वासना का नशा - hindi indian sex story long - -
Re: वासना का नशा - hindi indian sex story long - -
उनकी आशा के विपरीत उन्हें कमली के चेहरे पर कोई ख़ुशी या सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखी. वे समझ गए कि इतने से बात नहीं बनेगी. वे आगे बोले, “बल्कि मैं तो सोचता हूँ कि यह भी कम हैं. अगर बीस-पच्चीस हज़ार …”
कमली उनकी बात को काटते हुए बोली, “बाबूजी, मैंने न तो इतने रुपये देखे हैं और न ही मैं जानती हूं कि इतने रुपयों से क्या-क्या हो सकता है. ये बातें मेरा मरद ही समझ सकता है. आप कहें तो मैं उसे पूछ कर आपको जवाब दे दूं.”
कमली न तो खुश दिख रही थी और न दुखी. अखिल को लग रहा था कि उनका दाव बेकार गया. फिर उन्होंने सोचा कि शायद कमली के घर में इतने बड़े फैसले करने का अधिकार उसके मर्द को ही होगा. उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम उसे पूछ लो.”
कमली चली गई.
***********************************************************************************************************
शर्मिला जब घर वापस आयीं तो उन्हें कमली नहीं दिखी. उन्होंने बेताबी से अखिल से पूछा, “क्या हुआ? वो मान गई?”
“नहीं,” अखिल ने सर झुकाए हुए कहा.
“नहीं!” शर्मिला ने आश्चर्य से कहा. “तुमने कितने तक की बात की? कहीं कंजूसी तो नहीं दिखाई?”
“तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” अखिल ने कहा. “मैंने बीस-पच्चीस हज़ार तक की बात की थी.”
“फिर?”
“उसने कहा कि वो यह सब नहीं समझती,” अखिल ने उत्तर दिया. “वो अपने पति से बात कर के जवाब देगी.”
“कब?”
“उसने यह नहीं बताया.”
“उसने रुपयों के अलावा किसी और चीज़ की बात तो नहीं की?” शर्मिला ने पूछा.
“नहीं.”
“लगता है बात बन जायेगी,” शर्मिला थोड़ी आश्वस्त हुईं. “लेकिन हो सकता है कि उसका पति तेज-तर्रार हो और इतने में भी न माने. सुनो, जरूरी लगे तो तुम चालीस-पचास तक भी चले जाना!”
“चालीस-पचास हज़ार!” अखिल ने विस्मय से कहा. “कहाँ से लायेंगे हम इतने रुपये?”
“तुम चिंता मत करो,” शर्मिला ने कहा. “मैंने कहा था न कि जरूरत हुई तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी. भगवान सब ठीक करेंगे. मैं तो मंदिर में प्रसाद भी बोल कर आई हूं.”
शाम को पति-पत्नी दोनों अपने-अपने खयालों में खोये थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. शर्मिला ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी.
“नमस्ते बीवीजी, बाबूजी हैं?” उसने शर्मिला से पूछा.
“हां, तुम रुको. मैं उन्हें भेजती हूँ.”
शर्मिला उसे ड्राइंग-रूम में छोड़ कर अन्दर गई तो अखिल ने बेचैनी से पूछा, “कौन था?”
“कमली है,” शर्मिला ने कहा. “ड्राइंग रूम में आप का इंतजार कर रही है.”
“इतनी जल्दी आ गई,” अखिल ने उत्तर दिया. वे डर रहे थे कि अब क्या होगा! जिस घड़ी को वे टालना चाहते थे वो आ गई थी.
शर्मिला ने कहा, “जाओ और होशियारी से बात करना.”
अखिल ड्राइंग रूम में पहुंचे तो कमली खड़ी हुई थी. उन्होंने बैठते हुए कहा, “तुम खड़ी क्यों हो?”
कमली उनके सामने फर्श पर बैठने लगी तो उन्होंने उसे सोफे पर बैठने को कहा. पर कमली ने नीचे बैठ कर कहा, “मैं यहीं ठीक हूं, बाबूजी. आप जैसे बड़े लोगों के बराबर बैठने की हिम्मत मुझ में कहाँ!”
अखिल समझ गए कि उन्होंने जितना सोचा था कमली उससे कहीं ज्यादा चालाक है. कुछ दिन पहले उनके नीचे और ऊपर लेटने वाली औरत आज कह रही है कि वो उनके बराबर बैठने के लायक नहीं है! उन्हें वास्तव में होशियारी से बात करनी पड़ेगी.
