“क्या करे इन लोगों को मुहपर कुछ बोल भी नही सकते… और समय के अभाव मे सेमिनार को जा भी नही सकते… सच मच किसी कंपनी के हेड का काम कोई मामूली नही होता.”
अंकिता अपनी सूटकेस खोलकर उनमे से कुछ पेपर्स बाहर निकालने लगी. पेपर निकलते हुए एक पेपर की तरफ देख कर, वह पेपर बगल मे निकल कर रखते हुए बोली, “अब यह देखो… इस कंपनी के टेंडर का काम अब तक पूरा नही हुवा… यह पेपर ज़रा उस तिवारजी की तरफ भेज देना….”
“तिवारी आज छुट्टी पर है” विभा ने कहा.
“लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार उनकी छुट्टी तो कल तक ही थी…” अंकिता चिढ़कर बोली.
“हाँ.. लेकिन अभी थोड़ी देर पहले उनका फोने आया था… वे काम पर नही आ सकते यह बोलने के लिए.” विभा ने कहा.
“क्यों नही आ सकते?” अंकिता ने गुस्से से पूछा.
“मैने पूछा तो उन्होने कुछ ना कहते हुए ही फोने रख दिया.”
“यह तिवारी मतलब एक बेहद गैर ज़िम्मेदाराना आदमी…” अंकिता चिढ़कर बोली.
और फिर जो अंकिता की बड़बड़ शुरू हो गयी वह रुकने का नाम नही ले रही थी. विभा को खूब पता था की जब अंकिता ऐसी बड़बड़ करने लगे तो क्या करना चाहिए. कुछ नही, चुपचाप बैठकर सिर्फ़ उसकी बड़बड़ सुन लेना, बीच मे एक भी लाब्ज़ नही बोलना. अंकिता ने ही उसे एक बार बताया था की जब अपना बॉस ऐसा बड़बड़ करने लगे, तो उसकी वह बड़बड़ मतलब एक तरह का स्ट्रेस बाहर निकालने का तरीका होता है. जब उसकी ऐसी बड़बड़ चल रही होती है तब जो सेकरेटरी उसे और कुछ बोलकर या और कुछ पूछकर उसकी और स्ट्रेस बढ़ती है उसे मोस्ट अनसक्सेस्फुल सेकरेटरी कहना चाहिए, और जो सेकरेटरी चुपचाप अपने बॉस की बक बक सुनती है और अपने बॉस को फिर से नॉर्मल होने की रह देखती है उसे मोस्ट सक्सेस्फुल सेकरेटरी कहना चाहिए.
अंकिता की बकबक अब बंद होकर वह काफ़ी शांत हो गयी थी. वह हाथ मे कुछ पेपर्स और फाइल्स लेकर मीटिंग को जाने के लिए अपने कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी. विभा भी उठ खड़ी हो गयी.
बगल मे चल रहे कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखते हुए वह विभा से बोली, “तुम ज़रा मेरी मेल्स चेक कर लेना… में मीटिंग हो आती हूँ….” और अंकिता अपने कॅबिन से बाहर जाने लगी.
“पर्सनल मेल्स भी?” विभा ने उसे छेड़ते हुए मुस्कुरा कर मज़ाक मे कहा.
“यू नो… तेरे इस नतिंग पर्सनल… और जो भी है.. तुम्हे सब पता है ही…” अंकिता भी उसकी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली और पलट कर जल्दी जल्दी मीटिंग को जाने के लिए निकल पड़ी.
सुबह सुबह रास्ते पर बाग हाथ मे लेकर संतोष की कही जाने की गड़बड़ चल रही थी.
पीछे से दौड़ते हुए आकर उसके दोस्त रोहित ने उसे ज़ोर्से आवाज़ दिया, “ये सुन गुरु… इतनी सुबह सुबह कहाँ जा रहा है”
संतोष ने मुड़कर देखा और उसे अनदेखा करते हुए फिरसे पहले जैसे जल्दी जल्दी सामने चलने लगा.
“किसी लड़की के साथ भाग तो नही जा रहे हो?…” रोहित ने वह रुक नही रहा है और उसकी गड़बड़ देखते हुए पूछा.
रोहित अब भी उसके पीछे से दौड़ते हुए उसके पास पहुँचने की कोशिश कर रहा था.
“क्या सर दर्द है… ज़रा दो दिन बाहर जा रहा हूँ… उसका भी इतना धिंदूरा…” संतोष बड़बड़ करते हुए सामने चल रहा था.
“दो दिन बाहर जा रहा हूँ… उतना ही तुमसे छुटकारा मिलेगा” संतोष ने चलते हुए ज़ोर्से रोहित को ठाना मराते हुए कहा.
“थोड़ी देर रूको तो सही… तुमसे एक अर्जेंट बात पूछनी थी…” रोहित ने कहा.
संतोष रुक गया और रोहित दौड़ते हुए आकर उसके पास पहुच गया.
“बोलो… क्या पूछना है? … जल्दी पुकचो… नही तो उधर मेरी बस चुत जाएगी” संतोष बूरासा मुँह बनाकर बोला.
“क्या हुवा फिर कल?” रोहित ने पूछा.
“किस बात का?” संतोष ने प्राति प्रश्ना किया.
“वही उस मैल का?… कल मैल भेजी की नही?” रोहित ने उसे छेड़ते हुए उसके गले मे हाथ डालकर पूछा.
“अजीब बेवकूफ़ हो तुम… किस वक्त किस बात का महटवा है इसका कोई तुम्हे सरोकार नही होता…. उधर मेरी बस लाते हो रही है और तुम्हे उस मैल के पड़ी है…” संतोष झल्लते हुए उसका हाथ अपने कंधे से झटकते हुए बोला.
संतोष अब फिरसे तेज़ी से आगे बढ़ने लगा.
“क्या बात करते हो यार तुम? … बस से कभी भी मैल महत्वपूर्ण होगी…. अब मुझे बता… हावड़ा मैल, राजधानी मैल… ये सारी मैल बड़ी की वह तुम्हारी तपरी बस?” रोहित अब भी उसके पीछे पीछे जाते हुए उसे छेड़ते हुए बोला.
