घरेलू चुदाई समारोह compleet

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007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:25

सजल को अनुभव तो कम था पर इच्छा तीव्र थी। इसलिये वो एक बेहतरीन काम को अंजाम दे रहा था। उसने तो बस यूं ही चबाया था, क्या पता था कि उसकी मम्मी को इतना अच्छा लगेगा।
कोमल को अपनी चूत से हल्का सा बहाव महसूस हुआ। पर कुछ ही क्षण में वो एक ज्वालामुखी की तरह फ़ट पड़ी। ऐसा पानी छूटा कि बस- “अरे बेटा, मैं झड़ी… झड़ी रे माँआँ मेरी… चूस ले मुझे पी जा मेरा पानी… मेरे लाल… मेरे हरामी बेटे… आआआहह्हह्हह… हाआआआ… आआआआ…”
सजल का चेहरा तो जैसे ज्वालामुखी में समाया हुआ था। कोमल ने अपनी जांघों में उसे ऐसे कसा हुआ था कि उसकी सांस रुकी जा रही थी। पर वो कुछ नहीं कर सकता था। हाँ वो उस स्वादिष्ट पेय को जी भरकर पी सकता था, सो वही कर रहा था।
“तेरे मुँह में तो स्वर्ग है बेटा…” जब कोमल झड़कर निपटी तो बोली।
सजल ने भी चैन की सांस ली जब कोमल की जांघों ने अपनी पकड ढीली की। कोमल कुछ देर के लिये तो संतुष्ट हो गई थी पर कितनी देर के लिये…
“पेल दे अब यह लौड़ा मेरे अंदर, मेरे लाल…” कोमल फुसफुसाकर सजल से बोली।
सजल को तो कुछ करना ही नहीं पड़ा क्योंकी कोमल ने उसे अपने ऊपर खींचा और अपने हाथ से उसका लण्ड अपनी चूत के अंदर डालना शुरू कर दिया।
“मम्मी, यह अंदर जा रहा है…” सजल ने अपने मोटे लण्ड के सुपाड़े को कोमल की गीली चूत में विलीन होते देखकर कहा।
“क्या मेरी चूत तंग है…” कोमल ने पूछा- “क्या तुम्हारे लौड़े के लिये मेरी चूत टाइट है…”
“इतनी टाइट कि दर्द हो रहा है…” सजल ने अपनी मम्मी की चूत में अपने लण्ड को और गहराई तक उतारते हुए कहा। उसका लण्ड चूत में जा रहा था या किसी भट्ठी में…
“शायद इसलिये कि तुम्हारा लण्ड ही इतना बड़ा है। मेरी तो चूत जैसे फ़टी जा रही है…”
“क्या मैं रुक जाऊँ…” सजल ने चिंता से पूछा।
“ऐसा कभी न करना। चोदते समय मेरे साथ कभी सद्व्यव्हार मत करना। मुझे यह मोटा लौड़ा अपनी चूत की पूरी गहराई में चाहिये… पूरा जड़ तक… तुझे मैं सिखाऊँगी कि मुझे कैसी चुदाई पसंद है… मुझे जोरदार और निर्मम चुदाई पसंद है… कोई दया नहीं… वहशी चुदाई… अब रुको मत और एक ही बार में बाकी का लण्ड घुसेड़ दो मेरी चूत में…”
यह सुनकर सजल ने एक जोरदार शाट मारा और पूरा का पूरा मूसल अपनी मम्मी की चूत में पेलम-पेलकर दिया। पर कोमल के लिये यह भी पूरा न पड़ा।
“और अंदर…” वो चीखी।

