लेकिन भाभी ने कुछ इनके कान मे कहा और बात सम्भल गयी.
"उन्होने कुहबार मे कहा था कि तुम पिल लेती हो इसलिए मुझे कोई प्रोटेक्षन लेने की ज़रूरत नही है, वरना मैं परेशान हो रहा था कि मैं क्या करूँगा."
उन्होने राज खोला.
"और दूसरा"मैं उत्सुक थी.
"जाने दो तुम नाराज़ हो जाओगी."चाय ख़तम करते वो बोले.
"नही नही..प्लीज़ बताइए ने."इठला के उनकी बाह पकड़ के मेने पूछा.
"तुम्हे याद है विदाई के समय जब मैं और भाभी गले मिल रहे थे तभी उन्होने मुझे पैंटी के हुक का राज बता दिया था."हँसते हुए उन्होने बताया.
ये ये फाउल है..चलिए भाभी से मिलूंगी तो खूब झगड़ा करूँगी. मुझे छोड़ आपसे मिल गयी."
"अर्रे मैं उनका प्यारा ननदोयि जो हू"वो बोले.
"अच्छा प्यारे ननदोयि जी और आज सुबह आपकी प्यारी सलहज ने क्या सुझाव दिया जब आपने"
"वो ..वो जब मेने उनसे कहा कि आपकी ननद बड़ी शर्मीली है, तो वो बोली कि,
पहले आप तो अपनी शरम छोड़िए, और खास तौर से बोलने मे. जितने आप बेशरम होंगे, खुल के हर चीज़ बोल पड़ेंगे, उतनी ज़्यादा उसको बेशरम बना पाएँगे."मेरे कंधे पे हाथ रख के मुस्कराते हुए वो बोले.
मेने हंस के सोचा कि भाभी ने दे दिया इनको गुरु मन्त्र.
वो चाय का प्याला रखने उठाने लगे तो मेने कहा मैं रख आती हू तो वो बोले अच्छा चलो साथ साथ. कमरे से लगा एक किचन था. लेकिन छोटे किचेन के साइज़ का, गॅस स्टोव, ओवेन, फ्रिड्ज, वॉश बेसिन सब कुछ था, और चाय काफ़ी और ढेर सारा स्नेक्क्स.
जब हम लोग बाहर निकले तो 9 बजने मे सिर्फ़ 10 मिनिट बचे थे. उन्होने मुझसे बोला कि दरवाजा अंदर से खोल दो. मेने सितकनि खोल दी और उनके साथ सोफे पे बैठ गयी.
मैं सोचने लगी कि कैसे रात गुजर गयी पता ही नही चला. अगर मेरी कोई सहेली, मुझसे पूछे कि मुलाकात हुई क्या बात हुई तो मैं क्या बताउन्गि.
रात भर हम लोग. बोले तो बहुत कम लेकिन बाते बहुत की.
तब तक हल्के से और फिर एक झटके से दरवाजा खुलने की आवाज़ आई.
अंजलि, मेरी एक और ननद, गुड्डी और पीछे पीछे मेरी जेठानी जी. मेरी ननदो की निगाहें सीधे बेड पे जैसे अभी भी हम लोग लेटे या कुछ कर रहे या फिर बेड पे कुछ तेल साइन्स पर वहाँ पे तो बिस्तर साफ सुथरा, एक सिकन भी नही और फिर जब उन लोगो ने हम लोगो को देखा तो हम दोनो सोफे पे अच्छे बच्चो की तरह दूर दूर बैठे और मैं नहा धो के तैयार, सजी. मेने झुक के अपनी जेठानी का पैर छुआ तो पैर छूने के पहले ही उन्होने मुझे, ये कहते हुए उठा लिया कि तुम मेरा पैर मत छुआ करो, तुम तो मेरी छोटी बहन हो, और गले से लगा लिया. लेकिन वो भी गले से लगा के धीरे से मेरे कान मे पूछा, कैसी रही. अपनी भाभी की तरह मैं उनसे भी कोई बात छिपा नही सकती थी. बस मैं हल्के से मुस्करा दी और मेरे मुस्कराहट ने सब कुछ कह दिया. सब कुछ समझ के उनेका चेहरा खिल उठा और हल्के से फिर पूछा, और कैसा लगा मेरा देवर. बहुत अच्छे और बहुत बदमाश मेरे मूह से हल्के से निकल पड़ा और वो हंस दी.
कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
मेरी ननदो से वो बोली,
"भाभी को नीचे ले जाओ और नाश्ता वास्ता कराओ, मैं आती हू."
बिना उनमे से किसी के पूछे मैं बोल पड़ी, नींद अच्छी आई थी.
दरवाजे से बाहर निकलते ही सब एक साथ चालू हो गयी. और सब से ज़्यादा अंजलि,
"क्यो भाभी कैसी रही. भैया ने ज़्यादा तंग वन्ग तो नही किया."
एक तो साड़ी उपर से घुँघटओर फिर नया घर और उपर से सबने समझाया था कि धीरे धीरे चलना.
"वो पूछने की बात है, देख बिचारी भाभी से चला नही जा रहा है, तुम सब भी धीमे धीमे चलो ना साथ."दूसरी ननद ने और छेड़ा. तब तक मेरे गाल पे कोई निशान दिख गया( मेने ध्यान से हर जगह नो मार्क लगाया था तब भी कुछ छूट ही गये थे). वो उसे दिखाती हुई गुड्डी से बोली,
"हे तुझसे इतना कहा था ना. गुड नाइट नही लगाया था क्या. देख भाभी को इतना कस के मच्छर ने काट लिया."और आज गुड्डी ने भी इन सब का कॅंप जाय्न कर लिया था. वो उसे छेड़ते बोली,
"हे अंजलि. अपने भैया को मच्छर कह रही है."
"क्या भैया ने ये तो बहुत बुरी बात है. दिखाइए भाभी कहाँ कहाँ काटा खोल के दिखाईयगा, मैं उस जगह मलहम लगा दूँगी. "दूसरी बोली.
मैं क्या बोलती. गनीमत थी, तब तक हम लोग नीचे पहुँच गये थे.
नीचे बरांडे मे मेरी सास, मेरी ममिया, मौसेरी सास और बाकी सब औरतें बैठी थी. मेने पहले अपनी सास और फिर बाकी सबके पैर छुए. सास ने मेरी, खूब आशीर्वाद दिया. किसी औरत ने बोला,
"लगता है बहू को रात मे ठीक से नींद नही आई. आँखे देखो, जागी जागी लग रही है"
"अर्रे नेई जगह है, नेया घर. नेई जगह कहा ठीक से पहली रात नींद आती है."मेरी सास ने बार सम्हली.
"हा नई चीज़, पहली बार बहू परेशान मत हो. पहली रात थी ना. दो तीन दिन मे आदत पड़ जाएगी."मेरी ममिया सास ने फिर छेड़ा.
"चलो कोई बात नही अब आराम कर लो. "मेरा सास ने मुस्कराते हुए मेरी ननदो से कहा कि वो मुझे ले जाए और कमरे मे आराम करने दे. पर वो दुष्ट.. जैसे ही मैं उठ के दो पग भी नही चली होंगी, एक ने पीछे से बोला,
"रात पिया के संग जागी रे सखी. चैन पड़ा जो अंग लगी रे सखी."
और जिस कमरे मे मैं कल बैठाई गयी थी, वही, उन्होने बैठा दिया. थोड़ी ही देर मे लड़कियो और औरतो ने घेर लिया. एक मेरी शादी शुदा ननद ने मेरी ठुड्डी पकड़ के उठाया और बोली,
"लगता है बहुत मेहनेत पड़ी रात भर बेचारी का तो सारा जूस ही निकल गया."
