जिस्म की प्यास--9
गतान्क से आगे……………………………………
उधर दूसरी ओर चेतन, चंदर और ललिता उठ चुके थे. तीनो खाना ख़ाके बैठे थे और काफ़ी बोर
भी हो रहे थे क्यूंकी बत्ती नहीं आ रही थी. फिर तीनो ने सोचा कि कुच्छ खेलते है जिससे वक़्त भी निकल जाएगा.
तीनो ने किसी तरह कुच्छ ना कुच्छ खेलके समय निकाला फिर जब थोड़ी शाम हो गयी थी फिर उनके पास कॉल
आया शन्नो का. शन्नो ने कहा "बेटा ऐसा है कि बुआ की तबीयत काफ़ी खराब तो वो आज हॉस्पिटल में होंगी
और अंकल भी नहीं है यहाँ उनके पास तो आज मैं उनके पास रुकूंगी. तुम लोग कुच्छ बाहर से मंगवा लेना
मैं सुबह आ जाउन्गि घर. जैसे ही फोन रखा चेतन ने चिल्ला के ये सब कुच्छ दोनो को बताया.
जब घर में कोई बड़ा नहीं होता तब बड़े मज़े आते है बच्चो को इसलिए तीनो बहुत ही ज़्यादा खुश थे.
फिर लाइट भी आ गयी तीनो बैठके कोई पुरानी पिक्चर देखने लगे. पिक्चर में एक सीन आया कि शक्ति कपूर
एक लड़की का बलात्कार कर रहा है. उसको देख कर दोनो चेतन और चंदर काफ़ी घबरा गये. दोनो को अपने
कछे में सख़्त लंड को ठीक करना पढ़ा. उधर ललिता भी थोड़ा शरम में मुश्कुरा रही थी.
और फिर से लाइट चली गयी. तीनो ने कहा अब क्या करें यार.. शाम के 7 बज रहे थे और अंधेरा भी
हो गया था. चंदर ने कहा ओये एक गेम खेलोगे. ललिता ने पूछा कैसा गेम. चंदर ने कहा इसको
डार्क रूम कहते है मतलब काला कमरा. चेतन ने पूछा "ये कैसा गेम है... क्या करना होता है इसमें".
चंदर ने कहा "देखो इसमे हम एक कमरे के दरवाज़े और खिड़कियो को पूरी तरह से ढक देंगे
ताकि कहीं से भी रोशनी ना आए. फिर कोई दो इस रूम में छुपेन्गे कहीं पे भी और कोई एक इन को दोनो पकड़ेगा कमरे के अंदर....जैसे छुपन च्छुपाई में होता है. और हां जिसको पहले पकड़ा जाएगा फिर उसकी बारी होगी ढूँढने की....और हम ऐसा भी कर सकते है कि थोड़े से जाल बिछा दे". चेतन ने पूछा कैसे जाल.
चंदर ने कहा "देख हम दरवाज़े के पास बॅट रख देंगे तो जैसे ही कोई बंदा आएगा अंदर दरवाज़ा
खोलकर तो उसके उपर वो गिरे गा. इससे और मज़े आएँगे गेम में". ललिता और चेतन दोनो ने
झट से हां कह दिया. खेलना शुरू करा. सबसे पहले ढूँढने की बारी ललिता की थी.. और उसको बहुत
समय लगा दोनो को ढूँढने के लिए. फिर कुच्छ देर ऐसी ही चलता गया. फिर अगली बारी चेतन की आई
ढूँढने के लिए. ललिता और चेतन जगह ढूँढने लगे छुप्ने के लिए. ललिता ने एक दम से कहा चल
दोनो अलमारी में छुप जाते है.. अब तक कोई भी नहीं छुपा है और शायद चेतन हम
दोनो को पहचानने में गड़बड़ कर्दे. अलमारी काफ़ी कपड़ो से भरी हुई थी मगर चंदर ने कहा कपड़े नहीं हटाएँगे क्यूंकी उसको शक़ हो जाएगा. तो दोनो किसी तरह अलमारी में घुसे और अपने आपको च्छुपाने
के लिए कपड़े रख दिए अपने उपर.
जैसी ही चेतन ने अंदर आने के लिए कहा वैसे ही ललिता जल्दी से हिली अलमारी के अंदर. चंदर ने हल्के से
कहा क्या कर रही हो दीदी." "अर्रे मेरी टाँग पे लग रही थी"ललिता ने हल्के से कहा. ललिता ने अपनी
टाँग अब चंदर की उल्टी जाँघ पर रख दी. ललिता का पैर चंदर के लंड को हल्के से च्छू रहा था.
चंदर अब ललिता की टाँग हटा भी नहीं सकता था क्यूंकी चेतन को पता चल जाता कि वो अंदर छुपे हुए है.
चंदर का लंड अब जागने लगा लगा. और हर 2 सेकेंड में हिलने लगा था. ललिता मन ही मन मुस्कुराने
लगी थी क्यूंकी उसको चंदर की परेशानी पता चल गयी थी. चंदर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता था और
हिल गया ताकि ललिता अपने पैर हटा ले मगर अब ललिता का पैर पूरी तरह से चंदर के लंड पे था.
ललिता हल्के से हंस पड़ी और तभी चेतन ने अलमारी खोल ली. उसने दोनो को पकड़ लिया. चंदर जल्दी से टाय्लेट
चला गया पिशाब करने के लिए. ललिता ये देख और मुस्कुराने लगी.
काफ़ी रात हो गयी थी तीनो ने फिर खाना मँगवाया और उसके साथ एक डरावनि फिल्म की सीडी मँगवाई.
खाना खाने के बाद तीनो एक एक सोफे पे बैठ गये और टीवी पे डरावनी मूवी लगा दी. उसके उपर घर की
लाइट्स भी बंद करदी ताकि थोड़ा डर लगे. मगर फिल्म को देखते देखते तीनो की हवा निकल गयी.
तीनो काफ़ी डरे हुए थे. चेतन ने किसी तरह उठ कर घर की लाइट ऑन करदी. कुच्छ देर तक किसी तरह समय
निकलता रहा और चंदर बात करते करते सोफे पे ही सो गया. कुच्छ देर और गुज़रने के बाद
चेतन और ललिता को भी नींद आने लगी. चेतन ने चंदर को उठाने की कोशिश करी मगर वो उठा नहीं.
