वो बोला, मैं आगे होने दू तब ना ऐसा करोगे तुम दोनो.
तुम्हे अभी मेरे साथ डॉक्टर संजय के क्लिनिक चलना है.
बिल्लू बोला, बापू ऐसा मत करो इसका पति इसे घर से निकाल देगा.
वो बड़ी बेशर्मी से बोला, तो अछा होगा इसे तू रख लेना. वैसे भी तू इसका दीवाना है, इशके साथ रह कर अपना मूह काला करना.
मैं सोच रही थी कि हे भगवान मुझे ये क्या, क्या सुनना पड़ रहा है.
बिल्लू आगे कुछ नही बोला.
उसका बापू मेरी तरफ मुड़ा और बोला, तू बता तेरे पति से कब बात करू.
बिल्लू फिर से बोला, बापू जाने दो ना. इसका घर उजड़ जाएगा.
वो बोला, घर तो उशी दिन उजड़ गया था जिश दिन इसने ऐसा काम किया था.
मैने फॉरन कहा, मुझे बिल्लू ने बहकाया था मेरी कोई ग़लती नही.
बिल्लू बोला, अरे वाह, मैने भड़काया था. तेरी मर्ज़ी के बिना नही डाला था मैने.
उसका बापू बोला, चुप करो तुम दोनो.
उसने फिर से मुझसे पूछा कि बता कब मिलू तेरे पति से मैं.
मैने कहा, प्लीज़ ऐसा कुछ मत कीजिए. मैं अब बिल्लू से नही मिलती, हमारे बीच अब कुछ नही है.
पर वो हसने लगा, और बोला, झूठ बोलती है, मुझे यकीन है कि तुम दोनो यहा आने से पहले कुछ कर के आए होंगे.
मैं ज़ोर से बोली, ऐसा कुछ नही है.
तू चाहे कुछ कहे, मैं तेरे पति से मिल कर रहूँगा. अगर उसे अभी नही बताया तो तू फिर से किसी और लड़के की जींदगी बर्बाद करेगी. बिल्लू को तो तूने निक्कमा बना ही दिया है.
बिल्लू बोला, बापू तुम भी कर लो ना ?
मैने चोंक कर उसकी और देखा, तो उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया.
उसका बापू ज़ोर से बोला, दफ़ा हो जाओ यहा से, और बिल्लू को वाहा से भगा दिया.
मैं और भी ज़्यादा घबरा गयी.
अब मैं वाहा अकेली थी.
वो बोला, ऐसा तुम लोग सोच भी कैसे सकते हो. मैं डॉक्टर साहेब की पूजा करता हू. छी….छी
वो बोला, क्या तुम अपने पति से खुस नही हो.
मैने कहा, खुस हू.
वो बोला, फिर ये सब क्यो किया ?
मैने कुछ नही कहा.
वो बोला, मैं आज तेरे घर आ रहा हू. तुम अब जाओ यहा से.
मैं घबरा गयी और बोली की प्लीज़ मुझे माफ़ करदो अब मेरे और बिल्लू के बीच कुछ नही है.
अचानक मेरी नज़र उसकी पॅंट पर गयी. मैने जो देखा उसे देख कर मैं हैरान रह गयी. उसका लिंग पॅंट के अंदर तना हुवा था.
मैने एक पल भी वाहा रुकना ठीक नही समझा और फॉरन बाहर आ गयी.
बिल्लू बाहर ही खड़ा था.
मैने कहा चलो मुझे घर जाना है.
उसने पूछा क्या हुवा.
मैने कहा, कुछ नही मुझे बस घर छोड़ दो.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
मैं फॉरन उसके रिक्से में बैठ गयी.
मैने गुस्से में पूछा, ये क्या बदतमीज़ी थी.
वो बोला, क्या हुवा.
मैने कहा, क्या हुवा, तुम अपने बापू को मेरे साथ क्या ?
