मस्ती ही मस्ती पार्ट
Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट
मस्ती ही मस्ती पार्ट --०४
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
क्या यार... अकेले ही पीकर आ गया?" मैने जब निशिकांत को बीअर के बारे में बताया तो वो बोला!
"अच्छा, तू पीता है क्या?"
"हाँ पिलायेगा तो पी लेंगे..."
"मेरे पास व्हिस्की है..."
"वो भी चलेगी..."
वैसे निशिकांत भी रात के बारे में ना कुछ बोल रहा था ना उसके हाव-भाव से कुछ पता चल रहा था! वो मुझे बहुत सुंदर लग रहा था! उसकी आँखों में चंचल सी चमक थी, चेहरा गोरा था! मैं उसको निहारता रहा और रात में एक्स्पीरिएंस किये उसके स्टेमिना को याद करता रहा! उसकी गाँड की गोल फ़ाँकों को अपने हाथों पर महसूस करता रहा! धर्मेन्द्र के साथ हुए काँड के बाद मेरी ठरक जगी हुई थी! मैं उस रात निशिकांत की गाँड मारना चाहता था! मगर मुझे पता नहीं था कि वो मुझे 'अपनी' मारने देगा या नहीं...
रूम पर वापस आकर उसने व्हिस्की पीना शुरु कर दी! मैने बस एक पैग में उसका साथ दिया मगर वो काफ़ी शातिर पियक्कड लगा क्योंकि साला काफ़ी पी गया था!
"बेटा देसी हूँ... पूरी बॉटल अकेले गटक जाऊँगा और सीधा खडा रहूँगा..."
"आज क्या पहन के सोयेगा?" मैने पहली बार सैक्स का टॉपिक शुरु किया!
"वही जो कल पहना था..."
"अब तो तुझे नींद आ जायेगी..."
"पहले थोडी थकान मिटाऊँगा... नींद किसे आ रही है... तुझे आ रही है क्या?"
"कैसे मिटायेगा?"
"जैसे कल मिटायी थी... क्यों आज तू डर गया क्या?"
"नहीं, मतलब तूने कुछ कहा नहीं... इसलिये मैने समझा..."
"बेटा हर काम कह के नहीं होता... और हम उनमें से हैं जो कहते नहीं, सिर्फ़ करते हैं... तू तो देख ही चुका है..."
"हाँ..."
उसने मुझे पकडा और सीधा अपने होंठ मेरे होंठ पर चिपका दिये और कसमसा के मेरा मुह चूसने लगा और मेरी छाती सहलाने लगा!
"चल तेरी शिकायत दूर कर देते हैं... लगता है तू इग्नोर्ड फ़ील कर रहा है..." वो बोला और हम गुँथ के पलँग पर लेट गये!
"आज सर्दी का पूरा जुगाड हो गया है... शराब के साथ साथ चुदायी की सम्पूर्ण व्यवस्था है और वो भी अकेले कमरे में..."
"हाँ अआहहह... नि..शी..."
हम देखते देखते फ़िर नंगे हो गये और रज़ाई में घुस गये! फ़िर हमने 69 पोजिशन बना ली और अगल बगल लेट कर एक दूसरे का लँड चूसने लगे! उस दिन मैं उसके आँडूओं को चूसने लगा और उसके साथ नीचे उसकी इनर थाईज़ में मुह घुसा कर उसकी गाँड के छेद तक अपनी ज़बान फ़िराने लगा! फ़िर उसने भी मेरी तरह अपनी जाँघें फ़ैला दीं! उसकी गाँड के बाल रेशमी और मुलायम थे, पर हल्के हल्के थे और जाँघें चिकनी! उस दिन हमने लाइट जला रखी थी इसलिये आराम से एक दूसरे का जिस्म देख रहे थे!
उस दिन उसने मुझे चित्त लिटा दिया और फ़िर मेरे घुटनो को मुडवा के मेरी छाती के पास करवा दिया और फ़िर मेरी खुली गाँड के फ़ैले हुये छेद को सहलाया और वहाँ बीच में बैठ कर उसने अपना लँड हाथ मे पकड के मेरे छेद पर दबाना शुरु कर दिया!
"अआहहह...सी...उहहह..." मैने सिसकारी भरी! उसने फ़िर तेल से अपने लँड को भिगा लिया और फ़िर देखते देखते मेरी गाँड के छेद को फ़ैलाते हुये सीधा अपना लँड मेरी गाँड में घुसाते हुये मेरे घुटनो को पकड लिया और फ़िर धक्के दे दे कर चोदने लगा!
"लौंडिया बना के चोद रहा हूँ जानेमन..."
"हाँ राजा... चोद दे, कैसे भी चोद दे..."
"हाय मेरी लैला... मेरी छमिया... तेरी गाँड में बहुत मज़ा है डार्लिंग..."
"हाँ... निशी..." वो कुछ देर में सटीक धक्के देने लगा और पूरा ठरक गया!
"शराब के बाद चोदने में ज़्यादा मज़ा आता है..."
"हाँ वो तो है..."
"बिल्कुल लग रहा है... स्वर्ग में हूँ... तू बढिया चिकना है..."
"हाँ... मैं भी... स्वर्ग में हूँ यार..."
"कल सैटिस्फ़ाई हुआ था ना?"
"हाँ पूरा..."
"आज भी... तुझे... पूरा सैटिस्फ़ाई कर दूँगा..."
"हाँ निशिकांत... कर दे..."
काफ़ी देर तक चोदने के बाद वो मूतने के लिये चला गया और मैने बिस्तर में लेट कर उसका वेट करने लगा! जब वो आया तो हम फ़िर एक दूसरे से लिपट के अपने लँड भिडा भिडा के एक दूसरे का जिस्म सहलाने लगे! इस बार जब वो अपना लँड चुसवाने के लिये मेरे सामने करवट लेकर लेटा तो मैने कहा!
"थोडा पलट के लेट ना..."
"क्यों?"
"गाँड चाटूँगा..."
"ले चाट ले..." वो जब करवट लेकर पलटा तो उसकी जाँघें सटी हुई थीं जिस से उसकी पतली कमर और गाँड का गोल उभार बहुत बढिया लग रहे थे! मैने हल्के से उसके चूतडों को फ़ैलाया और उसका गुलाबी छेद देखा! पहले सीधा अपनी नाक उस पर रख कर सूंघा! उसकी गाँड की बेहतरीन खुश्बू सूँघ कर मैं मस्त हो गया और मैने अपने होंठ उसकी गाँड पर रख दिये और फ़िर अपनी ज़बान से उसको चाटा और देखते देखते मैं उसकी गाँड के गहरे चुम्बन लेने लगा तो उसकी गाँड खुल गयी!
तब मेरी भी ठरक जग गयी और मैने बेड के नीचे पडी तेल की शीशी उठायी!
"अबे क्या कर रहा है?"
"थोडा सा... बस थोडा सा... ऊपर ऊपर से..."
"नहीं यार..."
"अबे प्लीज... यार प्लीज..."
"ठीक है... मगर... बस ऊपर से..."
"ठीक है..."
वो अब पलट के लेट गया और अपनी टाँगें थोडी सी फ़ैला लीं! उसकी गाँड की चिकनी दरार बडी खूबसूरत थी और उसके बीच उसका सुंदर सा चुन्नटदार छेद... मैने कुछ देर उसकी दरार में लँड रगडा तो वो रिलैक्स्ड हुआ! फ़िर मैने उसके छेद पर सुपाडा रगडा, वो शुरु में चिंहुका, मगर फ़िर धीरे धीरे एन्जॉय करने लगा! मुझे उसकी गाँड रिलैक्स्ड लगी! मैने हल्का सा लँड उसकी गाँड पर दबाया तो उसकी गाँड की चुन्नटें थोडा खुलीं! उसने हल्की सी सिसकारी भरी!
"तेरा बहुत मोटा है यार... कुछ करना मत..."
"पता नहीं चलेगा यार..."
"नहीं यार बडा मोटा है... हो नहीं पायेगा..."
"होने तो दे... सब हो जाता है..." मैने थोडा दबाव दिया तो उसका छेद फ़ैल गया!
"आई...अआह... नहीं बे... नहीं... नहीं..." मैने कुछ और दबाव दिया! उसकी गाँड शायद मेरे लँड के दबाव से मचल रही थी!
"अच्छा जितना जाता है... जाने दे..."
"नहीं जा पायेगा... बहुत.. मोटा.. है..."
"मोटे का.. भी.. तो.. मज़ा... ले ले..." इस बार मैने दबाया तो उसका छेद और फ़ैला!
"सी...उउ..उहहह..."
"देख.. मज़ा आया... ना..."
"अभी.. आह... कुछ गया... कहाँ.. आह.. है... इसलिये मज़ा...अआहहह... आ रहा... है... अआई..."
मैने और दबाव दिया तो मेरा सुपाडा उसकी गाँड में घुसा और उसने साँस रोक ली!
"उउहहह.."
"बस.. बस... बस..." मैने कहा और धक्का दिया तो लँड थोडा और अंदर गया! उसकी गाँड कुछ ऊपर उठी
"उउउहहह..."
"अच्छा.. मज़ा तो ले... जब दर्द होगा... तो बोल देना... मगर.. मज़ा तो.. ले..." मैने कहा और अगले धक्के में लँड को और अंदर घुसाया तो उसका छेद चरमराता हुआ महसूस हुआ! मैं एकदम आराम से लँड अंदर घुसा रहा था कि उसको तकलीफ़ ना हो!
"उउहहह... अम्बर प्लीज...."
"बस.. निशी बस..." बातों बातों में लँड पूरा उसकी गाँड में डाल दिया और उसके कंधे पकड के उसके ऊपर लेट गया!
"देखा... कहा था ना... चला जायेगा..."
"हाँ यार..." फ़िर मैने उसकी गाँड में धक्के देने शुरु कर दिये!
"क्यों? पहले ले चुका है ना..."
"हाँ..."
"कितने आसामी फ़ँसा रखे हैं?"
"अबे... एक कज़िन के साथ करता हूँ... बस..."
"अच्छा?"
"चल, अब मैं भी तेरा भाई हो गया..."
"हाँ..." उसने कहा!
"वैसे भी दो लडकों के बीच ये रिश्ता सबसे बढिया होता है..."
"हाँ..." मेरा लँड दोपहर से ही उफ़न रहा था इसलिये कुछ देर में ही मैने अपना माल उसकी गाँड की गहराईयों में भर दिया और फ़िर कुछ देर के ब्रेक के बाद अब वो मेरे ऊपर चढ गया!
"ले डार्लिंग... ले ले.. अब मेरा लौडा ले ले..."
"हाँ निशी दे दे... ला घुसा..."
"ले ना जानेमन... तेरी गाँड की माँ चोद दूँगा..."
"हाँ चोद दे... माँ बहन... सब चोद दे..."
"जानेमन मेरी जान... तेरी गाँड बडी रसीली है..." और फ़िर उसका लँड भी मेरी गाँड की गहराई में घुस कर झड गया! हम दोनो तृप्त हो गये थे और नशे के कारण उस रात जल्दी नींद आ गयी!
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
क्या यार... अकेले ही पीकर आ गया?" मैने जब निशिकांत को बीअर के बारे में बताया तो वो बोला!
"अच्छा, तू पीता है क्या?"
"हाँ पिलायेगा तो पी लेंगे..."
"मेरे पास व्हिस्की है..."
"वो भी चलेगी..."
वैसे निशिकांत भी रात के बारे में ना कुछ बोल रहा था ना उसके हाव-भाव से कुछ पता चल रहा था! वो मुझे बहुत सुंदर लग रहा था! उसकी आँखों में चंचल सी चमक थी, चेहरा गोरा था! मैं उसको निहारता रहा और रात में एक्स्पीरिएंस किये उसके स्टेमिना को याद करता रहा! उसकी गाँड की गोल फ़ाँकों को अपने हाथों पर महसूस करता रहा! धर्मेन्द्र के साथ हुए काँड के बाद मेरी ठरक जगी हुई थी! मैं उस रात निशिकांत की गाँड मारना चाहता था! मगर मुझे पता नहीं था कि वो मुझे 'अपनी' मारने देगा या नहीं...
रूम पर वापस आकर उसने व्हिस्की पीना शुरु कर दी! मैने बस एक पैग में उसका साथ दिया मगर वो काफ़ी शातिर पियक्कड लगा क्योंकि साला काफ़ी पी गया था!
"बेटा देसी हूँ... पूरी बॉटल अकेले गटक जाऊँगा और सीधा खडा रहूँगा..."
"आज क्या पहन के सोयेगा?" मैने पहली बार सैक्स का टॉपिक शुरु किया!
"वही जो कल पहना था..."
"अब तो तुझे नींद आ जायेगी..."
"पहले थोडी थकान मिटाऊँगा... नींद किसे आ रही है... तुझे आ रही है क्या?"
"कैसे मिटायेगा?"
"जैसे कल मिटायी थी... क्यों आज तू डर गया क्या?"
"नहीं, मतलब तूने कुछ कहा नहीं... इसलिये मैने समझा..."
"बेटा हर काम कह के नहीं होता... और हम उनमें से हैं जो कहते नहीं, सिर्फ़ करते हैं... तू तो देख ही चुका है..."
"हाँ..."
उसने मुझे पकडा और सीधा अपने होंठ मेरे होंठ पर चिपका दिये और कसमसा के मेरा मुह चूसने लगा और मेरी छाती सहलाने लगा!
"चल तेरी शिकायत दूर कर देते हैं... लगता है तू इग्नोर्ड फ़ील कर रहा है..." वो बोला और हम गुँथ के पलँग पर लेट गये!
"आज सर्दी का पूरा जुगाड हो गया है... शराब के साथ साथ चुदायी की सम्पूर्ण व्यवस्था है और वो भी अकेले कमरे में..."
"हाँ अआहहह... नि..शी..."
हम देखते देखते फ़िर नंगे हो गये और रज़ाई में घुस गये! फ़िर हमने 69 पोजिशन बना ली और अगल बगल लेट कर एक दूसरे का लँड चूसने लगे! उस दिन मैं उसके आँडूओं को चूसने लगा और उसके साथ नीचे उसकी इनर थाईज़ में मुह घुसा कर उसकी गाँड के छेद तक अपनी ज़बान फ़िराने लगा! फ़िर उसने भी मेरी तरह अपनी जाँघें फ़ैला दीं! उसकी गाँड के बाल रेशमी और मुलायम थे, पर हल्के हल्के थे और जाँघें चिकनी! उस दिन हमने लाइट जला रखी थी इसलिये आराम से एक दूसरे का जिस्म देख रहे थे!