संतोष समझ चुका था की अब रोहित से बात करने मे कोई मतलब नही था. वह अपने बड़े बड़े कदम बढ़ते हुए आगे चलने लगा, और रोहित भी बकबक करते हुए और उसे छेड़ते हुए उसके साथ साथ चलने लगा.
विभा अंकिता के कॅबिन मे कंप्यूटर पर बैठी हुई थी. अंकिता उसकी सुबह की मीटिंग निपटा कर उसके कॅबिन मे वापस आ गयी. उसने घड़ी की तरफ देखा, लगभग दोपहर के बरा बाज गये थे. कुर्सी पीछे खींचकर वह अपने कुरसीपर बैठ गयी और कुर्सी पर पीछे की और झूलते हुए अपने थकावट दूर करने का प्रयास करने लगी. विभा ने एक बार अंकिता की तरफ देखा और वह फिरसे अपने कंप्यूटर के काम मे व्यस्त हो गयी.
“किसी की कोई खास मैल?” अंकिता ने विभा की तरफ ना देखते हुए ही पूछा.
“नही… कोई खास नही… लेकिन एक उस ‘घोस्ट राइडर‚ की मैल थी.” विभा ने खा
“घोस्ट राइडर… कुछ लोग बहुत ही चिपकू होते है… नही?” अंकिता ने कहा.
“सही है… ” विभा को अंकिता का इशारा समझ गया था.
प्यार और जुर्म – 4
प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story - -
Re: प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story -
क्योंकि अंकिता ने पहले एक बार उसे उस घोस्ट राइडर के बड़े मे बताया था.
“और हाँ… एक और किसी संतोष की मैल थी” विभा ने आगे कहा.
“संतोष?… हाँ वही होगा जो कल चाटिंग पर मिला था… में बोलती हूँ ना उसने क्या लिखा होगा… तुम्हारी उमरा क्या है?… तुम्हारा अड्रेस क्या है?… मेरी उमरा फलना फलना है… मेरा अड्रेस फलना फलना… और में फलना फलना कम कराता हूँ… और धीरे धीरे वह अपने असली जात पर आएगा… इन आदमियोंकि जात ही ऐसी होती है… लंपट… बदमाश और चिपकू…”
“तुम बोल रही हो वैसा उसने कुछ भी लिखा नही है…” विभा बीच मे ही उसे टोकते हुए बोली…
“नही?… तो फिर किसी कंपनी के प्रॉडक्ट की सिफारिश की होगी उसने… मतलब वह प्रॉडक्ट खड़ीद हम लेंगे और वह उसका फोकट मे कमिशन खाएगा” अंकिता ने कहा.
“नही वैसा भी उसने कुछ लिखा नही है…” विभा ने कहा.
“फिर…?… फिर उसने क्या लिखा है?” अंकिता ने उत्सुकता वश गर्दन घूमकर विभा के तरफ देखते हुए पूछा.
“उसने मैल मे कुछ भी लिखा नही है… उसने ब्लॅंक मैल भेजी है और नीचे सिर्फ़ उसका नाम ‘संतोष‚ ऐसा लिखा हुवा है” विभा ने कहा.
अंकिता एक दम उठकर सीधी बैठ गयी.
“देखु तो…” अंकिता विभा की तरफ मुड़कर कंप्यूटर की तरफ देखते हुए बोली.
विभा ने अंकिता के मेलबॉक्स से संतोष की मैल क्लिक कर खोली. सचमुच वह मैल ब्लॅंक थी.
“अंकिता तुम कुछ भी कहो… लड़के मे ‘स्टाइल‚ है… अट लीस्ट इतना पक्का है की वह बाकी लड़को से ज़रा हटके है…” विभा अंकिता के दिल को टटोलने की कोशिश करते हुए बोली.
“तुम ज़रा चुप बैतोगी… और क्या लड़का… लड़का लगा रखा है.. तुम्हे वह कौन? कहाँ का?… उसकी उमरा क्या है?… कुछ पता भी है?… वह कोई रंगीन मिज़ाजवाला, कोई ख़ूसट बुद्धा भी हो सकता है… तुम्हे पता है ही आज कल लोग इंटरनेट पर कैसे पर्सनलाइज़ेशन करते है…”
“… हाँ तुम सही कहती हो… लेकिन चिंता मत करो… ये लो में अभी उसकी साइबर तहक़ुएक़त कराती हूँ..” विभा फटाफट कंप्यूटर के के बोर्ड की कुछ बतन्स दबाती हुई बोली.
थोड़ी ही देर मे कंप्यूटर के मॉनिटर पर मानो एक रिपोर्ट आ गया.
“यहाँ तो उसका नाम सिर्फ़ संतोष ऐसा लिखा हुवा है… सरनेम लिखा नही है… मुंबई का रहने वाला है और फ्ड कर रहा है… उमरा है…” विभा ने मानो किसी बात का क्लाइमॅक्स खोलना हो ऐसा एक पोज़ लिया.
अंकिता की भी अब जिज्ञासा जागृत हुई थी और वह विभा उसकी उमरा क्या बताती है इसकी राह देखने लगी.
“फ्ड?… मतलब ज़रूर कोई बुद्धा ख़ूसट होना चाहिए… मेने कहा था ना?”
“और उसकी उमरा है 25 साल….” विभा ने मानो क्लाइमॅक्स खोला था.
“तो नूवर-ए-जन्नत एमेस. अंकिता अब क्या किया जाए? विभा उसे छेड़ते हुए बोली.
अंकिता भी प्रयतना पूर्वक अपना चेहरा भावनाविरहित रखते हुए बोली, “तो फिर?… हमे उसका क्या करना है..?”
“देने वाले अपना पैगाम देकर चले गये
करने वाले तो अपना इशारा कर चले गये
उधर बड़ा बुरा हाल है दिल के गलियारॉंका
अब उन्हे इंतेजर है बस आपके इशारोंका”
“वा वा क्या बात है…” विभा ने अपने ही शेयर की तारीफ करते हुए बोली, “अब क्या करना है इस मैल का?”
