कायाकल्प - Hindi sex novel
Re: कायाकल्प - Hindi sex novel
वैसे भी विदेश में जा कर हनीमून करना संभव नहीं था, क्योंकि एक तो संध्या के पास पासपोर्ट नहीं था, और दूसरा उसके लिए काफी योजना करनी होती है। खैर उसी से यह बात करने पर कोई हल निकलेगा। मैंने अपने शादी-शुदा दोस्तों को एस एम एस भेजे की मुझे हनीमून आईडिया भेजें – जो भारत में हों – वो भी तुरंत। मैंने वैसे भी कहीं मनोरंजन के इरादे से यात्रा नहीं करी थी – बस एक बार की, तो उसी में मुझको अपनी जीवन संगिनी भी मिल गयी।
अगले पन्द्रह मिनट में शादी की बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगहों के बारे में मालूम हो गया – पहाड़ो से लेकर रेगिस्तान तक, धर्म स्थानों (आखिर हनीमून के लिए कौन गधा धर्म-स्थान जाता है?) से लेकर नग्न-बीचों तक। पहाड़, धर्म-स्थान, रेगिस्तान, और जंगल वाले आईडिया मैंने नकार दिए (हाँलाकि जंगल वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा – लेकिन मैंने सोचा की उसको बाद में देखा जाएगा।
नग्न बीच तो भारत में तो होते नहीं – लेकिन बीच का आईडिया मस्त है, मैंने सोचा। संध्या के लिए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सिर्फ पहाड़ ही देखे हैं – इस जगह से आगे कभी गयी ही नहीं। उसने बस किताबों में ही पढ़ा होगा। मैंने अपने दोस्तों को पुनः एस एम एस भेजे की मुझे बीच के विभिन्न आईडिया बताएं।
अगले आधे घंटे में मुझको गोवा, केरल, अंडमान और लक्षद्वीप के बारे में मालूम हो गया। लगभग सभी ने गोवा के बारे में बोला अवश्य। इसी से मुझे स्पष्ट हो गया की वहां नहीं जाना है – निश्चित रूप से बहुत ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चाहिए जो साफ़ सुथरी हो, सुरक्षित हो, और जहाँ पर्याप्त एकांत भी मिले।
फिर मैंने अपने बॉस को फ़ोन किया और अपना प्लान बताया। आप लोगो सोचेंगे की ऐसा बॉस सभी को मिले – लेकिन उसने पहले तो मुझे विवाह की बधाइयाँ दीं और फिर बहुत ही ख़ुशी से मुझको वापस आने के लिए ‘अपना समय लेने’ को कहा (इतने दिनों के काम में मैंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो – उसको कभी कभी यह डर लगता था की कहीं मुझे काम के कारण बर्न-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कर्मचारी का क्षय नहीं करना चाहता था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया की उसका एक मित्र है जो वहां एक उम्दा होटल का मालिक है। और यह की वह होटल एकदम फर्स्ट क्लास है (वह खुद भी वहां रह चुका है), और वह अपने दोस्त को मुझे डिस्काउंट देने के लिए भी बोलेगा। मुझे तो उसका सुझाव बहुत अच्छा लगा, लेकिन संध्या की रजामंदी भी उतनी ही अवश्यक थी। अतः मैंने उसको कहा की मैं सवेरे फोन कर के बताऊँगा।
“यहाँ तो बहुत ठंडक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे हैं?” मैंने कमरे के अन्दर आते हुए संध्या से पूछा। मैं अपने हाथों को रगड़ कर गरम करने का प्रयास कर रहा था। संध्या इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।
“आपको आदत नहीं है न! इसीलिए आपको इतनी ठंडक लग रही है। और आप सिर्फ एक स्वेटर क्यों लाये? पहाडों पर आए और वो भी इस मौसम में! कुछ और गर्म कपडे रखने चाहिए थे न?” संध्या ने हँसते हुए जवाब दिया।
“आपको कैसे मालूम की मेरे पास सिर्फ एक स्वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर रही थीं क्या?” मैंने मजाक करते हुए कहा।
“हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग में रखने थे, इसलिए।” संध्या ने पत्नी-सुलभ अधिकार और मान वाली आवाज़ में कहा। मैं मुस्कुराया – अब ‘मेरा सामान’ जैसा कुछ नहीं है!
