शादी सुहागरात और हनीमून--17
गतान्क से आगे…………………………………..
मस्ती मे हम दोनो सब कुछ भूले हुए थे. ये बात नही थी कि मुझे दर्द नही हो रहा था. मेरी जांघे फटी जा रही थी, और मेरी योनि मे भी जब वो रगड़ के जाता तो कस के टीस उठती. लेकिन अब जो उन्माद की लहरें उठ रही थी, उस के आगे मैं सब कुछ भूली हुई थी. अब उसने एड के साथ लगाम लगाना भी शुरू कर लिया था. वो कस के रगड़ता, दबाता मसलता. मेरी देह, मेरे नितंब भी उसके धक्को के साथ साथ उठ रहे थे. अब जब हम चरम आनंद पे पहुँचे तो साथ साथ मैं अपनी देह की तरंगो के साथ साथ उनकी तरंगे भी महसूस कर रही थी. मेरी प्रेम गली मे पहली बूँद के साथ कस कस के 'वो' सिकुड़ने लगी, 'उसे' भींचने लगी. मेरी आँखे बंद थी. रस की हर बूँद मैं सोख रही थी. मेरे 'अंदर' वो बरस रहे थे और बाहर चाँदनी बरस रही थी. हर सिंगार झर रहे थे, उसकी महक गुलाबो की भीनी भीनी महक के साथ रात को और मस्त बना रही थी.
हम लोग बहुत देर तक वैसे पड़े रहे और अब जब अलग हुए तो ना मुझे रज़ाई से अपनी देह धकने का होश था और ना 'वहाँ' साफ करने का. उन्होने फिर मुझे सहारा दे कर अधलेटा बैठा दिया, और उनकी उंगलिया बहुत देर तक मेरे चेहरे पे आई लाटो से खेलती रही. वो मेरे चादानी मे नहाए बदन को देखते रहे और मैं उन्हे (सिर्फ़ अभी भी मेरी जांघे अपने आप सिकुड जाती और टांगे एक दूसरे से लिपट कर छुपाने की कोशिश करती). कभी वो मुझे अपनी बाहों मे भर लेते और मैं उनके चौड़े सीने मे दुबक जाती. मेरे कान को हल्के से चूमते हुए उन्होने पूछा,
"तुम्हे बहुत ज़्यादा दर्द तो नही हुआ."
मेरे मन मे तो आया कहु, तुम बड़े बुद्धू हो, पर मेने जवाब मे अपनी उंगली से उनके होंठो को सहला कर बड़े धीमे से कहा,
"आप बड़े अच्छे है'."
उन्होने कस के मुझे भींच लिया. हल्के हल्के मेरे सीने को सहलाते, वो बोले,
"जब से मेने तुम्हे पहली बार देखा था ना.. बस मन करता था कितनी जल्दी मिलो तुम."
मेरा भी तो बस यही मन करता था, हर पल. सोचा बोलू मैं. पर मेरे शब्द कर मेरे होंठो पे रुक गये. और उनके होंठो ने उन्हे, मेरे होंठो से चुरा लिया.
"एक रस्म हमने नही की. मुझे तुम्हे, गोद मे उठा के कमरे मे घुसाना चाहिए था."मैं क्या बोलती. वो फिर बोले, "हम अब से कर सकते है",
उनकी आँखो मे देख के बस मैं मुस्करा दी. बस क्या था, उन्होने मुझे अपनी गोद मे उठाया, जैसे कोई किसी गुड़िया को उठा ले, बहुत आहिस्ता से. और ले जाके सामने फर्श पे बिस्तर था वहाँ उतार दिया. उनका स्पर्श और जिस तरह उन्होने मुझे उठाया था, मेरी तो आँखे बंद हो गयी. और जब मैं ने फिर आँखे खोली, तो एक बार फिर उन्होने उठा लिया. अब मैं उनकी गोद मे थी, उनकी ओर फेस करती हुई, मेरा सीना उनके सीने से लगा चिपता.
