कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel
Re: कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel
का निर्णय ज्ञात हुआ और उन्हें यह जान कर अतीव दुख हुआ कि महाराज शिशिन्ध्वज और स्वयं उन जैसे शूर वीर के रहते देवी सुवर्णा को विवश हो कर उस ऋषि से
रत होना पडे .
“देवी सुवर्णा मैं सविनय आपसे निवेदन करूँगा क़ि आप अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें और मुझे इस स्थिति को संभालने का अवसर दें यद्यपि मैं आप जैसा कूटनीति में
निपुण तो नहीं परंतु आपकी कृपा से मैं आपके द्वारा प्रदत्त परिचारिका स्मिता को अवश्य ही ऋषि से रत करवा कर निश्चय ही उनको मना लूँगा”
मंत्री च्युतेश्वर ने देवी सुवर्णा से निवेदन किया. देवी सुवर्णा विचार में पड़ गयीं . जब भी वे विचारों में खोई होतीं वह अपनी उंगलियों से अपने गुप्तांगों के बालों को अपनी उंगलियों से लपेट कर छल्ले बनातीं . परंतु वे किनकर्तव्य विमूढ़ थी , स्पष्ट था कि स्थिति गंभीर होने के नाते उसका समाधान सरल न था. पहले जब भी कोई दुष्ट
तांत्रिक अथवा ओझा किसी आपदा या महामारी का प्रसारण करता तो सैनिक उसकी खबर लेते या उसको ठिकाने लगाते . कई बार तो सेना के समलिंगी सैनिकों को उन पर छोड़ा जाता जो उन दुश्टों की गुदा में डंडा घुसेड कर उन्हें सदैव के लिए शांत कर देते कभी गंभीर स्थिति आई भी तो राज्य एक सुंदर परिचारिका को भेज
कर उस दुष्ट वामाचारी को यहाँ समस्या विकट थी , सैनिकों के वहाँ जाते ही उस ऋषि कुमार की कुतिया ने उनके गुप्ताँग चबा डाले थे , और वह कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे.
देवी सुवर्णा महाराज की जाँघ पर बैठी हुई सोच ही रही थी कि उसे महाराज की राय जानने की इक्षा हुई , उसने अपनी उंगलियाँ महाराज की धोती में डाली और अनामिका और अंगूठे से उनके लिंग पर किंचित दाब डालना चाहा . जैसे ही उन्होने महाराज के लिंग का स्पर्श किया उनको ज्ञात हुआ कि वह सिकुड गया है और
शिथिल हो गया .
उसने चौंक कर महाराज की ओर देखा , महाराज का मुख शर्म से नीचे झुक गया . “अर्थात महाराज भी इसी दुर्धार रोग की चपेट में हैं ?” उसने स्वयं से प्रश्न किया .
फिर कुछ सोच कर उसने च्युतेश्वर को सूचित किया “ठीक है मंत्री जी हम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगी तदुपरांत आपको आदेश देंगीं , अभी के लिए सभा स्थगित की जाती है”
सभी सभासद उठ खड़े हुए और अपनी परिचारिका के साथ महाराज और देवी सुवर्णा को नमन कर सभगृह से बाहर चले गये.
अभी भी महाराज और सुवर्णा सभागृह में ही उपस्थित्त थे वे किसी गुप्त मंत्रणा के लिए अभी भी वहाँ रुके हुए थे.
सभासदों के जाने के उपरांत देवी सुवर्णा ने महाराज से पूछा “महाराज क्या आप बताने का कष्ट करेंगें कि उस ऋषि की कथा सुन कर आपका लिंग शिथिल क्यों पड़ गया और आप तनावग्रस्त क्यों हो गये?”
“मैं इस प्रश्न का उत्तर देना उचित नहीं समझता देवी”
“आपको देना होगा”
महाराज झल्ला उठे”व्यर्थ का आग्रह न करें देवी” इतना कह कर देवी को चुप करने के लिए उन्होने पुन एक बार देवी की गुदा में अपनी पैनी उंगली डालनी चाही परंतु देवी ने उनका वार बेकार कर दिया.
“अपनी मर्यादा में रहो देवी सुवर्णा , तुम अग्नि से खेल रही हो”
“अग्नि से? जो कब की बुझ चुकी” देवी सुवर्णा हंस पड़ी “परिहास तो खूब कर लेते हैं महाराज”
“तुम्हारा यह दुस्साहस?”
