मस्ती ही मस्ती पार्ट

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sexy
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Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट

Unread post by sexy » 14 Aug 2015 21:43

मस्ती ही मस्ती पार्ट --१०

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डिस्क्लेमर: भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!
इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स.एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
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अब, लडके ना सिर्फ़ मेरी कमज़ोरी बन चुके हैं बल्कि शौक़ भी... इतना कि ना तो मैने कभी शादी के बारे में सोचा और ना कभी अपने घरवालों के दबाव में आया! शादी की बात को मैं हर बार बस घुमा फ़िरा के टाल देता हूँ!

एक दिन सुबह सुबह अपनी बालकॉनी पर आया तो नीचे दीपयान अपने दोस्तों के साथ खडा मिल गया! मैने उनको देख के हाथ हिलाया!
"क्या बात है, आज स्कूल नहीं जाओगे क्या?"
"आज कुछ प्रोग्राम बनाने के मूड में हैं..." राजू बोला!
"आप भी आ जाओ..."
मैने उनको गौर से देखा! उस दिन, उनके साथ उनका एक और दोस्त था, जो मुझे काफ़ी पसंद था! वो सौरभ चौहान था! उसके पापा उस एरिआ के अखबार के एजेंट थे! मैनपुरी, यू.पी. का रहनेवाला सौरभ रसीला कमसिन जवान था, जिसका जिस्म अपने और दोस्तों के जिस्मों की तरह करारा था!
"आओ, थोडी देर ऊपर आओ... फ़िर चले जाना..." मैने कहा!
"चार-चार को कहाँ ऊपर चढाओगे भैया... चलने में दिक्‍कत हो जायेगी बडी..." राजू झट बोला और कहकर वो और सौरभ आपस में कोहनी मार के हँसे! दीपयान ने मुझे बडी हरामी सी नज़र से देखा जिस पर ये लिखा हुआ था कि वो अपने दोस्तों को सब बता चुका था! दीपू शायद अपनी सायकल की चेन सही करने में लगा था!
"आ जाओ, कोई दिक्‍कत नहीं होगी..."
"दिक्‍कत तो हम कर देंगे..." इस बार दीपू बोला!
"आओ, देखता हूँ... मैं भी तुम्हारे साथ ही चलता हूँ... आज काम पर जाने का मूड नहीं है..."
"अरे, जब काम यहीं दिखने लगा तो आप सोच रहे होगे, कहीं और जाने का क्या फ़ायदा... हाहा..." वो चारों ऊपर आ गये! इतने पास से पसीने में डूबे उनके जिस्म और कसी हुई जवानियाँ और ज़्यादा खूबसूरत लग रहीं थी!
"तो आज स्कूल नहीं जाओगे?"
"आज हमारा बायलॉजी का टीचर नहीं आयेगा..."
"अच्छा... कैसे पता?"
"जब कल उसके साथ प्रैक्टिकल किया था तो वो बोला था कि वो अपनी मम्मी पापा के साथ ग़ाज़ियाबाद जा रहा है..."
"अच्छा? टीचर तुम्हें सब बता देता है?"
"हाँ, क्योंकि हम उसको प्रैक्टिकल करके सब बताते हैं ना..."
अब मैं समझा... वो अपने स्कूल के उस गाँडू लडके की बात कर रहे थे, जिसकी वो गाँड मारते थे!
"आज सोच रहे हैं, यमुना में खेलने जाते हैं... आओ, आज आपको भी बायलॉजी पढा दें..." दीपू बोला!
"नहीं नहीं... ये तो सिर्फ़ दीपयान से ही पढेंगे... क्यों?" सौरभ ने आँख मार के मुस्कुराते हुये मुझसे कहा और जब दीपयान की तरफ़ देखा तो वो मुस्कुराते हुए हरामी तरीके से शरमा रहा था!
"अबे चुप कर..."
"अरे भैया, हमारी किताबें भी उतनी ही मोटी हैं... आपको पढने में मज़ा आयेगा..."
"कैसी किताब?
"आओ साथ में चलो... आपको भी यमुना में नहला के तर कर दें... चलो भैया..." दीपयान बोला!
"चलो... हम हर एक को नहीं बुलाते हैं... आपका तो पता है इसलिये इन्वाइट कर रहे हैं... चलो..." राजू बोला! अब इतना साफ़ और खुला ऑफ़र मैं कैसे ठुकरा सकता था... चार-चार खूबसूरत, नमकीन, कमसिन, जवान, जोशीले, हरामी चिकने लडके मुझपर साफ़ तौर पर डोरे डाल रहे थे!
"चलो... मगर चलेंगे कैसे?"
"चलो ना, इन्तज़ाम हो जायेगा..."
"कुछ पहनने के लिये ले लूँ क्या?"
"अरे क्या करोगे पहनकर..." राजू हँसते हुये बोला!
"मतलब, हम सब ऐसे ही हैं... चलो जैसे हम नहायेंगे, वैसे आप साथ दे लेना... क्यों, आप शरमाते हो क्या?" दीपयान बोला तो मैं समझ गया कि उनका असली प्रोग्राम क्या है!
"आओ भैया, हम सब बडे बेशरम है..." दीपू बोला!

उन्होने अपने स्कूल बैग वहीं मेरे रूम पर रख दिये!
एक सायकल पर सौरभ और दीपयान बैठ गये, दूसरी पर मैं आगे, राजू सीट पर और दीपू पीछे! यमुना वहाँ से दूर नहीं थी, हम जल्दी ही वहाँ पहुँच गये! फ़िर वो मुझे पास के एक टीले के पीछे की तरफ़, जहाँ काफ़ी हरियाली थी, वहाँ ले गये! नदी में पानी ज़्यादा नहीं था पर धूप तेज़ थी! बगल में दो तीन पेड थे! दूर दूर तक कोई दूसरा नहीं था... समाँ काफ़ी सैक्सी था! वहाँ सायकल खडी करके राजू तो सीधा घास पर चारों खाने चित्‍त लेट गया!
"सायकल चलने में साली गाँड फ़ट गयी... लाओ भैया सिगरेट है क्या?" उन्होने मुझसे सिगरेट ले कर बारी बारी कश लगाना शुरु कर दिया! इतने में सौरभ ने पहले अपने कपडे उतारने शुरु कर दिये तो मेरी नज़र उसके कसे हुये कमसिन नमकीन जिस्म पर चिपकती चली गई! क्योंकि मैं बैठा और वो मेरे सामने खडा था, मुझे उसके जिस्म का एक बहुत ही बढिया नज़ारा मिल रहा था! उसने अपनी शर्ट तो बिना झिझक उतार दी और मेरी तरफ़ अपने बाज़ू कर के मुझे दिखाया!
"देखो, बढिया बॉडी... बढिया है ना?" मैने उसके बाज़ुओं के कटाव को देखा! फ़िर उसने अपनी टाँगें थोडा फ़ैला के अपना हाथ अपनी पैंट के ऊपर से अंदर घुसा के हिला के अपने आँडूए अड्जस्ट किये!
"बहनचोद, गोटियाँ चड्‍डी से बाहर आ जाती हैं... हाहाहाहा..."
"हाँ साले, अब तो तेरा लौडा भी बाहर आ रहा होगा..." दीपयान बोला!
"और क्या... अब तो पहले बाहर आयेगा, फ़िर अंदर जायेगा... ज़रा देखूँ तो, तेरी बात में कितना दम था..." मैं उनकी बातों और हाव-भाव से मस्त हो रहा था! लडके पूरे मज़े के मूड में थे... एक साथ चार-चार नमकीन जवान लडके... वो भी गज़ब के हरामी और चँचल... इस बीच दीपयान ने बैठे बैठे ही अपनी स्कूल बैल्ट खोली और अपनी पैंट अपने जिस्म से अलग कर दी! मुझे उसका बदन भी फ़िर से देखने में बडा मज़ा आ रहा था!
"आप भी कपडे उतार लो ना भैया, पानी में घुसना नहीं है क्या?" वो मुझसे बोला!
"पानी में घुसना भी होगा और घुसवाना भी होगा... भैया आप तो बेकार में शरमा रहे हो..." तो राजू बोला!
"अरे, हम आपस में किसी बात में नहीं शरमाते..."
"स्कूल में सारे प्रैक्टिकल साथ साथ करते हैं भैया..." दीपू ने अपने कपडे उतारते हुये कहा तो मैने भी उनके साथ घुलने मिलने के लिये अपने कपडे उतरना शुरु कर दिये! देखते देखते अब हम सभी सिर्फ़ चड्‍डियों में हो गये! मैने ध्यान से तरस के उन सबको देखा! दीपू का जिस्म अच्छा सुडौल और कटावदार था! वो नीले रँग की वी.आई.पी. की चड्‍डी पहने था! दीपयान ने उस दिन व्हाइट फ़्रैंची पहन रखी थी! सौरभ ने जाँघिया स्टाइल वाली अमूल की ब्राउन कलर की अँडरवीअर पहनी थी और राजू ने काले रँग की चुस्त सी नायलॉन की चड्‍डी पहनी हुई थी! सबसे कटीला जिस्म दीपू का था! उसका रँग भी अच्छा सुनहरा सा था! राजू का जिस्म सबसे गठीला और साँवला था! बिल्कुल देसी... लगता था मसल्स में ठूँस ठूँस के सारे में नमक भर दिया गया हो! उसकी छाती में गोश्त के कटाव थे! सौरभ सबसे चिकना था! उसकी कमर पतली, रँग गोरा और फ़िगर बल खाती हुई थी! उसकी गाँड भी गोल गोल थी! दीपयान का पहाडी गुलाबी जिस्म और उसका मज़ा तो मैं चख ही चुका था... मगर उस दिन भी वो वैसा ही लग रहा था जैसे पहली बार मिला हो! शायद इसलिये कि आज वो अपने दोस्तों के साथ था!

तभी राजू दौडता हुआ पानी की तरफ़ गया और वैसे ही तेज़ 'छप्पाक्‍क' के साथ पानी में कूद गया! सौरभ और दीपू भी उसके पीछे भागे और उन्होने भी वैसे ही पानी में छलाँग लगा दी! मैने अब दीपयान को देखा!
"क्यों भैया, हैं ना हरामी लौंडे?"
"हाँ यार..."
"पसंद आया इनमें से कोई?"
"कोई? सभी बढिया हैं बे..."
"तो शरमा क्यों रहे हो... एक बार हामी भर दो, साले एक एक करके चालू हो जायेंगे..."
"यार, समझ नहीं आ रहा.. कैसे..."
"इधर आओ, मैं समझा देता हूँ..." कहकर उसने मेरा हाथ पकड के अपनी तरफ़ खींचा और मुझे अपने जिस्म से लँड पर लँड दबा के चिपका लिया और सीधा अपना हाथ पीछे मेरी गाँड पर दबा दिया! तभी उधर से सौरभ की आवाज़ आयी!
"वाह बेटा, चालू हो गया... सही है... गाँडू को तॄप्त कर दे..." मैं वहाँ खुले आम कुछ करने में कतरा रहा था इसलिये मैने हल्के से दीपयान से अलग होने की कोशिश की!
"यहाँ कोई देख लेगा..."
"अरे, यहाँ कोने में कौन आयेगा देखने... ये हमारा अड्‍डा समझो..."
"यार, फ़िर भी..."
"सही जा रहा है बेटा..." उधर से राजू की आवाज़ आयी!
"यहाँ ले आ ना हमारे पास... क्या तू ही खायेगा अकेला अकेला?"
"अरे, साला घबरा रहा है..." दीपयान ने अपने दोस्तों की तरफ़ देखते हुये कहा!
"क्यों, बहुत मोटा लग गया क्या हमारा?"
"नहीं, कह रहा है... यहाँ खुले में कोई देख लेगा हाहाहाहा..." सौरभ ने कहा तो दीपयान ने जवाब दिया!
"हाहाहाहा... देख लेगा तो क्या हुआ भैया, उसका भी ले लेना... तुम्हारी गाँडू गाँड मस्त हो जायेगी..." दीपू ने कहा!
"अरे, डरो नहीं छमिया... यहाँ इस वक़्त, कोई नहीं आता जाता है" राजू मुझसे बोला फ़िर दीपयान की तरफ़ देख के बोला!
"साले को यहाँ पानी में तो ला... एक बार भीगेगा तो इसका डर खत्म हो जायेगा" मुझे उन हरामियों की लैंगुएज भी मस्त कर रही थी! दीपयान ने मेरा हाथ पकडा और मुझे भी पानी की तरफ़ ले गया! जैसे ही मैं कमर तक पानी में पहुँचा, वो चारों मेरे ऊपर चिपट गये! चार कमसिन हरामी नमकीन लडकों ने मेरे हर तरफ़ अपने अपने लँड एक साथ चिकपा दिये!

"बोलो भैया, पहले किसका लोगे?" दीपू बोला!
"अबे, पहले मुझे लेने दे... क्यों भैया, गाँड में लोगे ना? मैं तो सीधा गाँड मारता हूँ..." राजू बोला!
"अबे, भैया को ही फ़ैसाला करने दे ना..." फ़िर दीपयान ने कहा!
"हाँ, भैया ऐसा करो.. सबका थाम के देख लो... जिसका पसंद आये, उसका पहले ले लो... आप ही डिसाइड कर लो..." मैं तो पूरी तरह मस्ती में आ चुका था!
"लाओ, दिखाओ... जिसका बडा होगा, उसका पहले लूँगा..." मैने कहा!
"ये हुई ना असली गाँडू वाली बात... ले, मेरा थाम के देख साले, तुझे मेरा ही पसन्द आयेगा... पूरा बिजली का खम्बा है..." राजू बोला और कहते हुए उसने मेरा हाथ पकड के अपने लँड पर लगाया!
"रहने दे साले, तुझसे बडा तो मेरा है... तू फ़ालतू में उछलता रहता है..." उधर से दीपू बोला! राजू का लँड लोहे सा सख्त था और करीब पाँच इँची रहा होगा! थोडा मोटा भी था! मैने उसको मसल के अपने हाथ में पकड के उसको नापा!
"क्यों, बढिया है?" उसने मुझसे पूछा!
"हाँ..."
"अब इसका देख लो..." उसने दीपू की तरफ़ इशारा किया तो मैने अपना हाथ पानी के अंदर से ही दीपू की टाँगों के बीच दे दिया! उसका लँड लम्बाई में यकीनन राजू से बडा था, मगर उसके जैसा मोटा नहीं था! साला करीब ७ इँच का रहा होगा!
"अबे, इससे बडा तो दीपयान का है..." मैने कहा!
"देख लो सालों, ये खुद ही कह रहा है..." दीपयान ने गर्व से फ़ूलते हुये कहा!
"हाँ बेटा, जब चुसवायेगा तो कहेगा ही..."
"तो तुम भी चुसवा दो..."
"ला ना, अपना दिखा..." मैने फ़ाइनली सौरभ से कहा! मैने जब उसका लँड अपने हाथ में लिया तो लगा कि वो जीत गया! उसका भी करीब सात इँची था और सबसे मोटा था! दीपयान से भी मोटा... पूरा मर्दाना था!
"ये वाला बढिया है..."
"वाह बेटा... ये बात सही की तूने गाँडू... आजा, तेरी गाँड में लँड का नकेल डाल दूँ, आजा..." सौरभ ने खुशी से कहा और मुझे अपनी कमसिन चिकनी बाहों में भर लिया! पहली बार मैने उसकी कमर में हाथ डाल के उसके मचलते खडे लँड से अपना लँड भिडा दिया!
"चल ना गाँडू, चल साइड में चल..." उसने मुझे बाहर की तरफ़ खींचते हुये कहा!
"ओये, कुछ लगाने को है?" उसने अपने दोस्तों से पूछा!
"मेरी पॉकेट में तेल है... ले ले साले..."
सौरभ जब बाहर निकला तो उसकी चड्‍डी गीली होकर उसके जिस्म से चिपक चुकी थी! उसने जब झुक के दीपयान की पॉकेट से तेल की छोटी सी बॉटल निकाली तो मुझे उसकी गदरायी चिकनी गाँड खुल के सामने साफ़ साफ़ फ़ैली हुई और जाँघें पीछे से कसी हुई दिखीं तो मैं खुद ललच गया! फ़िर उसने आँखों से मेरी तरफ़ इशारा किया!
"आओ, ये देखो आँवले का तेल है... पता है ना क्या होगा?"
"हाँ..."
"तो चलो गाँड खोलो..." कहते हुए उसने वहीं बिन्दास अपनी चड्‍डी उतार दी! मैने पहली बार उसका लँड अपनी नज़रों के सामने देखा! वो गोरा, बेहद चिकना और सिलेंड्रिकल सीधा था! उसका सुपाडा गुलाबी था और अब खुल चुका था! उसने अपने लँड पर हाथ से तेल मलते हुये कहा!
"अबे आ ना, नँगा होकर लेट... यहाँ देख, तेरी गाँड में घुसाऊँगा इस खम्बे को..." मैने बडे लरजते हुये अपनी चड्‍डी उतारी!
"चल, वहाँ घास बडी है... उसमें लेट..." उसने दस कदम दूर के लिये इशारा किया, जहाँ घास इतनी बडी थी कि अगर कोई लेट जाये तो पूरा छुप जाता! वो जगह मुझे भी ठीक लगी!

मैं वहाँ जाकर लेट गया! मुझे पता था, इतनी एक्साइटेड स्टेट में, कमसिन लौंडे ज़्यादा फ़ोरप्ले नहीं कर पाते हैं... उनका तो सीधा काम से मतलब होता है और सौरभ ने भी वही किया! मैं जैसे ही लेटा, वो मेरे ऊपर चढा और सीधा अपना लँड मेरी दरार में फ़ँसा दिया! वो तो तेल के कारण लँड फ़िसला ना होता तो शायद अंदर भी घुसा देता! उसने एक हाथ से अपने लँड को साध के मेरे छेद पर रखा और फ़िर धक्‍का दिया तो मैने मज़ा लेने के लिये अपनी गाँड भींची!
"गाँडू, भींचेगा तो मा चोद दूँगा... चल गाँड ढीली कर, अंदर घुसाऊँगा..." मैने गाँड ढीली की तो उसने एक ही फ़ोर्सफ़ुल धक्‍के के साथ सीधा अपना लँड मेरी गाँड की गहरायी तक उतार दिया और फ़िर मज़े लेने के लिये उचक उचक के मेरी गाँड मारने लगा! उसने मेरे कंधे पकड लिये और चुदायी करते समय साले की ज़बान बन्द हो गयी! अन्दाज़ के मुताबिक वो ज़्यादा देर नहीं टिका और कुछ देर में ही उसके करहाने की आवाज़ों के साथ धक्‍के तेज़ हो गये!
"अआह... सा..ला.. झडने.. वाला है... अआहह.. हाँ... हाँ झड... हाँ.. झड गया..आहहह..." कहके उसने मुझे ज़ोर से पकड लिया और मेरी गाँड की गहरायी तक धक्‍के दे-देकर अपना माल मेरी गाँड में भर दिया!