और मैं पूरा सेंटेन्स नही बोल पाई.
वो बोला, इशके अलावा चारा भी क्या था. तुझे नही पता, औरत मेरे बापू की कमज़ोरी है. मैं सोच रहा था कि अगर वो एक बार तुम्हारे साथ करले तो……………
मैने उसे वही रोक दिया, चुप करो.
वो बोला, ठीक है मैं कुछ नही कहता.
उसने पूछा, क्या तेरे घर मे फोन है.
मैने कहा, हां है.
वो बोला, मुझे नंबर दे दे, कोई बात हुई तो बता दूँगा.
मुझे जाने क्या सूझी मैने उसे नंबर दे दिया और बोली कि, अपने बापू को फिर से समझाना.
वो बोला, क्या मतलब तू भी करने को तैयार है क्या ?
मैने गुस्से में कहा, चुप करो, मैं कह रही हू कि उशे समझना कि मेरे पति से ना मिले.
वो बोला, ठीक है.
मैने देखा कि बिल्लू फिर से अपना रिक्सा ,मेरे घर के पीछे मोड़ना चाहता है
मैने उसे फॉरन रोक लिया और बोली, मुझे घर के सामने उतारो.
वो बोला, पर मुझे लगा हम तेरे घर के पीछे थोड़ी बात कर लेंगे.
मैने कहा बाते बहुत हो गयी, तुम सामने के रास्ते से चलो.
और उसने चुपकहाप मुझे घरके सामने छोड़ दिया.
मैं फॉरन घर के अब्दर आ गयी.
मैं सोच, सोच कर परेशान थी कि आख़िर बिल्लू का बापू चाहता क्या है.
वो बाते तो बड़ी, बड़ी कर रहा था पर उसका लिंग उसकी पॅंट में ताना हुवा था, आख़िर वो कैसा इंसान है.
पूरा दिन मैं परेशान रही.
शाम को किचन मे खाना बनाते वक्त मेरे फोन की घंटी बजी.
मैने फॉरन फोन उठा लिया.
मैने कहा, हेलो, उधर से आवाज़ आई, ऋतु मैं बिल्लू बोल रहा हू.
मैने पूछा हां बताओ, क्या हुवा.
वो बोला, अभी कुछ नही हुवा, मेरा बापू मानने को तैयार नही है.
मैने उशे ये भी कहा कि तू उसके साथ एक बार कर लेगी पर वो नही माना.
वो तेरे पति से मिल कर सब बता देना चाहता है.
मैने कहा, तुम्हे ये सब बोलने की क्या ज़रूरत थी और फोन रख दिया.
मुझे तस्सली थी कि उसका बाप, बिल्लू जैसा नही है. बिल्लू होता तो ऐसा मोका नही छोड़ता. पर मैं हैरान थी कि उसकी पॅंट मे वो क्यो ताना हुवा था.
मैने सोचा मुझे ज़रूर कोई ग़लत फ़हमी हुई है.
मैं सोच रही थी कि अब क्या करू. तभी अचानक डोर बेल बजी और मैं डर गयी, की कही बिल्लू का बापू सच मे तो नही आ गया, वह आज आने के बारे मे बोल रहा था.
संजय के आने का भी वक्त हो गया था.
मैने गुस्से में पूछा, ये क्या बदतमीज़ी थी.
वो बोला, क्या हुवा.
मैने कहा, क्या हुवा, तुम अपने बापू को मेरे साथ क्या ?
और मैं पूरा सेंटेन्स नही बोल पाई.
वो बोला, इशके अलावा चारा भी क्या था. तुझे नही पता, औरत मेरे बापू की कमज़ोरी है. मैं सोच रहा था कि अगर वो एक बार तुम्हारे साथ करले तो……………
मैने उसे वही रोक दिया, चुप करो.
वो बोला, ठीक है मैं कुछ नही कहता.
