एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story
Re: एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story
“बेट लगाते हो मुझे चॅलेंज करते हो. अब तो मैं ये काम कर के रहूँगा.” मैं कह कर चल दिया वाहा से.
पास ही विवेक भी सब शन रहा था. हंसते हुवे बोला, “पहले हितक्श से निपतना पड़ेगा तुम्हे…गोली मार देगा वो तुम्हे…ध्यान रखना.”
“क्या विवेक भाई आप भी शुरू हो गये. वैसे मैं हितक्श को ही सीधी बना कर बढ़ुंगा आगे. बेचारे को पता भी नही चलेगा ” मैने कहा
रोज हितक्श को मैं चारा डालने लगा. ताकि अछी दोस्ती बन जाए. काई बार उसे रेस्टोरेंट में खाना खिलाया. मैने किशी तरह से उसे राज़ी किया की तुम रोज सुबह मेरे साथ कॉलेज जाया करोगे. वो बोला की प़ड़्मिनी साथ होती है. मैने कहा तो रहने दो. उशके रहने से क्या फराक पड़ता है. हम कौन सा अश्लील बाते करते जाएँगे.
खैर किशी तरह शील्षिला शुरू हुवा. रोज हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ जाने लगा मैं कॉलेज. एक बार मैने हितक्श का टाइयर पंक्चर कर दिया कॉलेज में. प़ड़्मिनी को जल्दी घर जाना था कुछ काम था उशे. मुझे पता थी ये बात. हितक्श तो आग बाबूला हो गया, “किशणे किया टाइयर पंक्चर मेरा मैं उसे गोली मार दूँगा.”
मैने कहा शांति रखो हितक्श भाई. मैं छोड़ आता हूँ प़ड़्मिनी को. प़ड़्मिनी ये शुंते ही बोली, “नही…नही…मैं ऑटो लेकर चली जवँगी.”
“कैसी बात कराती है आप. हमारे होते हुवे ऑटो पर क्यों जाएँगी आप.” मैने कहा.
बड़ी मुश्किल से मानी प़ड़्मिनी पर बैठ ही गयी मेरे पीछे मेरी बाएक पर. पूछो मत मैं तो ख़ुसी से पागल हो गया. फ.ज.बडी, जॉड, और मनीष ने जब ये देखा तो बड़े परेशान हो गये. बेट हारने की चिंता शतने लगी उन्हे. मुझे क्या था मैं प़ड़्मिनी को लेकर आगे बढ़ गया. जानबूझ कर एक जगह अचानक ब्रेक लगाया मैने और टकरा गया प़ड़्मिनी का जीशम मेरे जीशम से. मेरे बदन में तो आग लग गयी.
“प़ड़्मिनी ऐसे नझडीक मत आओ. मुझे कुछ-कुछ होता है.” मैने कहा
“मुझे शॉंक नही है तुम्हारे नझडीक आने का. ध्यान से चलाओ तुम”
वाह क्या गुस्सा था उष्की बात में. ऐसा लग रहा था जैसे की फूल बरसा रही हो.
प़ड़्मिनी को बाएक पर बैठा कर ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत मिल गयी मुझे. कुछ ही दूर चले थे की दो गुंडे पीछे प़ड़ गये हमारे. वो दोनो बाएक्स पर थे. एक हमारे डायन तरफ था ओर एक बाईं तरफ. गुंडे वैसे मैने ही बुलाए थे प़ड़्मिनी को इंप्रेस करने के लिए
वो कामीने अपनी आदत से मजबूर छेड़ने लगे प़ड़्मिनी को. जितना मैने कहा था उष से कुछ ज़्यादा ही बोल रहे थे. इसे से पहले मैं कुछ कहता प़ड़्मिनी बोली, “रोहित बाएक रोको इन्हे अभी बताती हूँ मैं. हे मिस्टर रूको ज़रा.”
ये काम तो मुझे करना था पर प़ड़्मिनी करने लगी. खेल बिगड़ता दीख रहा था. खैर प़ड़्मिनी की बात कैसे टालता मैं. रोक दी बाएक मैने.उन दोनो गुणडो को तो रुकना ही था प्लान के मुताबिक.
प़ड़्मिनी ने तो अपनी सैंडल निकाल ली और एक के सर पर दे मारी. मैं क्या कहता. वो गुंडा छील्लाया गुस्से में और अनाप सनाप बकने लगा. लोग एक्कथा हो गये वाहा. खूब मारा लोगो ने उन दोनो गुणडो को. मुझे तो कुछ भी करने का मोका नही मिला . सारा प्लान धारसाई हो गया.
छोड़ दिया चुपचाप प़ड़्मिनी को घर. थॅंक्स तक नही किया उसने. चली गयी चुपचाप अंदर. कुछ भी वैसा नही हुवा जैसा मैने सोचा था. प़ड़्मिनी को पटाना बहुत मुश्किल काम था.
बताया मैने ये वाक़या फ.ज.बडी, जॉड, मनीष और विवेक भाई को. खूब हँसे सब मिल कर पता नही क्यों बताया इन लोगो को मैने. शायद दोस्ती के कारण. पर उन्हे तो हँसने से मतलब था.
खैर अभी कुछ बिगड़ा नही था. रोज सुबह बाएक ले कर मैं हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ चलता था. अपनी बाएक मैं हितक्श की बाएक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि प़ड़्मिनी पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उष्की सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसान किशके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उशके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.
खैर एक और पासा फेंका मैने. इसे बार मैने गुणडो से कहा की हितक्श को रास्ते में रोक कर खूब पीतना शुरू कर देना. मैं बीच में प़ड़ कर उसे बचा लूँगा और प़ड़्मिनी की आँखो में हीरो बन जवँगा.
पर रीमा इसे बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते हितक्श को. हितक्श ने इतनी रेल बनाई उनकी की गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये हितक्श से. जाते जाते हितक्श ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”
गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कममे गुंडे चूस कर लिए थे
ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. प़ड़्मिनी बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था की क्या करूँ.
एक दिन मैने प़ड़्मिनी को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाउ’ एकखार्त टोल्ले ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की प़ड़्मिनी रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था प़ड़्मिनी को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़त्म कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं प़ड़्मिनी से डिस्कशन के लिए तैयार था
अगले दिन हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल्ले ने. पवर ऑफ नाउ पढ़ी है क्या तुमने हितक्श भाई.”
हितक्श इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही कराता अपना बेकार की बातों में.”
“नही भैया पवर ऑफ नाउ बहुत अछी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” प़ड़्मिनी ने कहा.
बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”
“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल्ले ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”
मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया की क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उष्की मैं बोला, “आज में, इसे पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पस्त और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”
प़ड़्मिनी तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उशके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन मृज्नेयनी सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उशे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चील गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस प़ड़्मिनी को देखता रहा फिर भी. वो आई हितक्श के साथ मुझे उतने. “कहा देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”
हितक्श तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और प़ड़्मिनी जानते थे की मैं कहा देख रहा था. उष्की मृज्नेयनी आँखो में ही तो डूब गया था.
मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. हितक्श और प़ड़्मिनी भी साथ ही थे. प़ड़्मिनी के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“तुम घर जाओ रोहित अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” हितक्श ने कहा.
“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”
“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” प़ड़्मिनी ने हैरानी में पूछा.
“मैं पवर ऑफ नाउ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उशके बड़े में बतावँगा.”
“मेरे से बात मत करना उशके बड़े में. मैं सिर्फ़ गुण की पवर पर विश्वास रखता हूँ.” हितक्श ने कहा.
कुछ अजीब नही लगा ये शन के मुझे. हितक्श का दीमग सच में सरका हुवा था. खैर गया मैं कॉलेज किशी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने प़ड़्मिनी से कहा, “प़ड़्मिनी पवर ऑफ नाउ के बड़े में कुछ बात करें.”
“हन-हन बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अछी लगी.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“तुम लोग पवर ऑफ नाउ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” हितक्श ने कहा
“गिल्ली डंडा इसे उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.
“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” हितक्श छील्लाया.
मैं किशी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अछा ही था. हितक्श गिल्ली डंडा खेले और मैं प़ड़्मिनी पर लाइन मारून इसे से अछा और क्या हो सकता था
हितक्श के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के शीने पर तो साँप लाते गया प़ड़्मिनी को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जॉड, मनीष और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जितनी थी और प़ड़्मिनी का दिल भी जितना था
पवर ऑफ नाउ के बड़े में खूब बाते की हमने.प़ड़्मिनी इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.
“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”
“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”
“ह्म, अछी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” प़ड़्मिनी ने कहा.
इश् तरह बातो का शील्षिला शुरू हुवा. प़ड़्मिनी और मैं अच्छे दोस्त बन गये. मैं प़ड़्मिनी को इंप्रेस करने के लिए पहले से किताब के बड़े में कोई अछी बात सोच कर रखता था. और वो बड़े प्यार से शुंती थी मेरी बातो को. अब उष्की नज़रे मुझे ढुंड-ती रहती थी कॉलेज में पता नही क्यों . जब मैं उशके सामने आता था तो चेहरा खील उठ-ता था उष्का. बड़े प्यार से देखती थी और बड़े प्यार से हल्का मुश्कूराती थी. बहुत प्यारा अहसास होता था वो मेरे लिए. प्यार हो गया था मुझे उष से. सॅचा प्यार. पर कहने की हिम्मत नही होती थी.
पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किशी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उशके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सचाई देख कर कभी मन नही हुवा उशके बड़े में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुवा मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही प़ड़्मिनी कुछ बोलती थी.
‘पवर ऑफ नाउ’ पढ़ ली थी प़ड़्मिनी ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उष से बाते करते करते मैं उष किताब की गहराई को समझ पाया. मैने डुबाअरा इश्यू करवाई किताब और इसे बार सचे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इसे बार मैने ‘पवर ऑफ नाउ’ पर.
और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे की प्यार करने लगी है प़ड़्मिनी मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुवे. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘ई लव यू रोहित’.
मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे काहु समझ नही पा रहा था. उष्का रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उष्की प्यार मुझे. लगता था प्यार कराती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.
एक दिन कॅंटीन में छाए पीते वक्त मैने कहा, “प़ड़्मिनी कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा की कैसे कहूँ.”
प़ड़्मिनी के चेहरे पर मुश्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी की मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं शन रही हूँ.”
मैने देखा बहुत प्यार से उष्की तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.
“बोलो ना रोहित. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” प़ड़्मिनी ने मुश्कूराते हुवे कहा.
मैं अब बोलने ही वाला था की हितक्श आ गया वाहा, “चलो प़ड़्मिनी चलते हैं.”
बहुत गुस्सा आया मुझे हितक्श पर, पर मैने कुछ नही कहा
शूकर है प़ड़्मिनी नही उठी वाहा से. उसने हितक्श से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”
दिल को राहत मिली मेरे. पर हितक्श नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. प़ड़्मिनी के चेहरे पर भी गुस्सा दीखा मुझे हितक्श की इसे हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. रोहित बाद में बठाना ये बात ओक.”
“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” हितक्श ने कहा.
“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाये रोहित कल मिलते हैं.”
दुखी मन से बाये की मैने प़ड़्मिनी को. कामीने हितक्श ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुश्किल से तो दिल की बात होंटो तक आई थी. कमीना कहीं का .
फिर वो दर्दनाक दिन आया जिसे मैं कभी नही भूल सकता.
अगले दिन कॉलेज के एक कमरे में मैं अपने दोस्तो, फ.ज.बडी,जॉड,मनीष और विवेक के साथ बैठा था. हँसी मज़ाक चल रहा था. प़ड़्मिनी के बड़े में बाते हो रही थी.
“कहा पहुँची तुम्हारी स्टोरी रोहित भाई.” मनीष ने पूछा.’
“बस पूछो मत यार. कल इसे कम्बख़त हितक्श ने आकर काम खराब कर दिया वरना कल सब कुछ बोल देता मैं.”
“मतलब अभी तुम शर्त जीते नही हो.” जॉड भाई ने चुस्की ली
“श्रात तो मैं जीत ही जवँगा, ज़्यादा देर नही है उसमे. बात अब प़ड़्मिनी का दिल जीतने की है. प्यार हो गया यार मुझे उष से मज़ाक मज़ाक में. बुरा हाल है मेरा.” मैने कहा.
“बुरा हाल तो हितक्श करेगा तुम्हारा, जब उसे पता चलेगा की कितना अछा उसे किया तुमने उष्का .” विवेक भाई ने कहा.
“हम तो लगता है शर्त हार गये भाई, आओ गले लग जाओ, प़ड़्मिनी मुबारक हो तुम्हे.” फ.ज.बडी भाई ने कहा.
“इतना बड़ा धोका…….” हम सब चोंक गये प़ड़्मिनी की आवाज़ शन कर.
हमने मूड कर देखा तो पाया की रूम के दरवाजे पर प़ड़्मिनी खड़ी थी. साथ में हितक्श भी था.
“देख लो इसे मक्कार को अपनी आँखो से. इशी ने गुंडे भी भेजे थे. कितना गिरा हुवा इंसान है ये.” हितक्श ने कहा.
मेरे तो पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी प़ड़्मिनी को देख कर. उष्की आँखो में खून उतार आया था. बहुत गुस्से में थी. शायद सारी बाते शन ली थी उसने हमारी. मैं भाग कर गया प़ड़्मिनी के पास. “प़ड़्मिनी कुछ ग़लत मत समझना, हाँ शर्त लगाई थी मैने पर मैं सच में…………” नही बोल पाया आगे कुछ भी क्योंकि थप्पड़ जड़ दिया था प़ड़्मिनी ने मेरे गाल पर.
“एक और मारो इसे कामीने को.” हितक्श ने आग उगली.
चली गयी प़ड़्मिनी वाहा से और मैं वही खड़ा रहा. कर भी क्या सकता था. प़ड़्मिनी कुछ शन-ने को तैयार ही नही थी. प्यार शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया. अपने प्यार का इज़हार भी नही कर पाया मैं. मैं ही जानता हूँ की मुझ पर क्या बीती. मेरे दोस्तो ने मुझे संभाल लिया वरना मैं बीखर गया था.
“बहुत दुख हुवा ये सब जान कर. तुम्हारी आँखो में आँसू आ गये हैं. प़ड़्मिनी को एक तो मोका देना चाहिए था.” रीमा ने कहा.
“उसने एक बार भी मुझसे बात नही की बाद में. देखती थी मुझे मगर कभी भी बात नही की. इसे से बड़ी सज़ा नही मिल सकती थी मुझे. मार जाने को जी चाहता था. अफ प्यार बड़ी अजीब चीज़ है.” रोहित ने अपनी आँखो के आँसू पोंचेटे हुवे कहा.
“अभी कहा है प़ड़्मिनी?”
“यही देहरादून में ही है. शादी हो चुकी है उष्की. मगर अपने मायके में है. कुछ झगड़ा चल रहा है उष्का अपने पाती से. ज़्यादा डीटेल नही पता मुझे. मिला था अभी कुछ दिन पहले उष से. गुस्सा अभी तक बरकरार था उष्का. इतने दीनो बाद भी वही नाराज़गी थी चेहरे पर. चलो छोड़ो….मेरे अधूरे प्यार की दास्ठान यही ख़त्म होती है.”
“मुझे नही लगता की अब रेल बना पाओगे तुम मेरी. प़ड़्मिनी की बाते करके दीवाने से लग रहे हो.”
“प़ड़्मिनी के अलावा किशी से प्यार नही किया मैने रीमा. लेकिन उसने मेरे प्यार को समझा ही नही. एक मोका भी नही दिया. चलो चोदा अब और बात नही करूँगा.”
“कुछ खाओगे ?”
“नेकी और पूछ-पूछ…ले आओ कुछ.”
“हटो फिर मेरे उपर से…लाती हूँ कुछ.” रीमा ने कहा.
रोहित हट गया रीमा के उपर से. रीमा ने अपने कपड़े उठाए और पहन-ने लगी. रोहित ने कपड़े चीन लिए.
“ये शीतम मत करो रीमा जी, ये शुनदराता अगर इन कपड़ो में धक लॉगी तो हमारा क्या होगा. हम तड़प-तड़प कर मार जाएँगे. अफ यू अरे डॅम हॉट” रोहित ने कहा.
“अछा ऐसा है क्या?”
“बिल्कुल जी.”
“मैं तुम्हारे सामने नंगी नही घूमूंगी. तुम्हारा कोई भरोसा नही कब रेल बना दो मेरी.”
“देखिए रेल तो बन-नि ही है आपकी. चाहे आप कपड़े पहनो या ना पहनो. निर्वस्त्रा रहेंगी तो हमारी आँखो को आराम मिलेगा.”
रीमा मुश्कुराइ और कमर मतकाती हुई चल दी वाहा से.
“अफ क्या चाल है. ये धराती ना हील जाए, ऐसे ना चलिए मटक-मटक कर.” रोहित ने हंसते हुवे कहा.
“चुप रहिए आप. एक तो हमें नंगा घुमाया जा रहा है हमारे ही घर में उपर से ये अश्लील बाते हम ये बर्दास्त नही करेंगे.” रीमे चलते-चलते बोली.
रोहित दौड़ कर आया रीमा के पास और उसे दबोच लिया पीछे से. “अफ क्या अदा है आपकी. रुका नही जाएगा अब कसम से.”
“क्या …….कुछ खा तो लो पहले.”
“कुछ खाने की इचा नही है बस आप साथ रहो मेरे.” रोहित ने कहा.
“ओह नो अब मेरा क्या होगा तुम तो फिर से उत्तेजित हो गये .” रीमा ने कहा.
रीमा को अपने नितंबो पर रोहित का ठाना हुवा लिंग महसूस जो रहा था.
“अब तुम्हारी चुत की रेल बनाई जाएगी. चलो वापिस बिस्तर पर.” उठा लिया रोहित ने रीमा को गोदी में और ले आया उसे वापिस बिस्तर पर.
“कुछ खा लेते तो एनर्जी मिलती. अच्छे से रेल बना सकते थे फिर.”
“मेरा एंजिन खाली पेट भी बहुत अछा चलता है. घबराओ मत कोई कमी नही छोड़ूँगा.”
“पता है मुझे तभी तो दर रही हूँ .”
रोहित ने पटक दिया रीमा को बिस्तर पर
“आअहह….ये क्या किया.”
“गुस्सा देखना था तुम्हारे चेहरे पे. इशी की कमी थी वाह क्या बात है. ट्रेन में बड़ी प्यारी लग रही थी गुस्से में.”
“गुस्सा देखने के लिए हाथ-पैर तौड दो किशी के .”
“सॉरी रीमा जी. ज़्यादा ज़ोर से गिरा दिया शायद.”
“शायद मेरी कमर टूट गयी है. मेरी रेल बनाते-बनाते अब तुम मेरी जान ले लोगे लगता है .” रीमा के चेहरे पर गुस्सा था.
रोहित रीमा के उपर आ गया और उशके होंटो को किस करने लगा पर रीमा ने चेहरा घुमा लिया, “हट जाओ तुम बस अब, मुझे कुछ नही करना तुम्हारे साथ.”
“गुस्सा थूक दीजिए. बहुत प्यारी लग रही हैं आप कसम से. पर ये गुस्सा ज़्यादा देर तक नही होना चाहिए.” रोहित ने कहा और रीमा के बायें उभार के निपल को मूह में लेकर चूसने लगा.
“आअहह ये क्या कर रहे हो हटो. मैं तुमसे नाराज़ हूँ और तुम……हटो….आआअहह.”
“हटाना पड़ेगा ढकैयल कर आपको खुद ही. इन शुनदर उभारो से खुद नही हटूँगा.”
रीमा हंस पड़ी इसे बात पर, “बदमास हो तुम पक्के.”
“जैसा भी हूँ तुम्हारे सामने हूँ. मेरी बदमासी अपने भैया को मत बठाना. बहुत चिदते हैं वो मुझसे. आग बाबूला हो जाएँगे वो.”
“पागल हो क्या. ये बातें क्या किशी को बतने की होती हैं.”
रोहित ने अब रीमा के दूसरे उभर को थाम लिया और उशके निपल को चूसने लगा. बारी बारी से वो दोनो उभारो से खेल रहा था. कमरे में शिसकियाँ गूँज-ने लगी रीमा की.
“टांगे खोलो अपनी” रोहित ने कहा.
“ज़्यादा देर मत लगाना इसे बार. पहले ही ताकि हुई हूँ मैं .”
“ओक जी कम वक्त में बड़ा काम कर देंगे. आप टांगे खोल कर अपनी चुत के लिए रास्ता तो दीजिए” रोहित ने कहा.
रीमा ने हंसते हुवे टांगे खोल दी. रोहित ने टांगे अपने कंधो पर रख ली और समा गया एक ही झटके में रीमा के अंदर.
“ऊऊऊओह…..म्म्म्ममम…..एक ही बार में डाल दिया क्या पूरा .”
“जी हाँ बिल्कुल आपको जल्दी निपटाना था काम मैने सोचा क्यों एक-एक इंच सरकायं. वक्त की कमी के कारण पूरा डाल दिया जी.”
“यू अरे टू मच…..आआहह…अब जल्दी कीजिएगा हमें बाजार भी जाना है शाम को.”
“बिल्कुल जी ये लीजिए काम शुरू भी हो गया.” रोहित ने पहला धक्का मारा
“ऊऊहह एस.” रीमा कराह उठी.
फिर तो धक्को की बोचार हो गयी रीमा के अंदर. हर धक्के पर रीमा पागलो की तरह कराह रही थी.
अचानक रोहित का फोन बाज उठा. उसने हाथ बढ़ा कर फोन उठाया और बोला, “हेलो”
“कहा हो तुम रोहित.” शालिनी की आवाज़ आई
“जी रेल बना रहा हूँ….म..मेरा मतलब अभी आ रहा हूँ मेडम. कोई ख़ास बात है क्या?”
“जल्दी आओ, कुछ अर्जेंट है.” शालिनी ने ये बोल कर फोन काट दिया.
रोहित तो बिल्कुल थम गया था.
“तुम तो रुक गये बिल्कुल. फोन करते वक्त भी एक-दो बार तो हिल ही सकते थे.”
“ऐसी कयामत है ये, इश्कि आवाज़ शन कर तो दुनिया थम जाए, मेरी तो औकात ही क्या है. मुझे जाना होगा.”
“क्या अधूरा काम चोद कर जाओगे…वेरी बाद .”
“कोई चारा नही है रीमा. नही पहुँचा तुरंत तो मेरी नौकरी चली जाएगी. बड़ी मुश्किल से तो वापिस मिली है. तुम चिंता मत करो हमारी काम-करीड़ा जारी रहेगी.”
“फिर कब मिलोगे?”
“बाद में बतावँगा, तुम नंबर फीड कर दो मेरे फोन में अपना, मैं कपड़े पहनता हूँ.”
रोहित ने जल्दी से कपड़े पहने और रीमा को किस करके फ़ौरन निकल दिया वाहा से.20 मिनिट में वो थाने पहुँच गया. थाने पहुँचते ही वो सीधा आस्प साहिबा के कमरे की तरफ बढ़ा.
“एस मेडम, आपने याद किया.”
“हन बैठो, क्या प्रोग्रेस है?”
“मेडम ब्लॅक स्कॉर्पियो के ओनर्स की लिस्ट लाया हूँ. 4 लोगो के पास है ब्लॅक स्कॉर्पियो सहर में.” रोहित ने पेपर शालिनी की तरफ बढ़ाया.
“ह्म गुड, इसे लिस्ट में विजय का नाम भी होगा.” शालिनी ने पेपर पकड़ते हुवे कहा.
“आपको कैसे पता …..” रोहित हैरान रह गया.
“चौहान ने बताया मुझे की 6 महीने पहले विजय ने ब्लॅक स्कॉर्पियो खड़ीदी थी.”
“पर चौहान तो यहा नही है, वो तो आउट ऑफ स्टेशन है”
“बेवकूफ़ फोन पे बात की मैने. मुझे विजय पर शक था. वो अक्सर ड्यूटी से गायब रहता है. मैने चौहान से फोन करके पूछा की क्या विजय के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है, तो उष्का जवाब हाँ था. नज़र रखो विजय पर. इशईलिए बुलाया तुम्हे यहा.”
“मैं खुद यही सोच रहा था मेडम.”
“अब सोचो कम और काम ज़्यादा करो. मुझे कुछ नतीजा चाहिए जल्दी समझे वरना….”
“समझ गया मेडम, इज़ाज़त दीजिए मुझे.”
“हन जाओ और विजय के साथ साथ बाकी तीनो पर भी नज़र रखो. साएको इन चारो में से ही कोई है.”
“बिल्कुल मेडम ऐसा ही करूँगा. वैसे विजय कल से गायब है फिर से. आज भी ड्यूटी पर नही आया वो.” रोहित ने कहा.
“तभी तो मुझे शक है उष पर. नाउ डोंट वेस्ट युवर टाइम.”
“जी मेडम” रोहित ने कहा और उठ कर बाहर आ गया.
“अफ जान निकाल देती हैं मेडम.” रोहित ने बाहर आ कर कहा.
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शाम के 6 बाज रहे हैं. हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा है.
सरिता विजय की पत्नी, बाजार से कुछ समान ले कर लौट रही है. घर पहुँच कर वो पाती है की उनके घर के बाहर कोई खड़ा है बाएक ले कर. वो उसे पहचान जाती है. “ये तो मोहित है.”
मोहित सरिता को देखते ही बोला, आपका ही इंतेज़ार कर रहा था मैं. कैसी हैं आप.”
“मैं ठीक हूँ, अंदर आईए.”
सरिता ने दरवाजे का टाला खोला और मोहित को अंदर इन्वाइट किया.
“मेरे पाती घर पर नही हैं. आप अच्छे वक्त पर आयें हैं. मैं बिना किसी चिंता के अपना क़र्ज़ उतार सकती हूँ.”
“कहा हैं आपके पाती देव.”
“देल्ही गये हैं कल से किशी काम से. अब कल ही लोटेंगे”
“ह्म…”
“वैसे मुझे दर लग रहा है, पर अपना क़र्ज़ मैं चुकाना चाहती हूँ. आपके सामने हूँ आप जैसा चाहें कर सकते हैं.”
“आप हर क़र्ज़ से आज़ाद हैं सरिता जी. मुझे आपसे कुछ नही चाहिए. मैं तो वैसे ही मिलने आया था. बस एक बात बता दीजिए अगर हो सके तो.”
“जी पूछिए.” सरिता ने कहा.
“आपके पाती के पेट पर निशान क्यों है, बहुत बड़ा लंबा सा.”
“आप क्यों जान-ना चाहते हैं?”
“प्लीज़ हो सके तो बता दीजिए…मुझसे कारण मत पूछिए.”
“उष रात आपके जाने के बाद मेरे पाती घर आए थे. उन पर साएको ने हमला किया था. उनके पेट पर वार किया. किशी तरह से बच गये वो. बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे.”
“ह्म तो आप कौन से हॉस्पिटल में ले गयी थी उन्हे.”
“उन्होने माना कर दिया हॉस्पिटल जाने से. कह रहे थे की सबको पता चलेगा तो पुलिस की बदनामी होगी. वैसे मैं खुद एक डॉक्टर हूँ. मैने घर पर ही जैसे तैसे ऑपरेट किया. थॅंक गोद सब कुछ ठीक रहा.”
