Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
मुझसे अब गाड़ी चलाना मुश्किल हो रहा था.. तो मैंने वहीं
एक तरफ गाड़ी खड़ी कर दी और एसी ऑन रखा.. हेड-लाइट बंद
कर दी.. ताकि कोई समझ न सके कि क्या हो रहा है और रात
के समय वैसे भी भीड़ कम ही रहती है और जो होती भी है वो
सिर्फ गाड़ी वालों की होती है.. तो कोई डरने वाली बात
भी न थी।
फिर मैंने सीट थोड़ा पीछे को मोड़ दिया ताकि माया और
मैं आराम से मज़े ले सकें।
फिर माया ने अपनी जुबान और होंठों से मेरे टोपे को थूक से
नहलाते हुए दूसरे हाथ से मुठियाने लगी।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मैं बता ही नहीं सकता..
ऐसा लग रहा था, जैसे मैं किसी जन्नत में सैर कर रहा हूँ।
फिर उसने धीरे-धीरे मेरे टोपे पर अपनी जुबान चलाई.. जैसे कोई
बिल्ली दूध पी रही हो..
उसकी यह हरकत इतनी कामुक थी कि मैंने भी उसके भौंपुओं
को हाथ में थाम कर बजाने लगा।
उसकी भी चूत पनिया गई थी और वो मुझसे बोली- प्लीज़
राहुल मुझे यहीं चोद दो.. अब और नहीं रहा जाता मुझसे..
प्लीज़ बुझा दो मेरी आग..
पर इस तरह खुले में मैंने चुदाई करने से मना कर दिया।
खैर वो मेरे समझाने पर मान भी गई थी।
फिर वो मेरे लौड़े को मुठियाते हुए इतने प्यार से चाट रही थी
कि मुझे लगा कि अब मैं और ज्यादा देर टिकने वाला नहीं हूँ।
तो मैंने उससे बोला- जान.. बस अब और दूरी नहीं बची है..
मंजिल आने में.. थोड़ा तेज़ चलो।
तो वो मेरे इशारे को समझ गई और मेरे लौड़े को जहाँ तक उससे
हो सका उतना मुँह के अन्दर तक ले जाकर अन्दर-बाहर करने
लगी और अपने कोमल होंठों से मेरे लौड़े पर अपनी पकड़ मजबूत
करने लगी.. जैसे मानो आज सारा रस चूस लेगी।
उसकी इस क्रिया से मेरे मुख से ‘सीइइइ.. आआह्ह’ की मादक
सिसकारियाँ फूटने लगीं।
इतना आनन्द आ रहा था कि मानो मेरा लौड़ा उसके मुख में
नहीं बल्कि उसकी चूत में हो.. मैंने भी उसके सर को हाथों से
सहलाना चालू कर दिया।
वो इतनी रफ़्तार से मुँह ऊपर-नीचे कर रही थी कि उसके मुँह से
सिर्फ ‘गूंग्गगुगुगुं’ की ध्वनि आ रही थी जो कि मेरी उत्तेजना
को बढ़ाने के लिए काफी था।
फिर मैंने उसके सर को कस कर हाथों से पकड़ लिया और अपनी
कमर को उठा-उठा कर उसके मुँह में लौड़ा ठूँसने लगा..
जिससे माया की आँखें बाहर की ओर आने लगीं और देखते ही
देखते मैंने अपना सारा माल उसके गले के नीचे उतार दिया।
माल निकल जाने के बाद मुझे कुछ होश आया तो मैंने अपनी
पकड़ ढीली की..
तो माया ने झट से मुँह हटाया और बोली- यार ऐसे भला कोई
करता है.. मुझे तो ऐसा लग रहा था कि थोड़ी देर और ऐसे ही
चला तो मेरी जान ही निकल दोगे तुम..
मैंने उसके गालों को चूमा और कहा- अपनी जान को भला मैं
कैसे मार सकता हूँ माया डार्लिंग.. थैंक्स।
बोली- अच्छा मेरी हालत खराब करके ‘थैंक्स’?
तो मैंने बोला- इसके लिए नहीं.. वो तो उसके लिए बोला जो
तुमने आज मेरे लिए किया..
