एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna

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Fuck_Me
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एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna

Unread post by Fuck_Me » 19 Aug 2015 11:21

सम्पादक – जूजा जी

दोस्तो, यह कहानी पड़ोसी मुल्क से किसी पाठिका ने भेजी है जिसे मैंने सम्पादित किया है। इस कहानी को सीधे उसी पाठिका के माध्यम से आप सबकी नजर कर रहा हूँ.. लुत्फ़ उठाएं।

हैलो.. मेरा नाम ताबिदा है। मेरी शादी को कोई 8-9 महीने हुए हैं। मेरे शौहर का नाम फैजान है.. वो मेरे ऑफिस में मेरे साथ ही काम करते थे.. लेकिन शादी के बाद मैंने जॉब छोड़ दी और घर पर ही रहने लगी हूँ।

फैजान कोई बहुत ज्यादा अमीर आदमी नहीं हैं। उसकी फैमिली शहर के पास ही एक गाँव में रहती है.. उधर थोड़ी सी ज़मीन है.. जिस पर उसके घर वाले अपना गुज़र-बसर करते हैं। गाँव में उसके बाप.. माँ.. बहन और एक छोटा भाई रहते हैं। उसका छोटा भाई अपनी बाप के साथ जमीनों पर ही होता है। गाँव के स्कूल में ही बहन पढ़ रही थी.. वो बहुत ही प्यारी लड़की है.. जाहिरा.. यानि वो मेरी ननद हुई।

मैं अपने शौहर फैजान के साथ शहर में ही रहती हूँ। हमने एक छोटा सा मकान किराए पर लिया हुआ है.. इसमें एक बेडरूम मय अटैच बाथरूम.. छोटा सा टीवी लाउंज और एक रसोई है।

घर के अगले हिस्से में एक छोटी सी बैठक है.. जिसका एक दरवाज़ा घर से बाहर खुलता है.. और दूसरा टीवी लाउंज है.. घर के पिछले हिस्से में एक छोटा सा बरामदा है। बस.. तक़रीबन 3 कमरे का घर है.. ऊपर की छत बिल्कुल खाली है।
मेन गेट के अन्दर थोड़ी सी जगह गैराज के तौर पर जहाँ पर फैजान अपनी बाइक खड़ी करता है।

मैं और फैजान अपनी शादी से बहुत खुश हैं और बड़ी ही अच्छी लाइफ गुज़र रही थी। अगरचे.. फैजान का बैक ग्राउंड गाँव का था.. लेकिन फिर भी शुरू से शहर में रहने की वजह से वो काफ़ी हद तक शहरी ही हो गया था। रहन-सहन.. ड्रेसिंग वगैरह सब शहरियों की तरह ही थी.. और वो काफ़ी ओपन माइंडेड भी था।

घर पर हमेशा वो मुझसे फरमाइश करता के मैं मॉडर्न किस्म के कपड़े ही पहनूं.. इसलिए घर पर मैं अक्सर टाइट लैंगिंग्स और टॉप्स.. स्लीव लैस शर्ट्स और हर किस्म की वेस्टर्न ड्रेसस पहन लेती थी।

मैं अक्सर जब भी बाहर जाती.. तब भी मेरी ड्रेसिंग काफ़ी मॉड ही होती थी।
मैं अक्सर जीन्स और टी-शर्ट पहनती थी या सलवार कमीज़ पहनती तो.. वो भी फैशन के मुताबिक़ ही एकदम चुस्त और मॉडर्न ही होती थी।
घर से बाहर भी वो मुझे अक्सर लेगिंग पहना कर ले जाता था.. घर आ जाता तो मुझसे सिर्फ़ ब्रेजियर और लेगिंग में ही रहने की फरमाइश करता था..