जब वो वहाँ से लौटा तो मुझे अपनी तरफ़ दीपयान आता दिखा! वो चड्‍डी पहने जो और मेरे पास आकर ही उतरी!
"गाँड में लेगा या चूसेगा आज भी?"
"जो तू कहे..." मैने कहा!
"चूस ले, क्योंकि गाँड तो साला सौरभ गन्दी कर गया होगा..."
"क्यों, आजा ना... गाँड में डाल दे..."
"नहीं, चूस ही ले... बाकी दोनों से मरवा लियो..." उसने कहा और सीधा, मुझे लिटा के मेरी छाती पर बैठ गया और मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! जब मैने उसकी गाँड पकडने की कोशिश की तो उसने मना किया!
"ओये, सबके सामने गाँड पर हाथ मत रख... गाँडू, चुपचाप चूसता जा, बस..." मैने अपने हाथ हटा लिये और सिर्फ़ उसके लँड के धक्‍कों का अपने मुह में मज़ा लेता रहा!
"ओये, गाँड में डाल दे ना साले की... चुसवा क्या रहा है, साले..." तभी पीछे से दीपू की आवाज़ आयी!
"अबे, साला चूसता बहुत बढिया है... तू गाँड में डाल दियो... मुझे चुसवाने में मज़ा आता है..." उसने अपने दोस्त को जवाब दिया! कुछ देर बाद दीपयान का गोरा चिकना खडा लँड मेरे मुह में उछलने लगा और उसके वीर्य की गर्म धार मेरे मुह में भर गई तो मैं उसको पी गया! उसका रस बडा नमकीन और कशिश भरा ताक़तवर था! बिल्कुल वैसा, जैसा लौंडिया चूत में भरवाना चाहती है! उसने मेरे मुह से लँड निकाला और उसको मेरी छाती पर पोंछ दिया!

फ़िर राजू आया! उसका लँड सबसे काला था और सबसे बडे आँडूए थे! उसके लँड का सुपाडा खुला हुआ था, बिल्कुल मुसलमानों के लँड की तरह... जैसा मुझे दीपयान ने उसके बारे में बताया था!
"चल ना, कुतिया बन..." उसने मुझे पलटवा के मेरे घुटने मुडवा के गाँड ऊपर उठवायी!
"साला सौरभ माल भर के गया है???"
"हाँ..." मैने कहा!
"तब सटीक अंदर जायेगा मेरी रानी... चल कुतिया बनी रह, आज तुझे मर्द की शक्ति दिखाता हूँ... गाँडू तू भी क्या याद रखेगा, किसी ने तेरी गाँड मारी थी..." कहकर उसने अपना सुपाडा मेरे छेद पर लगाया जो अब तक किसी राँड की चूत की तरह खुल चुका था! उसका सुपाडा सीधा एक झटके में अंदर घुसा और फ़िर वो खुद अपना पूरा लँड मेरी गाँड में डाल कर मेरे ऊपर झुक के लेट गया और मेरी पीठ पर चुम्बन लेने लगा! फ़िर मैं वापस लेट गया तो उसने पीछे से अपना मुह मेरे गालों पर लगाना शुरु कर दिया! वो लगातार अपना लँड अंदर बाहर भी किये जा रहा था! फ़िर उसने कहा!
"अपना मुह दिखा ना गाँडू..."
जब मैने अपना मुह उसकी तरफ़ मोडा तो उसने मेरे होंठ चूसने शुरु कर दिये!
"उम्म... सिउउउहहह... हाँ जब चोदो तो पूरा दिल लगा के... साला दीपयान का नमकीन माल तेरे होंठों पर लगा है... हाहाहा..." उसके धक्‍के अच्छे थे! हर धक्‍के में लँड सीधा अंदर तक छेद चौडा करके घुस रहा था और हर धक्‍के पर 'धपाक धपाक' की आवाज़ें आ रही थी! वो अपनी जाँघें और गाँड समेट समेट के उठा रहा था और फ़िर नीचे ज़ोर से मेरी गाँड पर धक्‍का लगा रहा था! राजू ने मेरे दोनो कन्धे पकड रखे थे जिस वजह से मुझे उसके हाथों की ताक़त का भी अहसास हो रहा था! उसने अपने पैरों से मेरे पैरों को ज़मीन पर जकड रखा था, मगर शायद उसे उठी हुई गाँड मारने का शौक़ था!
"थोडी गाँड उठा..." उसने कहा तो मैने अपनी गाँड ऊपर उठा दी!
"टाँगें फ़ैला ना..." मैने जब टाँगें फ़ैलाईं तो वो मेरी फ़ैली हुई टाँगों के बीच हो गया पर उसने मेरी गाँड मारना जारी रखा!

"ओये... कितनी लेगा? बच्चा डाल के आयेगा क्या साले?"
"अबे, गाँडू.. की गाँड... में कहाँ बच्चा... ड..लेगा... सा..ला, बडा मस्त चुद...वा र..हा है... गाँड ब..ढि..या है गाँडू की..." वो चोदते चोदते बोला!
"हाँ बेटा, तभी तो लाया हूँ..." दीपयान बोला!
"क्यों... गि..रा.. दूँ?" उसने मेरे कान में पूछा!
"अगर चाहते हो तो गिरा दो..."
"अभी गिरा देता हूँ... फ़िर कभी अकेले में अपने कमरे पर बुलाइयो... तो और जम के रात भर तेरी मारूँगा..."
"हाँ, आ जाना कभी भी..."
"हाँ आऊँगा... अकेले में लेने की बात ही और होती है..."
"हाँ, उसमें अलग मज़ा आता है..." फ़िर उसने मेरी गाँड में धक्‍के तेज़ कर दिये और कुछ देर में उसका माल भी मेरी गाँड के अंदर झड गया!

फ़िर दीपू आया! जो फ़िज़िकली उन सबसे ताक़तवर और मस्क्युलर था! उसका रसीला बदन भीग के और मादक लग रहा था और वो जब नँगा मेरी तरफ़ आया तो उसका सामने लहराता हुआ लँड बडा सुंदर लग रहा था! मगर दीपू आया और मेरे सामने खडा हो गया! उसने अपने दोनो हाथ कमर पर रख लिये और लँड थोडा आगे कर लिया!
"क्या हुआ? आओ ना..."
"आता हूँ..." उसने कहा और फ़िर जब उसके लँड से पिशाब की धार मेरी पीठ पर पडी तो मुझे उसके हरामीपने का अहसास हुआ! मैने उठना चाहा मगर उसने मुझे अपने पैरों से दबा दिया और फ़िर अपने लँड को हाथ से पकड के मेरे ऊपर पूरा का पूरा पिशाब कर दिया! उसकी गर्म पिशाब की धार से मैं मस्त तो हो ही गया!
"ले, अब चूस... हाहाहा..." उसने हँसते हुये कहा!
"साला, बडा हरामी है... उसके ऊपर मूत ही दिया..." पीछे से बाकियों की भी हँसने की आवाज़ आ रही थी!
"हाँ साला, बहुत दिन से पॄथ्वी के ऊपर मूतने के चक्‍कर में था..." पॄथ्वी वो लडका था, जिसकी वो सब स्कूल में लेते थे!
"अबे, इसके रूम पर चल के इसकी लिया करेंगे..."
"हाँ, बिस्तर में लिटा के..."
"हाँ, उसका मज़ा अलग आयेगा..."
"हाँ, सुहागरात लगेगी..."
"अबे रहने दे... बहनचोद, गाँडू के साथ कैसी सुहागरात..."
"अबे, अभी तो यही है ना... सुहागरात मनाने के लिये..."
"पॄथ्वी को भी बुला लेंगे... दोनों को अगल बगल लिटा के, दोनो की गाँड मारेंगे..."
"हाहाहा..."
"आइडिआ बुरा नहीं है..." दीपू मेरे बगल में मेरी तरफ़ लँड करके लेटा तो मैने उसका लँड दबा के उसके आँडूए सहलाये और फ़िर उसका लँड अपने मुह में ले लिया! उसने अपनी जाँघ मेरे कंधे पर चढा दी और जब मैने उसकी गाँड को पकड के मसला तो उसने सिसकारी भरी! मैने एन्करेज्ड होकर उसकी दरार में अपनी उँगलियाँ फ़िराईं और उसके छेद पर उँगली से दबाया! उसकी गाँड की चुन्‍नटें तुरन्त ही खुलने लगीं और मेरी उँगली की टिप उसमें घुसने लगी!
"अबे, गाँड मारेगा क्या? साले, लँड चूस..."
"तेरी गाँड बडी बढिया है..."
"बहनचोद, है किसकी... बढिया नहीं होगी क्या..."
"एक बार गाँड चूमने दे..."
"अबे यहाँ नहीं..."
"क्यों?"
"अबे, सब के सब हैं यहाँ..."
"यार, तेरी गाँड बडी मस्त है..." मुझे लगा कि शायद वो मरवा लेगा और शायद उसने मरवा भी रखी थी!
"ओये गाँडू, लौडा चूस बस..."
"एक बार गाँड में मुह घुसाने दे..."
"यहाँ नहीं यार... किसी दिन अकेले में..."
"आह... और क्या क्या करने देगा अकेले में?" लँड चुसवाने में वो कामातुर था इसलिये भी बेझिझक बातें कर रहा था!
"जो करना है कर लियो... बस?"
"मरवायेगा?"
"देखा जायेगा... तू मिल तो पहले..." अब मैं कन्फ़र्म हो गया कि वो भी शौकीन मिजाज़ है!
"अभी चूस ना साले... सही से चूस..." कहकर उसने मुझे कुछ देर गहरायी तक चुसवाया और जब मुझे लगा कि वो झाडने वाला है, तो उसने मुझे पलट दिया और अपनी तरफ़ गाँड करवा के करवट दिलवा दी! फ़िर उसने मेरी गाँड में लँड डाल दिया और मेरी गाँड चोदने लगा!
"वाह... चुसायी और चुदायी, दोनो का मज़ा..." मैने कहा!
"हाँ बेटा, बस मज़ा करता हूँ... बस मुह बन्द रखेगा, तो तुझे और भी मज़ा दूँगा..."
"मेरा मुह तो बन्द ही रहता है... तुम्ही लोग आपस में सब बोल देते हो..."
"यार, अब तो तुझसे सम्बन्ध हो गया है ना... पहले की बात और थी... अब जो बोलेगा, आपस में रहेगा..." उसके कुछ देर बाद उसने मेरी गाँड में माल झाड दिया! फ़िर हम वहाँ कुछ देर और नहाये, जिस दौरान सौरभ ने पानी में ही, सबके सामने मुझसे अपना लँड चुसवाया!
उसके बाद उनसे मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी और वो अक्सर मेरे रूम पर आने लगे! फ़िर मैने कानपुर में नौकरी के लिये अप्लाई किया और वहाँ शिफ़्ट हो गया और देहली के इन आशिक़ों की बस यादें रह गयी! बस विनोद और आकाश का कभी कभार लैटर आता था! फ़िर सब अपने अपने जीवन में लग गये!

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Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट

Unread post by sexy » 14 Aug 2015 21:44

मस्ती ही मस्ती पार्ट --११

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डिस्क्लेमर: भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!
इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स.एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
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चलिये अब उन दिनों से वापस आ जाते हैं... २००७ में! मैं इतने साल यहाँ वहाँ घूमने के बाद फ़िर देहली लौट आया हूँ! अब मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट का ज़माना है! लौंडेबाज़ी तो आप लोगों को पता ही है कि मेरी कैसी चलती होगी! जहाँ लडके दिखते हैं मैं पटाना चाहता हूँ! ज़ायैद का ऑल्मोस्ट डेली मेल आता है, मगर वो ना तो अपना फ़ेस दिखाता है ना फ़ोन नम्बर देता है, बस मेल्स और चैट... इसलिये कभी कभी तो मुझे लगता है कि क्या वो वही है, जो कहता है... या कोई और है! मैने पिछले कुछ दिनों में आशित से दोस्ती कुछ और बढा ली है! अब उसकी जवानी की नमकीन कसक मुझ पर ऐसा जादू करती है कि मैं उसको देखे बिना रह ही नहीं पाता हूँ! उसको भी ऑफ़िस में दोस्तों की ज़रूरत है! मैं तो बस जब भी उसके साथ होता हूँ, जो अब अक्सर ही होता है, उसके चेहरे को बडे पास से देखता रहता हूँ! वैसे वो बहुत गोरा तो नहीं है, हल्का साँवला है... मगर चेहरे पर इतना नमक है कि साला बहुत सैक्सी लगता है! उसकी शेपली बॉडी बडी जानलेवा है! पतली कमर और मज़बूत गाँड की गदरायी फ़ाँकें, टाइट टाइट जाँघें और उभरी हुई कसी ज़िप! उसकी पैंट से उसकी चड्‍डी की लाइनिंग तक दिख जाती है! कभी वो फ़्रैंची पहनता है, कभी जाँघ तक वाली अँडरवीअर, कभी बिकिनी स्टाइल वाली! मगर हर दिन उसकी टाइट पैंट से उसकी अँडरवीअर की लाइनिंग साफ़ दिख ही जाती है! उसकी शर्ट से उसकी बनियान भी झकलती है! उसके कंधे और बाज़ू मज़बूत हैं, कलायी चौडी जिस पर हमेशा पूजा का धागा रहता है! उसके ऊपर के खुले बटन से देख देख कर मैने ये भी अन्दाज़ लगा लिया है कि उसकी छाती पर ज़्यादा बाल नहीं हैं! उसको भी ऑफ़िस में लेट बैठ कर चैटिंग का शौक़ है! जब मैं सामने की डेस्क पर बैठ कर स्टोरीज़ टाइप करता हूँ, वो अक्सर बैठा अपने फ़्रैंड्स से चैट करता रहता है... और शायद ऐसी वैसी साइट्स भी देखता है! अक्सर उसकी आँखें मॉनिटर पर गढी रहती हैं! कभी कभी उसका हाथ भी नीचे की तरफ़ जाता है और वो ऐसे प्रिटेंड करता है जैसे अपने आँडूए अड्जस्ट कर रहा हो!
उस दिन मैं हमेशा की तरह अपना इन-बॉक्स चेक करके ज़ायैद के मेल्स के जवाब देने के बाद, स्पैम डिलीट कर रहा था! मैने स्पैम समझ के एक मेल पर क्लिक किया मगर फ़िर ना जाने क्यों उसको ओपन किया तो सर्प्राइज़्ड रह गया... वो विनोद की मेल थी! विनोद वही जाट लडका था, जो कभी मेरे साथ कम्प्यूटर कोर्स कर रहा था! उसको ना जाने कहाँ से मेरा आई.डी. मिल गया था! शायद उसने ऑर्कुट या फ़ेसबुक से कोई कनेक्शन निकाल लिया था! वो देहली में ही था! अभी उसने बस दो लाइन्स ही लिखी थी! मैने तुरन्त बैठ कर उसको एक लम्बा सा जवाब लिखा! जवाब में फ़िर अचानक एक दिन उसका फ़ोन आ गया, जब मैं किसी काम में बिज़ी था! इतने दिन बाद उसकी आवाज़ सुन कर मैं मस्त हो गया! उसके साथ गुज़ारे पल... लगता था, अभी दो दिन पहले ही हुये थे... ना मैं उन पलों को भूल पाया था और ना शायद वो...

"और बता, बाकी सब कैसा चल रहा है?"
"मस्त है यार..."
"बाकी सब?"
"बाकी सब भी ठीक है..."
"और सब?"
"और सब भी बढिया ही है यार..."
वो शायद चुदायी के टॉपिक पर आना चाहता था मगर जब उसने बताया कि उसकी शादी हो गयी है और अब एक ९ साल की लडकी, एक ७ साल का लडका और एक ५ साल का लडका है तो मैं समझ गया कि वो शायद चुदायी के बारे में नहीं पूछ रहा है क्योंकि उसके जैसे हरामी लडके शादी के बाद सिर्फ़ चूत के नशे में रहते हैं और अगर उसको चूत का नशा नहीं होता तो तीन तीन बच्चे नहीं पैदा किये होते!

"तेरी शादी हो गयी?" उसने पूछा!
"नहीं यार..."
"मतलब अभी तक लगा हुआ है भाई लोगों के साथ?"
मैं जवाब में सिर्फ़ हँसा!
"कभी मिलते हैं यार... घर आजा, मेरी बीवी से मिल..."
"हाँ आऊँगा..." उसके बाद कई दिन उसका फ़ोन नहीं आया!

इस बार मेरे जीवन में कुछ स्पेशल होने जा रहा था मगर मुझे अभी तक उसका पता नहीं था! मैं आदत के मुताबिक लौंडे ताडने के लिये शाम में पुरानी दिल्ली चला गया! वहाँ के हरामी लौंडे मेरे लिये शराब के नशे से कम नहीं थे! उस शाम भी पहले मैने खाना खाया फ़िर सुंदर सुंदर लडकों को देखता रहा! कोई साला गाँड में घुसी जीन्स पहने था, तो कोई स्मार्ट सी डिज़ाइन वाली शर्ट! कोई गोरा था कोई साँवला! कोई चिकना था कोई मर्दाना! किसी के क्रू कट बाल थे तो किसी के सेन्टर पार्टिंग के! कोई सिगरेट पी रहा था तो कोई अपने किसी दोस्त के कंधे पर हाथ रखे बातें कर रहा था! काफ़ी देर ठरक जवान करने के बाद मैं ऑटो ढूँढने निकल पडा! काफ़ी मेहनत के बाद भी जब कोई ऑटो नहीं मिला, तो पास के सिगरेट वाले की दुकान पर खडा हो गया और सिगरेट लेकर जला ली! अब तो रोड पर भी ऑटो नहीं दिख रहे थे! उस दिन मैने आशित को अपने साथ पुरानी दिल्ली चलने का इन्विटेशन दिया था मगर लास्ट मिनिट पर उसके बॉस ने कुछ काम दे दिया जिस कारण वो मेरे साथ नहीं आ पाया! मैं ऑटो ढूँढ रहा था, कि अचानक विनोद का फ़ोन आ गया!

"अरे, कहाँ गायब हो गया था यार?"
"अरे, एक बडा ऑर्डर मिल गया था, उसमें लगा पडा था... तू कहाँ है कभी?"
"अभी तो मैं पुरानी देहली में हूँ..."
"क्या बात करता है यार, हम भी एक शादी में चाँदनी चौक आये हुये थे.. बस निकलने ही वाले थे! चल हमारे साथ चल, बता तू कहाँ है... मैं तुझे पिक कर लूँगा... तुझसे तो बहुत बातें करनी हैं..."
"अभी तो बहुत थक गया हूँ यार..."
"अरे, थकान मिटाने का इन्तज़ाम है मेरे पास... मैने तेरे बारे में अपनी बीवी को बताया, वो भी तुझसे मिलना चाहती है..."
"अच्छा साले, तूने तो बुराई की होगी..."
"नहीं बेटा, अच्छी वाली बातें भी बतायी हैं..."
"अच्छी वाली कैसी?"
"अब तू बन क्यों रहा है?"
"अच्छा मिलते हैं..." मैं वहीं साइड में फ़ुटपाथ की रेलिंग पर बैठ गया! करीब आधे घंटे में ही विनोद एक वैन में वहाँ आ गया और सीधा उतर के मुझसे गले मिलने लगा! उसके पास से शराब की बदबू आ रही थी!
"बहनचोद, पी के आया है क्या?"
"अबे, शादी में गया था... वहाँ हो गयी कुछ कुछ..."
मैने वैन में देखा अगली सीट पर एक सिल्क की लाल सारी पहने उसकी बीवी बैठी थी!
"शिखा है, मेरी बीवी... कैसी लगी?" उसने आँख मार के पूछा!
"अबे साले, बडा हरामी है... ठीक है..."
"हाँ, जब शादी हुई थी तो और ठीक थी... वो तो मैने कबाडा कर दिया... हाहाहा..."
"बहुत मादरचोद है यार तू... साले किसी को तो जाने दिया कर?"
"अबे, बीवी तो अपनी प्रॉपर्टी होती है..."
"हाँ, तू बेहतर जानता होगा यार..."
"चल, आजा मिलवाता हूँ... तेरे बारे में बहुत कुछ जानती है..."
"अबे क्या-क्या बोल दिया?" मगर मैने सवाल पूरा भी नहीं किया था कि उसने शिखा से मिलवा दिया! उसने मुझे मुस्कुराते हुये नमस्ते किया और मैने उसको गौर से देखा तो १० साल की शादी के लिहाज़ से वो काफ़ी मेन्टेन्ड थी! मैं पिछली सीट पर बैठने लगा!

