हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
पानी पीते हुए फैजान की नजरें अपनी बहन के मटकते चूतड़ों और जाँघों पर ही थीं।
मैं हौले-हौले मुस्करा रही थी।
जैसे ही जाहिरा रसोई में जाने लगी.. तो मैंने उसे आवाज़ दे कर रोका और कहा- जाहिरा मुझे याद आया.. मैंने तो कपड़े धो कर बाहर डाले हुए हैं.. जल्दी से जाओ और इनको उतार लाओ.. वर्ना सारे कि सारे भीग जाएंगे।
‘जी भाभीजान..’ कह कर जाहिरा बाहर सहन की तरफ चली गई और अब मैं अपनी स्कीम के मुताबिक़ हो रहे ड्रामे के अगले हिस्से की मुंतजिर थी।
बाहर तेज बारिश हो रही थी.. गर्मी कि इस मौसम में मेरी ननद जाहिरा अपनी पतली सी कुरती और लेग्गी पहने हुई बाहर से कपड़े उतार रही थी और उसका भाई अन्दर बैठा हुआ था और शायद वो भी मुंतजिर था कि अब उसके सामने क्या नजारा आने वाला है।
अब आगे लुत्फ़ लें..
क़रीब 5 मिनट बाद जाहिरा कमरे के अन्दर आई तो उफ्फ़.. क्या हॉट मंज़र था.. कपड़े तो वो उतार लाई थी.. लेकिन उसके अपने कपड़े पूरी तरह से भीग चुके थे, सफ़ेद रंग की पतली सी कुरती बिल्कुल भीग कर उसके गोरे-गोरे जिस्म से चिपक चुकी थी, उसका गोरा गोरा बदन कुरती के नीचे से बिल्कुल साफ़ नंगा नज़र आ रहा था, उसकी चूचियों पर पहनी हुई काली रंग की ब्रेजियर भी बिल्कुल साफ़ दिखने लगी थी।
वो ब्रेजियर उसकी चूचियों से चिपक कर ऐसे दिख रही थी.. मानो उसने वो काली ब्रेजियर अपनी शर्ट के ऊपर से ही पहनी हुई हो। उसकी लेग्गी भी थी तो मोटी जर्सी कपड़े की.. मगर वो भी भीग कर और भी उसकी मोटी जाँघों और टाँगों से चिपक चुकी हुई थी।
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मेरी नजरें तो उसके जिस्म पर ही चिपक गई थीं।
वो मुड़ कर एक टेबल पर कपड़े रखने लगी.. उसकी कमर हमारी तरफ थी। उसकी कमर पर उसकी ब्रेजियर की स्ट्रेप और हुक बिल्कुल साफ़ नज़र आ रहा था और उसकी कमर भी कमीज़ में से भीगी हुई साफ़ दिख रही थी।
साफ़ पता चल रहा था कि उसका जिस्म किस क़दर गोरा-चिट्टा है।
जाहिरा को इस हालत में देख कर मेरी हालत ऐसी हो रही थी.. तो उसके अपने सगे भाई का हाल तो और भी पतला हो रहा था। उसकी नज़रें अपनी बहन के जिस्म पर से नहीं हट रही थीं और मैंने भी बिना उसको डिस्टर्ब किए.. उसे अपनी बहन के इस तरह नंगे हो रहे जिस्म का नज़ारा करने दिया।
जैसे ही जाहिरा कपड़े रख कर मुड़ी तो फैजान मेरी तरफ देखने लगा और बोला- यार मुझे कोई कपड़े दो पहनने के लिए..
मैंने महसूस किया कि उसकी आवाज़ काँप रही थी।
जाहिरा अपने कमरे की तरफ बढ़ी तो मैंने उससे पूछा- कहाँ जा रही हो?
वो बोली- भाभी मैं जाहिरा चेंज करके आती हूँ.. पूरे कपड़े भीग गए हैं..
लेकिन मैं उसको इतनी आसानी से जाने दे कर उसके भाई का मज़ा खराब नहीं करना चाहती थी, मुझे उसे इसी हालत में रोके रखना था और उसे रुकने पर मजबूर करना था।
मैंने एक शर्ट पकड़ी और उससे कहा- जाहिरा, तुम जल्दी से अपने भैया की यह शर्ट प्रेस कर दो.. मैं सालन देख लेती हूँ.. चूल्हे पर पड़ा है.. कब से नहीं देखा.. कहीं जल न जाए।
जाहिरा इन्कार करना चाहती थी.. लेकिन फिर अपनी आदत की चलते चुप ही रही। उसने एक नज़र अपने भैया पर डाली.. जो कि वहीं चेयर पर बैठा.. अब एक मैगजीन देख रहा था.. और फिर जाहिरा टीवी लाउंज के एक कोने में पड़े हुए इस्तती स्टैंड की तरफ बढ़ गई।
मैं रसोई में आ गई ताकि फैजान भी खुल कर अपनी बहन के जिस्म का दीदार कर सके।
जहाँ जाहिरा खड़ी होकर शर्ट प्रेस कर रही थी.. वहाँ पर उसकी पीठ फैजान की तरफ थी।
मैं छुप कर दोनों को देख सकती थी.. मैंने बाहर झाँका तो देखा कि फैजान की नज़रें अपनी बहन के जिस्म पर ही थीं और उसका एक हाथ अपने लंड को जीन्स के ऊपर से दबा रहा था।
मैं समझ गई कि अपनी बहन के जिस्म को इस हालत में देख कर वो अपने लंड को खड़ा होने से नहीं रोक पा रहा है।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा दी..