तो माया बोली- जानू ये तो कुछ भी नहीं है.. आज तो मैं
तुम्हारे लिए वो करने वाली हूँ जो आज तक मैंने कभी न किसी
के साथ किया और न ही इस बारे में कभी सोचा था.. पर
राहुल मैं अब वो तुम्हारे लिए करुँगी।
तो मैंने उसे बाँहों में भर लिया और उसकी गर्दन में चुम्बन करते
हुए उसे ‘आई लव यू आई.. लव यू’ बोलने लगा।
जिससे माया का दर्द भरा चेहरा फिर से खिलखिलाने लगा
और फिर उसने अपनी पर्स से रुमाल निकाल कर मेरे लौड़े अच्छे
से पोंछ कर साफ़ किया।
फिर मुझे आँख मारते हुए कहने लगी- जानू अब जल्दी से घर
चलो.. मुझे भी अब कुछ चाहिए.. तुम्हारा तो हो गया.. पर मेरे
अन्दर की चीटियाँ अभी भी जिन्दा रेंग रही हैं।
तो मैंने उसके बोबे मसल कर कहा- अरे आज रात तेरी सारी
चींटियों को रौंद-रौंद कर ख़त्म कर दूँगा.. बस तू घर चल.. फिर
देख।
फिर मैंने उतर कर अपनी जींस वगैरह सही से बंद की और घर की
ओर चल दिए।
करीब दस मिनट में हम अपार्टमेंट पहुँच गए.. वहाँ मैंने गार्ड को
गाड़ी पार्क करने के लिए चाभी दी और माया से बोला-
आप चलो.. मैं चाभी लेकर आता हूँ।
गार्ड ने कुछ ही देर में गाड़ी पार्क की और चाभी दे कर मुझसे
बोला- साहब जी देर बहुत लगा दी आने में?
तो मैंने बोला- हाँ.. वो आंटी के किसी रिश्तेदार के यहाँ
पार्टी थी तो इसीलिए।
अब ये तो कह नहीं सकता था कि हॉस्पिटल गया था किसी
मरीज़ को देखने क्योंकि हम लोगों के कपड़े साफ़ बता रहे थे
कि हम किसी पार्टी या मूवी देखने गए थे।
खैर.. मैंने उससे चाभी ली और कमरे की तरफ चल दिया।
एक तरफ गाड़ी खड़ी कर दी और एसी ऑन रखा.. हेड-लाइट बंद
कर दी.. ताकि कोई समझ न सके कि क्या हो रहा है और रात
के समय वैसे भी भीड़ कम ही रहती है और जो होती भी है वो
सिर्फ गाड़ी वालों की होती है.. तो कोई डरने वाली बात
भी न थी।
फिर मैंने सीट थोड़ा पीछे को मोड़ दिया ताकि माया और
मैं आराम से मज़े ले सकें।
फिर माया ने अपनी जुबान और होंठों से मेरे टोपे को थूक से
नहलाते हुए दूसरे हाथ से मुठियाने लगी।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मैं बता ही नहीं सकता..
ऐसा लग रहा था, जैसे मैं किसी जन्नत में सैर कर रहा हूँ।
फिर उसने धीरे-धीरे मेरे टोपे पर अपनी जुबान चलाई.. जैसे कोई
बिल्ली दूध पी रही हो..
उसकी यह हरकत इतनी कामुक थी कि मैंने भी उसके भौंपुओं
को हाथ में थाम कर बजाने लगा।
उसकी भी चूत पनिया गई थी और वो मुझसे बोली- प्लीज़
राहुल मुझे यहीं चोद दो.. अब और नहीं रहा जाता मुझसे..
प्लीज़ बुझा दो मेरी आग..
पर इस तरह खुले में मैंने चुदाई करने से मना कर दिया।
खैर वो मेरे समझाने पर मान भी गई थी।
फिर वो मेरे लौड़े को मुठियाते हुए इतने प्यार से चाट रही थी
कि मुझे लगा कि अब मैं और ज्यादा देर टिकने वाला नहीं हूँ।
तो मैंने उससे बोला- जान.. बस अब और दूरी नहीं बची है..
