नौकर से चुदाई पार्ट---2
गतान्क से आगे.......
यहा घर के घर में कॉन देखने आएगा बीबीजी. उसने अपनी बाहों का
बंधन सख़्त किया..मैने शरमाते हुए उसकी छोड़ी छाती में मुँह
छुपा लिया..मुन्ना तो है ना..-अरे वो तो अभी छोटा है..वो क्या जानता
है अभी..मैं उसकी बाहों के घेरे में कसमसाई..और जो कुछ रह
गया तो.मैं विधवा क्या करूँगी ?क्या ? वह कुछ समझा नही.यही.मैं
झिझकी..कह ना पाई.रुकी.सास ली. फिर कहा..आररे राम.कही मैं पेट
से रह गयी तो... हरिया के द्वारा गर्भवती होने की बात से ही मुझे
झुरझुरी आ गयी.जिसे उसने साफ महसूस किया..मेरे जवान जिस्म को
बाहों मे जकड़ा और पीठ पर हाथ फिराता हुआ बोला..बीबीजी यदि
ऐसा हो जाए कि बच्चा ना हो तो. मैं उस की बाहों की गरमी महसूस
करती हुई बुदबूदाई.क्या ऐसा हो सकता है ?समझो कि ऐसा हो चुका
है..मैने नज़र उठाई..उसे देखा. वह मूँछो में मुस्करा दिया..अभी
पिछली बार छः महीने पहले जब मैं गाव गया था ना तो मेने
आपरेशन करवा लिया था..मैने उस की छाती में नाक रगड़ी..कैसा
आपरेशन ? यही..बच्चे बंद होने का.-हाय मुझे तो बताया ही
नही.अब आप को क्या बताता बीबीजी...पाँच बच्चे तो हो गये.जब भी
गाव जाता हम एक बच्चा हो जाता है...उस के कहने का ढंग ऐसा था
कि.मुझे हँसी आ गयी. मुझे हँसता पा उसने मुझे ऐसी ज़ोर से
भीचा कि मेरे उरोज उसके सीने से दब उठे..और फिर उसनेबड़ी आतूरता से
मेरे पिछवाड़े पर हाथ लगाया तो मैं चिहुंक कर कह
उठी..हरिया..यहा नही.. मेरा इशारा समझ हरिया मेरा हाथ पकड़
खीचता हुआ मुझे अपने कमरे में ले गया. और मैं उसके साथ
बिना ना नुकुर किए चली गयी. हरिया का कमरा...मेरे ही घर का एक
कमरा था. उस में एक खटिया बिछी थी. एक कोने मे मोरी बनी थी.
और दूसरे कोने में एक आलिया था जिसमें भगवान बिराजे थे.
कमरे में पहुँचकर तो मेरे पाव जैसे जम से गये. मैं एक ही जगह
खड़ी रह गयी. तब उसने वही मुझे अपनी बालिश्ट भुजाओ में बाँध
लिया.मैं चुपचाप उस के सीने से लग गयी..आप बहुत खूबसूरत हो
बीबीजी.वह बड़बड़ा उठा.उसके हाथ स्वतंत्रता से मेरी पीठ पर
घूमने लगे. मैं खड़ी कुछ देर तो उसकी सहलावट का आनंद लेती
रही.मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.सात साल बाद किसी मर्द का
स्पर्श मिला था. फिर मैं कुनमूना के बोली..हरिया दरवाजा लगा
दो..-अरे बीबीजी यहा कॉन आएगा...-उहू.तुम तो लगा दो.. वह जा कर
दरवाजा लगा आया. आके मेरे को पकड़ा.मैं
बिचकी..हरिया..लाइट..-बीबीजी रहने दो ना.अंधेरे में क्या मज़ा
आएगा उसने मुझे बाहों में बाँध लिया.मुझे शरम आती है ना.. उसने मेरी बात नही
सुना. बस पीछे हाथ चलाता रहा.
नौकर से चुदाई compleet
Re: नौकर से चुदाई
मैं थोड़ी देर बाद फिर
कुनमुनाई..लाइट बंद करो ना. तब उसने बेमन से लाइट बंद की.
कमरे मे अंधेरा हो गया. अंधेरे बंद कमरे मे मैने अभी थोड़ी सी
चेन की सास भी नही ली थी कि उसने मुझे पकड़ कर खटिया पर पटक
दिया.और खुद मेरे साथ आ गया..मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था.
