धोबन और उसका बेटा

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The Romantic
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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:10

जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज़यादा हो ही जाती है"

"हा, बरी थकावट लग रही है, जैसे पूरा बदन टूट रहा हो"

"मैं दबा दू, थोरी थकान दूर हो जाएगी"

"ऩही रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा"

"ऩही मा उतना तो ऩही थका की तेरी सेवा ना कर सकु"

मा के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हस्ते हुए बोली....."दिन में इतना कुच्छ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी"

"ही, दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुच्छ ऩही हुआ था". इस पर मा थोरा सा और मेरे पास सरक कर आई, मा के सरकने पर मैं भी थोरा सा उसकी र सरका हम दोनो की साँसे अब आपस में टकराने लगी थी. मा ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जाँघो को सहलाने लगी. मा की इस हरकत पर मेरे दिल की धरकन बढ़ गई और लंड अब फुफ्करने लगा था. मा ने हल्के से मेरी जाँघो को दबाया. मैने हिम्मत कर के हल्के से अपने कपते हुए हाथो को बढ़ा के मा की कमर पर रख दिया. मा कुछ ऩही बोली बस हल्का सा मुस्कुरा भर दी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथो से मा के नंगे कमर को सहलाने लगा. मा ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था. उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे. इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नज़र आ रही थी और मन कर रहा था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकर लू. पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था. मा ने जब मुझे चुचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "क्या इरादा है तेरा, शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जाएगा क्या"

"ही, मा तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहा घूर रहा था"

"चल झूते, मुझे क्या पाता ऩही चलता, रात में भी वही करेगा क्या"

"क्या मा"

"वही जब मैं सो जौंगी तो अपना भी मसलेगा और मेरी च्चातियों को भी दबाएगा"

"ही, मा"

"तुझे देख के तो यही लग रहा है की तू फिर से वही हरकत करने वाला है"

"ऩही, मा" मेरे हाथ अब मा की जाँघो को सहला रहे थे.

"वैसे दिन में मज़ा आया था" पुच्छ कर मा ने हल्के से अपने हाथो को मेरे लूँगी के उपर लंड पर रख दिया. मैने कहा "ही मा, बहुत अच्छा लगा था"

"फिर करने का मन कर रहा है क्या"

"है, मा"

इस पर मा ने अपने हाथो का दवाब ज़रा सा मेरे लंड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी. मा के हाथो का स्पर्श पा के मेरी तो हालत खराब होने लगी थी. ऐसा लग रहा था की अभी के अभी पानी निकल जाएगा. तभी मा बोली, "जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है वो काम अभी कर ले, चोरी चोरी करने से तो अच्छा है की तू मेरे सामने ही कर ले" मैं कुच्छ ऩही बोला और अपने काँपते हाथो को हल्के से मा की चुचियों पर रख दिया. मा ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकर कर अपनी च्चातियों पर कस के दबाया और मेरी लूँगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकर लिया. मैने भी अपने हाथो का दवाब उसकी चुचियों पर बढ़ा दिया. मेरे अंदर की आग एकद्ूम भारक उठी थी और अब तो ऐसा लग रहा था की जैसे इन चुचियों को मुँह में ले कर चूस लू. मैने हल्के से अपने गर्दन को और आगे की र बढ़ाया और अपने होतो को ठीक चुचियों के पास ले गया. मा सयद मेरे इरादे को समझ गई थी. उसने मेरे सिर के पिच्चे हाथ डाला और अपने चुचियों को मेरे चेहरे से सता दिया. हम दोनो अब एक दूसरे की तेज़ चलती हुई सांसो को महसूस कर रहे थे. मैने अपने होतो से ब्लाउस के उपर से ही मा की चुचियों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रहा था कभी उसके मोटे मोटे ****अरो को. मा ने भी अपना हाथ तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया था और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठिया रही थी. मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. तभी मैने सोचा ऐसे करते करते तो मा फिर मेरा निकल देगी और सयद फिर कुच्छ देखने भी ऩही दे जबकि मैं आज तो मा को पूरा नंगा करके जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था. इसलिए मैने मा के हाथो को पकर लिया और कहा "ही मा रूको"

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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:11


"क्यों मज़ा ऩही आ रहा है क्या, जो रोक रहा है"

"ही मा, मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर"

"फिर क्या हुआ,"

"फिर मा, मैं कुच्छ और करना चाहता हू, ये तो दिन के जैसे ही हो जाएगा"

इस पर मा मुस्कुराते हुए पुछि " तो तू और क्या करना चाहता है, तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना और कैसे निकलेगा"

"ही ऩही मा, पानी ऩही निकलना मुझे"

"तो फिर क्या करना है"

"ही मा, देखना है"

"ही, क्या देखना है रे"

"ही मा, ये देखना है" कह कर मैने एक हाथ सीधा मा के बुर पर रख दिया.

