रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

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raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 22 Oct 2014 08:07


“ हम तो आपके मार मे भी आपका प्यार ढूँढते हैं. इन नाज़ुक कलाईयो को इतना कष्ट क्यों दोगि. मैं ही चुप हो जाता हूँ. देखेंगे आपके गुरुजी को. ऐसी क्या ख़ासियत है उनमे की एक मुलाकात मे ही मेरी बीवी पातिदेव का नाम भूल कर गुरुजी गुरुजी जपने लगी.”

मैं उन्हे मारने के लिए दौड़ी और वो मुझे चिढ़ाते हुए टेबल के चारों ओर घूमने लगे. गनीमत है कि सासूजी बच्चे को सुलाने मे व्यस्त थी. नही तो उनके सवालों के जवाब भी मुझे ढूँढने पड़ते.


बात यहीं आई-गयी हो गयी. वापस आने के कई दिनो बाद तक भी मेरी चूत मे सिहरन होती रही. मेरे दोनो स्तन दुख़्ते रहे और चल मे लड़खड़ाहट रही. मुझे तो ऐसा लगता था मानो मेरे पैर ज़मीन पर ही नही पड़ रहे हों. दोनो ब्रेस्ट की तो बुरी हालत थी. इतने बुरी तरह मसले गये थे कि कई दिनो तक ब्रा पहनने मे दिक्कत होती रही. किसी फोड़े की तरह मेरे दोनो निपल्स दुख़्ते रहे. जब बच्चा ब्रेस्ट फीडिंग के लिए मचलता तो मैं बॉटल तैयार कर देती मगर उसके होंठों को अपने निपल्स छ्छूने नही देती. अकेले मे कभी कभी गुरुजी को याद कर अपने निपल्स छेड़ती तो कभी अपनी योनि को सहलाती. इससे मेरा बदन और गरम हो जाता. जब जीवन बिस्तर पर आते तो मैं लगभग उन्हे नोच डालती. जीवन भी मेरे स्वाभाव मे एक दम से पैदा हुए इस कामुकता पर चकित थे. उन्हे समझ मे नही आता था कि उनकी बीवी सेक्स के मामले मे इतनी उग्र कैसे हो गयी है.



मेरा इंटरव्यू जब पेपर मे छपा तो खूब तारीफे हुईं. मेरे इंटरव्यू को पढ़ कर हरीश भी बहुत खुश हुआ. ये पहली बार था जो किसीने उनका इतना अंतराग इंटरव्यू लिया था. लेकिन मैं ही जानती थी वो इंटरव्यू कितना अंतरंग था. मैने वीक्ली कॉलम मे
उनके बारे मे बहुत शानदार लेख लिखा. अगले मंडे ही स्वामीजी ने मुझे कॉल आया.

" रश्मि, तुम्हारा इंटरव्यू पेपर मे पढ़ा. तुम बहुत अच्च्छा लिखती हो. रश मुझे ज़मीन पर ही रहने दो. इतना ऊपर मत चढ़ाओ. तुमने तो मुझे इतना बढ़ा चढ़ा कर बताया की मुझे खुद संकोच होने लगा." उनकी आवाज़ सुनते ही मेरे पूरे बदन मे सिहरन सी दौड़ने लगी.

"स्वामी जी……आप खुश हैं ना?” मैं एक दम से उदास हो गयी,” मैं प्यासी हूँ गुरुजी…..मेरा अंग अंग आपसे मिलने के लिए फदक रहा है. दोबारा मुझे कब बुला रहे हो? रातों को नींद नही आती.बस मैं बिस्तर पर लेट कर च्चटपटती रहती हूँ. आपने ये कैसा नशा लगाया है मुझे कि अब मेरे पति भी मुझे शांत नही कर पाते हैं. बेचारे कोशिश मे तक कर सो जाते हैं."