इतने में फैजान उठा और एक पजामा उठा कर जाहिरा की तरफ बढ़ा। मैं समझ गई कि अब वो और क़रीब से अपनी बहन के जिस्म को देखना चाहता है।
पास जाकर उसने वो पजामा भी इस्तरी स्टैंड पर रखा और बोला- जाहिरा इसे भी प्रेस कर दो..
यह कहते हुए उसकी नजरें अपनी बहन की चूचियों पर थीं.. जो कि गीली सफ़ेद कुरती में काली ब्रेजियर में साफ़ नज़र आ रही थीं।
एक भरपूर नज़र डाल कर फैजान वापिस अपनी जगह पर आकर बैठ गया और जब तक जाहिरा कपड़े प्रेस करती रही.. वो उसके जिस्म को ही देखता रहा।
जैसे ही जाहिरा ने कपड़े प्रेस कर लिए तो अपने भाई से बोली- भाईजान, ले लें.. कपड़े प्रेस हो गए हैं..
अब मुझे पता था कि वो वापिस अपने कमरे में अपनी कपड़े बदलने के लिए जाएगी.. लेकिन मैं उसे रोकना चाहती थी इसलिए जैसे ही उसने अपने कमरे की तरफ क़दम बढ़ाए.. तो मैंने उसे आवाज़ दे दी- जाहिरा.. जरा इधर तो आओ रसोई में थोड़ी देर के लिए..
जैसा कि मुझे पता था कि वो मेरी बात को नहीं टालेगी.. वो ही हुआ.. जाहिरा सीधी उसी हालत में मेरे पास रसोई में आ गई।
मैंने उसे थोड़ा सा काम बताया तो वो बोली- भाभी मुझे चेंज कर आने दें..
मैंने उसके जिस्म की तरफ एक नज़र डाली और बहुत ही बेपरवाही से बोली- अरे अब क्या चेंज करना है.. कपड़े तो सूख ही चुके हैं.. अभी कुछ ही देर में पंखे के नीचे बिल्कुल ही खुश्क हो जाने हैं.. छोड़ो कपड़ों की फिकर.. तुम जल्दी से सलाद बना लो.. तो फिर हम लोग खाना खाते हैं.. पहले ही बहुत देर हो गई है..
जाहिरा भी थोड़ी सी बेफिकर होकर रसोई के काम में लग गई और मैं दिल ही दिल में अपनी कामयाबी पर मुस्करा दी कि मैं आज एक भाई को उसकी बहन का नंगा जिस्म थोड़ा सा छुपी हुई हालत में दिखाने में कामयाब हो गई हूँ।
मुझे हँसी तो फैजान पर आ रही थी कि कैसे अपनी बहन के नंगी हो रहे जिस्म को देख रहा था।
अब मुझे इस पर हैरत नहीं होती थी.. बल्कि खुशी होती थी और मज़ा भी आता था। मेरा तो बस नहीं चल रहा था कि मैं कब जाहिरा को उसके भाई के सामने बिल्कुल नंगी कर दूँ।
कुछ ही देर मैं हम सब लोग बैठे खाना खा रहे थे। जाहिरा के कपड़े सूख चुके थे.. लेकिन उसकी काली ब्रेजियर अभी भी गीली थी.. जिसकी वजह से वो अब भी साफ़ नज़र आ रही थी। अब जाहिरा को कोई फिकर नहीं थी.. उसे महसूस ही नहीं हो रहा था कि उसका अपना सगा भाई.. अपनी बीवी की मौजूदगी में भी.. उसकी नज़र बचा कर.. उसके जिस्म और उसकी ब्रेजियर और उसकी चूचियों को देख रहा है।
मेरी नज़रें तो फैजान की हर हरकत पर थीं कि कैसे खाना खाते हुए.. वो अपनी बहन की चूचियों को देख रहा है।
खाना खाने के बाद मुझे गरम लोहे पर एक और वार करने का ख्याल आया और मैंने अपने इस नए आइडिया पर फ़ौरन अमल करने का इरादा कर लिया।
एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna
Re: एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna
.......................................
A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मेरा तो बस नहीं चल रहा था कि मैं कब जाहिरा को उसके भाई के सामने बिल्कुल नंगी कर दूँ।
कुछ ही देर मैं हम सब लोग बैठे खाना खा रहे थे। जाहिरा के कपड़े सूख चुके थे.. लेकिन उसकी काली ब्रेजियर अभी भी गीली थी.. जिसकी वजह से वो अब भी साफ़ नज़र आ रही थी। अब जाहिरा को कोई फिकर नहीं थी.. उसे महसूस ही नहीं हो रहा था कि उसका अपना सगा भाई.. अपनी बीवी की मौजूदगी में भी.. उसकी नज़र बचा कर.. उसके जिस्म और उसकी ब्रेजियर और उसकी चूचियों को देख रहा है।
मेरी नज़रें तो फैजान की हर हरकत पर थीं कि कैसे खाना खाते हुए.. वो अपनी बहन की चूचियों को देख रहा है।
खाना खाने के बाद मुझे गरम लोहे पर एक और वार करने का ख्याल आया और मैंने अपने इस नए आइडिया पर फ़ौरन अमल करने का इरादा कर लिया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
बारिश रुक चुकी हुई थी और बाहर हल्की-हल्की हवा चल रही थी.. जिसके वजह से मौसम बहुत ही प्यारा हो रहा था, मैंने फैजान से कहा- आज मौसम बहुत अच्छा हो रहा है.. चलो मुझे और जाहिरा को बाहर घुमाने लेकर चलो।
मेरी बात सुन कर जाहिरा भी खुशी से उछल पड़ी और बोली- हाँ भैया.. भाभी ठीक कह रही हैं.. बाहर चलते हैं।
फैजान ने एक नज़र अपनी बहन की चूचियों पर डाली और फिर प्रोग्राम ओके कर दिया और बोला- बस तैयार हो जाओ.. फिर चलते हैं।
फैजान अपने कमरे में चला गया.. मैं और जाहिरा ने बर्तन समेट कर रसोई में रख कर काम ओके किया और बाहर आ गए।
मैं जाहिरा के साथ उसके कमरे में गई और उसे एक उसकी टाइट सी जीन्स और एक नई टी-शर्ट निकाल कर दी।
मैं बोली- आज तुम यह पहन कर चलोगी बाहर.. नहीं तो मैं तुमको लेकर भी ना जाऊँगी।
जाहिरा मेरी बात सुन कर मुस्कुराई और बोली- ठीक है भाभी.. जैसा आप कहो।
मैंने उसके गाल पर एक हल्का सा किस किया और बोली- शाबाश मेरी प्यारी ननद रानी..