उसने पूछा, क्या तेरे घर मे फोन है.
मैने कहा, हां है.
वो बोला, मुझे नंबर दे दे, कोई बात हुई तो बता दूँगा.
मुझे जाने क्या सूझी मैने उसे नंबर दे दिया और बोली कि, अपने बापू को फिर से समझाना.
वो बोला, क्या मतलब तू भी करने को तैयार है क्या ?
मैने गुस्से में कहा, चुप करो, मैं कह रही हू कि उशे समझना कि मेरे पति से ना मिले.
वो बोला, ठीक है.
मैने देखा कि बिल्लू फिर से अपना रिक्सा ,मेरे घर के पीछे मोड़ना चाहता है
मैने उसे फॉरन रोक लिया और बोली, मुझे घर के सामने उतारो.
वो बोला, पर मुझे लगा हम तेरे घर के पीछे थोड़ी बात कर लेंगे.
मैने कहा बाते बहुत हो गयी, तुम सामने के रास्ते से चलो.
और उसने चुपकहाप मुझे घरके सामने छोड़ दिया.
मैं फॉरन घर के अब्दर आ गयी.
मैं सोच, सोच कर परेशान थी कि आख़िर बिल्लू का बापू चाहता क्या है.
वो बाते तो बड़ी, बड़ी कर रहा था पर उसका लिंग उसकी पॅंट में ताना हुवा था, आख़िर वो कैसा इंसान है.
पूरा दिन मैं परेशान रही.
शाम को किचन मे खाना बनाते वक्त मेरे फोन की घंटी बजी.
मैने फॉरन फोन उठा लिया.
मैने कहा, हेलो, उधर से आवाज़ आई, ऋतु मैं बिल्लू बोल रहा हू.
मैने पूछा हां बताओ, क्या हुवा.
वो बोला, अभी कुछ नही हुवा, मेरा बापू मानने को तैयार नही है.
मैने उशे ये भी कहा कि तू उसके साथ एक बार कर लेगी पर वो नही माना.
वो तेरे पति से मिल कर सब बता देना चाहता है.
मैने कहा, तुम्हे ये सब बोलने की क्या ज़रूरत थी और फोन रख दिया.
मुझे तस्सली थी कि उसका बाप, बिल्लू जैसा नही है. बिल्लू होता तो ऐसा मोका नही छोड़ता. पर मैं हैरान थी कि उसकी पॅंट मे वो क्यो ताना हुवा था.
मैने सोचा मुझे ज़रूर कोई ग़लत फ़हमी हुई है.
मैं सोच रही थी कि अब क्या करू. तभी अचानक डोर बेल बजी और मैं डर गयी, की कही बिल्लू का बापू सच मे तो नही आ गया, वह आज आने के बारे मे बोल रहा था.
संजय के आने का भी वक्त हो गया था.
Re: छोटी सी भूल
मैने दरवाजा खोला, मैं चोंक कर बेहोश होने को हो गयी.
सामने बिल्लू का बाप खड़ा था. जिसका डर था वही हो गया.
मैने कहा, आप प्लीज़ यहा से जाओ.
वो बोला डॉक्टर साहेब कहा है.
मैने कहा वो घर पर नही हैं प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो, मैं अब बिल्लू से नही मिलूंगी, अब तो सब ख़तम हो चुका है.
वो बोला, सब ख़तम हो जाने से तेरी ग़लती तो कम नही हो जाती. तेरे पति को पता तो चलना चाहिए कि तू क्या गुल खीलाती है उनके पीछे. मैं आज डॉक्टर से मिल कर ही जाउन्गा.
वक्त बढ़ता जा रहा था, संजय कभी भी आ सकते थे. मेरे पाँव थर, थर काँप रहे थे.
मुझे ना जाने क्या सूझी मैने उसे बोल दिया कि मैं कुछ भी करने को तैयार हू, आप प्लीज़ अभी यहा से चले जाओ.