“करना क्या है… डेलीट कर दो..” अंकिता ने कंधे उचकते हुए बेफ़िकरा अंदाज़ मे कहा…. मतलब कम से कम वैसे जताते हुए कहा.
“डेलीट… नही इतना बड़ा सितम मत करो उसपर… एक काम करते है… कोरे खत का जवाब कोरे खत से ही देते है….”
विभा ने फटाफट कंप्यूटर के के बोर्ड के कुछ बतन्स दबाए और उस ब्लॅंक मैल को ब्लॅंक रिप्लाइ भेज दिया.
अंकिता ने आज सुबह आए बराबर कुर्सी पर वैतकर कंप्यूटर शुरू किया. कंप्यूटर बूट होने के बाद उसने चाटिंग विंडो ओपन किया और किसी का कोई ऑफलाइन मेसेज है क्या देखने लगी. किसी का भी ऑफलाइन मेसेज नही था. उसके चेहरे पर मायूसी छा गयी लेकिन वह छिपते हुए वह सामने टेबल पर रखे रिपोर्ट्स उलट पलट कर देखने लगी. उसके टेबल के सामने विभा बैठी थी. वह बड़ी गौर्से अंकिता की एक एक हरकत देख रही थी और मुस्कुरा रही थी. रिपोर्ट देखते हुए अंकिता के यह बात ध्यान्मे आ गयी तो झटके से उसने विभा की तरफ एक कटाक्षा डाला.
“क्या हुवा… क्यों मुस्कुरा रही हो?” अंकिता ने उसे पूछा.
विभा भी बड़ी चतुराई से अपने चेहरे के भाव छिपाकर गंभीर मुद्रा धारण कराती हुई बोली,
“कहाँ… में कहा मुस्कुरा रही हूँ?…”
तभी अंकिता के कंप्यूटर का बीप बजा. अंकिता ने झट से मुड़कर अपने कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखा और फिरसे रिपोर्ट पढ़ने मे व्यस्त हो गयी.
“दो दिन से में देख रही हूँ की जब भी चाटिंग का बीप बजता है तुम सारे काम धाम छोड़कर मॉनिटर की तरफ देखती हो… क्या किसी के मेसेज की या मैल की राह देख रही हो?” विभा ने पूछा.
“नही तो..?” अंकिता ने कहा और फिरसे अपने टेबल पर रखे रिपोर्ट पढ़ ने मे व्यस्त हो गयी, या कम से कम वैसे जतने की कोशिश करने लगी. कंप्यूटर का बीप फिरसे बजा. अंकिता ने फिरसे झट से मॉनिटर की तरफ देखा और इस बार वह अपनी पहिएवली कुर्सी झटके से घूमकर कंप्यूटर की तरफ अपने रुख़ कर बैठ गयी.
“यह ज़रूर संतोष का मेसेज है…” विभा फिरसे उसे छेड़ते हुए बोली.
“किस संतोष का..?” अंकिता कुछ समझी नही ऐसा जताते हुए बोली.
“किस संतोष का?… वही जो उस दिन चाटिंग पर मिला था…” विभा भी उसे छोड़ने के मूड मे नही थी.
“यह तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो…?” अंकिता ने कंप्यूटर पर काम करते हुए पूछा.
“मेडम आपके चेहरे की लाली सब कुछ बता रही है” विभा मुस्कुराते हुए बोली.
पहले तो अंकिता के चेहरे पर चोरी पकड़ ने जैसे झेंप भरे भाव आ गये. लेकिन झतसे अपने आपको संभालते हुए वह विभा पर गुस्सा होते हुए बोली.
“तुम ज़रा मेरा पीछा चोदा गी… कब से में देख रही हूँ मेरे पीछे ही पड़ी हो… उधर बाहर देखो ऑफीस के कितने काम पेंडिंग पड़े हुए है… वह ज़रा देख के आओ… जाओ… ” अंकिता ने कहा.
अंकिता का इशारा समझकर विभा वहाँ से उठ गयी और मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गयी.
विभा जाने के बाद अंकिता ने झतसे कंप्यूटर पर अभी अभी आया हुवा संतोष का मेसेज खोला.अंकिता ने कंप्यूटर पर आया हुवा संतोष का चाटिंग मेसेज खोला तो सही, लेकिन खोलते वक्त उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. उसे अपने इस बैचेन स्थितिपर खुद ही आसचर्या हो रहा था. उसने झतसे उसने भेजा हुवा मेसेज पढ़ा –
“हिी… गुड मॉर्निंग… हाउ र उ?” उसके मेसेज विंडो मे लिखा था.
प्यार और जुर्म – 5
“और हाँ… एक और किसी संतोष की मैल थी” विभा ने आगे कहा.
“संतोष?… हाँ वही होगा जो कल चाटिंग पर मिला था… में बोलती हूँ ना उसने क्या लिखा होगा… तुम्हारी उमरा क्या है?… तुम्हारा अड्रेस क्या है?… मेरी उमरा फलना फलना है… मेरा अड्रेस फलना फलना… और में फलना फलना कम कराता हूँ… और धीरे धीरे वह अपने असली जात पर आएगा… इन आदमियोंकि जात ही ऐसी होती है… लंपट… बदमाश और चिपकू…”
“तुम बोल रही हो वैसा उसने कुछ भी लिखा नही है…” विभा बीच मे ही उसे टोकते हुए बोली…
“नही?… तो फिर किसी कंपनी के प्रॉडक्ट की सिफारिश की होगी उसने… मतलब वह प्रॉडक्ट खड़ीद हम लेंगे और वह उसका फोकट मे कमिशन खाएगा” अंकिता ने कहा.
“नही वैसा भी उसने कुछ लिखा नही है…” विभा ने कहा.
“फिर…?… फिर उसने क्या लिखा है?” अंकिता ने उत्सुकता वश गर्दन घूमकर विभा के तरफ देखते हुए पूछा.