फैजान मेरे हुस्न और मेरे जिस्म का दीवाना था। हमेशा मेरी गोरे रंग और खूबसूरत जिस्म की तारीफ करता था।
ुजब भी मौका मिलता.. वो मेरी चूचियों को मसल देता था.. और मेरे खुले गले में हाथ डाल कर मेरी चूचियों को सहलाता रहता था।

अपने शौहर को खुश करने और उसे लुभाने के लिए मैं भी हमेशा डीप और लो नेक की कमीजें सिलवाती थी.. जिसमें से मेरी चूचियों भी नजर आती थीं और मम्मों का क्लीवेज तो हर वक़्त ही ओपन होता था।

दिन में जब भी मौका मिलता.. हम लोग सेक्स करते थे.. बल्कि सच बात तो यह है कि मैं शादी से पहले ही अपना कुँवारापन फैजान पर लुटा चुकी थी।
जी हाँ.. फैजान ही मेरी पहली और आखिरी मुहब्बत था और यह फैजान की मुहब्बत ही थी.. जो के मुझे शादी से पहले ही उसके बिस्तर तक उसकी बाँहों में ले आई थी।

शादी के 8-9 महीने बाद भी जब हमारी सेक्स लाइफ और हवस से भरी हुई ज़िंदगी पूरे सिरे पर थी.. तो एकदम इसमें एक ब्रेक सी लग गई और एक टकराव सा आ गया।

इसकी वजह यह थी कि मेरी ननद जाहिरा… ने स्कूल का आखिरी इम्तिहान पास कर लिया था और उसने कॉलेज में एडमिशन लेने का शौक़ ज़ाहिर किया.. तो मेरे ससुर जी ने पहले तो इन्कार कर दिया.. लेकिन जब उसके चहेते बड़े भाई फैजान ने भी अपने बाप से बात की.. तो मेरे ससुर जी ने हामी भर ली कि अगर फैजान उसकी जिम्मेदारी उठा सकता है.. तो ठीक है।

अब दिक्कत यह थी कि गाँव में कोई कॉलेज नहीं था और उसे शहर में आना था। जब जाहिरा ने कॉलेज में एडमिशन लिया.. तो वो गाँव से शहर में आ गई। अब ज़ाहिर है कि उसे हमारे साथ ही रहना था तो जाहिरा शहर में हमारे साथ उस छोटे से मकान में ही शिफ्ट हो गई।

जाहिरा की आने से और हमारे साथ रहने से मुझे और तो कोई दिक्कत नहीं थी.. लेकिन सिर्फ़ एक मसला था कि हमारी सेक्स लाइफ थोड़ी बंदिशों वाली हो जाने थी।

अब हमें जो भी करना हो.. तो अपने कमरे में ही करना था। वैसे जाहिरा बहुत ही अच्छे नेचर की लड़की थी.. अभी क़रीब 19 साल की ही थी.. बहुत ही सुंदर और खूबसूरत लड़की थी। बिल्कुल दूध की तरह गोरा रंग.. और मक्खन की तरह से नरम-नरम जिस्म था उसका..
उसके सीने की उठान.. यानि चूचियों उभर चुकी थीं.. लेकिन अभी बहुत बड़ी नहीं थीं। जाहिर सी बात है कि मुझसे तो छोटी ही थी.. बहुत ही सादा और मासूम सी लड़की थी।
मुझसे बहुत ही प्यार करती थी और बहुत ही इज्जत देती थी।

जब से घर में आई.. तो रसोई में भी मेरा हाथ बंटाती थी.. और मेरे साथ घर का काफ़ी काम करती थी। मैं भी जाहिरा की शक्ल में एक अच्छी सी सहेली को पाकर खुश थी।

उसके सोने का इंतज़ाम उस छोटी सी बैठक में ही एक सिंगल बिस्तर लगवा कर.. कर दिया गया था। वो वहीं पर ही पढ़ती थी और वहीं पर ही सोती थी। बाथरूम उसे हमारा वाला ही इस्तेमाल करना पड़ता था.. जिसका एक दरवाज़ा छोटे से टीवी लाउंज में खुलता था और दूसरा हमारे बेडरूम में खुलता था।

बस रात को सोते वक़्त हम लोग अपने बेडरूम वाला बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेते थे.. ताकि जाहिरा बाहर से ही उसे इस्तेमाल कर सके।

जाहिरा वैसे तो बहुत ही खूबसूरत लड़की थी.. लेकिन सारी ज़िंदगी गाँव में रहने की वजह से बिल्कुल ही ‘डल’ लगती थी। उसकी ड्रेसिंग भी बहुत ज्यादा ट्रेडीशनल किस्म की होती थी। सादा सी सलवार-कमीज़ पहनती थी.. कभी भी मॉड किस्म के कपड़े नहीं पहनती थी।