उस दिन उसने मुझे चित्त लिटा दिया और फ़िर मेरे घुटनो को मुडवा के मेरी छाती के पास करवा दिया और फ़िर मेरी खुली गाँड के फ़ैले हुये छेद को सहलाया और वहाँ बीच में बैठ कर उसने अपना लँड हाथ मे पकड के मेरे छेद पर दबाना शुरु कर दिया!
"अआहहह...सी...उहहह..." मैने सिसकारी भरी! उसने फ़िर तेल से अपने लँड को भिगा लिया और फ़िर देखते देखते मेरी गाँड के छेद को फ़ैलाते हुये सीधा अपना लँड मेरी गाँड में घुसाते हुये मेरे घुटनो को पकड लिया और फ़िर धक्के दे दे कर चोदने लगा!
"लौंडिया बना के चोद रहा हूँ जानेमन..."
"हाँ राजा... चोद दे, कैसे भी चोद दे..."
"हाय मेरी लैला... मेरी छमिया... तेरी गाँड में बहुत मज़ा है डार्लिंग..."
"हाँ... निशी..." वो कुछ देर में सटीक धक्के देने लगा और पूरा ठरक गया!
"शराब के बाद चोदने में ज़्यादा मज़ा आता है..."
"हाँ वो तो है..."
"बिल्कुल लग रहा है... स्वर्ग में हूँ... तू बढिया चिकना है..."
"हाँ... मैं भी... स्वर्ग में हूँ यार..."
"कल सैटिस्फ़ाई हुआ था ना?"
"हाँ पूरा..."
"आज भी... तुझे... पूरा सैटिस्फ़ाई कर दूँगा..."
"हाँ निशिकांत... कर दे..."
काफ़ी देर तक चोदने के बाद वो मूतने के लिये चला गया और मैने बिस्तर में लेट कर उसका वेट करने लगा! जब वो आया तो हम फ़िर एक दूसरे से लिपट के अपने लँड भिडा भिडा के एक दूसरे का जिस्म सहलाने लगे! इस बार जब वो अपना लँड चुसवाने के लिये मेरे सामने करवट लेकर लेटा तो मैने कहा!
"थोडा पलट के लेट ना..."
"क्यों?"
"गाँड चाटूँगा..."
"ले चाट ले..." वो जब करवट लेकर पलटा तो उसकी जाँघें सटी हुई थीं जिस से उसकी पतली कमर और गाँड का गोल उभार बहुत बढिया लग रहे थे! मैने हल्के से उसके चूतडों को फ़ैलाया और उसका गुलाबी छेद देखा! पहले सीधा अपनी नाक उस पर रख कर सूंघा! उसकी गाँड की बेहतरीन खुश्बू सूँघ कर मैं मस्त हो गया और मैने अपने होंठ उसकी गाँड पर रख दिये और फ़िर अपनी ज़बान से उसको चाटा और देखते देखते मैं उसकी गाँड के गहरे चुम्बन लेने लगा तो उसकी गाँड खुल गयी!
तब मेरी भी ठरक जग गयी और मैने बेड के नीचे पडी तेल की शीशी उठायी!
"अबे क्या कर रहा है?"
"थोडा सा... बस थोडा सा... ऊपर ऊपर से..."
"नहीं यार..."
"अबे प्लीज... यार प्लीज..."
"ठीक है... मगर... बस ऊपर से..."
"ठीक है..."
वो अब पलट के लेट गया और अपनी टाँगें थोडी सी फ़ैला लीं! उसकी गाँड की चिकनी दरार बडी खूबसूरत थी और उसके बीच उसका सुंदर सा चुन्नटदार छेद... मैने कुछ देर उसकी दरार में लँड रगडा तो वो रिलैक्स्ड हुआ! फ़िर मैने उसके छेद पर सुपाडा रगडा, वो शुरु में चिंहुका, मगर फ़िर धीरे धीरे एन्जॉय करने लगा! मुझे उसकी गाँड रिलैक्स्ड लगी! मैने हल्का सा लँड उसकी गाँड पर दबाया तो उसकी गाँड की चुन्नटें थोडा खुलीं! उसने हल्की सी सिसकारी भरी!
"तेरा बहुत मोटा है यार... कुछ करना मत..."
"पता नहीं चलेगा यार..."
"नहीं यार बडा मोटा है... हो नहीं पायेगा..."
"होने तो दे... सब हो जाता है..." मैने थोडा दबाव दिया तो उसका छेद फ़ैल गया!
"आई...अआह... नहीं बे... नहीं... नहीं..." मैने कुछ और दबाव दिया! उसकी गाँड शायद मेरे लँड के दबाव से मचल रही थी!
"अच्छा जितना जाता है... जाने दे..."
"नहीं जा पायेगा... बहुत.. मोटा.. है..."
"मोटे का.. भी.. तो.. मज़ा... ले ले..." इस बार मैने दबाया तो उसका छेद और फ़ैला!
"सी...उउ..उहहह..."
"देख.. मज़ा आया... ना..."
"अभी.. आह... कुछ गया... कहाँ.. आह.. है... इसलिये मज़ा...अआहहह... आ रहा... है... अआई..."
मैने और दबाव दिया तो मेरा सुपाडा उसकी गाँड में घुसा और उसने साँस रोक ली!
"उउहहह.."
"बस.. बस... बस..." मैने कहा और धक्का दिया तो लँड थोडा और अंदर गया! उसकी गाँड कुछ ऊपर उठी
"उउउहहह..."
"अच्छा.. मज़ा तो ले... जब दर्द होगा... तो बोल देना... मगर.. मज़ा तो.. ले..." मैने कहा और अगले धक्के में लँड को और अंदर घुसाया तो उसका छेद चरमराता हुआ महसूस हुआ! मैं एकदम आराम से लँड अंदर घुसा रहा था कि उसको तकलीफ़ ना हो!
"उउहहह... अम्बर प्लीज...."
"बस.. निशी बस..." बातों बातों में लँड पूरा उसकी गाँड में डाल दिया और उसके कंधे पकड के उसके ऊपर लेट गया!
"देखा... कहा था ना... चला जायेगा..."
"हाँ यार..." फ़िर मैने उसकी गाँड में धक्के देने शुरु कर दिये!
"क्यों? पहले ले चुका है ना..."
"हाँ..."
"कितने आसामी फ़ँसा रखे हैं?"
"अबे... एक कज़िन के साथ करता हूँ... बस..."
"अच्छा?"
"चल, अब मैं भी तेरा भाई हो गया..."
"हाँ..." उसने कहा!
"वैसे भी दो लडकों के बीच ये रिश्ता सबसे बढिया होता है..."
"हाँ..." मेरा लँड दोपहर से ही उफ़न रहा था इसलिये कुछ देर में ही मैने अपना माल उसकी गाँड की गहराईयों में भर दिया और फ़िर कुछ देर के ब्रेक के बाद अब वो मेरे ऊपर चढ गया!
"ले डार्लिंग... ले ले.. अब मेरा लौडा ले ले..."
"हाँ निशी दे दे... ला घुसा..."
"ले ना जानेमन... तेरी गाँड की माँ चोद दूँगा..."
"हाँ चोद दे... माँ बहन... सब चोद दे..."
"जानेमन मेरी जान... तेरी गाँड बडी रसीली है..." और फ़िर उसका लँड भी मेरी गाँड की गहराई में घुस कर झड गया! हम दोनो तृप्त हो गये थे और नशे के कारण उस रात जल्दी नींद आ गयी!
Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट
मस्ती ही मस्ती पार्ट --०५
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
अगली सुबह गौरव वापस आ गया! इस बार उससे आराम से बात-चीत हुई! वो भी यू.पी. का सैक्सी सा देसी लौंडा था जो बातों और हुलिये से काफ़ी स्मार्ट और हरामी लगा! मुझे शक़ सा होने लगा कि शायद उसके और निशिकांत के बीच भी कुछ है!
अगले दिन जब कॉलेज में धर्मेन्द्र मिला तो उसने और लडकों की तरह नाटक नहीं किया और हाथ मिलाते ही मेरा हाथ दबाया और बोला! "क्यों डार्लिंग रात में याद आयी?"
"हाँ बहुत" मैने कहा!
"बस अब कभी साथ में रात गुज़ार भी ले जानेमन... तो मज़ा आ जाये..."
"ठीक है" उस साले ने मुझे सुबह सुबह ही ठरका दिया!
"आज आजा... आज वो लडका नहीं है..."
"नहीं यार, आज मेरे मामा आये हुए है... उनके जाते ही..."
उस दिन विनोद नहीं आया था, बस कुणाल था! उस दिन हम जब कैन्टीन में बैठे तो लडकों की बातों से सैंट्रल पार्क के बारे में पता चला और मैने सोचा कि वहाँ भी जाकर देखूँगा! कुणाल भी काफ़ी चुदायी की बातें करता था! मगर मैं उससे और विनोद से सिर्फ़ बदनामी के डर से डरता था! वो मुह फ़ट टाइप के थे!
उस रात का खाना मैने निशिकांत और गौरव के साथ खाया! विशम्भर अब बहुत खुश होकर खाना लगाता था और मैं मस्ती से उसकी कमसिन चिकनाहट निहारता था! जब गौरव इधर उधर हुआ तो निशी बोला!
"यार आज तेरी याद आयेगी..."
"हाँ यार... मुझे भी..." मैने असद को देखा वो काम में लगा था! उस दिन भी मैने विशम्भर को दस रुपये दिये! वो अब मेरा फ़ैन हो गया था! मैने मौका निकाल के कहा "रूम पर आया करो ना... आराम से बैठेंगे..."
"जी, आऊँगा..." उसने कहा और जब मुडा तो उसकी पैंट के ऊपर से उसकी गाँड देखकर मैं मस्त हो गया... उसके गुलाबी रसीले होंठ, मादक मुस्कुराहट और नशीला चेहरा... खैर इसी बहाने मेरी गौरव से भी जान पहचान हो गयी और दोस्ती फ़्रैंकनेस की तरफ़ बढने लगी!
फ़िर राशिद भाई के आने का दिन आने लगा! उनके आने के दो दिन पहले फ़िर लैटर आया कि मैं टैक्सी लेकर जाऊँ क्योंकि शायद उनके पास ज़्यादा सामान है! अब मुझे इसका आइडिआ तो बिल्कुल नहीं था कि वहाँ टैक्सी कहाँ से मिलेगी! टैक्सी की तलाश में विनोद ने मुझे प्रदीप नाम के एक लडके से मिलवाया और उसको देखते ही मैं तो बस देखता ही रह गया! जब वो मिला था वो व्हाइट जीन्स और स्वेटर पहने हुये था और उसका स्लिम ट्रिम जिस्म बडा सैक्सी लग रहा था! वैसे उसका चेहरा भी बडा सुंदर और प्यासा सा था! उससे सैटिंग हो गयी! उसने कहा कि वो जाने वाले दिन शाम के 7 बजे मेरे रूम पर आ जायेगा क्योंकि भैया की ट्रेन रात में पहुँचने वाली थी! जब मैने विनोद से 'थैंक यू' कहा तो वो बोला!
"मेरी कटारी... तू 'थैंक यू' क्यों बोलता है... एक बार अपनी बुँड दे दे..."
"अबे रहने दे यार..." मैने हल्के से शरमाते हुये कहा तो देखा कि प्रदीप भी मुस्कुरा रहा था! प्रदीप ओरिजिनली विनोद के घर के आसपास कहीं रहता था! बडा हरामी सा कमीना लडका था, जो रह रह कर अपना लँड खुजा और सहला रहा था! जब मैने एक दो बार उसकी ज़िप पर नज़र डाली तो देखा वहाँ उसका उभार अच्छा खासा था मगर तब तक मैं उस टाइप के मुह फ़ट लडकों से दूर ही रहता था!
"बोल, रूम पर दारू पिलायेगा क्या? चलूँ?" जब वहाँ से चले तो विनोद बोला! मैं चाहता भी था और नहीं भी!
"साले तू पीकर हरामीपना करेगा..."
"अरे मेरी मक्खन... एक बार हमारे हरामीपने का भी मज़ा ले ले..."
"देख... इसीलिये मना कर रहा हूँ..."
"अच्छा चल, कुछ नहीं करूँगा चल..." मैं धडकते दिल से रास्ते से दारू लेकर उसके साथ अपने रूम पर पहुँच गया! वहाँ वो जब जूते उतार के पलँग पर बैठा तो उसके सॉक्स की बदबू आयी जिस से मैं मस्त सा होने लगा!
"साले, तेरे पैरों से कितनी बदबू आ रही है..."
"बदबू नहीं बेटा... मर्द की खुश्बू है... बहुत से गाँडू तो पैरों पर नाक रगड के इसको सूंघते हैं..." हम अब पी रहे थे!
"क्यों, तुझे कहाँ मिले ऐसे लोग?"
"सालों को फ़ँसाना पडता है... वो तो हमारे जैसे नये लौंडों को ढूँढते रहते हैं..."
"क्यों?"
"सालों को नया नया लँड चाहिये होता है..."
"क्या बात करता है यार? तू उस टाइप का है?"
"उस टाइप का नहीं हूँ... जवान हूँ... थोडा मज़ा कर लेता हूँ..."
उस दिन वो क्रीम कलर की टैरीकॉट की पैंट पहने था और हमेशा की तरह वो इतनी चुस्त थी कि उसकी जाँघें और लँड उसमें समा ही नहीं पा रहे थे! आदत से मजबूर, मैं अक्सर उसकी जाँघों और उसके बीच के पहाड को देख रहा था! उसके आँडूओं के आसपास से ही पैंट में सलवटें पड रहीं थीं और ठीक उसके आँडूओ के नीचे उसकी पैंट की सिलायी बडी खूबसूरत लग रही थी! उसने दूसरा पेग बनाते हुये मुझे बताया!
"बहनचोद, एक दो तो पैसे भी देते हैं... पहले दारू पिला कर गाँड मरवाते हैं फ़िर गाँड मारने के पैसे देते हैं..."
"वाह यार... मुझे नहीं मिला कोई..."
"चलियो मेरे साथ किसी दिन..."
"अबे नहीं..."
"बहनचोद... फ़ट गयी तेरी? वो साले कुणाल की भी फ़टी थी पहली बार..."
"मतलब वो बाद में गया तेरे साथ?"
"अब तो हम साथ जाते हैं... अपना अपना आसामी पकड के वहाँ से निकल लेते हैं..." बातों में उसका लँड खडा हो गया था और अब टाइट पैंट के कारण साफ़ उभरा हुआ दिख रहा था!
"तूने मारी है कभी किसी की गाँड?"
"नहीं यार" ऐसे मामलों में साफ़ मुकर जाता हूँ!
