शमशेर: सरिता को बुलाकर लाओ! दिव्या चली गयी.... थोड़ी देर बाद; सरिता और दिव्या दोनो शमशेर के पास खड़ी थी
शमशेर: सरिता, तुम्हारे भाई ने दिव्या को एक खेल सिखाया है... पूछोगि नही कौनसा? सरिता ने नज़रें नीची कर ली... उसको पता था वो लड़कियों को कौनसा खेल सिखाता है दिव्या ने मौका ना चूका; अपराध शेर कर लिया, सरिता के साथ," सर उसने इसको भी वो खेल सीखा रखा है! राकेश बता रहा था कल" सरिता सिर झुकाए खड़ी रही, उसको बदनामी का कोई डर नही था... अब कोयले को कोई और काला कैसे करेगा! है ना भाई!
शमशेर: तो क्या तुम दोनो को स्कूल से निकाल दें?
सरिता: सॉरी सर, आइन्दा ऐसा नही करेंगे! उसकी 'सॉरी' इस तरह की थी की जैसे उसको किसी ने नकल करते पकड़ लिया हो!
शमसेर: तुम क्लास में जाओ, थोड़ी देर में बुलाता हूँ शमशेर सरिता के जाते हुए उसकी गांड़ को जैसे माप रहा था... बहुत खुली है... सरिता!
शमशेर: हां दिव्या, अब बोलो उसने क्या सिखाया था!
दिव्या: सर उसने इनको दबाया था...
शमशेर: किनको? तुम्हे नाम नही पता?
दिव्या: (अपना सिर झुकते हुए) जी पता है...
शमशेर: तो बोलो!
दिव्या: जी चूचियाँ.. वा अपने सर के सामने ये नाम बोलते हुए सिहर उठी
शमशेर: हां तो उसने क्या किया था?
दिव्या: सर उसने मेरी चूचियों को दबाया था... वह सोच रही थी.. सर मुझे ऐसे शर्मिंदा करके मुझे सज़ा दे रहे हैं...
शमशेर: कैसे? दिव्या ने अपनी चूचियों को अपने हाथ से दबाया... पर उसको वो मज़ा नही आया
शमशेर: ऐसे ही दबाया था या कमीज़ के अंदर हाथ डालकर... दिव्या हैरान थी... सर को कैसे पता( उसको नही पता था सर इश्स खेल के चॅंपियन हैं)
दिव्या: जी अंदर डालकर भी...
शमशेर: कैसे? दिव्या अब लाल होती जा रही थी... उसने झिझकते हुए अपना हाथ कमीज़ के अंदर डाल दिया... उसके पेट से कमीज़ उपर उठ गया और उसके पेट का नीचे का हिस्सा नंगा हो गया... उसकी नाभि बहुत सुंदर थी... और पेट से नीचे जाने वाला रास्ता भी
शमशेर: फिर? दिव्या ने सोचा, वाणी से सर ने सबकुछ पूछ लिया है, छुपाने से कोई फायदा नही....
दिव्या: सर फिर उसने इनको चूसा था!
शमशेर: नाम लेकर बोलो! दिव्या हर 'कैसे' पर जैसे अपने कपड़े उतारती जा रही थी," जी उसने मेरी चूचियों को चूसा था.... शमशेर का फिर वही सवाल," कैसे" अब दिव्या चूस कर कैसे दिखाती, उसकी जीभ तो उसकी छतियो तक पहुँच ही नही सकती थी, फिर भी उसने एक कोशिश ज़रूर की अपनी जीभ निकाल कर चेहरा नीचे किया अपना कमीज़ उपर उठा कर अपनी चूचियों को सर के सामने नंगी करके उनको छूने की कोशिश करती हुई बोली,"सर, ऐसे!" उसकी चूचियाँ बड़ी मस्त थी, वाणी की छतियो से बड़ी... उनके निप्पल एक अनार के मोटे दाने के बराबर थे शमशेर उन्हे देखकर मस्त हो गया... ऐसा अनुभव पहली बार था और सूपरहिट भी था... शमशेर ने कल ही ये प्लान तैयार कर लिया था," इन्हें चूस कर तो दिखाओ..." दिव्या भी गरम होती जा रही थी," सर मेरी जीभ नही जाती"
शमशेर: तो मैं चूसूं क्या? दिव्या को जैसे करेंट सा लगा; क्या उसके सर उसके साथ गंदा खेल खेलेंगे!.... वा खामोश खड़ी रही... उसकी कच्छि गीली हो गयी! शमशेर ने सरिता को बुलाकर लाने को कहा...!
दिव्या ने अपने आपको ठीक किया और सरिता को बुला लाई.. दोनों आकर खड़ी हो गयी...
शमशेर: यही बात सरिता को बताओ और उससे कहो राकेश की तरह वो करके दिखाए
दिव्या: सरिता, राकेश ने मेरी चूचियों को चूसा था अब तुम चूस कर सर को दिखाओ!.... जब सर के सामने ही बोल चुकी थी तो सरिता से क्या शरमाना!... वो कहते हुए मस्ती से भरी जा रही थी... डरी हुई मस्ती से! सरिता ताड़ गयी, सर रंगीले आदमी हैं, उसने दिव्या का कमीज़ उपर उठाया और उसकी एक चूची को मुँह में ले लिया और आँख बंद करके चूसने लगी... जैसे उनका दूध निकाल रही हो! वो पर्फेक्ट लेज़्बीयन मालूम हो रही थी दिव्या सिसक उठी... ऐसा करते हुए सरिता की गांड़ सर के बिल्कुल सामने थी, उसके तने हुए लंड से बस 1 फुट दूर.... शमशेर ने उसके एक चूतड़ पर अपना हाथ रख कर देखा... वो मस्त औरत हो चुकी थी
शमशेर: बस...!.... उसके ऐसा कहते ही सरिता ने अपने होंट हटा लिए.... जैसे शमशेर ने कोई रिमोट दबाया हो...! सरिता इस तरह से सर को देखने लगी जैसे बदले में उससे कुछ माँग रही हो... दिव्या अब भी डरी हुई थी
शमशेर: ऐसे ही!
दिव्या:" जी," उसकी साँसे तेज हो गयी थी..... उसकी छातिया उपर नीचे हो रही थी!
शमशेर: इतना ही मज़ा आया था?
दिव्या: जी सर सरिता ने विरोध किया," नही सर, जब कोई लड़का चूस्ता है, असली मज़ा तो तभी आता है" उसके हाथ अपनी मोटी-मोटी चुचियों पर जा पहुँचे थे; जो ब्रा में क़ैद थी
शमशेर: झहूठ क्यूँ बोला, दिव्या!
दिव्या: सॉरी सर!.... उसका डर अब कम होता जा रहा था... और पूरा खेल खेलने की इच्छा बढ़ती जा रही थी...
शमशेर: तो बताओ, कितना मज़ा आया था?
दिव्या: सर कैसे बताओन, यहाँ कोई लड़का थोड़े ही है?
शमशेर: मैं क्या 'छक्का' हूँ!
दिव्या: पर सर... आप तो 'सर' हैं... शमशेर इस बात पर ज़ोर से हंस पड़ा... उसको एक चुटकुला याद आ गया दो औरतें शाम ढले सड़क किनारे पेशाब कर रही होती है... तभी एक आदमी को साइकल पर आता देख दोनो सलवार उठा कर अपनी चूत ढक लेती हैं... जब वो पास आया तो उनमें से एक बोली," अरी ये तो 'बच्चों का मास्टर था; बिना बात जल्दबाज़ी में अपनी सलवार गीली कर ली पर उसने दिव्या से कहा," मैं चूस के दिखाउ तो बता देगी कितना मज़ा आया था
दिव्या: जी सर! .... उसकी नज़र नीचे हो गयी. शमशेर ने दिव्या को अपनी बाहों में इस प्रकार ले लिया की उसके पैर ज़मीन पर ही रहे... शमशेर का दायां हाथ उसकी गांड को संभाल रहा था और बयाँ उसके कंधों को संभाले हुए था... उसने पहले से ही नंगी एक चूची पर अपने होंटो को फैला दिया... दिव्या बहक रही थी... वो पूरा खेल खेलना चाहती थी! सरिता को ये 'ड्रामा' देखते काफ़ी वक़्त हो गया था... वो और वक़्त जाया नही जाने देना चाहती थी... वो शमशेर के पास घुटनो के बल बैठ गयी और शमशेर के आकड़े हुए 8" को आज़ाद कर लिया.. यह शमशेर के लिए अकल्पनिया दृश्या था... थ्रीसम सेक्स! सरिता एक खेली खाई लड़की थी और शमशेर को पहली बार पता चला... सेक्स में एक्षपेरियँसे की अलग ही कीमत होती है... वह तो नयी कलियों को ही खेल सीखने का इच्छुक रहता था... और आज तक उसने किया भी ऐसा ही था... पर आज..... सरिता के मुँह में लंड को सर्ररर से जाता देख वह 'सस्स्स्शह' कर उठा सरिता सच में ही एक वैश्या जैसा बर्ताव कर रही थी... सरिता का भी 'बिल्ली के भागों छीका टूटा' वाला हाल था.... वा इस वक़्त अपना सारा पैसा वसूल कर लेना चाहती थी... वो कभी सर के सुपारे पर दाँत गाड़ा देती तो शमशेर भी अपने दर्द को अपने दाँत दिव्या के निप्पल पर गाड़ा कर पास कर देता... इस तरह से तीनों का एक ही सुर था और एक ही ताल.... अचानक तीनों जैसे प्यासे ही रह गये जब बाहर से पीयान की आवाज़ आई," सर आपको मॅ'म बुला रही हैं... तीनों बदहवास थे... सर ने अपनी पेंट को ठीक किया.... दिव्या ने अपना कमीज़... और.... सरिता अपनी सलवार का नाडा बाँध रही थी... वो अपनी चूत में उंगली डाले हुए थी.... "छुट्टी होते ही यहीं मिलूँगा, लॅब में; दोनो आ जाना, अगर किसी को बताया तो..." .....दोनो ने ना में सिर हिला दिया... शमशेर को पता था वो नही बताएँगी!
छुट्टी से पहले ही शमशेर ने पीयान को कह दिया था की लॅब की चाबी मैने रख ली है... चोकिदार 7 बजे से पहले आता नही था... कुल मिलाकर वहाँ 'नंगा नाच' होने का फुल्लप्रूफ प्लान था... छुट्टी होते ही दोनो लड़कियाँ लॅब में पहुँच चुकी थी; अलमारियों के पीछे!
सरिता: थॅंक्स; तूने मेरा नाम ले दिया दिव्या; वह कुर्सी के डंडे पर अपनी चूत रखकर बैठी थी... इंतज़ार उसके लिए असहनिया था
दिव्या: दीदी, तुम्हे डर नही लगता
सरिता: अरे डर की मा की गांड़ साले की; ये तो मैं पहचान गयी थी की ये मास्टर रंगीला है... पर इतना रंगीला है; ये पता होता तो में पहले ही दिन साले से अपनी चूत खुद्वा लेती... बेहन चोद... उसने सलवार के उपर से ही अपनी चूत में उंगली कर दी...हाए!
दिव्या: तो क्या दीदी, सर अब कुछ नही करेंगे?
सरिता: अरे करेंगे क्यो नही! अब तेरी भी माँ चोदेन्गे और मेरी भी... देखती जा बस तू अब... पिछे हट जईयो, पहले मई करूँगी, फेर तेरा नंबर लाइए.. अब तो यो मास्टर कई जगह काम आवेगा बस एक बात का ध्यान राखियो, इस बात का किसी को पता नही चलना चाहिए... नहि ते ये म्हारे हाथ से जाता रहेगा, इसके पिछे तो पुर गाम की रंडी से...
दिव्या: ठीक है दीदी, मैं किसी को नही बतावुँगी! तभी वहाँ सिर आ पहुँचे पुर 3 पीरियड से उसका लंड ऐसे ही खड़ा था; सरिता ने उसकी ऐसी सकिंग की थी आते ही कुर्सी पर बैठकर बोला: जो जहाँ था वहीं आ जाओ!
सरिता: सर जी सज़ा बाद में दे लेना, पहले एक रौंद मेरे साथ खेल लो! मेरी चूत में खुजली मची हुई है... शमशेर उसके बिंदास अंदाज का दीवाना हो गया, सकिंग का तो रिसेस से पहले ही हो गया था. उसने सरिता को कबूतर की तरह दबोच लिया... ये कबूतर फड़फड़ा रहा था... 'जीने' के लिए नही....अपनी मरवाने के लिए... सरिता पागल शेरनी की भाँति टेबल पर जा चढ़ि, और कोहनी टेक कर अपना मुँह खोल दिया, सर के लंड को लेने के लिए... शमशेर ने भी सरिता के सिर को ज़ोर से पकड़कर अपना सारा लंड एक ही बार में गले तक उतार दिया..... दिव्या दोनों को आँखें फाडे देख रही थी... दोनों इस खेल के चॅंपियन थे, एक पुरुष वर्ग में दूसरी महिला वर्ग में.... सरिता ने अपनी गांड़ उची उठा रखी थी, शमशेर ने जोश में बिना गीली किए उंगली उसकी गांड़ में फँसा दी... वो पिछे से उछल पड़ी... पर वो हारने वाली नही थी... उसने एक हाथ में शमशेर के टेस्टेस पकड़ लिए, के तू दर्द देगा तो में भी दूँगी... सरिता कभी सर के लंड को चाटती कभी चूमती और कभी चूसती... शमशेर का ध्यान दिव्या पर गया; वह भी तो खेलने आई थी.. उसने दिव्या को टेबल पर चढ़ा दिया; सरिता के सिर के दोनो और टाँग करके... सरिता को कमर से दबाव देकर चौपाया बना दिया..... अब दिव्या का मुँह सरिता की चूत के पास; और दिव्या की चूत ... सर के मुँह के पास... अजीब नज़ारा था...(आँख बंद करके सोचो यारो, सर की जीभ दिव्या की चूत में कोहराम मचा रही थी, नयी खिलाड़ी होने की वजह से उसको उंगली में ही इतना मज़ा आ रहा था की वो झाड़ गयी... एक ही मिनिट में... पर शमशेर ने उसको उठाने ही नही दिया...वह कभी उंगली चलाता कभी जीभ... कुल मिलकर उसने 2-3 मिनिट में ही उसको खेलने के लिए फिट बना दिया, वो फिर से मैदान में थी... क्या ट्रैनिंग चल रही थी उसकी!... बिंदास! दिव्या का मुँह सरिता की चूत तक नही पहुँच रहा था.. व्याकुलता में उसने सरिता के चूतड़ो को ही खा डाला... सरिता बदले में सर के लौदे को काट खाती... और सर दिव्या की चूत पर दाँत जमा देते... कभी सिसकियाँ... कभी चीत्कार... कभी खुशी कभी गम... सरिता को भी पता चल चुका था की सर मैदान का कच्चा खिलाड़ी नही है... वो उसके रूस को पीना चाहती थी पर 20 मिनिट की नूरा कुस्ति के बाद भी वह उसको नही मिला... वह थक चुकी थी... और दिव्या तो हर 5 मिनिट बाद पिचकारी छ्चोड़ देती!
सरिता ने मुँह से लंड निकाल कर अपनी हार स्वीकार की सर ने दिव्या को उठा कर मैदान से बाहर कर दिया... वो तो कब की मैदान छोड़ चुकी थी...
शमशेर के दिमाग़ से अंजलि की गांड की चुदाई वाली खुमारी उतरी नही थी सरिता वहाँ भी ले सकती है सोचकर वो कुर्सी पर बैठा और सरिता को सीधा अपने उपर बिठा लिया, गांड के बल! उसने उसको संभाले का भी मौका नही दिया!
"आ मरी", सरिता बदहवास हो चुकी थी ऐसे करार प्रहार से चारों खाने चित हो गयी; उसने अपने को संभाला और टेबल पर हाथ टीका दिए और पैरों का थोड़ा सहारा लेकर उठने की कॉसिश करने लगी; ताकि जितना बचा है, वो ना घुसने पाए! पर शमशेर ने जैसे ये काम आखरी बार करना था. उसने सरिता के हाथों को टेबल से उठा दिया और टंगड़ी लगाकर उसकी टाँगो को ऐसा हवा में उठाया की 'ढ़च्छाक' से सरिता की जांघे उसकी जांघों से मिल गयी
ओओईइ मा! छ्चोड़ साले मुझे...आ... तू तो मार देगा... मेरी मा... बचा... आहह... तू तो... एक बार रुक जा बस... प्लीज़... आ... तू तो... बदलाः...ले... रहा... है... बहनचोद... मेरी माँ का किया ... मैं भुगत रही ... हूँ... थोडा धीरे धीर कर... हाथ मेज़ पर रखने दो जान... इतना मज़ा कभी नही आया... उछाल ले मुझे.. पहले की तरह... ज़ोर से कर ना... हिम्मत नही रही क्या साले... कर ना... कर ना... कर नाआ! आइ लव यू जान! बस छोड़ दे अपना जल्दी.. प्लीज़ बाहर निकाल ले मुँह में पीला दे... प्लीज़ सर! उसको याद आ गया था की वो सर है... उसकी चूत का भूत भाग गया था...
शमशेर को उसकी ये सलाह पसंद आई... उसने झट से उसको पलट दिया और सरिता के चूतड़ ज़मीन पर जा बैठे... शमशेर ने उसके बालों को खींचा और लंड उसके मुँह में ठूस दिया... बस उसका वक़्त आ चुका था... जैसे ही उसके लंड ने मुँह की नमी देखी... उसने भी अपना रस छोड़ दिया... आज इतना निकला था की उसका मुँह भरकर बाहर टपकने लगा... पर उसने इतना सा भी बेकार नही किया... मुँह का गटक कर जीभ से होंटो को चाटने लगी...
उनका जुनून उतर चुका था... सरिता खड़े होते हुए बोली, सर मैं किसी को नही बतावुँगी... शमशेर एक दम शांत था.... एकदम निशचिंत..!
दिव्या इतनी सहम गयी थी की पीछे हटते-हटते दीवार से जा लगी थी और वही से सब देख रही थी,' जो उसने कल सीखा था... उस खेल का ओरिजिनल वर्जन...'
कहने को तो ये थ्रीसम सेक्स था... पर कोई चौथा भी था.... जो बाहर वाली खिड़की से सब देख रहा था.....!
शमशेर ने आँखों के इशारे से दिव्या को अपने पास बुलाया," सॉरी दिव्या, बाकी खेल फिर कभी सीखूंगा!" वह सहमी हुई थी;
वह अब भी सहमी हुई थी; सर उससे सीखीन्गे या उसको सिखाएँगे.. सरिता बार-बार अपनी गांड के छेद को हाथ लगाकर देख रही थी... शायद वो 'घायल' हो गयी थी
शमशेर ने दोनों को जाने के लिए कहा और कुर्सी पर बैठकर अपना पसीना सुखाने लगा... वो आदमख़ोर बन चुका था.... पर दिशा के लिए अब भी उसके दिल में प्यार था....और वाणी के लिए भी..!
उधर दिशा वाणी के साथ लेटकर वाणी का सिर सहलाने लगी... वाणी का शरीर तप रहा था दिशा ने प्यार से उसके गालों पर एक चुम्मि ली," वाणी!"
हां दीदी....
दिशा लगातार वाणी को दुलार रही थी," अब कुछ आराम है?
वाणी ने आँखें खोल कर दिशा को देखा; जैसे कहना चाहती हो 'आराम कैसे होगा'
"तू मुझसे प्यार करती है ना!" दिशा ने वाणी से पूछा!
वाणी ने दिशा के गले में अपनी बाहें डाल दी और उसके गालों से होंट लगा दिए
दिशा: मेरी एक बात मानेगी?
वाणी: बोलो दीदी!
दिशा: नही मेरी, कसम खाओ पहले!
वाणी ने कुछ देर उसको घूरा और फिर वचन दे दिया," तुम्हारी कसम दीदी!"
दिशा: तू मुझे वो बात बता दे की तू कल रो क्यों रही थी...
वाणी की आँखों से आँसू छलक उठे... वो कैसे बताए... पर वो वचन से बँधी थी.... उसने दिव्या के घर आने से लेकर अपने रोती हुई नीचे आने तक की बात, डीटेल में सुना दी..... जैसे मैने आपको सुनाई थी...!
दिशा हैरान रह गयी... उसकी छुटकी अब छुटकी नही रह गयी थी.... वो जवान हो चुकी है... उसको उस 'खेल' में मज़ा आने लगा है जो बच्चों के लिए नही बना उसने कसकर 'जवान छुटकी को अपने सीने से भींच लिया... पर वो हैरान थी शमशेर ने इस बात पर उनको कुछ भी नही कहा.... वो फिर भी कितना शांत था... कितना..........!
"वाणी! तू ठीक हो जा, मैं वादा करती हूँ; सर अब भी तुझे उतना ही प्यार करेंगे, उससे भी ज़्यादा....
वाणी की आँखें चमक उठी... वो उठ कर बैठ गयी! उसमें जैसे जान सी आ गयी," आइ लव यू दीदी!"...
दिव्या तेज़ी से घर आ रही थी... उसने आज जो कुछ भी देखा था वह सपने जैसे था... वो तो सोच रही थी सर उसको सज़ा देंगे.... पर उन्होने तो उसको मज़ा ही दिया... वो ये बात वाणी को बताना चाहती थी.... वो बताना चाहती थी की वाणी को वो खेल पूरा खेलने के लिए राकेश की ज़रूरत नही है.... उनके घर में तो इस खेल का 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' है.... वो वाणी के घर घुस गयी...
