नौकर से चुदाई compleet

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raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 29 Oct 2014 08:08

इस से तो यह कितना अच्छा है. घर के घर मे
पूरा मर्द चाहो तो रात भर मज़ा लो..किसी को क्या पता पड़ता कि तुम
अपने घर मे क्या कर रहे हो. फिर इस की फेमिली भी गाँव मे है. यह
तो गाँव वैसे भी साल छः महीने मे जाता है. उन लोगों को भी क्या
फ़र्क पड़ता है कि हरिया यहाँ किसके साथ मज़े लूट रहा है..तो
मैं क्या करूँ ?.ठीक है- हो गया जो हो गया..भगवान की मरजी
समझ कबूल करती हू..लेकिन हरिया भी क्या इसे कबूल करेगा?.उसे
क्या चाहिए ?.मुझे मालूम है मर्द को क्या चाहिए होता है जो उसे
चाहिए वो मैं उसे दूँगी तो वह क्यों मना करेगा भला?.वह भी तो
बिना औरत के यहाँ रहता है.उस का भी तो मन करता होगा. मन तो
करता ही है तभी तो कल भी चोदा और आज फिर आ गया..यदि मेरे
जैसी सुंदर औरत इस से राज़ी राज़ी से चुदायेगि तो क्यों नही
चोदेगा भला ?.देखते है आगे क्या होता है मेरे भाग्य मे मर्द का
सुख है या नही..

अगला दिन मेरी जिंदगी का खूबसूरत दिन था. मैं फेसला ले चुकी
थी. मैं हरिया से संबंध कायम रखुगी. जवानी के मज़े लूँगी.
सुबह से मेने अपने रोज के काम मे मन लगाया..नहाते मे मेने अपनी
चूत को साबुन लगा लगा कर खूब साफ किया. बाद मे अपनी झांतदार
चूत को खूब पावडर लगाया. चूत पर हाथ लगाते हुए मुझे हरिया
का ही ध्यान आया. अब तक यह चूत हरिया के लंड से दो दिनों मे चार
बार चुद चुकी थी. अब यह चूत हरिया की चूत है..दोपहर मैं स्कूल
गयी. शाम को घर का दूसरा काम किया. खाने के बाद मैं मुन्ना को
लेकर अपने कमरे मे आ गयी. मुझे इंतज़ार था कि मुन्ना सो जाए तो
कुछ हो. मुन्ना सो गया तो सोचा मैं खुद हरिया के पास चली
जाउ.फिर मन मे आया देखु तो सही आज हरिया की क्या रिएक्शन रहती
है.वह इंटरेसटेड होगा तो अपने आप आएगा. मेरे काम सुख का आगे का
भविष्य उसके आने, ना आने पर ही निर्भर रहेगा. मैं इंतज़ार
करती रही... मेरा इंतज़ार व्यर्थ नही गया. भगवान मुझ पर
प्रसन्न था. थोड़ी देर बाद कुंडी खड़की..मेरा मन नाच उठा. मेरी
खुशी का ठिकाना नही था.मैं तो उठ कर सीधी देवी मा के
सिंहासन के पास गयी और उनको हाथ जोड़ कर नमस्कार किया कि हे मा
मेरा सब काम अच्छे से करना.मुझे किसी चीज़ की कमी नही है.घर
है,नौकरी है,बच्चा है...बस मर्द नही हैमर्द का लंड नही
है.सो अब आपने संयोग बनाया है..इसे ठीक से निभाने देना. इतनी
देर मे तो कुण्डी दुबारा खड़क गयी. मेने जा कर दरवाजा
खोला.हरिया सामने था. उसे सामने पा कर मैं ना जाने क्यों शरमा
उठी..सो गयी थी बीबी जी..उसने बड़े प्यार से पूछा..मुझसे तो मुँह
से बोल ही नही फूटा. बस ना मे गर्दन हिला दी. तब...हरिया..मेरा
नौकर..मुझे हाथ पकड़ कल की तरह ही अपने कमरे मे ले गया.
दोस्तो हरिया और सीमा की चुदाई की दास्तान अगले पार्ट मे पढ़े
आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........

raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 29 Oct 2014 08:09

नौकर से चुदाई पार्ट---3

गतान्क से आगे.......