"अबे, मैने बहुत पी रखी है... गाडी तू चला..." मैने ऑफ़र मान लिया! मैने एक्स्पैक्ट किया था कि शिखा पीछे चली जायेगी और विनोद आगे! मगर शिखा तो वहीं बैठी रही मेरे बगल वाली सीट पर! गाडी चलते ही विनोद की ज़बान भी चलने लगी!
"अब पूछ, तू क्या पूछना चाहती थी?" उसने अपनी बीवी से पूछा जो बहुत शरमा रही थी!
"नहीं जी, रहने दो..."
"अरे पूछ ले, ये मेरा पुराना दोस्त है... बुरा नहीं मानेगा..."
"हाँ मालूम है... मगर..."
"अरे, फ़िर पूछ ले ना..."
"क्या पूछना चाहती हैं आप?" आखिर मैने ही पूछ लिया तो शिखा और शरमा गयी! मैने ध्यान दिया कि उसने भी शराब पी रखी थी!
"अरे पूछ ले ना..." विनोद फ़िर बोला!
"अच्छा मैं ही कह देता हूँ..."
"अबे, क्या बात है?" मैने कहा!
"कुछ... कुछ नहीं..." शिखा बोली!
"ये पूछ रही थी, तूने शादी क्यों नहीं की... तेरा काम कैसे चलता होगा?"
मैने शिखा की तरफ़ देखा तो पाया वो मुझे गौर से देख रही थी!
"काम.. मतलब क्या काम?"
"घपचिक घपचिक वाला काम..." विनोद बोला! वो दिखने में, बात-चीत में बिल्कुल नहीं बदला था!
"अबे रहने दे..."
"मैने बताया तो इसको यकीन नहीं हुआ..."
"अबे क्या बता दिया?"
"वही कि तेरा काम कैसे चलता है..."
"क्या बात करता है?" इस बार मैने जब शिखा की तरफ़ देखा तो वो मुस्कुराने के साथ हल्की सी खोयी खोयी लगी और अब पहले से थोडी कम हैज़िटेंट...
"क्यों, इसने ये कहा था?"
"हाँ, कहा तो यही था..."
"अबे, और क्या-क्या कह दिया?"
"अबे कहूँगा वही ना, जो मुझे पता होगा... वो याद नहीं है, तेरे रूम वाली बात... बस वही बतायी है.. कसम से..."
अब मैं शर्मिन्दा और उत्तेजित दोनो महसूस करने लगा!
"साले, तू शादी के बाद भी नहीं बदला?"
"बेटा, हम बदलने वालों में से नहीं हैं..."
"क्या मतलब है तेरा?" मैने शिखा की तरफ़ देखते हुये विनोद से पूछा!
"मतलब, बेटा एक रास्ता पकड के उसी पर चलते हैं..."
"क्यों शिखा, ये सही कह रहा है?"
"हाँ, आपकी हमेशा बात करते हैं..."
"अच्छा... अबे तेरा इरादा क्या है यार? और तूने अपनी बीवी को भी सब उल्टा पुल्टा बता दिया... बडा हरामी है यार तू..."
"अरे, अब इतने साल के बाद इतना विश्‍वास तो है ही... जब देख लिया, कि बुरा नहीं मानेगी तो बताया..."
"तुम इससे ये सब बात कर लेती हो?" मैने शिखा से पूछा!
"हाँ, अब और किससे करूँगी?"
"इसने क्या क्या बताया?"
"बताया तो बहुत कुछ है... लडको... लडको के बारे में... मतलब आप और लडके..."
"मतलब... साले ने सभी कुछ बता दिया... बडा हरामी है..."
"हाँ बेटा, अब शरमाने की नौटंकी छोड दे और खुल के बात कर ले..."
"खुल के क्या साले... तुझे लँड चुसवा दूँ?"
"सिउहहह..." मैने जैसे ही कहा, शिखा ने एक सिसकारी भरी!
"देख, तेरी बीवी गर्म हो रही है... ऐसी बात मत कर..."
"इसको तो मैं रातों में खूब गर्म करता हूँ..." उसने पीछे से हाथ आगे करके अपनी बीवी की चूची दबायी तो शिखा ने बस उसके हाथ पर हाथ रख के गहरी साँस लेकर अपना सर हल्का सा पीछे कर लिया!
"अबे, पल्लू गिरा के बैठ जा, थोडा ये भी देख लेगा... शायद इसे भी कुछ हो जाये..." उसके कहे पर शिखा ने अपनी सारी का पल्लू गिरा दिया तो मैने देखा उसका ब्लाउज़ कसा हुआ था और चूचियाँ बडी बडी थीं!
"देख... दबा दबा के, चूस चूस कर इनका साइज़ कैसा कर दिया है..."
"और क्या क्या बडा कर दिया है?"
"इसकी फ़ुद्‍दी... देख ले..." विनोद बोला!
"पहले तेरा लँड देखूँगा..."
"बेटा, गाँड भी देख लियो..."

वो मुझे अपने रैगुलर घर ना ले जाकर अपने एक और फ़्लैट में ले गया जो उसने थोडी दूर पर बनवाया था!
"ये चुदायी का अड्‍डा है... यहाँ जम के अय्याशी का सामान है..."
जब तक उसने दरवाज़ा खोला, हम तीनो ही बहक चुके थे! विनोद ग्रे सूट में था जो उसकी मस्क्युलर बॉडी के कारण टाइट था और जिसमें से उसका लँड दिखने लगा था और शिखा तो रोशनी में आग लगा रही थी! हम उसके बेड पर बैठे थे!

"यार, तेरी बातों पर यकीन नहीं होता..." मैने फ़ाइनली कहा क्योंकि मेरे साथ तब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था!
"बेटा, दुनिया में ना... सब कुछ हो सकता है और मैं उनमें से नहीं हूँ जो पुराने यारों भूल जाऊँ... कभी तू मेरे काम आया था, ज़रुरत में तूने साथ दिया था, भूल कैसे सकता हूँ..."
"ये तो अच्छी बात है" मैने कहा!
"सबसे बडी ज़रूरत तो यही होती है... इसमें बहुत कम लोग साथ देते हैं... और जबसे इसको बताया, ये भी देखना चाह रही थी..."
"वाह यार, सही बीवी मिली तुझे, इतनी को-ऑपरेटिव... वरना बीवियाँ तो बडा नखरा करती हैं..."
"यार, हम साफ़ साफ़ बात करते हैं..." उसने कहा!
"अब, एक ही फ़ुद्‍दी कितनी बार चोदूँगा.. फ़ैल के फ़ाटक हो गयी है... हाथ लगा के देख ले..." उसने कहा!
"अबे कैसे?"
"देख ले, देख ले... अपना ही माल समझ..."
मुझे यकीन तो नहीं हुआ! मगर मैने शिखा की जाँघ पर हाथ रखा और हाथ को नीचे उसके पैर की तरफ़ ले गया तो वो मुझे मना करने के बजाय सिसकारी भरने लगी!
"वाह यार..." कहकर मैने उसके पैर सहलाये और अपना हाथ उसकी साडी में नीचे की तरफ़ से ऊपर ले जाना शुरु किया तो उसकी जाँघें भी गाँडू लडकों की तरह खुलने लगीं! मेरा हाथ उसकी चिकनी जाँघ पर चलने लगा और फ़ाइनली उसकी पैंटी पर जा कर रुक गया! मैने बहुत सालों बाद किसी लडकी की चूत पर हाथ लगाया! चूत छूने से ज़्यादा, मैं उस समय की सिचुएशन पर उत्तेजित था!

विनोद ने इस बीच अपनी शर्ट और कोट उतार दिये थे और अपनी पैंट का हूक और ज़िप खोल दिये थे जिस कारण से उसकी काली चड्‍डी का कुछ हिस्सा और ऊपर चौडी सी इलास्टिक दिख रहे थे! उसने कुछ वेट गैन कर लिया था जिस कारण वो और सैक्सी लग रहा था!
"तू नहीं आयेगा क्या?" मैने उससे पूछा!
"रुक आता हूँ... ओये, ज़रा बॉटल निकाल कर ठुमका दिखा ना..."
शिखा सामने की कैबिनेट से बॉटल निकाल लायी और फ़्रिज से पानी और सोडा! उसने अपने हाथ से एक ग्लास में बडा सा पेग बनाया और अपने पति को देने लगी!
"पहले इसको पिला..." उसने कहा तो उसने ग्लास मेरी तरफ़ बढाया!
"अबे पिला दे ना... अपने हाथ से पिला दे..." विनोद बोला तो शिखा ने अपने हाथ से ग्लास लेकर मेरे होठों पर लगा दिया! मुझे तो लगा कि कोई सपना देख रहा हूँ! मैने उसको खींच के उसके ब्लाउज़ के ऊपर से चूचियों में एक बार अपना मुह दबा दिया!
"वाह... लगता है, तेरा टेस्ट चेंज हो गया है..." विनोद बोला!
"नहीं, बस ऐसे ही सोचा, तेरा माल चख के देखूँ..." मैने कहा! इस बीच शिखा उसके लिये भी ग्लास ले आयी तो उसने पूरा का पूरा ग्लास उसको झुका के उसके ब्लाउज़ में डाल दिया और वो गीली हो गयी! उसके लाल ब्लाउज़ से उसकी व्हाइट ब्रा दिखने लगी!
"जा ना साली, ज़रा ठुमका तो लगा..." कहकर विनोद ने उसका पल्लू पकडा और उसको सामने की तरफ़ धक्‍का दिया तो वो गोल गोल घूमती सामने की तरफ़ गयी और उसकी साडी उतरती चली गयी! फ़ाइनली विनोद ने उसका पल्लू मुझे दे दिया!
"ले, खोल दे..." मैने कस के खींचा तो उसकी साडी उसके पेटीकोट से अलग हो गयी!
उसने स्टीरिओ पर 'डॉन' फ़िल्म का गाना लगाया और धीरे धीरे थिरकने लगी!
"...ये... मेरा दिल, प्यार का दिवाना..."
मेरे लिये सच, ये सब जैसे एक सपना था! शिखा की कमर में बढिया लचक थी! विनोद ने मेरे हाथ पर हाथ रखा तो मैने बैठे बैठे ही उसकी तरफ़ देखा! हमारी आँखें मिलीं तो हम मुस्कुराये और फ़िर अपने अपने मुह खोल कर एक दूसरे के मुह पर रख दिये और चूसने लगे! हमारे हाथ एक दूसरे के बदन, जाँघों और हुस्न पर थिरकने लगे! कानों में कुछ देर तो गाने की आवाज़ आना भी बन्द हो गयी! हमने एक दूसरे को पकड लिया और वैसे ही पैर नीचे लटकाये हुये हम बिस्तर पर लेट गये! मैं थोडा उसके ऊपर उसकी छाती पर छाती चढा के लेट गया और अपनी जाँघ उसकी जाँघों के बीच रगडने लगा! कुछ देर में हम ठरक गये!

"देख, वहाँ देख..."
मैने जब शिखा को देखा तो अब वो बस एक लाल पैंटी और ब्रा में थी! विनोद ने उसकी तरफ़ इशारा किया तो वो हमारे पास आ गयी!
"इसकी पैंट उतार दे..." शिखा ने मेरे लँड पर हाथ रख के दबाया!
"सिउउहहह... आईईहहह..." उसने सिसकारी भरी और मेरी बैल्ट खोल दी! फ़िर मैं उस सिचुएशन के कारण मस्त हो गया! शिखा ने जब सहला सहला के पहले मेरी, फ़िर विनोद की पैंट उतारी तो विनोद का नँगा बदन देख कर मेरी पुरानी यादें ताज़ा हो गयी... मेरे लँड ने हुल्लाड मार कर एक उछाल मारी और शायद विनोद के जिस्म से बोला "...तुमको ना भूल पाये..."

विनोद ने केवल वेट ही गैन नहीं किया था, उसने शिखा की चूत में दबा दबा के अपना लौडा और भी मस्त कर लिया था! उसका जिस्म और ज़्यादा गदरा गया था! जहाँ पिछली बार हड्‍डी दिख रही थी, अब मसल्स थे! उसकी गाँड और मज़बूत हो गयी थी, दरार और ज़्यादा गहरी हो गयी थी! हम दोनो ने एक दूसरे की तरफ़ करवट ली और फ़िर अपने लँड आपस में टकरा के लेट गये और धक्‍के दे दे कर एक दूसरे का मुह किस करने लगे! मैं लगातार उसकी गाँड सहला रहा था, उसकी फ़ाँकें फ़ैला के जब मैने उसके छेद पर उँगली रखी तो वो मस्त हो गया!

फ़िर मैने उसके साथ वो भी किया जो पहले नहीं किया था! मैने उसको पलट के लिटाया और उसको तकिया बना के उसकी कमर पर सर रख कर लेट गया और एक हाथ से उसकी गाँड की फ़ाँकों के बीच सहला के उसकी बीवी का नाच देखने लगा, जो अब 'इश्क़ समुन्दर' पर नाच रही थी!
"ओये, पैंटी खोल के चूत दिखा दे रानी..." मैने विनोद की कमर पर दाँत काटते हुये उसकी बीवी से कहा! शिखा ने अपनी दो उँगलियाँ कमर पर अपनी पैंटी की इलास्टिक पर फ़ँसा दीं और वैसे ही कमर मटकाती रही फ़िर उसने पैंटी हल्के से नीचे खिसकायी तो उसकी झाँटें दिखीं!
"वाह... हाँ, खोल दे..." कहकर मैने उँगली विनोद की गाँड पर रखी! उसका छेद गर्म था और कुलबुला रहा था! उसकी जाँघें फ़ैल गयी थी! मैने उनके बीच हाथ डाला हुआ था! कभी कभी मैं हाथ में उसके आँडूए थाम लेता था!

शिखा पूरी नँगी हो गयी और अपनी चूत लचका लचका के नाचने लगी! उस सीन के कारण उसकी चूत से पानी निकल के उसकी जाँघों पर बह रहा था! मैने वो सीन देख के विनोद की गाँड की फ़ाँकों को फ़ैला के उनके बीच मुह घुसा दिया और उसकी मर्दानी खुश्बू सूंघने लगा!

"कैमरा निकाल ना साली..." विनोद ने अपनी बीवी से हैंडीकैम पर हमारी फ़िल्म बनाने को कहा!

मैने उसकी गाँड उठवा दी थी! अब उसका खुला हुआ छेद मेरे होठों और ज़बान का शिकार बन चुका था! मैं उसको खूब चाट रहा था! पीछे से मुह घुसा के मैने उसके आँडूए चाटे, फ़िर उनको चूसने लगा! उसने टाँगें और फ़ैला दीं तो मैने उसका लँड भी थाम लिया! मैने उसको सीधा किया और उसका लँड चूसने लगा! फ़िर वो भी मेरे लँड की तरफ़ मुह करके पैर मोड के लेटा तो वो मेरा और मैं उसका लँड चूसने लगे!
"आजा, ज़रा गाँड चाटेगी क्या?" मैने शिखा को बुलाया!
"हाँ, साली कुतिया चाटेगी क्यों नहीं..."
शिखा ने जब पहली बार मेरी गाँड पर मुह लगाया तो मैं मस्त होकर पागल हो गया! कुछ देर में वो आराम से मेरी गाँड चाटने लगी!
"आज, एक बार इसकी चूत भी चोदूँगा..."
"हाँ, चोद लियो यार... अब क्या पूछना है..." विनोद ने कहा तो मैने शिखा से अपने लँड पर तेल मालिश करवायी और उसको फ़ाइनली विनोद की गाँड में डाल दिया और शिखा के बाल पकड के उसका सर वहाँ लगा दिया!
"देख, तेरे पति की गाँड कैसे मार रहा हूँ, देख... साली राँड, इसकी फ़िल्म बना, देख..."
शिखा फ़िल्म बनाती रही मगर बीच बीच में, मैं विनोद की गाँड से लँड निकाल कर सीधा शिखा के मुह में घुसेड देता था! अब वो हमारे साथ हमारी जैसी ही हो गयी थी!

हम कुछ देर के लिये रुके और एक एक पेग और पिया! इस बार मैने शिखा के हाथ से बॉटल लेकर सीधा सारी व्हिस्की उसके सर पर उँडेल दी तो वो शराब में नहा गयी! वो खुद भी मस्त होकर उसको अपने बदन पर रगडने लगी! मैने उसको खींचा और लिटा लिया... फ़िर मैने विनोद से बोला!
"ले बेटा, तू मेरा लौडा पकड के अपनी बीवी की चूत में डाल..." उसने एक हाथ से उसकी चूत फ़ैला दी जो अब पानी की टंकी की तरह बह रही थी और दूसरे से मेरा लँड पकड के दो फ़ाँकों के बीच लगाया! मैने जब धक्‍का दिया तो लँड सरसरा के अंदर घुस गया, जिसमें मुझे तो मज़ा नहीं आया मगर शिखा ने चूत से मेरा लँड जकड लिया और सिसकारियाँ भरने लगी!
"साली मस्त हो गयी... देखा ना, बोला था ना... मोटा लौडा है इसका..."
"हाँ... बहुत बडा है बहुत... आपसे भी बडा..."
"हाँ, तभी तो चुदवाने में मज़ा आता है, चुदवा ले रानी...."

इस बार विनोद मेरे पीछे आया और जब मैं उसकी बीवी की चूत में लँड दे रहा था, उसने अपना लँड मेरे छेद पर लगा दिया! इस बीच उसने भी तेल लगा लिया था! अब क्या था, उसने मेरी गाँड में अपना लँड डाल दिया! अब जब वो मेरी गाँड पर धक्‍का देता मेरे लँड का धक्‍का सीधा उसकी बीवी की चूत पर लगता!