वाणी अब ठीक हो चुकी थी... वो और दिशा हंस-हंस कर बातें कर रही थी... अब वो बेहन नही रही थी... सहेलियाँ बन चुकी थी... जो सब कुछ शेयर कर सकती हैं...
दिव्या को देखते ही दिशा ने उसको बाहर ही रोक दिया और उस पर बरस पड़ी....हरामजादि... मेरी बेहन को बिगाड़ना चाहती है... शरम नही आती तुझे... वग़ैरा वग़ैरा! वाणी भी वहीं खड़ी थी.. जैसे वो भी यही कहना चाहती हो!
दिव्या शर्मिंदा होकर चली गयी... अब उसने सोच लिया था... कि वो किसी को नही बताएगी... स्कूल वाली बात!
शमशेर स्कूल से निकलता हुआ अंजलि के बारे में सोच रहा था... बेचारी के साथ अच्छा नही हुआ.... 10 दिन बाद ही उसकी शादी तय हो गयी थी... कितनी सेक्सी है वह...उसको उस आदमी के साथ शादी करनी पड़ रही थी जो उससे उमर में 13-14 साल बड़ा है.. जिसकी एक शादी हो चुकी है और जिसकी एक बेटी है... करीब 18 साल की...
अंजलि की बेहन की वजह से उसको ये शादी स्वीकार करनी पड़ी... वरना क्या नही था अंजलि के पास... उसकी बेहन जो किसी लड़के के साथ भाग गयी थी...
शमशेर जैसे ही घर पहुँचा... उसकी दोनों 'प्रेमिकाओं' की आँखे उस पर टिक गयी एक की आँखों में प्यास थी; प्यार की, दूसरी की आँखों में नमी थी.... प्यार की ही....... शमशेर वाणी को देखता हुआ सीधा उपर चला गया; वहाँ और कोई ना था
वाणी: दीदी, सर नही बोलेंगे मुझसे; मुझे पता है....
दिशा: तू चल उपर मेरे साथ....
उपर जाकर दिशा अंदर चली गयी, पर वाणी के कदम बाहर ही रुक गये... वो हिम्मत नही कर पा रही थी; सर के सामने जाने की...!
दिशा ने शमशेर से कहा: वाणी बाहर खड़ी है... वो आपके लिए कल से ही रो रही है... वो आपसे बहुत प्यार करती है...
शमशेर उठ कर बाहर आया और वाणी के पास जाकर झुकक कर बोला," आइ लव यू टू बेबी!
वाणी ने अपनी कोमल बाहें 'सर, के गले में डाल दी और दो आँसू टपका दिए.... उसकी गर्दन के पास! शमशेर ने उसको अपनी बाहों में भीच लिया.... अब उसको वाणी के तन से नही केवल मन से लगाव था......
दिन बीत गया... दिशा का इंतज़ार ख़तम होने वाला था दिशा और वाणी ने खाना खाया और शमशेर का खाना लेकर उपर चली गयी... वाणी की झिझक अभी भी दूर नही हुई थी... उसके दिमाग़ में कल वाली बात ज्यों की त्यों थी... वो जाते ही सीधी अंदर वाले कमरे में जाकर लेट गयी उसका मुँह दीवार की और था....वह चाह रही थी.... सर आकर उसको कहें," तू मेरे पास क्यूँ नही आती वाणी...." पर शमशेर का ध्यान तो आज दिशा पर था...सिर्फ़ दिशा पर!
दिशा ने खाना टेबल पर रख दिया... उसका मॅन था वो सर के पास ही बैठ जाए... उससे बात करे... पर बिना वाणी उसको शमशेर के पास बैठना अजीब सा लगा... वो जाकर वाणी की खाट पर ही लेट गयी... उसका चेहरा वाणी के चेहरे की और था... और आँखें लगातार शमशेर को देख रही थी... खाना खाते हुए...
अजीब सी कसंकश थी उसके दिल में, कल कैसे उसने शमशेर का गला पकड़ लिया था... फिर भी वो कुछ ना बोला... पर उसकी शांत आँखें शायद सब कह रही थी... शायद शमशेर को मुझसे पहले ही दिन प्यार हो गया था... मुझसे तो किसी को भी प्यार हो सकता है उसको खुद पर नाज़ हो रहा था! पर उसको कभी किसी से प्यार नही हुआ... शमशेर से पहले! वो खुद ही सोच-सोच कर शर्मा रही थी... उसने कल शमशेर को किस बिंदास तरीके से बोल दिया था..."यस आइ लव यू!"... उसकी आँखों में शमशेर के लिए अथाह प्यार था.... क्या शमशेर भी आज उसके शरीर पर अपने प्यार की मोहर लगा देगा? वा सोचकर ही पिघल गयी... उसने वाणी की टाँग उठा कर अपनी जांघों के बीच रख ली और ज़ोर से दबा दी.... वाणी ने आँखें खोल कर दिशा को देखा और फिर से आँखें बंद कर ली... वो सो नही सकती थी... वो भी शमशेर का इंतज़ार कर रही थी... की वो आकर उसको उठा ले जाए और बेड पर अपने साथ सुला ले... अपनी छति से लगाकर...!
शमशेर ने खाना खाकर दिशा को देखा वो रात हो सकने तक इंतज़ार नही कर सकता था... उसने दिशा की तरफ एक 'किस' उछाल दी.. दिशा ने भी जवाब दिया अपने तरीके से... उसने शमशेर की आँखों में आँखें डाली... उसको कसक से देखा... जैसे उसके पास पहुँच गयी हो और वाणी के गालों पर एक चुंबन जड़ दिया!
वाणी चौंकी; उस्स चुंबन में वो बात नही थी जो दिशा अक्सर उसको लाड़ करते हुए करती थी... इस चुंबन में तो कोई और ही बात थी!
होती भी क्यूँ ना; ये चुंबन उसके लिए नही था... ये चुंबन तो शमशेर के लिए था... उसकी 'फ्लाइयिंग किस का जवाब'....
जैसे-जैसे रात अपने पाँव पसारती रही, दिशा का दिल बैठता गया... आज शमशेर उसको.... सोचने मात्रा से ही उसके बदन में लहर सी दौड़ जाती. उसको अपने जिस्म की कीमत का अहसास होने के बाद किसी लड़के ने 'उस नज़र' से कभी हाथ तक नही लगाया था... उसकी जवानी एक दम फ्रेश थी... फार्म फ्रेश! ऐसी बातों से वो इतनी चिढ़ती थी की उसकी सहेलियाँ तक उसके सामने 'ऐसी' बातें करने से डरती थी पर शमशेर ने जिस दिन से स्कूल में कदम रखे थे, वा बदलती जा रही थी... उसको अब लड़कों का घूर्ना भी इतना बुरा नही लगता था... वो ये सोचकर खुश हो जाती थी की उसके सर को भी मैं इतनी ही सुंदर और सेक्सी लगती होंगी!
दिशा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा था; उसने वाणी को टोका,"वाणी!"
वाणी: हूंम्म?
वाणी तो जाग रही है... दिशा की बे-सबरी बढ़ती जा रही थी," कुछ नही सो जा!"
वाणी धीरे से दिशा के कान में बोली,"दीदी, क्या सर सो गये?"
दिशा की नज़रें शमशेर की नज़रों से टकराई; वो बार-बार उसको अपने पास आने का इशारा कर रहा था,"हुम्म!" दिशा ने वाणी को झूठ बोल दिया ताकि वो सो जाए और वो जान सके की... 'ये प्यार कैसे होता है'
वाणी के दिल में ये बात अंदर तक चुभ गयी... फिर तो सर ने मुझे माफ़ नही किया... वरना वो उसके बगैर कैसे सो जाते....या सो भी जाते तो एक बार उसका दुलार तो करते.... सोचकर उसकी आँखें ढब-ढबा गयी!
दिशा ने फिर टोका," वाणी!"
वाणी नही बोली; वो नाराज़ हो गयी थी... दिशा से भी.... सबसे!
दिशा ने उसको हिलाकर कहा," वाणी".... वो ना उठी... वो बोलना ही ना चाहती थी..
दिशा ने सोचा वो सो गयी है.. मिलन की घड़ी करीब आ गयी... दिशा का गला सूख गया...
शमशेर ने उसको फिर इशारा किया, आने का.... आज वो बहुत सुंदर लग रहा था.... उसके सपनों के राजकुमार जैसा!
वो धीरे से उठी ताकि वाणी जाग ना जाए... दरवाजे की और बढ़ी; पर उसके कदमों ने जवाब दे दिया... जैसे किसी ने बाँध दिए हों... शरम और डर की बेड़ियों से!
वो आगे ना चल पाई और अपनी खाट पर लेट गयी... उसकी तो अब आँखें भी हिम्मत हार गयी... वो मारे शर्म के बंद हो गयी... पहले शमशेर को वो तो छू रही थी... उसकी आँखें....!
शमशेर से अब और सहन नही हो रहा था वो धीरे से उठा और दिशा की चारपाई के पास जा पहुँचा... दिशा आहट सुनकर चारपाई से चिपक गयी... पता नही अब क्या होगा... उसने आँखें बंद कर ली थी... उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था... वा समर्पण को तैयार थी; पूरी तरह... उसने तंन-मॅन से शमशेर को अपना मान चुकी थी सिर्फ़ अपना
शमशेर उसकी चारपाई के पास बैठ गया, दिशा उल्टी लेटी हुई थी उसके बदन की पिछली गोलाई और उसका मछली जैसा बदन कहर ढ़ा रहा था; वो उसको भोगने को लालायित था... जो उसका ही हो जाना चाहता था... जिंदगी भर के लिए... शमशेर का ये कोई पहला अनुभव नही था, फिर भी उसके हाथ काँप रहे थे उस को छुते हुए!
शमशेर ने अपना एक हाथ दिशा की कमर पर टीका दिया और झुक कर उसकी गर्दन से उसके रॅश्मी लंबे बॉल हटाए और वहाँ अपने होंट रख दिए; दिशा शर्म के मारे मरी जा रही थी... उसके मुँह से निकला,"इस्शह!" शमशेर कपड़ों के उपर से ही उसको महसूस करने लगा... उसकी नाज़ुक कमर... कमर से नीचे सूरमाई कटाव...
कटाव से नीचे... उस अद्भुत प्रतिमा की गोलाइया... या हमारी भाषा में......
उसकी गांड़... जैसे वहाँ आकर सब कुछ ख़तम हो जाएगा... जैसे उन गोलाइयों पर 'जीनीन पार्ट' की मोहर लगी हो... शमशेर तप गया... उनकी आँच में!
शमशेर ने दिशा को अपने हाथ से पलट दिया... और वो पलट गयी...जैसे पलटना ही चाहती थी... शमशेर की नज़र वाणी पर गयी... वो सो रही थी... चेहरा दूसरी तरफ किए.. शमशेर उसके अगले हिस्सों पर अपनी काँपति अँगुलिया चलाने लगा... जैसे वीणा के तार छेड़ रहा हो... उस वीणा में से निकली धुन अद्भुत थी... "आहह...आहह...आहह....!" दिशा के जिस्म पर जिस अंग पर शमशेर का हाथ चलता... दिशा को महसूस होता जैसे वो कट-कर गिर जाएगा... शमशेर के साथ जाने के लिए... उससे जुदा होकर! दिशा के लबों की लरज अत्यंत कमनीया थी... वो फडक रहे थे... दिशा चाहती थी शमशेर उनको काबू में कर ले... और शमशेर ने काबू कर लिए... अपने होंटो से... दिशा के होंट... दिशा में से मादक महक निकल कर शमशेर में समाती जा रही थी.. उसने अपने दोनों हाथ शमशेर के चेहरे पर लगा दिए... ये दिखाते हुए की हां... वो तैयार है... उसकी दुल्हन बनने के लिए.... आज ही... आज नही; अभी, इसी वक़्त! शमशेर ने अपनी बाहें दिशा की कमर और उसकी चिकनी जांघों के नीचे लगा दी... और सीधा खड़ा हो गया... वो उसकी बाहों में समर्पण कर चुकी थी... वो दूसरे कमरे में चले गये... और वाणी को दूसरे कमरे में क़ैद कर दिया... अकेलापन पाने के लिए...
शमशेर दिशा को बाहों में उठाए-उठाए ही देखता रहा; उपर से नीचे तक... उसकी आँखें बंद थी... उसका चेहरा गुलाबी हो चुका था... उसके सुर्ख लाल होंट प्यासे लग रहे थे... उसकी छातिया ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी उसके दिल के साथ... कुल मिलकर दिशा का हर अंग गवाही दे रहा था... वो समर्पण कर चुकी थी...
शमशेर ने धीरे से उसको बेड पर लिटा दिया... और आखरी बार उसको निहारने लगा... अब उन्हें लंबी उड़ान पर निकलना था... प्यार की उड़ान पर...
शमशेर उसके साथ लेट गया, उसके कान के पास अपने होंट ले गया और धीरे से बोला," दिशा"... उसकी आवाज़ में वासना और प्यार दोनो थे!
दिशा जैसे तड़प रही थी इस तरह शमशेर के मुँह से अपना नाम सुनने को; वो पलट कर उससे लिपट गयी... वाणी की तरह नही; दिशा की तरह!
पर शमशेर इस खेल को लंबा खींचने का इच्छुक था... उसने प्यार से दिशा को अपने से अलग किया और फिर से दिशा के कान में बोला," क्या मैं तुम्हे छू सकता हूँ".... आवाज़ अब की बार भी वैसी ही थी.. प्यार और वासना से भारी... पर अब की बार दिशा की हिम्मत ना हुई; अपना जवाब उससे लिपट कर देने की, वो खामोश रही... मानो कहना चाहती हो... बात मत करो... जल्दी से मुझे छू दो... मुझे अमर कर दो!
शमशेर ने उसके पेट पर हाथ रख दिया... उसमें कयामत की कोमलता थी... कयामत की लचक... कयामत का कंपन!
दिशा कराह उठी... उससे इंतज़ार नही हो रहा था... पता नही उसका यार उसको क्यूँ तड़पा रहा है!
शमशेर ने उसके पेट पर से उसका कमीज़ हटा दिया... फिर उसका समीज़... शमशेर जन्नत की सुंदरता देख रहा था... उसके सामने... उसके लिए.... सिर्फ़ उसके लिए!
दिशा की नाभि का सौंदर्या शमशेर के होंटो को अपने पास बुला रहा था... चखने के लिए... और वे चले गये... दिशा सिसक उठी... वा अपने हाथो से चादर को नोच रही थी... मचल रही थी... आगे बढ़ने के लिए.....!
शमशेर ने उसको अपने हाथ का सहारा देकर बैठा दिया... उसका हाथ दिशा की कमर में था... समीज़ के नीचे! दिशा हर पल मरी जा रही थी... आगे बढ़ने के लिए! उसकी आँखें अब भी बंद थी; पर होंट खुल गये थे... खेल शुरू होने से पहले ही वह हार गयी... उसकी योनि द्रवित हो उठी! उसने शमशेर को कसकर पकड़ लिया... वो उसी पल उसमें समा जाना चाहती थी...! शमशेर ने अपने गले से लगाकर उसका कमीज़ निकल दिया और समीज़ भी... वो इसी का इंतज़ार कर रही थी!
फिर से शमशेर ने उसको सीधा लिटा दिया... उसकी छातिया मचल रही थी.. वो शमशेर के हाथों का इंतज़ार कर रही थी... पर शमशेर ने उनको कुछ ज़्यादा ही दे दिया.... उसने दिशा के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और उसकी एक छाति पर अपने होंट टीका दिए! "हाइयी, ऐसा पहले क्यूँ नही हुआ... इतना आनंद आता है क्या कभी किसी बात में... शमशेर उसकी छाति पर लगे अद्भुत, गुलाबी सख़्त हो चुके मोती से दूध पीने की कोशिश करने लगा... दिशा छ्टपटा रही थी बुरी तरह; उसकी टाँगों के ठीक बीच में एक भट्टी सुलग रही थी... दिशा को सब और स्वर्ग दिखने लगा... उसकी आँखें आधी खुली आधी बंद... वो नशे में लग रही थी प्यार के नशे में... उससे रहा ना गया, बिलख उठी, " मुझे मार डालो जान! शमशेर ने अपनी पॅंट उतार दी... अपने अंडरवेर की साइड से अपना अचूक हथियार निकाल और दिशा को दे दिया; उसके हाथ में...
"ये इतना बड़ा हो जाता है क्या, बड़ा होने पर," वो सोच रही थी.... उसकी सखतायी, लंबाई और मोटाई को अपने हाथों से सहलाकर महसूस करने लगी! शमशेर के होंट अभी भी उसका दूध पी रहे थे; जो उन मादक छातियो में था ही नही...
अचानक दोनों पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा... दरवाजे के उस तरफ से आवाज़ आई,"
दीदी; सरजी; मुझे भी खेलना है... मुझे नींद नही आ रही... दरवाजा खोलो....
वो दोनों जैसे पत्थर हो गये... खेल उल्टा पड़ गया था.......दोनों कभी एक दूसरे को कभी दरवाजे के पार झिर्री में से दिख रही वाणी की आँख को देखते रहे!
शमशेर और दिशा वाणी को जगा देख सुन्न हो गये एक पल को तो उन्हे कोई होश ही नही रहा दिशा को अपने नंगे बदन का अहसास होते ही वो दीवार की तरफ भागी.. उसने दोनों हाथो से अपने को ढ़क लिया और फर्श की और देखने लगी.... 'ये क्या हुआ!'
शमशेर दिशा के मुक़ाबले शांत था उसने अपने को ठीक किया और दिशा के कपड़े लेकर उसके पास गया... दोनों हाथो से उसके कंधों को थाम लिया,"कपड़े पहन लो जान कुछ नही होगा!"... दिशा को इस बात से सहारा मिला! उसने जल्दी से कपड़े पहन लिए और दरवाजा खोल कर वाणी की तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी... पहली बार जिंदगी में वो किसी से नज़रें चुरा रही थी... वो भी अपनी बेहन वाणी से!
वाणी ने कमरे में आते ही कहा," दीदी मुझे भी खिलाओ ना अपने साथ.... उस कातिल पर मासूम हसीना को ये मालूम नही था की.... ये खेल अच्छे घरों में छुपकर खेला जाता है... किसी तीसरे के सामने यूँ खुले-आम नही!
दिशा कुछ ना बोली... कोई जवाब ना मिलते देख उसने इंतजार करना ठीक नही लगा... झट से बिना शरम अपना कमीज़ उतार दिया... जो खेल उसकी इतनी अच्छी दीदी खेल सकती है, उस खेल में शरम कैसी; फिर मज़ा भी तो बहुत था. उस खेल में...
वाणी उस रूप में सेक्स की देवी लग रही थी.. उसका यौवन समीज़ में से ही कहर ढा रहा था... उसकी छतियो के बीच की घाटी जानलेवा थी... दिल थाम देने वाली... 'कातिल घाटी'
जैसे ही दिशा को अपनी 'जवान' हो चुकी बेहन की स्थिति का पता चला; उसने मूड कर उसको बाहों में भर लिया... उसके मदमस्त यौवन को छूपा लिया... अपने यार की नज़रों से... और अपने से सटा उसको दूसरे कमरे में ले गयी... शमशेर मूक बना रहा... सिर्फ़ दर्शक और फिर दर्शक भी नही रहा... दरवाजा बंद हो गया....
"दीदी, तुम मुझे यहाँ क्यूँ ले आई!" चलो ना खेलते हैं"
दिशा को कुछ बोलते ही ना बना.. वो नज़रें झुकाए रही.
वाणी बेकरार थी शमशेर के साथ 'खेलने' को," मैं खेल आऊँ दीदी!"
दिशा ने मुश्किल से ज़बान हिलाई,"ये........ ये कोई खेल नही है वाणी" अब वाणी छुटकी नही रही!
वाणी: खेल क्यूँ नही है दीदी... कितना मज़ा आता है इसमें...!
दिशा: वाणी; ये ऐसा खेल नही है जो कोई भी किसी के साथ खेल ले!.... वो भावुक हो गयी.
वाणी के पास इस बात की भी काट थी," पर तुम भी तो खेल रही थी दीदी.... सर के साथ! मैं सोई नही थी... मैने सब देखा है!
दिशा: मैं उनसे प्यार करती हूँ वाणी..... ये बात उसने गर्व के साथ कही!
वाणी: तो क्या मैं सर से प्यार नही करती .... मैं सबसे ज़्यादा सर को प्यार करती हूँ... तुमसे भी ज़्यादा... और सर भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं... बेशक उनसे पूछ लो
उस को ये भी मालूम नही था की प्यार... प्यार के अनेक रंग होते हैं... और ये रंग सबसे जुदा है... ये रोशनी से डरता है... और शादी से पहले... इस समाज से भी
दिशा: वाणी, मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ! दिशा ने आखरी तीर छोड़ा!
वाणी ने एक पल के लिए कुछ सोचा," दीदी मैं भी उनसे शादी कर लूँगी!
दिशा उसकी बात पर मुस्कुराए बिना ना रही... कितनी नादान और पवित्र है वाणी!
दिशा: पागल; तू अभी बहुत छोटी है
हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex story)
Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st
वाणी: आप कौनसा बहुत बड़ी हैं दीदी, मुझसे 1 साल ही तो बड़ी हैं!
दिशा के पास अब बोलने के लिए कुछ नही बचा, सिवाय उसको बिना वजह बतायें ढँकने के लिए," चुप हो जा वाणी, तू बहुत बोलने लगी है... देख ऐसा कुछ नही हो सकता; कुछ नही होगा!"
वाणी जैसे कामातूर होकर बागी हो गयी," ठीक है दीदी मत खिलवाओ.... मैं कल राकेश के साथ खेलूँगी.."