उसके साथ जाते जाते मेरा दिल कल से भी ज़्यादा ज़ोर ज़ोर से धड़क

रहा था. इस घड़ी का तो मैं शाम से इंतज़ार कर रही थी. वहाँ.उस

के कमरे मे..जब वह मुझे पकड़ खीचाने लगा तो मैं छिटक कर बोल

उठी.दरवाजा..वह चुपचाप जा कर दरवाजा लगा आया..तो मैने

साड़ी का पल्लू उंगली पर लपेटते हुए कहा.हर.र.रिया..ला..ई..ट. उसने

चुपचाप जा कर लाईट बुझा कमरे मे अंधकार कर दिया.और पास आ

कर मुझे पकड़ा तो मैं खुद उसके सीने से लग गयी. वह वही खड़े

खड़े मुझे सहलाने लगा..वा मेरी पीठ पर हाथ फेरा..पीठ से

कमर पर आया.और फिर नीचे चूतरो तक पहुँच गया. आपसे सच

कहती हू उसके द्वारा अपने चूतरो सहलाए जाने से मेरी साँस

धोकनि की तरह चलने लगी थी. वह खड़े खड़े बहुत देर तक मेरे

पिछवाड़े पर अपना हाथ फेरता रहा. उसके इस तरह हाथ फेरने

से ही मैं तो गीली हो उठी. और बुरी तरह उस के सीने मे घुसने

लगी..मेरा गला सुख गया था.खड़े रहना मुश्किल हो रहा था. ऐसा

लग रहा था मैं बेहोश हो कर ही गिर पड़ूँगी. उसी हालत मे वह मेरे

कपड़े उतारने लगा तो मेरी हालत और खराब होगयि. उस ने खड़े

खड़े ही अंधेरे बंद कमरे मे मेरे सारे कपड़े खोल

डाले..साड़ी.1.पेटीकोट...2.ब्लाउस..3.और अंत मे ब्रा.4.आपकी

जानकारी के लिए बता दू कि वैसे स्कूल जाते समय तो मैं पेंटी

पहनती हू पर घर मे रहती हू तो उतार देती हू.

और रात मे भी मैं तो साड़ी ब्लाओज मे ही सोती हू.मेक्सी नही पहनती
हू..तो.मैं एक दम नंगी हो कर बहुत शरमाई.वो तो अच्छा था कि
अंधेरा था. फिर पल भर वो अलग हुआ और अपने कपड़े खोल दिए. अब
जो मुझे खड़े खड़े अपनी बाहों मे लिया तो वो पल मेरे लिए बहुत
आनंद दायक था. बहुत अनोखा. एक दम अलग..नंगा वो नंगी मैं.दोनो
एक दूसरे से खड़े खड़े चिपक गये. वही मुझे बाहों मे भीचा मैं
तो बस चुपचाप उसके सीने से लग गयी.मेरे तो शरम के मारे
हाथ ही ना उठे कि उसे अपनी बाहों मे भर लूँ. बहुत अच्छा लग
रहा था. उसने इसी हालत मे जब मेरे पिछवाड़े पर हाथ फिराया तो
बस मुझे लगा मैं खड़े खड़े ही मूत दूँगी. चूत मे अजीब तरह की
सुरसुरी हो रही थी. तभी उसने मुझे अंधेरे मे खटिया पर लिटा
दिया..और मेरे उपर चढ़ कर मेरी टाँगों को उठा दिया. अगले ही पल
उसका मोटा लंड मेरी चूत से आ कर अड़ा..और दबाव के साथ अंदर होने
लगा. मुझे जाँघो के बीच तेज दर्द हुआ. मेरी चूत मोटे लंड के
द्वारा चौड़ी की जा रही थी. मैं बिस्तर मे पड़े पड़े तड़प उठी. पूरी
प्रवेश क्रिया के दौरान मेने एक बार कराह के
कहा.हा..री..य्ाआआः...धीरे..पर यह नही कहा कि हरिया मत करो.

raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 29 Oct 2014 08:10

आज मेरी मनहस्थिति दूसरी थी. आज तो मैं खुद चुदवाना चाहती
थी. मैने खुद अपनी टाँगों को फेला कर उसका लंड अंदर करवाया.
वह अंदर घुसा चुका तो बोला..बस बीबी जी...हो गया..लेकिन घुसा कर
रुका नही.बस धक्के लगाने शुरू कर दिए. अब लंड अंदर जाएबाहर
निकले.मैं पड़ी पड़ी ठुसक़ती जाउ. उँहुक..उँहुक..उँहुक.अंदर-
बाहर.अंडर्बाहर.उँहुक..उँहुक..उँहुक.हरिया ने थोड़ी ही देर मे वो
मज़ा ला दिया जो मेरे नसीब मे था ही नही.जिसके लिए मैं हमेशा
तरसती रहती थी. वो मज़ा मुझे तकिया लगा कर कभी नही आता
था. उँहुक..उहुंक.उँहुक. खटिया को हिलता हुआ मैं साफ साफ महसूस
कर रही थी. उँहुक..उहुंक.उँहुक. जब उसका मोटा सा लंड अंदर जाता
था तो मेरे मुँह से अपने आप ठुसकने की आवाज़ निकलती थी. इस
तरह कमरे मे रात के अंधेरे मे दो आवाज़ें बड़ी देर तक गूँजती
रही.खटिया की चर्र्र्ररर चर्र्ररर और मेरी उँहुक उम. और.फिर...अच्छे काम का
अंत तो होता ही है. मेरी चुदाई का भी अंत हुआ. वह झाड़ा..एक
दम..अचानक से.फॉरसाफूल..वीर्य का फव्वारा मेरी चूत मे छूट
पड़ा. उस समय के लगने वाले झटके बड़े ही अदभुद थे.पहले मेरा
इस ओर ध्यान ही नही गया था. लंड जो कि लोहे की राड की तरह सख़्त
था-मेरे अंदर ऐसी ज़ोर ज़ोर से तुनका कि बस पूछो मत. उसका
फूलनझटका लेना और फ़िरवीर्या छोड़ना महसूस कर मैं खुशी से
पागल हो उठी. और उसी पागलपन मे जानते है क्या हुआ ?.मेरा खुद
का स्खलन हो गया. गौरतलब है कि पिछली चुदायियो मे मेरा
अपना डिस्चार्ज नही हुआ था.यह मेरी आज की मानसिक अवस्था का
परिणाम था कि मैं आज डिस्चार्ज हुई. एक दम बदन हिला..कंपकपि
आई..और.मेरी चूत पानी छोड़ बैठी. मैं तो बहाल...उसी अवस्था मे
मुझे ना जाने क्या सूझा कि मैने हरिया को पकड़ कर अपने उपर गिरा
लिया.उसके गले मे बाहे डाल दी.बुरी तरह लिपट गयी. बेखुदी मे मेरे
होठ कह उठे..हा..रि..या.मेरे..रा..जा. वह झाड़ चुका था. उसी
अवस्था मे अपना लंड मेरे अंदर डाले हैरत से बोल पड़ा.राजा ??

आपने मुझे राजा कहा बीबीजी... मैं उस से और ज़ोर से लिपट गयी और
ज़ोर ज़ोर से साँसे लेते हुए बोली..अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो
हरियाआआआअ..इस भावना के आते ही मेरा और स्खलन हो उठा. चूत
मे से पानी छूटा तो मैं अपने उपर सवार नौकर से और कस कर लिपट
गयी. बस यही जवानी का सुख था. उसने भी मुझे अंधेरे मे ज़ोर से
बाहों मे जाकड़ लिया. दोनो के मन मे बस यही भावना थी कि हमे कोई
एक दूसरे से जुदा ना करे. जल्दी तो कोई थी नही. दोनो घर के
घर मे थे. दोनो इसी अवस्था मे बहुत देर तक पड़े रहे. लंड राम
मेरी चूत मे ही डाले रहे तब तक जब तक कि ढीले हो कर खुद ही बाहर
ना निकल आए. तब जब बहुत देर हो गयी और उसके मुझ पर से
उतरने के कोई आसार ना दिखे तब मैं नीचे से कुनमूनाई.उसे उठने
का इशारा दिया. तब जा के वह मुझ पर से उठा.

मैं भी उठ बैठी.

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