाँ, दरवाज़ा पूरा बंद नही करना. हम बाहर से देखेंगे. तेरे ससुरजी को देखने का बहुत मन है."
"जी, माँ." मैने जवाब दिया.

तुम्हारे मामाजी बोले, "जैसे बस मुझे ही मन है! तुम्हे जैसे बहु को चुदते देखकर मज़ा नही आयेगा?"
"मैने कब कहा मुझे मज़ा नही आयेगा?" सासुमाँ बोली, "मै भी देखूंगी अपने लाडले बेटे को अपनी भाभी की चूत मारते हुए."
"और यह सब देखते हुए तुम अपनी भी चूत मराओगी." ससुरजी बोले.
"हाय, यह क्या कह रहे हो तुम?" सासुमाँ बोली.
"कौशल्या, जब बहु और किशन अन्दर चुदाई कर रहे होंगे, मैं तुम्हे पीछे से कुतिया बना के चोदुंगा. बहुत मज़ा आयेगा." ससुरजी बोले.
"पागल हो गये हो तुम?" सासुमाँ बोली, "घर पर इतने लोग हैं! किसी ने देख लिया तो?"

ससुरजी बोले, "मैं गुलाबी को कोई काम देकर हाज़िपुर बाज़ार भेजता हूँ. उसे आने मे दो घंटे तो लगेंगे. बलराम तो खाने के बाद सो जायेगा. वैसे भी वह अपने कमरे से बाहर नही निकलता है. और घर मे है ही कौन? देखना खुले आम नंगे होकर चुदाने मे बहुत मज़ा आयेगा तुम्हे."
सासुमाँ बोली, "ठीक है पर मैं सारे कपड़े नही उतारूंगी. मेरी साड़ी उठाकर तुम पीछे से चोद लेना."
ससुरजी हारकर बोले, "ठीक है, भाग्यवान! जैसा तुम ठीक समझो."

गुलाबी के बाज़ार जाने के बाद तुम्हारे मामा, मामी, और मैं किशन के कमरे के पास गये. उसका दरवाज़ा बंद था, पर दरवाज़े के फांको से साफ़ दिख रहा था कि वह फिर कोई अश्लील कहानियों की किताब पड़ रहा है. मैने दरवाज़ा खटकाया तो उसने किताब छुपा दी और आकर दरवाज़ा खोला. सासुमाँ और ससुरजी बाहर रुक गये और मैं किशन के कमरे के अन्दर आ गयी. मैने दरवाज़ा ठेल कर बंद कर दिया पर कुंडी नही लगाई ताकि बाहर से अन्दर का दृश्य बिना असुविधा के देखा जा सके.

मुझे देखकर किशन की आंखें चमक उठी और पजामे मे उसके लौड़ा ताव खाने लगा. मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और उसके तकिये के नीचे से छुपाई हुई किताब निकाली.

"देवरजी, फिर तुम गंदी किताबें पढ़ रहे हो?" मैने पन्नों को उलट-पुलटकर पूछा. इस किताब के बीच मे कुछ तसवीरें थी जिसमे नंगे आदमी-औरत चुदाई कर रहे थे. "अब जब तुमने अपनी भाभी के जलवे देख लिये हैं, तुम्हे यह सब देखने की क्या ज़रूरत है?"
"भाभी, वह तो ऐसे ही..." किशन बोला.
"अच्छा बताओ, मैं देखने मे अच्छी हूँ या यह विलायती छिनाल?" मैने एक चुदाई की तस्वीर दिखाकर कहा.
"भाभी, आप बहुत सुन्दर हैं! आप जैसी कोई नही है!" किशन बोला.

सुनकर मैं मुस्कुरा दी, और पिछले दिन की तरह मैने अपना आंचल सीने से गिरा दिया था. फिर मैने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. और फिर ब्रा भी उतारकर रख दी.