दिशा क्या करती," ठीक है वाणी... मैं तुम्हारे साथ खेलूँगी... आ जाओ!"
वाणी थोड़ी नरम पड़ी," पर दीदी पूरा खेल तो लड़के के साथ ही खेला जाता है ना....
दिशा ने उसको आगे बोलने का मौका ही नही दिया.... उसके जालिम होंटो पर अपने रसीले होंट टीका दिया.... जैसे दो बिजलियाँ आसमान में टकराई हों........
दोनों एक दूसरे से चिपक गयी... दिशा सिर्फ़ उसको खुश कर रही थी. पर वाणी का जोश देखने लायक था... वो इस तरह दिशा को चूम रही थी जैसे वो बरसों से ही अपनी दीदी को भोगने का सपना देख रही हो... दिशा भी गरम होती जा रही थी... उसने वाणी को अपने उपर लिटा लिया और समीज़ के नीचे से अपने हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिए... वाणी भी पीछे नही थी... अपने होंटो की दिशा के बदन पर जगह जगह छाप छोड़ रही थी.. हर छाप के साथ दिशा की सिसकिया बढ़ती गयी... उसके सामने लगातार शमशेर का चेहरा घूम रहा था... वो भी उत्तेजित होती गयी... दिशा ने वाणी के कमाल के चिकने चूतड़ो को अपने हाथों में पकड़ कर दबा दिया... दिशा की आँखें बंद हो गयी... उसने रेएक्ट करना बंद कर दिया... और नीचे लुढ़क गयी और वाणी को अपने उपर खींचने लगी... दिशा और वाणी को इस खेल का आगे का ज्ञान अपने आप होता गया..
उन्होने अपने अपने कपड़े उतार फैंके... शरम और झिझक वासना की गोद में जाकर कहाँ टिकती है
दिशा ने वाणी की चूची पर एक हाथ रखकर उसके होंटो में जीभ घुसा दी एक युद्ध सा चल रहा था; दो वासनाओ का... दो सग़ी वासनाओ का...
वाणी ने भी दिशा की चूचियों को सहलाना, दबाना और मसलाना शुरू कर दिया... दिशा ने अपना हाथ नीचे ले जाकर वाणी की चिर यौवन चूत की फांकों मे दस्तक दी... वाणी की आँखें पथारा गयी... ऐसा अहसास वाणी को पहले भी हो चुका था... सर की 'टाँग' पर...
उसने दिशा की जीभ से अपने होंटो को आज़ाद किया और अपने दाँत दिशा की चूचियों पर गाड़ा दिए... जैसे वो पिएगी नही... खा जाएगी उनको...
ऐसा करते ही दिशा की 'शमशेर प्यासी' चूत फिर फेडक उठी... उसने वाणी का मुँह पीछे कर दिया, अपनी चूत के सामने... और उसकी निराली, अद्वितीया चूत पर किस करने लगी, बेतहाशा!.... 1 साल पहले उसकी भी तो वैसी ही थी... अब थोड़ा रंग बदल गया... अब थोड़े बॉल आ गये..
वाणी को भी अपनी चूत पर हमला होते देख... बदला लेने में वक़्त ना लगा... उसने दिशा की चूत के दाने को होंटो में लेकर सुलगा दिया अब दोनों के हाथ एक दूसरे की गंदों पर रेंग रहे थे... दोनों के होंट एक दूसरे की चूत को चूस रहे थे... जो एक कर रही थी दूसरी भी वही कर रही थी... इसको कहते हैं... 'पर्फेक्ट 69'.... कयामत की रात थी... बार-बार योनि में रस की बरसात होने पर भी वो लगी रहती... जब तक एक का काम तमाम होता... दूसरी भड़क जाती और सिलसिला करीब आधा घंटा चलता रहा...
उधर शमशेर उसी छेद से आँख लगाए, अपनी बारी की प्रतीक्षा करता रहा... इस रासलीला में शामिल होने के लिए... वो बिल्कुल शांत था... बिल्कुल......निशचिंत!
दिशा के बदन की प्यास शमशेर को अपने में सामने के लिए बढ़ती जा रही थी... पर वाणी के लिए तो यह सब सिर्फ़ एक खेल था... सबसे ज़्यादा मज़ा देने वाला खेल....
दिशा ने सिसकती हुई आवाज़ में अपने यार को पुकारा," शमशेर्र्ररर!"
वाणी ने दिशा को सर का नाम लेने पर एक बार हैरत से देखा और फिर से 'खेल' में जुट गयी!
शमशेर ने अंजान बन'ने का नाटक किया," वाणी सो गयी क्या; दिशा!"
"कुछ नही होता; तुम जल्दी आ जाओ!" दिशा की आवाज़ में तड़प थी
शमशेर ने दरवाजा खोला," मानो स्वर्ग पहुँच गया हो... स्वर्ग की दो अप्सराए उसके सामने कहर ढा रही थी... एक दूसरी पर...
दिशा शमशेर के सामने जाते ही वाणी को भूल गयी, वो उठी और शमशेर से चिपक गयी... वाणी इंतज़ार कर रही थी... देख रही थी... आगे कैसे खेला जाता है... फिर उसको भी खेलना था... वो भी नंगी ही शमशेर को निहार रही थी.... उसको दोनों का ये मिलन बड़ी खुशी दे रहा था..
शमशेर ने फिर से दिशा को उठा लिया और बेड पर लिटा दिया... वाणी बोली, मुझे भी लेकर जाओ सर जी; ऐसे ही... शमशेर ने एक पल दिशा को देखा... उसकी आँखों में कोई शिकायत नही थी... थी तो बस... जल्दी से औरत बन-ने की तमन्ना..
शमशेर ने वाणी को ऐसे ही गोद में उठा लिया... दिशा मुस्कुरा रही थी... आँखें बंद किए!
दिशा से इंतजार नही हो रहा था; उसने शमशेर की पॅंट पर हाथ लगा दिया.. अपने यार के हथियार को मसालने लगी!
शमशेर ने देर नही की... वो भी कब से तड़प रहा था... आख़िर कंट्रोल की भी हद होती है...
शमशेर ने जल्दी से अपनी पॅंट उतरी और अपना ताना हुआ 8" लंड उसको दे दिया...
वाणी की आँखें फट गयी," सर जी का नूनी... इतना लंबा! ... इतना मोटा! और उसका मुँह खुला का खुला रह गया... अभी तो उसको उसका प्रयोग भी नही पता था...!
दिशा के मॅन की झिझक अब आसपास भी नही थी... उसने शमशेर के लंड को अपने हाथ से उपर नीचे किया और उसके होंटो को खाने लगी!
वाणी ने भी उसको छू कर देखा... बहुत गरम था!
शमशेर ने देर ना करते हुए; अपना लंड दिशा के होंटो पर रख दिया... पर दिशा इशारा ना समझी... बस उसको चूम लिया
शमशेर ने अपने कसमसाते लंड को देखा और बोला," इसको मुँह में लो, इसको चूसो, इसको चॅटो!
"क्या?" दिशा शमशेर को देखती कभी उसके लंड को!
"प्लीज दिशा और मत तड़पाओ!"
दिशा ने अपने यार की लाज रख ली... उसने उसको मुँह में लेने की कोशिश की... पर वा कहाँ घुसता... वो उसको उपर से नीचे तक चाटने लगी!
वाणी को हँसी आ रही थी... ये कोई कुलफी है क्या...
पर जैसे ही उसने दिशा की आँखों को बंद होते देखा वो भी बीच में कूद पड़ी..."मैं भी चूसूंगई!" दिशा कुछ ना बोली...
वाणी ने शमशेर के लंड पर अपनी जीभ फिरानी शुरू की... एक तरफ दिशा... दूसरी
तरफ वाणी... दोनों आनंद में पागल थी... और तीसरा तो सेक्स का ये रूप देखकर अपने आपे में ही नही था... उन दोनों के हाथ अपनी-अपनी चूतो पर थे और शमशेर उनकी चूचियों से खेल रहा था
दिशा ने कोशिश करके शमशेर के सुपारे को अपने मुँह में भर लिया... उसके निकलते ही वाणी ने भी कोशिश की पर बीच में ही हार मान ली... हां मज़ा उसको भी दिशा जितना आया था!
अब सहना शमशेर को ग्वारा ना था.. उसने दिशा की टाँगों को फैलाया और उनमे अपना मुँह घुसा दिया... वाणी सर की टाँगो के बीच मुँह ले गयी... और अपनी कुलफी चूस्ति रही.. मदमस्त बड़ी कुलफी..
दिशा की आँखे बंद होने लगी... एक बार फिर उसका वक़्त आ गया... उसने शमशेर का सर अपने हाथो में पकड़ा और उसको अपनी चूत पर दबा दिया.. उसने पानी फिर छोड़ दिया...
शमशेर को लगा सही वक़्त है और उसने जल्दी से वाणी को दूर हटाकर दिशा की मस्त जांघों को फैलाया और वाणी की कुल्फि दिशा की योनि में ठेल दी.. "एयाया!" दिशा की आवाज़ उसके गले में ही रह गयी जब शमशेर ने उसके मुँह को सख्ती से दबा दिया...
दिशा की आँखों से आँसू बह निकले... वो फिर से चीखना चाहती थी पर चीख ना सकी.... शमशेर ने चीखने ना दिया... अभी तो सिर्फ़ सूपड़ा ही अंदर फँसा था... बाकी तो इंतज़ार कर रहा था... दिशा के शांत होने का...
वाणी दिशा को देखकर डर गयी..." दीदी ठीक कह रही थी मैं तो अभी छोटी हूँ! खेल का दूसरा भाग मेरे लिए नही है... उसका गला सूख गया था... अचानक उसकी नज़र अपनी दीदी की चूत पर पड़ी... वो घायल हो चुकी थी... अंदर से!
सर दीदी को छोड़ दो... बाहर निकल लो! वो मर जाएगी... प्लीज़ सर... मेरी दीदी को छोड़ दो... हमें नही खेलना खेल... हमें माफ़ कर दो सर! उसकी आँखों में भय था...
शमशेर ने उसको अपने से सटा लिया... पर उसको अब मज़ा नही आ रहा था... हां दिशा ज़रूर शांत हो गयी थी.. शमशेर का एक हाथ दिशा की मस्त जवानियों से खेल रहा था और दूसरा हाथ वाणी की कमर से लिपटा हुआ था...
दिशा अपनी गांड़ को उचकाने लगी... और शमशेर ने भी मौका देखकर दबाव बढ़ा दिया... और दिशा तृप्त होती चली गयी... स्खलन के बाद वो और भी रसीली हो गयी... अब धक्के लगाए जा सकते थे और शमशेर ने धक्के शुरू कर दिए... दिशा का बुरा हाल था... वो हर धक्के के साथ मानो स्वर्ग की सैर कर रही थी... वो चीख-चीख कर कहना चाहती थी... और ज़ोर से ... और ज़ोर से.. पर उसने अपनी पागल भावनाओ को काबू में रखा...
वाणी ने देखा... दीदी के चेहरे पर अब शांति है... उसके चेहरे को देखकर सॉफ दिख रहा था की उसको दर्द नही मज़ा आ रहा है... अपनी दीदी से निशचिंत होकर वाणी ने अपने सर के होंटो को अपने लाल सुर्ख होंटो से चूमने लगी.... उत्तेजना की हद हो चुकी थी... ऐसा लगता था जैसे तीनों के तीनों सेक्स के लिए ही बनाए गये थे... जो बात दिशा में नही थी वो वाणी में थी और जो बात वाणी में नही थी वो दिशा में थी... शमशेर झटके खाने लगा और हांफता हुआ दिशा के उपर गिर गया... दिशा औरत बन चुकी थी...
वाणी ने दोनों को प्यार से एक दूसरे की और देखा और शमशेर के उपर गिर पड़ी... उसको भी शमशेर से प्यार था... जिसका रूप बदल रहा था!
शमशेर उठा और साइड में सीधा होकर गिर पड़ा... ऐसी संतुष्टि की उसने कल्पना भी नही की थी कभी... उसके दोनों और दो दुनिया की सबसे हसीन नियामते लेटी थी.... एक शमशेर की औरत बन चुकी थी दूसरी बनना चाहती थी....
वो ऐसे ही सो गयी..... शमशेर की बाहों में...! शमशेर की आँखों में आँसू आ गये... मारे खुशी के या फिर पश्चाताप के...... ये वो क्या कर रहा है!
करीब 5:00 बजे शमशेर की आँख खुली... उसके दोनो और यौवन से लदी 2 हसीन कयामतें उससे चिपकी पड़ी थी... बिल्कुल शांत; बिल्कुल निसचिंत और एक तो.... बिल्कुल निर्वस्त्रा... मानो अभी अभी जनम लिया हो; सीधे जवान ही पैदा हुई हो.... सीधे उसकी की गोद में आकर गिरी हो;.....ऐसा नयापन था उसके चेहरे में उसने दूसरी और देखा, वो अभी भी कुँवारी थी... शमशेर के कंधे पर सिर टिकाए, उसके शरीर से खुद को सताए मानो अभी जनम लेने को तैयार है.... एक नया जनम.... शमशेर के हाथो!
शमशेर ने उसका माथा चूम लिया... और उसने नींद में ही... अपने हुस्न को और ज़्यादा सटा लिया... वह शमशेर की छाति पर हाथ रखे, ऐसे पकड़े हुई थी की सर कहीं भाग ना जायें, उसको पूरा किए बगैर; उसको औरत बनाए बगैर...
शमशेर ने कुछ सोचा और उससे दूसरी तरफ मुँह कर लिया... उसकी 'औरत की तरफ....
शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो... शमशेर ने दिशा को खींच कर उसकी छातियो को अपनी छाति से सटा दिया... और उसके होंटो को अपने होंटो से 'थॅंक्स' कह दिया... उसकी हो जाने के लिए... दिशा ने तुरंत आँखें खोल दी.... नज़रों से नज़रें मिली और 'औरत' की नज़र शर्मा गयी... रात को याद करके दिशा ने खुद को शमशेर में छिपा लिया... और उसके अंदर घुसती ही चली गयी... शमशेर भी उसमें समा गया 'पूरा' का 'पूरा'... इस दौर में दिशा को इतना आनंद आया की उसकी सारी थकान दूर हो गयी...
कुछ देर शमशेर के उपर पड़े रहने के बाद वह उठी और उसने कपड़े पहन लिए... वह बिना बात ही मुस्कुरा रही थी... रह-रह कर; बिना बात ही शर्मा रही थी... रह-रह कर... वह वापस अपने यार के पास आ लेटी... उसको समझ नही आ रहा था शमशेर को क्या कह कर संबोधित करे; सर या शमशेर... इसी कसंकश में उसने दोनो को ही छोड़ दिया," कल रात को मैं कभी नही भूल पाउन्गि... जी!" जैसे सुहगरात के बाद शायद पत्नी कहती है!..."लेकिन इस शैतान का क्या करें... ये मानेगी नही इतनी आसानी से... बहुत जिद्दी है... मुझे डर है... कहीं ये बहक ना जाए..." और शमशेर किस्मत की देन उसकी नादान प्रेमिका को देखने लगा...!
सुबह स्कूल जाने से पहले नहाते हुए दोनो को अपने अंगों में परिवर्तन महसूस कर रही थी. दिशा को अपने पूर्ण होने का अहसास रोमांचित कर रहा था तो वाणी को उसके बदन की तड़प विचलित कर रही थी.... वाणी के मॅन में दुनिया की सबसे अच्छी दीदी से ईर्ष्या होने लगी... उसके बाद उसने कभी दिशा और शमशेर को कभी अकेला नही छोड़ा... सोते हुए वो शमशेर को अपने हाथ और पैर से इस तरह कब्जा लेती की जैसे कहना चाहती हो... ये किसी और का नही हो सकता; 'सर' मेरा है... सिर्फ़ मेरा.... 'अपने' सर वाणी को 'सिर्फ़ अपने' लगने लगे....
ऐसा नही था की शमशेर की दूसरी बाजू अकेली हो, वो दिशा को समेटे रहती, पर जब भी कभी वाणी को लगता की सर उससे मुँह घुमा रहे हैं... तो नींद में ही उठ बैठती और शमशेर के उपर चढ़ कर लेट जाती.... दिशा और वाणी में दूरियाँ बढ़ने लगी.... शमशेर के कारण! ऐसे ही 5-7 दिन बीत गये.... अगले दिन अंजलि की शादी थी... वो घर चली गयी... शमशेर को टीचर्स-इनचार्ज बना कर!
दिशा के पास अब बोलने के लिए कुछ नही बचा, सिवाय उसको बिना वजह बतायें ढँकने के लिए," चुप हो जा वाणी, तू बहुत बोलने लगी है... देख ऐसा कुछ नही हो सकता; कुछ नही होगा!"
वाणी जैसे कामातूर होकर बागी हो गयी," ठीक है दीदी मत खिलवाओ.... मैं कल राकेश के साथ खेलूँगी.."
दिशा क्या करती," ठीक है वाणी... मैं तुम्हारे साथ खेलूँगी... आ जाओ!"
वाणी थोड़ी नरम पड़ी," पर दीदी पूरा खेल तो लड़के के साथ ही खेला जाता है ना....
दिशा ने उसको आगे बोलने का मौका ही नही दिया.... उसके जालिम होंटो पर अपने रसीले होंट टीका दिया.... जैसे दो बिजलियाँ आसमान में टकराई हों........
दोनों एक दूसरे से चिपक गयी... दिशा सिर्फ़ उसको खुश कर रही थी. पर वाणी का जोश देखने लायक था... वो इस तरह दिशा को चूम रही थी जैसे वो बरसों से ही अपनी दीदी को भोगने का सपना देख रही हो... दिशा भी गरम होती जा रही थी... उसने वाणी को अपने उपर लिटा लिया और समीज़ के नीचे से अपने हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिए... वाणी भी पीछे नही थी... अपने होंटो की दिशा के बदन पर जगह जगह छाप छोड़ रही थी.. हर छाप के साथ दिशा की सिसकिया बढ़ती गयी... उसके सामने लगातार शमशेर का चेहरा घूम रहा था... वो भी उत्तेजित होती गयी... दिशा ने वाणी के कमाल के चिकने चूतड़ो को अपने हाथों में पकड़ कर दबा दिया... दिशा की आँखें बंद हो गयी... उसने रेएक्ट करना बंद कर दिया... और नीचे लुढ़क गयी और वाणी को अपने उपर खींचने लगी... दिशा और वाणी को इस खेल का आगे का ज्ञान अपने आप होता गया..
उन्होने अपने अपने कपड़े उतार फैंके... शरम और झिझक वासना की गोद में जाकर कहाँ टिकती है
दिशा ने वाणी की चूची पर एक हाथ रखकर उसके होंटो में जीभ घुसा दी एक युद्ध सा चल रहा था; दो वासनाओ का... दो सग़ी वासनाओ का...
वाणी ने भी दिशा की चूचियों को सहलाना, दबाना और मसलाना शुरू कर दिया... दिशा ने अपना हाथ नीचे ले जाकर वाणी की चिर यौवन चूत की फांकों मे दस्तक दी... वाणी की आँखें पथारा गयी... ऐसा अहसास वाणी को पहले भी हो चुका था... सर की 'टाँग' पर...
उसने दिशा की जीभ से अपने होंटो को आज़ाद किया और अपने दाँत दिशा की चूचियों पर गाड़ा दिए... जैसे वो पिएगी नही... खा जाएगी उनको...
ऐसा करते ही दिशा की 'शमशेर प्यासी' चूत फिर फेडक उठी... उसने वाणी का मुँह पीछे कर दिया, अपनी चूत के सामने... और उसकी निराली, अद्वितीया चूत पर किस करने लगी, बेतहाशा!.... 1 साल पहले उसकी भी तो वैसी ही थी... अब थोड़ा रंग बदल गया... अब थोड़े बॉल आ गये..
वाणी को भी अपनी चूत पर हमला होते देख... बदला लेने में वक़्त ना लगा... उसने दिशा की चूत के दाने को होंटो में लेकर सुलगा दिया अब दोनों के हाथ एक दूसरे की गंदों पर रेंग रहे थे... दोनों के होंट एक दूसरे की चूत को चूस रहे थे... जो एक कर रही थी दूसरी भी वही कर रही थी... इसको कहते हैं... 'पर्फेक्ट 69'.... कयामत की रात थी... बार-बार योनि में रस की बरसात होने पर भी वो लगी रहती... जब तक एक का काम तमाम होता... दूसरी भड़क जाती और सिलसिला करीब आधा घंटा चलता रहा...
उधर शमशेर उसी छेद से आँख लगाए, अपनी बारी की प्रतीक्षा करता रहा... इस रासलीला में शामिल होने के लिए... वो बिल्कुल शांत था... बिल्कुल......निशचिंत!
दिशा के बदन की प्यास शमशेर को अपने में सामने के लिए बढ़ती जा रही थी... पर वाणी के लिए तो यह सब सिर्फ़ एक खेल था... सबसे ज़्यादा मज़ा देने वाला खेल....
दिशा ने सिसकती हुई आवाज़ में अपने यार को पुकारा," शमशेर्र्ररर!"
वाणी ने दिशा को सर का नाम लेने पर एक बार हैरत से देखा और फिर से 'खेल' में जुट गयी!
शमशेर ने अंजान बन'ने का नाटक किया," वाणी सो गयी क्या; दिशा!"
"कुछ नही होता; तुम जल्दी आ जाओ!" दिशा की आवाज़ में तड़प थी
शमशेर ने दरवाजा खोला," मानो स्वर्ग पहुँच गया हो... स्वर्ग की दो अप्सराए उसके सामने कहर ढा रही थी... एक दूसरी पर...