उन्होंने झिझकते हुए पूछा, “कुछ बताया तुम्हारे पति ने?”
कमली ने कहा, “हां बाबूजी, उसने कहा कि हमारे बड़े भाग हैं कि बाबूजी ने तुम्हे अपनी सेवा करने का मौका दिया. उसने कहा कि बड़े लोगों की सेवा करने का फ़ल भी बड़ा मिलता है. इसलिए अब हमारे भी दिन फिरने वाले हैं.”
अखिल को लगा कि कमली की तरह यह आदमी भी बहुत चालाक है. उन्होंने सावधानी से पासा फेंका, “हां, मैं सोच रहा था कि इस महंगाई के ज़माने में बीस-पच्चीस हज़ार रुपये से भी क्या होता है!”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही कमली ने कहा, “सच है, बाबूजी. मेरा मरद भी यही कहता है. आजकल बीस-पच्चीस हज़ार से कुछ नहीं होता! कोई सरकार हम गरीबों के बारे में नहीं सोचती. यह तो भगवान की कृपा है कि आप जैसे दयालु लोग हम गरीबों की फ़िक्र करते हैं.”
अखिल समझ गए थे कि उनका पाला एक पहुंचे हुए इन्सान से पड़ा है. अब बीस-पच्चीस हज़ार से काफी आगे जाना पड़ेगा. उन्होंने सोचा कि आगे बढ़ने से पहले उन्हें कमली की थाह लेने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने सतर्कता से कहा, “तो तुमने भी कुछ तो सोचा होगा. मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं पर जितना हो सकता है उतना करने की कोशिश करूंगा.”
“बाबूजी, अब आपसे क्या छिपाना,” कमली ने अपनी आवाज नीची कर के अपनी बात आगे बढाई. “सच तो यह है कि मेरे मरद के मन में लालच आ गया था. हमारे मुहल्ले में एक आदमी है जो हर तरह के उलटे-सीधे धंधे करता है – चरस, गांजा, स्मैक, गन्दी फिलमें – वो सब कुछ खरीदता और बेचता है. मेरा मरद उसके पास पहुँच गया. उसने उस आदमी से कहा कि मेरे एक दोस्त के पास एक शरीफ और घरेलू किस्म के मरद-औरत की गन्दी फिलम है. वो कितने में बिक सकती है? उस आदमी ने कहा कि आजकल कोई नैट नाम का बाज़ार बना है जहाँ ऐसी चार-पांच मिनट की फिल्म के भी एक लाख रुपये तक मिल सकते हैं. सुना आपने, बाबूजी? एक छोटी सी फिलम के एक लाख रुपये!”
कमली उनकी बात को काटते हुए बोली, “बाबूजी, मैंने न तो इतने रुपये देखे हैं और न ही मैं जानती हूं कि इतने रुपयों से क्या-क्या हो सकता है. ये बातें मेरा मरद ही समझ सकता है. आप कहें तो मैं उसे पूछ कर आपको जवाब दे दूं.”
कमली न तो खुश दिख रही थी और न दुखी. अखिल को लग रहा था कि उनका दाव बेकार गया. फिर उन्होंने सोचा कि शायद कमली के घर में इतने बड़े फैसले करने का अधिकार उसके मर्द को ही होगा. उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम उसे पूछ लो.”
कमली चली गई.
***********************************************************************************************************
शर्मिला जब घर वापस आयीं तो उन्हें कमली नहीं दिखी. उन्होंने बेताबी से अखिल से पूछा, “क्या हुआ? वो मान गई?”
“नहीं,” अखिल ने सर झुकाए हुए कहा.
“नहीं!” शर्मिला ने आश्चर्य से कहा. “तुमने कितने तक की बात की? कहीं कंजूसी तो नहीं दिखाई?”
“तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” अखिल ने कहा. “मैंने बीस-पच्चीस हज़ार तक की बात की थी.”
“फिर?”
“उसने कहा कि वो यह सब नहीं समझती,” अखिल ने उत्तर दिया. “वो अपने पति से बात कर के जवाब देगी.”
“कब?”
“उसने यह नहीं बताया.”
“उसने रुपयों के अलावा किसी और चीज़ की बात तो नहीं की?” शर्मिला ने पूछा.
“नहीं.”
“लगता है बात बन जायेगी,” शर्मिला थोड़ी आश्वस्त हुईं. “लेकिन हो सकता है कि उसका पति तेज-तर्रार हो और इतने में भी न माने. सुनो, जरूरी लगे तो तुम चालीस-पचास तक भी चले जाना!”