किशन मेरी चूचियों को आंखों से ही पीने लगा. पजामे मे उसका लौड़ा बिलकुल तना हुआ था. अपने गोलाइयों को अपने हाथों से मसलते हुए मैने कहा, "देवरजी, मेरी चूचियां इस विलायती चुदैल से अच्छी हैं?"
"हाँ...हाँ भाभी." किशन थूक गटक कर बोला, "आपके दूध बहुत सुन्दर है. कल हाथ लगाकर मुझे बहुत अच्छा लगा था."
"यह सब किताबें पढ़नी बंद कर दोगे तो अपनी भाभी का एक एक अंग जितना जी चाहे देख सकोगे." मैने कहा.
"भाभी, मैं यह सब किताबें और नही पढ़ुंगा." किशन बोला और उसने अपने दोनो हाथ मेरे दो चूचियों पर रख दिये.

मैं मज़े से सिहर उठी, पर उसके हाथ हटाकर मैने कहा, "देवरजी, याद है न कल क्या हुआ था? जोश जोश मे अपना पानी अपने पजामे मे ही गिरा दोगे, तो मेरी प्यास कैसे बुझाओगे?"
"भाभी, आज पानी नही निकलेगा." किशन बोला और फिर मेरे चूचियों पर हाथ रखने लगा.
"रुको, देवरजी." मैने उसके हाथ हटाकर कहा, "पहले, तुम्हारे जोश का कुछ इलाज किया जाये, फिर जितना चाहे मेरी चूचियों को मसल लेना. चलो, अपना पजामा उतारो."

किशन शरमाकर मेरे सामने खड़ा रहा, तो मैने मुस्कुराकर कहा, "देवरजी, मर्द होकर औरत से शरमा रहे हो? मेरी चूचियां तो देख ली, अब मुझे अपना लौड़ा दिखाओ."

मैने उसके पजामे का नाड़ा खींचकर खोल दिया और उसका पजामा ज़मीन पर गिर गया. उसका लन्ड उसके चड्डी को जैसे फाड़कर बाहर आ रहा था. मैने उसके चड्डी को खींचकर नीचे उतार दी तो उसका खड़ा लन्ड उछलकर हिलने लगा. किशन ने अपना पजामा और चड्डी अपने पाँव से अलग कर दिये. उसने पजामे के ऊपर सिर्फ़ एक बनियान पहना था. मैने उसके बनियान को सीने के ऊपर चढ़ा दिया. फिर उसके कमर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा. फिर उसके खड़े लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया.

किशन अपनी आंखें मींचे खड़ा रहा. उसका शरीर कांप रहा था. मुझे लगा वह अपना पानी छोड़ देगा, पर ऐसा नही हुआ.

मैने धीरे धीरे उसके किशोर लन्ड को चूसना शुरु किया. एक अलग ही महक और स्वाद था उसके लन्ड मे. मैं उसके लन्ड को पेलड़ तक अपने मुंह मे ले रही थी, फिर निकाल कर उसके सुपाड़े को जीभ से सहला रही थी, और कभी लन्ड को मुंह से निकाल कर चाट रही थी. अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से पेलड़ मे उसके टट्टों को सहला रही थी.

बीच बीच मे मैं कनखियों से दरवाज़े की तरफ़ भी देख रही थी. मुझे पता था कि मेरे ससुरजी और सासुमाँ मेरे कुकर्मों को देख रहे है और शायद बाहर खड़े होकर चुदाई कर रहे हैं. उन्हे दिखाने मे मुझे और ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

"देवरजी," मैने किशन का लन्ड मुंह से निकालकर कहा, "अपने लौड़े के बालों को साफ़ रखा करो. औरतों को चूसने मे ज़्यादा मज़ा आता है."

किशन आंखें बंद करके अपने आप पर काबू रखने की कोशिश कर रहा था.

मैने कुछ देर और उसके लन्ड को चूसा और कहा, "देवरजी, अगर सम्भाला नही जा रहा है तो अपना पानी निकाल दो. मुझे भी ज़रा अपना गला तर करना है."