दिशा शमशेर के सामने जाते ही वाणी को भूल गयी, वो उठी और शमशेर से चिपक गयी... वाणी इंतज़ार कर रही थी... देख रही थी... आगे कैसे खेला जाता है... फिर उसको भी खेलना था... वो भी नंगी ही शमशेर को निहार रही थी.... उसको दोनों का ये मिलन बड़ी खुशी दे रहा था..
शमशेर ने फिर से दिशा को उठा लिया और बेड पर लिटा दिया... वाणी बोली, मुझे भी लेकर जाओ सर जी; ऐसे ही... शमशेर ने एक पल दिशा को देखा... उसकी आँखों में कोई शिकायत नही थी... थी तो बस... जल्दी से औरत बन-ने की तमन्ना..
शमशेर ने वाणी को ऐसे ही गोद में उठा लिया... दिशा मुस्कुरा रही थी... आँखें बंद किए!
दिशा से इंतजार नही हो रहा था; उसने शमशेर की पॅंट पर हाथ लगा दिया.. अपने यार के हथियार को मसालने लगी!
शमशेर ने देर नही की... वो भी कब से तड़प रहा था... आख़िर कंट्रोल की भी हद होती है...
शमशेर ने जल्दी से अपनी पॅंट उतरी और अपना ताना हुआ 8" लंड उसको दे दिया...
वाणी की आँखें फट गयी," सर जी का नूनी... इतना लंबा! ... इतना मोटा! और उसका मुँह खुला का खुला रह गया... अभी तो उसको उसका प्रयोग भी नही पता था...!
दिशा के मॅन की झिझक अब आसपास भी नही थी... उसने शमशेर के लंड को अपने हाथ से उपर नीचे किया और उसके होंटो को खाने लगी!
वाणी ने भी उसको छू कर देखा... बहुत गरम था!
शमशेर ने देर ना करते हुए; अपना लंड दिशा के होंटो पर रख दिया... पर दिशा इशारा ना समझी... बस उसको चूम लिया
शमशेर ने अपने कसमसाते लंड को देखा और बोला," इसको मुँह में लो, इसको चूसो, इसको चॅटो!
"क्या?" दिशा शमशेर को देखती कभी उसके लंड को!
"प्लीज दिशा और मत तड़पाओ!"
दिशा ने अपने यार की लाज रख ली... उसने उसको मुँह में लेने की कोशिश की... पर वा कहाँ घुसता... वो उसको उपर से नीचे तक चाटने लगी!
वाणी को हँसी आ रही थी... ये कोई कुलफी है क्या...
पर जैसे ही उसने दिशा की आँखों को बंद होते देखा वो भी बीच में कूद पड़ी..."मैं भी चूसूंगई!" दिशा कुछ ना बोली...
वाणी ने शमशेर के लंड पर अपनी जीभ फिरानी शुरू की... एक तरफ दिशा... दूसरी
तरफ वाणी... दोनों आनंद में पागल थी... और तीसरा तो सेक्स का ये रूप देखकर अपने आपे में ही नही था... उन दोनों के हाथ अपनी-अपनी चूतो पर थे और शमशेर उनकी चूचियों से खेल रहा था
दिशा ने कोशिश करके शमशेर के सुपारे को अपने मुँह में भर लिया... उसके निकलते ही वाणी ने भी कोशिश की पर बीच में ही हार मान ली... हां मज़ा उसको भी दिशा जितना आया था!
अब सहना शमशेर को ग्वारा ना था.. उसने दिशा की टाँगों को फैलाया और उनमे अपना मुँह घुसा दिया... वाणी सर की टाँगो के बीच मुँह ले गयी... और अपनी कुलफी चूस्ति रही.. मदमस्त बड़ी कुलफी..
दिशा की आँखे बंद होने लगी... एक बार फिर उसका वक़्त आ गया... उसने शमशेर का सर अपने हाथो में पकड़ा और उसको अपनी चूत पर दबा दिया.. उसने पानी फिर छोड़ दिया...
शमशेर को लगा सही वक़्त है और उसने जल्दी से वाणी को दूर हटाकर दिशा की मस्त जांघों को फैलाया और वाणी की कुल्फि दिशा की योनि में ठेल दी.. "एयाया!" दिशा की आवाज़ उसके गले में ही रह गयी जब शमशेर ने उसके मुँह को सख्ती से दबा दिया...
दिशा की आँखों से आँसू बह निकले... वो फिर से चीखना चाहती थी पर चीख ना सकी.... शमशेर ने चीखने ना दिया... अभी तो सिर्फ़ सूपड़ा ही अंदर फँसा था... बाकी तो इंतज़ार कर रहा था... दिशा के शांत होने का...
वाणी दिशा को देखकर डर गयी..." दीदी ठीक कह रही थी मैं तो अभी छोटी हूँ! खेल का दूसरा भाग मेरे लिए नही है... उसका गला सूख गया था... अचानक उसकी नज़र अपनी दीदी की चूत पर पड़ी... वो घायल हो चुकी थी... अंदर से!
सर दीदी को छोड़ दो... बाहर निकल लो! वो मर जाएगी... प्लीज़ सर... मेरी दीदी को छोड़ दो... हमें नही खेलना खेल... हमें माफ़ कर दो सर! उसकी आँखों में भय था...
शमशेर ने उसको अपने से सटा लिया... पर उसको अब मज़ा नही आ रहा था... हां दिशा ज़रूर शांत हो गयी थी.. शमशेर का एक हाथ दिशा की मस्त जवानियों से खेल रहा था और दूसरा हाथ वाणी की कमर से लिपटा हुआ था...
दिशा अपनी गांड़ को उचकाने लगी... और शमशेर ने भी मौका देखकर दबाव बढ़ा दिया... और दिशा तृप्त होती चली गयी... स्खलन के बाद वो और भी रसीली हो गयी... अब धक्के लगाए जा सकते थे और शमशेर ने धक्के शुरू कर दिए... दिशा का बुरा हाल था... वो हर धक्के के साथ मानो स्वर्ग की सैर कर रही थी... वो चीख-चीख कर कहना चाहती थी... और ज़ोर से ... और ज़ोर से.. पर उसने अपनी पागल भावनाओ को काबू में रखा...
वाणी ने देखा... दीदी के चेहरे पर अब शांति है... उसके चेहरे को देखकर सॉफ दिख रहा था की उसको दर्द नही मज़ा आ रहा है... अपनी दीदी से निशचिंत होकर वाणी ने अपने सर के होंटो को अपने लाल सुर्ख होंटो से चूमने लगी.... उत्तेजना की हद हो चुकी थी... ऐसा लगता था जैसे तीनों के तीनों सेक्स के लिए ही बनाए गये थे... जो बात दिशा में नही थी वो वाणी में थी और जो बात वाणी में नही थी वो दिशा में थी... शमशेर झटके खाने लगा और हांफता हुआ दिशा के उपर गिर गया... दिशा औरत बन चुकी थी...
वाणी ने दोनों को प्यार से एक दूसरे की और देखा और शमशेर के उपर गिर पड़ी... उसको भी शमशेर से प्यार था... जिसका रूप बदल रहा था!
शमशेर उठा और साइड में सीधा होकर गिर पड़ा... ऐसी संतुष्टि की उसने कल्पना भी नही की थी कभी... उसके दोनों और दो दुनिया की सबसे हसीन नियामते लेटी थी.... एक शमशेर की औरत बन चुकी थी दूसरी बनना चाहती थी....
वो ऐसे ही सो गयी..... शमशेर की बाहों में...! शमशेर की आँखों में आँसू आ गये... मारे खुशी के या फिर पश्चाताप के...... ये वो क्या कर रहा है!
करीब 5:00 बजे शमशेर की आँख खुली... उसके दोनो और यौवन से लदी 2 हसीन कयामतें उससे चिपकी पड़ी थी... बिल्कुल शांत; बिल्कुल निसचिंत और एक तो.... बिल्कुल निर्वस्त्रा... मानो अभी अभी जनम लिया हो; सीधे जवान ही पैदा हुई हो.... सीधे उसकी की गोद में आकर गिरी हो;.....ऐसा नयापन था उसके चेहरे में उसने दूसरी और देखा, वो अभी भी कुँवारी थी... शमशेर के कंधे पर सिर टिकाए, उसके शरीर से खुद को सताए मानो अभी जनम लेने को तैयार है.... एक नया जनम.... शमशेर के हाथो!
शमशेर ने उसका माथा चूम लिया... और उसने नींद में ही... अपने हुस्न को और ज़्यादा सटा लिया... वह शमशेर की छाति पर हाथ रखे, ऐसे पकड़े हुई थी की सर कहीं भाग ना जायें, उसको पूरा किए बगैर; उसको औरत बनाए बगैर...
शमशेर ने कुछ सोचा और उससे दूसरी तरफ मुँह कर लिया... उसकी 'औरत की तरफ....
शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो... शमशेर ने दिशा को खींच कर उसकी छातियो को अपनी छाति से सटा दिया... और उसके होंटो को अपने होंटो से 'थॅंक्स' कह दिया... उसकी हो जाने के लिए... दिशा ने तुरंत आँखें खोल दी.... नज़रों से नज़रें मिली और 'औरत' की नज़र शर्मा गयी... रात को याद करके दिशा ने खुद को शमशेर में छिपा लिया... और उसके अंदर घुसती ही चली गयी... शमशेर भी उसमें समा गया 'पूरा' का 'पूरा'... इस दौर में दिशा को इतना आनंद आया की उसकी सारी थकान दूर हो गयी...
कुछ देर शमशेर के उपर पड़े रहने के बाद वह उठी और उसने कपड़े पहन लिए... वह बिना बात ही मुस्कुरा रही थी... रह-रह कर; बिना बात ही शर्मा रही थी... रह-रह कर... वह वापस अपने यार के पास आ लेटी... उसको समझ नही आ रहा था शमशेर को क्या कह कर संबोधित करे; सर या शमशेर... इसी कसंकश में उसने दोनो को ही छोड़ दिया," कल रात को मैं कभी नही भूल पाउन्गि... जी!" जैसे सुहगरात के बाद शायद पत्नी कहती है!..."लेकिन इस शैतान का क्या करें... ये मानेगी नही इतनी आसानी से... बहुत जिद्दी है... मुझे डर है... कहीं ये बहक ना जाए..." और शमशेर किस्मत की देन उसकी नादान प्रेमिका को देखने लगा...!
सुबह स्कूल जाने से पहले नहाते हुए दोनो को अपने अंगों में परिवर्तन महसूस कर रही थी. दिशा को अपने पूर्ण होने का अहसास रोमांचित कर रहा था तो वाणी को उसके बदन की तड़प विचलित कर रही थी.... वाणी के मॅन में दुनिया की सबसे अच्छी दीदी से ईर्ष्या होने लगी... उसके बाद उसने कभी दिशा और शमशेर को कभी अकेला नही छोड़ा... सोते हुए वो शमशेर को अपने हाथ और पैर से इस तरह कब्जा लेती की जैसे कहना चाहती हो... ये किसी और का नही हो सकता; 'सर' मेरा है... सिर्फ़ मेरा.... 'अपने' सर वाणी को 'सिर्फ़ अपने' लगने लगे....
ऐसा नही था की शमशेर की दूसरी बाजू अकेली हो, वो दिशा को समेटे रहती, पर जब भी कभी वाणी को लगता की सर उससे मुँह घुमा रहे हैं... तो नींद में ही उठ बैठती और शमशेर के उपर चढ़ कर लेट जाती.... दिशा और वाणी में दूरियाँ बढ़ने लगी.... शमशेर के कारण! ऐसे ही 5-7 दिन बीत गये.... अगले दिन अंजलि की शादी थी... वो घर चली गयी... शमशेर को टीचर्स-इनचार्ज बना कर!
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st
शमशेर को डी.ओ. ऑफीस जाना था; कुच्छ कागजात लाने के लिए, क्यूंकी अंजलि च्छुटी पर थी... वो लॅब से निकलने ही वाला था की नेहा ने प्रयोगशाला में प्रवेश किया; सेक्स लॅबोरेटरी में, "मे आइ कम इन सर?"
शमशेर: यस, कम इन!
नेहा आकर शमशेर के साथ खड़ी हो गयी; शमशेर को जब भी मौका मिलता था, नेहा के पिच्छवाड़े पर हाथ सॉफ कर देता... और उसको फिर अपनी प्यास बुझाने बाथरूम जाना पड़ता... आज नेहा फ़ैसला कर के आई थी; आर या पार," सर, आप ऐसे मत किया करें!
शमशेर: कैसे ना किया करूँ?
नेहा: वो सर... वो आप ... यूँ... यहाँ हाथ लगा देते हो; नेहा ने अपनी गांद की तरफ इशारा करके कहा; वो हज़ारो में एक थी... अभी तक कुँवारी!
शमशेर: ठीक है; सॉरी, आइन्दा नही करूँगा!
नेहा: नही सिर, मैं आपको ऐसा नही कह रही.
शमशेर मुस्कुराया," तो कैसा कह रही हो नेहा?" उसने नेहा के एक चूतड़ को अपने हाथ से मसल दिया!
"आ...सर!"
शमशेर: क्या?... शमशेर ने फिर वैसी ही हरकत की; बल्कि इश्स बार तो उसने अपनी उंगली उसकी चूत के 'बॉर्डर' तक पहुँचा दी...
नेहा: प्लीज़ सर, मैं बेकाबू हो जाती हूँ, मेरा ध्यान हमेशा आप पर ही रहता है... कुच्छ करिए ना... इसका इलाज!... उसके पैर खुल गये थे.. और ज़्यादा मज़ा लेने को.
शमशेर को जल्दी निकलना था," ओके. कल छुट्टी के बाद यहीं मिलना... कर देता हूँ इसका इलाज.." शमशेर बाहर चला गया और नेहा अंदर.... बाथरूम में!"
ऑफीस से गाँव वापस आते हुए शमशेर के साथ कोई और भी था... उसका दोस्त... मुझे नाम तो पता नही पर शमशेर उसको 'टफ' कह रहा था... टफ007...
"तो मुझे कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?" मिस्टर. टफ ने कहा. नाम के मुताबिक ही वा सच में सख़्त था... बिल्कुल टफ! शमशेर जितना लंबा... शमशेर जितना हेल्ती और शमशेर से सुदर... उसकी उमर करीब 25 की थी.
शमशेर: जीतने दिन चाहो! तेरा ही घर है पगले!
टफ: यार; तू भी ना, ऐसे टाइम पर खींच लेता है, अपने साथ... आज कल कितना बोझ है ड्यूटी का. वो क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्तेर था," और सुना तेरी सेक्स लाइफ कैसी चल रही है... सुधरेगा या नही...
शमशेर ने कहा," नही!" और दोनों ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे! तभी अचानक शमशेर ने ब्रेक लगा दिए," देख तुझे एक मस्त मेडम से मिलता हूँ"
शीशा खोल कर शमशेर ने आवाज़ दी," अरे मेडम यहाँ कैसे?" प्यारी मेडम खड़ी थी! शमशेर ने उसको लिफ्ट के लिए ऑफर किया. प्यारी आकर गाड़ी में बैठ गयी," अरे भैया! सब तुम्हारी ही मेहरबानी है! दिशा को इतनी सी सज़ा देने पर तुमने मुझे इतनी बड़ी सज़ा दिलवा दी! अब यहाँ आती हूँ रोज 20 किलो मीटर" अब तुम्हारे जैसे दयावान रोज तो नही मिलते ना... और ये तेरा भाई है क्या?
शमशेर: भाई जैसा ही है मेडम! क्यूँ?
प्यारी: शादी हो गयी इसकी या तेरी तरह खुद पका खा रहा है....
शमशेर: कहाँ मेडम; हम शादी के लायक कहाँ हैं... शमशेर की टोन सेक्सी थी... प्यारी ताड़ गयी... और उसने किया ही क्या था आज तक!
प्यारी: भैया तुम भरी जवानी में ऐसे कैसे रहते हो... प्यारी ने अपनी ब्रा को ठीक किया...
शमशेर: तैयार हो जाओ टफ भाई... इसके पाप तो तुझे ही धोने पड़ेंगे!
प्यारी: क्या मतलब?
शमशेर: कुच्छ नही; पर्सनल बात है कुच्छ...
प्यारी: अरे सही तो कह रही हूँ भैया; इंसान की और भी ज़रूरतें होती हैं... रोटी, कपड़ा; मकान के अलावा... जवान मर्द हो, लड़कियाँ कितनी दीवानी रहती होंगी ना तुम जैसों की तो!
टफ ने इशारा किया. शमशेर ने गाड़ी रोक दी. टफ उतार कर पीछे जा बैठा," सही कह रही हैं आंटी जी!" उसने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया!
प्यारी: अरे! तेरे को तो बोलने की ही तमीज़ ना है.. मैं क्या.... आंटी दिखाई देती हूँ तेरे को; ज़रा एक बार उपर से नीचे तो देख.
टफ: हाए.......और क्या बोलूं........ आंटी
प्यारी: फिर से...! अरे मेरे आगे तो कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती हैं.... सरिता भी मुझसे जलती है!... वैसे नाम क्या है तेरा... मैं तो तुझे नाम से ही बोलूँगी!.... तू चाहे तो मुझे 'प्यारी कह सकता है... मेरा नाम है प्यारी...
टफ: मुझे 'प्यारा' कहते हैं प्यारी... और उसने प्यारी की जांघों पर रखे अपने हाथ को अंदर की तरफ घुसा दिया.... प्यारी ने उसका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया....," धात ये भी कोई जवानी दिखाने की जगह है.... कभी हवेली पर आना.. दिखती हूँ मैं... क्या चीज़ हूँ!
टफ उसका सिग्नल मिलते ही उसकी 40" की कसी हुई चूचियों को दोनों हाथों में जैसे लपक लिया," ट्रेलर तो देख ही सकता हूँ प्यरी !"
इतने मजबूत हाथो में खुद को जकड़ा पाकर प्यारी धन्य हो गयी... उसने अपना सूट उपर उठा दिया... और ब्रा नीचे सरका दी, उसकी चूचियाँ सच में ही कुँवारियों को भी पानी पीला सकती थी! छ्होटे पपीते के आकर की प्यारी की छातिया और उन्न पर तने हुए उसके अंगूर जैसे निप्पल्स ने टफ को सिसकारी भरने पर मजबूर कर दिया!
गाड़ी चलती रही... हौले हौले!
टफ उसकी छतियो पर नहा धोकर टूट पड़ा... दोनों हाथो से वो प्यारी पर प्यार लूटा रहा था... मजबूती से... प्यारी को भी ऐसे ही मर्दों को अपनी सवारी करना पसंद था," तू अपना तो ट्रेलर दिखा दे रे प्यारे!" कहकर उसने टफ की पॅंट के उपर से ही उसके मोटे, लूंबे, अब तक टाइट हो चुके उसके लॅंड को पकड़ लिया; मजबूती से, मानो एलान कर दिया हो "अब गियर वही बदलेगी.... वही चलाएगी अब प्यार की गाड़ी!"
प्यारी ने जीप खोली और टफ के 'टफ' लंड को चेक करने लगी," अरे तुम शहर वोलोन का लौदा तो बड़ा प्यारा होता है... सॉफ सुत्हरा... गाँव में तो साले लंड के साथ अपने बॉल भी बॅट देते हैं... और उसने बिना बालों वाला 'लाउडा' अपने गले तक उतार दिया... और उस्स पर इतनी शख़्ती से दाँत गाड़ा दिए.. की टफ को लगा... वो काट कर गिर पड़ेगा... उसने प्यारी को एक ही झटके में अपने से दूर फाँक दिया," साली कुतिया... अपने साथ ही ले जाएगी क्या इसको.." और अपने हाथ ही जैसे सलवार के उपर से ही उसकी चूत में घुसा दिया!
"ऊईइ मार दी रे... तरीका भी नही पता क्या साले रंडवे! रुक जा, पहले अपना लौदा खिला दे फिर इसको चाहे काट कर अपने साथ ले जाना.
टफ ने उसका सिर पकड़ा और नीचे झुककर अपने लंड को उसके मुँह में भर दिया... गले तक... जैसे बोतल के मुँह पर कॉर्क फिट कर दिया हो!
प्यारी अंदर ही अंदर छ्टपटाने लगी.. टफ की इश्स अनोखे बदले से छुटकारा पाना प्यारी के वश की बात ना थी... वो इधर उधर बदहवासी में हाथ मारने लगी!
"आबे जान लेगा क्या इसकी, टफ ने आगे देखते देखते कहा...," छ्चोड़ दे इसको, मर जाएगी."
"मर जाएगी तो मर जाएगी साली.... लावारिस दिखा के फूँक देंगे साली को... और उसने प्यारी देवी को छ्चोड़ दिया... अब उसकी हिम्मत भी ना हो रही थी उसके लौदे की और देखने की... उसने अपनी सलवार का नाडा खोला और पैर 'प्यारे के आगे खोल दिए!
"मस्त माल है भाई... अभी तक गॅरेंटी में ही था लगता है... तू गाड़ी वापस ले ले! इसको आज ही एक्सपाइर कर दूँगा!
शमशेर ने गाड़ी सीधी स्कूल में ले जाकर घुसा दी और उन्न दोनों को "उसी प्यार की प्रयोगशाला" में क़ैद करते हुए बोला..." टफ, आराम से करना... जान से मत मार देना.... मैं 1 घंटे में आउन्गा" कहकर वह लॅब का ताला लगाकर चला गया!