वो बोला, तू मेरे लिए क्या करेगी ?
मैने गिड़गिदते हुवे कहा आप जो कहेंगे करूँगी, पर प्लीज़ अभी यहा से जाओ.
वो अचानक मुड़ा और वाहा से चला गया.
मैने चैन की साँस ली.
संजय उसके थोड़ी देर बाद घर आ गये. आकर वो फ्रेश होने चले गये.
मैं किचन में खाना बनाने लगी.
तभी अचानक फोन की घंटी बजी.
मैने उठाया तो उधर से बिल्लू की आवाज़ आई, मैने पूछा, बोलो क्या बात है.
वो बोला, मेरे बापू ने तुझे कल सुबह 11 बजे बुलाया है, मैं तुझे लेने आ जाउन्गा.
ये कह कर उसने फोन रख दिया.
मैं सब सुन कर बेचन हो गयी. मैं सोच रही थी कि आख़िर वो क्या चाहता है.
तब मुझे ध्यान आया कि मैं हड़बड़ाहट मे उसके बापू को क्या बोल गयी, थी.
उसे वाहा से भेजने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हो गयी थी.
मैं सोच रही थी कि ये कैसे नरक में फँस गयी हू मैं. मेरी छोटी सी भूल, अब छोटी ना रह कर बहुत बड़ी बन चुकी थी. पता नही अब क्या होगा ?
मैं रात भर बेचन रही कि अब क्या होगा. मन मे बार बार ये ख्याल आ रहा था कि मुझे संजय को सब बता देना चाहिए, शायद वो समझ जाए और मुझे माफ़ कर दे.
संजय करवट लिए दूसरी और लेते हुवे थे, पर मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नही हुई की मैं उन्हे उठा कर उनसे कुछ कह सकु.
मैं चुपचाप लेट कर अपनी किस्मत को रोती रही. मैं सोच रही थी कि आख़िर बिल्लू के बापू ने मुझे कल क्यो बुलाया है ? वो मुझसे क्या चाहता है?
तब मुझे ध्यान आया कि कैसे उसका लिंग उसकी पॅंट में तना हुवा था, और में ये सोच कर घबरा गयी कि कही फिर से तो मुझे वो सब नही करना पड़ेगा.
बड़ी मुस्किल से तो मैने बिल्लू से पीछा छुड़ाया था. कही फिर से वो मुझे अपने जाल में तो नही फसा रहा ?
ऐसे काई सवाल मेरे दीमाग में घूम रहे थे.
सुबह कब हो गयी पता ही नही चला, पर मैं एक पल को भी चैन से नही सो पाई. सारी रात दीमाग यहा वाहा घूमता रहा.
संजय ने ब्रेकफास्ट करते वक्त पूछा, ऋतु क्या हुवा आज ढीली ढीली लग रही हो, तबीयत तो ठीक है ना.
मैने कहा हा ठीक है तुम्हे यू ही लग रहा है.
मन तो कर रहा था कि मैं संजय को सब कुछ बता दू. पर मेरी बिल्कुल हिम्मत नही हुई. मैं ये सोच कर रुक जाती थी कि वो बिल्कुल बर्दास्त नही कर पाएँगे.
संजय और चिंटू के जाने के बाद मैं सर पकड़ कर बैठ गयी.
बड़ी मुस्किल से मैने धीरे, धीरे घर के कामो को निपटाया.
सामने बिल्लू का बाप खड़ा था. जिसका डर था वही हो गया.
मैने कहा, आप प्लीज़ यहा से जाओ.
वो बोला डॉक्टर साहेब कहा है.
मैने कहा वो घर पर नही हैं प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो, मैं अब बिल्लू से नही मिलूंगी, अब तो सब ख़तम हो चुका है.