“आपको राष्ट्र हित में उत्तर देना ही होगा , आपकी पट्ट रानी आपको यह आदेश देती है”
इतना सुनना था कि महाराज ने अपने हथियार डाल दिए , एक तो राष्ट्रहित में और दूसरे उनको उनकी पट्ट रानी ने आदेश दिया था. यों तो महाराज किसी बात की परवाह न करते परंतु देवी सुवर्णा का यह पुराना पैंतरा था महाराज को विवश करने का.
देवी सुवर्णा ने तत्क्षण अपनी मोटी उंगली महाराज की धोती में डाल कर उनके अंडकोष में गड़ाई
“सावधान महाराज , आप को आन है ” फिर सुवर्णा उनके सिर दोनो हाथों से पकड़ कर अपनी योनि की तरफ ले गयी
और अपनी योनि उनके मुँह से चिपका दी
“आप शपथ पूर्वक कहिए आप जो कहेंगे सत्य कहेंगे और सत्य के सिवाय कुछ नहीं”
महाराज विवश हो गये थे चुपचाप उन्होने अपनी जिव्हा के अग्र भाग से देवी सुवर्णा की योनि का रस पिया
महाराज ने अपने मुँह में लगा योनि रस अपनी धोती से पोंछ कर कहना शुरू किया ” हमें इसका आभास न था कि युवावस्था में की गयी ग़लतियो का दंड हमें इस प्रकार मिलेगा , यद्यपि दोष हमारा नहीं था परंतु परिस्थितियाँ ही ऐसी बन गयीं “
रत होना पडे .
“देवी सुवर्णा मैं सविनय आपसे निवेदन करूँगा क़ि आप अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें और मुझे इस स्थिति को संभालने का अवसर दें यद्यपि मैं आप जैसा कूटनीति में
निपुण तो नहीं परंतु आपकी कृपा से मैं आपके द्वारा प्रदत्त परिचारिका स्मिता को अवश्य ही ऋषि से रत करवा कर निश्चय ही उनको मना लूँगा”
मंत्री च्युतेश्वर ने देवी सुवर्णा से निवेदन किया. देवी सुवर्णा विचार में पड़ गयीं . जब भी वे विचारों में खोई होतीं वह अपनी उंगलियों से अपने गुप्तांगों के बालों को अपनी उंगलियों से लपेट कर छल्ले बनातीं . परंतु वे किनकर्तव्य विमूढ़ थी , स्पष्ट था कि स्थिति गंभीर होने के नाते उसका समाधान सरल न था. पहले जब भी कोई दुष्ट
तांत्रिक अथवा ओझा किसी आपदा या महामारी का प्रसारण करता तो सैनिक उसकी खबर लेते या उसको ठिकाने लगाते . कई बार तो सेना के समलिंगी सैनिकों को उन पर छोड़ा जाता जो उन दुश्टों की गुदा में डंडा घुसेड कर उन्हें सदैव के लिए शांत कर देते कभी गंभीर स्थिति आई भी तो राज्य एक सुंदर परिचारिका को भेज
कर उस दुष्ट वामाचारी को यहाँ समस्या विकट थी , सैनिकों के वहाँ जाते ही उस ऋषि कुमार की कुतिया ने उनके गुप्ताँग चबा डाले थे , और वह कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे.
देवी सुवर्णा महाराज की जाँघ पर बैठी हुई सोच ही रही थी कि उसे महाराज की राय जानने की इक्षा हुई , उसने अपनी उंगलियाँ महाराज की धोती में डाली और अनामिका और अंगूठे से उनके लिंग पर किंचित दाब डालना चाहा . जैसे ही उन्होने महाराज के लिंग का स्पर्श किया उनको ज्ञात हुआ कि वह सिकुड गया है और
शिथिल हो गया .
उसने चौंक कर महाराज की ओर देखा , महाराज का मुख शर्म से नीचे झुक गया . “अर्थात महाराज भी इसी दुर्धार रोग की चपेट में हैं ?” उसने स्वयं से प्रश्न किया .
फिर कुछ सोच कर उसने च्युतेश्वर को सूचित किया “ठीक है मंत्री जी हम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगी तदुपरांत आपको आदेश देंगीं , अभी के लिए सभा स्थगित की जाती है”
सभी सभासद उठ खड़े हुए और अपनी परिचारिका के साथ महाराज और देवी सुवर्णा को नमन कर सभगृह से बाहर चले गये.
अभी भी महाराज और सुवर्णा सभागृह में ही उपस्थित्त थे वे किसी गुप्त मंत्रणा के लिए अभी भी वहाँ रुके हुए थे.
