इंतकाम की आग--3
गतान्क से आगे………………………
सुनील को जब लगा कि ललिता का काम अब होने ही वाला है तो उसने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी. सीधे गर्भाशय पे धक्कों को ललिता सहन ना कर सकी और ढेर हो गयी.
सुनील ने तुरंत उसको सीधा लिटाया और वापस अपना लंड चूत में पेल दिया. ललिता अब बिल्कुल थक चुकी थी और उसका हर अंग दुख रहा था, पर वो सहन करने की कोशिश करती रही.
सुनील ने झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों से चिपका दिया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी. धीरे धीरे एक बार फिर ललिता को मज़ा आने लगा और वो भी सहयोग करने लगी. अब सुनील ने उसकी चुचियों को मसलना शुरू कर दिया था.
ललिता फिर से मंज़िल के करीब थी. उसने जब सुनील की बाहों पर अपने दाँत गाड़ने शुरू कर दिए तो सुनील भी और ज़्यादा स्पीड से धक्के लगाने लगा. ललिता की चूत के पानी छोड़ते ही उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया और ललिता के मुँह में दे दिया.
ललिता के चूत रस से सना होने की वजह से एक बार तो ललिता ने मना करने की सोची पर कुछ ना कहकर उसको बैठ कर मुँह में ले ही लिया. सुनील ने ललिता का सिर पीछे से पकड़ लिया और मुँह में वीर्य की बौछार सी कर दी. ललिता गू...गूओ करके रह गयी पर क्या कर सकती थी. करीब 8-10 बौछारे वीर्य ने उसके मुँह को पूरा भर दिया. सुनील ने उसको तभी छ्चोड़ा जब वो सारा वीर्य गटक गयी.
दोनों एक दूसरे पर ढेर हो गये. ललिता गुस्से और प्यार से पहले तो उसको देखती रही. जब उसको लगा कि वीर्य पीना कुछ खास बुरा नही था तो वो सुनील से चिपक गयी और उसके उपर आकर उसके चेहरे को चूमने लगी...
यहाँ राज अपनी मीटिंग ख़तम करके अपने असिस्टेंट पवन को तहक़ीक़ात करने के लिए बोला और खुद अपने घर चला आया. तब दोपहर हो रही थी… राज अपनी गाड़ी से उतर कर अपने घर की तरफ मुड़ा… और उसने घर की बेल बजाई… दरवाजा एक लड़की ने खोला बला की खूबसूरत लड़की थी…
नाम था… डॉली…हाँ हाँ आप लोगों ने सही नाम पढ़ा है डॉली … वोई डॉली जो अपने राज भाई के गर्ल्स स्कूल मे पढ़ती थी…
राज और डॉली की शादी हो गयी थी… राज ने जब उसे भिवानि मे पहली बार देखा था तभी से उसे उससे प्यार हो गया था… तभी उसने अपने माता पिता से बातचीत करके कहा कि ये लड़की मुझे पसंद है… तब उसके माता पिता बहुत खुश हुए क्योंकि राज के लिए बहुत सारे रिश्ते आए थे…. पर अपना राज कहाँ मानने वाला था…. उसे तो डॉली ही पसंद आई थी… एक दिन उसने अपने घर ये बात बता दी..तो उसके घर वालों ने डॉली के घर पर बातचीत कर के दोनो की शादी करा दी….