"एक बार मार ले... ऐसा चस्का लगेगा कि डेली ढूँढेगा..." उसको क्या पता था कि मुझे वो चस्का लग चुका था!
थोडी और शराब नीचे उतरी तो वो अपने दोनो पैर मोड कर दीवार से टेक लगाकर बैठ गया! अब मुझे उसकी जाँघ का निचला हिस्सा और गाँड साफ़ दिखने लगी जिस कारण मैं अब वहाँ से नज़र हटाने में मुश्किल महसूस कर रहा था! साला था ही बडा ज़बर्दस्त!
"मुझे आती ही नहीं है यार मारनी..."
"मैं सिखा दूँगा राजा..."
"नहीं यार..."
"मुठ तो मारता है ना?"
"हाँ"
"कितनी बार?"
"एक बार... कभी कभी दो बार..."
"मतलब लौडा खुराक तो ढूँढने लगा है तेरा..."
"हाँ खडा हो जाता है तो बैठता ही नहीं है..."
"मेरा तो अभी भी खडा हो गया..."
"अभी कैसे खडा हो गया?" मैने पूछा!
"बस..."
"मतलब कोई लडकी वडकी भी नहीं है... क्या तू लडकी के बारे में सोच रहा था?"
"लडकी नहीं है तो क्या हुआ... तू तो है..." विनोद बोला!
वैसे तब तक मुझे भी चढ चुकी थी!
"मुझे देख के ही खडा हो गया??? क्या बात करता है यार..."
"तू मुझे हमेशा से बडा चिकना लगता है... बस एक बार तेरी मारने का दिल है..."
"क्या बोलता है यार... मैं कोई लौंडिया थोडी हूँ?"
"अरे यार... लौंडिया में ऐसा क्या है जो तुझ में नहीं है... तू वैसा ही गोरा, नमकीन और चिकना तो है..." मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थीं!
"अबे रहने दे, क्यों बकवास कर रहा है... तूने मना किया था ना कि इस टाइप की बातें नहीं करेगा..." उसकी बातें अच्छी लगने के बावज़ूद भी मैने कहा!
"तू बुरा क्यों मान रहा है... मैं तो तुझे सच्चाई बता रहा हूँ... बस एक बार गाँड दे दे जानेमन... तो मज़ा आ जायेगा... अब चढ भी गयी है, गाँड मारने में बहुत मज़ा आयेगा..."
"पहले कितनों की मार चुका है?"
"काफ़ी एक्स्पीरिएन्स है... सैटिस्फ़ाई करके मारूँगा..."
"अबे गाँड मरवाने में क्या मज़ा आता होगा किसी को?"
"बेटा जब सरक के बुँड के छेद में घुसता है तो ऐसा मज़ा देता है कि पूछ मत..."
"तू क्या पूरा लँड घुसा देता है?"
"पूरा का पूरा... साले, जड तक... एक बार मरवा... दिखा दूँगा..."
कहते हुए उसने मज़बूती से मेरा हाथ पकड लिया तो मैं थोडा और मस्त हो गया!
"एक बार लँड सहला दे ना अपने चिकने हाथ से..."
"अबे...." मैं मना कर पाता, उसके पहले ही उसने मेरा हाथ पकड के अपने लँड पर घुमा दिया! उसका लँड वास्तव में फ़ुँकार मार रहा था!
"देख देख... कैसा लगा... देख..." वो मेरा हाथ अपने लँड पर दबा के कह रहा था!
"अबे कैसा क्या?"
"खोल के थमा दूँ क्या?"
"नहीं यार..."
"अच्छा चल एक चुम्मा दे दे... एक किस अपने गाल पे..." और फ़िर इसके पहले कि मैं फ़िर उसे मना कर पाता, उसने मेरा चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया और मेरे सर के पीछे के बालों में हाथ फ़ँसा के अपने होंठ मेरे गालों पर रख दिये!
"उँहु... विनोद... अबे ये क्या... अबे पागल है?" मगर उसने कसमसा के मेरे गालों को अपने हाथ से पकड के अपने होंठों से चूस डाला! उसकी मज़बूत पकड के कारण मैं हिल नहीं पाया और कुछ मैने भी हिलना नहीं चाहा! और फ़िर अभी वो हटता, उसने वैसे ही मुझे थोडा और घुमाया और देखते देखते अपने होंठ मेरे होंठों पर रख के दबा दिये तो उसके होंठों की मज़बूती के कारण मेरे होंठों मेरे दाँत पर दबे! इससे दर्द हुआ और मेरे होंठ हल्का सा खुल गया तो उसने मेरे मुह को अपने मुह से पूरा सील कर के चूसना शुरु कर दिया!
"उंहु... उहहह... उंहु..." उसने करीब दो मिनिट तक लगातार मुझे किस किया!
"अआहहह... मज़ा आया ना बेटा?" मैं अब काफ़ी कमज़ोर पड चुका था!
"आह... आज दिली इच्छा पूरी हो गयी यार... तेरे होंठों का रस बडा शराबी है..."
"अबे तू बडा कमीना है..."
"अच्छा चल अब चलता हूँ..." जब उसने कहा तो अंदर ही अंदर मेरा दिल टूट गया!
"ज़रा मूत लूँ... फ़िर निकलता हूँ..." उसने ऐसा कहते हुये मेरा रिएक्शन देखा क्योंकि अपने डिस-अपॉइंट्मेंट को मैं छुपा नहीं पाया था!
वो जब बाथरूम में मूतने के लिये गया तो उसने दरवाज़ा बन्द नहीं किया और अंदर से आती उसके मूतने की आवाज़ से मैं मस्त हो गया! फ़िर जब वो बाहर आया को मैने देखा कि उसने सिर्फ़ चड्डी पहन रखी थी और उसके निचले हिस्से से लँड बाहर खींच के हाथ में लेकर सहला रहा था! उसका लँड देख कर मेरी रही सही ना नुकुर गायब हो गयी! उसका लँड लम्बा और मोटा था और साँवला, उसने अपना सुपाडा खोल रखा था, काफ़ी सुंदर लौडा था!
"अरे यार... ये क्या?"
"तू भी खोल ले ना... तेरी किस ने खडा करवा दिया..."
"अरे यार किसी को पता चलेगा तो हँसेगा..."
"किसी बहन के लौडे को यहाँ अकेले मे हुई बात का कैसे पता चलेगा?" वो मेरे करीब आ गया था! मैं बैठा था, उसका लँड मेरे मुह के पास आ चुका था, मैं ठरक चुका था!
"चुप रह ना... अब देख, बहुत मज़ा आयेगा..." कहकर उसने मुझे पलँग पर धक्का दे दिया! मेरे पैर नीचे लटके थे और सर तकिये पर था! उसने मेरी पैंट खोल दी तो मैने बस हल्के से उसका हाथ पकडा!
"मत कर ना..."
"बेटा तुझे मज़ा दूँगा..."
उसने मेरी पैंट नीचे सरका के मेरे लँड पर हाथ रख के मसल दिया!
"तेरा तो काफ़ी बडा दिखता है..." कहते हुये उसने मेरी अँडरवीअर भी नीचे सरकाई तो मेरा लँड हवा में खडा हो गया!
"यार प्लीज..."
उसने मेरे सामने ही अपनी चड्डी भी उतार दी तो मैने देखा कि उसने झाँटें शेव की हुयीं थी! नँगा होकर उसका बदन और ज़्यादा मादक लग रहा था! उसकी जाँघें मस्क्युलर और हल्के हल्के बालों वाली थी! उसका रँग ऊपर से साँवला लगता था मगर अंदर से गोरा था! वो फ़िर मेरी तरफ़ आया और मेरे कंधों पर हाथ रख कर मेरे ऊपर झुक गया जिससे उसका लँड मेरे लँड से टकराया! इस बार मेरी साँस उस मस्ती से रुक ही गयी! उसने मेरी कमर के दोनो तरफ़ अपने घुटने मोड लिये और मेरे लँड पर अपनी गाँड रख के अपना वेट अपने हाथों पर डालते हुए बैठ गया और अपनी मज़बूत गाँड की दिलचस्प दरार को हल्के हल्के से मेरे लँड की लम्बाई पर रगडने लगा!
"अआह..." मेरी हल्की सी सिसकारी निकली! उसकी सुडौल जाँघें मेरी कमर को दोनो तरफ़ से अपनी गिरफ़्त में लिये हुई थीं!
"अआह..."
"देखा यार... मज़ा आया ना?" मैने पहली बार अपने दोनो हाथ से उसकी कमर पकड के उसकी रिदम के साथ उसको पकड लिया और फ़िर हाथ पीछे करके उसकी कमर और गाँड का उभार सहलाया!
"कैसी है?"
"क्या चीज़?"
"मेरी गाँड..."
"अच्छी है..."
मेरे समझ में नहीं आया कि वो जब, अभी तक मेरी गाँड मारने की बात कर रहा था तो अब मेरे लँड पर अपनी गाँड क्यों रगडने लगा था! शायद वो मुझे सेड्यूस करके कम्फ़र्टेबल करना चाहता था ताकि जब मैं भी मज़ा लेने लगूँ तो उसका काम आसान हो जाये! वो अब हल्के हल्के मेरे लँड पर बैठ कर अपनी फ़ाँकों को भींच कर मेरे लँड को उनके बीच दबाने लगा था! मैने इस बार उसके छेद के पास उँगलियाँ लगायी तो पाया कि वहाँ एक भी बाल नहीं था!
"वहाँ भी शेव कर दिया..."
"क्यों?"
"बस ऐसे ही..."
"कैसे करता है?"
"करवाता हूँ किसी से... तू भी करवायेगा क्या?"
"कर देना..."
"तेरी तो ऐसे ही चिकनी है..."
मेरा सुपाडा अब प्रीकम से भीग चुका था!
"मज़ा आ रहा है ना?"
"हाँ थोडा थोडा..."
"हाँ राजा मज़ा ले..." अब वो ऐसी पोजिशन बना रहा था कि मेरा, प्रीकम से भीगा हुआ, ल्युब्रिकेटेड सुपाडा अक्सर उसके छेद पर फ़ँसने लगा था! वैसे ही एक बार मैने हल्का सा चूतड ऊपर उठा के उसके छेद पर ज़ोर बनाया तो उसने सिसकारी भरी!
"अआहहह... घुसेगा बेटा अंदर भी घुसेगा..." उसने कहा! फ़िर उसने एक बार इधर उधर देखा!
"क्या देख रहा है?" मैने पूछा!
"तेल है तेरे पास?"
"सामने है..." उसने भी ठीक वैसे ही तेल की बॉटल उठायी जैसे निशिकांत ने उठायी थी और मेरे लँड को तेल से भिगा के फ़िर अपनी गाँड को उस पर रगडने लगा!
"गाँड मरवाना चाहता है क्या?"
"तुझे क्या लगता है?"
अब मुझे वो सेफ़ लगने लगा था, अगर वो मुझसे गाँड मरवायेगा तो किसी से ये सब बतायेगा नहीं!
अब जब मेरा सुपाडा उसके छेद पर फ़ँसा तो मैने एक हाथ से अपने लँड को पोजिशन में बना कर रखा! वो भी हल्का सा उठ गया और जब मैने अपनी गाँड ऊपर करके ज़ोर लगाया तो उसने भी अपनी गाँड को ढीला छोड कर मेरे लँड पर अड्जस्ट कर दिया और नीचे की तरफ़ दबाया जिससे मेरा लँड सडसडाता हुआ उसकी गाँड के अंदर घुस गया! उसकी गर्म मज़बूत गाँड ने मेरे लँड को कस के जकड लिया और मुझे मज़ा आ गया! मैने लँड को और अंदर घुसाया और कुछ ही देर में वो मेरा पूरा लँड अपनी गाँड में घुसवा के मज़ा ले ले कर मेरे ऊपर, ऊपर नीचे होने लगा! मैने अब उसकी कमर कस के पकड ली और उसको अपने ऊपर झुका कर फ़िर उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके साथ किसिंग शुरु कर दी! उसकी गाँड खुली हुई थी! मेरे एक्स्पीरिएन्स के हिसाब से उसने काफ़ी गाँड मरवायी हुई थी!
"क्यों, काफ़ी मरवा चुका है ना?" मैने पूछा!
"हाँ..." उसने कहा!
"कुणाल से भी मरवायी है क्या?"
"रहने दे यार... नाम क्यों लें किसी का..."
"ऐसे ही पूछ रहा हूँ यार... दोस्ती यारी में..."
"हाँ उससे भी..."
"उसकी मारी भी?"
"हाँ... तुझे मारनी है क्या उसकी?"
"देगा क्या?"
"दे देगा..."
"तो देखूँगा यार... अभी तो अपनी लेने दे..." कहकर मैं उसकी गाँड का मज़ा लेता रहा!
फ़िर मैने उसको सीधा करके लिटाया और उसके घुटने फ़ैला के आगे से उसकी गाँड बजाने लगा! अब मेरे धक्कों में ताक़त आ गयी थी!
कुछ देर बाद मैं रुक गया!
"क्या हुआ?"
"थक गया यार... तूने एकदम से शुरु करवा दिया ना..."
"हा हा हा..."
"लँड मुह में लेगा?"
"जा धोकर आ..."
"अपना नहीं चुसवायेगा?"
"आजा चुस ले..." 'अपना' धोने के पहले मैं उसके ऊपर झुका और उसका 'हथौडा' अपने मुह में भर लिया और उसको चूसने लगा!
"साले तू भी एक्स्पर्ट है..."
"अगर एक्स्पर्ट नहीं होता तो तुझे लँड की सवारी कैसे कराता?"
"तू मरवाता है?"
"हाँ..."
"वाह यार मैं समझता था कि तू इस लाइन का नहीं होगा इसीलिये तुझे पटाने में इतना टाइम लगाया..."
"होता है... होता है..." मैने कहा!
उसका लँड मर्दाना, भयन्कर और खुश्बूदार था! उसमें पसीने की खुश्बू और नमक था! उसकी बॉडी ओडर ज़बर्दस्त थी! फ़िर मैं उसकी छाती पर चढने लगा!
"अबे धो तो ले..."
"अबे क्या धोना... तेरी गाँड का ही गू तो है... चल मुह खोल..." मैने कहा और अपना लँड उसके मुह में घुसा के उसका मुह चोदने लगा!
"अब अपनी गाँड दे दे ना..." उसने कहा तो इस बार मैं पलट के लेट गया! उसका लँड मेरे छेद पर एक दो बार टिका और फ़िर सीधा अंदर घुसता चला गया! उसके साइज़ ने मेरा छेद फ़ैला दिया और मेरे मुह से आवाज़ निकल गयी!