मैने उस दिन दो बार विनोद की गाँड, एक बार उसके मुह और एक बार शिखा की चूत में वीर्य डाला! बदले में विनोद ने भी मुझे दो बार अपना वीर्य पिलाया और शिखा तो ऐसी चुदी कि सुबह तक उसकी कमर चरमरा गयी! फ़िर ये हमारा रेगुलर खेल हो गया!
आपको काशिफ़ तो याद ही होगा जिससे मैने एक रात हॉस्टल में गाँड मरवायी थी! पर उसके बाद वो मुझे मिला ही नहीं! अभी पता चला, उसी काशिफ़ की शादी है! मैं घर तो जाने ही वाला था, राशिद भाई के कहने पर सोचा, क्यों ना उसकी शादी अटेंड कर लूँ!
तब मैने ज़ाइन को देखा! अब वो बडा हो गया था और जवानी के नशे में था! इतने साल मैने उसको देखा था मगर इस बार, चार साल के बाद देखने में बात ही कुछ और थी... वो और सुंदर, मस्क्युलर, स्लिम सा सुंदर लडका हो गया था! ज़ाइन, राशिद भाई का बडा बेटा है! शादी के घर में मुझे उसके साथ काफ़ी समय बिताने को मिल जाता! मैं उसको खूब खिलाता पिलाता, जोक्स सुनाता, उसके साथ मेल चेक करने जाता, कभी कभी सैक्सी मज़ाक करता, हिरोइन्स की बातें करता, सैक्स तक की बात कर लेता और वो भी मुझसे फ़्रैंक होने लगा! उस शाम मैं और ज़ाइन छत के पास एक छोटे कमरे में अकेले बैठे थे! बाकी घर में शादी का शोर था!

मैने ज़ाइन को एक नज़र देखा और देखता ही रह गया! उसमें अपने दादा की सुंदरता, बाप की जवानी, माँ की चिकनाहट एक साथ मिल कर गज़ब ढा रही थी! उसके भूरे भूरे से, बिना तेल के बाल उड रहे थे! उसकी हाफ़ स्लीव व्हाइट शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुये थे और जीन्स तो मानो जगह जगह उसके जिस्म का चुम्बन ले रही थी! वो रह रह कर अपने मोबाइल से खेलने लग जाता था!
"ऐसा क्या है मोबाइल में?"
"कुछ नहीं चाचा, बस ऐसे ही आदत है..."
"अच्छा..."
"कहीं, कुछ ऐसा वैसा तो नहीं है तुम्हारे मोबाइल में??"
"हे.हे.हे... नहीं चाचा नहीं... बस फ़्रैंड्स के मैसेजेज पढ रहा हूँ..." ज़ाइन सुंदर तो था ही, मेरी बातों से शरमा के उसका गोरा रँग गालों पर और लाल हो गया था!
"वैसे, आजकल तुम लोग मोबाइल का काफ़ी गलत इस्तेमाल करते हो..."
"नहीं चाचा, नहीं तो..."
"अरे देखा नहीं था वो डी.पी.एस. वाला एम.एम.एस.???" इस बार उसका चेहरा बिल्कुल लाल हो गया!
"वो तो बस वैसे ही लोग होते हैं चाचा..."
"कैसे होते हैं??? सब तुम्हारे जैसे ही तो थे... तुम्हारे साथ भी लडकियाँ पढती हैं क्या?"
"जी... मगर वैसी कोई बात नहीं है..."
"वैसी बात होने में टाइम लगता है क्या???" ज़ाइन मेरी बातों से शरमा रहा था, मगर साला हरामी खून था! मैं देख तो ज़ाइन को रहा था मगर मेरी आँखों के सामने कभी उसके दादा हुमेर का और कभी उसके बाप राशिद का लँड नाच रहा था और उनके साथ हुई चुदायी का मन्ज़र साफ़ दिख रहा था! जब मैं उन दोनों से, ज़ाइन को कम्पेअर कर रहा था तो उसकी कमसिन गदरायी चिकनी जवानी और ज़्यादा आग लगा रही थी!
"अब तुम बच्चे भी नहीं हो, जो इतना शरमा रहे हो..."
"शरमा कहाँ रहा हूँ..."
"शरमा तो रहे हो..."
"तुम्हारी उम्र में तो हमने खूब गुल खिलाये थे..."
"अच्छा??? कैसे गुल?" अब मैं उसको उसके दादा और बाप के बारे में क्या बताता!
"बस रहने दो, तुम वैसे ही शरमा रहे हो... कहीं शॉक से बेहोश ना हो जाओ..."
"अरे बताइये ना..."
"अब पता नहीं, तुम्हारी जनरल नॉलेज़ कैसी है... कहीं ज़ीरो हुई तो बेकार होगा..."
"जी.के. तो अच्छी है..."
"नम्बर वाली या बिना नम्बर वाली?"
"दोनो..."
सही था... साला था तो अपने बाप का बेटा और अपने दादा का पोता ही ना... लगता था, लौंडेबाज़ी का फ़ैमिली ट्रेडिशन कायम रखने वाला था... या शायद ये बस मेरी उम्मीद थी! मैने फ़िर ज़ाइन का जिस्म देखा, उसके हाथ पैर सच बडे नमकीन थे... दिल किया, बस उसको पकड के पूरा चाट डालूँ! उसके पैर के बीच में हल्का सा उभार था! मैने सोचा, पता नहीं उसका लँड कितना बडा होगा!

"अच्छा ये बताओ ज़ाइन, जब लडकी का ध्यान आता है तो तुम्हें क्या दिखता है?" एक बार को तो वो एकदम तमतमा गया! फ़िर थूक निगलता हुआ बोला!
"मतलब?"
"मतलब की तुम फ़ेल..."
"नहीं नहीं, इतनी जल्दी नहीं... अच्छा बताता हूँ..."
"बताओ..."
"किस सैन्स में पूछ रहे हैं आप?"
"डी.पी.एस. के एम.एम.एस. वाले सैन्स में..." वो फ़िर शरमाया तो मुझे लगा कि लौंडा कहीं अपने बाप दादा का ट्रेडीशन तोड ना दे!
"उस सैन्स में???"
"अब इतना टाइम लोगे तो सुबह हो जायेगी..."
"उस सैन्स में तो चाचा, एक ही चीज़ ध्यान आयेगी ना..."
"क्या चीज़?"
"चूत"
"शाबाश... अब जवाब दिया ना तुमने सही से..."
"चूत किस कलर की होती है?"
"गुलाबी"
"वाह ज़ाइन वाह..." उसके इन दोनो जवाबों से मेरा लँड बिल्कुल खडा हो गया! उसका चेहरा अब तमतमा के लाल हो गया था!
"चूत में क्या डाला जाता है ज़ाइन?"
"उन्हु चाचा..."
"नहीं पता क्या?"
"पता है..."
"तो बताओ"
"जी... जी... जी लँड..."
"अच्छा, बताओ कैसे डाला जाता है?"
"उन्हु... उन्हु.. अच्छा बताता हूँ, रुकिये एक मिनिट... बस प्लीज... जी वो... जी..."
"अब रहने दो... तुम फ़ेल..."
"जी, वो चूत की दोनो फ़ाँकों के बीच में डाला जाता है..."
"शाबाश... डीटेल में बताओ, सोचो तुम डाल रहे हो..."
"जी, दोनो फ़ाँकों को हाथ से फ़ैला के उनके बीच में..."
"लँड का कौन सा हिस्सा पहले अंदर जायेगा?"
"जी लौडे का सुपाडा..."
"अब बताओ, डी.पी.एस. का एम.एम.एस. कैसा था?"
"बहुत बढिया.."
"अगर उस लडके की जगह तुम होते तो क्या करते?"
"मैं चूत में लँड डाल देता चाचा..."
"तुम्हारा किता बडा है?"
"उस लडके से बडा..."
"इन्चेज़ में बताओ..."
"जी... अबाउट ६..."
"झाँटें आ गयी हैं?"
"हाँ..."
"गाँड पर बाल हैं?"
"नहीं..."
"लँड चुसवाने का ख्याल आया कभी?"
"हाँ..."
"लडकी की गाँड का सोचा कभी?"
"हाँ..."
"क्या सोचा?"
"यही कि गाँड में लँड डाल दूँ..."
"डाल पाओगे?"
"हाँ बिल्कुल..."
"क्या लगा के?"
"थूक..." अब शायद उसका भी लँड पूरा खडा था क्योंकि वो कसमसा कसमसा के अपने पैर आपस में भींच रहा था!
"माल झडता है?"
"हाँ..."
"मुठ मारते हो?"
"जी, मारता हूँ..."
"कभी गाँड के बारे में सोच के मुठ मारी?"
"जी..."
"कैसे?"
"एक लडकी जीन्स में दिखी थी उसका सोच के..."
"गाँड कैसी होती होगी?"
"छोटी.. गोल... टाइट..."
"गाँड के अंदर घुसा पाओगे?"
"क्यों नहीं... ट्राई तो कर ही सकता हूँ...."
"शाबाश... अब तक तुम्हारे सारे जवाब सही हैं... तुम्हें बम्पर प्राइज़ मिलेगा..." मैने कहा तो वो खुश हो गया! इस बार उसने अपने पैर थोडा शफ़ल किये तो मुझे उसकी जीन्स में उसका लँड उभरा हुआ दिखा!
"कितना खडा है?"
"पूरे का पूरा..."
हम उस कमरे के बहुत पास बैठे थे जिसमें किसी दिन ज़ाइन के दादा ने मेरी गाँड मारी थी! उस समय, मैं भी उसी की तरह कमसिन सा चिकना था!
"खडे लँड से क्या करते हैं?"
"चुदायी..."
"और अगर चूत ना मिले तो?"
"तो मुठ मारते हैं..." अब उसका चेहरा कामुकता की तपिश से तमतमा रहा था! ठरक के मारे वो अपने होंठ सिकोड रहा था! अभी ज़्यादा रात नहीं हुई थी! घर में हर तरफ़ लोग आ जा रहे थे, शोर शराबा था! बस मैं वहाँ अपने चिकने से लौंडे के साथ एक कोने में बैठा था! इतनी बातों के बाद अब मुझे समझ आ गया था कि थोडी और कोशिश में ज़ाइन पट जायेगा!
"डी.पी.एस. वाले के अलावा भी कुछ देखा है?"
"हाँ बहुत... मेरे तो फ़ोन में भरे हुये हैं.. और कई बार फ़ुल लेन्थ फ़िल्म भी देखी है..."
"तब तो तुम्हारा लँड हमेशा खडा रहता होगा?"
"हाँ अक्सर..."
"सेम सैक्स... मतलब बॉयज़-टू-बॉयज़ वाले सैक्स के बारे में सुना है?" अब मैने सीधा लाइन पर आने का ट्राई किया!
"हाँ... हाँ, सुना तो है..."
"वो क्या होता है?"
"यू मीन होमो सैक्स ना???"
"हाँ वही..."
"उसमें लडके ही आपस में करते हैं..."
"क्या करते हैं?"
"वही जो लडकी के साथ होता है..."
"मगर लडकों के चूत तो होती नहीं है?"
"चूत की जगह गाँड होती है ना चाचा..."
"शाबाश ये जवाब बैस्ट था..." वो अपनी तारीफ़ से खुश हो गया! अब तक तो मेरा लौडा पूरा फ़नफ़ना के टपकने लगा था और मेरी चड्‍डी से बाहर निकल गया था!
"आपका भी खडा है क्या?"
"हाँ..."
"कितना?"
"बिल्कुल पूरा फ़ुल..."
"आप क्या करते हैं ऐसे में?"
"मैं भी मुठ मारता हूँ..."
"मुठ मारोगे क्या?" मैने गीअर बदला!
"हटिए... नहीं..."
"क्यों... मारते तो हो ना..."
"हाँ, मगर अकेले में..."
"तो सोच लो अकेले हो..."
"नहीं नहीं... हो नहीं पायेगा..."
"ट्राई तो करो..."
"कैसे?"
"अपनी ज़िप खोल के बाहर निकाल लो..."
"अरे कैसे चाचा? नहीं..."
"ट्राई करो तो हर चीज़ पॉसिबल है..." मेरा दिल सीने में तेज़ी से धडक रहा था और साँसें एक्साइटमेंट के मारे तेज़ चल रहीं थी!
"अब... काशिफ़ के तो मज़े आ जायेंगे..."
"हाँ वो तो है..."
"इस समय उसका क्या हाल होगा?"
"हाल बुरा होगा... लँड खडा होगा..."
"हा हा हा हा हा..."
"आपकी शादी क्यों नहीं हुई अभी तक?"
"बस मेरी मर्ज़ी.."
"खडा तो खूब होता होगा..."
"हाँ मगर... यार क्या बताऊँ..."
"बताना क्या है... शादी कर लीजिये..."
"शादी कर के क्या करूँगा यार?"
"चुदायी करियेगा... खूब... आपने होमो के बारे में क्यों पूछा?"
"ऐसे ही... इतनी और बातें भी तो पूछीं यार..."
"मगर... कहीं आप मुझे कुछ वैसा..."
"नहीं... तुम डर क्यों गये?"
"डरता वरता नहीं हूँ..."
"तो लँड खोल के मुठ मार लो..."
"देखिये, बात करने की बात हुई थी... कुछ और करने की नहीं..."
"तो बात आगे भी तो बढ सकती है..."
"उसके लिये आपको शादी करनी होगी चाचा..."
"अब शादी के लिये लडकी तो नहीं है..."
वो अब अपने लँड को अपनी जीन्स के ऊपर से रगड रहा था!
"तो क्या हुआ?"
"तो क्या मतलब?"
"लडकी ढूँढ लीजिये..."
"नहीं यार..."
"तो किसी से कह दीजिये..."
"लँड खोलो ना..."
"क्या करेंगे लँड खुलवा के..."
"कुछ नहीं... तुम मुठ मारना, मैं देखूँगा..."
"तो क्या फ़ायदा?"
"फ़ायदा क्या... मज़ा आयेगा..."
"पहले किसी लडके का देखा है?"
"हाँ..."
"ये तो खुद होमो हरकत होती है ना..."
"हाँ... मगर बॉय्ज़ आपस में मज़ा लेने के लिये भी करते है कभी कभी..."
"आप मेरा देखना क्यों चाहते हो?"
"बस ऐसे ही..."
"अच्छा बस एक बार दिखाऊँगा..."
"ओके..."
अब उसने अपने आँडूए अड्जस्ट करने के लिये अपनी गाँड उचकायी और फ़िर अपनी ज़िप नीचे की तो मेरा दिल एक्साइटमेंट के मारे उछल गया! उसके गोरे हाथ उसके उभार पर थे! उसके चेहरे पर ठरक थी! उसने ज़िप खोलने के बाद अपना हाथ अंदर घुसा के जब अपने लँड को बाहर खींचा तो मैं मस्ती से भर गया! उसका लँड कोई ६ इँची रहा होगा! मोटाई सही थी, रँग गोरा, सुपाडा सुंदर सा... उस समय फ़ूला हुआ और नमकीन वीर्य की बून्दों से भीगा हुआ था! उसने अपने लँड को अपने हाथ में लेकर मेरी तरफ़ करके दबाया!
"लीजिये, दिखा दिया..."
"अब मुठ मारो..."
"अभी मुठ का मूड नहीं है..."
"एक बार पकडने दो..."
"नहीं चाचा..."
"बस एक बार..."
"क्या करेंगे पकड के?"
"देखूँगा कितना सख्त है..."
"दिख नहीं रहा है क्या कि कितना सॉलिड है?"
"दिख तो रहा है... पकड के ज़्यादा सही से पता चलता है..."
"लीजिये..."
उसने फ़ाइनली जब मुझे अपना लँड पकडने दिया तो मैं उसका कमसिन मर्दाना लँड थाम के मस्त हो गया और लँड पकडते ही मैने अपने हाथों की गर्मी से 'उसका' दबाया और उसके सुपाडे पर अपना अँगूठा रगड के उसे दबाया तो उसकी सिसकारी निकल गयी! "सिउह... चाचा... अआह.."
मैं थोडा उसकी तरफ़ झुका! उसका लँड अब मेरी गिरफ़्त में था और मैं हल्के हल्के उसकी मुठ मार रहा था! मैं उसके इतना नज़दीक आ गया कि हमारी साँसें टकराने लगीं!
"एक किस कर दूँ?"
"नहीं नहीं..."
"बस एक..."
"रहने दीजिये..."
"प्लीज़....." कहते हुये मैने हल्के से अपने होंठों से उसके होंठों को ब्रश किया तो उसकी साँस उखड गयी और मैं उसकी साँस की खुश्बू से मदहोश हो गया! मैने अपना मुह उसके होंठों पर खोल दिया और अपनी ज़बान से उसके बन्द होंठों को चाटा! उसने अपना मुह हटाया नहीं तो मैने अपनी ज़बान उसके गले की तरफ़ घुमा दी! उसने मेरा हाथ पकड लिया, मैने एक हाथ से उसकी गरदन पकड ली!

तभी बाहर खट खट हुई! पहले तो हम मदहोशी में सुन नहीं पाये मगर फ़िर जब और ज़ोर से हुई तो हडबडा के उसने अपनी ज़िप बन्द करते हुये दरवाज़ा खोला सामने एक गबरू सा मस्त देसी जवान लौंडा एक बडा सा पोटला लिये खडा था!

"क्या है?" ज़ाइन ने उखडती साँसों से उससे पूछा!
"फ़ूल हैं... कमरा सजाना है..."
"ये कमरा क्यों?"
"यही वाला सजाना है... नीचे से बोला है..."
"अच्छा, आ जाओ..." ज़ाइन ने अपने होंठों से मेरे थूक को साफ़ करते हुये कहा! मैं तो उस के.एल.पी.डी. से बुरी तरह झुँझला गया था! उस फ़ूल वाले लडके के कारण मेरे हाथ से इतना हसीन मौका निकल गया था!
"चलो भाई... सजा दो, ऐसा सजाना कि दूल्हे को मज़ा आ जाये.." मैने उस लडके से कहा!
"हमारा काम तो सजाना है... मज़ा तो दूल्हे के ऊपर है... जितना दम होगा, उतना मज़ा मिलेगा...."
"हाँ, बात तो सही है..."
उस लडके के चेहरे पर रूखापन था, मगर बदन में जान थी! एक छोटी बाज़ू वाली टी-शर्ट उसने जीन्स के अंदर घुसेड के पहनी हुई थी! उसकी छाती चौडी थी, कमर पतली, जाँघें मस्क्युलर, गाँड गोल गोल और लँड का उभार ज़बर्दस्त... मुझसे रहा नहीं गया और मैने उसको उतनी ही देर में कई बार ऊपर से नीचे तक देख लिया!
"बढिया से सजाना..." मैने कहा!
"फ़िक्र मत करिये..." उस लडके ने कहा! "ऐसे नाज़ुक फ़ूल हैं कि अगर दूल्हे ने सही से दबा के रगडा ना तो बिस्तर पर ही कुचल जायेंगे... सुबह एक भी नहीं मिलेगा..."
"वाह... बडा ज़बर्दस्त विवरण दिया..."
"हाँ साहिब... हमारा तो काम ही यही है..."
"सही है... तुम पता नहीं कितनों की रातों को रँगीन बनाते होंगे..." मैने कहा!
"हम नहीं बनाते भैया, हम बनवाते हैं..." उसने इतनी ही देर में मुझे साहिब से भैया बना दिया! मैने फ़िर उसका गठा हुआ जिस्म निहारा! उसके जिस्म में मसल्स भरी हुई थी! छाती के कटाव टाइट टी-शर्ट से नँगे दिख रहे थे और लँड का उभार साफ़ था! जीन्स गन्दी थी, बाज़ू भरे भरे, कलायी चौडी, आँखें नशीली... मैं ठरका हुआ तो था ही, उसको देख के ही मस्त होने लगा!