तो डॉली ने दरवाज़ा खोला और सामने राज को देख कर कमर पे हाथ रख के बोली… आ गये आप… चलो फ्रेश होकर खाना खा लो… राज चुप चाप कमरे आगेया और बाथरूम जाकर फ्रेश होगया… तब तक डॉली ने खाना परोस दिया था… राज खाना खाने बैठ गया.. और चुप चाप खाना ख़तम कर दिया… आप सब लोग सोच रहे होंगे… इतना रौब जमाने वाला राज घर पर क्यूँ बिल्ली बन कर रहता था… क्यूंकी डॉली थी ही वैसी…तीखी मिर्ची थी वह… इसलिए राज उसके प्यार मे पागल हुए जा रहा था… उसने खाना ख़तम किया और अपने बेडरूम मे चला गया…
जब सब बर्तन और घर का सारा काम करके डॉली फ्रेश होने बाथरूम मे चली गयी….फ्रेश होके वो अपने बेडरूम मे राज के पास गयी तो राज ने उसे झटके से अपनी बाहों मे भर लिया… डॉली ने उसके गालो पर प्यार से चपत लगाई… और बोली… हर बार आपको कुछ ना कुछ सूझता रहता है…
राज बोला तुम हो ही ऐसी….तब डॉली बोली “अच्छा..” हां चलो प्यार करते है… राज बोला… मौसम कितना सुहाना है… बाहर बादल घिर आए है… तब डॉली बोली चुप बैठो जब देखो तो यही सूझते रहता है… बेचारा राज क्या करता मन मसोस कर के बैठ गया… मुँह फूला कर … करवट ले कर सो गया.. डॉली भी उसके बगल मे करवट ले कर सो गयी…
लेकिन अपना राज कहाँ सब्र करने वाला था… राज ने पलट कर डॉली को देखा… डॉली नींद मे होने का नाटक कर रही थी… उसे पता था कि उसके पति अब क्या करने वाले है… राज ने उसके गले को चूमना शुरू किया और फिर राज ने उसे पलट कर अपनी तरफ उसका मुँह किया और राज ने उसे प्यार से अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.
दोनो के होंठ खुद-ब-खुद एक दूसरे से मिल गये और चुंबन का वो खेल शुरू हुआ जो बहुत देर तक चलता रहा. साँसे भड़क रही थी दोनो की पर मज़ाल है कि होंठो से होंठ हट जाए. जुड़े रहे यू ही बहुत देर तक.
जब होंठ एक दूसरे से जुदा हुए तो दोनो हांप रहे थे. राज ने अब डॉली को सीधा किया और उसके उपर आ गया. राज का लिंग पूरे तनाव में था और डॉली को वो अपनी योनि के ठीक उपर महसूस हो रहा था.
“तुम तो बहुत उत्तेजना लिए हुए हो.” डॉली ने बोल कर अपना चेहरा हाथो में छुपा लिया.
राज ने डॉली के हाथ एक तरफ हटाए और फिर से उसके होंठो को अपने होंठो में जाकड़ लिया. राज के हाथ कब डॉली के सुराही दार उभारो तक पहुँच गये उशे भी नही पता चला. अब राज बहके बहके अंदाज में डॉली के उभारो से खेल रहा था.
राज ने अपने कपड़े उतार दिए परंतु डॉली अपनी सारी नही उतार पाई. मदहोश जो रही थी.
राज समझ गया कि डॉली की सारी भी उसे ही उतारनी पड़ेगी. बस फिर क्या था खींच ली उसने सारी. डॉली की तो साँसे अटक गयी. एक एक करके राज ने सब कुछ उतार दिया उसके शरीर से. डॉली तो उत्तेजना में थर-थर काँप रही थी. बहुत कामुक पल थे वो दोनो के बीच. अब वो पूरी तरह नग्न अवस्था में थे. राज बड़े प्यार से डॉली के उपर लेट गया. जब राज का उत्तेजित लिंग डॉली की योनि से टकराया तो वो कराह उठी, “आआहह…राज ”
शायद दोनो से ही रुकना असंभव हो रहा था. मगर राज अभी डॉली के अंगो से खेलना चाहता था. उसने डॉली के उभारो के निपल्स को मूह में ले कर चूसना शुरू कर दिया. कमरे में सिसकियाँ गूंजने लगी डॉली की.
उसने राज के सर को थाम लिया और उसके बालो को सहलाने लगी. शायद वो कहना चाहती थी कि राज ऐसे ही करते रहो प्यार मुझे. कुछ देर राज उभारो को ही चूस्ता रहा फिर अच्चानक ना जाने उसे क्या सूझी वो नीचे की और सरकने लगा.