मंजिल आने में.. थोड़ा तेज़ चलो।
तो वो मेरे इशारे को समझ गई और मेरे लौड़े को जहाँ तक उससे
हो सका उतना मुँह के अन्दर तक ले जाकर अन्दर-बाहर करने
लगी और अपने कोमल होंठों से मेरे लौड़े पर अपनी पकड़ मजबूत
करने लगी.. जैसे मानो आज सारा रस चूस लेगी।
उसकी इस क्रिया से मेरे मुख से ‘सीइइइ.. आआह्ह’ की मादक
सिसकारियाँ फूटने लगीं।
इतना आनन्द आ रहा था कि मानो मेरा लौड़ा उसके मुख में
नहीं बल्कि उसकी चूत में हो.. मैंने भी उसके सर को हाथों से
सहलाना चालू कर दिया।
वो इतनी रफ़्तार से मुँह ऊपर-नीचे कर रही थी कि उसके मुँह से
सिर्फ ‘गूंग्गगुगुगुं’ की ध्वनि आ रही थी जो कि मेरी उत्तेजना
को बढ़ाने के लिए काफी था।
फिर मैंने उसके सर को कस कर हाथों से पकड़ लिया और अपनी
कमर को उठा-उठा कर उसके मुँह में लौड़ा ठूँसने लगा..
जिससे माया की आँखें बाहर की ओर आने लगीं और देखते ही
देखते मैंने अपना सारा माल उसके गले के नीचे उतार दिया।
माल निकल जाने के बाद मुझे कुछ होश आया तो मैंने अपनी
पकड़ ढीली की..
तो माया ने झट से मुँह हटाया और बोली- यार ऐसे भला कोई
करता है.. मुझे तो ऐसा लग रहा था कि थोड़ी देर और ऐसे ही
चला तो मेरी जान ही निकल दोगे तुम..
मैंने उसके गालों को चूमा और कहा- अपनी जान को भला मैं
कैसे मार सकता हूँ माया डार्लिंग.. थैंक्स।
बोली- अच्छा मेरी हालत खराब करके ‘थैंक्स’?
तो मैंने बोला- इसके लिए नहीं.. वो तो उसके लिए बोला जो
तुमने आज मेरे लिए किया..
तो माया बोली- जानू ये तो कुछ भी नहीं है.. आज तो मैं
तुम्हारे लिए वो करने वाली हूँ जो आज तक मैंने कभी न किसी
के साथ किया और न ही इस बारे में कभी सोचा था.. पर
राहुल मैं अब वो तुम्हारे लिए करुँगी।
तो मैंने उसे बाँहों में भर लिया और उसकी गर्दन में चुम्बन करते
हुए उसे ‘आई लव यू आई.. लव यू’ बोलने लगा।
जिससे माया का दर्द भरा चेहरा फिर से खिलखिलाने लगा
और फिर उसने अपनी पर्स से रुमाल निकाल कर मेरे लौड़े अच्छे
से पोंछ कर साफ़ किया।
फिर मुझे आँख मारते हुए कहने लगी- जानू अब जल्दी से घर
चलो.. मुझे भी अब कुछ चाहिए.. तुम्हारा तो हो गया.. पर मेरे
अन्दर की चीटियाँ अभी भी जिन्दा रेंग रही हैं।
तो मैंने उसके बोबे मसल कर कहा- अरे आज रात तेरी सारी
चींटियों को रौंद-रौंद कर ख़त्म कर दूँगा.. बस तू घर चल.. फिर
देख।
फिर मैंने उतर कर अपनी जींस वगैरह सही से बंद की और घर की
ओर चल दिए।
करीब दस मिनट में हम अपार्टमेंट पहुँच गए.. वहाँ मैंने गार्ड को
गाड़ी पार्क करने के लिए चाभी दी और माया से बोला-
आप चलो.. मैं चाभी लेकर आता हूँ।
गार्ड ने कुछ ही देर में गाड़ी पार्क की और चाभी दे कर मुझसे
बोला- साहब जी देर बहुत लगा दी आने में?
तो मैंने बोला- हाँ.. वो आंटी के किसी रिश्तेदार के यहाँ
पार्टी थी तो इसीलिए।
अब ये तो कह नहीं सकता था कि हॉस्पिटल गया था किसी
मरीज़ को देखने क्योंकि हम लोगों के कपड़े साफ़ बता रहे थे
कि हम किसी पार्टी या मूवी देखने गए थे।
खैर.. मैंने उससे चाभी ली और कमरे की तरफ चल दिया।
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
अन्दर जाते ही पहले मेन गेट को लॉक किया और माया को
आवाज़ दी- माया कहाँ हो तुम?
तो बोली- मैं रसोई में हूँ।
तो मैंने बोला- अब वहाँ क्या कर रही हो?