जब ज़ाइन ने देखा कि उस लडके को टाइम लगेगा तो वो चला गया... "मैं नीचे जा रहा हूँ!"
उस लडके के होते हुए मैं कुछ कर भी नहीं पाता, इसलिये मैने भी उसको जाने दिया!

वो लडका, जुनैद, कमरे में फ़ूलों की लडियाँ लगाने लगा और मैं बेड पर लेट के उसको देखता रहा! वो जब झुकता उसकी गाँड गोल गोल दिखती, जब ऊपर चढता तो और मस्त लगता! कभी अपने मुह से धागा तोडता और कभी टाँगें फ़ैलाता! ना जाने कब उसको देखते देखते मेरी आँख लग गयी और मैं शायद उसके बारे में ही सपना देखने लगा! मेरी आँखों के सामने ठरक के कारण उसका जिस्म ही नाचता रहा! मैं सोया हुआ था मगर फ़िर भी उसको अपने दिमाग से नहीं हटा पाया था! बीच बीच में मुझे ज़ाइन का जवान लँड भी नज़र आ जाता था! मेरा लँड उन सपनों के कारण खडा हुआ था, फ़ूलों की भीनी भीनी खुश्बू मुझे मदहोश कर रही थी! मेरे लँड में मस्ती से गुदगुदी हो रही थी! एक अजीब सा मज़ा मिल रहा था! जुनैद मुझे नॉर्मली दिखता तो भी पसंद आ जाता! मगर उस समय ज़ाइन से इतनी बात हो जाने के बाद तो वो मुझे और भी ज़्यादा हसीन और जवान लगा था! बिल्कुल देसी गठीला मज़बूत जवान... मुझे सपने में ही उसके बदन की गर्मी महसूस हो रही थी! फ़िर मुझे ज़ाइन का ध्यान आया, उसका लँड याद आया, उसके होंठों पर अपना वो गीला चुम्बन याद आया, जिसका गीलपन और गर्मी अभी भी मेरे होंठों पर थे! मुझे लगा कि जब वो मेरा लँड सहलायेगा तो कैसा लगेगा! मुझे अपने लँड पर उसकी हथेली की गर्मी महसूस हुई! मेरा लँड उछला! मुझे जुनैद की गबरू जवानी याद आयी! कभी राशिद भैया के साथ गुज़ारे पल याद आये! कभी हुमेर चाचा के साथ हुआ काँड याद आया! एक पल को भी मेरा जिस्म ठँडा नहीं हो पा रहा था! मुझे होंठों पर ज़ाइन के होंठ याद आये, मैने सोते सोते ही फ़िर जैसे उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये और चूसा तो मुझे उसके होंठों का गीलपन और गर्मी, उसकी कोमलता और नमक याद आया! मुझे उसकी साँसें महसूस हुयीं! उसकी साँसों की खुश्बू अभी भी मेरी नाक में बसी हुई थी! मैने कस के नींद में ज़ाइन के होंठों को चूसा तो उसने मुझे ज़ोर से पकड लिया और इस बार वो मेरे ऊपर लेट गया!

कुछ देर सपने में ज़ाइन के होंठ चूसने के बाद मैने उसका सर नीचे अपने लँड की तरफ़ दबाया! उसने पहले मना किया, शायद रुका, मगर मेरे इंसिस्ट करने पर वो मेरे सपने को यादगार बनाने में लग गया! इस बार उसके होंठ मेरी ज़िप पर थे और मेरे लँड को ऊपर से दबा के मज़ा दे रहे थे! मुझे पता था कि ज़ाइन जैसा नमकीन लौंडा, जो नया नया जवान हुआ था, ये सब ज़रूर करेगा! भले सपने में हो या असल ज़िन्दगी में... और फ़िर ज़ाइन ने फ़ाइनली अपने होंठों को मेरे सुपाडे पर कस लिया तो मैने उसका सर पकड लिया!

"उम्म.. उँहु... हाँ भैया... हाँ... साला, बडा मोटा लौडा है बे तेरा..." जब फ़ाइनली ज़ाइन ने कहा तो मैं चौंका क्योंकि ज़ाइन मुझे भैया नहीं चाचा कहता था! मेरी नींद टूटी, मेरी पैंट पूरी उतरी हुई थी, शर्ट के सारे बटन खुले हुये थे और जुनैद अपनी जीन्स उतारे हुये मेरे ऊपर झुका मेरा लँड पूरा अपने मुह में लेकर चूस रहा था!
"उउम्ह... जुनैद????"
"आप बडी गहरी नींद में थे..." उसने अपने मुह से मेरा लँड निकालते हुए कहा!
"हाँ... जुनै..द... तुम..ने क..ब शुरु कि..या... अआह..."
"जब तुमने नींद में मुठ मारना शुरु कर दिया था..."
"अच्छा??? ऐसा हुआ था क्या?"
"हाँ साले... फ़िर रहा ही नहीं गया..." उसने अपने मुह में मेरा लँड पूरा का पूरा निगल के चूसना शुरु कर दिया! उसने हाथों से मेरे आँडूए दबाना शुरु किये और कभी कभी अपना हाथ आगे से मेरे आँडूओं के नीचे मेरी गाँड तक ले जाकर भींच के वहाँ दबा देता!
मैने हाथ नीचे किया और उसका लँड पकड लिया! उसका लँड भयन्कर बडा और जवान था! मेरे हाथ में आते ही जैसे नाचने लगा!
"अपना भी तो चुसवाओ ना जुनैद..."
"लो ना यार..." उसने कहा और मेरी छाती के ऊपर चढता हुआ लेट गया और मेरे मुह में अपना लौडा डाल दिया! उसका लँड गन्दा था, पसीने से भरा हुआ, लस्सी की तरह स्मेल कर रहा था! उसकी जाँघें तो चिकनी थी, मगर गाँड के छेद पर और दरार में बाल थे! मैने उसकी गाँड को दबोच के रगडना शुरु कर दिया तो वो धकाधक धक्‍के लगाने लगा! वो कभी मेरे बाल पकड लेता, कभी दबोच लेता तो उसका सुपाडा सीधा मेरी हलक तक घुस जाता! उसके आँडूए मेरे चिन पर टकराते! फ़िर वो कभी मेरे सर के नीचे एक हाथ डाल के मेरे सर को ऊपर उठा के मेरा मुह चोदता! उसकी नँगी जाँघें बडी मादक लग रही थी! देख कर ही लगता था कि उनमें कितनी मज़बूती और जान होगी! फ़िर मैने उसको घुटनो पर ऐसे करवाया कि उसके दोनो घुटने मेरे सर के अगल-बगल हो गये और उसका छेद और आँडूए के नीचे वाला बालों भरा गदराया पोर्शन मेरे होंठों की सीधा पर आ गया! इस बार मैने खुद ही सर उठा के अपनी नाक और मुह उसकी गाँड के बीच घुसा दिया! वहाँ की बद्‍बू बडी मादक और ज़बर्दस्त थी! मैने तो उसकी कमर को कस कर पकड लिया और ज़ोर ज़ोर से दबा के सूंघा! फ़िर जब मैने वहाँ किस किया तो वो बैठा नहीं रह पाया और मेरे ऊपर ही पसर गया और अपनी गाँड को मेरे मुह पर रख के जैसे सरेंडर करके पस्त हो गया! मैने ज़बान से उसकी गाँड का छल्ला सहलाया, उसकी गाँड के बालों को अपनी ज़बान से गीला किया और अपने होंठों से पकड के खींचा तो वो मेरे ऊपर फ़िर बैठ गया और अपनी पीठ, धनुष की तरह पीछे मोड कर अपने दोनो हाथ पीछे मेरी जाँघों पर रख दिये!

कुछ देर बाद उसने मुझे पलटा और मेरी गाँड की दरार में गुलाब की पँखुडियाँ भर के मसल दीं! उसने उँगली से मेरा छेद टटोला और अपनी फ़िन्गर-टिप्स से उसको खोला! फ़िर उसने अपनी चार उँगलियों पर अपने मुह से थूक टपकाया और मेरे छेद के पास उसे पोत दिया! फ़िर जब मुझे अपने छेद पर उसका मोटा सुपाडा महसूस हुआ तो मैने टाँगें फ़ैला के गाँड ऊपर उठा के उसके लँड की गर्मी को अपने छेद पर महसूस किया! उसने अपने हाथ की एक उँगली और अँगूठे से मेरा छेद फ़ैलाया और दूसरे से अपना लँड पकड के सुपाडे को मेरे छेद पर रगडा तो उसका सुपाडा भी पहले से लिपडे थूक से भीग गया! उसने थोडा और थूक डायरेक्टली मेरी गाँड पर टपकाया, और उसको भी वैसे ही वहाँ रगडा! फ़िर उसने अपना सुपाडा मेरे छेद पर दबाया तो मेरी गाँड का सुराख अपने आप फ़ैलने लगा और उसका लँड मेरी गाँड में घुसने लगा! मैने सिसकारियाँ भरना शुरु कर दीं! फ़िर उसने अचानक अपना घुसा हुआ सुपाडा बाहर खींच लिया तो मेरी साँस रुक गयी! फ़िर उसने फ़िर सुपाडा घुसा दिया! इस बार मेरी गाँड खुली और वो और ज़्यादा अंदर घुस गया! अब उसने हल्के हल्के धक्‍के दिये तो मेरी गाँड खुलती चली गयी! उसकी गाँड और जाँघ के धक्‍के मज़बूत और ताक़तवर थे! उसने अपना पूरा लँड मेरी गाँड में घुसा दिया और चढ के अंदर बाहर दे-देकर मेरी गाँड मारने लगा!

वो जब भी लँड बाहर खींचता, मेरी सिसकारी निकल जाती और जब अंदर देता तो मस्ती भरी चीख...! उसका रफ़ लँड मेरे छेद से रगड के उसको मस्त करते हुए गर्म कर रहा था! फ़िर वो पलँग से उतर के टाँगें फ़ैला के खडा हो गया!
"आजा... अब ले ले... झुक के ले ले..." काफ़ी देर बाद उसके हलक से कुछ शब्द निकले! फ़िर उसने मुझे अपने सामने घोडा बनवाया और वो खुद खडा ही रहा!
"चल, उठा... गाँड उठा..."
कैसे यार, ऐसे नहीं उठेगी..."
"उठेगी उठेगी... उठा तो.." मैने गाँड और उठायी! अब मैं पूरा अपने टोज़ पर था! मेरा सर नीचे था और हाथ ज़मीन पर... कुछ देर थोडा और उचकने पर मुझे फ़िर गाँड पर उसका लँड महसूस हुआ! अब मैं वैसे, बहुत ही अन-सेफ़ तरीके से झुका हुआ था और वो खडा हुआ था... उसने फ़िर मेरी गाँड में लौडा डालना शुरु कर दिया और अंदर बाहर करके मेरी गाँड का हलुवा बनाना शुरु कर दिया!
"हाँ... हाँ... ऐसे.. ही म..ज़ा... आ..ता.. है... ऐसे.. ही..." उसने कहा और मेरी कमर को दोनो तरफ़ से कस के पकड लिया और मुझे अपनी तरफ़ खींच खींच के चोदने लगा! मेरा छेद खुल तो चुका ही था! उसका लँड 'फ़चाक फ़चाक' अंदर बाहर हो रहा था और साथ में जब उसकी जाँघें और जिस्म मेरे जिस्म से टकराते तो 'थपाक थपाक' की आवाज़ें भी आती! फ़िर तभी उसने मेरी गाँड पर कमर के पास 'चटाक' से एक हाथ मारा!
"उई...." मैं दर्द से करहाया क्योंकि उसने प्यार से नहीं बल्कि काफ़ी फ़ोर्सफ़ुली मेरी गाँड पर चाँटा मारा था! इसके पहले मैं सम्भाल पाता, उसने अपना लँड पूरा अंदर घुसा दिया और फ़िर 'चटाक' से एक और चाँटा मारा! उसके चाँटों में देसी ताक़त थी! अगर सर पर पडता तो सर घुमा देता! मुझे तीखा दर्द हुआ!
"उई... अआह... नहीं..."
"नहीं? नहीं क्यों बे?" उसने कहा और फ़िर तडातड मेरी गाँड पर ज़ोर ज़ोर से चाँटे मारने लगा! उसने एक हाथ से मुझे कस के उसी पोजिशन में पकडा हुआ था और दूसरे से चाँटे मारे जा रहा था!
"नहीं... जुनैद... मारो नहीं..."
"चुप बे... बहन के लौडे चुप... मज़ा लेने दे..." असल में चाँटा पडने पर मैं अपनी गाँड भींच रहा था और उससे उसको लँड पर कसाव महसूस हो रहा था और इससे मज़ा आ रहा था! कुछ देर में उसने मुझे ज़मीन पर ही सीधा लिटा दिया और मेरी टाँगें अपने कंधे पर रखवा के गाँड में लँड डाल दिया!
"अब माल गिर जायेगा... बस.. रुक जा... अब.. गिर.. जायेगा..." वो गाँड उचका उचका के मुझे चोद रहा था और साथ में उसने मेरा लँड थाम के दबाना भी शुरु कर दिया था!
"चल... अप..ना... भी... झाड..." उसने मुझसे कहा!
"झाद दे..." मैने कहा!

वो अब मेरी मुठ मार रहा था और साथ में गाँड भी! मेरा खडा लँड उस पोजिशन में उसके पेट से रगड रहा था! फ़िर उसने तेज़ धक्‍के देना शुरु कर दिये और मेरा लँड छोड के मेरी जाँघों को कस के पकड लिया और फ़िर उसका माल मेरी गाँड में भर गया!
"अआह... हाँ... हाँ.. अआह.. हश... सि...उह..." उसने सिसकारी भरी और फ़िर अपना लँड बाहर खींच के जल्दी जल्दी अपने कपडे पहन लिये! कमरा सज चुका था, इन्फ़ैक्ट उसका सही इस्तमाल भी हो चुका था! जब वो अपने पैसे ले रहा था तो मैं नीचे उसके थोडा दूर ही था! उसने मुझे देखा, उसके चेहरे पर एक संतुष्टि थी! मैने फ़िर देखा, उसका जिस्म सच बहुत प्यारा और सुंदर था! ज़ाइन कहीं नहीं दिखा! उस रात मुझे बहुत अच्छी नींद आयी! कभी जुनैद का ख्याल आता कभी ज़ाइन का! एक लँड जो मिल चुका था, और एक जो मुझे चाहिये था... तीन जनरेशन्स के साथ सैक्स का अपना पहला एक्स्पीरिएंस पूरा करने के लिये! इसके पहले मैने बाप और बेटे के साथ और भाई-भाई के साथ तो बहुत किया था, मगर बाप, बेटे और दादा के साथ कभी नहीं हुआ था! यही वो स्पेशल चीज़ थी, जिसके लिये मैं ट्राई कर रहा था!मस्ती ही मस्ती पार्ट --११

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डिस्क्लेमर: भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!
इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स.एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!
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चलिये अब उन दिनों से वापस आ जाते हैं... २००७ में! मैं इतने साल यहाँ वहाँ घूमने के बाद फ़िर देहली लौट आया हूँ! अब मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट का ज़माना है! लौंडेबाज़ी तो आप लोगों को पता ही है कि मेरी कैसी चलती होगी! जहाँ लडके दिखते हैं मैं पटाना चाहता हूँ! ज़ायैद का ऑल्मोस्ट डेली मेल आता है, मगर वो ना तो अपना फ़ेस दिखाता है ना फ़ोन नम्बर देता है, बस मेल्स और चैट... इसलिये कभी कभी तो मुझे लगता है कि क्या वो वही है, जो कहता है... या कोई और है! मैने पिछले कुछ दिनों में आशित से दोस्ती कुछ और बढा ली है! अब उसकी जवानी की नमकीन कसक मुझ पर ऐसा जादू करती है कि मैं उसको देखे बिना रह ही नहीं पाता हूँ! उसको भी ऑफ़िस में दोस्तों की ज़रूरत है! मैं तो बस जब भी उसके साथ होता हूँ, जो अब अक्सर ही होता है, उसके चेहरे को बडे पास से देखता रहता हूँ! वैसे वो बहुत गोरा तो नहीं है, हल्का साँवला है... मगर चेहरे पर इतना नमक है कि साला बहुत सैक्सी लगता है! उसकी शेपली बॉडी बडी जानलेवा है! पतली कमर और मज़बूत गाँड की गदरायी फ़ाँकें, टाइट टाइट जाँघें और उभरी हुई कसी ज़िप! उसकी पैंट से उसकी चड्‍डी की लाइनिंग तक दिख जाती है! कभी वो फ़्रैंची पहनता है, कभी जाँघ तक वाली अँडरवीअर, कभी बिकिनी स्टाइल वाली! मगर हर दिन उसकी टाइट पैंट से उसकी अँडरवीअर की लाइनिंग साफ़ दिख ही जाती है! उसकी शर्ट से उसकी बनियान भी झकलती है! उसके कंधे और बाज़ू मज़बूत हैं, कलायी चौडी जिस पर हमेशा पूजा का धागा रहता है! उसके ऊपर के खुले बटन से देख देख कर मैने ये भी अन्दाज़ लगा लिया है कि उसकी छाती पर ज़्यादा बाल नहीं हैं! उसको भी ऑफ़िस में लेट बैठ कर चैटिंग का शौक़ है! जब मैं सामने की डेस्क पर बैठ कर स्टोरीज़ टाइप करता हूँ, वो अक्सर बैठा अपने फ़्रैंड्स से चैट करता रहता है... और शायद ऐसी वैसी साइट्स भी देखता है! अक्सर उसकी आँखें मॉनिटर पर गढी रहती हैं! कभी कभी उसका हाथ भी नीचे की तरफ़ जाता है और वो ऐसे प्रिटेंड करता है जैसे अपने आँडूए अड्जस्ट कर रहा हो!
उस दिन मैं हमेशा की तरह अपना इन-बॉक्स चेक करके ज़ायैद के मेल्स के जवाब देने के बाद, स्पैम डिलीट कर रहा था! मैने स्पैम समझ के एक मेल पर क्लिक किया मगर फ़िर ना जाने क्यों उसको ओपन किया तो सर्प्राइज़्ड रह गया... वो विनोद की मेल थी! विनोद वही जाट लडका था, जो कभी मेरे साथ कम्प्यूटर कोर्स कर रहा था! उसको ना जाने कहाँ से मेरा आई.डी. मिल गया था! शायद उसने ऑर्कुट या फ़ेसबुक से कोई कनेक्शन निकाल लिया था! वो देहली में ही था! अभी उसने बस दो लाइन्स ही लिखी थी! मैने तुरन्त बैठ कर उसको एक लम्बा सा जवाब लिखा! जवाब में फ़िर अचानक एक दिन उसका फ़ोन आ गया, जब मैं किसी काम में बिज़ी था! इतने दिन बाद उसकी आवाज़ सुन कर मैं मस्त हो गया! उसके साथ गुज़ारे पल... लगता था, अभी दो दिन पहले ही हुये थे... ना मैं उन पलों को भूल पाया था और ना शायद वो...