“उसने मैल मे कुछ भी लिखा नही है… उसने ब्लॅंक मैल भेजी है और नीचे सिर्फ़ उसका नाम ‘संतोष‚ ऐसा लिखा हुवा है” विभा ने कहा.
अंकिता एक दम उठकर सीधी बैठ गयी.
“देखु तो…” अंकिता विभा की तरफ मुड़कर कंप्यूटर की तरफ देखते हुए बोली.
विभा ने अंकिता के मेलबॉक्स से संतोष की मैल क्लिक कर खोली. सचमुच वह मैल ब्लॅंक थी.
“अंकिता तुम कुछ भी कहो… लड़के मे ‘स्टाइल‚ है… अट लीस्ट इतना पक्का है की वह बाकी लड़को से ज़रा हटके है…” विभा अंकिता के दिल को टटोलने की कोशिश करते हुए बोली.
“तुम ज़रा चुप बैतोगी… और क्या लड़का… लड़का लगा रखा है.. तुम्हे वह कौन? कहाँ का?… उसकी उमरा क्या है?… कुछ पता भी है?… वह कोई रंगीन मिज़ाजवाला, कोई ख़ूसट बुद्धा भी हो सकता है… तुम्हे पता है ही आज कल लोग इंटरनेट पर कैसे पर्सनलाइज़ेशन करते है…”
“… हाँ तुम सही कहती हो… लेकिन चिंता मत करो… ये लो में अभी उसकी साइबर तहक़ुएक़त कराती हूँ..” विभा फटाफट कंप्यूटर के के बोर्ड की कुछ बतन्स दबाती हुई बोली.
थोड़ी ही देर मे कंप्यूटर के मॉनिटर पर मानो एक रिपोर्ट आ गया.
“यहाँ तो उसका नाम सिर्फ़ संतोष ऐसा लिखा हुवा है… सरनेम लिखा नही है… मुंबई का रहने वाला है और फ्ड कर रहा है… उमरा है…” विभा ने मानो किसी बात का क्लाइमॅक्स खोलना हो ऐसा एक पोज़ लिया.
अंकिता की भी अब जिज्ञासा जागृत हुई थी और वह विभा उसकी उमरा क्या बताती है इसकी राह देखने लगी.
“फ्ड?… मतलब ज़रूर कोई बुद्धा ख़ूसट होना चाहिए… मेने कहा था ना?”
“और उसकी उमरा है 25 साल….” विभा ने मानो क्लाइमॅक्स खोला था.
“तो नूवर-ए-जन्नत एमेस. अंकिता अब क्या किया जाए? विभा उसे छेड़ते हुए बोली.
अंकिता भी प्रयतना पूर्वक अपना चेहरा भावनाविरहित रखते हुए बोली, “तो फिर?… हमे उसका क्या करना है..?”
“देने वाले अपना पैगाम देकर चले गये
करने वाले तो अपना इशारा कर चले गये
उधर बड़ा बुरा हाल है दिल के गलियारॉंका
अब उन्हे इंतेजर है बस आपके इशारोंका”
“वा वा क्या बात है…” विभा ने अपने ही शेयर की तारीफ करते हुए बोली, “अब क्या करना है इस मैल का?”
“करना क्या है… डेलीट कर दो..” अंकिता ने कंधे उचकते हुए बेफ़िकरा अंदाज़ मे कहा…. मतलब कम से कम वैसे जताते हुए कहा.
“डेलीट… नही इतना बड़ा सितम मत करो उसपर… एक काम करते है… कोरे खत का जवाब कोरे खत से ही देते है….”
विभा ने फटाफट कंप्यूटर के के बोर्ड के कुछ बतन्स दबाए और उस ब्लॅंक मैल को ब्लॅंक रिप्लाइ भेज दिया.
अंकिता ने आज सुबह आए बराबर कुर्सी पर वैतकर कंप्यूटर शुरू किया. कंप्यूटर बूट होने के बाद उसने चाटिंग विंडो ओपन किया और किसी का कोई ऑफलाइन मेसेज है क्या देखने लगी. किसी का भी ऑफलाइन मेसेज नही था. उसके चेहरे पर मायूसी छा गयी लेकिन वह छिपते हुए वह सामने टेबल पर रखे रिपोर्ट्स उलट पलट कर देखने लगी. उसके टेबल के सामने विभा बैठी थी. वह बड़ी गौर्से अंकिता की एक एक हरकत देख रही थी और मुस्कुरा रही थी. रिपोर्ट देखते हुए अंकिता के यह बात ध्यान्मे आ गयी तो झटके से उसने विभा की तरफ एक कटाक्षा डाला.
“क्या हुवा… क्यों मुस्कुरा रही हो?” अंकिता ने उसे पूछा.
विभा भी बड़ी चतुराई से अपने चेहरे के भाव छिपाकर गंभीर मुद्रा धारण कराती हुई बोली,
“कहाँ… में कहा मुस्कुरा रही हूँ?…”
तभी अंकिता के कंप्यूटर का बीप बजा. अंकिता ने झट से मुड़कर अपने कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखा और फिरसे रिपोर्ट पढ़ने मे व्यस्त हो गयी.
“दो दिन से में देख रही हूँ की जब भी चाटिंग का बीप बजता है तुम सारे काम धाम छोड़कर मॉनिटर की तरफ देखती हो… क्या किसी के मेसेज की या मैल की राह देख रही हो?” विभा ने पूछा.
“नही तो..?” अंकिता ने कहा और फिरसे अपने टेबल पर रखे रिपोर्ट पढ़ ने मे व्यस्त हो गयी, या कम से कम वैसे जतने की कोशिश करने लगी. कंप्यूटर का बीप फिरसे बजा. अंकिता ने फिरसे झट से मॉनिटर की तरफ देखा और इस बार वह अपनी पहिएवली कुर्सी झटके से घूमकर कंप्यूटर की तरफ अपने रुख़ कर बैठ गयी.
“यह ज़रूर संतोष का मेसेज है…” विभा फिरसे उसे छेड़ते हुए बोली.
“किस संतोष का..?” अंकिता कुछ समझी नही ऐसा जताते हुए बोली.