मेरा कहना था कि किशन ने दोनो हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगा. उसके लौड़े का सुपाड़ा जा जाकर मेरे गले से टकराने लगा. एक ही मिनट पेलकर, वह झड़ने लगा. मेरे सर को कस के दबाकर, अपना लौड़ा मेरे मुंह मे पूरा ठूंसकर, वह अपना पेलड़ खाली करने लगा.

पता नही कितना वीर्य था उसके पेलड़ मे, पर मुझे लगा वह रुकने का नाम ही नही लेगा. मेरा मुंह उसके वीर्य से पूरा भर गया और मेरे होठों से निकलकर मेरी नंगी चूचियों पर गिरने लगा.

मेरी सांस रुकने लगी तो मैने उसे धक्का देकर उसका लन्ड अपने मुंह से निकाल दिया. उसके लन्ड के निकलते ही ढेर सारा वीर्य मेरे मुंह से निकलकर मेरे चूचियों पर आ गिरा. बाकी का वीर्य निगलकर मैं हंसने लगी. "देवरजी, कितनी मलाई सम्भाल कर रखे थे अपनी भाभी के लिये? इतना तो मुझसे पिया ही नही गया."

झड़कर किशन को जैसे आराम मिल गया था. पर उसका लौड़ा अभी भी तना हुआ था.

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Unread post by sexy » 07 May 2017 00:55

मैं किशन के वीर्य को अपने गोरी गोरी नंगी चूचियों पर मलने लगी और अपने खड़े निप्पलों को मीसने लगी. जब मेरी चूचियां पूरी तरह उसके वीर्य से चिपचिपा हो गयी मैने उठकर अपनी साड़ी बदन से अलग कर दी. किशन आंखें फाड़-फाड़कर मुझे देख रहा था.

मैने कहा, "देवरजी, अब आपको अपनी चूत के दर्शन कराती हूँ. वैसे तो तुम दरवाज़े के बाहर से मेरी चूत देख ही चुके हो, पर आज पास से देखो." बोलकर मैने अपनी पेटीकोट उतार दी और पूरी तरह नंगी हो गयी.

किशन के खाट पर लेटकर मैने उसे अपने पास आने को कहा. वह तुरंत मेरे ऊपर आकर चढ़ गया. मैं उसका सर पकड़कर अपने पास ले आयी और फिर उसके होठों को अपने होठों से चिपकाकर पीने लगी. उफ़्फ़! क्या कोमल, रसीले होंठ थे उसके! एक हाथ से मैं उसके चिपचिपे लन्ड को भी सहलाने लगी.

कुछ देर उसके होंठ पीकर मैने कहा, "देवरजी, ज़रा मेरे चूचियों को पीयो."
"पर भाभी, उस पर तो मेरा...पानी..." किशन हिचकिचा कर बोला.
"तो क्या हुआ?" मैने डांटकर कहा, "जब मैं तुम्हारा आधा लीटर वीर्य पी सकती हूँ, तो तुम भी थोड़ा चख लोगे तो कुछ नही होगा."

मैने उसका सर पकड़कर अपने चूचियों पर दबा दिया तो वह मेरे निप्पलों को मुंह मे लेकर चूसने लगा. बहुत मज़ा आने लगा मुझे. मेरी चूत तो कब से गीली ही पड़ी थी. बस एक खड़े लन्ड का इंतज़ार था मुझे.

किशन मेरी चिपचिपे चूचियों को जोश मे दबाने और चूसने लगा. फिर मैं उसके सर को और नीचे कर के अपनी चूत के पास ले गयी और बोली, "देवरजी, अब मेरी चूत को चाट दो. औरतों को चूत चटवाने मे बहुत मज़ा आता है."

किशन मेरी चूत के फांक मे जीभ डालकर अच्छे से चाटने लगा. मैं आह!! कर उठी. "हाय, देवरजी, बहुत अच्छा चाट रहे हो. उम्म!! ऐसे ही चाटते रहो. आह!! चाटकर मुझे एक बार झड़ा दो."