"और बता, बाकी सब कैसा चल रहा है?"
"मस्त है यार..."
"बाकी सब?"
"बाकी सब भी ठीक है..."
"और सब?"
"और सब भी बढिया ही है यार..."
वो शायद चुदायी के टॉपिक पर आना चाहता था मगर जब उसने बताया कि उसकी शादी हो गयी है और अब एक ९ साल की लडकी, एक ७ साल का लडका और एक ५ साल का लडका है तो मैं समझ गया कि वो शायद चुदायी के बारे में नहीं पूछ रहा है क्योंकि उसके जैसे हरामी लडके शादी के बाद सिर्फ़ चूत के नशे में रहते हैं और अगर उसको चूत का नशा नहीं होता तो तीन तीन बच्चे नहीं पैदा किये होते!

"तेरी शादी हो गयी?" उसने पूछा!
"नहीं यार..."
"मतलब अभी तक लगा हुआ है भाई लोगों के साथ?"
मैं जवाब में सिर्फ़ हँसा!
"कभी मिलते हैं यार... घर आजा, मेरी बीवी से मिल..."
"हाँ आऊँगा..." उसके बाद कई दिन उसका फ़ोन नहीं आया!

इस बार मेरे जीवन में कुछ स्पेशल होने जा रहा था मगर मुझे अभी तक उसका पता नहीं था! मैं आदत के मुताबिक लौंडे ताडने के लिये शाम में पुरानी दिल्ली चला गया! वहाँ के हरामी लौंडे मेरे लिये शराब के नशे से कम नहीं थे! उस शाम भी पहले मैने खाना खाया फ़िर सुंदर सुंदर लडकों को देखता रहा! कोई साला गाँड में घुसी जीन्स पहने था, तो कोई स्मार्ट सी डिज़ाइन वाली शर्ट! कोई गोरा था कोई साँवला! कोई चिकना था कोई मर्दाना! किसी के क्रू कट बाल थे तो किसी के सेन्टर पार्टिंग के! कोई सिगरेट पी रहा था तो कोई अपने किसी दोस्त के कंधे पर हाथ रखे बातें कर रहा था! काफ़ी देर ठरक जवान करने के बाद मैं ऑटो ढूँढने निकल पडा! काफ़ी मेहनत के बाद भी जब कोई ऑटो नहीं मिला, तो पास के सिगरेट वाले की दुकान पर खडा हो गया और सिगरेट लेकर जला ली! अब तो रोड पर भी ऑटो नहीं दिख रहे थे! उस दिन मैने आशित को अपने साथ पुरानी दिल्ली चलने का इन्विटेशन दिया था मगर लास्ट मिनिट पर उसके बॉस ने कुछ काम दे दिया जिस कारण वो मेरे साथ नहीं आ पाया! मैं ऑटो ढूँढ रहा था, कि अचानक विनोद का फ़ोन आ गया!

"अरे, कहाँ गायब हो गया था यार?"
"अरे, एक बडा ऑर्डर मिल गया था, उसमें लगा पडा था... तू कहाँ है कभी?"
"अभी तो मैं पुरानी देहली में हूँ..."
"क्या बात करता है यार, हम भी एक शादी में चाँदनी चौक आये हुये थे.. बस निकलने ही वाले थे! चल हमारे साथ चल, बता तू कहाँ है... मैं तुझे पिक कर लूँगा... तुझसे तो बहुत बातें करनी हैं..."
"अभी तो बहुत थक गया हूँ यार..."
"अरे, थकान मिटाने का इन्तज़ाम है मेरे पास... मैने तेरे बारे में अपनी बीवी को बताया, वो भी तुझसे मिलना चाहती है..."
"अच्छा साले, तूने तो बुराई की होगी..."
"नहीं बेटा, अच्छी वाली बातें भी बतायी हैं..."
"अच्छी वाली कैसी?"
"अब तू बन क्यों रहा है?"
"अच्छा मिलते हैं..." मैं वहीं साइड में फ़ुटपाथ की रेलिंग पर बैठ गया! करीब आधे घंटे में ही विनोद एक वैन में वहाँ आ गया और सीधा उतर के मुझसे गले मिलने लगा! उसके पास से शराब की बदबू आ रही थी!
"बहनचोद, पी के आया है क्या?"
"अबे, शादी में गया था... वहाँ हो गयी कुछ कुछ..."
मैने वैन में देखा अगली सीट पर एक सिल्क की लाल सारी पहने उसकी बीवी बैठी थी!
"शिखा है, मेरी बीवी... कैसी लगी?" उसने आँख मार के पूछा!
"अबे साले, बडा हरामी है... ठीक है..."
"हाँ, जब शादी हुई थी तो और ठीक थी... वो तो मैने कबाडा कर दिया... हाहाहा..."
"बहुत मादरचोद है यार तू... साले किसी को तो जाने दिया कर?"
"अबे, बीवी तो अपनी प्रॉपर्टी होती है..."
"हाँ, तू बेहतर जानता होगा यार..."
"चल, आजा मिलवाता हूँ... तेरे बारे में बहुत कुछ जानती है..."
"अबे क्या-क्या बोल दिया?" मगर मैने सवाल पूरा भी नहीं किया था कि उसने शिखा से मिलवा दिया! उसने मुझे मुस्कुराते हुये नमस्ते किया और मैने उसको गौर से देखा तो १० साल की शादी के लिहाज़ से वो काफ़ी मेन्टेन्ड थी! मैं पिछली सीट पर बैठने लगा!

"अबे, मैने बहुत पी रखी है... गाडी तू चला..." मैने ऑफ़र मान लिया! मैने एक्स्पैक्ट किया था कि शिखा पीछे चली जायेगी और विनोद आगे! मगर शिखा तो वहीं बैठी रही मेरे बगल वाली सीट पर! गाडी चलते ही विनोद की ज़बान भी चलने लगी!
"अब पूछ, तू क्या पूछना चाहती थी?" उसने अपनी बीवी से पूछा जो बहुत शरमा रही थी!
"नहीं जी, रहने दो..."
"अरे पूछ ले, ये मेरा पुराना दोस्त है... बुरा नहीं मानेगा..."
"हाँ मालूम है... मगर..."
"अरे, फ़िर पूछ ले ना..."
"क्या पूछना चाहती हैं आप?" आखिर मैने ही पूछ लिया तो शिखा और शरमा गयी! मैने ध्यान दिया कि उसने भी शराब पी रखी थी!
"अरे पूछ ले ना..." विनोद फ़िर बोला!
"अच्छा मैं ही कह देता हूँ..."
"अबे, क्या बात है?" मैने कहा!
"कुछ... कुछ नहीं..." शिखा बोली!
"ये पूछ रही थी, तूने शादी क्यों नहीं की... तेरा काम कैसे चलता होगा?"
मैने शिखा की तरफ़ देखा तो पाया वो मुझे गौर से देख रही थी!
"काम.. मतलब क्या काम?"
"घपचिक घपचिक वाला काम..." विनोद बोला! वो दिखने में, बात-चीत में बिल्कुल नहीं बदला था!
"अबे रहने दे..."
"मैने बताया तो इसको यकीन नहीं हुआ..."
"अबे क्या बता दिया?"
"वही कि तेरा काम कैसे चलता है..."
"क्या बात करता है?" इस बार मैने जब शिखा की तरफ़ देखा तो वो मुस्कुराने के साथ हल्की सी खोयी खोयी लगी और अब पहले से थोडी कम हैज़िटेंट...
"क्यों, इसने ये कहा था?"
"हाँ, कहा तो यही था..."
"अबे, और क्या-क्या कह दिया?"
"अबे कहूँगा वही ना, जो मुझे पता होगा... वो याद नहीं है, तेरे रूम वाली बात... बस वही बतायी है.. कसम से..."
अब मैं शर्मिन्दा और उत्तेजित दोनो महसूस करने लगा!
"साले, तू शादी के बाद भी नहीं बदला?"
"बेटा, हम बदलने वालों में से नहीं हैं..."
"क्या मतलब है तेरा?" मैने शिखा की तरफ़ देखते हुये विनोद से पूछा!
"मतलब, बेटा एक रास्ता पकड के उसी पर चलते हैं..."
"क्यों शिखा, ये सही कह रहा है?"
"हाँ, आपकी हमेशा बात करते हैं..."
"अच्छा... अबे तेरा इरादा क्या है यार? और तूने अपनी बीवी को भी सब उल्टा पुल्टा बता दिया... बडा हरामी है यार तू..."
"अरे, अब इतने साल के बाद इतना विश्‍वास तो है ही... जब देख लिया, कि बुरा नहीं मानेगी तो बताया..."
"तुम इससे ये सब बात कर लेती हो?" मैने शिखा से पूछा!
"हाँ, अब और किससे करूँगी?"
"इसने क्या क्या बताया?"
"बताया तो बहुत कुछ है... लडको... लडको के बारे में... मतलब आप और लडके..."
"मतलब... साले ने सभी कुछ बता दिया... बडा हरामी है..."
"हाँ बेटा, अब शरमाने की नौटंकी छोड दे और खुल के बात कर ले..."
"खुल के क्या साले... तुझे लँड चुसवा दूँ?"
"सिउहहह..." मैने जैसे ही कहा, शिखा ने एक सिसकारी भरी!
"देख, तेरी बीवी गर्म हो रही है... ऐसी बात मत कर..."
"इसको तो मैं रातों में खूब गर्म करता हूँ..." उसने पीछे से हाथ आगे करके अपनी बीवी की चूची दबायी तो शिखा ने बस उसके हाथ पर हाथ रख के गहरी साँस लेकर अपना सर हल्का सा पीछे कर लिया!
"अबे, पल्लू गिरा के बैठ जा, थोडा ये भी देख लेगा... शायद इसे भी कुछ हो जाये..." उसके कहे पर शिखा ने अपनी सारी का पल्लू गिरा दिया तो मैने देखा उसका ब्लाउज़ कसा हुआ था और चूचियाँ बडी बडी थीं!
"देख... दबा दबा के, चूस चूस कर इनका साइज़ कैसा कर दिया है..."
"और क्या क्या बडा कर दिया है?"
"इसकी फ़ुद्‍दी... देख ले..." विनोद बोला!
"पहले तेरा लँड देखूँगा..."
"बेटा, गाँड भी देख लियो..."

वो मुझे अपने रैगुलर घर ना ले जाकर अपने एक और फ़्लैट में ले गया जो उसने थोडी दूर पर बनवाया था!
"ये चुदायी का अड्‍डा है... यहाँ जम के अय्याशी का सामान है..."
जब तक उसने दरवाज़ा खोला, हम तीनो ही बहक चुके थे! विनोद ग्रे सूट में था जो उसकी मस्क्युलर बॉडी के कारण टाइट था और जिसमें से उसका लँड दिखने लगा था और शिखा तो रोशनी में आग लगा रही थी! हम उसके बेड पर बैठे थे!


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Re: मस्ती ही मस्ती पार्ट

Unread post by sexy » 14 Aug 2015 21:44

"यार, तेरी बातों पर यकीन नहीं होता..." मैने फ़ाइनली कहा क्योंकि मेरे साथ तब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था!
"बेटा, दुनिया में ना... सब कुछ हो सकता है और मैं उनमें से नहीं हूँ जो पुराने यारों भूल जाऊँ... कभी तू मेरे काम आया था, ज़रुरत में तूने साथ दिया था, भूल कैसे सकता हूँ..."
"ये तो अच्छी बात है" मैने कहा!
"सबसे बडी ज़रूरत तो यही होती है... इसमें बहुत कम लोग साथ देते हैं... और जबसे इसको बताया, ये भी देखना चाह रही थी..."
"वाह यार, सही बीवी मिली तुझे, इतनी को-ऑपरेटिव... वरना बीवियाँ तो बडा नखरा करती हैं..."
"यार, हम साफ़ साफ़ बात करते हैं..." उसने कहा!
"अब, एक ही फ़ुद्‍दी कितनी बार चोदूँगा.. फ़ैल के फ़ाटक हो गयी है... हाथ लगा के देख ले..." उसने कहा!
"अबे कैसे?"
"देख ले, देख ले... अपना ही माल समझ..."
मुझे यकीन तो नहीं हुआ! मगर मैने शिखा की जाँघ पर हाथ रखा और हाथ को नीचे उसके पैर की तरफ़ ले गया तो वो मुझे मना करने के बजाय सिसकारी भरने लगी!
"वाह यार..." कहकर मैने उसके पैर सहलाये और अपना हाथ उसकी साडी में नीचे की तरफ़ से ऊपर ले जाना शुरु किया तो उसकी जाँघें भी गाँडू लडकों की तरह खुलने लगीं! मेरा हाथ उसकी चिकनी जाँघ पर चलने लगा और फ़ाइनली उसकी पैंटी पर जा कर रुक गया! मैने बहुत सालों बाद किसी लडकी की चूत पर हाथ लगाया! चूत छूने से ज़्यादा, मैं उस समय की सिचुएशन पर उत्तेजित था!

विनोद ने इस बीच अपनी शर्ट और कोट उतार दिये थे और अपनी पैंट का हूक और ज़िप खोल दिये थे जिस कारण से उसकी काली चड्‍डी का कुछ हिस्सा और ऊपर चौडी सी इलास्टिक दिख रहे थे! उसने कुछ वेट गैन कर लिया था जिस कारण वो और सैक्सी लग रहा था!
"तू नहीं आयेगा क्या?" मैने उससे पूछा!
"रुक आता हूँ... ओये, ज़रा बॉटल निकाल कर ठुमका दिखा ना..."
शिखा सामने की कैबिनेट से बॉटल निकाल लायी और फ़्रिज से पानी और सोडा! उसने अपने हाथ से एक ग्लास में बडा सा पेग बनाया और अपने पति को देने लगी!
"पहले इसको पिला..." उसने कहा तो उसने ग्लास मेरी तरफ़ बढाया!
"अबे पिला दे ना... अपने हाथ से पिला दे..." विनोद बोला तो शिखा ने अपने हाथ से ग्लास लेकर मेरे होठों पर लगा दिया! मुझे तो लगा कि कोई सपना देख रहा हूँ! मैने उसको खींच के उसके ब्लाउज़ के ऊपर से चूचियों में एक बार अपना मुह दबा दिया!
"वाह... लगता है, तेरा टेस्ट चेंज हो गया है..." विनोद बोला!
"नहीं, बस ऐसे ही सोचा, तेरा माल चख के देखूँ..." मैने कहा! इस बीच शिखा उसके लिये भी ग्लास ले आयी तो उसने पूरा का पूरा ग्लास उसको झुका के उसके ब्लाउज़ में डाल दिया और वो गीली हो गयी! उसके लाल ब्लाउज़ से उसकी व्हाइट ब्रा दिखने लगी!
"जा ना साली, ज़रा ठुमका तो लगा..." कहकर विनोद ने उसका पल्लू पकडा और उसको सामने की तरफ़ धक्‍का दिया तो वो गोल गोल घूमती सामने की तरफ़ गयी और उसकी साडी उतरती चली गयी! फ़ाइनली विनोद ने उसका पल्लू मुझे दे दिया!
"ले, खोल दे..." मैने कस के खींचा तो उसकी साडी उसके पेटीकोट से अलग हो गयी!
उसने स्टीरिओ पर 'डॉन' फ़िल्म का गाना लगाया और धीरे धीरे थिरकने लगी!
"...ये... मेरा दिल, प्यार का दिवाना..."
मेरे लिये सच, ये सब जैसे एक सपना था! शिखा की कमर में बढिया लचक थी! विनोद ने मेरे हाथ पर हाथ रखा तो मैने बैठे बैठे ही उसकी तरफ़ देखा! हमारी आँखें मिलीं तो हम मुस्कुराये और फ़िर अपने अपने मुह खोल कर एक दूसरे के मुह पर रख दिये और चूसने लगे! हमारे हाथ एक दूसरे के बदन, जाँघों और हुस्न पर थिरकने लगे! कानों में कुछ देर तो गाने की आवाज़ आना भी बन्द हो गयी! हमने एक दूसरे को पकड लिया और वैसे ही पैर नीचे लटकाये हुये हम बिस्तर पर लेट गये! मैं थोडा उसके ऊपर उसकी छाती पर छाती चढा के लेट गया और अपनी जाँघ उसकी जाँघों के बीच रगडने लगा! कुछ देर में हम ठरक गये!

"देख, वहाँ देख..."
मैने जब शिखा को देखा तो अब वो बस एक लाल पैंटी और ब्रा में थी! विनोद ने उसकी तरफ़ इशारा किया तो वो हमारे पास आ गयी!
"इसकी पैंट उतार दे..." शिखा ने मेरे लँड पर हाथ रख के दबाया!
"सिउउहहह... आईईहहह..." उसने सिसकारी भरी और मेरी बैल्ट खोल दी! फ़िर मैं उस सिचुएशन के कारण मस्त हो गया! शिखा ने जब सहला सहला के पहले मेरी, फ़िर विनोद की पैंट उतारी तो विनोद का नँगा बदन देख कर मेरी पुरानी यादें ताज़ा हो गयी... मेरे लँड ने हुल्लाड मार कर एक उछाल मारी और शायद विनोद के जिस्म से बोला "...तुमको ना भूल पाये..."

विनोद ने केवल वेट ही गैन नहीं किया था, उसने शिखा की चूत में दबा दबा के अपना लौडा और भी मस्त कर लिया था! उसका जिस्म और ज़्यादा गदरा गया था! जहाँ पिछली बार हड्‍डी दिख रही थी, अब मसल्स थे! उसकी गाँड और मज़बूत हो गयी थी, दरार और ज़्यादा गहरी हो गयी थी! हम दोनो ने एक दूसरे की तरफ़ करवट ली और फ़िर अपने लँड आपस में टकरा के लेट गये और धक्‍के दे दे कर एक दूसरे का मुह किस करने लगे! मैं लगातार उसकी गाँड सहला रहा था, उसकी फ़ाँकें फ़ैला के जब मैने उसके छेद पर उँगली रखी तो वो मस्त हो गया!

फ़िर मैने उसके साथ वो भी किया जो पहले नहीं किया था! मैने उसको पलट के लिटाया और उसको तकिया बना के उसकी कमर पर सर रख कर लेट गया और एक हाथ से उसकी गाँड की फ़ाँकों के बीच सहला के उसकी बीवी का नाच देखने लगा, जो अब 'इश्क़ समुन्दर' पर नाच रही थी!
"ओये, पैंटी खोल के चूत दिखा दे रानी..." मैने विनोद की कमर पर दाँत काटते हुये उसकी बीवी से कहा! शिखा ने अपनी दो उँगलियाँ कमर पर अपनी पैंटी की इलास्टिक पर फ़ँसा दीं और वैसे ही कमर मटकाती रही फ़िर उसने पैंटी हल्के से नीचे खिसकायी तो उसकी झाँटें दिखीं!
"वाह... हाँ, खोल दे..." कहकर मैने उँगली विनोद की गाँड पर रखी! उसका छेद गर्म था और कुलबुला रहा था! उसकी जाँघें फ़ैल गयी थी! मैने उनके बीच हाथ डाला हुआ था! कभी कभी मैं हाथ में उसके आँडूए थाम लेता था!