मुझे घर में लेगिंग पहने देखना शुरू किया.. तो वो बहुत ही हैरान हुई.. तो मैंने हंस कर कहा- अरे यार क्यों हैरान होती हो.. यह सब आज के वक़्त की ज़रूरत और फैशन है.. इसके बिना ज़िंदगी का क्या मज़ा है.. वैसे भी तो घर पर सिर्फ़ तुम्हारे भैया ही होते हैं ना.. और जब भी बाहर जाती हूँ.. तो उनके साथ ही जाती हूँ.. तो फिर मुझे किस चीज़ की फिकर है।

जाहिरा- लेकिन भाभी बाहर तो बहुत से लोग होते हैं.. वो आपको अजीब नजरों से नहीं देखते क्या?
मैं- अरे यार देखते हैं.. तो देखते रहें.. मेरा क्या जाता है.. वैसे इन लोगों की कमीनी नज़रों का भी अपना ही मज़ा होता है।
मैंने एक आँख मार कर जाहिरा से कहा.. तो वो झेंप गई।

मैं उसे हमेशा ही मॉड और न्यू फैशन के कपड़े पहनने को कहती.. लेकिन वो इन्कार कर देती।
‘मुझे शरम आती है.. ऐसी कपड़े पहनते हुए.. और फिर मुझे इन कपड़ों में देख कर भैया बुरा मान जाएंगे..’

शहर में आने के बाद फैजान ने उसे खूब शहर की सैर करवाई। हम लोग फैजान की बाइक पर बैठ कर घूमने जाते.. मैं फैजान के पीछे बैठ जाती और मेरे पीछे जाहिरा बैठती थी।
हम लोग खूब शहर की सैर करते.. और जाहिरा भी खूब एंजाय करती थी।

बाइक पर बैठे-बैठे मैं अपनी चूचियों को फैजान की बैक पर दबा देती और उसके कान में ख़ुसर-फुसर करती जाती- क्यूँ फिर फील हो रही हैं ना मेरी चूचियां तुमको?
मेरी कमर पर फैजान भी जानबूझ कर अपनी कमर से थोड़ा-थोड़ा हरकत देता और मेरी चूचियों को रगड़ देता। कभी मैं उसकी जाँघों पर हाथ रख कर मौका मिलते ही उसकी पैन्ट के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहला देती थी.. जिससे फैजान को बहुत मज़ा आता था।

हमारी इन शरारतों से बाइक पर पीछे बैठे हुई जाहिरा बिल्कुल बेख़बर रहती थी।

फैजान अपनी बहन से बहुत ही प्यार करता था.. आख़िर वो उसकी सबसे छोटी बहन थी ना.. कम से कम भी उससे 18 साल छोटी थी.. और वो मुझसे 10 साल छोटी थी।

रोज़ाना फैजान खुद ऑफिस जाते हुए जाहिरा को कॉलेज छोड़ कर जाता और वापसी पर साथ ही लेता आता था। मुझे भी कभी भी इस सबसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जैसा कि ननद-भाभी में घरों में झगड़ा होता है.. मेरे और जाहिरा कि बीच में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था.. बल्कि मुझे तो वो अपनी ही छोटी बहन लगती थी।
.......................................

A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.

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Re: एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna

Unread post by Fuck_Me » 19 Aug 2015 11:21

सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
शहर में आने के बाद फैजान ने उसे खूब शहर की सैर करवाई। हम लोग फैजान की बाइक पर बैठ कर घूमने जाते.. मैं फैजान के पीछे बैठ जाती और मेरे पीछे जाहिरा बैठती थी।
हम लोग खूब शहर की सैर करते.. और जाहिरा भी खूब एंजाय करती थी।

बाइक पर बैठे-बैठे मैं अपनी चूचियों को फैजान की बैक पर दबा देती और उसके कान में ख़ुसर-फुसर करती जाती- क्यूँ फिर फील हो रही हैं ना मेरी चूचियां तुमको?
मेरी कमर पर फैजान भी जानबूझ कर अपनी कमर से थोड़ा-थोड़ा हरकत देता और मेरी चूचियों को रगड़ देता। कभी मैं उसकी जाँघों पर हाथ रख कर मौका मिलते ही उसकी पैन्ट के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहला देती थी.. जिससे फैजान को बहुत मज़ा आता था।