अब फिर से चुदवाने की घड़ी आ गयी थी. वह मेरे साथ गुथम गुथा
हो गया.
उस के हाथ मेरी पीठ और कुल्हों पर घूमने लगे. मैं उस से और वो
मुझसे चिपकेने लगा. मेरे स्तन बार बार उस के सीने से दबाए.
उस की भी सास तेज थी और मेरी भी. मुझे शरम भी बहुत आ रही
थी. मेरा उसके साथ यह दूसरा मोका था. आज मैने ज़्यादा एक्टिव पार्ट
नही लिया. बस चुपचाप पड़ी रही जो किया उसी ने किया और क्या किया ?
अरे भाई वही किया जो आप मर्द लोग हम औरतों के साथ करते हो.
पहले साड़ी उतारी फिर पेटीकोट का नाडा ढूँढा..खीचा..दोनो
चीज़े टागो से बाहर...मैं तो कहती ही रह गयी..अरे क्या करते
हो..-अरे क्या करते हो.. उसने तो सब खीच खांच के निकाल दिया. फिर
बारी आई ब्लाओज की.वो खुला..मैने तो उस का हाथ पकड़
लिया..नही...यह नही.. पर वो क्या सुने ?.उल्टे पकड़ा पकड़ी में उसका
हाथ कई बार मेरे मम्मों से टकराया. अभी तक उसने मेरे मम्मों को
नही पकड़ा था. ब्लाओज उतारने के चक्कर मे उसका हाथ बार बार
मेरे मम्मों से छुआ तो बड़ा ही अच्छा लगा. और फिर जब उसने मेरी
बाड़ी खोली तो मेरी दशा बहुत खराब थी. सास बहुत ज़ोर से चल
रही थी. गाल गुलाबी हो रहे थे. दिल धड़ धड़ करके बज रहा
था. शरीर का सारा रक्ता बह कर नीचे गुप्ताँग की तरफ ही बह
रहा था. उसने मेरे सारे कपड़े खोल डाले. मैं रात के अंधेरे में
नौकर की खटिया पर नंगी पड़ी थी..और फिर अंधेरे मे मुझे
सरसराहट से लगा कि वह भी कपड़े उतार रहा है. फिर दो
मर्दाने हाथों ने मेरी टांगे उठा दी.घुटनो से मोड़ दी. चौड़ा दी.
कुछ गरम सा-कड़क सामर्दाना अंग मेरे गुप्ताँग से आ टीका. और ज़ोर
लगा कर अपना रास्ता मेरे अंदर बनाने लगा. दर्द की एक तीखी
लहर सी मेरे अंदर दौड़ गयी. मैने अपने होठों को ज़ोर से भीच कर
अपनी चीख को बाहर ना निकलने दिया. शरीर ऐथ गया..मैने बिस्तर
की चादर को मुट्ठी में जाकड़ लिया. वह घुसाता गया और मैं उसे अपने
अंदर समाती गयी. शीघ्र ही वह मेरे अंदर पूरा लंड घुसा कर
धक्के लगाने लगा. मर्द था. ताकतवर था. पहाड़ी था. गाव का
था..और सबसे बड़ी बात.पिछले छः महीने से अपनी बीबी से नही
मिला था. उसे शहर की पढ़ी लिखी खूबसूरत मालकिन मिल गयी तो
मस्त हो उठा. जो इकसठ बासठ करी तो मेरे लिए तो संभालना
कठिन हो गया. बहुत ज़ोर ज़ोर से पेला कम्बख़्त ने..मेरे पास और कोई
चारा भी ना था. पड़ी रही पिलावाती रही. हरिया का लंड दूसरी
बार मेरी चूत में गया था. बहुत मोटा सा.कड़ा कड़ा..गरम
गरम..रोज मैं कल्पना करती थी कि मेरा मर्द मुझे ऐसे चोदेगा
वैसे चोदेगा. आज मैं सचमुच चुदवा रही थी.
कुनमुनाई..लाइट बंद करो ना. तब उसने बेमन से लाइट बंद की.
कमरे मे अंधेरा हो गया. अंधेरे बंद कमरे मे मैने अभी थोड़ी सी
चेन की सास भी नही ली थी कि उसने मुझे पकड़ कर खटिया पर पटक
दिया.और खुद मेरे साथ आ गया..मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था.
अब फिर से चुदवाने की घड़ी आ गयी थी. वह मेरे साथ गुथम गुथा
हो गया.