बोली- अरे तेरे साथ-साथ मुझे भी अब चाय का चस्का लग
गया है और सर भी भारी-भारी सा लग रहा है.. तो मैंने सोचा
चाय पी ली जाए।
मैंने भी बोला- चलो अब इस घर में भी मेरी आदतों को ध्यान में
रखने वाला कोई हो गया है।
मैं मन ही मन खुश हो गया.. फिर मैंने सोफे पर रखे बैग से अपना
लोअर निकाला और सारे कपड़े उतार कर सिर्फ टी-शर्ट और
लोअर में आ गया।
अब मेरे बदन पर मात्र तीन ही कपड़े थे लोअर.. हाफ टी-शर्ट
और वी-शेप की चड्डी..
फिर मैंने उससे पूछा- कार की चाभी कहाँ रखनी है?
तो बोली- अरे टीवी के नीचे वाली रैक में डाल दो।
मैंने चाभी रखी और टीवी ऑन करके टीवी देखने बैठ गया।
तभी मेरी माँ का फोन आ गया.. मैंने रिसीव किया तो
बोलीं- खाना वगैरह खा लिया?
तो मैंने बोला- हाँ माँ.. बस अभी ही खाया है.. वैसे इतनी
रात को क्यों फोन किया?
तो बोलीं- बस ऐसे ही तेरे हाल लेने के लिए।
मैंने बोला- माँ इतनी फिक्र मत किया करो.. मैं यहाँ बिल्कुल
अपने घर की तरह से ही रह रहा हूँ।
इतने में माया आ गई और चाय देते हुए बोली- अरे विनोद से बात
हो रही है क्या?
तो मैं बोला- नहीं मेरी माँ से..
माया ने बोला- अरे मुझे भी बात करवाओ..
तो मैंने उनको फोन दिया और अब बस माया की ही आवाज़
सुन रहा था।
वो बोल रही थी- अरे भाभी जी, आप बिल्कुल चिंता न करें..
इसे भी घर ही समझें.. पर एक बात बताइए.. क्या ये चाय बहुत
पीता है?
फिर शांत हो गई..
अब माँ ने जो भी बोला हो..
फिर माया बोली- अरे कोई नहीं जी.. इसी बहाने मैं भी पी
लेती हूँ।
वो झूट ही बोल गई.. मुझे भी चाय पीने का शौक है.. इसलिए
पूछा।
फिर कहने लगी- वैसे भी कल से इसे मिस करूँगी.. मेरे बच्चे इतना
चाय नहीं पीते.. तो मुझे कोई कंपनी देने वाला नहीं मिलेगा।
उधर से माँ ने कुछ कहा होगा।
‘अच्छा भाभी जी अब हम रखते हैं।’
फिर माया ने फोन जैसे ही कट किया.. तो मैंने उसे बाँहों में
भर कर चुम्बन करते हुए बोलने लगा- झूठी.. माँ से झूठ क्यों
बोली.. मुझे भी चाय पसंद है?
तो बोली- अरे तो उनसे क्या कहती.. अपने राजाबाबू से
सीखी हूँ..
यह कहते हुए उसने आँख मार कर लिपलॉक करके मेरे होंठों को
जी भर कर चूसने लगी और मैं भी उसके चूचों को कपड़ों के ऊपर
से मसलने लगा.. जिससे उसकी ‘आह्ह्ह्हह्ह’ निकलने लगी और
साँसे भी गति पकड़ने लगीं।
वो मुझसे बोली- जान श्ह्ह्ह्ह इतनी तेज़ से न भींचा करो..
दु:खता है..
फिर वो मुझसे अलग हुई तो मैंने लपक कर उसके हाथों को
पकड़ा.. तो बोली- रुको.. पहले कपड़े बदल लूँ और विनोद से
भी बात कर लूँ.. फिर हम अपनी लीला में मन को रमायेंगे।
आवाज़ दी- माया कहाँ हो तुम?
तो बोली- मैं रसोई में हूँ।
तो मैंने बोला- अब वहाँ क्या कर रही हो?
बोली- अरे तेरे साथ-साथ मुझे भी अब चाय का चस्का लग
गया है और सर भी भारी-भारी सा लग रहा है.. तो मैंने सोचा
चाय पी ली जाए।
मैंने भी बोला- चलो अब इस घर में भी मेरी आदतों को ध्यान में
रखने वाला कोई हो गया है।
मैं मन ही मन खुश हो गया.. फिर मैंने सोफे पर रखे बैग से अपना
लोअर निकाला और सारे कपड़े उतार कर सिर्फ टी-शर्ट और
लोअर में आ गया।
अब मेरे बदन पर मात्र तीन ही कपड़े थे लोअर.. हाफ टी-शर्ट
और वी-शेप की चड्डी..