सभासदों के जाने के उपरांत देवी सुवर्णा ने महाराज से पूछा “महाराज क्या आप बताने का कष्ट करेंगें कि उस ऋषि की कथा सुन कर आपका लिंग शिथिल क्यों पड़ गया और आप तनावग्रस्त क्यों हो गये?”
“मैं इस प्रश्न का उत्तर देना उचित नहीं समझता देवी”
“आपको देना होगा”
महाराज झल्ला उठे”व्यर्थ का आग्रह न करें देवी” इतना कह कर देवी को चुप करने के लिए उन्होने पुन एक बार देवी की गुदा में अपनी पैनी उंगली डालनी चाही परंतु देवी ने उनका वार बेकार कर दिया.
“अपनी मर्यादा में रहो देवी सुवर्णा , तुम अग्नि से खेल रही हो”
“अग्नि से? जो कब की बुझ चुकी” देवी सुवर्णा हंस पड़ी “परिहास तो खूब कर लेते हैं महाराज”
“तुम्हारा यह दुस्साहस?”
“आपको राष्ट्र हित में उत्तर देना ही होगा , आपकी पट्ट रानी आपको यह आदेश देती है”
इतना सुनना था कि महाराज ने अपने हथियार डाल दिए , एक तो राष्ट्रहित में और दूसरे उनको उनकी पट्ट रानी ने आदेश दिया था. यों तो महाराज किसी बात की परवाह न करते परंतु देवी सुवर्णा का यह पुराना पैंतरा था महाराज को विवश करने का.
देवी सुवर्णा ने तत्क्षण अपनी मोटी उंगली महाराज की धोती में डाल कर उनके अंडकोष में गड़ाई
“सावधान महाराज , आप को आन है ” फिर सुवर्णा उनके सिर दोनो हाथों से पकड़ कर अपनी योनि की तरफ ले गयी
और अपनी योनि उनके मुँह से चिपका दी
“आप शपथ पूर्वक कहिए आप जो कहेंगे सत्य कहेंगे और सत्य के सिवाय कुछ नहीं”
महाराज विवश हो गये थे चुपचाप उन्होने अपनी जिव्हा के अग्र भाग से देवी सुवर्णा की योनि का रस पिया
महाराज ने अपने मुँह में लगा योनि रस अपनी धोती से पोंछ कर कहना शुरू किया ” हमें इसका आभास न था कि युवावस्था में की गयी ग़लतियो का दंड हमें इस प्रकार मिलेगा , यद्यपि दोष हमारा नहीं था परंतु परिस्थितियाँ ही ऐसी बन गयीं “
Re: कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel
कहानियाँ न सुनाईए महाराज , समय बीता जा रहा है हमें संक्षेप में बताइए , हमें तुरंत निर्णय लेना है आप तो गये काम से मैं देखती हूँ कि आपके लिंग की दांडिका भी नहीं उठती और न ही कठोर होती है , आपके लिंग की अवस्था ऐसी है जैसे कोई लूली पड़ी मूली हो” देवी सुवर्णा ने महाराज का लिंग हथेली में भर कर कहा .
“हमें अपनी बात कहने का अवसर दें देवी , यह बात संक्षेप में नहीं की जा सकती”
“महाराज आप क्या चाहते हैं? क्या आप अपनी मधुस्मिता , शुचिस्मिता , अस्मिता और स्मिता जैसी परिचारिकाओं की योनियों को द्वितवीर्य , च्युतेश्वर , गुप्तचर और वनसवान जीवन भर चाटते रहें ?”
“जब तक हम कोई निर्णय नहीं ले लेते वे आपकी परिचारिकाओं से यूँ ही संभोग रत रहेंगे ” सुवर्णा ने महाराज को सावधान करते कहा .