“आपने कभी बताया ही नहीं, की आप इतना बढ़िया गाती हैं? मैं अब तो रोज़ सुनूँगा गाने!” संध्या ने कुछ नहीं कहा, बस लज्जा से मुस्कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लिए प्रेम, प्रशंसा, और गर्व के कितने ही सारे मिले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आर्द्र हो चली, लेकिन फिर भी मैंने उसको कहा,
“सच कहूं? यू चेंज्ड माय लाइफ! थैंक यू!” मेरी यह बात सुनते सुनते संध्या की आँखें भर आईं, और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी। अब ‘आई लव यू’ कहने की ज़रुरत नहीं थी। हम दोनों इन मामूली औपचारिकताओं से ऊपर उठ गए थे। मैंने उसको अपने से चिपटाए हुए ही कहा, “आपको मालूम है न, की परसों एकदम सवेरे ही हम लोगो को यहाँ से वापस जाना है?”
यह सुन कर संध्या जाहिर तौर पर उदास हो गयी और उसने बहुत धीरे से सर हिलाया।
“जानू, प्लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नहीं रह सकते हैं न? जाना तो होगा?” उसने फिर से सर हिलाया।
अगले पन्द्रह मिनट में शादी की बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगहों के बारे में मालूम हो गया – पहाड़ो से लेकर रेगिस्तान तक, धर्म स्थानों (आखिर हनीमून के लिए कौन गधा धर्म-स्थान जाता है?) से लेकर नग्न-बीचों तक। पहाड़, धर्म-स्थान, रेगिस्तान, और जंगल वाले आईडिया मैंने नकार दिए (हाँलाकि जंगल वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा – लेकिन मैंने सोचा की उसको बाद में देखा जाएगा।
नग्न बीच तो भारत में तो होते नहीं – लेकिन बीच का आईडिया मस्त है, मैंने सोचा। संध्या के लिए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सिर्फ पहाड़ ही देखे हैं – इस जगह से आगे कभी गयी ही नहीं। उसने बस किताबों में ही पढ़ा होगा। मैंने अपने दोस्तों को पुनः एस एम एस भेजे की मुझे बीच के विभिन्न आईडिया बताएं।
अगले आधे घंटे में मुझको गोवा, केरल, अंडमान और लक्षद्वीप के बारे में मालूम हो गया। लगभग सभी ने गोवा के बारे में बोला अवश्य। इसी से मुझे स्पष्ट हो गया की वहां नहीं जाना है – निश्चित रूप से बहुत ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चाहिए जो साफ़ सुथरी हो, सुरक्षित हो, और जहाँ पर्याप्त एकांत भी मिले।
फिर मैंने अपने बॉस को फ़ोन किया और अपना प्लान बताया। आप लोगो सोचेंगे की ऐसा बॉस सभी को मिले – लेकिन उसने पहले तो मुझे विवाह की बधाइयाँ दीं और फिर बहुत ही ख़ुशी से मुझको वापस आने के लिए ‘अपना समय लेने’ को कहा (इतने दिनों के काम में मैंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो – उसको कभी कभी यह डर लगता था की कहीं मुझे काम के कारण बर्न-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कर्मचारी का क्षय नहीं करना चाहता था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया की उसका एक मित्र है जो वहां एक उम्दा होटल का मालिक है। और यह की वह होटल एकदम फर्स्ट क्लास है (वह खुद भी वहां रह चुका है), और वह अपने दोस्त को मुझे डिस्काउंट देने के लिए भी बोलेगा। मुझे तो उसका सुझाव बहुत अच्छा लगा, लेकिन संध्या की रजामंदी भी उतनी ही अवश्यक थी। अतः मैंने उसको कहा की मैं सवेरे फोन कर के बताऊँगा।
“यहाँ तो बहुत ठंडक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे हैं?” मैंने कमरे के अन्दर आते हुए संध्या से पूछा। मैं अपने हाथों को रगड़ कर गरम करने का प्रयास कर रहा था। संध्या इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।
“आपको आदत नहीं है न! इसीलिए आपको इतनी ठंडक लग रही है। और आप सिर्फ एक स्वेटर क्यों लाये? पहाडों पर आए और वो भी इस मौसम में! कुछ और गर्म कपडे रखने चाहिए थे न?” संध्या ने हँसते हुए जवाब दिया।
“आपको कैसे मालूम की मेरे पास सिर्फ एक स्वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर रही थीं क्या?” मैंने मजाक करते हुए कहा।
“हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग में रखने थे, इसलिए।” संध्या ने पत्नी-सुलभ अधिकार और मान वाली आवाज़ में कहा। मैं मुस्कुराया – अब ‘मेरा सामान’ जैसा कुछ नहीं है!