वो मेरी टाँगो को फैला के अपनी कमर के चारो ओर अड्जस्ट कर रहे थे. मेने अपनी टांगे उनके पीठ के पीछे बाँध ली और उनकी गोद मे बैठ गयी. तभी मेरी निगाह पास मे रखी चाँदी की तश्तरी मे रखे, चाँदी के बार्क लगे पानो पे गयी. मुझे याद आया, मेरी जेठानी ने ये भी कहा था कि पान भी खिला देना. जैसे ही मेने हाथ बढ़ाया, वो बोले,
"हाँ हां, हाथ से नही."मैं नही समझ पाई कि मैं क्या करूँ. थी तब तक उन्होने अपने हाथ से एक पान पकड़ के मेरे होंठो के बीच पकड़ा दिया. अब मैं उनकी मंशा समझ गयी. जब मेने पान अपने होंठो मे ले के उनकी ओर बढ़ाया तो थोड़ी देर तो वो इधर उधर सर करते रहे. पर अब मैं भी थोड़ा हिम्मती हो गयी थी. मेने उनका सर पकड़ लिया और अपने रसीले होंठो मे पकड़ा पान, उनके होंठो पे बढ़ाया और उनके शरारती होंठो ने पान के साथ मेरे होंठ भी जबरन पकड़ लिए और दोनो का रस, लेने लगे. आधा पान काट के मेरे मूह मे और आधा उनके मूह मे. उनकी बाहो मे मेरी देह और उनके होंठो के बीच मेरे होंठ. होंठो का रस लेते लेते उन्होने अचानक हल्के से मेरे निचले होंठ को काट लिया 'उईईइ' मेरी चीख निकल गयी और उनकी जीभ मेरे मूह मे घुस गयी. कुछ मेरे मूह मे घुलते पान के रस का असर, कुछ मेरे होंठो को चुसते उनके होंठो का और कुछ मेरे मूह मे उनकी ज़ुबान मेरी पूरे देह मे फिर से मदन तरंगे दौड़ने लगी.
कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
मेने भी उन्हे कस के अपनी बाहो मे भींच लिया. मेरे रसीले यौवन कलश उनकी चौड़ी मजबूत छाती से कस के दबे, कुचले जा रहे थे. मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं भी उसी तरह उनके होंठ चुसू, उनकी ज़ुबान से, लेकिन मेरे होंठ बस लरज के रह जाते. पर उनकी ज़ुबान मेरे मूह मे घूमती, रस लेती, मेरी जीभ को छेड़ती, खिलवाड़ करती और उनके होंठ, मेरे रसीले निचले होंठ को दोनो होंठो के बीच दबा के कस कस के रस लेते, कभी हल्के से काट लेते.
मेरे उपरी होंठ पे मेरी नथुनि लहरा रही थी, इस लिए वो शायद बच जाते पर आख़िर कब तक. ये बात उन्हे नागवार गुज़री औरनथ उठा के उन्होने एक कस के वहाँ भी चुम्मा ले लिया. और कुछ देर तक उसका रस लेने के बाद जब उन्होने उसे छोड़ के मेरे मुखड़े को देखा सुख से मेरी आँखे बंद थी. मांगती के और बिंदी को उठा के उन्होने मेरे माथे को चूम लिया. फिर अपनी जीभ की नोक से मेरे कान को छू लिया, और मेरे कान मे लहराते झूमर झनझणा उठे. अब मुझेसे भी रुकना मुश्किल था. मेरे होंठो ने शरारत से, हल्के से, उनके इयर लॉब्स चूम लिए. फिर तो मेरे गुलाबी गालो की शामत आ गयी. पहले तो वो चूमते रहे फिर उसे होंठो के बीच ले के चुसते चुसते, उन्होने हल्के से काट लिया. मैं चिहुन्क गयी कि कल अगर मेरी ननदो ने देख लिया तो चिढ़ा चिढ़ा के मेरी शामत कर देंगी. पर जहा उन्होने काटा था, वही मूह मे ले चुभलाने लगे. और जब तक मैं मना करती मेरे दूसरे गाल पे भी पहले तो चूसा फिर हल्के से काट लिया. वो गनीमत थी कि थोड़ी देर मे उनकी निगाह मेरी गहरी ठुड्डी पे, मेरे गाढ़े काले तिल पे पड़ी और उनके लालचाते होंठ उसे चूमने लगे.