महाराज कुटिल हँसी हंस कर बोले “परिचारिकाओं का तो कार्य ही यह होता है देवी , पुरुष की यौन कुंठाओं का निवारण”
“हाँ परंतु” सुवर्णा ने प्रतिवाद करना चाहा किंतु महाराज उसकी घुंडिया दबाते बोले
“किंतु परंतु कुछ नहीं , जब तक हम अपनी बात पूरी नहीं कर लेते उन्हें हमारी परिचारिकाओं की योनि का सुधा रस पान कर लेने दो इससे कोई आकाश नहीं टूट पड़ेगा”
“कहिए” देवी सुवर्णा मुँह बनाते हुए बोलीं
“यह घटना तब की है जब हमने निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त कर उनकी महारानियों का चोदन उन्हीं राजाओं और उनकी प्रजा के समक्ष बहुत धूम धाम से किया था….हमारी यौन लिप्सा का कोई अंत न था …महारानीयाँ तो महारानियाँ हमारे लॅंड
ने तो उनकी परिचारिकाओं और दासियों का भी चोदन किया था”
“ऐसे ही एक बार हमने भोगावती नगर पर विजय प्राप्त की , अपनी पत्नियों और परिचारिकाओं की संभावित दुर्दशा से घबरा कर वहाँ का राजा महालिंग ने घनघोर वन में पलायन कर किसी ऋषि आश्रम में शरण ली”
“आपको ज्ञात होगा कि यही पुंसवक नगरी भोगावती नगरी का नया नाम है”
“जी महाराज” देवी सुवर्णा गौर से सुनने लगीं
“जब हम यहाँ आए तो कोई प्रतिरोध होते न देख हमने इस नगरी को अधिकार में ले लिया परंतु यहाँ के राजगुरु बृहदलिंग ने विरोध किया यह बृहदलिंग उसी ऋषि का पिता था जिसने महालिंग को शरण दी थी”
” अच्छा? ऐसा हुआ” देवी सुवर्णा ने अपनी आँखें आश्चर्य ने बड़ी की अब उनको इस कथा में रस आने लगा था , उन्होने महाराज की उंगली ली और अपनी योनि में घुसेड दी.
महाराज की उंगली सुवर्णा की योनि में ऐसे जा घुसी जैसे मक्खन में गर्म च्छुरी.
महाराज अपनी उंगली को अंदर बाहर करते हुए आगे कहने लगे
“हमने बृहदलिंग को बंदी वास में डाल दिया , तदुपरांत हमने अपनी सेना को यह आदेश दिया कि भोगवती की सभी कुंआरी स्त्रियों का योनि भंजन किया जाए . भोगवती के रहवासी और प्रजा गण बृहद लिंग के भाषण सुनने उसके आश्रम जया करते.”
महाराज बोले “हमारे योनि भंजन के आदेशानुसार हमारे शूर वीर सैनिक भोगावती की कुंआरी स्त्रियों के सार्वजनिक स्थलों पर रत हो कर उनका योनि भंजन करते , इसको देख कर बृहद लिंग ने प्रजाजनों को इस तथाकथित दुराचार का विरोध करने को उकसाया. ”
बृहद लिंग का कहना था कि यह समय रत होने का नहीं है अपितु उन्होने प्रजा को यौनाचार के निम्न जीवन सूत्रों की दीक्षा दी
१. लोहे पर हथौड़ा और योनि पर लवडे पर प्रहार तभी करो जब दोनो गर्म हों.
२. भंजन , भोजन और चोदन सदैव एकांत में ही करना चाहिए.
३. अपनी स्त्री और छतरी किसी अन्य को देंगे तो हमेशा फटी फटाई ही वापस मिलेंगी.
४. चूत चुचि तथा चिलम इनका नशा करोगे तो सर्वनाश मो प्राप्त होगे
५. लॅंड और घमंड को सदा नियंत्रण में रखने पर ही कल्याण होगा.
बृहद लिंग की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी . बृहद लिंग की बातों का असर प्रजाजनों पर व्यापक रूप से हुआ. भोगावती की कुँवारी कन्याओं ने विरोध कर दिया ऋषि का वरद हॅस्ट प्राप्त बाबू लोहार द्वारा निर्मित यौन छल्ले बाजार में बिकने लगे जिन्हें भोगवती की स्त्रियाँ अपनी योनियों में लगवा लेती , उनकी
इक्षा के विरुद्ध यदि कोई उनसे रत होता तो छल्ले के धारधार किनारे लिंग को अपनी गिरफ़्त में ले कर तत्क्षण अपने दाँतेदार काटो से लॅंड को काट डालते.
यह बड़ी गंभीर समस्या थी , क्योंकि नगर की कुँवारी कन्याओं का सार्वजनिक चोदन करने की आज्ञा स्वयं हमने अपने सैनिकों को दे रखी थी.
हमारी सेना में इस नये घटनाक्रम से त्राहि त्राहि मच गयी.
महाराज ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा “घायल सैनिकों में हमारे तत्कालीन सेनानायक महान लिंगन्ना दांडेकर भी शामिल थे जिनका लिंग इन दाँतेदार छल्लों की भेंट चढ़ गया था , समस्या वाकई बड़ी गंभीर थी. उपर से इस बृहदलिंग ने हमारे सैनिकों का नया नामकरण कर दिया था – भग्न लिंगों की सेना. उसका आशय स्पष्ट
“हमें अपनी बात कहने का अवसर दें देवी , यह बात संक्षेप में नहीं की जा सकती”
“महाराज आप क्या चाहते हैं? क्या आप अपनी मधुस्मिता , शुचिस्मिता , अस्मिता और स्मिता जैसी परिचारिकाओं की योनियों को द्वितवीर्य , च्युतेश्वर , गुप्तचर और वनसवान जीवन भर चाटते रहें ?”