"अआहह... ई... धीरे डाल यार..." उसका मज़बूत जिस्म मेरे चिकने बदन को ज़बर्दस्त थपेडे लगा रहा था! मैं उसके वज़न के नीचे दबा हुआ था!
"तेरी गाँड गुलाबी है यार... साली को चोद चोद के लाल कर दूँगा..." उसने कहा और तेज़ धक्के लगाता रहा!
अगले ब्रेक के बाद मैने फ़िर उसकी गाँड मारी! इस बार उसको पलट के लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ गया! उसकी गाँड मस्क्युलर और गोल थी, उसके बीच लँड फ़ँसाने में बडा मज़ा आ रहा था! फ़िर मैं रुक नहीं पाया और मेरा माल झड गया! उसके बाद मेरे कहने पर उसने अपना माल मेरे मुह में झाड के मुझे पिलाया!
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
अगली सुबह गौरव वापस आ गया! इस बार उससे आराम से बात-चीत हुई! वो भी यू.पी. का सैक्सी सा देसी लौंडा था जो बातों और हुलिये से काफ़ी स्मार्ट और हरामी लगा! मुझे शक़ सा होने लगा कि शायद उसके और निशिकांत के बीच भी कुछ है!
अगले दिन जब कॉलेज में धर्मेन्द्र मिला तो उसने और लडकों की तरह नाटक नहीं किया और हाथ मिलाते ही मेरा हाथ दबाया और बोला! "क्यों डार्लिंग रात में याद आयी?"
"हाँ बहुत" मैने कहा!
"बस अब कभी साथ में रात गुज़ार भी ले जानेमन... तो मज़ा आ जाये..."
"ठीक है" उस साले ने मुझे सुबह सुबह ही ठरका दिया!
"आज आजा... आज वो लडका नहीं है..."
"नहीं यार, आज मेरे मामा आये हुए है... उनके जाते ही..."
उस दिन विनोद नहीं आया था, बस कुणाल था! उस दिन हम जब कैन्टीन में बैठे तो लडकों की बातों से सैंट्रल पार्क के बारे में पता चला और मैने सोचा कि वहाँ भी जाकर देखूँगा! कुणाल भी काफ़ी चुदायी की बातें करता था! मगर मैं उससे और विनोद से सिर्फ़ बदनामी के डर से डरता था! वो मुह फ़ट टाइप के थे!
उस रात का खाना मैने निशिकांत और गौरव के साथ खाया! विशम्भर अब बहुत खुश होकर खाना लगाता था और मैं मस्ती से उसकी कमसिन चिकनाहट निहारता था! जब गौरव इधर उधर हुआ तो निशी बोला!
"यार आज तेरी याद आयेगी..."
"हाँ यार... मुझे भी..." मैने असद को देखा वो काम में लगा था! उस दिन भी मैने विशम्भर को दस रुपये दिये! वो अब मेरा फ़ैन हो गया था! मैने मौका निकाल के कहा "रूम पर आया करो ना... आराम से बैठेंगे..."
"जी, आऊँगा..." उसने कहा और जब मुडा तो उसकी पैंट के ऊपर से उसकी गाँड देखकर मैं मस्त हो गया... उसके गुलाबी रसीले होंठ, मादक मुस्कुराहट और नशीला चेहरा... खैर इसी बहाने मेरी गौरव से भी जान पहचान हो गयी और दोस्ती फ़्रैंकनेस की तरफ़ बढने लगी!
फ़िर राशिद भाई के आने का दिन आने लगा! उनके आने के दो दिन पहले फ़िर लैटर आया कि मैं टैक्सी लेकर जाऊँ क्योंकि शायद उनके पास ज़्यादा सामान है! अब मुझे इसका आइडिआ तो बिल्कुल नहीं था कि वहाँ टैक्सी कहाँ से मिलेगी! टैक्सी की तलाश में विनोद ने मुझे प्रदीप नाम के एक लडके से मिलवाया और उसको देखते ही मैं तो बस देखता ही रह गया! जब वो मिला था वो व्हाइट जीन्स और स्वेटर पहने हुये था और उसका स्लिम ट्रिम जिस्म बडा सैक्सी लग रहा था! वैसे उसका चेहरा भी बडा सुंदर और प्यासा सा था! उससे सैटिंग हो गयी! उसने कहा कि वो जाने वाले दिन शाम के 7 बजे मेरे रूम पर आ जायेगा क्योंकि भैया की ट्रेन रात में पहुँचने वाली थी! जब मैने विनोद से 'थैंक यू' कहा तो वो बोला!
"मेरी कटारी... तू 'थैंक यू' क्यों बोलता है... एक बार अपनी बुँड दे दे..."
"अबे रहने दे यार..." मैने हल्के से शरमाते हुये कहा तो देखा कि प्रदीप भी मुस्कुरा रहा था! प्रदीप ओरिजिनली विनोद के घर के आसपास कहीं रहता था! बडा हरामी सा कमीना लडका था, जो रह रह कर अपना लँड खुजा और सहला रहा था! जब मैने एक दो बार उसकी ज़िप पर नज़र डाली तो देखा वहाँ उसका उभार अच्छा खासा था मगर तब तक मैं उस टाइप के मुह फ़ट लडकों से दूर ही रहता था!
"बोल, रूम पर दारू पिलायेगा क्या? चलूँ?" जब वहाँ से चले तो विनोद बोला! मैं चाहता भी था और नहीं भी!
"साले तू पीकर हरामीपना करेगा..."
"अरे मेरी मक्खन... एक बार हमारे हरामीपने का भी मज़ा ले ले..."
"देख... इसीलिये मना कर रहा हूँ..."
"अच्छा चल, कुछ नहीं करूँगा चल..." मैं धडकते दिल से रास्ते से दारू लेकर उसके साथ अपने रूम पर पहुँच गया! वहाँ वो जब जूते उतार के पलँग पर बैठा तो उसके सॉक्स की बदबू आयी जिस से मैं मस्त सा होने लगा!
"साले, तेरे पैरों से कितनी बदबू आ रही है..."
"बदबू नहीं बेटा... मर्द की खुश्बू है... बहुत से गाँडू तो पैरों पर नाक रगड के इसको सूंघते हैं..." हम अब पी रहे थे!
"क्यों, तुझे कहाँ मिले ऐसे लोग?"
"सालों को फ़ँसाना पडता है... वो तो हमारे जैसे नये लौंडों को ढूँढते रहते हैं..."
"क्यों?"
"सालों को नया नया लँड चाहिये होता है..."
"क्या बात करता है यार? तू उस टाइप का है?"
"उस टाइप का नहीं हूँ... जवान हूँ... थोडा मज़ा कर लेता हूँ..."
उस दिन वो क्रीम कलर की टैरीकॉट की पैंट पहने था और हमेशा की तरह वो इतनी चुस्त थी कि उसकी जाँघें और लँड उसमें समा ही नहीं पा रहे थे! आदत से मजबूर, मैं अक्सर उसकी जाँघों और उसके बीच के पहाड को देख रहा था! उसके आँडूओं के आसपास से ही पैंट में सलवटें पड रहीं थीं और ठीक उसके आँडूओ के नीचे उसकी पैंट की सिलायी बडी खूबसूरत लग रही थी! उसने दूसरा पेग बनाते हुये मुझे बताया!
"बहनचोद, एक दो तो पैसे भी देते हैं... पहले दारू पिला कर गाँड मरवाते हैं फ़िर गाँड मारने के पैसे देते हैं..."
"वाह यार... मुझे नहीं मिला कोई..."
"चलियो मेरे साथ किसी दिन..."
"अबे नहीं..."
"बहनचोद... फ़ट गयी तेरी? वो साले कुणाल की भी फ़टी थी पहली बार..."
"मतलब वो बाद में गया तेरे साथ?"
"अब तो हम साथ जाते हैं... अपना अपना आसामी पकड के वहाँ से निकल लेते हैं..." बातों में उसका लँड खडा हो गया था और अब टाइट पैंट के कारण साफ़ उभरा हुआ दिख रहा था!
"तूने मारी है कभी किसी की गाँड?"
"नहीं यार" ऐसे मामलों में साफ़ मुकर जाता हूँ!
"एक बार मार ले... ऐसा चस्का लगेगा कि डेली ढूँढेगा..." उसको क्या पता था कि मुझे वो चस्का लग चुका था!
थोडी और शराब नीचे उतरी तो वो अपने दोनो पैर मोड कर दीवार से टेक लगाकर बैठ गया! अब मुझे उसकी जाँघ का निचला हिस्सा और गाँड साफ़ दिखने लगी जिस कारण मैं अब वहाँ से नज़र हटाने में मुश्किल महसूस कर रहा था! साला था ही बडा ज़बर्दस्त!
"मुझे आती ही नहीं है यार मारनी..."
"मैं सिखा दूँगा राजा..."
"नहीं यार..."
"मुठ तो मारता है ना?"
"हाँ"
"कितनी बार?"
"एक बार... कभी कभी दो बार..."
"मतलब लौडा खुराक तो ढूँढने लगा है तेरा..."
"हाँ खडा हो जाता है तो बैठता ही नहीं है..."
"मेरा तो अभी भी खडा हो गया..."
"अभी कैसे खडा हो गया?" मैने पूछा!
"बस..."
"मतलब कोई लडकी वडकी भी नहीं है... क्या तू लडकी के बारे में सोच रहा था?"
"लडकी नहीं है तो क्या हुआ... तू तो है..." विनोद बोला!
वैसे तब तक मुझे भी चढ चुकी थी!
"मुझे देख के ही खडा हो गया??? क्या बात करता है यार..."
"तू मुझे हमेशा से बडा चिकना लगता है... बस एक बार तेरी मारने का दिल है..."
"क्या बोलता है यार... मैं कोई लौंडिया थोडी हूँ?"
"अरे यार... लौंडिया में ऐसा क्या है जो तुझ में नहीं है... तू वैसा ही गोरा, नमकीन और चिकना तो है..." मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थीं!
"अबे रहने दे, क्यों बकवास कर रहा है... तूने मना किया था ना कि इस टाइप की बातें नहीं करेगा..." उसकी बातें अच्छी लगने के बावज़ूद भी मैने कहा!
"तू बुरा क्यों मान रहा है... मैं तो तुझे सच्चाई बता रहा हूँ... बस एक बार गाँड दे दे जानेमन... तो मज़ा आ जायेगा... अब चढ भी गयी है, गाँड मारने में बहुत मज़ा आयेगा..."
"पहले कितनों की मार चुका है?"
"काफ़ी एक्स्पीरिएन्स है... सैटिस्फ़ाई करके मारूँगा..."
"अबे गाँड मरवाने में क्या मज़ा आता होगा किसी को?"
"बेटा जब सरक के बुँड के छेद में घुसता है तो ऐसा मज़ा देता है कि पूछ मत..."
"तू क्या पूरा लँड घुसा देता है?"
"पूरा का पूरा... साले, जड तक... एक बार मरवा... दिखा दूँगा..."
कहते हुए उसने मज़बूती से मेरा हाथ पकड लिया तो मैं थोडा और मस्त हो गया!
"एक बार लँड सहला दे ना अपने चिकने हाथ से..."
"अबे...." मैं मना कर पाता, उसके पहले ही उसने मेरा हाथ पकड के अपने लँड पर घुमा दिया! उसका लँड वास्तव में फ़ुँकार मार रहा था!
"देख देख... कैसा लगा... देख..." वो मेरा हाथ अपने लँड पर दबा के कह रहा था!
"अबे कैसा क्या?"
"खोल के थमा दूँ क्या?"
"नहीं यार..."
"अच्छा चल एक चुम्मा दे दे... एक किस अपने गाल पे..." और फ़िर इसके पहले कि मैं फ़िर उसे मना कर पाता, उसने मेरा चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया और मेरे सर के पीछे के बालों में हाथ फ़ँसा के अपने होंठ मेरे गालों पर रख दिये!
"उँहु... विनोद... अबे ये क्या... अबे पागल है?" मगर उसने कसमसा के मेरे गालों को अपने हाथ से पकड के अपने होंठों से चूस डाला! उसकी मज़बूत पकड के कारण मैं हिल नहीं पाया और कुछ मैने भी हिलना नहीं चाहा! और फ़िर अभी वो हटता, उसने वैसे ही मुझे थोडा और घुमाया और देखते देखते अपने होंठ मेरे होंठों पर रख के दबा दिये तो उसके होंठों की मज़बूती के कारण मेरे होंठों मेरे दाँत पर दबे! इससे दर्द हुआ और मेरे होंठ हल्का सा खुल गया तो उसने मेरे मुह को अपने मुह से पूरा सील कर के चूसना शुरु कर दिया!
"उंहु... उहहह... उंहु..." उसने करीब दो मिनिट तक लगातार मुझे किस किया!
"अआहहह... मज़ा आया ना बेटा?" मैं अब काफ़ी कमज़ोर पड चुका था!
"आह... आज दिली इच्छा पूरी हो गयी यार... तेरे होंठों का रस बडा शराबी है..."
"अबे तू बडा कमीना है..."
"अच्छा चल अब चलता हूँ..." जब उसने कहा तो अंदर ही अंदर मेरा दिल टूट गया!
"ज़रा मूत लूँ... फ़िर निकलता हूँ..." उसने ऐसा कहते हुये मेरा रिएक्शन देखा क्योंकि अपने डिस-अपॉइंट्मेंट को मैं छुपा नहीं पाया था!
वो जब बाथरूम में मूतने के लिये गया तो उसने दरवाज़ा बन्द नहीं किया और अंदर से आती उसके मूतने की आवाज़ से मैं मस्त हो गया! फ़िर जब वो बाहर आया को मैने देखा कि उसने सिर्फ़ चड्डी पहन रखी थी और उसके निचले हिस्से से लँड बाहर खींच के हाथ में लेकर सहला रहा था! उसका लँड देख कर मेरी रही सही ना नुकुर गायब हो गयी! उसका लँड लम्बा और मोटा था और साँवला, उसने अपना सुपाडा खोल रखा था, काफ़ी सुंदर लौडा था!
"अरे यार... ये क्या?"
"तू भी खोल ले ना... तेरी किस ने खडा करवा दिया..."
"अरे यार किसी को पता चलेगा तो हँसेगा..."
"किसी बहन के लौडे को यहाँ अकेले मे हुई बात का कैसे पता चलेगा?" वो मेरे करीब आ गया था! मैं बैठा था, उसका लँड मेरे मुह के पास आ चुका था, मैं ठरक चुका था!
"चुप रह ना... अब देख, बहुत मज़ा आयेगा..." कहकर उसने मुझे पलँग पर धक्का दे दिया! मेरे पैर नीचे लटके थे और सर तकिये पर था! उसने मेरी पैंट खोल दी तो मैने बस हल्के से उसका हाथ पकडा!
