Thriller -इंतकाम की आग compleet

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:20

राज को लगा था कि वह आनाकानी करेगा... लेकिन उसने कुछ भी आनाकानी ना करते हुए सीधे बात कबुल कर ली...

"कैसे किया आपने उनका कत्ल...?" राज ने अगला सवाल पूछा.

"मेरे पास के काले जादू से मेने उन्हे मार दिया..." उसने कहा.

अंकित पागल की तरफ दिखता तो था ही लेकिन उसके इस जवाब से राज को विश्वास हो चला था.

"आपके इस काले जादू से आप किसी को भी मारकर बता सकते हो...?" राज ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा.

"किसी को भी में क्यों मारूँगा...? जिसकी मुझ से दुश्मनी है उसको ही में मारूँगा..."

"अब आगे आप इस काले जादू से किस को मारने वाले हो...?"

"अब अशोक का नंबर है..."

"अब अभी इसी वक्त आप उसे मारकर बता सकते हो...?" राज ने उसका काला जादू और वह दोनो का भी झूठ साबित करने के उद्देश्य से पूछा.

"अब नही... उसका वक्त अब जब आएगा तब उसे ज़रूर मारूँगा.." उसने कहा.

उसका यह जवाब सुनकर राज को अब फिलहाल उसे और सवाल पूछने मे कोई दिलचस्पी नही रही थी. वे दोनो अंकित को हथकड़ी पहनाने के लिए सामने आ गये. इस बार भी उसने कोई प्रतिकार ना करते हुए पूरा सहयोग किया.

राज को लग रहा था कि या तो यह आदमी पागल होगा या अति चालाक...

लेकिन वह जो कहता है वह अगर सच हो तो...?

पल भर के लिए क्यों ना हो राज के दिमाग़ मे यह विचार कौंध गया...

नही.. ऐसे कैसे हो सकता है...?

राज ने अपने दिमाग़ मे आया विचार झटक दिया.

राज के पार्ट्नर पवन ने अंकित को जैल की एक कोठरी मे बंद किया और बाहर से ताला लगाया. राज बाहर ही खड़ा था. जैसे ही राज और उसका पार्ट्नर वहाँ से जाने के लिए मुड़े, अंकित आवेश मे आकर चिल्लाया -

"तुम लोग मूर्ख हो... भले ही तुमने मुझे जैल की इस कोठरी बंद किया फिर भी मेरा जादू यहाँ से भी काम करेगा..."

राज और पवन रुक गये और मुड़कर अंकित की तरफ देखने लगे.

राज को अंकित पर अब दया आ रही थी..

बेचारा...

बहन का इस तरह से अंत होने से इस तरह झुंझलाना जायज़ है...

राज सोचते हुए फिर से अपने साथी के साथ आगे चलने लगा. थोड़ी दूरी तय करने के बाद फिर से मुड़कर उसने अंकित की तरफ देखा. वह अब नीचे झुक कर फर्शपर माथा रगड़ रहा था और साथ मे कुछ मन्त्र बड़बड़ा रहा था.

"इसके उपर ध्यान रखो और इसे किसी भी विज़िटार को मिलने की अनुमति मत दो..." राज ने निर्देश दिया.

"यस सर..." राज का पार्ट्नर आग्याकारी ढंग से बोला.

अशोक का घर और आसपास का इलाक़ा पूरी तरह रात के अंधेरे मे डूब गया था. बाहर आसपास झींगुरा का कीरर्र.... ऐसी आवाज़ और दूर कहीं कुत्तों के रोने जैसे आवाज़ आ रही थी. अचानक घर के पास एक पेड पर आसरे के लिए बैठे पंछी डर के मारे फड़फड़ा कर उड़ने लगे.

दो पोलीस मेंबर्ज़ टीवी के सामने बैठकर अशोक के घर मे चल रही सारी हरकतों का निरीक्षण कर रहे थे. अशोक के घर के बगल मे ही एक गेस्ट रूम मे उन्हे जगह दी गयी थे. उन दो पोलीस मेंबर्ज़ के सामने टीवी पर बैचेनी से करवट बदल ता और सोने की कोशिश कर रहा अशोक दिख रहा था.