शिखा पूरी नँगी हो गयी और अपनी चूत लचका लचका के नाचने लगी! उस सीन के कारण उसकी चूत से पानी निकल के उसकी जाँघों पर बह रहा था! मैने वो सीन देख के विनोद की गाँड की फ़ाँकों को फ़ैला के उनके बीच मुह घुसा दिया और उसकी मर्दानी खुश्बू सूंघने लगा!

"कैमरा निकाल ना साली..." विनोद ने अपनी बीवी से हैंडीकैम पर हमारी फ़िल्म बनाने को कहा!

मैने उसकी गाँड उठवा दी थी! अब उसका खुला हुआ छेद मेरे होठों और ज़बान का शिकार बन चुका था! मैं उसको खूब चाट रहा था! पीछे से मुह घुसा के मैने उसके आँडूए चाटे, फ़िर उनको चूसने लगा! उसने टाँगें और फ़ैला दीं तो मैने उसका लँड भी थाम लिया! मैने उसको सीधा किया और उसका लँड चूसने लगा! फ़िर वो भी मेरे लँड की तरफ़ मुह करके पैर मोड के लेटा तो वो मेरा और मैं उसका लँड चूसने लगे!
"आजा, ज़रा गाँड चाटेगी क्या?" मैने शिखा को बुलाया!
"हाँ, साली कुतिया चाटेगी क्यों नहीं..."
शिखा ने जब पहली बार मेरी गाँड पर मुह लगाया तो मैं मस्त होकर पागल हो गया! कुछ देर में वो आराम से मेरी गाँड चाटने लगी!
"आज, एक बार इसकी चूत भी चोदूँगा..."
"हाँ, चोद लियो यार... अब क्या पूछना है..." विनोद ने कहा तो मैने शिखा से अपने लँड पर तेल मालिश करवायी और उसको फ़ाइनली विनोद की गाँड में डाल दिया और शिखा के बाल पकड के उसका सर वहाँ लगा दिया!
"देख, तेरे पति की गाँड कैसे मार रहा हूँ, देख... साली राँड, इसकी फ़िल्म बना, देख..."
शिखा फ़िल्म बनाती रही मगर बीच बीच में, मैं विनोद की गाँड से लँड निकाल कर सीधा शिखा के मुह में घुसेड देता था! अब वो हमारे साथ हमारी जैसी ही हो गयी थी!

हम कुछ देर के लिये रुके और एक एक पेग और पिया! इस बार मैने शिखा के हाथ से बॉटल लेकर सीधा सारी व्हिस्की उसके सर पर उँडेल दी तो वो शराब में नहा गयी! वो खुद भी मस्त होकर उसको अपने बदन पर रगडने लगी! मैने उसको खींचा और लिटा लिया... फ़िर मैने विनोद से बोला!
"ले बेटा, तू मेरा लौडा पकड के अपनी बीवी की चूत में डाल..." उसने एक हाथ से उसकी चूत फ़ैला दी जो अब पानी की टंकी की तरह बह रही थी और दूसरे से मेरा लँड पकड के दो फ़ाँकों के बीच लगाया! मैने जब धक्‍का दिया तो लँड सरसरा के अंदर घुस गया, जिसमें मुझे तो मज़ा नहीं आया मगर शिखा ने चूत से मेरा लँड जकड लिया और सिसकारियाँ भरने लगी!
"साली मस्त हो गयी... देखा ना, बोला था ना... मोटा लौडा है इसका..."
"हाँ... बहुत बडा है बहुत... आपसे भी बडा..."
"हाँ, तभी तो चुदवाने में मज़ा आता है, चुदवा ले रानी...."

इस बार विनोद मेरे पीछे आया और जब मैं उसकी बीवी की चूत में लँड दे रहा था, उसने अपना लँड मेरे छेद पर लगा दिया! इस बीच उसने भी तेल लगा लिया था! अब क्या था, उसने मेरी गाँड में अपना लँड डाल दिया! अब जब वो मेरी गाँड पर धक्‍का देता मेरे लँड का धक्‍का सीधा उसकी बीवी की चूत पर लगता!

मैने उस दिन दो बार विनोद की गाँड, एक बार उसके मुह और एक बार शिखा की चूत में वीर्य डाला! बदले में विनोद ने भी मुझे दो बार अपना वीर्य पिलाया और शिखा तो ऐसी चुदी कि सुबह तक उसकी कमर चरमरा गयी! फ़िर ये हमारा रेगुलर खेल हो गया!
आपको काशिफ़ तो याद ही होगा जिससे मैने एक रात हॉस्टल में गाँड मरवायी थी! पर उसके बाद वो मुझे मिला ही नहीं! अभी पता चला, उसी काशिफ़ की शादी है! मैं घर तो जाने ही वाला था, राशिद भाई के कहने पर सोचा, क्यों ना उसकी शादी अटेंड कर लूँ!
तब मैने ज़ाइन को देखा! अब वो बडा हो गया था और जवानी के नशे में था! इतने साल मैने उसको देखा था मगर इस बार, चार साल के बाद देखने में बात ही कुछ और थी... वो और सुंदर, मस्क्युलर, स्लिम सा सुंदर लडका हो गया था! ज़ाइन, राशिद भाई का बडा बेटा है! शादी के घर में मुझे उसके साथ काफ़ी समय बिताने को मिल जाता! मैं उसको खूब खिलाता पिलाता, जोक्स सुनाता, उसके साथ मेल चेक करने जाता, कभी कभी सैक्सी मज़ाक करता, हिरोइन्स की बातें करता, सैक्स तक की बात कर लेता और वो भी मुझसे फ़्रैंक होने लगा! उस शाम मैं और ज़ाइन छत के पास एक छोटे कमरे में अकेले बैठे थे! बाकी घर में शादी का शोर था!

मैने ज़ाइन को एक नज़र देखा और देखता ही रह गया! उसमें अपने दादा की सुंदरता, बाप की जवानी, माँ की चिकनाहट एक साथ मिल कर गज़ब ढा रही थी! उसके भूरे भूरे से, बिना तेल के बाल उड रहे थे! उसकी हाफ़ स्लीव व्हाइट शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुये थे और जीन्स तो मानो जगह जगह उसके जिस्म का चुम्बन ले रही थी! वो रह रह कर अपने मोबाइल से खेलने लग जाता था!
"ऐसा क्या है मोबाइल में?"
"कुछ नहीं चाचा, बस ऐसे ही आदत है..."
"अच्छा..."
"कहीं, कुछ ऐसा वैसा तो नहीं है तुम्हारे मोबाइल में??"
"हे.हे.हे... नहीं चाचा नहीं... बस फ़्रैंड्स के मैसेजेज पढ रहा हूँ..." ज़ाइन सुंदर तो था ही, मेरी बातों से शरमा के उसका गोरा रँग गालों पर और लाल हो गया था!
"वैसे, आजकल तुम लोग मोबाइल का काफ़ी गलत इस्तेमाल करते हो..."
"नहीं चाचा, नहीं तो..."
"अरे देखा नहीं था वो डी.पी.एस. वाला एम.एम.एस.???" इस बार उसका चेहरा बिल्कुल लाल हो गया!
"वो तो बस वैसे ही लोग होते हैं चाचा..."
"कैसे होते हैं??? सब तुम्हारे जैसे ही तो थे... तुम्हारे साथ भी लडकियाँ पढती हैं क्या?"
"जी... मगर वैसी कोई बात नहीं है..."
"वैसी बात होने में टाइम लगता है क्या???" ज़ाइन मेरी बातों से शरमा रहा था, मगर साला हरामी खून था! मैं देख तो ज़ाइन को रहा था मगर मेरी आँखों के सामने कभी उसके दादा हुमेर का और कभी उसके बाप राशिद का लँड नाच रहा था और उनके साथ हुई चुदायी का मन्ज़र साफ़ दिख रहा था! जब मैं उन दोनों से, ज़ाइन को कम्पेअर कर रहा था तो उसकी कमसिन गदरायी चिकनी जवानी और ज़्यादा आग लगा रही थी!
"अब तुम बच्चे भी नहीं हो, जो इतना शरमा रहे हो..."
"शरमा कहाँ रहा हूँ..."
"शरमा तो रहे हो..."
"तुम्हारी उम्र में तो हमने खूब गुल खिलाये थे..."
"अच्छा??? कैसे गुल?" अब मैं उसको उसके दादा और बाप के बारे में क्या बताता!
"बस रहने दो, तुम वैसे ही शरमा रहे हो... कहीं शॉक से बेहोश ना हो जाओ..."
"अरे बताइये ना..."
"अब पता नहीं, तुम्हारी जनरल नॉलेज़ कैसी है... कहीं ज़ीरो हुई तो बेकार होगा..."
"जी.के. तो अच्छी है..."
"नम्बर वाली या बिना नम्बर वाली?"
"दोनो..."
सही था... साला था तो अपने बाप का बेटा और अपने दादा का पोता ही ना... लगता था, लौंडेबाज़ी का फ़ैमिली ट्रेडिशन कायम रखने वाला था... या शायद ये बस मेरी उम्मीद थी! मैने फ़िर ज़ाइन का जिस्म देखा, उसके हाथ पैर सच बडे नमकीन थे... दिल किया, बस उसको पकड के पूरा चाट डालूँ! उसके पैर के बीच में हल्का सा उभार था! मैने सोचा, पता नहीं उसका लँड कितना बडा होगा!

"अच्छा ये बताओ ज़ाइन, जब लडकी का ध्यान आता है तो तुम्हें क्या दिखता है?" एक बार को तो वो एकदम तमतमा गया! फ़िर थूक निगलता हुआ बोला!
"मतलब?"
"मतलब की तुम फ़ेल..."
"नहीं नहीं, इतनी जल्दी नहीं... अच्छा बताता हूँ..."
"बताओ..."
"किस सैन्स में पूछ रहे हैं आप?"
"डी.पी.एस. के एम.एम.एस. वाले सैन्स में..." वो फ़िर शरमाया तो मुझे लगा कि लौंडा कहीं अपने बाप दादा का ट्रेडीशन तोड ना दे!
"उस सैन्स में???"
"अब इतना टाइम लोगे तो सुबह हो जायेगी..."
"उस सैन्स में तो चाचा, एक ही चीज़ ध्यान आयेगी ना..."
"क्या चीज़?"
"चूत"
"शाबाश... अब जवाब दिया ना तुमने सही से..."
"चूत किस कलर की होती है?"
"गुलाबी"
"वाह ज़ाइन वाह..." उसके इन दोनो जवाबों से मेरा लँड बिल्कुल खडा हो गया! उसका चेहरा अब तमतमा के लाल हो गया था!
"चूत में क्या डाला जाता है ज़ाइन?"
"उन्हु चाचा..."
"नहीं पता क्या?"
"पता है..."
"तो बताओ"
"जी... जी... जी लँड..."
"अच्छा, बताओ कैसे डाला जाता है?"
"उन्हु... उन्हु.. अच्छा बताता हूँ, रुकिये एक मिनिट... बस प्लीज... जी वो... जी..."
"अब रहने दो... तुम फ़ेल..."
"जी, वो चूत की दोनो फ़ाँकों के बीच में डाला जाता है..."
"शाबाश... डीटेल में बताओ, सोचो तुम डाल रहे हो..."
"जी, दोनो फ़ाँकों को हाथ से फ़ैला के उनके बीच में..."
"लँड का कौन सा हिस्सा पहले अंदर जायेगा?"
"जी लौडे का सुपाडा..."
"अब बताओ, डी.पी.एस. का एम.एम.एस. कैसा था?"
"बहुत बढिया.."
"अगर उस लडके की जगह तुम होते तो क्या करते?"
"मैं चूत में लँड डाल देता चाचा..."
"तुम्हारा किता बडा है?"
"उस लडके से बडा..."
"इन्चेज़ में बताओ..."
"जी... अबाउट ६..."
"झाँटें आ गयी हैं?"
"हाँ..."
"गाँड पर बाल हैं?"
"नहीं..."
"लँड चुसवाने का ख्याल आया कभी?"
"हाँ..."
"लडकी की गाँड का सोचा कभी?"
"हाँ..."
"क्या सोचा?"
"यही कि गाँड में लँड डाल दूँ..."
"डाल पाओगे?"
"हाँ बिल्कुल..."
"क्या लगा के?"
"थूक..." अब शायद उसका भी लँड पूरा खडा था क्योंकि वो कसमसा कसमसा के अपने पैर आपस में भींच रहा था!
"माल झडता है?"
"हाँ..."
"मुठ मारते हो?"
"जी, मारता हूँ..."
"कभी गाँड के बारे में सोच के मुठ मारी?"
"जी..."
"कैसे?"
"एक लडकी जीन्स में दिखी थी उसका सोच के..."
"गाँड कैसी होती होगी?"
"छोटी.. गोल... टाइट..."
"गाँड के अंदर घुसा पाओगे?"
"क्यों नहीं... ट्राई तो कर ही सकता हूँ...."
"शाबाश... अब तक तुम्हारे सारे जवाब सही हैं... तुम्हें बम्पर प्राइज़ मिलेगा..." मैने कहा तो वो खुश हो गया! इस बार उसने अपने पैर थोडा शफ़ल किये तो मुझे उसकी जीन्स में उसका लँड उभरा हुआ दिखा!
"कितना खडा है?"
"पूरे का पूरा..."
हम उस कमरे के बहुत पास बैठे थे जिसमें किसी दिन ज़ाइन के दादा ने मेरी गाँड मारी थी! उस समय, मैं भी उसी की तरह कमसिन सा चिकना था!
"खडे लँड से क्या करते हैं?"
"चुदायी..."
"और अगर चूत ना मिले तो?"
"तो मुठ मारते हैं..." अब उसका चेहरा कामुकता की तपिश से तमतमा रहा था! ठरक के मारे वो अपने होंठ सिकोड रहा था! अभी ज़्यादा रात नहीं हुई थी! घर में हर तरफ़ लोग आ जा रहे थे, शोर शराबा था! बस मैं वहाँ अपने चिकने से लौंडे के साथ एक कोने में बैठा था! इतनी बातों के बाद अब मुझे समझ आ गया था कि थोडी और कोशिश में ज़ाइन पट जायेगा!
"डी.पी.एस. वाले के अलावा भी कुछ देखा है?"
"हाँ बहुत... मेरे तो फ़ोन में भरे हुये हैं.. और कई बार फ़ुल लेन्थ फ़िल्म भी देखी है..."
"तब तो तुम्हारा लँड हमेशा खडा रहता होगा?"
"हाँ अक्सर..."
"सेम सैक्स... मतलब बॉयज़-टू-बॉयज़ वाले सैक्स के बारे में सुना है?" अब मैने सीधा लाइन पर आने का ट्राई किया!
"हाँ... हाँ, सुना तो है..."
"वो क्या होता है?"
"यू मीन होमो सैक्स ना???"
"हाँ वही..."
"उसमें लडके ही आपस में करते हैं..."
"क्या करते हैं?"
"वही जो लडकी के साथ होता है..."
"मगर लडकों के चूत तो होती नहीं है?"
"चूत की जगह गाँड होती है ना चाचा..."
"शाबाश ये जवाब बैस्ट था..." वो अपनी तारीफ़ से खुश हो गया! अब तक तो मेरा लौडा पूरा फ़नफ़ना के टपकने लगा था और मेरी चड्‍डी से बाहर निकल गया था!
"आपका भी खडा है क्या?"
"हाँ..."
"कितना?"
"बिल्कुल पूरा फ़ुल..."
"आप क्या करते हैं ऐसे में?"
"मैं भी मुठ मारता हूँ..."
"मुठ मारोगे क्या?" मैने गीअर बदला!
"हटिए... नहीं..."
"क्यों... मारते तो हो ना..."
"हाँ, मगर अकेले में..."
"तो सोच लो अकेले हो..."
"नहीं नहीं... हो नहीं पायेगा..."
"ट्राई तो करो..."
"कैसे?"
"अपनी ज़िप खोल के बाहर निकाल लो..."
"अरे कैसे चाचा? नहीं..."
"ट्राई करो तो हर चीज़ पॉसिबल है..." मेरा दिल सीने में तेज़ी से धडक रहा था और साँसें एक्साइटमेंट के मारे तेज़ चल रहीं थी!
"अब... काशिफ़ के तो मज़े आ जायेंगे..."
"हाँ वो तो है..."
"इस समय उसका क्या हाल होगा?"
"हाल बुरा होगा... लँड खडा होगा..."
"हा हा हा हा हा..."
"आपकी शादी क्यों नहीं हुई अभी तक?"
"बस मेरी मर्ज़ी.."
"खडा तो खूब होता होगा..."
"हाँ मगर... यार क्या बताऊँ..."
"बताना क्या है... शादी कर लीजिये..."
"शादी कर के क्या करूँगा यार?"
"चुदायी करियेगा... खूब... आपने होमो के बारे में क्यों पूछा?"
"ऐसे ही... इतनी और बातें भी तो पूछीं यार..."
"मगर... कहीं आप मुझे कुछ वैसा..."
"नहीं... तुम डर क्यों गये?"
"डरता वरता नहीं हूँ..."
"तो लँड खोल के मुठ मार लो..."
"देखिये, बात करने की बात हुई थी... कुछ और करने की नहीं..."
"तो बात आगे भी तो बढ सकती है..."
"उसके लिये आपको शादी करनी होगी चाचा..."
"अब शादी के लिये लडकी तो नहीं है..."
वो अब अपने लँड को अपनी जीन्स के ऊपर से रगड रहा था!
"तो क्या हुआ?"
"तो क्या मतलब?"
"लडकी ढूँढ लीजिये..."
"नहीं यार..."
"तो किसी से कह दीजिये..."
"लँड खोलो ना..."
"क्या करेंगे लँड खुलवा के..."
"कुछ नहीं... तुम मुठ मारना, मैं देखूँगा..."
"तो क्या फ़ायदा?"
"फ़ायदा क्या... मज़ा आयेगा..."
"पहले किसी लडके का देखा है?"
"हाँ..."
"ये तो खुद होमो हरकत होती है ना..."
"हाँ... मगर बॉय्ज़ आपस में मज़ा लेने के लिये भी करते है कभी कभी..."
"आप मेरा देखना क्यों चाहते हो?"
"बस ऐसे ही..."
"अच्छा बस एक बार दिखाऊँगा..."
"ओके..."
अब उसने अपने आँडूए अड्जस्ट करने के लिये अपनी गाँड उचकायी और फ़िर अपनी ज़िप नीचे की तो मेरा दिल एक्साइटमेंट के मारे उछल गया! उसके गोरे हाथ उसके उभार पर थे! उसके चेहरे पर ठरक थी! उसने ज़िप खोलने के बाद अपना हाथ अंदर घुसा के जब अपने लँड को बाहर खींचा तो मैं मस्ती से भर गया! उसका लँड कोई ६ इँची रहा होगा! मोटाई सही थी, रँग गोरा, सुपाडा सुंदर सा... उस समय फ़ूला हुआ और नमकीन वीर्य की बून्दों से भीगा हुआ था! उसने अपने लँड को अपने हाथ में लेकर मेरी तरफ़ करके दबाया!
"लीजिये, दिखा दिया..."
"अब मुठ मारो..."
"अभी मुठ का मूड नहीं है..."
"एक बार पकडने दो..."
"नहीं चाचा..."
"बस एक बार..."
"क्या करेंगे पकड के?"
"देखूँगा कितना सख्त है..."
"दिख नहीं रहा है क्या कि कितना सॉलिड है?"
"दिख तो रहा है... पकड के ज़्यादा सही से पता चलता है..."
"लीजिये..."
उसने फ़ाइनली जब मुझे अपना लँड पकडने दिया तो मैं उसका कमसिन मर्दाना लँड थाम के मस्त हो गया और लँड पकडते ही मैने अपने हाथों की गर्मी से 'उसका' दबाया और उसके सुपाडे पर अपना अँगूठा रगड के उसे दबाया तो उसकी सिसकारी निकल गयी! "सिउह... चाचा... अआह.."
मैं थोडा उसकी तरफ़ झुका! उसका लँड अब मेरी गिरफ़्त में था और मैं हल्के हल्के उसकी मुठ मार रहा था! मैं उसके इतना नज़दीक आ गया कि हमारी साँसें टकराने लगीं!
"एक किस कर दूँ?"
"नहीं नहीं..."
"बस एक..."
"रहने दीजिये..."
"प्लीज़....." कहते हुये मैने हल्के से अपने होंठों से उसके होंठों को ब्रश किया तो उसकी साँस उखड गयी और मैं उसकी साँस की खुश्बू से मदहोश हो गया! मैने अपना मुह उसके होंठों पर खोल दिया और अपनी ज़बान से उसके बन्द होंठों को चाटा! उसने अपना मुह हटाया नहीं तो मैने अपनी ज़बान उसके गले की तरफ़ घुमा दी! उसने मेरा हाथ पकड लिया, मैने एक हाथ से उसकी गरदन पकड ली!