किशन जितना मेरी चूत को चाट रहा था मेरी मस्ती भी खलास होने को आ रही थी. जल्दी ही उसके सर को जोर से अपनी चूत पर दबाकर मैं झड़ने लगी. "हाय, कितना मज़ा आ रहा है! देवरजी, और चाटो अपनी भाभी की चूत! आह!! ओह!! उम्म!!"

झड़के मुझे कोई शांति नही हुई. मुझे तो लौड़े की ज़रूरत थी. "देवरजी, अब मेरे ऊपर चढ़ जाओ." मैने कहा, "अब तुम्हे अपनी भाभी को चोदकर उसकी प्यास बुझानी है, समझे?"

वीणा, नौजवानों की यह खूबी होती है कि जल्दी ही फिर वे चुदाई के लिये तैयार हो जाते है. किशन का लन्ड भी पूरी तरह कड़क हो गया था.

किशन मेरे दो टांगों के बीच बैठा तो मैने उसका लन्ड पकड़कर अपनी चूत पर रखा और कुछ देर उसके सुपाड़े को अपनी चूत के फांक मे रगढ़ा. फिर उसके लन्ड को अपनी चूत पर सेट करके मैने कहा, "देवरजी, अब धीरे से अपने लन्ड पर दबाव डालो."

किशन ने दबाव डाला तो उसका खड़ा लन्ड मेरी बहुत ही गीली चूत मे आराम से पूरा घुस गया. उसे इतना मज़ा आया कि वह गनगना उठा.

मैने उसे कमर चलाने से रोका और कहा, "देवरजी, अब थोड़ी देर मेरी चूत मे लन्ड डाले पड़े रहो. कुछ करो मत."
"भाभी, बहुत गरम है आपकी चूत!" किशन कसमसा कर बोला. उसकी आवाज़ से मैं समझ रही थी कि वह मुश्किल से अपने पर काबू किये हुए था.
"तुमने कभी किसी चूत मे लन्ड नही डाला है ना, इसलिये तुम्हे आदत नही है." मैने कहा, "कुछ एक बार चोद लोगे तो कोई मुश्किल नही होगी."

किशन मेरी चूत मे अपना पूरा लन्ड डाले मेरे ऊपर लेटा रहा. मैने उसके नंगे बदन को जकड़कर अपनी चूत मे उसके लन्ड के सुखद अनुभव का मज़ा लेती रही.

कुछ देर बाद जब किशन को अपने पर काबू हुआ तो मैने उसे कहा, "देवरजी, अब धीरे धीरे मुझे पेलना शुरु करो. बहुत धीरे धीरे."

किशन ने ऐसा ही किया. उसका लन्ड मेरी चूत के अन्दर बाहर होने लगा तो मुझे और मज़ा आने लगा. धीरे धीरे वह अपनी गति बढ़ाने लगा और मैं भी उसका साथ देने लगी. उसे बाहों मे जकड़कर, उसके ताल पर ताल मिलाकर मैं अपना कमर उठाने लगी. "हाय, राजा! क्या चोद रहो हो अपनी भाभी को! उम्म!! आह!! पेलो देवरजी, अच्छे से पेलो अपनी चुदैल भाभी को! हाय, बहुत मज़ा आ रहा है!"

किशन बस "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" की आवाज़ निकालकर ठाप लगा रहा था. पर नौसिखिया होने के चलते वह मुझे ज़्यादा देर चोद नही सका. मुझे जोर से ठोकते हुए बोला, "भाभी, मेरा पानी छूटने वाला है!"
मैं बोली, "कोई बात नही, देवरजी! भर दो अपना वीर्य मेरे गर्भ मे! आह!! ओह!! उम्म!! और जोर से! और जोर से!! डाल दो पूरा अन्दर!"

मुझे पता था की हमारी यह अवैध चुदाई मेरे ससुरजी और सासुमाँ बाहर से देखे रहे हैं. सोचकर ही मैं झड़ने लगी. किशन ने अपना लन्ड मेरे चूत की गहराई मे ठूंस दिया और मुझे जकड़कर मेरे चूत मे अपना पानी छोड़ने लगा. चूत के अन्दर देवर के पहले वीर्य को पाकर मैं सुख के सातवें आसमान पर उड़ने लगी.