तभी मेरी निगाह कपबोर्ड मे रखी घड़ी के रेडियम डाइयल पे पड़ी. 3 बजे रहे थे. ये 6 घंटे उनके साथ कैसे गुजर गये पता ही नही चला. मुझे ये भी नही पता चला था कि, उनके होंठ ठुड्डी से फिसल कर, गले से होते हुए कब और नीचे.. जैसे कोई यात्री दो पहाड़ियो के बीच घाटी मे हो उसी तरह उनके होंठ मेरी दोनो यौवन की पहाड़ियो के बीच. अचानक उन्होने अपनी बाहे ढीली कर दी और मैं पीछे की ओर झुक गयी. मेने अपने हाथो से पीछे की ओर सपोर्ट किया. मेरा सर एकदम नीचे झुका था और सिर्फ़ मेरे दोनो उरोज उपर उठे. 'हाँ हन बस इसी तरह..' वो बुदबुदाये (मैं उनकी नियत समझ गयी.
क्यो वो मुझे बिस्तर से यहा ले आए थे और क्यो मुझे गोद मे बिठा के इस तरह असल नाइट लॅंप फुट लाइट की तरह थे और अब उनकी रोशनी सीधे मेरे रूप कलशो पे अब ना मैं इन्हे छिपा सकती थी ना छिपाना चाह रही थी.)
बीच की घाटी से चढ़ते हुए उनके होंठ, जैसे आनंद के शिखर पे चढ़ रहे हो और वहाँ भी उनके होंठो ने वही शरारत की जो मेरे होंठो और गालो के साथ की थी. पहले तो चूमा, चूसा, चुभालाया और फिर हल्के से काट लिया. उनके मन सागर मे काम तरंगे ज्वर पे थी. और क्यो ना होती. वहाँ तो एक पूनम का चाँद रहता है और यहा उनके हाथ मे दो पूर्ण चंद्रा थे. वे नीचे से उन्हे हाथ से पकड़ते, दबाते और उपर से उनके होंठ और ज्वर सिर्फ़ उनके मन मे नही आ रहा था उनके तन पे भी उनका 'खुन्टा'और खुन्टा क्या.. वो इतने कड़ा लग रहा था जैसे लोहे का रोड हो. जैसे ज्वर मे सागर की लहरे पागल हो किनारे पे अपने सर पटकती है उसी तरह मेरी 'पंखुड़ियो' पे मेरी पूरी तरह खुली जाँघो के बीच 'वो' सर पटक रहा था. और मेरी पंखुड़िया भी मदमाति थी, 'उसे' 'अपने अंदर' लेने को, भींच लेने को. उधर उनके होंठो ने मेरी दोनो गोलाईयो के उपरी भाग पे कस कस के दाँत से अर्ध चन्द्र के निशान बानाए और फिर मेरे व्याकुल, एरेक्ट, प्रतीक्षा रत निपल के पास पहुँच कस के उन्हे मूह मे भर लिया और लगे चूसने. बहुत देर तक चुभालने के बाद उन्होने फिर मुझे पहले की तरह वापस खींच लिया. मेने दोनो हाथो से उन्हे कस के थाम रखा था, और उनके हाथ वो कहाँ खाली बैठने वाले थे.
एक मेरे कुचो से खेल रहा था और दूसरा मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो' से.