“चालीस-पचास हज़ार!” अखिल ने विस्मय से कहा. “कहाँ से लायेंगे हम इतने रुपये?”
“तुम चिंता मत करो,” शर्मिला ने कहा. “मैंने कहा था न कि जरूरत हुई तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी. भगवान सब ठीक करेंगे. मैं तो मंदिर में प्रसाद भी बोल कर आई हूं.”
शाम को पति-पत्नी दोनों अपने-अपने खयालों में खोये थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. शर्मिला ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी.
“नमस्ते बीवीजी, बाबूजी हैं?” उसने शर्मिला से पूछा.
“हां, तुम रुको. मैं उन्हें भेजती हूँ.”
शर्मिला उसे ड्राइंग-रूम में छोड़ कर अन्दर गई तो अखिल ने बेचैनी से पूछा, “कौन था?”
“कमली है,” शर्मिला ने कहा. “ड्राइंग रूम में आप का इंतजार कर रही है.”
“इतनी जल्दी आ गई,” अखिल ने उत्तर दिया. वे डर रहे थे कि अब क्या होगा! जिस घड़ी को वे टालना चाहते थे वो आ गई थी.
शर्मिला ने कहा, “जाओ और होशियारी से बात करना.”
अखिल ड्राइंग रूम में पहुंचे तो कमली खड़ी हुई थी. उन्होंने बैठते हुए कहा, “तुम खड़ी क्यों हो?”
कमली उनके सामने फर्श पर बैठने लगी तो उन्होंने उसे सोफे पर बैठने को कहा. पर कमली ने नीचे बैठ कर कहा, “मैं यहीं ठीक हूं, बाबूजी. आप जैसे बड़े लोगों के बराबर बैठने की हिम्मत मुझ में कहाँ!”
अखिल समझ गए कि उन्होंने जितना सोचा था कमली उससे कहीं ज्यादा चालाक है. कुछ दिन पहले उनके नीचे और ऊपर लेटने वाली औरत आज कह रही है कि वो उनके बराबर बैठने के लायक नहीं है! उन्हें वास्तव में होशियारी से बात करनी पड़ेगी.
उन्होंने झिझकते हुए पूछा, “कुछ बताया तुम्हारे पति ने?”
कमली ने कहा, “हां बाबूजी, उसने कहा कि हमारे बड़े भाग हैं कि बाबूजी ने तुम्हे अपनी सेवा करने का मौका दिया. उसने कहा कि बड़े लोगों की सेवा करने का फ़ल भी बड़ा मिलता है. इसलिए अब हमारे भी दिन फिरने वाले हैं.”
अखिल को लगा कि कमली की तरह यह आदमी भी बहुत चालाक है. उन्होंने सावधानी से पासा फेंका, “हां, मैं सोच रहा था कि इस महंगाई के ज़माने में बीस-पच्चीस हज़ार रुपये से भी क्या होता है!”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही कमली ने कहा, “सच है, बाबूजी. मेरा मरद भी यही कहता है. आजकल बीस-पच्चीस हज़ार से कुछ नहीं होता! कोई सरकार हम गरीबों के बारे में नहीं सोचती. यह तो भगवान की कृपा है कि आप जैसे दयालु लोग हम गरीबों की फ़िक्र करते हैं.”
अखिल समझ गए थे कि उनका पाला एक पहुंचे हुए इन्सान से पड़ा है. अब बीस-पच्चीस हज़ार से काफी आगे जाना पड़ेगा. उन्होंने सोचा कि आगे बढ़ने से पहले उन्हें कमली की थाह लेने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने सतर्कता से कहा, “तो तुमने भी कुछ तो सोचा होगा. मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं पर जितना हो सकता है उतना करने की कोशिश करूंगा.”
“बाबूजी, अब आपसे क्या छिपाना,” कमली ने अपनी आवाज नीची कर के अपनी बात आगे बढाई. “सच तो यह है कि मेरे मरद के मन में लालच आ गया था. हमारे मुहल्ले में एक आदमी है जो हर तरह के उलटे-सीधे धंधे करता है – चरस, गांजा, स्मैक, गन्दी फिलमें – वो सब कुछ खरीदता और बेचता है. मेरा मरद उसके पास पहुँच गया. उसने उस आदमी से कहा कि मेरे एक दोस्त के पास एक शरीफ और घरेलू किस्म के मरद-औरत की गन्दी फिलम है. वो कितने में बिक सकती है? उस आदमी ने कहा कि आजकल कोई नैट नाम का बाज़ार बना है जहाँ ऐसी चार-पांच मिनट की फिल्म के भी एक लाख रुपये तक मिल सकते हैं. सुना आपने, बाबूजी? एक छोटी सी फिलम के एक लाख रुपये!”