"मेरे आश्रम के द्वार तुम्हारे लिए हर समय खुले रहते हैं रश. और
तुम्हारे लिए तो मेरे बेडरूम का द्वार भी खुले ही रहते है. काफ़ी दिनो से तुम्हारी राह देख रहा था. आज अपने आप को नही समहाल सका और तुम्हे फोन कर ही दिया. किसी को बताना नही कि त्रिलोकी जिसके दर्शन के लिए महिलाएँ तरसती हैं खुद आगे बढ़ कर तुम्हे फोन किया है. तुममे कुच्छ ख़ास है जो मैने आज तक किसी मे नही देखा. वैसे कब आ रही हो आश्रम?”

raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 22 Oct 2014 08:07



“ मेरा भी मन तो आप की बाहों मे आने के लिया मचल रहा है. जैसे ही मौका मिलेगा. मैं दौड़ कर आपकी बाहों मे आ जाउन्गी.”



“मैं तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा देवी जब संभोग सुख की ज़रूरत महसूस हो चली आना. जिंदगी की इस आपाधापी मे कुच्छ वक़्त सिर्फ़ अपने लिए निकालो. मन मे जिस्म मे एक नयी स्फूर्ति दौड़ने लगेगी."

"स्वामीजी अपने तो मुझे बाँध कर रख दिया है अपने मोह पाश मे. आपके साथ गुज़रे हर पल हमेशा मेरी आँखों के सामने घूमते रहते हैं. आपके सानिध्या की लालसा बढ़ती ही जाती है. आप प्रेम के देवता हैं. सच कहूँ मैं कभी किसी के संपर्क मे आकर इतनी उऊएजीत नही हुई जितना आपके साथ रह कर."

"रश्मि, देवी ये मोह माया चीज़ ही ऐसी है. आदमी मे एक मृगतृष्णा का संचार कर देता है. फिर तो आदमी पूरे होशो हवास मे उसके सम्मोहन का गुलाम हो कर रह जाता है. खैर देवी तुम्हारे पातिदेव कैसे हैं. उनको कभी आश्रम मे लेकर आओ. हम उनसे मिलना चाहेंगे. उन्हे कुच्छ शक तो नही हुआ? तुमने बताया तो नही?"

" नही स्वामी जी मैने उन्हे कुच्छ भी नही बताया. लेकिन मैं चाहती हूँ कि आप उन्हे भी अपने आश्रम मे बाँध लो जिससे मुझे आपसे संबंध बनाए रखने के लिए कोई लूका छिपि नही करनी पड़े."


"सही सोचा तुमने. देवी किसी दिन भी उन्हे साथ ले आओ जगतपुर आश्रम मे. मेरा विश्वास है वो भी यहीं के होकर रह जाएँगे. इस काम मे मेरी खास शिष्या रजनी बहुत माहिर है. वो भी खुशी से तुम्हारे पति देव से मिलना चाहेगी. तुम मिली हो ना उससे? बहुत सेक्सी लड़की है. दिन भर संभोग करते रह सकती है वो. तुम देखना तुम्हारे पति देव कैसे उसकी ज़ुल्फो मे खो जाते हैं"

"हाँ स्वामी जी. मैं कोशिश करती हूँ उन्हे भी एक बार आश्रम मे लेकर आने के लिए. और मुझे कब बुला रहे हो. स्वामी जी आपसे बात करके मेरा बदन जलने लगा है. मेरा अंग अंग फदक रहा है."



“ तुम्हारे लिए तो आश्रम के और मेरे दिल के दरवाजे खुले हुए हैं देवी. आश्रम के बाकी शिष्य भी तुम्हारे बारे मे पूछ रहे थे. एक दिन मे ही सबको अपना गुलाम बना दिया तुमने. वैसे कब आ रही हो?”



“जब भी आप बुलाएँगे मैं दौड़ी आउन्गी. दूसरे शिष्यों की बात छ्चोड़िए. आप अपनी बात कीजिए. आप कितना याद करते हैं मुझे.”



“हाहाहा….मैं?” स्वामी जी बात घूमने की कोशिश करें लगे.



“ स्वामीजी मुझे आपके मुँह से सुनना है. प्लीज़ कहिए ना कि मुझे कितना मिस करते हैं आप?”