“किस संतोष का?… वही जो उस दिन चाटिंग पर मिला था…” विभा भी उसे छोड़ने के मूड मे नही थी.
“यह तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो…?” अंकिता ने कंप्यूटर पर काम करते हुए पूछा.
“मेडम आपके चेहरे की लाली सब कुछ बता रही है” विभा मुस्कुराते हुए बोली.
पहले तो अंकिता के चेहरे पर चोरी पकड़ ने जैसे झेंप भरे भाव आ गये. लेकिन झतसे अपने आपको संभालते हुए वह विभा पर गुस्सा होते हुए बोली.
“तुम ज़रा मेरा पीछा चोदा गी… कब से में देख रही हूँ मेरे पीछे ही पड़ी हो… उधर बाहर देखो ऑफीस के कितने काम पेंडिंग पड़े हुए है… वह ज़रा देख के आओ… जाओ… ” अंकिता ने कहा.
अंकिता का इशारा समझकर विभा वहाँ से उठ गयी और मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गयी.
विभा जाने के बाद अंकिता ने झतसे कंप्यूटर पर अभी अभी आया हुवा संतोष का मेसेज खोला.अंकिता ने कंप्यूटर पर आया हुवा संतोष का चाटिंग मेसेज खोला तो सही, लेकिन खोलते वक्त उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. उसे अपने इस बैचेन स्थितिपर खुद ही आसचर्या हो रहा था. उसने झतसे उसने भेजा हुवा मेसेज पढ़ा –
“हिी… गुड मॉर्निंग… हाउ र उ?” उसके मेसेज विंडो मे लिखा था.
प्यार और जुर्म – 5
Re: प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story -
वह कही उसमे फैस्टी तो नही जा रही है – इस बात की उसने तसल्ली करते हुए बड़ी सावधानी से जवाब टाइप किया –
“फाइन….”
और अपने मंकी अधिराता वह भाँप ना पाए इसलिए मन ही मन सौ तक गिना और फिर काफ़ी समय हो गया है इसकी तसल्ली करते हुए ‘सेंड‚ बतन पर क्लिक किया.
“कल में बाहर गया था…” उधरसे तुरंत संतोष का मेसेज आ गया.
‘तुम कल चाटिंग पर क्यों नही मिले..?‚ इस अंकिता के दिमाग़ मे घूम रहे सवाल का जवाब देकर उसने मानो उसके दिल का हाल जान लिया था ऐसा उसे लगा.
वह अपने मन को पढ़ तो नही सकता है?…
अंकिता के मन मे आया.
“अक्च्छा… अक्च्छा” उसने भी खबरदारी के तौर पर अपने रूखी रूखी प्रातिकरिया व्यक्त की.
“और कुछ पूचोगी नही..?” उसने पूछा.
वह उसका मेसेज आने के बाद जवाब देने मे जानबूझकर देरी लगा रही थी, लेकिन उसके मेसेजस तुरंत, मानो मेसेज मिलने के पहीले ही टाइप किए हो ऐसे जल्दी जल्दी आ रहे थे.
“तुम ही पूछो…” उसने रिप्लाइ भेजा.
उसे लड़की देखने के लिया लड़का आने के बाद, एक अलग कमरे मे जाकर जैसे बाते करते है, ऐसा लग रहा था.
“अरे हाँ उस दिन मैने तुम्हे ब्लॅंक मैल इसलिए भेजी थी की मुझे तुम्हारी कुछ भी जानकारी नही… फिर क्या लिखता?… लेकिन मैल भेजे बिना भी रहा नही जा रहा था… इसलिए भेज दी ब्लॅंक मैल…”
फिर उसने ही पहल करते हुए पूछा, “अक्च्छा तुम क्या कराती हो?.. मेरा मतलब पढ़ाई या जॉब?”
“मैने ब.ए. कंप्यूटर किया हुवा है… और ह.ग. इनफॉरमटिक्स इस खुद के कंपनी की में फिलहाल मॅनेजिंग डाइरेक्टर हूँ…” उसने मेसेज भेजा.
उसे पता था की चाटिंग मे पहले ही खुद की सच जानकारी देना ख़तरनाक हो सकता है. फिर भी वह खुद को रोक नही सकी, मानो जानकारी टाइप कर रही उंगलियोनपर उसका कोई कंट्रोल नही रहा था.
“अरे बाप्रे!…” उधर से संतोष की प्रातिकरिया आ गयी.
“तुम्हे तुम्हारे उमरा के बड़े मे पूछा तो गुस्सा तो नही आएगा..? नही… मतलब मैने कही पढ़ा है की लड़कियों को उनके उमरा के बड़े मे पूछना अक्च्छा नही लगता है….” उसने उस बड़ी खबरदारी के साथ सवाल पूछा.
उसने भेजा, “23 साल”
“अरे यह तो मुझे पता ही था… मैने तुम्हारे मैल आइ डी से मालूम किया था… सच काहु? तुमने जब बताया की तुम मॅनेजिंग डाइरेक्टर हो… तो मेरे सामने एक 45-50 साल के वयस्क औरात की तस्वीर आ गयी थी…” वह अब खुलकर बाते कर रहा था.
वह उसके खुले और मजाकिया अंदाज़ पर मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसने उसके बड़े मे भी इंटरनेट पर सर्च कर जानकारी एकट्ठा की यह जानकार उसके ख़याल मे आ गया था की वह भी उसके बड़े मे उतना ही सीरीयस है.
“तुमने तुम्हारी उमरा नही बताई…?” उसने सवाल किया.
“मैने मेरे मैल अड्रेस की जानकारी मे… मेरी असली उमरा डाली हुई है…” उसका उधर से मेसेज आया.
उसके इस जवाब से उसे एहसास हुवा की वाकई वह बाकी लोगों से कुछ हटके है…
संतोष कंप्यूटर के सामने बैठकर कुछ पढ़ रहा था. तभी उसके दोस्त धीरे से, कोई आवाज़ ना हो इसका ध्यान रखते हुए, उसके पीछे आकर खड़ा हो गया. काफ़ी समय तक रोहित संतोष का क्या चल रहा है यह समझ ने की कोशिश करते रहा.