"ही, बदमाश, ये कैसी तमन्ना पल ली तूने"

"ही, मा बस एक बार दिखा दो ना"

"ऩही, ऐसा ऩही करते मैने तुम्हे थोरी च्छुत क्या दे दी तुम तो उसका फयडा उठाने लगे"

"ही, मा ऐसे क्यों कर रही हो तुम, दिन में तो कितना अcचे से बाते कर रही थी"

"ऩही, मैं तेरी मा हू, बेटा"

"ही, मा दिन में तो तुमने कितना अक्चा दिखाया भी था, थोरा बहुत"

"मैने कब दिखाया?, झूट क्यों बोल रहा है"

"ही, मा तुम जब पेशाब करने गई थी तब तो दिखा ही था"

"है, राम कितना बदमाश है रे तू, मुझे पाता भी ऩही लगा और तू देख रहा था, ही दैया आज कल के लौंदो का सच में कोई भरोसा ऩही, कब अपनी मा पर बुरी नज़र रखने लगे पाता ही ऩही चलता"

"ही मा ऐसा क्यों कह रही हो, मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मुझे दिखा रही हो इसलिए मैने देखा"

"चल हट मैं क्यों दिखौँगी, कोई मा ऐसा करती है क्या"

"ही, मैने तो सोचा था की रात में पूरा देखूँगा"

"ऐसी उल्टी सीधी बाते मत सोचा कर, दिमाग़ खराब हो जाएगा"

"ही मा, ओह मा दिखा दो ना, बस एक बार, खाली देख कर सो जौंगा" पर मा ने मेरे हाथो को झटक दिया और उठकर खरी हो गई. अपने ब्लाउस को ठीक करने के बाद छत के कोने की तरफ चल दी. च्चत का वो कोना घर के पिच्छवारे की तरफ परता था और वाहा पर एक नाली (मोरी) जैसा बना हुआ था जिस से पानी बह कर सीधे नीचे बहने नाली में जा गिरता था. मा उसी नली पर जा के बैठ गई अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी. मेरी नज़रे तो मा का पिच्छा कर ही रही थी. ये नज़ारा देख के तो मेरा मन और बहक गया. दिल में आ रहा था की जल्दी से जाके मा के पास बैठ के आगे झनाक लू और उसके पेशाब करते हुए चूत को कम से कम देख भर लू. पर ऐसा ना हो सका. मा ने पेशाब कर लिया फिर वो वैसे ही पेतकोट को जाँघो तक एक हाथ से उठाए हुए मेरी तरफ घूम गई और अपने बुर पर हाथ चलाने लगी जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और फिर मेरे पास आके बैठ गई. मैने मा के बैठने पर उसका हाथ पकर लिया और पायर से सहलाते हुए बोला "ही मा बस एक बार दिखा दो ना फिर कभी ऩही बोलूँगा दिखाने के लिए"

"एक बार ना कह दिया तो तेरे को समझ में ऩही आता है क्या"

"आता तो है मगर बस एक बार में क्या हो जाएगा"

"देख दिन में जो हो गया सो हो गया, मैने दिन में तेरा लंड भी मुठिया दिया था, कोई मा ऐसा ऩही करती, बस इससे आगे ऩही बढ़ने दूँगी"

मा ने पहली बार गंदे साबद का उपयोग किया था, उसके मुँह से लंड सुन के ऐसा लगा जैसे अभी झार के गिर जाएगा. मैने फिर धीरे से हिम्मत कर के कहा "ही मा क्या हो जाएगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो, तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना" "तेरा देखा है इसका क्या मतलब है, तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हू, और रही बात चुचि दिखाने और पकरने की वो तो मैने तुझे करने ही दिया है ना क्यों की बचपन में तो तू इसे पाकर्ता चूस्ता ही था, पर चूत की बात और है, वो तो तूने होश में कभी ऩही देखा ना, फिर उसको क्यों दिखौ". मा अब खुलाम कुल्ला गंदे सबदो का उपयोग कर रही थी.