फिर मैंने उससे पूछा- कार की चाभी कहाँ रखनी है?
तो बोली- अरे टीवी के नीचे वाली रैक में डाल दो।
मैंने चाभी रखी और टीवी ऑन करके टीवी देखने बैठ गया।
तभी मेरी माँ का फोन आ गया.. मैंने रिसीव किया तो
बोलीं- खाना वगैरह खा लिया?
तो मैंने बोला- हाँ माँ.. बस अभी ही खाया है.. वैसे इतनी
रात को क्यों फोन किया?
तो बोलीं- बस ऐसे ही तेरे हाल लेने के लिए।
मैंने बोला- माँ इतनी फिक्र मत किया करो.. मैं यहाँ बिल्कुल
अपने घर की तरह से ही रह रहा हूँ।
इतने में माया आ गई और चाय देते हुए बोली- अरे विनोद से बात
हो रही है क्या?
तो मैं बोला- नहीं मेरी माँ से..
माया ने बोला- अरे मुझे भी बात करवाओ..
तो मैंने उनको फोन दिया और अब बस माया की ही आवाज़
सुन रहा था।
वो बोल रही थी- अरे भाभी जी, आप बिल्कुल चिंता न करें..
इसे भी घर ही समझें.. पर एक बात बताइए.. क्या ये चाय बहुत
पीता है?
फिर शांत हो गई..
अब माँ ने जो भी बोला हो..
फिर माया बोली- अरे कोई नहीं जी.. इसी बहाने मैं भी पी
लेती हूँ।
वो झूट ही बोल गई.. मुझे भी चाय पीने का शौक है.. इसलिए
पूछा।
फिर कहने लगी- वैसे भी कल से इसे मिस करूँगी.. मेरे बच्चे इतना
चाय नहीं पीते.. तो मुझे कोई कंपनी देने वाला नहीं मिलेगा।
उधर से माँ ने कुछ कहा होगा।
‘अच्छा भाभी जी अब हम रखते हैं।’
फिर माया ने फोन जैसे ही कट किया.. तो मैंने उसे बाँहों में
भर कर चुम्बन करते हुए बोलने लगा- झूठी.. माँ से झूठ क्यों
बोली.. मुझे भी चाय पसंद है?
तो बोली- अरे तो उनसे क्या कहती.. अपने राजाबाबू से
सीखी हूँ..
यह कहते हुए उसने आँख मार कर लिपलॉक करके मेरे होंठों को
जी भर कर चूसने लगी और मैं भी उसके चूचों को कपड़ों के ऊपर
से मसलने लगा.. जिससे उसकी ‘आह्ह्ह्हह्ह’ निकलने लगी और
साँसे भी गति पकड़ने लगीं।
वो मुझसे बोली- जान श्ह्ह्ह्ह इतनी तेज़ से न भींचा करो..
दु:खता है..
फिर वो मुझसे अलग हुई तो मैंने लपक कर उसके हाथों को
पकड़ा.. तो बोली- रुको.. पहले कपड़े बदल लूँ और विनोद से
भी बात कर लूँ.. फिर हम अपनी लीला में मन को रमायेंगे।
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तो मैंने भी उसके बालों के क्लचर को खोल दिया और उसके सर
को पकड़ कर गर्दन पर चुम्बन करने लगा।
जिससे माया आंटी का पारा चढ़ने लगा और वो ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..
बस.. बस्स्स्स्स.. आआह.. रुको भी..यार एक तो पहले ही आग
लगी हुई है.. तुम और हवा दे रहे हो.. कपड़े चेंज कर लेने दो.. नहीं
तो अगर ख़राब हुए तो रूचि को बहुत जवाब देने पड़ेंगे..’
तो मैंने बोला- ये उसके कपड़े हैं?
बोली- नहीं.. पर मुझे इस तरह की ड्रेस वही दिलाती है..
प्लीज़ अब जाने दो.. बस 5 मिनट और मैं यूँ गई और आई.. तब तक
तुम विनोद से हाल-चाल लो ताकि ज्यादा वक्त खराब न
हो.. मैं बस अभी आई..
