Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा
रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने
चुम्मी दूँगी।
मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?
और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ
गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे
प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों
नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले
लेता हूँ।
मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर
आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।
वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!
तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर
घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे
अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की
बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि
वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने
मुझे प्यार न दे पाती!
फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड
की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले
गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे
उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न
था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा
है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके
चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ
ध्यान भंग हुआ।
फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो,
तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!
वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये
सब है तो तुम्हारा ही असर!
मैं बोला- वो कैसे?
तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे
साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना
मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार
करने लगी हूँ…
‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़
लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे
बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ
मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी
पीठ को सहला रहे थे।
मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर
पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं
थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!
पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य
सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !
फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल
था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे
हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका
राजकुमार मिल गया हो।
मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को
हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा
जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।
शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे
बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन
चुका था!
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला
ही होता है।
आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम
ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है
और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब
मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि
चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला
इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ
था।
रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने
चुम्मी दूँगी।
मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?
और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ
गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे
प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों
नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले
लेता हूँ।
मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर
आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।
वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!
तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर
घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे
अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की
बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि
वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने
मुझे प्यार न दे पाती!
फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड
की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले
गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे
उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न
था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा
है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके
चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ
ध्यान भंग हुआ।
फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो,
तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!
वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये
सब है तो तुम्हारा ही असर!
मैं बोला- वो कैसे?
तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे
साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना
मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार
करने लगी हूँ…
‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़
लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे
बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ
मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी
पीठ को सहला रहे थे।
मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर
पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं
थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!
पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य
सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !
फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल
था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे
हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका
राजकुमार मिल गया हो।
मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को
हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा
जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।
शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे
बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन
चुका था!
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला
ही होता है।
आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम
ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है
और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब
मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि
चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला
इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ
था।
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इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के
ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी
जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी-
आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..
वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं
जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे
चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना..
जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल
पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान
करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा
रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन
लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ
गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के
लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो
बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप
क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी
आओ..।
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की
तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे
पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो
साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को
मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े
सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी
तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें..
कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो
तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो
जाओ.. मैं यूं गई और आई..
ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी
जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी-
आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..
वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं
जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे
चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना..
जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल
पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान
करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा
रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन
लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ
गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के
लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो
बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप
क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी
आओ..।
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की
तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे
पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो
साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को
मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े
सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी
तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें..
कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो
तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो
जाओ.. मैं यूं गई और आई..
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर
बात करने लगे।
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी
सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग
रहा है..
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की
सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ..
फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में
मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और
इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख
लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये
कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी
बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे
का हाल आसानी से समझ सकें।
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा
था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो
मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे
ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल
शुरू होता है।
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को
दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई
विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों
रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम
रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि
वो देर तक खाना खा सके।
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली-
भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी
थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग
ही रही हैं।
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना
लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी..
अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे
मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए..
थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया
था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे
में पूछा- क्या हुआ?
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप
बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था..
तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ
एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये
ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ
सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ
गया।
तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी..
उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..
तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने
चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो
चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच
उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर
दिया।
मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर
बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी
हरकतें भी शुरू कर दीं।
अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी..
जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही
सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी..
जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
बात करने लगे।
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी
सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग
रहा है..
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की
सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ..
फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में
मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और
इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख
लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये
कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी
बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे
का हाल आसानी से समझ सकें।
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा
था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो
मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे
ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल
शुरू होता है।
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को
दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई
विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों
रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम
रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि
वो देर तक खाना खा सके।
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली-
भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी
थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग
ही रही हैं।
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना
लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी..
अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे
मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए..
थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया
था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे
में पूछा- क्या हुआ?
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप
बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था..
तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ
एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये
ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ
सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ
गया।
तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी..
उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..
तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने
चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो
चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच
उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर
दिया।
मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर
बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी
हरकतें भी शुरू कर दीं।
अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी..
जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही
सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी..
जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।