ललिता ने कहा कि इसको यहीं सोने दो अगर आँख खुलेगी तो कमरे में आजाएगा. चेतन को भी ठीक
लगा और दोनो अपने अपने कमरे में चले गये.काफ़ी देर सोने के बाद ललिता की आँख खुल गयी.
उसने घड़ी में देखा की 4 बज रहे थे. वो बिस्तर से उठी और टाय्लेट गयी. फिर वो कमरे के बाहर गयी देखने
कि चंदर अभी भी बाहर सो रहा है या अंदर कमरे में चला गया. उसने अपने कमरे की लाइट ऑन करी
और दरवाज़ा थोड़ा सा भेड़ दिया ताकि ड्रॉयिंग रूम रूम में थोड़ी सी रोशनी रहे. चंदर खराते लेकर बाहर
ही सो रहा था एक पतली सी चादर में. ललिता दबे पाओ उसके पास गयी उसका चेहरा देखने के लिए.
चंदर की चादर आधी नीचे फर्श पे गिरी हुई थी. ललिता ने सोचा कि चंदर को ढंग से ऊढा देती हूँ.
जब ललिता ने चादर उठाई तो वो चंदर के लाल कछे को देखते शर्मा गयी. ऐसे नहीं कि चंदर सिर्फ़ लाल
कछे में सो रहा था मगर उसका ट्राउज़र सोते समय थोड़ा नीचे हो गया था. ललिता ने चादर
उठाके साइड में रखी और फर्श पे बैठ गयी ताकि उसको ढंग से दिखे. ललिता को अब कोई होश
नहीं था और इसीलिए उसने अपना हाथ बढ़ाया और चंदर की शर्ट को थोड़ा सा उपर कर्दिआ. चंदर का पेट ऐसा
लग रहा था कि किसी लड़की का पेट हो. बिल्कुल गोरा और बिना किसी बाल के. ललिता ने अपना हाथ थोड़ा नीचे
किया और चंदर के ट्राउज़र के उपर रख दिया ताकि वो उसका लंड महसूस कर पाए. ललिता शरम के मारे मुस्कुरा
रही थी. उसे अपने पैंटी के नम होने का एहसास हो गया था. ललिता अब सीमा को पार करने वाली थी.
उसने अपना हाथ बढ़ाया चंदर के अंडरवेर की तरफ मगर चंदर ने कारबट लेली. ललिता ने अपना हाथ रोक लिया.
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
उसे अंदाज़ा हो गया जो वो कर रही है वो ग़लत होगा. अपनी हवस को नज़र अंदाज़ करकर उसने
चंदर को चादर ऊढाई और वहाँ से चली गयी. भोपाल में शाम का समय था. डॉली ने स्कूल के डिन्नर के लिए कपड़े निकाले...
उसने सोचा कि पापा के स्कूल पहली बारी जवँगी तो थोड़े ढंग के कपड़े पेहेन्के
चली जाती हूँ. डॉली ने एक लाल सारी निकाली जिसपे काले रंग का काम हुआ था.
फिर उसने काले रंग का पेटिकट और काले रंग ब्लाउस निकाला.
डॉली ने ब्लाउस पेहेन्के देखा तो उसको वो 1 इंच बड़ा लगा...
डॉली के पास सिर्फ़ यही एक सारी थी और इसके अलावा कुच्छ पहेन ने के लिए
कुच्छ भी नहीं था,,, डॉली को लगा कि कोई दर्जी इस ब्लाउस को ठीक कर्देगा ताकि
इससे पहना जा सके... उस वक़्त डॉली ने सफेद डीप नेक सूट पहेन रखा था
और वो उसको ही पेहेन्के चली गयी. उसको पता था क़ी सड़क के किनारे एक दर्जी
बैठा रहता है पेड के नीचे तो वो उसके पास पहुच गयी.....
दर्जी 40-45 साल का लग रहा था और एक सफेद कुर्त पाजामे में बैठा हुआ था...
आँखो में बड़ा चश्मा और बड़ी सफेद रंग की दाढ़ी थी उसकी...
बड़ा अजीब सा दिख रहा था और अपने काम में ही लगा हुआ था. डॉली ने अपनी पतली
आवाज़ में बोला "भैया" इक़बाल दर्जी वाले ने नज़र उठाके देखा और
डॉली को देख कर ही वो हिल गया. इक़बाल ने कहा "जी बोलिए मेडम"
डॉली ने कहा "भैया ये मेरा ब्लाउस है इसकी 1 इंच कम करना है"
इक़बाल दर्जी वाले ने डॉली की उंगलिओ को छुते हुए ब्लाउस पकड़ा और चालाकी से बोला
"किस तरफ से दबाना है" डॉली ने कहा "दोनो तरफ से 1-1 इंच दबा दो".
इक़बाल का लंड जाग गया था डॉली की मीठी आवाज़ में ये सुनके.
"ठीक है काम हो जाएगा.... आप ये कल ले लेना आके" इक़बाल ने कह दिया. फिर पूरा दिन और रात ऐसी ही निकली.
ललिता ने चंदर से ढंग से बात भी नहीं की और पूरे समय अपने कमरे में ही रही. पूरी रात चंदर सो नहीं पाया. उसके दिल दिमाग़ पर बस ललिता ही छाई हुई थी.
अगले दिन भोपाल में डॉली ने एक टाइट काले रंग का टॉप पहना हुआ था और
नीचे काली जीन्स जोकि उसकी टाँगो से चिपकी हुई थी. डॉली जब इक़बाल दर्ज़ी
के पास पहुचि तो वो अभी भी काम में लगा हुआ था.
डॉली ने फिर से आवाज़ दी "भैया"... इक़बाल दर्ज़ी ने देखा और फिर से
डॉली को देख के हिल गया. डॉली ने कहा "भैया मेरे ब्लाउस का काम हो गया?"