यह कहते हुए मेरे गालों पर चुम्मा लेते हुए चली गई।
मैं मन ही मन बहुत खुश था कि आज मेरी एक अनचाही इच्छा
भी पूरी होने वाली है।
तभी फिर मैंने ख्यालों से बाहर आते हुए विनोद को कॉल
लगाई तो उधर से रूचि ने फोन उठाया और मेरे बोलने के पहले
ही.. वो फ़ोन उठाते ही बोलने लगी- मम्मा आई मिस यू सो
मच.. लव यू अभी मैं आपकी ही याद करके फोन मिलाने जा
रही थी..
फिर जब वो शांत हुई तो कुछ देर मैं भी नहीं बोला.. तो वो
हैलो.. हैलो.. करने लगी।
तो मैंने ‘उम्म्महह उम्म्ह्ह्ह्ह्ह’ करके हल्का सा खांसा.. तो वो
समझ गई कि उसने क्या किया..
तो बोली- अरे सॉरी.. मैंने सोचा माँ हैं।
‘हम्म..’
‘और आप भी कुछ नहीं बोले..’
तो मैंने बोला- अरे तुमने तो मौका ही नहीं दिया.. वर्ना मैं
भी कुछ बोल देता।
तो बोली- अरे सॉरी मैं तो भूल ही गई थी कि आप भी हो..
मैंने भी उसे छेड़ते हुए हिम्मत करके बोल ही दिया- आज कुछ
सुनकर मन बहुत खुश हो गया..
तो बोली- ऐसा मैंने क्या बोल दिया?
मैंने पूछा- चल छोड़.. ये बताओ विनोद कहाँ है?
तो बोली- अरे भाई तो कोच और प्लेटफॉर्म पता करने गए हैं..
पर आप बताओ न मैंने ऐसा क्या बोल दिया.. जिससे आप को
ख़ुशी हुई?
तो मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए बोल ही दिया-
तुम्हारे मुँह से ‘आई लव यू’ सुनकर..
तो वो बोली- मैंने अपनी माँ के लिए बोला था।
मैंने बोला- होगा माँ के लिए ही सही.. पर तुम्हारे ये शब्द मेरे
दिल में घर कर गए.. आई लव यू रूचि..
तो बोली- अरे ये कैसे हो सकता है.. आप मेरे भाई जैसे हो..
और वो या मैं कुछ बोलता कि इधर माया आ गई और उधर
विनोद…
फिर मैंने विनोद से ट्रेन की डिटेल पूछी और ‘हैप्पी जर्नी’
बोल कर माया को फोन दे दिया।
फिर माया विनोद से बात करने लगी और इधर मेरे दिल में
उसकी बेटी की प्यारी सी फीलिंग ने हलचल सी मचा रखी
थी.. चड्डी के अन्दर ही मेरा लौड़ा उसकी जवानी को
महसूस करके फड़फड़ाने लगा था.. जिसे माया बहुत गौर से देख
कर मुस्कुरा रही थी.. पर उसे क्या मालूम कि ये किसकी
जवानी का करेंट है।
फिर माया ने बोला- अच्छा जब ट्रेन में बैठ जाना.. तो फोन
करना ओके..
माया ने फोन काट दिया और मेरे पास आकर मेरे सामान को
पकड़ते हुए मेरे होंठों को चूसने लगी।
जैसे उसे मेरे होंठों में शहद का रस मिल रहा हो.. फिर मैं भी
उसके होंठों को उसी तरह चूसते हुए अपनी बाँहों में दबोच
लिया।
यार कहो चाहे कुछ भी माया में भी एक अजीब सी कशिश
थी।
उसका बदन मखमल सा मुलायम और इतना मादक था कि कोई
भी बिना पिए ही बहक जाए.. इस समय उसने क्रीम कलर का
बहुत ही हल्का और मुलायम सा गाउन पहन रखा था।
उसकी पीठ पर सहलाते समय ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने
कुछ पहना ही न हो।
उसको मैं अपनी बाँहों में कस कर जकड़ कर जोर-जोर से उसके
होंठों का रस चूसने लगा।
उसकी कठोर चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ कर साफ़ बयान कर रही
थी कि आज वो भी परिंदों की तरह आज़ाद हैं.. इसी मसली-
मसला के बीच एक बार फिर से फ़ोन की घंटी बजी।
माया ने विनोद की काल देख कर तुरंत ही फोन रिसीव
किया।
शायद वो लोग ट्रेन में बैठ चुके थे। यही बताने के लिए फोन
किया था.. पर उसके फ़ोन पर बात करते समय मैं उसके पीछे
खड़ा होकर उसकी जुल्फों को एक तरफ करके.. उसकी गर्दन पर
चाटते हुए चूमे जा रहा था.. जिससे माया की आवाज़ में
कंपकंपी और आँखें बंद होने लगी थीं।
तभी माया अचानक बोली- अरे क्या हो गया..?