“ह्म…..”
“आप ये सब क्यों जान-ना चाहते थे.”
“कोई ख़ास बात नही वैसे ही. अब मैं चलता हूँ. टके केर.”
सरिता को तो कुछ भी समझ नही आ रहा था
मोहित आ गया चुपचाप बाहर और बाएक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिया.
मोहित घर पहुँचा तो उसे अपने घर के बाहर पूजा खड़ी मिली.
“तुम यहा क्या कर रही हो पूजा. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे”
“क्यों कर रहे हो ये सब. कुछ बदल नही जाएगा खून ख़राबे से.”
“मैं कुछ समझा नही.” मोहित ने हैरानी भरे शब्दो में कहा.
“मैने अभी अभी देखा कल का न्यूज़ पेपर. विक्की और परवीन को किशी ने बेरहमी से मार दिया.”
“अछा हुवा वो लोग इशी लायक थे. पर उन्हे किशी ने नही बल्कि साएको ने मारा है.”
“मेरी आँखो में देख कर बोलो क्यों कर रहे हो ये सब.”
“अंदर चल कर बात करते हैं, लोग देख रहे हैं.” मोहित ने कहा और कमरे का टाला खोल दिया. “आओ बैठ कर आराम से बातें करते हैं.”
“कोई बात नही करूँगी जब तक ये सब बंद नही करोगे.” पूजा ने कहा.
“तुम्हे कुछ ग़लत-फ़हमी हो गयी है. मैने कुछ नही किया ऐसा.”
“मतलब की तुम रुकोगे नही, खून की होली खेलते रहोगे. मेरी चिंता नही तुम्हे बिल्कुल भी क्या.”
“क्या मतलब…. आओ आओ अंदर आओ अब काम की बात की तुमने. पहली बार तुम्हारी आँखो में मेरे लिए प्यार दीखाई दे रहा है.”
“ये प्यार नही तुम्हारे लिए चिंता है. रोक दो ये सब वरना तुमसे कभी बात नही करूँगी.”
“2 लोग बाकी हैं अभी पूजा. न्याय पूरा करूँगा मैं अधूरा नही.”
“मतलब तुम नही रुकोगे.”
“नही.”
पूजा चल पड़ी मूड कर अपने घर की तरफ. मोहित ने उसे रोकने की कोशिस नही की.
“तुम समझ नही रही हो पूजा. अगर ये लोग जींदा रहे तो परेशान करते रहेंगे तुम्हे. इनका मारना ज़रूरी है. तभी तुम शांति से जी पावगी.
पूजा चल तो पड़ी थी मूह फेर कर अपने घर की और पर उशके कदम आगे ही नही बढ़ रहे थे. बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी वो आगे. वो किशी उधेड़बुन में थी. अचानक वो रुक गयी और अपने कदम वापिस मोहित के घर की तरफ मोड़ दिए. “मैं नही करने दूँगी मोहित को ये सब, उसे मेरी बात मान-नि पड़ेगी.” पूजा ने दरिड निश्चय से कहा और तेज कदमो से चल पड़ी.
2 मिनिट में ही पूजा वापिस मोहित के घर के बाहर थी. मोहित ने पूजा के जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया था. वो नहाने की तैयारी कर रहा था. सारे कपड़े निकाल कर बस अंडरवियर में था. कंधे पर टोलिया टाँग रखा था.दरवाजा खड़का तो हड़बड़ा गया वो. फुर्ती से टोलिया लपेट कर दरवाजा खोला उसने.
“पूजा तुम रूको…रूको मैं कपड़े पहन लूँ” मोहित ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
पूजा हंस पड़ी मोहित को ऐसी हालत में देख कर. मोहित ने तुरंत कपड़े पहन कर दरवाजा खोला, “आओ पूजा, मुझे लगा तुम चली गयी. मैं नहाने जा रहा था. सॉरी.”
पूजा अंदर आ गयी और बोली, “मेरी खातिर रुक जाओ मोहित. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा. तुम्ही बताओ क्या हाँसिल होगा मुझे उनके मरने से. कुछ भी तो नही. मेरे साथ जो होना था हो ही चुका है. कुछ भी तो बदल नही जाएगा. तुम बेकार में उनके गंदे खून से अपने हाथ रंग रहे हो.”
“क्या तुम्हे नही लगता की उन्हे उनके किए की सज़ा मिलनी चाहिए.” मोहित ने कहा.
“सज़ा तो मुझे भी मिलनी चाहिए उष हिसाहब से. मेरी खुद की कम ग़लतियाँ नही हैं. आँख मीच कर अपना सब कुछ सोनप दिया था मैने विक्की को. क्या मैने ग़लत नही किया. चौहान और परवीन को मैने भी थोड़ा ही सही सहयोग तो दिया. क्या मैं पापी नही हूँ. मुझे मारो सबसे पहले. तुम मेरे लिए कर रहे हो ना ये सब. प्यार करते हो मुझसे तुम. लेकिन मोहित जिसे तुम प्यार करते हो उशके दामन पर दाग है. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ. मुझे भी तो मारो. मैं भी उतनी ही पापी हूँ जीतने की ये लोग जिन्हे तुम मारने पर उतारू हो.” पूजा ने भावुक शब्दो में कहा.
“पूजा मुझे पता है किशकि कितनी ग़लती है. तुम्हारे साथ प्यार का नाटक हुवा, तुम्हारी वीडियो बनाई गयी. तुम्हे ब्लॅकमेल किया गया. चौहान ने तुम्हारी मजबूरी का फ़ायडा उठाया और अपने कुकर्म में परवीन को भी सामिल किया. मानता हूँ मैं की थोड़ा सहयोग दिया होगा तुमने उन्हे. पर शायद वो सहयोग तुम्हारी मजबूरी थी. तुम्हारी कहानी शन कर तो यही लगा था मुझे. तुम पापी हो ही नही सकती. पापी वो लोग हैं जिन्होने तुम्हारे मासूम चरित्रा की धज्जियाँ उसाई. नही चोदूगा मैं बाकी के 2 लोगो को भी.”
“नही मोहित प्लीज़. कहने को प्यार करते हो मुझसे और मेरी एक बात भी मान-ने को तैयार नही. क्या यही प्यार है तुम्हारा. तुम ये भी नही सोच रहे हो की अगर तुम्हे ही साएको समझ लिया गया तो फिर क्या होगा.”
“क्या तुम प्यार करने लगी हो मुझसे पूजा जो की इतनी चिंता कर रही हो मेरी.”
“प्यार मेरे लिए एक कन्फ्यूषन बन गया है. प्यार नही कर पवँगी जींदगी में दुबारा. इंसानियत के नाते तुम्हारी चिंता है मुझे.”
“तुमने बाहर कहा था की क्या मेरी चिंता नही तुम्हे, क्यों कहा था ऐसा तुमने”
“तुम अगर मेरे लिए खून ख़राबा करोगे तो क्या ख़ुसी मिलेगी मुझे. परेशान ही तो रहूंगी. जब प्यार करते हो मुझसे तो क्या मुझे परेशानी में डालोगे. तुम ऐसा करोगे तो क्या मैं चिंता नही करूँगी तुम्हारी. ख़तरनाकहनेल खेल रहे हो तुम जीशमे तुम्हारी जान भी जा सकती है.”
“वाउ…तुम्हे मेरी फिकर हो रही है. यही तो प्यार है. देखा पता ही लिया मैने तुम्हे.” मोहित ने हंसते हुवे कहा.
“दुबारा प्यार मेरे लिए असंभव है. प्यार नही है ये. तुम्हारी चिंता है मुझे और कुछ नही…मोहित. कर बैठती प्यार तुमसे इसे देवने पं के लिए अगर प्यार में धोका ना खाया होता मैने. प्यार नही काट पवँगी तुम्हे, मजबूर हूँ अपने दिल के हातो. लेकिन तुम अगर मुझे सच में प्यार करते हो तो तुम्हे तुरंत ये खून ख़राबा बंद करना पड़ेगा.”
मोहित ने गहरी साँस ली और बोला, “ठीक है पूजा, एनितिंग फॉर यू. लेकिन कम से कम इसे विजय का खेल तो ख़त्म करने दो. वही है वो साएको जीशणे सहर में आतंक मचा रखा है.”
“कौन विजय?”
“वही पुलिस वाला जो तुम्हे ज़बरदस्ती घर ले गया था. उष्का नाम विजय है”
“अगर ऐसा भी है तो तुम क्यों क़ानून अपने हाथ में लेते हो. मेरे जीते जी तुम कुछ नही करोगे ऐसा समझ लो. मुझे मार दो फिर कर लेना जो करना है”
“अछा ठीक है बाबा. मैं ये बात इनस्पेक्टर रोहित को बता देता हूँ. देख लेंगे आगे वो खुद.”
“थॅंक यू मोहित. बहुत शुकून मिला मेरे दिल को ये शन कर. काश तुम मुझे पहले मिले होते.” पूजा ने गहरी साँस ली.
“पूजा इंतेज़ार करूँगा तुम्हारा. मुझे यकीन है की तुम मेरे प्यार से दूर नही रह पावगी. मेरा प्यार सॅचा है तो तुम्हे भी प्यार हो ही जाएगा.”
पूजा की आँखे भी भर आई और वो मुश्कुरा भी पड़ी मोहित की बात पर. एक साथ दो भावनाए जाग गयी थी पूजा के अंदर. “मैं चलती हूँ मोहित. दीदी मेरे लिए परेशान हो रही होगी.”
“मिलती रहना मुझसे, एक अच्छे दोस्त तो हम रह ही सकते हैं.”
“हन बिल्कुल” पूजा मोहित की आँखो में देख कर मुश्कुराइ और धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी.
“कितना प्यार है तुम्हारी आँखो में मेरे लिए, पर तुम स्वीकार नही करना चाहती इसे प्यार को. देखता हूँ मैं भी कब तक धोका दोगी खुद को.” मोहित ने कहा.
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रोहित ने भोलू को बुलाया और कहा, “सब-इनस्पेक्टर विजय की फोटो चाहिए मुझे.”
“उनकी फोटो का क्या करेंगे सिर.”
“है कुछ काम, तुम फोटो लाओ.”
“जी सिर.”
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 34
पास ही विवेक भी सब शन रहा था. हंसते हुवे बोला, “पहले हितक्श से निपतना पड़ेगा तुम्हे…गोली मार देगा वो तुम्हे…ध्यान रखना.”
“क्या विवेक भाई आप भी शुरू हो गये. वैसे मैं हितक्श को ही सीधी बना कर बढ़ुंगा आगे. बेचारे को पता भी नही चलेगा ” मैने कहा
रोज हितक्श को मैं चारा डालने लगा. ताकि अछी दोस्ती बन जाए. काई बार उसे रेस्टोरेंट में खाना खिलाया. मैने किशी तरह से उसे राज़ी किया की तुम रोज सुबह मेरे साथ कॉलेज जाया करोगे. वो बोला की प़ड़्मिनी साथ होती है. मैने कहा तो रहने दो. उशके रहने से क्या फराक पड़ता है. हम कौन सा अश्लील बाते करते जाएँगे.
खैर किशी तरह शील्षिला शुरू हुवा. रोज हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ जाने लगा मैं कॉलेज. एक बार मैने हितक्श का टाइयर पंक्चर कर दिया कॉलेज में. प़ड़्मिनी को जल्दी घर जाना था कुछ काम था उशे. मुझे पता थी ये बात. हितक्श तो आग बाबूला हो गया, “किशणे किया टाइयर पंक्चर मेरा मैं उसे गोली मार दूँगा.”
मैने कहा शांति रखो हितक्श भाई. मैं छोड़ आता हूँ प़ड़्मिनी को. प़ड़्मिनी ये शुंते ही बोली, “नही…नही…मैं ऑटो लेकर चली जवँगी.”
“कैसी बात कराती है आप. हमारे होते हुवे ऑटो पर क्यों जाएँगी आप.” मैने कहा.
बड़ी मुश्किल से मानी प़ड़्मिनी पर बैठ ही गयी मेरे पीछे मेरी बाएक पर. पूछो मत मैं तो ख़ुसी से पागल हो गया. फ.ज.बडी, जॉड, और मनीष ने जब ये देखा तो बड़े परेशान हो गये. बेट हारने की चिंता शतने लगी उन्हे. मुझे क्या था मैं प़ड़्मिनी को लेकर आगे बढ़ गया. जानबूझ कर एक जगह अचानक ब्रेक लगाया मैने और टकरा गया प़ड़्मिनी का जीशम मेरे जीशम से. मेरे बदन में तो आग लग गयी.
“प़ड़्मिनी ऐसे नझडीक मत आओ. मुझे कुछ-कुछ होता है.” मैने कहा
“मुझे शॉंक नही है तुम्हारे नझडीक आने का. ध्यान से चलाओ तुम”
वाह क्या गुस्सा था उष्की बात में. ऐसा लग रहा था जैसे की फूल बरसा रही हो.
प़ड़्मिनी को बाएक पर बैठा कर ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत मिल गयी मुझे. कुछ ही दूर चले थे की दो गुंडे पीछे प़ड़ गये हमारे. वो दोनो बाएक्स पर थे. एक हमारे डायन तरफ था ओर एक बाईं तरफ. गुंडे वैसे मैने ही बुलाए थे प़ड़्मिनी को इंप्रेस करने के लिए
वो कामीने अपनी आदत से मजबूर छेड़ने लगे प़ड़्मिनी को. जितना मैने कहा था उष से कुछ ज़्यादा ही बोल रहे थे. इसे से पहले मैं कुछ कहता प़ड़्मिनी बोली, “रोहित बाएक रोको इन्हे अभी बताती हूँ मैं. हे मिस्टर रूको ज़रा.”
ये काम तो मुझे करना था पर प़ड़्मिनी करने लगी. खेल बिगड़ता दीख रहा था. खैर प़ड़्मिनी की बात कैसे टालता मैं. रोक दी बाएक मैने.उन दोनो गुणडो को तो रुकना ही था प्लान के मुताबिक.
प़ड़्मिनी ने तो अपनी सैंडल निकाल ली और एक के सर पर दे मारी. मैं क्या कहता. वो गुंडा छील्लाया गुस्से में और अनाप सनाप बकने लगा. लोग एक्कथा हो गये वाहा. खूब मारा लोगो ने उन दोनो गुणडो को. मुझे तो कुछ भी करने का मोका नही मिला . सारा प्लान धारसाई हो गया.
छोड़ दिया चुपचाप प़ड़्मिनी को घर. थॅंक्स तक नही किया उसने. चली गयी चुपचाप अंदर. कुछ भी वैसा नही हुवा जैसा मैने सोचा था. प़ड़्मिनी को पटाना बहुत मुश्किल काम था.
बताया मैने ये वाक़या फ.ज.बडी, जॉड, मनीष और विवेक भाई को. खूब हँसे सब मिल कर पता नही क्यों बताया इन लोगो को मैने. शायद दोस्ती के कारण. पर उन्हे तो हँसने से मतलब था.
खैर अभी कुछ बिगड़ा नही था. रोज सुबह बाएक ले कर मैं हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ चलता था. अपनी बाएक मैं हितक्श की बाएक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि प़ड़्मिनी पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उष्की सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसान किशके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उशके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.
खैर एक और पासा फेंका मैने. इसे बार मैने गुणडो से कहा की हितक्श को रास्ते में रोक कर खूब पीतना शुरू कर देना. मैं बीच में प़ड़ कर उसे बचा लूँगा और प़ड़्मिनी की आँखो में हीरो बन जवँगा.
पर रीमा इसे बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते हितक्श को. हितक्श ने इतनी रेल बनाई उनकी की गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये हितक्श से. जाते जाते हितक्श ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”
गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कममे गुंडे चूस कर लिए थे
ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. प़ड़्मिनी बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था की क्या करूँ.
एक दिन मैने प़ड़्मिनी को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाउ’ एकखार्त टोल्ले ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की प़ड़्मिनी रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था प़ड़्मिनी को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़त्म कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं प़ड़्मिनी से डिस्कशन के लिए तैयार था
अगले दिन हितक्श और प़ड़्मिनी के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल्ले ने. पवर ऑफ नाउ पढ़ी है क्या तुमने हितक्श भाई.”
हितक्श इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही कराता अपना बेकार की बातों में.”
“नही भैया पवर ऑफ नाउ बहुत अछी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” प़ड़्मिनी ने कहा.
बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”
“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल्ले ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”
मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया की क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उष्की मैं बोला, “आज में, इसे पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पस्त और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”
प़ड़्मिनी तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उशके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन मृज्नेयनी सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उशे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चील गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस प़ड़्मिनी को देखता रहा फिर भी. वो आई हितक्श के साथ मुझे उतने. “कहा देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”
हितक्श तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और प़ड़्मिनी जानते थे की मैं कहा देख रहा था. उष्की मृज्नेयनी आँखो में ही तो डूब गया था.
मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. हितक्श और प़ड़्मिनी भी साथ ही थे. प़ड़्मिनी के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“तुम घर जाओ रोहित अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” हितक्श ने कहा.
“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”
“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” प़ड़्मिनी ने हैरानी में पूछा.
“मैं पवर ऑफ नाउ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उशके बड़े में बतावँगा.”
“मेरे से बात मत करना उशके बड़े में. मैं सिर्फ़ गुण की पवर पर विश्वास रखता हूँ.” हितक्श ने कहा.
कुछ अजीब नही लगा ये शन के मुझे. हितक्श का दीमग सच में सरका हुवा था. खैर गया मैं कॉलेज किशी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने प़ड़्मिनी से कहा, “प़ड़्मिनी पवर ऑफ नाउ के बड़े में कुछ बात करें.”
“हन-हन बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अछी लगी.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“तुम लोग पवर ऑफ नाउ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” हितक्श ने कहा
“गिल्ली डंडा इसे उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.
“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” हितक्श छील्लाया.
मैं किशी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अछा ही था. हितक्श गिल्ली डंडा खेले और मैं प़ड़्मिनी पर लाइन मारून इसे से अछा और क्या हो सकता था
हितक्श के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के शीने पर तो साँप लाते गया प़ड़्मिनी को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जॉड, मनीष और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जितनी थी और प़ड़्मिनी का दिल भी जितना था
पवर ऑफ नाउ के बड़े में खूब बाते की हमने.प़ड़्मिनी इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.
“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”
“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”
“ह्म, अछी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” प़ड़्मिनी ने कहा.
इश् तरह बातो का शील्षिला शुरू हुवा. प़ड़्मिनी और मैं अच्छे दोस्त बन गये. मैं प़ड़्मिनी को इंप्रेस करने के लिए पहले से किताब के बड़े में कोई अछी बात सोच कर रखता था. और वो बड़े प्यार से शुंती थी मेरी बातो को. अब उष्की नज़रे मुझे ढुंड-ती रहती थी कॉलेज में पता नही क्यों . जब मैं उशके सामने आता था तो चेहरा खील उठ-ता था उष्का. बड़े प्यार से देखती थी और बड़े प्यार से हल्का मुश्कूराती थी. बहुत प्यारा अहसास होता था वो मेरे लिए. प्यार हो गया था मुझे उष से. सॅचा प्यार. पर कहने की हिम्मत नही होती थी.
पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किशी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उशके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सचाई देख कर कभी मन नही हुवा उशके बड़े में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुवा मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही प़ड़्मिनी कुछ बोलती थी.
‘पवर ऑफ नाउ’ पढ़ ली थी प़ड़्मिनी ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उष से बाते करते करते मैं उष किताब की गहराई को समझ पाया. मैने डुबाअरा इश्यू करवाई किताब और इसे बार सचे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इसे बार मैने ‘पवर ऑफ नाउ’ पर.
और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे की प्यार करने लगी है प़ड़्मिनी मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुवे. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘ई लव यू रोहित’.
मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे काहु समझ नही पा रहा था. उष्का रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उष्की प्यार मुझे. लगता था प्यार कराती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.
एक दिन कॅंटीन में छाए पीते वक्त मैने कहा, “प़ड़्मिनी कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा की कैसे कहूँ.”
प़ड़्मिनी के चेहरे पर मुश्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी की मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं शन रही हूँ.”
मैने देखा बहुत प्यार से उष्की तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.
“बोलो ना रोहित. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” प़ड़्मिनी ने मुश्कूराते हुवे कहा.
मैं अब बोलने ही वाला था की हितक्श आ गया वाहा, “चलो प़ड़्मिनी चलते हैं.”
बहुत गुस्सा आया मुझे हितक्श पर, पर मैने कुछ नही कहा
शूकर है प़ड़्मिनी नही उठी वाहा से. उसने हितक्श से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”
दिल को राहत मिली मेरे. पर हितक्श नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. प़ड़्मिनी के चेहरे पर भी गुस्सा दीखा मुझे हितक्श की इसे हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. रोहित बाद में बठाना ये बात ओक.”
“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” हितक्श ने कहा.
“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाये रोहित कल मिलते हैं.”
दुखी मन से बाये की मैने प़ड़्मिनी को. कामीने हितक्श ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुश्किल से तो दिल की बात होंटो तक आई थी. कमीना कहीं का .
फिर वो दर्दनाक दिन आया जिसे मैं कभी नही भूल सकता.
अगले दिन कॉलेज के एक कमरे में मैं अपने दोस्तो, फ.ज.बडी,जॉड,मनीष और विवेक के साथ बैठा था. हँसी मज़ाक चल रहा था. प़ड़्मिनी के बड़े में बाते हो रही थी.
“कहा पहुँची तुम्हारी स्टोरी रोहित भाई.” मनीष ने पूछा.’
“बस पूछो मत यार. कल इसे कम्बख़त हितक्श ने आकर काम खराब कर दिया वरना कल सब कुछ बोल देता मैं.”
“मतलब अभी तुम शर्त जीते नही हो.” जॉड भाई ने चुस्की ली
“श्रात तो मैं जीत ही जवँगा, ज़्यादा देर नही है उसमे. बात अब प़ड़्मिनी का दिल जीतने की है. प्यार हो गया यार मुझे उष से मज़ाक मज़ाक में. बुरा हाल है मेरा.” मैने कहा.
“बुरा हाल तो हितक्श करेगा तुम्हारा, जब उसे पता चलेगा की कितना अछा उसे किया तुमने उष्का .” विवेक भाई ने कहा.
“हम तो लगता है शर्त हार गये भाई, आओ गले लग जाओ, प़ड़्मिनी मुबारक हो तुम्हे.” फ.ज.बडी भाई ने कहा.
“इतना बड़ा धोका…….” हम सब चोंक गये प़ड़्मिनी की आवाज़ शन कर.
हमने मूड कर देखा तो पाया की रूम के दरवाजे पर प़ड़्मिनी खड़ी थी. साथ में हितक्श भी था.
“देख लो इसे मक्कार को अपनी आँखो से. इशी ने गुंडे भी भेजे थे. कितना गिरा हुवा इंसान है ये.” हितक्श ने कहा.
मेरे तो पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी प़ड़्मिनी को देख कर. उष्की आँखो में खून उतार आया था. बहुत गुस्से में थी. शायद सारी बाते शन ली थी उसने हमारी. मैं भाग कर गया प़ड़्मिनी के पास. “प़ड़्मिनी कुछ ग़लत मत समझना, हाँ शर्त लगाई थी मैने पर मैं सच में…………” नही बोल पाया आगे कुछ भी क्योंकि थप्पड़ जड़ दिया था प़ड़्मिनी ने मेरे गाल पर.
“एक और मारो इसे कामीने को.” हितक्श ने आग उगली.
चली गयी प़ड़्मिनी वाहा से और मैं वही खड़ा रहा. कर भी क्या सकता था. प़ड़्मिनी कुछ शन-ने को तैयार ही नही थी. प्यार शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया. अपने प्यार का इज़हार भी नही कर पाया मैं. मैं ही जानता हूँ की मुझ पर क्या बीती. मेरे दोस्तो ने मुझे संभाल लिया वरना मैं बीखर गया था.
“बहुत दुख हुवा ये सब जान कर. तुम्हारी आँखो में आँसू आ गये हैं. प़ड़्मिनी को एक तो मोका देना चाहिए था.” रीमा ने कहा.
“उसने एक बार भी मुझसे बात नही की बाद में. देखती थी मुझे मगर कभी भी बात नही की. इसे से बड़ी सज़ा नही मिल सकती थी मुझे. मार जाने को जी चाहता था. अफ प्यार बड़ी अजीब चीज़ है.” रोहित ने अपनी आँखो के आँसू पोंचेटे हुवे कहा.
“अभी कहा है प़ड़्मिनी?”
“यही देहरादून में ही है. शादी हो चुकी है उष्की. मगर अपने मायके में है. कुछ झगड़ा चल रहा है उष्का अपने पाती से. ज़्यादा डीटेल नही पता मुझे. मिला था अभी कुछ दिन पहले उष से. गुस्सा अभी तक बरकरार था उष्का. इतने दीनो बाद भी वही नाराज़गी थी चेहरे पर. चलो छोड़ो….मेरे अधूरे प्यार की दास्ठान यही ख़त्म होती है.”
“मुझे नही लगता की अब रेल बना पाओगे तुम मेरी. प़ड़्मिनी की बाते करके दीवाने से लग रहे हो.”
“प़ड़्मिनी के अलावा किशी से प्यार नही किया मैने रीमा. लेकिन उसने मेरे प्यार को समझा ही नही. एक मोका भी नही दिया. चलो चोदा अब और बात नही करूँगा.”
“कुछ खाओगे ?”
“नेकी और पूछ-पूछ…ले आओ कुछ.”
“हटो फिर मेरे उपर से…लाती हूँ कुछ.” रीमा ने कहा.
रोहित हट गया रीमा के उपर से. रीमा ने अपने कपड़े उठाए और पहन-ने लगी. रोहित ने कपड़े चीन लिए.
“ये शीतम मत करो रीमा जी, ये शुनदराता अगर इन कपड़ो में धक लॉगी तो हमारा क्या होगा. हम तड़प-तड़प कर मार जाएँगे. अफ यू अरे डॅम हॉट” रोहित ने कहा.
“अछा ऐसा है क्या?”
“बिल्कुल जी.”
“मैं तुम्हारे सामने नंगी नही घूमूंगी. तुम्हारा कोई भरोसा नही कब रेल बना दो मेरी.”
“देखिए रेल तो बन-नि ही है आपकी. चाहे आप कपड़े पहनो या ना पहनो. निर्वस्त्रा रहेंगी तो हमारी आँखो को आराम मिलेगा.”
रीमा मुश्कुराइ और कमर मतकाती हुई चल दी वाहा से.
“अफ क्या चाल है. ये धराती ना हील जाए, ऐसे ना चलिए मटक-मटक कर.” रोहित ने हंसते हुवे कहा.
“चुप रहिए आप. एक तो हमें नंगा घुमाया जा रहा है हमारे ही घर में उपर से ये अश्लील बाते हम ये बर्दास्त नही करेंगे.” रीमे चलते-चलते बोली.
रोहित दौड़ कर आया रीमा के पास और उसे दबोच लिया पीछे से. “अफ क्या अदा है आपकी. रुका नही जाएगा अब कसम से.”
“क्या …….कुछ खा तो लो पहले.”
“कुछ खाने की इचा नही है बस आप साथ रहो मेरे.” रोहित ने कहा.