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
डॉली भी हैरत में पड़ गयी कि आख़िर राज करना क्या चाहता है. राज नीचे सरक कर डॉली की योनि के उपर पहुँच गया… उसके होंठ बिल्कुल डॉली की योनि के उपर थे. भगवान ने क्या योनि बनाई थी… गुलाब की पंखुड़ीयाँ जैसे एक के उपर के चिपकी हुई बिना बालों वाली योनि बहुत ही कहर ढा रही थी राज के उपर. रोज इसी तरह वो योनि को देख के कहीं खो सा जाता था पर डॉली ने अपनी योनि पर हाथ रख लिया.
“मुझे रश्पान तो करने दीजिए इस प्यारी सी चीज़ का.” राज ने कहा और डॉली का हाथ एक तरफ हटा कर अपने होंठो को उसकी योनि के होंठो पर टिका दिया. डॉली के शरीर में तो बीजली की लहर दौड़ गयी जैसे और उसकी साँसे तेज हो गयी. बहुत गहरा चुंबन लिया राज ने डॉली की योनि का.
कोई एक मिनिट तक राज के होंठ डॉली की योनि से जुड़े रहे. बहुत ही कामुक पल था वो दोनो के बीच. राज ने योनि का चुंबन लेने के बाद उसकी पंखुड़ियों को होंठो में दबा लिया और चूसने लगा. डॉली की हालत देखने वाली थी. वो टांगे पटाकने लगी बिस्तर पर और उसकी साँसे उखाड़ने लगी.
“बस राज बस….समझने की कोशिस करो…बस.” (ना जाने पहले कितने दिन और कितनी रातें उन्होने ये कम क्रीड़ा की थी लेकिन रोज उन्हे इसमे कुछ अलग ही प्रकार का आनंद आता था… क्योंकि डॉली थी ही ऐसी थोड़ी नमकीन, थोड़ी लज़ीज़ क्या कहूँ मैं बस प्यार करते रहो ऐसा राज को लगता था… लेकिन क्या करे बिज़ी जो रहता था अपने काम की वजह से) अब डॉली कैसे कहे कि बस आ जाओ और समा जाओ मुझ मे.
अब वो एक सुंदर संभोग के लिए तैयार थी, ये बात राज समझ रहा था पर वो डॉली के मुँह से सुनना चाहता था. उसे तो डॉली की योनि से खेलने में बहुत आनंद आ रहा था.
“बस राज रुक जाओ…समझते क्यों नही…” डॉली ने फिर कहा.
“क्या हुआ…क्या आपको अच्छा नही लग रहा.”
“ऐसा नही है. बहुत अच्छा लग रहा था. हालत खराब कर दी तुमने मेरी. अब समा भी जाओ मुझमे…मैं तरस रही हूँ तुम्हारे लिए. कब तक तडपाओगे तुम” डॉली ने बोल ही दी अपने दिल की बात.
राज तो झूम उठा, “पहले क्यों नही कहा आपने.”
“शरम नही आएगी क्या मुझे ये सब बोलते हुए. पर तुमने बुलवा ही दिया. बहुत जालिम हो तुम.” डॉली ने राज की छाती पर मुक्का मारा.
“लीजिए अभी घुस्सा देता हूँ आपके अंदर. मैं तो खुद तड़प रहा हूँ.” राज ने कहा.
राज ने अपने लिंग को हाथ में पकड़ा और टिका दिया योनि पर. जब राज का लिंग डॉली की योनि में थोड़ा सा घुस्सा तो वो कराह उठी.”आआहह” धीरे धीरे राज पूरा समा गया डॉली में और इस तरह प्यार में डूबे दो दिल जुड़ गये गहराई से एक दूसरे के साथ. फिर क्या था उस कमरे में प्यार का वो बेवॅंडर उठा जिसने कमरे में तूफान मचा दिया. बिस्तर बुरी तरह हिल रहा था. लगता था जैसे कि टूट जाएगा आज. डॉली की शिसकियाँ गूँज रही थी कमरे में. उसने मदहोशी में बिस्तर की चद्दर को मुट्ठी में भीच लिया था.