मेरे उपरी होंठ पे मेरी नथुनि लहरा रही थी, इस लिए वो शायद बच जाते पर आख़िर कब तक. ये बात उन्हे नागवार गुज़री औरनथ उठा के उन्होने एक कस के वहाँ भी चुम्मा ले लिया. और कुछ देर तक उसका रस लेने के बाद जब उन्होने उसे छोड़ के मेरे मुखड़े को देखा सुख से मेरी आँखे बंद थी. मांगती के और बिंदी को उठा के उन्होने मेरे माथे को चूम लिया. फिर अपनी जीभ की नोक से मेरे कान को छू लिया, और मेरे कान मे लहराते झूमर झनझणा उठे. अब मुझेसे भी रुकना मुश्किल था. मेरे होंठो ने शरारत से, हल्के से, उनके इयर लॉब्स चूम लिए. फिर तो मेरे गुलाबी गालो की शामत आ गयी. पहले तो वो चूमते रहे फिर उसे होंठो के बीच ले के चुसते चुसते, उन्होने हल्के से काट लिया. मैं चिहुन्क गयी कि कल अगर मेरी ननदो ने देख लिया तो चिढ़ा चिढ़ा के मेरी शामत कर देंगी. पर जहा उन्होने काटा था, वही मूह मे ले चुभलाने लगे. और जब तक मैं मना करती मेरे दूसरे गाल पे भी पहले तो चूसा फिर हल्के से काट लिया. वो गनीमत थी कि थोड़ी देर मे उनकी निगाह मेरी गहरी ठुड्डी पे, मेरे गाढ़े काले तिल पे पड़ी और उनके लालचाते होंठ उसे चूमने लगे.
तभी मेरी निगाह कपबोर्ड मे रखी घड़ी के रेडियम डाइयल पे पड़ी. 3 बजे रहे थे. ये 6 घंटे उनके साथ कैसे गुजर गये पता ही नही चला. मुझे ये भी नही पता चला था कि, उनके होंठ ठुड्डी से फिसल कर, गले से होते हुए कब और नीचे.. जैसे कोई यात्री दो पहाड़ियो के बीच घाटी मे हो उसी तरह उनके होंठ मेरी दोनो यौवन की पहाड़ियो के बीच. अचानक उन्होने अपनी बाहे ढीली कर दी और मैं पीछे की ओर झुक गयी. मेने अपने हाथो से पीछे की ओर सपोर्ट किया. मेरा सर एकदम नीचे झुका था और सिर्फ़ मेरे दोनो उरोज उपर उठे. 'हाँ हन बस इसी तरह..' वो बुदबुदाये (मैं उनकी नियत समझ गयी.
क्यो वो मुझे बिस्तर से यहा ले आए थे और क्यो मुझे गोद मे बिठा के इस तरह असल नाइट लॅंप फुट लाइट की तरह थे और अब उनकी रोशनी सीधे मेरे रूप कलशो पे अब ना मैं इन्हे छिपा सकती थी ना छिपाना चाह रही थी.)
बीच की घाटी से चढ़ते हुए उनके होंठ, जैसे आनंद के शिखर पे चढ़ रहे हो और वहाँ भी उनके होंठो ने वही शरारत की जो मेरे होंठो और गालो के साथ की थी. पहले तो चूमा, चूसा, चुभालाया और फिर हल्के से काट लिया. उनके मन सागर मे काम तरंगे ज्वर पे थी. और क्यो ना होती. वहाँ तो एक पूनम का चाँद रहता है और यहा उनके हाथ मे दो पूर्ण चंद्रा थे. वे नीचे से उन्हे हाथ से पकड़ते, दबाते और उपर से उनके होंठ और ज्वर सिर्फ़ उनके मन मे नही आ रहा था उनके तन पे भी उनका 'खुन्टा'और खुन्टा क्या.. वो इतने कड़ा लग रहा था जैसे लोहे का रोड हो. जैसे ज्वर मे सागर की लहरे पागल हो किनारे पे अपने सर पटकती है उसी तरह मेरी 'पंखुड़ियो' पे मेरी पूरी तरह खुली जाँघो के बीच 'वो' सर पटक रहा था. और मेरी पंखुड़िया भी मदमाति थी, 'उसे' 'अपने अंदर' लेने को, भींच लेने को. उधर उनके होंठो ने मेरी दोनो गोलाईयो के उपरी भाग पे कस कस के दाँत से अर्ध चन्द्र के निशान बानाए और फिर मेरे व्याकुल, एरेक्ट, प्रतीक्षा रत निपल के पास पहुँच कस के उन्हे मूह मे भर लिया और लगे चूसने. बहुत देर तक चुभालने के बाद उन्होने फिर मुझे पहले की तरह वापस खींच लिया. मेने दोनो हाथो से उन्हे कस के थाम रखा था, और उनके हाथ वो कहाँ खाली बैठने वाले थे.