वो बोला, सब ख़तम हो जाने से तेरी ग़लती तो कम नही हो जाती. तेरे पति को पता तो चलना चाहिए कि तू क्या गुल खीलाती है उनके पीछे. मैं आज डॉक्टर से मिल कर ही जाउन्गा.
वक्त बढ़ता जा रहा था, संजय कभी भी आ सकते थे. मेरे पाँव थर, थर काँप रहे थे.
मुझे ना जाने क्या सूझी मैने उसे बोल दिया कि मैं कुछ भी करने को तैयार हू, आप प्लीज़ अभी यहा से चले जाओ.
वो बोला, तू मेरे लिए क्या करेगी ?
मैने गिड़गिदते हुवे कहा आप जो कहेंगे करूँगी, पर प्लीज़ अभी यहा से जाओ.
वो अचानक मुड़ा और वाहा से चला गया.
मैने चैन की साँस ली.
संजय उसके थोड़ी देर बाद घर आ गये. आकर वो फ्रेश होने चले गये.
मैं किचन में खाना बनाने लगी.
तभी अचानक फोन की घंटी बजी.
मैने उठाया तो उधर से बिल्लू की आवाज़ आई, मैने पूछा, बोलो क्या बात है.
वो बोला, मेरे बापू ने तुझे कल सुबह 11 बजे बुलाया है, मैं तुझे लेने आ जाउन्गा.
ये कह कर उसने फोन रख दिया.
मैं सब सुन कर बेचन हो गयी. मैं सोच रही थी कि आख़िर वो क्या चाहता है.
तब मुझे ध्यान आया कि मैं हड़बड़ाहट मे उसके बापू को क्या बोल गयी, थी.
उसे वाहा से भेजने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हो गयी थी.
मैं सोच रही थी कि ये कैसे नरक में फँस गयी हू मैं. मेरी छोटी सी भूल, अब छोटी ना रह कर बहुत बड़ी बन चुकी थी. पता नही अब क्या होगा ?
मैं रात भर बेचन रही कि अब क्या होगा. मन मे बार बार ये ख्याल आ रहा था कि मुझे संजय को सब बता देना चाहिए, शायद वो समझ जाए और मुझे माफ़ कर दे.
संजय करवट लिए दूसरी और लेते हुवे थे, पर मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नही हुई की मैं उन्हे उठा कर उनसे कुछ कह सकु.
मैं चुपचाप लेट कर अपनी किस्मत को रोती रही. मैं सोच रही थी कि आख़िर बिल्लू के बापू ने मुझे कल क्यो बुलाया है ? वो मुझसे क्या चाहता है?
तब मुझे ध्यान आया कि कैसे उसका लिंग उसकी पॅंट में तना हुवा था, और में ये सोच कर घबरा गयी कि कही फिर से तो मुझे वो सब नही करना पड़ेगा.
बड़ी मुस्किल से तो मैने बिल्लू से पीछा छुड़ाया था. कही फिर से वो मुझे अपने जाल में तो नही फसा रहा ?
ऐसे काई सवाल मेरे दीमाग में घूम रहे थे.
सुबह कब हो गयी पता ही नही चला, पर मैं एक पल को भी चैन से नही सो पाई. सारी रात दीमाग यहा वाहा घूमता रहा.
संजय ने ब्रेकफास्ट करते वक्त पूछा, ऋतु क्या हुवा आज ढीली ढीली लग रही हो, तबीयत तो ठीक है ना.
मैने कहा हा ठीक है तुम्हे यू ही लग रहा है.
मन तो कर रहा था कि मैं संजय को सब कुछ बता दू. पर मेरी बिल्कुल हिम्मत नही हुई. मैं ये सोच कर रुक जाती थी कि वो बिल्कुल बर्दास्त नही कर पाएँगे.
संजय और चिंटू के जाने के बाद मैं सर पकड़ कर बैठ गयी.
बड़ी मुस्किल से मैने धीरे, धीरे घर के कामो को निपटाया.