"इससे अच्छा किसी सेक्सी दंपति की टीवी पर निगरानी करना मैने कभी भी पसंद किया होगा..." उनमे से एक पोलीसवाले ने मज़ाक मे कहा.

और दूसरे पोलीस वाले को उसके मज़ाक मे बिल्कुल दिलचस्पी नही दिख रही थी.

तभी अचानक एक मॉनीटौर पर कुछ हरकत दिखाई दी. एक काली बिल्ली बेडरूम मे दौड़ते हुए इधर से उधर गयी थी.

"आए देख वहाँ अशोक के बेडरूम मे एक काली बिल्ली है..." एक ने कहा.

"यहाँ क्या हम कुत्ते बिल्लियों के हरकतों पर नज़र रखने के लिए बैठे है...? मेरे बाप को अगर पता होता कि एक दिन में ऐसे मॉनिटूर पर कुत्ते बिल्लियों की हरकतों पर नज़र रखे बैठनेवाला हूँ... तो वह मुझे कभी पोलीस मे नही जाने देता..." एक पोलीस ऑफीसर ने ताना मारते हुए कहा.

अचानक उस बिल्ली ने कोने मे रखे एक चोरस डिब्बेपार छलाँग लगाई... और इधर इन दोनो के सामने रखे हुए सारे मॉनीटौर्स ब्लॅंक हो गये.

"आए क्या हुआ...?" एक ऑफीसर कुर्सी से उठकर खड़ा होते हुए बोला.

उसका दूसरा साथी भी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था.

दोनो का मज़ाक करना कब का ख़त्म हो चुका था. उनके चेहरे पर अब चिंता और हड़बड़ाहट दिख रही थी.

"चल जल्दी... क्या गड़बड़ी हुई यह देख के आते है..." दोनो जल्दी जल्दी कमरे से बाहर निकले...

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:20

एक बेडरूम, बेडरूम मे धुंधली रोशनी फैली हुई थी और बेड पर कोई साया सोया हुआ दिखाई दे रहा था. अचानक बेड के बगल मे रखा टेलिफोन लगातार बजने लगा. उस बेड पर सोए साए ने नींद मे ही अपना हाथ बढ़ाकर वह टेलिफोन उठाया.

"येस..." वह साया कोई और नही राज था.

उधर से उस पोलीस ऑफीसर की आवाज़ आई, "सर अशोक का भी उसी तरह से कत्ल हो चुका है..."

"क्या...?" राज एकदम से बेड से उठकर बैठ गया.

उसने बेड के बगल मे एक बटन दबाकर बेडरूम का बल्ब जलाया. उसकी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी... लाइट जलते ही बगल मे लेती डॉली भी जाग गयी थी.... और राज क्या बोल रहा है सुन रही थी..

"क्या कहा...?" राज को वह जो सुन रहा था उसपर विश्वास नही हो रहा था.

"सर अशोक का भी कत्ल हो चुका है..."

"इतने कॅमरा लगाकर मॉनिटर पर लगाकर तुम लोग लगातार निगरानी कर रहे थे... तब भी...? तुम लोग वहाँ निगरानी कर रहे थे या झक मार रहे थे...?" राज ने चिढ़कर कहा.

"सर वह क्या हुआ... एक बिल्ली ने ट्रांस मीटर के उपर छलाँग लगाई और सारे मॉनीटौर एकदम से बंद हो गये... तो भी हम रिपेर करने के लिए वहाँ गये थे... और वहाँ जाकर देखा तो तब तक कत्ल हो चुका था..." ऑफीसर अपनी तरफ से सफाई देने का प्रयास कर रहा था.

जैसे ही ऑफीस का फोन आया, तैय्यार करके राज डॉली को एक किस करके तुरंत अशोक के घर की तरफ रवाना हुआ.

इतना फुल प्रूफ इतजाम होने के बाद भी अशोक का कत्ल होता है... इसका मतलब क्या...?

पहले ही पोलीस की इमेज लोगों मे काफ़ी खराब हो चुकी थी...

और इसबार पूरा विश्वास था कि क़ातिल अब इस कॅमरा के जाल से छूटना नामुमकिन है...

