घरेलू चुदाई समारोह compleet

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007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:46


“मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, सजल… मुझे तुम्हारे साथ ऐसा करते हुए लग रहा है जैसे मैं फिर से जवान हो गई हूँ। मुझे चोदोगे… मैं तुम्हारे मोटे लण्ड को अपनी चूत में लेना चाहती हूँ…”

सजल ने अपने पुट्ठों को उठाया और मनीषा ने उसकी पैंट और फिर चड्ढी उतार फेंकी। उसकी शर्ट उसने अपने आप ही निकाल दी। मनीषा ने तो खुद नंगी होने में रिकार्ड बना दिया। जब सजल अपनी शर्ट उतार रहा था उतने में मनीषा ने अपने सैंडल छोड़कर बाकी सारे वस्त्र उतार फेंके थे।

“वाह, सजल…” मनीषा ने उसका मूसल जैसा लौड़ा देखकर तारीफ की- “यह तो बहुत बड़ा और मोटा है। लगभग…” उसके मुँह से सुनील का नाम निकलते-निकलते रह गया- “और ये मेरे हाथ में कितना सख्त लग रहा है…” कहते हुए मनीषा ने ईश्वर की उस सुंदर रचना को अपने मुँह में ले लिया।

“आआआह मनीषा आंटी…” सजल ने सिंहनाद की। मनीषा ने मुँह में लेते ही लण्ड की जबरदस्त चुसाई शुरू कर दी थी। सजल इसके लिये बिलकुल तैयार नहीं था।

“उम्म्म…” मनीषा ने चुसाई ज़ारी रखते हुए जवाब दिया। वह मन ही मन में सजल के लण्ड की तुलना उसके बाप के लण्ड से कर रही थी। यह बताना मुश्किल था कि उसे किसका स्वाद अधिक स्वादिष्ट लगा था। इसके लिये रस पीना ज़रूरी था।

“मुझे अपने झरने का थोड़ा रस पिलाओ न सजल…” मनीषा ने चुसाई करते हुए सजल के लण्ड की मुट्ठी मारनी चालू कर दी- “मुझे बताना जब तुम रस छोड़ने वाले हो। मैं तुम्हारा रस पीना चाहती हूँ। क्या तुम मेरा ऐसा करना पसंद करोगे…”

सजल के मुँह से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकली- “हाँ आंटी, ज़रूर… निकाल लो रस मेरे लण्ड से। चूस लो…” कुछ ही देर में वो फिर बोला- “मेरे ख्याल से निकलने ही वाला है… क्या आप तैयार हैं…”

मनीषा ने अपने मुँह की जकड़ उस पाइप पर तेज़ कर दी। कितनी लालची थी वो कि एक बूंद भी बेकार करने को राज़ी नहीं थी। सजल के गाढ़े वीर्य का पहला स्वाद उसे मुँह लगाते ही मिल गया। उसके बाद जो सजल ने रस की बरसात की तो मनीषा से पीना मुश्किल पड़ गया। आज तक उसने इतने जवान मर्द का पानी पिया नहीं था, न उसे पता था कि सजल के लौड़े में रस का झरना नहीं समंदर था। पर उसने हार नहीं मानी और किसी तरह पूरा पानी पी ही डाला।

“क्या तुम मेरे मम्मे, चूत और गाण्ड को छूना चाहोगे…” मनीषा ने जैसे इनाम की घोषणा की।

007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:47


हालांकि सजल अभी-अभी झड़ा था पर उसे अपने अनुभव से पता था कि वो चुटकी में ही फिर से तैयार हो जायेगा। ऐसे में इस तरह का प्रस्ताव ठुकराने का कोई मतलब ही नहीं था- “ज़रूर, मनीषा आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है…”