007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:25


फिर तो उस जवान लड़के ने आव देखा न ताव और अपने लण्ड से जबरदस्त पेलाई शुरू कर दी। गहरे, लम्बे धक्कों की ऐसी झड़ी लगाई कि कोमल के मुँह से चूं तक न निकल पाई। कोमल जब झड़ी तो उसे लगा कि वो शायद मर चुकी है। उसका अपने शरीर पर कोई जोर नहीं है। उसकी चमड़ी जैसे जल रही है। उसकी चूचियों में जैसे पिन घुसी हुई हों। उसकी चूत की तो हालत ही खस्ता थी। सजल के मोटे लौड़े की भीषण पेलाई ने जैसे उसे चीर दिया था। उसके बाद भी वो मादरचोद लड़का पिला हुआ था उसकी चूत की असीमतम गहराइयों को चूमने के लिये।
उसने अपने होश सम्भालते हुए गुहार की- “दे मुझे यह लौड़ा, पेल दे, पेल दे, पेल दे… भर दे मेरी चूत, भर दे… भर दे इसे अपने लौड़े के पानी से…”
सजल अब और न ठहर सका। और भरभरा कर अपनी मम्मी की चूत में झड़ गया। कोमल अपनी चूत को उसके लण्ड पर रगड़ती जा रही थी।
जब दोनों शांत हुए तो कोमल उसे चूमते हुए बोली- “मेरे शानदार चुदक्कड़ बेटे, काश हम लोग भाग सकते होते तो हम कहीं ऐसी जगह चले जाते जहाँ हम जितनी चाहते, चुदाई कर सकते…”

“तुमने अपना पर्स और सेल फोन रख लिये हैं न…” घर से बाहर निकलते हुए सजल से कोमल ने पूछा। सजल गर्मी की छुट्टियों में घर आया हुआ था। अभी वह अपने दोस्त से मिलने बाहर जा रहा था।
“चिंता मत करो मम्मी… मैं बच्चा थोड़ा ही हूँ…” सजल ने जवाब दिया।

“मेरा ख्याल है मैं तुम्हारा कुछ ज्यादा ही दुलार करती हूँ…” कोमल ने सजल को गले लगाते हुए कहा- “मुझे खुशी है कि तुम छुट्टियों में घर आ गये। मुझे तो लगा जैसे पिछले दो हफ्ते कटेंगे ही नहीं। मुझे यह भी खुशी है कि तुम अब यहीं रहकर इसी शहर में पढ़ोगे…” कोमल ने अपना शरीर सजल के शरीर से कस के सटा दिया। सजल के बड़े लण्ड का उभार कोमल की चूत पे चुभने लगा।

“मेरा ख्याल है कि मुझे अभी अपने दोस्त से मिलने नहीं जाना चाहिए…” सजल बोला जब उसे अपना लण्ड सख्त होता महसूस हुआ। कोमल के ब्लाउज़ के ऊपर के बटन खुले हुए थे और उसकी की चूचियों का नज़ारा सजल के टट्टों में खलबली मचाने लगा था।

“हुम्म्म… अब मुझे उकसाओ नहीं… फिर तुमने अपने दोस्त से मिलने का वादा भी तो किया है… चुदाई के लिये तो अब सारी गर्मियां हैं और अब तो तुम यहीं रहकर पढ़ोगे…” कोमल ने पीछे हटकर सजल को समझाया- “और इससे पहले कि मैं तुम्हें बिस्तर पे खींच लूँ… तुम चले जाओ…” कोमल ने हँसते हुए कामुक अदा से कहा।

007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:26



सजल के जाने के बाद कोमल ने पिछले दो हफ्तों पर ध्यान दिया। इन दिनों में इतना कुछ हुआ था। उसने प्रेम, एक अजनबी से पहली बार अपनी गाण्ड मरवाई थी। और जिस दिन उसने सजल के साथ अपने नए रिश्ते की शुरूआत की थी, उस रात की बेरोक घनघोर चुदाई आज भी उसे याद थी। उसने सुनील को अब सजल को यहाँ लाने के लिये मना लिया था।