मेरी एक जेठानी ने उल्टा उसको छेड़ते हुए कहा, ' तुम्हे अपने दिन याद आ गये क्या जो इतना खून खच्चर हो गया कि अस्पताल जाना पड़ा. फिर पता चला कि बिना कुछ चिकनाई लगाए ही अर्रे कुछ नही था तो नेंदौई जी से कहती थूक ही लगा लेते,"
"अर्रे तभी तो मैं भाभी से कह रही थी बार बार कि वैसलीन लगा ले."अंजलि बोली.
"भाभी को नीचे ले जाओ और नाश्ता वास्ता कराओ, मैं आती हू."
बिना उनमे से किसी के पूछे मैं बोल पड़ी, नींद अच्छी आई थी.
दरवाजे से बाहर निकलते ही सब एक साथ चालू हो गयी. और सब से ज़्यादा अंजलि,
"क्यो भाभी कैसी रही. भैया ने ज़्यादा तंग वन्ग तो नही किया."
एक तो साड़ी उपर से घुँघटओर फिर नया घर और उपर से सबने समझाया था कि धीरे धीरे चलना.
"वो पूछने की बात है, देख बिचारी भाभी से चला नही जा रहा है, तुम सब भी धीमे धीमे चलो ना साथ."दूसरी ननद ने और छेड़ा. तब तक मेरे गाल पे कोई निशान दिख गया( मेने ध्यान से हर जगह नो मार्क लगाया था तब भी कुछ छूट ही गये थे). वो उसे दिखाती हुई गुड्डी से बोली,
"हे तुझसे इतना कहा था ना. गुड नाइट नही लगाया था क्या. देख भाभी को इतना कस के मच्छर ने काट लिया."और आज गुड्डी ने भी इन सब का कॅंप जाय्न कर लिया था. वो उसे छेड़ते बोली,
"हे अंजलि. अपने भैया को मच्छर कह रही है."
"क्या भैया ने ये तो बहुत बुरी बात है. दिखाइए भाभी कहाँ कहाँ काटा खोल के दिखाईयगा, मैं उस जगह मलहम लगा दूँगी. "दूसरी बोली.
मैं क्या बोलती. गनीमत थी, तब तक हम लोग नीचे पहुँच गये थे.
नीचे बरांडे मे मेरी सास, मेरी ममिया, मौसेरी सास और बाकी सब औरतें बैठी थी. मेने पहले अपनी सास और फिर बाकी सबके पैर छुए. सास ने मेरी, खूब आशीर्वाद दिया. किसी औरत ने बोला,
"लगता है बहू को रात मे ठीक से नींद नही आई. आँखे देखो, जागी जागी लग रही है"
"अर्रे नेई जगह है, नेया घर. नेई जगह कहा ठीक से पहली रात नींद आती है."मेरी सास ने बार सम्हली.
"हा नई चीज़, पहली बार बहू परेशान मत हो. पहली रात थी ना. दो तीन दिन मे आदत पड़ जाएगी."मेरी ममिया सास ने फिर छेड़ा.
"चलो कोई बात नही अब आराम कर लो. "मेरा सास ने मुस्कराते हुए मेरी ननदो से कहा कि वो मुझे ले जाए और कमरे मे आराम करने दे. पर वो दुष्ट.. जैसे ही मैं उठ के दो पग भी नही चली होंगी, एक ने पीछे से बोला,
"रात पिया के संग जागी रे सखी. चैन पड़ा जो अंग लगी रे सखी."
और जिस कमरे मे मैं कल बैठाई गयी थी, वही, उन्होने बैठा दिया. थोड़ी ही देर मे लड़कियो और औरतो ने घेर लिया. एक मेरी शादी शुदा ननद ने मेरी ठुड्डी पकड़ के उठाया और बोली,
"लगता है बहुत मेहनेत पड़ी रात भर बेचारी का तो सारा जूस ही निकल गया."