“जब तक हम कोई निर्णय नहीं ले लेते वे आपकी परिचारिकाओं से यूँ ही संभोग रत रहेंगे ” सुवर्णा ने महाराज को सावधान करते कहा .
महाराज कुटिल हँसी हंस कर बोले “परिचारिकाओं का तो कार्य ही यह होता है देवी , पुरुष की यौन कुंठाओं का निवारण”
“हाँ परंतु” सुवर्णा ने प्रतिवाद करना चाहा किंतु महाराज उसकी घुंडिया दबाते बोले
“किंतु परंतु कुछ नहीं , जब तक हम अपनी बात पूरी नहीं कर लेते उन्हें हमारी परिचारिकाओं की योनि का सुधा रस पान कर लेने दो इससे कोई आकाश नहीं टूट पड़ेगा”
“कहिए” देवी सुवर्णा मुँह बनाते हुए बोलीं
“यह घटना तब की है जब हमने निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त कर उनकी महारानियों का चोदन उन्हीं राजाओं और उनकी प्रजा के समक्ष बहुत धूम धाम से किया था….हमारी यौन लिप्सा का कोई अंत न था …महारानीयाँ तो महारानियाँ हमारे लॅंड
ने तो उनकी परिचारिकाओं और दासियों का भी चोदन किया था”
“ऐसे ही एक बार हमने भोगावती नगर पर विजय प्राप्त की , अपनी पत्नियों और परिचारिकाओं की संभावित दुर्दशा से घबरा कर वहाँ का राजा महालिंग ने घनघोर वन में पलायन कर किसी ऋषि आश्रम में शरण ली”
“आपको ज्ञात होगा कि यही पुंसवक नगरी भोगावती नगरी का नया नाम है”
“जी महाराज” देवी सुवर्णा गौर से सुनने लगीं
“जब हम यहाँ आए तो कोई प्रतिरोध होते न देख हमने इस नगरी को अधिकार में ले लिया परंतु यहाँ के राजगुरु बृहदलिंग ने विरोध किया यह बृहदलिंग उसी ऋषि का पिता था जिसने महालिंग को शरण दी थी”
” अच्छा? ऐसा हुआ” देवी सुवर्णा ने अपनी आँखें आश्चर्य ने बड़ी की अब उनको इस कथा में रस आने लगा था , उन्होने महाराज की उंगली ली और अपनी योनि में घुसेड दी.
महाराज की उंगली सुवर्णा की योनि में ऐसे जा घुसी जैसे मक्खन में गर्म च्छुरी.
महाराज अपनी उंगली को अंदर बाहर करते हुए आगे कहने लगे
“हमने बृहदलिंग को बंदी वास में डाल दिया , तदुपरांत हमने अपनी सेना को यह आदेश दिया कि भोगवती की सभी कुंआरी स्त्रियों का योनि भंजन किया जाए . भोगवती के रहवासी और प्रजा गण बृहद लिंग के भाषण सुनने उसके आश्रम जया करते.”
महाराज बोले “हमारे योनि भंजन के आदेशानुसार हमारे शूर वीर सैनिक भोगावती की कुंआरी स्त्रियों के सार्वजनिक स्थलों पर रत हो कर उनका योनि भंजन करते , इसको देख कर बृहद लिंग ने प्रजाजनों को इस तथाकथित दुराचार का विरोध करने को उकसाया. ”
बृहद लिंग का कहना था कि यह समय रत होने का नहीं है अपितु उन्होने प्रजा को यौनाचार के निम्न जीवन सूत्रों की दीक्षा दी
१. लोहे पर हथौड़ा और योनि पर लवडे पर प्रहार तभी करो जब दोनो गर्म हों.
२. भंजन , भोजन और चोदन सदैव एकांत में ही करना चाहिए.
३. अपनी स्त्री और छतरी किसी अन्य को देंगे तो हमेशा फटी फटाई ही वापस मिलेंगी.
४. चूत चुचि तथा चिलम इनका नशा करोगे तो सर्वनाश मो प्राप्त होगे
५. लॅंड और घमंड को सदा नियंत्रण में रखने पर ही कल्याण होगा.