“क्या गुरु… कहाँ तक पहुँच गयी है तुम्हारी प्रेम कहानी…?” रोहित ने एकदम से उसके कंधे झंझोराते हुए सवाल पूछा.
संतोष तो एकदम चौंक गया और हड़बड़ाहट मे मॉनिटर पर दिख रही विंडोस मिनिमाइज़ करने लगा.
ज़ोर्से ठहाका लगते हुए रोहित ने कहा, “छुपाकर कोई फ़ायदा नही… मैं सबकुछ पढ़ चुका हूँ…”.
संतोष अपने चेहरे पर आए हड़बड़ाहट के भाव छिपाने का प्रयास करते हुए फिरसे मॉनिटर पर सारी विंडोस मॅक्सिमाइज़ करते हुए बोला, “देखे तो… उसने मैल के साथ क्या अटॅचमेंट भेजी है.”
“मतलब आग बराबर दोनो तरफ लगी हुई है… वैसे उस चिड़िया का कुछ नाम तो होगा… जिसने हमारे संतोष का दिल उसाया है” रोहित ने पूछा.
“अंकिता” संतोष का चेहरा शर्मा के मारे लाल लाल हुवा था.
“देख देख कितना शर्मा रहा है” रोहित उसे छेड़ते हुए बोला.
“देखु तो… क्या भेजा है उसने…?” रोहित ने उसे आगे पूछा.
रोहित बगल मे रखे स्टूल पर बैठ कर पढ़ने लगा तो संतोष उसे अंकिता ने अटॅच कर भेजे उस सॉफ्टवेर प्रोग्राम के बड़े मे जानकारी देने लगा –
“यह एक जपानीस सॉफ्टवेर इंजिनियर ने लिखा हुवा सॉफ्टवेर प्रोग्राम है… इस प्रोग्राम के लिए रिफ्लेक्षन टेक्नालजी का इस्तेमाल किया गया है. जब हम कंप्यूटर के मॉनिटर के सामने बैठे होते है तब जो रोशनी अपने चेहरे पर पड़ती है वह अलग अलग रंगोनमे विभाजित होकर मॉनिटर पर परावर्तित होती है. इस सॉफ्टवेर प्रोग्राम द्वारा परावर्तित हुए रोशनी की तीव्राता एकत्रित कर उसे इस टेक्नालजी द्वारा फोटोग्रॅफ मे परिवर्तित किया जा सकता है. मतलब अगर आप इस प्रोग्राम को ऋण करोगे तो मॉनिटर पर पड़े परिवर्तन के तीव्राता को एकत्रित कर यह प्रोग्राम आपका फोटो बना सकता है. लेकिन फोटो निकलते वक्त इतना ध्यान रखना पड़ता है की आप मॉनिटर के एकदम सामने, समान्तर और समानांतर बैठे हुए है. मॉनिटर और आपके चेहरे मे अगर कोई तिरछा कोन होगा तो फोटो ठीक से नही आएगा.”
“मतलब यह सॉफ्टवेर फोटो निकलता है?” रोहित ने पूछा.
“हाँ… यह देखो अभी अभी थोड़ी देर पहले मैने मेरा फोटो निकाला हुवा है” संतोष ने कंप्यूटर पर उसका अपना फोटो खोल कर दिखाया.
“अरे वह… एकदम बढ़िया… अगर ऐसा है तो हमे कॅमरा खड़ीदने की ज़रूरात ही नही पड़ेगी.” रोहित ने खुशी के मारे कहा.
“वही तो…”
“रूको… मुझे ज़रा देखने दो… में मेरा फोटो निकलता हूँ….” रोहित मॉनिटर के सामने से संतोष को उठाते हुए खुद उस स्टूल पर बैठते हुए बोला.
रोहित ने स्टूल पर बैठकर माउस कर्सर मॉनिटर पर इधर उधर घूमते हुए पूछा, “हाँ अब क्या करना है.?”
“कुछ नही… सिर्फ़ वह स्नॅप का बतन दबाओ… लेकिन रूको… पहले सीधे ठीक से बैठो…” संतोष ने कहा.
रोहित सीधा बैठकर माउस का कर्सर ‘स्नॅप‚ बतन के पास ले जाकर बतन दबाने लगा.
“स्माइल प्लीज़” संतोष ने उसे टोका.
रोहित ने अपने चेहरे पर जितनी हो सकती है उतनी हँसी लाने की कोशिश की.
“रीडी… नाउ प्रेस थे बतन” संतोष ने कहा.
रोहित ने ‘स्नॅप‚ बतन पर माउस क्लिक किया. मॉनिटर पर एक-दो पल के लिए नीला ‘प्रोसेसिंग‚ बार आगे बढ़ता हुवा दिखाई दिया और फिर मॉनिटर पर फोटो दिखाई देने लगा. जैसे ही मॉनिटर पर फोटो आगेया संतोष ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और रोहित का चेहरा तो देखने लायक हो गया था. मॉनिटर पर एक हंसते हुए बंदर का फोटो आ गया था.
दिनबेडीन अंकिता और संतोष का चाटिंग, मैल करना बढ़ता ही जा रहा था. मैल की लंबाई चौड़ाई बढ़ रही थी. एक दूसरे को फोटो भेजना, जोक्स भेजना, पज़्ज़ील्स भेजना…. मैल भेजने के ना जाने कितने बहाने उनके पास थे. धीरे धीरे अंकिता को अहसास होने लगा था की वह उससे प्यार करने लगी है. लेकिन प्यार का इज़हार उसने संतोष के पास या संतोष ने अंकिता के पास कभी नही किया था. उनके हर मैल के साथ… मैल मे लिखे हर वाक़या के साथ… उनके हर फोटो के साथ… उनके व्यक्तित्वा का एक एक पहेलू उन्हे पता चल रहा था और उतनी ही वह उसमे डूबती जा रही थी. अंकिता ने भी अपने आपको कभी रोका नही, या यूँ कहिए खुद को रोकने से खुद को उसके प्यार मे पूरी तरफ डूबने मे ही उसे आनंद मिल रहा हो. लेकिन प्यार के इज़हार के बड़े मे वह बहुत फूँक फूँक कर अपने कदम आगे बढ़ा रही थी. उसके पास बहाना था की उसने अब तक उसे आमने सामने देखा नही था. वैसे उसके प्रेम का अहसास उसे नही था ऐसे नही. लेकिन संतोष भी प्यार के इज़हार के बड़े मे शायद उतना ही खबरदारी बारात रहा था. शायद उसने भी उसे अब तक आपने सामने ना देखने के कारण. वह मिलने के बाद मुकर तो नही जाएगा? इसके बड़े मे वह एकदम बेफ़िकरा थी, क्यों के विश्वामित्रा को भी ललचे ऐसा उसका सौंदर्या था.