Re: वासना का नशा - hindi indian sex story long - -
अब अखिल की बोलती बंद हो गई. वे चालीस-पचास हज़ार रुपये भी मुश्किल से जुटा पाते लेकिन यहां तो बात एक लाख की हो रही थी. उन्हें लगा कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अब कुछ नहीं हो सकता. लेकिन फिर उन्हें याद आया कि अभी कमली ने यह नहीं कहा था कि उसके पति ने फिल्म बेच दी. शायद कोई रास्ता निकल आये! उन्होंने डरी हुई आवाज में कहा, “फिर तुम्हारे मरद ने क्या किया?”
“एक लाख की बात सुन कर उसके मुंह में पानी आ गया पर फिर कुछ सोच कर उसने वो फिलम न बेचना ही ठीक समझा. वापस आ कर उसने मुझे सारा किस्सा सुनाया और कहा ‘कमली, रुपये तो हाथ का मैल है. किस्मत में लिखे हैं तो कभी न कभी जरूर आयेंगे. पर तेरी मालकिन जैसी एक नम्बर की मेम दुबारा नहीं मिलेगी. मैं कितना ही मुंह मार लूं पर मुझे औरत मिलेगी तो तेरे दर्जे की ही. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेमसाहब जैसा टनाटन माल मेरी किस्मत में हो सकता है! अब किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई है तो मैं ये मौका क्यों छोडूं? तू तो बस एक दिन के लिए मेमसाहब को मुझे दिला दे.’ सुना आपने, बाबूजी? उस मूरख ने बीवीजी के लिए एक लाख रुपये छोड़ दिए!”
यह सुन कर अखिल स्तब्ध रह गये. यही हाल शर्मिला का था जो परदे के पीछे खडी सब सुन रही थीं. दोनों सन्न थे. दोनों के समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. शर्मिला किसी तरह दीवार का सहारा ले कर खड़ी रह पायीं. अखिल गुमसुम से खिड़की की तरफ देख रहे थे. तभी कमली ने सन्नाटा तोडा, “क्या हुआ, बाबूजी? आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है. … गर्मी भी तो इतनी ज्यादा है. मैं आपके लिए पानी लाती हूँ.”
शर्मिला ने चौंक कर खुद को संभाला. उन्हें डर था कि कहीं कमली अन्दर आ कर उनका हाल न देख ले. तभी उन्हें अखिल की आवाज सुनाई दी, “नहीं नहीं, … मैं ठीक हो जाऊंगा.”
“अन्दर से बीवीजी को बुलाऊं?” कमली ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा. उसकी बात सुन कर शर्मिला तेज़ी से बेडरूम में चली गयीं.
अखिल ने कहा, “नहीं, कोई जरूरत नहीं है. मुझे अब थोडा ठीक लग रहा है.”
“पर फिर भी आपको उनसे बात तो करनी होगी न!” कमली उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी.
“बात? … हां, मैं बात करूंगा. … कमली, क्या तुम अभी जा सकती हो? कल तक के लिए?”
“ठीक है बाबूजी, इतने दिन बीत गए तो एक दिन और सही! मैं चलती हूँ.” कमली उठ कर दरवाजे की ओर चल दी. बाहर निकलने से पहले उसने कहा, “जो भी तय हो वो आप कल मुझे बता देना.”
उसके जाने के बाद अखिल किंकर्तव्यविमूढ से बैठे रहे. वे जानते थे कि अब कमली के पति की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था. पर उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे यह बात शर्मिला को कैसे बताएं. … शर्मिला को भी भान हो गया था कि कमली जा चुकी थी. उन्हें यह भी ज्ञात हो गया था कि पति की इज्ज़त और जान बचाने के लिए उन्हें उस घटिया आदमी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी. वे जानती थीं कि अखिल के लिए उनसे यह बात कहना कितना कठिन होगा. उन्होंने अपना जी कड़ा किया और ड्राइंग रूम में पहुँच गयीं. उन्होंने देखा कि अखिल की सर उठाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी.
शर्मिला ने उनके कंधे पर हाथ रख कर दृढता से कहा, “तुम चिंता छोडो. मैं कर लूंगी.”