इक़बाल दर्ज़ी वाले ने चालाकी से कहा "कौनसा ब्लाउस और क्या काम करवाना था ?"डॉली ने कहा "आररी काले रंग था एक इंच जिसका कम करना था"
इक़बाल ने ढूँढा ब्लाउस को और डॉली के उंगलिओ को छुते हुए ब्लाउस पकड़ा दिया
और कहा "एक बारी देख लेना कि काम ठीक से हो गया है कि नहीं"डॉली कहा
"ठीक है कितने रुपय हो गये"इक़बाल ने कहा 15 रुपय देदो. डॉली ने उसको 20
रुपय दिए और जब इक़बाल उसको 5 रुपय लौटने लगा तो उसने 5 का सिक्का जान
के नीचे मगर थोड़ा दूर गिरा दिया.
इक़बाल ने डॉली से माफी माँगी और जब डॉली मूडी सिक्का उठाने के लिए तो उसका
काला टॉप उपर हो गया और उसकी काली जीन्स नीचे हो गयी और इस चक्कर
में डॉली की सफेद पैंटी भी हल्की से दिखने लगी. 5 सेकेंड के डॉली के लिए
डॉली की टाइट गान्ड इक़बाल के सामने थी मानो उसको बुला रही हो कि आके अपना
लंड घुसाले. डॉली ने सिक्का उठाया और इक़बाल को धन्येवाद बोलके चली गयी.
डॉली शाम को तैयार होने लग गयी नाइट स्कूल के लिए. डॉली का
बहुत मन था अपनी नयी पुश अप ब्रा पहनने का मगर वो ये भी नहीं चाहती थी
कि उसके पापा के स्कूल वाले उनके बारे में कुछ उल्टा सीधा बोले...
फिर उसने सेमी ट्रास्पेरेंट वाली ब्रा निकाली और उसके साथ काले रंग की पैंटी भी.....
और फिर उसने अपनी लाल सारी निकाली और उसके काले रंग का ब्लाउस और पेटिकट. डॉली
अच्छे से अपना मेक अप करा और हाइ हील्स पहने..
आज वो पूरी बॉम्ब लग रही थी. उसको लग रहा था कि आज स्कूल में सब उसको ही देखते
रह जाएँगे.जब नारायण घर आया तो वो भी डॉली को देख कर दंग रह गया.
उसको नहीं पता कि उसकी बेटी इतनी जानलेवा लग सकती थी. उसने डॉली की काफ़ी तारीफ
करी और डॉली भी शरमाती रही. जब अब्दुल गाढ़ी लेके पहुचा नारायण और
डॉली को स्कूल ले जाने के लिए तो उसके भी होश उड़ गये डॉली को देखकर.
पूरे रास्ते उसके दिमाग़ में वो टाइट मम्मे और गान्ड जो कि काले रंग में
लिपटे हुए थे नज़र आ रहे थे. जब उसने दोनो को गाढ़ी से उतारा तो वो सीधा
स्कूल के टाय्लेट चला गया और 10 मिनट तक लंड को मसलता रहा मानो जैसे डॉली को ही चोद रहा हो.
उधर स्कूल के अंदर भी सारे डॉली की तारीफ कर रहे थे. आदमी हो यह औरत या
फिर उनके बच्चे सब डॉली की खूबसूरती की तारीफ कर रहे थे. डॉली को भी
पता चल रहा था कि कौन उसके खूबसूरती या कपड़ो और या फिर उसके जिस्म की तारीफ
कर रहा है. डॉली किसी से भी ज़्यादा घुली मिली नहीं और ज़्यादा समय अकेले ही रही.
गोपाल भी डॉली से ज़्यादा बात नही कर पाया क्यूंकी वो नही चाहता कि कोई कुच्छ ग़लत मतलब निकाले. डॉली जब खाना लेके एक कुर्सी पे बैठने लगी तो उसकी पैंटी घूम घूम
कर उसकी गान्ड में घुस गयी... उस वक़्त उसको काफ़ी बेचैनी होने लगी मगर फिर
वहाँ एक लड़का उसके पास गया और उसने साथ वाली कूसरी की तरफ इशारा करते हुए
पूचछा "क्या मैं इस कुर्सी पे बैठ सकता हूँ." डॉली ने हां कह दिया.
फिर उन दोनो ने बात करनी शुरू करी. बातों बातों में पता चला कि कोई
शांति वेर्मा है जो कि इस स्कूल में पढ़ाती है उनका बेटा है. उसका नाम राज
है और वो भी इसी स्कूल में 12 क्लास में पढ़ता है. डॉली और राज ने काफ़ी
बातें करी और इसी कारण डॉली की बोरियत भी ख़तम हो गयी. जब सब
वापस घर के लिए रवाना होने लगे तो राज ने डॉली से उसका नंबर माँगा
और डॉली ने खुशी खुशी उसको अपना नंबर दे दिया.
चंदर को चादर ऊढाई और वहाँ से चली गयी. भोपाल में शाम का समय था. डॉली ने स्कूल के डिन्नर के लिए कपड़े निकाले...
उसने सोचा कि पापा के स्कूल पहली बारी जवँगी तो थोड़े ढंग के कपड़े पेहेन्के
चली जाती हूँ. डॉली ने एक लाल सारी निकाली जिसपे काले रंग का काम हुआ था.
फिर उसने काले रंग का पेटिकट और काले रंग ब्लाउस निकाला.
डॉली ने ब्लाउस पेहेन्के देखा तो उसको वो 1 इंच बड़ा लगा...
डॉली के पास सिर्फ़ यही एक सारी थी और इसके अलावा कुच्छ पहेन ने के लिए
कुच्छ भी नहीं था,,, डॉली को लगा कि कोई दर्जी इस ब्लाउस को ठीक कर्देगा ताकि
इससे पहना जा सके... उस वक़्त डॉली ने सफेद डीप नेक सूट पहेन रखा था
और वो उसको ही पेहेन्के चली गयी. उसको पता था क़ी सड़क के किनारे एक दर्जी
बैठा रहता है पेड के नीचे तो वो उसके पास पहुच गयी.....
दर्जी 40-45 साल का लग रहा था और एक सफेद कुर्त पाजामे में बैठा हुआ था...
आँखो में बड़ा चश्मा और बड़ी सफेद रंग की दाढ़ी थी उसकी...