उस के हाथ मेरी पीठ और कुल्हों पर घूमने लगे. मैं उस से और वो
मुझसे चिपकेने लगा. मेरे स्तन बार बार उस के सीने से दबाए.
उस की भी सास तेज थी और मेरी भी. मुझे शरम भी बहुत आ रही
थी. मेरा उसके साथ यह दूसरा मोका था. आज मैने ज़्यादा एक्टिव पार्ट
नही लिया. बस चुपचाप पड़ी रही जो किया उसी ने किया और क्या किया ?
अरे भाई वही किया जो आप मर्द लोग हम औरतों के साथ करते हो.
पहले साड़ी उतारी फिर पेटीकोट का नाडा ढूँढा..खीचा..दोनो
चीज़े टागो से बाहर...मैं तो कहती ही रह गयी..अरे क्या करते
हो..-अरे क्या करते हो.. उसने तो सब खीच खांच के निकाल दिया. फिर
बारी आई ब्लाओज की.वो खुला..मैने तो उस का हाथ पकड़
लिया..नही...यह नही.. पर वो क्या सुने ?.उल्टे पकड़ा पकड़ी में उसका
हाथ कई बार मेरे मम्मों से टकराया. अभी तक उसने मेरे मम्मों को
नही पकड़ा था. ब्लाओज उतारने के चक्कर मे उसका हाथ बार बार
मेरे मम्मों से छुआ तो बड़ा ही अच्छा लगा. और फिर जब उसने मेरी
बाड़ी खोली तो मेरी दशा बहुत खराब थी. सास बहुत ज़ोर से चल
रही थी. गाल गुलाबी हो रहे थे. दिल धड़ धड़ करके बज रहा
था. शरीर का सारा रक्ता बह कर नीचे गुप्ताँग की तरफ ही बह
रहा था. उसने मेरे सारे कपड़े खोल डाले. मैं रात के अंधेरे में
नौकर की खटिया पर नंगी पड़ी थी..और फिर अंधेरे मे मुझे
सरसराहट से लगा कि वह भी कपड़े उतार रहा है. फिर दो
मर्दाने हाथों ने मेरी टांगे उठा दी.घुटनो से मोड़ दी. चौड़ा दी.
कुछ गरम सा-कड़क सामर्दाना अंग मेरे गुप्ताँग से आ टीका. और ज़ोर
लगा कर अपना रास्ता मेरे अंदर बनाने लगा. दर्द की एक तीखी
लहर सी मेरे अंदर दौड़ गयी. मैने अपने होठों को ज़ोर से भीच कर
अपनी चीख को बाहर ना निकलने दिया. शरीर ऐथ गया..मैने बिस्तर
की चादर को मुट्ठी में जाकड़ लिया. वह घुसाता गया और मैं उसे अपने
अंदर समाती गयी. शीघ्र ही वह मेरे अंदर पूरा लंड घुसा कर
धक्के लगाने लगा. मर्द था. ताकतवर था. पहाड़ी था. गाव का
था..और सबसे बड़ी बात.पिछले छः महीने से अपनी बीबी से नही
मिला था. उसे शहर की पढ़ी लिखी खूबसूरत मालकिन मिल गयी तो
मस्त हो उठा. जो इकसठ बासठ करी तो मेरे लिए तो संभालना
कठिन हो गया. बहुत ज़ोर ज़ोर से पेला कम्बख़्त ने..मेरे पास और कोई
चारा भी ना था. पड़ी रही पिलावाती रही. हरिया का लंड दूसरी
बार मेरी चूत में गया था. बहुत मोटा सा.कड़ा कड़ा..गरम
गरम..रोज मैं कल्पना करती थी कि मेरा मर्द मुझे ऐसे चोदेगा
वैसे चोदेगा. आज मैं सचमुच चुदवा रही थी.
Re: नौकर से चुदाई
वास्तविक..सच्ची कि चुदाई.मर्द के लंड की चुदाई..ना तो उसने
मेरे मम्मों को हाथ लगाया. ना हमारे बीच कोई चूमा चॅटी हुई.
बस एक मोटे लंड ने एक विधवा चूत को चोद डाला..और फिर जब
खुशी के पल ख़तम हुए तो वह अलग हुआ. अपना ढेर सा वीर्य उसने
मेरे अंदर छोड़ा था. पता नही क्या होगा मेरा.सोचती मैं उठ
बैठी.और नंगी ही दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गयी. बाथरूम
तो मैने जा कर अपने कमरे मे किया. बहुत सा वीर्य मेरे जघो और
झटों पर लग गया था.सब मेने पानी से धो कर साफ किया...