“अब मैं तुम्हे क्या बताउ देवी. बस कुच्छ भी समझ लो.”



“नही देव ऐसे नही प्लीज़ एक बार मुझे बताओ. सच नही तो झूठे ही कह दो ना कि आप मुझे कितना याद करते हैं.” मैं किसी नयी दुल्हन की तरह इठलाने लगी. जैसे वो मेरे गुरुजी ना होकर मेरे कोई पुराने प्रेमी हों. क्रमशः............


raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 10:32

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -29

गतान्क से आगे...

मैं हफ्ते दो हफ्ते मे एक बार आश्रम का दौरा कर ही आती थी. स्वामीजी मुझे पाकर बहुत खुश होते थे. मैं वहाँ जब तक रुकती किसी ना किसी से संभोग करती रहती थी. स्वामीजी मुझ पर अपना ढेर सारा प्यार उदेल्ते थे. मैं भी उनके साथ पूरे जोश के साथ खेलती थी. मैं खुद उनके उपर चढ़ कर उनको चोदने लगती थी. स्वामीजी बस लेते लेते मज़े लेते रहते थे और मेरा उतावलापन देख कर मुस्कुराते रहते थे.



मैने जीवन को कई बार कहा जगतपुरा चलने के लिए मगर वो समय नही निकल पाया. वो जाना तो चाहता था मगर हर बार कोई ना कोई बाधा बीच मे आ ही जाती और उसका मेरे साथ चलने का प्रोग्राम कॅन्सल हो जाता था.


मैं हर बार स्वामी जी से कोई ना कोई झूठ कह देती थी. अगले महीने एक दिन फिर स्वामी जी का फोन आया तो मैने बताया की हम प्रोग्राम नही बना पाए.

"अपने पति से बात कराओ देवी" स्वामी जी ने कहा

मैने फोन जीवन को पकड़ा दिया. ये पहला मौका था जब स्वामी जी जीवन से या जीवन स्वामी जी से बात कर रहे थे. जीवन काफ़ी देर तक उनसे बात करता रहा. मैं उत्सुकता से सामने बैठी हुई उनके चेहरे को टकटकी बाँधे देख रही थी की जाने क्या बातें हो रही होंगी. कोई दस मिनूट तक बातें करने के बाद फोन रख कर जीवन ने कहा,



" तुम्हारे स्वामीजी अगले शनिवार को किसी उत्सव को अटेंड करने के लिए न्यू देल्ही जाने वाले हैं. वाहा भी उनका एक काफ़ी बड़ा आश्रम है दो दिन का प्रोग्राम है. उन्होने हमे साथ चलने के लिए निमंत्रण दिया है."


सुनते ही मैं खुशी से भर गयी मेरे बदन मे सिहरन दौड़ने लगी. लेकिन अपनी खुशिओ पर कंट्रोल करते हुए मैने पूच्छा " तो तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? तुमने क्या सोचा उनके निमंत्रण को स्वीकार करने के बारे मे?"


"देखता हूँ कल बॉस से बात करके. वैसे तुमने ठीक ही कहा था. उनकी बातों मे ऐसा सम्मोहन है कि मैं ना नही कर सका" वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगे.


अगले दिन जीवन ने घर आकर बताया कि उसे छुट्टी मिल गयी है. मैं तो खुशी से चहक उठी. अब मैं अपने टूर के बारे मे प्लॅनिंग करने लगी.

माताजी के पास बच्चे को रख कर हम गुरुजी के साथ जाने की तैयारी करने लगे. माताजी ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा,



“तू चिंता मत करना. तेरे बेटे को मैं समहाल लूँगी. वैसे भी सारा दिन तो मेरे ही पासरहता है. जाओ तुम दोनो छुट्टी मनाओ.”

तय दिन शाम पाँच बजे एक लुक्सॅरी कोच घर के सामने आकर रुकी. हम अपना समान पीछे लगेज बॉक्स मे रख कर बस मे सवार हो गये.

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