बड़ा अजीब सा दिख रहा था और अपने काम में ही लगा हुआ था. डॉली ने अपनी पतली
आवाज़ में बोला "भैया" इक़बाल दर्जी वाले ने नज़र उठाके देखा और
डॉली को देख कर ही वो हिल गया. इक़बाल ने कहा "जी बोलिए मेडम"
डॉली ने कहा "भैया ये मेरा ब्लाउस है इसकी 1 इंच कम करना है"
इक़बाल दर्जी वाले ने डॉली की उंगलिओ को छुते हुए ब्लाउस पकड़ा और चालाकी से बोला
"किस तरफ से दबाना है" डॉली ने कहा "दोनो तरफ से 1-1 इंच दबा दो".
इक़बाल का लंड जाग गया था डॉली की मीठी आवाज़ में ये सुनके.
"ठीक है काम हो जाएगा.... आप ये कल ले लेना आके" इक़बाल ने कह दिया. फिर पूरा दिन और रात ऐसी ही निकली.
ललिता ने चंदर से ढंग से बात भी नहीं की और पूरे समय अपने कमरे में ही रही. पूरी रात चंदर सो नहीं पाया. उसके दिल दिमाग़ पर बस ललिता ही छाई हुई थी.
अगले दिन भोपाल में डॉली ने एक टाइट काले रंग का टॉप पहना हुआ था और
नीचे काली जीन्स जोकि उसकी टाँगो से चिपकी हुई थी. डॉली जब इक़बाल दर्ज़ी
के पास पहुचि तो वो अभी भी काम में लगा हुआ था.
डॉली ने फिर से आवाज़ दी "भैया"... इक़बाल दर्ज़ी ने देखा और फिर से
डॉली को देख के हिल गया. डॉली ने कहा "भैया मेरे ब्लाउस का काम हो गया?"
इक़बाल दर्ज़ी वाले ने चालाकी से कहा "कौनसा ब्लाउस और क्या काम करवाना था ?"डॉली ने कहा "आररी काले रंग था एक इंच जिसका कम करना था"
इक़बाल ने ढूँढा ब्लाउस को और डॉली के उंगलिओ को छुते हुए ब्लाउस पकड़ा दिया
और कहा "एक बारी देख लेना कि काम ठीक से हो गया है कि नहीं"डॉली कहा
"ठीक है कितने रुपय हो गये"इक़बाल ने कहा 15 रुपय देदो. डॉली ने उसको 20
रुपय दिए और जब इक़बाल उसको 5 रुपय लौटने लगा तो उसने 5 का सिक्का जान
के नीचे मगर थोड़ा दूर गिरा दिया.
इक़बाल ने डॉली से माफी माँगी और जब डॉली मूडी सिक्का उठाने के लिए तो उसका
काला टॉप उपर हो गया और उसकी काली जीन्स नीचे हो गयी और इस चक्कर
में डॉली की सफेद पैंटी भी हल्की से दिखने लगी. 5 सेकेंड के डॉली के लिए
डॉली की टाइट गान्ड इक़बाल के सामने थी मानो उसको बुला रही हो कि आके अपना
लंड घुसाले. डॉली ने सिक्का उठाया और इक़बाल को धन्येवाद बोलके चली गयी.
डॉली शाम को तैयार होने लग गयी नाइट स्कूल के लिए. डॉली का
बहुत मन था अपनी नयी पुश अप ब्रा पहनने का मगर वो ये भी नहीं चाहती थी
कि उसके पापा के स्कूल वाले उनके बारे में कुछ उल्टा सीधा बोले...
फिर उसने सेमी ट्रास्पेरेंट वाली ब्रा निकाली और उसके साथ काले रंग की पैंटी भी.....
और फिर उसने अपनी लाल सारी निकाली और उसके काले रंग का ब्लाउस और पेटिकट. डॉली
अच्छे से अपना मेक अप करा और हाइ हील्स पहने..
आज वो पूरी बॉम्ब लग रही थी. उसको लग रहा था कि आज स्कूल में सब उसको ही देखते
रह जाएँगे.जब नारायण घर आया तो वो भी डॉली को देख कर दंग रह गया.
उसको नहीं पता कि उसकी बेटी इतनी जानलेवा लग सकती थी. उसने डॉली की काफ़ी तारीफ
करी और डॉली भी शरमाती रही. जब अब्दुल गाढ़ी लेके पहुचा नारायण और
डॉली को स्कूल ले जाने के लिए तो उसके भी होश उड़ गये डॉली को देखकर.
पूरे रास्ते उसके दिमाग़ में वो टाइट मम्मे और गान्ड जो कि काले रंग में
लिपटे हुए थे नज़र आ रहे थे. जब उसने दोनो को गाढ़ी से उतारा तो वो सीधा
स्कूल के टाय्लेट चला गया और 10 मिनट तक लंड को मसलता रहा मानो जैसे डॉली को ही चोद रहा हो.
उधर स्कूल के अंदर भी सारे डॉली की तारीफ कर रहे थे. आदमी हो यह औरत या
फिर उनके बच्चे सब डॉली की खूबसूरती की तारीफ कर रहे थे. डॉली को भी
पता चल रहा था कि कौन उसके खूबसूरती या कपड़ो और या फिर उसके जिस्म की तारीफ
कर रहा है. डॉली किसी से भी ज़्यादा घुली मिली नहीं और ज़्यादा समय अकेले ही रही.
गोपाल भी डॉली से ज़्यादा बात नही कर पाया क्यूंकी वो नही चाहता कि कोई कुच्छ ग़लत मतलब निकाले. डॉली जब खाना लेके एक कुर्सी पे बैठने लगी तो उसकी पैंटी घूम घूम
कर उसकी गान्ड में घुस गयी... उस वक़्त उसको काफ़ी बेचैनी होने लगी मगर फिर
वहाँ एक लड़का उसके पास गया और उसने साथ वाली कूसरी की तरफ इशारा करते हुए
पूचछा "क्या मैं इस कुर्सी पे बैठ सकता हूँ." डॉली ने हां कह दिया.
फिर उन दोनो ने बात करनी शुरू करी. बातों बातों में पता चला कि कोई
शांति वेर्मा है जो कि इस स्कूल में पढ़ाती है उनका बेटा है. उसका नाम राज
है और वो भी इसी स्कूल में 12 क्लास में पढ़ता है. डॉली और राज ने काफ़ी
बातें करी और इसी कारण डॉली की बोरियत भी ख़तम हो गयी. जब सब
वापस घर के लिए रवाना होने लगे तो राज ने डॉली से उसका नंबर माँगा
और डॉली ने खुशी खुशी उसको अपना नंबर दे दिया.