झड़ने के बाद किशन और मैं काफ़ी देर तक एक दूसरे से लिपटे आलिंगन का आनंद लेते रहे. किशन मेरे ऊपर ही लेटा रहा और उसका अब ढीला हो चुका लन्ड मेरी चूत के बाहर आ गया.

"देवरजी" मैने कुछ देर बाद कहा, "मज़ा आया अपनी भाभी को चोदकर?"
"हाँ भाभी. बहुत मज़ा आया." किशन बोला, "पर हमे यह सब नही करना चाहिये था ना?"

मैने समझ गयी छोकरे का लन्ड नीचे होते ही उसकी अंतरात्मा सर उठाने लगी है.

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"क्यों, देवरजी?" मैने पूछा.
"भाभी तो माँ समान होती है." किशन ने कहा.
"और मुझे चोदकर तुमने मानो अपनी माँ को ही चोद लिया है?" मैने पूछा. "तुम जो कहानियाँ पढ़ते हो उसमे तो देवर लोग अपनी भाभी को चोदते हैं. बेटे अपनी माँ को चोदते हैं. तुम तो मेरा नाम लेकर मुठ भी मारते हो. अब मुझे चोद लेने के बाद तुमको क्या हो गया."
"जी, कहानी पढ़ना अलग बात है." किशन बोला.
"मन मे पाप और कर्म मे पाप मे कोई फ़र्क नही है, देवरजी." मैने कहा, "तुम ऐसी कहानियाँ पढ़ते हो क्योंकि तुम्हारे मन मे मेरे लिया पाप था और अपनी माँ के लिये पाप है. है कि नही बोलो."
"जी है." किशन धीरे से बोला.
"अब जब मन मे पाप हो ही गया तो करने मे कोई ज़्यादा बुराई है क्या?"
"पता नही, भाभी." वह बोला.
"देवरजी, इतने धरम-करम मे मत पड़ो." मैने उसके सर के बालों मे उंगलियाँ चलाकर कहा, "चोदने को चूत मिले तो चोद लो! फिर वह चूत भाभी की हो या माँ की या घर के नौकरानी की. ऐसे मौके ज़िंदगी मे बार बार नही आते, समझे?"

किशन चुप रहा फिर बोला, "पर भाभी आपने क्यों मेरे साथ यह सब किया. आपके लिये तो भैया हैं ना."
"मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा, "घर पर जवान देवर हो तो किस भाभी का मन नही मचलता उससे चुदवाने के लिये? मुझे क्या तुमने कोई शराफ़त की देवी समझ रखा है? हर औरत की तरह मेरे मन मे भी पाप है और कुकर्म करने के लिये मेरा मन भी मचलता है. आज मुझे मौका मिला तो तुमसे चुदवा लिया. तुम्हारी भाभी कोई देवी-शेवी नही है, देवरजी. एक जवान, गर्म औरत है जिससे जितने लन्ड मिले कम हैं."

किशन मेरी बात सुनकर हंस दिया. बोला, "भाभी, मेरी माँ भी आप जैसी है क्या?"
उसका मतलब समझकर मैने कहा, "बहुत बड़ी चुदैल है सासुमाँ. आज भी ससुरजी जब उन्हे ठोकते हैं तो बाहर तक उनकी मस्ती की आवाज़ आती है. अपनी उम्र मे उन्होने न जाने कितने लन्ड लिये होंगे."
"नही भाभी, मेरी माँ ऐसी नही हो सकती." किशन बोला.
"तो क्या तुमने सिर्फ़ अपनी भाभी को ही एक मात्र छिनाल समझ लिया है? औरतों को देवी बनाने की मर्दों की बड़ी बुरी आदत है." मैने कहा, "कहते हैं ना, औरत को ना ताज चाहिये ना तख्त चाहिये. उसे तो बस एक लन्ड मोटा और सख्त चाहिये. माँ, बहन, भाभी, बेटी, बीवी, साली - सब एक जैसी होती हैं. सबके पास चुदाने के लिये चूत होती है और सबको लौड़ों की चाहत होती है."