“ओह नो अब मेरा क्या होगा तुम तो फिर से उत्तेजित हो गये .” रीमा ने कहा.
रीमा को अपने नितंबो पर रोहित का ठाना हुवा लिंग महसूस जो रहा था.
“अब तुम्हारी चुत की रेल बनाई जाएगी. चलो वापिस बिस्तर पर.” उठा लिया रोहित ने रीमा को गोदी में और ले आया उसे वापिस बिस्तर पर.
“कुछ खा लेते तो एनर्जी मिलती. अच्छे से रेल बना सकते थे फिर.”
“मेरा एंजिन खाली पेट भी बहुत अछा चलता है. घबराओ मत कोई कमी नही छोड़ूँगा.”
“पता है मुझे तभी तो दर रही हूँ .”
रोहित ने पटक दिया रीमा को बिस्तर पर
“आअहह….ये क्या किया.”
“गुस्सा देखना था तुम्हारे चेहरे पे. इशी की कमी थी वाह क्या बात है. ट्रेन में बड़ी प्यारी लग रही थी गुस्से में.”
“गुस्सा देखने के लिए हाथ-पैर तौड दो किशी के .”
“सॉरी रीमा जी. ज़्यादा ज़ोर से गिरा दिया शायद.”
“शायद मेरी कमर टूट गयी है. मेरी रेल बनाते-बनाते अब तुम मेरी जान ले लोगे लगता है .” रीमा के चेहरे पर गुस्सा था.
रोहित रीमा के उपर आ गया और उशके होंटो को किस करने लगा पर रीमा ने चेहरा घुमा लिया, “हट जाओ तुम बस अब, मुझे कुछ नही करना तुम्हारे साथ.”
“गुस्सा थूक दीजिए. बहुत प्यारी लग रही हैं आप कसम से. पर ये गुस्सा ज़्यादा देर तक नही होना चाहिए.” रोहित ने कहा और रीमा के बायें उभार के निपल को मूह में लेकर चूसने लगा.
“आअहह ये क्या कर रहे हो हटो. मैं तुमसे नाराज़ हूँ और तुम……हटो….आआअहह.”
“हटाना पड़ेगा ढकैयल कर आपको खुद ही. इन शुनदर उभारो से खुद नही हटूँगा.”
रीमा हंस पड़ी इसे बात पर, “बदमास हो तुम पक्के.”
“जैसा भी हूँ तुम्हारे सामने हूँ. मेरी बदमासी अपने भैया को मत बठाना. बहुत चिदते हैं वो मुझसे. आग बाबूला हो जाएँगे वो.”
“पागल हो क्या. ये बातें क्या किशी को बतने की होती हैं.”
रोहित ने अब रीमा के दूसरे उभर को थाम लिया और उशके निपल को चूसने लगा. बारी बारी से वो दोनो उभारो से खेल रहा था. कमरे में शिसकियाँ गूँज-ने लगी रीमा की.
“टांगे खोलो अपनी” रोहित ने कहा.
“ज़्यादा देर मत लगाना इसे बार. पहले ही ताकि हुई हूँ मैं .”
“ओक जी कम वक्त में बड़ा काम कर देंगे. आप टांगे खोल कर अपनी चुत के लिए रास्ता तो दीजिए” रोहित ने कहा.
रीमा ने हंसते हुवे टांगे खोल दी. रोहित ने टांगे अपने कंधो पर रख ली और समा गया एक ही झटके में रीमा के अंदर.
“ऊऊऊओह…..म्म्म्ममम…..एक ही बार में डाल दिया क्या पूरा .”
“जी हाँ बिल्कुल आपको जल्दी निपटाना था काम मैने सोचा क्यों एक-एक इंच सरकायं. वक्त की कमी के कारण पूरा डाल दिया जी.”
“यू अरे टू मच…..आआहह…अब जल्दी कीजिएगा हमें बाजार भी जाना है शाम को.”
“बिल्कुल जी ये लीजिए काम शुरू भी हो गया.” रोहित ने पहला धक्का मारा
“ऊऊहह एस.” रीमा कराह उठी.
फिर तो धक्को की बोचार हो गयी रीमा के अंदर. हर धक्के पर रीमा पागलो की तरह कराह रही थी.
अचानक रोहित का फोन बाज उठा. उसने हाथ बढ़ा कर फोन उठाया और बोला, “हेलो”
“कहा हो तुम रोहित.” शालिनी की आवाज़ आई
“जी रेल बना रहा हूँ….म..मेरा मतलब अभी आ रहा हूँ मेडम. कोई ख़ास बात है क्या?”
“जल्दी आओ, कुछ अर्जेंट है.” शालिनी ने ये बोल कर फोन काट दिया.
रोहित तो बिल्कुल थम गया था.
“तुम तो रुक गये बिल्कुल. फोन करते वक्त भी एक-दो बार तो हिल ही सकते थे.”
“ऐसी कयामत है ये, इश्कि आवाज़ शन कर तो दुनिया थम जाए, मेरी तो औकात ही क्या है. मुझे जाना होगा.”
“क्या अधूरा काम चोद कर जाओगे…वेरी बाद .”
“कोई चारा नही है रीमा. नही पहुँचा तुरंत तो मेरी नौकरी चली जाएगी. बड़ी मुश्किल से तो वापिस मिली है. तुम चिंता मत करो हमारी काम-करीड़ा जारी रहेगी.”
“फिर कब मिलोगे?”
“बाद में बतावँगा, तुम नंबर फीड कर दो मेरे फोन में अपना, मैं कपड़े पहनता हूँ.”
रोहित ने जल्दी से कपड़े पहने और रीमा को किस करके फ़ौरन निकल दिया वाहा से.20 मिनिट में वो थाने पहुँच गया. थाने पहुँचते ही वो सीधा आस्प साहिबा के कमरे की तरफ बढ़ा.
“एस मेडम, आपने याद किया.”
“हन बैठो, क्या प्रोग्रेस है?”
“मेडम ब्लॅक स्कॉर्पियो के ओनर्स की लिस्ट लाया हूँ. 4 लोगो के पास है ब्लॅक स्कॉर्पियो सहर में.” रोहित ने पेपर शालिनी की तरफ बढ़ाया.
“ह्म गुड, इसे लिस्ट में विजय का नाम भी होगा.” शालिनी ने पेपर पकड़ते हुवे कहा.
“आपको कैसे पता …..” रोहित हैरान रह गया.
“चौहान ने बताया मुझे की 6 महीने पहले विजय ने ब्लॅक स्कॉर्पियो खड़ीदी थी.”
“पर चौहान तो यहा नही है, वो तो आउट ऑफ स्टेशन है”
“बेवकूफ़ फोन पे बात की मैने. मुझे विजय पर शक था. वो अक्सर ड्यूटी से गायब रहता है. मैने चौहान से फोन करके पूछा की क्या विजय के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है, तो उष्का जवाब हाँ था. नज़र रखो विजय पर. इशईलिए बुलाया तुम्हे यहा.”
“मैं खुद यही सोच रहा था मेडम.”
“अब सोचो कम और काम ज़्यादा करो. मुझे कुछ नतीजा चाहिए जल्दी समझे वरना….”
“समझ गया मेडम, इज़ाज़त दीजिए मुझे.”
“हन जाओ और विजय के साथ साथ बाकी तीनो पर भी नज़र रखो. साएको इन चारो में से ही कोई है.”
“बिल्कुल मेडम ऐसा ही करूँगा. वैसे विजय कल से गायब है फिर से. आज भी ड्यूटी पर नही आया वो.” रोहित ने कहा.
“तभी तो मुझे शक है उष पर. नाउ डोंट वेस्ट युवर टाइम.”
“जी मेडम” रोहित ने कहा और उठ कर बाहर आ गया.
“अफ जान निकाल देती हैं मेडम.” रोहित ने बाहर आ कर कहा.
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शाम के 6 बाज रहे हैं. हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा है.
सरिता विजय की पत्नी, बाजार से कुछ समान ले कर लौट रही है. घर पहुँच कर वो पाती है की उनके घर के बाहर कोई खड़ा है बाएक ले कर. वो उसे पहचान जाती है. “ये तो मोहित है.”
मोहित सरिता को देखते ही बोला, आपका ही इंतेज़ार कर रहा था मैं. कैसी हैं आप.”
“मैं ठीक हूँ, अंदर आईए.”
सरिता ने दरवाजे का टाला खोला और मोहित को अंदर इन्वाइट किया.
“मेरे पाती घर पर नही हैं. आप अच्छे वक्त पर आयें हैं. मैं बिना किसी चिंता के अपना क़र्ज़ उतार सकती हूँ.”
“कहा हैं आपके पाती देव.”
“देल्ही गये हैं कल से किशी काम से. अब कल ही लोटेंगे”
“ह्म…”
“वैसे मुझे दर लग रहा है, पर अपना क़र्ज़ मैं चुकाना चाहती हूँ. आपके सामने हूँ आप जैसा चाहें कर सकते हैं.”
“आप हर क़र्ज़ से आज़ाद हैं सरिता जी. मुझे आपसे कुछ नही चाहिए. मैं तो वैसे ही मिलने आया था. बस एक बात बता दीजिए अगर हो सके तो.”
“जी पूछिए.” सरिता ने कहा.
“आपके पाती के पेट पर निशान क्यों है, बहुत बड़ा लंबा सा.”
“आप क्यों जान-ना चाहते हैं?”
“प्लीज़ हो सके तो बता दीजिए…मुझसे कारण मत पूछिए.”
“उष रात आपके जाने के बाद मेरे पाती घर आए थे. उन पर साएको ने हमला किया था. उनके पेट पर वार किया. किशी तरह से बच गये वो. बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे.”
“ह्म तो आप कौन से हॉस्पिटल में ले गयी थी उन्हे.”
“उन्होने माना कर दिया हॉस्पिटल जाने से. कह रहे थे की सबको पता चलेगा तो पुलिस की बदनामी होगी. वैसे मैं खुद एक डॉक्टर हूँ. मैने घर पर ही जैसे तैसे ऑपरेट किया. थॅंक गोद सब कुछ ठीक रहा.”
“ह्म…..”
“आप ये सब क्यों जान-ना चाहते थे.”
“कोई ख़ास बात नही वैसे ही. अब मैं चलता हूँ. टके केर.”
सरिता को तो कुछ भी समझ नही आ रहा था
मोहित आ गया चुपचाप बाहर और बाएक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिया.
मोहित घर पहुँचा तो उसे अपने घर के बाहर पूजा खड़ी मिली.
“तुम यहा क्या कर रही हो पूजा. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे”
“क्यों कर रहे हो ये सब. कुछ बदल नही जाएगा खून ख़राबे से.”
“मैं कुछ समझा नही.” मोहित ने हैरानी भरे शब्दो में कहा.
“मैने अभी अभी देखा कल का न्यूज़ पेपर. विक्की और परवीन को किशी ने बेरहमी से मार दिया.”
“अछा हुवा वो लोग इशी लायक थे. पर उन्हे किशी ने नही बल्कि साएको ने मारा है.”
“मेरी आँखो में देख कर बोलो क्यों कर रहे हो ये सब.”
“अंदर चल कर बात करते हैं, लोग देख रहे हैं.” मोहित ने कहा और कमरे का टाला खोल दिया. “आओ बैठ कर आराम से बातें करते हैं.”
“कोई बात नही करूँगी जब तक ये सब बंद नही करोगे.” पूजा ने कहा.
“तुम्हे कुछ ग़लत-फ़हमी हो गयी है. मैने कुछ नही किया ऐसा.”
“मतलब की तुम रुकोगे नही, खून की होली खेलते रहोगे. मेरी चिंता नही तुम्हे बिल्कुल भी क्या.”
“क्या मतलब…. आओ आओ अंदर आओ अब काम की बात की तुमने. पहली बार तुम्हारी आँखो में मेरे लिए प्यार दीखाई दे रहा है.”
“ये प्यार नही तुम्हारे लिए चिंता है. रोक दो ये सब वरना तुमसे कभी बात नही करूँगी.”
“2 लोग बाकी हैं अभी पूजा. न्याय पूरा करूँगा मैं अधूरा नही.”
“मतलब तुम नही रुकोगे.”
“नही.”
पूजा चल पड़ी मूड कर अपने घर की तरफ. मोहित ने उसे रोकने की कोशिस नही की.
“तुम समझ नही रही हो पूजा. अगर ये लोग जींदा रहे तो परेशान करते रहेंगे तुम्हे. इनका मारना ज़रूरी है. तभी तुम शांति से जी पावगी.
पूजा चल तो पड़ी थी मूह फेर कर अपने घर की और पर उशके कदम आगे ही नही बढ़ रहे थे. बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी वो आगे. वो किशी उधेड़बुन में थी. अचानक वो रुक गयी और अपने कदम वापिस मोहित के घर की तरफ मोड़ दिए. “मैं नही करने दूँगी मोहित को ये सब, उसे मेरी बात मान-नि पड़ेगी.” पूजा ने दरिड निश्चय से कहा और तेज कदमो से चल पड़ी.
2 मिनिट में ही पूजा वापिस मोहित के घर के बाहर थी. मोहित ने पूजा के जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया था. वो नहाने की तैयारी कर रहा था. सारे कपड़े निकाल कर बस अंडरवियर में था. कंधे पर टोलिया टाँग रखा था.दरवाजा खड़का तो हड़बड़ा गया वो. फुर्ती से टोलिया लपेट कर दरवाजा खोला उसने.
“पूजा तुम रूको…रूको मैं कपड़े पहन लूँ” मोहित ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
पूजा हंस पड़ी मोहित को ऐसी हालत में देख कर. मोहित ने तुरंत कपड़े पहन कर दरवाजा खोला, “आओ पूजा, मुझे लगा तुम चली गयी. मैं नहाने जा रहा था. सॉरी.”
पूजा अंदर आ गयी और बोली, “मेरी खातिर रुक जाओ मोहित. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा. तुम्ही बताओ क्या हाँसिल होगा मुझे उनके मरने से. कुछ भी तो नही. मेरे साथ जो होना था हो ही चुका है. कुछ भी तो बदल नही जाएगा. तुम बेकार में उनके गंदे खून से अपने हाथ रंग रहे हो.”
“क्या तुम्हे नही लगता की उन्हे उनके किए की सज़ा मिलनी चाहिए.” मोहित ने कहा.
“सज़ा तो मुझे भी मिलनी चाहिए उष हिसाहब से. मेरी खुद की कम ग़लतियाँ नही हैं. आँख मीच कर अपना सब कुछ सोनप दिया था मैने विक्की को. क्या मैने ग़लत नही किया. चौहान और परवीन को मैने भी थोड़ा ही सही सहयोग तो दिया. क्या मैं पापी नही हूँ. मुझे मारो सबसे पहले. तुम मेरे लिए कर रहे हो ना ये सब. प्यार करते हो मुझसे तुम. लेकिन मोहित जिसे तुम प्यार करते हो उशके दामन पर दाग है. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ. मुझे भी तो मारो. मैं भी उतनी ही पापी हूँ जीतने की ये लोग जिन्हे तुम मारने पर उतारू हो.” पूजा ने भावुक शब्दो में कहा.
“पूजा मुझे पता है किशकि कितनी ग़लती है. तुम्हारे साथ प्यार का नाटक हुवा, तुम्हारी वीडियो बनाई गयी. तुम्हे ब्लॅकमेल किया गया. चौहान ने तुम्हारी मजबूरी का फ़ायडा उठाया और अपने कुकर्म में परवीन को भी सामिल किया. मानता हूँ मैं की थोड़ा सहयोग दिया होगा तुमने उन्हे. पर शायद वो सहयोग तुम्हारी मजबूरी थी. तुम्हारी कहानी शन कर तो यही लगा था मुझे. तुम पापी हो ही नही सकती. पापी वो लोग हैं जिन्होने तुम्हारे मासूम चरित्रा की धज्जियाँ उसाई. नही चोदूगा मैं बाकी के 2 लोगो को भी.”
“नही मोहित प्लीज़. कहने को प्यार करते हो मुझसे और मेरी एक बात भी मान-ने को तैयार नही. क्या यही प्यार है तुम्हारा. तुम ये भी नही सोच रहे हो की अगर तुम्हे ही साएको समझ लिया गया तो फिर क्या होगा.”
“क्या तुम प्यार करने लगी हो मुझसे पूजा जो की इतनी चिंता कर रही हो मेरी.”
“प्यार मेरे लिए एक कन्फ्यूषन बन गया है. प्यार नही कर पवँगी जींदगी में दुबारा. इंसानियत के नाते तुम्हारी चिंता है मुझे.”
“तुमने बाहर कहा था की क्या मेरी चिंता नही तुम्हे, क्यों कहा था ऐसा तुमने”
“तुम अगर मेरे लिए खून ख़राबा करोगे तो क्या ख़ुसी मिलेगी मुझे. परेशान ही तो रहूंगी. जब प्यार करते हो मुझसे तो क्या मुझे परेशानी में डालोगे. तुम ऐसा करोगे तो क्या मैं चिंता नही करूँगी तुम्हारी. ख़तरनाकहनेल खेल रहे हो तुम जीशमे तुम्हारी जान भी जा सकती है.”
“वाउ…तुम्हे मेरी फिकर हो रही है. यही तो प्यार है. देखा पता ही लिया मैने तुम्हे.” मोहित ने हंसते हुवे कहा.
“दुबारा प्यार मेरे लिए असंभव है. प्यार नही है ये. तुम्हारी चिंता है मुझे और कुछ नही…मोहित. कर बैठती प्यार तुमसे इसे देवने पं के लिए अगर प्यार में धोका ना खाया होता मैने. प्यार नही काट पवँगी तुम्हे, मजबूर हूँ अपने दिल के हातो. लेकिन तुम अगर मुझे सच में प्यार करते हो तो तुम्हे तुरंत ये खून ख़राबा बंद करना पड़ेगा.”
मोहित ने गहरी साँस ली और बोला, “ठीक है पूजा, एनितिंग फॉर यू. लेकिन कम से कम इसे विजय का खेल तो ख़त्म करने दो. वही है वो साएको जीशणे सहर में आतंक मचा रखा है.”
“कौन विजय?”
“वही पुलिस वाला जो तुम्हे ज़बरदस्ती घर ले गया था. उष्का नाम विजय है”
“अगर ऐसा भी है तो तुम क्यों क़ानून अपने हाथ में लेते हो. मेरे जीते जी तुम कुछ नही करोगे ऐसा समझ लो. मुझे मार दो फिर कर लेना जो करना है”
“अछा ठीक है बाबा. मैं ये बात इनस्पेक्टर रोहित को बता देता हूँ. देख लेंगे आगे वो खुद.”
“थॅंक यू मोहित. बहुत शुकून मिला मेरे दिल को ये शन कर. काश तुम मुझे पहले मिले होते.” पूजा ने गहरी साँस ली.
“पूजा इंतेज़ार करूँगा तुम्हारा. मुझे यकीन है की तुम मेरे प्यार से दूर नही रह पावगी. मेरा प्यार सॅचा है तो तुम्हे भी प्यार हो ही जाएगा.”
पूजा की आँखे भी भर आई और वो मुश्कुरा भी पड़ी मोहित की बात पर. एक साथ दो भावनाए जाग गयी थी पूजा के अंदर. “मैं चलती हूँ मोहित. दीदी मेरे लिए परेशान हो रही होगी.”
“मिलती रहना मुझसे, एक अच्छे दोस्त तो हम रह ही सकते हैं.”
“हन बिल्कुल” पूजा मोहित की आँखो में देख कर मुश्कुराइ और धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी.
“कितना प्यार है तुम्हारी आँखो में मेरे लिए, पर तुम स्वीकार नही करना चाहती इसे प्यार को. देखता हूँ मैं भी कब तक धोका दोगी खुद को.” मोहित ने कहा.
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रोहित ने भोलू को बुलाया और कहा, “सब-इनस्पेक्टर विजय की फोटो चाहिए मुझे.”
“उनकी फोटो का क्या करेंगे सिर.”
“है कुछ काम, तुम फोटो लाओ.”
“जी सिर.”
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 34
Re: एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story
रोहित ने भोलू के जाने के बाद राजू को फोन मिलाया, “हेलो राजवीर, एक बात बताओ क्या प़ड़्मिनी ने सब-इनस्पेक्टर विजय को देखा है क्या”
“नही सिर विजय उशके सामने नही आया कभी.” राजू ने जवाब दिया.
“ह्म कल सुबह मैं विजय की फोटो लेकर आऊगा प़ड़्मिनी को दीखने के लिए. मुझे लग रहा है की विजय ही साएको है.”
रोहित ने अचानक फोन काट दिया. उशके दरवाजे पर विजय खड़ा था.
“गुड ईव्निंग सिर कैसे हैं आप.” विजय ने कहा.
“विजय तुम आओ…आओ.” रोहित ने कहा.
“अभी अभी देल्ही से आया हूँ सिर. जल्द मिलूँगा आपसे.” विजय कह कर चला गया वाहा से.
“वेरी स्ट्रेंज. मैं उष्का सीनियर हूँ, अंदर बुला रहा हूँ और वो ताल कर चला गया. शायद उसने फोन पर मेरी बाते शन ली.” रोहित सोच में प़ड़ गया.
तभी रोहित का फोन बाज उठा. फोन उष्की छोटी बहन पिंकी का था.
“भैया मेरे बर्तडे पर तो वक्त से आ जाओ. मम्मी, पापा भी नही हैं आज यहा. ऐसा बर्तडे कभी नही माना मेरे कभी .” पिंकी ने कहा.
“आ रहा हूँ बस थोड़ी देर में. बता क्या गिफ्ट लओन तेरे लिए.”
“मुझे काश दे देना मैं खुद खड़ीद लूँगी. तुम्हारा लाया गिफ्ट कभी अछा नही लगता .”
“जैसी तेरी मर्ज़ी…. आ रहा हूँ थोड़ी देर में.”
कुछ देर रोहित यू ही बैठा रहा और विजय के बड़े में सोचता रहा. “इशे रंगे हाथ पकड़ना होगा तभी बात बनेगी….फिलहाल घर चलता हूँ वरना पिंकी जान ले लेगी.”
रोहित चल दिया अपनी जीप में घर की तरफ. रास्ते से उष्णने एक शोरुम से जीन्स खड़ीद ली पिंकी के लिए. घर पहुँच कर रोहित ने चुपचाप दरवाजा खोला. “ये अंधेरा क्यों कर रखा है पिंकी ने.” रोहित ने तुरंत लाइट जलाई.
मगर लाइट जला कर जैसे ही वो मुड़ा उशके पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी. ड्रॉयिंग रूम के बीचो बीच एक कुर्सी पर पिंकी बैठी थी बिना कपड़ो के. उशके हाथ बँधे हुवे थे. उशके बिल्कुल पीछे एक नकाब पॉश खड़ा था जीशणे की पिंकी के सर पर बंदूक तां न्यू एअर थी.
“मैने सोचा बर्तडे पर मैं भी शामिल हो जौन…हहहे. अपनी पिस्टल मुझे दे दो और हाथ उपर करके खड़े हो जाओ.” नकाब पॉश ने कहा.
“विजय यू बस्टर्ड…तुम्हारी इतनी हिम्मत”
“मेरे पीछे पड़े हो हा. आज पता चलेगा तुम्हे…हाहाहा. जल्दी से अपनी पिस्टल मुझे दो वरना तुम्हारी बहन का भेजा उसा दूँगा.”
रोहित के पास कोई चारा नही था. उसने बंदूक निकल कर ज़मीन पर रख दी और पाँव से ठोकर मार कर नकाब पॉश की तरफ ढकैयल दी.
“गुड…. अब अपने हाथ उपर करो. कोई भी हरकत की तो अंजम बहुत बुरा होगा सिर हाहाहा.”
“मिस्टर रोहित पांडे सामने सोफे पर देखो एक इंजेक्षन पड़ा है. वो लगा लो अपने हाथ में. और कोई भी होशियारी की तो भेजा उसा दूँगा तुम्हारी बहन का.”
“तुम चाहते क्या हो?”
“चुपचाप वो इंजेक्षन लगाओ…वरना देर नही करूँगा इश्का भेजा उसाने में.”
रोहित ने इंजेक्षन उठाया और बोला, “मुझे ये इंजेक्षन लगाना नही आता. मैं कोई डॉक्टर नही हूँ जो इंजेक्षन थोक लॅंड अपने हाथ में.”
“ज़्यादा बकवास मत करो…कुछ ज़्यादा नही करना तुम्हे…बस इंजेक्षन घुस्सा लो कही भी हहहे.”
“तुम पागल हो.”
“हाहाहा…जल्दी करो वरना…”
रोहित सोच में प़ड़ गया. “
“क्या सोच रहे हो जल्दी करो….वरना.”
“तुम ये सब क्यों कर रहे हो.”
“ज़्यादा बाते मत करो जो कहा है वो करो…वरना” नकाब पॉश ने पिंकी के मूह पर छाँटा मारा. उष्का मूह पहले से सूझा हुवा था. वो रोने लगी छाँटा पड़ते ही.
“चुप कर साली, अपने भैया को बोल जो कहा है वो करे वरना तेरा वो हाल करूँगा की तेरी रूह काँप उठेगी.
“कामीने दूर रह मेरी बहन से वरना जींदा नही चोदूगा तुझे.” रोहित छील्लाया.
“अछा ये ले एक और मारा साली को.”
“भैया……मुझे बचा लो….”
“तुम चाहते क्या हो सॉफ-सॉफ बोलो. ये इंजेक्षन मैं क्यों लगओन.”
“क्योंकि मैं कह रहा हूँ इश्लीए. अब मैं दुबारा नही कहूँगा. ज़रा भी देर की तो इश्का भेजा उसा दूँगा.”
रोहित असमंजस में प़ड़ गया की क्या करे क्या ना करे. “देखो एक बात ध्यान से शुन्ओ. तुम मुझे गोली मार दो बेशकपर मेरी बहन को कुछ मत करो. उसे इसे सब से दूर रखो. वो ये सब नही सह सकती. प्लीज़.”
“आया तो मैं तुम्हे मारने ही था. ये मिल गयी तो मज़ा और भी ज़्यादा आएगा. बर्तडे के लिए घर सज़ा रखा है पर किशी को बुलाया ही नही. ऐसा क्यों. अछा किया जो मैं आ गया. हहहे.”
“तुम आख़िर चाहते क्या हो.”
“मैं चाहता हूँ की तुम्हारी बहन मेरा लंड चूज़ और तुम चुपचाप बैठ कर देखो. बोलो करोगे ऐसा.”
“विजय तुम्हे शरम आनी चाहिए…ये सब बोलते हुवे. क्या तुम्हारी कोई बहन नही.”
“अब तुम पहचान ही गये हो मुझे तो ये नकाब उतार देता हूँ हहहे.” विजय ने नकाब उतार दिया.
“विजय मार दो मुझे अभी…क्योंकि अगर मैं बच गया तो बहुत बुरी मौत दूँगा तुम्हे.”
“हाहाहा, अगर तुम मेरे पीछे ना पड़ते तो ये नौबत नही आती. रहीं बात तुम्हारे मरने की तो वो तो तुम्हे मारना ही है. तुम्हारे साथ तुम्हारी बहन भी मरेगी हाहाहा.”