"मत कर ना..."
"बेटा तुझे मज़ा दूँगा..."
उसने मेरी पैंट नीचे सरका के मेरे लँड पर हाथ रख के मसल दिया!
"तेरा तो काफ़ी बडा दिखता है..." कहते हुये उसने मेरी अँडरवीअर भी नीचे सरकाई तो मेरा लँड हवा में खडा हो गया!
"यार प्लीज..."
उसने मेरे सामने ही अपनी चड्डी भी उतार दी तो मैने देखा कि उसने झाँटें शेव की हुयीं थी! नँगा होकर उसका बदन और ज़्यादा मादक लग रहा था! उसकी जाँघें मस्क्युलर और हल्के हल्के बालों वाली थी! उसका रँग ऊपर से साँवला लगता था मगर अंदर से गोरा था! वो फ़िर मेरी तरफ़ आया और मेरे कंधों पर हाथ रख कर मेरे ऊपर झुक गया जिससे उसका लँड मेरे लँड से टकराया! इस बार मेरी साँस उस मस्ती से रुक ही गयी! उसने मेरी कमर के दोनो तरफ़ अपने घुटने मोड लिये और मेरे लँड पर अपनी गाँड रख के अपना वेट अपने हाथों पर डालते हुए बैठ गया और अपनी मज़बूत गाँड की दिलचस्प दरार को हल्के हल्के से मेरे लँड की लम्बाई पर रगडने लगा!
"अआह..." मेरी हल्की सी सिसकारी निकली! उसकी सुडौल जाँघें मेरी कमर को दोनो तरफ़ से अपनी गिरफ़्त में लिये हुई थीं!
"अआह..."
"देखा यार... मज़ा आया ना?" मैने पहली बार अपने दोनो हाथ से उसकी कमर पकड के उसकी रिदम के साथ उसको पकड लिया और फ़िर हाथ पीछे करके उसकी कमर और गाँड का उभार सहलाया!
"कैसी है?"
"क्या चीज़?"
"मेरी गाँड..."
"अच्छी है..."
मेरे समझ में नहीं आया कि वो जब, अभी तक मेरी गाँड मारने की बात कर रहा था तो अब मेरे लँड पर अपनी गाँड क्यों रगडने लगा था! शायद वो मुझे सेड्यूस करके कम्फ़र्टेबल करना चाहता था ताकि जब मैं भी मज़ा लेने लगूँ तो उसका काम आसान हो जाये! वो अब हल्के हल्के मेरे लँड पर बैठ कर अपनी फ़ाँकों को भींच कर मेरे लँड को उनके बीच दबाने लगा था! मैने इस बार उसके छेद के पास उँगलियाँ लगायी तो पाया कि वहाँ एक भी बाल नहीं था!
"वहाँ भी शेव कर दिया..."
"क्यों?"
"बस ऐसे ही..."
"कैसे करता है?"
"करवाता हूँ किसी से... तू भी करवायेगा क्या?"
"कर देना..."
"तेरी तो ऐसे ही चिकनी है..."
मेरा सुपाडा अब प्रीकम से भीग चुका था!
"मज़ा आ रहा है ना?"
"हाँ थोडा थोडा..."
"हाँ राजा मज़ा ले..." अब वो ऐसी पोजिशन बना रहा था कि मेरा, प्रीकम से भीगा हुआ, ल्युब्रिकेटेड सुपाडा अक्सर उसके छेद पर फ़ँसने लगा था! वैसे ही एक बार मैने हल्का सा चूतड ऊपर उठा के उसके छेद पर ज़ोर बनाया तो उसने सिसकारी भरी!
"अआहहह... घुसेगा बेटा अंदर भी घुसेगा..." उसने कहा! फ़िर उसने एक बार इधर उधर देखा!
"क्या देख रहा है?" मैने पूछा!
"तेल है तेरे पास?"
"सामने है..." उसने भी ठीक वैसे ही तेल की बॉटल उठायी जैसे निशिकांत ने उठायी थी और मेरे लँड को तेल से भिगा के फ़िर अपनी गाँड को उस पर रगडने लगा!
"गाँड मरवाना चाहता है क्या?"
"तुझे क्या लगता है?"
अब मुझे वो सेफ़ लगने लगा था, अगर वो मुझसे गाँड मरवायेगा तो किसी से ये सब बतायेगा नहीं!
अब जब मेरा सुपाडा उसके छेद पर फ़ँसा तो मैने एक हाथ से अपने लँड को पोजिशन में बना कर रखा! वो भी हल्का सा उठ गया और जब मैने अपनी गाँड ऊपर करके ज़ोर लगाया तो उसने भी अपनी गाँड को ढीला छोड कर मेरे लँड पर अड्जस्ट कर दिया और नीचे की तरफ़ दबाया जिससे मेरा लँड सडसडाता हुआ उसकी गाँड के अंदर घुस गया! उसकी गर्म मज़बूत गाँड ने मेरे लँड को कस के जकड लिया और मुझे मज़ा आ गया! मैने लँड को और अंदर घुसाया और कुछ ही देर में वो मेरा पूरा लँड अपनी गाँड में घुसवा के मज़ा ले ले कर मेरे ऊपर, ऊपर नीचे होने लगा! मैने अब उसकी कमर कस के पकड ली और उसको अपने ऊपर झुका कर फ़िर उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके साथ किसिंग शुरु कर दी! उसकी गाँड खुली हुई थी! मेरे एक्स्पीरिएन्स के हिसाब से उसने काफ़ी गाँड मरवायी हुई थी!
"क्यों, काफ़ी मरवा चुका है ना?" मैने पूछा!
"हाँ..." उसने कहा!
"कुणाल से भी मरवायी है क्या?"
"रहने दे यार... नाम क्यों लें किसी का..."
"ऐसे ही पूछ रहा हूँ यार... दोस्ती यारी में..."
"हाँ उससे भी..."
"उसकी मारी भी?"
"हाँ... तुझे मारनी है क्या उसकी?"
"देगा क्या?"
"दे देगा..."
"तो देखूँगा यार... अभी तो अपनी लेने दे..." कहकर मैं उसकी गाँड का मज़ा लेता रहा!
फ़िर मैने उसको सीधा करके लिटाया और उसके घुटने फ़ैला के आगे से उसकी गाँड बजाने लगा! अब मेरे धक्कों में ताक़त आ गयी थी!
कुछ देर बाद मैं रुक गया!
"क्या हुआ?"
"थक गया यार... तूने एकदम से शुरु करवा दिया ना..."
"हा हा हा..."
"लँड मुह में लेगा?"
"जा धोकर आ..."
"अपना नहीं चुसवायेगा?"
"आजा चुस ले..." 'अपना' धोने के पहले मैं उसके ऊपर झुका और उसका 'हथौडा' अपने मुह में भर लिया और उसको चूसने लगा!
"साले तू भी एक्स्पर्ट है..."
"अगर एक्स्पर्ट नहीं होता तो तुझे लँड की सवारी कैसे कराता?"
"तू मरवाता है?"
"हाँ..."
"वाह यार मैं समझता था कि तू इस लाइन का नहीं होगा इसीलिये तुझे पटाने में इतना टाइम लगाया..."
"होता है... होता है..." मैने कहा!
उसका लँड मर्दाना, भयन्कर और खुश्बूदार था! उसमें पसीने की खुश्बू और नमक था! उसकी बॉडी ओडर ज़बर्दस्त थी! फ़िर मैं उसकी छाती पर चढने लगा!
"अबे धो तो ले..."
"अबे क्या धोना... तेरी गाँड का ही गू तो है... चल मुह खोल..." मैने कहा और अपना लँड उसके मुह में घुसा के उसका मुह चोदने लगा!
"अब अपनी गाँड दे दे ना..." उसने कहा तो इस बार मैं पलट के लेट गया! उसका लँड मेरे छेद पर एक दो बार टिका और फ़िर सीधा अंदर घुसता चला गया! उसके साइज़ ने मेरा छेद फ़ैला दिया और मेरे मुह से आवाज़ निकल गयी!
"अआहह... ई... धीरे डाल यार..." उसका मज़बूत जिस्म मेरे चिकने बदन को ज़बर्दस्त थपेडे लगा रहा था! मैं उसके वज़न के नीचे दबा हुआ था!
"तेरी गाँड गुलाबी है यार... साली को चोद चोद के लाल कर दूँगा..." उसने कहा और तेज़ धक्के लगाता रहा!
अगले ब्रेक के बाद मैने फ़िर उसकी गाँड मारी! इस बार उसको पलट के लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ गया! उसकी गाँड मस्क्युलर और गोल थी, उसके बीच लँड फ़ँसाने में बडा मज़ा आ रहा था! फ़िर मैं रुक नहीं पाया और मेरा माल झड गया! उसके बाद मेरे कहने पर उसने अपना माल मेरे मुह में झाड के मुझे पिलाया!
Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट
मस्ती ही मस्ती पार्ट --०६
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
उसके बाद जब वो (विनोद) गया तो मैं गौरव के रूम में गया और उन दोनो (गौरव और निशिकांत) के साथ खाना खाने चला गया, जहाँ मैं उन दोनो के साथ साथ विशम्भर और असद को भी निहारता रहा! निशिकांत अब मुझे बडी प्यासी नज़रों से देखता था! हम इतने पास होकर भी चुदायी नहीं कर पा रहे थे! और इसी दूरी के कारण, वो साला भी मुझे और भी हसीन और चिकना लगने लगा था!
उस दिन जब मैने 500 का नोट निकाल के ढाबे वाले को दिया तो उसके पास चेंज नहीं था! मैने उससे कहा कि वो चेंज करवा के किसी लडके से भिजवा दे! वहाँ से लौटने में गौरव और निशिकांत मेरे रूम में ही बैठ गये!
"यार किसी दिन चलो, घूमने चलते हैं..." गौरव ने कहा!
"ठीक है यार, चलो, जब दिल हो चलो..." तो मैने भी कहा!
"हाँ, भाई को थोडा घुमा देते हैं... वरना वापस जाकर कहेगा कि सालों ने गाँड मार दी.. हा हा हा हा..."
गौरव के ये कहने पर मैने निशिकांत को देखा, वो हल्का सा शरमा सा गया था! वैसे गौरव हरामी था और निशी चिकना... मुझे फ़िर शक़ सा हुआ कि कहीं उन दोनो के बीच भी कुछ है तो नहीं!
"नहीं शिक़ायत नहीं करूँगा, मगर चलो कहीं चलेंगे..." निशिकांत बोला!
गौरव भी काफ़ी टाइट पैंट पहनता था और बडा रोचक सा लडका था! मैं तो उसके भी सपने देखने लगा था! उनके जाने के बाद मैं रज़ाई में घुस के लेट गया! फ़िर कुछ ही देर बाद अचानक दरवाज़े पर नॉक हुआ! मेरी समझ नहीं आया कि कौन हो सकता था! मुझे लगा कहीं निशिकांत ही तो नहीं है! दरवाज़ा खोला तो देखा, असद खडा था!
"क्या हुआ?" मैने खुश होते हुये पूछा!
"ये आपके पैसे..."
मैं तो भूल ही गया था कि ढाबे वाले से पैसे रूम पर भेजने को कहा था!
"आओ ना, अंदर तो आओ..." मैने असद का हाथ हल्के से सहलाते हुये उससे पैसे लिये और कहा!
"नहीं जाना है... अभी सफ़ाई करनी है!"
"अरे क्या हुआ? थोडी देर तो रुको... चले जाना..." कहकर मैने उसका हाथ पकड के उसको रूम में खींच लिया!
"तुम तो अब भाव ही नहीं देते हो, आओ तो..."
"अरे भैया, काम बहुत रहता है..." एक ही लडके को दूसरी बार सेड्यूस करने का अपना ही मज़ा था!
"थोडा बैठो, चले जाना..." वो पलँग पर बैठ गया तो मैने प्यार से उसक बदन देखा! उसका बदन इस बीच और निखर गया था! जाँघें और सुडौल हो गयी थी और चेहरे पर और लाली और चमक आ गयी थी!
"थोडा आराम करोगे क्या?"
"नहीं भैया जी.." मगर ये कहते हुये भी उसने एक बार अपनी ज़िप पर अपनी उँगलियाँ फ़ेरी! शायद उसका लँड कुलबुला रहा था! वो उनमें से था जो ठरक चढने पर चुदायी कर लेते थे और बाद मैं अवॉइड करते थे और फ़िर ठरक चढती तो फ़िर आ जाते थे! इन सब के बीच उन्हें शायद गे सैक्स का गिल्ट भी होता था!
मैं शॉर्ट्स में था! "ठँड है यार" कहते हुए मैने सामने पडी तेल की बॉटल देखी! फ़िर उसके काँपते हुये होंठ और एंग्क्शस सी चितवन! वो रह रह कर कभी अपने हाथों से अपने बाल सही कर रहा था और कभी अपने होंठ अपने दाँतों से काट रहा था और कभी अपने होंठों पर ज़बान फ़ेर रहा था! मैने उसकी जाँघ पर हाथ रखा!
"आज नहीं..." वो बोला!
"क्यों क्या हुआ?"
"आज मूड नहीं है..."
"अरे मूड तो बन जाता है..." कहते हुये मैने उसकी जाँघ पर हाथ फ़ेरा और ऊपर उसकी ज़िप की तरफ़ ले जाना लगा!
"टाइम भी नहीं है, जाना है..."
"चले जाना... थोडा जल्दी जल्दी कर लेना! तुम तो उस दिन के बाद से गायब ही हो गये..."
"ऐसा... नहीं है..."
मैने उसकी ज़िप पर हाथ रखा तो उसका लँड खडा हो चुका था! उसके लँड की कुलबुलाहट मुझे पसंद आयी! मैने उसके लँड को दबा के सहलाना शुरु कर दिया तो उसका मूड बनते टाइम नहीं लगा!
"भैया यार, आदत पड जायेगी..."
"तो क्या हुआ यार? मज़ा ले ना..." कहकर मैने उसकी ज़िप खोल कर उसका लँड बाहर किया और थाम के सहलाने लगा तो वो टाँगें फ़ैला के रिलैक्स्ड हो गया और जब मैने पसीने की खुश्बू से तर उसका लँड चूसना चालू किया तो वो बिल्कुल आराम से हो गया! थोडी देर चूसने के बाद मैं उसके बगल में लेट गया और उसके लँड को अपनी जाँघों पर रगडने लगा और फ़िर उसके सुपाडे को अपनी शॉर्ट्स के नीचे की तरफ़ से अंदर घुसा कर अपने फ़ाँकों पर उसकी गर्मी का मज़ा लेने लगा तो उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा! वो शायद समझ गया था कि मैं गाँड मरवाने के मूड में हूँ! वो भी धक्के लगा लगा कर अपने लँड को मेरे शॉर्ट्स के अंदर सरका रहा था और इसमें जब उसका सुपाडा मेरी दरार में घुस के मेरे छेद के आसपास टकराता तो मज़ा आ जाता था!