मेरी एक जेठानी ने उल्टा उसको छेड़ते हुए कहा, ' तुम्हे अपने दिन याद आ गये क्या जो इतना खून खच्चर हो गया कि अस्पताल जाना पड़ा. फिर पता चला कि बिना कुछ चिकनाई लगाए ही अर्रे कुछ नही था तो नेंदौई जी से कहती थूक ही लगा लेते,"
"अर्रे तभी तो मैं भाभी से कह रही थी बार बार कि वैसलीन लगा ले."अंजलि बोली.
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
"अर्रे बड़ा एक्सपीरियेन्स है ना तुमको वैसलीन लगवाने और डलवाने का तभी उस दिन उल्टिया कर रही थी."मेरी उन जेठानी ने उसे भी खींचा. लेकिन तब तक मेरी मझली ननद, अंजलि की सहेलिया, सब इकट्ठी हो गयी और मेरी उन जेठानी को किसी ने बाहर बुला लिया और मेरी हालत चक्रव्यूह मे अभिमन्यु की तरह हो गयी.
लेकिन अच्छी बात ये है कि मुझे जवाब देना नही था. मैं घूँघट मे मुस्करा रही थी.
"अर्रे भाभी अभी भी इतना लंबा घूँघट क्या रात मे भैया ने घूँघट नही खोला.?"
"अर्रे घूँघट क्या भैया ने तो सब कुछ खोल दिया. अब कुछ बचा नही खोलने के लिए."दूसरी बोली.
"अर्रे ये तो बड़ी नाइंसाफी है, भैया के सामने सब कुछ और हम लोगो से इतनी शरम. आख़िर हम भी आपकी ननदे है, कोई गैर नही."और उस ने घूँघट उपर उठा दिया. मेरी मझली ननद चालू हो गयी "अर्रे भाभी को कोई शरम नही है. ननदो से क्या शरम. जो उनके पास है वो हमारे पास है. भाभी याद है कल आप ने क्या प्रोमिस किया था, नीचे वाले मूह को दिखाने के बारे मे."और फिर सब ननदो और औरतो को सुना के बड़ी अदा से बोली,
"भाभी ने बोला था, कि सबसे पहले मैं अपने सैंया को 'वो' वाला मूह दिखाउन्गि, और फिर उनके बाद आप लोगो को.. तो भाभी भैया ने तो मूह दिखाई भी कर ली और बाकी सब कुछ भी तो ज़रा देखे कि इस्तेमाल के बाद कैसे लगता है."सब हँसने लगी. मैं क्या बोलती. लेकिन बात यही नही ख़तम हुई.
उसने अंजलि की सहेलियो को चढ़ाया, "अर्रे भाभी खुद थोड़ी दिखाएँगी. आज तक उन्होने किसी को खुद नही दिखाया. हां जिस को 'मूह दिखाई' करनी हो वो खोल ले तो ये बुरा भी नही मनेती. हां मूह दिखाई देनी पड़ती हो. पर तुम सब तो छोटी ननदे हो तुम से क्या मूह दिखाई लेना और अगर तुम लोग खोल दोगि तो भाभी बुरा थोड़ी मानेगी. आख़िर ननद भाभी का रिश्ता ही मज़ाक का है. और फिर रात भर भैया ने खोला होगा तो उन्होने बुरा थोड़े ही माना क्यो भाभी.
अंजलि और उस की एक सहेली ने हिम्मत की लेकिन थी तब तक एक मेरी मौसेरी सास आ गयी और उन्होने ह्ड़काया,
"ये क्या लड़कियो. रात भर तुम्हारा भाई तंग करे और दिन भर तुम कभी तो चैन लेने दो बिचारी को"
"अर्रे हम लोग तंग थोड़ी कर रहे है बस हाल चाल पूछ रहे है मौसी." मेरी ननद बोली. लेकिन अंजलि और बाकी सब लड़कियाँ उठ खड़ी हुई. तब तक जेठानी जी नज़र आई और मेरी जान मे जान आई. वो मझली ननद से बोली. अर्रे आप ज़रा जाके अपने पति जी का हाल पूछिए. बेचारे नेंदोई जी आपको ढूँढ रहे है उनका पाजामा कही खो गया है. ज़रा देखिए रात मे कहाँ उतारा था."