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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:14

जब इतना कुच्छ दिखा दिया है तो उसे भी दिखा दो ना ऐसा कौन सा कम हो जाएगा". मा ने अब तक अपना पेटिकोट समेत कर जाँघो बीच राक लिया था और सोने के लिए लेट गई थी. मैने इस बार अपना हाथ उसके जाँघो पर रख दिया, मोटी मोटी गुदाज़ जाँघो का स्पर्श जानलेवा था. जाँघो को हल्के हल्के सहलाते हुए मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, मा ने मेरा हाथ पकर लिया और बोली "ठहर अगर तुझसे बर्दस्त ऩही होता तो ला मैं फिर से तेरा लंड मुठिया देती हू" कह कर मेरे लंड को फिर से पकर कर मुठियाने लगी पर मैं ऩही माना और एक बार केवल एक बार बोल के ज़िद करता रहा. मा ने कहा "बरा जिद्दी हो गया रे तू तो, तुझे ज़रा भी शरम ऩही आती अपनी मा को चूत देखने को बोल रहा है, अब यहा छत पर कैसे दिखौ अगाल बगल के लोग कही देख लेंगे तो, कल देख लियो"

"ही, कल ऩही अभी दिखा दे, चारो तरफ तो सुन-सान है फिर अभी भला कौन हमारे छत पर झकेगा"

"छत पर ऩही, कल दिन में घर में दिखा दूँगी, आराम से"

तभी बारिस की बूंदे तेज़ी के साथ गिरने लगी, ऐसा लग रहा था मेरी तरह आसमान भी बर ऩही दिखाए जाने पर रो परा है. मा कहा "ओह बारिश शुरू हो गई, चल जल्दी से बिस्तरा समेत नीचे चल के सोएंगे" मैं भी झट पट बिस्तेर समेटने लगा और हम दोनो जल्दी से नीचे की भागे. नीचे पहुच कर मा अपने कमरे में घुस गई मैं भी उसके के पिच्चे पिच्चे उसके कमरे में पहुच गया. मा ने खीरकी खोल दी और लाइट जला दिया. खीरकी से बरी अच्छी ठंडी ठंडी हवा आ रही थी मा जैसे ही पलंग पर बैठी मैं भी बैठ गया. और मा से बोला "ही, अब दिखा दो ना, अब तो घर में आ गये हम लोग" इस पर मा मुस्कुराते हुए बोली "लगता है आज तेरी किस्मत बरी आक्ची है आज तुझे मालपुआ खाने को तो ऩही पर देखने को ज़रूर मिल जाएगी". फिर मा ने अपने अपना सिर पलंग पे टिका के अपने दोनो पैर सामने फैला दिए और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली "इधर आ मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखती हू. पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा" फिर मा ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पाकारा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से मा से कहा "ओह मा ऐसे ऩही" "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"ही मा, पूरा खोल के दिखाओ ना"

"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"

"ही पूरा कपरा खोल के, मेरी बरी तम्माना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखु, बस एक बार"

इतना सुनते ही मा ने आगे बढ़ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हस्ते हुए बोली "वाह बेटा अंगुली पकर के पूरा हाथ पकरने की सोच रहे हो क्या"

"है मा, छ्होरो ना ये सब बात बस एक बार दिखा दो, दिन में तुम कितने अcचे से बाते कर रही थी और अभी पाता ऩही क्या हो गया है तुम्हे, सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं की आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो की......." "अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भूल गया, दिन में तो बरा भोला बन रहा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कुच्छ जनता ही ऩही, पहले कभी किसी को किया है क्या, या फिर दिन में झूट बोल रहा था"

"है कसम से मा, कभी किसी को ऩही किया, करना तो दूर की बात है कभी देखा या छुआ तक ऩही"

"चल झुटे, दिन में तो देखा ही था और छुआ भी था"

"ही कहा मा, कहा देखा था"


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