फिर कहाँ गड़बड़ हुई...?

गाड़ी स्पीड से चलते हुए राज के विचार भी तेज़ी से दौड़ रहे थे.

राज ने बेडरूम मे प्रवेश किया. बेडरूम मे अशोक की डेड बॉडी उसी हाल मे बेड पर पड़ी हुई थी. सब तरफ खून ही खून फैला हुआ दिख रहा था. राज ने बॉडी की प्राथमिक झांच की और फिर कमरे की झांच की. वो दोनो पोलीस ऑफीसर भी वहीं थे. पोलीस की इन्वेस्टिफेशन टीम जो वहाँ अभी अभी पहुँच गयी थी, अपने काम मे व्यस्त थी.

"मिल रहा है कुछ...?" राज ने उन्हे पूछा.

"नही सर... अब तक तो कुछ नही..." राज का एक पार्ट्नर उनकी तरफ से बोला.

राज ने बेडरूम मे आराम से चलते हुए और सबकुछ ध्यानपूर्वक निहाराते हुए एक चक्कर मारा. चक्कर मारने के बाद राज फिर से बेडके पास आकर खड़ा हो गया और उसने बेड के नीच झुक कर देखा.

बेड के नीचे से दो चमकती हुई आँखें उसकी तरफ घुरकर देख रही थी. एक पल के लिए क्यों ना हो राज डर कर थोड़ा पीछे हट गया. वे चमकती हुई आँखें फिर धीरे धीरे उसकी दिशा मे आने लगी और अचानक हमला किया जैसे उसपर झपट पड़ी. वह झट से वहाँ से हट गया. उसे एक गले मे पट्टा पहनी हुई काली बिल्ली बेड के नीचे से बाहर आकर दरवाज़े से बेडरूम के बाहर दौड़ कर जाते हुए दिखाई दी. दरवाज़े से बाहर जाते ही वह बिल्ली एकदम रुक गयी और उसने मुड़कर पीछे देखा. कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था. उस बिल्ली ने एक दो पल राज की तरफ देखा और फिर से मुड़कर वह वहाँ से भाग गयी. दो तीन पल कुछ भी ना बोलते हुए गुजर गये.

"यही वह बिल्ली है... सर..." एक ऑफीसर ने कमरे मे सन्नाटे को भंग किया.

"ट्रॅन्समिशन बॉक्स किधर है....?" बिल्ली से राज को याद आ गया.

"सर यहाँ..." एक ऑफीसर ने एक जगह कोने मे इशारा करते हुए कहा.

क्रमशः……………………


raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:21

इंतकाम की आग--13

गतान्क से आगे………………………

वह बॉक्स नीचे ज़मीन पर गिरा हुआ था. राज नज़दीक गया और उसने वह बॉक्स उठाया. वह टूटा हुआ था. राज ने वह बॉक्स उलट पुलट कर गौर से देखा और वापस जहाँ से उठाया था वहीं रख दिया. तभी बेडरूम के दरवाज़े की तरफ राज का यूँही ख़याल गया. हमेशा की तरह दरवाज़ा तोड़ा हुआ था. लेकिन इसबार अंदर के कुण्डी को चैन लगाकर ताला लगाया हुआ था.

"पवन... ज़रा इधर तो आओ..." राज ने पवन को बुलाया.

पवन जल्दी से राज के पास चला गया.

"यह इधर देखो.. और अब बोलो तुम्हारी थेऔरी क्या कहती है.. कत्ल करने के बाद दरवाज़ा बंद कर अंदर से चैन लगाकर ताला कैसे लगाया होगा...?" राज ने उस कुण्डी को लगाए चैन और ताले की ओर उसका ध्यान खींचते हुए कहा.

पवन ने उस चैन और ताला लगाए कुण्डी की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा, "सर.. अब तो मुझे पक्का विश्वास होने लगा है..."

"किस बात का...?"

"कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त हो सकती है..." पवन पागलों की तरह कहीं शुन्य मे देखते हुए बोला.

सब लोग ग़ूढ भाव से एक दूसरे की तरफ देखने लगे.