Re: जिस्म की प्यास
उधर दूसरी ओर रात के 12 बज रहे थे पूरे घर में अंधेरा था बस एक टीवी की रोशनी
आ रही थी. चंदर और चेतन दोनो साथ में बैठके आहिस्ते करके ब्लू फिल्म देख
रहे थे. दोनो अलग अलग सोफा पे बैठे थे एक चद्दर के अंदर. दोनो ही धीरे
धीरे अपने लंड को मसल रहे थे ताकि एक दूसरे को पता ना चले मगर चंदर
अपना लंड ललिता को सोच सोच के मसल रहा था.
एक दम से दरवाज़ा खुला और शन्नो अपनी आँख मल्ति हुई कमरे के बाहर आई. जल्दी से
चंदर अपना हाथ चद्दर में से निकाला चॅनेल बदलने के लिए तब तक
शन्नो को एक झलक मिल गयी थी टीवी की. फिर भी उसने पूछा "क्या कर रहे हो इतनी रात
को तुम दोनो" चेतन ने घबराते हुए कहा "कुच्छ नहीं बस नींद नहीं आ
रही थी तो टीवी देख रहे थे." शन्नो मन ही मन मुस्कुरा रही थी दोनो को इतना
घबराया हुआ देखकर.
उनको थोड़ा और सताने के शन्नो ने पूछा "क्या देख रहे हो टीवी पर" चंदर बोला "कुच्छ नहीं आंटी बस ऐसी ही चॅनेल चेंज कर रहे है कि कहीं कुच्छ अच्छा आ जाए"
फिर शन्नो ने कहा "अच्छा ठीक है पर सो जाना थोड़ी देर में क्यूंकी काफ़ी रात
हो गयी है" शन्नो ने किचन से पानी लिया और वापस अपने कमरे में चली गयी.
दोनो ने एक दूसरे को देखा और बोला बच गये यार आज. चेतन ने कहा
"मैं तो जा रहा हूँ हूँ सोने.. तू भी आजा कहीं मम्मी फिर से ना आजाए".
चंदर ने कहा "अबे अब नहीं आएँगी. आजा ना बैठ ना मेरे साथ".
चेतन ने चंदर को मना कर दिया और कमरे में चला गया. उस ब्लू फिल्म को
देख कर चेतन को डॉली के साथ बिताई वो दो रात याद आगयि थी... उसको अब इन
फ़िल्मो में इतना मज़ा नहीं आता था क्यूंकी वो असली में चोद चुका था अपनी बहन को....
अब उसको इंतजार था कि कब उनके एग्ज़ॅम्स होंगे और कब वो डॉली से मिलेगा...
फिलहाल चंदर को भी डर था कि कहीं चेतन की मम्मी वापस ना आजाए और इसलिए
वो बड़ा सावधान हो रखा था. कुच्छ देर बाद उसने घड़ी में समय देखा
तो रात 3 बज गये थे. समय देखकर ही उसको भी अब नींद आने लगी तो उसने टीवी
बंद कर दिया और सोफे से उठकर ज़ोर से अंगड़ाई लेने लगा... चेतन के कमरे की ओर
कदम बढ़ाते हुए ही उसको लगा कि एक बारी टाय्लेट होके आजाता हूँ. चंदर ललिता के
कमरे के तरफ बढ़ा जिसमे अंधेरे के अलावा कुच्छ और दिखाई नहीं दे रहा था...
किसी तरह से उसने टाय्लेट की लाइट ऑन करी और अंदर गया. किसिके कमरे में आने की
वजह से ललिता की भी नींद टूट गयी थी और टाय्लेट की हल्की रोशनी से उसको पता चल
गया था कि चंदर टाय्लेट गया है.... सानिया ने झट से अपने उपर से चद्दर हटाई और
बिल्कुल सीधी पीठ के बल सोने का नाटाक़ करने लगी. टाय्लेट के अंदर से फ्लश की
आवाज़ आई और 10 सेकेंड में टाय्लेट का दरवाज़ा खुला... जब चंदर बाहर निकला तो
टाय्लेट की वजह से कमरे में थोड़ी रोशनी थी और उसने ललिता को सोते हुए देखा.
उसने जो टॉप पेहेन रखा था वो काफ़ी टाइट लग रहा था जिस वजह से उसके मम्मे
और भी बड़े लग रहे थे. चंदर के दिमाग़ में अभी ब्लू फिल्म ही चल रही थी और
एक झटके में उसका लंड फिर से जागने लगा.... उसको याद आया कि जिसने भी इस दुनिया
में रिस्क लिया है वोई अभी मज़िल झू पाया है और इसी सोच ने उसको रिस्क लेने
पर मजबूर कर दिया. उसने टाय्लेट का दरवाज़ा हल्का सा भेड़ दिया और दबे पाओ ललिता
के बिस्तर की तरफ गया. उसकी नज़रो के सामने ललिता के मम्मे उपर नीचे हो रहे थे.... उसने अपना हाथ ललिता के चेहरे के उपर हिलाया ताकि उसे पता चल सके कि
ललिता नींद में है भी के नहीं. जब उसको थोड़ा विश्वास आया तो उसने
अपने काप्ते हुए हाथ को बढ़ाया और उसके कंधे को हल्के से छुआ.
ललिता भी पूरी कोशिश कर रही थी कि चंदर को ज़रा सा भी शक़ ना हो पाए.
जब वो लंबी लंबी सासें ले रही तो उसके बड़े मम्मे और भी बड़े लगने लगे.
चंदर ने अपनी ठंढी उंगलिओ से ललिता के माथे और फिर गाल को छुआ
और फिर उसके होंठो को महसूस किया. चंदर अपने बढ़ते हुए लंड को अपने पाजामे
में ठीक करता हुआ सोचने लगा कीदरवाज़ा बंद कर देता ताकि शन्नो आंटी
कमरे में ना आ पाए. उस समय उसको यही ठीक लगा तो उसने आहिस्ते से कुण्डी लगा दी. चंदर अब बिस्तर के दूसरी ओर गया और उसने ललिता के गोरे पैरो को छुआ.