प्यार और जुर्म – 6
“फाइन….”
और अपने मंकी अधिराता वह भाँप ना पाए इसलिए मन ही मन सौ तक गिना और फिर काफ़ी समय हो गया है इसकी तसल्ली करते हुए ‘सेंड‚ बतन पर क्लिक किया.
“कल में बाहर गया था…” उधरसे तुरंत संतोष का मेसेज आ गया.
‘तुम कल चाटिंग पर क्यों नही मिले..?‚ इस अंकिता के दिमाग़ मे घूम रहे सवाल का जवाब देकर उसने मानो उसके दिल का हाल जान लिया था ऐसा उसे लगा.
वह अपने मन को पढ़ तो नही सकता है?…
अंकिता के मन मे आया.
“अक्च्छा… अक्च्छा” उसने भी खबरदारी के तौर पर अपने रूखी रूखी प्रातिकरिया व्यक्त की.
“और कुछ पूचोगी नही..?” उसने पूछा.
वह उसका मेसेज आने के बाद जवाब देने मे जानबूझकर देरी लगा रही थी, लेकिन उसके मेसेजस तुरंत, मानो मेसेज मिलने के पहीले ही टाइप किए हो ऐसे जल्दी जल्दी आ रहे थे.
“तुम ही पूछो…” उसने रिप्लाइ भेजा.
उसे लड़की देखने के लिया लड़का आने के बाद, एक अलग कमरे मे जाकर जैसे बाते करते है, ऐसा लग रहा था.
“अरे हाँ उस दिन मैने तुम्हे ब्लॅंक मैल इसलिए भेजी थी की मुझे तुम्हारी कुछ भी जानकारी नही… फिर क्या लिखता?… लेकिन मैल भेजे बिना भी रहा नही जा रहा था… इसलिए भेज दी ब्लॅंक मैल…”
फिर उसने ही पहल करते हुए पूछा, “अक्च्छा तुम क्या कराती हो?.. मेरा मतलब पढ़ाई या जॉब?”
“मैने ब.ए. कंप्यूटर किया हुवा है… और ह.ग. इनफॉरमटिक्स इस खुद के कंपनी की में फिलहाल मॅनेजिंग डाइरेक्टर हूँ…” उसने मेसेज भेजा.
उसे पता था की चाटिंग मे पहले ही खुद की सच जानकारी देना ख़तरनाक हो सकता है. फिर भी वह खुद को रोक नही सकी, मानो जानकारी टाइप कर रही उंगलियोनपर उसका कोई कंट्रोल नही रहा था.
“अरे बाप्रे!…” उधर से संतोष की प्रातिकरिया आ गयी.
“तुम्हे तुम्हारे उमरा के बड़े मे पूछा तो गुस्सा तो नही आएगा..? नही… मतलब मैने कही पढ़ा है की लड़कियों को उनके उमरा के बड़े मे पूछना अक्च्छा नही लगता है….” उसने उस बड़ी खबरदारी के साथ सवाल पूछा.
उसने भेजा, “23 साल”
“अरे यह तो मुझे पता ही था… मैने तुम्हारे मैल आइ डी से मालूम किया था… सच काहु? तुमने जब बताया की तुम मॅनेजिंग डाइरेक्टर हो… तो मेरे सामने एक 45-50 साल के वयस्क औरात की तस्वीर आ गयी थी…” वह अब खुलकर बाते कर रहा था.
वह उसके खुले और मजाकिया अंदाज़ पर मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसने उसके बड़े मे भी इंटरनेट पर सर्च कर जानकारी एकट्ठा की यह जानकार उसके ख़याल मे आ गया था की वह भी उसके बड़े मे उतना ही सीरीयस है.
“तुमने तुम्हारी उमरा नही बताई…?” उसने सवाल किया.
“मैने मेरे मैल अड्रेस की जानकारी मे… मेरी असली उमरा डाली हुई है…” उसका उधर से मेसेज आया.
उसके इस जवाब से उसे एहसास हुवा की वाकई वह बाकी लोगों से कुछ हटके है…
संतोष कंप्यूटर के सामने बैठकर कुछ पढ़ रहा था. तभी उसके दोस्त धीरे से, कोई आवाज़ ना हो इसका ध्यान रखते हुए, उसके पीछे आकर खड़ा हो गया. काफ़ी समय तक रोहित संतोष का क्या चल रहा है यह समझ ने की कोशिश करते रहा.
“क्या गुरु… कहाँ तक पहुँच गयी है तुम्हारी प्रेम कहानी…?” रोहित ने एकदम से उसके कंधे झंझोराते हुए सवाल पूछा.
संतोष तो एकदम चौंक गया और हड़बड़ाहट मे मॉनिटर पर दिख रही विंडोस मिनिमाइज़ करने लगा.
ज़ोर्से ठहाका लगते हुए रोहित ने कहा, “छुपाकर कोई फ़ायदा नही… मैं सबकुछ पढ़ चुका हूँ…”.
संतोष अपने चेहरे पर आए हड़बड़ाहट के भाव छिपाने का प्रयास करते हुए फिरसे मॉनिटर पर सारी विंडोस मॅक्सिमाइज़ करते हुए बोला, “देखे तो… उसने मैल के साथ क्या अटॅचमेंट भेजी है.”