मनीषा ने अपनी गाण्ड सजल की ओर करते हुए कहा- “छूकर देखो इसे…” उसकी कांपती आवाज़ ने इस बात की गवाही दी कि उसका अपनी भावनाओं पर काबू खत्म होता जा रहा था। उसे चुदाई की भीषण आवश्यकता महसूस हो रही थी। जब मनीषा सामने की ओर मुड़ी तो उसकी खिली हुई चूत देखकर सजल से रहा नहीं गया। उसने उस उजली चूत में अपनी दो उंगलियां पेल दीं। मनीषा की आंखें इस अपर्त्याशित आक्रमण से पलट गईं और वह बिना कुछ सोचे हुए बोल पड़ी- “चोदो इसे… चोद मेरी चूत को, आंटीचोद…”

पर सजल पहले उस कुंए की गहराई नापना चाहता था और अपनी उंगलियों को बाहर निकालने को राज़ी नहीं था।

“बहुत हो गया यह सब सजल…” मनीषा ने डांट लगाई- “पहले मेरे मम्मों को चूसो और फिर मुझे चोदना चालू करो…” मनीषा ने अपना ध्यान सजल के लण्ड को सख्त करने में लगाते हुए हिदायत दी- “मेरे निप्पलों को काटना ज़रूर… चबा जाओ उन्हें… हां ऐसे ही… अरे बड़ा सीखा हुआ लगता है रे तू तो… किसने सिखाया तुझे ये सब…”

जब मनीषा ने देखा कि सजल का लण्ड चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार है तो उसने अपने मम्मों को सजल के मुँह से बाहर निकाल लिया। उसने सजल के खड़े लण्ड को अपने हाथ में लेकर उसके ऊपर अपनी चूत को रख दिया। और फिर एक झटके के साथ उसपर बैठकर उसे अपनी चूत में भर लिया। फिर मनीषा ने गुहार की- “भर दे, भर दे, ऐ महान लौड़े मेरी चूत को भर दे…”

“मेरी गाण्ड को सहारा दो, सजल…” कहकर मनीषा ने अपनी चूचियों को सजल के मुँह में भर दिया। आगे झुकने से लण्ड उसकी चूत में और टाइट हो गया और मनीषा को स्वर्ग के दर्शन धरती पर ही होने लगे।

सजल ने अब रुके बिना मनीषा की प्यासी चूत में अपना हलब्बी लौड़ा पेलना शुरू कर दिया।

मनीषा ने भी धक्कों में हाथ बंटाया और उसके लण्ड पर तेजी से सरकने लगी। कभी सजल नीचे से धक्का देता तो कभी मनीषा ऊपर से अपनी चूत को उसके लण्ड पर बैठाती।

सजल की तो जैसे चांदी थी। घर पर चुदासी मम्मी थी और पड़ोस में चुदक्कड़ आंटी। एक के न होने पर दूसरी चूत मिलने की अब गारंटी थी। यही सोचकर उसके समंदर का रस तेज़ी के साथ अपनी आंटी के कुंए की ओर अग्रसर हुआ- “आआआह, उंह उंह…” उसने अपने लण्ड की पिचकारी मनीषा की चूत में छोड़ते हुए आवाज़ निकाली। उसके शरीर की सारी माँस-पेशियां तनाव में आ गईं और उसे रात और दिन एक ही समय में दिखने लगे।

उधर मनीषा का भी ऐसा ही कुछ हाल था। सजल के लण्ड की पिचकारी को अपनी चूत में रस भरते हुए महसूस करते ही उसकी चूत ने भी अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया। वो इतनी तेजी से झड़ी कि उसे हर चीज़ की ओर से अनभिज्ञता हो गई। अगर कोई उससे इस समय उसका नाम भी पूछता तो शायद वो बता नहीं पाती।

“और सजल, और, भर दो मेरी चूत को… चोद मुझे हरामखोर, मादरचोद, फाड़ दे मेरी चूत रंडी की औलाद…” मनीषा को पता ही नहीं था कि वो क्या बके जा रही थी।