“आअहह राज कही ये बिस्तर ना टूट के बिखर जाए. थोड़ा धीरे आआहह.”
“टूट जाने दो आज सब कुछ. प्यार का तूफान है ये. कुछ तो होगा ही. मैं खुद को नही थाम सकता. हमेशा मेरे साथ रहना तुम.”
“बीवी हूँ तुम्हारी…. आहह… तुम्हारे साथ नही रहूंगी तो कहाँ रहूंगी.”
राज तो जैसे पागल हो गया था, बिना रुके डॉली के साथ काम क्रीड़ा में लगा रहा. डॉली की तो हालत पतली हो गयी थी. लेकिन वो राज के हर धक्के पे खुद को जन्नत में महसूस करती थी. तूफान आता है तो थमता भी है.
राज ने प्रेम रस डाल दिया डॉली के अंदर और निढाल हो कर गिर गया डॉली के उपर. दोनो कुछ भी कहने की हालत में नही थे. साँसे फूल रही थी दोनो की. बस पड़े रहे चुपचाप. तूफान के बाद की शांति में खो गये थे दोनो. प्यार ही कुछ ऐसा था दोनो का.
क्रमशः...........................
“मुझे रश्पान तो करने दीजिए इस प्यारी सी चीज़ का.” राज ने कहा और डॉली का हाथ एक तरफ हटा कर अपने होंठो को उसकी योनि के होंठो पर टिका दिया. डॉली के शरीर में तो बीजली की लहर दौड़ गयी जैसे और उसकी साँसे तेज हो गयी. बहुत गहरा चुंबन लिया राज ने डॉली की योनि का.
कोई एक मिनिट तक राज के होंठ डॉली की योनि से जुड़े रहे. बहुत ही कामुक पल था वो दोनो के बीच. राज ने योनि का चुंबन लेने के बाद उसकी पंखुड़ियों को होंठो में दबा लिया और चूसने लगा. डॉली की हालत देखने वाली थी. वो टांगे पटाकने लगी बिस्तर पर और उसकी साँसे उखाड़ने लगी.
“बस राज बस….समझने की कोशिस करो…बस.” (ना जाने पहले कितने दिन और कितनी रातें उन्होने ये कम क्रीड़ा की थी लेकिन रोज उन्हे इसमे कुछ अलग ही प्रकार का आनंद आता था… क्योंकि डॉली थी ही ऐसी थोड़ी नमकीन, थोड़ी लज़ीज़ क्या कहूँ मैं बस प्यार करते रहो ऐसा राज को लगता था… लेकिन क्या करे बिज़ी जो रहता था अपने काम की वजह से) अब डॉली कैसे कहे कि बस आ जाओ और समा जाओ मुझ मे.
अब वो एक सुंदर संभोग के लिए तैयार थी, ये बात राज समझ रहा था पर वो डॉली के मुँह से सुनना चाहता था. उसे तो डॉली की योनि से खेलने में बहुत आनंद आ रहा था.
“बस राज रुक जाओ…समझते क्यों नही…” डॉली ने फिर कहा.
“क्या हुआ…क्या आपको अच्छा नही लग रहा.”
“ऐसा नही है. बहुत अच्छा लग रहा था. हालत खराब कर दी तुमने मेरी. अब समा भी जाओ मुझमे…मैं तरस रही हूँ तुम्हारे लिए. कब तक तडपाओगे तुम” डॉली ने बोल ही दी अपने दिल की बात.
राज तो झूम उठा, “पहले क्यों नही कहा आपने.”