राज पोलीस स्टेशन मे बैठकर एक एक बात के उपर गौर से सोच रहा था और अपने पार्ट्नर के साथ बीच बीच मे चर्चा कर रहा था.

"एक बात तुम्हारे ख़याल मे आ गई क्या...?" राज ने शुन्य मे देखते हुए अपने पार्ट्नर से पूछा.

"कौन सी ...?" उसके पार्ट्नर ने पूछा.

"अबतक तीन कत्ल हुए है.... बराबर...?"

"हाँ.... तो...?"

"तीनो कत्ल के पहले अंकित को यह अच्छी तरह से पता था कि अगला कत्ल किसका होनेवाला है..." राज ने कहा.

"हाँ बराबर..."

"और तीसरे कत्ल के वक्त तो अंकित कस्टडी मे बंद था..." राज ने कहा...

"हाँ बराबर है..." पार्ट्नर ने कहा...

"इसका मतलब क्या...?" राज ने मानो खुद से सवाल पूछा हो..

"इसका मतलब सॉफ है कि उसका काला जादू जैल के अंदर से भी काम कर रहा है..." पार्ट्नर मानो उसे एकदम सही जवाब मिला इस खुशी से बोला...

"बेवकूफ़ की तरह कुछ भी मत बको..." राज उसपर गुस्से से चिल्लाया.

"ऐसी बात बोलो कि वह किसी भी तर्कसंगत बुद्धि को हजम हो..."राज अपना गुस्सा काबू मे रखने की कोशिश करते हुए उससे आगे बोला...

बहरहाल राज के पार्ट्नर का खुशी से दमकता चेहरा मुरझा गया.

काफ़ी समय बिना कुछ बात किए शांति से बीत गया.

राज ने आगे कहा, "सुनो, जब हम अंकित के घर गये थे तब एक बात हमने बड़ी स्पष्ट से गौर की..."

"कौन सी...?"

"कि अंकित के मकान मे इतनी खिड़कियाँ थी कि उसके पड़ोस मे किसी को भी उसके घर मे क्या चल रहा है यह स्पष्ट रूप से दिख और सुनाई दे सकता है.."राज ने कहा..

"हाँ बराबर..." उसका पार्ट्नर कुछ ना समझते हुए बोला...

अचानक एक विचार राज के दिमाग़ मे कौंध गया. वह एकदम उठकर खड़ा हो गया. उसके चेहरे पर गुत्थी सुलझाने का आनंद झलक रहा था.

उसका पार्ट्नर भी कुछ ना समझते हुए उसके साथ खड़ा हो गया.

"चलो जल्दी..."राज जल्दी जल्दी दरवाज़े की तरफ जाते हुए बोला...

उसका पार्ट्नर कुछ ना समझते हुए सिर्फ़ उसके पीछे पीछे जाने लगा...

एक दम ब्रेक लगे जैसे राज दरवाज़े मे रुक गया.

"अच्छा तुम एक काम करो... अपने टीम को स्पेशल मिशन के लिए तैय्यार रहनेके लिए बोल दो..." राज ने अपने पार्ट्नर को आदेश दिया.

उसका पार्ट्नर पूरी तरह गड़बड़ा गया था. उसके बॉस को अचानक क्या हुआ यह उसके समझ के परे था....

स्पेशल मिशन...?

मतलब कहीं क़ातिल मिला तो नही...?

लेकिन उनकी जो अभी अभी चर्चा हुई थी उसका और क़ातिल मिलने का दूर दूर तक कोई वास्ता नही दिख रहा था...

फिर स्पेशल मिशन किस लिए..?

राज का पार्ट्नर सोचने लगा. वह राज को कुछ पूछने ही वाला था इतने मे राज दरवाज़े के बाहर जाते जाते फिर से रुक गया और पीछे मुड़कर बोला,

"चलो जल्दी करो..."

उसका पार्ट्नर तुरंत हरकत मे आगया.

जाने दो मुझे क्या करना है...?

स्पेशल मिशन तो स्पेशल मिशन...

राज के पार्ट्नर ने पहले टेबल से फोन उठाया और एक नंबर डाइयल करने लगा.

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