हमारी इन शरारतों से बाइक पर पीछे बैठे हुई जाहिरा बिल्कुल बेख़बर रहती थी।

फैजान अपनी बहन से बहुत ही प्यार करता था.. आख़िर वो उसकी सबसे छोटी बहन थी ना.. कम से कम भी उससे 18 साल छोटी थी.. और वो मुझसे 10 साल छोटी थी।

रोज़ाना फैजान खुद ऑफिस जाते हुए जाहिरा को कॉलेज छोड़ कर जाता और वापसी पर साथ ही लेता आता था। मुझे भी कभी भी इस सबसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जैसा कि ननद-भाभी में घरों में झगड़ा होता है.. मेरे और जाहिरा कि बीच में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था.. बल्कि मुझे तो वो अपनी ही छोटी बहन लगती थी।
अब आगे लुत्फ़ लें..

फिर एक दिन वो वाकिया हुआ जो इस कहानी के आगे बढ़ने की वजह बना, उससे पहले ना कुछ ऐसा-वैसा हुआ हमारे घर में, और ना ही किसी के दिमाग में था.. लेकिन उस वाकिये के बाद मेरा दिमाग एक अजीब ही रास्ते पर चल पड़ा और मैंने वो सब करवा दिया जो कि कभी नहीं होना चाहिए था।

वो इतवार का दिन था और हम सब लोग घर पर ही थे। दोपहर के वक़्त हम सब लोग टीवी लाउंज में ही बैठे हुए टीवी देख रहे थे कि फैजान ने चाय की फरमाइश की.. इससे पहले कि मैं उठती.. हस्ब ए आदत.. जाहिरा फ़ौरन ही उठी और बोली- भाभी आप बैठो.. मैं बना कर लाती हूँ।

मैंने उसे ‘थैंक्स’ बोला और दोबारा टीवी देखने लगी, फैजान भी मेरा पास ही बैठा हुआ था।

अचानक ही रसोई से जाहिरा की एक चीख की आवाज़ सुनाई दी और साथ ही उसके गिरने की आवाज़ आई। मैं और फैजान दोनों ही फ़ौरन ही उठ कर रसोई की तरफ चिल्लाते हुए भागे।
‘क्या हुआ है जाहिरा?’

जैसे ही हम लोग अन्दर गए तो देखा कि जाहिरा नीचे रसोई कि फर्श पर गिरी हुई है और अपने पैर को पकड़ कर दबा रही है और वो दर्द के मारे कराह रही थी।

हम फ़ौरन ही उसके पास बैठ गए और मैं बोली- क्या हुआ जाहिरा.. कैसे गिर गई?
जाहिरा- बस भाभी.. पता ही नहीं चला कि कैसे मेरा पैर मेरी पायेंचे में फँस गया और मैं नीचे गिर पड़ी।
फैजान- अरे यह तो शुक्र है कि अभी इसने चाय नहीं उठाई हुई थी.. नहीं तो गर्म-गर्म चाय ऊपर गिर कर और भी नुक़सान कर सकती थी।

मैंने आहिस्ता-आहिस्ता जाहिरा को पकड़ कर उठाना चाहा.. उसका दूसरा बाज़ू फैजान ने पकड़ा और हमने जाहिरा को खड़ा किया.. तो वो अपना बायाँ पैर नीचे ज़मीन पर नहीं रख पा रही थी। बड़ी ही मुश्किल से वो अपना एक पैर ऊपर उठा कर मेरी और अपने भैया की सहारे पर लंगड़ाती हुई टीवी लाउंज में पहुँची।
इतने से रास्ते में भी वो कराहती रही- भाभी नहीं चला जा रहा है.. बहुत दर्द हो रहा है।