“तो फिर मारो गोली ये इंजेक्षन का नाटक किशलीए कर रहे हो. चलाओ गोली किश बात का इंतेज़ार कर रहे हो.” रोहित छील्लाया.
“तुम्हारी बहन बहुत सेक्सी है सिर, सोच रहा था की आप बेहोश हो जाते तो कुछ मौज मस्ती कर लेता और फिर तुम दोनो का काम ख़त्म कर देता. पर नही मुझे लगता है तुम अपनी बहन को चुद-ते हुवे देखना चाहते हो.”
रोहित शन नही पाया ये सब और उसने इंजेक्षन फेंक कर मारा विजय की तरफ. विजय ने फिरे किया रोहित की तरफ मगर निशाना चूक गया. तब तक रोहित ने आगे बढ़ कर विजय को दबोच लिया. दोनो ज़मीन पर गिर गये. विजय के हाथ में इंजेक्षन आ गया और उसने वो रोहित के गले में गाड़ दिया. रोहित के हाथ गुण तो आ गयी थी मगर वो चला नही पाया. बेहोश हो कर वो वही गिर गया.
“अब तुम्हारा बर्तडे अच्छे से मनाएँगे हम हाहहाहा.”
“प्लीज़….क्यों कर रहे हो तुम ऐसा.”
“चुप कर साली. मुझे तेरे जैसी कॉलेज गर्ल्स बहुत पसंद है. अभी कुछ दिन पहले एक कॉलेज गर्ल की अच्छे से ली थी. वाह क्या मज़ा दिया था उसने. तू भी मज़े कर आज अपने जनमदिन पर. मरने से पहले थोड़ा मज़ा कर लेगी तो तेरी आत्मा को शांति मिलेगी हाहाहा.”
विजय ने रोहित को एक कुर्सी ले कर उष पर रस्सी से बाँध दिया काश कर और उशके गले पर एक इंजेक्षन लगा दिया. “जल्दी ही होश आ जाएगा इशे और ये खुद तुझे चुद-ते हुवे देखेगा. एक बार बहुत दांता था ईसणे मुझे एक बात पर पीछले साल. वो भी दो लोगो के सामने. आज तक मैं चुपचाप रहा. पर ये तो मेरे पीछे ही प़ड़ गया. आज मेरा बदला पूरा होगा.हाहाहा”
“प्लीज़ ऐसा अनर्थ मत करो.” पिंकी सुबक्ते हुवे बोली.
“कुछ भी बोलो, मैं तुम्हारी ले कर रहूँगा वो भी तेरे इसे भाई के सामने हहहे.”
“तुम सच में साएको हो.”
“हाहहाहा…बहुत खूब….देख देख तेरे भाई को होश आ गया. वालेकम बॅक सिर. कैसे हैं आप.”
“विजय तुम्हे तुम्हारे गुनाहो की सज़ा ज़रूर मिलेगी. मैं नही दे पाया तो कोई और देगा मगर तू मरेगा ज़रूर. मैं तो हैरान हू की तुम्ही हो वो साएको जीशणे सहर में आतंक मचा रखा था.”
“ज़्यादा बकवास मत करो और देखो तुम्हारी बहन कैसे मज़े देती है मुझे.”
विजय ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे पिंकी के मूह के आगे झूलने लगा, “ले अपने बर्तडे के दिन ब्लो जॉब का मज़ा ले हाहाहा.”
“कामीने दूर हटो उष से वरना खून पे जवँगा तुम्हारा मैं.”
विजय ने अपनी बंदूक एक तरफ रख दी और पिंकी के उभरो को पकड़ लिया दोनो हाथो से.
कमरे में छींख गूँज उठी पिंकी की. बहुत दर्दनाक छींख. बहुत ज़ोर से दबाया था विजय ने उशके उभारो को.
“कामीने हट जा वरना तेरा वो हाल करूँगा की तेरी रूह काँप उठेगी.”
“अगर तुमने अपना मूह खोल कर ये लंड चूसना शुरू नही किया तो मैं ये बूब्स और ज़ोर से दब्वँगा.”
पिंकी ने मूह खोलने की बजाए मूह और काश कर बंद कर लिया और अपनी आँखे बंद कर ली.
“अतचा ये बात है. मैं भी देखता हूँ की तुम मूह कैसे नही खोलती.” विजय ने अपनी बंदूक उठा ली और रोहित की तरफ तां दी.
“अगर तुरंत मूह खोल कर ये लंड तुमने मूह में नही लिया तो मैं तेरे भाई का भेजा उसा दूँगा.”
“पिंकी…कुछ मत करना ऐसा. मार जाने दो मुझे बेसक. मगर इश्कि कोई बात मत मान-ना.” रोहित ने भावुक हो कर कहा.
“वाह भाई वाह…क्या बात है. देखता हूँ मैं भी की ये किशकि बात मानती है. मेरी या तुम्हारी.”
विजय ने अपने लिंग को पिंकी के बंद मूह पर रगड़ना शुरू कर दिया, “जल्दी खोल ये मूह वरना तेरा भाई मारा जाएगा. बिल्कुल चिंता नही है क्या तुझे अपने भाई की. अपने भाई के लिए इतना भी नही कर सकती . कैसी बहन है तू. ठीक है फिर देख अपने भाई को मराते हुवे.”
“नही रूको…”
“नही पिंकी…नही…ओह नो…” रोहित ने आँखे बंद कर ली.
पिंकी ने मूह खोल दिया था और विजय ने झट से अपने लिंग को उशके मूह में डाल दिया था. पिंकी की आँखो से आँसुओ की बरसात होने लगी. रोहित छटपटा रहा था कुर्सी पर. आँख खोल कर नही देख पाया की उष्की छोटी बहन के साथ क्या हो रहा है. आँखे भर आई उष्की ऐसी हालत में. खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था वो. बहुत कोशिस की उसने रस्सी से आज़ाद होने की मगर विजय ने उसे बहुत मजबूती से बाँध रखा था.
विजय ने पिंकी के बाल खींचे ज़ोर से और बोला, “अच्छे से चूस साली ये क्या मज़ाक लगा रखा है. बिल्कुल मज़ा नही आ रहा.”
इतनी ज़ोर से बाल खींचे थे विजय ने की पिंकी ज़ोर से कराह उठी थी. विजय ने उशके मूह से लिंग निकाल लिया और बोला, “कोई फ़ायडा नही तेरे मूह में लंड रखने का. तेरी चुत में डालता हूँ.”
विजय ने बहुत ज़ोर से दबाया फिर से पिंकी के उभारो को. इसे बार वो और भी ज़्यादा ज़ोर से छीनखी. विजय ने पिंकी के हाथ पाँव खोल दिए कुर्सी से और उसे फार्स पर पटक दिया. कराह उठी पिंकी.
“विजय!” रोहित बहुत ज़ोर से छील्लाया.
“क्या बात है सिर, खोल ही ली आपने आँखे. अब देखिए मैं कैसे लेता हूँ आपकी बहन की हहहे.”
तभी अचानक धदाम की आवाज़ हुई.
“ये कैसी आवाज़ थी.” विजय ने हैरानी में कहा.
रोहित समझ गया की आवाज़ घर के पीछे से आई है. मगर वो कुछ नही बोला.
“क्या कोई और भी है तुम दोनो के अलावा घर में.” विजय ने पिंकी के बाल खींचते हुवे कहा
“कोई और नही है, बस हम दोनो ही हैं. साथ वाले घर में बच्चे धूम मचाते रहते हैं. वही से आवाज़े आती रहती हैं ऐसी.”
“ह्म ठीक है सिर, अब आप अपनी बहन को चुद-ते हुवे देखिए. आपके घर में भी खूब आवाज़े होंगी अब.”
विजय बंदूक एक तरफ रख कर पिंकी के उपर चढ़ गया. पिंकी ने अपनी आँखे बंद कर ली. “क्या बात है, सो क्यूट. मज़ा आएगा तेरी लेने में.”
“विजय!” रोहित छील्लाया और बहुत चटपटाया कुर्सी पर.
“हन सिर बोलिए क्या बात है…आप बता दीजिए की कौन सी पोज़िशन में लॅंड मैं आपकी बहना की. ये ठीक रहेगी या डॉगी स्टाइल लगा लूँ. हाहाहा.”
“कामीने तुझे भगवान कभी माफ़ नही करेंगे” रोहित छील्लाया.
“हाहहाहा….क्या बात है सिर….बस आप माफ़ कर देना, भगवान को मैं संभाल लूँगा.”
पिंकी बहुत छटपटा रही थी विजय के नीचे मगर विजय ने उसे पूरी तरह काबू में कर रखा था. “एक बार घुस्सवा लो मेरी जान क्यों छटपटा रही हो. मरने से पहले एक चुदाई तुम्हे अछी लगेगी..सच कह रहा हूँ हहहे….क…क…कौन है.” विजय हंसते हंसते अचानक हैरानी में बोला.
“तेरा बाप हूँ बेटा.” मोहित ने विजय को पिंकी के उपर से खींच लिया और उसे ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया और टूट पड़ा उष पर.
विजय जल्दी ही संभाल गया और दोनो के बीच जबरदस्त हाथापाई शुरू हो गयी. कभी मोहित हावी होता था तो कभी विजय.
मोहित के हाथ बंदूक आ गयी किशी तरह. और उसने रख दी विजय के सर पर, “बस खेल ख़त्म होता है तुम्हारा. किशी को वादा किया है खून ना बहाने का वरना अभी उसा देता भेजा तुम्हारा.”
मगर अचानक विजय ने मोहित की गर्दन पर इंजेक्षन गाड़ दिया. मोहित दर्द से कराह उठा. उष्की आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा और वो गिर गया विजय के उपर बेहोश हो कर. मगर इसे दौरान पिंकी ने एक अछा काम किया. उसने रोहित के हाथ, पाँव खोल दिए. “पिंकी तुम अपने कमरे में जाओ…और कुण्डी लगा लो.”
पिंकी तुरंत भाग गयी वाहा से और अपने कमरे में आ गयी.
विजय ने मोहित को एक तरफ धकेला और उशके हाथ से बंदूक ले कर रोहित की तरफ तां दी. मगर रोहित आगे ही बढ़ता गया रुका नही.
“क्या हुवा चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूराता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उशके हाथ से छ्चुत गयी. रोहित ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से रोहित ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था की विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उष्का मूह खून से लथपात हो गया.
उशके बाद तो वो पीता रोहित ने विजय को की पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था रोहित. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार कराता था रोहित अपनी बहन को और उसने उशके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. रोहित रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को चुव तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साएको है तू हन, आज तेरा साएको पाना निकालता हूँ.” रोहित ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर रोहित ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इशी वक्त होगा.”
“देखो मैं साएको किल्लर नही हूँ.”
“अतचा फिर कौन हो तुम, उशके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साएको नही हूँ. हाँ मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो स.ई. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हन पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साएको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम शन रहा है. और मेरा दीमग भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा की तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव आ नाइस जौने तो थे हेल…गुड बाइ.” रोहित ने कहा और विजय का भेजा उसा दिया. उशके खून की छींटे उशके मूह पर भी पड़ी.
रोहित ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और आस्प साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साएको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उष्की…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया रोहित ने.
शालिनी 20 मिनिट में पहुँच गयी रोहित के घर. रोहित गुमशुम चुपचाप बैठा था सोफे पर पिंकी के साथ.
दरवाजा खुला ही रख चोदा था रोहित ने. मोहित को भी होश आ गया था. रोहित ने शालिनी को फोन करने के बाद डॉक्टर को फोन करके बुला लिया था. डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद मोहित को होश आ गया था.
“कौन था ये…रोहित.” शालिनी ने पूछा. शालिनी खून से लटपथ चेहरे को पहचान नही पाई.
“वही जीश पर हमें शक था मेडम, विजय.”
“तुम्हे ये नही करना चाहिए था. अब मुझे मजबूर हो कर तुम्हारे खिलाफ कुछ आक्षन लेना पड़ेगा.”
“ले लीजिए जो आक्षन लेना है…मगर मैं इशे किशी भी हालत में जींदा नही छोड़ सकता था…मेरे सामने ईसणे मेरी बहन के साथ…….” आंशु भर आए रोहित की आँखो में.
“बस भैया….बस.” पिंकी ने रोहित के सर पर हाथ रखा.
“ह्म…रोहित, ये गोली तुमने सेल्फ़ डिफेन्स में मारी है, इस तट क्लियर.”
“जैसा आप कहें मेडम, मैने आपको सब सच बता दिया.” रोहित ने शालिनी की आँखो में देख कर कहा.
“ये बात हम दोनो के बीच रहेगी. धिंदूरा मत पीतना की तुमने साएको को गोली मार दी. समझे.” शालिनी ने कहा.
“समझ गया मेडम, समझ गया.” रोहित ने कहा.
“चलो ये केस आख़िर कार क्लोज़ हो गया, कंग्रॅजुलेशन रोहित, गुड जॉब.”
रोहित ने शालिनी की आँखो में देखा और बोला, “थॅंक यू मेडम…सब आपकी दाँत का नतीजा है.”
शालिनी हंस पड़ी इसे बात पर, “वो तो है, और ये मत सोचना की आगे दाँत नही पड़ेगी. अभी और भी बहुत केसस पड़े हैं जिन्हे तुम्हे हॅंडल करना है. इस तट क्लियर.” हँसी के बाद शालिनी की बात में थोड़ी कठोराता आ गयी थी.
“बिल्कुल मेडम…सब क्लियर है.”
शालिनी की नज़र मोहित पर पड़ी तो वो बोली, “ये यहा क्या कर रहा है?”
“ये अगर वक्त पे ना आता तो मेरे सामने ही मेरी बहन का रेप हो जाता. हाँ मोहित पर तुम यहा आए कैसे ” रोहित ने कहा.
“मैं आपको बठाना चाहता था की विजय ही साएको है. मैं विजय की बीवी से मिला था. उसने मुझे बताया की विजय उष रात घायल अवस्था में घर लोटा था जीश रात मेरी साएको से झड़प हुई थी. विजय के पेट को उष्की बीवी ने घर पर ही शिया. इतना क्लू काफ़ी था मुझे समझने के लिए की विजय ही साएको है. बस ये बात बतने मैं थाने पहुँचा आपसे मिलने. वाहा पता चला की आप घर चले गये हैं. आपके घर का अड्रेस ले कर यहा आ गया. जब मैं दरवाजे की बेल बजाने लगा तो मुझे अंदर से किशी के छीनखने की आवाज़ आई. मैं समझ गया की कुछ गड़बड़ है. मैने खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उस गये. मैं आपके घर के पीछे गया और पीछे का दरवाजा तौड दिया. वही से अंदर आया मैं. बाकी तो आपको पता ही है.”
“ह्म….आवाज़ तो हुई थी पीछे, पर ये नही सोचा था मैने की तुम आए हो.” रोहित ने कह कर मोहित को गले लगा लिया “तुम वक्त पर ना आते तो अनर्थ हो जाता. मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता की मेरे सामने……”
“अपना फ़र्ज़ निभाया मैने और कुछ नही. मैं चलता हूँ अब.” मोहित ने कहा.
विजय की डेड बॉडी को वाहा से हटा लिया गया. सबके जाने के बाद रोहित ने पिंकी से कहा, “कितना कुछ सहना पड़ा तुम्हे मेरे होते हुवे. मुझे माफ़ कर दे.”
“भैया ऐसा मत बोलो. उसने हालात ही कुछ ऐसे पैदा कर दिए थे. चलो अब मेरा गिफ्ट दो.”
रोहित ने गले लगा लिया पिंकी को और बोला, “दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार कराता हूँ मैं तुम्हे.”
“मुझे पता है भैया, पता है मुझे.”
दोनो भाई बहन भावुक हो रहे थे. उनके रिश्ते में और ज़्यादा गहराई आ गयी थी इसे वाकये के बाद.
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अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दीखाई जा रही थी और बताया जा रहा था की कैसे एक पुलिस वाला ही साएको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दीखया जा रहा था जो की मान-ने को तैयार नही थी की उष्का पाती साएको था.
राजू को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. मोहित ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये शुंते ही प़ड़्मिनी के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बाज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो प़ड़्मिनी के अंकली ने दरवाजा खोला.
“मुझे अभी अभी पता चला की साएको मारा गया, क्या मैं प़ड़्मिनी जी से मिल सकता हूँ.”
“मारा गया वो…..बहुत अतचा हुवा…अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी.”
“क्या मैं मिल सकता हूँ प़ड़्मिनी जी से.” राजू ने कहा.
“वो अभी शोय है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा.”
“चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा.”
“हन बेटा कल सुबह मिल लेना….”
राजू तड़प रहा था ये न्यूज़ प़ड़्मिनी को शुणने के लिए. मगर कोई चारा नही था उशके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे शालिनी का फोन आया, “राजवीर साएको विजय ही था और हे इस डेड नाउ.”
“हन पता चला मुझे मेडम.”
“तुम्हारी वाहा की ड्यूटी ख़त्म होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हाँ बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो.”
“जी मेडम.”
राजू ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे प़ड़्मिनी से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी प़ड़्मिनी के कमरे की खिड़की को देखते वक्त की वो उठा और चल दिया उष खिड़की की तरफ.
“ह्म चढ़ा जा सकता है उपर.” राजू ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किशी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उष खिड़की तक जिसमे से प़ड़्मिनी झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़क्या उसने. प़ड़्मिनी वाकाई शोय हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उष्की आँख खुल गयी.
“कौन दरवाजा पीट रहा है इसे वक्त” प़ड़्मिनी ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी की आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. प़ड़्मिनी हैरान रह गयी. वो उठी डराते-डराते और खिड़की का परदा हटाया, “राजू तुम ……….तुम यहा क्या कर रहे हो.”
“प़ड़्मिनी जी साएको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरात नही है”
प़ड़्मिनी को समझ नही आया की वो कैसे रिक्ट करे.
“क्या हुवा ख़ुसी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुसी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है.”
“राजू तुम गिर गये तो, ऐसे यहा आने की क्या ज़रूरात थी.”
“मैने आपके अंकली को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिकवेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा की आप गोली ले कर शो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहा आ गया.”
“ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे.”
“आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर.”
“पागल हो गये हो क्या, यहा खिड़की में टाँगे हुवे बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे.”
“ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहा की ड्यूटी ख़त्म होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जवँगा यहा से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़रूँगा.”
“क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?”
“फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी.”
“नही मारूँगी बोलो तुम.”
“प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किशी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अछा लगेगा ये.”
“नही नही प़ड़्मिनी जी मुझे ये बिल्कुल अतचा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा.”
प़ड़्मिनी हंस पड़ी राजू की बात पर और बोली, “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी”
“बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा.”
“हन-हन बोलो.”
“आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही ड्यूवा कराता हूँ.”
तभी प़ड़्मिनी के रूम का दरवाजा खड़का, “तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना.”
“ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जवँगा.” राजू ने कहा.
“अब जाओ भी.” प़ड़्मिनी ने दाँत भींच कर कहा.
राजू झट से नीचे उतार गया. उशके चेहरे पर हल्की हल्की मुश्कान थी. “प़ड़्मिनी जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो.”
प़ड़्मिनी ने दरवाजा खोला. उष्की मम्मी ही थी. “कैसी तबीयत है”
“ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी.”
“तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?”
प़ड़्मिनी सोच में प़ड़ गयी. झुत बोला पड़ा उशे, “ओह हाँ मैं फोन पर थी.”
“शो जाओ बेटा, आराम करो… तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी” प़ड़्मिनी की मम्मी कह कर चली गयी.
“क्या ज़रूरात थी राजू को खिड़की में आने की. बेवजह झुत बोलना पड़ा.” प़ड़्मिनी लाते गयी बिस्तर पर वापिस और शो गयी.
……………….:…………………………………
अगली सुबह प़ड़्मिनी जल्दी उठ गयी और अपने कमरे का टीवी ऑन किया. वो साएको की न्यूज़ शन-ना चाहती थी. उसे पता था की टीवी पर ज़रूर साएको की न्यूज़ चल रही होगी.
जब उसने न्यूज़ देखनी शुरू की तो राहत मिली दिल को की साएको सच में मारा गया. मगर जब टीवी पर विजय की तस्वीर दीखाई गयी तो उशके पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
” ये साएको नही है” प़ड़्मिनी बड़बड़ाई.
उसने तुरंत खिड़की से परदा हटा कर बाहर देखा. राजू जीप में बैठा शो रहा था. वो तुरंत भाग कर सीढ़ियाँ उतार कर नीचे आई और दरवाजा खोल कर राजू की जीप की तरफ बढ़ी.
उसने राजू का कंधा पकड़ कर हिलाया.
“क…क…कौन है.” राजू हड़बड़ा कर उठ गया. “प़ड़्मिनी जी आप”
“वो जो मारा गया वो साएको नही है.”
“क्या आपको कैसे पता चला.” राजू ने हैरानी में पूछा.
“मैने अभी-अभी न्यूज़ देखी. मारना वाला साएको नही कोई और है.”
“ओह नो.” राजू जीप से बाहर आता है और तुरंत आस्प साहिबा को फोन लगाता है.
“मेडम विजय साएको नही था, प़ड़्मिनी जी ने अभी न्यूज़ देख कर बताया की विजय साएको नही है.”
“क्या ” शालिनी भी हैरान रह गयी.
“राजवीर फोन दो ज़रा प़ड़्मिनी को.” शालिनी ने कहा.
राजू ने फोन प़ड़्मिनी को पकड़ा दिया, आस्प साहिबा बात करना चाहती हैं”
“हन प़ड़्मिनी क्या राजवीर जो बोल रहा है वो ठीक है?”
“जी हाँ मेडम….जिशे मारा गया है वो साएको नही है.”
“जीसस…फोन दो राजवीर को.”
“राजू ये लो बात करो.” प़ड़्मिनी ने फोन वापिस थमा दिया राजू को.
“हन राजवीर तुम वही रूको. बाकी की तुम्हारी टीम कहा है.”
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 35
“नही सिर विजय उशके सामने नही आया कभी.” राजू ने जवाब दिया.
“ह्म कल सुबह मैं विजय की फोटो लेकर आऊगा प़ड़्मिनी को दीखने के लिए. मुझे लग रहा है की विजय ही साएको है.”
रोहित ने अचानक फोन काट दिया. उशके दरवाजे पर विजय खड़ा था.
“गुड ईव्निंग सिर कैसे हैं आप.” विजय ने कहा.
“विजय तुम आओ…आओ.” रोहित ने कहा.
“अभी अभी देल्ही से आया हूँ सिर. जल्द मिलूँगा आपसे.” विजय कह कर चला गया वाहा से.
“वेरी स्ट्रेंज. मैं उष्का सीनियर हूँ, अंदर बुला रहा हूँ और वो ताल कर चला गया. शायद उसने फोन पर मेरी बाते शन ली.” रोहित सोच में प़ड़ गया.
तभी रोहित का फोन बाज उठा. फोन उष्की छोटी बहन पिंकी का था.
“भैया मेरे बर्तडे पर तो वक्त से आ जाओ. मम्मी, पापा भी नही हैं आज यहा. ऐसा बर्तडे कभी नही माना मेरे कभी .” पिंकी ने कहा.
“आ रहा हूँ बस थोड़ी देर में. बता क्या गिफ्ट लओन तेरे लिए.”
“मुझे काश दे देना मैं खुद खड़ीद लूँगी. तुम्हारा लाया गिफ्ट कभी अछा नही लगता .”
“जैसी तेरी मर्ज़ी…. आ रहा हूँ थोड़ी देर में.”
कुछ देर रोहित यू ही बैठा रहा और विजय के बड़े में सोचता रहा. “इशे रंगे हाथ पकड़ना होगा तभी बात बनेगी….फिलहाल घर चलता हूँ वरना पिंकी जान ले लेगी.”
रोहित चल दिया अपनी जीप में घर की तरफ. रास्ते से उष्णने एक शोरुम से जीन्स खड़ीद ली पिंकी के लिए. घर पहुँच कर रोहित ने चुपचाप दरवाजा खोला. “ये अंधेरा क्यों कर रखा है पिंकी ने.” रोहित ने तुरंत लाइट जलाई.
मगर लाइट जला कर जैसे ही वो मुड़ा उशके पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी. ड्रॉयिंग रूम के बीचो बीच एक कुर्सी पर पिंकी बैठी थी बिना कपड़ो के. उशके हाथ बँधे हुवे थे. उशके बिल्कुल पीछे एक नकाब पॉश खड़ा था जीशणे की पिंकी के सर पर बंदूक तां न्यू एअर थी.
“मैने सोचा बर्तडे पर मैं भी शामिल हो जौन…हहहे. अपनी पिस्टल मुझे दे दो और हाथ उपर करके खड़े हो जाओ.” नकाब पॉश ने कहा.
“विजय यू बस्टर्ड…तुम्हारी इतनी हिम्मत”
“मेरे पीछे पड़े हो हा. आज पता चलेगा तुम्हे…हाहाहा. जल्दी से अपनी पिस्टल मुझे दो वरना तुम्हारी बहन का भेजा उसा दूँगा.”
रोहित के पास कोई चारा नही था. उसने बंदूक निकल कर ज़मीन पर रख दी और पाँव से ठोकर मार कर नकाब पॉश की तरफ ढकैयल दी.
“गुड…. अब अपने हाथ उपर करो. कोई भी हरकत की तो अंजम बहुत बुरा होगा सिर हाहाहा.”
“मिस्टर रोहित पांडे सामने सोफे पर देखो एक इंजेक्षन पड़ा है. वो लगा लो अपने हाथ में. और कोई भी होशियारी की तो भेजा उसा दूँगा तुम्हारी बहन का.”
“तुम चाहते क्या हो?”
“चुपचाप वो इंजेक्षन लगाओ…वरना देर नही करूँगा इश्का भेजा उसाने में.”
रोहित ने इंजेक्षन उठाया और बोला, “मुझे ये इंजेक्षन लगाना नही आता. मैं कोई डॉक्टर नही हूँ जो इंजेक्षन थोक लॅंड अपने हाथ में.”
“ज़्यादा बकवास मत करो…कुछ ज़्यादा नही करना तुम्हे…बस इंजेक्षन घुस्सा लो कही भी हहहे.”
“तुम पागल हो.”
“हाहाहा…जल्दी करो वरना…”
रोहित सोच में प़ड़ गया. “
“क्या सोच रहे हो जल्दी करो….वरना.”
“तुम ये सब क्यों कर रहे हो.”
“ज़्यादा बाते मत करो जो कहा है वो करो…वरना” नकाब पॉश ने पिंकी के मूह पर छाँटा मारा. उष्का मूह पहले से सूझा हुवा था. वो रोने लगी छाँटा पड़ते ही.
“चुप कर साली, अपने भैया को बोल जो कहा है वो करे वरना तेरा वो हाल करूँगा की तेरी रूह काँप उठेगी.
“कामीने दूर रह मेरी बहन से वरना जींदा नही चोदूगा तुझे.” रोहित छील्लाया.
“अछा ये ले एक और मारा साली को.”
“भैया……मुझे बचा लो….”
“तुम चाहते क्या हो सॉफ-सॉफ बोलो. ये इंजेक्षन मैं क्यों लगओन.”
“क्योंकि मैं कह रहा हूँ इश्लीए. अब मैं दुबारा नही कहूँगा. ज़रा भी देर की तो इश्का भेजा उसा दूँगा.”
