धोबन और उसका बेटा

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The Romantic
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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:01

पर उन्होने छ्होरा ऩही और मेरी आँखो में झाँकते हुए फिर धीरे से
अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसते हुए पुछि, "फिर से
दबौउ". मेरी तो हालत उनके हाथो छुने भर से फिर से खराब होने
लगी" मेरी समझ में एक डम ऩही आ रहा था की क्या करू, कुच्छ
जवाब देते हुए भी ऩही बन रहा था की क्या जवाब दू. तभी वो हल्का
सा आगे की ओररे सर्की और झुकी, आगे झुकते ही उनका आँचल उनके
ब्लाउस पर से सरक गया. पर उन्होने कोई प्रयास ऩही किया उसको ठीक
करने का. अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी. मेरी आँखो के
सामने उनकी नारियल के जैसी सख़्त चुचिया जिनको सपने में देख कर
मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था और जिनको दूर से देख
कर ही तारपता रहता था नुमाया थी. भले ही चूचुइयाँ अभी भी
ब्लाउस में ही क़ैद थी परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज
उनके उपर से ही लगाया जा सकता था. ब्लाउस के उपरी भाग से उनकी
चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा गोरा हिस्सा नज़र आ रहा
था.

हलकी चुचियों को बहुत बरा तो ऩही कहा जा सकता पर, उतनी बरी
तो थी ही जितनी एक स्वस्थ सरीर की मालकिन का हो सकता हाई. मेरा
मतलब हाई की इतनी बरी जितनी की आप के हाथो में ना आए पर इतनी
बरी भी ऩही की आप को दो दो हाथो से पाकरना परे और फिर भी
आपके हाथ ना आए. एक डम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी
और सामने की ओररे निकली हुई थी. मेरी आँखे तो हटाए ऩही हट रही
थी. तभी मा ने अपने हाथो को मेरे लंड पर थोरा ज़ोर से दबाते
हुए पुचछा "बोल ना दबाउ क्या और"

"ही मा छ्होरो ना" उन्होने ने ज़ोर से मेरे लंड को मुट्ही में भर
लिया,

"ही मा छ्होरो बहुत गुदगुदी होती हाई"

"तो होने दे ना, तू खाली बोल दबौउ या ऩही"

"ही दबाओ, मा मस्लो"

"अब आया ना रास्ते पर"

"ही मा तुम्हारे हाथो में तो जादू हाई"

"जादू हाथो में हाई या, या फिर इसमे हाई (अपने ब्लाउस की तरफ
इशारा कर के पुचछा)

"ही मा तुम तो बस"

"शरमाता क्यों हाई, बोल ना क्या अक्चा लग रहा हाई"

" ही मम्मी मैं क्या बोलू"

"क्यों क्या अक्चा लग रहा हाई", "अर्रे अब बोल भी दे शरमाता क्यों हाई"

"ही मम्मी दोनो अच्छा लग रहा हाई"

"क्या ये दोनो ((अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुचछा)"

"हा, और तुम्हारा दबाना भी"

"तो फिर शर्मा क्यों रहा था बोलने में, ऐसे तो हर रोज घूर घूर
कर मेरे अनरो को देखता रहता हाई" फिर मा ने बरे आराम से मेरे
पूरे लंड को मुति के अंदर क़ैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलना
शुरू कर दिया.

"तू तो पूरा जवान हो गया हाई रे"

"ही मा"

"ही ही क्या कर रहा हाई, पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू
तो, अब तो बर्दाश्त भी ऩही होता होगा, कैसे करता है"

"क्या मा"

"वही, बर्दाश्त, और क्या, तुझे तो अब च्छेद (होल) चाहिए, समझा
च्छेद मतलब"

"ऩही मा, ऩही समझा"

"क्या उल्लू लरका है रे तू, च्छेद मतलब ऩही सकझता" मैने नाटक
करते हुए कहा "ऩही मा ऩही समझता". इस पर मा हल्के हल्के
मुस्कुराने लगी और बोली "चल समझ जाएगा, अभी तो ये बता की
कभी इसको (लंड की तरफ इशारा करते हुए) मसल मसल के माल
गिराया है".

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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:01


"माल मतल्लब क्या होता है मा"

"अर्रे उल्लू, कभी इसमे से पानी गिराया है या ऩही"
"ही वो तो मैं हर रोज़ गिराता हू सुबह शाम दिन भर में चार
पाँच बार, कभी ज़यादा पानी पी लिया तो ज़यादा बार हो जाता है"

"हाई, दिन भार में चार पाँच बार, और पानी पीने से तेरा ज़यादा
बार निकालता है, कही तू पेशाब करने की बात तो ऩही कर रहा"