बृहद लिंग की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी . बृहद लिंग की बातों का असर प्रजाजनों पर व्यापक रूप से हुआ. भोगावती की कुँवारी कन्याओं ने विरोध कर दिया ऋषि का वरद हॅस्ट प्राप्त बाबू लोहार द्वारा निर्मित यौन छल्ले बाजार में बिकने लगे जिन्हें भोगवती की स्त्रियाँ अपनी योनियों में लगवा लेती , उनकी
इक्षा के विरुद्ध यदि कोई उनसे रत होता तो छल्ले के धारधार किनारे लिंग को अपनी गिरफ़्त में ले कर तत्क्षण अपने दाँतेदार काटो से लॅंड को काट डालते.
यह बड़ी गंभीर समस्या थी , क्योंकि नगर की कुँवारी कन्याओं का सार्वजनिक चोदन करने की आज्ञा स्वयं हमने अपने सैनिकों को दे रखी थी.
हमारी सेना में इस नये घटनाक्रम से त्राहि त्राहि मच गयी.
महाराज ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा “घायल सैनिकों में हमारे तत्कालीन सेनानायक महान लिंगन्ना दांडेकर भी शामिल थे जिनका लिंग इन दाँतेदार छल्लों की भेंट चढ़ गया था , समस्या वाकई बड़ी गंभीर थी. उपर से इस बृहदलिंग ने हमारे सैनिकों का नया नामकरण कर दिया था – भग्न लिंगों की सेना. उसका आशय स्पष्ट
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था हमारे सैनिकों के साथ साथ हमारा भी मनोबल तोड़ना और खिल्ली उड़ाना …हमारे सैनिकों को भोगवती के नागरिक “ठूंठ” कह कर चिढ़ाते थे , इस बृहद लिंग का कुछ इलाज करना परम आवश्यक होता जा रहा था.”
कहते कहते महाराज का गला सूख गया था बीती घटनाओं को याद कर वे रुआंसे हो कर एक कोने में एकटक देखने लगे . देवी सुवर्णा ने उनकी स्थिति समझी और वे उठ कर अपनी जांघों को उनकी नासिका के समीप ले गयीं. योनि रस के स्राव की तीखी दुर्गंध उनके नथुनों में प्रविष्ट हो गयी , अपनी चैतनायवस्था दोबारा प्राप्त
करने के लिए उन्होनें सुवर्णा की नर्म मखमली उज्ज्वल जांघें चाटी और उसकी जांघों पर उग आए झांट उन्होनें अपने होंठों से सहलाए , सुवर्णा दोबारा उत्तेजित हो गयी थी तुरंत उसकी योनी से जलप्रपात फूट पड़ा , और महाराज की दाढ़ी – मूँछें इस धवल – शुभ्र चिपचिपे गाढ़े द्रव्य से भीग गए . महाराज ने अपनी जीभ से उस गाढ़े
द्रव्य का पान करना चाहा परंतु उनकी जिव्हा इतनी लंबी न थी , वे बेचारे मन मसोस कर रह गये उधर सुवर्णा की योनि से फूटे प्रपात ने पूरे बिछौने को अपने द्रव्य से सिक्त कर दिया था . यह द्रव्य अब उनके योनि स्राव का न हो कर उनका मूत्र था .
पत्नी के मूत्र से भीग चुके बिछौने पर बैठना महाराज को ज़रा भी न सुहाया वे तत्क्षण उठ खड़े हुए और सुवर्णा की कंचुकी से अपना मुख पोंछते हुए बोले “सच में देवी तुम निवृत्ति की ओर बढ़ चली हो परंतु तुम्हारे स्राव का आवेग किसी नव यौवना को भी मात दे दे”
“हूँ… ह…” सुवर्णा ने मुँह बनाया
“क्या हुआ देवी? ” आपको हमारे द्वारा किया हुआ परिहास समझ न आया ? क्या हुआ आपकी विनोद बुद्धि को ?”
“पत्नी के मूत्र सिक्त बिछौने पर न विराजने हेतु आप बहाने बनाते हैं क्या कभी आपने सोचा है भोगावती कि उन निशपाप कुमारिकाओं पर क्या बीती होगी जिनका सार्वजनिक चोदन करने की आज्ञा आपने अपने सिपाहियों को दी थी?” सुवर्णा ने तीखी आवाज़ में प्रश्न किया.
“सुवर्णा” महाराज क्रोध से चीखे.