रोहित असमंजस में प़ड़ गया की क्या करे क्या ना करे. “देखो एक बात ध्यान से शुन्ओ. तुम मुझे गोली मार दो बेशकपर मेरी बहन को कुछ मत करो. उसे इसे सब से दूर रखो. वो ये सब नही सह सकती. प्लीज़.”
“आया तो मैं तुम्हे मारने ही था. ये मिल गयी तो मज़ा और भी ज़्यादा आएगा. बर्तडे के लिए घर सज़ा रखा है पर किशी को बुलाया ही नही. ऐसा क्यों. अछा किया जो मैं आ गया. हहहे.”
“तुम आख़िर चाहते क्या हो.”
“मैं चाहता हूँ की तुम्हारी बहन मेरा लंड चूज़ और तुम चुपचाप बैठ कर देखो. बोलो करोगे ऐसा.”
“विजय तुम्हे शरम आनी चाहिए…ये सब बोलते हुवे. क्या तुम्हारी कोई बहन नही.”
“अब तुम पहचान ही गये हो मुझे तो ये नकाब उतार देता हूँ हहहे.” विजय ने नकाब उतार दिया.
“विजय मार दो मुझे अभी…क्योंकि अगर मैं बच गया तो बहुत बुरी मौत दूँगा तुम्हे.”
“हाहाहा, अगर तुम मेरे पीछे ना पड़ते तो ये नौबत नही आती. रहीं बात तुम्हारे मरने की तो वो तो तुम्हे मारना ही है. तुम्हारे साथ तुम्हारी बहन भी मरेगी हाहाहा.”
“तो फिर मारो गोली ये इंजेक्षन का नाटक किशलीए कर रहे हो. चलाओ गोली किश बात का इंतेज़ार कर रहे हो.” रोहित छील्लाया.
“तुम्हारी बहन बहुत सेक्सी है सिर, सोच रहा था की आप बेहोश हो जाते तो कुछ मौज मस्ती कर लेता और फिर तुम दोनो का काम ख़त्म कर देता. पर नही मुझे लगता है तुम अपनी बहन को चुद-ते हुवे देखना चाहते हो.”
रोहित शन नही पाया ये सब और उसने इंजेक्षन फेंक कर मारा विजय की तरफ. विजय ने फिरे किया रोहित की तरफ मगर निशाना चूक गया. तब तक रोहित ने आगे बढ़ कर विजय को दबोच लिया. दोनो ज़मीन पर गिर गये. विजय के हाथ में इंजेक्षन आ गया और उसने वो रोहित के गले में गाड़ दिया. रोहित के हाथ गुण तो आ गयी थी मगर वो चला नही पाया. बेहोश हो कर वो वही गिर गया.
“अब तुम्हारा बर्तडे अच्छे से मनाएँगे हम हाहहाहा.”
“प्लीज़….क्यों कर रहे हो तुम ऐसा.”
“चुप कर साली. मुझे तेरे जैसी कॉलेज गर्ल्स बहुत पसंद है. अभी कुछ दिन पहले एक कॉलेज गर्ल की अच्छे से ली थी. वाह क्या मज़ा दिया था उसने. तू भी मज़े कर आज अपने जनमदिन पर. मरने से पहले थोड़ा मज़ा कर लेगी तो तेरी आत्मा को शांति मिलेगी हाहाहा.”
विजय ने रोहित को एक कुर्सी ले कर उष पर रस्सी से बाँध दिया काश कर और उशके गले पर एक इंजेक्षन लगा दिया. “जल्दी ही होश आ जाएगा इशे और ये खुद तुझे चुद-ते हुवे देखेगा. एक बार बहुत दांता था ईसणे मुझे एक बात पर पीछले साल. वो भी दो लोगो के सामने. आज तक मैं चुपचाप रहा. पर ये तो मेरे पीछे ही प़ड़ गया. आज मेरा बदला पूरा होगा.हाहाहा”
“प्लीज़ ऐसा अनर्थ मत करो.” पिंकी सुबक्ते हुवे बोली.
“कुछ भी बोलो, मैं तुम्हारी ले कर रहूँगा वो भी तेरे इसे भाई के सामने हहहे.”
“तुम सच में साएको हो.”
“हाहहाहा…बहुत खूब….देख देख तेरे भाई को होश आ गया. वालेकम बॅक सिर. कैसे हैं आप.”
“विजय तुम्हे तुम्हारे गुनाहो की सज़ा ज़रूर मिलेगी. मैं नही दे पाया तो कोई और देगा मगर तू मरेगा ज़रूर. मैं तो हैरान हू की तुम्ही हो वो साएको जीशणे सहर में आतंक मचा रखा था.”
“ज़्यादा बकवास मत करो और देखो तुम्हारी बहन कैसे मज़े देती है मुझे.”
विजय ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे पिंकी के मूह के आगे झूलने लगा, “ले अपने बर्तडे के दिन ब्लो जॉब का मज़ा ले हाहाहा.”
“कामीने दूर हटो उष से वरना खून पे जवँगा तुम्हारा मैं.”
विजय ने अपनी बंदूक एक तरफ रख दी और पिंकी के उभरो को पकड़ लिया दोनो हाथो से.
कमरे में छींख गूँज उठी पिंकी की. बहुत दर्दनाक छींख. बहुत ज़ोर से दबाया था विजय ने उशके उभारो को.
“कामीने हट जा वरना तेरा वो हाल करूँगा की तेरी रूह काँप उठेगी.”
“अगर तुमने अपना मूह खोल कर ये लंड चूसना शुरू नही किया तो मैं ये बूब्स और ज़ोर से दब्वँगा.”
पिंकी ने मूह खोलने की बजाए मूह और काश कर बंद कर लिया और अपनी आँखे बंद कर ली.
“अतचा ये बात है. मैं भी देखता हूँ की तुम मूह कैसे नही खोलती.” विजय ने अपनी बंदूक उठा ली और रोहित की तरफ तां दी.
“अगर तुरंत मूह खोल कर ये लंड तुमने मूह में नही लिया तो मैं तेरे भाई का भेजा उसा दूँगा.”
“पिंकी…कुछ मत करना ऐसा. मार जाने दो मुझे बेसक. मगर इश्कि कोई बात मत मान-ना.” रोहित ने भावुक हो कर कहा.
“वाह भाई वाह…क्या बात है. देखता हूँ मैं भी की ये किशकि बात मानती है. मेरी या तुम्हारी.”
विजय ने अपने लिंग को पिंकी के बंद मूह पर रगड़ना शुरू कर दिया, “जल्दी खोल ये मूह वरना तेरा भाई मारा जाएगा. बिल्कुल चिंता नही है क्या तुझे अपने भाई की. अपने भाई के लिए इतना भी नही कर सकती . कैसी बहन है तू. ठीक है फिर देख अपने भाई को मराते हुवे.”
“नही रूको…”
“नही पिंकी…नही…ओह नो…” रोहित ने आँखे बंद कर ली.
पिंकी ने मूह खोल दिया था और विजय ने झट से अपने लिंग को उशके मूह में डाल दिया था. पिंकी की आँखो से आँसुओ की बरसात होने लगी. रोहित छटपटा रहा था कुर्सी पर. आँख खोल कर नही देख पाया की उष्की छोटी बहन के साथ क्या हो रहा है. आँखे भर आई उष्की ऐसी हालत में. खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था वो. बहुत कोशिस की उसने रस्सी से आज़ाद होने की मगर विजय ने उसे बहुत मजबूती से बाँध रखा था.
विजय ने पिंकी के बाल खींचे ज़ोर से और बोला, “अच्छे से चूस साली ये क्या मज़ाक लगा रखा है. बिल्कुल मज़ा नही आ रहा.”
इतनी ज़ोर से बाल खींचे थे विजय ने की पिंकी ज़ोर से कराह उठी थी. विजय ने उशके मूह से लिंग निकाल लिया और बोला, “कोई फ़ायडा नही तेरे मूह में लंड रखने का. तेरी चुत में डालता हूँ.”
विजय ने बहुत ज़ोर से दबाया फिर से पिंकी के उभारो को. इसे बार वो और भी ज़्यादा ज़ोर से छीनखी. विजय ने पिंकी के हाथ पाँव खोल दिए कुर्सी से और उसे फार्स पर पटक दिया. कराह उठी पिंकी.
“विजय!” रोहित बहुत ज़ोर से छील्लाया.
“क्या बात है सिर, खोल ही ली आपने आँखे. अब देखिए मैं कैसे लेता हूँ आपकी बहन की हहहे.”
तभी अचानक धदाम की आवाज़ हुई.
“ये कैसी आवाज़ थी.” विजय ने हैरानी में कहा.
रोहित समझ गया की आवाज़ घर के पीछे से आई है. मगर वो कुछ नही बोला.
“क्या कोई और भी है तुम दोनो के अलावा घर में.” विजय ने पिंकी के बाल खींचते हुवे कहा
“कोई और नही है, बस हम दोनो ही हैं. साथ वाले घर में बच्चे धूम मचाते रहते हैं. वही से आवाज़े आती रहती हैं ऐसी.”
“ह्म ठीक है सिर, अब आप अपनी बहन को चुद-ते हुवे देखिए. आपके घर में भी खूब आवाज़े होंगी अब.”
विजय बंदूक एक तरफ रख कर पिंकी के उपर चढ़ गया. पिंकी ने अपनी आँखे बंद कर ली. “क्या बात है, सो क्यूट. मज़ा आएगा तेरी लेने में.”
“विजय!” रोहित छील्लाया और बहुत चटपटाया कुर्सी पर.
“हन सिर बोलिए क्या बात है…आप बता दीजिए की कौन सी पोज़िशन में लॅंड मैं आपकी बहना की. ये ठीक रहेगी या डॉगी स्टाइल लगा लूँ. हाहाहा.”
“कामीने तुझे भगवान कभी माफ़ नही करेंगे” रोहित छील्लाया.
“हाहहाहा….क्या बात है सिर….बस आप माफ़ कर देना, भगवान को मैं संभाल लूँगा.”
पिंकी बहुत छटपटा रही थी विजय के नीचे मगर विजय ने उसे पूरी तरह काबू में कर रखा था. “एक बार घुस्सवा लो मेरी जान क्यों छटपटा रही हो. मरने से पहले एक चुदाई तुम्हे अछी लगेगी..सच कह रहा हूँ हहहे….क…क…कौन है.” विजय हंसते हंसते अचानक हैरानी में बोला.
“तेरा बाप हूँ बेटा.” मोहित ने विजय को पिंकी के उपर से खींच लिया और उसे ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया और टूट पड़ा उष पर.
विजय जल्दी ही संभाल गया और दोनो के बीच जबरदस्त हाथापाई शुरू हो गयी. कभी मोहित हावी होता था तो कभी विजय.
मोहित के हाथ बंदूक आ गयी किशी तरह. और उसने रख दी विजय के सर पर, “बस खेल ख़त्म होता है तुम्हारा. किशी को वादा किया है खून ना बहाने का वरना अभी उसा देता भेजा तुम्हारा.”
मगर अचानक विजय ने मोहित की गर्दन पर इंजेक्षन गाड़ दिया. मोहित दर्द से कराह उठा. उष्की आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा और वो गिर गया विजय के उपर बेहोश हो कर. मगर इसे दौरान पिंकी ने एक अछा काम किया. उसने रोहित के हाथ, पाँव खोल दिए. “पिंकी तुम अपने कमरे में जाओ…और कुण्डी लगा लो.”
पिंकी तुरंत भाग गयी वाहा से और अपने कमरे में आ गयी.
विजय ने मोहित को एक तरफ धकेला और उशके हाथ से बंदूक ले कर रोहित की तरफ तां दी. मगर रोहित आगे ही बढ़ता गया रुका नही.
“क्या हुवा चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूराता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उशके हाथ से छ्चुत गयी. रोहित ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से रोहित ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था की विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उष्का मूह खून से लथपात हो गया.
उशके बाद तो वो पीता रोहित ने विजय को की पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था रोहित. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार कराता था रोहित अपनी बहन को और उसने उशके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. रोहित रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को चुव तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साएको है तू हन, आज तेरा साएको पाना निकालता हूँ.” रोहित ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर रोहित ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इशी वक्त होगा.”
“देखो मैं साएको किल्लर नही हूँ.”
“अतचा फिर कौन हो तुम, उशके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साएको नही हूँ. हाँ मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो स.ई. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हन पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साएको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम शन रहा है. और मेरा दीमग भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा की तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव आ नाइस जौने तो थे हेल…गुड बाइ.” रोहित ने कहा और विजय का भेजा उसा दिया. उशके खून की छींटे उशके मूह पर भी पड़ी.
रोहित ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और आस्प साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साएको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उष्की…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया रोहित ने.
शालिनी 20 मिनिट में पहुँच गयी रोहित के घर. रोहित गुमशुम चुपचाप बैठा था सोफे पर पिंकी के साथ.
दरवाजा खुला ही रख चोदा था रोहित ने. मोहित को भी होश आ गया था. रोहित ने शालिनी को फोन करने के बाद डॉक्टर को फोन करके बुला लिया था. डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद मोहित को होश आ गया था.
“कौन था ये…रोहित.” शालिनी ने पूछा. शालिनी खून से लटपथ चेहरे को पहचान नही पाई.
“वही जीश पर हमें शक था मेडम, विजय.”
“तुम्हे ये नही करना चाहिए था. अब मुझे मजबूर हो कर तुम्हारे खिलाफ कुछ आक्षन लेना पड़ेगा.”
“ले लीजिए जो आक्षन लेना है…मगर मैं इशे किशी भी हालत में जींदा नही छोड़ सकता था…मेरे सामने ईसणे मेरी बहन के साथ…….” आंशु भर आए रोहित की आँखो में.
“बस भैया….बस.” पिंकी ने रोहित के सर पर हाथ रखा.
“ह्म…रोहित, ये गोली तुमने सेल्फ़ डिफेन्स में मारी है, इस तट क्लियर.”
“जैसा आप कहें मेडम, मैने आपको सब सच बता दिया.” रोहित ने शालिनी की आँखो में देख कर कहा.
“ये बात हम दोनो के बीच रहेगी. धिंदूरा मत पीतना की तुमने साएको को गोली मार दी. समझे.” शालिनी ने कहा.
“समझ गया मेडम, समझ गया.” रोहित ने कहा.
“चलो ये केस आख़िर कार क्लोज़ हो गया, कंग्रॅजुलेशन रोहित, गुड जॉब.”
रोहित ने शालिनी की आँखो में देखा और बोला, “थॅंक यू मेडम…सब आपकी दाँत का नतीजा है.”
शालिनी हंस पड़ी इसे बात पर, “वो तो है, और ये मत सोचना की आगे दाँत नही पड़ेगी. अभी और भी बहुत केसस पड़े हैं जिन्हे तुम्हे हॅंडल करना है. इस तट क्लियर.” हँसी के बाद शालिनी की बात में थोड़ी कठोराता आ गयी थी.
“बिल्कुल मेडम…सब क्लियर है.”
शालिनी की नज़र मोहित पर पड़ी तो वो बोली, “ये यहा क्या कर रहा है?”
“ये अगर वक्त पे ना आता तो मेरे सामने ही मेरी बहन का रेप हो जाता. हाँ मोहित पर तुम यहा आए कैसे ” रोहित ने कहा.
“मैं आपको बठाना चाहता था की विजय ही साएको है. मैं विजय की बीवी से मिला था. उसने मुझे बताया की विजय उष रात घायल अवस्था में घर लोटा था जीश रात मेरी साएको से झड़प हुई थी. विजय के पेट को उष्की बीवी ने घर पर ही शिया. इतना क्लू काफ़ी था मुझे समझने के लिए की विजय ही साएको है. बस ये बात बतने मैं थाने पहुँचा आपसे मिलने. वाहा पता चला की आप घर चले गये हैं. आपके घर का अड्रेस ले कर यहा आ गया. जब मैं दरवाजे की बेल बजाने लगा तो मुझे अंदर से किशी के छीनखने की आवाज़ आई. मैं समझ गया की कुछ गड़बड़ है. मैने खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उस गये. मैं आपके घर के पीछे गया और पीछे का दरवाजा तौड दिया. वही से अंदर आया मैं. बाकी तो आपको पता ही है.”
“ह्म….आवाज़ तो हुई थी पीछे, पर ये नही सोचा था मैने की तुम आए हो.” रोहित ने कह कर मोहित को गले लगा लिया “तुम वक्त पर ना आते तो अनर्थ हो जाता. मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता की मेरे सामने……”
“अपना फ़र्ज़ निभाया मैने और कुछ नही. मैं चलता हूँ अब.” मोहित ने कहा.
विजय की डेड बॉडी को वाहा से हटा लिया गया. सबके जाने के बाद रोहित ने पिंकी से कहा, “कितना कुछ सहना पड़ा तुम्हे मेरे होते हुवे. मुझे माफ़ कर दे.”
“भैया ऐसा मत बोलो. उसने हालात ही कुछ ऐसे पैदा कर दिए थे. चलो अब मेरा गिफ्ट दो.”
रोहित ने गले लगा लिया पिंकी को और बोला, “दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार कराता हूँ मैं तुम्हे.”
“मुझे पता है भैया, पता है मुझे.”
दोनो भाई बहन भावुक हो रहे थे. उनके रिश्ते में और ज़्यादा गहराई आ गयी थी इसे वाकये के बाद.
……………………………………………………………….
अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दीखाई जा रही थी और बताया जा रहा था की कैसे एक पुलिस वाला ही साएको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दीखया जा रहा था जो की मान-ने को तैयार नही थी की उष्का पाती साएको था.
राजू को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. मोहित ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये शुंते ही प़ड़्मिनी के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बाज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो प़ड़्मिनी के अंकली ने दरवाजा खोला.
“मुझे अभी अभी पता चला की साएको मारा गया, क्या मैं प़ड़्मिनी जी से मिल सकता हूँ.”
“मारा गया वो…..बहुत अतचा हुवा…अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी.”
“क्या मैं मिल सकता हूँ प़ड़्मिनी जी से.” राजू ने कहा.
“वो अभी शोय है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा.”
“चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा.”
“हन बेटा कल सुबह मिल लेना….”
राजू तड़प रहा था ये न्यूज़ प़ड़्मिनी को शुणने के लिए. मगर कोई चारा नही था उशके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे शालिनी का फोन आया, “राजवीर साएको विजय ही था और हे इस डेड नाउ.”
“हन पता चला मुझे मेडम.”
“तुम्हारी वाहा की ड्यूटी ख़त्म होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हाँ बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो.”
“जी मेडम.”
राजू ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे प़ड़्मिनी से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी प़ड़्मिनी के कमरे की खिड़की को देखते वक्त की वो उठा और चल दिया उष खिड़की की तरफ.
“ह्म चढ़ा जा सकता है उपर.” राजू ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किशी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उष खिड़की तक जिसमे से प़ड़्मिनी झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़क्या उसने. प़ड़्मिनी वाकाई शोय हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उष्की आँख खुल गयी.
“कौन दरवाजा पीट रहा है इसे वक्त” प़ड़्मिनी ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी की आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. प़ड़्मिनी हैरान रह गयी. वो उठी डराते-डराते और खिड़की का परदा हटाया, “राजू तुम ……….तुम यहा क्या कर रहे हो.”
“प़ड़्मिनी जी साएको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरात नही है”
प़ड़्मिनी को समझ नही आया की वो कैसे रिक्ट करे.
“क्या हुवा ख़ुसी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुसी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है.”
“राजू तुम गिर गये तो, ऐसे यहा आने की क्या ज़रूरात थी.”
“मैने आपके अंकली को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिकवेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा की आप गोली ले कर शो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहा आ गया.”
“ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे.”
“आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर.”
“पागल हो गये हो क्या, यहा खिड़की में टाँगे हुवे बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे.”
“ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहा की ड्यूटी ख़त्म होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जवँगा यहा से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़रूँगा.”
“क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?”
“फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी.”
“नही मारूँगी बोलो तुम.”
“प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किशी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अछा लगेगा ये.”
“नही नही प़ड़्मिनी जी मुझे ये बिल्कुल अतचा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा.”
प़ड़्मिनी हंस पड़ी राजू की बात पर और बोली, “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी”
“बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा.”
“हन-हन बोलो.”
“आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही ड्यूवा कराता हूँ.”
तभी प़ड़्मिनी के रूम का दरवाजा खड़का, “तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना.”
“ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जवँगा.” राजू ने कहा.
“अब जाओ भी.” प़ड़्मिनी ने दाँत भींच कर कहा.
राजू झट से नीचे उतार गया. उशके चेहरे पर हल्की हल्की मुश्कान थी. “प़ड़्मिनी जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो.”
प़ड़्मिनी ने दरवाजा खोला. उष्की मम्मी ही थी. “कैसी तबीयत है”
“ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी.”
“तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?”
प़ड़्मिनी सोच में प़ड़ गयी. झुत बोला पड़ा उशे, “ओह हाँ मैं फोन पर थी.”
“शो जाओ बेटा, आराम करो… तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी” प़ड़्मिनी की मम्मी कह कर चली गयी.
“क्या ज़रूरात थी राजू को खिड़की में आने की. बेवजह झुत बोलना पड़ा.” प़ड़्मिनी लाते गयी बिस्तर पर वापिस और शो गयी.
……………….:…………………………………
अगली सुबह प़ड़्मिनी जल्दी उठ गयी और अपने कमरे का टीवी ऑन किया. वो साएको की न्यूज़ शन-ना चाहती थी. उसे पता था की टीवी पर ज़रूर साएको की न्यूज़ चल रही होगी.
जब उसने न्यूज़ देखनी शुरू की तो राहत मिली दिल को की साएको सच में मारा गया. मगर जब टीवी पर विजय की तस्वीर दीखाई गयी तो उशके पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
” ये साएको नही है” प़ड़्मिनी बड़बड़ाई.
उसने तुरंत खिड़की से परदा हटा कर बाहर देखा. राजू जीप में बैठा शो रहा था. वो तुरंत भाग कर सीढ़ियाँ उतार कर नीचे आई और दरवाजा खोल कर राजू की जीप की तरफ बढ़ी.
उसने राजू का कंधा पकड़ कर हिलाया.
“क…क…कौन है.” राजू हड़बड़ा कर उठ गया. “प़ड़्मिनी जी आप”
“वो जो मारा गया वो साएको नही है.”
“क्या आपको कैसे पता चला.” राजू ने हैरानी में पूछा.
“मैने अभी-अभी न्यूज़ देखी. मारना वाला साएको नही कोई और है.”
“ओह नो.” राजू जीप से बाहर आता है और तुरंत आस्प साहिबा को फोन लगाता है.
“मेडम विजय साएको नही था, प़ड़्मिनी जी ने अभी न्यूज़ देख कर बताया की विजय साएको नही है.”
“क्या ” शालिनी भी हैरान रह गयी.
“राजवीर फोन दो ज़रा प़ड़्मिनी को.” शालिनी ने कहा.
राजू ने फोन प़ड़्मिनी को पकड़ा दिया, आस्प साहिबा बात करना चाहती हैं”
“हन प़ड़्मिनी क्या राजवीर जो बोल रहा है वो ठीक है?”
“जी हाँ मेडम….जिशे मारा गया है वो साएको नही है.”
“जीसस…फोन दो राजवीर को.”
“राजू ये लो बात करो.” प़ड़्मिनी ने फोन वापिस थमा दिया राजू को.
“हन राजवीर तुम वही रूको. बाकी की तुम्हारी टीम कहा है.”
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 35
Re: एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story
“उन्हे तो मैने भेज दिया था रात ही आपसे बात करने के बाद.”
“ठीक है मैं सभी को वापिस भेजती हूँ, तुम वही रूको और सतर्क रहो.”
“आप चिंता ना करें मेडम, मेरे होते हुवे यहा कुछ नही होगा.”
“गुड.” शालिनी ने फोन काट दिया.
“प़ड़्मिनी जी आप अंदर जाओ, यहा बाहर ख़तरा है.”
“हन जा रही हूँ, तुम भी ख्याल रखना अपना राजू.” प़ड़्मिनी कह कर वापिस अंदर आ गयी.शालिनी ने राजू से बात करने के बाद तुरंत रोहित को फोन मिलाया.
“गुड मॉर्निंग मेडम. ”
“गुड मॉर्निंग कैसे हो.”
“ठीक हूँ मेडम , आज ड्यूटी नही आ पवँगा मेडम.”
“आना पड़ेगा तुम्हे, साएको अभी भी आज़ाद घूम रहा है.”
“क्या ऐसा कैसे हो सकता है.”
“ऐसा ही है, प़ड़्मिनी के अनुसार विजय साएको नही था. अभी अभी बात की मैने उष से.”
“ऐसा कैसे हो सकता है ….”
“ऐसा ही है, तुम जल्दी से पहुँचो थाने, मैं भी पहुँच रही हूँ. अब सब कुछ नये शाइर से सोचना पड़ेगा.”
“आ रहा हूँ मेडम…. ……” रोहित ने मायूसी में कहा.
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“अतचा हुवा जो की मैं रात यही रहा. अगर विजय साएको नही था तो फिर कौन है साएको. ये बात तो और ज़्यादा उलझती जा रही है. अब टीवी पर आ रही न्यूज़ के कारण साएको और ज़्यादा चोककना हो जाएगा.” राजू सोच में डूबा था.
प़ड़्मिनी के मम्मी, अंकली कही जा रहे थे किशी काम से सुबह 10 बजे. प़ड़्मिनी के अंकली ने राजू से कहा, “किशी और को ही मार दिया तुम लोगो ने. क्या ऐसे ही काम करते हो तुम लोग. असली मुजरिम आज़ाद घूम रहा और एक बेकसूर को मार डाला. मेरा तो विश्वास उठ चुका है पुलिस के उपर से.”
“आप शायद ठीक कह रहे हैं मगर हम लोग भी इंसान ही हैं. ग़लती हो सकती है हम लोगो से भी.”
“तुम लोगो की ग़लती के कारण कोई बेकसूर मारे जाए, उष्का क्या.”
राजू ने चुप रहना ही ठीक समझा.
“अगर मन लो ये झुटि बात शन कर प़ड़्मिनी बाहर निकलती और साएको का शिकार हो जाती तो क्या होता. वो तो शूकर है उसने टीवी पर देख लिया. वरना तो मुसीबत तो मेरी बेटी के गले पड़नी थी.”
“मैं समझ सकता हूँ…” राजू ने कहा.
“अब तुम अकेले ही हो यहा, कैसी शूरक्षा दे रहे हो मेरी बेटी को.”
“बाकी लोग आ रहे हैं आप चिंता ना करें. मेरे होते हुवे प़ड़्मिनी जी को कुछ नही होगा.” राजू ने कहा.
“हमें ज़रूरी काम से बाहर जाना प़ड़ रहा है. हम शाम तक लौटेंगे.”
“आप निश्चिंत हो कर जायें.” राजू ने कहा.
प़ड़्मिनी के अंकली और मम्मी कार में बैठ कर चले गये. उनके जाते ही 2 गन्मन और 4 कॉन्स्टेबल्स आ गये.
राजू ने 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के पीछे लगा दिए और 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के आगे. “बिल्कुल सतर्क रहना तुम लोग.” राजू ने सभी को हिदायत दी.