अंदर आते ही टफ ख़ूँख़ार भेड़िए की तरह प्यार करने को आतुर प्यारी देवी पर टूट रहा था. वा ये गाना गुनगुना रहा था... हम तूमम्म इक कमरे में बंद हूऊओ, और.....!
"ठ्हहर तो जा निकम्मे; कभी लड़की देखी नही क्या?"
"देखी हैं... पर तेरे जैसी जालिम नही देखी"... टफ को पता था... औरत और लड़की की सबसे बड़ी कमज़ोरी.. अपनी प्रशंसा सुन-ना होती है.
प्यारी ने झट से अपने कपड़े उतार दिए... उसका भरा भरा शरीर, 40" तनी लगभग तनी हुई चुचियाँ, मोटी मोटी जांघें, जाँघो के बीच डुबकी बॉल सॉफ की हुई... मोटी मोटी फांको वाली चूत, करीब 46" की डबल गांद और उसके बीचों बीच कसे हुए चूतदों की वजह से बनी गहरी घाटी को देख टफ अपना आपा खो बैठा... उसमें शमशेर जितना कंट्रोल नही था... उसने झट से प्यारी की एक टाँग उठा कर टेबल के उपर रख दी. प्यारी की गांद फटने को हो गयी... उसकी चूत गांद के बीच में से झहहांक रही थी... टफ की और...
टफ ने घुटनों के बल बैठ कर उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी... अंदर तक...
अपनी मोटी जांघों की वजह से प्यारी को ये आसान पसंद नही आ रहा था.. उसने उतने की कोशिश करी पर टफ ने उसको मैंने की तरह दबोच रखा था... एक मोटा मैमना!
"जान से मरेगा क्या? तेरी... कुत्ते ... आ.. एक बार छ्चोड़ दे... सीधी... आ.. होकर लेट लेने दे जालिम.... अपनी चूत में रेसीली जीभ को घुसा पाकर वा आपा खोती जा रही थी... पर टाँगों का दर्द उसको परेशान कर रहा था... लेकिन टफ उसके साथ किसी तरह की रियायत के मूड में नही था... उसने जीभ अंदर तो घुसा ही रखी थी... अपनी उंगली उसकी गांद के काले हो चुके च्छेद में घुसा दी...
"हाइयी मा.. सारा मज़ा खुद ही लेगा क्या... मुझे भी तो लेने दे... प्यारी का भी तो ख़याल रख... सीधा होने दे साले... " प्यारी देवी जवान खून के आगे अपने घुटने टेक दिए... वो अब उठने की कोशिश नही कर रही थी.. हाँफ रही थी.. और विनती करके अपने लिए थोड़ी दया की भीख माँग रही थी... उसका सिर टेबल से लगा हुआ था और उसकी चुचियाँ टेबल में जैसे घुसी हुई थी... उसको तने हुए अपने निप्पालों के टेबल से रग़ाद खाने की वजह दर्द हो रहा था.
टफ अपनी उंगली इतनी तेज़ी से उसकी गांद में पेल रहा था की लगता था जैसे प्यारी के च्छेद में मोटर से चलने वाली कोई रोड अंदर बाहर हो रही हो... उसको अब बोलने का भी अवसर नही मिल रहा था... आख़िरकार, उसकी चूत "रोने" लगी... वो गाढ़े गाढ़े आँसू टपकाने लगी... टफ इश्स रस का सौकीन था... उसने रस ज़मीन पर नही टपकने दिया...
उसके बाद प्यारी को थोड़ी देर के लिए राहत मिली," मार ही दिया था तूने तो... क्या नाम है तेरा! टफ को उसकी सुननी नही थी.. अपनी करनी थी! प्यारी को पलट कर टेबल पर पीठ के बल लिटा दिया और उसकी सलवार उठा ली.
सलवार का एक कोना अपनी उंगली से लपेट कर उसने प्यारी की टाँगो को ऊपर उठा कर फिर से उनको चौड़ा कर दिया...और कपड़े से ढाकी उंगली को उसकी गांद में घुसेड दिया!
" ये क्या कर रहा है तू? पागल है क्या... मैं कहाँ फँस गयी रे अम्मा!"
टफ उसकी चूत को अंदर से सॉफ कर रहा था.. बिल्कुल सूखी! उसको दर्द देकर मज़ा लेने में ही आनद आता था... और प्यारी की गीली चूत में दर्द कहाँ होता.
टफ ने टाइम वेस्ट नही किया.. अपनी उंगली निकाल दी और अपने लंड को आज़ाद करके उसकी मुँह बाए पड़ी चूत में धकेल दिया.... चूत बिल्कुल सूखी होने की वजह से जैसे प्यारी की प्यासी की दीवारें छिल गयी.. वो कराह उठी.. फिर से छ्टपटाने लगी.. पर आज़ाद ना हो पाई...
टफ में कमाल की तेज़ी सी... लंड इतनी तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था की जैसे प्यारी में भूकंप आया हो... शमशेर ने देखा उसकी मोटी चूचियाँ बुरी तरह हिल रही हैं... प्यारी देवी कुतिया की तरह भोंके जा रही थी, पर टफ को उस्स वक़्त कुच्छ नही सुन रहा था.. वो टेबल पर ही चढ़ बैठा.. प्यारी को और आगे धकेल कर... अब प्यारी देवी के खुल चुके बॉल और उसकी गर्दन दोनों ही नीचे लटक रहे थे.
टफ ने उसकी टाँगो के दोनो और से अपने हाथ निकाल कर उसकी चूचियों को मजबूती से बुरी तरह जाकड़ लिया.. और फिर वैसे ही झटके शुरू कर दिए.. अब उसकी चूचियाँ हिल नही रही थी.. पर टफ की जाकरने में वो और भी व्याकुल हो उठी. बकती बकती प्यारी की चूत को उस्स वक़्त ही आराम मिल पाया जब उसकी चूत फिर से गीली हो गयी... पर अब जैसे ही टफ का लंड उसकी चूत में फिसलने सा लगा... टफ का मज़ा कूम हो गया....करीब 20 मिनिट बाद..!
पर उसको मज़ा लेना आता था... दर्द देकर.. उसने तुरंत उसकी चूत में से लंड निकाल लिया...
"कर ना साले... अभी तक तो तू मेरी मा चोद रहा था... और अब मज़ा आने लगा तो तूने निकाल दिया... फाड़ दे साले मेरी चू...
"ये तो पहले ही फटी पड़ी है... इसको ये 8" और क्या फड़ेगा! इसके लिए तो मुझे कोई मूसल लाना पड़ेगा.... ळाउ क्या?"
"नही रे! मर जाउन्गि... बस तू मुझे अब छ्चोड़ दे जाने दे!"
ऐसे कैसे जाने देता... टफ ने उसको पकड़ कर फिर से उसी पोज़िशन में ला दिया जिस पोज़िशन में वो पहले थी... उसकी गांद फट गयी!
टफ ने उसकी गांद को घूरा और अपने लंड के लिए सही लगा तो उसमें उतारने लगा... प्यारी रोने लगी.. सूबक सूबक कर.. और 5-6 झटकों में टफ ने उसकी अंतडियों को हिला कर रख दिया... लंड दूर गांद में उतार गया था... प्यारी को होश नही था," प्लीज़ एक बार थूक लगा लो.... और इश्स बार टफ ने उसकी मान ली... टफ उसकी गांद को चौड़ा करके दूर से ही इश्स तरह थूकने लगा जैसे वा गांद नही कोई डस्टबिन हो... 4-5 कोशिशों के बाद निशाना लग गया... और थूक उसकी गांद ने पी लिया!
अब फिर वही कहानी शुरू... पर प्यारी को अब आराम था... वा 35 मिनिट में पहली बार खुश दिखाई दी... उसकी बकबक बढ़ने लगी, दर्द के मारे नही अब की बार; उत्तेजना के मारे, टफ की स्पीड अब भी वही थी जो उसकी चूत में थी..
प्यारी निहाल हो गयी.. टफ ने गांद से निकल कर चिकना लंड उसकी चूत में काम पर लगा दिया... प्यारी सिसकारने लगी और तभी उसकी चूत ने फिर पानी छ्चोड़ दिया.. वो सीधी होकर इश्स जाबाज को अपने गले से लगा लेना चाहती थी... पर टफ ने उसकी आख़िरी इच्च्छा भी पूरी ना की... उसके पलटते ही उसको बालों से पकड़कर नीचे बैठाया और... लगभग ज़बरदस्ती करते हुए.. उसका मुँह खुलवाया और लंड की सारी मेहनत का फल उसको पीला दिया... टफ ने उसको तब तक नही छ्चोड़ा.. जब तक उसके गले में से रस गेटॅक्न का आभास होता रहा
प्यारी देवी उसको टुकूर टुकूर देख रही थी... टफ ने अपना लंड बाहर निकाला और कपड़े पह्न-ने शुरू कर दिए! उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी... प्यारी को दर्द देने की!
"गभ्रू! आपना नाम तो बता दे!" प्यारी भी कपड़े पहन रही थी...
"टफ मुश्कुराया और बोला," मुझे अजीत कहते हैं.... आंटी जी!"
प्यारी सोच रही थी...," सला चोद चाड कर आंटी जी कह रहा है...!"
अजीत ने शमशेर के पास फोने किया और बोला आ जाओ भाई!
शमशेर और अजीत प्यारी को वापस गाँव के बाहर छ्चोड़ आए और घर चले गये!.....
"टफ,कैसी रही प्यारी?",शमशेर ने आते हुए पूचछा.
"साली बहुत कड़वी थी?" अजीत और शमशेर ज़ोर से हँसे!, अजीत ने म्यूज़िक ओन कर दिया.
घर जाकर वो सीधे उपर चले गये... दिशा और वाणी नीचे खिड़की में बैठी शमशेर का ही इंतज़ार कर रही थी... पर जब उन्होने किसी और को भी देखा तो वो बाहर ना निकली और दिशा उनके लिए चाय बनाने लगी.
चाय बना कर दिशा उपर देने गयी... वाणी भी साथ गयी... दिशा की जासूस! अब वो एक पल के लिए भी दिशा को शमशेर के पास अकेले नही छ्चोड़ना चाहती थी.
अजीत ने जब दुनिया की तमाम सुंदरता, मासूमियत और कशिश से भारी उन्न जवान लड़कियों को देखा तो बस देखता ही रह गया. जब वो चाय देकर चली गयी तो अजीत शमशेर से बोला," भईई! तू तो जन्नत में आ गया है... मैं भी कहूँ, तू कभी फोन ही नही करता... तेरे तो घर में दीवाली है दीवाली..."
शमशेर: प्लीज़ यार, इनके बारे में ऐसा कुच्छ मत बोल!
अजीत: क्यूँ, तूने बहन बनानी शुरू कर दी क्या 'भाई!'?
शमशेर ने एक धौल अजीत की पीठ पर जमाया और उसकी आँखों की नमी देखकर अजीत सब समझ गया," कौनसी है उस्ताद... तेरे वाली?"
शमशेर ने चाय का कप अजीत को दिया," बड़ी! वो मुझसे बहुत प्यार करती है!"
अजीत: और तू?... उसने गौर से शमशेर की आँखों में देखा...
शमशेर: पता नही! चाय पी ले ठडी हो जाएगी!
अजीत: और छ्होटे वाली, उसको भी कुच्छ ना बोलूं; वो भी तो कयामत है...
शमशेर: छ्चोड़ ना यार, कितनी छ्होटी है!
अजीत: छ्होटी है!..... चल भाई तू कहता है तो छ्होटी ही होगी... पर मेरी समझ में नही आता वो छ्होटी है कहाँ से!...... अजीत के सामने उस्स बाला की सुंदर युवती का चेहरा घूम गया!
शमशेर: यार तू तो बस बॉल की खाल निकाल लेता है... तू उसकी बातें सुन के देखना! चल इश्स टॉपिक को छ्चोड़.... तुझे दिशा कैसी लगी?
अजीत: दिशा? ये दिशा कौन है... तूने प्यारी का नाम प्यार से दिशा तो नही.....
शमशेर: बड़े वाली... ये जो अभी आई थी... वाणी के साथ!
अजीत गंभीर होकर शमशेर की और देखने लगा, दिशा का नाम आते ही उसको शमा याद आ गयी, शमशेर की शमा... जिसके लिए शमशेर ने अपना नाम दीपक से शमशेर कर लिया.... शमा;शमशेर.... अजीत अतीत में खो गया!
बात कॉलेज के दिनों की थी... आज से करीब 13 साल पहले की; अजीत का भाई सुमित और 'दीपक' साथ साथ पढ़ते थे.. तब 'दीपक' ऐसा नही था. ना तो इतना तगड़ा और ना ही इतना शांत;निसचिंत वो एक लड़की के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ की क्या रात को नींद और क्या दिन को चैन... "शमा" यही नाम था उसका... शमशेर उसको पागलों की तरह से चाहता था... और शायद शमा भी... चाहती क्यूँ नही होगी.. एक आइ.पी.एस. ऑफीसर का बेटा था शमशेर; निहायत ही शरीफ और इंटेलिजेंट... शमा भी मॉडर्न परिवार की लड़की थी... कॉलेज में हर कोई उसका दीवाना था.. एक लड़के का तो 'दीपक' से काई बार झगड़ा भी हुआ था, शमा के लिए... और बात 'दीपक' के बाप तक पहुँच गयी थी... समाज में इज़्ज़त के झॅंड गाड़े हुए लोग रात को चाहे कितनी ही होली खेल ले; पर दिन में अपने कपड़ों को सॉफ ही रखना चाहते हैं... बेदाग!
दीपक के पिताजी ने दीपक को वॉर्निंग दे रखी थी... रोज़ रोज़ की बदनामी अगर यूँ ही होती रही तो उसको वो घर से निकाल देंगे!
पर प्यार का ज़हरीला बिच्छू जिसको डस लेता है वो समाज से बग़ावत कर लेता है... और बदले में मिलने वाली जलालत को अपनी मोहब्बत का इनाम...
शमशेर ने भी यही किया... उसके शमा से प्यार को देखकर उसके दोस्त उसको शेर कहने लगे; शमा का शेर! और वो दीपक से शमशेर हो गया; शमा का शमशेर!
उस्स पागल ने डॉक्युमेंट्स में भी अपना नाम बदल लिया... इश्स बात से खफा उसके पिता जी ने उसको धक्के दे दिए; 'अपने घर से' और तभी से वो अजीत के घर रहने लगा... उनके भाई की तरह!
कुच्छ दिनों बाद की बात है... शमशेर की क्लास के एक लड़के ने सबको अपनी बर्थडे पार्टी के लिए इन्वाइट किया, शमशेर को भी; अपने फार्म हाउस पर;
ये वही लड़का था जिसके साथ पहले झगड़ा हो चुका था, शमा के लिए.... शमशेर जाना नही चाहता था... पर शमा उसको ज़बरदस्ती ले गयी, अपने साथ; फार्महाउस पर....
वो ही वो कयामत की रात थी.. जिसने शमशेर को ऐसा बना दिया... बिल्कुल शांत... बिल्कुल निसचिंत!
दिनेश ने केक काटा और सबसे पहले शमा को खिलाया, फिर उसके होंटो को चूम लिया; शमा ने भी उसको अपनी बाहों में भर लिया और एक लुंबी फ्रेंच किस दी... ये किस दिनेश की केवल वेल विशेज़ नही थी; दोनों के चेहरों से वासना टपक पड़ी रही थी... शमशेर को एक पल तो जैसे यकीन नही हुआ... फिर खून का घूँट पीकर रह गया; आख़िर उस्स किस में शमा की मर्ज़ी शामिल थी.
हद तो जब हो गयी, जब कुच्छ देर बाद दिनेश उसको अपने कंधे पर उठा कर जाने लगा...शमा ने शमशेर को बाइ किया, मुस्कुराते हुए!
"दिनेश!" शमशेर की आँखों में खून उतार गया... सभी की आँखों में उतर जाता... बेवफ़ाई का ऐसा नंगा पारदर्शन देखकर.
दिनेश ने शमा को अपने कंधे से उतारा," क्या है बे! अभी तेरी 'बहन को चोदुन्गा साले! आजा देखना हो तो!"... शमा अब भी मुश्कुरा रही थी
शमशेर उसकी और भागा... पर दिनेश के दोस्तों ने मिलकर उसको पहले ही लपक लिया... नही तो एक खून और हो जाता... दिनेश का या शमा का... एक खून तो पहले ही हो चुका था... 'शमशेर' के अरमानों का..
"साले को अंदर ले आओ!" दिनेश दाहदा.... और वो उसको एक बेडरूम में ले गये... आलीशान बेडरूम में; और शमशेर को वहाँ घुटनों में लाठी देकर बाँध दिया... शमशेर ज़मीन पर पड़ा था... असहाय और लाचार!
शमा और दिनेश कमरे में आ गये. दिनेश ने इशारा किया और शमा अपने शरीर का एक एक कपड़ा उतार कर शमशेर की और फांकति गयी... आख़िर में अपनी पनटी भी.... शमशेर का चेहरा भीग गया था...उसके लचर आँसू फर्श पर बह रहे थे... उसने आँख खोल कर शमा को देखा... शमा दिनेश के अंग को मुँह में ले कर चूस रही थी... शमशेर की आँखे बंद हो गयी... उसके बाद कमरे में करीब 30 मिनिट तक शमा की आँहे गूँजती रही... सिसकियाँ गूँजती रही... जो शमशेर के कानो में पिघले हुए लावे की तरह जा रही थी! शमशेर लाख कोशिश करने के बाद भी अपने कान बंद नही कर पाया... उसको सब कुच्छ सुन-ना पड़ा; सब कुच्छ.
अंत में जब सिसकिया बंद हो गयी तब शमशेर ने आँखें खोली... दिनेश उसकी नंगी छतियो पर पड़ा था... शमा ने बोला," आइ लव यू दिनेश!" उसी लहजे में जिस लहजे में उसने हज़ारों बार बोला था... आइ लव यू दीपक.... आइ लव यू माइ शमशेर!
शमशेर ने कपड़े पहनकर बाहर जाती हुई शमा से पूचछा," तुमने..... ऐसा क्यूँ किया, शमा! "
"क्यूंकी तुम्हारे पास अब पैसा नही है... जान!" और वो मुश्कूराती हुई चली गयी...
दिनेश ने अपने दोस्तों को बुलाया," खोल दो साले को; अगर ज़रा भी गैरत होगी तो खुद ही मर जाएगा... बहन का....!"
उसके दोस्तों ने शमशेर को खोल दिया; पर शमशेर नही उठा... अब उठने को रहा ही क्या था!
उसके दोस्तों ने शमशेर को फार्म हाउस से बाहर फैंक कर अजीत के भाई को फोन कर
दिया. वो अपने दोस्तों के साथ आया और शमशेर को ले गया. कॉलेज में जिसको भी पता चला; वो खूब रोया, पर शमशेर के आँसू नही निकले... उसके सारे आँसू निकल चुके थे; शमा के सामने!
शमशेर के पिता को पता चला तो भागा हुआ आया, लंबी लंबी लाल्बत्ति वाली गाड़ियों में. और अपने वंश को ले गया...
उसके दो दिन बाद ही शमा और दिनेश मरे पाए गये! पोलीस ने अपनी केस डाइयरी में लिखा," वो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, पर समाज ने उनको मिलने ही नही दिया... इसीलिए दोनों ने सुसाइड कर लिया!
कहते हैं समय सब कुच्छ भुला देता है... शमशेर भी बदल गया... पर दो चीज़े उसने नही बदली... एक तो अपना नाम... और दूसरा उस्स रात के बाद वाला अपना नेचर;..... बिल्कुल शांत.... बिल्कुल निसचिंत...
वो प्यार से नफ़रत करने लगा... उसको तब के बाद लड़कियों से एक ही मतलब रहता था... सेक्स... सेक्स और सेक्स....
शमशेर ने अजीत को देखा... वो आँखे बंद किए रो रहा था.... बिना बोले.... लगातार...!
शमशेर ने अजीत के हाथ से कप ले लिया... चाय तो कब की ठंडी हो चुकी थी. वो कुच्छ ना बोला. उसके दोस्त जब भी उससे मिलते थे तो शमशेर के अतीत को याद करके ऐसे ही सुबक्ते थे... भीतर ही भीतर...
शमशेर उसके लिए पानी ले आया," लो, टफ! मुँह धो लो!... कुच्छ देर बाद सब नॉर्मल हो गया और वो फिर से मस्ती भारी बातें करने लगे
"शमशेर भाई! ये तो बता ये सरिता क्या बाला है?"
"कौन सरिता?", शमशेर को याद नही आया!
अरे वो मेरी 'प्यारी' गाड़ी में कह नही रही थी!" मुझसे तो सरिता भी जलती है."
"ओह अच्च्छा! सरिता! वो उसी की तो बेटी है...
"मस्त है क्या?"
"देखेगा, तो खुद ही समझ जाएगा!"
"भाई! वो भी दिख जाएगी क्या?"
"हां, हां; क्यूँ नही दिखेगी?"
"लगता है खानदान ही धंधे में है, भाई!"
तभी दिशा उपर आई," खाना लगाना है क्या.... सर". दिशा दरवाजे की साइड में खड़ी थी, शरमैई सी, और वाणी उसकी साइड में..... जासूस!
अजीत: एक बार अंदर आना!.... वो शमशेर के नये प्यार को अपनी आँखों से परखना चाहता था.....
दिशा अंदर आ गयी... नज़रें झुकाए.... और वाणी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था... वो इश्स नये मेहमान को घूर रही थी!