किशन और जोर से हंसने लगा. अपनी माँ के बारे मे बुरा-भला सुनकर उसका लन्ड फिर सख्त होने लगा था. वह बोला, "अगर भैया को पता लग गया तो?"
"नही पता लगेगा." मैने कहा. "मैं सब देख लुंगी. तुम बस मेरा कहना मानो और देखो कितना मज़ा है चुदाई मे."
"ठीक है भाभी." किशन बोला.
"लगता है अपनी माँ के चरित्र के बारे मे सुनकर तुम्हारा लन्ड फिर खड़ा हो गया है." मैने उसके लौड़े को पकड़कर कहा, "चलो, देवरजी, अपनी भाभी को एक और बारी चोदकर उसकी प्यास ठीक से बुझा दो."

मैने किशन का लन्ड फिर अपने चूत के फांक मे रखा और उसने कमर से दबाव डालकर अन्दर पेल दिया. दो बार झड़ लेने की वजह से अबकी बार वह अपने जोश को काबू मे रख पा रहा था. धीरे धीरे, मज़े लेकर वह मुझे चोदने लगा. मुझे भी अबकी बार ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

"बहुत अच्छा चोद रहे हो, देवरजी!" मैने उसका हौसला बढ़ाने के लिये कहा, "जल्दी ही मैं तुमको एक अव्वल दर्जे का चोदू बना दूंगी. फिर घर के सब औरतों को मज़ा दिये फिरना."

अबकी बार चुदाई लगभग 10 मिनट चली, फिर हम दोनो ने अपना पानी छोड़ दिया.

किशन अपने बिस्तर पर नंगा लेटा रहा और मैने उठकर अपनी पेटीकोट, ब्लाउज़, साड़ी वगैरह पहन ली.

कमरे से निकलते हुए बोली, "देवरजी, अब तुम यह गंदी कहानियाँ पढ़ना छोड़ दो. इनमे कुछ नही रखा है. जब मन करे, मुझे कहना और मैं तुम्हे अपनी चूत दे दूंगी चोदने के लिये. समझे? बिलकुल संकोच नही करना!"
"जी भाभी." किशन खुश होकर बोला.

मैं किशन के कमरे से निकली तो देखा तुम्हारे मामा और मामी बाहर खड़े है. सासुमाँ की आंखे वासना से लाल थी. उनका ब्लाउज़ खुल हुआ था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही थी. ससुरजी की लुंगी उनके पैरों के बीच थी और उनका लन्ड तनकर खड़ा था.

"हाय, माँ-बाबूजी, आप दोनो का अभी हुआ नही क्या?" मैने फुसफुसाकर कहा.
"मैं तो दो बार झड़ चुकी हूँ, बहु." सासुमाँ बोली, "बहुत मज़ा आया किशन और तेरी चुदाई देखकर. तेरे बाबूजी तो अभी तक झड़े नही हैं."
"फिर अपने कमरे मे जाकर बाकी काम कीजिये." मैने कहा.

हम तीनो सासुमाँ के कमरे मे आ गये. मेरे दरवाज़ा बंद करते ही ससुरजी और सासुमाँ ने अपने सारे कपड़े उतार दिये और बिस्तर पर एक दूसरे पर टूट पड़े. ससुरजी ने सासुमाँ के पाँव फैलाकर अपना लन्ड उनकी भोसड़ी मे पेल दिया और लगे सासुमाँ को तबाड़-तोड़ चोदने.