“आपने कभी बताया ही नहीं, की आप इतना बढ़िया गाती हैं? मैं अब तो रोज़ सुनूँगा गाने!” संध्या ने कुछ नहीं कहा, बस लज्जा से मुस्कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लिए प्रेम, प्रशंसा, और गर्व के कितने ही सारे मिले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आर्द्र हो चली, लेकिन फिर भी मैंने उसको कहा,
“सच कहूं? यू चेंज्ड माय लाइफ! थैंक यू!” मेरी यह बात सुनते सुनते संध्या की आँखें भर आईं, और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी। अब ‘आई लव यू’ कहने की ज़रुरत नहीं थी। हम दोनों इन मामूली औपचारिकताओं से ऊपर उठ गए थे। मैंने उसको अपने से चिपटाए हुए ही कहा, “आपको मालूम है न, की परसों एकदम सवेरे ही हम लोगो को यहाँ से वापस जाना है?”
यह सुन कर संध्या जाहिर तौर पर उदास हो गयी और उसने बहुत धीरे से सर हिलाया।
“जानू, प्लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नहीं रह सकते हैं न? जाना तो होगा?” उसने फिर से सर हिलाया।
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“माँ बाबा को छोड़ कर जाने से दुःख तो होगा, लेकिन मैं आपका पूरा ख़याल रखूंगा। आपको मुझ पर भरोसा है न?” संध्या ने मेरी आँखों में एक गहन दृष्टि डाली और कहा,
“आप पर जितना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नहीं है! आपके साथ मैं कहीं भी जाऊंगी। और मुझे मालूम है की आप मुझे हमेशा खुश रखेंगे। इसका उल्टा तो मैं सोच भी नहीं सकती।”
मैंने संतोषप्रद सांस भरी, “चलिए, बिस्तर पर चलते हैं …”
संध्या ने बिस्तर को थोडा व्यवस्थित किया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। मैं उसका आशय समझ कर जल्दी से बिस्तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया। संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और मष्तिष्क अपने परिवेश से कितनी जल्दी अनुबन्ध स्थापित कर लेता है! पिछले दो दिवस से चल रही अनवरत यौन क्रिया ने संध्या के दिमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दिया था – जैसे ही हमको एकांत मिलता, संध्या को लगता कि सम्भोग होने वाला है। वैसे मेरे भी हालत उसके सामान ही थी – संध्या मेरे आस पास रहती तो मेरे मन में और लिंग में हलचल सी होने लगती।
“कम …. गिव मी अ किस!” मैंने उसकी कमर को थामते हुए कहा। मेरी इस बात से संध्या के गाल एकदम से सुर्ख हो गए। मैंने बड़ी मृदुलता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और उसकी आँखों में देखा। वहाँ लज्जा, प्रेम, रोमांच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। मैंने अपने होंठों को उसके होंठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके होंठो के बीच धीरे से धकेल दिया। संध्या के होंठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख में चली गयी। मैंने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसकी जीभ को महसूस किया। संध्या ने भी मेरा अनुसरण करते हुए अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी।
इस सुंदरी को इस प्रकार चूमने का संवेदन अतुल्य था – मुझे लगा कि मैं पुनः अपने किशोरावस्था में आ गया। मुझे चूमते हुए संध्या अब और झुक गयी – उसकी बाहें मेरे गले का घेरा डाले थीं। उसके कोमल बालों का मेरे चेहरे पर स्पर्श बहुत ही आनंददायक था। मैंने उसके कपोलों पर अपनी हथेलियों से थोडा और दबाव डाला और उसको फ्रेंच किस करना जारी रखा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए अपने चुम्बन को एक भिन्न दिशा देना आरम्भ किया, और अंततः उसके नितम्ब को थाम लिया और उसको अपनी गोदी में बिठा लिया, कुछ इस तरह की उसके दोनों पैर मेरे दोनों तरफ रहें और उसकी योनि वाला हिस्सा मेरे लिंग वाले हिस्से के ठीक सामने रहे।