"हा मा वही तो मैं तो दिन भर में चार पाँच बार पेशाब करने
जाता हू" इस पर मा ने मेरे लंड को छ्होर कर हल्के से मेरे गाल पर
एक झापर लगाया और बोली "उल्लू का उल्लू ही रह गया कया तू" फिर
बोली ठहर जा अभी तुझे दिखती हू माल कैसे निकाला जाता है फिर
उसने अपने हाथो को तेज़ी से मेरे लंड पर चलाने लगी. मारे गुदगुदी
और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. समझ में ऩही आ
रहा था क्या करू, दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढ़ा कर मा के
दोनो चुचियों को कस के पकर लू और खूब ज़ोर ज़ोर से दबौउ. रहा
था की कही बुरा ना मान जाए. आइसिस चक्कर में मैने कराहते हुए
सहारा लेने के लिए सामने बैठी मा के कंधे पर अपने दोनो हाथ
रख दिए. वो बोली तो कुच्छ ऩही पर अपनी नज़रे उपर कर के मेरी र
देख कर मुस्कुराते हुए बोली "क्यों मज़ा आ रहा हाई की ऩही""ही, मा
मज़े की तो बस पुच्च्ो मत बहुत मज़ा आ रहा है" मैं बोला. इस पा
मा ने अपने हाथ और तेज़ी से चलना सुरू कर दिया और बोली "साले
हरामी कही का, मैं जब नहाती हू तब घूर घूर के मुझे देखता
रहता है, मैं जब सो रही थी तो मेरे चुचे दबा रहा था और,
और अभी मज़े से मूठ मरवा रहा है, कामीने तेरे को शरम ऩही
आती" मेरा तो होश ही उर गया ये मा क्या बोल रही थी. पर मैने
देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाए जा
रहा था. तभी मा मेरे चेहरे के उरे हुए रंग को देख कर हसने
लगी और हसते हुए मेरे गाल पर एक ठप्पर लगा दिया. मैने कभी
भी इस से पहले मा को ना तो ऐसे बोलते देखा था ना ही इस तरह से
बिहेव करते हुए देखा था इसलिए मुझे बरा असचर्या हो रहा था.
पर उनके हसते हुए ठप्पर लगाने पर तो मुझे और भी ज़यादा
असचर्या हुआ की आख़िर ये चाहती क्या है. और मैने बोला की "माफ़ कर
दो मा अगर कोई ग़लती हो गई हो तो" . इस पर मा ने मेरे गालो को
हल्के सहलाते हुए कहा की "ग़लती तो तू कर बैठा है बेटे अब, केवल
ग़लती की सज़ा मिलेगी तुझे," मैने कहा "क्या ग़लती हो गई मेरे से
मा" सबसे बरी ग़लती तो ये हाई की तू खाली घूर घूर के देखता
है बस, करता धर्ता तो कुच्छ है ऩही, खाली घूर घूर के कितने
दिन देखता रहेगा" .

"क्या करू मा, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा"

"साले बेवकूफ़ की औलाद, अर्रे करने के लिए इतना कुच्छ है और तुझे
समझ में ही ऩही आ रहा है",

"क्या मा बताओ ना, "

"देख अभी जैसे की तेरा मन कर रहा है की तू मेरे अनारो से खेले,
उन्हे दबाए, मगर तू ऩही वो काम ना कर के केवल मुझे घूरे जा
रहा है, बोल तेरा मन कर रहा है की ऩही, बोल ना"

"हाई, मा मन तो मेरे बहुत कर रहा है,

"तो फिर दबा ना, मैं जैसे तेरे औज़ार से खेल रही हू वैसे ही तू
मेरे समान से खेल, दबा बेटा दबा, बस फिर क्या था मेरी तो बान्छे
खिल गई मैने दोनो हथेलियो में दोनो चुचो को थाम लिया और
हल्के हल्के उन्हे दबाने लगा., मा बोली "सबाश, ऐसे ही दबाने
जितना दबाने का मन उतना दबा ले, कर ले मज़े". मैं फिर पूरे जोश
के साथ हल्के हाथो से उसके चुचियों को दबाने लगा. ऐसी मस्त मस्त
चुचिया पहली बार किसी ऐसे के हाथ लग जाए जिसने पहले किसी
चुचि को दबाना तो दूर छुआ तक ना हो तो बंदा तो जन्नत में
पहुच ही जाएगा ना. मेरा भी वही हाल था, मैने हल्के हाथो से
संभाल संभाल के चुचियों को दबाए जा रहा था. उधर मा के
हाथ तेज़ी से मेरे लंड पर चल रहे थे, तभी मा जो अब तक काफ़ी
उत्तेजित हो चुकी थी ने मेरे चेहरे की ओररे देखते हुए कहा "क्यों
मज़ा आ रहा है ना, ज़ोर से दबा मेरे चुचयों को बेटा तभी पूरा
मज़ा मिलेगा, मसलता जा, देख अभी तेरा माल मैं कैसे निकलती हू".
मैने ज़ोर से चुचियों को दबाना सुरू कर दिया था, मेरा मन कर
रहा था की मैं मा के ब्लाउस खोल के चुचियों को नंगा करके उनको
देखते हुए दबौउ, इसीलये मैने मा से पुचछा "हाई मा तेरा ब्लाउस
खोल दू" इस पर वो मुस्कुराते हुए बोली "ऩही अभी रहने दे, मैं
जानती हू की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तू मेरी नंगी चुचियों
को देखे मगर, अभी रहने दे" मैं बोला ठीक "हाई मा, पर मुझे
लग रहा हाई की मेरे औज़ार से खुच्छ निकालने वाला हाई". इस पर मा
बोली "कोई बात ऩही बेटा निकालने दे, तुझे मज़ा आ रहा हाई ना"