“कर लोगी?” अखिल ने आश्चर्य से कहा. “… क्या कर लोगी?”
“वही जो कमली की शर्त है और जो उसका पति चाहता है,” शर्मिला ने कहा.
यह सुन कर अखिल को अपनी पत्नी की इज्ज़त लुटने का दुःख कम और अपना पिंड छूटने की ख़ुशी ज्यादा हुई. उन्हें पता था कि वो फिल्म इन्टरनेट पर आ जाये तो वे किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे. पर उन्होंने अपने चेहरे पर संताप और ग्लानि की मुद्रा लाते हुए कहा, “मैं कितना मूर्ख हूं! मैंने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मूर्खता की कीमत तुम्हे चुकानी पड़ेगी. अगर मैं अपनी जान दे कर…”
“मैंने कहा था न कि तुम ऐसी बात सोचना भी नहीं,” शर्मिला ने उनकी बात काटते हुए कहा. “सब ठीक हो जाएगा. … मुझे तो बस एक ही बात का डर है.”
अखिल ने थोड़े शंकित हो कर पूछा, “डर? … कैसा डर?”
“यही कि इसके बाद मैं तुम्हारी नज़रों में गिर न जाऊं!” शर्मिला ने कहा. “कहीं तुम मुझे अपवित्र न समझने लगो!”
यह सुन कर अखिल की चिंता दूर हो गई. उन्होंने शर्मिला को गले लगा कर कहा, “कैसी बात करती हो तुम! इस त्याग के बाद तो तुम मेरी नज़रों इतनी ऊपर उठ जाओगी कि तुम्हारे सामने मैं बौना लगने लगूंगा.”
“एक लाख की बात सुन कर उसके मुंह में पानी आ गया पर फिर कुछ सोच कर उसने वो फिलम न बेचना ही ठीक समझा. वापस आ कर उसने मुझे सारा किस्सा सुनाया और कहा ‘कमली, रुपये तो हाथ का मैल है. किस्मत में लिखे हैं तो कभी न कभी जरूर आयेंगे. पर तेरी मालकिन जैसी एक नम्बर की मेम दुबारा नहीं मिलेगी. मैं कितना ही मुंह मार लूं पर मुझे औरत मिलेगी तो तेरे दर्जे की ही. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेमसाहब जैसा टनाटन माल मेरी किस्मत में हो सकता है! अब किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई है तो मैं ये मौका क्यों छोडूं? तू तो बस एक दिन के लिए मेमसाहब को मुझे दिला दे.’ सुना आपने, बाबूजी? उस मूरख ने बीवीजी के लिए एक लाख रुपये छोड़ दिए!”
यह सुन कर अखिल स्तब्ध रह गये. यही हाल शर्मिला का था जो परदे के पीछे खडी सब सुन रही थीं. दोनों सन्न थे. दोनों के समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. शर्मिला किसी तरह दीवार का सहारा ले कर खड़ी रह पायीं. अखिल गुमसुम से खिड़की की तरफ देख रहे थे. तभी कमली ने सन्नाटा तोडा, “क्या हुआ, बाबूजी? आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है. … गर्मी भी तो इतनी ज्यादा है. मैं आपके लिए पानी लाती हूँ.”
शर्मिला ने चौंक कर खुद को संभाला. उन्हें डर था कि कहीं कमली अन्दर आ कर उनका हाल न देख ले. तभी उन्हें अखिल की आवाज सुनाई दी, “नहीं नहीं, … मैं ठीक हो जाऊंगा.”
“अन्दर से बीवीजी को बुलाऊं?” कमली ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा. उसकी बात सुन कर शर्मिला तेज़ी से बेडरूम में चली गयीं.
अखिल ने कहा, “नहीं, कोई जरूरत नहीं है. मुझे अब थोडा ठीक लग रहा है.”
“पर फिर भी आपको उनसे बात तो करनी होगी न!” कमली उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी.
“बात? … हां, मैं बात करूंगा. … कमली, क्या तुम अभी जा सकती हो? कल तक के लिए?”
“ठीक है बाबूजी, इतने दिन बीत गए तो एक दिन और सही! मैं चलती हूँ.” कमली उठ कर दरवाजे की ओर चल दी. बाहर निकलने से पहले उसने कहा, “जो भी तय हो वो आप कल मुझे बता देना.”
