शीशे का ताजमहल

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sexy
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Re: शीशे का ताजमहल

Unread post by sexy » 13 Sep 2015 09:39

वो अत्यधिक उत्तेजना में तड़पने लगी, उसका शरीर लहराने लगा। अचानक उसके योनिद्वार के पास मेरा दाहिना हाथ रुका। मैंने उसके योनिद्वार के कटाव को सहलाते हुए अपनी मध्यमा ऊँगली उसकी गर्म योनि में डालकर अन्दर के हिस्से को सहलाने लगा, उसका सारा शरीर थिरकने लगा। उसने अपने दोनों टांगों को कुछ ऊपर उठा कर फैला दिए। मैं अपनी उंगली उसकी योनि के और अन्दर तक ले गया और जोर-जोर से घुमा-घुमाकर रगड़ने लगा। जब भी मेरे हाथ रुकते वो विचलित हो जाती और भर्राई हुई आवाज़ में मुझे जारी रखने को कहती।
उसके पैर फैलते जा रहे थे। मैं जोर-जोर से रगड़ते जा रहा था। उसकी थिरकन बढ़ती जा रही थी। अचानक उसने अपने दोनों पैरों को सटाकर योनि को सिकोड़ लिया और निढाल हो गई। वो झर चुकी थी, उसकी योनि गीली हो गई थी। उसकी उत्तेजना कुछ शांत हो गई थी पर मेरी उत्तेजना और बढ़ गई। इसे शबनम भी अच्छी तरह समझती थी। उसने मुझे चित्त लिटाया और मेरे सर के दोनों ओर अपने घुटनों को रखकर तथा अपनी दोनों कुहनियों को मेरे कमर के दोनों और रखकर मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसकी योनि को अपनी मुँह की सीध में लाया और अपना जीभ उसकी योनि में डाल दिया।
वो मेरे लिंग को जोर-जोर से चूसने लगी। मैं अपना मुँह उसकी योनि के भीतर तक डालकर आम की तरह चूसने लगा। मैं उसकी योनि के अन्दर और बाहर जोर-जोर से चूस रहा था। उसे इतना आनंद आ रहा था कि उसने मेरे लिंग को मुँह में तो रखा था पर चूसना छोड़ दिया। वो कराह रही थी, अपने कूल्हों को हिला-हिलाकर पूर्ण आनन्द प्राप्त कर रही थी। थोड़ी देर में वो निढाल होकर मेरे ऊपर गिर पड़ी।
वो फिर से झर चुकी थी।
मैंने उसे अपने ऊपर से अलग किया और उसके गदराई अर्धतृप्त काया को अपनी बाँहों में समेटकर प्यार से सहलाने लगा। उसने मुझे कस कर जकड़ लिया। हम दोनों यूँ ही एक दूसरे से लिपटे हुए पड़े थे। कुछ देर पड़े रहने के बाद उसने मेरे लिंग को पकड़कर अपनी लाल-लाल याचक निगाहों से मेरी ओर देखा।
मैंने उसे चित्त लिटाया और उसकी दोनों जांघों को फैलाकर उनके बीच घुटनों के बल बैठ गया। मेरा वृहदाकार लिंग पूर्ण उत्तेजित अवस्था में शबनम के प्यासे गदराये योनि में प्रवेश के लिए आतुर हो रहा था। मैंने अपने लिंग को दाहिने हाथ से पकडकड़ शबनम के योनिद्वार पर रख दिया।
उसने अपने पैरों को फैलाकर थोड़ा सा ऊपर उठाया, मैंने हल्का सा धक्का दिया। लिंग थोड़ा सा अन्दर गया। मैंने लिंग को बाहर निकाला और एक जोरदार धक्के के साथ पूरे के पूरे लिंग को एक ही बार में शबनम के गर्म योनि में अन्दर तक बहुत अन्दर तक प्रवेश करा दिया।
शबनम का जिस्म जोर से थिरक उठा, उसके गले से उत्तेजक चीख निकल गई, उसने मेरे कन्धों को कस कर पकड़ लिया।
अब मैं अपने लिंग को धीरे-धीरे बाहर निकालकर झटके के साथ भीतर घुसाने लगा। हर झटके में वो तड़प उठती। ज्यों ही मेरा लिंग अन्दर जाने को होता शबनम अपने योनि की भीतरी दीवारों को संकुचित कर उसे जकड़कर अन्दर की गहराइयों में खींच लेती और बाहर निकलते वक़्त योनि को ढीला कर किसी अनजानी भीतरी ताक़त से बाहर की ओर धकेल देती। ऐसा वो हर प्रहार पर करने लगी।
मुझे असीम आनन्द की अनुभूति हो रही थी, मैंने अपने प्रहार तेज कर दिए। वो अपने नितम्बों को उठा-उठाकर मुझे सम्भोग का सम्पूर्ण आनन्द प्रदान कर रही थी। वो चीख रही थी, चिल्ला रही थी और मैं पूरी ताक़त से उसे चोद रहा था। हम इस दुनिया से बेखबर किसी अलौकिक दुनिया में जा चुके थे। उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर गडा दिए मैंने उसके बालों को कस कर पकड़ लिया और जोर-जोर से चोदता हुआ एक भयंकर चीत्कार के साथ अपना सर्वस्व उसकी योनि-पात्र में उड़ेल दिया।
सुबह जब नींद खुली तो देखा शबनम सम्पूर्ण नग्नावस्था में मेरे समीप गहरी नींद में सोई हुई है। उसके चेहरे पर सम्पूर्ण तृप्ति और संतुष्टि के भाव थे। स्वर्गलोक की किसी अप्सरा सी लग रही थी वह।मैंने उसे आलिंगनबद्ध कर उसके माथे पर चुम्बन जड़ा… उसने आँखें खोली… मुस्कुराई… और मुझे जकड़कर अपने अंक में भर लिया। इसके बाद मैं शादी तक हर रोज़ उसके घर जाता और हम रात-रात भर रतिक्रिया में लीन हो जाते। हमने तरह-तरह के आसनों में एक दूसरे को यौनसुख का आदान-प्रदान किया, नए-नए अनुभव प्राप्त किये।
शादी के तीसरे दिन मैं वापस आ गया। आते समय मेरा मन भारी था पर शबनम गंभीर… निर्विकार थी, उसके चेहरे पर दुःख का कोई भाव नहीं था। इस घटना के करीब एक माह बाद मैंने शीशे का ठीक वैसा ही ताजमहल खरीदकर उसे भिजवा दिया और एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा- आपका जो नुक्सान मैंने अनजाने में कर दिया था, उसकी भरपाई की कोशिश कर रहा हूँ। संभव हो तो इसे उचित स्थान दीजियेगा….!
बाद में दीदी से ताजमहल के बारे में पूछने पर उसने बताया कि शबनम का जो ताजमहल टूट गया था उसकी जगह उसने हूबहू वैसा ही ताजमहल खरीदकर उसी जगह पर रख दिया है। मेरे चेहरे पर निश्चिन्तता की मुस्कराहट तैर गई।

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