उसने अपना सिर नीचे करा और बिकुल आहिस्ते से उनको चूमा. अब उसके दिमाग़ में सिर्फ़
हवस भरी हुई थी क्यूंकी वो कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो चुका था. चंदर ने
अपने दोनो हाथ बढ़ाए और ललिता का टॉप उपर करने की कोशिश की.
दिक्कत ये थी कि ललिता ने टॉप अपने ट्राउज़र के अंदर घुसा रखा था.
चंदर ने एक बारी भी ना सोचा और टॉप को किसी तरह बाहर निकालने की कोशिश करी.
काफ़ी मेहनत के बाद आगे से टॉप बाहर आ गया मगर पीठ की तरफ से अभी
भी अंदर ही घुसा हुआ था. चंदर ने अपना ध्यान टॉप से हटाया और ललिता के स्तनो
को (जोकि अभी टॉप के अंदर थे) महसूस किया. जैसी ही उसने स्तनो को छुआ उसका
लंड पूरी तरह खड़ा हो गया. अब वो हल्के हल्के से उन्हे दबाने लगा.
उसको लग रहा था कि ललिता ने ब्रा पहेन रखी इसीलिए वो उसकी चूची को महसूस
नही कर पाया. ललिता भी अब काफ़ी गरम हो गई थी और इसलिए वो एक दम से बिस्तर पे पलटी. चंदर थोड़ी देर के लिए घबरा गया. चंदर मन ही मन मुस्कुराने लगा
क्यूंकी अब ललिता पेट के बल लेती हुई थी. ललिता को भी पता था ये करने से चंदर को टॉप निकालने में आसानी होगी. चंदर ने हाथ बढ़ाया और टॉप को बाहर निकाला.
दोनो के मुँह में पानी आ गया था. आहिस्ते से चंदर ने टॉप उपर करा और फिर
उसे सफेद ब्रा दिखी. अब चंदर और उसकी जिस्म की प्यास के बीच में सिर्फ़ दो हुक का
फासला था. चंदर ने कोशिश करी उसको खोलने क़ी मगर उससे नहीं खुला और
उसने उसको तोड़ने की कोशिश भी करी मगर उसे वो भी नही हो पाया.
गुस्सा, बैचैनि, हार और मायूसी ऐसी कयि चीज़े उसके चेहरे पे झलक रही थी.
मगर फिर उसने ललिता की गान्ड को देखा जोकि उसकी उंगलिओ को पुकार रही थी.
उसने थोड़ी देर तक ललिता की बड़ी गान्ड पे हाथ फेरा और एक दम से ललिता के ट्राउज़र को नीचे कर दिया. ललिता एक दम से डर गयी. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था और
अब उसको गीलापन भी महसूस हो रहा था. चंदर ने अपने ट्राउज़र और कच्छे
को नीचे किया और अपने साडे 6 इंच का लंड बाहर निकाला जोकि खंबे की तरह
सख़्त और उचा था. फिर उसने लंड ललिता के हाथ पे रख दिया और ललिता की उंगलिओ से
अपने लंड को दबाया. घबराहट के साथ ललिता को बड़े मज़े भी आने लगे थे.
इतना बड़ा लंड उसके कमरे मे उसके हाथ में है और वो भी उसके भाई के दोस्त का
ये सोचके वो काफ़ी नशे में थी. चंदर ने सोचा कि अब देर नही करनी चाहिए और
अब उसने ललिता की पैंटी पे अपनी नज़र डाली. कुच्छ ही पल में उसने हिम्मत
दिखाते हुए ललिता की पैंटी को थोड़ा नीचे कर दिया. ललिता की गोरी गान्ड अब
उसके सामने थी और जैसे ही उसने गान्ड को महसूस किया उसके लंड से हल्का
सा पानी आ गया. इसकी वजह अब ललिता और घबरा गयी. चंदर ने कुच्छ सेकेंड
तक अपना हाथ ललिता की कोमल गान्ड पे फेरा. पर अचानक से कमरे के
बाहर से कुच्छ आवाज़ आई और फिर बाहर की लाइट ऑन हो गयी. चंदर हद से ज़्यादा
घबरा गया और ललिता की जान ही चली गयी. चंदर ने ललिता के कपड़े ठीक किए और
अपने लंड को ट्राउज़र के अंदर डाला. उसने दरवाज़े की कुण्डी हल्के से खोली और
आस पास देखा और उसे कोई नही दिखा. वो जल्दी से कमरे से निकला और जाके चेतन
के बिस्तर पर लेट गया. कुच्छ सेकेंड बाद उसकी जान में जान आई. उसका पूरा
माथा पसीने से लत्पत था. कब उसकी आँख लग गयी उसको पता नही चला.
ललिता अपने बिस्तर से उठी और सीधा टाय्लेट गयी. उसने अपने हाथ को सुँगा और
अजीब सी बदबू आ रही थी. कुच्छ सेकेंड बाद बदबू खुश्बू में महसूस होने लगी.
फिर उसने अपने हाथ को चाटना चाहा मगर आधी दूरी पे वो रुक गयी.
उसने अपने हाथ धोए और वापस सोने चली गयी. थोड़ी देर बाद शन्नो ललिता
के कमरे में आई और उसके नींद से जगाया. ललिता ने हल्की से अपनी आँख खोली.
शन्नो ने कहा "बेटा बुआ की तबीयत फिर से खराब हो गयी है और ऑपरेशन करना पड़ेगा. मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ. तुम लोग अपना ख़याल रखना और खाने का देख लेना.. मैं कॉल करूँगी बादमें" ये बोलके शन्नो हॉस्पिटल जाने के लिए निकल गयी.
शन्नो हॉस्पिटल जाने के लिए तेज़ तेज़ चलके बस स्टॅंड जा रही थी... उसने आज पीले और
नीले रंग का सलवार कुर्ता पहेन रखा था क्यूंकी बस में सारी पेहेन्के जाना
काफ़ी मुश्किल हो जाता था. शन्नो हमेशा बस में ही जाना पसंद करती थी और
इसका सबसे बड़ा फ़ायदा था पैसा. जैसे कि मैने पहले आपको बताया था कि शन्नो पैसो
के मामले में बहुत सावधानी रखती थी और वो शायद इसलिए था क्यूकी
उसके पास उतना नहीं था.... जहाँ वो ऑटो में 100 रुपय खर्च करती वहीं
वो 20 रुपय में बस से चली जाती....