“रात कुछ कहते-कहते रुक गयी तीन प़ड़्मिनी जी. अतचा मोका है, उनके मम्मी, पापा घर नही है. अब बात हो सकती है.” राजू ने सोचा और प़ड़्मिनी के घर के दरवाजे की तरफ चल दिया. गहरी साँस ले कर उसने बेल बजाई. प़ड़्मिनी ने दरवाजा खोला.
“राजू तुम…बोलो क्या बात है.” प़ड़्मिनी ने गहरी साँस ले कर कहा.
“प़ड़्मिनी जी आप कुछ कहना चाहती थी कल. अगर आपका मन हो तो बता दीजिए अब.”
प़ड़्मिनी ने राजू को घर के अंदर नही बुलाया बल्कि खुद बाहर आ कर दरवाजा अपने पीछे बंद कर लिया. वो घर में अकेली थी इश्लीए राजू को अंदर नही बुलाना चाहती थी.
“राजू एक बात बताओ.”
“हन पूछिए.” राजू ने उत्शुकता से पूछा.
“तुमने कल दूसरी बार कहा मुझे की ‘प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही’ . क्या मैं जान सकती हूँ की इसे बात का मतलब क्या है.” प़ड़्मिनी की बात में थोड़ी कठोराता थी.
“मतलब नही बता पवँगा प़ड़्मिनी जी.” राजू ने धीरे से कहा.
“अतचा…तुम कुछ कहते हो अपने मूह से और उष्का मतलब तुम नही जानते. कितनी अजीब बात है, है ना.”
“मैं बस इतना जानता हूँ की आपको चाहने लगा हूँ. अब इसे चाहत का मतलब कैसे बताओन मैं आपको. मुझे खुद कुछ नही पता.”
“बस इतनी ही बात करनी थी मैने. जान-ना चाहती थी की क्या चल रहा है तुम्हारे दीमग में. कल रात तुम खिड़की में आ गये. क्या पूछ सकती हूँ की क्यों किया तुमने ऐसा. तुमने ज़रा भी नही सोचा की कोई देख लेता तो कितनी बदनामी होती मेरी.”
“सॉरी प़ड़्मिनी जी. मैं बस आप्क्प बठाना चाहता था साएको के बड़े में. एग्ज़ाइटेड था आप तक ये खबर पहुँचने के लिए.”
“पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है की तुम्हारे मन में हवस है मेरे लिए और प्यार का दीखवा कर रहे हो. याद है तुम्हे क्या-क्या बोल रहे थे तुम उष दिन मोहित के घर पर मेरे बड़े में. कुछ आश्चर्या नही हुवा था मुझे वो शन कर. ज़्यादा तार लड़को ने मेरे शरीर को ही देखा है. किशी ने मेरी आत्मा में झाँकने की कोशिस नही की. आज तुम प्यार की बात कर रहे हो. तुम्हे पता भी है की प्यार क्या होता है. सच-सच बताओ अब तक कितनी लड़कियों से संबंध रह चुके हैं तुम्हारे और कितनो को तुम ये डाइलॉग बोल चुके हो की ‘प्यार करते हैं आपसे हम, कोई मज़ाक नही. मुझे झुत बिल्कुल पसंद नही है. सच-सच बठाना.”
“अगर सेक्स को ही संबंध कहा जा सकता है तो 10 लड़कियों से संबंध रहे हैं मेरे.”
“10 लड़कियाँ ….ग्रेट….मैने 2-3 का अंदाज़ा लगाया था. तुम तो उम्मीद से भी ज़्यादा आगे निकले मेरी. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से.”
“प़ड़्मिनी जी मगर मैने कभी किशी के लिए ऐसा प्यार महसूस नही किया जैसा आपके लिए कर रहा हूँ. मेरे दिल में कोई हवस नही है आपके लिए. आपको यकीन बेशक ना हो पर प्यार कराता हूँ आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“बंद करो अपनी बकवास तुम. 10-10 अदकियों से तुम्हारी प्यास नही बुझी अब मेरे उपर नज़र है तुम्हारी. ये प्यार नही हवस है. सब जानती हूँ मैं. देख रही हूँ तुम्हे कुछ दीनो से. जान-ना चाहती थी की तुम्हारी मंशा क्या है. कैसे प्यार कर सकते हो तुम किशी से. तुम्हे तो बस शरीर से खेलना आता है. मेरे से बात मत करना आगे से. दुख हुवा मुझे तुमसे बात करके. मुझे नही पता था की इतनी लड़कियाँ आ चुकी हैं तुम्हारी जींदगी में.” आँखे नाम हो गयी प़ड़्मिनी की बोलते-बोलते और उसने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया.
राजू को समझ नही आया की वो क्या करे. दरवाजा पीता उसने, “प़ड़्मिनी जी सच बोल दिया आपसे. झुत नही बोल सकता था. प्लीज़ मेरे प्यार को हवस का नाम मत दीजिए. बात बेशक मत कीजिएगा मगर मुझे ग़लत मत समझिएगा.”
“चले जाओ तुम. एक नंबर के मक्कार हो तुम. झुत ही बोल देते मुझसे…इतना कड़वा सच बोलने की ज़रूरात क्या थी. मुझे तुमसे कोई भी बात नही करनी है. आईन्दा मेरी तरफ मत देखना वरना आँखे नोच लूँगी तुम्हारी.” प़ड़्मिनी को बहुत दुख हुवा था.
“सच बोलने की इतनी बड़ी सज़ा मत दीजिए प़ड़्मिनी जी. मुझे एक मोका दीजिए.”
“मेरा 11 नंबर होगा, फिर 12 नंबर भी होगा किशी का. ये हवस का शील्षिला चलता रहेगा. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से तुम. मुझे तुमसे कुछ लेना देना नही है. दफ़ा हो जाओ.”
“ठीक है प़ड़्मिनी जी…आपकी कसम मैं दुबारा नही कहूँगा आपको कुछ भी. पर आप ऐसे परेशान मत हो. जा रहा हूँ मैं. अब आपको नही देखूँगा…ना ही कुछ कहूँगा आपको. हाँ मुझे नही पता की प्यार क्या होता है. शायद हवस को ही प्यार बोल रहा हूँ मैं. मुझे सच में नही पता. पता होता तो भटकता नही अपनी जींदगी में. आपके लायक नही था मैं फिर भी आपके खवाब देख रहा था. पागल हो गया हूँ शायद. माफ़ कीजिएगा मुझे आज के बाद आपको कभी परेशान नही करूँगा. ख़ूस्स रहें आप अपनी जींदगी में और हर बाला से दूर रहें. गोद ब्लेस्स यू.”
“तुम ऐसे क्यों हो राजू..क्यों हो ऐसे…नही कर सकती तुमसे प्यार मैं. नही कर सकती…………” प़ड़्मिनी फूट-फूट कर रोने लगी.
राजू ने शन लिया सब कुछ मगर कुछ कहने की हिम्मत नही हुई. चल दिया चुपचाप आँखो में आँसू लिया वाहा से. “काश आप समझ पाती मेरे दिल की बात. पर आपसे शिकायत भी क्या करूँ. मैं खुद भी अपने आप को समझ नही पाया आज तक. बहुत समझाया अपने दिल को की प्यार मत करो और फिर वही हुवा जीशका दर था. मेरी किशमत में प्यार लिखा ही नही भगवान ने. नही कहूँगा कुछ भी अब. आपको बिल्कुल परेशान नही करूँगा. मुझे आपकी आँखो में कुछ लगता था जीशके कारण मेरी हिम्मत बढ़ गयी. वरना मैं कहा हिम्मत कर पाता आपकी खिड़की तक पहुँचने की. ख़ूस्स रहें आप और क्या कहूँ….मेरी उमर लग जाए आपको……….”
प़ड़्मिनी बंद रही कमरे में सारा दिन और बिल्कुल दरवाजा नही खोला. ना ही उसने खिड़की से झाँक कर देखा बाहर. राजू भी चुपचाप आँखे मीचे जीप में बैठा रहा.
शाम के कोई 7 बजे एक आदमी आया. उशके हाथ में 2 डब्बे थे. उसने राजू से पूछा, “क्या प़ड़्मिनी जी यही रहती हैं.”
“हन यही रहती हैं. क्या काम है?”
“उनका करियर है.” आदमी ने कहा.
राजू ने एक कॉन्स्टेबल से कहा की तलासी लेकर इशके साथ जाओ तुम. कॉन्स्टेबल ने अच्छे से तलासी ली उष्की और उशके साथ चल दिया.
प़ड़्मिनी ने बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोला. उसे लग रहा था की दरवाजे पर राजू ही होगा. मगर जब उष आदमी ने छील्ला कर कहा की आपका करियर है तो उसने दरवाजा खोल कर साइन करके दोनो डब्बे ले लिए.
“किशणे भेजे हैं ये डब्बे.”
प़ड़्मिनी ने फ़ौरन एक डब्बा खोला और जो उसने अंदर देखा उसे देख कर वो इतनी ज़ोर से छील्लाई की पूरा आस प़ड़ोष में उष्की छींख गूँज गयी. छींख के बाद वो फूट-फूट कर रोने लगी….पापा…नही………”
राजू फ़ौरन पिस्टल हाथ में लेकर घर की तरफ भागा. दरवाजा बंद था अंदर से. राजू ने दरवाजा खड़क्या. मगर प़ड़्मिनी ऐसी हालत में नही थी की वो दरवाजा खोल पाए. राजू ने दरवाजे को ज़ोर से धक्का मारा. पर दरवाजा बहुत मजबूत था. पर राजू रुका नही. उसने बार-बार कोशिस की. कॉन्स्टेबल्स और गन्मन ने भी राजू का साथ दिया. आख़िरकार दरवाजा टूट गया. राजू अंदर आया तो देखा की प़ड़्मिनी फूट-फूट कर रो रही है खुले हुवे डब्बे के पास. राजू करीब आया तो देख नही पाया, “ओह माई गोद…..नही…ये सब कैसे…प़ड़्मिनी जी….”
डब्बे में प़ड़्मिनी के अंकली का कटा हुवा सर था. साथ में एक काग़ज़ का टुकड़ा भी था. राजू ने काँपते हाथो से वो उठाया उसमे लिखा था, “प़ड़्मिनी ये तोहफा भेज रहा हूँ तुम्हारे लिए. उम्मीद है तुम्हे पसंद आएगा. जो दर तुम्हारे चेहरे पर आएगा इशे देख कर वो बहुत ही खूबसूरात होगा. ये दर बनाए रखना क्योंकि बहुत जल्द मिलूँगा तुमसे मैं. और याद रखना, ‘यू कॅन ऋण, बट यू कॅन नेवेर हाइड. जल्द मिलते हैं.”
दूसरे डब्बे में क्या होगा ये सोच कर ही रूह काँप गयी राजू की. उसने खोला वो डब्बा और जैसा शक था उसे उसमें प़ड़्मिनी की मम्मी का सर था. प़ड़्मिनी ये बात पहले ही समझ गयी थी शायद. इश्लीए उसने आँखे खोल कर नही देखा. वैसे उष्की हालत थी भी नही की वो कुछ देखे. पागल सी हो गयी थी ये सब देख कर.
राजू ने तुरंत शालिनी को फोन लगाया, “मेडम अनर्थ हो गया.”
“क्या हुवा राजवीर.”
“दो डब्बे आए करियर से अभी प़ड़्मिनी जी के घर उनमे प़ड़्मिनी के मम्मी, पापा के कटे हुवे सर है. मैं तो समझ ही नही पा रहा हूँ की क्या करूँ.”
“ओह गोद इतना घिनोना काम किया उसने.” शालिनी ने कहा.
शालिनी के सामने ही रोहित बैठा था , “क्या हुवा मेडम.”
“साएको ने दो डब्बो में प़ड़्मिनी के मम्मी, अंकली के कटे हुवे सर भेजे हैं.” शालिनी ने रोहित से कहा.
“ओह..नो…” रोहित स्तब्ध रह गया.
“राजू हम अभी आते हैं वाहा..तुम चिंता मत करो.” शालिनी ने कहा.
शालिनी ने फोन रखा ही था की कमरे में भोलू आया भागता हुवा. “मेडम जी अनर्थ हो गया.”
“क्या हुवा?” शालिनी ने पूछा.
“थाने के बिल्कुल सामने 2 लाश गिरा गया कोई. उनके सर गायब हैं.”
“क्या …” रोहित और शालिनी एक साथ छील्लाए.
दोनो बाहर आए फ़ौरन. थाने के बिल्कुल बाहर 2 लाश पड़ी थी.
“दिन दहाड़े गिरा गया वो लाश और किशी ने देखा भी नही…वाह” शालिनी ने गुस्से में कहा.
रोहित को एक काग़ज़ दीखाई दिया लाश की जेब में. रोहित ने काग़ज़ निकाला. उष पर लिखा था, “मिस्टर रोहित पांडे. आज न्यूज़ में छाए हुवे थे. कंग्रॅजुलेशन तो यू. तुम्हारे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान तैयार है. जल्दी मिलेंगे.”
“तुम मिलो तो सही वो हाल करूँगा की याद रखोगे.” रोहित ने दाँत भींच कर कहा.
“क्या लिखा है काग़ज़ में रोहित.” शालिनी ने पूछा.
“मेरे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान बनाया है साएको ने. चेतावनी दी है मुझे.” रोहित ने कहा.
“चेतावनी तुम्हे ही नही पूरे पुलिस डेप्ट को दी है उसने. बहुत ज़्यादा गट्स हैं उसमें. पुलिस स्टेशन के बाहर दो लाशें फेंक गया वो. वक्त आ गया है अब उसे उशके किए की सज़ा देने का. दो वॉटेवर यू कॅन बट ई वॉंट तीस बस्टर्ड बिहाइंड बार्स.” शालिनी ने कहा.
“हो जाएगा मेडम हो जाएगा. ज़्यादा दिन नही चलेगा खेल इश्का.” रोहित ने कहा.
तभी अचानक एक तेज तर्रार रिपोर्टर आन धमकी वाहा और रोहित के मूह के आगे माएक लगा कर बोली, “क्या मैं पूछ सकती हूँ की पुलिस स्टेशन के बाहर ये लाशें किशकि हैं.”
रोहित ने टालने के लिए बोला,”देखिए अभी कुछ नही कह सकता मैं. तहकीकात चल रही है.”
“तहकीकात करते रहना आप, एक दिन वो साएको हमें सबको मार देगा और आप हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे… ….”
“क्या नाम है आपका?”
“मेरे नाम से कोई मतलब नही है आपको मगर फिर भी बता देती हूँ मैं. मिनी नाम है मेरा. मैं भी साएको के केस को क्लोस्ली फॉलो कर रही हूँ. कल आपने जिसे मारा वो साएको नही था. साएको जींदा है अभी. उष्का सबूत ये लाशें हैं जो यहा पड़ी हैं.”
“क्या जान सकता हूँ की कहा से पता चली ये सब बातें?” रोहित ने पूछा.
“मैं न्यूज़ रिपोर्टर हूँ. मेरा अपना तरीका है जानकारी एक्कथा करने का. आपको क्यों बताओन.”
“कूल… देखिए केस की इन्वेस्टिगेशन चल रही है. अभी कुछ भी कहना ठीक नही होगा.” रोहित कह कर चल दिया.
रोहित के बाद मिनी ने शालिनी को घेर लिया, “कब तक चलेगा ये दरिंदगी का दौर. आख़िर पुलिस कुछ कर क्यों नही पा रही है.”
“हम पूरी कोशिस कर रहे हैं. पुलिस हाथ पर हाथ रख कर नही बैठी है. यकीन डीलती हूँ आपको की साएको जल्दी पकड़ा जाएगा.”
शालिनी से बात करने के बाद मिनी खड़ी हो गयी माएक ले कर कॅमरा के सामने और बोली, “अभी हमने आपको पुलिस का रावय्या दीखया. पुलिस स्टेशन के बाहर 2 डेड बॉडीस फेंक गया कोई और इन्हे खबर भी नही लगी. अगर पुलिस स्टेशन के बाहर ही पुलिस अलर्ट नही है तो बाकी सहर की स्तिति आप खुद समझ सकते हैं. साएको सहर में आज़ाद घूम रहा है और पुलिस शो रही है. ओवर तो यू……..”
शालिनी और रोहित प़ड़्मिनी के घर की तरफ चल दिए. मिनी भी कॅमरमन के साथ उनके पीछे चल पड़ी, “अगर हम मीडीया वाले पुलिस पर दबाव नही डालेंगे तो ये कुछ नही करेंगे. एक नंबर की नुककममी पुलिस है ये.”
रोहित और शालिनी एक ही जीप में जा रहे थे. अचानक शालिनी का मोबाइल बाज उठा. शालिनी ने मोबाइल उठाया और बात की. बात करने के बाद वो बोली, “रोहित जंगल में मेरे उपर गोलिया छल्लाने वाला भी विजय ही था. जो गोली मुझपे चली थी वो विजय की उष बंदूक से मॅच हो गयी जो कल उशके पास थी. पता नही विजय ऐसा क्यों कर रहा था. सारा केस उलझा दिया उसने.”
“जहा तक मैं समझ पा रहा हूँ मेडम साएको ही था वो भी. हो सकता है कॉपीकॅट हो वो और असली साएको से परभावित हो. ये भी हो सकता है की विजय असली साएको से मिला हुवा हो.”
“सही कह रहे हो. तहकीकात करो इसे बात की. और हाँ बाकी टीन लोग जिनके पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है उनके बड़े में अच्छे से तहकीकात करो.”
“जी मेडम….वही करूँगा.”
रोहित ने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया, “हेलो हेमंत भाई…कैसे हो……………”
रोहित ने हेमंत को प़ड़्मिनी के मा-बाप की मौत की खबर शुना दी. वो भी तुरंत प़ड़्मिनी के घर की तरफ निकल दिया.
“कौन है ये हेमंत?” शालिनी ने पूछा.
“प़ड़्मिनी का कज़िन है. वैसे हम उसे हितक्श कहते हैं. मुझे लगा उसे बता देता हूँ. प़ड़्मिनी अकेली होगी अब. किशी घर वाले को तो होना चाहिए उशके पास. मुस्सूरीए में रहता है वो. ”
“ह्म… गुड.”
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“कितने आँसू बहायें हम, अब इंतेहा हो चुकी है
वक्त की ऐसी करवट से, जींदगी तबाह हो चुकी है
क्या गुनाह था मेरा, जो ये सज़ा दी मुझको
जीने की चाहत भी अब फ़ना हो चुकी है.”
राजू को समझ नही आ रहा था की कैसे संभाले प़ड़्मिनी को. वो पागलो की तरह रोए जा रही थी. बिल्कुल उष डब्बे के पास ही बैठी थी जीशमे उशके पापा का सर था. प़ड़्मिनी को ऐसी हालत में देख कर राजू की आँखे भी नाम हो गयी. बिल्कुल नही देख पा रहा था वो प़ड़्मिनी को ऐसी हालत में. प्यार जो कराता था उशे.
बहुत ही मुश्किल होता है उसे तड़प्ते हुवे देखना जिसे आप बहुत प्यार करते हैं. और जब पता हो की आप बस देख ही सकते हैं उसे तड़प्ते हुवे कुछ कर नही सकते तो दिल पर क्या बीट-ती है उसे सबदो में नही कहा जा सकता. राजू बिल्कुल ऐसी ही स्तिति में था. कुछ भी तो नही कर पा रहा था प़ड़्मिनी के लिए. और अगर वो कुछ कराता भी तो उसे दर था की कही प़ड़्मिनी उसे दाँत ना दे. और परेशान नही करना चाहता था राजू प़ड़्मिनी को. मगर फिर भी उसने सोचा की कुछ तो करना ही चाहिए उशे.
राजू ने दोनो डब्बे वाहा से हटवा दिए और सभी को बाहर भेज दिया, “तुम लोग बाहर नज़र रखो. कुछ भी ऐसा वैसा हो तो मुझे बठाना.”
“जी सिर”
राजू बैठ गया वही प़ड़्मिनी के पास और बोला, “प़ड़्मिनी जी आपकी कसम खा कर कहता हूँ मैं तडपा-तडपा कर मारूँगा इसे साएको को. आप प्लीज़ चुप हो जाओ.”
“कैसे चुप हो जौन. अपने मा-बाप को खो दिया मैने. कितनी दर्दनाक मौत मिली है उन्हे. तुम मेरा गम नही समझ सकते. चले जाओ यहा से.”
“मैने बचपन में ही खो दिया था अपने मा-बाप को. बस 7 साल खा था जब वो आक्सिडेंट में मारे गये. अनाथ हूँ तभी से. मा-बाप को खोने का गम क्या होता है मुझसे बहतर कोई नही समझ सकता. आपके गम को अतचे से समझ सकता हूँ मैं.” राजू ने भावुक हो कर कहा.
प़ड़्मिनी ने अपने आँसू पोंछे और बोली, “तुमने पहले क्यों नही बताया.” एक अजीब सी मासूमियत थी प़ड़्मिनी के चेहरेव पर बोलते हुवे.
“बात ही कहा होती है आपसे. वैसे भी मैं बताता नही हूँ किशी को ये बात. आप प्लीज़ चुप हो जाओ, मुझसे देखा नही जा रहा.”
“मैं नही रोक सकती खुद को राजू. तुम नही समझ सकते. ये आँसू खुद-ब-खुद आ रहे हैं.” प़ड़्मिनी सुबक्ते हुवे बोली.
“समझ सकता हूँ. मैं भी 2 दिन लगातार रोता रहा था. कर लीजिए मन हल्का अपना. मैं बस आपको देख नही पा रहा इसे हालत में इश्लीए चुप होने को बोल रहा था. और मेरी तरफ से परेशान मत होना आप अब. मैं अपनी ग़लती समझ गया हूँ.”
तभी रोहित और प़ड़्मिनी भी वाहा पहुँच गये. रोहित तो कुछ नही बोल पाया उसे रोते देख. शालिनी उशके पास बैठ गयी और बोली, “बहुत ही बुरा हुवा है ये. मुझे बहुत दुख है प़ड़्मिनी. हम कुछ भी नही कर पाए. पूरा पुलिस डेप्ट तुम्हारा दोषी है. लेकिन यकीन डीलाती हूँ तुम्हे की इसे पाप की सज़ा जल्द मिलेगी उशे.”
“मुझे उसे शोनप दीजिए. ये सब मेरे कारण हुवा है. अगर वो मारना चाहता है मुझे तो वही सही. वैसे भी अब जी कर करना भी क्या है. कुछ नही बचा मेरे पास. मेरी मौत से ये शील्षिला रुकता है तो मुझे मार जाने दीजिए.”
इश् से पहले की शालिनी कुछ बोल पाती राजू ने तुरंत कहा, “ये क्या बोल रही हैं आप. आपको कुछ नही होने दूँगा मैं. मारना उष साएको को है अब.”
शालिनी, रोहित और प़ड़्मिनी तीनो ने राजू की तरफ देखा. “मैं सही कह रहा हूँ. आप क्यों मरेंगी. मरेगा अब वो जो की इतने घिनोने काम कर रहा है.”
“राजवीर सही कह रहे हो तुम. यही जज़्बा चाहिए हमें पुलिस में.” रोहित ने कहा.
“चुप करो तुम. ग़लत बाते मत सीख़ाओ उशे. तुमसे ये उम्मीद नही रखती हूँ मैं… …..” शालिनी ने रोहित को दाँत दिया.
“सॉरी मेडम ….” रोहित ने मायूस स्वर में कहा.
“राजवीर भावनाओ को काबू करना सीखो. और दुबारा ऐसी बात मत करना मेरे सामने. हाँ सज़ा मिलेगी उशे, ज़रूर मिलेगी.”
“बिल्कुल…उशे सज़ा मिलेगी काई सालो केस चलने के बाद. वो आइसो-आराम से जैल की रोटिया तोड़ेगा. और हो सकता है…क़ानूनी दाँव पेंच लगा कर वो बच जाए.” रोहित ने कहा.
“स्टॉप तीस नॉनसेन्स ई से.” शालिनी छील्लाई.
रोहित ने कुछ नही कहा. बस चुपचाप खड़ा रहा. राजू भी कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाया.
“ये सब बकवास करने की बजाए उन डब्बो का मूवायना करो और देखो की करियर कहा से आया था और किशणे भेजा था. स्टुपिड.” शालिनी ने गुस्से में कहा.
“जी मेडम अभी देखता हूँ.” रोहित ने कहा. “राजू कहा हैं वो डब्बे.”
“प़ड़्मिनी जी के सामने से हटवा दिए थे मैने. दूसरे कमरे में रखे हैं.”
“चलो देखते हैं.” रोहित ने कहा और राजू के साथ उष कमरे में आ गया जहा डब्बे रखे थे.
“जीसस…” रोहित से देखा नही गया और उसने आँखे बंद कर ली.
“फर्स्ट फ्लाइट से आया था करियर सिर ये.”
“ह्म…कौन दे कर गया?”
“था एक आदमी सिर?”
“क्या नाम था उष्का?”
“नाम नही पूछा सिर”
“चलो कोई बात नही फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से सब पता चल जाएगा.”
जब रोहित बाहर आया तो शालिनी ने पूछा, “कुछ पता चला.”
“फर्स्ट फ्लाइट वालो से ही पता चलेगा सब कुछ मेडम.”
“ह्म तो पता करो जाकर.” शालिनी ने कहा.
प़ड़्मिनी को विश करके शालिनी बाहर की तरफ चल दी, “चलो रोहित.”
“आता हूँ अभी मेडम, प़ड़्मिनी से ज़रा बात कर लूँ.” रोहित ने कहा.
मगर राजू वही खड़ा रहा.
“राजवीर तुम घर के चारो तरफ रौंद ले कर आओ. देखो सब ठीक है की नही.”
राजू को अजीब सा तो लगा मगर फिर भी वो चला गया.
राजू के जाने के बाद रोहित प़ड़्मिनी के पास आया. वो अब सोफे पर गुमशुम बैठी थी.
“सब से बड़ा गुनहगार तो मैं हूँ तुम्हारा प़ड़्मिनी. मेरे होते हुवे ते सब हो गया. खुद को माफ़ नही कर पवँगा. मगर मैं तुम्हे यकीन डीलाता हूँ. जींदा नही बचेगा वो…बस एक बार आ जाए मेरे सामने.”
प़ड़्मिनी कुछ नही बोली.
“जींदगी भर नाराज़ रहोगी क्या. मुझे इसे काबिल भी नही समझती की मैं तुमसे तुम्हारे गम बाँट सकूँ. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. कितनी बाते करते थे हम प्यारी-प्यारी…पता नही किशकि नज़र लग गयी हमारी दोस्ती को.”
“मैं कुछ नही शन-ना चाहती. मेरा सर फटा जा रहा है. प्लीज़ चले जाओ…प्लीज़. मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ…..” प़ड़्मिनी फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
राजू ने ये शन लिया. वो समझ नही पाया की हो क्या रहा है. रोहित चुपचाप चल दिया वाहा से. आँखे नाम थी उष्की. राजू ने देख लिया रोहित की आँखो की नामी को. असमंजस में प़ड़ गया और भी ज़्यादा. उष्की कुछ हिम्मत नही हुई रोहित से कुछ पूछने की.