एक मेरे कुचो से खेल रहा था और दूसरा मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो' से.
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
मेरी निगाह फिर चाँदी की तश्तरी पे पड़ी और मुझे भाभी की बात याद आ गई की दूल्हा दुल्हन को हर चीज़ जोड़े की करनी चाहिए. खास तौर् से पान तो जोड़ा से ही खाने चाहिए. लेकिन मेने सिर्फ़ एक पान उन्हे खिलाया और खुद खाया था.
मेने जोड़े का दूसरा पान उठाया और अपने गुलाबी होंठो के बीच ले के अबकी बार मैं उन्हे सता रही थी, छेड़ रही थी उकसा रही थी, पान के साथ मेरे रसीले होंठो का रस लेने को. और वो बेताब थे. जब उन्होने मेरा सर कस के पकड़ा अब मैं भी शरारती हो गयी थी मेरे होंठो ने उनके होंठो को जकाड़ लिया और मेने पान का एक हिस्सा उनके मूह मे पान के साथ मेरी जीभ भी उनके मूह मे चली गयी. बस क्या था पान चुभालने के साथ साथ उन्होने मेरी ज़ुबान भी चुसनी, चुभालनी शुरू कर दी. उनका हाथ मेरे सीने को कस कस के मसल रहा था, और दूसरा हाथ ' खूटे' को पकड़ के मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो के बीच' रगड़ रहा था, छेड़ रहा था. कुछ पान के रस का असर,
(ये मुझे तीन दिन बाद पता चला कि वो पान 'पलंग तोड़' पान था, बहुत ही कामोत्तेजक और मेरी शैतान ननदो ने उसमे डबल डोज डलवा दी थी.) कुछ उनके हाथो और होंठो की हरकतें मस्ती से मेरी हालत खराब थी, बस मन कर रहा था कि वो मुझे मसल दे, रगड़ दे बस 'करें' और तभी उन्होने फिर उठा के, मुझे आगे की ओर कर अपनी गोद मे बिठा लिया कि अब मेरी पीठ उनके सीने से रगड़ रही थी पहले की तरह अभी भी मेरी जांघें पूरी तरह खुली थी उनकी टाँगो मे इस तरह कस के फाँसी, कि मैं चाह के भी अपनी टांगे ज़रा सा भी नही सिकोड सकती थी. जब मेने नीचे झुक के देखा तो फुट लाइट की रोशनी सीधे मेरी गोरी जाँघो के बीच गुलाबी पंखुड़ियो पे. छुपाने का तो सवाल ही नही उठता था, इस कदर कस के उन्होने अपनी टाँगो से मेरी टांगे फैला रखी थी. मेने शरमा के अपनी आँखे बंद कर ली. उन्होने कचकचा के कस के मेरे गालो पे काटा और बोले आँख बंद करने की नही होती. वो उसे मन भर देख रहे थे, और उनकी दुष्ट उंगलियाँ, मेरी 'पंखुड़ियो' को छेड़ रही थी, मसल रही थी. फिर एक और फिर यौवन द्वार के अंदर घुस के अंदर बाहर मस्ती से मैं गीली हो रही थी.