फिर मैं अपने कमरे में आ गई।
मैंने भी जीन्स और कुरती पहन ली.. कुरती तो हाफ जाँघों तक ही थी और जीन्स भी टाइट थी।
फैजान भी तैयार हो चुका हुआ था।
हम दोनों तैयार होकर टीवी लाउंज में आ गए और मैं चाय बनाने लगी।
जैसे ही मैं चाय लेकर आई तो जाहिरा भी आ गई।
उसे देख कर तो मेरा और फैजान दोनों का मुँह खुला का खुला रह गया।
उसकी टाइट टी-शर्ट में उसकी खूबसूरत चूचियों बहुत ज्यादा गजब ढा रही थीं उसकी चूचियाँ बहुत ही सख़्त और अकड़ी हुई और जानदार शानदार लग रही थीं।
टी-शर्ट उसकी जीन्स की शुरुआत तक ही थी और नीचे टाइट जीन्स में जाहिरा की गाण्ड बहुत ज्यादा उभर रही थी।
उसकी जीन्स और टी-शर्ट उसके जिस्म पर बिल्कुल फंसे हुए थे.. लेकिन वो बहुत ही प्यारी लग रही थी।
हमने चाय पी और मैं बोली- फैजान आज तुम्हारी बहन को कोई नहीं कह सकता की यह पेण्डू है.. यह तो आज पूरी की पूरी शहरी लड़की लग रही है।
मेरी बात सुन कर जाहिरा शर्मा गई। फिर हम तीनों सैर के लिए घर से बाहर निकले और फैजान ने अपनी बाइक निकाल ली।
घर को लॉक करके जब फैजान ने बाइक स्टार्ट की.. तो मैंने उसके पीछे बैठने की बजाए अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ जाहिरा को कहा कि वो अपने भाई के पीछे बैठे।
जाहिरा को अंदाज़ा नहीं था कि मैं क्या सोच रही हूँ.. इसलिए वो चुप करके फैजान के पीछे बाइक पर बैठ गई।
यह तो मुझे ही पता था ना कि अब जाहिरा का पूरा जिस्म अपने भाई के जिस्म से चिपक जाएगा और उसकी चूचियाँ पूरी तरह से फैजान की कमर से प्रेस हो जाना थीं और यही चीज़ मैं चाहती थी।
आज मैं पहली बार फैजान को उसकी बहन के बदन का और उसकी चूचियों का स्पर्श महसूस करवाना चाहती थी।
जाहिरा के बैठने के बाद मैं भी उछल कर बाइक पर पीछे बैठ गई और बैठते ही मैंने जाहिरा को थोड़ा सा और आगे की तरफ दबा दिया।
अब मैं और जाहिरा दोनों ही एक ही तरफ टाँगें करके बैठे हुई थीं और जाहिरा का पूरे का पूरा जिस्म का अगला हिस्सा यानि उसकी चूचियाँ अपने भाई की पीठ के साथ चिपकी हुई थीं।
जाहिरा ने अपना एक हाथ अपने भाई के कंधे पर रखा हुआ था और दूसरा एक साइड पर था। मैंने एक हाथ जाहिरा की तरफ से डाल कर अपने शौहर फैजान की जाँघ पर रख दिया हुआ था।
जैसे ही बाइक चली तो मैंने आहिस्ता-आहिस्ता फैजान की जाँघ को अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
एक-दो बार फैजान ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर मुझे रोकने की कोशिश की.. लेकिन मेरा हाथ नहीं रुका और मैंने आहिस्ता-आहिस्ता अपना हाथ फैजान की पैन्ट के ऊपर से उसके लण्ड पर रख दिया। मुझे फील हुआ कि उसका लंड थोड़ा-थोड़ा अकड़ा हुआ है।
ज़ाहिर है कि अपनी बहन की सॉलिड चूचियों का टच अपनी पीठ पर फील करके वो कैसे बेखबर रह सकता था।
मैंने भी अब आहिस्ता-आहिस्ता उसके लण्ड पर उसकी पैन्ट के ऊपर से हाथ फेरना शुरू कर दिया.. जिससे उसका लंड और भी सख़्त होने लगा।
एक बार तो उसने मेरा हाथ अपने लंड पर अपनी हाथ के साथ भींच ही दिया। मेरी इन तमाम हरकतों से जाहिरा बिल्कुल बेख़बर थी और पूरी तरह से बाइक की सैर और मौसम को एंजाय कर रही थी।
अब मैंने अपनी तवज्जो जाहिरा की तरफ की और अपना चेहरा आहिस्ता से उसकी कंधे पर रख दिया.. जैसे सिर्फ़ रुटीन में ही रखा हो। धीरे-धीरे मैं उसकी गर्दन को अपने होंठों से सहलाने लगी।
जाहिरा को भी जैसे थोड़ी गुदगुदी सी फील हुई.. तो वो कसमसाने लगी।
मैंने थोड़ा सा और आगे को खिसकते हुए उसे और भी अपने भाई की कमर के साथ चिपका दिया, फिर मैंने धीरे से उसके कान में कहा-
जाहिरा देख लड़कियाँ तुझे कैसे देख रही हैं..
