जिस्म की प्यास compleet

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raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 08:01

जिस्म की प्यास--10

गतान्क से आगे……………………………………

खैर जब वो बस स्टॉप पर पहुचि तो वहाँ बहुत ही ज़्यादा भीड़ थी. कुच्छ ऑफीस जाने

के लिए खड़े थे और काफ़ी कॉलेज के लड़के लड़की खड़े थे. इनको देख कर शन्नो

को अपनी प्यारी बेटी डॉली की याद आगयि. उसमें से एक लड़की थी जो काफ़ी हद तक

उसे डॉली की याद दिला रही थी ख़ासतौर से उस लड़की की मुस्कान....

फिर थोड़ी देर में बस आई और सब एक दूसरे को धक्का देके बस में चढ़ गये.

गर्मी वैसे ही दिल्ली में छाई हुई थी और बस में इतनी भीड़ होने के कारण और

पसीने आ रहे थे मगर सबसे बड़ी दिक्कत थी कि शन्नो को 1 घंटे तक इस बस में रहना था.

शन्नो जैसे तैसे करके बस की भीड़ के बीच में आगयि. उसने देखा कि उसके

सामने वोई लड़की खड़ी थी जो उसे डॉली की याद दिला रही थी.... कुच्छ देर के लिए

वो बड़ी मुश्किलो से खड़ी रही. कभी बस के झटके लगते तो वो उल्टी दिशा में

गिरती तो कभी सीधी और कभी कबार तेज़ ब्रेक लगने पर पूरी भीड़ एक

के उपर एक लड़ जाती.... शन्नो की परेशानी को देखकर एक 22-23 साल का लड़का उठा

और उसने शन्नो को सीट देदि. वो लड़का शन्नो के साइड में ही खड़ा हो गया.

शन्नो ने उसे दिल से शुक्रिया कहा और आराम से जाके बैठ गयी. 15 मिनट बीत

गये थे और अभी भी बस पूरी तरह भरी थी. पसीने की बदबू पूरी बस

में फैल गयी थी. अचानक से शन्नो की नज़र उसी लड़के पे पड़ी जोकि

तिर्छि नज़रो से उसके बदन को निहार रहा था. शन्नो को गुस्सा आया मगर उसने

कुच्छ कहा नहीं. शन्नो को ध्यान आया कि उसका दुपट्टा कुच्छ ज़्यादा ही उपर की तरफ

हुआ पड़ा है जिस वजह से शायद वो लड़का उसके कुर्ते के अंदर झाक रहा होगा...

उसने जल्दी से अपने दुपट्टे को ठीक करा.

कुच्छ देर बाद शन्नो ने देखा कि अब उसी लड़के की नज़रे उसके आगे

खड़ी लड़की पे थी... उस लड़की ने नीले सलवार और शॉर्ट कुर्ता पहेन रखा था.

वो लड़की वोई थी जो शन्नो को डॉली की याद दिला रही थी... ये बदमाश लड़का

उस लड़की के बदन को ताकने लगा. जब भी कुच्छ झटका आता तो वह अपना

बदन उस लड़की से चिपका देता और लड़की बेचारी को भीड़ के मारे सब सहना पड़ता.... शन्नो को पता चल गया था कि ये लड़का कितना बड़ा थर्कि है. उस प्यारी लड़की

के ना मना करने पर अब उस लड़के के सिर दिमाग़ में कुच्छ ज़्यादा ही जोश छा गया था....

उसने उंगलिओ से उस लड़की के नीले कुर्ते को कोने से हल्के से पकड़ा. कुच्छ देर

उससे खेलते हुए वो उसको धीरे धीरे उपर उठाने की कोशिश करने लगा.

वो कुरती इतनी उपर हो गयी थी कि अब उस लड़की की सलवार से धकि हुई गान्ड नज़र आ रही थी... उस लड़की की सलवार भी पसीने के कारण उसकी गान्ड से चिपकी हुई थी.

उसके नितंब की पूरी गोलाई नज़र आ रही थी. वो लड़का दूसरे हाथ से अपने लंड

(जो कि जीन्स के अंदर था)को सहलाने लगा. फिर उस लड़के ने अपना हाथ

बढ़ाया और अपनी उंगलिओ से उस लड़की की गान्ड को छुने लगा और मौका देखकर

ही अपना पूरा हाथ गान्ड पे रख दिया. शन्नो उस लड़के की दबन्ग्पने को

देख कर दंग रह गयी. उसको लगा कि शायद लड़की को पता ना चला हो क्यूंकी वो लड़का

अपना हाथ नहीं हिला रहा था. मगर वो और भी दंग रह गयी जब उस लड़के ने

उस लड़की की गान्ड पे हाथ हिलाना शुरू किया. उस लड़के के चेहरे पर गंदी सी मुस्कुराहट छा गयी थी.... .