उसके जाने के बाद अखिल किंकर्तव्यविमूढ से बैठे रहे. वे जानते थे कि अब कमली के पति की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था. पर उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे यह बात शर्मिला को कैसे बताएं. … शर्मिला को भी भान हो गया था कि कमली जा चुकी थी. उन्हें यह भी ज्ञात हो गया था कि पति की इज्ज़त और जान बचाने के लिए उन्हें उस घटिया आदमी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी. वे जानती थीं कि अखिल के लिए उनसे यह बात कहना कितना कठिन होगा. उन्होंने अपना जी कड़ा किया और ड्राइंग रूम में पहुँच गयीं. उन्होंने देखा कि अखिल की सर उठाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी.
शर्मिला ने उनके कंधे पर हाथ रख कर दृढता से कहा, “तुम चिंता छोडो. मैं कर लूंगी.”
“कर लोगी?” अखिल ने आश्चर्य से कहा. “… क्या कर लोगी?”
“वही जो कमली की शर्त है और जो उसका पति चाहता है,” शर्मिला ने कहा.
यह सुन कर अखिल को अपनी पत्नी की इज्ज़त लुटने का दुःख कम और अपना पिंड छूटने की ख़ुशी ज्यादा हुई. उन्हें पता था कि वो फिल्म इन्टरनेट पर आ जाये तो वे किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे. पर उन्होंने अपने चेहरे पर संताप और ग्लानि की मुद्रा लाते हुए कहा, “मैं कितना मूर्ख हूं! मैंने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मूर्खता की कीमत तुम्हे चुकानी पड़ेगी. अगर मैं अपनी जान दे कर…”
“मैंने कहा था न कि तुम ऐसी बात सोचना भी नहीं,” शर्मिला ने उनकी बात काटते हुए कहा. “सब ठीक हो जाएगा. … मुझे तो बस एक ही बात का डर है.”
अखिल ने थोड़े शंकित हो कर पूछा, “डर? … कैसा डर?”
“यही कि इसके बाद मैं तुम्हारी नज़रों में गिर न जाऊं!” शर्मिला ने कहा. “कहीं तुम मुझे अपवित्र न समझने लगो!”
यह सुन कर अखिल की चिंता दूर हो गई. उन्होंने शर्मिला को गले लगा कर कहा, “कैसी बात करती हो तुम! इस त्याग के बाद तो तुम मेरी नज़रों इतनी ऊपर उठ जाओगी कि तुम्हारे सामने मैं बौना लगने लगूंगा.”
Re: वासना का नशा - hindi indian sex story long - -
अब यह तय हो गया था कि शर्मिला को क्या करना था. दोनों कुछ हद तक सामान्य हो गए थे. अब अगला सवाल था कि यह काम कहाँ, कब और कैसे हो? कमली का पति कालू (उसका नाम कालीचरण था पर सब उसे कालू ही कहते थे) एक-दो बार इनके घर आया था, यह बताने के लिए कि कमली आज काम पर नहीं आ सकेगी. दोनों को याद था कि वो एक मजबूत कद-काठी वाला पर काला-कलूटा और उजड्ड टाइप का आदमी था. उसकी सूरत कुछ कांइयां किस्म की थी. उसका ज्यादा देर घर के अन्दर रुकना पड़ोसियों के मन में शंका पैदा कर सकता था क्योंकि वो किसी को भी उनका रिश्तेदार या दोस्त नहीं लगता.
दूसरा रास्ता था कि शर्मिला उनके घर जाये. पर इसमें भी जोखिम था. उस मोहल्ले में शर्मिला का कमली के घर एक-दो घन्टे रुकना भी शक पैदा कर सकता था. काफी सोच-विचार के बाद उन्हें लगा कि यदि शर्मिला रात के अँधेरे में वहां जाएँ और भोर होते ही वापस आ जाएँ तो किसी के द्वारा उन्हें देखे जाने की संभावना बहुत कम हो जायेगी. साथ ही वे साधारण कपडे पहनें और थोडा सा घूंघट निकाल लें तो वे कमली और कालू की रिश्तेदार लगेंगी. यह भी तय हुआ कि रात होने के बाद शर्मिला एक निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जायेंगी और वहां से कमली उन्हें ले जायेगी. अगली सुबह तडके कमली उन्हें वापस पंहुचा देगी. अखिल ने कमली से एक दिन का समय मांगा था इसलिए यह काम अगली रात को करना तय हुआ.