जाहिरा ने मुस्करा कर थोड़ी सी गर्दन मोड़ कर मेरी तरफ देखा और बहुत धीरे से बोली- भाभी आपको भी तो देख रही हैं।
वो इतनी आहिस्ता से बोली थी.. ताकि उसका भाई उसकी आवाज़ ना सुन सके।
मैंने दोबारा से उसकी गर्दन पर अपनी गरम-गरम साँसें छोड़ते हुए कहा- आज तो तू क़यामत लग रही है।
जाहिरा बोली- और भाभी आप तो हर रोज़ और हर वक़्त ही क़यामत लगती हो..
मैंने धीरे से अपना दूसरा हाथ थोड़ा ऊपर को किया.. जाहिरा की कमर पर रख दिया.. उसकी चूची के पास.. जस्ट उसकी ब्रा के लेवेल पर.. इस तरह हाथ रखने से मेरा हाथ उसकी चूची को छू रहा था और फैजान की कमर पर भी चल रहा था।
मेरा दूसरा हाथ अभी भी फैजान की पैन्ट के ऊपर उसके लण्ड पर ही था। मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं और जाहिरा धीरे-धीरे बातें कर रही थीं.. तो ज़रूर उसे भी हमारी आवाजें जाती होंगी.. जिसकी वजह से उसके लण्ड में हरकत सी हो रही थी। मैं इस बात को बिना किसी रुकावट के महसूस कर रही थी।
जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।
मेरा तो बस नहीं चल रहा था कि मैं कब जाहिरा को उसके भाई के सामने बिल्कुल नंगी कर दूँ।
कुछ ही देर मैं हम सब लोग बैठे खाना खा रहे थे। जाहिरा के कपड़े सूख चुके थे.. लेकिन उसकी काली ब्रेजियर अभी भी गीली थी.. जिसकी वजह से वो अब भी साफ़ नज़र आ रही थी। अब जाहिरा को कोई फिकर नहीं थी.. उसे महसूस ही नहीं हो रहा था कि उसका अपना सगा भाई.. अपनी बीवी की मौजूदगी में भी.. उसकी नज़र बचा कर.. उसके जिस्म और उसकी ब्रेजियर और उसकी चूचियों को देख रहा है।
मेरी नज़रें तो फैजान की हर हरकत पर थीं कि कैसे खाना खाते हुए.. वो अपनी बहन की चूचियों को देख रहा है।
खाना खाने के बाद मुझे गरम लोहे पर एक और वार करने का ख्याल आया और मैंने अपने इस नए आइडिया पर फ़ौरन अमल करने का इरादा कर लिया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
बारिश रुक चुकी हुई थी और बाहर हल्की-हल्की हवा चल रही थी.. जिसके वजह से मौसम बहुत ही प्यारा हो रहा था, मैंने फैजान से कहा- आज मौसम बहुत अच्छा हो रहा है.. चलो मुझे और जाहिरा को बाहर घुमाने लेकर चलो।
मेरी बात सुन कर जाहिरा भी खुशी से उछल पड़ी और बोली- हाँ भैया.. भाभी ठीक कह रही हैं.. बाहर चलते हैं।
फैजान ने एक नज़र अपनी बहन की चूचियों पर डाली और फिर प्रोग्राम ओके कर दिया और बोला- बस तैयार हो जाओ.. फिर चलते हैं।
फैजान अपने कमरे में चला गया.. मैं और जाहिरा ने बर्तन समेट कर रसोई में रख कर काम ओके किया और बाहर आ गए।
मैं जाहिरा के साथ उसके कमरे में गई और उसे एक उसकी टाइट सी जीन्स और एक नई टी-शर्ट निकाल कर दी।
मैं बोली- आज तुम यह पहन कर चलोगी बाहर.. नहीं तो मैं तुमको लेकर भी ना जाऊँगी।
जाहिरा मेरी बात सुन कर मुस्कुराई और बोली- ठीक है भाभी.. जैसा आप कहो।
मैंने उसके गाल पर एक हल्का सा किस किया और बोली- शाबाश मेरी प्यारी ननद रानी..