तभी बाहर खट खट हुई! पहले तो हम मदहोशी में सुन नहीं पाये मगर फ़िर जब और ज़ोर से हुई तो हडबडा के उसने अपनी ज़िप बन्द करते हुये दरवाज़ा खोला सामने एक गबरू सा मस्त देसी जवान लौंडा एक बडा सा पोटला लिये खडा था!

"क्या है?" ज़ाइन ने उखडती साँसों से उससे पूछा!
"फ़ूल हैं... कमरा सजाना है..."
"ये कमरा क्यों?"
"यही वाला सजाना है... नीचे से बोला है..."
"अच्छा, आ जाओ..." ज़ाइन ने अपने होंठों से मेरे थूक को साफ़ करते हुये कहा! मैं तो उस के.एल.पी.डी. से बुरी तरह झुँझला गया था! उस फ़ूल वाले लडके के कारण मेरे हाथ से इतना हसीन मौका निकल गया था!
"चलो भाई... सजा दो, ऐसा सजाना कि दूल्हे को मज़ा आ जाये.." मैने उस लडके से कहा!
"हमारा काम तो सजाना है... मज़ा तो दूल्हे के ऊपर है... जितना दम होगा, उतना मज़ा मिलेगा...."
"हाँ, बात तो सही है..."
उस लडके के चेहरे पर रूखापन था, मगर बदन में जान थी! एक छोटी बाज़ू वाली टी-शर्ट उसने जीन्स के अंदर घुसेड के पहनी हुई थी! उसकी छाती चौडी थी, कमर पतली, जाँघें मस्क्युलर, गाँड गोल गोल और लँड का उभार ज़बर्दस्त... मुझसे रहा नहीं गया और मैने उसको उतनी ही देर में कई बार ऊपर से नीचे तक देख लिया!
"बढिया से सजाना..." मैने कहा!
"फ़िक्र मत करिये..." उस लडके ने कहा! "ऐसे नाज़ुक फ़ूल हैं कि अगर दूल्हे ने सही से दबा के रगडा ना तो बिस्तर पर ही कुचल जायेंगे... सुबह एक भी नहीं मिलेगा..."
"वाह... बडा ज़बर्दस्त विवरण दिया..."
"हाँ साहिब... हमारा तो काम ही यही है..."
"सही है... तुम पता नहीं कितनों की रातों को रँगीन बनाते होंगे..." मैने कहा!
"हम नहीं बनाते भैया, हम बनवाते हैं..." उसने इतनी ही देर में मुझे साहिब से भैया बना दिया! मैने फ़िर उसका गठा हुआ जिस्म निहारा! उसके जिस्म में मसल्स भरी हुई थी! छाती के कटाव टाइट टी-शर्ट से नँगे दिख रहे थे और लँड का उभार साफ़ था! जीन्स गन्दी थी, बाज़ू भरे भरे, कलायी चौडी, आँखें नशीली... मैं ठरका हुआ तो था ही, उसको देख के ही मस्त होने लगा!

जब ज़ाइन ने देखा कि उस लडके को टाइम लगेगा तो वो चला गया... "मैं नीचे जा रहा हूँ!"
उस लडके के होते हुए मैं कुछ कर भी नहीं पाता, इसलिये मैने भी उसको जाने दिया!

वो लडका, जुनैद, कमरे में फ़ूलों की लडियाँ लगाने लगा और मैं बेड पर लेट के उसको देखता रहा! वो जब झुकता उसकी गाँड गोल गोल दिखती, जब ऊपर चढता तो और मस्त लगता! कभी अपने मुह से धागा तोडता और कभी टाँगें फ़ैलाता! ना जाने कब उसको देखते देखते मेरी आँख लग गयी और मैं शायद उसके बारे में ही सपना देखने लगा! मेरी आँखों के सामने ठरक के कारण उसका जिस्म ही नाचता रहा! मैं सोया हुआ था मगर फ़िर भी उसको अपने दिमाग से नहीं हटा पाया था! बीच बीच में मुझे ज़ाइन का जवान लँड भी नज़र आ जाता था! मेरा लँड उन सपनों के कारण खडा हुआ था, फ़ूलों की भीनी भीनी खुश्बू मुझे मदहोश कर रही थी! मेरे लँड में मस्ती से गुदगुदी हो रही थी! एक अजीब सा मज़ा मिल रहा था! जुनैद मुझे नॉर्मली दिखता तो भी पसंद आ जाता! मगर उस समय ज़ाइन से इतनी बात हो जाने के बाद तो वो मुझे और भी ज़्यादा हसीन और जवान लगा था! बिल्कुल देसी गठीला मज़बूत जवान... मुझे सपने में ही उसके बदन की गर्मी महसूस हो रही थी! फ़िर मुझे ज़ाइन का ध्यान आया, उसका लँड याद आया, उसके होंठों पर अपना वो गीला चुम्बन याद आया, जिसका गीलपन और गर्मी अभी भी मेरे होंठों पर थे! मुझे लगा कि जब वो मेरा लँड सहलायेगा तो कैसा लगेगा! मुझे अपने लँड पर उसकी हथेली की गर्मी महसूस हुई! मेरा लँड उछला! मुझे जुनैद की गबरू जवानी याद आयी! कभी राशिद भैया के साथ गुज़ारे पल याद आये! कभी हुमेर चाचा के साथ हुआ काँड याद आया! एक पल को भी मेरा जिस्म ठँडा नहीं हो पा रहा था! मुझे होंठों पर ज़ाइन के होंठ याद आये, मैने सोते सोते ही फ़िर जैसे उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये और चूसा तो मुझे उसके होंठों का गीलपन और गर्मी, उसकी कोमलता और नमक याद आया! मुझे उसकी साँसें महसूस हुयीं! उसकी साँसों की खुश्बू अभी भी मेरी नाक में बसी हुई थी! मैने कस के नींद में ज़ाइन के होंठों को चूसा तो उसने मुझे ज़ोर से पकड लिया और इस बार वो मेरे ऊपर लेट गया!

कुछ देर सपने में ज़ाइन के होंठ चूसने के बाद मैने उसका सर नीचे अपने लँड की तरफ़ दबाया! उसने पहले मना किया, शायद रुका, मगर मेरे इंसिस्ट करने पर वो मेरे सपने को यादगार बनाने में लग गया! इस बार उसके होंठ मेरी ज़िप पर थे और मेरे लँड को ऊपर से दबा के मज़ा दे रहे थे! मुझे पता था कि ज़ाइन जैसा नमकीन लौंडा, जो नया नया जवान हुआ था, ये सब ज़रूर करेगा! भले सपने में हो या असल ज़िन्दगी में... और फ़िर ज़ाइन ने फ़ाइनली अपने होंठों को मेरे सुपाडे पर कस लिया तो मैने उसका सर पकड लिया!

"उम्म.. उँहु... हाँ भैया... हाँ... साला, बडा मोटा लौडा है बे तेरा..." जब फ़ाइनली ज़ाइन ने कहा तो मैं चौंका क्योंकि ज़ाइन मुझे भैया नहीं चाचा कहता था! मेरी नींद टूटी, मेरी पैंट पूरी उतरी हुई थी, शर्ट के सारे बटन खुले हुये थे और जुनैद अपनी जीन्स उतारे हुये मेरे ऊपर झुका मेरा लँड पूरा अपने मुह में लेकर चूस रहा था!
"उउम्ह... जुनैद????"
"आप बडी गहरी नींद में थे..." उसने अपने मुह से मेरा लँड निकालते हुए कहा!
"हाँ... जुनै..द... तुम..ने क..ब शुरु कि..या... अआह..."
"जब तुमने नींद में मुठ मारना शुरु कर दिया था..."
"अच्छा??? ऐसा हुआ था क्या?"
"हाँ साले... फ़िर रहा ही नहीं गया..." उसने अपने मुह में मेरा लँड पूरा का पूरा निगल के चूसना शुरु कर दिया! उसने हाथों से मेरे आँडूए दबाना शुरु किये और कभी कभी अपना हाथ आगे से मेरे आँडूओं के नीचे मेरी गाँड तक ले जाकर भींच के वहाँ दबा देता!
मैने हाथ नीचे किया और उसका लँड पकड लिया! उसका लँड भयन्कर बडा और जवान था! मेरे हाथ में आते ही जैसे नाचने लगा!
"अपना भी तो चुसवाओ ना जुनैद..."
"लो ना यार..." उसने कहा और मेरी छाती के ऊपर चढता हुआ लेट गया और मेरे मुह में अपना लौडा डाल दिया! उसका लँड गन्दा था, पसीने से भरा हुआ, लस्सी की तरह स्मेल कर रहा था! उसकी जाँघें तो चिकनी थी, मगर गाँड के छेद पर और दरार में बाल थे! मैने उसकी गाँड को दबोच के रगडना शुरु कर दिया तो वो धकाधक धक्‍के लगाने लगा! वो कभी मेरे बाल पकड लेता, कभी दबोच लेता तो उसका सुपाडा सीधा मेरी हलक तक घुस जाता! उसके आँडूए मेरे चिन पर टकराते! फ़िर वो कभी मेरे सर के नीचे एक हाथ डाल के मेरे सर को ऊपर उठा के मेरा मुह चोदता! उसकी नँगी जाँघें बडी मादक लग रही थी! देख कर ही लगता था कि उनमें कितनी मज़बूती और जान होगी! फ़िर मैने उसको घुटनो पर ऐसे करवाया कि उसके दोनो घुटने मेरे सर के अगल-बगल हो गये और उसका छेद और आँडूए के नीचे वाला बालों भरा गदराया पोर्शन मेरे होंठों की सीधा पर आ गया! इस बार मैने खुद ही सर उठा के अपनी नाक और मुह उसकी गाँड के बीच घुसा दिया! वहाँ की बद्‍बू बडी मादक और ज़बर्दस्त थी! मैने तो उसकी कमर को कस कर पकड लिया और ज़ोर ज़ोर से दबा के सूंघा! फ़िर जब मैने वहाँ किस किया तो वो बैठा नहीं रह पाया और मेरे ऊपर ही पसर गया और अपनी गाँड को मेरे मुह पर रख के जैसे सरेंडर करके पस्त हो गया! मैने ज़बान से उसकी गाँड का छल्ला सहलाया, उसकी गाँड के बालों को अपनी ज़बान से गीला किया और अपने होंठों से पकड के खींचा तो वो मेरे ऊपर फ़िर बैठ गया और अपनी पीठ, धनुष की तरह पीछे मोड कर अपने दोनो हाथ पीछे मेरी जाँघों पर रख दिये!

कुछ देर बाद उसने मुझे पलटा और मेरी गाँड की दरार में गुलाब की पँखुडियाँ भर के मसल दीं! उसने उँगली से मेरा छेद टटोला और अपनी फ़िन्गर-टिप्स से उसको खोला! फ़िर उसने अपनी चार उँगलियों पर अपने मुह से थूक टपकाया और मेरे छेद के पास उसे पोत दिया! फ़िर जब मुझे अपने छेद पर उसका मोटा सुपाडा महसूस हुआ तो मैने टाँगें फ़ैला के गाँड ऊपर उठा के उसके लँड की गर्मी को अपने छेद पर महसूस किया! उसने अपने हाथ की एक उँगली और अँगूठे से मेरा छेद फ़ैलाया और दूसरे से अपना लँड पकड के सुपाडे को मेरे छेद पर रगडा तो उसका सुपाडा भी पहले से लिपडे थूक से भीग गया! उसने थोडा और थूक डायरेक्टली मेरी गाँड पर टपकाया, और उसको भी वैसे ही वहाँ रगडा! फ़िर उसने अपना सुपाडा मेरे छेद पर दबाया तो मेरी गाँड का सुराख अपने आप फ़ैलने लगा और उसका लँड मेरी गाँड में घुसने लगा! मैने सिसकारियाँ भरना शुरु कर दीं! फ़िर उसने अचानक अपना घुसा हुआ सुपाडा बाहर खींच लिया तो मेरी साँस रुक गयी! फ़िर उसने फ़िर सुपाडा घुसा दिया! इस बार मेरी गाँड खुली और वो और ज़्यादा अंदर घुस गया! अब उसने हल्के हल्के धक्‍के दिये तो मेरी गाँड खुलती चली गयी! उसकी गाँड और जाँघ के धक्‍के मज़बूत और ताक़तवर थे! उसने अपना पूरा लँड मेरी गाँड में घुसा दिया और चढ के अंदर बाहर दे-देकर मेरी गाँड मारने लगा!

वो जब भी लँड बाहर खींचता, मेरी सिसकारी निकल जाती और जब अंदर देता तो मस्ती भरी चीख...! उसका रफ़ लँड मेरे छेद से रगड के उसको मस्त करते हुए गर्म कर रहा था! फ़िर वो पलँग से उतर के टाँगें फ़ैला के खडा हो गया!
"आजा... अब ले ले... झुक के ले ले..." काफ़ी देर बाद उसके हलक से कुछ शब्द निकले! फ़िर उसने मुझे अपने सामने घोडा बनवाया और वो खुद खडा ही रहा!
"चल, उठा... गाँड उठा..."
कैसे यार, ऐसे नहीं उठेगी..."
"उठेगी उठेगी... उठा तो.." मैने गाँड और उठायी! अब मैं पूरा अपने टोज़ पर था! मेरा सर नीचे था और हाथ ज़मीन पर... कुछ देर थोडा और उचकने पर मुझे फ़िर गाँड पर उसका लँड महसूस हुआ! अब मैं वैसे, बहुत ही अन-सेफ़ तरीके से झुका हुआ था और वो खडा हुआ था... उसने फ़िर मेरी गाँड में लौडा डालना शुरु कर दिया और अंदर बाहर करके मेरी गाँड का हलुवा बनाना शुरु कर दिया!
"हाँ... हाँ... ऐसे.. ही म..ज़ा... आ..ता.. है... ऐसे.. ही..." उसने कहा और मेरी कमर को दोनो तरफ़ से कस के पकड लिया और मुझे अपनी तरफ़ खींच खींच के चोदने लगा! मेरा छेद खुल तो चुका ही था! उसका लँड 'फ़चाक फ़चाक' अंदर बाहर हो रहा था और साथ में जब उसकी जाँघें और जिस्म मेरे जिस्म से टकराते तो 'थपाक थपाक' की आवाज़ें भी आती! फ़िर तभी उसने मेरी गाँड पर कमर के पास 'चटाक' से एक हाथ मारा!
"उई...." मैं दर्द से करहाया क्योंकि उसने प्यार से नहीं बल्कि काफ़ी फ़ोर्सफ़ुली मेरी गाँड पर चाँटा मारा था! इसके पहले मैं सम्भाल पाता, उसने अपना लँड पूरा अंदर घुसा दिया और फ़िर 'चटाक' से एक और चाँटा मारा! उसके चाँटों में देसी ताक़त थी! अगर सर पर पडता तो सर घुमा देता! मुझे तीखा दर्द हुआ!
"उई... अआह... नहीं..."
"नहीं? नहीं क्यों बे?" उसने कहा और फ़िर तडातड मेरी गाँड पर ज़ोर ज़ोर से चाँटे मारने लगा! उसने एक हाथ से मुझे कस के उसी पोजिशन में पकडा हुआ था और दूसरे से चाँटे मारे जा रहा था!
"नहीं... जुनैद... मारो नहीं..."
"चुप बे... बहन के लौडे चुप... मज़ा लेने दे..." असल में चाँटा पडने पर मैं अपनी गाँड भींच रहा था और उससे उसको लँड पर कसाव महसूस हो रहा था और इससे मज़ा आ रहा था! कुछ देर में उसने मुझे ज़मीन पर ही सीधा लिटा दिया और मेरी टाँगें अपने कंधे पर रखवा के गाँड में लँड डाल दिया!
"अब माल गिर जायेगा... बस.. रुक जा... अब.. गिर.. जायेगा..." वो गाँड उचका उचका के मुझे चोद रहा था और साथ में उसने मेरा लँड थाम के दबाना भी शुरु कर दिया था!
"चल... अप..ना... भी... झाड..." उसने मुझसे कहा!
"झाद दे..." मैने कहा!

वो अब मेरी मुठ मार रहा था और साथ में गाँड भी! मेरा खडा लँड उस पोजिशन में उसके पेट से रगड रहा था! फ़िर उसने तेज़ धक्‍के देना शुरु कर दिये और मेरा लँड छोड के मेरी जाँघों को कस के पकड लिया और फ़िर उसका माल मेरी गाँड में भर गया!
"अआह... हाँ... हाँ.. अआह.. हश... सि...उह..." उसने सिसकारी भरी और फ़िर अपना लँड बाहर खींच के जल्दी जल्दी अपने कपडे पहन लिये! कमरा सज चुका था, इन्फ़ैक्ट उसका सही इस्तमाल भी हो चुका था! जब वो अपने पैसे ले रहा था तो मैं नीचे उसके थोडा दूर ही था! उसने मुझे देखा, उसके चेहरे पर एक संतुष्टि थी! मैने फ़िर देखा, उसका जिस्म सच बहुत प्यारा और सुंदर था! ज़ाइन कहीं नहीं दिखा! उस रात मुझे बहुत अच्छी नींद आयी! कभी जुनैद का ख्याल आता कभी ज़ाइन का! एक लँड जो मिल चुका था, और एक जो मुझे चाहिये था... तीन जनरेशन्स के साथ सैक्स का अपना पहला एक्स्पीरिएंस पूरा करने के लिये! इसके पहले मैने बाप और बेटे के साथ और भाई-भाई के साथ तो बहुत किया था, मगर बाप, बेटे और दादा के साथ कभी नहीं हुआ था! यही वो स्पेशल चीज़ थी, जिसके लिये मैं ट्राई कर रहा था!

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