मैने कुछ देर में अपनी शॉर्ट्स उतार दी तो वो बिना कुछ कहे मेरे ऊपर चढ गया और अपने लँड को मेरे चूतडों के बीच दबा के रगडने लगा! इससे अब उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद से दब के टकरा रहा था और बहुत मज़ा दे रहा था! इस कारण मैं अपनी गाँड कभी ऊपर उठाता कभी बीच मे उसके लँड को फ़ाँकों के बीच दबा लेता और कभी अपनी जाँघें फ़ैला लेता! मुझे अपने छेद पर उसका प्रीकम भी महसूस होने लगा था! उसने मेरी गाँड गीली कर दी थी जिस वजह से उसका लँड आराम से फ़िसलने लगा था! प्रीकम के सहारे ही उसने अपना लँड मेरी गाँड में घुसाने की कोशिश की! उसका सुपाडा एक दो बार हल्का सा मेरे छेद में फ़ँसा, एक बार थोडा घुसा भी! फ़िर उसने कस के मेरे कंधे पकड के सिसकारी भरी और उसको और अंदर घुसाने की कोशिश की! लँड में जान तो थी मगर लौंडे को शायद एक्स्पीरिएंस नहीं था!
"रुक, तेल लगा ले..."
"लाओ, तेल कहाँ है?" मैने तेल उठा के बडे प्यार से उसके लँड की मालिश की तो उसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा!
"अब सही से घुस जायेगा..."
"हाँ बेटा, अब सटासट जायेगा... आजा..." कहकर मैं पलट के लेटा तो वो फ़िर मेरे ऊपर आकर सीधा अपने लँड को मेरे छेद पर दबाने लगा! मैने एक दो धक्के के बाद छेद को रिलैक्स्ड कर के ढीला किया और जब उसने साँस रोक के निशाना साध कर ज़ोर लगाया तो मेरी गाँड का सुराख फ़ैलता गया और उसका लँड सीधा अंदर की गहरायी में घुसता चला गया! उस पर वो मस्त हो गया!
"हाँ... अब घुसा अंदर... सीधा अंदर है... पूरा घुस गया..." उसने कहा और मस्ती से अपने गाँड को उठा उठा के मेरी गाँड में अपने लँड के धक्के देने लगा! कुछ देर में उसका लँड पूरा का पूरा मेरी गाँड में घुस गया और मैने भींच भींच के उसकी मस्ती बढाना शुरु कर दी! मैं गाँड उठा उठा के उसका लँड अपने अंदर लेने लगा! उसका लँड मेरे छेद पर जो फ़्रिक्शन पैदा कर रहा था उससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! उसके धक्कों में नयी जवानी के जोश की जान थी! उसका हर धक्का, उसके लँड को काफ़ी ताक़त से मेरी गाँड की गहराईयों में धकेल रहा था! मुझे अपने छेद की रिम पर उसके लँड की सरसराहट का अहसास अच्छा लग रहा था! शाम में विनोद के लँड ने मेरी गाँड खोली थी और अब ये जोशिला नौजवान मेरे ऊपर चढा हुआ था! मेरी गाँड के मस्ती की दिन थे! बडा मज़ा आ रहा था!
फ़िर जब उसकी पकड मज़बूत, धक्के तेज़ और साँसें उखडने लगीं तो मैं समझ गया कि लौंडे का माल झडने वाला है! इसलिये मैने उसका मज़ा बढाने के लिये अपनी गाँड खूब उठा उठा के भींचनी शुरु कर दी! उसका लँड अब सटासट अंदर बाहर हो रहा था! फ़िर उसने दो तीन गहरे धक्के दिये और दूसरे धक्के के बीच में ही उसका लँड मेरी गाँड में फ़ूला और साथ में उसकी सिसकारी निकली!
"हाश... उउउहहह... साला... आहहह..." माल झडते समय वो बडी तेज़ धक्के दे रहा था! उसका लँड कई बार मेरी गाँड में फ़ूला और हुल्लाड मारने लगा!
"बहन... चोद... झड गया... साला..आह.. मज़ा.. आ.. आ.. गया यार...." उसने कहा और जब उसका लँड उछलना बंद हो गया तो वो मेरे ऊपर पस्त होकर गिर गया! उसका लँड अभी भी मेरी गाँड में ही था और कभी कभी वो भिंचता तो लँड हिचकोले खा जाता! मैने भी छेद भींच कर उसके लँड को अपनी गाँड से थाम रखा था! कुछ देर बाद वो हिला! पहले उसका आगे का बदन ऊपर उठा और फ़िर उसने धीरे धीरे अपना लँड बाहर खींचा! फ़िर उसका सुपाडा 'छपाक' की आवाज़ के साथ बाहर आ गया!
"कोई कपडा दो..." उसने कहा तो मैने पास पडी मेरी बनियान उठा के दे दी! उसने उससे अपना लँड पोछा और फ़िर मैने उसी से अपनी गाँड पोछ ली! उसका माल हल्का हल्का मेरी गाँड से रिस रहा था! मैने सही से गाँड में उँगली करके उसका माल गाँड से साफ़ किया!
"इसमें ज़्यादा मज़ा आया!" इस बीच वो बोला!
"अच्छा चुसवाने से ज़्यादा चोदने में आया मज़ा तुझे?"
"हाँ"
"तो आ जाया कर ना... मैं तो बुलाता ही रहता हूँ..."
"हाँ आ जाऊँगा..." फ़िर जब वो चला गया तो मैं फ़ाइनली उस दिन बडा खुश खुश सो गया!
जब मैं टैक्सी लेकर राशिद भैया को लेने जा रहा था तो मुझे काफ़ी देर तक आराम से प्रदीप को देखने का टाइम मिल गया! उसने भी मुझे कई बार अपना जिस्म और चेहरा निहारते हुए देख लिया! साला जब एक पैर ब्रेक पर और एक अक्सेलरेटर पे रख के गाडी चला रहा था तो मैं सिर्फ़ उसकी ज़िप और थाईज़ का मूवमेंट देख कर चकरा रहा था! टाइट पैंट में उसका वो एरीआ बडा सुंदर लग रहा था! उसके हाथ स्टीअरिंग पर ऐसे घूम रहे थे जैसे किसी चिकने से कमसिन लौंडे के जिस्म पर!
उस दिन शाम से ही कोहरा हो गया था!
"बहनचोद कोहरे में मा चुद जाती है..." प्रदीप बोला!
"हाँ मुश्किल तो हो जाती है..."
"साला इतना कोहरा है कि ऊपर चढूँ तो चूत का छेद ना दिखायी दे..." मुझे उसकी अब्यूसिव बातें मदहोश करने लगीं थी! उसने एक हाथ में कडा पहन रखा था और एक हाथ में पूजा के धागे थे! गले में लॉकेट था और ऊपर एक मरून जैकेट! लडका गोरा था और स्लिम भी! शायद लम्बाई के कारण उसके मसल्स छुप गये थे क्योंकि उसकी कलायी चौडी थी और कंधे भी काफ़ी चौडे थे!
फ़ाइनली हम स्टेशन पहुँचे तो वहाँ सर्दी के मारे सन्नाटा था! कुछ लोग इधर उधर आग जलाये बैठे थे! उसने पार्किंग में गाडी खडी कर दी! 9 बजे थे!
"ट्रेन का टाइम देख कर बताता हूँ कहीं साली लेट ना हो..." मैने कहा!
मगर जब पता किया तो पता चला कि सारी ट्रेन्स कोहरे के कारण लेट हैं और भैया की ट्रेन तो 11 बजे आयेगी!
"लो गाँड मर गयी ना... अब बोलो वापस चलें या यहीं बैठोगे?" जब मैने वापस आकर प्रदीप को बताया तो वो बोला! मुझे वहाँ बैठने में फ़ायदा लगा!
पहले तो कुछ देर मैं पीछे और प्रदीप आगे बैठा! उसने गाने लगा दिये थे! मगर उसके बाद वो भी पीछे आ गया!
"पीछे आराम से बैठता हूँ..." पीछे बैठने में उसने अपने घुटने मोड के सामने के सीट पर टिका लिये! इससे उसकी गाँड थोडा आगे हो गयी और जाँघें टाइट हो गयी और मैं उनको देखता रहा! उसने अपना एक हाथ बगल में रखा जिसपे कई बार मेरा हाथ पडा!
"मौसम बढिया है... क्यों है ना?" फ़िर वो बोला!
"हाँ बढिया है यार..."
"मज़ा लेने वाला मौसम है..."
"कैसा मज़ा?"
"यारों दोस्तों के साथ..."
"हाँ वो तो है..."
"साला क्वॉर्टर लिया था, वो भी स्टैण्ड पर रखा है... सोचा था फ़ौरन लौट जाऊँगा..."
"ये तो बुरा हुआ... अब तो मिलेगा भी नहीं..."
"साली इतनी सर्दी है, रज़ाई भी एक घंटे में गर्म होती है... ऐसे में शादीशुदा बन्दों की मस्ती है..."
"हाँ यार, रज़ाई में चूत का हीटर रहता है ना..." मैने कहा!
"हाँ बस चूत खोलो और गर्मी ले लो..." उसकी बातें बढिया थीं!
"यहाँ हम छडे साले मुठ मारते रह जाते हैं..."
"हा हा... हाँ, मुठ मार कर ही काम चलता है..."
इस बार जब मेरा हाथ उसके हाथ से टच हुआ तो मैने अपनी उँगलियाँ वहीं रहने दीं! इन्फ़ैक्ट अब मैने भी वैसे ही आगे घुटने मोड कर पैर रख लिये थे और हमारी जाँघें भी आपस में कई बार टकरा जा रहीं थी! उसका जिस्म गर्म था और काफ़ी गदराया हुआ लग रहा था! उसकी आँखों में कशिश थी उसने मेरे हाथ के पास से अपने हाथ को हटाने की कोई कोशिश नहीं की! इन्फ़ैक्ट अब वो मेरा हाथ पकड पकड के बातें करने लगा!
"साला जब रात में घूँट्टा गर्म होता है ना, तो दिल करता है किसी चूत को ऊपर बिठा के उछाल उछाल के, साली की चोदूँ..." उसने कहा और मेरी जाँघ पर हाथ रख कर कस के दबाया!
"क्यों यार, क्या बोलता है?" उसने पूछा!
"हाँ दिल तो करता है, मगर मिलती कहाँ है?"
"यही तो अफ़सोस है... साली चूत नहीं मिलती... तेरा गुज़ारा कैसे चलता है?" अब हम आराम से चुदायी की बातें कर रहे थे! उसने, जो हाथ मेरी जाँघ पर रखा था, अब तक नहीं हटाया था! मुझे उसकी हथेली की गर्मी मिल रही थी! शायद साला ठरक रहा था मगर अभी तक मेरी कुछ करने की हिम्मत नहीं पडी थी!
11 बजे फ़िर पता चला कि गाडी और एक घंटे बाद आयेगी!
"यार एक नींद मार लेता हूँ..." प्रदीप ने उसी पोजिशन में बैठे बैठे अपनी आँखें बन्द कर लीं! "जब जाना हो तो उठा देना..." उसने मुझसे कहा!
वो कुछ देर वैसे ही बैठा रहा! उसका हाथ मेरे घुटने पर था और कुछ देर में उसने मेरे कंधे पर सर रख लिया तो मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया और मज़ा भी आने लगा! मैने एक हाथ पीछे फ़ैला दिया और कार की सीट पर रख दिया और वो वैसे ही बैठ कर सोता रहा! कुछ देर में नींद में उसका हाथ मेरे घुटने से सरक के मेरी जाँघ पर आ गया और वो मेरे ऊपर थोडा और झुक के लेट गया! उसका एक हाथ अपनी टाँगों के बीच था! सर्दी और अँधेरा बहुत था! मुझे बस उसके बदन और उसके साँसों की गर्मी अच्छी लग रही थी! मैने अपना फ़ैला हुआ हाथ उअके कंधे पर रख दिया! वो थोडा और नीचे हो गया और ऑल्मोस्ट मेरी छाती के पास अपना मुह रख कर लेटा रहा! मैं उसका इरादा भाँप नहीं पा रहा था!
एक घंटे के बाद फ़िर पता चला कि गाडी डेढ घंटा और लेट हो गयी!
इस बार उसने कहा कि वो पैर फ़ैला के लेटना चाहता है! मगर जब मैने अपने आगे बैठने का आइडिआ दिया तो उसने मना कर दिया!
"ऐसे ही बैठ जा ना, तेरे ऊपर सर रख के लेट जाता हूँ!" अब वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गया और अपने पैर मोड के सीट पर रख लिये! मैने इस बार हिम्मत कर के एक हाथ उसकी कमर पर रख दिया वो कुछ नहीं बोला! उसकी साँसें मेरी जाँघ से टकरा रहीं थी! मेरा लँड अब हुल्लाड भर रहा था और जब वो अड्जस्ट हुआ तो उसका गाल सीधा मेरे लँड पर आ गया! मुझे लगा कि वो लँड को खडा पाकर शायद अपना मुह हटा ले! मगर जब वो मेरे लँड को तकिया बना के लेटा रहा तो मैने अपने हाथ से उसकी कमर सहलाना शुरु कर दी! मुझे तो मज़ा आना शुरु हो चुका था! फ़िर उसने करवट ली और अपना मुह मेरी टाँगों के बीच घुसा के लेट गया! अब उसका मुह मेरे लँड पर था! अब मेरा लँड बिन्दास उछलने लगा था! उसकी साँसों ने 'उसको' गर्म कर दिया था! मैने एक दो बार कमर से होते हुये उसकी गाँड की गदरायी गोल और मुलायम फ़ाँक को भी सहलाया! माहौल पूरा रोमेंटिक था, मगर फ़िर भी मुझे ये पता नहीं था कि वो सच में सोया था या नाटक कर रहा था! मगर जितना हो सकता था, मैं मज़ा लेता रहा!
फ़िर गाडी आने का टाइम हुआ तो मैने उसको उठाया और जब एन्क्वाइअरी पर गया तो पता चला कि एक घंटा और लगेगा! डेढ तो बज ही चुके थे! इस बार प्रदीप ने कहा कि मैं थोडा आराम कर लूँ!