"अच्च्छा! एक बात तो बताओ; तुम्हारा फॅवुरेट टीचर कौन है....." अजीत ने कहा
दिशा निशब्द खड़ी रही... वो उसके सर थोड़े ही थे! पर वाणी ने एक भी सेकेंड नही गवाई, और बेड पर चढ़कर सर से लिपट गयी," शमशेर सर!"
अजीत ने उसकी और हाथ बढ़ाया," हाई! आइ एम अजीत आंड यू"
वाणी ने दोनों हाथ जोड़ दिए," नमस्ते! और हाथ नही मिलवँगी; दीदी कहती हैं, बाहर वाले लड़कों को ज़्यादा मुँह नही लगाते!"
ऐसा सुनते ही तीनों की ज़ोर से हँसी छुट गयी! वाणी को लगा कुच्छ ग़लत कह दिया, दीदी से पूच्छ लो; इन्होने ही बोला था!
दिशा शर्मकार नीचे भाग गयी... और वाणी उसके पीछे पीछे... ये पूच्छने के लिए की उसने क्या ग़लत कह दिया!
नीचे जाते ही दिशा ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी... वाणी ने पूचछा," क्या हुआ दीदी! बताओ ना!"
दिशा हंसते हुए बोली," कुच्छ नही तू भी कितनी उल्लू है, कोई किसी के सामने ऐसे ही थोड़े बोलता है!.... और फिर वे इनके दोस्त हैं!"
वाणी: सॉरी दीदी! मैं उपर सॉरी बोलकर आऊँ?
दिशा: नही रहने दे! ...... फिर कुच्छ सोच कर बोली," वाणी! एक बात पूच्छून तो बताएगी!
वाणी: पूच्छो दीदी!
दिशा: मान लो तेरी किसी के साथ शादी हो जाती है...
वाणी: मैं तो सर से ही शादी करूँगी दीदी....
दिशा सिहर गयी... वाणी के प्यार का रंग बदलता जा रहा था...
दिशा: वाणी!........... शमशेर से मैं प्यार करती हूँ;( वो भावुक हो गयी थी) मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... क्या तू मेरे और उसके बीच में आएगी? क्या तू कभी अपनी दीदी का दिल तोड़ सकती है...
वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया .... ," क्या ऐसा नही हो सकता की सर हम दोनों से शादी कर लें, दीदी! मेरी एक सहेली की दो मुम्मिया हैं"
दिशा ने उसके गालों को सहलाते हुए कहा," हम हिंदू हैं, वाणी! हमारे धरम में ऐसा नही होता....
"पर दीदी; हम कह देंगे हम तो मुसलमान बन गये!"
"ऐसे नही होता वाणी! और मान भी लो; ऐसा हो जाए तो क्या हम एक दूसरे को शमशेर और अपने बीच एक दूसरी को सहन कर लेंगे...."
"बीच में कहाँ दीदी; एक तरफ में और एक तरफ तुम..."
दिशा: तू तो है ना; बिल्कुल पागल है; एक बात बता, ये जो सर के दोस्त हैं..... कैसे लगते हैं तुझे..?
वाणी: बहुत सुंदर है दीदी... सर से भी सुंदर!
दिशा: तू उनसे शादी कर ले ना! में शमशेर से बात कर लूँगी!
अगले दिन सुबह सुभह जब दिशा शमशेर और अजीत के लिए चाय देने आई तो अजीत को वहाँ ना पाकर वो बहुत खुश हुई, क्यूंकी वो अकेली थी; वाणी सोई हुई थी... पुर 24 घंटे से शमशेर ने उसको च्छुआ नही था," आपके दोस्त कहाँ गये?"
शमशेर ने उसको देखते ही अपनी बाहों में उठा लिया... दिशा उससे लिपट गयी... उसके साथ के बिना दिशा को एक एक पल अधूरा सा लगता था...
जी भर कर उसके चेहरे को चूमने के बाद बोला," उसको भी ड्यूटी करनी है भाई! वैसे कोई काम था क्या? ... और वाणी नही आई उपर तेरे साथ!"
वाणी: आपका उसके बिना, और उसका आपके बिना दिल ही नही लगता. मैं तो बस ऐसे ही काँटा बनी हुई हूँ!...... वो सोई हुई है...
शमशेर: सोई हुई है... स्कूल नही जाना क्या?
दिशा: नही!
शमशेर: क्यूँ?
दिशा सकुचती हुई सी...," बस... ऐसे ही!"
शमशेर: ऐसे ही का क्या मतलब है? आज तो स्कूल में बेस्ट ड्रेस कॉंपिटेशन भी है ना!
दिशा: हां........ इसीलिए तो...
शमशेर: तो तुम्हारे बिना क्या वहाँ भूत अवॉर्ड लेंगे? चलो उसको उठा कर जल्दी तैयार होने को कहो!
दिशा, अपना सिर नीचा करके.... " वो.... हमारे पास ड्रेस नही है!" उसके चेहरे से कॉंपिटेशन में भाग ना ले सकने की मजबूरी सॉफ झलक रही थी...
शमशेर: तो ये बात है... मुझे क्यूँ नही बोला... मैं क्या कुच्छ लगता नही हूँ... तुम्हारा किरायेदार हूँ आख़िर!
दिशा ने अपने हाथ का मुक्का बना कर उसको दिखाया और उसकी छति पर सिर टीका दिया...
शमशेर: चलो, अकेलेपन का फयडा उठाओ; कपड़े निकल दो आज तो!
दिशा: अभी!.... मॅन तो उसका भी मचल रहा था!
शमशेर: हां अभी!
दिशा आँखें बंद करके बेड पर लेट गयी... खुले कमीज़ में भी उसकी छतियो का कसाव गजब ढा रहा था... शमशेर अंदर गया और एक डिब्बा उसके पेट पर रख दिया!
दिशा ने आँखें खोल दी," क्या है ये?"
शमशेर: चलो तैयार हो जाओ! स्कूल चलना है... वाइट जीन्स टॉप तुम्हारे लिए
है और वाणी के लिए वाइट स्कर्ट टॉप!
दिशा शमशेर से लिपट गयी... उसकी आँखों से निकले आँसू शमशेर को "आइ लव यू" बोल रहे थे; उसकी केअर करने के लिए.....
दिशा और वाणी जब नयी ड्रेस में स्कूल पहुँची तो मानो स्कूल का हर कोना उनकी तरफ खींचा आया था.. दोनों स्वर्ग से उतरी अप्सरायें लग रही थी.... लड़कियाँ उनको हैरत से देख रही थी, जैसे उनको पहचाना ही ना हो! इश्स तरह सबको अपनी और देखता पाकर दोनों फूली नही समा रही थी...
दिशा तो पहले ही लड़कों के लिए कयामत ही थी... आज तो लड़किययाँ भी जैसे उसको दिल दे बैठी हों! सफेद टाइट टॉप में उसकी छतिया इश्स कदर सपस्ट दिखाई दे रही थी... कि बाहर से गेस्ट आए बूढो तक की आँखें बाहर निकालने को हो गयी! चारों और से सीटियाँ ही सीटियाँ कॉंटेस्ट शुरू होने से पहले ही ये एलान कर रही
थी की आज का विन्नर कौन होगा. उसका टॉप उसकी कमर को पूरा नही ढक पा रहा था... उसकी नाभि के कटाव पर सभी "भूखे कुत्तों की भी ... और छके हुए "बूढ़े कुत्तों" की भी जीभ लपलपा रही थी.. वह जिधर भी जाती... सभी आँखें वही मूड जाती... दिशा से सब सहन नही हो रहा था... अपनी खुशी पर काबू पाना उसके वश में नही था... उसके पिच्छवाड़े की गोलाइयाँ इतनी गोल थी मानो उन्हे किसी किसी ड्रॉयिंग एक्विपमेंट की सहायता से निशान लगाकर तराशा गया हो... सब कुच्छ सही सही..... शी वाज़ जस्ट ए पर्फेक्ट लेडी ऑन अर्थ; आइ बिलीव!
उधर वाणी भी कम कहर नही ढा रही थी... सब कुच्छ दिशा जैसा ही, नपा तुला! पर दिशा के मुक़ाबले उतनी 'जवान' नही होने की वजह से वो आँखों को अपने से लपेट नही पा रही थी... फिर भी वो बहुत खुश थी... उसके सर जो उसको देख रहे थे...! और उस्स नादान दीवानी को क्या चाहिए था...
कॉंपिटेशन शुरू हो गया... बहुत सी लड़कियाँ तो दिशा और वाणी को देखकर स्टेज पर ही नही चढ़ि... और जो चढ़ि वो भी दर्शकों की हँसी का पात्रा बनकर रह गयी.
अंत में दो ही नाम मैदान में रहे.......बताने की ज़रूरत नही है.
मिस्टर जज मंच पर चढ़े और उन्होने बोलना शुरू किया... दोनों की ख़्ूबसूरती का नशा उस्स पर से अभी उतरा नही था...
" प्यारे बच्चो; टीचर्स और इश्स कॉंपिटेशन की शोभा बढ़ने आए मेहमानो," कहते हैं की सुंदरता मॅन की होती है; तंन की नही, पर आज के.. ...... वग़ैरा वग़ैरा......!
अंत में मैं इश्स नतीजे पर पहुँचा हूँ कि 2 बच्चियों को किसी भी तरह से तंन और उनके द्वारा पहनी गयी ख़्ूबसूरत ड्रेसस के आधार पर कहीं से भी एक दूसरी से कम या ज़्यादा नही ठहराया जा सकता... और जब ये दोनों चीज़े बराबर हैं तो हमें चाहिए हम उनके मॅन की सुंदरता से उन्हे तोले! अब क्यूंकी मैं इनको जानता नही हूँ इसीलिए दिशा और वाणी में से विजेता चुन-ने के लिए में प्रिन्सिपल को मंच पर इन्वाइट करना चाहूँगा...
प्रिन्सिपल तो छुट्टी पर थी; स्टाफ वालों ने टीचर इन चार्ज शमशेर को मंच पर धकेल ही दिया... हां धकेलना ही कहेंगे क्यूंकी एक भंवरे को अपने दो फूलों में से एक को छाती में लगाना था और दूसरे को पैरों पर गिराना था.....
कैसी घड़ी आ गयी... इससे अच्च्छा तो वो ड्रेसस का सर्प्राइज़ ना ही देने की सोचता तो अच्च्छा था... शमशेर बहके कदमों से स्टेज पर चढ़ा.......
शमशेर ने स्टेज पर चढ़कर दोनों परियों को देखा... दोनों इतरा रही थी... अपने आप पर... उसी के कारण... ना वो ड्रेस लेकर आता ना ही वो स्कूल आती! ये सब उसका खुद का किया धरा है.... दोनो को ही अपनी अपनी जीत का विश्वास था... दोनों को यकीन था की शमशेर सिर्फ़ उसी से प्यार करता है.... दोनो ही बस भागने को तैयार बैठी थी... अपना नाम बोलते ही भाग कर स्टेज पर जाने के लिए... जब सीटियों का शोर तेज हो गया तो शमशेर को होश आया..... उससे और कुच्छ ना बोला गया..... उसने 'वाणी!' कहा और स्टेज से उतर गया.... वाणी भागती हुई आई और सर से लिपट गयी... उसकी आँखों में चमक थी, जीत की; अपनी दीदी से जीत की... पर शमशेर
का ध्यान दिशा पर गया... वो क्लास की और जा रही थी... आँसू पूछ्ते हुए!
इनाम लेकर वाणी किसी गुड़िया की तरह उच्छल रही थी... सबको दिखा रही थी... शमशेर सीधा ऑफीस में चला गया... उसने मॅन देखा था... तंन नही!
वाणी भागती हुई ऑफीस में आई और अपना इनाम सर को दे दिया," लो सर!"
शमशेर ने वाणी से कहा," तुम्हारा इनाम है, तुम्ही रखो!"
वाणी ने शमशेर को उसी की बात याद दिला दी," नही सर, मेरा नही है..... अपना है!"
शमशेर का गला रुंध गया... वो कुच्छ भी ना बोल पाया!
"एक बात कहूँ सर जी!"
"हुम्म..."
"आप मुझसे ही शादी करोगे ना....."
होली का दिन था... चारों और गुलाल ही गुलाल .... सिर्फ़ दिशा और वाणी के रंग उड़े हुए थे... दिशा के तो जैसे हाथ पैर ही काम नही कर रहे थे.... वह अब भी शमशेर को माफ़ करने को तैयार थी... पर कम से कम शमशेर उससे बात तो करे... आइन्दा ऐसा ना करने का वादा तो करे... पर शमशेर ने तो उससे बात तक करनी छ्चोड़ दी... उस्स दिन के बाद! ये बात दिशा और वाणी को और परेशान कर रही थी.
"अरे क्या हो गया तुझे बेटी? त्योहार के दिन कैसी शकल बना रखी है... चल उठ नहा धो ले!" मामी ने कहा!
दिशा ऐसे ही पड़ी रही... हिली तक नही...
मामी: वाणी! क्या है ये ... देख मैं तेरे सर को बता दूँगी
दिशा सुनते ही बिलख पड़ी," बता दो जिसको बताना है मामी... मुझसे नही. चला जाता.. ना मुझे अब पढ़ना है... और ना ही कुच्छ करना है!"
मामी: अच्च्छा! वाणी जा बुलाकर तो ला तेरे सर को!
वाणी नही उठी...
मामी: ठहर जा! तुम दोनों शैतान हो गयी हो! मैं बुलाकर लाती हूँ"
मामा: रुक जा; मैं ही लाता हूँ बुलाकर; मुझे सरपंच की लड़की के बारे में उससे बात भी करनी है!
दिशा के कान खड़े हो गये," क्या बात करनी है... मामा?"
मामा: अरे वो सरपंच आया था मेरे पास... कह रहा था... उसकी लड़की सरिता का रिश्ता ले लें तो तुम्हारे सर... बहुत बड़े ओफीसर के बेटे हैं... कह रहे तहे.. घर भर देंगे इनका...
दिशा विचलित सी हो गयी," कहीं शमशेर सरिता से तो प्यार नही करता..."
रूको! मैं बुलाकर लाती हूँ! दिशा उपर भाग गयी... पीच्चे पीच्चे वाणी!
दिशा ने तरारे के साथ दरवाजा खोला," तुम... तुम जब सरिता से प्यार करते हो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया... बोलो... बोलो... तुम्हे बोलना पड़ेगा!
शमशेर कुच्छ ना बोला... दिशा तड़प उठी," सरिता का रिश्ता आया है तुम्हारे लिए... कर लेना शादी... घर भर देंगे तुम्हारा... जाओ कर लो शादी..." वो रोने लगी...
वाणी: सर, आपको मामा बुला रहे हैं
शमशेर ने दिशा और वाणी का हाथ पकड़ा और नीचे चला गया.... दिशा ने हाथ च्छुदाने की कोशिश करी पर ना च्छुटा सकी...!
नीचे जाकर उसने मामा से पूचछा," क्या बात है मामा जी?
मामा: अरे वो सरपंच आया था.....
..........दहेज बहुत ज़्यादा देंगे.. अच्च्छा रिश्ता है बेटा ... आगे तुम जो कहोगे मैं बता दूँगा....
शमशेर: मैं..... दिशा से शादी करूँगा मामा जी... आप चाहे या ना चाहे ... दिशा से...
मामा ने दिशा की और देखा; उसके चेहरे के रंग वापस आ गये थे... वो एकटक प्यार से शमशेर को देखे जा रही थी...
मामा: हमारी दिशा के तो भाग खुल जाएँगे बेटा...
दिशा शर्मकार अंदर भाग गयी ... और वाणी भी; शर्मकार नही... अपनी दीदी के चेहरे की खुशी मापने...
शमशेर के चेहरे पर जहाँ भर की रौनक़ आ गयी... उसका वनवास पूरा हुआ..!
उस्स दिन सबने जमकर होली खेली...
कुच्छ दिन बाद शमसेर ने अपना ट्रान्स्फर बॉय'ज स्कूल में करा लिया... और अपनी जगह एक और आशिक़ को वहाँ भेज दिया... उससे भी ज़्यादा ठरकी....
दिशा शमशेर के साथ शहर चली गयी.... पढ़ने भी और खेलने भी... अपने शमशेर के साथ...
वाणी को भी वो साथ ही ले गये... खिलाने नही... पढ़ाने...
वाणी समझ चुकी थी... इश्को खेल नही इश्क़ कहते हैं और ये इश्क़ आसान नही होता. ... और ये भी की अच्च्चे ख़ान दानो में ये.... एक के साथ ही होता है.......
शमशेर कभी समझ ही नही पाया की इतने पाप करने के बाद भी भगवान ने ये हीरा उसको कईसे दे दिया...... शायद उसके एक बार किए हुए सच्चे प्यार के लिए...
शमशेर की लाइफ में फिर से प्यार आ गया .. और उसने सेक्स सेक्स और सेक्स की थेओरी छ्चोड़ दी...
टफ अब भी गाँव में आता है... पता नही उसको कौन सुधारेगी!
नये मास्टर जी के किससे अगले पार्ट से..
शमशेर: यस, कम इन!
नेहा आकर शमशेर के साथ खड़ी हो गयी; शमशेर को जब भी मौका मिलता था, नेहा के पिच्छवाड़े पर हाथ सॉफ कर देता... और उसको फिर अपनी प्यास बुझाने बाथरूम जाना पड़ता... आज नेहा फ़ैसला कर के आई थी; आर या पार," सर, आप ऐसे मत किया करें!
शमशेर: कैसे ना किया करूँ?
नेहा: वो सर... वो आप ... यूँ... यहाँ हाथ लगा देते हो; नेहा ने अपनी गांद की तरफ इशारा करके कहा; वो हज़ारो में एक थी... अभी तक कुँवारी!
शमशेर: ठीक है; सॉरी, आइन्दा नही करूँगा!
नेहा: नही सिर, मैं आपको ऐसा नही कह रही.
शमशेर मुस्कुराया," तो कैसा कह रही हो नेहा?" उसने नेहा के एक चूतड़ को अपने हाथ से मसल दिया!
"आ...सर!"
शमशेर: क्या?... शमशेर ने फिर वैसी ही हरकत की; बल्कि इश्स बार तो उसने अपनी उंगली उसकी चूत के 'बॉर्डर' तक पहुँचा दी...
नेहा: प्लीज़ सर, मैं बेकाबू हो जाती हूँ, मेरा ध्यान हमेशा आप पर ही रहता है... कुच्छ करिए ना... इसका इलाज!... उसके पैर खुल गये थे.. और ज़्यादा मज़ा लेने को.
शमशेर को जल्दी निकलना था," ओके. कल छुट्टी के बाद यहीं मिलना... कर देता हूँ इसका इलाज.." शमशेर बाहर चला गया और नेहा अंदर.... बाथरूम में!"
ऑफीस से गाँव वापस आते हुए शमशेर के साथ कोई और भी था... उसका दोस्त... मुझे नाम तो पता नही पर शमशेर उसको 'टफ' कह रहा था... टफ007...
"तो मुझे कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?" मिस्टर. टफ ने कहा. नाम के मुताबिक ही वा सच में सख़्त था... बिल्कुल टफ! शमशेर जितना लंबा... शमशेर जितना हेल्ती और शमशेर से सुदर... उसकी उमर करीब 25 की थी.
शमशेर: जीतने दिन चाहो! तेरा ही घर है पगले!
टफ: यार; तू भी ना, ऐसे टाइम पर खींच लेता है, अपने साथ... आज कल कितना बोझ है ड्यूटी का. वो क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्तेर था," और सुना तेरी सेक्स लाइफ कैसी चल रही है... सुधरेगा या नही...
शमशेर ने कहा," नही!" और दोनों ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे! तभी अचानक शमशेर ने ब्रेक लगा दिए," देख तुझे एक मस्त मेडम से मिलता हूँ"
शीशा खोल कर शमशेर ने आवाज़ दी," अरे मेडम यहाँ कैसे?" प्यारी मेडम खड़ी थी! शमशेर ने उसको लिफ्ट के लिए ऑफर किया. प्यारी आकर गाड़ी में बैठ गयी," अरे भैया! सब तुम्हारी ही मेहरबानी है! दिशा को इतनी सी सज़ा देने पर तुमने मुझे इतनी बड़ी सज़ा दिलवा दी! अब यहाँ आती हूँ रोज 20 किलो मीटर" अब तुम्हारे जैसे दयावान रोज तो नही मिलते ना... और ये तेरा भाई है क्या?
शमशेर: भाई जैसा ही है मेडम! क्यूँ?
प्यारी: शादी हो गयी इसकी या तेरी तरह खुद पका खा रहा है....
शमशेर: कहाँ मेडम; हम शादी के लायक कहाँ हैं... शमशेर की टोन सेक्सी थी... प्यारी ताड़ गयी... और उसने किया ही क्या था आज तक!
प्यारी: भैया तुम भरी जवानी में ऐसे कैसे रहते हो... प्यारी ने अपनी ब्रा को ठीक किया...
शमशेर: तैयार हो जाओ टफ भाई... इसके पाप तो तुझे ही धोने पड़ेंगे!
प्यारी: क्या मतलब?
शमशेर: कुच्छ नही; पर्सनल बात है कुच्छ...
प्यारी: अरे सही तो कह रही हूँ भैया; इंसान की और भी ज़रूरतें होती हैं... रोटी, कपड़ा; मकान के अलावा... जवान मर्द हो, लड़कियाँ कितनी दीवानी रहती होंगी ना तुम जैसों की तो!
टफ ने इशारा किया. शमशेर ने गाड़ी रोक दी. टफ उतार कर पीछे जा बैठा," सही कह रही हैं आंटी जी!" उसने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया!
प्यारी: अरे! तेरे को तो बोलने की ही तमीज़ ना है.. मैं क्या.... आंटी दिखाई देती हूँ तेरे को; ज़रा एक बार उपर से नीचे तो देख.