मनीषा तब तक सजल के मूसल जैसे लौड़े पर कथक्कली करती रही जब तक कि वो सिकुड़ नहीं गया। उसके बाद वो वहीं सजल के पास ढह गई। उसके चेहरे पर असीम सन्तुष्टि की झलक थी, और आंखों में एक वहशियाना चमक… वोह सोच रही थी की उस छिनाल कोमल से मेरा बदला अब पूरा हो गया। मैनें उसके पूरे खानदान को अपनी चूत में समा लिया है। अगर मैं अब चाहूँ तो दोनों बाप-बेटे मेरे सैडल के तलुवे भी खुशी-खुशी चाटने को तैयार हो जायेंगे।

सजल उस चुदी हुई औरत की ओर देखकर सोच रहा था कि मेरी अपनी उम्र से बड़ी औरतों पर यह दूसरी विजय थी। पर उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि मनीषा ने उसे मादरचोद क्यों बुलाया था… क्या वो जानती थी कि…


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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:48

जब कोमल ने अपनी गाड़ी घर के सामने खड़ी की तो उसे यह देखकर अचरज हुआ कि सजल मनीषा के घर से निकल रहा था।

“सजल… तुम उस औरत के घर में क्या कर रहे थे…” कोमल ने गुस्से से पूछा।

“उनसे एक बोतल नहीं खुल रही थी इसीलिये मुझे बुलाया था…” सजल ने हकलाते हुए जवाब दिया।

एक बार तो कोमल ने इस जवाब को स्वीकार कर लिया- “आगे से मैं तुम्हें उस कुतिया के पास नहीं देखना चाहूंगी। उसे अपने लिये ऐसा मर्द ढूँढ़ लेना चाहिये जो उसकी बोतल को खोल सके। यह हमारी गलती नहीं है कि उसका पति उसे छोड़कर भाग गया है…”

“अरे मम्मी, वो कोई बुरी औरत नहीं है…” सजल ने अपने द्वारा चुदी औरत का पक्ष लेते हुए कहा।

इससे तो कोमल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया- “अब मुझसे यह मत कहना कि तुम उस कुतिया को पसंद करने लगे हो। तुम उसके हाथों बेवकूफ मत बनना। मुझे उसपर रत्ती भर का विश्वास नहीं है और मैं हम में से किसी को भी उसके नज़दीक नहीं जाने दूँगी…”

घर के अंदर जाते हुए सजल अपना पूरा बचाव कर रहा था- “आखिर तुम्हें मनीषा आंटी में क्या बुराई नज़र आती है… मुझे तो वो एक ठीक औरत लगी…”

इसका जवाब देने के लिये कोमल बगलें झाँकने लगी। उसके जवाब से सजल को इतना तो समझ में आ गया कि यह नारी-सुलभ-ईर्ष्या का ही नतीज़ा है। सजल के मुँह से निकल गया- “तुम सिर्फ़ जलती हो, मम्मी…”

कोमल के सनसनाते हुए चांटे ने सजल के होश गंवा दिये। पर कोमल को अपनी गलती का तुरंत ही एहसास हो गया। कोमल ने सजल को अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहा। पर सजल ने उसे अलग कर दिया। न केवल सजल अपनी मम्मी से इस झापड़ के लिये नाराज़ था बल्कि वह इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं था कि उसके जिश्म से मनीषा की चुदाई की खुशबू आ रही थी।

“छोड़ो मम्मी, मैं नहाने जा रहा हूँ…”

“सजल…” कोमल ने आवाज़ दी पर सजल उसे पीछे छोड़कर निकल गया। पर कोमल को इस बात से भी तकलीफ थी कि उसका परिवार जो मनीषा से अभी तक दूरी रखे था अचानक क्यों उसका खैरगार हो गया था। जब इसका सम्भावित उत्तर कोमल के जेहन में आया तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। क्या वह मनीषा को भी चोद रहा था, जबकि उसे घर पर ही चूत उपलब्ध थी…

“वो कुतिया…” कोमल ने फुँफकार मारी। उसे विश्वास हो गया कि सजल ने मनीषा को चोद दिया था। अपनी मम्मी को चोदने से उसे अपने से बड़ी औरत का चस्का लग गया था।

मनीषा ने इसी का फायदा उठाया होगा।

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