तो मैं भी रुक गया कि पता नहीं क्या हो गया.. उधर विनोद
क्या बोल रहा था मुझे नहीं मालूम.. पर तभी माया बोली-
मना करती हूँ.. ज्यादा उलटी-सीधी चीज़ न खाया करो..
लेकिन तुम लोग मानते कहाँ हो.. खैर जब रूचि आ जाए.. तो
बात कराना..
ये कह कर उसने फोन काट दिया और मेरे पूछने पर माया ने
बताया- रूचि को उलटी आने लगी है.. उन लोगों ने चाउमिन
खाई थी.. जो कि शायद उसे सूट नहीं की..
मैंने पूछा- अब कैसी है?
तो बोली- अभी वो ट्रेन के वाशरूम में है.. आएगी तो फोन
करेगी।
फिर मैंने उसे बोला- अरे कोई बात नहीं.. कभी-कभी हो
जाता है.. कोई बड़ी बात नहीं.. इसी बहाने उसका पेट भी
साफ़ हो गया।
ये कहते हुए मैंने उसके गले में हाथ डाला और कमरे की ओर चल
दिया।
माया मेरी पीठ सहलाते हुए बोली- क्या बात है.. आज बड़े मूड
में लग रहे हो
को पकड़ कर गर्दन पर चुम्बन करने लगा।
जिससे माया आंटी का पारा चढ़ने लगा और वो ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..
बस.. बस्स्स्स्स.. आआह.. रुको भी..यार एक तो पहले ही आग
लगी हुई है.. तुम और हवा दे रहे हो.. कपड़े चेंज कर लेने दो.. नहीं
तो अगर ख़राब हुए तो रूचि को बहुत जवाब देने पड़ेंगे..’
तो मैंने बोला- ये उसके कपड़े हैं?
बोली- नहीं.. पर मुझे इस तरह की ड्रेस वही दिलाती है..
प्लीज़ अब जाने दो.. बस 5 मिनट और मैं यूँ गई और आई.. तब तक
तुम विनोद से हाल-चाल लो ताकि ज्यादा वक्त खराब न
हो.. मैं बस अभी आई..
यह कहते हुए मेरे गालों पर चुम्मा लेते हुए चली गई।
मैं मन ही मन बहुत खुश था कि आज मेरी एक अनचाही इच्छा
भी पूरी होने वाली है।
तभी फिर मैंने ख्यालों से बाहर आते हुए विनोद को कॉल
लगाई तो उधर से रूचि ने फोन उठाया और मेरे बोलने के पहले
ही.. वो फ़ोन उठाते ही बोलने लगी- मम्मा आई मिस यू सो
मच.. लव यू अभी मैं आपकी ही याद करके फोन मिलाने जा
रही थी..
फिर जब वो शांत हुई तो कुछ देर मैं भी नहीं बोला.. तो वो
हैलो.. हैलो.. करने लगी।
तो मैंने ‘उम्म्महह उम्म्ह्ह्ह्ह्ह’ करके हल्का सा खांसा.. तो वो
समझ गई कि उसने क्या किया..
तो बोली- अरे सॉरी.. मैंने सोचा माँ हैं।
‘हम्म..’
‘और आप भी कुछ नहीं बोले..’
तो मैंने बोला- अरे तुमने तो मौका ही नहीं दिया.. वर्ना मैं
भी कुछ बोल देता।
तो बोली- अरे सॉरी मैं तो भूल ही गई थी कि आप भी हो..
मैंने भी उसे छेड़ते हुए हिम्मत करके बोल ही दिया- आज कुछ
सुनकर मन बहुत खुश हो गया..
तो बोली- ऐसा मैंने क्या बोल दिया?
मैंने पूछा- चल छोड़.. ये बताओ विनोद कहाँ है?
तो बोली- अरे भाई तो कोच और प्लेटफॉर्म पता करने गए हैं..