"हाय बहुत गरम हो गये हो तुम?" सासुमाँ कमर उठाकर ठाप लेटे हुए बोली.
"हाँ, कौशल्या!" ससुरजी बोले, "देवर और भाभी की चुदाई का ऐसा कामुक खेल मैने कभी नही देखा है. इतना मज़ा आयेगा यह खेल देखकर मे मुझे पता नही था."
"तुम बस देखते जाओ." सासुमाँ बोली, "जब मैं बलराम और किशन से चुदुंगी, तब तुम्हारी क्या हालत होगी तुम सोच भी नही सकते!"
"छिनाल! रंडी! मैं तुझे अपने दोनो बेटों का लन्ड अपनी चूत और गांड मे लेते देखना चाहता हूँ!" ससुरजी बोले, "ले साली, मेरा लन्ड ले! तु इतनी बड़ी रंडी होगी मुझे अंदाज़ा ही नही था."
"हाय, राजा, बहुत जोश मे आ गये हो!" सासुमाँ बोली, "बजाओ मेरी भोसड़ी को! आह!! जल्दी ही तुम्हारी सारी इच्छायें मैं पूरी कर दूंगी! और जोर से! हाय मैं फिर झड़ने वाली हूँ!"

मैने बिस्तर पर बैठकर तुम्हारे मामा और मामी की जोशीली चुदाई देख रही थी. कुछ ही देर मे दोनो से और रहा नही गया और वह जोरों की आवाज़ें निकालकर झड़ने लगे. अपना सारा पानी सासुमाँ की चूत मे डालकर ससुरजी शांत हुए.

उस रात मैं फिर ससुरजी और सासुमाँ के साथ सोई. पर हमने और चुदाई नही की. सासुमाँ और मैं ससुरजी को दोनो तरफ़ से पकड़कर सो गये.

बताओ, वीणा, कैसी लगी मेरी कहानी? मुझे जल्दी से ख़त लिखकर बताना. कल के कारनामों को लेकर कल एक और ख़त लिखूंगी. तब तक के लिये तुम अपनी चूत मे बैंगन पेलकर काम चलाओ.

तुम्हारी चुदैल भाभी

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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं उदास हो गयी. भाभी अपने घर पर कितने मज़े कर रही है. भाभी अब अपने ससुर और देवर दोनो के साथ चुदाई का मज़ा ले रही है. और मैं यहाँ एक मर्द के प्यार के लिये तरस रही हूँ. कभी सोचती थी गाँव मे किसी से चुदवा लूं, पर फिर सोचती थी कि बात बाहर आ गयी तो मेरे माँ-बाप की कितनी बदनामी होगी. भाभी की सलाह अनुसार मैने अपनी छोटी बहन नीतु के साथ शारीरिक संबंध बनाने की सोची, पर मैं उसके ईर्ष्यालु स्वभाव से इतनी चिढ़ती थी कि उसे हाथ लगाने का भी मन नही करता था.

मैने आखिर भाभी की चिट्ठी का जवाब दिया.

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प्रिय मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. हमेशा की तरह पढ़कर बहुत मज़ा आया और बहुत चुदास भी चढ़ी. मैं तो बोली ही थी तुम्हे अपने देवर को पटाने मे कोई मुश्किल नही होगी.

पर भाभी, गाँव लौटने के बाद मेरा मन घर पर लगता ही नही है. पूरी ज़िन्दगी जैसे सूनी सूनी हो गयी है. मुझे हर वक्त सोनपुर मे हम सब ने जो मज़े किये थे उसकी याद आती है. मैं हर समय चुदासी रहती हूँ और अपनी बुर मे लंबे बैंगन घुसाकर अपनी प्यास बुझने की कोशिश करती हूँ. पर तुम ही बताओ, बैंगन से लौड़े का सुख मिलता है भला? यही सब सोचकर मैं उदास हो जाती हूँ.

तुम ने नीतु के साथ संभोग करने को कहा था. वह तो मुझसे नही होगा. बहुत ही अड़ियल और उबाऊ लड़की है. मुझे तो अपनी प्यास बुझाने के लिये कोई मर्द ही चाहिये.

मेरे माँ-बाप मेरी शादी के लिये एक दो रिश्ते देख रहे हैं. सोचती हूँ हाँ कर दूं. कम से कम पति का लौड़ा तो मिलेगा.

खैर, तुम बताओ तुम्हारी आगे की योजना क्या है. तुम्हारी चिट्ठी की प्रतीक्षा रहेगी.

तुम्हारी दुखियारी ननद वीणा

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