अद्भुत बात है, मैंने सोचा, कि मैंने पिछले दो दिनों में सेक्स का मैराथन किया था और आज की पदयात्रा के कारण थक भी गया था। स्वाभाविक रूप से मुझमें अभी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, मेरे लिंग कि अवस्था कुछ और ही कह रही थी। किसी ज्ञानी ने सही ही कहा है कि लिंगों का अपना ही दिमाग होता है – भले ही विज्ञान कुछ और ही कहे। संध्या का पेडू मेरे लिंग से एकदम सटा हुआ था, लिहाज़ा, उसको निश्चित तौर पर मेरे लिंग का कड़ापन महसूस हो रहा था। मैं निश्चित रूप से बहुत उत्तेजित हो चला था।
मैंने उसके आकर्षक नितम्बो को अपने हथेलियों से सौंदना शुरू किया। संध्या मत्त होकर मेरे सीने को सहला रही थी – सम्भव है कि उसको भी अब मेरे सामान ही उत्तेजना प्राप्त हो गयी हो। क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उसके शलवार का नाडा ढीला कर दिया और अपनी तर्जनी से उसके पुट्ठों के बीच की घाटी को सहलाया। वह सम्भवतः मुझे चूमने में अत्यधिक व्यस्त थी, अतः मेरी इस क्रिया कि उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। मैंने अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पसलियों को सहलाते हुए उसके स्तनों के आधार को छुआ। संध्या ने थोडा सा हट कर मेरे हाथों समुचित स्थान दिया। मैंने अपने हथेलियों को अपने सीने और उसके स्तन के बीच के स्थान में आगे बढ़ा कर, उसके स्तनो को पुनः महसूस करना शुरू किया। ठोस स्तनो से उसके दोनों निप्पल तन कर खड़े हुए थे, और कुर्ते और स्वेटर के ऊपर से भी अच्छी तरह से टटोले जा सकते थे।
मेरा लिंग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और निश्चित तौर पर संध्या उसको महसूस कर सकती थी। सम्भवतः वह लिंग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, क्योंकि इस समय अपने नितम्ब वह बहुत थोड़ा भी मेरी गोद पर घिस रही थी। यह अविश्वसनीय रूप से कामुक था। इसी उत्तेजना में मैंने उसके कूल्हों पर अपने हाथ चलाना शुरू कर दिया। लेकिन शलवार के ऊपर से यह काम करने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, अतः मैंने कुछ इस तरह कि संध्या को न मालूम पड़े, उसकी शलवार को नीचे कि ओर सरका दिया। संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी – लेकिन इस समय उसके इस खूबसूरत हिस्से का अधिक अभिगम मिल गया था। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नंगे चूतड़ों का आनंद उठाना आरम्भ कर दिया। अचानक ही मैंने धीरे से मेरी उंगलियों से उसके नितंबों के बीच की दरार को छुआ। मेरे ऐसा करते ही संध्या का चुम्बन रुक गया, और उसके साँसे अब और गहरी, और तेज हो गयीं। हमारी आँखें आपस में मिलीं। उसका चेहरा संतोष की एक सुंदर नरम अभिव्यक्ति लिए था, और मैं इस दृश्य को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं मुस्कुराया और संध्या भी। मैंने उसकी सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया कि मैं उसको बहुत प्यार करता हूँ।
“आप पर जितना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नहीं है! आपके साथ मैं कहीं भी जाऊंगी। और मुझे मालूम है की आप मुझे हमेशा खुश रखेंगे। इसका उल्टा तो मैं सोच भी नहीं सकती।”