फिर मैं अपने कमरे में आ गई।
मैंने भी जीन्स और कुरती पहन ली.. कुरती तो हाफ जाँघों तक ही थी और जीन्स भी टाइट थी।
फैजान भी तैयार हो चुका हुआ था।
हम दोनों तैयार होकर टीवी लाउंज में आ गए और मैं चाय बनाने लगी।
जैसे ही मैं चाय लेकर आई तो जाहिरा भी आ गई।
उसे देख कर तो मेरा और फैजान दोनों का मुँह खुला का खुला रह गया।
उसकी टाइट टी-शर्ट में उसकी खूबसूरत चूचियों बहुत ज्यादा गजब ढा रही थीं उसकी चूचियाँ बहुत ही सख़्त और अकड़ी हुई और जानदार शानदार लग रही थीं।
टी-शर्ट उसकी जीन्स की शुरुआत तक ही थी और नीचे टाइट जीन्स में जाहिरा की गाण्ड बहुत ज्यादा उभर रही थी।
उसकी जीन्स और टी-शर्ट उसके जिस्म पर बिल्कुल फंसे हुए थे.. लेकिन वो बहुत ही प्यारी लग रही थी।
हमने चाय पी और मैं बोली- फैजान आज तुम्हारी बहन को कोई नहीं कह सकता की यह पेण्डू है.. यह तो आज पूरी की पूरी शहरी लड़की लग रही है।
मेरी बात सुन कर जाहिरा शर्मा गई। फिर हम तीनों सैर के लिए घर से बाहर निकले और फैजान ने अपनी बाइक निकाल ली।
घर को लॉक करके जब फैजान ने बाइक स्टार्ट की.. तो मैंने उसके पीछे बैठने की बजाए अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ जाहिरा को कहा कि वो अपने भाई के पीछे बैठे।
जाहिरा को अंदाज़ा नहीं था कि मैं क्या सोच रही हूँ.. इसलिए वो चुप करके फैजान के पीछे बाइक पर बैठ गई।
यह तो मुझे ही पता था ना कि अब जाहिरा का पूरा जिस्म अपने भाई के जिस्म से चिपक जाएगा और उसकी चूचियाँ पूरी तरह से फैजान की कमर से प्रेस हो जाना थीं और यही चीज़ मैं चाहती थी।
आज मैं पहली बार फैजान को उसकी बहन के बदन का और उसकी चूचियों का स्पर्श महसूस करवाना चाहती थी।
जाहिरा के बैठने के बाद मैं भी उछल कर बाइक पर पीछे बैठ गई और बैठते ही मैंने जाहिरा को थोड़ा सा और आगे की तरफ दबा दिया।
अब मैं और जाहिरा दोनों ही एक ही तरफ टाँगें करके बैठे हुई थीं और जाहिरा का पूरे का पूरा जिस्म का अगला हिस्सा यानि उसकी चूचियाँ अपने भाई की पीठ के साथ चिपकी हुई थीं।
जाहिरा ने अपना एक हाथ अपने भाई के कंधे पर रखा हुआ था और दूसरा एक साइड पर था। मैंने एक हाथ जाहिरा की तरफ से डाल कर अपने शौहर फैजान की जाँघ पर रख दिया हुआ था।
जैसे ही बाइक चली तो मैंने आहिस्ता-आहिस्ता फैजान की जाँघ को अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
एक-दो बार फैजान ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर मुझे रोकने की कोशिश की.. लेकिन मेरा हाथ नहीं रुका और मैंने आहिस्ता-आहिस्ता अपना हाथ फैजान की पैन्ट के ऊपर से उसके लण्ड पर रख दिया। मुझे फील हुआ कि उसका लंड थोड़ा-थोड़ा अकड़ा हुआ है।
ज़ाहिर है कि अपनी बहन की सॉलिड चूचियों का टच अपनी पीठ पर फील करके वो कैसे बेखबर रह सकता था।
मैंने भी अब आहिस्ता-आहिस्ता उसके लण्ड पर उसकी पैन्ट के ऊपर से हाथ फेरना शुरू कर दिया.. जिससे उसका लंड और भी सख़्त होने लगा।
एक बार तो उसने मेरा हाथ अपने लंड पर अपनी हाथ के साथ भींच ही दिया। मेरी इन तमाम हरकतों से जाहिरा बिल्कुल बेख़बर थी और पूरी तरह से बाइक की सैर और मौसम को एंजाय कर रही थी।
अब मैंने अपनी तवज्जो जाहिरा की तरफ की और अपना चेहरा आहिस्ता से उसकी कंधे पर रख दिया.. जैसे सिर्फ़ रुटीन में ही रखा हो। धीरे-धीरे मैं उसकी गर्दन को अपने होंठों से सहलाने लगी।
जाहिरा को भी जैसे थोड़ी गुदगुदी सी फील हुई.. तो वो कसमसाने लगी।
मैंने थोड़ा सा और आगे को खिसकते हुए उसे और भी अपने भाई की कमर के साथ चिपका दिया, फिर मैंने धीरे से उसके कान में कहा-
जाहिरा देख लड़कियाँ तुझे कैसे देख रही हैं..
जाहिरा ने मुस्करा कर थोड़ी सी गर्दन मोड़ कर मेरी तरफ देखा और बहुत धीरे से बोली- भाभी आपको भी तो देख रही हैं।
वो इतनी आहिस्ता से बोली थी.. ताकि उसका भाई उसकी आवाज़ ना सुन सके।
मैंने दोबारा से उसकी गर्दन पर अपनी गरम-गरम साँसें छोड़ते हुए कहा- आज तो तू क़यामत लग रही है।
जाहिरा बोली- और भाभी आप तो हर रोज़ और हर वक़्त ही क़यामत लगती हो..