टीवी लाउंज में लाकर हम दोनों ने उसे सोफे पर ही लिटा दिया और मैं उसके पास बैठ गई।
फैजान- लगता है कि इसके पैर में मोच आ गई है।
मैंने जाहिरा को सीधा करके सोफे पर लिटाया और उसके पैर की तरफ आकर उसके पैर को सहलाती हुए बोली- हाँ.. लगता तो ऐसा ही है..
मैंने फैजान से कहा- आप जाहिरा के बेडरूम में जाकर मूव तो उठा लायें.. ताकि मैं इसके पैर की थोड़ी सी मालिश कर सकूँ।

मेरी बात सुन कर फैजान फ़ौरन ही कमरे में चला गया और मैं आहिस्ता-आहिस्ता उसके पैर को सहलाती रही। अभी भी जाहिरा दर्द के मारे कराह रही थी।
चंद लम्हों के बाद ही फैजान वापिस आया और उसने मूव मुझे दी। मैंने थोड़ी सी ट्यूब से मलहम निकाली और उसे जाहिरा के पैर के ऊपर मलने लगी।

फिर मैंने फैजान से कहा- जरा रसोई में जा कर रबर की बोतल में पानी गरम करके ले आओ.. ताकि थोड़ी सी सिकाई भी की जा सके।
फैजान भी अपनी बहन के पैर में मोच आने की वजह से बहुत ही परेशान था। इसलिए फ़ौरन ही रसोई में चला गया।

जाहिरा के पैर के ऊपर मूव लगाने के बाद मैंने उसकी सलवार को थोड़ा ऊपर घुटनों की तरफ से उठाया.. ताकि उसकी टांग के निचले हिस्से पर भी मूव लगा दूँ।
जाहिरा ने उस वक़्त एक बहुत ही लूज और खुली पाएचों वाली सलवार पहनी हुई थी और शायद यही वजह थी कि वो रसोई में इसके पाएंचे से उलझ कर गिर गई थी।
जैसे ही मैंने जाहिरा की सलवार को उसकी घुटनों तक ऊपर उठाया तो जाहिरा की गोरी-गोरी टाँगें मेरी आंखों के सामने नंगी हो गईं।

उफफ्फ़.. जाहिरा की टाँगें कितनी गोरी और मुलायम थीं.. जैसे ही मैंने उसकी नंगी टाँग को छुआ.. तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैंने मक्खन में हाथ डाल दिया हो.. मैं उसकी टांग की मालिश का भूल कर आहिस्ता-आहिस्ता उसकी टाँग को सहलाने लगी।

धीरे-धीरे अपना हाथ उसकी नंगी टाँग पर फेरने लगी। कभी पहले ऐसा नहीं हुआ था.. लेकिन आज मुझे एक अलग ही मज़ा आ रहा था। मुझे उसकी मखमली टाँग को सहलाने का मौका जो मिल गया था।
फिर मैंने अपने ख्यालों को झटका और उसकी टाँग पर मूव लगाने लगी।

थोड़ी ही देर में फैजान गरम पानी की रबर की बोतल ले आया और मेज पर रख दी।

अब वो दूसरी सोफे पर बैठ कर दोबारा से टीवी देखने लगा.. जाहिरा की टाँग पर मूव लगाते हुए अचानक ही मेरी नज़र फैजान की तरफ गई.. तो हैरानी से जैसे मेरी आँखें फट सी गईं। मैंने देखा कि फैजान की नजरें टीवी की बजाय अपनी सग़ी बहन की नंगी टाँगों को देख रही हैं।
मुझे इस बात पर बहुत ही हैरत हुई कि फैजान कैसे अपनी छोटी बहन की नंगी टाँग को ऐसे देख सकता है।
उसकी आँखों में जो हवस थी.. वो मैं अच्छी तरह से पहचान सकती थी.. आख़िर मैं उसकी बीवी थी।

यह देख कर एक लम्हे के लिए तो मेरे हाथ जाहिरा की टाँग पर रुक से गए.. लेकिन मुझमें हिम्मत ना हुई कि मैं अपने शौहर से नजरें मिलाऊँ या उसको रोकूँ या टोकूँ.. मैंने अपनी नजरें वापिस जाहिरा की टाँग पर जमा दीं और आहिस्ता-आहिस्ता मूव मलने लगी।

जाहिरा को किसी बात का होश नहीं था.. वो तो बस अपनी आँखें बंद किए हुए पड़ी हुई थी। जाहिरा की नंगी गोरी टाँग को सहलाते सहलाते मेरे दिमाग में एक शैतानी ख्याल आया.. कि क्यों ना मैं इसकी टाँग को थोड़ा और एक्सपोज़ करूँ और देखूँ कि तब भी फैजान अपनी बहन की गोरी टाँगों को नंगा देखता रहता है या नहीं..