मैंने संतोषप्रद सांस भरी, “चलिए, बिस्तर पर चलते हैं …”
संध्या ने बिस्तर को थोडा व्यवस्थित किया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। मैं उसका आशय समझ कर जल्दी से बिस्तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया। संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और मष्तिष्क अपने परिवेश से कितनी जल्दी अनुबन्ध स्थापित कर लेता है! पिछले दो दिवस से चल रही अनवरत यौन क्रिया ने संध्या के दिमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दिया था – जैसे ही हमको एकांत मिलता, संध्या को लगता कि सम्भोग होने वाला है। वैसे मेरे भी हालत उसके सामान ही थी – संध्या मेरे आस पास रहती तो मेरे मन में और लिंग में हलचल सी होने लगती।
“कम …. गिव मी अ किस!” मैंने उसकी कमर को थामते हुए कहा। मेरी इस बात से संध्या के गाल एकदम से सुर्ख हो गए। मैंने बड़ी मृदुलता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और उसकी आँखों में देखा। वहाँ लज्जा, प्रेम, रोमांच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। मैंने अपने होंठों को उसके होंठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके होंठो के बीच धीरे से धकेल दिया। संध्या के होंठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख में चली गयी। मैंने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसकी जीभ को महसूस किया। संध्या ने भी मेरा अनुसरण करते हुए अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी।
इस सुंदरी को इस प्रकार चूमने का संवेदन अतुल्य था – मुझे लगा कि मैं पुनः अपने किशोरावस्था में आ गया। मुझे चूमते हुए संध्या अब और झुक गयी – उसकी बाहें मेरे गले का घेरा डाले थीं। उसके कोमल बालों का मेरे चेहरे पर स्पर्श बहुत ही आनंददायक था। मैंने उसके कपोलों पर अपनी हथेलियों से थोडा और दबाव डाला और उसको फ्रेंच किस करना जारी रखा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए अपने चुम्बन को एक भिन्न दिशा देना आरम्भ किया, और अंततः उसके नितम्ब को थाम लिया और उसको अपनी गोदी में बिठा लिया, कुछ इस तरह की उसके दोनों पैर मेरे दोनों तरफ रहें और उसकी योनि वाला हिस्सा मेरे लिंग वाले हिस्से के ठीक सामने रहे।
अद्भुत बात है, मैंने सोचा, कि मैंने पिछले दो दिनों में सेक्स का मैराथन किया था और आज की पदयात्रा के कारण थक भी गया था। स्वाभाविक रूप से मुझमें अभी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, मेरे लिंग कि अवस्था कुछ और ही कह रही थी। किसी ज्ञानी ने सही ही कहा है कि लिंगों का अपना ही दिमाग होता है – भले ही विज्ञान कुछ और ही कहे। संध्या का पेडू मेरे लिंग से एकदम सटा हुआ था, लिहाज़ा, उसको निश्चित तौर पर मेरे लिंग का कड़ापन महसूस हो रहा था। मैं निश्चित रूप से बहुत उत्तेजित हो चला था।
मैंने उसके आकर्षक नितम्बो को अपने हथेलियों से सौंदना शुरू किया। संध्या मत्त होकर मेरे सीने को सहला रही थी – सम्भव है कि उसको भी अब मेरे सामान ही उत्तेजना प्राप्त हो गयी हो। क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उसके शलवार का नाडा ढीला कर दिया और अपनी तर्जनी से उसके पुट्ठों के बीच की घाटी को सहलाया। वह सम्भवतः मुझे चूमने में अत्यधिक व्यस्त थी, अतः मेरी इस क्रिया कि उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। मैंने अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पसलियों को सहलाते हुए उसके स्तनों के आधार को छुआ। संध्या ने थोडा सा हट कर मेरे हाथों समुचित स्थान दिया। मैंने अपने हथेलियों को अपने सीने और उसके स्तन के बीच के स्थान में आगे बढ़ा कर, उसके स्तनो को पुनः महसूस करना शुरू किया। ठोस स्तनो से उसके दोनों निप्पल तन कर खड़े हुए थे, और कुर्ते और स्वेटर के ऊपर से भी अच्छी तरह से टटोले जा सकते थे।