मैंने धीरे से अपना दूसरा हाथ थोड़ा ऊपर को किया.. जाहिरा की कमर पर रख दिया.. उसकी चूची के पास.. जस्ट उसकी ब्रा के लेवेल पर.. इस तरह हाथ रखने से मेरा हाथ उसकी चूची को छू रहा था और फैजान की कमर पर भी चल रहा था।
मेरा दूसरा हाथ अभी भी फैजान की पैन्ट के ऊपर उसके लण्ड पर ही था। मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं और जाहिरा धीरे-धीरे बातें कर रही थीं.. तो ज़रूर उसे भी हमारी आवाजें जाती होंगी.. जिसकी वजह से उसके लण्ड में हरकत सी हो रही थी। मैं इस बात को बिना किसी रुकावट के महसूस कर रही थी।
जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।
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Re: एक भाई की वासना Ek Bhai Ki Vasna
मेरा दूसरा हाथ अभी भी फैजान की पैन्ट के ऊपर उसके लण्ड पर ही था। मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं और जाहिरा धीरे-धीरे बातें कर रही थीं.. तो ज़रूर उसे भी हमारी आवाजें जाती होंगी.. जिसकी वजह से उसके लण्ड में हरकत सी हो रही थी। मैं इस बात को बिना किसी रुकावट के महसूस कर रही थी।
जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
जाहिरा बोली- भाभी मुझे तो बहुत ही अजीब लग रहा है.. इस ड्रेस में बड़ी ही शर्म सी महसूस हो रही है।
मैं- अरे पगली बिल्कुल ईज़ी होकर रहना और किसी किस्म की भी कोई बेवक़ूफों वाली हरकत ना करना और ना ही ऐसी शक़ल बनाना.. कुछ भी नहीं होगा.. बस तू देखती रहना कि दूसरी लड़कियों ने भी कैसे-कैसे कपड़े पहने हुए हैं.. फिर तुझे कोई भी शर्म महसूस नहीं होगी और ना ही अजीब लगेगा।
इससे पहले कि जाहिरा कुछ और कहती फैजान भी हमारे पास आ गया और हम तीनों ही पार्क में चले गए।
अभी हम लोग थोड़ी ही दूर गए थे कि मैंने जानबूझ कर जाहिरा का हाथ पकड़ा और फैजान से आगे-आगे चलने लगे उसे लेकर.. मक़सद मेरा इसमें यही था कि फैजान की नज़र अपनी बहन की ठुमकती गाण्ड पर पड़ती रहे और वो सिर्फ़ और सिर्फ़ यही देखता रहे और उसके दिमाग पर अपनी बहन के जिस्म के छूने से जो नशा सा हुआ है.. वो नशा ना उतर सके।
मैंने महसूस किया कि हो भी ऐसा ही रहा था कि फैजान की नजरें अपनी बहन की टाइट जीन्स में फंसी हुई गाण्ड पर ही घूम रही थीं।
मैं और जाहिरा इधर-उधर की बातें करते हुए चलते जा रहे थे। इधर-उधर जो भी लड़की किसी सेक्सी ड्रेस में नज़र आती.. तो मैं उसकी तरफ भी इशारा करके जाहिरा को बताती जाती थी।
इस तरह इशारा करने से फैजान की नज़र भी उस लड़की की तरफ ज़रूर जाती थी और उसे भी कुछ ना कुछ अंदाज़ा हो जाता था कि हम क्या बातें कर रहे हैं और किस लड़की के लिबास की बात हो रही हैं।
जाहिरा मुझसे बोली- भाभी ड्रेस तो आपने भी बहुत ओपन पहना हुआ है.. देखिए जरा इस कुरती का गला कितना खुला और डीप है.. जो आपने पहना हुआ है।
मैं उसकी तरफ देख कर हँसी और बोली- अरे यार.. फिर क्या हुआ.. इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है.. कोई देखता है तो देखे.. जब मेरे शौहर को किसी के देखने से तो ऐतराज़ नहीं है.. फिर मुझे क्या?
मेरी बात सुन कर जाहिरा हँसने लगी और मैं भी हँसने लगी।
फिर हम लोग तीनों जा कर एक बैंच पर बैठ गए और इधर-उधर की बातें करने लगे। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक कैन्टीन थी। कुछ देर के बाद फैजान ने अपना पर्स निकाला और उसमें से कुछ पैसे निकाल कर जाहिरा को दिए और बोला- जाओ जाहिरा.. वहाँ कैन्टीन से कुछ खाने-पीने की चीजें ले आओ।
जाहिरा अकेले कैन्टीन की तरफ जाते हुए झिझक रही थी.. मैंने उसे उत्साहित किया- हाँ हाँ.. जाओ.. कुछ नहीं होता.. हम लोग यहीं तो तुम्हारे सामने बैठे हैं।
जाहिरा उठी और कैन्टीन की तरफ बढ़ गई। फैजान जाते हुए उसकी गाण्ड को ही देख रहा था.. जो कि पूरी तरह इधर-उधर मटक रही थी।
कुछ देर फैजान उसी को देखता रहा फिर मुझसे बोला- यह तुम बाइक पर बैठे क्या शरारतें कर रही थीं।
मैं मुस्कुराई और अंजान बनते हुए बोली- कौन सी शरारत?