क्रमशः……………………….
आ रही थी. चंदर और चेतन दोनो साथ में बैठके आहिस्ते करके ब्लू फिल्म देख
रहे थे. दोनो अलग अलग सोफा पे बैठे थे एक चद्दर के अंदर. दोनो ही धीरे
धीरे अपने लंड को मसल रहे थे ताकि एक दूसरे को पता ना चले मगर चंदर
अपना लंड ललिता को सोच सोच के मसल रहा था.
एक दम से दरवाज़ा खुला और शन्नो अपनी आँख मल्ति हुई कमरे के बाहर आई. जल्दी से
चंदर अपना हाथ चद्दर में से निकाला चॅनेल बदलने के लिए तब तक
शन्नो को एक झलक मिल गयी थी टीवी की. फिर भी उसने पूछा "क्या कर रहे हो इतनी रात
को तुम दोनो" चेतन ने घबराते हुए कहा "कुच्छ नहीं बस नींद नहीं आ
रही थी तो टीवी देख रहे थे." शन्नो मन ही मन मुस्कुरा रही थी दोनो को इतना
घबराया हुआ देखकर.
उनको थोड़ा और सताने के शन्नो ने पूछा "क्या देख रहे हो टीवी पर" चंदर बोला "कुच्छ नहीं आंटी बस ऐसी ही चॅनेल चेंज कर रहे है कि कहीं कुच्छ अच्छा आ जाए"
फिर शन्नो ने कहा "अच्छा ठीक है पर सो जाना थोड़ी देर में क्यूंकी काफ़ी रात
हो गयी है" शन्नो ने किचन से पानी लिया और वापस अपने कमरे में चली गयी.
दोनो ने एक दूसरे को देखा और बोला बच गये यार आज. चेतन ने कहा
"मैं तो जा रहा हूँ हूँ सोने.. तू भी आजा कहीं मम्मी फिर से ना आजाए".
चंदर ने कहा "अबे अब नहीं आएँगी. आजा ना बैठ ना मेरे साथ".
चेतन ने चंदर को मना कर दिया और कमरे में चला गया. उस ब्लू फिल्म को
देख कर चेतन को डॉली के साथ बिताई वो दो रात याद आगयि थी... उसको अब इन
फ़िल्मो में इतना मज़ा नहीं आता था क्यूंकी वो असली में चोद चुका था अपनी बहन को....
अब उसको इंतजार था कि कब उनके एग्ज़ॅम्स होंगे और कब वो डॉली से मिलेगा...
फिलहाल चंदर को भी डर था कि कहीं चेतन की मम्मी वापस ना आजाए और इसलिए
वो बड़ा सावधान हो रखा था. कुच्छ देर बाद उसने घड़ी में समय देखा
तो रात 3 बज गये थे. समय देखकर ही उसको भी अब नींद आने लगी तो उसने टीवी
बंद कर दिया और सोफे से उठकर ज़ोर से अंगड़ाई लेने लगा... चेतन के कमरे की ओर
कदम बढ़ाते हुए ही उसको लगा कि एक बारी टाय्लेट होके आजाता हूँ. चंदर ललिता के
कमरे के तरफ बढ़ा जिसमे अंधेरे के अलावा कुच्छ और दिखाई नहीं दे रहा था...
किसी तरह से उसने टाय्लेट की लाइट ऑन करी और अंदर गया. किसिके कमरे में आने की
वजह से ललिता की भी नींद टूट गयी थी और टाय्लेट की हल्की रोशनी से उसको पता चल
गया था कि चंदर टाय्लेट गया है.... सानिया ने झट से अपने उपर से चद्दर हटाई और
बिल्कुल सीधी पीठ के बल सोने का नाटाक़ करने लगी. टाय्लेट के अंदर से फ्लश की
आवाज़ आई और 10 सेकेंड में टाय्लेट का दरवाज़ा खुला... जब चंदर बाहर निकला तो
टाय्लेट की वजह से कमरे में थोड़ी रोशनी थी और उसने ललिता को सोते हुए देखा.
उसने जो टॉप पेहेन रखा था वो काफ़ी टाइट लग रहा था जिस वजह से उसके मम्मे
और भी बड़े लग रहे थे. चंदर के दिमाग़ में अभी ब्लू फिल्म ही चल रही थी और
एक झटके में उसका लंड फिर से जागने लगा.... उसको याद आया कि जिसने भी इस दुनिया
में रिस्क लिया है वोई अभी मज़िल झू पाया है और इसी सोच ने उसको रिस्क लेने
पर मजबूर कर दिया. उसने टाय्लेट का दरवाज़ा हल्का सा भेड़ दिया और दबे पाओ ललिता
के बिस्तर की तरफ गया. उसकी नज़रो के सामने ललिता के मम्मे उपर नीचे हो रहे थे.... उसने अपना हाथ ललिता के चेहरे के उपर हिलाया ताकि उसे पता चल सके कि
ललिता नींद में है भी के नहीं. जब उसको थोड़ा विश्वास आया तो उसने
अपने काप्ते हुए हाथ को बढ़ाया और उसके कंधे को हल्के से छुआ.
ललिता भी पूरी कोशिश कर रही थी कि चंदर को ज़रा सा भी शक़ ना हो पाए.
जब वो लंबी लंबी सासें ले रही तो उसके बड़े मम्मे और भी बड़े लगने लगे.
चंदर ने अपनी ठंढी उंगलिओ से ललिता के माथे और फिर गाल को छुआ
और फिर उसके होंठो को महसूस किया. चंदर अपने बढ़ते हुए लंड को अपने पाजामे
में ठीक करता हुआ सोचने लगा कीदरवाज़ा बंद कर देता ताकि शन्नो आंटी
कमरे में ना आ पाए. उस समय उसको यही ठीक लगा तो उसने आहिस्ते से कुण्डी लगा दी. चंदर अब बिस्तर के दूसरी ओर गया और उसने ललिता के गोरे पैरो को छुआ.
उसने अपना सिर नीचे करा और बिकुल आहिस्ते से उनको चूमा. अब उसके दिमाग़ में सिर्फ़
हवस भरी हुई थी क्यूंकी वो कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो चुका था. चंदर ने
अपने दोनो हाथ बढ़ाए और ललिता का टॉप उपर करने की कोशिश की.