और उधर उनका वो मोटा कड़ा काम दंड, ठीक मेरे नितंबो की दरारो के बीच और फूल रहा था, रगड़ रहा था. उसका मोटा गुलाबी, बेताब सर मेरी खुली जाँघो के बीच से झाँक रहा था. उन्होने अब वैसलीन की शीशी से दो उंगलियो मे ढेर सारी वैसलीन लेके 'उसके सर' पे लगाया और फिर उंगलियो को मेरे अंदर घुसेड दिया. कुछ देर के बाद फिर उन्हे बाहर निकाल के वैसलीन लगा के पहले ' 'उसके' उपर और फिर 'मेरे अंदर' खूब देर तक. मेरे सर को उन्होने अपनी ओर घुमा लिया था. एक बार फिर मेरे होंठ उनके होंठो के बीच दबे.. और उनकी जीभ मेरे मूह मे. मेरी तो बस मेरा मन कह रहा था कि शरम लिहाज छोड़ के मैं कहु, बस और मत तड़पाओ.. करो ना प्लीज़ बस करो और जैसे उन्होने मेरे मन की सुन ली.
बहुत हल्के से उन्होने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया. वो उसी तरह मेरी फैली जाँघो के बीच मे जब उन्होने मेरे नितंबो के नीचे कुशण लगाया तो मेने अपने आप एक पैर उनके कंधे पे मुस्करा के उन्होने मेरा दूसरा पैर भी अपनी बाह के बीच फँसा लिया. 'उसे' मेरी 'पंखुड़ियो' के बीच फँसा.. खूब कस के धक्का मारा. मेरी चीख निकल गयी, लेकिन अपने आप मेरे हिप्स उपर उठ गये 'उसे' और लेने के लिए. 6-7 धक्को के बाद जब 'वो' अंदर घुस गया तो एक पल के लिए वो रुके और झुक के मेरे होंठ चूम लिए. इस बार मेरे होंठो ने हल्के से ही लेकिन सिहर केउनके होंठ भी चूम लिए. फिर तो लगातार जैसे उन्हे इजाज़त मिल गयी हो कभी मेरी पतली कमर पकड़ के, कभी मेरे रसीले उरोजो को पकड़ के, दबाते, मसलते वो 5-6 धक्के खूब कस कस के लगाते. मैं सिहर जाती, कभी हल्की सी टीस भी उठती और फिर 10-12 धक्के खूब हल्के हल्के वो रगड़ते हुए मेरी सांकरी प्रेम गली को फैलाते कस के घिसटते उस समय कैसा लगता था बता नही स्काती. बिस्तर पे फुट लाइट की रोशनी मे सब कुछ दिखता था. बाकी कुछ कसर चारो ओर जल रही एरोआटिक कॅंडल्स पूरी कर दे रही थी, जिनकी मादक रोशनी खास तौर से मेरे चेहरे,
गोलाईयो और 'वहाँ' पड़ रही थी.
मेने जोड़े का दूसरा पान उठाया और अपने गुलाबी होंठो के बीच ले के अबकी बार मैं उन्हे सता रही थी, छेड़ रही थी उकसा रही थी, पान के साथ मेरे रसीले होंठो का रस लेने को. और वो बेताब थे. जब उन्होने मेरा सर कस के पकड़ा अब मैं भी शरारती हो गयी थी मेरे होंठो ने उनके होंठो को जकाड़ लिया और मेने पान का एक हिस्सा उनके मूह मे पान के साथ मेरी जीभ भी उनके मूह मे चली गयी. बस क्या था पान चुभालने के साथ साथ उन्होने मेरी ज़ुबान भी चुसनी, चुभालनी शुरू कर दी. उनका हाथ मेरे सीने को कस कस के मसल रहा था, और दूसरा हाथ ' खूटे' को पकड़ के मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो के बीच' रगड़ रहा था, छेड़ रहा था. कुछ पान के रस का असर,
(ये मुझे तीन दिन बाद पता चला कि वो पान 'पलंग तोड़' पान था, बहुत ही कामोत्तेजक और मेरी शैतान ननदो ने उसमे डबल डोज डलवा दी थी.) कुछ उनके हाथो और होंठो की हरकतें मस्ती से मेरी हालत खराब थी, बस मन कर रहा था कि वो मुझे मसल दे, रगड़ दे बस 'करें' और तभी उन्होने फिर उठा के, मुझे आगे की ओर कर अपनी गोद मे बिठा लिया कि अब मेरी पीठ उनके सीने से रगड़ रही थी पहले की तरह अभी भी मेरी जांघें पूरी तरह खुली थी उनकी टाँगो मे इस तरह कस के फाँसी, कि मैं चाह के भी अपनी टांगे ज़रा सा भी नही सिकोड सकती थी. जब मेने नीचे झुक के देखा तो फुट लाइट की रोशनी सीधे मेरी गोरी जाँघो के बीच गुलाबी पंखुड़ियो पे. छुपाने का तो सवाल ही नही उठता था, इस कदर कस के उन्होने अपनी टाँगो से मेरी टांगे फैला रखी थी. मेने शरमा के अपनी आँखे बंद कर ली. उन्होने कचकचा के कस के मेरे गालो पे काटा और बोले आँख बंद करने की नही होती. वो उसे मन भर देख रहे थे, और उनकी दुष्ट उंगलियाँ, मेरी 'पंखुड़ियो' को छेड़ रही थी, मसल रही थी. फिर एक और फिर यौवन द्वार के अंदर घुस के अंदर बाहर मस्ती से मैं गीली हो रही थी.