"अर्रे अपना पेटिकोट क्यो नही दे दिया." मौसेरी सास हंस के बोली.
लेकिन अच्छी बात ये है कि मुझे जवाब देना नही था. मैं घूँघट मे मुस्करा रही थी.
"अर्रे भाभी अभी भी इतना लंबा घूँघट क्या रात मे भैया ने घूँघट नही खोला.?"
"अर्रे घूँघट क्या भैया ने तो सब कुछ खोल दिया. अब कुछ बचा नही खोलने के लिए."दूसरी बोली.
"अर्रे ये तो बड़ी नाइंसाफी है, भैया के सामने सब कुछ और हम लोगो से इतनी शरम. आख़िर हम भी आपकी ननदे है, कोई गैर नही."और उस ने घूँघट उपर उठा दिया. मेरी मझली ननद चालू हो गयी "अर्रे भाभी को कोई शरम नही है. ननदो से क्या शरम. जो उनके पास है वो हमारे पास है. भाभी याद है कल आप ने क्या प्रोमिस किया था, नीचे वाले मूह को दिखाने के बारे मे."और फिर सब ननदो और औरतो को सुना के बड़ी अदा से बोली,
"भाभी ने बोला था, कि सबसे पहले मैं अपने सैंया को 'वो' वाला मूह दिखाउन्गि, और फिर उनके बाद आप लोगो को.. तो भाभी भैया ने तो मूह दिखाई भी कर ली और बाकी सब कुछ भी तो ज़रा देखे कि इस्तेमाल के बाद कैसे लगता है."सब हँसने लगी. मैं क्या बोलती. लेकिन बात यही नही ख़तम हुई.
उसने अंजलि की सहेलियो को चढ़ाया, "अर्रे भाभी खुद थोड़ी दिखाएँगी. आज तक उन्होने किसी को खुद नही दिखाया. हां जिस को 'मूह दिखाई' करनी हो वो खोल ले तो ये बुरा भी नही मनेती. हां मूह दिखाई देनी पड़ती हो. पर तुम सब तो छोटी ननदे हो तुम से क्या मूह दिखाई लेना और अगर तुम लोग खोल दोगि तो भाभी बुरा थोड़ी मानेगी. आख़िर ननद भाभी का रिश्ता ही मज़ाक का है. और फिर रात भर भैया ने खोला होगा तो उन्होने बुरा थोड़े ही माना क्यो भाभी.
अंजलि और उस की एक सहेली ने हिम्मत की लेकिन थी तब तक एक मेरी मौसेरी सास आ गयी और उन्होने ह्ड़काया,
"ये क्या लड़कियो. रात भर तुम्हारा भाई तंग करे और दिन भर तुम कभी तो चैन लेने दो बिचारी को"
"अर्रे हम लोग तंग थोड़ी कर रहे है बस हाल चाल पूछ रहे है मौसी." मेरी ननद बोली. लेकिन अंजलि और बाकी सब लड़कियाँ उठ खड़ी हुई. तब तक जेठानी जी नज़र आई और मेरी जान मे जान आई. वो मझली ननद से बोली. अर्रे आप ज़रा जाके अपने पति जी का हाल पूछिए. बेचारे नेंदोई जी आपको ढूँढ रहे है उनका पाजामा कही खो गया है. ज़रा देखिए रात मे कहाँ उतारा था."
"अर्रे अपना पेटिकोट क्यो नही दे दिया." मौसेरी सास हंस के बोली.