दिक्कत ये थी कि ललिता ने टॉप अपने ट्राउज़र के अंदर घुसा रखा था.
चंदर ने एक बारी भी ना सोचा और टॉप को किसी तरह बाहर निकालने की कोशिश करी.
काफ़ी मेहनत के बाद आगे से टॉप बाहर आ गया मगर पीठ की तरफ से अभी
भी अंदर ही घुसा हुआ था. चंदर ने अपना ध्यान टॉप से हटाया और ललिता के स्तनो
को (जोकि अभी टॉप के अंदर थे) महसूस किया. जैसी ही उसने स्तनो को छुआ उसका
लंड पूरी तरह खड़ा हो गया. अब वो हल्के हल्के से उन्हे दबाने लगा.
उसको लग रहा था कि ललिता ने ब्रा पहेन रखी इसीलिए वो उसकी चूची को महसूस
नही कर पाया. ललिता भी अब काफ़ी गरम हो गई थी और इसलिए वो एक दम से बिस्तर पे पलटी. चंदर थोड़ी देर के लिए घबरा गया. चंदर मन ही मन मुस्कुराने लगा
क्यूंकी अब ललिता पेट के बल लेती हुई थी. ललिता को भी पता था ये करने से चंदर को टॉप निकालने में आसानी होगी. चंदर ने हाथ बढ़ाया और टॉप को बाहर निकाला.
दोनो के मुँह में पानी आ गया था. आहिस्ते से चंदर ने टॉप उपर करा और फिर
उसे सफेद ब्रा दिखी. अब चंदर और उसकी जिस्म की प्यास के बीच में सिर्फ़ दो हुक का
फासला था. चंदर ने कोशिश करी उसको खोलने क़ी मगर उससे नहीं खुला और
उसने उसको तोड़ने की कोशिश भी करी मगर उसे वो भी नही हो पाया.
गुस्सा, बैचैनि, हार और मायूसी ऐसी कयि चीज़े उसके चेहरे पे झलक रही थी.
मगर फिर उसने ललिता की गान्ड को देखा जोकि उसकी उंगलिओ को पुकार रही थी.
उसने थोड़ी देर तक ललिता की बड़ी गान्ड पे हाथ फेरा और एक दम से ललिता के ट्राउज़र को नीचे कर दिया. ललिता एक दम से डर गयी. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था और
अब उसको गीलापन भी महसूस हो रहा था. चंदर ने अपने ट्राउज़र और कच्छे
को नीचे किया और अपने साडे 6 इंच का लंड बाहर निकाला जोकि खंबे की तरह
सख़्त और उचा था. फिर उसने लंड ललिता के हाथ पे रख दिया और ललिता की उंगलिओ से
अपने लंड को दबाया. घबराहट के साथ ललिता को बड़े मज़े भी आने लगे थे.
इतना बड़ा लंड उसके कमरे मे उसके हाथ में है और वो भी उसके भाई के दोस्त का
ये सोचके वो काफ़ी नशे में थी. चंदर ने सोचा कि अब देर नही करनी चाहिए और
अब उसने ललिता की पैंटी पे अपनी नज़र डाली. कुच्छ ही पल में उसने हिम्मत
दिखाते हुए ललिता की पैंटी को थोड़ा नीचे कर दिया. ललिता की गोरी गान्ड अब
उसके सामने थी और जैसे ही उसने गान्ड को महसूस किया उसके लंड से हल्का
सा पानी आ गया. इसकी वजह अब ललिता और घबरा गयी. चंदर ने कुच्छ सेकेंड
तक अपना हाथ ललिता की कोमल गान्ड पे फेरा. पर अचानक से कमरे के
बाहर से कुच्छ आवाज़ आई और फिर बाहर की लाइट ऑन हो गयी. चंदर हद से ज़्यादा
घबरा गया और ललिता की जान ही चली गयी. चंदर ने ललिता के कपड़े ठीक किए और
अपने लंड को ट्राउज़र के अंदर डाला. उसने दरवाज़े की कुण्डी हल्के से खोली और
आस पास देखा और उसे कोई नही दिखा. वो जल्दी से कमरे से निकला और जाके चेतन
के बिस्तर पर लेट गया. कुच्छ सेकेंड बाद उसकी जान में जान आई. उसका पूरा
माथा पसीने से लत्पत था. कब उसकी आँख लग गयी उसको पता नही चला.
ललिता अपने बिस्तर से उठी और सीधा टाय्लेट गयी. उसने अपने हाथ को सुँगा और
अजीब सी बदबू आ रही थी. कुच्छ सेकेंड बाद बदबू खुश्बू में महसूस होने लगी.
फिर उसने अपने हाथ को चाटना चाहा मगर आधी दूरी पे वो रुक गयी.
उसने अपने हाथ धोए और वापस सोने चली गयी. थोड़ी देर बाद शन्नो ललिता
के कमरे में आई और उसके नींद से जगाया. ललिता ने हल्की से अपनी आँख खोली.
शन्नो ने कहा "बेटा बुआ की तबीयत फिर से खराब हो गयी है और ऑपरेशन करना पड़ेगा. मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ. तुम लोग अपना ख़याल रखना और खाने का देख लेना.. मैं कॉल करूँगी बादमें" ये बोलके शन्नो हॉस्पिटल जाने के लिए निकल गयी.
शन्नो हॉस्पिटल जाने के लिए तेज़ तेज़ चलके बस स्टॅंड जा रही थी... उसने आज पीले और
नीले रंग का सलवार कुर्ता पहेन रखा था क्यूंकी बस में सारी पेहेन्के जाना
काफ़ी मुश्किल हो जाता था. शन्नो हमेशा बस में ही जाना पसंद करती थी और
इसका सबसे बड़ा फ़ायदा था पैसा. जैसे कि मैने पहले आपको बताया था कि शन्नो पैसो
के मामले में बहुत सावधानी रखती थी और वो शायद इसलिए था क्यूकी
उसके पास उतना नहीं था.... जहाँ वो ऑटो में 100 रुपय खर्च करती वहीं
वो 20 रुपय में बस से चली जाती....
क्रमशः……………………….