और उधर उनका वो मोटा कड़ा काम दंड, ठीक मेरे नितंबो की दरारो के बीच और फूल रहा था, रगड़ रहा था. उसका मोटा गुलाबी, बेताब सर मेरी खुली जाँघो के बीच से झाँक रहा था. उन्होने अब वैसलीन की शीशी से दो उंगलियो मे ढेर सारी वैसलीन लेके 'उसके सर' पे लगाया और फिर उंगलियो को मेरे अंदर घुसेड दिया. कुछ देर के बाद फिर उन्हे बाहर निकाल के वैसलीन लगा के पहले ' 'उसके' उपर और फिर 'मेरे अंदर' खूब देर तक. मेरे सर को उन्होने अपनी ओर घुमा लिया था. एक बार फिर मेरे होंठ उनके होंठो के बीच दबे.. और उनकी जीभ मेरे मूह मे. मेरी तो बस मेरा मन कह रहा था कि शरम लिहाज छोड़ के मैं कहु, बस और मत तड़पाओ.. करो ना प्लीज़ बस करो और जैसे उन्होने मेरे मन की सुन ली.
बहुत हल्के से उन्होने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया. वो उसी तरह मेरी फैली जाँघो के बीच मे जब उन्होने मेरे नितंबो के नीचे कुशण लगाया तो मेने अपने आप एक पैर उनके कंधे पे मुस्करा के उन्होने मेरा दूसरा पैर भी अपनी बाह के बीच फँसा लिया. 'उसे' मेरी 'पंखुड़ियो' के बीच फँसा.. खूब कस के धक्का मारा. मेरी चीख निकल गयी, लेकिन अपने आप मेरे हिप्स उपर उठ गये 'उसे' और लेने के लिए. 6-7 धक्को के बाद जब 'वो' अंदर घुस गया तो एक पल के लिए वो रुके और झुक के मेरे होंठ चूम लिए. इस बार मेरे होंठो ने हल्के से ही लेकिन सिहर केउनके होंठ भी चूम लिए. फिर तो लगातार जैसे उन्हे इजाज़त मिल गयी हो कभी मेरी पतली कमर पकड़ के, कभी मेरे रसीले उरोजो को पकड़ के, दबाते, मसलते वो 5-6 धक्के खूब कस कस के लगाते. मैं सिहर जाती, कभी हल्की सी टीस भी उठती और फिर 10-12 धक्के खूब हल्के हल्के वो रगड़ते हुए मेरी सांकरी प्रेम गली को फैलाते कस के घिसटते उस समय कैसा लगता था बता नही स्काती. बिस्तर पे फुट लाइट की रोशनी मे सब कुछ दिखता था. बाकी कुछ कसर चारो ओर जल रही एरोआटिक कॅंडल्स पूरी कर दे रही थी, जिनकी मादक रोशनी खास तौर से मेरे चेहरे,
गोलाईयो और 'वहाँ' पड़ रही थी.