शन्नो का दिमाग़ सोच में पद गया था कि अब इस लड़के के गंदे दिमाग़

में क्या चल रहा होगा... बड़ी गौर से वो लड़के की हर हरकत पे नज़र रखने लगी....

फिर उस लड़के ने अपना हाथ उस लड़की के कमर की तरफ बढ़ाया और उसको रैंग्ता हुआ आगे लेगया पेट की तरफ. पूरे समय लड़की सीधी खड़ी रही जैसे कि उसको साप सूंग

गया हो. शन्नो आगे की तरफ झुक के बैठ गयी ताकि वो सब कुच्छ देख सके.

उस लड़के का हाथ अभी भी पेट पे ही था शायद नाभि की तरफ...

उस लड़के ने उस लड़की को ज़ोर से अपनी तरफ धकेला और दोनो का बदन चुंबक

की तरह चिपक गया... वो लड़का अब जोश में आ गया था और अब वो उसके स्तनो

की तरफ बढ़ गया. उस लड़की ने दुपट्टा ओढ़ रखा था और उस लड़के का हाथ

उसे छुपा हुआ था. लड़की के मम्मे डॉली के जैसे छोटे थे और उसने

ब्रा भी पहनी हुई थी तो इसलिए वो लड़का वापस अपना हाथ गान्ड की तरफ ले आ आया.

और फिर उसने हाथ बाहर निकाल लिया और कुच्छ समय के लिया सीधा खड़ा रहा.

एक अजीब सी ख़ालीपन था सा शन्नो का अंदर. वो कुच्छ ज़्यादा ही घुस गयी

थी इन बातो में और देखना चाहती थी कि ये कितनी हद्द तक जाते है. कुच्छ मिनट बाद

वो लड़का उस लड़की से चुपक के खड़ा हो गया. दोनो के बीच से शायद ही

हवा जा सकती हो. उसने उस लड़की का हाथ बढ़ाया और अपने लंड की तरफ ले गया.

raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 08:01

लड़की एक दम से उस लड़के के लंड को सहलाने लग गयी. शन्नो ये देख कर सोच में

पड़ गयी कि ये आजकल के बच्चो को क्या हो गया है. वो लड़की पूरे होश

में उसका लंड सहला रही थी जो कि अभी भी जीन्स में ही था. वो लड़का अब अपनी

सीधे हाथ की उंगली उसी लड़की की गान्ड की दरार पर चला रहा था और चलते चलते

उस लड़की की गान्ड के अंदर डालने लगा... जब भी वो लड़का ज़ोर लगाता उस शन्नो

को ऐसा लगता कि उस लड़की की मन ही मन में चीख निकल जाती.... "क्या कोई और भी

ये देख पा रहा है?" ये सवाल शन्नो के दिमाग़ में था....

शन्नो इतने गौर से देखने लगी उन दोनो की हर्कतो को कि उसको ये भी नहीं पता

चला कि उस लड़के की तिर्छि निगाहें शन्नो को घूर थी.... और फिर अचानक

से एक बिजली के करेंट की तरह शन्नो को उस लड़के का कलाई अपने सीधे स्तन के पिच्छले

हिस्से पर महसूस हुई....शन्नो का बदन उस चुअन से काप गया...

फिर कंडक्टर ने ज़ोर से आवाज़ लगाई "अपोलो हॉस्पिटल" "अपोलो हॉस्पिटल"..

ये सुनके शन्नो होश में आई और हैरान परेशान होके उस बस में से

भागते हुए उतर गयी. उसने अपने माथे का पसीना पौछा और हॉस्पिटल में

सीधे जाके टाय्लेट में घुस गयी.

उस लड़के ने शन्नो के अंदर की हवस को फिर से जगा दिया था... शन्नो का हद्द से

ज़्यादा मन कर रहा था कि कोई जिस्म की प्यास भुजा दे मगर उसके मन की आवाज़ कोई

नही सुन पा रहा था... उसकी आत्मा बेशक मना कर रही थी मगर अपने

दिमाग़ को वो रोक नहीं पा रही थी... अपने दोनो हाथो से उसने अपनी सलवार का

नाडा खोला और उसको नीचे सरका दिया... अपनी सीधे हाथ की उंगलिओ से उसने

मेशसूस किया कि उसकी पैंटी कितनी हद तक गीली हो चुकी थी...