यही सोच कर मैंने आहिस्ता से जाहिरा की सलवार उसके घुटनों के ऊपर सरका दी.. और अब उसकी खुली पायेंचे वाली सलवार उसके घुटनों से ऊपर आ गई थी.. जिसकी वजह से जाहिरा का घुटना और उसकी जाँघ का थोड़ा सा निचला हिस्सा भी नंगा हो गया था।

मैंने उसके घुटनों पर भी आहिस्ता-आहिस्ता मूव लगानी शुरू कर दी और मसाज करती हुई.. मैंने तिरछी नज़र से अपने शौहर की तरफ देखा.. तो पता चला कि अब भी वो चोर नज़रों से अपनी बहन की नंगी टाँग की ओर देख रहे थे।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा दी।

कितनी अजीब बात थी कि एक भाई भी अपनी सग़ी छोटी बहन की नंगी टाँग को ऐसी प्यासी नज़रों से देख रहा था.. जैसे कि वो उसकी बहन ना हो.. बल्कि कोई गैर लड़की हो!

मुझे इस गंदे खेल में अजीब सा मज़ा आ रहा था और मैं इसलिए इस मसाज को एक्सटेंड करती जा रही थी.. ताकि फैजान ज्यादा से ज्यादा अपनी बहन के जिस्म से अपनी आँखों को सेंक सके।

अब मेरे दिमाग में एक और शैतानी ख्याल आया।
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Re: एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna

Unread post by Fuck_Me » 19 Aug 2015 11:22

हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मैंने उसके घुटनों पर भी आहिस्ता-आहिस्ता मूव लगानी शुरू कर दी और मसाज करती हुई.. मैंने तिरछी नज़र से अपने शौहर की तरफ देखा.. तो पता चला कि अब भी वो चोर नज़रों से अपनी बहन की नंगी टाँग की ओर देख रहे थे।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा दी।

कितनी अजीब बात थी कि एक भाई भी अपनी सग़ी छोटी बहन की नंगी टाँग को ऐसी प्यासी नज़रों से देख रहा था.. जैसे कि वो उसकी बहन ना हो.. बल्कि कोई गैर लड़की हो!
मुझे इस गंदे खेल में अजीब सा मज़ा आ रहा था और मैं इसलिए इस मसाज को एक्सटेंड करती जा रही थी.. ताकि फैजान ज्यादा से ज्यादा अपनी बहन के जिस्म से अपनी आँखों को सेंक सके।
अब आगे लुत्फ़ लें..

अब मेरे दिमाग में एक और शैतानी ख्याल आया जिससे मैं फैजान को और भी क़रीब से उसकी बहन की नंगी मुलायम टाँगें दिखा सकती थी। मैंने अपने पास ही सोफे पर रखी हुई मूव नीचे फर्श पर गिरा दी। थोड़ी देर के बाद मैंने फैजान को आवाज़ दी- सुनो.. जरा मुझे मूव नीचे से उठा कर दें..
मैंने यह बात बिना फैजान की तरफ देखते हुए कही.. और वो ऐसे चौंका जैसे किसी ख्वाब से जगा हो..

फिर वो हमारी तरफ बढ़ा। इतनी देर में मैंने जाहिरा की दूसरी टाँग भी नंगी कर दी थी और उसको भी मैं मजे से सहला रही थी। जाहिरा को जैसे अब दर्द से कुछ सुकून मिल रहा था.. जिसकी वजह से वो आँखें मूंदे लेटी हुई थी।

फैजान मेरे क़रीब आया और नीचे फर्श पर से मूव उठा कर मेरी तरफ बढ़ाई लेकिन मैंने अपनी स्कीम की मुताबिक़ बिना उसकी तरफ देखते हुए कहा- थोड़ी सी यहाँ पर लगा दो..