"लेट जा यार, तू भी लेट जा... आजा सर रख ले..." उसकी आवाज़ कामतुर हो चुकी थी! वो मुझे सैक्सी सी नज़रों से देख रहा था! इस बार वो बैठ गया और जब मैने उसकी जाँघों पर सर रखा तो उसकी देसी जवानी की गर्मी और मुलायम मसल्स के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैं कुछ देर बाद सोने का नाटक करता हुआ उसकी ज़िप की तरफ़ करवट लेकर लेट गया और ऐसा करते ही मुझे भी गालों पर उसके खडे लँड का स्पर्श मिला! उसका लँड बिल्कुल हुल्लाड मार कर शायद बाहर निकलने को तैयार था! साला पत्थर सा सख्त था! मैने उसका खूब मज़ा लिया! प्रदीप टाँगों के बीच दहक रहा था! किसी तंदूर की तरह गर्म था वहाँ! मैने अपने होंठों पर उसके लँड को मचलते हुये महसूस किया तो मैं ठरक गया! उसने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख दिया!
अब वो हरकत में आने लगा था! उसका लँड ठनक के मस्त हो चुका था! मेरे कुछ देर लेटने के बाद उसने अपनी एक टाँग आगे सीट पर टिका ली मगर मैं फ़िर भी उसकी फ़ैली जाँघों के बीच मुह उसके लँड पर घुसा कर लेटा रहा! उसने एक बार वैसे ही अपने आँडूए अड्जस्ट किये फ़िर मेरी बाज़ू सहलायी और एक हाथ की उँगलियों से मेरे गालों को सहलाया! उसका लँड अब उफ़न रहा था!
"रुक, थोडा पैंट सरका दूँ..." फ़ाइनली वो अचानक बोला! मतलब उसको मालूम था कि मैं जगा हुआ हूँ! मैं हल्का सा ऊपर उठा तो उसने अपनी पैंट के बटन और ज़िप को खोल के अपनी चड्डी समेत उसको अपनी जाँघ पर सरका दिया! मुझे उसके मर्दाने लँड की खुश्बू सूंघने को मिली और मैं मदहोश हो गया!
"अब ठीक रहेगा, अब लेट जा..."
मैने अपने गालों को उसके लँड के बगल रखा और उनसे ही उसके लँड को सहलाते हुये मज़ा लेने लगा! उसका लँड लाल लोहे की तरह खडा और गर्म था! उसका सुपाडा तो भीग चुका था, उसका कुछ वीर्य मेरे गाल पर लग गया! मैने उसकी झाँटों में मुह घुसा के तेज़ तेज़ साँसें लेना शुरु कर दिया! उसने मेरा सर पकड लिया और अपनी जाँघें फ़ैला दीं! मैने एक हाथ की हथेली उसकी जाँघों के बीच उसके आँडूओं के नीचे घुसा के उसके आँडूये पकड के सहलाना शुरु कर दिये और उसकी गाँड और वहाँ के बालों को भी सहलाने लगा! उसकी खुश्बू बढिया थी! फ़िर मैने उसके सुपाडे को अपने होंठों से सहलाया तो उसने सिसकारी भरी!
"आह... शाबाश... आह..." मैने उसके लँड के छेद को ज़बान से सहलाया! उसका सुपाडा फ़ूला हुआ था! मैने उसके सुपाडे के निचले हिस्से को चाटा! वो उसके प्रीकम से नमकीन हो चुका था!
"पूरा मुह खोल ले ना..." उसने कहा तो मैने अपना मुह खोला और फ़िर उसका लँड पूरा अपने मुह में भर लिया! उसका सुपाडा मेरे मुह में टकरा टकरा के घुसने लगा! उसके लँड की गर्मी से मेरा मुह भी गर्म हो गया और होंठ उसके फ़्रिक्शन से फ़टने लगे! मैं उसका लँड चूसने लगा तो वो गाँड उचका उचका के मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! साले में बडी जान थी! देसी गदरायी और कसावदार जान!
फ़ाइनली गाडी के आने के दो मिनिट पहले उसने अपने वीर्य की पहली धार मेरे मुह में मार दी!
"वाह... इन्तज़ार का फल मिल गया... क्यों मज़ा आया ना तुझे भी?"
"हाँ बहुत..."
"सर्दी में यही सब हो जाये तो बढिया रहता है... क्यों?"
"हाँ..." मुझे अभी भी उसके वीर्य का टेस्ट मिल रहा था! इस बार फ़ाइनली पता चला कि दस मिनिट बाद गाडी आ जायेगी!
मैं अपने होंठों से प्रदीप के गर्म नमकीन वीर्य का स्वाद चखता हुआ प्लेटफ़ॉर्म की तरफ़ बढ गया!
भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
उसके बाद जब वो (विनोद) गया तो मैं गौरव के रूम में गया और उन दोनो (गौरव और निशिकांत) के साथ खाना खाने चला गया, जहाँ मैं उन दोनो के साथ साथ विशम्भर और असद को भी निहारता रहा! निशिकांत अब मुझे बडी प्यासी नज़रों से देखता था! हम इतने पास होकर भी चुदायी नहीं कर पा रहे थे! और इसी दूरी के कारण, वो साला भी मुझे और भी हसीन और चिकना लगने लगा था!
उस दिन जब मैने 500 का नोट निकाल के ढाबे वाले को दिया तो उसके पास चेंज नहीं था! मैने उससे कहा कि वो चेंज करवा के किसी लडके से भिजवा दे! वहाँ से लौटने में गौरव और निशिकांत मेरे रूम में ही बैठ गये!
"यार किसी दिन चलो, घूमने चलते हैं..." गौरव ने कहा!
"ठीक है यार, चलो, जब दिल हो चलो..." तो मैने भी कहा!
"हाँ, भाई को थोडा घुमा देते हैं... वरना वापस जाकर कहेगा कि सालों ने गाँड मार दी.. हा हा हा हा..."
गौरव के ये कहने पर मैने निशिकांत को देखा, वो हल्का सा शरमा सा गया था! वैसे गौरव हरामी था और निशी चिकना... मुझे फ़िर शक़ सा हुआ कि कहीं उन दोनो के बीच भी कुछ है तो नहीं!
"नहीं शिक़ायत नहीं करूँगा, मगर चलो कहीं चलेंगे..." निशिकांत बोला!
गौरव भी काफ़ी टाइट पैंट पहनता था और बडा रोचक सा लडका था! मैं तो उसके भी सपने देखने लगा था! उनके जाने के बाद मैं रज़ाई में घुस के लेट गया! फ़िर कुछ ही देर बाद अचानक दरवाज़े पर नॉक हुआ! मेरी समझ नहीं आया कि कौन हो सकता था! मुझे लगा कहीं निशिकांत ही तो नहीं है! दरवाज़ा खोला तो देखा, असद खडा था!
"क्या हुआ?" मैने खुश होते हुये पूछा!
"ये आपके पैसे..."
मैं तो भूल ही गया था कि ढाबे वाले से पैसे रूम पर भेजने को कहा था!
"आओ ना, अंदर तो आओ..." मैने असद का हाथ हल्के से सहलाते हुये उससे पैसे लिये और कहा!
"नहीं जाना है... अभी सफ़ाई करनी है!"
"अरे क्या हुआ? थोडी देर तो रुको... चले जाना..." कहकर मैने उसका हाथ पकड के उसको रूम में खींच लिया!
"तुम तो अब भाव ही नहीं देते हो, आओ तो..."
"अरे भैया, काम बहुत रहता है..." एक ही लडके को दूसरी बार सेड्यूस करने का अपना ही मज़ा था!
"थोडा बैठो, चले जाना..." वो पलँग पर बैठ गया तो मैने प्यार से उसक बदन देखा! उसका बदन इस बीच और निखर गया था! जाँघें और सुडौल हो गयी थी और चेहरे पर और लाली और चमक आ गयी थी!
"थोडा आराम करोगे क्या?"
"नहीं भैया जी.." मगर ये कहते हुये भी उसने एक बार अपनी ज़िप पर अपनी उँगलियाँ फ़ेरी! शायद उसका लँड कुलबुला रहा था! वो उनमें से था जो ठरक चढने पर चुदायी कर लेते थे और बाद मैं अवॉइड करते थे और फ़िर ठरक चढती तो फ़िर आ जाते थे! इन सब के बीच उन्हें शायद गे सैक्स का गिल्ट भी होता था!
मैं शॉर्ट्स में था! "ठँड है यार" कहते हुए मैने सामने पडी तेल की बॉटल देखी! फ़िर उसके काँपते हुये होंठ और एंग्क्शस सी चितवन! वो रह रह कर कभी अपने हाथों से अपने बाल सही कर रहा था और कभी अपने होंठ अपने दाँतों से काट रहा था और कभी अपने होंठों पर ज़बान फ़ेर रहा था! मैने उसकी जाँघ पर हाथ रखा!
"आज नहीं..." वो बोला!
"क्यों क्या हुआ?"
"आज मूड नहीं है..."
"अरे मूड तो बन जाता है..." कहते हुये मैने उसकी जाँघ पर हाथ फ़ेरा और ऊपर उसकी ज़िप की तरफ़ ले जाना लगा!
"टाइम भी नहीं है, जाना है..."
"चले जाना... थोडा जल्दी जल्दी कर लेना! तुम तो उस दिन के बाद से गायब ही हो गये..."
"ऐसा... नहीं है..."
मैने उसकी ज़िप पर हाथ रखा तो उसका लँड खडा हो चुका था! उसके लँड की कुलबुलाहट मुझे पसंद आयी! मैने उसके लँड को दबा के सहलाना शुरु कर दिया तो उसका मूड बनते टाइम नहीं लगा!
"भैया यार, आदत पड जायेगी..."
"तो क्या हुआ यार? मज़ा ले ना..." कहकर मैने उसकी ज़िप खोल कर उसका लँड बाहर किया और थाम के सहलाने लगा तो वो टाँगें फ़ैला के रिलैक्स्ड हो गया और जब मैने पसीने की खुश्बू से तर उसका लँड चूसना चालू किया तो वो बिल्कुल आराम से हो गया! थोडी देर चूसने के बाद मैं उसके बगल में लेट गया और उसके लँड को अपनी जाँघों पर रगडने लगा और फ़िर उसके सुपाडे को अपनी शॉर्ट्स के नीचे की तरफ़ से अंदर घुसा कर अपने फ़ाँकों पर उसकी गर्मी का मज़ा लेने लगा तो उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा! वो शायद समझ गया था कि मैं गाँड मरवाने के मूड में हूँ! वो भी धक्के लगा लगा कर अपने लँड को मेरे शॉर्ट्स के अंदर सरका रहा था और इसमें जब उसका सुपाडा मेरी दरार में घुस के मेरे छेद के आसपास टकराता तो मज़ा आ जाता था!
मैने कुछ देर में अपनी शॉर्ट्स उतार दी तो वो बिना कुछ कहे मेरे ऊपर चढ गया और अपने लँड को मेरे चूतडों के बीच दबा के रगडने लगा! इससे अब उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद से दब के टकरा रहा था और बहुत मज़ा दे रहा था! इस कारण मैं अपनी गाँड कभी ऊपर उठाता कभी बीच मे उसके लँड को फ़ाँकों के बीच दबा लेता और कभी अपनी जाँघें फ़ैला लेता! मुझे अपने छेद पर उसका प्रीकम भी महसूस होने लगा था! उसने मेरी गाँड गीली कर दी थी जिस वजह से उसका लँड आराम से फ़िसलने लगा था! प्रीकम के सहारे ही उसने अपना लँड मेरी गाँड में घुसाने की कोशिश की! उसका सुपाडा एक दो बार हल्का सा मेरे छेद में फ़ँसा, एक बार थोडा घुसा भी! फ़िर उसने कस के मेरे कंधे पकड के सिसकारी भरी और उसको और अंदर घुसाने की कोशिश की! लँड में जान तो थी मगर लौंडे को शायद एक्स्पीरिएंस नहीं था!
"रुक, तेल लगा ले..."
"लाओ, तेल कहाँ है?" मैने तेल उठा के बडे प्यार से उसके लँड की मालिश की तो उसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा!
"अब सही से घुस जायेगा..."
"हाँ बेटा, अब सटासट जायेगा... आजा..." कहकर मैं पलट के लेटा तो वो फ़िर मेरे ऊपर आकर सीधा अपने लँड को मेरे छेद पर दबाने लगा! मैने एक दो धक्के के बाद छेद को रिलैक्स्ड कर के ढीला किया और जब उसने साँस रोक के निशाना साध कर ज़ोर लगाया तो मेरी गाँड का सुराख फ़ैलता गया और उसका लँड सीधा अंदर की गहरायी में घुसता चला गया! उस पर वो मस्त हो गया!
"हाँ... अब घुसा अंदर... सीधा अंदर है... पूरा घुस गया..." उसने कहा और मस्ती से अपने गाँड को उठा उठा के मेरी गाँड में अपने लँड के धक्के देने लगा! कुछ देर में उसका लँड पूरा का पूरा मेरी गाँड में घुस गया और मैने भींच भींच के उसकी मस्ती बढाना शुरु कर दी! मैं गाँड उठा उठा के उसका लँड अपने अंदर लेने लगा! उसका लँड मेरे छेद पर जो फ़्रिक्शन पैदा कर रहा था उससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! उसके धक्कों में नयी जवानी के जोश की जान थी! उसका हर धक्का, उसके लँड को काफ़ी ताक़त से मेरी गाँड की गहराईयों में धकेल रहा था! मुझे अपने छेद की रिम पर उसके लँड की सरसराहट का अहसास अच्छा लग रहा था! शाम में विनोद के लँड ने मेरी गाँड खोली थी और अब ये जोशिला नौजवान मेरे ऊपर चढा हुआ था! मेरी गाँड के मस्ती की दिन थे! बडा मज़ा आ रहा था!
फ़िर जब उसकी पकड मज़बूत, धक्के तेज़ और साँसें उखडने लगीं तो मैं समझ गया कि लौंडे का माल झडने वाला है! इसलिये मैने उसका मज़ा बढाने के लिये अपनी गाँड खूब उठा उठा के भींचनी शुरु कर दी! उसका लँड अब सटासट अंदर बाहर हो रहा था! फ़िर उसने दो तीन गहरे धक्के दिये और दूसरे धक्के के बीच में ही उसका लँड मेरी गाँड में फ़ूला और साथ में उसकी सिसकारी निकली!
"हाश... उउउहहह... साला... आहहह..." माल झडते समय वो बडी तेज़ धक्के दे रहा था! उसका लँड कई बार मेरी गाँड में फ़ूला और हुल्लाड मारने लगा!