“चिल्लाईए मत महाराज” सुवर्णा भी बिछौने से उठ खड़ी हुई “आपसे तेज आवाज़ में मैं भी चिल्ला सकती हूँ”
फिर महाराज के समक्ष जा कर उसने महाराज का लिंग हाथों में पकड़ कर ज़ोर से मसला , महाराज पीड़ा से दोहरे हो गये
” इसी लिंग पर आप पुरुषों को इतना अहंकार है न ? आख़िर क्या है यह ? माँस , मज्जा के आवरण से ढँकी हुई एक नलिका मात्र ? जिसका मुख्य उद्देश्य केवल मूत्र त्याग करना भर है ? ” सुवर्णा ने प्रश्न किया.
फिर अपनी उंगलियों से और अधिक लिंग पर दबाव बना कर कहा ” मैं आप जैसे पुरुषों के लिंग उखाड़ कर फेंक दूँगी”
दाँत भींच कर अत्यंत क्रोधित हो कर सुवर्णा बोली “क्या सोच कर उन कुमारिकाओं का सार्वजनिक चोदन की आज्ञा आपने सैनिकों को दी? बताइए? बताइए महाराज??? बताइए?????”
“आहह… हह… बस करो देवी सुवर्णा आपके क्रोधावेग में आपकी उंगलियाँ दबाव बना कर हमारे अंडकोषों को फोड़ देंगीं” महाराज अपने हाथों से अपने अंडकोष छुड़ाने का प्रयास करते बोले.
“आप जैसे अत्याचारी के अंडकोषों का भेदन सार्वजनिक रूप से किया जाना चाहिए महाराज” सुवर्णा क्रोधित हो कर बोलीं.
” तनिक सोचिए , कुमारिकाओं के सार्वजनिक चोदन की बात सुन कर ही आपकी अपनी पत्नी इतना क्रोधित हो सकती है तो उन कुमारिकाओं के परिजनों का क्या अवस्था रही होगी?”
“आहह…. हह. इससे हमारा क्या प्रायोजन देवी ? हम तो अपने राष्ट्र हित साध रहे थे”
“कैसे राष्ट्र हीत”
” हम भोगावती की नयी पीढ़ी तैयार कर रहे थे”
“उससे क्या होता”
“भोगवती नगरी की नयी पीढ़ी हमारे प्रति ईमानदार रही… आहह”
“आपको ज्ञात है महाराज ? आपने अनधिकृत रूप से भोगावती की कुमारिकाओं का सार्वजनिक चोदन करवा कर उनके यौन अधिकारों की अवहेलना की है”
सुवर्णा ने एक धक्का दे कर महाराज को फर्श पर गिरा दिया
“किसी भी स्त्री की योनि पर पहला अधिकार उसके पति अथवा साथी का होता है जिसे वह अपनी योनि के चोदन कार्य के लिए अधिकृत करती है , तत्पश्चात अधिकार उसकी संतान का होता है जिसके लिए वह योनि एक प्रवेश द्वार होती है जिसके द्वारा वह इस इह लोक में प्रवेश करती है . संतान इस प्रवेश द्वार के द्वार पाल की
भूमिका निभाती है.
अधिकृत व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी आगंतुक का चोदन करना अवैध होता है और द्वार पालको उसका विरोध करना चाहिए ” सुवर्णा ने महाराज को सुनाया “और आपकी लूली पड़ी मूली चोदन करना तो दूर ठीक से सीधी खड़ी भी नहीं हो सकती”
कहते कहते महाराज का गला सूख गया था बीती घटनाओं को याद कर वे रुआंसे हो कर एक कोने में एकटक देखने लगे . देवी सुवर्णा ने उनकी स्थिति समझी और वे उठ कर अपनी जांघों को उनकी नासिका के समीप ले गयीं. योनि रस के स्राव की तीखी दुर्गंध उनके नथुनों में प्रविष्ट हो गयी , अपनी चैतनायवस्था दोबारा प्राप्त
करने के लिए उन्होनें सुवर्णा की नर्म मखमली उज्ज्वल जांघें चाटी और उसकी जांघों पर उग आए झांट उन्होनें अपने होंठों से सहलाए , सुवर्णा दोबारा उत्तेजित हो गयी थी तुरंत उसकी योनी से जलप्रपात फूट पड़ा , और महाराज की दाढ़ी – मूँछें इस धवल – शुभ्र चिपचिपे गाढ़े द्रव्य से भीग गए . महाराज ने अपनी जीभ से उस गाढ़े
द्रव्य का पान करना चाहा परंतु उनकी जिव्हा इतनी लंबी न थी , वे बेचारे मन मसोस कर रह गये उधर सुवर्णा की योनि से फूटे प्रपात ने पूरे बिछौने को अपने द्रव्य से सिक्त कर दिया था . यह द्रव्य अब उनके योनि स्राव का न हो कर उनका मूत्र था .