“शरम नही आएगी क्या मुझे ये सब बोलते हुए. पर तुमने बुलवा ही दिया. बहुत जालिम हो तुम.” डॉली ने राज की छाती पर मुक्का मारा.
“लीजिए अभी घुस्सा देता हूँ आपके अंदर. मैं तो खुद तड़प रहा हूँ.” राज ने कहा.
राज ने अपने लिंग को हाथ में पकड़ा और टिका दिया योनि पर. जब राज का लिंग डॉली की योनि में थोड़ा सा घुस्सा तो वो कराह उठी.”आआहह” धीरे धीरे राज पूरा समा गया डॉली में और इस तरह प्यार में डूबे दो दिल जुड़ गये गहराई से एक दूसरे के साथ. फिर क्या था उस कमरे में प्यार का वो बेवॅंडर उठा जिसने कमरे में तूफान मचा दिया. बिस्तर बुरी तरह हिल रहा था. लगता था जैसे कि टूट जाएगा आज. डॉली की शिसकियाँ गूँज रही थी कमरे में. उसने मदहोशी में बिस्तर की चद्दर को मुट्ठी में भीच लिया था.
“आअहह राज कही ये बिस्तर ना टूट के बिखर जाए. थोड़ा धीरे आआहह.”
“टूट जाने दो आज सब कुछ. प्यार का तूफान है ये. कुछ तो होगा ही. मैं खुद को नही थाम सकता. हमेशा मेरे साथ रहना तुम.”
“बीवी हूँ तुम्हारी…. आहह… तुम्हारे साथ नही रहूंगी तो कहाँ रहूंगी.”
राज तो जैसे पागल हो गया था, बिना रुके डॉली के साथ काम क्रीड़ा में लगा रहा. डॉली की तो हालत पतली हो गयी थी. लेकिन वो राज के हर धक्के पे खुद को जन्नत में महसूस करती थी. तूफान आता है तो थमता भी है.
राज ने प्रेम रस डाल दिया डॉली के अंदर और निढाल हो कर गिर गया डॉली के उपर. दोनो कुछ भी कहने की हालत में नही थे. साँसे फूल रही थी दोनो की. बस पड़े रहे चुपचाप. तूफान के बाद की शांति में खो गये थे दोनो. प्यार ही कुछ ऐसा था दोनो का.
क्रमशः...........................
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--4
गतान्क से आगे………………………
उधर राज का संभोग चल रहा था तो इधर सुनील अपने दूसरे राउंड के लिए रेडी हो रहा था… वो लोग टीवी देख रहे थे…. उसने ललिता को वापस अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया.
ललिता क़ातिल निगाहों से उसको देखने लगी. सुनील भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरी तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें वो तो सुनील की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!"
उसकी शर्त में सुनील का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर सुनील ललिता के शरीर का एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. ललिता गरम हो गयी थी.
नंगी होते ही उसने सुनील को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वह उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंठों पर अपनी मोहर लगाने लगी.
सुनील पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाती को दबा दिया.... ललिता की सिसकी निकल गयी. उसने सुनील का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया.
सुनील उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वह सच में ही बहुत सेक्सी थी. सुनील उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. ललिता भी इस कुलफी को खाने को तरस रही थी.
उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंठों में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर ललिता के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती.
ललिता ने चूस चूस कर सुनील के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! सुनील ने ललिता को पलट दिया. और उसके 40" की गान्ड को मसल्ने लगा.
उसने ललिता को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. ललिता की गान्ड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी.
ललिता को जल्द ही समझ आ गया कि आज सुनील का इरादा ख़तरनाक है; वह गान्ड के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" ललिता को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में सुनील ने अपनी उंगली उसकी गान्ड में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था!
पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ यूज़ करने का लग रहा था. ललिता को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गान्ड को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके. कुछ देर ऐसे ही करने के बाद सुनील ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो हो जाएगा"
जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली ललिता की गान्ड की दरारों से गुज़री, ललिता को चिकनाई और ठंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक सुनील उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब ललिता को मज़ा आने लगा था.