मेरा लिंग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और निश्चित तौर पर संध्या उसको महसूस कर सकती थी। सम्भवतः वह लिंग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, क्योंकि इस समय अपने नितम्ब वह बहुत थोड़ा भी मेरी गोद पर घिस रही थी। यह अविश्वसनीय रूप से कामुक था। इसी उत्तेजना में मैंने उसके कूल्हों पर अपने हाथ चलाना शुरू कर दिया। लेकिन शलवार के ऊपर से यह काम करने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, अतः मैंने कुछ इस तरह कि संध्या को न मालूम पड़े, उसकी शलवार को नीचे कि ओर सरका दिया। संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी – लेकिन इस समय उसके इस खूबसूरत हिस्से का अधिक अभिगम मिल गया था। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नंगे चूतड़ों का आनंद उठाना आरम्भ कर दिया। अचानक ही मैंने धीरे से मेरी उंगलियों से उसके नितंबों के बीच की दरार को छुआ। मेरे ऐसा करते ही संध्या का चुम्बन रुक गया, और उसके साँसे अब और गहरी, और तेज हो गयीं। हमारी आँखें आपस में मिलीं। उसका चेहरा संतोष की एक सुंदर नरम अभिव्यक्ति लिए था, और मैं इस दृश्य को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं मुस्कुराया और संध्या भी। मैंने उसकी सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया कि मैं उसको बहुत प्यार करता हूँ।
Re: कायाकल्प - Hindi sex novel
संध्या मेरी गोद से उठ खड़ी हुई और मैंने बिना कोई समय खोए उसका शलवार और चड्ढी पूरी तरह से उतार दिया। मैंने देखा की संध्या की योनि अभी होने वाली रति क्रिया के पूर्वानुमान से गीली हो गयी थी। मैंने उसको वापस अपनी गोद में बैठा लिया और चूमना आरम्भ किया। मैंने अभी तक अपने कपडे नहीं उतारे थे, लिहाज़ा उसकी योनि का गीलापन, अब मेरे कपड़ो को भिगो रहा था। मेरे हाथ इस समय उसके कुर्ते के अंदर था, और मैं उसकी पीठ को सहला रहा था। उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसकी पीठ के निचले हिस्से को, जहाँ डिंपल होते हैं, अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। संध्या का शरीर स्वयं ही मेरे स्पर्श से ताल मिलाने लगा। मैंने धीरे धीरे अपने हाथों को उसके शरीर के ऊपर की तरफ ले जाने लगा। मेरा परम लक्ष्य उसके छोटे और ठोस स्तनों की सुंदर जोड़ी थी। लेकिन मैं इस काम में कोई जल्दी नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि संध्या अपने शरीर को सहलाये और दुलराये जाने की अनुभूति का पूरा आनंद उठाये।
मैंने उसकी पसलियों को सहलाया और सहलाते हुए अपने अंगूठों से उसके स्तनों के बाहरी गोलाइयों को छुआ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब में पीछे को तरफ झुक गया, लेकिन यह कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ फिसल कर उसके स्तनो पर जा टिके। संध्या ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथों को अपने स्तनों पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मैंने उसके शानदार स्तनों को सहलाया। मेरे हाथों ने उसके स्तनों को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से पूरी तरह से प्रवरण करने में सक्षम होने की अनुभूति अद्भुत थी। मैंने कोमलता से उसके स्तनाग्रों को सहलाया – जवाब में संध्या एक गहरी सांस भरती हुई पीछे कि तरफ मुड़ गयी। उसने चूमना बंद कर दिया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर की मेरे स्पर्श की इस तरह से प्रतिक्रिया करते देखना अद्भुत था।