पर आप बताओ न मैंने ऐसा क्या बोल दिया.. जिससे आप को
ख़ुशी हुई?
तो मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए बोल ही दिया-
तुम्हारे मुँह से ‘आई लव यू’ सुनकर..
तो वो बोली- मैंने अपनी माँ के लिए बोला था।
मैंने बोला- होगा माँ के लिए ही सही.. पर तुम्हारे ये शब्द मेरे
दिल में घर कर गए.. आई लव यू रूचि..
तो बोली- अरे ये कैसे हो सकता है.. आप मेरे भाई जैसे हो..
और वो या मैं कुछ बोलता कि इधर माया आ गई और उधर
विनोद…
फिर मैंने विनोद से ट्रेन की डिटेल पूछी और ‘हैप्पी जर्नी’
बोल कर माया को फोन दे दिया।
फिर माया विनोद से बात करने लगी और इधर मेरे दिल में
उसकी बेटी की प्यारी सी फीलिंग ने हलचल सी मचा रखी
थी.. चड्डी के अन्दर ही मेरा लौड़ा उसकी जवानी को
महसूस करके फड़फड़ाने लगा था.. जिसे माया बहुत गौर से देख
कर मुस्कुरा रही थी.. पर उसे क्या मालूम कि ये किसकी
जवानी का करेंट है।
फिर माया ने बोला- अच्छा जब ट्रेन में बैठ जाना.. तो फोन
करना ओके..
माया ने फोन काट दिया और मेरे पास आकर मेरे सामान को
पकड़ते हुए मेरे होंठों को चूसने लगी।
जैसे उसे मेरे होंठों में शहद का रस मिल रहा हो.. फिर मैं भी
उसके होंठों को उसी तरह चूसते हुए अपनी बाँहों में दबोच
लिया।
यार कहो चाहे कुछ भी माया में भी एक अजीब सी कशिश
थी।
उसका बदन मखमल सा मुलायम और इतना मादक था कि कोई
भी बिना पिए ही बहक जाए.. इस समय उसने क्रीम कलर का
बहुत ही हल्का और मुलायम सा गाउन पहन रखा था।
उसकी पीठ पर सहलाते समय ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने
कुछ पहना ही न हो।
उसको मैं अपनी बाँहों में कस कर जकड़ कर जोर-जोर से उसके
होंठों का रस चूसने लगा।
उसकी कठोर चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ कर साफ़ बयान कर रही
थी कि आज वो भी परिंदों की तरह आज़ाद हैं.. इसी मसली-
मसला के बीच एक बार फिर से फ़ोन की घंटी बजी।
माया ने विनोद की काल देख कर तुरंत ही फोन रिसीव
किया।
शायद वो लोग ट्रेन में बैठ चुके थे। यही बताने के लिए फोन
किया था.. पर उसके फ़ोन पर बात करते समय मैं उसके पीछे
खड़ा होकर उसकी जुल्फों को एक तरफ करके.. उसकी गर्दन पर
चाटते हुए चूमे जा रहा था.. जिससे माया की आवाज़ में
कंपकंपी और आँखें बंद होने लगी थीं।
तभी माया अचानक बोली- अरे क्या हो गया..?
तो मैं भी रुक गया कि पता नहीं क्या हो गया.. उधर विनोद
क्या बोल रहा था मुझे नहीं मालूम.. पर तभी माया बोली-
मना करती हूँ.. ज्यादा उलटी-सीधी चीज़ न खाया करो..
लेकिन तुम लोग मानते कहाँ हो.. खैर जब रूचि आ जाए.. तो
बात कराना..
ये कह कर उसने फोन काट दिया और मेरे पूछने पर माया ने
बताया- रूचि को उलटी आने लगी है.. उन लोगों ने चाउमिन
खाई थी.. जो कि शायद उसे सूट नहीं की..
मैंने पूछा- अब कैसी है?
तो बोली- अभी वो ट्रेन के वाशरूम में है.. आएगी तो फोन
करेगी।
फिर मैंने उसे बोला- अरे कोई बात नहीं.. कभी-कभी हो
जाता है.. कोई बड़ी बात नहीं.. इसी बहाने उसका पेट भी
साफ़ हो गया।
ये कहते हुए मैंने उसके गले में हाथ डाला और कमरे की ओर चल
दिया।
माया मेरी पीठ सहलाते हुए बोली- क्या बात है.. आज बड़े मूड
में लग रहे हो