उसने अपनी गान्ड को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोड़ा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इस पोज़िशन में उसकी गंद की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी.
सुनील ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था. सुनील झुका और ललिता की चूत का दाना अपने होंठों में दबा लिया, वह तो 'हाइ मर गयी' कह बैठी मरी तो वह नही थी लेकिन सुनील को पता था वह मरने ही वाली है.
सुनील घुटने मोड़ कर उसकी गान्ड पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फाइयर!'.....
ललिता चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... ललिता मुँह के बल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "ब्स्स्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही"
ललिता का ये कहना यूँही नही था... उसकी गान्ड फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच!
सुनील ने सैयम से काम लिया; उसकी छातीया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा!
ललिता कुछ शांत हुई, पर वह बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!"
सुनील ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया!
सुनील ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गान्ड के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गान्ड में ही ढा दिया.
ललिता को काटो तो खून नही.... बदहवास सी होकर कुछ कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही!
सुनील ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. ललिता कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ. कभी सुनील को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लोवे यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और आख़िरकार ललिता ने राहत की साँस ली....
गतान्क से आगे………………………
उधर राज का संभोग चल रहा था तो इधर सुनील अपने दूसरे राउंड के लिए रेडी हो रहा था… वो लोग टीवी देख रहे थे…. उसने ललिता को वापस अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया.
ललिता क़ातिल निगाहों से उसको देखने लगी. सुनील भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरी तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें वो तो सुनील की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!"
उसकी शर्त में सुनील का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर सुनील ललिता के शरीर का एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. ललिता गरम हो गयी थी.
नंगी होते ही उसने सुनील को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वह उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंठों पर अपनी मोहर लगाने लगी.
सुनील पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाती को दबा दिया.... ललिता की सिसकी निकल गयी. उसने सुनील का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया.
सुनील उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वह सच में ही बहुत सेक्सी थी. सुनील उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. ललिता भी इस कुलफी को खाने को तरस रही थी.
उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंठों में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर ललिता के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती.
ललिता ने चूस चूस कर सुनील के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! सुनील ने ललिता को पलट दिया. और उसके 40" की गान्ड को मसल्ने लगा.
उसने ललिता को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. ललिता की गान्ड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी.
ललिता को जल्द ही समझ आ गया कि आज सुनील का इरादा ख़तरनाक है; वह गान्ड के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" ललिता को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में सुनील ने अपनी उंगली उसकी गान्ड में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था!
पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ यूज़ करने का लग रहा था. ललिता को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गान्ड को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके. कुछ देर ऐसे ही करने के बाद सुनील ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो हो जाएगा"
जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली ललिता की गान्ड की दरारों से गुज़री, ललिता को चिकनाई और ठंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक सुनील उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब ललिता को मज़ा आने लगा था.
उसने अपनी गान्ड को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोड़ा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इस पोज़िशन में उसकी गंद की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी.
सुनील ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था. सुनील झुका और ललिता की चूत का दाना अपने होंठों में दबा लिया, वह तो 'हाइ मर गयी' कह बैठी मरी तो वह नही थी लेकिन सुनील को पता था वह मरने ही वाली है.
सुनील घुटने मोड़ कर उसकी गान्ड पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फाइयर!'.....
ललिता चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... ललिता मुँह के बल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "ब्स्स्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही"
ललिता का ये कहना यूँही नही था... उसकी गान्ड फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच!
सुनील ने सैयम से काम लिया; उसकी छातीया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा!
ललिता कुछ शांत हुई, पर वह बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!"
सुनील ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया!
सुनील ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गान्ड के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गान्ड में ही ढा दिया.
ललिता को काटो तो खून नही.... बदहवास सी होकर कुछ कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही!
सुनील ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. ललिता कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ. कभी सुनील को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लोवे यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और आख़िरकार ललिता ने राहत की साँस ली....