इसके लिये जो परिश्रम उसने किया था उससे उसकी चूत में अब दर्द सा होने लगा था। यही सब सोचते हुए वो नहाने के लिये चली गई। नहाने के बाद कोमल बाथरूम से बाहर आयी और खुद भी बाहर जाने के लिए तैयार होने लगी। हालांकि नहाने के बाद उसके बदन को ठंडक मिलनी चाहिए थी पर कम से कम उसके बदन के अंदर इसका उल्टा ही असर हुआ। उसके निप्पल और क्लिट पानी कि फुहार से उत्तेजित हो गये थे और उसकी चूत भी अंदर से जलने लगी थी।

कोमल को उत्तेजना अच्छी लग रही थी और उसने गर्मी में बाहर जाने का प्रोग्राम रद्द किया और अपनी साड़ी उतार फेंकी और फ्रिज़ में से एक ठंडी बीयर निकालकर सोफ़े पर बैठ गयी। कोमल ने अपने सैंडलयुक्त पैर सामने रखी मेज पर फैला दिये और बीयर पीते हुए एक हाथ से अपनी चूत सहलाने लगी। कोमल बहुत उत्तेजित हो गयी थी और जल्दी ही सिसकते हुए अपनी तीन अँगुलियां चूत के अंदर-बाहर करने लगी। वोह झड़ने ही वाली थी कि उसे लगा शायद डोरबेल बजी है।

“ओह नहीं… अभी नहीं…” कोमल कराही। वो घंटी की तरफ ध्यान न देती अगर वोह घंटी फिर से दो-तीन बार न बजती। दरवाजे पर जो भी था, उसे कोसती हुई कोमल उठी और जल्दी से अपने नंगे बदन पर रेशमी हाउस-कोट पहनकर गुस्से में अपनी ऊँची एंड़ी की सैंडल खटखटाती हुई दरवाज़े की ओर बढ़ी। अगर ये कोई सेल्समैन हुआ तो आज उसकी खैर नहीं।

“कर्नल मान…” कोमल अचिम्भत होकर बोली, जब उसने दरवाज़ा खोला और सजल के कालेज के प्रिंसिपल को सामने खड़े पाया।

कुछ बोलने से पहले कर्नल मान की आँखों ने कोमल के हुलिये का निरक्षण किया और उसे कोमल के मुँह से बीयर की गंध भी आ गयी।

“मैं क्षमा चाहता हूँ कोमल जी। मैंने अचानक आकर आपको परेशान किया… मुझे आने के पहले फोन कर लेना चाहिए था पर मैं एक मीटिंग के सिलसिले में इस शहर में आया हुआ था और यहाँ पास से ही गुज़र रहा था तो… मैं… मैंने सोचा…”

कोमल इस आदमी को अपने घर आया देखकर विश्मित थी, बोली- “पर हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि हम सजल को आपके कालेज से निकालकर इसी शहर में दाखिला दिला रहे हैं, कर्नल मान। फिर आपको हमसे क्या काम हो सकता है…”

कोमल को कर्नल मान आज हमेशा की तरह निडर और दिलेर नहीं लगा। कर्नल बेचैनी से अपनी टोपी को टटोलता हुआ बोला- “मैं दो मिनट के लिए अंदर आ सकता हूँ… कोमल जी…”

“ज़रूर कर्नल… मैं क्षमा चाहती हूँ… बस आपको अचानक देखकर अचंभित हो गयी थी… प्लीज़ आइये ना… बैठिये…” कोमल ने एक तरफ हटकर सोफ़े की तरफ इशारा करते हुए कहा।

कोमल ने जब कर्नल मान को सोफे की तरफ जाते हुए और बैठते हुए देखा तो वो सोचने लगी कि अपनी वर्दी के बगैर कर्नल का बदन कैसा लगेगा। कोमल का विश्वास था कि वर्दी के नीचे कर्नल का बदन संतुलित और गठीला होने के साथ-साथ किसी भी औरत को भरपूर आनंद देने में सक्षम था। कोमल उसके लौड़े के आकार के बारे में सोचती हुई बोली- “मैं बीयर पी रही थी… आप लेंगे…”

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