मैंने जाहिरा की दूसरी टांग की तरफ इशारा करते हुए उससे कहा.. दिल ही दिल में मैं मुस्करा रही थी और देखना चाहती थी कि अपनी बहन की नंगी टाँग के इतने क़रीब होते वक्त फैजान का क्या रिएक्शन होता है।
दूसरी तरफ मासूम जाहिरा आँखें बंद करके चुपचाप लेटी हुई थी… उसे नहीं अंदाज़ा था कि उसकी भाभी क्या गेम खेल रही है और उसका अपना सगा बड़ा भाई किस नज़र से उसके नंगे जिस्म को देख रहा है..

आहिस्ता से फैजान ने हाथ बढ़ाया और जाहिरा की एक नंगी टाँग के ऊपर से हाथ गुज़ार कर दूसरी तरफ वाली टाँग पर मूव लगाने लगा। मेरी नज़र उसके हाथ पर ही थी.. जिसमें मुझे हल्की-हल्की कंपकंपाहट महसूस हो रही थी।

दूसरी टाँग की तरफ हाथ ले जाते हुए उसका हाथ जाहिरा की पहली टाँग को टच करने लगा। मैंने आहिस्ता से उसकी चेहरे की तरफ देखा.. तो उसका चेहरा लाल हो रहा था और नजरें तो जैसे अपनी बहन की मखमली गोरी-गोरी नंगी टाँगों से चिपकी ही पड़ी थीं।

मूव लगा कर फैजान ने हाथ पीछे हटाया और मूव को टेबल पर रख कर वापिस दूसरे सोफे पर जा कर बैठ गया और टीवी देखने की एक्टिंग करने लगा। जबकी उसकी नज़र अब भी चोरी-छिपे जाहिरा की नंगी टाँगों को ही देख रही थीं।

थोड़ी देर चुप रहने की बाद फैजान बोला- आख़िर तुमको हुआ क्या था.. जो नीचे ऐसी गिर पड़ीं?
जाहिरा बोली- भैया वो मेरा पैर पायेंचे में फँस गया.. तो गिर गई..

मुझे तो जैसे मौका ही मिल गया.. मैंने फ़ौरन ही कहा- गिरना ही पड़ेगा ना तुमको.. जो इतने पुरानी फैशन की खुले-खुले पायंचों वाली सलवारें पहनती हो। मैंने कितनी बार कहा है कि माहौल और फैशन के मुताबिक़ ड्रेसिंग किया करो।
मैंने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा।

फैजान भी बोला- हाँ.. ठीक ही तो कह रही है तुम्हारी भाभी.. वैसे यह तुम्हारा ही काम है ना.. कि तुम इसे समझाओ कि शहर में कैसे रहना होता है..
मैं- मेरे पर क्यों गुस्सा होते हो.. पूछ लो इससे.. कितनी बार कहा है इसे.. कि मेरी तरह की ड्रेसिंग किया करो.. लेकिन यह नहीं मानती है.. यह तुमसे डरती है.. कि पता नहीं भैया बुरा न मान जाएं।

फैजान- लो.. इसमें मेरे बुरा मानने वाली कौन सी बात है.. आख़िर वक़्त कि मुताबिक़.. एक हद में रह कर.. तो चलना ही होता है ना..
मैं- यही तो मैं इसको समझाती हूँ कि देखो मैं भी तो लेटेस्ट कपड़े पहनती हूँ ना.. तो क्या कभी तुम्हारी भाई ने मुझे रोका है.. या कभी बाहर कुछ ऐसा-वैसा हुआ है.. जो तुम डरती हो?

जाहिरा शरमाते हुए बोली- अच्छा भाभी अब बस भी करो न.. क्यों भैया के सामने मेरी वाट लगाने में लगी हुई हैं।
जाहिरा की इस बात पर मैं और फैजान दोनों हँसने लगे। मैं महसूस कर चुकी थी कि फैजान को अपनी सग़ी बहन की नंगी टाँगों को देख कर बहुत अच्छा लगा था।