अब समय आ गया था कि संध्या को पूर्णतया नग्न कर दिया जाए। मैंने उसके कुर्ते का निचला हिस्सा पकड़ कर उसको निकालने लगा। संध्या ने भी अपने हाथ उठा कर कुर्ते को उतारने में सहयोग किया। इस प्रकार नग्न होने के बाद, संध्या पीठ के बल लेट गयी – इसके दोनों हाथ उसके दोनों तरफ थे। मैं भी एक करवट में उसके बगल आकर लेट गया और दृष्टि भर कर उसके रूप का रसास्वादन करने लगा। उसके स्तन इतने सुन्दर थे कि मैं उनको अपनी पूरी उम्र देख सकता था – खूबसूरती से तराशे हुए! मैंने अपने सामने चल रहे इस अद्भुत दृश्य की प्रशंसा में दीर्घश्वास छोड़ा। संध्या ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गर्व और लज्जा के मिले-जुले भाव से देखा।
मैंने लेटे लेटे ही उसके रूप का दृष्टि निरिक्षण करना जारी रखा – और उसके स्तनों, पसलियों और पेट से होते हुए उसके आकर्षक कूल्हे का अवलोकन किया। लेते हुए उसका पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे हुए वह सपाट लगता है) और उसकी कूल्हे की हड्डियां पेट से अधिक ऊपर उठी हुई थीं और स्पष्ट रूप से परिभाषित दिख रही थीं। मेरे लिए इस प्रकार का नारी शरीर अत्यधिक आकर्षक है। दृष्टि थोड़ी और आगे बढ़ी तो उसके जघन क्षेत्र के बाल दिखने लगे। और नीचे देखा तो उसका सूजा हुआ भगोष्ठ और उन दोनों के बीच में स्थित लगभग बाल-विहीन, उसके अन्तर्भाग का द्वार, बहुत ही लुभावना दिख रहा था। मेरे इस निरिक्षण क्रिया के बीच में संध्या ने कुछ भी नहीं कहा – इस समय उसकी साँसे भी आश्चर्यजनक रूप से शांत थीं। मुझे अचानक ही अपने कार्यस्थल से एक मज़ेदार बात याद आ गयी – कि अगर मैं संध्या पर कोई रिपोर्ट लिख रहा होता, तो उसको मैं ‘A1’ मूल्यांकन देता।
उसी समय मुझे ध्यान आया कि मैं तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने हुए था। मैंने जल्दी से अपने सारे कपडे उतार दिए, जिससे मुख्य कार्य में कोई विलम्ब न हो। मेरा इरादा संध्या के शरीर के एक एक इंच का आस्वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मैंने उसके इस काम के लिए चेहरे से आरम्भ करने कि सोची। मैंने संध्या को होंठों पर चूमा तो वह भी मुझे चूमने लगी, लेकिन मेरा प्लान अलग था। मैंने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फिर उसके कान के निकट गया। मैंने उसके कान को चूमते हुए उसकी लोलकी को धीरे से काटन और चबाना शुरू किया। उसके दूसरे कान के साथ भी यही हुआ। मैंने साथ ही साथ अपने खाली हाथों से उसके शरीर को सहलाना भी शुरू किया। इस सम्मिलित प्रहार का असर यह हुआ कि संध्या कि साँसे फिर से बढ़ने लगीं। ऐसे ही सहलाते सहलाते मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से ढक लिया और कुछ देर उनको यूँ ही दबाया। मैंने देखा कि संध्या कि आँखें अब बमुश्किल ही खुल पा रही थीं।