फैजान- वो जो मेरे लण्ड को दबा रही थी।
मैं हंस कर बोली- मैंने सोचा कि आज मैं अपनी चूचियों को तुम्हारी पीठ पर रगड़ नहीं सकती.. तो ऐसी ही थोड़ा सा तुम को मज़ा दे दूँ।
मैंने जानबूझ कर जाहिरा की चूचियों के उसकी पीठ पर लगने का जिक्र नहीं किया.. क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वो शर्मिंदा हो। लेकिन एक बात हुई कि जैसे ही मैंने अपनी चूचियों की उसकी पीठ पर लगाने का जिक्र किया.. तो फ़ौरन ही उसकी नज़र जाहिरा की तरफ उठ गई.. जैसे उसे एक बार फिर से याद आ गया हो कि कैसे जाहिरा अपनी चूचियों को उसकी पीठ के साथ लगा कर बैठी हुई थी।
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उसी वक़्त जाहिरा कैन्टीन से स्नैक्स और कोल्ड-ड्रिंक्स लेकर मुड़ी.. तो फैजान की नजरें जाहिरा की टाइट टी-शर्ट में उभरी हुई नज़र आ रही चूचियों पर घूम गईं।
मैंने भी कोई बात करके उसको डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा और इधर-उधर देखने लगी।
हम तीनों ने बैठ कर स्नैक्स और ड्रिंक्स से एंजाय किया और फिर जब थोड़ा अँधेरा होने लगा.. तो हम लोग घर की तरफ वापिस लौटे। मैंने दोबारा जाहिरा को फैजान के पीछे बैठाया।
पूरे रास्ते फिर मेरी वो ही हरकतें चलती रहीं और जाहिरा अपनी चूचियों को अपने भाई की पीठ पर दबा कर बैठे रही। मैं भी फैजान का लंड आहिस्ता-आहिस्ता दबाती और सहलाती रही।
घर आकर मैंने अपने कपड़े बदल लिए। आज रात मैंने फैजान का एक बरमूडा पहन लिया था.. जो कि मेरे घुटनों तक का था और ऊपर से मैंने एक टी-शर्ट पहन ली।
कभी-कभी मैं घर में यह ड्रेस भी पहन लेती थी। अब मेरी गोरी-गोरी टाँगें घुटनों तक बिल्कुल नंगी हो रही थीं।
फैजान ने चाय के लिए कहा तो जाहिरा चाय बनाने चली गई और मैं फैजान के बिल्कुल साथ लग कर बैठ गई और टीवी देखने लगी।
फैजान भी जब से आया था.. तो वो गरम हो रहा था, उसने मौका मिलते ही मुझे अपने पास खींच लिया और मेरे गालों को चूमने लगा।
मैंने अपना हाथ उसकी पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर रखा और बोली- क्या बात है.. आज बड़े गरम हो रहे हो?
फैजान ने भी मेरा बरमूडा थोड़ा सा घुटनों से ऊपर को खिसकाया और मेरी जाँघों को नंगी करके उस पर हाथ फेरने लगा।
थोड़ी देर मैं जैसे ही जाहिरा चाय बना कर वापिस आई तो फैजान ने अपना हाथ मेरी नंगी जाँघों से हटा लिया। लेकिन मैं अभी भी उसके साथ चिपक कर बैठे रही।
जाहिरा ने हम पर एक नज़र डाली और जब मेरी नज़र से उसकी नज़र मिली.. तो वो धीरे से मुस्करा दी और मैंने भी उसे एक स्माइल दी।
फिर हम सब चाय पीने लगे और मैं उसी हालत मैं अपने शौहर के साथ चिपक कर बैठे रही। मेरी जाँघें अभी भी नंगी थीं लेकिन मुझे कोई फिकर नहीं थी कि मैं अपनी नंगी जाँघों को कवर कर लूँ।
जाहिरा भी मेरी नंगी जांघ और मेरे हाथों को अपने भाई की जाँघों पर सरकते हुए देखती रही।
जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
जाहिरा बोली- भाभी मुझे तो बहुत ही अजीब लग रहा है.. इस ड्रेस में बड़ी ही शर्म सी महसूस हो रही है।
मैं- अरे पगली बिल्कुल ईज़ी होकर रहना और किसी किस्म की भी कोई बेवक़ूफों वाली हरकत ना करना और ना ही ऐसी शक़ल बनाना.. कुछ भी नहीं होगा.. बस तू देखती रहना कि दूसरी लड़कियों ने भी कैसे-कैसे कपड़े पहने हुए हैं.. फिर तुझे कोई भी शर्म महसूस नहीं होगी और ना ही अजीब लगेगा।
इससे पहले कि जाहिरा कुछ और कहती फैजान भी हमारे पास आ गया और हम तीनों ही पार्क में चले गए।
अभी हम लोग थोड़ी ही दूर गए थे कि मैंने जानबूझ कर जाहिरा का हाथ पकड़ा और फैजान से आगे-आगे चलने लगे उसे लेकर.. मक़सद मेरा इसमें यही था कि फैजान की नज़र अपनी बहन की ठुमकती गाण्ड पर पड़ती रहे और वो सिर्फ़ और सिर्फ़ यही देखता रहे और उसके दिमाग पर अपनी बहन के जिस्म के छूने से जो नशा सा हुआ है.. वो नशा ना उतर सके।
मैंने महसूस किया कि हो भी ऐसा ही रहा था कि फैजान की नजरें अपनी बहन की टाइट जीन्स में फंसी हुई गाण्ड पर ही घूम रही थीं।
मैं और जाहिरा इधर-उधर की बातें करते हुए चलते जा रहे थे। इधर-उधर जो भी लड़की किसी सेक्सी ड्रेस में नज़र आती.. तो मैं उसकी तरफ भी इशारा करके जाहिरा को बताती जाती थी।
इस तरह इशारा करने से फैजान की नज़र भी उस लड़की की तरफ ज़रूर जाती थी और उसे भी कुछ ना कुछ अंदाज़ा हो जाता था कि हम क्या बातें कर रहे हैं और किस लड़की के लिबास की बात हो रही हैं।
जाहिरा मुझसे बोली- भाभी ड्रेस तो आपने भी बहुत ओपन पहना हुआ है.. देखिए जरा इस कुरती का गला कितना खुला और डीप है.. जो आपने पहना हुआ है।
मैं उसकी तरफ देख कर हँसी और बोली- अरे यार.. फिर क्या हुआ.. इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है.. कोई देखता है तो देखे.. जब मेरे शौहर को किसी के देखने से तो ऐतराज़ नहीं है.. फिर मुझे क्या?