मैं सोच रही थी कि अगर जाहिरा भी मेरे जैसे ही कपड़े पहने.. तो फैजान की तो फट ही जाएगी और फिर मैं देखूँगी कि अपनी बहन पर नज़र डालने से कैसे वो खुद को रोकता है। मेरे दिल में सिर्फ़ और सिर्फ़ शरारत थी कि मैं एक भाई को उसकी बहन की जरिए से टीज़ करूँ और देखूँ कि आख़िर एक भाई कितना ज़ब्त कर सकता है.. या अपनी बहन कि जिस्म को किस हद तक देख सकता है।

कुछ दिन की लिए जाहिरा को अपनी कॉलेज से छुट्टी करनी पड़ी और इन दिनों वो घर पर ही रहती थी।

मैं उसकी रोज़ाना मूव लगा कर मालिश करती थी.. लेकिन हमेशा ही मेरी यही कोशिश होती थी कि मैं उसकी टाँगों की मालिश उसके भाई के सामने ही करूँ.. ताकि उसे अपनी बहन के जिस्म से आँखें सेंकने का मौका मिल सके। उधर फैजान का भी यही हाल था कि जब भी मैं जाहिरा को क्रीम लगाती.. तो वो आस-पास ही भटकता रहता था।

इसी दौरान मैंने जाहिरा को एक जीन्स लाकर दी और उसने बहुत ही शरमाते हुए एक लोंग शर्ट के साथ पहनी।
मैंने भी उसको टी-शर्ट पहनने पर जोर नहीं दिया कि चलो शुरू तो कराया.. तो एक दिन इसको सेक्सी कपड़े भी पहना दूँगी।

जब फैजान जॉब से वापिस आया तो जाहिरा उस जीन्स में बाहर ही नहीं आ रही थी। बड़ी मुश्किल से वो बाहर आई तो उसका चेहरा शर्म से सुर्ख हो रहा था और वो नजरें ऊपर नहीं कर पा रही थी।

हालांकि उसकी शर्ट ने उसकी पूरी जीन्स को छुपाया हुआ था और उसकी जीन्स सिर्फ़ घुटनों से नीचे से ही नज़र आ रही थी।
वो बाहर आई तो वो अपनी कमीज़ को अपने जिस्म के साथ चिपका रही थी और नीचे को खींच रही थी.. जैसे कि अपनी जीन्स को छुपाना चाहती हो।

फैजान ने उसे देखा तो पहली तो हैरान हुआ और फिर जोर-जोर से हँसने लगा.. जिसे देख कर मैं भी हँसने लगी।
उधर जाहिरा का और भी बुरा हाल हो गया.. शर्म से उसका चेहरा रोने वाला हो रहा था।

मैं- देख लो फैजान.. आज बड़ी मुश्किल से तुम्हारी इस चहेती बैकवर्ड माइंडेड बहन को जीन्स पहनाई है और इसकी तो शरम ही नहीं जा रही है.. देखो तो सही क्या कोई खराबी है इसमें.. जो इसने पहनी हुई है?

फैजान ने जाहिरा की तरफ ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- नहीं यार.. बिल्कुल परफेक्ट है। जाहिरा तुम तो ऐसे ही घबरा रही हो.. अरे ताबिदा तुमने इसे कोई शर्ट ले कर नहीं दी क्या?

मैं- यार.. मैंने इसके लिए वो भी ले देनी थी.. लेकिन इसने साफ़-साफ़ इन्कार कर दिया कि मैं टी-शर्ट नहीं पहनूंगी… इसलिए मैं नहीं ले कर आई।

फैजान- चलो फिर किसी दिन ला देना… जस्ट रिलेक्स करो जाहिरा.. क्यों परेशान हो रही हो.. यह तो आजकल सब लड़कियाँ कॉलेज में और बाहर भी पहनती हैं।
फिर हम सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में आ गए।

धीरे-धीरे जाहिरा को जीन्स की आदत होने लगी और वो फ्रीली घर में जीन्स पहनने लगी.. लेकिन अभी भी उसने कभी भी टी-शर्ट नहीं पहनी थी।
अब मेरा अगला कदम उसको लेगिंग पहनाने का था.. जिसमें उसके जिस्म के निचले हिस्से की पूरी गोलाइयाँ उसके भाई की नज़रों के सामने आ जातीं।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
काफ़ी बार मैंने उससे कहा.. लेकिन वो शर्मा जाती थी और मेरी बात मानने को तैयार नहीं होती थी।
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