अपनी पैंटी को उतारकर उसने अपनी चूत को देखा जिसपे गीलनापान सॉफ नज़र आ रहा था.... अपनी बड़ी आँखें बंद करके अपनी गीली चूत को अपनी उंगली से छूते ही वो

हवस में डूब गयी.... जैसी ही वो आगे बढ़ने लगी उसके पर्स में से मोबाइल की घंटी बजने लगी...

सुबह के 9 बजे थे और पूरे घर में शांति. ललिता की आँख खुली और वो अपनी

आँख मलते हुए कमरे के बाहर गयी. उसको याद आया कि आज तो मम्मी घर

पे नहीं है. फिर वो कल की हसीन रात के बारे में सोचने लगी.

एक एक पल को ध्यान से याद करने लगी. अगर मम्मी नहीं उठाती तो शायद चंदर

कभी भी नहीं रुकता और शायद वो पहली बारी एक मर्द की ताक़त को महसूस करती.

ललिता के दिमाग़ में आया कि अगर आज मम्मी नहीं है तो आज का दिन काफ़ी अच्च्छा

बीत सकता है. वो फिर अपने कमरे में गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया.

उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और जाके शवर के नीचे खड़ी हो गयी...

नहाने के वक़्त उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थी ताकि वो चंदर के हाथो को

अपने जिस्म पे महसूस कर पाए. नहाने के बाद उसने अपने बदन के गीलेपन

को सुखाया और नंगी अपने रूम में आ गयी. कुच्छ अपने आपको शीशे में

निहारने के बाद उसने अलमारी में से कपड़े निकाले पहेन्ने के लिए.

सबे पहले उसने सफेद पैंटी और ब्रा पहनी. पैंटी थोड़ी छोटी थी इससलिए पूरी गान्ड

धक नहीं पा रही थी. फिर उसने एक गुलाबी और सफेद रंग की स्कर्ट(फ्रोक) पहनी

जो कि उसके घुटने के उपर तक ही थी और आख़िर में उसने एक टाइट गुलाबी रंग का टॉप

पहेन लिया जोकि उसके स्तन की गोलाई सॉफ दिखा रहा था. उस टॉप की और ख़ासियत भी थी

कि वो डीप कट था और ज़्यादा झुकने से काफ़ी क्लीवेज दिख जाता था. अब उसको सिर्फ़ चंदर

के आने का इंतजार था...

आच्छे से तैयार होने के बाद वो अपने कमरे में इंतजार करती रही... काफ़ी देर तक इंतजार करने के बाद

भी उसे किसी की आवाज़ तक भी नहीं आई... परेशान होकर वो अपने कमरे के बहार निकली और अपने भाई के कमरे

के की ओर बढ़ी..... उसने धीरे से दरवाज़ा खोला पर वहाँ उसे कोई दिखाई नहीं दिया.

वो जल्दी से गयी और अपने भाई को कॉल करा और उसने बताया कि वो और चंदर दोस्तो से मिलने गये है और

घंटे में घर आजाएँगे. उसे अपनी बेवकूफी पे बहुत गुसा आया... उसे पता नही था कि अब अगले एक घंटे तक

वो कैसे गुज़ारा करेगी....अकेले बोर होने के बाद वो फिरसे अपने भाई के कमरे में गयी...

वहाँ उसने काले रंग का एर बॅग देखा जोकि चंदर का था.. नज़ाने उसको क्या सूझा वो उसके पास जाके उसको

खोलने लगी.

raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 08:02

काफ़ी कपड़ो को हटाकर उसको नीचे की तरफ बनियान मिली और उनके अंदर लिपटे हुए अंडरवेर दिखे....

जो अंडरवेर थे वो अलग अलग डिज़ाइन के थे जिनको उसने बॅग में से बाहर निकाल दिया... हर एक को उठाकर वो

सोचने लगी कि इनमें चंदर कैसे दिखेगा. ललिता को मस्ती सूझी और उसने अपनी फ्रोक को उतारा और

फिर अपनी पैंटी को. उसने चंदर का एक हरे रंग का कच्छा उठाया और उसको पहेनलिया. कच्छे को पेहेनने

के बाद वो अपने आपको शीशे में देखने लग गयी. ललिता को काफ़ी ताजुब हुआ क्यूंकी वो अंडरवेर काफ़ी हद तक

उसके फिट आ रहा था. वो मुड़कर अपने नितंबो को देखने लगी.... एक शरारती मुस्कान च्छा गयी उसके चेहरे पर जब उसने एक हल्का सा छेद देखा चंदर के अंडरवेर में जिसमें से उसकी गोरी चमड़ी नज़र आ रही थी.....