पत्नी के मूत्र से भीग चुके बिछौने पर बैठना महाराज को ज़रा भी न सुहाया वे तत्क्षण उठ खड़े हुए और सुवर्णा की कंचुकी से अपना मुख पोंछते हुए बोले “सच में देवी तुम निवृत्ति की ओर बढ़ चली हो परंतु तुम्हारे स्राव का आवेग किसी नव यौवना को भी मात दे दे”
“हूँ… ह…” सुवर्णा ने मुँह बनाया
“क्या हुआ देवी? ” आपको हमारे द्वारा किया हुआ परिहास समझ न आया ? क्या हुआ आपकी विनोद बुद्धि को ?”
“पत्नी के मूत्र सिक्त बिछौने पर न विराजने हेतु आप बहाने बनाते हैं क्या कभी आपने सोचा है भोगावती कि उन निशपाप कुमारिकाओं पर क्या बीती होगी जिनका सार्वजनिक चोदन करने की आज्ञा आपने अपने सिपाहियों को दी थी?” सुवर्णा ने तीखी आवाज़ में प्रश्न किया.
“सुवर्णा” महाराज क्रोध से चीखे.
“चिल्लाईए मत महाराज” सुवर्णा भी बिछौने से उठ खड़ी हुई “आपसे तेज आवाज़ में मैं भी चिल्ला सकती हूँ”
फिर महाराज के समक्ष जा कर उसने महाराज का लिंग हाथों में पकड़ कर ज़ोर से मसला , महाराज पीड़ा से दोहरे हो गये
” इसी लिंग पर आप पुरुषों को इतना अहंकार है न ? आख़िर क्या है यह ? माँस , मज्जा के आवरण से ढँकी हुई एक नलिका मात्र ? जिसका मुख्य उद्देश्य केवल मूत्र त्याग करना भर है ? ” सुवर्णा ने प्रश्न किया.
फिर अपनी उंगलियों से और अधिक लिंग पर दबाव बना कर कहा ” मैं आप जैसे पुरुषों के लिंग उखाड़ कर फेंक दूँगी”
दाँत भींच कर अत्यंत क्रोधित हो कर सुवर्णा बोली “क्या सोच कर उन कुमारिकाओं का सार्वजनिक चोदन की आज्ञा आपने सैनिकों को दी? बताइए? बताइए महाराज??? बताइए?????”
“आहह… हह… बस करो देवी सुवर्णा आपके क्रोधावेग में आपकी उंगलियाँ दबाव बना कर हमारे अंडकोषों को फोड़ देंगीं” महाराज अपने हाथों से अपने अंडकोष छुड़ाने का प्रयास करते बोले.
“आप जैसे अत्याचारी के अंडकोषों का भेदन सार्वजनिक रूप से किया जाना चाहिए महाराज” सुवर्णा क्रोधित हो कर बोलीं.
” तनिक सोचिए , कुमारिकाओं के सार्वजनिक चोदन की बात सुन कर ही आपकी अपनी पत्नी इतना क्रोधित हो सकती है तो उन कुमारिकाओं के परिजनों का क्या अवस्था रही होगी?”
“आहह…. हह. इससे हमारा क्या प्रायोजन देवी ? हम तो अपने राष्ट्र हित साध रहे थे”
“कैसे राष्ट्र हीत”
” हम भोगावती की नयी पीढ़ी तैयार कर रहे थे”
“उससे क्या होता”
“भोगवती नगरी की नयी पीढ़ी हमारे प्रति ईमानदार रही… आहह”
“आपको ज्ञात है महाराज ? आपने अनधिकृत रूप से भोगावती की कुमारिकाओं का सार्वजनिक चोदन करवा कर उनके यौन अधिकारों की अवहेलना की है”
सुवर्णा ने एक धक्का दे कर महाराज को फर्श पर गिरा दिया
“किसी भी स्त्री की योनि पर पहला अधिकार उसके पति अथवा साथी का होता है जिसे वह अपनी योनि के चोदन कार्य के लिए अधिकृत करती है , तत्पश्चात अधिकार उसकी संतान का होता है जिसके लिए वह योनि एक प्रवेश द्वार होती है जिसके द्वारा वह इस इह लोक में प्रवेश करती है . संतान इस प्रवेश द्वार के द्वार पाल की
भूमिका निभाती है.
अधिकृत व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी आगंतुक का चोदन करना अवैध होता है और द्वार पालको उसका विरोध करना चाहिए ” सुवर्णा ने महाराज को सुनाया “और आपकी लूली पड़ी मूली चोदन करना तो दूर ठीक से सीधी खड़ी भी नहीं हो सकती”