टफ: हाए.......और क्या बोलूं........ आंटी
प्यारी: फिर से...! अरे मेरे आगे तो कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती हैं.... सरिता भी मुझसे जलती है!... वैसे नाम क्या है तेरा... मैं तो तुझे नाम से ही बोलूँगी!.... तू चाहे तो मुझे 'प्यारी कह सकता है... मेरा नाम है प्यारी...
टफ: मुझे 'प्यारा' कहते हैं प्यारी... और उसने प्यारी की जांघों पर रखे अपने हाथ को अंदर की तरफ घुसा दिया.... प्यारी ने उसका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया....," धात ये भी कोई जवानी दिखाने की जगह है.... कभी हवेली पर आना.. दिखती हूँ मैं... क्या चीज़ हूँ!
टफ उसका सिग्नल मिलते ही उसकी 40" की कसी हुई चूचियों को दोनों हाथों में जैसे लपक लिया," ट्रेलर तो देख ही सकता हूँ प्यरी !"
इतने मजबूत हाथो में खुद को जकड़ा पाकर प्यारी धन्य हो गयी... उसने अपना सूट उपर उठा दिया... और ब्रा नीचे सरका दी, उसकी चूचियाँ सच में ही कुँवारियों को भी पानी पीला सकती थी! छ्होटे पपीते के आकर की प्यारी की छातिया और उन्न पर तने हुए उसके अंगूर जैसे निप्पल्स ने टफ को सिसकारी भरने पर मजबूर कर दिया!
गाड़ी चलती रही... हौले हौले!
टफ उसकी छतियो पर नहा धोकर टूट पड़ा... दोनों हाथो से वो प्यारी पर प्यार लूटा रहा था... मजबूती से... प्यारी को भी ऐसे ही मर्दों को अपनी सवारी करना पसंद था," तू अपना तो ट्रेलर दिखा दे रे प्यारे!" कहकर उसने टफ की पॅंट के उपर से ही उसके मोटे, लूंबे, अब तक टाइट हो चुके उसके लॅंड को पकड़ लिया; मजबूती से, मानो एलान कर दिया हो "अब गियर वही बदलेगी.... वही चलाएगी अब प्यार की गाड़ी!"
प्यारी ने जीप खोली और टफ के 'टफ' लंड को चेक करने लगी," अरे तुम शहर वोलोन का लौदा तो बड़ा प्यारा होता है... सॉफ सुत्हरा... गाँव में तो साले लंड के साथ अपने बॉल भी बॅट देते हैं... और उसने बिना बालों वाला 'लाउडा' अपने गले तक उतार दिया... और उस्स पर इतनी शख़्ती से दाँत गाड़ा दिए.. की टफ को लगा... वो काट कर गिर पड़ेगा... उसने प्यारी को एक ही झटके में अपने से दूर फाँक दिया," साली कुतिया... अपने साथ ही ले जाएगी क्या इसको.." और अपने हाथ ही जैसे सलवार के उपर से ही उसकी चूत में घुसा दिया!
"ऊईइ मार दी रे... तरीका भी नही पता क्या साले रंडवे! रुक जा, पहले अपना लौदा खिला दे फिर इसको चाहे काट कर अपने साथ ले जाना.
टफ ने उसका सिर पकड़ा और नीचे झुककर अपने लंड को उसके मुँह में भर दिया... गले तक... जैसे बोतल के मुँह पर कॉर्क फिट कर दिया हो!
प्यारी अंदर ही अंदर छ्टपटाने लगी.. टफ की इश्स अनोखे बदले से छुटकारा पाना प्यारी के वश की बात ना थी... वो इधर उधर बदहवासी में हाथ मारने लगी!
"आबे जान लेगा क्या इसकी, टफ ने आगे देखते देखते कहा...," छ्चोड़ दे इसको, मर जाएगी."
"मर जाएगी तो मर जाएगी साली.... लावारिस दिखा के फूँक देंगे साली को... और उसने प्यारी देवी को छ्चोड़ दिया... अब उसकी हिम्मत भी ना हो रही थी उसके लौदे की और देखने की... उसने अपनी सलवार का नाडा खोला और पैर 'प्यारे के आगे खोल दिए!
"मस्त माल है भाई... अभी तक गॅरेंटी में ही था लगता है... तू गाड़ी वापस ले ले! इसको आज ही एक्सपाइर कर दूँगा!
शमशेर ने गाड़ी सीधी स्कूल में ले जाकर घुसा दी और उन्न दोनों को "उसी प्यार की प्रयोगशाला" में क़ैद करते हुए बोला..." टफ, आराम से करना... जान से मत मार देना.... मैं 1 घंटे में आउन्गा" कहकर वह लॅब का ताला लगाकर चला गया!
अंदर आते ही टफ ख़ूँख़ार भेड़िए की तरह प्यार करने को आतुर प्यारी देवी पर टूट रहा था. वा ये गाना गुनगुना रहा था... हम तूमम्म इक कमरे में बंद हूऊओ, और.....!
"ठ्हहर तो जा निकम्मे; कभी लड़की देखी नही क्या?"
"देखी हैं... पर तेरे जैसी जालिम नही देखी"... टफ को पता था... औरत और लड़की की सबसे बड़ी कमज़ोरी.. अपनी प्रशंसा सुन-ना होती है.
प्यारी ने झट से अपने कपड़े उतार दिए... उसका भरा भरा शरीर, 40" तनी लगभग तनी हुई चुचियाँ, मोटी मोटी जांघें, जाँघो के बीच डुबकी बॉल सॉफ की हुई... मोटी मोटी फांको वाली चूत, करीब 46" की डबल गांद और उसके बीचों बीच कसे हुए चूतदों की वजह से बनी गहरी घाटी को देख टफ अपना आपा खो बैठा... उसमें शमशेर जितना कंट्रोल नही था... उसने झट से प्यारी की एक टाँग उठा कर टेबल के उपर रख दी. प्यारी की गांद फटने को हो गयी... उसकी चूत गांद के बीच में से झहहांक रही थी... टफ की और...
टफ ने घुटनों के बल बैठ कर उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी... अंदर तक...
अपनी मोटी जांघों की वजह से प्यारी को ये आसान पसंद नही आ रहा था.. उसने उतने की कोशिश करी पर टफ ने उसको मैंने की तरह दबोच रखा था... एक मोटा मैमना!
"जान से मरेगा क्या? तेरी... कुत्ते ... आ.. एक बार छ्चोड़ दे... सीधी... आ.. होकर लेट लेने दे जालिम.... अपनी चूत में रेसीली जीभ को घुसा पाकर वा आपा खोती जा रही थी... पर टाँगों का दर्द उसको परेशान कर रहा था... लेकिन टफ उसके साथ किसी तरह की रियायत के मूड में नही था... उसने जीभ अंदर तो घुसा ही रखी थी... अपनी उंगली उसकी गांद के काले हो चुके च्छेद में घुसा दी...
"हाइयी मा.. सारा मज़ा खुद ही लेगा क्या... मुझे भी तो लेने दे... प्यारी का भी तो ख़याल रख... सीधा होने दे साले... " प्यारी देवी जवान खून के आगे अपने घुटने टेक दिए... वो अब उठने की कोशिश नही कर रही थी.. हाँफ रही थी.. और विनती करके अपने लिए थोड़ी दया की भीख माँग रही थी... उसका सिर टेबल से लगा हुआ था और उसकी चुचियाँ टेबल में जैसे घुसी हुई थी... उसको तने हुए अपने निप्पालों के टेबल से रग़ाद खाने की वजह दर्द हो रहा था.
टफ अपनी उंगली इतनी तेज़ी से उसकी गांद में पेल रहा था की लगता था जैसे प्यारी के च्छेद में मोटर से चलने वाली कोई रोड अंदर बाहर हो रही हो... उसको अब बोलने का भी अवसर नही मिल रहा था... आख़िरकार, उसकी चूत "रोने" लगी... वो गाढ़े गाढ़े आँसू टपकाने लगी... टफ इश्स रस का सौकीन था... उसने रस ज़मीन पर नही टपकने दिया...
उसके बाद प्यारी को थोड़ी देर के लिए राहत मिली," मार ही दिया था तूने तो... क्या नाम है तेरा! टफ को उसकी सुननी नही थी.. अपनी करनी थी! प्यारी को पलट कर टेबल पर पीठ के बल लिटा दिया और उसकी सलवार उठा ली.
सलवार का एक कोना अपनी उंगली से लपेट कर उसने प्यारी की टाँगो को ऊपर उठा कर फिर से उनको चौड़ा कर दिया...और कपड़े से ढाकी उंगली को उसकी गांद में घुसेड दिया!
" ये क्या कर रहा है तू? पागल है क्या... मैं कहाँ फँस गयी रे अम्मा!"
टफ उसकी चूत को अंदर से सॉफ कर रहा था.. बिल्कुल सूखी! उसको दर्द देकर मज़ा लेने में ही आनद आता था... और प्यारी की गीली चूत में दर्द कहाँ होता.
टफ ने टाइम वेस्ट नही किया.. अपनी उंगली निकाल दी और अपने लंड को आज़ाद करके उसकी मुँह बाए पड़ी चूत में धकेल दिया.... चूत बिल्कुल सूखी होने की वजह से जैसे प्यारी की प्यासी की दीवारें छिल गयी.. वो कराह उठी.. फिर से छ्टपटाने लगी.. पर आज़ाद ना हो पाई...
टफ में कमाल की तेज़ी सी... लंड इतनी तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था की जैसे प्यारी में भूकंप आया हो... शमशेर ने देखा उसकी मोटी चूचियाँ बुरी तरह हिल रही हैं... प्यारी देवी कुतिया की तरह भोंके जा रही थी, पर टफ को उस्स वक़्त कुच्छ नही सुन रहा था.. वो टेबल पर ही चढ़ बैठा.. प्यारी को और आगे धकेल कर... अब प्यारी देवी के खुल चुके बॉल और उसकी गर्दन दोनों ही नीचे लटक रहे थे.
टफ ने उसकी टाँगो के दोनो और से अपने हाथ निकाल कर उसकी चूचियों को मजबूती से बुरी तरह जाकड़ लिया.. और फिर वैसे ही झटके शुरू कर दिए.. अब उसकी चूचियाँ हिल नही रही थी.. पर टफ की जाकरने में वो और भी व्याकुल हो उठी. बकती बकती प्यारी की चूत को उस्स वक़्त ही आराम मिल पाया जब उसकी चूत फिर से गीली हो गयी... पर अब जैसे ही टफ का लंड उसकी चूत में फिसलने सा लगा... टफ का मज़ा कूम हो गया....करीब 20 मिनिट बाद..!
पर उसको मज़ा लेना आता था... दर्द देकर.. उसने तुरंत उसकी चूत में से लंड निकाल लिया...
"कर ना साले... अभी तक तो तू मेरी मा चोद रहा था... और अब मज़ा आने लगा तो तूने निकाल दिया... फाड़ दे साले मेरी चू...
"ये तो पहले ही फटी पड़ी है... इसको ये 8" और क्या फड़ेगा! इसके लिए तो मुझे कोई मूसल लाना पड़ेगा.... ळाउ क्या?"
"नही रे! मर जाउन्गि... बस तू मुझे अब छ्चोड़ दे जाने दे!"
ऐसे कैसे जाने देता... टफ ने उसको पकड़ कर फिर से उसी पोज़िशन में ला दिया जिस पोज़िशन में वो पहले थी... उसकी गांद फट गयी!
टफ ने उसकी गांद को घूरा और अपने लंड के लिए सही लगा तो उसमें उतारने लगा... प्यारी रोने लगी.. सूबक सूबक कर.. और 5-6 झटकों में टफ ने उसकी अंतडियों को हिला कर रख दिया... लंड दूर गांद में उतार गया था... प्यारी को होश नही था," प्लीज़ एक बार थूक लगा लो.... और इश्स बार टफ ने उसकी मान ली... टफ उसकी गांद को चौड़ा करके दूर से ही इश्स तरह थूकने लगा जैसे वा गांद नही कोई डस्टबिन हो... 4-5 कोशिशों के बाद निशाना लग गया... और थूक उसकी गांद ने पी लिया!
अब फिर वही कहानी शुरू... पर प्यारी को अब आराम था... वा 35 मिनिट में पहली बार खुश दिखाई दी... उसकी बकबक बढ़ने लगी, दर्द के मारे नही अब की बार; उत्तेजना के मारे, टफ की स्पीड अब भी वही थी जो उसकी चूत में थी..
प्यारी निहाल हो गयी.. टफ ने गांद से निकल कर चिकना लंड उसकी चूत में काम पर लगा दिया... प्यारी सिसकारने लगी और तभी उसकी चूत ने फिर पानी छ्चोड़ दिया.. वो सीधी होकर इश्स जाबाज को अपने गले से लगा लेना चाहती थी... पर टफ ने उसकी आख़िरी इच्च्छा भी पूरी ना की... उसके पलटते ही उसको बालों से पकड़कर नीचे बैठाया और... लगभग ज़बरदस्ती करते हुए.. उसका मुँह खुलवाया और लंड की सारी मेहनत का फल उसको पीला दिया... टफ ने उसको तब तक नही छ्चोड़ा.. जब तक उसके गले में से रस गेटॅक्न का आभास होता रहा
प्यारी देवी उसको टुकूर टुकूर देख रही थी... टफ ने अपना लंड बाहर निकाला और कपड़े पह्न-ने शुरू कर दिए! उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी... प्यारी को दर्द देने की!
"गभ्रू! आपना नाम तो बता दे!" प्यारी भी कपड़े पहन रही थी...
"टफ मुश्कुराया और बोला," मुझे अजीत कहते हैं.... आंटी जी!"
प्यारी सोच रही थी...," सला चोद चाड कर आंटी जी कह रहा है...!"
अजीत ने शमशेर के पास फोने किया और बोला आ जाओ भाई!
शमशेर और अजीत प्यारी को वापस गाँव के बाहर छ्चोड़ आए और घर चले गये!.....
"टफ,कैसी रही प्यारी?",शमशेर ने आते हुए पूचछा.
"साली बहुत कड़वी थी?" अजीत और शमशेर ज़ोर से हँसे!, अजीत ने म्यूज़िक ओन कर दिया.
घर जाकर वो सीधे उपर चले गये... दिशा और वाणी नीचे खिड़की में बैठी शमशेर का ही इंतज़ार कर रही थी... पर जब उन्होने किसी और को भी देखा तो वो बाहर ना निकली और दिशा उनके लिए चाय बनाने लगी.
चाय बना कर दिशा उपर देने गयी... वाणी भी साथ गयी... दिशा की जासूस! अब वो एक पल के लिए भी दिशा को शमशेर के पास अकेले नही छ्चोड़ना चाहती थी.
अजीत ने जब दुनिया की तमाम सुंदरता, मासूमियत और कशिश से भारी उन्न जवान लड़कियों को देखा तो बस देखता ही रह गया. जब वो चाय देकर चली गयी तो अजीत शमशेर से बोला," भईई! तू तो जन्नत में आ गया है... मैं भी कहूँ, तू कभी फोन ही नही करता... तेरे तो घर में दीवाली है दीवाली..."
शमशेर: प्लीज़ यार, इनके बारे में ऐसा कुच्छ मत बोल!
अजीत: क्यूँ, तूने बहन बनानी शुरू कर दी क्या 'भाई!'?
शमशेर ने एक धौल अजीत की पीठ पर जमाया और उसकी आँखों की नमी देखकर अजीत सब समझ गया," कौनसी है उस्ताद... तेरे वाली?"
शमशेर ने चाय का कप अजीत को दिया," बड़ी! वो मुझसे बहुत प्यार करती है!"
अजीत: और तू?... उसने गौर से शमशेर की आँखों में देखा...
शमशेर: पता नही! चाय पी ले ठडी हो जाएगी!
अजीत: और छ्होटे वाली, उसको भी कुच्छ ना बोलूं; वो भी तो कयामत है...
शमशेर: छ्चोड़ ना यार, कितनी छ्होटी है!
अजीत: छ्होटी है!..... चल भाई तू कहता है तो छ्होटी ही होगी... पर मेरी समझ में नही आता वो छ्होटी है कहाँ से!...... अजीत के सामने उस्स बाला की सुंदर युवती का चेहरा घूम गया!
शमशेर: यार तू तो बस बॉल की खाल निकाल लेता है... तू उसकी बातें सुन के देखना! चल इश्स टॉपिक को छ्चोड़.... तुझे दिशा कैसी लगी?
अजीत: दिशा? ये दिशा कौन है... तूने प्यारी का नाम प्यार से दिशा तो नही.....
शमशेर: बड़े वाली... ये जो अभी आई थी... वाणी के साथ!
अजीत गंभीर होकर शमशेर की और देखने लगा, दिशा का नाम आते ही उसको शमा याद आ गयी, शमशेर की शमा... जिसके लिए शमशेर ने अपना नाम दीपक से शमशेर कर लिया.... शमा;शमशेर.... अजीत अतीत में खो गया!
बात कॉलेज के दिनों की थी... आज से करीब 13 साल पहले की; अजीत का भाई सुमित और 'दीपक' साथ साथ पढ़ते थे.. तब 'दीपक' ऐसा नही था. ना तो इतना तगड़ा और ना ही इतना शांत;निसचिंत वो एक लड़की के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ की क्या रात को नींद और क्या दिन को चैन... "शमा" यही नाम था उसका... शमशेर उसको पागलों की तरह से चाहता था... और शायद शमा भी... चाहती क्यूँ नही होगी.. एक आइ.पी.एस. ऑफीसर का बेटा था शमशेर; निहायत ही शरीफ और इंटेलिजेंट... शमा भी मॉडर्न परिवार की लड़की थी... कॉलेज में हर कोई उसका दीवाना था.. एक लड़के का तो 'दीपक' से काई बार झगड़ा भी हुआ था, शमा के लिए... और बात 'दीपक' के बाप तक पहुँच गयी थी... समाज में इज़्ज़त के झॅंड गाड़े हुए लोग रात को चाहे कितनी ही होली खेल ले; पर दिन में अपने कपड़ों को सॉफ ही रखना चाहते हैं... बेदाग!
दीपक के पिताजी ने दीपक को वॉर्निंग दे रखी थी... रोज़ रोज़ की बदनामी अगर यूँ ही होती रही तो उसको वो घर से निकाल देंगे!
पर प्यार का ज़हरीला बिच्छू जिसको डस लेता है वो समाज से बग़ावत कर लेता है... और बदले में मिलने वाली जलालत को अपनी मोहब्बत का इनाम...
शमशेर ने भी यही किया... उसके शमा से प्यार को देखकर उसके दोस्त उसको शेर कहने लगे; शमा का शेर! और वो दीपक से शमशेर हो गया; शमा का शमशेर!
उस्स पागल ने डॉक्युमेंट्स में भी अपना नाम बदल लिया... इश्स बात से खफा उसके पिता जी ने उसको धक्के दे दिए; 'अपने घर से' और तभी से वो अजीत के घर रहने लगा... उनके भाई की तरह!
कुच्छ दिनों बाद की बात है... शमशेर की क्लास के एक लड़के ने सबको अपनी बर्थडे पार्टी के लिए इन्वाइट किया, शमशेर को भी; अपने फार्म हाउस पर;
ये वही लड़का था जिसके साथ पहले झगड़ा हो चुका था, शमा के लिए.... शमशेर जाना नही चाहता था... पर शमा उसको ज़बरदस्ती ले गयी, अपने साथ; फार्महाउस पर....
वो ही वो कयामत की रात थी.. जिसने शमशेर को ऐसा बना दिया... बिल्कुल शांत... बिल्कुल निसचिंत!
दिनेश ने केक काटा और सबसे पहले शमा को खिलाया, फिर उसके होंटो को चूम लिया; शमा ने भी उसको अपनी बाहों में भर लिया और एक लुंबी फ्रेंच किस दी... ये किस दिनेश की केवल वेल विशेज़ नही थी; दोनों के चेहरों से वासना टपक पड़ी रही थी... शमशेर को एक पल तो जैसे यकीन नही हुआ... फिर खून का घूँट पीकर रह गया; आख़िर उस्स किस में शमा की मर्ज़ी शामिल थी.
हद तो जब हो गयी, जब कुच्छ देर बाद दिनेश उसको अपने कंधे पर उठा कर जाने लगा...शमा ने शमशेर को बाइ किया, मुस्कुराते हुए!
"दिनेश!" शमशेर की आँखों में खून उतार गया... सभी की आँखों में उतर जाता... बेवफ़ाई का ऐसा नंगा पारदर्शन देखकर.
दिनेश ने शमा को अपने कंधे से उतारा," क्या है बे! अभी तेरी 'बहन को चोदुन्गा साले! आजा देखना हो तो!"... शमा अब भी मुश्कुरा रही थी
शमशेर उसकी और भागा... पर दिनेश के दोस्तों ने मिलकर उसको पहले ही लपक लिया... नही तो एक खून और हो जाता... दिनेश का या शमा का... एक खून तो पहले ही हो चुका था... 'शमशेर' के अरमानों का..
"साले को अंदर ले आओ!" दिनेश दाहदा.... और वो उसको एक बेडरूम में ले गये... आलीशान बेडरूम में; और शमशेर को वहाँ घुटनों में लाठी देकर बाँध दिया... शमशेर ज़मीन पर पड़ा था... असहाय और लाचार!