खाना खाने के बाद पति-पत्नी सोने के लिए चले गए पर नींद उनकी आँखों से कोसों दूर थी. शर्मिला की आँखों के सामने बार-बार कालू का चेहरा घूम रहा था. उन्हें याद था कि वो जब-जब यहाँ आया, उन्हें लम्पट दृष्टि से देखता था. उन्हें ऐसा लगता था जैसे वो अपनी आँखों से उन्हें निर्वस्त्र करने की कोशिश कर रहा हो. उन्हें यह सोच कर झुरझुरी हो रही थी कि कहीं उसने वास्तव में उन्हें नग्न कर दिया तो उन्हें कैसा लगेगा! उसकी बोलचाल भी गंवार किस्म की थी. न जाने वो उनके साथ कैसे पेश आएगा! शर्मिला को उससे अखिल जैसे सभ्य व्यवहार की आशा नहीं थी. और वो बिस्तर पर उनके साथ जो करेगा … उसकी तो वे कल्पना भी नहीं करना चाहती थीं.
उधर अखिल का भी यही हाल था. शुरू में तो उन्हें भय और तनाव से मुक्त होने की ख़ुशी हुई थी पर बाद में उनका मन न जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगा. उन्हें लग रहा था कि उनका कमली को भोगना तो एक सामान्य बात थी पर कालू जैसा आदमी उनकी पत्नी को भोगे … यह सोच कर उन्हें वितृष्णा हो रही थी. फिर उन्हें महसूस हुआ कि कालू ही क्यों, किसी भी पर-पुरुष को अपनी पत्नी सौंपनी पड़े तो उन्हें इतना ही बुरा लगेगा. उन्हें यह सर्वमान्य पुरुष स्वभाव लगा कि अपनी पत्नी को दूसरों से बचा कर रखो पर दूसरों की पत्नी मिल जाए तो बेझिझक उसका उपभोग करो. … फिर अखिल के मन में विचार आया कि कालू भी तो यही कर रहा है. दूसरे की पत्नी मिल सकती है तो वो उसे क्यों छोड़ेगा. … पर वे वे हैं और कालू कालू!
एक और डर अखिल को सताने लगा. कालू कहीं शर्मिला को शारीरिक नुकसान न पहुंचा दे! वो ठहरा एक हट्टा-कट्टा कड़ियल मर्द जबकि शर्मिला एक कोमलान्गी नारी थीं. उन दोनों में कोई समानता न थी. शारीरिक समानता तो दूर, उनके मानसिक स्तर में भी जमीन आसमान का फर्क था. शर्मिला एक सुसंस्कृत और संभ्रांत स्त्री थीं. रतिक्रिया के समय पर भी उनका व्यवहार शालीन और सभ्य रहता था. जबकि कालू से सभ्य आचरण की अपेक्षा करना ही निरर्थक था. अखिल कमली का यौनाचरण देख चुके थे. कहीं कालू ने भी शर्मिला के साथ वैसा ही व्यवहार किया तो?
अपने-अपने विचारों में डूबते-तरते पता नहीं कब वे दोनों निद्रा की गोद में चले गए.
अगली रात को –
शर्मिला एक पूर्व-निर्धारित स्थान पर पहुँच गयीं जो उनके घर से थोड़ी ही दूर था. कमली वहां उनका इंतजार कर रही थी. जब वे दोनों कमली के घर की ओर चल पडीं तो रास्ते में कमली ने शर्मिला को कहा, “बीवीजी, मैने अपने एक-दो पड़ोसियों को बताया है कि रात को मेरी भाभी इस शहर से गुज़र रही है. वो हम लोगों से मिलने कुछ घंटों के लिये हमारे घर आएगी. उसे जल्दी ही वापस जाना है इसलिए वो अपना सामान स्टेशन पर जमा करवा के आयेगी. अब आप बेफिक्र हो जाइये. किसी को कोई शक नहीं होगा. कल सुबह आप सही-सलामत अपने घर पहुँच जायेंगी और मेरे मरद की इच्छा भी पूरी हो जाएगी.”
दूसरा रास्ता था कि शर्मिला उनके घर जाये. पर इसमें भी जोखिम था. उस मोहल्ले में शर्मिला का कमली के घर एक-दो घन्टे रुकना भी शक पैदा कर सकता था. काफी सोच-विचार के बाद उन्हें लगा कि यदि शर्मिला रात के अँधेरे में वहां जाएँ और भोर होते ही वापस आ जाएँ तो किसी के द्वारा उन्हें देखे जाने की संभावना बहुत कम हो जायेगी. साथ ही वे साधारण कपडे पहनें और थोडा सा घूंघट निकाल लें तो वे कमली और कालू की रिश्तेदार लगेंगी. यह भी तय हुआ कि रात होने के बाद शर्मिला एक निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जायेंगी और वहां से कमली उन्हें ले जायेगी. अगली सुबह तडके कमली उन्हें वापस पंहुचा देगी. अखिल ने कमली से एक दिन का समय मांगा था इसलिए यह काम अगली रात को करना तय हुआ.