राजू प़ड़्मिनी के पास आया और बोला, “क्या बात थी प़ड़्मिनी जी. क्या आप जानती हैं रोहित को.”
“हन…बहुत अतचे दोस्त थे हम. एक साथ पढ़ते थे कॉलेज में.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“उनकी आँखो में आँसू थे यहा से जाते वक्त. मैं समझ नही पा रहा हूँ की क्या बात है.”
“राजू प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. अभी मैं इसे हालत में नही हूँ की कुछ कह पऔन…प्लीज़…”
“सॉरी प़ड़्मिनी जी. मैं बाहर ही हूँ. कोई भी बात हो तो बस एक आवाज़ देना तुरंत आ जवँगा.” राजू ये कह कर बाहर आ गया.
रोहित प़ड़्मिनी के घर से सीधा फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस गया. मगर वाहा कोई सुराग नही मिला उशे. यही पता चला की एक रिक्शे वाला आया था दो डब्बे लेकर और कूरीएर करवा कर चला गया.
“क्या कुछ बता सकते हो उष रिक्शे वाले के बड़े में.”
“अब क्या बताओन सिर. बहुत लोग आते हैं यहा. कुछ नही पता मुझे.”
“बहुत ही छल्लाक है ये साएको. किशी रिक्शे वाले को पकड़ के दो डब्बे पकड़ा दिए और करियर करवा दिए प़ड़्मिनी के घर. बहुत शातिर दीमग है.”
फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से रोहित सीधा विजय के घर पहुँचा. उसने दरवाजा खड़क्या. सरिता ने दरवाजा खोला.
“मैं इनस्पेक्टर रोहित पांडे हूँ. कुछ बात करनी थी आपसे.” रोहित ने कहा.
रोहित बोल कर हटा ही था की उशके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दिया सरिता ने. “तुम्हे कैसे भूल सकती हूँ. तुम्ही ना मारा है ना मेरे पाती को.”
थप्पड़ खाने के बाद एक पल को रोहित कुछ नही बोल पाया. मगर थप्पड़ मारने के बाद सरिता थोड़ी नरम प़ड़ गयी.
“बतायें अब मैं क्या मदद कर सकती हूँ आपकी?” सरिता ने कहा.
“मार लीजिए एक थप्पड़ और, फिर आराम से बात करेंगे. थप्पड़ मारने के बाद आप शांत सी हो गयी हो. मार लीजिए एक और…बुरा नही मानूँगा.” रोहित ने कहा.
“आईए अंदर” सरिता ने कहा
रोहित अंदर आ कर चुपचाप सोफे पर बैठ गया. सरिता भी उशके सामने बैठ गयी.
“मेरी आँखो के सामने रेप अटेंप्ट किया विजय ने मेरी बहन का. आपको बता नही सकता की क्या-क्या किया उसने. मुझे यही लगा की वही साएको है. गुस्से में मार दी गोली मैने उशे. नही रोक पाया खुद को…सॉरी.”
“मैने आपको थप्पड़ एक पत्नी के रूप में मारा. एक औरात होने के नाते कह सकती हूँ की आपने ठीक ही किया. मेरी आँखो के सामने रेप किया था मेरी छोटी बहन का उन्होने. मार देना चाहती थी मैं भी उन्हे पर अपने पत्नी धरम के कारण चुप थी.”
“कितने साल हुवे आपकी शादी को.” रोहित ने पूछा.
“3 साल”
“सरिता जी मुझे शक है की आपके पाती साएको के साथ मिले हुवे थे. इश्लीए यहा आया हूँ. उष साएको ने सहर में आतंक मचा रखा है. उष्को पकड़ना बहुत ज़रूरी है वरना वो यू ही खून बहाता रहेगा. क्या आप कुछ ऐसा बता सकती हैं जो की मेरी मदद कर सके.”
“कुछ दीनो से वो सारा-सारा दिन बाहर रहते थे. रात को काई बार घर ही नही आते थे. कुछ पूछती थी तो मुझे मारने-पीतने लगते थे. एक दिन पेट पर चाकू खा कर आए थे. मैने यही घर पर ही पेट सीया था उनका. ज़्यादा कुछ नही जानती मैं. वो मेरे लिए हमेशा एक रहस्या ही रहे.”
“ह्म माफ़ कीजिए मुझे मैने आपको बेवजह तकलीफ़ दी…मैं चलता हूँ.” रोहित ने कहा और सोफे से खड़ा हो गया.
अचानक उष्की नज़र टीवी के उपर पड़ी एक मूवी की सीडी पर पड़ी. उष्का टाइटल देख कर रोहित ने कहा,”ह्म….साएको…क्या ये मूवी आपके हज़्बंद देखते थे.”
“हन….बार बार इशे ही देखते थे वो. पता नही क्या है ऐसा इसमे. मैने कभी नही देखी.”
“देखी तो मैने भी नही ये मूवी, हाँ पर नाम बहुत शुना है इश्का. अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं ये सीडी ले सकता हूँ. लौटा दूँगा आपको जल्द.”
“ले जाईए मुझे नही चाहिए ये वैसे भी. वापिस करने की भी कोई ज़रूरात नही है.” सरिता ने कहा.
“थॅंक्स सरिता जी. मैं चलता हूँ अब.”
जैसे ही रोहित घर से बाहर निकला मिनी ने उसे घेर लिया, “क्या आप माफी माँगने आए थे विजय की पत्नी से. क्या आपको अब अहसास हो रहा है की आपने ग़लत आदमी को मार दिया.”
“देखिए इन्वेस्टिगेशन चल रही है. मैं कुछ नही कह सकता अभी.”
“वैसे थप्पड़ क्यों पड़ा आपके गाल पे. कुछ बता सकते हैं.”
“तुम्हे कैसे पता …” रोहित सर्प्राइज़्ड रह गया.
“मैने खुद देखा अपनी आँखो से. रेकॉर्ड भी हो गया कॅमरा में”
“मुझे आपसे कोई बात नही करनी है…जो करना है करिए.” रोहित बोल कर जीप में बैठ कर वाहा से निकल गया.
“एक पत्नी ने आज अपने मन की भादास निकाली. एक करारा थप्पड़ मिला इनस्पेक्टर साहिब को. शायद ये थप्पड़ अब उनकी नींद तौड दे और वो और ज़्यादा स्टार्क हो कर अपनी ड्यूटी करें….ओवर तो यू…..” मिनी ने कॅमरा के सामने खड़े हो कर कहा.
रोहित सीधा थाने पहुँचा. थाने के बाहर ही उसे भोलू मिल गया. वो कुछ परेशान सा लग रहा था.
“भोलू आस्प साहिबा हैं क्या” रोहित ने पूछा.
“एक घंटा पहले निकल गयी मेडम…और उनके जाते ही अनर्थ हो रहा है.”
“क्या हुवा भोलू…क्या अनर्थ हो रहा है?”
“चौहान सिर एक औरात को मजबूर करके उशके साथ…..उष्का पाती एक छोटे से जुर्म में जैल में बंद है. दरखास्त करने आई थी वो अपने पाती के लिए मगर चौहान सिर मोके का फ़ायडा उठा रहे हैं.”
“मैं खबर लेता हूँ इसे चौहान की.”
“सिर मेरा नाम मत लेना की मैने बताया.”
रोहित सीधा चौहान के कमरे की तरफ बढ़ा. दरवाजा झुका हुवा था…बंद नही था. रोहित ने झाँक कर देखा तो दंग रह गया. चौहान ने उष औरात को झुका रखा था और ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे हिल रहा था.
“आपसे ऐसी उम्मीद नही थी सिर.” रोहित ने कहा.
चौहान चोंक गया और रुक गया, “तुम….ज़बरदस्ती नही कर रहा मैं. ये खुद तैयार हुई है मेरे आगे झुकने के लिए. बदले में इश्का पाती आज़ाद हो रहा है और क्या चाहिए इशे.”
चौहान फिर से हिलने लगा.
“आप जैसे लोगो के कारण पुलिस बदनाम है.लीव हेर.”
“लीव हेर….दफ़ा हो जाओ यहा से. ये अपनी मर्ज़ी से दे रही है. तुझे क्या तकलीफ़ है.”
रोहित ने उष औरात की आँखो में देखा. उष्की आँखे नाम थी. वो शरम और ग्लानि के कारण आँखे नही उठा पा रही थी.
“लीव हेर….अदरवाइज़.”
“अदरवाइज़ क्या ? .गोली मारोगे मुझे विजय की तरह?”
“बिल्कुल मारूँगा.” रोहित ने बंदूक तां दी चौहान पर.”
“पागल हो गये हो तुम ……..बंदूक नीचे करो.”
“बंदूक भी नीचे हो जाएगी पहले जो कहा है वो करो” रोहित ने दृढ़ता से कहा.
चौहान हट गया उष औरात के पीछे से और बोला, देख लूँगा तुझे.”
उष औरात ने झट से कपड़े ठीक किए और बोली, “धन्यवाद साहिब.”
“क्या नाम है तुम्हारे पाती का और किश जुर्म में जैल में है वो.”
“माधव पार्षाद. चोरी के झुटे इल्ज़ाम में फँसाया गया है उन्हे.”
“ठीक है अभी जाओ तुम और कल मिलना मुझे 10 बजे. देखते हैं क्या हो सकता है.
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हेमंत (हितक्श) पहुच गया प़ड़्मिनी के घर. उसे देखते ही प़ड़्मिनी लिपट गयी उष से और फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
“भैया सब ख़त्म हो गया. कुछ नही बचा.”
“बस चुप हो जाओ. रोने से कोई फ़ायडा नही है.”
“पर मैं क्या करूँ. बहुत ही दर्दनाक मौत मिली है मम्मी,अंकली को.”
“मुझे रोहित ने बताया सब कुछ. तुम तो फोन ही नही कराती हो कभी”
“अभी किशी को भी फोन नही किया मैने.”
“कोई बात नही अब कर देंगे. अंतिम संस्कार पे तो सबको आना ही है.”
“चाचा, चाची नही आए.”
“आ रहे हैं वो भी. वो देल्ही गये थे परसो. रास्ते में ही हैं वो.” हेमंत ने कहा.
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रोहित थाने से निकला ही था की उष्का फोन बाज उठा.
“कहा हो जानेमन.”
“ही रीमा….कैसी हो…”
“आपको अगर याद हो तो कुछ काम अधूरे छोड़ गये थे आप. आ जाईए हम तड़प रहे हैं तभी से.”
“उफ़फ्फ़ ऐसे बुलाएँगी आप तो माना नही कर पाएँगे. वैसे आपको अपने भैया का दर नही क्या.”
“अभी-अभी भैया का फोन आया था. वो आज रात घर नही आएँगे.”
“अतचा….देख लो कही मरवा दो मुझे.”
“तुम आओ ना. अतचा छोटी सी भूल कहा तक पढ़ी. अब तक तो ख़त्म हो गयी होगी.”
“अरे नही यार. पढ़ ही रहा हूँ. परसो रात ख़त्म करना चाहता था मगर कुछ लोगो से पंगा हो गया. फिर मन नही किया पढ़ने का. शांति से पढ़ुंगा मैं क्योंकि बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर है कहानी अब.”
“ह्म….आ रहे हो की नही.”
“आ रहा हूँ जी…आप बिस्तर सज़ा कर रखो….”
“सजाने की क्या ज़रूरात है आपने उथल-पुथल तो कर ही देना है…. ……”
“हाहहाहा…. आ रहा हूँ मैं बस थोड़ी देर में तुम्हारी रेल बनाने.”
“नहियीईईईईई……. अतचा चलो आ जाओ… वेटिंग फॉर यू.” रीमा ने कहा और फोन काट दिया.
“तुम बन ही गयी रीमा थे गोलडेन गिर ……. ….आतची बात है और ज़्यादा मज़ा आएगा संभोग में … ….” रोहित सोच कर मुश्कुरआया और जीप में बैठ कर रीमा के घर की तरफ चल दिया.
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 36
“ठीक है मैं सभी को वापिस भेजती हूँ, तुम वही रूको और सतर्क रहो.”
“आप चिंता ना करें मेडम, मेरे होते हुवे यहा कुछ नही होगा.”
“गुड.” शालिनी ने फोन काट दिया.
“प़ड़्मिनी जी आप अंदर जाओ, यहा बाहर ख़तरा है.”
“हन जा रही हूँ, तुम भी ख्याल रखना अपना राजू.” प़ड़्मिनी कह कर वापिस अंदर आ गयी.शालिनी ने राजू से बात करने के बाद तुरंत रोहित को फोन मिलाया.
“गुड मॉर्निंग मेडम. ”
“गुड मॉर्निंग कैसे हो.”
“ठीक हूँ मेडम , आज ड्यूटी नही आ पवँगा मेडम.”
“आना पड़ेगा तुम्हे, साएको अभी भी आज़ाद घूम रहा है.”
“क्या ऐसा कैसे हो सकता है.”
“ऐसा ही है, प़ड़्मिनी के अनुसार विजय साएको नही था. अभी अभी बात की मैने उष से.”
“ऐसा कैसे हो सकता है ….”
“ऐसा ही है, तुम जल्दी से पहुँचो थाने, मैं भी पहुँच रही हूँ. अब सब कुछ नये शाइर से सोचना पड़ेगा.”
“आ रहा हूँ मेडम…. ……” रोहित ने मायूसी में कहा.
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“अतचा हुवा जो की मैं रात यही रहा. अगर विजय साएको नही था तो फिर कौन है साएको. ये बात तो और ज़्यादा उलझती जा रही है. अब टीवी पर आ रही न्यूज़ के कारण साएको और ज़्यादा चोककना हो जाएगा.” राजू सोच में डूबा था.
प़ड़्मिनी के मम्मी, अंकली कही जा रहे थे किशी काम से सुबह 10 बजे. प़ड़्मिनी के अंकली ने राजू से कहा, “किशी और को ही मार दिया तुम लोगो ने. क्या ऐसे ही काम करते हो तुम लोग. असली मुजरिम आज़ाद घूम रहा और एक बेकसूर को मार डाला. मेरा तो विश्वास उठ चुका है पुलिस के उपर से.”
“आप शायद ठीक कह रहे हैं मगर हम लोग भी इंसान ही हैं. ग़लती हो सकती है हम लोगो से भी.”
“तुम लोगो की ग़लती के कारण कोई बेकसूर मारे जाए, उष्का क्या.”
राजू ने चुप रहना ही ठीक समझा.
“अगर मन लो ये झुटि बात शन कर प़ड़्मिनी बाहर निकलती और साएको का शिकार हो जाती तो क्या होता. वो तो शूकर है उसने टीवी पर देख लिया. वरना तो मुसीबत तो मेरी बेटी के गले पड़नी थी.”
“मैं समझ सकता हूँ…” राजू ने कहा.
“अब तुम अकेले ही हो यहा, कैसी शूरक्षा दे रहे हो मेरी बेटी को.”
“बाकी लोग आ रहे हैं आप चिंता ना करें. मेरे होते हुवे प़ड़्मिनी जी को कुछ नही होगा.” राजू ने कहा.
“हमें ज़रूरी काम से बाहर जाना प़ड़ रहा है. हम शाम तक लौटेंगे.”
“आप निश्चिंत हो कर जायें.” राजू ने कहा.
प़ड़्मिनी के अंकली और मम्मी कार में बैठ कर चले गये. उनके जाते ही 2 गन्मन और 4 कॉन्स्टेबल्स आ गये.
राजू ने 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के पीछे लगा दिए और 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के आगे. “बिल्कुल सतर्क रहना तुम लोग.” राजू ने सभी को हिदायत दी.
“रात कुछ कहते-कहते रुक गयी तीन प़ड़्मिनी जी. अतचा मोका है, उनके मम्मी, पापा घर नही है. अब बात हो सकती है.” राजू ने सोचा और प़ड़्मिनी के घर के दरवाजे की तरफ चल दिया. गहरी साँस ले कर उसने बेल बजाई. प़ड़्मिनी ने दरवाजा खोला.
“राजू तुम…बोलो क्या बात है.” प़ड़्मिनी ने गहरी साँस ले कर कहा.
“प़ड़्मिनी जी आप कुछ कहना चाहती थी कल. अगर आपका मन हो तो बता दीजिए अब.”
प़ड़्मिनी ने राजू को घर के अंदर नही बुलाया बल्कि खुद बाहर आ कर दरवाजा अपने पीछे बंद कर लिया. वो घर में अकेली थी इश्लीए राजू को अंदर नही बुलाना चाहती थी.
“राजू एक बात बताओ.”
“हन पूछिए.” राजू ने उत्शुकता से पूछा.
“तुमने कल दूसरी बार कहा मुझे की ‘प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही’ . क्या मैं जान सकती हूँ की इसे बात का मतलब क्या है.” प़ड़्मिनी की बात में थोड़ी कठोराता थी.
“मतलब नही बता पवँगा प़ड़्मिनी जी.” राजू ने धीरे से कहा.
“अतचा…तुम कुछ कहते हो अपने मूह से और उष्का मतलब तुम नही जानते. कितनी अजीब बात है, है ना.”
“मैं बस इतना जानता हूँ की आपको चाहने लगा हूँ. अब इसे चाहत का मतलब कैसे बताओन मैं आपको. मुझे खुद कुछ नही पता.”
“बस इतनी ही बात करनी थी मैने. जान-ना चाहती थी की क्या चल रहा है तुम्हारे दीमग में. कल रात तुम खिड़की में आ गये. क्या पूछ सकती हूँ की क्यों किया तुमने ऐसा. तुमने ज़रा भी नही सोचा की कोई देख लेता तो कितनी बदनामी होती मेरी.”
“सॉरी प़ड़्मिनी जी. मैं बस आप्क्प बठाना चाहता था साएको के बड़े में. एग्ज़ाइटेड था आप तक ये खबर पहुँचने के लिए.”
“पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है की तुम्हारे मन में हवस है मेरे लिए और प्यार का दीखवा कर रहे हो. याद है तुम्हे क्या-क्या बोल रहे थे तुम उष दिन मोहित के घर पर मेरे बड़े में. कुछ आश्चर्या नही हुवा था मुझे वो शन कर. ज़्यादा तार लड़को ने मेरे शरीर को ही देखा है. किशी ने मेरी आत्मा में झाँकने की कोशिस नही की. आज तुम प्यार की बात कर रहे हो. तुम्हे पता भी है की प्यार क्या होता है. सच-सच बताओ अब तक कितनी लड़कियों से संबंध रह चुके हैं तुम्हारे और कितनो को तुम ये डाइलॉग बोल चुके हो की ‘प्यार करते हैं आपसे हम, कोई मज़ाक नही. मुझे झुत बिल्कुल पसंद नही है. सच-सच बठाना.”
“अगर सेक्स को ही संबंध कहा जा सकता है तो 10 लड़कियों से संबंध रहे हैं मेरे.”
“10 लड़कियाँ ….ग्रेट….मैने 2-3 का अंदाज़ा लगाया था. तुम तो उम्मीद से भी ज़्यादा आगे निकले मेरी. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से.”
“प़ड़्मिनी जी मगर मैने कभी किशी के लिए ऐसा प्यार महसूस नही किया जैसा आपके लिए कर रहा हूँ. मेरे दिल में कोई हवस नही है आपके लिए. आपको यकीन बेशक ना हो पर प्यार कराता हूँ आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“बंद करो अपनी बकवास तुम. 10-10 अदकियों से तुम्हारी प्यास नही बुझी अब मेरे उपर नज़र है तुम्हारी. ये प्यार नही हवस है. सब जानती हूँ मैं. देख रही हूँ तुम्हे कुछ दीनो से. जान-ना चाहती थी की तुम्हारी मंशा क्या है. कैसे प्यार कर सकते हो तुम किशी से. तुम्हे तो बस शरीर से खेलना आता है. मेरे से बात मत करना आगे से. दुख हुवा मुझे तुमसे बात करके. मुझे नही पता था की इतनी लड़कियाँ आ चुकी हैं तुम्हारी जींदगी में.” आँखे नाम हो गयी प़ड़्मिनी की बोलते-बोलते और उसने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया.
राजू को समझ नही आया की वो क्या करे. दरवाजा पीता उसने, “प़ड़्मिनी जी सच बोल दिया आपसे. झुत नही बोल सकता था. प्लीज़ मेरे प्यार को हवस का नाम मत दीजिए. बात बेशक मत कीजिएगा मगर मुझे ग़लत मत समझिएगा.”
“चले जाओ तुम. एक नंबर के मक्कार हो तुम. झुत ही बोल देते मुझसे…इतना कड़वा सच बोलने की ज़रूरात क्या थी. मुझे तुमसे कोई भी बात नही करनी है. आईन्दा मेरी तरफ मत देखना वरना आँखे नोच लूँगी तुम्हारी.” प़ड़्मिनी को बहुत दुख हुवा था.
“सच बोलने की इतनी बड़ी सज़ा मत दीजिए प़ड़्मिनी जी. मुझे एक मोका दीजिए.”
“मेरा 11 नंबर होगा, फिर 12 नंबर भी होगा किशी का. ये हवस का शील्षिला चलता रहेगा. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से तुम. मुझे तुमसे कुछ लेना देना नही है. दफ़ा हो जाओ.”
“ठीक है प़ड़्मिनी जी…आपकी कसम मैं दुबारा नही कहूँगा आपको कुछ भी. पर आप ऐसे परेशान मत हो. जा रहा हूँ मैं. अब आपको नही देखूँगा…ना ही कुछ कहूँगा आपको. हाँ मुझे नही पता की प्यार क्या होता है. शायद हवस को ही प्यार बोल रहा हूँ मैं. मुझे सच में नही पता. पता होता तो भटकता नही अपनी जींदगी में. आपके लायक नही था मैं फिर भी आपके खवाब देख रहा था. पागल हो गया हूँ शायद. माफ़ कीजिएगा मुझे आज के बाद आपको कभी परेशान नही करूँगा. ख़ूस्स रहें आप अपनी जींदगी में और हर बाला से दूर रहें. गोद ब्लेस्स यू.”
“तुम ऐसे क्यों हो राजू..क्यों हो ऐसे…नही कर सकती तुमसे प्यार मैं. नही कर सकती…………” प़ड़्मिनी फूट-फूट कर रोने लगी.
राजू ने शन लिया सब कुछ मगर कुछ कहने की हिम्मत नही हुई. चल दिया चुपचाप आँखो में आँसू लिया वाहा से. “काश आप समझ पाती मेरे दिल की बात. पर आपसे शिकायत भी क्या करूँ. मैं खुद भी अपने आप को समझ नही पाया आज तक. बहुत समझाया अपने दिल को की प्यार मत करो और फिर वही हुवा जीशका दर था. मेरी किशमत में प्यार लिखा ही नही भगवान ने. नही कहूँगा कुछ भी अब. आपको बिल्कुल परेशान नही करूँगा. मुझे आपकी आँखो में कुछ लगता था जीशके कारण मेरी हिम्मत बढ़ गयी. वरना मैं कहा हिम्मत कर पाता आपकी खिड़की तक पहुँचने की. ख़ूस्स रहें आप और क्या कहूँ….मेरी उमर लग जाए आपको……….”
प़ड़्मिनी बंद रही कमरे में सारा दिन और बिल्कुल दरवाजा नही खोला. ना ही उसने खिड़की से झाँक कर देखा बाहर. राजू भी चुपचाप आँखे मीचे जीप में बैठा रहा.
शाम के कोई 7 बजे एक आदमी आया. उशके हाथ में 2 डब्बे थे. उसने राजू से पूछा, “क्या प़ड़्मिनी जी यही रहती हैं.”
“हन यही रहती हैं. क्या काम है?”
“उनका करियर है.” आदमी ने कहा.
राजू ने एक कॉन्स्टेबल से कहा की तलासी लेकर इशके साथ जाओ तुम. कॉन्स्टेबल ने अच्छे से तलासी ली उष्की और उशके साथ चल दिया.
प़ड़्मिनी ने बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोला. उसे लग रहा था की दरवाजे पर राजू ही होगा. मगर जब उष आदमी ने छील्ला कर कहा की आपका करियर है तो उसने दरवाजा खोल कर साइन करके दोनो डब्बे ले लिए.
“किशणे भेजे हैं ये डब्बे.”
प़ड़्मिनी ने फ़ौरन एक डब्बा खोला और जो उसने अंदर देखा उसे देख कर वो इतनी ज़ोर से छील्लाई की पूरा आस प़ड़ोष में उष्की छींख गूँज गयी. छींख के बाद वो फूट-फूट कर रोने लगी….पापा…नही………”
राजू फ़ौरन पिस्टल हाथ में लेकर घर की तरफ भागा. दरवाजा बंद था अंदर से. राजू ने दरवाजा खड़क्या. मगर प़ड़्मिनी ऐसी हालत में नही थी की वो दरवाजा खोल पाए. राजू ने दरवाजे को ज़ोर से धक्का मारा. पर दरवाजा बहुत मजबूत था. पर राजू रुका नही. उसने बार-बार कोशिस की. कॉन्स्टेबल्स और गन्मन ने भी राजू का साथ दिया. आख़िरकार दरवाजा टूट गया. राजू अंदर आया तो देखा की प़ड़्मिनी फूट-फूट कर रो रही है खुले हुवे डब्बे के पास. राजू करीब आया तो देख नही पाया, “ओह माई गोद…..नही…ये सब कैसे…प़ड़्मिनी जी….”
डब्बे में प़ड़्मिनी के अंकली का कटा हुवा सर था. साथ में एक काग़ज़ का टुकड़ा भी था. राजू ने काँपते हाथो से वो उठाया उसमे लिखा था, “प़ड़्मिनी ये तोहफा भेज रहा हूँ तुम्हारे लिए. उम्मीद है तुम्हे पसंद आएगा. जो दर तुम्हारे चेहरे पर आएगा इशे देख कर वो बहुत ही खूबसूरात होगा. ये दर बनाए रखना क्योंकि बहुत जल्द मिलूँगा तुमसे मैं. और याद रखना, ‘यू कॅन ऋण, बट यू कॅन नेवेर हाइड. जल्द मिलते हैं.”
दूसरे डब्बे में क्या होगा ये सोच कर ही रूह काँप गयी राजू की. उसने खोला वो डब्बा और जैसा शक था उसे उसमें प़ड़्मिनी की मम्मी का सर था. प़ड़्मिनी ये बात पहले ही समझ गयी थी शायद. इश्लीए उसने आँखे खोल कर नही देखा. वैसे उष्की हालत थी भी नही की वो कुछ देखे. पागल सी हो गयी थी ये सब देख कर.
राजू ने तुरंत शालिनी को फोन लगाया, “मेडम अनर्थ हो गया.”
“क्या हुवा राजवीर.”
“दो डब्बे आए करियर से अभी प़ड़्मिनी जी के घर उनमे प़ड़्मिनी के मम्मी, पापा के कटे हुवे सर है. मैं तो समझ ही नही पा रहा हूँ की क्या करूँ.”
“ओह गोद इतना घिनोना काम किया उसने.” शालिनी ने कहा.
शालिनी के सामने ही रोहित बैठा था , “क्या हुवा मेडम.”
“साएको ने दो डब्बो में प़ड़्मिनी के मम्मी, अंकली के कटे हुवे सर भेजे हैं.” शालिनी ने रोहित से कहा.
“ओह..नो…” रोहित स्तब्ध रह गया.