शमा और दिनेश कमरे में आ गये. दिनेश ने इशारा किया और शमा अपने शरीर का एक एक कपड़ा उतार कर शमशेर की और फांकति गयी... आख़िर में अपनी पनटी भी.... शमशेर का चेहरा भीग गया था...उसके लचर आँसू फर्श पर बह रहे थे... उसने आँख खोल कर शमा को देखा... शमा दिनेश के अंग को मुँह में ले कर चूस रही थी... शमशेर की आँखे बंद हो गयी... उसके बाद कमरे में करीब 30 मिनिट तक शमा की आँहे गूँजती रही... सिसकियाँ गूँजती रही... जो शमशेर के कानो में पिघले हुए लावे की तरह जा रही थी! शमशेर लाख कोशिश करने के बाद भी अपने कान बंद नही कर पाया... उसको सब कुच्छ सुन-ना पड़ा; सब कुच्छ.
अंत में जब सिसकिया बंद हो गयी तब शमशेर ने आँखें खोली... दिनेश उसकी नंगी छतियो पर पड़ा था... शमा ने बोला," आइ लव यू दिनेश!" उसी लहजे में जिस लहजे में उसने हज़ारों बार बोला था... आइ लव यू दीपक.... आइ लव यू माइ शमशेर!
शमशेर ने कपड़े पहनकर बाहर जाती हुई शमा से पूचछा," तुमने..... ऐसा क्यूँ किया, शमा! "
"क्यूंकी तुम्हारे पास अब पैसा नही है... जान!" और वो मुश्कूराती हुई चली गयी...
दिनेश ने अपने दोस्तों को बुलाया," खोल दो साले को; अगर ज़रा भी गैरत होगी तो खुद ही मर जाएगा... बहन का....!"
उसके दोस्तों ने शमशेर को खोल दिया; पर शमशेर नही उठा... अब उठने को रहा ही क्या था!
उसके दोस्तों ने शमशेर को फार्म हाउस से बाहर फैंक कर अजीत के भाई को फोन कर
दिया. वो अपने दोस्तों के साथ आया और शमशेर को ले गया. कॉलेज में जिसको भी पता चला; वो खूब रोया, पर शमशेर के आँसू नही निकले... उसके सारे आँसू निकल चुके थे; शमा के सामने!
शमशेर के पिता को पता चला तो भागा हुआ आया, लंबी लंबी लाल्बत्ति वाली गाड़ियों में. और अपने वंश को ले गया...
उसके दो दिन बाद ही शमा और दिनेश मरे पाए गये! पोलीस ने अपनी केस डाइयरी में लिखा," वो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, पर समाज ने उनको मिलने ही नही दिया... इसीलिए दोनों ने सुसाइड कर लिया!
कहते हैं समय सब कुच्छ भुला देता है... शमशेर भी बदल गया... पर दो चीज़े उसने नही बदली... एक तो अपना नाम... और दूसरा उस्स रात के बाद वाला अपना नेचर;..... बिल्कुल शांत.... बिल्कुल निसचिंत...
वो प्यार से नफ़रत करने लगा... उसको तब के बाद लड़कियों से एक ही मतलब रहता था... सेक्स... सेक्स और सेक्स....
शमशेर ने अजीत को देखा... वो आँखे बंद किए रो रहा था.... बिना बोले.... लगातार...!
शमशेर ने अजीत के हाथ से कप ले लिया... चाय तो कब की ठंडी हो चुकी थी. वो कुच्छ ना बोला. उसके दोस्त जब भी उससे मिलते थे तो शमशेर के अतीत को याद करके ऐसे ही सुबक्ते थे... भीतर ही भीतर...
शमशेर उसके लिए पानी ले आया," लो, टफ! मुँह धो लो!... कुच्छ देर बाद सब नॉर्मल हो गया और वो फिर से मस्ती भारी बातें करने लगे
"शमशेर भाई! ये तो बता ये सरिता क्या बाला है?"
"कौन सरिता?", शमशेर को याद नही आया!
अरे वो मेरी 'प्यारी' गाड़ी में कह नही रही थी!" मुझसे तो सरिता भी जलती है."
"ओह अच्च्छा! सरिता! वो उसी की तो बेटी है...
"मस्त है क्या?"
"देखेगा, तो खुद ही समझ जाएगा!"
"भाई! वो भी दिख जाएगी क्या?"
"हां, हां; क्यूँ नही दिखेगी?"
"लगता है खानदान ही धंधे में है, भाई!"
तभी दिशा उपर आई," खाना लगाना है क्या.... सर". दिशा दरवाजे की साइड में खड़ी थी, शरमैई सी, और वाणी उसकी साइड में..... जासूस!
अजीत: एक बार अंदर आना!.... वो शमशेर के नये प्यार को अपनी आँखों से परखना चाहता था.....
दिशा अंदर आ गयी... नज़रें झुकाए.... और वाणी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था... वो इश्स नये मेहमान को घूर रही थी!
"अच्च्छा! एक बात तो बताओ; तुम्हारा फॅवुरेट टीचर कौन है....." अजीत ने कहा
दिशा निशब्द खड़ी रही... वो उसके सर थोड़े ही थे! पर वाणी ने एक भी सेकेंड नही गवाई, और बेड पर चढ़कर सर से लिपट गयी," शमशेर सर!"
अजीत ने उसकी और हाथ बढ़ाया," हाई! आइ एम अजीत आंड यू"
वाणी ने दोनों हाथ जोड़ दिए," नमस्ते! और हाथ नही मिलवँगी; दीदी कहती हैं, बाहर वाले लड़कों को ज़्यादा मुँह नही लगाते!"
ऐसा सुनते ही तीनों की ज़ोर से हँसी छुट गयी! वाणी को लगा कुच्छ ग़लत कह दिया, दीदी से पूच्छ लो; इन्होने ही बोला था!
दिशा शर्मकार नीचे भाग गयी... और वाणी उसके पीछे पीछे... ये पूच्छने के लिए की उसने क्या ग़लत कह दिया!
नीचे जाते ही दिशा ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी... वाणी ने पूचछा," क्या हुआ दीदी! बताओ ना!"
दिशा हंसते हुए बोली," कुच्छ नही तू भी कितनी उल्लू है, कोई किसी के सामने ऐसे ही थोड़े बोलता है!.... और फिर वे इनके दोस्त हैं!"
वाणी: सॉरी दीदी! मैं उपर सॉरी बोलकर आऊँ?
दिशा: नही रहने दे! ...... फिर कुच्छ सोच कर बोली," वाणी! एक बात पूच्छून तो बताएगी!
वाणी: पूच्छो दीदी!
दिशा: मान लो तेरी किसी के साथ शादी हो जाती है...
वाणी: मैं तो सर से ही शादी करूँगी दीदी....
दिशा सिहर गयी... वाणी के प्यार का रंग बदलता जा रहा था...
दिशा: वाणी!........... शमशेर से मैं प्यार करती हूँ;( वो भावुक हो गयी थी) मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... क्या तू मेरे और उसके बीच में आएगी? क्या तू कभी अपनी दीदी का दिल तोड़ सकती है...
वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया .... ," क्या ऐसा नही हो सकता की सर हम दोनों से शादी कर लें, दीदी! मेरी एक सहेली की दो मुम्मिया हैं"
दिशा ने उसके गालों को सहलाते हुए कहा," हम हिंदू हैं, वाणी! हमारे धरम में ऐसा नही होता....
"पर दीदी; हम कह देंगे हम तो मुसलमान बन गये!"
"ऐसे नही होता वाणी! और मान भी लो; ऐसा हो जाए तो क्या हम एक दूसरे को शमशेर और अपने बीच एक दूसरी को सहन कर लेंगे...."
"बीच में कहाँ दीदी; एक तरफ में और एक तरफ तुम..."
दिशा: तू तो है ना; बिल्कुल पागल है; एक बात बता, ये जो सर के दोस्त हैं..... कैसे लगते हैं तुझे..?
वाणी: बहुत सुंदर है दीदी... सर से भी सुंदर!
दिशा: तू उनसे शादी कर ले ना! में शमशेर से बात कर लूँगी!
अगले दिन सुबह सुभह जब दिशा शमशेर और अजीत के लिए चाय देने आई तो अजीत को वहाँ ना पाकर वो बहुत खुश हुई, क्यूंकी वो अकेली थी; वाणी सोई हुई थी... पुर 24 घंटे से शमशेर ने उसको च्छुआ नही था," आपके दोस्त कहाँ गये?"
शमशेर ने उसको देखते ही अपनी बाहों में उठा लिया... दिशा उससे लिपट गयी... उसके साथ के बिना दिशा को एक एक पल अधूरा सा लगता था...
जी भर कर उसके चेहरे को चूमने के बाद बोला," उसको भी ड्यूटी करनी है भाई! वैसे कोई काम था क्या? ... और वाणी नही आई उपर तेरे साथ!"
वाणी: आपका उसके बिना, और उसका आपके बिना दिल ही नही लगता. मैं तो बस ऐसे ही काँटा बनी हुई हूँ!...... वो सोई हुई है...
शमशेर: सोई हुई है... स्कूल नही जाना क्या?
दिशा: नही!
शमशेर: क्यूँ?
दिशा सकुचती हुई सी...," बस... ऐसे ही!"
शमशेर: ऐसे ही का क्या मतलब है? आज तो स्कूल में बेस्ट ड्रेस कॉंपिटेशन भी है ना!
दिशा: हां........ इसीलिए तो...
शमशेर: तो तुम्हारे बिना क्या वहाँ भूत अवॉर्ड लेंगे? चलो उसको उठा कर जल्दी तैयार होने को कहो!
दिशा, अपना सिर नीचा करके.... " वो.... हमारे पास ड्रेस नही है!" उसके चेहरे से कॉंपिटेशन में भाग ना ले सकने की मजबूरी सॉफ झलक रही थी...
शमशेर: तो ये बात है... मुझे क्यूँ नही बोला... मैं क्या कुच्छ लगता नही हूँ... तुम्हारा किरायेदार हूँ आख़िर!
दिशा ने अपने हाथ का मुक्का बना कर उसको दिखाया और उसकी छति पर सिर टीका दिया...
शमशेर: चलो, अकेलेपन का फयडा उठाओ; कपड़े निकल दो आज तो!
दिशा: अभी!.... मॅन तो उसका भी मचल रहा था!
शमशेर: हां अभी!
दिशा आँखें बंद करके बेड पर लेट गयी... खुले कमीज़ में भी उसकी छतियो का कसाव गजब ढा रहा था... शमशेर अंदर गया और एक डिब्बा उसके पेट पर रख दिया!
दिशा ने आँखें खोल दी," क्या है ये?"
शमशेर: चलो तैयार हो जाओ! स्कूल चलना है... वाइट जीन्स टॉप तुम्हारे लिए
है और वाणी के लिए वाइट स्कर्ट टॉप!
दिशा शमशेर से लिपट गयी... उसकी आँखों से निकले आँसू शमशेर को "आइ लव यू" बोल रहे थे; उसकी केअर करने के लिए.....
दिशा और वाणी जब नयी ड्रेस में स्कूल पहुँची तो मानो स्कूल का हर कोना उनकी तरफ खींचा आया था.. दोनों स्वर्ग से उतरी अप्सरायें लग रही थी.... लड़कियाँ उनको हैरत से देख रही थी, जैसे उनको पहचाना ही ना हो! इश्स तरह सबको अपनी और देखता पाकर दोनों फूली नही समा रही थी...
दिशा तो पहले ही लड़कों के लिए कयामत ही थी... आज तो लड़किययाँ भी जैसे उसको दिल दे बैठी हों! सफेद टाइट टॉप में उसकी छतिया इश्स कदर सपस्ट दिखाई दे रही थी... कि बाहर से गेस्ट आए बूढो तक की आँखें बाहर निकालने को हो गयी! चारों और से सीटियाँ ही सीटियाँ कॉंटेस्ट शुरू होने से पहले ही ये एलान कर रही
थी की आज का विन्नर कौन होगा. उसका टॉप उसकी कमर को पूरा नही ढक पा रहा था... उसकी नाभि के कटाव पर सभी "भूखे कुत्तों की भी ... और छके हुए "बूढ़े कुत्तों" की भी जीभ लपलपा रही थी.. वह जिधर भी जाती... सभी आँखें वही मूड जाती... दिशा से सब सहन नही हो रहा था... अपनी खुशी पर काबू पाना उसके वश में नही था... उसके पिच्छवाड़े की गोलाइयाँ इतनी गोल थी मानो उन्हे किसी किसी ड्रॉयिंग एक्विपमेंट की सहायता से निशान लगाकर तराशा गया हो... सब कुच्छ सही सही..... शी वाज़ जस्ट ए पर्फेक्ट लेडी ऑन अर्थ; आइ बिलीव!
उधर वाणी भी कम कहर नही ढा रही थी... सब कुच्छ दिशा जैसा ही, नपा तुला! पर दिशा के मुक़ाबले उतनी 'जवान' नही होने की वजह से वो आँखों को अपने से लपेट नही पा रही थी... फिर भी वो बहुत खुश थी... उसके सर जो उसको देख रहे थे...! और उस्स नादान दीवानी को क्या चाहिए था...
कॉंपिटेशन शुरू हो गया... बहुत सी लड़कियाँ तो दिशा और वाणी को देखकर स्टेज पर ही नही चढ़ि... और जो चढ़ि वो भी दर्शकों की हँसी का पात्रा बनकर रह गयी.
अंत में दो ही नाम मैदान में रहे.......बताने की ज़रूरत नही है.
मिस्टर जज मंच पर चढ़े और उन्होने बोलना शुरू किया... दोनों की ख़्ूबसूरती का नशा उस्स पर से अभी उतरा नही था...
" प्यारे बच्चो; टीचर्स और इश्स कॉंपिटेशन की शोभा बढ़ने आए मेहमानो," कहते हैं की सुंदरता मॅन की होती है; तंन की नही, पर आज के.. ...... वग़ैरा वग़ैरा......!
अंत में मैं इश्स नतीजे पर पहुँचा हूँ कि 2 बच्चियों को किसी भी तरह से तंन और उनके द्वारा पहनी गयी ख़्ूबसूरत ड्रेसस के आधार पर कहीं से भी एक दूसरी से कम या ज़्यादा नही ठहराया जा सकता... और जब ये दोनों चीज़े बराबर हैं तो हमें चाहिए हम उनके मॅन की सुंदरता से उन्हे तोले! अब क्यूंकी मैं इनको जानता नही हूँ इसीलिए दिशा और वाणी में से विजेता चुन-ने के लिए में प्रिन्सिपल को मंच पर इन्वाइट करना चाहूँगा...
प्रिन्सिपल तो छुट्टी पर थी; स्टाफ वालों ने टीचर इन चार्ज शमशेर को मंच पर धकेल ही दिया... हां धकेलना ही कहेंगे क्यूंकी एक भंवरे को अपने दो फूलों में से एक को छाती में लगाना था और दूसरे को पैरों पर गिराना था.....
कैसी घड़ी आ गयी... इससे अच्च्छा तो वो ड्रेसस का सर्प्राइज़ ना ही देने की सोचता तो अच्च्छा था... शमशेर बहके कदमों से स्टेज पर चढ़ा.......
शमशेर ने स्टेज पर चढ़कर दोनों परियों को देखा... दोनों इतरा रही थी... अपने आप पर... उसी के कारण... ना वो ड्रेस लेकर आता ना ही वो स्कूल आती! ये सब उसका खुद का किया धरा है.... दोनो को ही अपनी अपनी जीत का विश्वास था... दोनों को यकीन था की शमशेर सिर्फ़ उसी से प्यार करता है.... दोनो ही बस भागने को तैयार बैठी थी... अपना नाम बोलते ही भाग कर स्टेज पर जाने के लिए... जब सीटियों का शोर तेज हो गया तो शमशेर को होश आया..... उससे और कुच्छ ना बोला गया..... उसने 'वाणी!' कहा और स्टेज से उतर गया.... वाणी भागती हुई आई और सर से लिपट गयी... उसकी आँखों में चमक थी, जीत की; अपनी दीदी से जीत की... पर शमशेर
का ध्यान दिशा पर गया... वो क्लास की और जा रही थी... आँसू पूछ्ते हुए!
इनाम लेकर वाणी किसी गुड़िया की तरह उच्छल रही थी... सबको दिखा रही थी... शमशेर सीधा ऑफीस में चला गया... उसने मॅन देखा था... तंन नही!
वाणी भागती हुई ऑफीस में आई और अपना इनाम सर को दे दिया," लो सर!"
शमशेर ने वाणी से कहा," तुम्हारा इनाम है, तुम्ही रखो!"
वाणी ने शमशेर को उसी की बात याद दिला दी," नही सर, मेरा नही है..... अपना है!"
शमशेर का गला रुंध गया... वो कुच्छ भी ना बोल पाया!
"एक बात कहूँ सर जी!"
"हुम्म..."
"आप मुझसे ही शादी करोगे ना....."
होली का दिन था... चारों और गुलाल ही गुलाल .... सिर्फ़ दिशा और वाणी के रंग उड़े हुए थे... दिशा के तो जैसे हाथ पैर ही काम नही कर रहे थे.... वह अब भी शमशेर को माफ़ करने को तैयार थी... पर कम से कम शमशेर उससे बात तो करे... आइन्दा ऐसा ना करने का वादा तो करे... पर शमशेर ने तो उससे बात तक करनी छ्चोड़ दी... उस्स दिन के बाद! ये बात दिशा और वाणी को और परेशान कर रही थी.
"अरे क्या हो गया तुझे बेटी? त्योहार के दिन कैसी शकल बना रखी है... चल उठ नहा धो ले!" मामी ने कहा!
दिशा ऐसे ही पड़ी रही... हिली तक नही...
मामी: वाणी! क्या है ये ... देख मैं तेरे सर को बता दूँगी
दिशा सुनते ही बिलख पड़ी," बता दो जिसको बताना है मामी... मुझसे नही. चला जाता.. ना मुझे अब पढ़ना है... और ना ही कुच्छ करना है!"
मामी: अच्च्छा! वाणी जा बुलाकर तो ला तेरे सर को!
वाणी नही उठी...
मामी: ठहर जा! तुम दोनों शैतान हो गयी हो! मैं बुलाकर लाती हूँ"
मामा: रुक जा; मैं ही लाता हूँ बुलाकर; मुझे सरपंच की लड़की के बारे में उससे बात भी करनी है!
दिशा के कान खड़े हो गये," क्या बात करनी है... मामा?"
मामा: अरे वो सरपंच आया था मेरे पास... कह रहा था... उसकी लड़की सरिता का रिश्ता ले लें तो तुम्हारे सर... बहुत बड़े ओफीसर के बेटे हैं... कह रहे तहे.. घर भर देंगे इनका...
दिशा विचलित सी हो गयी," कहीं शमशेर सरिता से तो प्यार नही करता..."
रूको! मैं बुलाकर लाती हूँ! दिशा उपर भाग गयी... पीच्चे पीच्चे वाणी!
दिशा ने तरारे के साथ दरवाजा खोला," तुम... तुम जब सरिता से प्यार करते हो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया... बोलो... बोलो... तुम्हे बोलना पड़ेगा!
शमशेर कुच्छ ना बोला... दिशा तड़प उठी," सरिता का रिश्ता आया है तुम्हारे लिए... कर लेना शादी... घर भर देंगे तुम्हारा... जाओ कर लो शादी..." वो रोने लगी...
वाणी: सर, आपको मामा बुला रहे हैं
शमशेर ने दिशा और वाणी का हाथ पकड़ा और नीचे चला गया.... दिशा ने हाथ च्छुदाने की कोशिश करी पर ना च्छुटा सकी...!
नीचे जाकर उसने मामा से पूचछा," क्या बात है मामा जी?
मामा: अरे वो सरपंच आया था.....
..........दहेज बहुत ज़्यादा देंगे.. अच्च्छा रिश्ता है बेटा ... आगे तुम जो कहोगे मैं बता दूँगा....
शमशेर: मैं..... दिशा से शादी करूँगा मामा जी... आप चाहे या ना चाहे ... दिशा से...
मामा ने दिशा की और देखा; उसके चेहरे के रंग वापस आ गये थे... वो एकटक प्यार से शमशेर को देखे जा रही थी...
मामा: हमारी दिशा के तो भाग खुल जाएँगे बेटा...
दिशा शर्मकार अंदर भाग गयी ... और वाणी भी; शर्मकार नही... अपनी दीदी के चेहरे की खुशी मापने...
शमशेर के चेहरे पर जहाँ भर की रौनक़ आ गयी... उसका वनवास पूरा हुआ..!
उस्स दिन सबने जमकर होली खेली...
कुच्छ दिन बाद शमसेर ने अपना ट्रान्स्फर बॉय'ज स्कूल में करा लिया... और अपनी जगह एक और आशिक़ को वहाँ भेज दिया... उससे भी ज़्यादा ठरकी....
दिशा शमशेर के साथ शहर चली गयी.... पढ़ने भी और खेलने भी... अपने शमशेर के साथ...
वाणी को भी वो साथ ही ले गये... खिलाने नही... पढ़ाने...
वाणी समझ चुकी थी... इश्को खेल नही इश्क़ कहते हैं और ये इश्क़ आसान नही होता. ... और ये भी की अच्च्चे ख़ान दानो में ये.... एक के साथ ही होता है.......
शमशेर कभी समझ ही नही पाया की इतने पाप करने के बाद भी भगवान ने ये हीरा उसको कईसे दे दिया...... शायद उसके एक बार किए हुए सच्चे प्यार के लिए...
शमशेर की लाइफ में फिर से प्यार आ गया .. और उसने सेक्स सेक्स और सेक्स की थेओरी छ्चोड़ दी...
टफ अब भी गाँव में आता है... पता नही उसको कौन सुधारेगी!
नये मास्टर जी के किससे अगले पार्ट से..
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.