खाना खाने के बाद पति-पत्नी सोने के लिए चले गए पर नींद उनकी आँखों से कोसों दूर थी. शर्मिला की आँखों के सामने बार-बार कालू का चेहरा घूम रहा था. उन्हें याद था कि वो जब-जब यहाँ आया, उन्हें लम्पट दृष्टि से देखता था. उन्हें ऐसा लगता था जैसे वो अपनी आँखों से उन्हें निर्वस्त्र करने की कोशिश कर रहा हो. उन्हें यह सोच कर झुरझुरी हो रही थी कि कहीं उसने वास्तव में उन्हें नग्न कर दिया तो उन्हें कैसा लगेगा! उसकी बोलचाल भी गंवार किस्म की थी. न जाने वो उनके साथ कैसे पेश आएगा! शर्मिला को उससे अखिल जैसे सभ्य व्यवहार की आशा नहीं थी. और वो बिस्तर पर उनके साथ जो करेगा … उसकी तो वे कल्पना भी नहीं करना चाहती थीं.
उधर अखिल का भी यही हाल था. शुरू में तो उन्हें भय और तनाव से मुक्त होने की ख़ुशी हुई थी पर बाद में उनका मन न जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगा. उन्हें लग रहा था कि उनका कमली को भोगना तो एक सामान्य बात थी पर कालू जैसा आदमी उनकी पत्नी को भोगे … यह सोच कर उन्हें वितृष्णा हो रही थी. फिर उन्हें महसूस हुआ कि कालू ही क्यों, किसी भी पर-पुरुष को अपनी पत्नी सौंपनी पड़े तो उन्हें इतना ही बुरा लगेगा. उन्हें यह सर्वमान्य पुरुष स्वभाव लगा कि अपनी पत्नी को दूसरों से बचा कर रखो पर दूसरों की पत्नी मिल जाए तो बेझिझक उसका उपभोग करो. … फिर अखिल के मन में विचार आया कि कालू भी तो यही कर रहा है. दूसरे की पत्नी मिल सकती है तो वो उसे क्यों छोड़ेगा. … पर वे वे हैं और कालू कालू!
एक और डर अखिल को सताने लगा. कालू कहीं शर्मिला को शारीरिक नुकसान न पहुंचा दे! वो ठहरा एक हट्टा-कट्टा कड़ियल मर्द जबकि शर्मिला एक कोमलान्गी नारी थीं. उन दोनों में कोई समानता न थी. शारीरिक समानता तो दूर, उनके मानसिक स्तर में भी जमीन आसमान का फर्क था. शर्मिला एक सुसंस्कृत और संभ्रांत स्त्री थीं. रतिक्रिया के समय पर भी उनका व्यवहार शालीन और सभ्य रहता था. जबकि कालू से सभ्य आचरण की अपेक्षा करना ही निरर्थक था. अखिल कमली का यौनाचरण देख चुके थे. कहीं कालू ने भी शर्मिला के साथ वैसा ही व्यवहार किया तो?
अपने-अपने विचारों में डूबते-तरते पता नहीं कब वे दोनों निद्रा की गोद में चले गए.
अगली रात को –
शर्मिला एक पूर्व-निर्धारित स्थान पर पहुँच गयीं जो उनके घर से थोड़ी ही दूर था. कमली वहां उनका इंतजार कर रही थी. जब वे दोनों कमली के घर की ओर चल पडीं तो रास्ते में कमली ने शर्मिला को कहा, “बीवीजी, मैने अपने एक-दो पड़ोसियों को बताया है कि रात को मेरी भाभी इस शहर से गुज़र रही है. वो हम लोगों से मिलने कुछ घंटों के लिये हमारे घर आएगी. उसे जल्दी ही वापस जाना है इसलिए वो अपना सामान स्टेशन पर जमा करवा के आयेगी. अब आप बेफिक्र हो जाइये. किसी को कोई शक नहीं होगा. कल सुबह आप सही-सलामत अपने घर पहुँच जायेंगी और मेरे मरद की इच्छा भी पूरी हो जाएगी.”