उत्साहित होकर वो वापस बॅग की तरफ बड़ी और सारी चीज़ीं निकालने लगी और निकालते निकालते उसको एक काला

स्ट्रॅप सा नाराज़ आया एक पेपर के अंदर लिपटा हुआ और जब उसने वो पेपर निकाला तो उसमें उसकी काले रंग की

पैंटी और ब्रा लिपटे हुए दिखाई दिए. ये देख कर वो हँसने लगी. चंदर में ये सब करने की हिम्मत भी होगी ऐसा नहीं

सोचा था उसने. उस काली पैंटी को उसने सूंग के देखा तो उसकी नाक में वीर्य की सुगंध च्छा गयी...

नज़ाने कितनी बार चंदर ने उसको इस्तेमाल करा होगा मूठ मारने के लिए इसका को अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती थी ललिता औरशायद चंदर को भी याद ना होगा..

फिर एक दम से घर की घंटी बजी और ललिता जल्दी से सारा समान बॅग में डालने लगी. उसने पूरी कोशिश करी कि

सारा समान वो ढंग से रख पायें मगर इस वजह से घंटियाँ और तेज़ बजने लगी. उसने जब बॅग बंद करके अंदर

रख दिया तो उसको ध्यान में आया कि अभी भी उसने चंदर का ही कच्छा पहेन रखा है. अब ललिता के पास समय नहीं था वापस बॅग खोलने का उसने जल्दी से अपनी फ्रोक (स्कर्ट) पहेनली और दरवाज़ा खोलने के लिए दौड़ी.

जब उसने दरवाज़ा खोला तो वहाँ दो लड़के खड़े हुए थे कंधे पे बॅग टाँगें हुए. ललिता ने उनसे पूछा "क्या काम है" उनमें से एक ने बोला "चेतन है क्या".

ललिता बोली "वो नहीं है तुम दोनो कौन?" फिर दूसरे लड़के ने ललिता को पूरी उपर से नीचे घूरते हुए बोला

"हम उसके दोस्त है उसने मिलने के लिए बुलाया था." ललिता ने उनको रुकने के लिए कहा और चेतन को कॉल करा.

"सुन दो लड़के आए है तुझसे मिलने के लिए" ललिता ने चेतन को बोला. चेतन ने कहा "अर्रे यार सुनो वो मेरे दोस्त होंगे

अल्ताफ़ और मयंक... प्लीज़ यार आप उन दोनो घर पे बिठा लो हम बस यहाँ से निकल ही रहें है".

"ठीक है पर जल्दी आना" ललिता ने थोड़ा गुस्से में बोला.

ललिता ने दरवाज़ा खोला और दोनो को अंदर बुलाया. दोनो जाके सोफे पे बैठ गये. ललिता ने दोनो को पानी दिया और

बोला की चेतन को आने में थोडा समय लग जाएगा जब तक टीवी देखलो.

फिर उनमें से एक ने पूछा "आप चेतन की बहन है" ललिता ने कहा "हां मेरा नाम ललिता है और तुम दोनो का"

दोनो ने अपना अपना नाम बता दिया. अल्ताफ़ दिखने में ठीक ही था और नज़ाने काफ़ी घबराया हुआ था.

उसके माथे का पसीना कोई भी देख सकता था. मगर जो मयंक था काला/अजीब सा दिख रहा था और बड़े मज़े

से टीवी देख रहा था. ललिता ने दोनो को अपने हाल पे छोड़ दिया और अपने कमरे का दरवाज़ा भेड़ के बैठ गयी.

कुच्छ देर बाद मयंक को सूसू आने लगी और सोचने लगा कि वो खुद टाय्लेट ढूँढे या चेतन की बहन से पूच्छे.

उसे अब और इंतजार नही हो रहा था और वो सीधा चेतन के कमरे मे चला गया टाय्लेट की तलाश में.

वो पहले भी यहाँ आया हुआ था तो उसको टाय्लेट ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होनी थी....

जैसी ही वो टाय्लेट की तरफ बढ़ा तो उसकी नजरे कमरे के फर्श पे पड़ी तो उसकी आँखें बड़ी हो गयी.

उसने अपने हाथो से ललिता की सफेद रंग की पैंटी उठाई और दीवार से चुपक के खड़ा हो गया ताकि कोई उसे

देख ना सके... और जब उसने उस पैंटी को सुँगा तो उसका दिल मचल गया. ललिता की खुश्बू उस पैंटी में से सॉफ

आ रही थी... उसने जल्दी से वो पैंटी अपनी जेब में डाली और जानके ललिता जिस कमरे में बैठी उधर चला गया.

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