"बहन... चोद... झड गया... साला..आह.. मज़ा.. आ.. आ.. गया यार...." उसने कहा और जब उसका लँड उछलना बंद हो गया तो वो मेरे ऊपर पस्त होकर गिर गया! उसका लँड अभी भी मेरी गाँड में ही था और कभी कभी वो भिंचता तो लँड हिचकोले खा जाता! मैने भी छेद भींच कर उसके लँड को अपनी गाँड से थाम रखा था! कुछ देर बाद वो हिला! पहले उसका आगे का बदन ऊपर उठा और फ़िर उसने धीरे धीरे अपना लँड बाहर खींचा! फ़िर उसका सुपाडा 'छपाक' की आवाज़ के साथ बाहर आ गया!
"कोई कपडा दो..." उसने कहा तो मैने पास पडी मेरी बनियान उठा के दे दी! उसने उससे अपना लँड पोछा और फ़िर मैने उसी से अपनी गाँड पोछ ली! उसका माल हल्का हल्का मेरी गाँड से रिस रहा था! मैने सही से गाँड में उँगली करके उसका माल गाँड से साफ़ किया!
"इसमें ज़्यादा मज़ा आया!" इस बीच वो बोला!
"अच्छा चुसवाने से ज़्यादा चोदने में आया मज़ा तुझे?"
"हाँ"
"तो आ जाया कर ना... मैं तो बुलाता ही रहता हूँ..."
"हाँ आ जाऊँगा..." फ़िर जब वो चला गया तो मैं फ़ाइनली उस दिन बडा खुश खुश सो गया!
जब मैं टैक्सी लेकर राशिद भैया को लेने जा रहा था तो मुझे काफ़ी देर तक आराम से प्रदीप को देखने का टाइम मिल गया! उसने भी मुझे कई बार अपना जिस्म और चेहरा निहारते हुए देख लिया! साला जब एक पैर ब्रेक पर और एक अक्सेलरेटर पे रख के गाडी चला रहा था तो मैं सिर्फ़ उसकी ज़िप और थाईज़ का मूवमेंट देख कर चकरा रहा था! टाइट पैंट में उसका वो एरीआ बडा सुंदर लग रहा था! उसके हाथ स्टीअरिंग पर ऐसे घूम रहे थे जैसे किसी चिकने से कमसिन लौंडे के जिस्म पर!
उस दिन शाम से ही कोहरा हो गया था!
"बहनचोद कोहरे में मा चुद जाती है..." प्रदीप बोला!
"हाँ मुश्किल तो हो जाती है..."
"साला इतना कोहरा है कि ऊपर चढूँ तो चूत का छेद ना दिखायी दे..." मुझे उसकी अब्यूसिव बातें मदहोश करने लगीं थी! उसने एक हाथ में कडा पहन रखा था और एक हाथ में पूजा के धागे थे! गले में लॉकेट था और ऊपर एक मरून जैकेट! लडका गोरा था और स्लिम भी! शायद लम्बाई के कारण उसके मसल्स छुप गये थे क्योंकि उसकी कलायी चौडी थी और कंधे भी काफ़ी चौडे थे!
फ़ाइनली हम स्टेशन पहुँचे तो वहाँ सर्दी के मारे सन्नाटा था! कुछ लोग इधर उधर आग जलाये बैठे थे! उसने पार्किंग में गाडी खडी कर दी! 9 बजे थे!
"ट्रेन का टाइम देख कर बताता हूँ कहीं साली लेट ना हो..." मैने कहा!
मगर जब पता किया तो पता चला कि सारी ट्रेन्स कोहरे के कारण लेट हैं और भैया की ट्रेन तो 11 बजे आयेगी!
"लो गाँड मर गयी ना... अब बोलो वापस चलें या यहीं बैठोगे?" जब मैने वापस आकर प्रदीप को बताया तो वो बोला! मुझे वहाँ बैठने में फ़ायदा लगा!
पहले तो कुछ देर मैं पीछे और प्रदीप आगे बैठा! उसने गाने लगा दिये थे! मगर उसके बाद वो भी पीछे आ गया!
"पीछे आराम से बैठता हूँ..." पीछे बैठने में उसने अपने घुटने मोड के सामने के सीट पर टिका लिये! इससे उसकी गाँड थोडा आगे हो गयी और जाँघें टाइट हो गयी और मैं उनको देखता रहा! उसने अपना एक हाथ बगल में रखा जिसपे कई बार मेरा हाथ पडा!
"मौसम बढिया है... क्यों है ना?" फ़िर वो बोला!
"हाँ बढिया है यार..."
"मज़ा लेने वाला मौसम है..."
"कैसा मज़ा?"
"यारों दोस्तों के साथ..."
"हाँ वो तो है..."
"साला क्वॉर्टर लिया था, वो भी स्टैण्ड पर रखा है... सोचा था फ़ौरन लौट जाऊँगा..."
"ये तो बुरा हुआ... अब तो मिलेगा भी नहीं..."
"साली इतनी सर्दी है, रज़ाई भी एक घंटे में गर्म होती है... ऐसे में शादीशुदा बन्दों की मस्ती है..."
"हाँ यार, रज़ाई में चूत का हीटर रहता है ना..." मैने कहा!
"हाँ बस चूत खोलो और गर्मी ले लो..." उसकी बातें बढिया थीं!
"यहाँ हम छडे साले मुठ मारते रह जाते हैं..."
"हा हा... हाँ, मुठ मार कर ही काम चलता है..."
इस बार जब मेरा हाथ उसके हाथ से टच हुआ तो मैने अपनी उँगलियाँ वहीं रहने दीं! इन्फ़ैक्ट अब मैने भी वैसे ही आगे घुटने मोड कर पैर रख लिये थे और हमारी जाँघें भी आपस में कई बार टकरा जा रहीं थी! उसका जिस्म गर्म था और काफ़ी गदराया हुआ लग रहा था! उसकी आँखों में कशिश थी उसने मेरे हाथ के पास से अपने हाथ को हटाने की कोई कोशिश नहीं की! इन्फ़ैक्ट अब वो मेरा हाथ पकड पकड के बातें करने लगा!
"साला जब रात में घूँट्टा गर्म होता है ना, तो दिल करता है किसी चूत को ऊपर बिठा के उछाल उछाल के, साली की चोदूँ..." उसने कहा और मेरी जाँघ पर हाथ रख कर कस के दबाया!
"क्यों यार, क्या बोलता है?" उसने पूछा!
"हाँ दिल तो करता है, मगर मिलती कहाँ है?"
"यही तो अफ़सोस है... साली चूत नहीं मिलती... तेरा गुज़ारा कैसे चलता है?" अब हम आराम से चुदायी की बातें कर रहे थे! उसने, जो हाथ मेरी जाँघ पर रखा था, अब तक नहीं हटाया था! मुझे उसकी हथेली की गर्मी मिल रही थी! शायद साला ठरक रहा था मगर अभी तक मेरी कुछ करने की हिम्मत नहीं पडी थी!
11 बजे फ़िर पता चला कि गाडी और एक घंटे बाद आयेगी!
"यार एक नींद मार लेता हूँ..." प्रदीप ने उसी पोजिशन में बैठे बैठे अपनी आँखें बन्द कर लीं! "जब जाना हो तो उठा देना..." उसने मुझसे कहा!
वो कुछ देर वैसे ही बैठा रहा! उसका हाथ मेरे घुटने पर था और कुछ देर में उसने मेरे कंधे पर सर रख लिया तो मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया और मज़ा भी आने लगा! मैने एक हाथ पीछे फ़ैला दिया और कार की सीट पर रख दिया और वो वैसे ही बैठ कर सोता रहा! कुछ देर में नींद में उसका हाथ मेरे घुटने से सरक के मेरी जाँघ पर आ गया और वो मेरे ऊपर थोडा और झुक के लेट गया! उसका एक हाथ अपनी टाँगों के बीच था! सर्दी और अँधेरा बहुत था! मुझे बस उसके बदन और उसके साँसों की गर्मी अच्छी लग रही थी! मैने अपना फ़ैला हुआ हाथ उअके कंधे पर रख दिया! वो थोडा और नीचे हो गया और ऑल्मोस्ट मेरी छाती के पास अपना मुह रख कर लेटा रहा! मैं उसका इरादा भाँप नहीं पा रहा था!
एक घंटे के बाद फ़िर पता चला कि गाडी डेढ घंटा और लेट हो गयी!
इस बार उसने कहा कि वो पैर फ़ैला के लेटना चाहता है! मगर जब मैने अपने आगे बैठने का आइडिआ दिया तो उसने मना कर दिया!
"ऐसे ही बैठ जा ना, तेरे ऊपर सर रख के लेट जाता हूँ!" अब वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गया और अपने पैर मोड के सीट पर रख लिये! मैने इस बार हिम्मत कर के एक हाथ उसकी कमर पर रख दिया वो कुछ नहीं बोला! उसकी साँसें मेरी जाँघ से टकरा रहीं थी! मेरा लँड अब हुल्लाड भर रहा था और जब वो अड्जस्ट हुआ तो उसका गाल सीधा मेरे लँड पर आ गया! मुझे लगा कि वो लँड को खडा पाकर शायद अपना मुह हटा ले! मगर जब वो मेरे लँड को तकिया बना के लेटा रहा तो मैने अपने हाथ से उसकी कमर सहलाना शुरु कर दी! मुझे तो मज़ा आना शुरु हो चुका था! फ़िर उसने करवट ली और अपना मुह मेरी टाँगों के बीच घुसा के लेट गया! अब उसका मुह मेरे लँड पर था! अब मेरा लँड बिन्दास उछलने लगा था! उसकी साँसों ने 'उसको' गर्म कर दिया था! मैने एक दो बार कमर से होते हुये उसकी गाँड की गदरायी गोल और मुलायम फ़ाँक को भी सहलाया! माहौल पूरा रोमेंटिक था, मगर फ़िर भी मुझे ये पता नहीं था कि वो सच में सोया था या नाटक कर रहा था! मगर जितना हो सकता था, मैं मज़ा लेता रहा!
फ़िर गाडी आने का टाइम हुआ तो मैने उसको उठाया और जब एन्क्वाइअरी पर गया तो पता चला कि एक घंटा और लगेगा! डेढ तो बज ही चुके थे! इस बार प्रदीप ने कहा कि मैं थोडा आराम कर लूँ!
"लेट जा यार, तू भी लेट जा... आजा सर रख ले..." उसकी आवाज़ कामतुर हो चुकी थी! वो मुझे सैक्सी सी नज़रों से देख रहा था! इस बार वो बैठ गया और जब मैने उसकी जाँघों पर सर रखा तो उसकी देसी जवानी की गर्मी और मुलायम मसल्स के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैं कुछ देर बाद सोने का नाटक करता हुआ उसकी ज़िप की तरफ़ करवट लेकर लेट गया और ऐसा करते ही मुझे भी गालों पर उसके खडे लँड का स्पर्श मिला! उसका लँड बिल्कुल हुल्लाड मार कर शायद बाहर निकलने को तैयार था! साला पत्थर सा सख्त था! मैने उसका खूब मज़ा लिया! प्रदीप टाँगों के बीच दहक रहा था! किसी तंदूर की तरह गर्म था वहाँ! मैने अपने होंठों पर उसके लँड को मचलते हुये महसूस किया तो मैं ठरक गया! उसने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख दिया!
अब वो हरकत में आने लगा था! उसका लँड ठनक के मस्त हो चुका था! मेरे कुछ देर लेटने के बाद उसने अपनी एक टाँग आगे सीट पर टिका ली मगर मैं फ़िर भी उसकी फ़ैली जाँघों के बीच मुह उसके लँड पर घुसा कर लेटा रहा! उसने एक बार वैसे ही अपने आँडूए अड्जस्ट किये फ़िर मेरी बाज़ू सहलायी और एक हाथ की उँगलियों से मेरे गालों को सहलाया! उसका लँड अब उफ़न रहा था!
"रुक, थोडा पैंट सरका दूँ..." फ़ाइनली वो अचानक बोला! मतलब उसको मालूम था कि मैं जगा हुआ हूँ! मैं हल्का सा ऊपर उठा तो उसने अपनी पैंट के बटन और ज़िप को खोल के अपनी चड्डी समेत उसको अपनी जाँघ पर सरका दिया! मुझे उसके मर्दाने लँड की खुश्बू सूंघने को मिली और मैं मदहोश हो गया!
"अब ठीक रहेगा, अब लेट जा..."
मैने अपने गालों को उसके लँड के बगल रखा और उनसे ही उसके लँड को सहलाते हुये मज़ा लेने लगा! उसका लँड लाल लोहे की तरह खडा और गर्म था! उसका सुपाडा तो भीग चुका था, उसका कुछ वीर्य मेरे गाल पर लग गया! मैने उसकी झाँटों में मुह घुसा के तेज़ तेज़ साँसें लेना शुरु कर दिया! उसने मेरा सर पकड लिया और अपनी जाँघें फ़ैला दीं! मैने एक हाथ की हथेली उसकी जाँघों के बीच उसके आँडूओं के नीचे घुसा के उसके आँडूये पकड के सहलाना शुरु कर दिये और उसकी गाँड और वहाँ के बालों को भी सहलाने लगा! उसकी खुश्बू बढिया थी! फ़िर मैने उसके सुपाडे को अपने होंठों से सहलाया तो उसने सिसकारी भरी!
"आह... शाबाश... आह..." मैने उसके लँड के छेद को ज़बान से सहलाया! उसका सुपाडा फ़ूला हुआ था! मैने उसके सुपाडे के निचले हिस्से को चाटा! वो उसके प्रीकम से नमकीन हो चुका था!
"पूरा मुह खोल ले ना..." उसने कहा तो मैने अपना मुह खोला और फ़िर उसका लँड पूरा अपने मुह में भर लिया! उसका सुपाडा मेरे मुह में टकरा टकरा के घुसने लगा! उसके लँड की गर्मी से मेरा मुह भी गर्म हो गया और होंठ उसके फ़्रिक्शन से फ़टने लगे! मैं उसका लँड चूसने लगा तो वो गाँड उचका उचका के मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! साले में बडी जान थी! देसी गदरायी और कसावदार जान!
फ़ाइनली गाडी के आने के दो मिनिट पहले उसने अपने वीर्य की पहली धार मेरे मुह में मार दी!
"वाह... इन्तज़ार का फल मिल गया... क्यों मज़ा आया ना तुझे भी?"
"हाँ बहुत..."
"सर्दी में यही सब हो जाये तो बढिया रहता है... क्यों?"
"हाँ..." मुझे अभी भी उसके वीर्य का टेस्ट मिल रहा था! इस बार फ़ाइनली पता चला कि दस मिनिट बाद गाडी आ जायेगी!
मैं अपने होंठों से प्रदीप के गर्म नमकीन वीर्य का स्वाद चखता हुआ प्लेटफ़ॉर्म की तरफ़ बढ गया!