(अगले दिन).सुबह जब मैं उठी तो बदन बुरी तरह टूट रहा था. बीते
कल मेने अपने नौकर हरिया के साथ सुहागरात जो मनाई थी. मैं
रोज की तरह स्कूल गयी. खाना खाया..शाम को पड़ोस की मिसेज़ वर्मा
आ गयी तो उनके साथ बैठी. सारा रूटीन चला बस जो नही चला वो
यह था कि मेने सारा दिन हरिया से नज़रें नही मिलाई. रात को
खाने के बाद जब मैं रसोई मे गयी तो वह वहीं था. मेरा हाथ
पकड़ कर बोला.बीबीजी रात को आओगी ना.. मेरे तो गाल शरम से लाल
हो उठे. हाथ छुड़ा कर चली आई. रात मुन्ना के सो जाने के बाद
भी मेरी आँखों मे नींद नही थी. बस हरिया के बारे मे ही सोचती
रही. करीब एक घंटा बीत गया.उसने इंतज़ार किया होगा. मैं नही
गयी तो वही आया. दरवाजे की कुण्डी क्या बजी मेरा दिल बज उठा.
मैने धड़कते दिल को साड़ी से कस कर दरवाजा खोला.वही
था..बीबीजी..मैं अंदर आउ ?.मैं ना मे गरदन हिलाई तो वह मेरा
हाथ पकड़ कल की तरह खीचता हुआ अपने कमरे की ओर ले चला.
मैं विधवा अपने नौकर के लंड का मज़ा लेने के लिए उसके पीछे
पीछे चल दी. उस रात हरिया के कमरे मे मेरी दो बार चुदाई हुई.
पूरी तरह सारे कपड़े खोल कर...मैं तो ना ना ही करती रह
गयी..उसने मेरी एक ना सुनी. वो भी नंगा भी नंगी. अंधेरा कर के.
नौकर की खटिया पर. वही टांगे उठा कर्कल वाले आसन से..एक बार
से तो जैसे उस का पेट ही नही भरा. एक बार निपटने के थोड़ी देर
बाद ही खड़ा करके दुबारा घुसेड दिया. बहुत सारा वीर्य मेरी चूत
मे छोड़ा. पर ना मेरे मम्मों को हाथ लगाया ना कोई चुम्मा चॅटी
किया. बस एक पहाड़ी लंड शहर की प्यासी चूत को चोदता रहा. जब
चुद ली तो कल की तरह ही उठकर चुपचाप अपने कमरे मे आ गयी
उस रात जब मैं सोई तो मैने मंथन किया..सुख कहा है. तकिया दबा
के काल्पनिक चुदाई मे या हरिया के पहाड़ी मोटे लंड से वास्तविक
चुदाई मे. विधवा हू तो क्या मुझे लंड से चुदवाने का अधिकार
नही है ? जिंदगी भर यूँ ही तड़पति रहू ? नही..मैं हरिया का
हाथ पकड़ लेती हू. नौकर है तो क्या हुआ. क्या उसके मन नही है ?
क्या वह मर्द नही है? उसमे तो ऐसा सब कुछ है जो औरत को चाहिए
क्या फ़र्क पड़ता है. फिर ? नौकर है तो क्या हुआ ? मर्द तो है. स्वाभाव
कितना अच्छा है. पिछले दो साल से मेरे साथ है कभी शिकायत
का मौका नही दिया. अरे यह तो और भी अच्छा है. घर के घर
मे.किसी को मालूम भी ना पड़ेगा. समाज ने शादी की संस्था क्यों
बनाई है? ताकि लंड चूत का मिलन घर के घर मे होता रहे. जब
लंड का मन हो वो चूत को चोद ले और जब चूत का मन आए वो लंड से
चुदवा ले. हर वक्त दोनो एक दूसरे के लिए अवेलेबल रहें. अब मान लो
मैं कोई मर्द बाहर का करती हू तो क्या होगा वो आएगा तो पूरे
मोहल्ले को खबर लग जाएगी कि सीमा के घर कोई आया है. रात भर
तो वो हरगिज़ नही रह सकेगा. उस की खुद की भी फेमिली होगी. हमेशा
एक डर सा बना रहेगा.