“मतलब आग बराबर दोनो तरफ लगी हुई है… वैसे उस चिड़िया का कुछ नाम तो होगा… जिसने हमारे संतोष का दिल उसाया है” रोहित ने पूछा.
“अंकिता” संतोष का चेहरा शर्मा के मारे लाल लाल हुवा था.
“देख देख कितना शर्मा रहा है” रोहित उसे छेड़ते हुए बोला.
“देखु तो… क्या भेजा है उसने…?” रोहित ने उसे आगे पूछा.
रोहित बगल मे रखे स्टूल पर बैठ कर पढ़ने लगा तो संतोष उसे अंकिता ने अटॅच कर भेजे उस सॉफ्टवेर प्रोग्राम के बड़े मे जानकारी देने लगा –
“यह एक जपानीस सॉफ्टवेर इंजिनियर ने लिखा हुवा सॉफ्टवेर प्रोग्राम है… इस प्रोग्राम के लिए रिफ्लेक्षन टेक्नालजी का इस्तेमाल किया गया है. जब हम कंप्यूटर के मॉनिटर के सामने बैठे होते है तब जो रोशनी अपने चेहरे पर पड़ती है वह अलग अलग रंगोनमे विभाजित होकर मॉनिटर पर परावर्तित होती है. इस सॉफ्टवेर प्रोग्राम द्वारा परावर्तित हुए रोशनी की तीव्राता एकत्रित कर उसे इस टेक्नालजी द्वारा फोटोग्रॅफ मे परिवर्तित किया जा सकता है. मतलब अगर आप इस प्रोग्राम को ऋण करोगे तो मॉनिटर पर पड़े परिवर्तन के तीव्राता को एकत्रित कर यह प्रोग्राम आपका फोटो बना सकता है. लेकिन फोटो निकलते वक्त इतना ध्यान रखना पड़ता है की आप मॉनिटर के एकदम सामने, समान्तर और समानांतर बैठे हुए है. मॉनिटर और आपके चेहरे मे अगर कोई तिरछा कोन होगा तो फोटो ठीक से नही आएगा.”
“मतलब यह सॉफ्टवेर फोटो निकलता है?” रोहित ने पूछा.
“हाँ… यह देखो अभी अभी थोड़ी देर पहले मैने मेरा फोटो निकाला हुवा है” संतोष ने कंप्यूटर पर उसका अपना फोटो खोल कर दिखाया.
“अरे वह… एकदम बढ़िया… अगर ऐसा है तो हमे कॅमरा खड़ीदने की ज़रूरात ही नही पड़ेगी.” रोहित ने खुशी के मारे कहा.
“वही तो…”
“रूको… मुझे ज़रा देखने दो… में मेरा फोटो निकलता हूँ….” रोहित मॉनिटर के सामने से संतोष को उठाते हुए खुद उस स्टूल पर बैठते हुए बोला.
रोहित ने स्टूल पर बैठकर माउस कर्सर मॉनिटर पर इधर उधर घूमते हुए पूछा, “हाँ अब क्या करना है.?”
“कुछ नही… सिर्फ़ वह स्नॅप का बतन दबाओ… लेकिन रूको… पहले सीधे ठीक से बैठो…” संतोष ने कहा.
रोहित सीधा बैठकर माउस का कर्सर ‘स्नॅप‚ बतन के पास ले जाकर बतन दबाने लगा.
“स्माइल प्लीज़” संतोष ने उसे टोका.
रोहित ने अपने चेहरे पर जितनी हो सकती है उतनी हँसी लाने की कोशिश की.
“रीडी… नाउ प्रेस थे बतन” संतोष ने कहा.
रोहित ने ‘स्नॅप‚ बतन पर माउस क्लिक किया. मॉनिटर पर एक-दो पल के लिए नीला ‘प्रोसेसिंग‚ बार आगे बढ़ता हुवा दिखाई दिया और फिर मॉनिटर पर फोटो दिखाई देने लगा. जैसे ही मॉनिटर पर फोटो आगेया संतोष ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और रोहित का चेहरा तो देखने लायक हो गया था. मॉनिटर पर एक हंसते हुए बंदर का फोटो आ गया था.
दिनबेडीन अंकिता और संतोष का चाटिंग, मैल करना बढ़ता ही जा रहा था. मैल की लंबाई चौड़ाई बढ़ रही थी. एक दूसरे को फोटो भेजना, जोक्स भेजना, पज़्ज़ील्स भेजना…. मैल भेजने के ना जाने कितने बहाने उनके पास थे. धीरे धीरे अंकिता को अहसास होने लगा था की वह उससे प्यार करने लगी है. लेकिन प्यार का इज़हार उसने संतोष के पास या संतोष ने अंकिता के पास कभी नही किया था. उनके हर मैल के साथ… मैल मे लिखे हर वाक़या के साथ… उनके हर फोटो के साथ… उनके व्यक्तित्वा का एक एक पहेलू उन्हे पता चल रहा था और उतनी ही वह उसमे डूबती जा रही थी. अंकिता ने भी अपने आपको कभी रोका नही, या यूँ कहिए खुद को रोकने से खुद को उसके प्यार मे पूरी तरफ डूबने मे ही उसे आनंद मिल रहा हो. लेकिन प्यार के इज़हार के बड़े मे वह बहुत फूँक फूँक कर अपने कदम आगे बढ़ा रही थी. उसके पास बहाना था की उसने अब तक उसे आमने सामने देखा नही था. वैसे उसके प्रेम का अहसास उसे नही था ऐसे नही. लेकिन संतोष भी प्यार के इज़हार के बड़े मे शायद उतना ही खबरदारी बारात रहा था. शायद उसने भी उसे अब तक आपने सामने ना देखने के कारण. वह मिलने के बाद मुकर तो नही जाएगा? इसके बड़े मे वह एकदम बेफ़िकरा थी, क्यों के विश्वामित्रा को भी ललचे ऐसा उसका सौंदर्या था.
प्यार और जुर्म – 6