मैंने उसकी पसलियों को सहलाया और सहलाते हुए अपने अंगूठों से उसके स्तनों के बाहरी गोलाइयों को छुआ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब में पीछे को तरफ झुक गया, लेकिन यह कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ फिसल कर उसके स्तनो पर जा टिके। संध्या ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथों को अपने स्तनों पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मैंने उसके शानदार स्तनों को सहलाया। मेरे हाथों ने उसके स्तनों को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से पूरी तरह से प्रवरण करने में सक्षम होने की अनुभूति अद्भुत थी। मैंने कोमलता से उसके स्तनाग्रों को सहलाया – जवाब में संध्या एक गहरी सांस भरती हुई पीछे कि तरफ मुड़ गयी। उसने चूमना बंद कर दिया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर की मेरे स्पर्श की इस तरह से प्रतिक्रिया करते देखना अद्भुत था।
अब समय आ गया था कि संध्या को पूर्णतया नग्न कर दिया जाए। मैंने उसके कुर्ते का निचला हिस्सा पकड़ कर उसको निकालने लगा। संध्या ने भी अपने हाथ उठा कर कुर्ते को उतारने में सहयोग किया। इस प्रकार नग्न होने के बाद, संध्या पीठ के बल लेट गयी – इसके दोनों हाथ उसके दोनों तरफ थे। मैं भी एक करवट में उसके बगल आकर लेट गया और दृष्टि भर कर उसके रूप का रसास्वादन करने लगा। उसके स्तन इतने सुन्दर थे कि मैं उनको अपनी पूरी उम्र देख सकता था – खूबसूरती से तराशे हुए! मैंने अपने सामने चल रहे इस अद्भुत दृश्य की प्रशंसा में दीर्घश्वास छोड़ा। संध्या ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गर्व और लज्जा के मिले-जुले भाव से देखा।
मैंने लेटे लेटे ही उसके रूप का दृष्टि निरिक्षण करना जारी रखा – और उसके स्तनों, पसलियों और पेट से होते हुए उसके आकर्षक कूल्हे का अवलोकन किया। लेते हुए उसका पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे हुए वह सपाट लगता है) और उसकी कूल्हे की हड्डियां पेट से अधिक ऊपर उठी हुई थीं और स्पष्ट रूप से परिभाषित दिख रही थीं। मेरे लिए इस प्रकार का नारी शरीर अत्यधिक आकर्षक है। दृष्टि थोड़ी और आगे बढ़ी तो उसके जघन क्षेत्र के बाल दिखने लगे। और नीचे देखा तो उसका सूजा हुआ भगोष्ठ और उन दोनों के बीच में स्थित लगभग बाल-विहीन, उसके अन्तर्भाग का द्वार, बहुत ही लुभावना दिख रहा था। मेरे इस निरिक्षण क्रिया के बीच में संध्या ने कुछ भी नहीं कहा – इस समय उसकी साँसे भी आश्चर्यजनक रूप से शांत थीं। मुझे अचानक ही अपने कार्यस्थल से एक मज़ेदार बात याद आ गयी – कि अगर मैं संध्या पर कोई रिपोर्ट लिख रहा होता, तो उसको मैं ‘A1’ मूल्यांकन देता।
उसी समय मुझे ध्यान आया कि मैं तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने हुए था। मैंने जल्दी से अपने सारे कपडे उतार दिए, जिससे मुख्य कार्य में कोई विलम्ब न हो। मेरा इरादा संध्या के शरीर के एक एक इंच का आस्वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मैंने उसके इस काम के लिए चेहरे से आरम्भ करने कि सोची। मैंने संध्या को होंठों पर चूमा तो वह भी मुझे चूमने लगी, लेकिन मेरा प्लान अलग था। मैंने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फिर उसके कान के निकट गया। मैंने उसके कान को चूमते हुए उसकी लोलकी को धीरे से काटन और चबाना शुरू किया। उसके दूसरे कान के साथ भी यही हुआ। मैंने साथ ही साथ अपने खाली हाथों से उसके शरीर को सहलाना भी शुरू किया। इस सम्मिलित प्रहार का असर यह हुआ कि संध्या कि साँसे फिर से बढ़ने लगीं। ऐसे ही सहलाते सहलाते मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से ढक लिया और कुछ देर उनको यूँ ही दबाया। मैंने देखा कि संध्या कि आँखें अब बमुश्किल ही खुल पा रही थीं।