मेरी बात सुन कर जाहिरा हँसने लगी और मैं भी हँसने लगी।
फिर हम लोग तीनों जा कर एक बैंच पर बैठ गए और इधर-उधर की बातें करने लगे। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक कैन्टीन थी। कुछ देर के बाद फैजान ने अपना पर्स निकाला और उसमें से कुछ पैसे निकाल कर जाहिरा को दिए और बोला- जाओ जाहिरा.. वहाँ कैन्टीन से कुछ खाने-पीने की चीजें ले आओ।
जाहिरा अकेले कैन्टीन की तरफ जाते हुए झिझक रही थी.. मैंने उसे उत्साहित किया- हाँ हाँ.. जाओ.. कुछ नहीं होता.. हम लोग यहीं तो तुम्हारे सामने बैठे हैं।
जाहिरा उठी और कैन्टीन की तरफ बढ़ गई। फैजान जाते हुए उसकी गाण्ड को ही देख रहा था.. जो कि पूरी तरह इधर-उधर मटक रही थी।
कुछ देर फैजान उसी को देखता रहा फिर मुझसे बोला- यह तुम बाइक पर बैठे क्या शरारतें कर रही थीं।
मैं मुस्कुराई और अंजान बनते हुए बोली- कौन सी शरारत?
फैजान- वो जो मेरे लण्ड को दबा रही थी।
मैं हंस कर बोली- मैंने सोचा कि आज मैं अपनी चूचियों को तुम्हारी पीठ पर रगड़ नहीं सकती.. तो ऐसी ही थोड़ा सा तुम को मज़ा दे दूँ।
मैंने जानबूझ कर जाहिरा की चूचियों के उसकी पीठ पर लगने का जिक्र नहीं किया.. क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वो शर्मिंदा हो। लेकिन एक बात हुई कि जैसे ही मैंने अपनी चूचियों की उसकी पीठ पर लगाने का जिक्र किया.. तो फ़ौरन ही उसकी नज़र जाहिरा की तरफ उठ गई.. जैसे उसे एक बार फिर से याद आ गया हो कि कैसे जाहिरा अपनी चूचियों को उसकी पीठ के साथ लगा कर बैठी हुई थी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसी वक़्त जाहिरा कैन्टीन से स्नैक्स और कोल्ड-ड्रिंक्स लेकर मुड़ी.. तो फैजान की नजरें जाहिरा की टाइट टी-शर्ट में उभरी हुई नज़र आ रही चूचियों पर घूम गईं।
मैंने भी कोई बात करके उसको डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा और इधर-उधर देखने लगी।
हम तीनों ने बैठ कर स्नैक्स और ड्रिंक्स से एंजाय किया और फिर जब थोड़ा अँधेरा होने लगा.. तो हम लोग घर की तरफ वापिस लौटे। मैंने दोबारा जाहिरा को फैजान के पीछे बैठाया।
पूरे रास्ते फिर मेरी वो ही हरकतें चलती रहीं और जाहिरा अपनी चूचियों को अपने भाई की पीठ पर दबा कर बैठे रही। मैं भी फैजान का लंड आहिस्ता-आहिस्ता दबाती और सहलाती रही।
घर आकर मैंने अपने कपड़े बदल लिए। आज रात मैंने फैजान का एक बरमूडा पहन लिया था.. जो कि मेरे घुटनों तक का था और ऊपर से मैंने एक टी-शर्ट पहन ली।
कभी-कभी मैं घर में यह ड्रेस भी पहन लेती थी। अब मेरी गोरी-गोरी टाँगें घुटनों तक बिल्कुल नंगी हो रही थीं।
फैजान ने चाय के लिए कहा तो जाहिरा चाय बनाने चली गई और मैं फैजान के बिल्कुल साथ लग कर बैठ गई और टीवी देखने लगी।
फैजान भी जब से आया था.. तो वो गरम हो रहा था, उसने मौका मिलते ही मुझे अपने पास खींच लिया और मेरे गालों को चूमने लगा।
मैंने अपना हाथ उसकी पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर रखा और बोली- क्या बात है.. आज बड़े गरम हो रहे हो?
फैजान ने भी मेरा बरमूडा थोड़ा सा घुटनों से ऊपर को खिसकाया और मेरी जाँघों को नंगी करके उस पर हाथ फेरने लगा।
थोड़ी देर मैं जैसे ही जाहिरा चाय बना कर वापिस आई तो फैजान ने अपना हाथ मेरी नंगी जाँघों से हटा लिया। लेकिन मैं अभी भी उसके साथ चिपक कर बैठे रही।
जाहिरा ने हम पर एक नज़र डाली और जब मेरी नज़र से उसकी नज़र मिली.. तो वो धीरे से मुस्करा दी और मैंने भी उसे एक स्माइल दी।
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जाहिरा भी मेरी नंगी जांघ और मेरे हाथों को अपने भाई की जाँघों पर सरकते हुए देखती रही।
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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