“राजू हम अभी आते हैं वाहा..तुम चिंता मत करो.” शालिनी ने कहा.
शालिनी ने फोन रखा ही था की कमरे में भोलू आया भागता हुवा. “मेडम जी अनर्थ हो गया.”
“क्या हुवा?” शालिनी ने पूछा.
“थाने के बिल्कुल सामने 2 लाश गिरा गया कोई. उनके सर गायब हैं.”
“क्या …” रोहित और शालिनी एक साथ छील्लाए.
दोनो बाहर आए फ़ौरन. थाने के बिल्कुल बाहर 2 लाश पड़ी थी.
“दिन दहाड़े गिरा गया वो लाश और किशी ने देखा भी नही…वाह” शालिनी ने गुस्से में कहा.
रोहित को एक काग़ज़ दीखाई दिया लाश की जेब में. रोहित ने काग़ज़ निकाला. उष पर लिखा था, “मिस्टर रोहित पांडे. आज न्यूज़ में छाए हुवे थे. कंग्रॅजुलेशन तो यू. तुम्हारे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान तैयार है. जल्दी मिलेंगे.”
“तुम मिलो तो सही वो हाल करूँगा की याद रखोगे.” रोहित ने दाँत भींच कर कहा.
“क्या लिखा है काग़ज़ में रोहित.” शालिनी ने पूछा.
“मेरे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान बनाया है साएको ने. चेतावनी दी है मुझे.” रोहित ने कहा.
“चेतावनी तुम्हे ही नही पूरे पुलिस डेप्ट को दी है उसने. बहुत ज़्यादा गट्स हैं उसमें. पुलिस स्टेशन के बाहर दो लाशें फेंक गया वो. वक्त आ गया है अब उसे उशके किए की सज़ा देने का. दो वॉटेवर यू कॅन बट ई वॉंट तीस बस्टर्ड बिहाइंड बार्स.” शालिनी ने कहा.
“हो जाएगा मेडम हो जाएगा. ज़्यादा दिन नही चलेगा खेल इश्का.” रोहित ने कहा.
तभी अचानक एक तेज तर्रार रिपोर्टर आन धमकी वाहा और रोहित के मूह के आगे माएक लगा कर बोली, “क्या मैं पूछ सकती हूँ की पुलिस स्टेशन के बाहर ये लाशें किशकि हैं.”
रोहित ने टालने के लिए बोला,”देखिए अभी कुछ नही कह सकता मैं. तहकीकात चल रही है.”
“तहकीकात करते रहना आप, एक दिन वो साएको हमें सबको मार देगा और आप हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे… ….”
“क्या नाम है आपका?”
“मेरे नाम से कोई मतलब नही है आपको मगर फिर भी बता देती हूँ मैं. मिनी नाम है मेरा. मैं भी साएको के केस को क्लोस्ली फॉलो कर रही हूँ. कल आपने जिसे मारा वो साएको नही था. साएको जींदा है अभी. उष्का सबूत ये लाशें हैं जो यहा पड़ी हैं.”
“क्या जान सकता हूँ की कहा से पता चली ये सब बातें?” रोहित ने पूछा.
“मैं न्यूज़ रिपोर्टर हूँ. मेरा अपना तरीका है जानकारी एक्कथा करने का. आपको क्यों बताओन.”
“कूल… देखिए केस की इन्वेस्टिगेशन चल रही है. अभी कुछ भी कहना ठीक नही होगा.” रोहित कह कर चल दिया.
रोहित के बाद मिनी ने शालिनी को घेर लिया, “कब तक चलेगा ये दरिंदगी का दौर. आख़िर पुलिस कुछ कर क्यों नही पा रही है.”
“हम पूरी कोशिस कर रहे हैं. पुलिस हाथ पर हाथ रख कर नही बैठी है. यकीन डीलती हूँ आपको की साएको जल्दी पकड़ा जाएगा.”
शालिनी से बात करने के बाद मिनी खड़ी हो गयी माएक ले कर कॅमरा के सामने और बोली, “अभी हमने आपको पुलिस का रावय्या दीखया. पुलिस स्टेशन के बाहर 2 डेड बॉडीस फेंक गया कोई और इन्हे खबर भी नही लगी. अगर पुलिस स्टेशन के बाहर ही पुलिस अलर्ट नही है तो बाकी सहर की स्तिति आप खुद समझ सकते हैं. साएको सहर में आज़ाद घूम रहा है और पुलिस शो रही है. ओवर तो यू……..”
शालिनी और रोहित प़ड़्मिनी के घर की तरफ चल दिए. मिनी भी कॅमरमन के साथ उनके पीछे चल पड़ी, “अगर हम मीडीया वाले पुलिस पर दबाव नही डालेंगे तो ये कुछ नही करेंगे. एक नंबर की नुककममी पुलिस है ये.”
रोहित और शालिनी एक ही जीप में जा रहे थे. अचानक शालिनी का मोबाइल बाज उठा. शालिनी ने मोबाइल उठाया और बात की. बात करने के बाद वो बोली, “रोहित जंगल में मेरे उपर गोलिया छल्लाने वाला भी विजय ही था. जो गोली मुझपे चली थी वो विजय की उष बंदूक से मॅच हो गयी जो कल उशके पास थी. पता नही विजय ऐसा क्यों कर रहा था. सारा केस उलझा दिया उसने.”
“जहा तक मैं समझ पा रहा हूँ मेडम साएको ही था वो भी. हो सकता है कॉपीकॅट हो वो और असली साएको से परभावित हो. ये भी हो सकता है की विजय असली साएको से मिला हुवा हो.”
“सही कह रहे हो. तहकीकात करो इसे बात की. और हाँ बाकी टीन लोग जिनके पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है उनके बड़े में अच्छे से तहकीकात करो.”
“जी मेडम….वही करूँगा.”
रोहित ने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया, “हेलो हेमंत भाई…कैसे हो……………”
रोहित ने हेमंत को प़ड़्मिनी के मा-बाप की मौत की खबर शुना दी. वो भी तुरंत प़ड़्मिनी के घर की तरफ निकल दिया.
“कौन है ये हेमंत?” शालिनी ने पूछा.
“प़ड़्मिनी का कज़िन है. वैसे हम उसे हितक्श कहते हैं. मुझे लगा उसे बता देता हूँ. प़ड़्मिनी अकेली होगी अब. किशी घर वाले को तो होना चाहिए उशके पास. मुस्सूरीए में रहता है वो. ”
“ह्म… गुड.”
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“कितने आँसू बहायें हम, अब इंतेहा हो चुकी है
वक्त की ऐसी करवट से, जींदगी तबाह हो चुकी है
क्या गुनाह था मेरा, जो ये सज़ा दी मुझको
जीने की चाहत भी अब फ़ना हो चुकी है.”
राजू को समझ नही आ रहा था की कैसे संभाले प़ड़्मिनी को. वो पागलो की तरह रोए जा रही थी. बिल्कुल उष डब्बे के पास ही बैठी थी जीशमे उशके पापा का सर था. प़ड़्मिनी को ऐसी हालत में देख कर राजू की आँखे भी नाम हो गयी. बिल्कुल नही देख पा रहा था वो प़ड़्मिनी को ऐसी हालत में. प्यार जो कराता था उशे.
बहुत ही मुश्किल होता है उसे तड़प्ते हुवे देखना जिसे आप बहुत प्यार करते हैं. और जब पता हो की आप बस देख ही सकते हैं उसे तड़प्ते हुवे कुछ कर नही सकते तो दिल पर क्या बीट-ती है उसे सबदो में नही कहा जा सकता. राजू बिल्कुल ऐसी ही स्तिति में था. कुछ भी तो नही कर पा रहा था प़ड़्मिनी के लिए. और अगर वो कुछ कराता भी तो उसे दर था की कही प़ड़्मिनी उसे दाँत ना दे. और परेशान नही करना चाहता था राजू प़ड़्मिनी को. मगर फिर भी उसने सोचा की कुछ तो करना ही चाहिए उशे.
राजू ने दोनो डब्बे वाहा से हटवा दिए और सभी को बाहर भेज दिया, “तुम लोग बाहर नज़र रखो. कुछ भी ऐसा वैसा हो तो मुझे बठाना.”
“जी सिर”
राजू बैठ गया वही प़ड़्मिनी के पास और बोला, “प़ड़्मिनी जी आपकी कसम खा कर कहता हूँ मैं तडपा-तडपा कर मारूँगा इसे साएको को. आप प्लीज़ चुप हो जाओ.”
“कैसे चुप हो जौन. अपने मा-बाप को खो दिया मैने. कितनी दर्दनाक मौत मिली है उन्हे. तुम मेरा गम नही समझ सकते. चले जाओ यहा से.”
“मैने बचपन में ही खो दिया था अपने मा-बाप को. बस 7 साल खा था जब वो आक्सिडेंट में मारे गये. अनाथ हूँ तभी से. मा-बाप को खोने का गम क्या होता है मुझसे बहतर कोई नही समझ सकता. आपके गम को अतचे से समझ सकता हूँ मैं.” राजू ने भावुक हो कर कहा.
प़ड़्मिनी ने अपने आँसू पोंछे और बोली, “तुमने पहले क्यों नही बताया.” एक अजीब सी मासूमियत थी प़ड़्मिनी के चेहरेव पर बोलते हुवे.
“बात ही कहा होती है आपसे. वैसे भी मैं बताता नही हूँ किशी को ये बात. आप प्लीज़ चुप हो जाओ, मुझसे देखा नही जा रहा.”
“मैं नही रोक सकती खुद को राजू. तुम नही समझ सकते. ये आँसू खुद-ब-खुद आ रहे हैं.” प़ड़्मिनी सुबक्ते हुवे बोली.
“समझ सकता हूँ. मैं भी 2 दिन लगातार रोता रहा था. कर लीजिए मन हल्का अपना. मैं बस आपको देख नही पा रहा इसे हालत में इश्लीए चुप होने को बोल रहा था. और मेरी तरफ से परेशान मत होना आप अब. मैं अपनी ग़लती समझ गया हूँ.”
तभी रोहित और प़ड़्मिनी भी वाहा पहुँच गये. रोहित तो कुछ नही बोल पाया उसे रोते देख. शालिनी उशके पास बैठ गयी और बोली, “बहुत ही बुरा हुवा है ये. मुझे बहुत दुख है प़ड़्मिनी. हम कुछ भी नही कर पाए. पूरा पुलिस डेप्ट तुम्हारा दोषी है. लेकिन यकीन डीलाती हूँ तुम्हे की इसे पाप की सज़ा जल्द मिलेगी उशे.”
“मुझे उसे शोनप दीजिए. ये सब मेरे कारण हुवा है. अगर वो मारना चाहता है मुझे तो वही सही. वैसे भी अब जी कर करना भी क्या है. कुछ नही बचा मेरे पास. मेरी मौत से ये शील्षिला रुकता है तो मुझे मार जाने दीजिए.”
इश् से पहले की शालिनी कुछ बोल पाती राजू ने तुरंत कहा, “ये क्या बोल रही हैं आप. आपको कुछ नही होने दूँगा मैं. मारना उष साएको को है अब.”
शालिनी, रोहित और प़ड़्मिनी तीनो ने राजू की तरफ देखा. “मैं सही कह रहा हूँ. आप क्यों मरेंगी. मरेगा अब वो जो की इतने घिनोने काम कर रहा है.”
“राजवीर सही कह रहे हो तुम. यही जज़्बा चाहिए हमें पुलिस में.” रोहित ने कहा.
“चुप करो तुम. ग़लत बाते मत सीख़ाओ उशे. तुमसे ये उम्मीद नही रखती हूँ मैं… …..” शालिनी ने रोहित को दाँत दिया.
“सॉरी मेडम ….” रोहित ने मायूस स्वर में कहा.
“राजवीर भावनाओ को काबू करना सीखो. और दुबारा ऐसी बात मत करना मेरे सामने. हाँ सज़ा मिलेगी उशे, ज़रूर मिलेगी.”
“बिल्कुल…उशे सज़ा मिलेगी काई सालो केस चलने के बाद. वो आइसो-आराम से जैल की रोटिया तोड़ेगा. और हो सकता है…क़ानूनी दाँव पेंच लगा कर वो बच जाए.” रोहित ने कहा.
“स्टॉप तीस नॉनसेन्स ई से.” शालिनी छील्लाई.
रोहित ने कुछ नही कहा. बस चुपचाप खड़ा रहा. राजू भी कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाया.
“ये सब बकवास करने की बजाए उन डब्बो का मूवायना करो और देखो की करियर कहा से आया था और किशणे भेजा था. स्टुपिड.” शालिनी ने गुस्से में कहा.
“जी मेडम अभी देखता हूँ.” रोहित ने कहा. “राजू कहा हैं वो डब्बे.”
“प़ड़्मिनी जी के सामने से हटवा दिए थे मैने. दूसरे कमरे में रखे हैं.”
“चलो देखते हैं.” रोहित ने कहा और राजू के साथ उष कमरे में आ गया जहा डब्बे रखे थे.
“जीसस…” रोहित से देखा नही गया और उसने आँखे बंद कर ली.
“फर्स्ट फ्लाइट से आया था करियर सिर ये.”
“ह्म…कौन दे कर गया?”
“था एक आदमी सिर?”
“क्या नाम था उष्का?”
“नाम नही पूछा सिर”
“चलो कोई बात नही फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से सब पता चल जाएगा.”
जब रोहित बाहर आया तो शालिनी ने पूछा, “कुछ पता चला.”
“फर्स्ट फ्लाइट वालो से ही पता चलेगा सब कुछ मेडम.”
“ह्म तो पता करो जाकर.” शालिनी ने कहा.
प़ड़्मिनी को विश करके शालिनी बाहर की तरफ चल दी, “चलो रोहित.”
“आता हूँ अभी मेडम, प़ड़्मिनी से ज़रा बात कर लूँ.” रोहित ने कहा.
मगर राजू वही खड़ा रहा.
“राजवीर तुम घर के चारो तरफ रौंद ले कर आओ. देखो सब ठीक है की नही.”
राजू को अजीब सा तो लगा मगर फिर भी वो चला गया.
राजू के जाने के बाद रोहित प़ड़्मिनी के पास आया. वो अब सोफे पर गुमशुम बैठी थी.
“सब से बड़ा गुनहगार तो मैं हूँ तुम्हारा प़ड़्मिनी. मेरे होते हुवे ते सब हो गया. खुद को माफ़ नही कर पवँगा. मगर मैं तुम्हे यकीन डीलाता हूँ. जींदा नही बचेगा वो…बस एक बार आ जाए मेरे सामने.”
प़ड़्मिनी कुछ नही बोली.
“जींदगी भर नाराज़ रहोगी क्या. मुझे इसे काबिल भी नही समझती की मैं तुमसे तुम्हारे गम बाँट सकूँ. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. कितनी बाते करते थे हम प्यारी-प्यारी…पता नही किशकि नज़र लग गयी हमारी दोस्ती को.”
“मैं कुछ नही शन-ना चाहती. मेरा सर फटा जा रहा है. प्लीज़ चले जाओ…प्लीज़. मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ…..” प़ड़्मिनी फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
राजू ने ये शन लिया. वो समझ नही पाया की हो क्या रहा है. रोहित चुपचाप चल दिया वाहा से. आँखे नाम थी उष्की. राजू ने देख लिया रोहित की आँखो की नामी को. असमंजस में प़ड़ गया और भी ज़्यादा. उष्की कुछ हिम्मत नही हुई रोहित से कुछ पूछने की.
राजू प़ड़्मिनी के पास आया और बोला, “क्या बात थी प़ड़्मिनी जी. क्या आप जानती हैं रोहित को.”
“हन…बहुत अतचे दोस्त थे हम. एक साथ पढ़ते थे कॉलेज में.” प़ड़्मिनी ने कहा.
“उनकी आँखो में आँसू थे यहा से जाते वक्त. मैं समझ नही पा रहा हूँ की क्या बात है.”
“राजू प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. अभी मैं इसे हालत में नही हूँ की कुछ कह पऔन…प्लीज़…”
“सॉरी प़ड़्मिनी जी. मैं बाहर ही हूँ. कोई भी बात हो तो बस एक आवाज़ देना तुरंत आ जवँगा.” राजू ये कह कर बाहर आ गया.
रोहित प़ड़्मिनी के घर से सीधा फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस गया. मगर वाहा कोई सुराग नही मिला उशे. यही पता चला की एक रिक्शे वाला आया था दो डब्बे लेकर और कूरीएर करवा कर चला गया.
“क्या कुछ बता सकते हो उष रिक्शे वाले के बड़े में.”
“अब क्या बताओन सिर. बहुत लोग आते हैं यहा. कुछ नही पता मुझे.”
“बहुत ही छल्लाक है ये साएको. किशी रिक्शे वाले को पकड़ के दो डब्बे पकड़ा दिए और करियर करवा दिए प़ड़्मिनी के घर. बहुत शातिर दीमग है.”
फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से रोहित सीधा विजय के घर पहुँचा. उसने दरवाजा खड़क्या. सरिता ने दरवाजा खोला.
“मैं इनस्पेक्टर रोहित पांडे हूँ. कुछ बात करनी थी आपसे.” रोहित ने कहा.
रोहित बोल कर हटा ही था की उशके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दिया सरिता ने. “तुम्हे कैसे भूल सकती हूँ. तुम्ही ना मारा है ना मेरे पाती को.”
थप्पड़ खाने के बाद एक पल को रोहित कुछ नही बोल पाया. मगर थप्पड़ मारने के बाद सरिता थोड़ी नरम प़ड़ गयी.
“बतायें अब मैं क्या मदद कर सकती हूँ आपकी?” सरिता ने कहा.
“मार लीजिए एक थप्पड़ और, फिर आराम से बात करेंगे. थप्पड़ मारने के बाद आप शांत सी हो गयी हो. मार लीजिए एक और…बुरा नही मानूँगा.” रोहित ने कहा.
“आईए अंदर” सरिता ने कहा
रोहित अंदर आ कर चुपचाप सोफे पर बैठ गया. सरिता भी उशके सामने बैठ गयी.
“मेरी आँखो के सामने रेप अटेंप्ट किया विजय ने मेरी बहन का. आपको बता नही सकता की क्या-क्या किया उसने. मुझे यही लगा की वही साएको है. गुस्से में मार दी गोली मैने उशे. नही रोक पाया खुद को…सॉरी.”
“मैने आपको थप्पड़ एक पत्नी के रूप में मारा. एक औरात होने के नाते कह सकती हूँ की आपने ठीक ही किया. मेरी आँखो के सामने रेप किया था मेरी छोटी बहन का उन्होने. मार देना चाहती थी मैं भी उन्हे पर अपने पत्नी धरम के कारण चुप थी.”
“कितने साल हुवे आपकी शादी को.” रोहित ने पूछा.
“3 साल”
“सरिता जी मुझे शक है की आपके पाती साएको के साथ मिले हुवे थे. इश्लीए यहा आया हूँ. उष साएको ने सहर में आतंक मचा रखा है. उष्को पकड़ना बहुत ज़रूरी है वरना वो यू ही खून बहाता रहेगा. क्या आप कुछ ऐसा बता सकती हैं जो की मेरी मदद कर सके.”
“कुछ दीनो से वो सारा-सारा दिन बाहर रहते थे. रात को काई बार घर ही नही आते थे. कुछ पूछती थी तो मुझे मारने-पीतने लगते थे. एक दिन पेट पर चाकू खा कर आए थे. मैने यही घर पर ही पेट सीया था उनका. ज़्यादा कुछ नही जानती मैं. वो मेरे लिए हमेशा एक रहस्या ही रहे.”
“ह्म माफ़ कीजिए मुझे मैने आपको बेवजह तकलीफ़ दी…मैं चलता हूँ.” रोहित ने कहा और सोफे से खड़ा हो गया.
अचानक उष्की नज़र टीवी के उपर पड़ी एक मूवी की सीडी पर पड़ी. उष्का टाइटल देख कर रोहित ने कहा,”ह्म….साएको…क्या ये मूवी आपके हज़्बंद देखते थे.”
“हन….बार बार इशे ही देखते थे वो. पता नही क्या है ऐसा इसमे. मैने कभी नही देखी.”
“देखी तो मैने भी नही ये मूवी, हाँ पर नाम बहुत शुना है इश्का. अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं ये सीडी ले सकता हूँ. लौटा दूँगा आपको जल्द.”
“ले जाईए मुझे नही चाहिए ये वैसे भी. वापिस करने की भी कोई ज़रूरात नही है.” सरिता ने कहा.
“थॅंक्स सरिता जी. मैं चलता हूँ अब.”
जैसे ही रोहित घर से बाहर निकला मिनी ने उसे घेर लिया, “क्या आप माफी माँगने आए थे विजय की पत्नी से. क्या आपको अब अहसास हो रहा है की आपने ग़लत आदमी को मार दिया.”
“देखिए इन्वेस्टिगेशन चल रही है. मैं कुछ नही कह सकता अभी.”
“वैसे थप्पड़ क्यों पड़ा आपके गाल पे. कुछ बता सकते हैं.”
“तुम्हे कैसे पता …” रोहित सर्प्राइज़्ड रह गया.
“मैने खुद देखा अपनी आँखो से. रेकॉर्ड भी हो गया कॅमरा में”
“मुझे आपसे कोई बात नही करनी है…जो करना है करिए.” रोहित बोल कर जीप में बैठ कर वाहा से निकल गया.
“एक पत्नी ने आज अपने मन की भादास निकाली. एक करारा थप्पड़ मिला इनस्पेक्टर साहिब को. शायद ये थप्पड़ अब उनकी नींद तौड दे और वो और ज़्यादा स्टार्क हो कर अपनी ड्यूटी करें….ओवर तो यू…..” मिनी ने कॅमरा के सामने खड़े हो कर कहा.
रोहित सीधा थाने पहुँचा. थाने के बाहर ही उसे भोलू मिल गया. वो कुछ परेशान सा लग रहा था.
“भोलू आस्प साहिबा हैं क्या” रोहित ने पूछा.
“एक घंटा पहले निकल गयी मेडम…और उनके जाते ही अनर्थ हो रहा है.”
“क्या हुवा भोलू…क्या अनर्थ हो रहा है?”
“चौहान सिर एक औरात को मजबूर करके उशके साथ…..उष्का पाती एक छोटे से जुर्म में जैल में बंद है. दरखास्त करने आई थी वो अपने पाती के लिए मगर चौहान सिर मोके का फ़ायडा उठा रहे हैं.”
“मैं खबर लेता हूँ इसे चौहान की.”
“सिर मेरा नाम मत लेना की मैने बताया.”
रोहित सीधा चौहान के कमरे की तरफ बढ़ा. दरवाजा झुका हुवा था…बंद नही था. रोहित ने झाँक कर देखा तो दंग रह गया. चौहान ने उष औरात को झुका रखा था और ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे हिल रहा था.
“आपसे ऐसी उम्मीद नही थी सिर.” रोहित ने कहा.
चौहान चोंक गया और रुक गया, “तुम….ज़बरदस्ती नही कर रहा मैं. ये खुद तैयार हुई है मेरे आगे झुकने के लिए. बदले में इश्का पाती आज़ाद हो रहा है और क्या चाहिए इशे.”
चौहान फिर से हिलने लगा.
“आप जैसे लोगो के कारण पुलिस बदनाम है.लीव हेर.”
“लीव हेर….दफ़ा हो जाओ यहा से. ये अपनी मर्ज़ी से दे रही है. तुझे क्या तकलीफ़ है.”
रोहित ने उष औरात की आँखो में देखा. उष्की आँखे नाम थी. वो शरम और ग्लानि के कारण आँखे नही उठा पा रही थी.
“लीव हेर….अदरवाइज़.”
“अदरवाइज़ क्या ? .गोली मारोगे मुझे विजय की तरह?”
“बिल्कुल मारूँगा.” रोहित ने बंदूक तां दी चौहान पर.”
“पागल हो गये हो तुम ……..बंदूक नीचे करो.”
“बंदूक भी नीचे हो जाएगी पहले जो कहा है वो करो” रोहित ने दृढ़ता से कहा.
चौहान हट गया उष औरात के पीछे से और बोला, देख लूँगा तुझे.”
उष औरात ने झट से कपड़े ठीक किए और बोली, “धन्यवाद साहिब.”
“क्या नाम है तुम्हारे पाती का और किश जुर्म में जैल में है वो.”
“माधव पार्षाद. चोरी के झुटे इल्ज़ाम में फँसाया गया है उन्हे.”
“ठीक है अभी जाओ तुम और कल मिलना मुझे 10 बजे. देखते हैं क्या हो सकता है.
……………………………………………….
हेमंत (हितक्श) पहुच गया प़ड़्मिनी के घर. उसे देखते ही प़ड़्मिनी लिपट गयी उष से और फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
“भैया सब ख़त्म हो गया. कुछ नही बचा.”
“बस चुप हो जाओ. रोने से कोई फ़ायडा नही है.”
“पर मैं क्या करूँ. बहुत ही दर्दनाक मौत मिली है मम्मी,अंकली को.”
“मुझे रोहित ने बताया सब कुछ. तुम तो फोन ही नही कराती हो कभी”
“अभी किशी को भी फोन नही किया मैने.”
“कोई बात नही अब कर देंगे. अंतिम संस्कार पे तो सबको आना ही है.”
“चाचा, चाची नही आए.”
“आ रहे हैं वो भी. वो देल्ही गये थे परसो. रास्ते में ही हैं वो.” हेमंत ने कहा.
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रोहित थाने से निकला ही था की उष्का फोन बाज उठा.
“कहा हो जानेमन.”
“ही रीमा….कैसी हो…”
“आपको अगर याद हो तो कुछ काम अधूरे छोड़ गये थे आप. आ जाईए हम तड़प रहे हैं तभी से.”
“उफ़फ्फ़ ऐसे बुलाएँगी आप तो माना नही कर पाएँगे. वैसे आपको अपने भैया का दर नही क्या.”
“अभी-अभी भैया का फोन आया था. वो आज रात घर नही आएँगे.”
“अतचा….देख लो कही मरवा दो मुझे.”
“तुम आओ ना. अतचा छोटी सी भूल कहा तक पढ़ी. अब तक तो ख़त्म हो गयी होगी.”
“अरे नही यार. पढ़ ही रहा हूँ. परसो रात ख़त्म करना चाहता था मगर कुछ लोगो से पंगा हो गया. फिर मन नही किया पढ़ने का. शांति से पढ़ुंगा मैं क्योंकि बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर है कहानी अब.”
“ह्म….आ रहे हो की नही.”
“आ रहा हूँ जी…आप बिस्तर सज़ा कर रखो….”
“सजाने की क्या ज़रूरात है आपने उथल-पुथल तो कर ही देना है…. ……”
“हाहहाहा…. आ रहा हूँ मैं बस थोड़ी देर में तुम्हारी रेल बनाने.”
“नहियीईईईईई……. अतचा चलो आ जाओ… वेटिंग फॉर यू.” रीमा ने कहा और फोन काट दिया.
“तुम बन ही गयी रीमा थे गोलडेन गिर ……. ….आतची बात है और ज़्यादा मज़ा आएगा संभोग में … ….” रोहित सोच कर मुश्कुरआया और जीप में बैठ कर रीमा के घर की तरफ चल दिया.
एक खौफनाक रात – Hindi Thriller Story- 36
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.