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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:03

"हा मा मज़ा तो बहुत आ रहा है"

"अभी क्या मज़ा आया है बेटे अभी तो और आएगा, अभी तेरा माल निकाल
ले फिर देख मैं तुझे कैसे जन्नत की सैर कराती हू"

"हाई मा, ऐसा लगता है जैसे मेरे में से कुच्छ निकालने वाला है,
है निकाल जाएगा"

"तो निकालने दे निकाल जाने दे अपने माल को" कह कर मा ने अपना हाथ
और ज़यादा तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया. मेरे पानी अब बस
निकालने वाला ही था, मैने भी अपना हाथ अब तेज़ी के साथ मा के
अनारो पर चलाना सुरू कर दिया था. मेरा दिल कर रहा था उन प्यारे
प्यारे चुचियों को अपने मुँह में भर के चुसू, लेकिन वो अभी
संभव ऩही था. मुझे केवल चुचियों को दबा दबा के ही संतोष
करना था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं अभी सातवे आसमान पर उर
रहा था, मैं भी खूब ज़ोर ज़ोर सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह मा, हा
मा और ज़ोर से मस्लो, और ज़ोर से मूठ मारो, निकाल दो मेरा सारा पानी"
पर तभी मुझे ऐसा लगा जैसे की मा ने लंड पर अपनी पकर ढीली
कर दी है. लंड को छोर कर मेरे आंडो को अपने हाथ से पकर के
सहलाते हुए मा बोली "अब तुझे एक नया मज़ा चखती हू, ठहर जा"
और फिर धीरे धीरे मेरे लंड पर झुकने लगी, लंड को एक हाथ से
पाकरे हुए वो पूरी तरह से मेरे लंड पर झुक गई और अपने होतो को
खोल कर मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया. मेरे मुँह से एक आ
निकाल गई, मुझे विश्वास ऩही हो रहा था की वो ये क्या कर रही है.
मैं बोला "ओह मा ये क्या कर रही हो, है छ्होर ना बहुत गुदगुदी हो
रही है" मगर वो बोली "तो फिर मज़े ले इस गुदगुदी के, करने दे
तुझे अच्छा लगेगा".

"ही, मा क्या इसको मुँह में भी लिया जाता,"

"हा मुँह में भी लिया जाता है और दूसरी जगहो पर भी, अभी तू
मुँह में डालने का मज़ा लूट" कह कर तेज़ी के साथ मेरे लंड को
चूसने लगी, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा था, गुदगुदी और
सनसनी के कारण मैं मज़े के सातवे आसमान पर झूल रहा था. मा ने
पहले मेरे लंड के सुपारे को अपने मुँह में भरा और धीरे धीरे
चूसने लगी, और मेरी र बरी सेक्सी अंदाज़ में अपने नज़रो को उठा के
बोली, "कैसा लाल लाल सुपारा है रे तेरा, एक डम पाहरी आलू के
जैसे, लगता है अभी फट जाएगा, इतना लाल लाल सुपरा कुंवारे
लार्को का ही होता है" फिर वो और कस कस के मेरे सुपारे को अपने
होंठो में भर भर के चूसने लगी. नदी के किनारे, पेर की छाव
में मुझे ऐसा मज़ा मिल रहा था जिसकी मैने आज तक कल्पना तक
ऩही की थी. मा अब मेरे आधे से अधिक लौरे को अपने मुँह में भर
चुकी थी और अपने होंठो को कस के मेरे लंड के चारो तरफ से
दब्ए हुए धीरे धीरे उपर सुपारे तक लाती थी और फिर उसी तरह से
सरकते हुए नीचे की तरफ ले जाती थी. उसकी शायद इस बात का अच्छी
तरह से अहसास था की ये मेरा किसी औरत के साथ पहला संबंध है
और मैने आज तक किसी औरत हाथो कॅया स्पर्श अपने लंड पर ऩही
महसूस किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वो मेरे लंड
को बीच बीच में ढीला भी छ्होर देती थी और मेरे आंडो को
दबाने लगती थी. वो इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी की मैं
जल्दी ना झारू. मुझे भी गजब का मज़ा आ रहा था और ऐसा लग
रहा था जैसे की मेरा लंड फट जाएगा मगर. मुझसे अब रहा ऩही
जा रहा था

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